Sunday 26 January 2020

माई चिरई - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


कहानी-माई चिरई


              छन्नू रतिहा बेरा अँगना म लाल लाल गमकत दसमत फूल तरी खटिया बिछाके,अगास म रिगबिगात  चंदा अउ चंदैनी ल फुर्सत म निहारत सोचत रहिथे कि, जिनगी के बाँसठ बछर देखते देखत म गुजरगे, अउ आज मैं अपन नवकरी ले छुटकारा पा चुके हँव।फेर उही बीते बछर के सुरता करत डाकिया बाबू छन्नू के आँखी ले आँसू तरतर तरतर झरे ल लग गिस।वोला अइसे लगत रिहिस कि कालीच तो पट्टी बस्ता धरके ददा दाई के दया मया अउ सपना ल गाँठियाय स्कूल जावत रेहेंव।कालीच तो छन्नू भैया कहिलावत गली गली घूम घूम के चिट्टी पत्री बाँटत रेहेंव,फेर कब छन्नू भैया ले छन्नू बबा होगेंव,तेखर पता घलो नइ चलिस।छन्नू ल लगिस कि सुख के पल अउ कामबूता म खुद ल घलो बरोबर टेम नइ दे पायेंव,त का अपन सुवारी देवकी अउ एकलौता बेटा सुमेर ल टेम दे पाये होहूँ।सुमेर कभू कभू अर्दली करे फेर देवकी छन्नू ल देख बड़ खुश होवय अउ बरोबर दया मया लुटावव। "होनहार बिरवान के होत चिकने पात" ये हाना छन्नू उप्पर एकदम फिट बइठे काबर कि छन्नू बचपन ले बनेच हुशियार अउ संस्कार वान लइका रिहिस।पढ़ाई लिखाई के तुरते बाद जइसने दाई ददा संग जम्मो गाँव वाले मन कहय कि छन्नू पढ़ लिख के नवकरी करही,वइसनेच छन्नू अपन गाँव भर म सरकारी नवकरी करइया पहली लइका बनिस अउ डाकविभाग म पोस्टमैन के नवकरी पाइस। कामबूता बर छन्नू बड़ चंगा अउ चोक्खा रहय,अपन जम्मो काम ल लगन अउ ईमानदारी ले करे।नवकरी पाये के पहिली भी छन्नू के गाँव म बड़ मान गउन होवय,त नोकरी लगे के बाद का कहना? फेर छन्नू ल कभू गरब गुमान अपन चंगुल म नइ फँसा सकिस।रोज जब छन्नू  कामबूता निपटाके अपन घर आवय तब वोहा गाँव गुड़ी अउ चौपाल म  बरोबर टेम देवय,संगे संग जम्मो बड़का सियान मनके आशीष घलो लेवय।घर म घलो रोज एक दू घण्टा सुमेर ल पढ़ावय अउ झट खा पी के सपरिवार सुत जावय।पहाती पहली छन्नू जागे अउ ओखर आरो ल पाके बाद म कुकरा बासे, चिरई चिरगुन घलो बाद म चहचहावय।छन्नू घर के कामबूता म हाथ बँटावय तेखर बाद नहाखोर के, नास्ता पानी करके,साइकिल ओंटत ऑफिस कोती चल देवय।

             छन्नू के सुवारी देवकी अपन आप ल बड़ भागी माने कि मैं नवकरी पेशा वाले आदमी के अर्धांगनी आँव।तभे तो छन्नू के हां में हां मिलावत सदा हाँसत दया मया लुटावय अउ लइका लोग  संग घर परिवार के सेवा जतन करत दिन पहावय। रोज पहाती पहाती देवकी उठके,परछी अँगना बाहर बटोर के,चूल्हा चाकी लीप के,नास्ता पानी,खाना पीना बना पहली छन्नू ल ऑफिस बिदा करे, तेखर बाद सुमेर ल स्कूल।पति के ऑफिस अउ लइका के स्कूल जाये के बाद  भी देवकी अपन आप ल कभू अकेल्ला नइ  पाइस।वो अबड़ लगन अउ आनन्द के संग जम्मो बूता काम ल रोजेच गीत गुनगुनावत गुनगुनावत पूरा करय।रँधई गढ़ई अउ पूजा पाठ के संगे संग देवकी कुछ समय परोसिन मन संग घलो बितावव।देवकी बिहाव होके जब ले ससुराल आय रिहिस,कभू मइके बर सुध नइ लमाइस,अउ बिचारी जाये भी त काखर मया म।ददा तो बिहाव के पहलीच गुजरगे रिहिस अउ दाई बिहाव के एक बछर बाद म।ददा दाई के मया  ल देवकी जादा दिन नइ पा सकिस,तेखरे सेती सदा पतिप्रेम म डूबे रहय,अउ ससुराल म ही अपन ददा दाई के मया ल  अँचरा म गाँठियाके  दिन गुजारय।देवकी सबो गुण म सम्पन्न रिहिस, वो आज के नारी कस भले घर के चार दिवारी ले नइ निकले रिहिस फेर सिलई कढ़ई बुनई सबे काम जाने।देवकी के गुण के सबे प्रसंशा करय चाहे गाँव वाले होय या फेर छन्नू। देवकी  प्रसंशा के लइक भी रिहिस, सादा सरल स्वभाव अउ चीज बस के कोनो गरब गुमान नही।छुट्टी के दिन कभू कभू छन्नू देवकी अउ सुमेर ल घुमाये फिराये घलो।कुल मिलाके कहे जाये त जिनगी सोला आना रिहिस न कोनो चीज बस के कमी न कोनो बात के दुख।इही सुख के डोंगा म सवार दूनो प्राणी ल कब चौथा पन अपन काबा म पोटार लिस,तेखर भनक घलो नइ लगिस।

             छन्नू अउ देवकी अपन लइका सुमेर के भविष्य ल लेके अबड़ चिंतित रिहिस। ओमन चाहत रिहिस कि लइका पढ़ लिखके अपन पाँव म खड़ा हो जातिस।अउ अइसन कते ददा दाई नइ सोंचय, फेर सुमेर पढ़ई लिखई म थोरिक कमजोरहा रिहिस।बारवीं तक तो लगभग बने बने पढ़िस फेर जब कालेज पढ़े बर शहर गिस ता, ओखर आदत बिगड़त गिस। सुमेर गलत संगत म पड़के नसा पान ,अउ लड़ई झगड़ा करेल लग गिस।कालेज के दू बछर घलो ले देके बितायस, फेर तीसर बछर म बनेच बिगड़ गे अउ एक साल फेल घलो होगे।ददा दाई के चिंता बढ़ेल लग गिस।देवकी कभू कभू छन्नू ल बोले कि सुमेर के बिहाव कर देथन, जिम्मेदारी पाके सुधर जाही फेर छन्नू तियार नइ होय। वो कहय लइका जब जिम्मेदारी उठाये के लइक होय तभे बिहाव करना चाही।कभू कभू सुमेर के व्यवहार ल देख रिस म कह भले देवय कि तोर बिहाव करबों,फेर सुमेर म कोई बदलाव नइ आय। वो लापरवाह बनके घूमय फिरय दारू गाँजा पीयय अउ लड़ई झगड़ा घलो करे।जतके बढ़िया मान मर्यादा अउ नाम छन्नू कमाय रिहिस ओतको बेकार छबि सुमेर के रिहिस।गाँव के मनखे मन ताना घलो मारे कि जादा लाड़ प्यार म लइका के इही गत होथे।छन्नू अभाव अउ दुख पीरा के भट्ठी म पकके बने मनखे बने रिहिस।जब पोस्टमैन के नोकरी लगिस तब छन्नू के मन म कभू  आवय कि मोर ददा कर कहूँ अउ सब कुछ रितिस त अउ बड़े नवकरी करतेंव।फेर आज सुमेर ल देख के डर म काँप जावय ।छन्नू सुरता करथे कि भले बालपन म अभाव रिहिस, फेर दुर्गुण अउ कोनो संसो फिकर के चिटिक भी नामो निशान नइ रिहिस, पर आज चौथा पन म जब सब कुछ हे तब जबर संसो अन्तस् ल झगझोरत हे।छन्नू देवकी कर कभू कभू तो अपन दुख के गठरी ल खोलत कहि परे कि टूरा अत्तिक उछन्द अउ झेक्खर हो जही कहिके जानत रहितेंव त नवकरी के एकात बछर पहिली जान दे देतेंव, ताकि मोर जघा वोला जीविकायापन के  माध्यम तो मिल जातिस,फेर कोन जानत रिहिस ये सब करम लेखा ल। तब देवकी छन्नू के मुँह म हाथ रखके चुप करावत कहय,वाह स्वामी, फेर मोर का होतिस अउ अइसे कहिके देवकी चिल्लाके रो पड़े। छन्नू के संग देवकी घलो संसो फिकर के घानी मा लइका के गत ला देखत पेराय लग गिस।

          एकदिन छन्नू अँगना म बइठे रिहिस ओतकी बेर सुमेर नशा म धुत घर आइस।सुमेर के हाल देख के छन्नू के आँखी लाल होगे अउ बाजू म पड़े लउठी म चार घाँव जमा घलो दिस।छन्नू अउ देवकी भले आज तक गारी देवय फेर एको बेर हाथ नइ उचाय रिहिस।छन्नू कभू सोचे घलो कि कास ये लइका ल पहली ले लउठी पड़े रहितिस, त ये दिन नइ देखेल मिलतिस।सुमेर ददा ल मारत अउ खिसियावत देख गुस्सा होगे  अउ  रिसे रिस म झोला  झांगड़ी सकेल के दस हजार पइसा धरके रात कुन घर ले फरार होगे।देवकी अउ छन्नू तीर तखार ल गजब खोजिस फेर सुमेर के आरो नइ पाइस।अब जब छन्नू अउ देवकी ल सहारा के जरूरत हे तब बाढ़ें बेटा के घर ले भाग जाना कोनो गाज गिरे ले कमती नइ हे।छन्नू के चौपाल,गाँव गुड़ी सब छूट गे।छन्नू खुदे संसो म बोजाय देवकी ल दिलासा देवत बोलय कि जादा दुख झन मना देवकी,पइसा सिराही ताहन का करही, खुदे घर आ जाही। फेर महतारी अन्तस् मा भभकत संसो के आगी कहाँ बुझे? देवकी ल यहू संसो खाये की कहूँ सुमेर चोर ढोर के संगत म झन पड़ जाये, गुंडा मवाली झन बन जाय। छन्नू अपन बचपना के सुरता करत सोंचय कि जब ददा दाई अउ सियान मन गारी देवय अउ गलती म मार घलो देवय,तब हमन वो मार ले सबक अउ सीख लेवन,फेर वाह रे आज के लइका; थोरिक मार अउ फटकार म घर ल तियाग देवत हो।कोन जनी हमर असन कहूँ सबे चीज ल खुदे सिधोवत, ददा दाई के आज्ञा मानतेव तब का नइ करतेव? छन्नू के ददा दाई अपन जाँगर चलत म ही बिना सेवा जतन कराये,झट  परलोक सिधार गे रिहिस। कथे दुख म  मनखे के दिमाग चारो कोती घूमथे तभे तो छन्नू यहू सोचे कि, जब मँय अपन महतारी बाप के बूढ़त काल म सेवा नइ करे हँव त मोर बेटा बूढ़त काल म मोर कइसे हो पाही, महूँ ल अपन दाई ददा असन झट मर जाना चाही।ये सोच  छन्नू के आँखी झलकेल बर धर लेवय।छन्नू ल सुरता आवय सुमेर के ननपन के,जब वोला वो खूब मया करे,पीठ म घोड़ा चघावव,बाजार हाट अउ दुकान घुमावव।छन्नू के घर आते साँट सुमेर ओखर झोला म मिठई खोजे त ड्यूटी जाये के बेरा साइकिल ल रगड़ रगड़ के पोछें अउ बरसात घरी टायर के चिखला ल साइकिल के पैडल  ल हाथ म चला चला बड़ मजा लेके निकालय।सुमेर शुरू शुरू  म पढ़ई म बने रिहिस,कभू छन्नू कहय घलो तोला नवकरी मिलही रे बेटा बने बने पढ़बे अउ सबके बात बानी मानत बने बने रहिबे।फेर होनी ल कोन जाने? आज सुमेर छन्नू अउ देवकी के डेहरी ल छोड़ के भाग गे हे, दूनो प्राणी दुख के दहरा म उबुक चुबुक करत हें।अब बस दूनो झन घरे म कभू लइका के त कभू यम के रद्दा जोहत दिन अउ रात ल काटेल लग गिस।

            एती सुमेर, शहर ले लगे एक ठन होटल के छत म बने कमरा म रहे बर लग गिस,जिहाँ ले एक ठन आमा पेड़ के फुलिंग म बने चिरई खोंधरा चकचक ले दिखे।जेमा एक माई चिरई रहय जउन पहाती खोंधरा छोड़ के उड़ जावय अउ संझौती बेरा फेर लहुट आवय।कुछ दिन बाद वो  चिरई घड़ी घड़ी खोंधरा मेर दिखे ल धर लिस।सुमेर के नजर पड़िस त देखथे कि खोंधरा म दू ठन अंडा हे, तेखर सेती माई चिरई  जादा दुरिहा नइ जावत रिहिस।कुछ दिन म दू ठन नान्हे चिरई  मनके चिंव चिंव गुंजेल  लगिस।अब माई चिरई चौबीसों घण्टा पेड़ेच के आजू बाजू दिन बताये बर लग गे,खोंधरा ले दुरिहाय नही।खेवन खेवन अपन  चोंच म दाना दबा के लावय अउ नान्हे चिरई मन ल खवावय।ये सब दृश्य ल सुमेर बरोबर रोज देखय।माई चिरई के आहट पाके नान्हे चिरई मन चोंच उठा उठा के नरियावय अउ दाना माँगय।एक दिन रतिहा जइसे सुमेर के नींद पड़त रिहिस ओतकी बेर ओखर कान म  माई चिरई के भारी नरियाय के आवाज आय लगिस।सुमेर ओढ़ के सोये के कोशिस करिस फेर सुत नइ पाइस,अंत म का होगे सोचत बाहर आथे त देखथे कि एक ठन बिरबिट डोमी साँप नान्हे चिरई मन ल खाये बर खोंधरा के तीर पहुँच गे हे।माई चिरई  अपन जान के संसो करे बिना फन उठाय नांग ल उड़ उड़ के चोंच मारय, अउ भारी नरियावय,ओखर नरियई ल सुनके अइसे लगे जइसे माई चिरई, साँप ल भागे बर काहत घेरी बेरी बखानत हे। आखिर म थकहार के साँप नीचे उतरेल लगिस।माई चिरई के जीत देख के सुमेर के अन्तस् गदगद होगे।एक दिन मनमाड़े हवा गरेर के संग झमाझम पानी गिरे बर लगिस, गड़गड़ गड़गड़ बादर गरजय,कड़कड़ कड़कड़ बिजुरी चमकय अउ पटपट पटपट करा घलो गिरय।सुमेर के जी ये सोच के छटपटाय बर लगिस कि वो खोंधरा म का बीतत होही।हिम्मत करके बाहिर आइस त देखथे के माई चिरई  अपन नान्हे चिरई के उप्पर छत बरोबर बइठे हे।हवा गरेर म डारा बिकट लहसे तभो मूसलाधार बरसा अउ टप टप बरसत करा ले नान्हे चिरई ल बचाये बर माई चिरई लगातार जमे हे।थोरिक देर म हवा अउ पानी दूनो थम गे।नान्हे चिरई मन डार म फुदके बर धर लिस।खाना खावत ले सुमेर खोंधरा ल झाँकथे फेर ओला माई चिरई दिखबे नइ करिस।ओखर मन छटपटाय बर धरलिस,तुरते भागत भागत होटल ले उतर के आमा पेड़ कर चल देथे, अउ जउन देखथे ओहर ओखर छाती ल दू फाँकी चीर देथे।माई चिरई, करा अउ पानी म पिटा के जान गँवा चुके रिहिस,ओखर तन म चाँटी झूमत रिहिस। सुमेर के आँखी ले आंसू के धार बरसेल लगगे, वो फफक फफक के रोय लगिस कि वाह रे महतारी चिरई तैं  लइका मन बर अपन जान घलो दे देएस,तोर समर्पण ल मैं बारम्बार नमन करत हँव।उही बेरा सुमेर ल पहिली बार दाई देवकी अउ ददा छन्नू के सुरता आइस कि मैं कतेक अभागन आँव जेन दाई ददा ल अकेल्ला छोड़ के भाग आय हँव,कोन जनी मोर लालन पालन वोमन कइसन कइसन दुख पीरा ल झेल झेल के करे होही,मोला धिक्कार हे।सुमेर के अन्तस् ल माई चिरई के मया ममता अउ समर्पण ह रही रही के कुरेदे बर लग गिस,वो दौड़त होटल म आइस अउ अपन झोला झांगड़ी ल खाँध म अरो के घर कोती जाय बर निकलिस ,जावत बेरा खोंधरा ल झाँकथे त देखथे कि नान्हे चिरई म खोंधरा ल छोड़ आने कोती उड़त जावत रहय,अउ एती पेड़ तरी म माई चिरई मरे पड़े हे।ओखर मन म उँखर बर क्रोध उमड़िस, फेर एक क्षण बाद खुद ल वो मेर रख के देखिस त सुमेर के आँसू के धार अउ बढ़गे।माई चिरई ल आमा पेड़ तरी गड्ढा खन के पाटत बेरा सुमेर सोचे लगिस के  चिरई मन तो जानथे कि ओखर लइकामन आघू चलके खोंधरा छोड़ उड़ा जाही, ओखर कोनो काम नइ आवय, तभो अइसन मया ममता लुटाथे।फेर हमर ददा दाई मन तो अपन बुढ़ापा के सहारा अउ डीही म दीया बरइया मानथे।अइसन म लइका यदि दाई ददा ल छोड़ देय त ओखर मन म का बीतत होही? अउ जेन ददा दाई ल तज देय वो लइका ले बढ़के मूरुख अउ कोनो नोहे।सुमेर लकर धकर घर म जाके, ददा दाई के पँवरी म जाके गिर जथे। सुमेर के आँखी ले बरसत पछतावा के आँसू ल देख छन्नू अउ देवकी बेटा ल गला लगा लेथे।सुमेर के अन्तस् म वो माई चिरई के मया ममता के खोंधरा  बनगे रिहिस।सुमेर अपन ददा दाई संग सबके मन लगाके सेवा करे बर लगगे।अउ एकदिन सुमेर ल घलो सरकारी नवकरी के बुलावा आगे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको,कोरबा(छग)