ददा गो भैंसी लेबो
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*ऊं हूं हूं हूं .............रोवत-रोवत लईका ह अपन घर म आईस*
*ओकर ददा ह पूछिस- का होगे रे चिपरू ? काबर रोवत हस ?*
*ऊं हूं हूं हूं ..........., तरतरौहन आंसू निकलत रहिस अउ रोवाई के मारे ओकर आंसू-रेमट ह एकमई हो गए रहिस*
*अरे का हो गे रेंटहा ? काबर अत्तेक रोवत हस? कोनो मार देहिस का रे ?*
*नही ददा |*
*तव काबर रोवत हस ? अहातरा छै-छै आंसू ढारत हवस ! बता न बेटा, कुछू खाऊ-खजेना लेबे रे ?*
*तव काबर रोवत हस एकसंस्सू ?*
*लईका कहिस- ददा गो,ददा गो .......*
*हां बता न बेटा, का हे तोर मंसूबा?*
*ददा गो,हमू भैंसी लेबो हां | चिंटू के ददा ह आजेच भैंसी बिसा के लानिस हवय |*
*अईसे बात हे का ? तैं दिल ल छोट मत कर बेटा | महूं आजेच जाहूं अउ तोर बर भैंसी बिसा के लानहूं,ठीक हे बेटा | अब तैं झन रो, मैं अभीच्चे भैंसी बिसा के लानहूं | समझ गए न ? फेर एक बात हे- "तैंहा पंड़वा ऊपर झन बईठबे,तभे लानहूं |*
*चिपरू कहिस- नहीं ददा, पंड़वा ऊपर मैं बईठबेच करहूं | अब्बड़ेच मजा आथे*
*ददा कहिस- तव कस रे,तैं अपनेच मजा के भूखे हस?*
*नहीं ददा,पड़वा ऊपर मैं बैठबेच करहूं,अब्बड़ेच मजा आथे*
*ददा - तेकरे सेती तो मैं नइ बिसावौं कहत रहेंव*
*नही ददा,हमन भैंसी लेबेच करबो, आंय ददा,ऊं हूं हूं हूं ..........*
*ददा कहिस- ए टुरा ल कईसे समझावौं? बड़ा अलवईन टुरा हे !!!*
*नहीं ददा,हमन भैंसी लेबेच करबो, कहूं भैंसी नइ लेबे ? तव तोर संग बोलौं नहीं, कट्टी कट्टी कट्टी ....... | तोर संग खेलौं नहीं,तोर संग सुतौं नहीं ! आं हां हां हां ( जोर-जोर से रोए लागिस ......)*
*रसोईघर ले मनटोरा चिल्लाईस- अई काय होगे मोर लाला ला, मोर छोना-मोना ला ? काबर रोवावत हस जी ? दे हा अईसनेच करथे! छी दाई मोला सुहाय नहीं ! जब देखबे-तब मोर हीरा ल रोवात्तेच रहिथे, निरदयी कहीं के !*
*ददा कहिस-एहा का फरमाईश करत हे ? तेला सुने हस? फट्ट ले बोल तो देहे निरदयी !*
*मनटोरा चिल्लाईस-- का फरमाईश करत हे बता तो भला ?*
*ददा कहिस- भैंसी लेबो कहिके रोवत हे,समझे?*
*मनटोरा कहिस- ठीक तो कहत हे, का गलत कहत हे ?*
*ददा कहिस-हूं ,अउ कहूं पंड़वा के पीठ म बैठ जाही अउ ओकर कनिहा टूट जाही,तव तहीं ठीक करबे समझा देहे रहिथौं*
*मनटोरा - हहो हहो,मैं हा डाग्डर बुला के ठीक करवाहूं,समझे?*
*चिपरू- आं हां हां हां .................. आंय ददा,भैंसी लेबो गा*
*(चिपरू के रोवाई ल सुन के ऊंकर पड़ोसी भैरा आ गे)*
*भैरा- का हो गे साव ? लईका ल काबर रोवावत हौ अहातरा ?*
*ददा- अरे ए ननजतिया टुरा के बात ल झन पूछ*
*भैरा ह अपन कान ल थोकुन उठा के पूछिस- काय कहिथस? काबर रोवत हे?*
*भैंसी लेबो कहिके रोवत हे भाई*
*पैंसी ? ए का होथे पैंसी ?*
*ददा कहिस- भैंसी लेबो कहिके रोवत हे भाई*
*फैंसी ? ए का होथे फैंसी?*
*फैंसी नहीं, भैंसी -भैंसी | अब समझे?*
*भैरा- हां समझ गयेंव | फेर एक बात हे पड़ोसी - तैं भैंसी लेबे, तेला अपन घरेच म बांध के राखबे | मोर खेत के धान ल झन चरही चेता देथौं, चेताय बात बने होथे, समझे के नहीं ?*
*ददा कहिस-कस गा भैंसी लेहूं तेला घुमाहूं,फिराहूं नहीं, चराए नइ लेगहूं, तव कईसे जीही ?*
*भैरा कहिस- तोर भैंसी जिही, के मर जाही ! मोला का करना हे, फेर मोर खेत के धान ल झन चरही!*
*ददा कहिस- तैं तो मोर भैंसी ल श्रापत हस -मर जाय कहिके ! ए ठीक बात नोहय*
*तव मोर धान ल भले चर देही!*
*तैं मोर भैसी ल
भूख मारबे-श्राप देबे !!!!*
*तैं काबर भूख मारबे? काबर श्राप देबे?*
*मोर धान ल चरही,तव श्राप देबेच करहूं*
*(अईसने तू-तू मैं-मैं करत गाली-गलौज सुरू होंगे)*
*मनटोरा कहिस-एमन अब्बड़ेच अनदेखना हे, कोनो के बढोतरी ल नइ देखे सकै, रांड़ी दुखहाई मन!!!*
*ओतका म भैरा के गोसाईंन, बेटा-बहू जम्मो गली म निकल गईन, गाली-गलौज बाढ़ीस,तिहां लाठी-बल्ली निकल गे ! एक-दूसर ल मारपीट सुरू होगे | गांव-बस्ती के मनखे जुरिया गईन |*
*अरे चुप हो जावौ भाई, चुप हो जाव | कोनो ल गारी-गलौज मत देवौ , काबर लड़त हौ ?*
*फेर कोनो सुनबेच नइ करिन, ओतका म गांव के सरपंच,कोटवार घलो आ गईन*
*कोनो के मुड़ी फूट गे ! कोनो के हाथ टूट गे, लहूलुहान हो गईन !*
*तव सरपंच कहिस- अब ए मामला हमर पंचायत म नइ सुलझै, कहिके थाना म फोन कर देहिस!*
*थाना ले पुलुस -दरोगा आ गईन !*
*घटना स्थल ल मुआयना करके दरोगा ह कड़क आवाज म पूछिस - क्या बात है ? दोनो पड़ोसी क्यों लड़ रहे हो ?*
*भैरा कहिस- ए पड़ोसी ह मोर खेत के धान ल चराहूं कहत हे साहब*
*दरोगा- क्यों जी इसके धान को क्यों चराऊंगा कहते हो ?*
*चिपरू के ददा कहिस- मोर भैंसी ला भूख थोरे मारहूं साहब ?*
*दरोगा- कहां है तुम्हारा भैंसी ?*
*चिपरू के ददा- अभी बिसाय नइ हौं साहब, बिसाय जाहूं सोचत हौं, तव ए अनदेखना है कहत हे-"मोर खेत के धान ल झन चराबे, अतकेच बात म बात बढ़ते गईस अउ हमर झगरा मात गे साहब*
*दरोगा- क्यों भैरा, तुम्हारे किस खेत के धान को इसकी भैंसी चर गई ?*
*भैरा- अभी कोनो खेत म धान बोए नइ हौं साहब, जब धान बोहूं,तब झन चराबे कहै हौं,ततकेच बात म झगरा मथल गे !!!*
*स्साले हो,तुम दोनों पड़ोसी बढ़िया प्रेम से रहो, अनावश्यक बात पर झाड़ते रहते हो | हमारा कीमती समय बर्बाद कर दिए | आईंदा पागल जैसे मत लड़ना,वरना ऐसी धारा लगाऊंगा,जीवन भर जेल में सड़ते रहोगे ! समझे कि नहीं ?*
*दोनों पड़ोसी बोले- अब समझ गएन साहब, अब झगरा नइ करन*
इति
आपका अपना
*गया प्रसाद साहू*
"रतनपुरिहा"
*मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ
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