Thursday, 13 April 2023

पल्लवन- मरे बिगन सरग नइ दिखय

पल्लवन- मरे बिगन सरग नइ दिखय

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पोखन लाल जायसवाल

        भारतीय मान्यता हे कि मनखे मरे के पाछू सरग नइ ते नरक खच्चित जाथे। हर मनखे के इही साध रहिथे कि मरे के पाछू ओला भगवान ह सरग देवय। अभी तक कोन ल सरग मिले हे, एकर जीता-जागता प्रमाण तो नइ हे। तभे पुरखा मन कहि गे हे - मरे बिगन सरग नइ दिखय। 

       भारतीय समाज म नरक अउ सरग ल ले के जेन सोच हे, जेन बिचार हे। ओकर ले इही कहे जा सकत हे कि सरग पाय या जाय के साध हे, त बने करम करे के उदिम करना चाही। घिनहा काम ले बचना चाही। कखरो अंतस् ल नि दुखाना चाही। कखरो अंतस् दुखाय ले बद्दुआ मिलथे। पाप-पुण्य के घड़ा म पाप भरत जाथे, एकर उलट नेकी करे ले असीस मिलथे, पुण्य बाढ़थे। पुण्य कमाय के रस्ता  बड़ कठिन होथे। जब कभू खाय ल बइठेन उही बेरा म कोनो लांघन-भूखन ह खाय बर माॅंगे आगे त अपन बाॅंटा के ल दे ल परथे। अइसन करना या कर पाना सबो दारी नि हो सकय। इही तरह ले सच के डाहर, त्याग अउ समर्पण के डाहर चले बर स्वार्थ ल खूॅंटी म टाॅंगे ल परथे। अइसन करे ले मन ल शांति मिलथे। मन सुख के अनभो करथे। सरी जग ह अपने लगथे, कोनो बिरान नि लगय। सब बर मया पलपलावत रहिथे। पाॅंव म काॅंटा नि गड़य। सब सुखी दिखथें। इही हर तो आय सरग के सुख। ए सुख बर अपन सरी जिनिस ले मोह छोड़े बर परथे। सब ल दाॅंव म लगा के सेवा काज करे बर परथे। अइसे कुछु जिनिस के दाॅंव लगाना अउ मोह छोड़ना बड़ मुश्किल होथे। मोर घर-बार, मोर बेटा-बहू, याने मोर-मोर के चक्कर म फॅंसे जीव भले खटिया म पचत रहिथे। रोज रोज के खटपिट-खटपिट ल सहत-सुनत नरक भोग रहिथे, तब ले ऊपर छवा इही कहिथे- भगवान लेगत नि हे। मरना मतलब अपन शरीर के मोह छोड़ना हरे। जइसे ही जीव शरीर के मोह छोड़थे फुर्र उड़ जथे। अंतस् ले मोह-माया भर के छुटत देरी रहिथे, भगवान के शरणागत होय च ले, भगवान अपन तिर बुला लेथें। भगवान के शरणागति होय ले जरूर सरग मिलथे। तभे तो लोगन मानथें कि शरीर छोड़े जीव सरगवासी होगे। 

          कभू-कभू सुने ल मिलथे - बड़ चौरासी भोगत रहिस हे, मर के बना लिस। नरक ले मुक्ति पागे। एकर मतलब तो इही होइस का? कि अपन मरे बिगन सरग नइ दिखय।


पोखन लाल जायसवाल 

पलारी (पठारीडीह) छग.

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