Saturday, 1 April 2023

छोटे सरकार* (छत्तीसगढ़ी कहानी)

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*"बड़े सरकार तो उप्पर मा ठीकेच्च करत हे फेर तरी के ये छोटे सरकार मन के मन आही तब ना चम्पा!"सियाराम भीड़ मा चम्पा के हाथ ला धरत कहिस ।*


            

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              *छोटे सरकार*


            (छत्तीसगढ़ी कहानी)



          अभीच्चे -अभी सियाराम हर तीर के नरवा ले नहा-खोर के आके घर मा कंघी-दरपन करत रिहिस, के वोकर कान मा गाँव कोटवार चमकलाल के हाँका हर परे लागिस। कोटवार हाँका मा कहत रहिस कि काली गाँव मा सरकारी सिविर लागही ।जऊन

मनखे मन ला अपन कछु समस्या के निराकरन चाही तेहर जाके दरखास दे सकत है। ये हाँका ला सुनके चम्पा अपन गॅसान सियाराम के तीर आईसअऊ कहे लागिस, "हाँका ला सुनत हव, नानकुन के ददा?"

"हाँ सुनत तो हँव महूँ हर। आज बने परछर हाँका पारत हावे ये कोटवार हर ।

"हमू मन दरखास देथेन सरकारी नावा बीजहा बर"

'अरे चल छोड़, नई मिलय हमन ला।"

"दे के तो देखि।”

‘‘चल तैं कहत हस ता महूँ लिखवा के दे दिहाँ काल एक ठन दरखास साहेबलाल पढ़न्तरा करा ले।"

“लेवा ठीक हे अब चटनी-मिरचा तियार हे, पानी-पसिया पी लेवा। " चम्पा किहिस अऊ सियाराम ला जेवन परोस दिस। वोकर

गोल चेहरा मा एक ठन नानकुन उछाह के लोर हर तउर उठे रिहिस।

“चम्पा...।" सियाराम हर कौंरा अलगातेच किहिस।

"काये? कुछु बिगाड़ हे खाना मा?"

"नहीं वो गोठ नईये। तोर चेहरा के संतोस के भाव ला देख के मोला हाँसी लागत हे। मैं तोर कहना ला मान के ये दरखास लिखवा

के देये के फैसला कर लेये अतकिच मा तोला लागत हे के हमन ला सरकारी बीजहा धान मिल गय।"

“त का होईस। दरखास देबो तभे तो मिलही... नहीं त कोंहो जबरदस्ती थोरहे बोहा दिहि धर फलना कह के।" चम्पा परोसना देवत 

किहिस ।


         आगु दिन आन काम-बुता ल तियाग के सियाराम हर साहेबलाल करा सिरतोन के दरखास लिखवा के ठीक बेरा मा केम्प मा जाके जमा कर दिस। वोला कागज के बलदा मा कागज के पावती मिल गय।


             सियाराम-चम्पा सिविर मा मनखे मन के आवा-जाही, साहेब- चपरासी के रूवाब सब्बो ला मुँहु फार के देखत रिहिन। बेरा

ढरकिस त उहू मन ला खाना के पाकिट अऊ पानी के पऊच मिलिस।

"ये ला धर ली दऊ के ददा, लईका मन खाँही खाजी बना के।सरकारी जिनिस आय कुछु निक्ता जिनिस होही।" चम्पा अपन

बाँटा ला अँचरा मा गठियावत किहिस।

"बने कहे चम्पा। ले ये दे मोरो बाँटा ला धर।"

सियाराम घलो अपन बाँटा ला चम्पा कोती सरकावत किहिस। वोहर देखिस अऊ हाँस परिस। आन-आन मन घलो अइसनहेच करत रिहिन । 


         मैक वाला साहेब हर एक के बाद एक नाव ला पढ़त जाय अऊ मनखे मन आके जिनिस ला लेवत जाँवय कि मैक मा ठाढ़ होके

भासन देये। दुनो बुता हर बरोबर चलत रिहिस। बहुत बेरा हो गय। सियाराम ला अचम्भा होत रिहिस के काबर वोला, आज असकट नई लागत आय फेर चम्पा कहे के सुरु कर देये रहिस... कईसन हमन के नाँव नई आवत ये?

"अभी खेती-विभाग के बारी नई आय ये।” सियाराम किहिस । वोकर सुर मा एकठन साँत्वना के भाव रिहिस... जने-मने कहत

रिहिस... रा.. थोरकुन अऊ ठहिर जा... ।


              थोरेच्चकुन बेरा के बाद मा खेती-विभाग के बारी आ गय।साहेब नाँव पढ़त गिस अऊ गिस... स्पेयर, पंप, तेंदुआ-नाँगर, बंद साफ करे के पंजा... नाँव घरात गईस। मनखे आवत गईन अऊ

अपन अपन बाँटा ला धर के परात गईन। नावा धान के बीजहा....। बरतराम... । बरतराम आईस... । बोरी धर के चल दिस...।

“हमर बाँटा... हहो!"

"चुप्प! वोती सुन!"

"जा के कहा ना...!" चम्पा कलप के कहिस,

"हमू मन तो दरखास देये हावन...।"

"चुप्प तो.. !"

"वो दे... अब छेवर हो गय! सुना न! सुना न...!"

"सुन डारे...! सुन डारेंव...।" सियाराम एकठन अऊँसे बोईर कस नानकुन हाँसी हाँसत किहिस ।

"ये बरतराम गउटिया हर तो हमर गाँव के सबले पोट्ठ मनखे आय। का येकरे बर सरकारी बीजहा हर आय हे..। अभीच्चे तो

साहेब हर चोंगा मा सरकार के अब्बड़ अकन बड़ई बखानत रिहिस अऊ कहत रिहिस के सरकार हर हमन साही दुखी-भुखी के साथी

आय...।" चम्पा एके साँस मा कह डारिस । वोकर सुआसा हर वोकर पिंजरा मा नई हमावत ये, अइसन लागत रहय... ।

"ले अब्ब चल घर...। " सियाराम वोकर हाथ धरत किहिस।

"नहीं, मैं पूछे जात हों। " चम्पा हाथ ला झटकार दिस अऊ किहिस "कोन हर ये वो खेती वाला साहेब।"

"वो दे जावत हे लाल टोपी वाले... तऊन हर ये ग्रामसेवक।"

"कइसे साहेब... हमन ला... कईसन नई मिलिस बीजा?"

“अरे... अरे तै कोन...! सियाराम के परानी...? वो काये...बीज हर तो एके बोरी आय रिहिस... अऊ... अऊ तुमन के सेटिंग

नई रहिस... । बस्स... !" सरकार किहिस अऊ चल दिस।

"बड़े सरकार तो उप्पर मा ठीकेच्च करत हे फेर तरी के ये छोटे सरकार मन के मन आही तब ना चम्पा!"सियाराम भीड़ मा चम्पा के हाथ ला धरत कहिस ।



*रामनाथ साहू*



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