पल्लवन-साहजी के बइला कीरा के मरै
-----------------------------------
मनखे के ये सुभाव होथे के वोला अपन जिनीस बर आन के जिनीस ले जादा पिरिया होथे।ओइसने अपन जेब ले पइसा निकाल के---मेहनत ले कमाये धन ले बिसाये कोनो समान बर भले वो हा सस्तिहा अउ कम उपयोगी रइही तभो ले फोकट म मिले कीमती समान ले जादा पिरिया रइही---खुद के बिसाये जिनिस के जादा देख-रेख अउ कदर होही।
ये बात ल कोनो विमोचन समारोह म मिले (बिना खरीदे) किताब अउ खुद के पइसा ले खरीदे किताब के उदाहरण ले बने फोरिया के समझे जा सकथे। विमोचन समारोह म मिले किताब ल तो कई झन पन्ना पलट के तको नइ देखयँ--पढ़ई के तो बाते ल बिसार दव। अइसन किताब मन अलमारी म भराय-भराय दियाँर के पेट भरे के काम आथे,नहीं ते रद्दी के भाव बेंचा जथे।
एही तरा के दुर्गति साहजी म करे कोनो काम के तको होये के सोला आना कुशंका होथे। चाहे वो ह दू-चार आदमी मिलके साहजी म (साझेदारी म) करे कोनो बिजनेस होवय ,चाहे साहजी म करे खेती-किसानी होवय कुछ दिन बने-बने चलथे तहाँ ले मनमुटाव के लक्षण दिखे ल धर लेथे। अइसन साहजी के काम म सबले बड़े बीमारी कोनो जिम्मेदारी ल आन उपर टाले के,टालमटोल करे के अउ नुकसान के कारण आन ल बताये के होथे।
अइसने एक काम अउ मिलजुल के करे जाथे जेला सहयोग कहे जाथे।सहयोग अउ साहजी म जमीन-आसमान के अंतर होथे। सहयोग ले बड़े-बड़े काम हो जथे---असंभव ह संभव हो जथे। सहयोग म कल्याण के भावना रहिथे,स्वार्थ नइ राहय,श्रेय लुटे के भाव नइ राहय।
साहजी के बुता म स्वार्थ हावी हो जथे।दू झन किसान हे।दूनों सो एकके ठन बइला हे। एक ठन बइला म तो खेती के काम नइ हो सकय त दूनो झन सपरिहा बनके बइला मन के जोड़ी बनाके खेती किसानी करे ल धरलिन। एक झन ह अपन पारी म बइला मन ल ,खासकर दूसर सपरिहा के बइला ल मनमाड़े कोंच-काँच के,बेरा-कुबेरा रगड़ के काम लेके , बइला मन के जतन पानी म धियान नइ देके---ये सोचके के अब तो वो सपरिहा के पारी हे ,वो जानै,वो जतन-पानी करही --दूसर ल सँउप दिच।दूसरइया ह तको ओइसने रगड़ के काम लिच अउ बिना जतन-पानी करे ,वो जानै--अब तो वोकर पारी हे सोचके पहिली सपरिहा ल सँउप दिच। बइला मन कोंचई के मारे घाव-गोदर म बूड़गें। वो जानै---वो जानै के मारे जतन होबे नइ करिच। तेकरे सेती कहे गे हे--"साहजी के बइला कीरा के मरै।"
चोवा राम वर्मा "बादल"
हथबंद,छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment