Saturday, 29 April 2023

भाव पल्लवन-- चलनी म दूध दुहै, करम ल दोस दै

 भाव पल्लवन--


चलनी म दूध दुहै, करम ल दोस दै

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चलनी म दूध दुहे ले वोमा एको बूँद नइ रुकै जम्मों ह छेदा ले निथर के भुँइया म बोहा जथे।अब कोनो ह अइसने करके ये काहय के मोर भाग म दूध नइ लिखाये रहिसे तेकर सेती नइ मिलिच,सब गँवागे त एहा कतका गलत बात ये ? येमा भाग के भला का रोल हे? दूध चाही रहिसे त कसेली म दूहना रहिसे। भाग ल दोस देवइ फालतू ये।

  बिना सोचे बिचारे गलत तरीका ले करे कोनो भी काम के फल सहीं रूप म नइ मिलय। मूँड़ पटके म पहाड़ नइ फूटै उल्टा माथा लहू-लुहान हो सकथे।मनखे ह खुद अपन भाग्य गढ़ने वाला होथे। जइसन करम तइसन भाग बनथे।सहीं काम ल, सहीं तरीका ले पूरा करे जाथे त सौभाग्य अउ गलत काम ले दुर्भाग्य।

  सौभाग्य बनाये बर पात्रता(योग्यता) के जरूरत होथे।दुनिया भरके अवगुण के छेदा रहे म सफलता नइ मिलय।अपन जिनगी म जेन भी सफल मनखे हें वो मन कठोर मिहनत ले पाछू नइ घुँचे हें। कइसनो संकट आये ले नइ घबराये हें।अलाल मनखे ह अपन कमजोरी ल छुपाये बर भाग के आड़ लेथे। भाग के ओड़हर म सहानुभूति पाये के उदिम करथे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

भाव पल्लवन-- गाय चरावै राउत,दूध पियै बिलइया

 भाव पल्लवन--



गाय चरावै राउत,दूध पियै बिलइया

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ककरो गाय ल पहाटिया(राउत) ह जंगल-झाड़ी,खेत-खार म भटक-भटक के घाम-पियास,बरसत पानी ,कड़कड़ावत जाड़-शीत ल सहिके चराथे। गाय के मन लगाके सेवा-जतन करथे फेर वोला  मिहनत के अनुसार उचित मजदूरी नइ मिलय।गाय के दूध ल दुह के मालिक ल राउते ह देथे फेर मालिक ह वोला एक खोंची दूध ल तको नइ देवय ,भले अपन पोंसवा बिलई ल कटोरी भर दूध पियावत रहिथे।एकर मतलब ये हे के जाँगर टोर मिहनत करइया मजदूर के हक मारे जाथे।वोकर जमके शोषण होथे। वोकर हली-भली के चेत नइ रखे जावय।

    पूरा दुनिया म बनिहार-भुतिहार , गरीब  दिहाड़ी मजदूर मन के एही हाल हावय।मजदूर ह सबले मजबूर हे।कतकोन फेक्ट्री मालिक,ठेकेदार मन श्रमिक ले बारा-चउदा घंटा रगड़के काम लेथें।श्रमिक के बलबूता म कसके रुपिया कमाथें। अमीर मन अउ अमीर होवत जाथें फेर श्रमिक ल अतका कम रोजी  देथें के बने ढंग ले वोकर पेट तको नइ भरय--ढंग ले परिवार के पालन-पोषण तको नइ हो सकय।गरीब ह अउ गरीब होवत जाथे।

    एही हाल किसान के तको दिखथे। वोला लागत अउ मिहनत के अनुसार फसल के सहीं दाम नइ मिलय।फायदा बिचौलिया अउ बड़े व्यापारी मन उठा लेथें।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

पल्लवन-- राखही राम त लेगही कोन,लेगही राम त राखही कोन

 पल्लवन--


राखही राम त लेगही कोन,लेगही राम त राखही कोन

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  कोनो जीव के जनम होतेच वोकर मौत के यात्रा शुरु हो जथे । कहे जाथे के धीरे-धीरे उमर बाढ़त जावत हे फेर हकीकत तो इही होथे के धीरे-धीरे उमर खिरथे।जनम के तिथि तो मालूम होथे एकर उलट मौत कब होही अउ कइसे होही तेला कोनो नइ जानय। मौत ह अतिथि बरोबर आय।कब आही,कती ले आही,कइसे आही तेन पता नइ राहय फेर आहीच ये तो सत्य होथे। ये अटल मौत ह कभू-कभू कुछ समे बर टले सहीं लागथे ।कतको झन मौत के मुँह म जाके बाहिर निकले कस लागथें।भक्त प्रहलाद ह बरत आगी होलिका ले बाँचगे। मीराबाई ह मारे बर देये जहर ल पी के बाँचगे।आजो ये देख-सुनके बड़ अजरज होथे के कोनो हवाई जहाज ले गिरके बाँचगे, भूकंप म घर के मलबा म कई दिन ले दबे दुधमुहा लइका बाँचगे अउ बड़े-बड़े जवान-सियान मन मरगें।

  एकर उलट एहू देखे सुने म आथे कोनो रेंगत-रेंगत अपट के गिरिच ततके म मरगे,एक दिन थोकुन बुखार आइच,दवाई-पानी म लाखों रुपिया खरचा करिच तभो ले नइ बाँचिस। दू मिनट पहिली हाँसत-गोठियावत,नाचत-कूदत मनखे हे अचानक मर जथे। एही सब ल देख के आस्थावान मनखे मन कहिथें के--'राखही राम त लेगही कोन, लेगही राम त राखही कोन।' जेन भी होथे सब भगवान के इच्छा ले होथे। वोकर मर्जी के बिना पत्ता तक नइ डोलय।

 अइसन विश्वास ह मनखे ल निर्भय बनाथे। सबले बड़े डर--मौत के डर ले बँचाथे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल बर नवा उड़ान बनही - पाॅंखी काटे जाही



 

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल बर नवा उड़ान बनही - पाॅंखी काटे जाही


          छत्तीसगढ़ी साहित्य धीरलगहा साहित्य के जम्मो विधा म अपन पाॅंव जमावत हे। चेतलगहा लिखइया मन गद्य साहित्य के कोठी ल सरलग भरत हें। पद्य म सिरिफ गीत, कविता नइ बल्कि खंडकाव्य, छंद बद्ध काव्य के लिखना सोशलमीडिया अउ पत्र-पत्रिका मन म जगर-मगर दिखत हे। कवि मन के मिहनत रंग लावत हे। लोकजीवन म तुलसी, कबीर, रहीम जइसे कतको के दोहावली पद मुअखरा चले आवत हे। इही तरह आज के समे म ग़ज़ल के शेर लोगन के मुँह म बिराजे धर ले हे। अपन गोठ ल शेरो-शायरी ले वजनदार बनाय के चलन बाढ़ गे हे। अइसन म कुछ झन मन ग़ज़ल लिखई म भिड़े हें। ग़ज़ल कहना आसान नइ हे, फेर कोशिश करे म का हर्ज हे। इही सोच कतको झन ग़ज़ल लिखत हें। जेकर सम्मान करना चाही। छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के श्री गणेश करे के श्रेय श्री मुकुंद कौशल जी ल जाथे। उॅंकर लिखे ग़ज़ल मन ल छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के थरहा आय, माने जा सकत हे। उँकर दे छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के ए थरहा ल आज रोपे के बेरा हे। कतको लिखइया ग़ज़ल तो लिखत हें, फेर डायरी ले निकल के किताब के शिकल म नइ आय ले चर्चा नइ हो पावत हे अउ छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के शोर नइ उठे हे। जेकर ले छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल पहचान नइ बना पावत हे। कुछ छपे हे तेन कतको कारण ले अपन छाप नि छोड़ सके हें। एमे एक कारण तो किताब मन के साहित्यिक चर्चा नइ हो पाना हरे। 

            छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के किताब के इही क्रम म राजकुमार चौधरी रौना जी के ' पाँखी काटे जाही' नाँव के ग़ज़ल संग्रह पढ़े बर मिलिस। ए किताब वैभव प्रकाशन रायपुर ले २०२२ के छेवर म छप के आय हे। राजकुमार चौधरी 'रौना' जी व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर आय। जिंकर व्यंग्य संग्रह 'का के बधाई' छप गे हे। माटी ले जुरे कविता मन के संग्रह 'माटी के सोंध' ले रौना जी अपन काव्य यात्रा शुरू करिन, जेकर ममहासी ले अपन क्षेत्र म साहित्यिक गतिविधि ल सरलग ऊर्जा प्रदान करत हें। नवा रचनाकार मन आप ले प्रेरणा लेथें। चाहा के नानकुन दुकान ले घर-बार चलावत संघर्ष ले जिनगी जीयत रौना जी के छत्तीसगढ़ी साहित्य बर समर्पण वंदनीय हे, स्तुत्य हे।

          गीत अउ ग़ज़ल म बड़े फरक हे, वो हे विषय वस्तु के। एक गीत एके विषय या भाव ल पिरो के लिखे जाथे। उहें एक ग़ज़ल के हर दू डाँड़ म अलग-अलग विषय/भाव ल शामिल करे जा सकत हे। एक गीत-ग़ज़ल के मात्रा भार या बह्र हर पद/डाँड़ म एक बराबर रहिथे। ए किताब के भूमिका श्री अरुण कुमार निगम जी लिखे हें। ए भूमिका म लिखाय दू ठन बात के उल्लेख करे के मोह नइ छोड़ पावत हँव। एक छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के शैशव-काल चलत हे। दूसर, विधान के जानकारी के अभाव म कई झन कवि मन दू-दू पद के आपस म तुकांत, द्विपदी ल ग़ज़ल कहि देथें। 

         एकर पीछू निगम जी के संदेश इही हे कि छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल लिखे बर पहिली ग़ज़ल के बनकट/ विधान/शिल्प (जउन बह्र कहलाथे )के बने जानकारी ले लेवन तब जाके लिखे के प्रयास करन। अभ्यास ले सब चीज हासिल करे जा सकथे। 

         राजकुमार चौधरी रौना जी ल ग़ज़ल के बह्र के बढ़िया जानकारी हे, ए बात के प्रमाण किताब म शामिल ग़ज़ल मन ले मिलत हे। राजकुमार जी के ग़ज़ल के शिल्प के बात करे जाय त थोकन कमजोर हे। जेन म काफिया खासकर मतला म सटीक नइ हे। त कुछ ग़ज़ल छंद बद्ध रचना ही होगे हे। ग़ज़ल के कहन ले थोकिन भटके-भटके लगथे। हो सकत हे राजकुमार चौधरी जी छंद के प्रयोग ले ग़ज़ल लिखे के नवाचार अपनाय होही। लेकिन ए नवाचार ल ग़ज़ल के पारंपरिक कसौटी म खरा नइ उतर पाय हे। यहू बात सही हे कि कुछ एक छंद ग़ज़ल के बह्र म फिट बइठथे। गेयता अउ लयात्मकता के दृष्टि ले संग्रह के जम्मो रचना ग़ज़ल के तिरे च हें।

            भाव पक्ष के बात करे जाय त राजकुमार चौधरी रौना के ए संग्रह छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल बर नवा रस्ता गढ़ही। आज के समे म ग़ज़ल म जेन बात शामिल करे जाथे, वो सब ए संग्रह के ग़ज़ल मन म मिलथें। जिनगी के संघर्ष, सामाजिक सरोकार, शोषण, पीड़ा अउ अन्याय के खिलाफ मुखर स्वर हे। बेवस्था के विरोध म दमदारी ले खड़े नजर आथे। ए ग़ज़ल मन म व्यंग्य के पुट घलव हे। पाखंड अउ अंधविश्वास ल घलो कटघरा म खड़ा करथे। लोक संस्कृति आचार-विचार के दर्शन हे। आज के ग़ज़ल अब मया-पिरीत बस म फँसे नइ हे, वइसने राजकुमार चौधरी रौना घलव ए बँधना ल टोर आज के दौर के ग़ज़ल लिखे म माहिर हें। कहे के मतलब हे कि समे के धारा ल राजकुमार चौधरी रौना जी बने पहिचानथें अउ ओकर संग चले के उदिम घवव करथें। इही ह तो प्रगतिशीलता ल दर्शाथे।

          अब संग्रह के ग़ज़ल मन ल शिल्प अउ भाव ले परखे के एक कोशिश करत हॅंव। ग़ज़ल के रदीफ अउ काफिया के संग बह्र के बरोबर तालमेल बइठार दे ले कभू भाव बिगड़ जथे अउ भाव ल समेटे के उदिम म कभू-कभू बह्र छरिया जथे। दूनो के समन्वय ले मुकम्मल ग़ज़ल लिखाथे। अभी छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के शैशव काल हे, तब ए सब कोती कुछ जादा ध्यान दे ल परही। राजकुमार चौधरी जी ए दूनो डाहर बने चेत करे हें, देखव कुछ बानगी- 

      चढ़ सिंघासन मौज कर ले तोर तो सरकार हे।

      झूठ तक ला सच बनादे तोर तो अखबार हे।


      ॲंजोरी रात मा बादर घलो घुरियात बइठे हे।

      कभू आगू कभू पाछू भरम बगरात बइठे हे।


      मीठ करू ला चखले भइया।

      सब के बात परख ले भइया।


      देह बाती कस बरागे का कबे।

      तेल अंतस् के सिरागे का कबे।

        ए सब म बह्र के संग रदीफ अउ काफिया के सुग्घर समन्वय दिखथे। मतला म ही ए दूनो के सही पहिचान कर पाना ग़ज़ल बर बहुते मायने रखथे। थोरके चूके ले ग़ज़ल के मजा किरकिरा हो जथे।

        मिले हावन घड़ी बेरा मया के बात कहि डारिस।

        नजर भर देख के मोला नजर मा बात कहि डारिस। 38

           ए ग़ज़ल म आगू चल के 'कहि डारिस' रदीफ ले गे हे, जबकि सही रदीफ 'बात कहि डारिस' होही। चूंकि तुकांत शब्द काफिया होथे, अउ दुहराय वाला शब्द/शब्द समूह रदीफ होथे। अइसन म बिना रदीफ के ग़ज़ल तो हो सकथे, फेर काफिया के बिना ग़ज़ल संभव नइ हे। मतला के दूनो मिसरा म तुकांत शब्द होना च चाही।  

        ढेला मा नानुक का हपटे पर ले पीरा नापत हस।

        घड़ी अकन दुख का देखे सरलग माला जापत हस।

          इहॉं 'आपत' काफिया अउ 'हस' रदीफ हे, पर ग़ज़ल म आगू चल के काफिया बदल गे हे। इही तरह ले राजकुमार चौधरी जी ले कहूॅं-कहूॅं ग़ज़ल म काफिया ले म चूक होय हे।

            ग़ज़ल म जेन शेरियत के गोठ/कहन के अपेक्षा करे जाथे, वो ह राजकुमार चौधरी जी के ग़ज़ल म नजर आथे। फेर छंद मात्रा के आधार ले लिखे गे रचना म ए कमी झलकथे। काबर कि छंद अउ ग़ज़ल दूनो म फरक होथे। दूनो स्वतंत्र विधा आय। ग़ज़ल के पहला मिसरा, दूसरा मिसरा के बिगन अधूरा जनाथे। जबकि छंद म अइसन नइ होवय। अइसे भी कुछ छंद ही दू डाॅंड़ के होथे। ग़ज़ल संग्रह के नाॅंंव ले प्रकाशित किताब म ग़ज़ल के शिल्प वाले रचना ल ही जगह देना बने रहितिस। जेन विधा के किताब होथे, ओकर शिल्प ले कोनो समझौता नइ करना चाही, अइसन मोर मानना हे। 

         कोनो किताब के शिल्प के संगेसंग भाव पक्ष के गोठ कर ले म किताब के सही-सही अवदान अउ रचनाकार के मिहनत ल मान मिल पाथे। सम्यक भाव ले मूल्यांकन हो पाथे। ए किताब के भाव पक्ष बड़ सजोर हे। कुछ के गोठ करत हुए बहुत कुछ ल पाठक बर छोड़त हॅंव।

           चुनावी वादा के बहाना नेता मन के चाल के भंडाफोड़ करत उन कहिथें-

       नवा वादा नवा कतको सकल होही।

       सिंघासन बर खुरापाती अकल होही।।


निगरानी मा राखव रौना लबरा मन के चाला ला।

मॅंद मउॅंहा के लालच दे के यहू बखत भरमाहीं रे।

        ग़ज़ल म व्यंग्य के पुट जगर-मगर दिखत हे। व्यंग्य ह रौना जी के नैसर्गिक प्रवृत्ति हरे। ते पाय के एकर अधिकता मिलही।

           पारिवारिक बिखराव अउ निचट सुवारथ म टूटत जावत समाज के संसो संवेदनशील रौना जी के कलम ले पन्ना म उतरे हे-

       सुमता के फुलवारी अउ हित के डार कटागे।

       हिल-मिल के दिन काटन वो घर परिवार बॅंटागे।

          ग़ज़ल शुरुआत म प्रेम-मोहब्बत बर ही जाने जावत रिहिस। शृंगार के बिना ग़ज़ल अधूरा माने जावय। राजकुमार चौधरी जी ग़ज़ल के ए माॅंग ल पूरा करथें अउ नायक के अंतस् के बात ल लिखथें

            आज माहुर पॉंव मा चुकले रॅंगा के आ जते।

            नाॅंव मोरो तैं अपन अंतस् लिखा के आ जते।

         नायिका अपन सहेली ले मन के पीरा ल कइसे कहिथे देखव-

             झम ले आथे भाग जाथे घाम बदराही असन,

             का बताववॅं घर म ओकर पाॅंव हर माढ़ै निहीं।

             गरीब अउ शोषित मन के पीरा ल ग़ज़ल म कहना कोनो आसान नइ होय, फेर राजकुमार चौधरी ह छोटे बह्र म बड़ सुग्घर कहि डरे हे- 

            गोड़ लमावन अब हम कतका,

            चद्दर हावै तुनहा ॲंखरी।

   

            बस्तरिहा बर का विटामिन,

           आजो खाथे लासा पिकरी।

           मिहनतकश मनखे के जिनगी के संघर्ष ल नजीक ले देखे हे तउन ल लिखथें-

          पीठ पिटाथे दफड़ा जइसे, पापी पेट के नाॅंव मा,

          नून तेल बर ताता थइया आफत के महमारी कस।

          बेवस्था ल आड़े हाथ लेवत साखी के तर्ज़ म अपन अंतस् के पीरा ल आखर म अइसन पिरोय हें-

         अफसर नेता बैपारी इॅंकरे हाथ कटार हे,

         गरीब जनता के रोजे होवत हवे हलाल मितान।

         ग़ज़ल म हास्य के पुट ल समोखे के राजकुमार चौधरी जी के नवा प्रयोग पाठक के मन ल जरूर गुदगुदाही- 

           जवानी के दिन कस दिखे डोकरी हर,

           सम्हर के निकलथे डहर धीरे-धीरे।

           मनखे के जुबान ल ले के पहिलीच कवि मन कोती कतको गोठ कहे गे हे, उही अनभो ल राजकुमार चौधरी जी कुछ अइसे लिखे हें-

          माड़ जथे झट ले तन के मारे चिनहा।

         भाखा के लागे घाव उमर भर होथे।   

         ए संग्रह के एक ठन खासियत यहू हे कि  लोकोक्ति अउ मुहावरा मन ल बड़ सुघरई ले ग़ज़ल मन म जगह दे गे हे। जेला राजकुमार चौधरी जी के लेखन कौशल के रूप म देखे जाना चाही। दू-चार जगह छत्तीसगढ़ी शब्द के सही रूप के नइ होना, पाठक के मन ल भटका सकत हे‌। हो सकत हे ए ह टंकण त्रुटि होही। फेर अर्थ के अनर्थ हो जथे। बद ले, के जगह बध ले होगे हवय।

          बन जाबे गुनवान तहूॅं हर,

          मीत चतुर ले बध ले भइया। पृ.71

           आखिर म संग्रह के नाॅंव 'पाॅंखी काटे जाही' एकर ऊपर विचार करे म एके भाव आथे कि हम ल सावचेत रहे के जरूरत हे। रचनाकार अपन अंतस् ले एक संभावना या कहन संदेह व्यक्त करे हे। एकर पाछू उॅंकर आम आदमी ले एक आह्वान हे, कि उन सजग रहयॅं।

           आज जब चतुरा मनखे मन अपन हित बर मनखे ल मनखे (कतको ढंग ले) म बाॅंटे के प्रपंच करत दिखथें, त गाॅंव के भोला-भाला मनखे ल बोधावत राजकुमार चौधरी जी लिखथें- 

          उड़बे झन जादा पाॅंखी काटे जाही।

          मनखे सॅंग मनखे मन ला बाॅंटे जाही।

           आज जब छत्तीसगढ़ी साहित्य म हिंदी या आने भाषा के समृद्ध साहित्य के जइसे सबो विधा म लिखे गे साहित्य के कमी के चलत छत्तीसगढ़ी साहित्य के उपेक्षा करे जाथे, अइसन म भाव पक्ष ले दमदारी के संग राजकुमार चौधरी 'रौना' जी के ए ग़ज़ल संग्रह ग़ज़ल के रस्ता चतवारही। छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल लिखे के नवा उदिम करइया मन बर प्रेरणा बनही। ए संग्रह छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के नवा उड़ान बनही। इही आशा करत राजकुमार चौधरी 'रौना' जी ल भावपूर्ण ग़ज़ल संग्रह बर मोर शुभकामना अउ बधाई।

संग्रह - पाॅंखी काटे जाही

रचनाकार - राजकुमार चौधरी 'रौना'

प्रकाशन - वैभव प्रकाशन रायपुर छग.

प्रकाशन वर्ष-2022

पृष्ठ - 112

मूल्य- 100/-


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग


पल्लवन--हम सुधरेंगे युग सुधरेगा

 पल्लवन--हम सुधरेंगे युग सुधरेगा

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आदिकाल ले समाज म फइले अंधविश्वास,कुप्रथा,नशाखोरी जइसे नाना प्रकार के बुराई ल दूर करके समाज म सुधार,सुख-शांति-खुशहाली लाये के उदिम होवत आवत हे फेर  देखे म ये आथे के उल्टा समाज म नवा नवा किसम के बुराई ह दिनों-दिन बाढ़त जावत हे। अशांति ,अव्यवस्था अउ हिंसा के बोलबाला हे।

    कलजुग ल सबले खराब युग माने जाथे। युग ह भला खराब होही का? युग ह खराब नइये,खराबी तो ये समे के मनखे मन म हे,ऊँकर विचार म हे। इहाँ हर कोई चाहते के दूसर ह सुधरय। खुद म भले कतको बुराई भरे राहय। बाप चाहते बेटा सुधरय, बेटा ह उही बात बाप ल कहिथे। नेता चाहथे जनता सुधरय, जनता कहिथे नेता सुधरय।अइसने खुद के हिरदे ल नइ झाँक के आन बर अँगरी उठाके  उपदेश देये के भारी चलन हे।दूसर ल उपदेश देवइया कोरी-खरिका मिल जहीं अउ खुद म सुधार करइया लाखों म कोई एक झन। मौन रहे के शिक्षा भाषण देके दे जावत हे। घुप्प अँधियार ह अँजोर लाहूँ कहिथे। वो काम तो दिया ह कर सकथे। दिया असन बर के अँजोर बगरइया खोजे नइ मिलय।

  कुल मिलाके कोरा ज्ञान बाँटे ले समाज सुधार नइ होवय। जेन मन भी थोर-थार समाज सुधार करे हें ,वो मन पहिली खुद करके देखावैं तब दूसर ल काहयँ।तभे ऊँकर प्रभाव परै।

  व्यक्ति ले समाज बने हे।हर मनखे अगर अपन सोच म,अपन आदत म सुधार कर लै त परिवार म,गाँव-शहर म, समाज म सुधार हो जही तहाँ ले पूरा देश अउ संसार अच्छा हो जही।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

बछरू ढिलागे. महेंद्र बघेल

 बछरू ढिलागे.

                महेंद्र बघेल 


बड़े बिहनिया ले चिरई के चींव-चींव अउ पवन पुरवाही के बेरा म कपाट के सखरी ल कोन तो खट-खट बजावत हूॅंत करईस। मॅंय कपाट ल खोलके देखेंव त बहिरी म मितान गोबरधन ह ठाढ़े रहय। कुछु अनहोनी के डर म पूछेव - "सब बने -बने न मितान।" मितान ह सब बने बने कहिस त महू ल बने लगिस। तब मॅंय कहेंव - " सब कुछ चंगा हे त आपके बिहनिया ले इहाॅं पधारे के का राज हे..,धन्य हमर भाग जो आपके चरण कमल के धुर्रा ह हमर परछी के टाईल्स म परिस ,येहा पहिली मरझुरहा दिखत रहिस अब दर्पण कस चमकही।" अतिक म बेलबेलहा मितान ह अपन जवाबी हमला ल मोर उपर भवाॅंके फेकिस -" का करबे मितान रातकुन बछरू ह ढिलागे रहिस तब ले मोर मूड़ी ह पिरावत हे। घर म गोसइन ह मोर बर भड़कतिस ओकर पहिली घर ले टसको-टसको करत हॅंव।"

      बात समझ म आवत गिस कुछ तो गड़बड़ हे।मॅंय मितान ल स-सम्मान कुरसी म सउॅंहत माधो कस बइठारके अपन गोसइन ल चहा-पानी बर इशारा करेंव। तुरते-ताही कप म भाप निकलत गरम-गरम चहा ह मितान के शान म प्रस्तुत होगे फेर चुहकत -चुहकत गाय-बछरू के विषय म तत्कालिक गोष्ठी के बोहनी घलव होगे। जिहाॅं मॅंय अउ मितान बस दूनो, नइ तीसर कोनो। एक तो मितान ह बिन बुलाय अतिथि रहिस फेर मुख्य अतिथि के रोब झाड़त बिना मूड़ी-पूछी के शुरू होगे..,मॅंय कार्यक्रम के अध्यक्ष असन मुटुर-मुटुर देखत ओकर वक्तव्य ल सुनत-सुनत अपन बारी के अगोरा म तुकते रहिगेंव।

           मौका देखके मॅंय बोलेव -  "कस मितान तॅंय अपन गोसइन ल अतिक कार डर्राथस ,बछरूच ह तो ढिलाय हे न , महानदी के मेन गेट ह थोरे ढिलाय हे जेमा सुरक्षित जगा खोजत हस।"

  गोवरधन ह गेनेन-मेनेन करत लटपट म जबान ल खोलिस- " मत पूछ छोटे घर म सबे झन ला गाय के बिना जतन के पीये बर दूध-दही चाही।गोसइन ह कहिथे गोबर-कचरा के कंझट ल टार ,सबला बेच-भाॅंज दे..।फेर इहाॅं फोकट म का कहिबे एकेक गाय के पाछू  पाॅंच-पाॅंच सौ रूपया देय बर तैयार हॅंव फेर कोनो अपन घर लेगे बर राजी नइहें।काम के नाम म..,न बेटा, न बहू,न बाई , आखिर म गोबर-कचरा करे के जिम्मादारी मोर...।अइसने परेशानी के सेती बड़े भैया गोकुल ह सबो गाय ल एती-ओती ढिल दिस। अब महूॅं ह विचार करत हॅंव.., न गाय रही न बछरू ढिलाही...।"

              ये अंदर के बात आय कि मितान के घर जब-जब बछरू ढिलाथे तब-तब हमर घर म बिहने ले गोष्ठी के आयोजन होना तय रहिथे। बछरू ढिलाय के एक अपन अलगे सांस्कृतिक महत्व हे।येकर ले दू परिवार के बीच मुॅंहुॅं-कान धोय के बेरा म दूधरू संवाद घलव स्थापित होथे। हम यहू कहि सकथन कि जब-जब मितान ल फोकट म स्पेशल चहा पीये के मन होथे तब-तब उॅंकर बछरू ढिला जथे। बछरू के गरदेंवा ल खूॅंटा म बाॅंधे के जगा अरझाय के पाछू इही कहानी हे। गरदेंवा ल अरझाव अउ परोसी घर चुहकी लगाव..। येती बछरू के ढिलाय ले गाय ह बड़ खुशी मनाथे काबर इही दिन ओकर चिराग ह अघावत ले गोरस पी पाथे।

            गोष्ठी म क्षेपक ल जोड़त गोबरधन ह अपन बहू के बहुआयामी चरित्र के बखान करत बताइस कि -- "बहू ह गाय-गरू ल पैरा-भूसा खवाय बर नइ जाने, गोबर-कचरा के जैविक महत्व ल एकोकन नइ माने। गोबर के नाम ल सुनतेच नाक-भौंह कोचर जथे, मुॅंहुॅं-कान ओथर जथे। फेर दूध ल मुनुबिलई कस सपासप पीये बर सबले आगू उही ह रहिथे। दूध ल पीयत-पीयत अपन झाॅंपी के जोरन ल निकाल के एके डायलाग मारथे गाय हमारी माता है,गोबर माटी हमको नहीं सुहाता है।"

        गोबरधन के बहू गायत्री ह गाय के सेवा-जतन ल ननपनेच ले थोरको नइ जानिस। बाप-महतारी मन ओकर दिमाग के कोरा भुइयाॅं म सिरिफ डाॅक्टर अउ इंजिनियर बने के सपना बोईन फेर माल-मवेशी के सेवा जतन अउ घरेलू काम -काज के बीजा नइ छीच सकिन।जब मां-बाप मन खुदे अपन बेटा-बेटी ल गाय-गरू के सेवा-जतन बर नइ सिखोहीं त कोई अपने-अपन थोरे सीख जाही। अइसन म बेटा-बहू अउ बेटी मन का पथरा ल ककरो सेवा जतन  कर पहीं.., बस बाते-बात म सिरिफ गोबरे कचरा करहीं.., भला अउ का कर सकहीं..। किसान के घर म बहू-बेटी के अइसन सोच ह समाज म होवइया बदलाव के तरफ इशारा करत हे।

    जेमन किसान नोहे उनकर बारे म हम का कही सकथन। ओ परिवार मन गाय के सेवा-जतन ल तो दूर गाय के बारे म चर्चा वाले पन्ना ल चर-चर ले चीरके फेंक देंथे। अउ ओमन कुकुर पोस के कुकर के प्रति अपन श्रद्धा  भाव ल भूॅंक-भूॅंक के सादर समर्पित करथें।

           गाय के नाम म नाक-कान कोचरइया मन के अपन पहिली पसंद ठेमना बेलाटी कुकर रहिथे।येमन कुकुर ल अपन गोदी म बइठार के चूमत-चाॅंटत ओ माई स्वीट हार्ट..,ओ माई क्यूटी..,ओ माई डियर बेबी कहत- कहत आत्मिक अउ परमात्विक खुशी महसूस करथें।पता नहीं येमन काकर हार्ट के स्वीट सवाद ल कब-कब चींख-चाॅंट डरे रहिथे ते। संग म अपन लइका ल नइ सुताहीं फेर कुकर ल छोड़ नइ सकें। अपन मन पारले, पतंजलि बिस्कुट म मन ल मड़ा लिहीं फेर कुकुर ल ब्रांडेड एनर्जी वाले बिस्कुट खवाहीं।अउ कुकर के गोबर-कचरा ल साफ करत असम्हार खुशी के अनुभो करथें कि धन्य भाग..., जे हमर काया ह लेड़ी बिने के काम अईस।शहर म पढ़े-लिखे मनखे के घर म गाय के जगा कुकुर जरूर मिल जही। कहुॅं कुकुर ह खोंची-खाॅंड़ दूध दे देतिस ते पता नहीं अउ का होतिस।

         पढ़ई-लिखई म थोरको डिस्टर्ब झन होय इही सोचके मां-बाप मन लइका मन ल गोसेवा करे बर नइ तियारें।उही माॅं-बाप मन जब सास -ससुर बन जाथे तब अपन बहू ले गोबर-कचरा करे के आशा रखथें। जब अपन बेटी ल नइ सिखा सकेन तब बहू (दूसर के बेटी) ले का आशा..।

     एती बहू रानी के सेती गोबरधन ल खुदे टिमारी करना पड़थे।ओ मने-मन म गदकत रहिथे कि चलो बछरू ढिलइस ते बने होइस, आज दूध-दूहे के कंझट ले छुटकारा तो मिलिस संग म पड़ोसी ल गुड मार्निंग करे के गरम-गरम मौका तो घलव मिलगे। कुल मिलाके आज गोबरधन बर बछरू के ढिलाना शुभ हे।

           खेत जोते बर ट्रैक्टर लुवे बर हार्वेस्टर ये मशीन मन के नाम लेके पैरा भूसा के हाल-बेहाल हे। किसान भाई मन पैरा म आगी ढील देथें, चारो मुड़ा धुॅंगियामय हो जथे तब अइसे लगथे जनो-मनो मछिंदर भाई मन ॲंटवा वाले आइटम ल खो-खो के भूॅंजी म कन्वर्ट करत हें। गांव होय चाहे शहर गली-खोर, सड़क-धरसा, पाई-परिया, भर्री-भाठा जइसे सार्वजनिक जगा मनके हालत पतली हे। जेकर जइसे मरजी, उही उठावत कुरिया-परछी। बरदी बर चरागन नइहे, जम्मो चरागन ल हुसियार अउ टोपी वाले नंबरदार मन चर डरिन। लमा-लमा के खइरखाडाॅंड़ (दईहान) म कोठार बनगे, बड़े-बड़े बिल्डिंग तनगे।गाय बर न बैठे के जगा न चरे के.., तब लगथे अब बहुते जल्दी बरदिहा मन लुप्त प्राणी के नाम ले जाने जाहीं। बाढ़त मॅंहगाई ल भला ते कम कर डारबे फेर बरदी चराय बर चरवाहा खोजई के बूता म तोर खून अउॅंट जही।

          आपरेशन व्हाइट रिवोल्यूशन के नारा ह खुद भूखमरी के शिकार होके चारा माॅंगत हे,श्वेत क्रांति ह दिनोदिन पटपटावत अश्वेत होवत हे। हालत इहाॅं तक पहुंच गेहे कि किसान मन अपन घरके गाय-गरू ल सुनसान जगा नइते बीच जंगल म बरोय (छोड़े ) के एकतरफा अभियान चलावत हें। किसान भाई मन के ब्लड म गाय-गरू पोसे के इच्छा खतम होगे हे त का डेयरी फारम के भरोसा म आपरेशन फ्लड ह सफल हो जही।

        सरकार ह जनता बर झउॅंहा म गोबर बीनत अउ गंजी म सू-सू झोंकत नवा-नवा योजना बनाके लावत हे..। जनता मन के रूझान के सेती गाॅंव-गाॅंव ह.. झोंकत, बीनत अउ नोट गीनत गोबरमय हे। कोठा म गाय के कीमत दूध दूहत ले,गोबर बीनत ले अउ सू-सू के झोंकत ले हवय। दूहानू गाय बर दाना-भूसा के वेवस्था दूहात ले.., फेर परम आदरणीय गोसान मन गाय ल नगर भ्रमण बर भेज देथें।तेकरे सेती माडर्न गाय-गरू के दिनचर्या म ये हाइटेक अउ विकास के हवा ह भारी उलटफेर करके रख देहे। ताजा उदाहरण के रूप म देखब म आथे कि  जम्मो गाय समाज ह बात-बात म धरना प्रदर्शन बर सड़क म रोम देथें।अउ रातकुन सड़क के बीचोंबीच बैठके भावी योजना के खाका खींचथें कि बजरहा झोला म हमला कइसे हमला (आक्रमण) करना हे, डिग्गी म थोथना ल कैसे खुसेरना हे। 

          रद्दा रेंगइय्या मन कतको हार्न बजावत रहॅंय येमन टस ले मस नइ होंय भलुक बरन चढ़ाके कननखी देखत गारी देवत हे तइसे नजर आथें। इनकर समाज के बाउन्सर (गोल्लर) मन के बाते निराला हे रातभर खेतखार के बेंदराबिनास करहीं अउ बिहने ले बीच सड़क म कोलगेट कइसे घींसे जाथे ओकर प्रभाती प्रदर्शन करथे। अइसे भी येकर भूॅंकरई ले जनता मन कम परेशान नइ रहॅंय। गाय समाज डहर ले बीच सड़क म घेक्खरपना अउ धान-पान के चरई ल देखके अइसे लगथे जनो-मनो आजादी के अतना दिन बाद गौठान बने के खुशी म येमन स्वतंत्रता दिवस मनावत हें।

            अउ एती गौठान योजना ह गाय के सराय कम, पंच- सरपंच अउ सचिव के सेल्फी जोन ज्यादा लगथे ओ तो शुक्रगुजार हे बिहान वाले दीदी मन के जेन जैविक खाद बनाके थोरिक इज्जत के फालूदा बने ले बचावत हे।

              कभू-कभू सू-सू गोबर बेचइय्या मन चलाकी के चक्कर म गोबर म पानी मिलाके वजन बढाय बर सोच डरथें। त का तउलईया के दिमाग म थोरे गोबर भराय हे..., तोर चतुराई ल नी समझही..। तब चतुरामन के जवाब.., गाय ह पोंकही त हम का करबो,गाय जइसन करे हे तइसन ल लाय हन..।

         सू-सू मंडी के मनिज्जर मन के सूॅंघे के शक्ति ह बेलाटी कुकर ले घलव तेज रहिथे।वो मन सूॅंघ के बता देथें कते ह गाय के ओरिजिनल सू-सू आय..,तभे तो आज तक कोनो हितग्राही मन ओरिजिनल सू-सू म बैला के सू-सू ल मिलाय के हिम्मत नइ कर पाइन।

          अब तो जेन ल गोधन ले एलर्जी हे उही गोबरधन बनगे..,हमर देश म गोबरधन के कोई कमी हे का..।मॅंय चौकीदार..,मोर घर ह -तोर घर..जइसे नारा ले प्रेरित होके देश म एके नारा चलत हे महूॅं गोबरधन..। तेकरे सेती गरवा समाज के पदाधिकारी मन सड़क म आके बैठ गेहें। जनों मनो उनकर सियान गरवादेव ह उनला हूमेलासन अउ भड़कासन सीखोवत हें। अउ अवइय्या- जवइय्या मन के हाथ-गोड़ ल टोरके नवा ईबारत लिखत हें।

 इहाॅं ले उहाॅं सुबे ले साॅंझ तक जे डहर देखबे उही डहर सड़क ह अघोषित गौठान बनके रहि गेहे।तब लगथे ये सरकारी गौठान ह भूत बंगला तो नइ बन जही। कुलमिलाके जब कोठा म गायेच नइ रही तब बछरू ह कहाॅं ले ढिला जही...।


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

कहानी-अक्ति-भाँवर

 [4/26, 10:31 AM] 

Chandrahas Sahu धमतरी: 

कहानी-अक्ति-भाँवर


                               चन्द्रहास साहू

                           मो 8120578897


"ठाकुर देवता मा पूजा करत जावव हो......।''

कोतवाल हांका पारिस अउ मोर नींद उमछगे। शहर मा आठ बजत ले सुतइया। गाँव मा तो भिनसरहा चहल-पहल हो जाये रहिथे।

"हे दाई-ददा हे भोलेनाथ ! हे धरती दाई ! ओ.. !''

आँखी रमजत जमहासी लेयेंव अउ गोड़ ला बेड ले उतारे के आगू धरती दाई ला पांव परेंव। मोबाइल ला देखेंव। आठ बजे बर दस मिनट कमती रिहिस।

"उठ बेटा पीहू ! आठ बजगे वो चलो मोर रानी बेटी आँखी उघार अब।''

दस बच्छर के मोर मयारुक बेटी ला उठाये लागेंव। वोकर ओढ़े चद्दर ला तिरत फेर आरो करेंव फेर लइका तो ...।

"थोड़ी देर और ...पापा ! नही न ..... हूं .... हूं  उई ... ।''

कुनमुनावत किहिस अउ फेर सुतगे। मुँहू धो के फ्रेश होके आयेंव अउ फेर उठायेंव नोनी के संग गोसाइन ला। 

"उठ वो बेला ...!''

"हँव ''

"हुकारु दिस अउ फेर फुसुर-फुसुर सुते लागिस।

तोला कहे रेहेंव न साढ़े छे बजे उठाबे कहिके। बहरई-बटोरई,चाय-पानी जम्मो ला कर डारे होही सियान मन। बहु हा सुते रही अउ.... गाँव आथो तब बिहनियां चाय-पानी घला नइ बना सकव। उठाते नही मोला।''

गोसाइन खिसियाये लागिस मोला। सिरतोन धरम संकट हाबे उठाबे तब झटकुन काबर उठाथस कहिथे अउ बिलम होथे तब बिलमा डारथे। ...दूसर ला जगाये बर खुद ला जागे ला परथे। 

"चल उठ बेटी ! पुतरा-पुतरी के बिहाव करहु का नोनी ...चलो तियारी करो। तोर संगी-सहेली लाडो पाखी तुमु प्रेरणा प्रियंका भूरी जम्मो कोई आये रिहिन।''

लइका टुंग ले उठगे अब। अपन दादा-दादी अउ संगी-सहेली संग पुतरा-पुतरी बिहाव के जोरा-जारी करे लागिस। मेंहा परसा पान के दोना बनायेंव अउ माई कोठी ले धान निकालके  दोना ला भरेंव। शीतला तरिया कोती ठाकुर देव ठउर मा पूजा करे बर चल देंव।

          पहिली बइगा बबा हा जम्मो विधि-विधान ला करे फेर अब वोकर बीते ले बड़का बेटा दुलरुवा हा गाँव के जम्मो नेंग जोग ला करथे। खेती-किसानी के नवा बच्छर के शुभारंभ आज के दिन ले होथे। अब्बड़ दिन पाछू आये हँव मेंहा तरिया। भलुक ननपन मा पानी डफोर-डफोर के नहाये हावन इहाँ। अब्बड़ छू-छुवउल, रेस-टीप खेले हावन। तरिया के बीच के खम्बा ला कतको बेरा छुये बर गेंये हावन। ... वहु हा एक ठन नरिहर बर। सिरतोन कतका बिचित्तर राहय बचपना हा। मन गमकत हाबे सुरता करके। तीरथ, तोरण, भीखम, श्रीराम लिखन अउ  राजो कलिंदरी रामकुमारी रूखमणी संतोषी जम्मो संगवारी के सुध आये लागिस। टूरा-टूरी संघरा नाहन-खोरन। न कोनो बैर नही न कोनो मन मा मैल नही। बिन कपड़ा के घला नहा लेवन लुका-चोरी। तीरथ अब्बड़ बेड़जत्ता स्कूल ला नागा करके तरिया मा ओड़ा ला देये राहय। पीपर के फुनगी डारा ले तरिया मा कूदे घला। एक दिन भीखम उप्पर कूद दिस भसरंग ले। दुनो कोई के गोड़-हाथ मुरकेटा गे। डॉक्टर करा जाये ला परगे। ....अउ लिखन  ? अब्बड़ तौरत रिहिस कतको बरजेंव नइ मानिस अउ रोवत तरिया ले निकलिस तब।

"अबे राजीव ! निकाल न रे...!''

रोनहुत होके किहिस। 

"..... का होगे ?.... का होगे ?''

जम्मो कोई सकला गे वोकर रोवई-गवई ला सुन के। 

"अबे मोर कुला मा जोंक धर ले हाबे रे ! साले हो ....निकालो न।''

लिखन पार-पचरी मा कूदे लागिस रोवत-रोवत। जम्मो टूरा-टूरी मन सकेला के खोसखिस-खोसखिस हाँसे लागिन।.....हा...हा... सिरतोन महुँ हाँसे लागेंव।

"चला राजीव ! एकर आ।''

देवगुड़ी मा पूजा करत लिखन  आरो करिस।

ननपन के सुरता ले उबरेंव अउ वोला देखते साठ फेर कठल-कठल के हाँसेव।

"अबे अब जोंक धरथे कि नही हा ...हा...।''

"चल हट बे !''

अब वहु हा ठठाके हाँस डारिस।

"अब का जोंक चिपकही साले ला, रात अउ दिन भौजी हा चिपके रहिथे तब।''

बेड़जत्ता तीरथ बेलबेलावत किहिस।

                      ठाकुर देव के मैदान ला चतवार डारे रिहिन। जम्मो किसान मन अपन कोठी के धान ला लान के बइगा दुलरुवा ला दिस। ठाकुर देव मा धूप दशांग अगरबत्ती लाली सादा अउ करिया धजा चढ़ाके पूजा करिस बइगा हा। दोना के जम्मो धान ला मिंझराइस अउ नवा टुकनी मा भरके मैदान मे पूजा पाठ करके छिंचे लागिस। लिखन अउ तोरण अब प्रतीकात्मक रूप ले बईला बन गे रिहिन। मड़ियाके बइठ गे दुनो कोई। नरी मा नांगर जुड़ा परगे अउ गाँव के पटइल कका हा अररा... तता ...ता के  आरो संग खेत जोते लागिस। गाँव के सियान मन तरिया के पानी ला लान के सिंचत हाबे, पानी दरपत हाबे। कोनो कुदारी धरके टोंकान खनत हाबे तब कोनो बन-बदौर निकालत हाबे। बइगा हा अब ठाकुर देव के धान ला दोना मा भरके देवत हाबे। देवता ला सुमिरन करत हे। 

"ठाकुर देवता जम्मो बर सहाय रहिबे। धरती दाई किसान धान के बिजहा ला तोर कोरा मा डारही तब खेलाबे-कुदाबे पालन-पोषण करबे। मुठा भर बीजा के काबा भर फसल देबे। कोनो किसान घर गरीबी झन राहय। भूख अउ बीमारी ले कोनो झन तड़पे। जम्मो बिघन-बाधा ला टार देबे मालिक !''

बइगा दुलरुवा सुमिरन करिस। 

"तरिया के पानी अब अब्बड़ बस्सावत हाबे, मतलागे हाबे। सम्मार  के जम्मो कोई श्रम दान करके बेसरम कचरा अउ झाल-झँखड़ ला निकालबो। हमर धरोहर बर कुछु करबो तब बनही।'' 

गाँव वाला मन ला समझायेंव।

"हव,घर पीछू एक मनखे आबो तब सुघ्घर रही।''

गाँव भर सुंता होगे अब।

 दोना के धान ला धरके अब लहुटे लागिन जम्मो कोई। महुँ आगेंव अपन घर अउ आरो करेंव।

"अक्ति के बीजा ला ले आनेंव दाई ! एक लोटा पानी लान वो ... !''

"पानी लान वो बेला ....!''

दाई अउ गोसाइन दुनो कोई ला आरो करेंव। ..... अउ निकलिन तब पीहू अउ दाई हा मोहाटी मा आके लोटा के पानी रिकोइस अउ दोना के अन्नपूर्णा के पैलगी करिस। अभिन दोना ला तुलसी चौरा मा मड़ायेंव अउ थोकिन पाछू पीहू संग जाके परसाडोली खेत मा पूजा-पाठ करके धान बोये के नेंग करेन।

"भो.... पू ..... भो .... पू...... !''

आरो आइस गणेश चौक ले। साईकिल मा बंधाये भोपू के आरो आवय। गुल्फी वाला रामाधार  आवय। बिचारा बिन आधार के हाबे। ननपन ले दाई न ददा। गुल्फी डबलरोटी बेच के गुजारा करत हाबे ननपन ले खड़खड़ी साइकिल मा अतराब के गाँव मा। लइका मन झूमे हाबे साइकिल वाला ला घेर के। कोनो उछाह हाबे कोनो रोवत हाबे अउ कोनो हा गुल्फी चुचरत लाली रचे जीभ निकालके बिजरावत हाबे लिबिर-लाबर। 

"महुँ खाहूँ पापा गुल्फी !''

पीहू घला जिद करिस। दस ठन भाषण देयें हँव तब बिसाये हँव गुल्फी। पीहू के संग आने लइका घला खाइस। लइका मोर संग खेत गेये रिहिन तेखर मेहनताना देये ला परथे...।

गुल्फी मुँहू मा गिस अउ मोर बेटू पीहू चार्ज होगे। अब चपर-चपर गोठियाये लागिस।

"पापा ! ये अक्ति तिहार ला काबर मनाथे ?''

"आज के दिन ला अक्षय तृतीया घला कहिथे बेटा ! आज के दिन के भगवान विष्णु के अवतारी परशुराम जी के जनमदिन  आवय। धन के देवता कुबेर ला अधिपति बनाये गे रिहिन। श्री कृष्ण अउ सुदामा के महामिलन होये रिहिन। भागीरथी हा माता गंगा के आव्हान करके धरती मा बलाये रिहिन। सतयुग अउ त्रेतायुग के शुरुआत आज के दिन ले होये रिहिन। ..महाभारत के भीषण लड़ाई हा आज के दिन सिराये रिहिन। भगवान बद्रीनाथ के पट घला आज के दिन खुलथे।''

मेंहा बतायेंव।

"अक्ति के तो अब्बड़ महत्तम हाबे पापा। ! फेर अक्षय माने का होथे पापा !''

लइका ला फेर बतायेंव।

"अक्षय माने कभु नइ सिराये। वोकरे सेती आज के दिन अब्बड़ बिहाव होथे।  जेमा टूटन बिखराव अउ तलाक नइ होवय। जनम-जनम के बंधना मा बंध जाथे आज के दिन के बिहाव करइया मन। तोर मम्मी अउ मोर घला आजे के दिन बिहाव होये रिहिन।''

"अरे वाह पापा जी ! आज तुंहर दुनो के मैरिज एनीवर्सरी आय। हप्पी मैरिज एनीवर्सरी पापा जी।''

बेटी मुचकावत किहिस अउ मोर गाल ला चुम लिस। 

"चल बेटी ! कुम्हार घर जाबो इही कोती ले।''

कुम्हार घर चल देन अउ लाल घेरु रंग के करसा बिसा डारेंव। अब घर अमरगेंन। 

"बेला का करत हावस ओ !''

 करसा ला तुलसी चौरा करा मड़ायेंव अउ गोसाइन ला आरो करत रंधनी कुरिया मा गेयेंव। गोसाइन बेसन के डुबकी बनावत रिहिस। मुँहू मा पानी आगे। सिरतोन गरमी मा अम्मट अब्बड़ सुहाथे। सरपट चुहक के खा ले डुबकी ला...। घर के बहुलक्ष्मी गृहलक्ष्मी बनके जम्मो घर-परिवार ला सम्हाल डारिस। लइकुसहा पन मा बिहाव होइस , कुछु नइ जाने ....अउ अब वोकर बिना जग अँधियार हाबे मोर। सिरतोन माईलोगिन अउ धान के पौधा एके बरोबर तो आवय। धान के पौधा ला थरहोटी  ले खनके खेत मा लगाथन अउ खेत मा ही डारा-शाखा के बढ़वार करत महर-महर ममहावत जम्मो खेत-खार मा अपन ममहासी बगरा देथे। वइसने माईलोगिन हा अपन माइके मा पलथे, बाढ़थे संग्यान होथे तब ससुराल पठो देथे। जम्मो जिम्मेदारी ला निभावत दुबराज जवाफूल जीरा मंजरी बरोबर ममहाये लागथे संस्कार व्यवहार कर्तव्य सहभागिता अउ सद्भाव ले। 

                      जम्मो ला गुनत बेला के चेहरा ला देखेंव। गोरी-सांवरी बरन अउ गाल के तेलई दगदग ले दिखत हाबे। लाली कुहकू दमकत हाबे। बेसन लगे पड़री गाल पसीना के बूंद मा चमकत माथ इतरावत चुन्दी कोष्टहु लाली लुगरा मा अब्बड़ सुघ्घर दिखत हाबे। 


तै चंदा कस रानी, मय सुरुज के अंजोर ..।

बांध लें मया मा गोरी, अचरा के छोर ...।।


गोसाइन बेला ला रिझाये के उदिम करेंव फेर वो तो मगन हाबे डुबकी बनाये मा। कन्नखी देखिस अउ मुँहू मुरकेटिस। दिल टुटगे मोर तभो ले एक ठन ददरिया अउ ढ़ीलेंव। 

पानी ला पीये, पीयत भर ले....।

संग देबो मोर रानी, जीयत भर ले ...।।


भरभर-भरभर गैस चूल्हा के आरो अउ डुबुक-डुबुक डुबकी साग के आरो संगीत देवत हाबे। गाना गावत गोसाइन ला पोटारत मैरिज एनीवर्सरी विश करेंव। 

"हैप्पी मैरिज एनीवर्सरी वो ! आई लव यू !''

"हु ....!''

सिरतोन ये माईलोगिन मन ला समझ पाना ब्रम्हादेव के बस के बात घलो नोहे तब मेंहा तो छोटे-मोटे साधारण पतिदेव आवव। बेला अब अपन बेसन वाला हाथ ला बेसिन मा धोइस अउ गोड़ मा निहर के पैलगी करिस। 

"तहुँ मोला जिनगी भर संग देबे ..... अउ जइसन तोर घर मा दुल्हिन के सवांगा करके गृहप्रवेश करे हँव वइसना सवांगा मा सुहागिन तोर घर के डेरउठी ले मोर अर्थी निकले ...।''

गोसाइन के आँखी कइच्चा होगे। दुनो हाथ ला थामत चुप करायेंव। आँसू ला पोछेंव। 

"बेला ! मोर पीहू के मम्मी तोर आँखी मा कभु आँसू झन आवय वो ! ....अउ आवय घलो तो सबरदिन उछाह के आँसू आवय।

किचन ले निकलके अब अंगना मा आगे गोसाइन हा। तीनो करसा ला बने धोइस-मांजिस अउ बोरिंग के मीठ पानी ला चौरा मा मड़ा दिस। करसा मा पीयर चाँउर अउ गुलाल के टीका लगा के गंगा मैया ला आरो करिस बेला हा।

"हे गंगा मैया ! कोनो भी डहरचला मन ला प्यासे झन भेजबे हमर गाँव ले। ... अपन आरुग पन अउ मीठपन ला सबरदिन बनाके राखे रहिबे ये जम्मो करसा मा।''

आज अक्ति के  दिन ले करसा के जुड़ पानी पियें के मुँहतुर(शुरुआत) घला करथे अउ करसा दान घला करथे।

गोसाइन बेला सुमिरन करके किहिस। ... अउ मेंहा पाछू बच्छर बरोबर करसा दान करे बर चल देंव। स्कूल चौक, पंचायत अउ लोहार ठीहा मा करसा ला स्थापित करके लहुट गेंव मेंहा। 

महेरी बासी गोंदली बंगाला चटनी अउ बेसन के डुबकी के संग आज मंझनिया के जेवन करेन जम्मो कोई दाई-ददा, बेला अउ मेंहा। लइका पीहू तो अभी मगन हाबे लइका मन संग पुतरा-पुतरी सजाये मा।

फोरन के मिर्ची ला कर्रस ले चाबीस अउ हाय सु...हाय सु ... कहिके बासी खाये लागिस गोसाइन हा। आँखी मा आँसू अउ चेहरा मा उवत सुरुज के लाली उतर गे हाबे अब। नाक मा पसीना के बूंदी रवाही फूली बनके चमकत हाबे। 

"चल बेटी ! भात-बासी खाये बर।''

बेटी तो टस ले मस नइ होइस। मगन होके जम्मो तियारी करत हाबे संगी-सँगवारी संग। अंजली प्रेरणा तुमु प्रियंका मन हा शीतला माता मा हरदी चढ़ाके नेवता देके आ गे रिहिन। लइका मन संग अब बड़का मन घला पंदोली देवत हाबे। मड़वा छवा गे हाबे। नेंग-जोग के जोरा-जारी होगे हाबे। अब देवतला माटी कोड़वानी, मुड़ा परघाये के तियारी चलत हाबे। 

आधा कलेवा तो कोतवालिन घर बन गे रिहिन फेर जेवन बाकी रिहिन। 

एक रुपिया धरके आगी बिसा के लानिस बइगा घर ले अउ चूल में आगी भभकाये लागिस केंवरा हा। 

अब तो लइका मन के गड़वा बाजा दल घला आगे रिहिन अउ अब बजावत हाबे। दूल्हा राजा के पक्ष मा पटइल-पटेलीन अउ दुल्हिन कोती ले लोहार लोहारिन मन सियान बनगे। गाँव भर के मन सकेलाके नेंग नत्ता ला करत हाबे। 

एके तेल चढ़ी गे ....!

दुये तेल चढ़ी गे ....!

अब बिहाव चालू होगे। बाजा बाजत हाबे। नान्हे नान्हे लइका मन लुगरा पहिरके बड़का बुता करत हाबे। पीहू घला हरियर लुगरा पहिरके मोर दाई बनगे हाबे। एको नेग-जोग कमती नइ होवत हाबे। लइका झन जान, जम्मो ला जानथे,समझथे येमन। जम्मो कोई पुतरा-पुतरी ला बोहो के जम्मो कोई धुर्रा उड़ावत ले मैन नाचा नाचीस। अब बरतिया के तियारी करत हाबे। 

मेंछा हावय कर्रा-कर्रा, गाल तुंहर खोदरा रे..।

जादा झन अटियावव संगी, हो गे हव डोकरा रे।।

पटइल तो सिरतोन लजा गे लोहारिन के भड़ौनी गीत मा।

बने बने तोला जानेंव समधी, मड़वा में डारेंव बांस रे ...।

झालापाला लुगरा लाने, जरय तुंहर नाक रे..।

अब पटइल हा मेंछा अटियावत किहिस।

"चलो झटकुन बरात परघाओं पानी बादर के नही ते जम्मो रोहन-बोहन हो जाही।''

बादर के गरजना ला सुनके केहेंव मेंहा। मौसम बिगड़त हाबे अब। लाल भाजी दुधभत्ता खवाके अब टिकावन बइठगे।

हलर हलर मोर मड़वा हाले वो...।

खलर खलर दाइज परे वो....।

कोन देवय मोर अचहर पचहर

कोन देवय धेनू गाय हो ...

दाई मोर टिकथे अचहर पचहर।

ददा मोर टिकथे धेनु गाय हो....

भईया मोर टिकथे लिली हंसा घोड़ा

भउजी आठ मासा सोन हो

हलर हलर मोर मड़वा हाले वो...।

खलर खलर दाइज परे वो....।


जम्मो कोई अपन ले जइसे बनिस वइसे टीके लागिस टिकावन। बाजा बाजत हाबे अउ पइसा अउ टिकावन बरसत हाबे पुतरा-पुतरी के बिहाव मा। सरपंच कका बइठे हाबे खजांची बनके।

अब मउर सोपत हाबे पहिली पुतरा पक्ष ताहन पुतरी पक्ष के मन। मड़वा मा लाडो  हा पुतरा ला पाके अउ पाखी हा पुतरी ला  पाके बइठे हाबे।

छिंद के मउर पहिरके पीहू हा सात भांवर किंजरिस अउ दूल्हा दुल्हिन के मउर सोपत हाबे संग मा आने संगी सहेली मन घला हाबे।

दसो अँगुरिया मोर माथे ओ मड़ाइले..।

दसो अँगुरिया मोर माथे ओ मड़ाइले...।

आओ आओ धरमिन दाई मउर सौंप लेव वो।

गाना गाये लागिस दाई मन। जम्मो कोई ओरी-पारी मउर सोंप डारिस अउ अब्बड़ रो गा के बेटी बिदा करिस। 

जम्मो कोई अब जेवन करिस।

 अउ रातकुन बैइठिस हिसाब-किताब बनाये बर। जम्मो कोई अपन-अपन ले पंदोली देये रिहिन। दू गोड़ वाला अगवा तो हे फेर चार गोड़ अउ एक गोड़ वाला मन घला कमती नइ रिहिन। .... रामाधार तो फोकट मा जम्मो कोई ला गुल्फी बांट डारे रिहिन उछाह मा। जम्मो कोई आय-व्यय के ब्यौरा देयें लागिन। खर्चा कांट के पन्द्रह हजार छे सौ दस रुपिया बांच गे। अभिन तक जम्मो कोई सुंता मा रिहिन अउ अब झगरा करे ला धर लिन।

दू फांकी होगे गाँव वाला मन। कोनो हा बांचे पइसा के डी जे डांस कराबो कहिके अड़े हाबे तब कोनो मन बोकरा पार्टी बर तनियाये हाबे।सिरतोन दिन भर तो गाँव हा सरग लागत रिहिस फेर अब कुकुर कटायेन कस झगरा देख के गाँव बर दया लागिस। का उपाय हाबे अब्बड़ गुनत हाबो मेंहा झगरा शांत करवाये बर।

पीहू बेटी आइस अउ कान मा कुछु किहिस मोर। झगरा के निपटारा के मंतर रिहिस। बेला मुचकावत रिहिस। ... मंतर तो बेला के ये न ।

"भइयां हो ..... ! दीदी हो...!'' 

"मोर एक ठन गोठ ला मान लेव। टिकावन के बांचे पइसा ले डी जे डांस नइ करन न बोकरा भात  खावन। वोकर बढ़िया सदुपयोग करबो।''

जम्मो कोई मोर कोती ला देखे लागिस। मेंहा आगू केहेंव। 

"ये पइसा ला रामाधार ला दे देथन। कतका बढ़चढ़ के जम्मो बुता बर पंदोली देथे। अतका घाम पियास मा साइकिल ले अब्बड़ किंजरथे। डी जे डांस ला पाछू कर लेबो अउ बोकरा भात ला पाछू खा लेबो ते नइ बनही .... ? काकरो जीवन सिरजा देबों। अतका पइसा मा जुन्ना-मुन्ना नानकुन फटफटी बिसा लिही रामाधार हा तो जीयत भर ले तुंहर नाव लिही।''

जम्मो कोई अब मान गे। रामाधार बर तो सौहत भगवान भोलेनाथ के आसीस मिलगे। अब जम्मो कोई फेर सुंता होगे । बेला के चेहरा दमकत रिहिस अउ पीहू गमकत हाबे। आखिर ये प्लानिंग तो दुनो के हरे....अउ सब ले जादा उछाह मा मेंहा हावव। सुघ्घर घर-परिवार पाके।


कहानी में प्रयुक्त गीतकारो का आभार/धन्यवाद


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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

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समीक्षा

[4/29, 9:30 PM] पोखनलाल जायसवाल: 


छत्तीसगढ धान के कटोरा ए। खेती किसानी म रमे मनखे उत्सवधर्मी होथे। खेती काम ल घलव बड़ उत्साह अउ उमंग ले करथे। तीज-तिहार मन नवा-नवा काज करे बर मन म नवा संचार भरथें। इही तिहार मन म एक ठन तिहार अक्ति तिहार हे। छत्तीसगढ़ म खेती के शुरुआत अक्ति तिहार ले शुरू हो जथे। ए तिहार ले जुड़े कतको किसम के जन मान्यता अउ परम्परा हे, जेन ल माने जाथे। 

         अक्ति तिहार म पुतरा-पुतरी के बिहाव रचाय के बहाना लोक जीवन लइका मन ल सामाजिक अउ पारिवारिक जिनगी ले जोड़थे। उॅंकर जिनगी ल गढ़े के कोशिश करथे। ए गुन के विकास के संग परम्परा अउ संस्कृति ले जोड़े रखे के उदिम घलव करथे। रीत रिवाज ल, परंपरा ल मन ले माने बर तियार करथे। पइसा अउ धन जोरे के उदिम म लगे च रहे ले, मनखे जिनगी के आनंद मजा का होथे? नइ जान पावय। जिनगी के असली मजा तो लोगन के बीच फुर्सत निकाल के बइठे अउ नता-गोत्ता ल निभाय ले मिलथे। सुख-दुख ल बाॅंटत खुशी बटोरे म जेन आनंद हे, वो अउ कहूॅं नइ मिले। 

          गाॅंव के कोनो भी सार्वजनिक आयोजन अउ तीज-परब, बर-बिहाव जइसन कार्यक्रम म शामिल होके मनखे के खुशी के ठिकाना नइ रहय। इही कड़ी म अब पहिली ले जादा गाॅंव-गाॅंव म अक्ति के दिन पुतरा-पुतरी के बिहाव रचे जावत हे। लोगन जुरियाय लगे हें। जउन बने बात आय। अपन संस्कृति अउ परम्परा ले ही मनखे, मनखे ले जुड़ के रहि पावत हें। नइ ते रोजी-रोटी के संसो म एक-दूसर के सुख-दुख  पूछे के घलव फूर्सत नइ रहे। 

           एक कोती लोक संस्कृति ले जुड़े अक्ति तिहार के महत्तम अउ मानता के विमर्श करत कहानी 'अक्ति भाॅंवर' म पुतरा-पुतरी के बिहाव संग बिहाव के जम्मो नेंग अउ रीति रिवाज के सुग्घर वर्णन हे। दूसर कोती गाॅंव होय चाहे शहर होय, आयोजन संपन्न होय के पाछू समिति के हिसाब-किताब म उबरे पइसा बर कइसे लोगन आपस म भिंड़थे एकर बढ़िया मनोविज्ञान कहानी म हवय। रचनाकार हमेशा समाज के उत्थान अउ प्रगति बर सोचथे। अपन इही सामाजिक सरोकार ल कहानीकार चंद्रहास साहू जी कहानी के पात्र पीहू के माध्यम ले रखथे। समाज ल एक नवा दिशा देथे। भाषाई दृष्टि ले पुष्ट कहानी अपन उद्देश्य ल पूरा करथे। साॅंस्कृतिक पृष्ठभूमि के सुग्घर कहानी बर चंद्रहास साहू जी ल बधाई

       

पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग

Monday, 24 April 2023

पल्लवन-- भँइसा के सींग भँइसा ल गरू

 पल्लवन--


भँइसा के सींग भँइसा ल गरू

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कोनो ल दुख म ---परशानी म परे देख के  मुँहे भर म ढाँढ़स बँधाना अउ सिरतो म तन मन धन ले यथा शक्ति वोकर सहायता कर देना म धरती-अगास के फरक होथे। असली तो सहायता करना हर आय।एकर मतलब एहू नइये के ढाँढस बँधाना फालतू होथे। नहीं अइसे बात नइये फेर वो ह कोरा जुबानी,देखौटी नइ होना चाही  भलुक हिरदे ले निकले दया-मया के शीतल जल कस वाणी होना चाही। हितु-पिरीतु मन के अइसन दू शब्द ले  दुख के धधकत आगी ह बुझाथे-थिराथे।

 फेर का करबे आज के समे ह बड़ विचित्र होगे हे। अब तो शोक सभा ह तको फार्मेलिटी निभाये कस लागथे। आँसू ह तको असली ये के नकली ये तेला समझ पाना मुश्किल होगे हे।

  घड़ियाली आँसू बहइया छिंही-छिंही मिल जथे। ककरो नोनी बाढ़गे अउ वोकर बर बिहाव नइ लग पावत ये त रंग-रंग के नमक-मिर्चा लगा के गोठियाने वाला पारा-परोस,गाँव-गली, सगा-सोदर म कतको मिल जहीं फेर वोकर घर सगा उतरइया कोनो नइ मिलही।कहूँ गरीबी कारण हे त दू रुपिया के घलो सहायता करइया कोनो नइ मिलही। तेकरे सेती अपन समस्या के हल खुदे खोजना चाही--दुनिया तो बस हँसइया होथे। भँइसा के सींग ह भँइसेच ल गरू होथे।बोहना उहीच ल परथे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

कउॅंआ कान लेगे त कउॅंआ के पीछू झन भाग

 पल्लवन-कउॅंआ कान लेगे त कउॅंआ के पीछू झन भाग

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पोखन लाल जायसवाल

           देखब म आथे कि कुछ झन मन बहुतेच जल्दी दूसर के गोठ म आ जथें। अपन अक्कल नइ लगायॅं। अइसन म कभू-कभू दर-दर भटकउला होथे। ए बने बात आय कि मनखे ल मनखे ऊपर विश्वास करना चाही। मनखे ऊपर भरोसा राखे च के आय। फेर ॲंखमुंदा भरोसा घलव बने बात नोहय। काबर कि आज काल मनखे ह रंग बदले म टेटका के बाप बन गे हे। टेटका ले दू कदम आघू बढ़ गे हे। अपन हित बर कोनो किसम ले पीछू नइ रहय। मनखे अपन हित साधे बर कोनो ल भी रस्ता ले भटका सकत हे। जेकर ले ओकर रस्ता साफ हो जय। मैदान साफ हो जय। ए मन ल मालूम रहिथें, कोन कान के कच्चा हे। कभू-कभू तो मनखे इरखही म घालन पइदा करथे। घर-परिवार म बनउकी अउ बढ़वार दूनो ल देखे नइ सकय। मन म इरखा होथे। भल ल भल जानबे अउ अइसन मन कब नता-गोत्ता म फूट डाले बर भेंगराजी मार देथें? गम नइ मिले। साव बने मजा घलव लेथें। कतको मन एक-एक ठिन गोठ ल मसाला डार के अइसे परोस देथें कि दू झन हितवा मन एक-दूसर ल देखन नइ भावयॅं। 

         अइसन म आज के समे ह दिमाग के बत्ती ल उठत-बइठत बार के रखे के समे आय। अपन अउ बिरान के भरोसा ल रखन, फेर काना-फूसी ले थोरिक सावचेत रहन। नइ ते बुधियार मनखे इही कही- बइहा ! पहिली अपन कान ल टमड़ के देख तो ले, हवै धन नइ तेन ल, तब फेर कउॅंआ के पीछू भागबे। अपन समे बरबाद करे अउ हॅंसी उड़वाय के पहिली, का बात आय? एकर परछो कर ले म खुद के भलाई हे। कखरो कहे ल सुन के तुरते विश्वास नइ करना चाही। भगवान ह अक्कल दे हे, त भाग-दउड़ के पहिली वो अक्कल लगाना च चाही।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग

पल्लवन---थोर खाये बहुते डकारै

 पल्लवन---थोर खाये बहुते डकारै

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आज अधिकांश मनखे के अचार-विचार  म बजारवाद हावी होवत जावत हे।छिपावा-दिखावा बाढ़त हे।कई झन तो भूँख म पेट ह सप-सप करत हे तभो ले माँदी-हिकारी (सार्वजनिक भोज) म, दूसर मन भुखर्रा झन समझयँ सोच के दूये-चार कौंरा खाकें कस -कस के घेरी-बेरी डकार लेके अइसे जताथें के वो तो खाता-पीता आदमी ये।

 एही दूसर मन का समझहीं के सोच ---निंदा के डर ह कमजोरी ल--असलियत ल छिपा के दिखावा ल बढ़ावा देथे। अइसने मैं-मैं- मैं कहइया अउ महूँ ककरो ले कम हँव का के अहम पाल के बढ़-चढ़ के दिखावा करइया मन के कमी नइये।

  दिखावा ह कभू न कभू दुख के-पश्चाताप के कारण बनथे। दूसर मन ल देख के तको लोगन दिखावा करत हें। कुछ झन तो गरीब हें तको शादी-बिहाव म दिखावा के चक्कर म अइसन अनाप-शनाप खर्चा करत हेंं के खेत-खार बेंचा जावत हे।

     दुनिया हाँसही ते हाँसन दे --कोनो ल भी फोकट दिखावा करे बर जाँगर टोर के कमाये धन के दुर्गति नइ करना चाही। कर्जा म बूड़के हमेरी झाड़े ल का मिलही? हँसइया मन , हाथ ल चाँट-चाँट के आन के ल खवइया मन, कर्जा ल नइ छूट देवयँ। 

एक न एक दिन दिखावा रूपी सोन के पालिश ह जब उखड़थे अउ हकीकत के राँगा ह उघरथे  तब भयंकर दुख होथे--पछतावा होथे-निंदा तो होबे करथे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

पल्लवन-- पहिली सुख निरोगी काया

 पल्लवन--


पहिली सुख निरोगी काया

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ये सृष्टि के जम्मों जीवधारी मन सुख के तलाश म लगे हें। मानव के तो ये हा जन्मजात स्वभाव आय। सुख ह एक ठन भाव आय जेकर अनुभव मन ह करथे। वो सबो जिनिस अउ क्रियाकलाप जेकर ले मन ल खुशी जनाथे ल सुख कहे जाथे अउ जेकर ले मन खिन्न हो जाथे---कष्ट के अनुभव होथे दुख कहिलाथे। चित्त ल जेन आनंद मिलथे उही ह सुख आय। सुख पहिली के दुख पहिली ये प्रश्न के उत्तर देना ओतके कठिन हे जतके मुर्गी पहिली के अंडा पहिली? ये सुख अउ दुख के माया बड़ विचित्र हे।कोनो दुख के फल ह समे बिते म सुख के रूप म मिल जथे त कोनो सुख ह आगू चलके घोर कष्ट के कारण हो जथे।कष्ट के कारण बनइया सुख ल हिनहा माने जाथे।दिन-रात,धूप-छाँव,अँजोर-अँधियार होथे ओइसने सुख-दुख होथे ये तय हे। 

  हमेशा न तो दुख राहय न सुख राहय।कोनो घटना ह,कोनो जिनीस ह ककरो बर दुख के कारण हो सकथे त ककरो बर सुख के। दुख अनगिनत हे ओइसने सुख के गिनती नइये।सुख के बात करन त मनीषी मन मोटी-मोटा सात प्रकार के सुख--निरोगी काया(स्वस्थ शरीर),घर में माया(धन-दौलत), आज्ञाकारी बेटा-बेटी, सुलक्षणा नारी(संस्कारी पत्नी), राज में पाया(स्वदेश म निवास ), पड़ोसी भाया (

अच्छा पड़ोसी), माता-पिता के साया(माता-पिता के छत्र-छाया अउ ऊँकर सेवा) ल प्रमुख बताथें।

   एमा पहिली सुख निरोगी काया हरे। इही ह अउ बाँकी जम्मों सुख के अधार ये।तन के अस्वस्थ रहे ले चना हे त दाँत नइये वाले किस्सा हो जथे। तन ह स्वस्थ रइही तभे मन ह ठीक रइही। तन बीमार त मन बीमार। मन बीमार हे त सुख के अनुभव होबेच नइ करै।शरीर ल मंदिर के उपमा दे जाथे ।ये शरीर रूपी मंदिर ल पवित्र साफ-सुथरा,बने-बने रखना हम सबके कर्तव्य आय। तन अउ मन स्वस्थ हे त संतोष रूपी धन मिलथे तहाँ ले संतोषी परम सुखी हो जथे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

पल्लवन-एक हाथ खीरा के सवा हाथ बीज


पल्लवन-एक हाथ खीरा के सवा हाथ बीज

बड़ाई कोन ल नइ सुहाय सुने मा  तो सबो ला बने  लागथे। 

पर वोतके ही बढ़ा चढ़ा के बताय जाय जतका गला के खाल्हे उतर जाये। 


कोनो भी चीज होय, काम होय , एक दू झन अतिश्योक्ति के बीड़ा उठइया मिल ही जथे, बने बात आय अगर मनोरंजन के रूप मा लेथे तब, अगर इही बात कोनो के प्रतिष्ठा के उपर आँच आथे तब गलत बात आय। ढेला हा पर्वत कस झन होय। 

  पाव ला काठा बनाके बनाके नपइया मन के कमी नइहे। 

छट्ठी के दिन लइका ला रेंगत तो झन बताय। 

गिलास मा देके गघरा भर के पानी पुण्य ला बतैया सबो जगह मिल जथे। 

कतको जगह तो पांच पैसा दान के महिमा सुनके कर्ण ला घलो लाज आ जावत होही। 

चार झन के बीच ये एक हाथ खीरा के सवा हाथ बीज बड़ फलथे, फूलथे। 



आशा देशमुख

एनटीपीसी कोरबा

पानी पीयव छान के गुरु बनावव जान के-पल्लवन

 *पानी पीयव छान के गुरु बनावव जान के-पल्लवन


आज कल मनखे बड़ लपटावत हवँय| निच्चट भोकवा मन घलो बने गुरुवापन पा के सिद्ध अउ प्रसिद्ध हो जथें| पियास म मरत मनखे ल कहूँ पानी मिलगे| त ससन भर डोक लेथे| पर ओला देख लेना चाही के जउन पानी पीयत हे वो पीये लाइक तो हवय|

पानी मा स्वाद हे संगे म शरीर बर जरुरी खनिज तत्व मन हवँय के नइ| कहूँ दूषित तो नइ हे नइ तव अतका सुग्घर निरोगी काया हर रोग ले संक्रमित हो जही| कोनो किसम के जहर महुरा , रंग म तो नइ रंगे हे| मनखे जोनी एक बेर मिलथे| तव सेहत उपर गलत असर झन होय| जइसन पीबे पानी तइसन निकलही बानी| संगत के असर दिखबे करथे|

      कंछ, निरमल अउ फरियर हे|

नइते वोला छान ले गुण दोष ल देख ले परख ले तव पी|अतीत म बहुत समर्थ गुरु रहिन तव समर्थवान चेला होय हें|

गुरु समर्थराम दास के महान  सम्राट वीर शिवाजी, गुरु वशिष्ठ के राजा राम, गुरु रामकृष्ण परम हंस के विवेकानंद|

गुरु मन अब बहु आयम लिए बहुगुणी होगे हे| अभो सबो क्षेत्र बर गुरु चाही| कलागुरु, संगीत गुरु, मोटिवेशनल गुरु, बिजनेंसगुरु, राजनीतिक गुरु, साहित्य गुरु| पर सबले जादा जरुरत हे जिनगी ल गढ़इया गुरु के वो आज नदारत हे| जिनगी ल मोक्ष के मारग दिखाय बर सदगुरु कबीर ,गुरुनानकदेव,,रैदास, गुरुघासी दास जइसे जीव तारनहार गुरु मनके जरुरत हे|

    आज कल तो ढोंगी बबा मन के बाढ़ आय हे | आन लाइन चेला चपाटी बनत हें लाखन लाख भगत हें,धरातल म कुछ नइ हे| 'कहाँ पाबे पता न ठिकाना धर रपोट के उठ पराना' वाले मन के मठ चमकत हे|अउ मनखे आँखी - कान मूंद के झपाय परत हें| गुन के न जस के जेन ल देख तेन बस अजस के| धरम उपासना के आड़ म नशाखोरी, मदिरापान, दारू भांग गांजा वाले पाखंडी गुरु मन जादा मेंचमेचावत हें|

        पहली दस कोस दुरिहा मा गुरु के घर गाँव राहय|

गुरु रामत राउटी करँय ,घुमँय  सत धरम के संदेश देवँय|

गुरु उपदेशना ले मनखे के तन मन पबरित रहय| गुरु बबा मन ज्ञान अमरित ले मनखे ल सिधोवँय| आजो वइसने गुरु मन के जरुरत हे|

तव कहें हें पानी पीयव छान के  गुरु बनावव जान के|


अश्वनी कोसरे

कवर्धा कबीरधाम

पल्लवन: जल ही जीवन है

 पल्लवन: जल ही जीवन है 

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पोखन लाल जायसवाल 

          जल ही जीवन है, ये कथन ओतके सच हे, जतके सच जल अउ जीवन आय। आज ए कथन के प्रासंगिकता दिनोंदिन बाढ़ते जावत हे। जइसे-जइसे चउमास म बरसा कमतियावत जावत हे, या कहन कि चउमास के दिन घटत जावत हे, तइसे-तइसे धरती म जीव-जनावर बर पानी कमती होवत जावत हे। नरवा-नदिया दम टोरत हे। सिसकत हे, फेर गोहराय काखर मेर?जेन ल जरूरत हे उही नइ सोचत हे जब।तरिया-डबरी ल मनखे चगलते जावत हे। पुरखौती खेती-बारी कमती परत हे, त तरिया-डबरी ल पाटत हें। सइता नइ रहिगे हे मनखे के। अइसन म पानी आही कति ले? बरसा नइ होय ले भूमिगत जल स्त्रोत सूखते जावत हे। अइसे म भुइयाॅं के ऊपर अउ तरी दूनो मेर पानी के संकट गहिरावत जावत हे। अइसन म पानी बचाना मतलब जिनगी बचाना हरे।

          थोरिक गुनान करव न। मनखे के विकास यात्रा के इतिहास घलव इही च तो बताथे कि जिहाॅं पानी रेहे हे, उहें ले मनखे आघू बढ़े हे। तब ले अब तक जिहाॅं पानी पर्याप्त हे/ भरपूर हे उहें मनखे निवास करथे। आने जीव मन घलो उही तिर अपन बाड़ा बनाथें। बासा करथें। मनखे सहित जम्मो जीव पानी बिगन ताला बेली करथे। छोटे-छोटे जीव गरमी के दिन म बिन पानी के तड़पे लगथे त पेड़ पौधा मन मुरझाय धर ले थें अउ मरे लगथें। 

           घुमंतू जीवन जीयइया मन घलव गॅंवई-गाॅंव म पानी के बेवस्था देख के ही डेरा जमाथें। खासकर के ओमन तरिया पार नइ ते तिर म रहिथें।

           विज्ञान अपन प्रयोग ले सिद्ध कर डरे हे कि जल याने पानी जिनगी बर बड़ जरूरी जिनिस आय। बिगन जल के जिनगी संभव नइ हे। सौरमंडल म जतका ग्रह हवै ओमा सिरिफ पृथ्वी अइसे ग्रह आय, जिहाॅं पानी हे अउ जिनगानी हे। बाकी अउ कोनो ग्रह म न पानी हे, न जिनगी हे। अउ आने आने जघा म वैज्ञानिक मन जीवन तलाशे बर उहाॅं के भुइयाॅं म हवा अउ पानी के पता लगाय के उदिम करथें। एकर ले इही कहे जा सकत हे, जल ही जीवन है।

         आवव संकल्प करिन कि पानी बचाके जिनगानी बचावन। 


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

लोकसंस्कृति के मया-धरमचुमा...

 लोकसंस्कृति के मया-धरमचुमा...


अभी बिहाव के सीजन चलत हे अउ सगा पहुना के रूप मा सउन्हे नता जुड़त हे...!

पहिली लोग- लइका नई नांदत रहीस त दाई-ददा मन, सरहा, सनीचरा, कचरा-बोदरा, जोजवा, कुसी, कोयली, बिरझा,ठुठी, 

आनी बानी के नाव धरय, अउ मया दुलार करय, खेलाय पाय चुमय लइका मन बाढ़य त इही नाव के मजाक उड़ाके हांसय अउ  अइसना नाव काबर धरिन तेन किसा बताय

 अब कहा ओ समय के दिन ह नोहर होगे त कति बार ले देखे सुने ल मिलय हो 

 अउ फेर आज काल के मन तो बात बात मा ओ का निम्बा निम्बी के गोठ निकालके हांसथे संगी मन

कइसे बिसय ये  *'धरमचुमा'* सुनके थोकुन सोचे धर लया का...? लेवव त आपमन के सोच के फेर ल ओहि मया दुलार डाहर लेगत हँव जेमा हमर छत्तीसगढ़ लोकसंस्कृति के एक ठन सुघ्घर  दरपन छइँहा दिखथे जेला अलग- अलग बोली- भाखा मा अलग अलग कहे जाथे

चुमा के मातृभाषा हिंदी मा अर्थ होथे- चुम्बन, देखे मयारू डाहर सुध लम गे ना...!

अउ टपोरी लैंग्वेज म येला चुम्मा(उम्मा) घलो कहिथे  

प्रसिद्ध अभिनेता अमिताभ बच्चन जी के एक ठन गाना भारी फ़ेमस होय रहीस अउ आज भी ओ गाना ह धूम मचा देथे ओ गाना के बोल हरय- झुम्मा चुम्मा दे दे....! देखे मैं कहेंव न मन मा ये गाना के धुन बाजे लागिस न...!

अउ अलकरहा अंग्रेजी भाषा मा येला किस (Kiss) कहिथे वहहा फेर सुध लामा थे ग ओ फरवरी महीना के लव डे, पुतरी डे, पीपरमेंट डे अउ चुमा (किस) डे 

अउ आनी बानी के जिनिस कथे

आजकल लइका होथे त कोनो  सउन्हे ओला पा  लिही, अउ ओला मुँह लगा कि चुम देही त इन्फ़ेक्शन हो जाहि हमर लइका ल कहिके ले लिही तइसे दिन आ गय हे गा

जेमा हमर छत्तीसगढ़ लोकसंस्कृति अउ सभ्यता ह हमर मान आय जेमा ये चुमा (चुम्बन) के रूप ह मया- ममता ले सुरु होथे,

जब कखरो इँहा नोनी बाबू (बच्चा) होथे ना त महतारी बाप,दाई-ददा,सियान-सियानिन, कका बड़ा, जमे झिन मन मोर बेटा मोर बेटी मोर दुलरुवा बेटा, हीरा बेटा, मोर रानी बेटी, मोर पुतरी बेटी कहिके चुमय अउ दुलारय

अउ उहि लइका मन बाढ़-उपज जाथे त उंकर बर-बिहाव करथे ओ समय मा,माऊंर सौंपे के बेरा,अउ टिकावन- भाँवर के बेरा पाँच बीजा चाँउर टिक के सब इहु गाल-उहू गाल ल बने बजा के उम्मा,उम्मा करके चुमा लेथे जेला *"धरम चुमा"* कहिथे अउ दाई अपन अँचरा मा अउ ददा अपन गमछा मा आँखी आँसू अउ न

नाक मुँह ल पोछत कथे - *जनम ल दय हन करम ल नई* सुघर रईहा अउ इही मया दुलार ल धरे रईहा...!✍🏻


*रचनाकार*

*सुनीता कुर्रे*

पल्लवन--- मातु-पिता बैरी भए ,जे ना पढ़ाए बाल

 पल्लवन---


मातु-पिता बैरी भए ,जे ना पढ़ाए बाल

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बैरी के काम होथे नुकसान पहुँचाना अउ हितवा के काम होथे भलाई करना--उपकार करना। कोनो ल शिक्षित करना ल बड़ परोपकारी ,पुण्य कर्म माने जाथे।

   एक बच्चा बर माता-पिता ले बढ़के हितवा भला कोन हो सकथे? माता-पिता ल प्रथम गुरु कहे गे हे जेन सिरतोन आय फेर कोनो-कोनो माता-पिता मन अपन संतान के चाहे वो बेटी होवय या बेटा के शिक्षा म ध्यान नइ देके --- औलाद के बने-बने लालन-पालन,भरन-पोसन नइ करके अपन कर्तव्य ल नइ निभावयँ अउ ऊँकर जिनगी भर बर भारी नुकसान कर देथें। अइसन माँ-बाप तो सँउहे दुश्मन के समान होथें।

 हरेक माँ-बाप ल चाही के वो ह अपन संतान ल समुचित शिक्षा दय ,पढ़ावय-लिखावय। इहाँ शिक्षा के मतलब स्कूली शिक्षा तो हाबयच ,संगे संग   व्यावहारिक-समाजिक ज्ञान देना तको हे। अनपढ़ होना बहुत बड़े श्राप आय। अक्षर ज्ञान बिना जिनगी चलना दूभर हो जथे।पग-पग म ठोकर खाये बर परथे। आचार-विचार,बोल-चाल बने नइ रहे ले,समाज म मान-सम्मान नइ मिलय,दुनिया हेय दृष्टि ले देखथे।

 माता-पिता मन ल चाही के उन अपन बच्चा म बचपना ले बढ़िया संस्कार डालयँ,बड़े-छोटे के लिहाज करे ल सिखावयँ,अच्छा-अच्छा आदत डालयँ ,मया-दुलार देवयँ फेर उद्दंडता म तको रोक लगावयँ। जादा सोग मरे म,  जायज-नजायज जम्मों माँग ल माने म,  गलती हे तभो ले वोकर पक्ष लेये म बच्चा सरतियाँ बिगड़ जथे जेन आगू जाके माँ-बाप के सिर दर्द के कारण होथे।

  माता-पिता ल अपन बच्चा के संगति ऊपर तको बारीकी ले चेत रखना चाही।बच्चा ललचाहा थोरे बनत हे वोकरो ध्यान रखना चाही। आजकल चलन जइसे होगे हे के--सगा आथे तेन मन बच्चा ल रुपिया-पइसा धरा देथें।जागरूक माता-पिता मन बच्चा ल नइ ले बर सिखोथें। नहीं ते का होथे--पइसा झोंकत-झोंकत बच्चा ल लालच हो जथे अउ कभू कोनो सगा नइ देवय त वोकर ले पइसा माँगे ल धर लेथे। वो समे बड़ उटपुटाँग लागथे।

      माता-पिता के शिक्षा-दीक्षा नइ देये ले बच्चा मूर्ख हो जथे। मूर्ख बच्चा,माता-पिता बर कट्टर दुश्मन के समान हो जथे अउ जिहाँ दू-चार दुश्मन हे त झगरा-लड़ाई, गिद्ध-मसानी तो होबे करही।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

व्यंग्य- कलयुग केवल नाम अधारा सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा

व्यंग्य- कलयुग केवल नाम अधारा सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा 

                    तुलसीदास जी हा जब दुनिया ले बिदा होय बर धरिस तब ओखर तिर म अबड़ अकन मनखे मन सकला गिन । उँख़र बहुत अकन चेला मन ला पढ़े लिखे ला नइ आवय । ओमन तुलसीदास जी ला पूछे लागिन – तैं चल देबे त हमन ला रामायण कोन सुनाही ... अऊ रामायण नइ सुन पाबो त हम कइसे तरबो ... ‌। तुलसीदास जी बतइन – पूरा रामचरित मानस पढ़े सुने के बहुत अधिक आवश्यकता नइ हे । कलयुग म तरे बर केवल नाम लेना ही पर्याप्त हे । जे मन लगा के नाम लिहि तेहा अपने अपन तर जहि ।

                    गोस्वामी जी अपन बात रखिन अउ दुनिया ले बिदा हो गिन । ओ समे मनखे मन समझिन के नाम लेना हे तेकर मतलब भगवान के नाम लेना हे  । इही समझ मनखे मन ... भगवान के नाम ले लेके तरे लागिन । कुछ समे पाछू देश हा अंग्रेज मन के गुलामी के जंजीर म बंधागे । अब गुलामी के बंधन ले छूटे बर भगवान के जगा जगा नाम संकीर्तन चले लगिस । भगवान के नाम म मनखे जोड़े के जबरदस्त शक्ति रिहिस । लोगन जुड़िन .. एक हाथ म दूसर ... दूसर हाथ म तीसर ... करत करत ... हाथ के श्रृंखला बनत गिस तब अतेक हाथ देख अंग्रेज मन ला इहाँ ले भागे बर मजबूर होय ला परगे । अपन हाथ .. अपन राज आगे । अब भगवान के नाम के का काम ... भगवान के नाम म तरे के शक्ति कमतियाये लगिस । अब तरे बर केवल नाम के उपयोग होय लगिस । भगवान के नाम भुलागे । अब मनखे हा भगवान बनगे । जेकर नाम म पार करवाये के शक्ति रिहिस तिही मनखे के नाम के जपन घेरी बेरी होय लगिस । ओखर नाम हा नाव [डोंगा] बनगे अऊ लोगन ला बइठे बइठे सुख देवत पार करे लगिस । मनखे हा भगवान थोरेन आय तेमा ... ओहा दुनिया म  एके ठन रहि ... । भगवान हा मनखे नइ बन सकय ... बपरा ला मनखे के रूप धरे बर बहुत सोंचे लगिस तब राम रूप म जनम धरे रिहिस .. फेर मनखे के बात निराला हे .. ओहा भगवान ले कतको शक्तिशाली  हो चुके रिहिस .. ओला भगवान बने बर एक क्षण नइ लागे । अब कतको मनखे हा भगवान के रूप धर डरिस अऊ अलग अलग अपन अपन लइक हाथ देख .. अलग अलग हाथ के खेवनहार बने लागिस .. तहन देश के तरक्की अऊ खुशियाली बर जुड़े हाथ हा ... धीरे धीरे एक दूसर ला या तो छोंड़े लागिस या एक दूसर ला खींचे लगिस या ढपेले लगिस । 

                     समय बहुत परिवर्तनशील रिहिस । कुछ मन तिर सिर्फ मनखे हा भगवान रिहिस तब  .. उनला पार उतरे के ना तो जल्दी रिहिस न फिकर ... फेर कुछ अइसे भी रिहिन जेमन बिगन मनखे भगवान के रिहिन .. उँकर बीच बिचार मंथन चलिस । येमन ला भगवान के सुरता आगिस तब इही मन भगवान ला भगवान बनाके .. खड़ा करे के उदिम ल लग गिन । कुछ दशक म इँकर मेहनत हा रंग जमा दिस ... भगवान हा भगवान के रूप म स्थापित होय लागिस ... भगवान के नाम के डोंगा म सवार अइसन मनखे मन पार उतरे के सपना ला सउँहत पूरा होवत देखे लागिन । 

                    मनखे ला भगवान मनइया मन ... भगवान के अस्तित्व ला नकार चुके रिहिन अऊ ओखर नाव लेवई तो धूर ... ओला केवल काल्पनिक पात्र घोषित कर डरिन । ओकर बनाये सेतु ला महज कल्पना बताये लागिन अऊ रामचरित मानस ला केवल किताब के नाव दे दिन । को जनी भगवान हा का नाराज होगे ... या भगवान ला मनइया मन ... उँकर अशीष के हाथ हा इँकर मुड़ी ले धूर भगागे । अब इँकर तिर खाये बर लाला थापा के नौबत आगे । इँकरो कतको सलाहकार रिहिन ... उनला समझ आय ला धरिस ... लुका लुका के भगवान के नाम के नाव संकीर्तन करे लगिन ... कुछ महिना म भगवान हा लुका के नाम लेवइया ला ... एक जगा म ... पाँच बछर पार लगा दिस । अब पार होवत उही जगा के मनखे मन ... जगा जगा बेर उज्जर राम रमायन के नाव जपे लागिन । 

                    उपर के कहानी हा तो बने बड़े मनखे मन के आय अब मंझोलन किसिम के मनखे मन के तिर म पहुँचे के प्रयास करथन । मंझोलन किसिम के मनखे मन जादा पढ़े लिखे चालाक नइ रहय । न वेद पुराण के पूरा ज्ञान .. न कर्मकाण्ड के । अब पेट तो यहू मनला चलाना रहय अऊ भवसागर ला घला पार उतरना रहय ।  अकेल्ला जंगल म जाके भगवान के नाव लेके देख डरिन ... भूख के मारे पोट पोट करत लहुँट दिन ... बपरा मन तरे के जगा मरे लगिन । घर म बइठके भगवान के नाम जपन के सोंचिन ... फेर ध्यान कहाँ लगय । नाम के सहारे दूसर मनला खावत पियत खुश रहत देख ... मन म ईर्ष्या जलन द्वेष स्वाभाविक हे । तभे इनला बुद्धि आगे । अब येमन भले अपन मन ... भगवान के नाम नइ लेवय फेर दूसर ला भगवान के नाम लेहे बर ... फेरी लगा लगाके प्रेरित करे लगिन .... दुकान चल गिस । पइसा सकलागे ... पेट भरे लगिस अब पुरखा अऊ वंशज दुनों ला तराये के फिकर हमागे । कुछ दिन म यहू समस्या के निदान होगे । बड़े बड़े मनखे तिर इन पहुँच गिन अऊ उँकर सहायता से भगवान के नाम म ... अपन बर दुकान बनवा डरिन । दुकान जबरदस्त चले लगिस । अब इनला तरे बर ... भगवान के नाम लेहे के आवश्यकता नइ रहि गिस ... अब दूसर मन भगवान के नाव लेहे लगिन अऊ इन तरे लागिन । 

                    बड़े मन नाम म तर चुकिन । मंझला मन तरतेच रहँय ... अब बपरा छोटे मन कइसे तरहीं । पार तो उहू मनला जाना रहय ... फेर पार करे के का उपाय ... । येमन जब भी मनखे भगवान के जै बोलाये बर संघरथें त ... बड़े मन तर जथें ... भगवान भगवान के जै बोलाये बर सकलाथें त ... मंझला मन तर जथें । कलयुग म इँकरे तरे के कोई उपाय नइ दिखत रहय । भगवान हा कइसे इँकर बात सुनय ... इँकर बुता कइसे होय समझ नइ आवत रहय ... । एक कोति मंझला मन घेरी बेरी अपन भगवान के नाम लेहे बर उकसावत रहँय त दूसर कोति बड़का मन अपन रचे भगवान के नाम लेहे बर मजबूर करत रहँय । मतभेद तो रहिबे करे रिहिस ... कुछ समे म इँकर मन के बीच म मनभेद आये के लक्षण दिखे लगिस ... बड़े मनखे मन के आधार खसके लगिस ... उपाय तुरते मिल गिस । अपन आधार बँचाये बर ... छोटे मन के आधार बनाना जरूरी होगिस । तब इँकर बर आधार हा कार्ड बनके आगिस । सबो झन के नाम मा आधार के उदय हो गिस । अब सबके सब ल आधार के नाम हा तारे लागिस । चऊँर सिरागे ... आधार के नाम म मिल जहि । बिगन बुता करे ओकर नाम ले पइसा झोंकले । नौकरी बर आधार ... छोकरी बर आधार ... ओकर नाम म हरेक जगा आना जाना घला आसान । अरे अब तो मशान घाट म कोन्हो लाश ला बिगन आधार के लेशे बर जगा नइ मिलय ।  

                    छोटे मन ला घला आधार के नाम अऊ नाम के आधार मिलगे । अब इँकरों भवसागर हा पार हो जहि ... भरोसा तो हे फेर एक जगा पेंच फँस जथे । इँकर नाव के आधार म ... दूसर मन अपन आधार बना डरथें । नाम इँकर .. तरय दूसर ... । साधारण मनखे मन गोस्वामी जी के कथन के भ्रम म परे हें ...  । कुछ मन सोंचथे ... केवल नाम हा तरे बर आधार हे ... त कुछ मन .. तरे बर आधार के नाम के पैरवी करथे । बपरा तुलसीदास हा का करही गा  .... ओहा अपन बात म नाम के महिमा बताये रिहिस के आधार के  ... सब अपन अपन अलग अलग व्याख्या कर लेथें अऊ ओकर बात ला सच साबित करे म अपन योगदान देहे म कोन्हो कसर बाँकी नइ रहन देवय । 

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन ... छुरा .

नौ दिन मा चलय अढ़ई कोस बहाना बनाय ठोसे ठोस(पल्लवन)

 नौ दिन मा चलय अढ़ई कोस बहाना बनाय ठोसे ठोस(पल्लवन)


              मनखे के जिनगी मा समय के अड़बड़ महत्तम होथय। सबो मनखे ला रोज चौबीस घंटा मिलथे फेर जौन अपन 24 घंटा ला सुग्घर बउरे बर सीख जाथय वोला हर जगा मान मिलथे अउ हर बूता मा सफलता मिलथे। मनखे के सुभाव ओकर चाल ढाल मा दिख जाथे, फेर कतको मनखे हा लकर्रा, हड़बड़हा होथे। कोनो बूता देबे ता हबके डबके बरोबर तुरते ताही निपटा डारथे। फेर कोनों मनखे हा आलसी अउ असकटहा बानी के होथे। ओला कोनों बूता बता दे ता वोहा नइ करँव नइ कहय फेर ओ बूता ला बेरा बखत मा पूरा घलाव नइ करय। तीन घंटा के एक ठन बूता ला करत करत दिन भर पोहा देथय। राशन दुकान मा बइठे समान देवइया, बैंक के केसियर, बिल जमा करइया मन अतका धीरलगहा बूता करथे कि पांच मिनट के बेरा ला पचास मिनट लगा देथय।

         ये ता मनखे के गोठ होइस फेर अइसने आज देश भर के कतको ठउर मा देखब मा मिलथे। सरकारी दफ्तर मा कोनों अर्जी देबे ता एक घंटा मा बनइया कागज ला एक हफ्ता लगा देथय। नेता मंत्री के घोषणा, ठेकादारी मा होवत सरकारी बनइया कोनों निर्माण मा सबो ला अनभो हावय कि कोनों बूता हा बेरा‌ बखत मा पूरा नइ होवय। दर्जी हा दू दिन मा सिल के देवइया अंगरखा ला आठ दिन लगा देते।कुलर पंखा, टीवी, घड़ी, मोटर पंप,मशीन बनइया मन घलाव आज बनही काली बनही कहिके दिन धराथे।

     सरकारी योजना के लाभ मा इही हाल रहिथे, कागज हा एक साहब ले दूसर साहब कर जावत ले योजना के उद्देश्य सिरा जाथे। जइसे गरमी (रग्गी) दिन मा पियाउ खोले के सरकारी योजना के शुरू होवत ले बरसात के आय के बेरा हो जाथय।जौन अपन बूता ला बेरा बखत मा पूरा नइ कर ओला मान गउन नइ मिलय भलुक गारी बखाना मिलथे।

        बूता ला बेरा बखत मा पूरा नइ कर सकय ता एखर सफई देय बर बहाना घलाव अतका ठोस बताथय कि सुनइया ला लबारी मा भरोसा करे के छोड़ कुछू नइ कर सके। आज धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, सरकारी, घरोधी, पूजा पाठ कोनों बूता होवय धीरलगहा केछवा चाल मा चलथे। एखरे सेती कहे जाथे नौ दिन चलत अढ़ई कोस।


हीरालाल गुरुजी समय

छुरा, जिला- गरियाबंद

श्रद्धांजलि विशेष -* शिवशंकर शुक्ल

 *श्रद्धांजलि विशेष -*

शिवशंकर शुक्ल 

*(छत्तीसगढ़ी साहित्यिक पुरोधा म छत्तीसगढ़ी के दूसरा उपन्यासकार आदरणीय श्री शिवशंकर शुक्ल जी, जउन हर 'दियना के अंजोर ' अउ 'मोंगरा' छत्तीसगढ़ी उपन्यास लिखिन हें। उंकर लिखे बाल कहानी संग्रह 'दमांद बाबू दुलरू' म संग्रहित एक ठन प्रमुख कहानी 'पइसा के रुख' हर अविकल प्रस्तुत हे । )*



              *पइसा के रूख*

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- *श्री शिवशंकर शुक्ल*


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           एक गांव में दूझिन भाई रहत रिहिन ।बड़े के नाम दुकालू अउ छोटे के नाम सुकालू रहिस। दुनों झिन के खटला मन मं आपुसे मं रोजेचझगरा होवै । रोज के किलकिल ले  दुनों भाई मन  अलगिया गिन ।


         सुकालू बहुत एक कोढ़िया रहिस।  कभु कोनों काम धंधा नई करत  रहिस । दिन रात सूतय अउ इती उती किंदरय । ओखर इहिच बूता रहय । अपन ददा के कमई ,जोन  ओला बटवारा मं मिले  रिहिस  उही ल उड़ावय ।


              थोर दिन मं ओह अपन ददा के कमई ल  फूंक  डारिस । फेर ओह भीख मांगेल धरिस।  गांव के मन ओला बाम्हन  घर जनम  धरे ले कुछु कांही दे देवंय । अइसने इनकर दिन बीते ।


          एक दिन सुकालू के टूरा हर अपन बड़ा के टूरा मेर एक ठिन कठवा के हाथी देखिस । ओहर दऊरत दऊरत अपन दाई आई मेंरन आइस अऊ रोवन लागिस । सुकालू के खटला  हा पूछिस , का होगे , काबर रोथस ?


           टुरा ह किहिस, दाई बड़ा ह  मेला ले भइया बर कठवा के हाथी लानिस हे, वइसने मंहू ला बिसा देना । सुकालू के खटला जोंन  ला तीन दिन ले अनाज के एक सीथा खाय ल नई मिले रहिस, खिसिया गे । कहिस कस रे करम छड़हा, तोर ददा के गुन मां पसिया नइ मिलय, तोला हाथी चाही । सुकालू के टुरा अऊ रोवन  लागिस । टुरा ल रोवत देख के वोह खिसियागे अऊ दुचार चटकन  टुरा ल झाड़ दिस।


              सुकालू  ह कुरिया मं एक मांचा ऊपर बइठे रिहिस। अपन जोड़ी के गोठ ह ओला बान उसन लागिस। ओह अपन मन मं गांठ बांधिस कि मेंह कुछ काही करबे करहूं । 


            दूसर दिन सुकालू कमई करे बर आन गांव जाय बर अपन घर ले निकरिस । गांव के मुहाटी मं एक लोहार के घर रहय । सुकालू ल गांव के बाहिर जावत देख के ओह किहिस, कस गा बाम्हन देवता, कहां जाथस?


       सुकालू ह किहिस, लुहार कका में ह दूसर गांव जावत हववं, कुछु काहीं बुता करहूं। अब कले चुप्पे नइ बइठवं ।

 

        लुहार हर किहिस-- गांव ले बाहिर काबर जा थस , मोर हिंया बूता कर ।  सुकालू किहिस -- लुहार कका तैं जउन बूता तियारबे में उहीकरहूँ ।


        ओ दिन बेरा के  बूड़त ले सुकालू ह लुहार हियां घन पीटिस-  संझा जाय के बेरा लूहार ह सुकालू ल दिन भर के मजूरी तीन पइसा दीस। सुकालू ह तीन पइसा  ल लेके चलिस अपन कुरिया कोती। सुकालू ल आज एइसे लगे जइसे ओला तीन पइसा नई, कहूं के राज मिलगे ।


           कुरिया के मुंहाटी ले सुकालू ह अपन  खटला ल हांक पारिस। सुकालू के खटला ह दिन भर ले अपन जोड़ी ल नई देखे रहय । सुकालू के हांक पारत वहू  दुवारी के अंगना मं आगे । सुकालू हर किहिस, ले ये दु  पइसा, मेंह आज  बूता करके लाने हवंव । अब में ह बइठ के नइ रहवं। जतेक बेर सुकालू हर पइसा ल देत रहिस,सुकालू के  खटला ह देखिस कि  सुकालू के हाथ ह लहू लूहान  होगे  हावय। कहिस,ये तोर हाथ  मं का होगे हे? सुकालू ह  किंहिस,आज दिन भर मेंह लुहार कका हिंया घन पीटे हंवव ओखरे ये।


 सुकालू के खटला पानी तिपोइस अऊ सुकालू ल नहाय के पथरा ऊपर बइठा के  ओखर हाथ ल सेके ल तीपे पानी भित्तरी  लाने बर गिस , ओतके बेर  सुकालू ह उसका बेर सुकालू ह एक पइसा जेन ला ओहर चोंगी -माखुर बर  लुकाय ले रहिस, तेन ल नहाय के पथरा के नीचू मं लुका दिस।


        हाथ ल सिंका के सुकालू ह बियारी करिस। खातेखात वोला  नींद मातिस वो ह सूतगे ।


      बिहानियां सुकालू के खटला ह उठिस । त काय देखथे कि नहाय के पथरा के तीर म पइसा के रूख  लगे हवय। पहिली तो वोला लगिस के मोला भोरहा होवत हावय । वो ह  पथरा मेरन  जा के देखथे त  सहीं मं उहां पइसा के रुख रहय। लकर धकर ओह पइसा ल चरिहा मं भर भर के सुते के कोठी में लेग लेग के कुरोय लगिस।  पइसा के झन- झन  सुन के  सुकालू के नींद ह टूटगे। वोह देखिस कि मोर जोड़ी ह चरिहा म पइसा भर भर के लान लान  के इहां कुरोयवत हे । वो ह पूछिस, कउन  मेर  ले तोला एतका धन दोगानी मिलगे? 


         वो ह कहिस-- उठ त देख पथरा मेरन कतेक बड़े पइसा के रुख लगे हे । सुकालू घलो देखिस त ओला अपन रात के पइसा के सुरता आइस, जेला वोह पथरा खाल्हे लुकादे रिहिस । आज वोला जनइस के अपन पसीना बोहाय पइसा मं कतेक बल होथे। वो ह  गांठ बांधिस के बिन बूता के मेंह बइठ के एक सीथा मुंख मं नई डारंव ।


             सुकालू घलो पइसा वाला बनगे। पइसा के रूख के सोर राजा लगिस। वोह खूभकन बनिहार लानिस अउ  सुकालू  के कुरिया म नींग गे। सुकालू, राजा ह हांक पारिस।  सुकालू ह अपन दुवारी म राजा ल देख के जान गे के येहर काबर आय हाबय । फेर राजा के आगु वोह काय । बनिहार मन कुदाली रापा ले के भिड़गे ,रुख उदारे बर फेर करतिस जेतक वो मन भुंया ल खनय ओतके रुख ह भुंइया मं हमात जाय।थोर दिन मं रुख हर धरती माता के कोख मं हमागे ।  राजा हर मन मार के रेंग दिस।


    सुकालू ल पइसा के रूख हर  चेत करा दिस के मिहनत के कमई हा कतेक बाढ़थे ।


*श्री शिवशंकर शुक्ल*

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 खाँटी  छत्तीसगढ़ी शब्द -

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खटला - औरत, सुवारी

हिंया -इहाँ , यहाँ

कुरोय लगीस -भरे लागिस,जमा करे लागिस

खाल्हे -तरी ,नीचे

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प्रस्तुतकर्ता -

*रामनाथ साहू*

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पल्लवन-- न एक ले ,न दू दे

 पल्लवन--



न एक ले ,न दू दे

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कर्जा ह छोटे होवय चाहे बड़े, जीव के जंजाल हो जथे। सुरसा के मुँह सहीं ब्याज ह बाढ़त जाथे। कर्जा ह अइसे रक्तबीज ये जेन ल एक के एक्कीस होवत देरी नइ लागय। एक रुपिया के उधारी  तको ह बाढ़त-बाढ़त सैंकड़ो रुपिया हो जथे तहाँ ले वोला चुकाना मुश्किल हो जथे।वोला छूटे बर कोनो स्थायी सम्पत्ति या गहना गुरिया ल बेंचे बर पर जथे।

   कर्जा रूपी शैतान ह जब मूँड़ म बइठथे त नींद हरा जथे,चिंता रोग डाँट लेथे। कर्जा चुकाये म देरी होये ले साहूकार के तगादा ल सुनके खाना-पीना नइ सुहावय ,हाँसी-निंदा तो होबे करथे।

 आज के भौतिकवादी युग म सुख-सुविधा के समान लेये के चक्कर म,अपन खुद के बढ़ाये अनावश्यक जरूरत ल पूरा करे खातिर, मनखे ह कर्जा के मकड़-जाल म फँसत जावत हे।व्यपारी ले लेके बैंक तक मन आनी-बानी के छूट ,जीरो परसेंट ब्याज के चारा डारके लोगन ल फँसा लेवत हें।अरे भई! फोकट म कोनो कर्जा देही का? समान के कीमत ल पहिली ले मनमाड़े बढ़ा दे रहिथें, तेला नइ बतावयँ। 

 लोगन कतको कमाथें, बाँचय नहीं। नौकरी वाले के तनखा ह किस्ते पटइ म सिरा जथे। कोन गरीब, कोन अमीर , बनिहार-भूतिहार तकों , सब के सब कर्जा  के दहरा म बूड़े दिखथें। भारी तनाव अउ अवसाद के कारण ये कर्जा ह बन जथे। कतेक झन तो एकर ले मुक्ति पाये बर आत्महत्या तको कर लेथें। 

      मनखे ते मनखे कतकोन सरकार मन तकों विकास के नाम लेके,जनता के कर्जा माफ करे के आड़ म, रंग-रंग के योजना चलाये बर कर्जा ऊपर कर्जा लेवत जावत हें। इही कर्जा के बीमारी के सेती कई देश चौपट होवत जावत हें।

कर्जा लेना ह कोनो सूरत म अच्छा नइ होवय।उधारी म घीव लेके पीना ल उचित कहना गलत होही भलुक अपन कमई ल देख के ,चार पइसा भविष्य बर बाँच जवय ये सोच के खर्चा करना ह अच्छा होथे।जतका शक्ति हे वोतके भक्ति करना चाही। जतका बर चद्दर हे वोतके पाँव लमाना चाही। सियान मन सिरतो कहे हें- एक रुपिया के उधारी तको मत ले ताकि दू रुपिया देये ल मत परय।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ददा गो भैंसी लेबो

 ददा गो भैंसी लेबो
=====०००=======

      *ऊं हूं हूं हूं .............रोवत-रोवत लईका ह अपन घर म आईस*
    *ओकर ददा ह पूछिस- का होगे रे चिपरू ? काबर रोवत हस ?*
      *ऊं हूं हूं हूं ..........., तरतरौहन आंसू निकलत रहिस अउ रोवाई के मारे ओकर आंसू-रेमट ह एकमई हो गए रहिस*
    *अरे का हो गे रेंटहा ? काबर अत्तेक रोवत हस? कोनो मार देहिस का रे ?*
     *नही ददा |*
     *तव काबर रोवत हस ? अहातरा छै-छै आंसू ढारत हवस ! बता न बेटा, कुछू खाऊ-खजेना लेबे रे ?*
   *तव काबर रोवत हस एकसंस्सू ?*
    *लईका कहिस- ददा गो,ददा गो .......*
     *हां बता न बेटा, का हे तोर मंसूबा?*
     *ददा गो,हमू भैंसी लेबो हां  | चिंटू के ददा ह आजेच भैंसी बिसा के लानिस हवय |*
      *अईसे बात हे का ? तैं दिल ल छोट मत कर बेटा | महूं आजेच जाहूं अउ तोर बर भैंसी बिसा के लानहूं,ठीक हे बेटा | अब तैं झन रो, मैं अभीच्चे भैंसी बिसा के लानहूं | समझ गए न ? फेर एक बात हे- "तैंहा पंड़वा ऊपर झन बईठबे,तभे लानहूं |*
     *चिपरू कहिस- नहीं ददा, पंड़वा ऊपर मैं बईठबेच करहूं | अब्बड़ेच मजा आथे*
     *ददा कहिस- तव कस रे,तैं अपनेच मजा के भूखे हस?*
     *नहीं ददा,पड़वा ऊपर मैं बैठबेच करहूं,अब्बड़ेच मजा आथे*
     *ददा - तेकरे सेती तो मैं नइ बिसावौं कहत रहेंव*
     *नही ददा,हमन भैंसी लेबेच करबो, आंय ददा,ऊं हूं हूं हूं ..........*
      *ददा कहिस- ए टुरा ल कईसे समझावौं? बड़ा अलवईन टुरा हे !!!*
     *नहीं ददा,हमन भैंसी लेबेच करबो, कहूं भैंसी नइ लेबे ? तव तोर संग बोलौं नहीं, कट्टी कट्टी कट्टी ....... | तोर संग खेलौं नहीं,तोर संग सुतौं नहीं !  आं हां हां हां ( जोर-जोर से रोए लागिस ......)*
     *रसोईघर ले मनटोरा चिल्लाईस- अई काय होगे मोर लाला ला, मोर छोना-मोना ला ? काबर रोवावत हस जी ? दे हा अईसनेच करथे! छी दाई मोला सुहाय नहीं ! जब देखबे-तब मोर हीरा ल रोवात्तेच रहिथे, निरदयी कहीं के !*
     *ददा कहिस-एहा का फरमाईश करत हे ? तेला सुने हस? फट्ट ले बोल तो देहे निरदयी !*
    *मनटोरा चिल्लाईस-- का फरमाईश करत हे बता तो भला ?*
      *ददा कहिस- भैंसी लेबो कहिके रोवत हे,समझे?*
     *मनटोरा कहिस- ठीक तो कहत हे, का गलत कहत हे ?*
      *ददा कहिस-हूं ,अउ कहूं पंड़वा के पीठ म बैठ जाही अउ ओकर कनिहा टूट जाही,तव तहीं ठीक करबे समझा देहे रहिथौं*
     *मनटोरा - हहो हहो,मैं हा डाग्डर बुला के ठीक करवाहूं,समझे?*
      *चिपरू- आं हां हां हां .................. आंय ददा,भैंसी लेबो गा*
    
  *(चिपरू के रोवाई ल सुन के ऊंकर पड़ोसी भैरा आ गे)*

   *भैरा- का हो गे साव ? लईका ल काबर रोवावत हौ अहातरा ?*
     *ददा- अरे ए ननजतिया टुरा के बात ल झन पूछ*
      *भैरा ह अपन कान ल थोकुन उठा के पूछिस- काय कहिथस? काबर रोवत हे?*
     *भैंसी लेबो कहिके रोवत हे भाई*
     *पैंसी ?  ए का होथे पैंसी ?*
      *ददा कहिस- भैंसी लेबो कहिके रोवत हे भाई*
     *फैंसी ? ए का होथे फैंसी?*
     *फैंसी नहीं, भैंसी -भैंसी | अब समझे?*
      *भैरा- हां समझ गयेंव | फेर एक बात हे पड़ोसी - तैं भैंसी लेबे, तेला अपन घरेच म बांध के राखबे | मोर खेत के धान ल झन चरही चेता देथौं, चेताय बात बने होथे, समझे के नहीं ?*
     *ददा कहिस-कस गा भैंसी लेहूं तेला घुमाहूं,फिराहूं नहीं, चराए नइ लेगहूं, तव कईसे जीही ?*
     *भैरा कहिस- तोर भैंसी जिही, के मर जाही ! मोला का करना हे, फेर मोर खेत के धान ल झन चरही!*
     *ददा कहिस- तैं तो मोर भैंसी ल श्रापत हस -मर जाय कहिके ! ए ठीक बात नोहय*
       *तव मोर धान ल भले चर देही!*
       *तैं मोर भैसी ल 
   भूख मारबे-श्राप देबे !!!!*
        *तैं काबर भूख मारबे? काबर श्राप देबे?*
    *मोर धान ल चरही,तव श्राप देबेच करहूं*
     *(अईसने तू-तू मैं-मैं करत गाली-गलौज सुरू होंगे)*

   *मनटोरा कहिस-एमन अब्बड़ेच अनदेखना हे, कोनो के बढोतरी ल नइ देखे सकै, रांड़ी दुखहाई मन!!!*

     *ओतका म भैरा के गोसाईंन, बेटा-बहू जम्मो गली म निकल गईन, गाली-गलौज बाढ़ीस,तिहां लाठी-बल्ली निकल गे ! एक-दूसर ल मारपीट सुरू होगे | गांव-बस्ती के मनखे जुरिया गईन |*
      *अरे चुप हो जावौ भाई, चुप हो जाव | कोनो ल गारी-गलौज मत देवौ , काबर लड़त हौ ?*
     *फेर कोनो सुनबेच नइ करिन, ओतका म गांव के सरपंच,कोटवार घलो आ गईन*
     *कोनो के मुड़ी फूट गे ! कोनो के हाथ टूट गे, लहूलुहान हो गईन !*
     *तव सरपंच कहिस- अब ए मामला हमर पंचायत म नइ सुलझै,  कहिके थाना म फोन कर देहिस!*
      *थाना ले पुलुस -दरोगा आ गईन !*

      
   *घटना स्थल ल मुआयना करके दरोगा ह कड़क आवाज म पूछिस - क्या बात है ? दोनो पड़ोसी क्यों लड़ रहे हो ?*
    
    *भैरा कहिस- ए पड़ोसी ह मोर खेत के धान ल चराहूं कहत हे साहब*
     *दरोगा- क्यों जी इसके धान को क्यों चराऊंगा कहते हो ?*
    *चिपरू के ददा कहिस- मोर भैंसी ला भूख थोरे मारहूं साहब ?*

     *दरोगा- कहां है तुम्हारा भैंसी ?*

        *चिपरू के ददा- अभी बिसाय नइ हौं साहब, बिसाय जाहूं सोचत हौं, तव ए अनदेखना है कहत हे-"मोर खेत के धान ल झन चराबे, अतकेच बात म बात बढ़ते गईस अउ हमर झगरा मात गे साहब*

   *दरोगा- क्यों भैरा, तुम्हारे किस खेत के धान को इसकी भैंसी चर गई ?*
      *भैरा- अभी कोनो खेत म धान बोए नइ हौं साहब, जब धान बोहूं,तब झन चराबे कहै हौं,ततकेच बात म झगरा मथल गे !!!*
     
   *स्साले हो,तुम दोनों पड़ोसी बढ़िया प्रेम से रहो, अनावश्यक बात पर झाड़ते रहते हो | हमारा कीमती समय बर्बाद कर दिए | आईंदा पागल जैसे मत लड़ना,वरना ऐसी धारा लगाऊंगा,जीवन भर जेल में सड़ते रहोगे ! समझे कि नहीं ?*
      *दोनों पड़ोसी बोले- अब समझ गएन साहब, अब झगरा नइ करन*

    इति
आपका अपना
*गया प्रसाद साहू*
   "रतनपुरिहा"
*मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ

Tuesday, 18 April 2023

19 अप्रैल 2023‌ -द्वितीय पुण्यतिथि मा विशेष बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे नंद कुमार साकेत

 


19 अप्रैल 2023‌ -द्वितीय पुण्यतिथि मा विशेष 


बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे  नंद कुमार साकेत 



गजब प्रतिभा के धनी रीहीस हे नंद कुमार जी हा 


ये शरीर हा नश्वर हे. जउन ये दुनियां मा आहे वोहा एक दिन इहां ले जरूर जाही. लेकिन दुनियां ला छोड़ के जाय के बाद कोनो मनखे ला सुरता करथन ता वोकर पीछे  कारण उंकर सुग्घर कारज हा होथे. कम उम्र मा ये दुनियां ला छोड़ के अपन एक अलग छाप छोड़ीस अइसन प्रतिभा मा श्रद्धेय नंद कुमार साहू साकेत के नाम शामिल हावय. वोहा गजब प्रतिभा के धनी रीहीस हे.     

       जीवन परिचय 


   26अगस्त के श्रद्धेय नंद कुमार साहू साकेत के 58 वीं जयंती रीहीस हे. उंकर जनम राजनांदगॉव जिला के मोखला गाँव मा 26 अगस्त 1963 मा होय रीहीस हे. उंकर बाबू जी के नाँव कृश लाल साहू  अउ महतारी के सोहद्रा बाई साहू नाँव

 हे. वोकर पत्नी के नाँव लता बाई साहू, बेटा के नाँव हितेश कुमार साहू, अउ बेटी मन के नाँव केशर साहू अउ प्रेमा साहू हे. 


 ननपन ले गायन अउ वादन मा रुचि 


  पढ़ाई जीवन ले ही उंकर रुचि गायन, वादन मा रीहीस हे. स्कूल मा पढ़ाई करत करत गाँव मा अपन सँगवारी मन सँग मिल के 1980 मा मानस मंडली के गठन करीस हे. गाँव के नाचा मंडली मा घलो योगदान दीस हे. शुरु ले ही लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम के प्रति रुचि राहय. नाचा, रामायण के सँगे सँग 



जस गीत, फाग गीत मा गायन अउ हारमोनियम वादन करय. 


  आकाशवाणी मा गीत प्रसारित होइस 

 श्रद्धेय साकेत जी हा पढ़ाई जीवन ले गीत लिखे के शुरु कर दे रीहीस हे. वोहा लोक गीत, जस गीत अउ फाग गीत के अब्बड़ रचना करीस. 1990 -91मा उंकर गाये लोकगीत आकाशवाणी रायपुर ले प्रसारित होइस हे. माननीय दलेश्वर साहू जी  येकर अगुवाई करे रीहीस हे. 


  नौकरी मिले के बाद प्रतिभा हा अउ निखरीस 


मैट्रिक के परीक्षा पास होय के बाद शासकीय प्राथमिक शाला में शिक्षक बनगे. अब उंकर प्रतिभा के सोर अउ बगरत गीस. वोहा धामनसरा,  मुड़पार, सुरगी, बुचीभरदा जिहां नौकरी करीस पढ़ाई के सँगे सँग उहां अपन व्यहार ले सब झन ला गजब प्रभावित करीस. 


   उद्घोषक अउ निर्णायक के जिम्मेदारी निभाइस 


अब वोहा सबो प्रकार के मंच जइसे सांस्कृतिक प्रतियोगिता, मानस गान टीका स्पर्धा, रामधुनी स्पर्धा जसगीत प्रतियोगिता,फाग स्पर्धा मा उद्घोषक अउ निर्णायक के भूमिका निभात गीस. अपन गाँव मोखला के सँगे सँग अब दूरिहा- दूरिहा मा वोकर नाँव के सोर चले ला लागीस. स्कूली कार्यक्रम मा घलो अपन प्रतिभा ला दिखाइस. लइका मन ला सुग्घर ढंग ले सांस्कृतिक कार्यक्रम 

खातिर सहयोग करय. 


  लोक कला मंच द्वारा उंकर गीत के प्रस्तुति 


आडियो, वीडियो प्रारुप के माध्यम ले उंकर गीत के गजब धूम मचीस हे. फेसबुक, वहाट्सएप, यू ट्यूब मा खूब उंकर गाना चलीस. धरती के सिंगार भोथीपार कला अउ दौना सांस्कृतिक मंच दुर्ग के मंच ले उंकर गीत सरलग चलत गीस. कुछ गीत ला खुद गाइस अउ कुछ 

ला दूसर कलाकार मन आवाज दीस. 1 अप्रैल 2018 मा रवेली मा आयोजित मंदराजी महोत्सव समिति मा उंकर लोक गीत अउ जस भजन एल्बम के विमोचन लोक संगीत सम्राट  श्रद्धेय खुमान साव जी, स्वर कोकिला आदरणीया कविता वासनिक जी, वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय डॉ. पीसी लाल यादव जी, आदरणीय कुबेर सिंह साहू जी ,साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव के अध्यक्ष अउ मंदराजी महोत्सव के मंच संचालक भाई लखन लाल साहू लहर जी के द्वारा करे गीस. 


साकेत साहित्य परिषद् ले अब्बड़ लगाव 


 जसगीत मा उंकर प्रेरणा स्रोत सुरगी निवासी श्री मनाजीत मटियारा जी अउ कविता के क्षेत्र मा  वोहा श्री लखन लाल साहू लहर जी अध्यक्ष, साकेत साहित्य परिषद् सुरगी ला प्रेरणा स्रोत माने. 

 श्रद्धेय नंद कुमार जी हा साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव के गजब सक्रिय सदस्य अउ पदाधिकारी रीहीस हे. कवि गोष्ठी मा अपन नियमित उपस्थिति देय .साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव ले उंकर लगाव अत्तिक रीहीस कि अपन उपनाम " साकेत "रख लीस. 


कवि सम्मेलन मा सराहे गीस 


अब कवि सम्मेलन मा घलो भागीदारी होय लगीस. साकेत के सँगे सँग दूसर साहित्य साहित्य समिति मन के कार्यक्रम

मा उछाह पूर्वक भाग लेय. कोरबा, बेमेतरा मा छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के भव्य मंच मा अपन काव्य प्रतिभा के दर्शन कराइस. 


कवि सम्मेलन मा स्व. लक्ष्मण मस्तुरिहा, स्व. विश्वंभर यादव मरहा अउ, जनाब मीर अली जी मीर जइसे बड़का कवि मन सँग कविता पाठ करीस हे. 


सम्मान -


 श्रद्धेय नंद कुमार जी  ला कई लोक कला मंच, रामायण मंडली, फाग मंडली, जस गीत मंडली,रामधुनी मंडली  अउ युवा संगठन हा निर्णायक अउ उद्घोषक के रुप मा सम्मानित करीन. 

 सम्मान के कड़ी मा 29 फरवरी 2012 मा रघुवीर रामायण समिति राजनांदगॉव द्वारा उद्घोषक के रुप मा विशेष सम्मान, 23 फरवरी 2014 मा साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव द्वारा "साकेत साहित्य सम्मान",जिला साहू संघ राजनांदगॉव द्वारा  1 अप्रैल 2019 मा कर्मा जयंती मा "प्रतिभा सम्मान ", शिवनाथ साहित्य धारा डोंगरगॉव द्वारा 25 अगस्त 2019 मा " साहित्य सम्मान ",  पुरवाही साहित्य समिति पाटेकोहरा विकासखंड छुरिया जिला राजनांदगॉव द्वारा 2021 मा " पुरवाही साहित्य सम्मान -2020 " सहित कतको सम्मान शामिल हवय. 


ये गीत अउ कविता के गजब सोर 


उंकर लिखे गीत /कविता जउन हा लोगन मन के जुबान मा छागे वोमा  "महतारी के लागा", " वो पानी मा का जादू हे "",तीजा पोरा, " "विधवा पेंशन ", "आँखी के पुतरी," "जिन्दगी एक क्रिकेट", "तिरंगा," " सरग ले सुग्घर गाँव "

शामिल हे.  पर्यावरण अउ कोरोना जागरुकता उपर सुग्घर रचना लिखे हे. 


 मिलनसार अउ मृदुभाषी रीहीस 


    श्रद्धेय नंद कुमार साहू हा गजब सुग्घर इन्सान रीहीस हे. वोहा अब्बड़ सरल, सहज ,मृदुभाषी अउ हंसमुख व्यक्तित्व के धनी रीहीस हे. वोहा बहुमुखी संपन्न कलाकार रीहीस हे. पर येकर बावजूद वोमा घमण्ड थोरको नइ रीहीस हे. एक डहर वोहा अपन ले वरिष्ठ मन के झुक के पैलगी अउ मान सम्मान ला कभू नइ भूलीस ता दूसर कोति अपन ले छोटे मन ला वोहा कभू छोटे नइ समझीस. वहू मन ला गजब स्नेह दीस. 


   सीखे मा गजब उछाह दीखाय 


58 साल के उम्र मा घलो वोकर मन मा सीखे के गजब उछाह रीहीस हे. 

  श्रद्धेय साकेत जी हा छंद के छ के संस्थापक आदरणीय अरूण कुमार निगम जी द्वारा स्थापित "छंद के छ " मा छंद सीखे बर 2021 मा तैयार हो गे रीहीस हे. पर दुर्भाग्य ये रीहीस कि वो सत्र के शुरु होय ले पहिली वोहा ये दुनियां ला छोड़ के चले गे. 

जब उंकर निधन के खबर चले ला लागीस ता आदरणीय गुरदेव निगम जी हा मोर करा फोन करके कीहीस कि "ओमप्रकाश कइसे खबर ला सेन्ड करे हस. बने पता कर लव भई. खबर ला डिलीट करव. "काबर कि  छंद सीखे बर जउन मन के मँय हा नाँव भेजे रेहेंव वोमा श्रद्धेय नंद कुमार साहू जी के सबले पहिली रीहीस हे. ता मेहा गुरुदेव जी ला बतायेंव कि "काश! ये खबर हा गलत होतीस गुरुदेव जी पर होनी के सामने हमन मजबूर हन. मेहा खुद उंकर घर गे रेहेंव. "


तब गुरुदेव जी हा मोला बताइस कि एक सप्ताह पहिली मोर ले बात करे रीहीस कि गुरुदेव जी महू हा छंद सीखना चाहत हवँ. मोला आप मन हा शिष्य के रुप मा स्वीकार कर लेहू. मोर बिनती हे गुरुदेव जी. तब गुरुदेव जी हा श्रद्धेय साकेत जी ला कीहीस कि -  ".नंद जी मँय हा आप ला का सिखाहूं . आप हा तो पहिली ले सुग्घर -सुग्घर रचना लिखत हवव .सबो डहर छाय हवव. " ता नंद कुमार साहू जी हा बोलिस कि " गुरुदेव जी छंद के छ अउ आपके मेहा गजब सोर सुने हवँ.  मँय हा आप मन ले छंद सीखना चाहत हवँ गुरुदेव जी. मोला निराश झन करहू. " 

श्रद्धेय नंद जी के सरल, सहज अउ सरस 

व्यवहार ले गुरुदेव जी हा गजब प्रभावित होइस. वोला अपन अगला सत्र मा छंद साधक के रुप मा शामिल कर लीन. पर ये छंद सत्र हा चालू होय ले पहिली  19 अप्रैल 2021 मा  58 वर्ष के कम उम्र मा ये दुनियां ला छोड़ के चल दीस. 

जब ये साल के छंद सत्र हा शुरु होइस ता गुरुदेव निगम जी हा मोर करा मेसेज करीस कि "- आज  नवा छंद सत्र शुरु होय के बेरा मा श्रद्धेय नंद कुमार साहू साकेत के गजब सुरता आथे. उंकर याद करके मोर आँखी हा डबडबागे. "

  सरल, सहज, सरस, मृदुभाषी, हंसमुख व्यक्तित्व अउ बहुमुखी प्रतिभा के धनी  रहे श्रद्धेय नंद कुमार साहू जी साकेत ला उंकर द्वितीय पुण्यतिथि मा शत् शत् नमन हे.🙏🙏💐💐

                

 ओमप्रकाश साहू "अंकुर "

सुरगी, राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) 

 मो.  7974666840




Sunday, 16 April 2023

पल्लवन घर के जोगी जोगड़ा , आन गांव के सिद्ध

 पल्लवन


घर के जोगी जोगड़ा , आन गांव के सिद्ध


     हमर आस पास कतको गुनिक मन रहिथे. कोनो न कोनो विधा के बढ़िया जानकार रहिथे. कोनो हा अच्छा कवि हे,ता कोनो हा बढ़िया से लेखक,कोनो हा गायन -वादन मा दक्ष हे ता कोनो हा उद्घोषकणा, नृत्य कला, पेंटिंग मा माहिर रहिथे. खेलकूद के दुनिया म घलो अइसने हे. 


     अक्सर देखे ला मिलथे कि ये प्रतिभा मन  जेन शहर,गांव या क्षेत्र के रहिथे वो कोति के मनखे मन वोकर मूल्यांकन कमतर आंकथे. हां अउ काम अटकही ता जरुर इंकर मन के गुनगान करके  वोमन अपन काम साध लेथे. अउ लेन देन के समय फेर ये प्रतिभा मन ला चना के पौधा मा चढ़ा के जइसे -तइसे मनवा लेथे. 


      कोनो गांव मा कतको बढ़िया रामायण के टीकाकार, गायन,वादन से सजे मंडली हे वोकर कार्यक्रम रखही ता लोगन मन कहिथे वो हमरे गांव के ताय गा! ये दे नजदीके तो नाचा हरे जी. ये दे हमर नजदीके गांव के सांस्कृतिक कार्यक्रम तो हरे जी? ये दे हमर आस पास के कवि मन तो हरे गा! नहीं एकदम नजदीक के उदृघोषक ला नइ बुलान! दुरिहा के ला बुलाबो. नजदीक के गुनिक मन ला भुलाबो. अउ कोनो दूरिहा के कलाकार मन नइ आ पाही ता काम चलाय बर जरुर बुलाबो. 


  अइसने कोनो ह कतको बुधियार राहय पर वोकर घर , गांव, क्षेत्र मा वोकर स्थिति" घर के जोगी जोगड़ा"  जइसे ही रहिथे. अउ इही मन आने क्षेत्र मा सिद्धस्त कलाकार के रुप मा जाने जाथे. 


   ये घर के जोगी मन ला स्नेह भेंट देय बर घलो भारी भेदभाव करे जाथे. हमरे छत्तीसगढ़ के बात करथन ता इहां मुंबई के फिल्मी कलाकार मन ला करोड़ों मा गवाय अउ नचाय जाथे. तरह तरह के सुविधा उपलब्ध कराय जाही अउ हमर छत्तीसगढ के कलाकार मन ला इंकर तुलना मा कतकी पारिश्रमिक देय जाथे ये जानहू ता अब्बड़ आश्चर्य करहू अउ शासन/ प्रशासन बर गुस्सा घलो आही कि अत्तिक अंधेर होथे. शासन द्वारा आयोजित ग्रामीण,सेक्टर,जनपद अउ जिला स्तरीय रामायण प्रतियोगिता मा येमा जुड़े कलाकार मन ला कतका मान -सम्मान मिलिस पुछ लौ!  ता ये सब उदाहरण म इही कहावत हा फिट बइठथे कि - "घर के जोगी जोगड़ा कहाथे अउ आन गांव के सिद्ध." 


             ओमप्रकाश साहू" अंकुर"

         सुरगी, राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़)

सुरता// जब बरात जाय बर पोगरावन बइला गाड़ी..

 सुरता//

जब बरात जाय बर पोगरावन बइला गाड़ी.. 

   जब ले सृष्टि उद्गरे हे, तब ले एकर नियमित संचालन खातिर नर अउ मादा के वैवाहिक-संबंध कोनो न कोनो रूप म होवत रेहे हे. जइसे- जइसे समूह, परिवार संग शिक्षा अउ संस्कार के अंजोर म लोगन आवत गिन, तइसे-तइसे ए संबंध ह एक सुव्यवस्थित रूप लेवत गिस. आज हम एला अलग- अलग समाज अउ वर्ग म अलग-अलग नेंग-जोग अउ परंपरा के रूप म देखथन.

     जिहां तक हमर छत्तीसगढ़ के बात हे, त इहाँ पहिली पांच तेलिया माने पांच दिन के बिहाव, तीन तेलिया माने तीन दिन के बिहाव देखे बर मिलत रिहिसे, जेन ह अब दू दिनिया ले एक दिनिया अउ अब तो एक जुवरिया घलो देखे बर मिल जाथे. जइसे-जइसे लोगन काम बुता अउ आने- आने रोजी रोजगार म बिपतियावत जावत हें, तइसे-तइसे बेरा-बखत म कमी आवत जावत हे, जे ह अइसन किसम के रीति रिवाज अउ परंपरा मन के परिवर्तन के रूप म घलो दिखत जावत हे.

   इहाँ के मूल निवासी समाज म पैठुल बिहाव, जेमा लड़की ह अपन पसंद के लड़का के घर घुसर जावत रिहिसे, फेर वोला लड़का के राजी होए के बाद सामाजिक स्वीकृति मिल जावत रिहिसे. अइसने एक लमसेना बिहाव घलो होवय. एमा बिहाव के लाइक लड़का ल लड़की घर जा के एकाद-दू बछर रहि के अपन शारीरिक कार्यकुशलता के परिचय देना परय. जब लड़की वाले मन वोकर काम काज ले संतुष्ट हो जावंय, त फेर उंकर बिहाव कर दिए जाय. कोनो कोनो एला घरजिंया अउ घरजन प्रथा घलो कहिथें. एक भगेली बिहाव के घलो परंपरा रिहिसे. एहा लड़का अउ लड़की के सहमति ले होवय. ए ह एक किसम के प्रेम बिहाव ही राहय. लड़का लड़की के घर वाले मन उंकर बिहाव खातिर राजी नइ होय म अइसन बिहाव होवय. एमा लड़की ह रतिहा म अपन घर ले भाग के प्रेमी के घर आ जावय, अउ वोकर छपरी के नीचे आके खड़ा हो जावय. तब लड़का ह एक लोटा पानी धर के अपन छपरी म डारय, वो पानी ल लड़की ह अपन मुड़ी म ले लेवय. तब लड़का के महतारी सियान मन लड़की ल अपन घर भीतर ले जावंय. तहाँ ले गाँव के सियान मन लड़की के भगेली होय के सूचना देके उंकर बिहाव करवा देवंय.

    हमर एती चातर राज म तो मंगनी-जंचनी अउ पूरा नेंग-जोग के साथ ही बिहाव होवत देखे हावन. बहुत पहिली बाल विवाह घलो देखे रेहेन, फेर अब ए ह शिक्षा के संग नंदावत जावत हे. सियान मन बतावंय, लड़की लड़का एकदम नान्हें राहयं, त पर्रा भांवर घलो पर जावत रिहिसे. पर्रा भांवर म दुल्हा दुल्हिन एकदम नान्हें राहंय. उन भांवर घूमे तक ल नइ जानत रहंय, त उंकर मनके सुवासा-सुवासिन (ढेंड़हा- ढेंड़हिन) मन वोमन ल पर्रा म बइठार लेवंय अउ मड़वा के चारों मुड़ा उठा के किंजार के भांवर के नेंग ल पूरा करवावंय. इहाँ के कुछ समाज म गुरांवट बिहाव घलो देखे बर मिल जाथे. एमा लड़का अउ लड़की के आपस म अदला-बदली हो जाथे. माने एक घर के बेटी दूसर घर त वो घर के बेटी एकर घर.

   हमन एती देखे हावन, पहिली गरमी के दिन म ही जादा करके बिहाव होवय. पढ़त राहन त 30 अप्रैल के भारी अगोरा राहय. जिहां 30 अप्रैल के स्कूल म पास-फेल के रिजल्ट सुनाइस, तहाँ ले दू महीना के रगड़ के छुट्टी. तहाँ चारों मुड़ा किंजरई. काकर-काकर बिहाव होवत हे, तेकर सोर-खबर लेवई अउ बरात-परघनी म नचई-कूदई के सरेखा चालू हो जावय. गाँव म हमन अपन पारा के सबले जादा सक्रिय कार्यकर्ता राहन. ककरो घर बिहाव होतीस, कोल्हान नरवा के खंड़ ले मंगरोहन, तेल चघ्घी पिड़हा अउ मड़वा म छाए खातिर डुमर डारा लाने के जिम्मा हमीं मनला मिलय. चुलमाटी, तेलमाटी के रतिहा भांठा म भुन्नाटी चलाए बर सुतरी मनला बांध के माटी तेल म बोरना, माय मौरी म रोटी झपटे बर खंभा पोगराना. सब हमरे मनके ड्यूटी रहय.

    बरात जाए के तो असली मजा रहय. तब बइला गाड़ी, भइंसा गाड़ी अउ सवारी गाड़ी. ये तीन किसम के विकल्प राहय बरात जाए खातिर. हमर मनके जुगाड़ राहय, कइसनो करके बइला गाड़ी के सवारी मिल जाय. काबर ते बइला मन भइंसा ले थोकन बनेच रेंगय. सवारी गाड़ी (कोनो-कोनो एला छाकड़ा गाड़ी घलो कहिथें.) घलो राहय, फेर वो ह एक किसम से दुल्हा बाबू खातिर आरक्षित राहय. वोमा सिरिफ नेंग वाले मन ही दुल्हा के संग म बाइठंय. 

  तब बरात एक जुवरिया बेरा  बरतिया भात खा के निकलन. दिन बुड़तही दुल्हिन गाँव पहुंचय, त फेर परघनी के तैयारी चलय.

    बराती मन के असली मजा तो परघनीच म होथे. परघनी ठउर ले लेके जेवनास घर के पहुंचत ले गंड़वा बाजा ल जगा-जगा छेंक के नाचना. पहिली कतकों बरात म अखाड़ा वाले मन घलो जावंय, जे मन अपन शारीरिक कला के अद्भुत प्रदर्शन करंय. कोनो कोनो गाँव म अखाड़ा नइ राहय, ते मन दूसर गाँव के अखाड़ा वाले मन ल मान-गौन कर के लेगंय. कभू-कभू तो अखाड़ा के प्रदर्शन ह रात भर चल जावय. तब मुंदरहा-मुंदरहा दूधभत्ता खाए बर मिलय. अउ फेर दिन म तहाँ ले बांचे नेंग-जोग मन होवंय.

   अब तो वो सब देखना दुर्लभ होगे हे. बिहाव के शुरू होवत ले मड़वा के झरत तक हर प्रसंग खातिर अलग-अलग गीत. वो सब ल सुरता करबे त लागथे, के हमर लोक साहित्य अउ परंपरा कतेक समृद्ध रिहिसे. चुलमाटी ले चालू होवय, तेन ह तेल चघी, माय मौरी, नहडोरी, बरात निकलनी, परघनी, भांवर, बिदाई, डोला परघनी ले लेके कंकन मउर के छूटत अउ आखरी म मड़वा झर्रा के तरिया म सरोवत तक हर प्रसंग के गीत चलय. 

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो. 9826992811

बोल रे मिट्ठू बोल बियंग.

 बोल रे मिट्ठू बोल

                                     बियंग. 


           खुले अगास मा अजाद उड़ने वाला पंछी पिंजरा मा फँदके डाँगन चारा डाँगन पानी पी के बोले तो का बोले? तभो ले बपुरा मिट्ठू अपन सुभाव ला तो नइ बदल डारे। फेर संगत के असर ले मनखे के बोल सँग मा बोले बर धर लेथे। कोइली के मान सम्मान इतिहास करत आवत हे फेर कऊँवा ला कोनों नइ भाय। बिचारा हर पँदरा दिन बर ही दाई ददा बने रथे। चिरई चिरगुन के मीठ बोली सुहाथे। फेर मनखे के सुभाव बन गेहे कि करू करेला के रसा मा सान के शब्द बाण के बरसा करे के। अब कऊँवा ला घलो समझ मा आ गेहे कि हमर काँव काँव हर मनखे मन के काँव काँव के आरो ले दबगे हे। एकर सेती दूसर लोक मा ठीहा खोजत हे। ओइसे भी नेट इंटरनैट फोर जी फाईव जी टावर मन के रेडिएशन ले कतको जीव जंतु के वंश नास होवत हे। तब का एकर प्रभाव मनखे उपर नइ परत होही? बुधमान कवि मन गाना गावत रथे जीव जंतु नँदावत हे कतको पंछी परानी के अंकाल परत हे कहिके। तब मँय कथों कारन ला खोज रे भकला। चुलहा हँड़िया के रँधना करसा मरकी के पानी ले उमर बाढ़े। दूबी के रसा चाँट के साधु संत दू सौ साल ले जीये। तँय कामे जीयत हस। फ्रीज बोतल के पानी होटल बासा के खाना केमिकल रसायन वाले फास्टफूड के चखना मा चिरई चिरगुन के पहिली तोर प्रजाति के का होही? ये कलजुग हरे इँहा काल हर कलकलावत हे। सुख सुविधा भोगे के चक्कर मा जिनगी दुविधा मा फँसत हे। अउ फकत नफा नुकसान के बोल बोलत हस। कोनों दिन पिंजरा के कपाट खुल जही तब ये सुआ तो फुर्र हो जही। फेर तँय तो न भाग सकस ना उड़ सकस। मँय तो कथों मिट्ठू तँय अपन ला पिंजरा मा धँधाय के दुख मत मना। आज मनखे तोर ले जादा चमाचम रूँधना वाले पिंजरा मा फँदे हे। राजनीति के पिंजरा मा फँसे मनखे अपन अपन मठाधीश बर जिन्दाबाद के नारा पढ़त बोलत हे। इही राजनीति के फाँदा मा फँदबे तब भाई हर बइरी होथे ये सिखाये जाही। राष्ट्रवादी सोच के पिंजरा मा फँसबे तब देश ला फोल फोल के फोकला करे के गुन सिखाये जाही। मिट्ठू ला छोड़ देहूं त काली अपन जात समाज मा जाके मिल जाही फेर तँय तो अतका पाठ पढ़ डारे हावस कि गला काट के रबे नइते कटवाबे। तोर नरी मा ओरमे गमछा फेटा के रँग ला देखके समझ जाहीं कि कोन सिकारी के फाँदा हरे। धरम के पाठ सीखे मिट्ठू ला शास्त्र धरम के ज्ञान ला छोड़के कट्टरता अउ बैमनस्यता के पाठ पढ़य जावत हे। उपर के दू आँखर नइ जाने। अउ जान के का करही? धँधाय पंछी के का चेतना अउ का जागरूकता। जब मन हर ही गुलामी के पिंजरा मा फँदे हे तब तन के अजादी कोन काम के? 

           मोर मितान जेकर विचार सँग मोर कभू मेल नइ खाय। तेन हर आके कथे - - - - - कस जी तोर मिट्ठू ला अउ कुछु नइ सिखाये हस का? वो वोतकेच बोलथे जतका रोज बोलथे। मँय केहेवँ-- नहीं एला मौसम अउ सीजन के हिसाब ले सिखाथौं। अब तोर मोर अउ मिट्ठू में का फरक हे? जेकर पिंजरा मा तँय फँदे हवस ओकरे बोल ला तहूँ बोलत हावस। मँय बेरा कुबेरा राष्ट्रवादी मानवतावादी के सीख पढ़ाके पारा मा झगरा नइ करवाना चाहवँ। काली बिहनिया चक्काजाम करे बर रेल रोको आन्दोलन पुतला दहन करे बर काकरो झंडा धरके चिचिया चिचियाके पढ़बे तब पुछहूं कि तँय काकर बोल बोलत हस कहिके। तोला तो अतको चेत नइये कि चिचियाएके बदला फूले चना मिलही कि ढूरू ह। तँय तो वो पिंजरा के कैदी सुआ आवस जेला अपन तकदीर कहि सकस ना करम लेख। काबर कि अपन हाथ के रेखा ला मेंटाय बर हथेरी तक ला दूसर के हाथ मा लमा देय हावस। फेर तोर भाखा ला लोकतंत्र के परिभाषा जानत होही वोला पुछबे। चिन्तन करके चेतना जगाबे तब पाबे कि असली गुलामी इही हरे। मोर पिंजरा के मिट्ठू ला वंदे मातरम् तिरंगा झंडा अउ संविधान के मतलब ला समझाहूँ सिखाहूँ कहिके अबड़ सोंचत रथों फेर दाँत कटकटावत कट्टर परोसी के कट्टर विचारधारा ले दंगा मोरे घर ले शुरू झन हो जाय ये सोचके नइ सिखावँ।

       इँहा धरम दर्शन अध्यात्म के पिंजरा मा फँदबे तब तोला हरियर सादा भगवा के चिर्र पों सिखाये जाही। समता अउ समानता के पाठ सिखाहूँ तौ कट्टरवादी मन कटारी धरके दँउड़ाही। बेवस्था के बिगड़े हाल ला बखाने बर सिखाथौं तौ शब्द बाण के घाव के असर ले अपराधी बना देय जाही। गरीबी बेकारी मँहगाई लूट हिंसा अत्याचार झूठ लबारी भ्रष्टाचार के विरोध मा अवाज उठाय बर सिखाथौं तब विशाल मंदिर मसजिद मा लगे आस्था के घंटा के अवाज ले मुद्दा के अवाज दब जथे। संतवाणी के प्रभाव ले बेल पेंड़ बुचवा होगे। पाना चघाय के जगा बेल पेंड़ लगाय के प्रवचन अउ सीख ले धरती अउ परियावरन हरियातिस फेर अइसन तो कोनो साधक उपासक संत कहिबे नइ करे हे। तब ये काम करके का करम ठठाहीं। हिमाचल के जड़ी बूटी अउ किमती पेड़ नदारत होवत हे फेर फोकट लाखों लाख कंठी रूद्राक्ष बांटे बर पेंड़ कहाँ ले आगे जंगल जंगल फिरइया मिट्ठू घलो नइ बता पावत हे।  कुछ बड़े प्रजाति के मिट्ठू मन दिल्ली चलो दिल्ली चलो के पाठ पढ़त हे। छोटे सुआ मन ला अँधरउटी अउ अंधभक्ति के लाल मिरचा खवा देय हे। जेमन ला अकबका के टाँय टाँय टर्र टर् करे बर छोड़ देय हे। अउ मीठ रसा वाले फल फूल मा अपन मन काबिज हो गेहें। तभो लाल मिरचा अउ ढूरू चना मा नमकहरामी नइये। जइसे सिखाये जावत हे ओइसने बोलत हे। कुछ अवसरवादी सुआ मन कतका रंग अउ दल बदलहीं कहे नइ जा सके। बोले के अजादी का मिलिस कतको के मुँहूं के मरियादा उढ़रिया भगा गेहे। जेन ला जइसन नइ बोलना हे वो तक ला बफलत रथे। तब मौसम अउ सीजन ले अवतरे मिट्ठू मनके अवसरवादी बोल शुरू हो जथे। 

          खुद के जरूरत मनखे अउ मानवता के जरूरत देश दुनिया ला आज के जरूरत अउ जवाबदारी ला स्वारथी मनके बँड़ोरा उड़ाके लेगत हे। एक ठन पंछी पिंजरा मा धँधाके ओतके बोलथे जतका सिखाय जाथे। फेर सोच सकथस अजाद मनखे पंछी ले का कम धँधाये हे। पूरा मनखे समाज देश दुनिया क्रोध ईर्ष्या द्वेष छल  बल कपट के पिंजरा मा फँसे हे। जे धाँध के राखे के दमखम रखथे उही हर अपन भाखा बोले बर बेबस कर देहे कि बोल रे मिट्ठू बोल। 


  राजकुमार चौधरी "रौना" 

   टेड़ेसरा राजनांदगांव 🙏🏻.              

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