Monday, 24 April 2023

पल्लवन-- न एक ले ,न दू दे

 पल्लवन--



न एक ले ,न दू दे

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कर्जा ह छोटे होवय चाहे बड़े, जीव के जंजाल हो जथे। सुरसा के मुँह सहीं ब्याज ह बाढ़त जाथे। कर्जा ह अइसे रक्तबीज ये जेन ल एक के एक्कीस होवत देरी नइ लागय। एक रुपिया के उधारी  तको ह बाढ़त-बाढ़त सैंकड़ो रुपिया हो जथे तहाँ ले वोला चुकाना मुश्किल हो जथे।वोला छूटे बर कोनो स्थायी सम्पत्ति या गहना गुरिया ल बेंचे बर पर जथे।

   कर्जा रूपी शैतान ह जब मूँड़ म बइठथे त नींद हरा जथे,चिंता रोग डाँट लेथे। कर्जा चुकाये म देरी होये ले साहूकार के तगादा ल सुनके खाना-पीना नइ सुहावय ,हाँसी-निंदा तो होबे करथे।

 आज के भौतिकवादी युग म सुख-सुविधा के समान लेये के चक्कर म,अपन खुद के बढ़ाये अनावश्यक जरूरत ल पूरा करे खातिर, मनखे ह कर्जा के मकड़-जाल म फँसत जावत हे।व्यपारी ले लेके बैंक तक मन आनी-बानी के छूट ,जीरो परसेंट ब्याज के चारा डारके लोगन ल फँसा लेवत हें।अरे भई! फोकट म कोनो कर्जा देही का? समान के कीमत ल पहिली ले मनमाड़े बढ़ा दे रहिथें, तेला नइ बतावयँ। 

 लोगन कतको कमाथें, बाँचय नहीं। नौकरी वाले के तनखा ह किस्ते पटइ म सिरा जथे। कोन गरीब, कोन अमीर , बनिहार-भूतिहार तकों , सब के सब कर्जा  के दहरा म बूड़े दिखथें। भारी तनाव अउ अवसाद के कारण ये कर्जा ह बन जथे। कतेक झन तो एकर ले मुक्ति पाये बर आत्महत्या तको कर लेथें। 

      मनखे ते मनखे कतकोन सरकार मन तकों विकास के नाम लेके,जनता के कर्जा माफ करे के आड़ म, रंग-रंग के योजना चलाये बर कर्जा ऊपर कर्जा लेवत जावत हें। इही कर्जा के बीमारी के सेती कई देश चौपट होवत जावत हें।

कर्जा लेना ह कोनो सूरत म अच्छा नइ होवय।उधारी म घीव लेके पीना ल उचित कहना गलत होही भलुक अपन कमई ल देख के ,चार पइसा भविष्य बर बाँच जवय ये सोच के खर्चा करना ह अच्छा होथे।जतका शक्ति हे वोतके भक्ति करना चाही। जतका बर चद्दर हे वोतके पाँव लमाना चाही। सियान मन सिरतो कहे हें- एक रुपिया के उधारी तको मत ले ताकि दू रुपिया देये ल मत परय।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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