Saturday, 1 April 2023

मंथरा

  *मंथरा*


                                     चन्द्रहास साहू

                                   मो 8120578897


आज मोर चेहरा अब्बड़ दमकत हावय भलुक आंखी ले दू टीपका आंसू निकलगे तभो ले मन गमकत हावय। सिरतोन आंसू घला  सुघ्घर लागथे,...उछाह के आंसू। काखरो जिनगी सिरजाये ले बड़का उछाह का होही...?

           गोरी सांवरी बरन,घुंघरालू चुन्दी, सरई के कोंवर पाना कस होंठ, खीरा बीजा कस दांत। नाक मा चमकत रवाही फूली, कान मा झूलत झुमका, बाहां भर चुरी,गोड़ मा बिछिया आलता अउ संग मा दमकत लाल कुहकू। शिफॉन के लुगरा सिंपल सोबर पोलखा ओखर उप्पर सादा डॉक्टरी कोट....! साज-संवर के अपन चेहरा ला देखेव दरपन मा। सुघ्घर... अब्बड़ सुघ्घर लागत रहेंव।

"काखरो नजर डीठ झन धरे......!''

 कजरारी आंखी ला मटकावत केहेंव अउ काजर के दू टीपका ला कान के पाछू लगायेंव। कोन जन ये बिसवास आवय कि अंधविश्वास..।फेर दाई के मया दुलार हाबे अइसे लागथे।

जादा उछाह मा झन नाच लता कोनो नइ हे देखइया। बाल मन हुक मारें लागिस मोर। फुसफुसावत हावव अउ अपन वैक्सीन बेग ला सावचेती होके जोरे लागेंव। अपन पर्स मा पइसा डारेंव अउ टिफिन मा इडहर के साग.. । चट्ट चट... चटकारा लेयेंव। पहिली बेरा बनाये रेहेंव...

कोंवर-कोंवर कोचई पान ला मास्टर घर ले आनेंव उरिद दार के पीठी बनायेंव। दूनो ला मिंझारके थारी मा राखेंव अउ ओ थारी ला कड़ाही मा मड़ाके भांप मा उसनेंव। ...अब नान-नान कुटका कांट के डबकत अम्मट मा ओइर के बनायेंव। अब बनगे इडहर साग हा पियर-पियर .. फोरन के मिठ्ठी लीम पाना अउ सरसो-राई के दाना उफले ....अब्बड़ ममहावत इड़हर साग।

मास्टर कका ला तो  देयेंव घला। ओखर कटोरी घला सकेलागे रिहिस।

"वाह.. अब्बड़ सुघ्घर,स्वादिष्ट, गुरतुर । तोर हाथ के जादू ... अहा..ह..अब्बड़ मिठाथे ओ लता तोर बनाये साग हा।''

कका अघागे।

कंघी करके एक बेरा दरपन के आगू मा अउ ठाड़े होयेंव। मुँहू के मुंहुरंगी लागयेंव अउ ड्रेसिंग के दरपन मा होंठ के गोल-गोल चिन्हा बनायेंव लिपिस्टिक मा। चुन्दी मा फूल खोसेंव। मुच ले मुचका के नानकुन कागज लिखेंव।

मोर मयारुक !

पैलगी 

           ये कुरिया मा तोर स्वागत हाबे मोर देवता !  भलुक तेंहा आबे तब मेंहा अपन ड्यूटी कोती रहू फेर ये घर तोला सुन्ना नइ लागे।    भीतरी मा आबे  ..अउ लम्बा सांस लेबे तब,..मोर ममहासी ला महसूस करबे। खिड़की खोलबे तब, खिलखिलावत हवा के झोंका बनके गुदगुदाहू। दरपन ला देखबे तब मुचकावत रहू। अउ गद्देदार सोफा मा बइठबे तब,.. तोला बइहा बनाहु ही..ही...। 

दूध वाला आरो करही ते कसेली मा दूध झोंका लेबे। मेंहा झटकुन आहूं मोर राजा !

                                  तोर गोसाइन

                                         लता

कागज मा नानकुन स्माइली बनायेंव अउ टी टेबल मा मड़ा देंव चंदैनी गोंदा के गुलदस्ता मा दबाके। तारा कूची लगा के जिला अस्पताल अमरगेंव।

गोसाइया आवत हावय आज। पहिली हफ्ता-पन्दरा दिन मा आवय फेर ये पारी पूरा-पूरा तिरसठ दिन मा आवत हाबे। ओखर बिना कतका तड़पेंव.. कतका रोयेंव ..परेशान होयेंव.. मेंहा जानहु, मोर आँसू जानही अउ मोर अकेल्लापन जानही..। 

            दू महीना के ट्रेनिंग मा गेये रिहिस रायपुर। मास्टर नोकरी लगगे हावय ट्रेनिग होही ओखर पाछू स्कूल मा पोस्टिंग। हे महामाई एके ठौर बर आदेश निकलवाबे दाई ! हमर दुनो के.. हमर शहर बर।         

                      आज मोर बर अब्बड़ उछाह रिहिस। गोसाइया आवत हे। मोर ससुर बेटी के नर्सिंग पढ़ाई मा नाव आये हाबे अउ बहिन बेटी के बिहाव तय होगे।....सब्ब एक संघरा अब्बड़ अकन खुशखबरी। भलुक मोर जेठ-जेठानी के बेटी आवय फेर पइसा के कमती नइ होवन देवव पढ़े बर। जिनगी सिरजाये बर।

                     मोर बाबू मन दू भाई अउ दू बहिनी होथे। मोर बाबू बड़का आवय जम्मो झन ले, अउ कका हा जम्मो झन ले नान्हे। हमर खानदान मा पहिली बेटी आवव मेंहा, जम्मो के दुलारी। सबके लाड़ली रेहेंव फेर कका बर जादा। कका के परी आवव न ..। कही जातिस कका के साइकिल के आगू कोती डंडिल मा बइठव। ....अउ डंडिल ले अब केरियल मा। जम्मो  गाँव भर किंजर डारो मेंहा।

कका के  बिहाव के बरात निकलिस तब फूफू के बेटी संग मोहाटी के दोनों कोती  शुभ कलश ला बोहो के ठाड़े रेहेंव । कका हा ओला दस के कड़कड़ाती नोट दिस अउ मोला मइलाहा दस के नोट।  अतकी मा अब्बड़ रोयेंव मेंहा अउ जम्मो देखइया मन अब्बड़ हाँसिस। लइका पन के रूठना मनाना..। कका जानथे। पचास के कड़कड़ाती नोट दिस अपन दुल्हा माला ले निकाल के। 

'मोर कंकालिन दाई ला कइसे मनाना हे जानथो मेंहा।''

कका किहिस अउ टुप-टुप पांव परिस। कोन जन काबर पांव परिस ते आज ले समझ नइ आइस।

मोर कका के कोरा मा बइठके बरतिया गेयेंव। अउ लहुटेंव तब तो कका काकी दुनो के कोरा ला पीरा कर डारेंव जागत भर ले ।....अउ अब बिहनिया उठेंव तब फूफू दीदी के तीर मा सुते रेहेंव। कका के परी,कंकालिन दाई फेर बिगड़गे रिहिस। कोंन जन फूफू का तेल लगाथे ते अब्बड़ बस्साइस। मइलाहा लागथे मोला,ये फूफू हा साफ-सफा मा धियान नइ देवय न। बफल-बफल के अब्बड़ रोयेंव। कका-काकी मनाइस अब, फेर शर्त रिहिस मोर।

"रातकुन दुनो के संग सुतहु कका !''

जम्मो कोई फेर हाँसिस ।

"हांव मोर बेटी ! सूत जाबे ।''

काकी किहिस। ओ दिन अब्बड़ रोये रेहेंव घोलन-घोलन के अउ कका हा पेमखजूर खवाके मनाये रिहिस।

कोन जन सिरतोन मा सुतेंव कि नही  भगवान जाने फेर कतको महीना ले मोर नींद हा कका-काकी के पलंग मा परे अउ दाई ददा के पलंग ले बिहनियां उठो । ननपन के जम्मो गोठ ला सुरता करत मोर मन गमकत हे। 

          मोर दाई ददा अब्बड़ बुता करथे उवत के बुढ़त ले। रोपा लगाई अउ मिंजाई बर तो कोन जन ...? घुघवा के आंखी ला उधार मांग के खार ले घर आथे। ठुकुर-ठुकुर रेंगत ददा आगू-आगू, दाई पाछू-पाछू अउ ओखर पाछू मा कमइया बनिहार मन के रेला अंधियारी रात मा।

"कइसे दाई अब्बड़ बेरा होगे घर लहुटे बर।''

"का करबो बेटी ! उवत ले बुड़त कमाबो तब तो दू पइसा बाचही ओ। 

महतारी बेटी गोठियावत हावन अउ अब काकी के गोठ मिंझरगे।

"तोर पढ़ाई लिखाई मा अब्बड़ खरच आवत हे नोनी । तोर बिहाव बर घला सकेले ला लागही का   ? उवत के बुड़त कमाही तब तो तोर दाहिज-डोल बर पइसा सकेलाही, न बड़की दीदी !''

काकी चटाक ले किहिस अउ दाई हा बुताये बरोबर हुकारु दिस।

"हांव ।''

आज सोज्झे अपन कुरिया मा खुसरगे दाई हा। नही ते आने दिन..कभू जुआ देखे ला काहय कंघी ला धर लेवय अउ कभू डोकरी दाई बबा बर गोरसी सपचा देवय कभू सुआ ददरिया सुना देवय। ...फेर आज हाथ गोड़ धोइस अउ कुरिया मा खुसरगे।

"दाई चाहा पी ले।''

अब्बड़ गेलोली करेव तब पीयिस चाहा। कमइया मन संग अब्बड़ हाँसत गोठियावत आयेस दाई ! अउ काकी के गोठ सुनके का होगे.......?

दाई मोला पोटार लिस अउ अपन छाती मा सूता लिस । अब रोये लागिस। बारवी पढ़त हव फेर दाई के रोवई ला नइ जान सकेंव। दसवीं पढ़इया भाई संग अब्बड़ गुनेंव फेर कुछु नइ सूझिस।

                    कका सोसायटी मा सेल्समैन हाबे। काकी हा तो बड़का घर के गुनवंती बेटी आवय। तभे तो कहिथे-

"पइसा सकेल के राख, हमरो तीन झन बेटी हावय। टूरा के अगोरा मा पुरोनी घला टुरी होगे।पाले-पोसे मा अब्बड़ खरच आही। बड़की के  बेटी लता उप्पर जम्मो ला झन लुटा...। जम्मो कोई बर कपड़ा लेथस.. खई-खजाना बिसाथस.... फीस भर देथस ..।''

 कोन जन काकी ला का होगे ते   ? ओखर ले अब्बड़ दुलार पाये रेहेंव फेर अब ..... बिखहर सांप बरोबर बीख उगलत हावय। 

                   गाँव मा कथा-भागवत माढ़े रिहिस। घर-घर सगा पहुना आये रिहिस। हमरो घर सगा आये रिहिस। कतको  सगा झर गे अउ कतको सगा रुकिस। काकी के फूफू दीदी घला आये रिहिस। हफ्ता दिन ले रिहिस।

"दमाद बाबू ! तोर लइका मन बर का सकेले हस   ? अब लइका मन संग्यान होवत हे। बड़का स्कूल मा पढ़ावत हस ते सुघ्घर आवय फेर बर बिहाब बर घला कुछु गुन। आगी लगत ले महँगाई बाढ़ गेहे ,...जानथस ? हमन बड़का नौकरी वाला मन दू तोला सोना नइ बिसा सकत हावन ते तोर का होही...? नानकुन नौकरी वाला के। तीन झन टूरी तीनो के दाइज-डोल, बर-बिहाव, पढ़ाई-लिखाई जम्मो मा लगही ...। करजा करबे ..? वहु ला छूटे ला परही...?''

काकी के फूफू हा कका ला अब समझावत हे। अब तो फूफू सास कमती अउ मंथरा जादा लागत हाबे। कका सुनत हे।

"देख दामाद बाबू दुलरू ! अभिन एके मा हावव तब बड़की के नोनी बाबू के पढ़ाई -लिखाई के खरचा , समिलहा होवत हाबे। काली बिहाव होही दुनो लइका के। खेत बेचहु तब, ...अउ खेत नइ बेचहु तब करजा कइसे छुटाही ..? बिहाब होवत ले ...करजा करत ले तोर संग मा रही तोर चतरा भाई हा। ताहन बाँटा-खोंटा माँगही। तोला देये ला परही..। ओहा गंगा नहा डारही अउ तेहाँ फदक जाबे।''

"कइसे फूफू..,कइसे फदक जाहू..?''

कका पुछिस  फूफू सांस के गोठ सुनके। अब थोक-थोक समझे लागिस कका हा फूफू सास के गोठ ला।

"भोकवा नही तो ...! जम्मो सकेले रहिबो तेला बड़की के नोनी बाबू मा लगा देबो तब हमर लइका बर का बाँचही ..? अउ तोर भतीजी हा नर्सिंग कॉलेज मा पढ़े बर रुंगरूँगाये हाबे। जानथस कतका पइसा लागही ...? चार बच्छर के कोर्स, दस लाख लागही...दस लाख। सब उही सिरागे तब हमर लइका हा कटोरा धर के भीख माँगही । अप्पड़ रही .., गुन कुछु , बइला झन बन।''

काकी अगियावत रिहिस। अब कका जान डारिस। दूसरा दिन ले कका हा मोर बाबू करा अड़गे बाँटा मांगे बर। आज अउ अब्बड़ रोयेंव मेहां। जम्मो बेरा मोर कका मनावत रिहिस फेर आज....? आज तो ओखरे सेती रोवत हावव।

"कका मोला नर्सिंग कॉलेज मा पढ़ा दे।''

कका मुँहू मुरकेटत रेंग दिस। आज के मंथरा के नजर हमर घर मा परगे रिहिस। भगवान राम ओखर ले नइ बाचीस तब मोर ददा का बाचही।  साधारण मइनखे हा। 

        भागवत मा कतका सुघ्घर बताइस महराज जी हा। आज कलजुग मा खुरसी  मा बइठे बर भाई-भाई गला कांट झगरा होथे। अउ  श्री रामजी अउ भरत जी घला झगरा होइस फेर उँखर भाव आने रिहिस। 

छोटे भाई ते बइठ ! बड़का भइया ते बइठ गद्दी मा अइसे। जम्मो सुनइया हो ! राम ला जानना हे तब आचरण मा उतारहु। हजारों के भीड़ सकेल के बड़का आयोजन करवाये मा भगवान के आसीस नइ बरसे भलुक चरित्र  बनाये ले आसीस होही...।

 कका ददा अउ जम्मो कोई  प्रसंग मा ताली बजा-बजा के नाचिस,गाइस  भजन सुनिस अउ ..... घर लहुट के बाँटा होइस।

                 गरीब मन बर सरकार के योजना संजीवनी आवय। बैंक ले लोन लेयेंव - शिक्षा लोन अउ नर्सिंग कॉलेज मा पढ़े बर भर्ती होयेंव। सिरतोन अगास मोर रिहिस अउ पांख घला मोर। तब बेटी ला उड़ियाये ले कोन रोकही..? पढ़ डारेंव अउ बनगेव नर्स दीदी।

             सरकारी अस्पताल के वेक्सीनेशन सेक्शन मा ड्यूटी हाबे मोर। अब्बड़ जिम्मेदारी ले ड्यूटी करत हँव। कतको झन ला पढ़े बर प्रोत्साहित करत हँव अउ कतको झन  दीदी मन ला प्राथमिक उपचार करे बर सीखोवत हँव। लइका के जतन टीका के खुराक .. जम्मो ला बताथो।

         ड्यूटी ले घर अमरेंव। गोसाइया आगे रिहिस। मुचकावत मोर स्वागत करिस। 

"मोला पचास हजार रुपिया के जरूरत हाबे लता !''

"काबर  ?''

"भतीजी के नर्सिंग कॉलेज मा एडमिशन करवाये  बर पइसा कमती परत हाबे।''

"हांव ''

एटीएम कार्ड ला देयेंव अउ पासवर्ड ला घला बतायेंव। 

"मोर गरीबहा कका के लइका मन ला घला पढ़े लिखे मा अब्बड़ दिक्कत होवत हे । उपराहा पइसा निकाल देबे। ओमन नइ मांगे तभो ले काखरो जिनगी सिरजाये बर  पंदोली  देबो ते  अब्बड़ उछाह मनाही। ...अउ नत्ता गुरतुर हो जाही। काखरो बर मंथरा बने मा उछाह नइ हे भलुक शबरी बनके जूठा बोइर के पुरती मया दे देबो ।

"सिरतोन काहत हस लता ! मोला तोर उप्पर गरब हाबे।''

गोसाइया किहिस छाती फुलोवत अउ एटीएम के रस्दा चल दिस। मेंहा अब साँझकुंन के दीया-बाती के तियारी करत हँव, मुचकावत, गमकत ।

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

समीक्षा


 पोखनलाल जायसवाल: 

आज जब घर परिवार दिनोंदिन एकाकी होवत जावत हे। कोनो ल अपन छोड़ कखरो संसो फिकर नइ हे। स्वार्थ के बड़ोरा म नता-गोता पेरौसी भूसा सहीं उड़े लागे हे। बाॅंटे भाई परोसी, के हाना सोला आना फिट बइठत हे। समिलहा परिवार (संयुक्त परिवार) जउन भारत के बड़ ताकत रहिस। जेकर छाॅंव म लइका मन संस्कारी, आज्ञाकारी,  अउ जम्मो मानवीय गुण ल सीख पावत रहिन। भाईचारा अउ साहमत करे के मानवीय गुण ल घरिया के खूॅंटी म टाॅंग डरे हे। मनखे स्वार्थ के चिखला माटी म तरी मुॅंड़ सनाय दिखत हे। अइसन म जिनगी के पाछू बेरा के जम्मो करू-कसा ल भुला लता नवा रस्ता गढ़थे। 

         पैसा तो हाथ के मइल आय, अभी हे त हे, चिटिक बेर म नइ रहे। तभे तो बड़े बड़े मनखे घलव अटक जथे।  अटके म मनखे अपन मेर नइ गोहराही? त काखर मेर गोहराही। अइसे भी ताली तो दूनो हाथ म बजथे का? फेर कभू-कभू मति हरा जथे। दूसर के गोठ बात म आय ले मया के फुलवारी उजर जथे। फुलवारी के उजरे ले अउ ॲंगना के बॅंटे माहर-माहर महकत ममहासी बटय नइ भलुक सिरा जथे। अइसने लता के कका सेल्समैन अपन पाॅंव म पखरा कचार डारथे। वो भुला जथे कि मनखे के बिगाड़े मनखे के बिगाड़ नइ होवय, जब भगवान नइ सोचे हे त। लता जइसे तइसे पढ़ डारिस अउ आज अपन पाॅंव म खड़े हे। पूरा दम के संग। 

        कहिनी म हमर समाज म मया ले महकत घर परिवार के उछाह घरी के सुग्घर चित्रण करे गे हे। फेर जे बड़ सुंदर दिखथे, उही ल झटकुन नजर घलव लगथे। चिटिक धियान देवव न, मनखे मुखारी अउ लउठी बर सोज अउ सुग्घर डार ल खोजथे न? कका के परी बर चिटिक मया नइ दिखय। इही तो आय समे के फेर। फूफू सास के फूके कान ले घर बॅंटागे। कुल मिलाके कहानी म घर गाॅंव के लोगन के मनोभाव ल बड़ सुग्घर ढंग ले उकेरे गे हे। जीवंत हे। 

         लता के सोच घर-परिवार ल मया के सुतरी म गुॅंथ के माला सहीं पिरोय के दिखत हे। इही कहानीकार के सामाजिक सरोकार ल रेखांकित करथे। कका के बेटी मन बर संसो करत शिक्षा के उजियार ल बगराय के ओकर उदिम सराहे के लइक हे। 

        मंथरा अउ शबरी के पौराणिक चरित्र ल सुरता करत कहानी अपन भीतरी भारतीयता के ममहासी ल महर महर महकात हे अउ उछाह के संदेश बगरात हे।

        कहानी के भाषा शैली अनुपम हे। पात्रानुकूल कथोपकथन ले कहानी सुग्घर ढंग ले आगू बढ़थे। उद्देश्य पूर्ण कहानी बर चंद्रहास साहू जी ल बधाई।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग

6261822466

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