Thursday, 13 April 2023

पल्लवन-अप्प दीपो भव:

पल्लवन-अप्प दीपो भव:

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मनखे के परम धर्म के वो ह आत्मनिर्भर बनय ।चाहे कोनो निर्णय लेये के बात होवय या अपन जिनगी ल सुखमय बनाये बर कोनो रद्दा के चुनाव करे बर होवय। हमेशा दूसरेच के मुँह ताकते रहना ,कोनो कारज ल दूसर के बिना नइ कर पाना एक प्रकार के घोर गुलामी आय। जिहाँ गुलामी हे उहाँ सुख कहाँ? गोस्वामी तुलसीदास जी ह सिरतो कहे हें--"पराधीन सपनेहु सुख नाही।" जंगल म हरहिंछा उड़त पंछी ल पिंजरा म,  भले वो सोन के पिंजरा राहय,आनंद कहाँ? 

    एकर मतलब एहू नइये के जिनगी म ककरो सहायता ले बर---सहारा ले बर नइ लागय? बिन सहारा के जिनगी चल नइ सकय फेर वोकरो एक सीमा होथे।पराधीनता अउ सहारा लेये म फरक हावय। नन्हा बच्चा ह तो अपन माता-पिता के सहारा लेथे तभे चल फिर पाथे,बोले बर सीख पाथे। एहा गुलामी नोहय।बाढ़े के पाछू उही बच्चा ल माता-पिता के अँगरी ल छोड़ के खुद होके

चले बर परथे।जिनगी चलाये खातिर रोजी-रोजगार स्वयं करे बर लागथे।हमेशा दूसर के मुँह ताके म काम नइ बनय अउ भला दूसर मन कतका दिन साथ देहीं ?एक दिन बिछुड़े ल परथे।

  अइसने गुरु के तको सहारा लेये बर लागथे---वोकर मार्गदर्शन के जरूरत परथे। गुरु ह अज्ञान के अंधकार ल दूर करे बर उपाय बता सकथे---अपन ज्ञान के अँजोर ल देखा सकथे फेर यक्ष प्रश्न त उहीच हे ---कब तक अउ कहाँ तक ?  प्रकाश बर तो खुदे ल दिया कस बरे बर लागही---अपन ज्ञान के जोती ल जलाये बर परही।

  अँधियार म भटके के,रद्दा भुलाये के ,साँप-बिच्छू के डर होथे। ये खतरा ले बाँचे बर अँजोर होना चाही। प्रकृति ह तको  भौतिक जगत के अँधियार ल दूर करे बर चंदा-सूरुज के रूप म दू ठन दिया बार दे हावय ,मनखे ह चिमनी,बिजली-बल्व बना डरे हे।

 एक ठन अउ अँधियार मन म घपटे रहिथे जिहाँ काम,क्रोध,इरखा,छल-कपट,लालच रूपी जहरीला अउ हिंसक जीव-जंतु घूमत रहिथें। इँकर ले आत्मज्ञान रूपी अँजोर करके बाँचे जा सकथे।सदग्रंथ,महापुरुष संत-महात्मा मन आत्मज्ञान के दिया ल बारे के  उपाय बताये के अउ सहीं रद्दा ल देखाये के काम करथें। मंजिल ल पाये बर कदम तो खुदे ल उठाये बर लागथे। खुद जागना परथे।कोनो जानबूझ के नइ जागना चइही त भला वोला कोन जगा सकही? खुद के कल्याण बर खुदे ल खपे बर परथे। आन के आँखी ले नींद नइ आवय--खुद के आँखी म नींद आथे।एकरे सेती महात्मा गौतम बुद्ध ह  कहे हें के-- "अप्प दीपो भव:।" उनकर शिक्षा हे के आत्मप्रकाश पाये बर , खुद  ल दीपक बने बर परथे ।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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