. *सीख* ( लघु कथा )
- डाॅ विनोद कुमार वर्मा
" *जादा दारू पीये ले आदमी कभू बुढ़ुवा नि होवय! " - टेटकु बबा बोलिस।*
*बबा के बात ला सुनके कमलेश के आँखी म चमक आ गे !*
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रात के साढ़े सात बजती बेरा म कमलेश 40-50 के स्पीड ले गाँव के भीतरी सड़क मा साइकिल ला भगावत तरिया कोती जावत रहिस कि पाछू ले आवाज आइस- सुन तो कमलेश बेटा!
कमलेश अनमने रूक गे अउ रूखाई ले कहिस- काए बबा?
' अरे अइसने रोके रहेंव। अतेक अंधियरहा कहाँ जावत हस बेटा ? '
' तरिया कोती! '
' जेब हा बड़ फूले-फूले दिखत हे- काय धरे हस ? '
कमलेश ला गुस्सा आगे- तहूँ पीबे का? पीये बर हे त चल तरिया कोती?
' अरे बेटा! मैं जान डरे रहेंव कि साईकिल ला घोड़ा कस दउड़ावत तरिया कोती भागत
हस त जरूर कुछु गड़बड़ हे! '
' बबा तैं सठिया गे हस! '
अब बबा के सीख देहे के पारी आ गे। बबा कहिस- जिंदगी म घोड़ा कस दउड़ लगाय म लगाम ला कस के पकड़े ला परथे। नई ते गिर जाय ले जान चल देथे!
' का बबा महिच्च मिले हों का आज सीख देहे बर ? '
' अच्छा! एक ठिन बात बतावत हौं- जादा दारू पिये ले आदमी कभू बुढ़वा नि होवय! '- टेटकु बबा बोलिस।
बबा के बात ला सुनके कमलेश के आँखी म चमक आ गे! मानो लाटरी लग गे होही।
' ये तो बने बात बताय बबा! फिरती बेरा तोर करा जरूर मिलहूँ त एकर रहस्य ला बताबे! ....... तैं तो 80 बछर के हो गय हस त तोर बात ह सहीच्च होही! '
एकर बाद कमलेश साइकिल ला जोर-से भगावत तरिया के पार म पहुँच गे। कमलेश के अबेरहा आय म ओकर तीनों मितान गुसियाय रहिन फेर दारू के बोतल ला देखिन त मुहुँ म लार आय लगिस।
' अरे! एके बोतल कइसे पुरही? ' - एक मितान बोलिस।
' पइसा कहाँ रहिस? दारू दुकानदार के दामाद हों का मैं, जेहा मोला दू बोतल दे देतिस! ' - कमलेश थोरकुन गुसिया के बोलिस।
थोरकुन देर म हल्का-फुल्का नशा चढ़े के बाद चारों मितान घर वापिस होवत रहिन। त कमलेश बोलिस- टेटकू बबा बोलत रहिस कि जादा दारू पीये म आदमी कभू बुढ़वा नि होवय! चला अभी मिल-के पूछत हन। कुछु तो बात होही?
' बिलकुल चलब! डोकरा 80 बछर के हो गे हे, कुछु तो बताही? '- एक मितान लहरावत बोलिस।
टेटकु बबा के घर के मुँहटा म पहुँच के कमलेश चिल्लाइस- टेटकु बबा! टेटकु बबा!!
टेटकु बबा घर ले बाहिर निकलिस,अउ पूछिस- काए बेटा? रात के नौ बजत हे ! कइसे आय हव?
कमलेश बोलिस- बबा तैं कहत रहेव कि जादा दारू पीये म आदमी बुढ़वा नि होवय? एकर का रहस्य हे तेला बता बबा?
टेटकु बबा थोरकुन बेरा चुप रहिस,फेर बोलिस- बेटा,मोर इकलौता लइका तुइमन-कस दारू पीये ला सीख गे। पहिली थोर-थोर पियत रहिस। फेर पोठ्ठ पीये लगिस। अपनो पियय अउ चार झन लोगन ला घलो पिलाय। घर के थोरकुन जमीन रहिस ओहू बिक गे अउ बहू के गहना-गूठा घलो बेच खाइस! चालीस बछर म दुनों किडनी खराब होगे अउ मर गे! कहाँ ले दवा-दारू करातेन? मोर बेटा ह कभूच्च बुढ़वा नि होइस- जवानीच्च म मर गे! दुनों नाति-नतनिन अउ हमन दुनों डोकरा-डोकरी ला बनी-भुती करके बहु पोंसत हे!.....दारू पीये ले आदमी कभू बुढ़ुवा नि होय बेटा!!
अतका कहत-कहत टेटकु बबा के आँखी ले आँसू ढरके लगिस। चारों मितान भारी मन ले उहाँ ले आघू बढ़िन। थोरकुन देर म चुप्पी ला टोरत कमलेश बोलिस- अब आज-ले मैं दारू पिये-ला छोड़त हौं भाई, अब मोला झन बुलइहा!
एक झिन दूसर मितान बोलिस- महूँ दारू छोड़े बर सोचत हौं भाई! आदत पर जाही त कहूँच्च के नि रइहूँ!
- डाॅ विनोद कुमार वर्मा
व्याकरणविद्, कहानीकार, समीक्षक
बिलासपुर
मो- 98263 40331
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