अब्बड़ मिठाथे बोहार भाजी---
हमर छत्तीसगढ़ मा कई किसिम के भाजी-पाला होथे। जेहा हमर शरीर बर पुस्टई के काम करथे। गरमी घरी लगती चैत महीना मा सबसे जादा बाजार मा बोहार भाजी बेचाय बर आथे। इही समे बोहार भाजी नंगत फूले ला माते रहिथे। उँकर नवा-नवा उलवा पाना संग फूल के कोंवर कली ला टोर के साग बनाये जाथे। इंकर अमसुरहा स्वाद मा मन भर जाथे, अउ दू कंवरा उपराहा खवाथे। साल भर मा एक बार मिले ले येकर मांग अब्बड़ रथे। बाजार मा थोरको माढ़ीस कि सब अपन-अपन ले बिसा लेथे। जिंकर खेत-खार, बारी-बखरी अउ कोठार मा बोहार के पेड़ हवय, वोमन बने पैसा घलो कमा लेथे। फूल हा उरके के बाद उँखर फर के घलो साग बनथे।
बोहार भाजी मा पोषक तत्व भरपूर मात्रा मे हे। जेकर ले हमर शरीर ला उचित पोषण मिलथे। ये भाजी विषनाशक आय। हमर शरीर के कफ, कृमि अउ अतिसार ला दूर करे के काम करथे। येकर सेवन ले हमर पाचनतंत्र मजबूत होथे। पेड़ के छाल पीसके लगाय ले शरीर के खुजली घलो दूर हो जाथे।
बोहार भाजी मा दार मिलाके, आमा खुला, अमली, दही नहिते बंगाला संग रांधते। येला सब अपन-अपन सहूलियत के अनुसार बना लेथे। हमर डहन आमा खुला संग जादा बनथे। कलोंजी नहिते कढ़ाई मा सबले पहली दार ला चुरोके आमा खुला ला डार दे। फेर बोहार भाजी ला धोके ओईर दे। चुरे के पीछू लसुन, सुक्खा मिर्चा के फोरन देके बघार दे ले बोहार भाजी तैयार हो जाथे। बोहार भाजी छरछरहा रेहे ले बने लगथे। फेर बासी, भात अउ रोटी संग स्वाद लेके खाय मा बड़ मजा आथे। पड़ोसी मन ला पता होय ले साग मांगे बिन नइ रहय। बांट-बिराज के खाय मा बोहार भाजी के स्वाद दुगुना हो जाथे।
आय हे बोहार भाजी, बीस रुपया भाग।
पान उलवा फूल कोंवर, नीक लागै साग।।
घात पोषक तत्व हावय, छाल खुजली मार।
तंत्र पाचन ठीक होवय, होय कफ उपचार।।
हेमलाल सहारे
मोहगाँव(छुरिया)राजनांदगॉंव
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