Saturday, 29 April 2023

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल बर नवा उड़ान बनही - पाॅंखी काटे जाही



 

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल बर नवा उड़ान बनही - पाॅंखी काटे जाही


          छत्तीसगढ़ी साहित्य धीरलगहा साहित्य के जम्मो विधा म अपन पाॅंव जमावत हे। चेतलगहा लिखइया मन गद्य साहित्य के कोठी ल सरलग भरत हें। पद्य म सिरिफ गीत, कविता नइ बल्कि खंडकाव्य, छंद बद्ध काव्य के लिखना सोशलमीडिया अउ पत्र-पत्रिका मन म जगर-मगर दिखत हे। कवि मन के मिहनत रंग लावत हे। लोकजीवन म तुलसी, कबीर, रहीम जइसे कतको के दोहावली पद मुअखरा चले आवत हे। इही तरह आज के समे म ग़ज़ल के शेर लोगन के मुँह म बिराजे धर ले हे। अपन गोठ ल शेरो-शायरी ले वजनदार बनाय के चलन बाढ़ गे हे। अइसन म कुछ झन मन ग़ज़ल लिखई म भिड़े हें। ग़ज़ल कहना आसान नइ हे, फेर कोशिश करे म का हर्ज हे। इही सोच कतको झन ग़ज़ल लिखत हें। जेकर सम्मान करना चाही। छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के श्री गणेश करे के श्रेय श्री मुकुंद कौशल जी ल जाथे। उॅंकर लिखे ग़ज़ल मन ल छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के थरहा आय, माने जा सकत हे। उँकर दे छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के ए थरहा ल आज रोपे के बेरा हे। कतको लिखइया ग़ज़ल तो लिखत हें, फेर डायरी ले निकल के किताब के शिकल म नइ आय ले चर्चा नइ हो पावत हे अउ छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के शोर नइ उठे हे। जेकर ले छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल पहचान नइ बना पावत हे। कुछ छपे हे तेन कतको कारण ले अपन छाप नि छोड़ सके हें। एमे एक कारण तो किताब मन के साहित्यिक चर्चा नइ हो पाना हरे। 

            छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के किताब के इही क्रम म राजकुमार चौधरी रौना जी के ' पाँखी काटे जाही' नाँव के ग़ज़ल संग्रह पढ़े बर मिलिस। ए किताब वैभव प्रकाशन रायपुर ले २०२२ के छेवर म छप के आय हे। राजकुमार चौधरी 'रौना' जी व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर आय। जिंकर व्यंग्य संग्रह 'का के बधाई' छप गे हे। माटी ले जुरे कविता मन के संग्रह 'माटी के सोंध' ले रौना जी अपन काव्य यात्रा शुरू करिन, जेकर ममहासी ले अपन क्षेत्र म साहित्यिक गतिविधि ल सरलग ऊर्जा प्रदान करत हें। नवा रचनाकार मन आप ले प्रेरणा लेथें। चाहा के नानकुन दुकान ले घर-बार चलावत संघर्ष ले जिनगी जीयत रौना जी के छत्तीसगढ़ी साहित्य बर समर्पण वंदनीय हे, स्तुत्य हे।

          गीत अउ ग़ज़ल म बड़े फरक हे, वो हे विषय वस्तु के। एक गीत एके विषय या भाव ल पिरो के लिखे जाथे। उहें एक ग़ज़ल के हर दू डाँड़ म अलग-अलग विषय/भाव ल शामिल करे जा सकत हे। एक गीत-ग़ज़ल के मात्रा भार या बह्र हर पद/डाँड़ म एक बराबर रहिथे। ए किताब के भूमिका श्री अरुण कुमार निगम जी लिखे हें। ए भूमिका म लिखाय दू ठन बात के उल्लेख करे के मोह नइ छोड़ पावत हँव। एक छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के शैशव-काल चलत हे। दूसर, विधान के जानकारी के अभाव म कई झन कवि मन दू-दू पद के आपस म तुकांत, द्विपदी ल ग़ज़ल कहि देथें। 

         एकर पीछू निगम जी के संदेश इही हे कि छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल लिखे बर पहिली ग़ज़ल के बनकट/ विधान/शिल्प (जउन बह्र कहलाथे )के बने जानकारी ले लेवन तब जाके लिखे के प्रयास करन। अभ्यास ले सब चीज हासिल करे जा सकथे। 

         राजकुमार चौधरी रौना जी ल ग़ज़ल के बह्र के बढ़िया जानकारी हे, ए बात के प्रमाण किताब म शामिल ग़ज़ल मन ले मिलत हे। राजकुमार जी के ग़ज़ल के शिल्प के बात करे जाय त थोकन कमजोर हे। जेन म काफिया खासकर मतला म सटीक नइ हे। त कुछ ग़ज़ल छंद बद्ध रचना ही होगे हे। ग़ज़ल के कहन ले थोकिन भटके-भटके लगथे। हो सकत हे राजकुमार चौधरी जी छंद के प्रयोग ले ग़ज़ल लिखे के नवाचार अपनाय होही। लेकिन ए नवाचार ल ग़ज़ल के पारंपरिक कसौटी म खरा नइ उतर पाय हे। यहू बात सही हे कि कुछ एक छंद ग़ज़ल के बह्र म फिट बइठथे। गेयता अउ लयात्मकता के दृष्टि ले संग्रह के जम्मो रचना ग़ज़ल के तिरे च हें।

            भाव पक्ष के बात करे जाय त राजकुमार चौधरी रौना के ए संग्रह छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल बर नवा रस्ता गढ़ही। आज के समे म ग़ज़ल म जेन बात शामिल करे जाथे, वो सब ए संग्रह के ग़ज़ल मन म मिलथें। जिनगी के संघर्ष, सामाजिक सरोकार, शोषण, पीड़ा अउ अन्याय के खिलाफ मुखर स्वर हे। बेवस्था के विरोध म दमदारी ले खड़े नजर आथे। ए ग़ज़ल मन म व्यंग्य के पुट घलव हे। पाखंड अउ अंधविश्वास ल घलो कटघरा म खड़ा करथे। लोक संस्कृति आचार-विचार के दर्शन हे। आज के ग़ज़ल अब मया-पिरीत बस म फँसे नइ हे, वइसने राजकुमार चौधरी रौना घलव ए बँधना ल टोर आज के दौर के ग़ज़ल लिखे म माहिर हें। कहे के मतलब हे कि समे के धारा ल राजकुमार चौधरी रौना जी बने पहिचानथें अउ ओकर संग चले के उदिम घवव करथें। इही ह तो प्रगतिशीलता ल दर्शाथे।

          अब संग्रह के ग़ज़ल मन ल शिल्प अउ भाव ले परखे के एक कोशिश करत हॅंव। ग़ज़ल के रदीफ अउ काफिया के संग बह्र के बरोबर तालमेल बइठार दे ले कभू भाव बिगड़ जथे अउ भाव ल समेटे के उदिम म कभू-कभू बह्र छरिया जथे। दूनो के समन्वय ले मुकम्मल ग़ज़ल लिखाथे। अभी छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के शैशव काल हे, तब ए सब कोती कुछ जादा ध्यान दे ल परही। राजकुमार चौधरी जी ए दूनो डाहर बने चेत करे हें, देखव कुछ बानगी- 

      चढ़ सिंघासन मौज कर ले तोर तो सरकार हे।

      झूठ तक ला सच बनादे तोर तो अखबार हे।


      ॲंजोरी रात मा बादर घलो घुरियात बइठे हे।

      कभू आगू कभू पाछू भरम बगरात बइठे हे।


      मीठ करू ला चखले भइया।

      सब के बात परख ले भइया।


      देह बाती कस बरागे का कबे।

      तेल अंतस् के सिरागे का कबे।

        ए सब म बह्र के संग रदीफ अउ काफिया के सुग्घर समन्वय दिखथे। मतला म ही ए दूनो के सही पहिचान कर पाना ग़ज़ल बर बहुते मायने रखथे। थोरके चूके ले ग़ज़ल के मजा किरकिरा हो जथे।

        मिले हावन घड़ी बेरा मया के बात कहि डारिस।

        नजर भर देख के मोला नजर मा बात कहि डारिस। 38

           ए ग़ज़ल म आगू चल के 'कहि डारिस' रदीफ ले गे हे, जबकि सही रदीफ 'बात कहि डारिस' होही। चूंकि तुकांत शब्द काफिया होथे, अउ दुहराय वाला शब्द/शब्द समूह रदीफ होथे। अइसन म बिना रदीफ के ग़ज़ल तो हो सकथे, फेर काफिया के बिना ग़ज़ल संभव नइ हे। मतला के दूनो मिसरा म तुकांत शब्द होना च चाही।  

        ढेला मा नानुक का हपटे पर ले पीरा नापत हस।

        घड़ी अकन दुख का देखे सरलग माला जापत हस।

          इहॉं 'आपत' काफिया अउ 'हस' रदीफ हे, पर ग़ज़ल म आगू चल के काफिया बदल गे हे। इही तरह ले राजकुमार चौधरी जी ले कहूॅं-कहूॅं ग़ज़ल म काफिया ले म चूक होय हे।

            ग़ज़ल म जेन शेरियत के गोठ/कहन के अपेक्षा करे जाथे, वो ह राजकुमार चौधरी जी के ग़ज़ल म नजर आथे। फेर छंद मात्रा के आधार ले लिखे गे रचना म ए कमी झलकथे। काबर कि छंद अउ ग़ज़ल दूनो म फरक होथे। दूनो स्वतंत्र विधा आय। ग़ज़ल के पहला मिसरा, दूसरा मिसरा के बिगन अधूरा जनाथे। जबकि छंद म अइसन नइ होवय। अइसे भी कुछ छंद ही दू डाॅंड़ के होथे। ग़ज़ल संग्रह के नाॅंंव ले प्रकाशित किताब म ग़ज़ल के शिल्प वाले रचना ल ही जगह देना बने रहितिस। जेन विधा के किताब होथे, ओकर शिल्प ले कोनो समझौता नइ करना चाही, अइसन मोर मानना हे। 

         कोनो किताब के शिल्प के संगेसंग भाव पक्ष के गोठ कर ले म किताब के सही-सही अवदान अउ रचनाकार के मिहनत ल मान मिल पाथे। सम्यक भाव ले मूल्यांकन हो पाथे। ए किताब के भाव पक्ष बड़ सजोर हे। कुछ के गोठ करत हुए बहुत कुछ ल पाठक बर छोड़त हॅंव।

           चुनावी वादा के बहाना नेता मन के चाल के भंडाफोड़ करत उन कहिथें-

       नवा वादा नवा कतको सकल होही।

       सिंघासन बर खुरापाती अकल होही।।


निगरानी मा राखव रौना लबरा मन के चाला ला।

मॅंद मउॅंहा के लालच दे के यहू बखत भरमाहीं रे।

        ग़ज़ल म व्यंग्य के पुट जगर-मगर दिखत हे। व्यंग्य ह रौना जी के नैसर्गिक प्रवृत्ति हरे। ते पाय के एकर अधिकता मिलही।

           पारिवारिक बिखराव अउ निचट सुवारथ म टूटत जावत समाज के संसो संवेदनशील रौना जी के कलम ले पन्ना म उतरे हे-

       सुमता के फुलवारी अउ हित के डार कटागे।

       हिल-मिल के दिन काटन वो घर परिवार बॅंटागे।

          ग़ज़ल शुरुआत म प्रेम-मोहब्बत बर ही जाने जावत रिहिस। शृंगार के बिना ग़ज़ल अधूरा माने जावय। राजकुमार चौधरी जी ग़ज़ल के ए माॅंग ल पूरा करथें अउ नायक के अंतस् के बात ल लिखथें

            आज माहुर पॉंव मा चुकले रॅंगा के आ जते।

            नाॅंव मोरो तैं अपन अंतस् लिखा के आ जते।

         नायिका अपन सहेली ले मन के पीरा ल कइसे कहिथे देखव-

             झम ले आथे भाग जाथे घाम बदराही असन,

             का बताववॅं घर म ओकर पाॅंव हर माढ़ै निहीं।

             गरीब अउ शोषित मन के पीरा ल ग़ज़ल म कहना कोनो आसान नइ होय, फेर राजकुमार चौधरी ह छोटे बह्र म बड़ सुग्घर कहि डरे हे- 

            गोड़ लमावन अब हम कतका,

            चद्दर हावै तुनहा ॲंखरी।

   

            बस्तरिहा बर का विटामिन,

           आजो खाथे लासा पिकरी।

           मिहनतकश मनखे के जिनगी के संघर्ष ल नजीक ले देखे हे तउन ल लिखथें-

          पीठ पिटाथे दफड़ा जइसे, पापी पेट के नाॅंव मा,

          नून तेल बर ताता थइया आफत के महमारी कस।

          बेवस्था ल आड़े हाथ लेवत साखी के तर्ज़ म अपन अंतस् के पीरा ल आखर म अइसन पिरोय हें-

         अफसर नेता बैपारी इॅंकरे हाथ कटार हे,

         गरीब जनता के रोजे होवत हवे हलाल मितान।

         ग़ज़ल म हास्य के पुट ल समोखे के राजकुमार चौधरी जी के नवा प्रयोग पाठक के मन ल जरूर गुदगुदाही- 

           जवानी के दिन कस दिखे डोकरी हर,

           सम्हर के निकलथे डहर धीरे-धीरे।

           मनखे के जुबान ल ले के पहिलीच कवि मन कोती कतको गोठ कहे गे हे, उही अनभो ल राजकुमार चौधरी जी कुछ अइसे लिखे हें-

          माड़ जथे झट ले तन के मारे चिनहा।

         भाखा के लागे घाव उमर भर होथे।   

         ए संग्रह के एक ठन खासियत यहू हे कि  लोकोक्ति अउ मुहावरा मन ल बड़ सुघरई ले ग़ज़ल मन म जगह दे गे हे। जेला राजकुमार चौधरी जी के लेखन कौशल के रूप म देखे जाना चाही। दू-चार जगह छत्तीसगढ़ी शब्द के सही रूप के नइ होना, पाठक के मन ल भटका सकत हे‌। हो सकत हे ए ह टंकण त्रुटि होही। फेर अर्थ के अनर्थ हो जथे। बद ले, के जगह बध ले होगे हवय।

          बन जाबे गुनवान तहूॅं हर,

          मीत चतुर ले बध ले भइया। पृ.71

           आखिर म संग्रह के नाॅंव 'पाॅंखी काटे जाही' एकर ऊपर विचार करे म एके भाव आथे कि हम ल सावचेत रहे के जरूरत हे। रचनाकार अपन अंतस् ले एक संभावना या कहन संदेह व्यक्त करे हे। एकर पाछू उॅंकर आम आदमी ले एक आह्वान हे, कि उन सजग रहयॅं।

           आज जब चतुरा मनखे मन अपन हित बर मनखे ल मनखे (कतको ढंग ले) म बाॅंटे के प्रपंच करत दिखथें, त गाॅंव के भोला-भाला मनखे ल बोधावत राजकुमार चौधरी जी लिखथें- 

          उड़बे झन जादा पाॅंखी काटे जाही।

          मनखे सॅंग मनखे मन ला बाॅंटे जाही।

           आज जब छत्तीसगढ़ी साहित्य म हिंदी या आने भाषा के समृद्ध साहित्य के जइसे सबो विधा म लिखे गे साहित्य के कमी के चलत छत्तीसगढ़ी साहित्य के उपेक्षा करे जाथे, अइसन म भाव पक्ष ले दमदारी के संग राजकुमार चौधरी 'रौना' जी के ए ग़ज़ल संग्रह ग़ज़ल के रस्ता चतवारही। छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल लिखे के नवा उदिम करइया मन बर प्रेरणा बनही। ए संग्रह छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के नवा उड़ान बनही। इही आशा करत राजकुमार चौधरी 'रौना' जी ल भावपूर्ण ग़ज़ल संग्रह बर मोर शुभकामना अउ बधाई।

संग्रह - पाॅंखी काटे जाही

रचनाकार - राजकुमार चौधरी 'रौना'

प्रकाशन - वैभव प्रकाशन रायपुर छग.

प्रकाशन वर्ष-2022

पृष्ठ - 112

मूल्य- 100/-


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग


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