Monday 18 December 2023

पौनी पौसारी


पौनी पौसारी

लोक जीवन म पौनी पौसारी के अपन अलग जघा हे l हमर सामाजिक जीवन म खासा योगदान हे l कर्म के अनुसार वर्ग बनिस l वर्ग म अलग अलग जात के समाज l नाउ धोबी राउत मेहर बढ़ई एमन सब पौनी पसारी म आथे l पौनी पसारी के मतलब पनाह देके पसर भर देवन इही भाव हे l अपन संग जुड़े रहय l

सबो समाज अपन संरक्षण म राखे हे l हर धार्मिक काम काज म पौनी पौसारी के जघा हे l बिन नाउ धोबी के शुद्धिकरण नई होवय मरनी हरनी छट्टी म l जचकी हो या मरनी  के काम म इंखर भूमिका आघू हे l  मुड़ी ला मुड़वाये ला पड़थे lउंकर काम के पीछू कुछ अंशदान निकल के देथे l ये अंशदान  सगुन के बतौर हे लेकिन सामाजिक व्यवस्था के तहत उंखर मान सम्मान खातिर हे l

सामाजिक भाई चारा ला जोड़े बर परिपाटी चलत हे l पूजा पाठ म तोरन  दोना पतरी इही मन लाथे l स्वस्थ परम्परा ए मेऱ छुवा छूत भेदभाव नई मानय l उंखर उपस्थिति ला बने माने जथे l सेर के रूप म सूपा म चाउंर दार नून मिरचा आलू बरी कांदा सब भोजन के सामान देके बिदा करे जाथे l पौनी पसारी के प्रथा अब टूट गे या टूटत हे ओखरो कारण हे l

  अब उहू नंदावत जावत हे l सेवा सहिष्णुता नई रही गे l हमर परम्परा हमर संस्कृति म औदार्य  गुन हे l जेखर गुन गाथन l

कइसे बचाबो? गोठ म पदोंलीं

दुहू l

 

मुरारी लाल साव

कुम्हारी

3 दिसम्बर पुण्यतिथि म सुरता// क्रांतिकारी व्यक्तित्व के धनी हरि ठाकुर


 

3 दिसम्बर पुण्यतिथि म सुरता//

क्रांतिकारी व्यक्तित्व के धनी हरि ठाकुर 

    पुरखा साहित्यकार हरि ठाकुर जी के चिन्हारी आमतौर म एक मयारुक गीतकार के रूप म जादा हे, जेकर असल कारण आय, छत्तीसगढ़ी भाखा म बने दुसरइया फिलिम "घर द्वार" म लिखे उंकर गीत मन के अपार सफलता. फेर मैं उंकर एक इतिहासकार, पत्रकार के संगे-संग  क्रांतिकारी रूप के जादा प्रसंशक हंव. 

    उंकर संग मोर चिन्हारी सन् 1983 म तब होए रिहिसे जब हमन अग्रदूत प्रेस म नवा-नवा काम करत रेहेन. उहाँ पुरखा साहित्यकार अउ पत्रकार आदरणीय स्वराज प्रसाद त्रिवेदी जी तब सलाहकार संपादक रिहिन हें. उंकर संग मेल-भेंट करे बर आदरणीय हरि ठाकुर जी के संगे-संग अउ तमाम साहित्यकार मन आवंय. तब उंकर मन संग मोरो भेंट-चिन्हारी हो जावत रिहिसे. आगू चलके जब मैं साहित्यिक अउ सामाजिक गतिविधि के संगे-संग छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन म संघरेंव, तहाँ ले घनिष्ठता अउ बाढ़त गिस.

    उंकर जनम 16 अगस्त 1927 के रायपुर म होए रिहिसे. उंकर सियान ठाकुर प्यारेलाल सिंह जी ल हम सब त्यागमूर्ति के संगे-संग लोकप्रिय महान श्रमिक नेता, आजादी के आन्दोलन के योद्धा, सहकारिता आन्दोलन के कर्मठ नेता, पत्रकार, विधायक अउ रायपुर नगर पालिका के तीन घांव रह चुके अध्यक्ष के रूप म जानथन. अपन सियान ले उन ला प्रेरणा मिले रिहिसे. एकरे सेती उन अपन छात्र जीवन म सन् 1942 म असहयोग आन्दोलन म शामिल होगे रिहिन हें. 1950 म छत्तीसगढ़ महाविद्यालय रायपुर म उन छात्र संघ अध्यक्ष बनगे रिहिन हें. इहें ले उन कला अउ विधि म स्नातक के उपाधि पाके दस बछर अकन ले वकालत घलो करे रिहिन हें.

    देश ल आजादी मिले के बाद सन् 1955 म पुर्तगाली शासन के विरुद्ध गोवा मुक्ति आन्दोलन म घलो संघरे रिहिन हें. सन् 1956 म डा. खूबचंद बघेल के संयोजन म राजनांदगाँव म होए "छत्तीसगढ़ी महासभा" घलो म उन संघरे रिहिन हें, जिहां उन ला ए संगठन के संयुक्त सचिव बनाए गे रिहिसे. ए छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन रूपी यज्ञ म फेर वो जीवन भर आहुति देवत रिहिन हें. मैं उंकर इही रूप के सबले जादा प्रसंशक रेहेंव. काबर ते ए आन्दोलन म महूं एक नान्हे सिपाही के रूप म जुड़े रेहेंव, अउ आजो वो अस्मिता आधारित राज निर्माण के कल्पना म संघरेच हावन. काबर ते अभी घलो अस्मिता आधारित राज निर्माण के सपना ह सिध नइ पर पाए हे. हमन ल एक अलग राज के रूप म चिन्हारी तो मिलगे हवय, फेर अभी घलो इहाँ के भाखा अउ संस्कृति ह स्वतंत्र पहिचान खातिर आंसू ढारत हावय. अभी तक छत्तीसगढ़ी ह शिक्षा अउ राजकाज के भाखा नइ बन पाए हे, उहें इहाँ के आध्यात्मिक संस्कृति के सबले जादा दुर्दशा देखे बर मिलत हे. 

     राज आन्दोलन के बखत ठाकुर साहब इहाँ के राजनेता मन के दु-मुंहिया गोठ ले घलो भारी नाराज राहंय. एक डहार तो ए नेता मन हमर मन जगा राज आन्दोलन के समर्थन के गोठ करंय, अउ जब दिल्ली-भोपाल म अपन आका मन के आगू म जावंय, त कोंदा-लेडग़ा होगे हावंय तइसे कस मुसवा बरोबर खुसरे असन राहंय. उंकर मन के इही चाल देख के उन नाराज राहंय. मोला सुरता हे, छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के जलसा, जेन इहाँ मठपारा के दूधाधारी सत्संग भवन म होवत रिहिसे, उहाँ उन मंच ले कहे रिहिन हें-"ए नेता मन माटी पुत्र नहीं, भलुक माटी के पुतला आंय". छत्तीसगढ़ राज निर्माण के बाद घलो उन कहे रिहिन हें, जब तक इहाँ के भाखा अउ संस्कृति के स्वतंत्र चिन्हारी नइ बन जाही, तब तक ए राज निर्माण के अवधारणा ह अधूरा रइही. एकर बर मैं इहाँ के जम्मो कलमकार अउ छत्तीसगढ़ी अस्मिता के हितवा मनला आव्हान करत हंव, उन ए बुता म चेत करंय.

    हरि ठाकुर जी हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी म सरलग लिखिन. महूं घलो अपन संपादन म वो बखत रहे छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका "मयारू माटी" म घलो उन ला लगातार छापत रेहेंव. तब हमन छत्तीसगढ़ी म गद्य रचना मन के जादा ले जादा प्रकाशन के पक्ष म राहन. ठाकुर साहब काहयं घलो-हम ला छत्तीसगढ़ी के बढ़वार खातिर गद्य रचना मन डहार जादा चेत करना चाही.

   आवव, उंकर सन् 1979 म छपे छत्तीसगढ़ी रचना के संकलन "सुरता के चंदन" जेला वो मन देवीप्रसाद वर्मा 'बच्चू" अउ श्यामलाल चतुर्वेदी जी ल भेंट करे हें. उंकर कुछ अंश ला झांक लेइन-

कतका दुख सहे आदमी, बादर घलो दगा देथे

उमड़-घुमड़ के आथे अउ बिन बरसे कहाँ परा जाथे

जरत भाग के होले ला अउ बार बार बगरा जाथे

सपना खंड़हर होत, करम के अक्षर घलो दगा देथे

कतका दुख ला सहे आदमी, बादर घलो दगा देथे.

* * * * *

अटकन मटकन दही चटाकन

लउहा लाटा करै गगन

फुगड़ी खेलत हवय पवन


चौक पुराए असन घाम हर

खोर खोर म बगरे हे

जुन्ना पाना झरय

उल्होवै नावा पाना सनन सनन

फुगड़ी खेलत हवय पवन...

* * * * *


गहरी हे नदिया के धार बैरी

जिनगी परे हे निराधार बैरी

लहरा बने हे पतवार बैरी

बिजली के तने तलवार बैरी


डोंगी हवै बिच मझधार बैरी

लदे हवै पीरा के पहार बैरी

चारो कोती हवै अंधियार बैरी

सपना के होगे तार तार बैरी.

* * * * * 


खुडुवा खेलत हवै गगन भर

मंझन भर चितकबरा बादर

अउर सांझ कुन हंफरत हावै

जीभ लमाए झबरा बादर


आज बरसही काल बरसही

कहिके भुइयां जोहत हावै

टुहूं देखा के आनी-बानी

कइसन मन ला मोहत हावै

माते हाथी अस उमड़त हे

भरे न तब ले लबरा बादर

खुडुवा खेलत हवै गगन भर

मंझन भर चितकबरा बादर..

* * * * *

   सन् 1956 म छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन के नेंव रचे के संग ले जुड़े रेहे हरि ठाकुर जी 1 नवंबर 2000 के बने नवा छत्तीसगढ़ राज के नवा रूप ल तो देखिन, फेर सिरिफ कुछ महीना भर ही अपन पूरा होए सपना ल देखे पाइन अउ 3 दिसंबर 2001 के ए दुनिया ले बिदागरी ले लेइन. उंकर सरग सिधारे के पाछू सन् 2011 म अनामिका पाल जी ह "हरि ठाकुर के साहित्य में राष्ट्रीय चेतना" विषय म पं. रविशंकर विश्वविद्यालय ले पीएचडी करे हावय, जेकर माध्यम ले आदरणीय हरि ठाकुर जी के जम्मो कारज ल एके जगा जाने अउ पढ़े जा सकथे.

   उंकर सुरता ल डंडासरन पैलगी...🙏

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

4 दिसंबर पुण्यतिथि// पंडवानी के पुरोधा नारायण प्रसाद वर्मा


 

4 दिसंबर पुण्यतिथि// 

पंडवानी के पुरोधा नारायण प्रसाद वर्मा

      आज के नवा छत्तीसगढ़ म पंडवानी गायन ल एक बड़का विधा के रूप म देखे जाथे, माने जाथे अउ गाये घलोक जाथे। एकरे सेती आज एकर गायक-गायिका मनला पद्मश्री ले लेके कतकों अकन राष्ट्रीय अउ राज्य स्तर के सम्मान मिलत रहिथे। फेर ये बात ल कतका झन जानथें के ये विधा के जनमदाता कोन आय, ए विधा ल गावत कतका बछर बीत गये हे?


     आप मनला ये जान के सुखद आश्चर्य होही के नवा बने जिला बलौदाबाजार के गांव झीपन (रावन) के किसान मुडिय़ा राम वर्मा के  सुपुत्र के रूप म जनमे नारायण प्रसाद वर्मा ला ये पंडवानी विधा के जनमदाता होय के गौरव प्राप्त हे। वोमन गीता प्रेस गोरखपुर ले छपे सबल सिंह चौहान के किताब ले प्रेरित होके वोला इहां के लोकगीत मन संग संझार-मिंझार के पंडवानी के रूप म विकसित करीन।


    मोला नारायण प्रसाद जी के झीपन वाला घर म जाये अउ उंकर चौथा पीढ़ी के सदस्य संतोष अउ नीलेश के संगे-संग एक झन गुरुजी ईनू राम वर्मा के संग गोठबात करे के अवसर मिले हे। ईनू राम जी ह नारायण प्रसाद जी के जम्मो लेखा-सरेखा ल सकेले के बड़ सुघ्घर बुता करत हवय। संग म गांव के आने सियान मन संग घलोक मोर भेंट होइस, जे मन नारायण प्रसाद जी ल, उंकर कार्यक्रम ल देखे-सुने हवयं। उन बताइन के धारमिक प्रवृत्ति के नारायण प्रसाद जी सबल सिंह चौहान के संगे-संग अउ आने लेखक मन के किताब मनके घलोक खूब अध्ययन करयं, अउ उन सबके निचोड़ ल लेके वोला अपन पंडवानी के प्रस्तुति म संघारंय।


    पंडवानी शब्द के प्रचलन

नारायण प्रसाद जी ल लोगन भजनहा कहंय, ये हा ये बात के परमान आय के वो बखत तक पंडवानी शब्द के प्रचलन नइ हो पाये रिहिस हे।  पंडवानी शब्द के प्रचलन उंकर मन के बाद म चालू होय होही। काबर के आज तो अइसन जम्मो गायक-गायिका मनला पंडवानी गायक के संगे-संग अलग-अलग शाखा के गायक-गायिका के रूप म चिन्हारी करे जाथे। जइसे कापालिक शैली के या फेर वेदमती शाखा के गायक-गायिका के रूप म।


    नारायण प्रसाद जी अपन संग म एक सहयोगी घलोक राखयं, जेला आज हमन रागी के रूप म जानथन। रागी के रूप म उंकरेच गांव के भुवन सिंह वर्मा जी उंकर संग म राहंय, जउन खंजेरी बजा के उनला संग देवयं। अउ नारायण प्रसाद जी तबूंरा अउ करताल बजा के पंडवानी के गायन करंय। उंकर कार्यक्रम ल देख के अउ कतकों मनखे वइसने गाये के उदिम करंय, एमा सरसेनी गांव के रामचंद वर्मा के नांव ल प्रमुखता के साथ बताये जाथे। फेर उनला वो लोकप्रियता नइ मिल पाइस जेन नारायण प्रसाद जी ला मिलिस।


    रतिहा म गाये बर प्रतिबंध

नारायण प्रसाद जी के लोकप्रियता अतका जादा बाढग़े रिहिस हवय के उनला देखे-सुने खातिर लोगन दुरिहा-दुरिहा ले आवंय। जिहां उंकर कार्यक्रम होवय आसपास के गांव मन म खलप उजर जावय। एकरे सेती चोरी-हारी करइया मन के चांदी हो जावय। जेन रतिहा उंकर कार्यक्रम होवय वो रतिहा वो गांव म या आसपास के गांव म चोरी-हारी जरूर होवय। एकरे सेती उनला रतिहा म कार्यक्रम दे खातिर प्रतिबंध के सामना घलोक करना परीस। एकरे सेती उन पुलिस वाला मनके कहे म सिरिफ दिन म कार्यक्रम दे बर लागिन।


     एक मजेदार घटना के सुरता गांव वाले मन आजो करथें। बताथें के महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र म उंकर कार्यक्रम चलत रिहिसे। उहों ले चोरी-हारी के शिकायत मिले लागिस। अंगरेज शासन के पुलिस वाले मन उनला ये कहिके थाना लेगें के वो ह कार्यक्रम के आड़ म खुद चोरी करवावत हे। बाद म असलियत ल जाने के बाद उनला छोड़ दिये गेइस। उन 18 दिन तक जेल (थाना) म रहिन, अउ पूरा 18 दिन उहाँ पंडवानी सुनाइन. तहाँ ले उनला छोड़ दिए गिस. जानबा राहय के उंकर पंडवानी के कार्यक्रम ह चारोंमुड़ा होवय, उन सबो डहर जावयं।


    प्रशासनिक क्षमता

नारायण प्रसाद जी एक उच्चकोटि के कलाकार अउ सांस्कृतिक कार्यक्रम  के पुरोधा होय के संगे-संग प्रशासनिक क्षमता रखने वाला मनखे घलोक रिहिन हें। उन अपन जिनगी के अखिरी सांस तक गांव पटेल के जि मेदारी ल निभावत रिहिन हें। एकर संगे-संग गांव म अउ कुछु भी बुता होवय त अगुवा के रूप म उन हमेशा आगू रहंय।


     लगातार 18 दिन तक कथापाठ

अइसे कहे जाथे के पंडवानी या महाभारत के कथा ल लगातार 18 दिन तक नइ करे जाय। एला जीवन के आखिरी घटना के संग जोड़े जाथे। फेर नारायण प्रसाद जी ये धारणा ल झूठलावत अपन जिनगी म दू पइत ले 18-18 दिन तक पंडवानी के गायन करीन हें। एक पइत जब उन शारीरिक रूप ले बने सांगर-मोंगर रिहिन हें, तब पूरा बाजा-गाजा के संग करे रिहिन हें, अउ दूसरइया बखत जब उंकर शरीर उमर के संग कमजोर परे ले धर लिये रिहिस हे, तब बिना संगीत के सिरिफ एकर वाचन भर करे रिहिन हें।


     अइसे बताये जाथे के पहिली बखत जब उन 18 दिन तक पंडवानी के गायन करे रिहिन हवयं तब ये अफवाह फैल गे रिहिस हावय के ये 18 दिन के गायन के तुरते बाद उन समाधि ले लेहीं, एकरे सेती उन 18 दिन तक गायन करत हावंय। काबर ते अइसन गायन ल जीवन के अंतिम समय के घटना संग जोड़े के बात जनमानस म रिहिस हे। एकरे सेती उनला देखे के नाम से चारोंमुड़ा ले जनसैलाब उमड़ परे रिहिस हे।  दूसरइया बखत जब उन 18 दिन तक पंडवानी के गायन करीन तेकर बाद उन खुदेच जादा दिन तक जी नइ पाइन, कुछ दिन के बाद ही उन ये नश्वर दुनिया ल छोड़ के सरग सिधार देइन।


   मठ अउ जनआस्था

हमर समाज म अइसे चलन हवय के घर-गिरहस्ती के जिनगी जीने वाला मनके देंह छोंड़े के बाद उनला मरघट्टी म  लेग के आखिरी क्रिया-करम कर दिये जाथे। फेर नारायण प्रसाद जी के संग अइसन नइ होइस । उनला मरघट्टी  लेगे के बदला गांव के तरिया पार म मठ बना के ठउर दे गइस। अउ सिरिफ अतकेच भर नहीं उनला आने गांव-देंवता मन संग संघार लिये गइस। अब गांव म जब कभू तिहार-बार होथे त गांंव वाले मन आने देवी-देवता मन के संग म उंकरो मठ म दीया-बत्ती करथें, अउ उंकर ले गांव अउ घर खातिर सुख-समृद्धि मांगथें। अइसे कहे जाथे के सन् 1974 म 4 दिसंबर के जब उन सरग सिधारीन तब उंकर उमर करीब 80 बछर के रिहिस हवय। सियान मन बताथें के तिंवरा लुवई के बखत उन सरग लोक वासी होइन.


पारिवारिक स्थिति

नारायण प्रसाद जी के वंशवृक्ष के संबंध म जेन जानकारी मिले हे तेकर मुताबिक उंकर सियान के नांव मुडिय़ा राम वर्मा रिहिस हे। फेर नारायण प्रसाद जी, नारायण जी के बेटा होइस घनश्याम जी, अउ घनश्याम जी के बेटा होइस पदुम जी। पदुम जी के दू झन बेटा हवयं संतोष अउ निलेश जउन मन अभी घर के देखरेख करत हवंय।


इहां ये बताना जरूरी लागथे के नारायण प्रसाद जी के बेटा घनश्याम घलोक ह अपन सियान सहीं कथा वाचन करे के कोशिश करयं, फेर उन बिना संगीत के अइसन करंय। उंकर बाद के पीढ़ी म पंडवानी गायन या वाचन डहर कोनो किसम के झुकाव देखे ले नइ मिलिस। आज उंकर चौथा पीढ़ी के रूप म संतोष अउ निलेश हवंय, फेर इंकर पूरा बेरा सिरिफ खेती किसानी तक ही सीमित हे। एकरे सेती हमला नारायण प्रसाद जी के संबंध म वतका जानकारी नइ मिल पाइस, जतका मिलना रिहिस हे। कहूं उंकर वारिस मन घलोक ये रस्ता के रेंगइया रहितीन या लिखने-पढऩे वाला होतीन त पंडवानी के ये आदिगुरु आज लोगन के बीच अनचिन्हार बरोबर नइ रहितीन, पूरा देश-दुनिया म उंकर सोर-खबर रहितीस।


-सुशील भोले 

संजय नगर , रायपुर 

मो/व्हा. 9826992811

भाव पल्लवन-- चतुरा ल केकरा नइ चाबे।

 भाव पल्लवन--



चतुरा ल केकरा नइ चाबे।

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कोनो भी काम बुता ला सोच-समझ के थोकुन दिमाग लगा के करइया ला नुकसान उठाये ला नइ परय।ओहा अनचेतहा मा होवइया कष्ट ले तको बाँच जथे।केकरा ला चतुराई ले पकडे़ मा वो चाब नइ पावय।केकरा पकड़इहा हा वोकर धियान ला भटकाके अपन एक हाथ ला आगू कोती अइसे देखा के जना मना उही मा पकड़ही, दूसर हाथ ले पाछू कोती ले वोकर दूनो डाढ़ा ला चप ले चपक के पकड़ लेथे।केकरा बेचारा ये चतुराई ला समझ नइ पावय। कई झन तो केकरा ला पकड़े बर काड़ी ला वोकर आगू मा लाथें तहाँ ले केकरा हा कसके काड़ी ला दूनों डाढ़ा मा चाबत हँव कहिके जमिया लेथे।केकरा पकड़इहा मनखे हा समझ जथे के अब वो कामा चाबही तहाँ ले बिन खतरा के पकड लेथे। अब के जमाना मा तो केकरा पकड़े बर किसम-किसम के फाँदा उदगरित होगे हे।

  अइसनहें पहलवान मन, खेलाड़ी मन,राजनेता मन बुद्धि लगाके अइसे दाँव चलथें के विरोधी हा समझ झन पावय अउ वोला जीत मिल जवय। 

     कुछ मनखें अइसे चतुरा होथें के छल-कपट करत रथें। अपन उल्लू सीधा करे बर कोनो ल धोखा देवई ल अपन चतुराई समझथें। आनी-बानी के प्रपंच रचके सीधा-सादा मनखें मन ला मनमाड़े ठगत रहिथें। बाते-बात के अइसन जाल बुनथें के सीधा-सादा मनखें वोमा फँस जथें।अइसन चतुरा मन सहायता करत हँव कहिके उल्टा लूट लेथें। ये मन फ्राड होथें। फ्राडगिरी हा सँहराये के चतुराई नोहय भलुक बेइमानी के चिनहा अउ पाप करम आय।कतकोन नेता मन के वादा,व्यपारी मन के विज्ञापन अइसनहेच चतुराई होथे।

  कहे जाथे के --आदमी ला एकदमेच सीधा-सादा घलो नइ होना चाही ।अइसन जादा सिधई हा भोकवापन कहाये ला धर लेथे।सीधा पेड़ हा पहिली कटा जथे।तेकरे सेती सियान मन कहिथें-ये दुनिया के ठग-जग मन ले बाँचे बर समझदारी वाला  चतुरा होना जरूरी हे।जिनगी ला बने ठीक-ठाक चलाये बर,ठग-फुसारी ले बाँचे बर हुशियार होना चाही।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

सुरता// जब गोरसी तापत अंगाकर दमोरन..

 सुरता//

जब गोरसी तापत अंगाकर दमोरन.. 

    तब जाड़ ह हमर मन बर तिहार बरोबर जनावय. अघ्घन-पूस दू महीना तो गजबे निक जनावय. हमर गाँव-गंवई म ए बेरा ह धान मिंजई के बेरा होथे. धान मिंजई माने बेलन खेदना अउ बीच-बीच म बेलन ले उतर के चारों मुड़ा बगरे पैर म उलानबाटी खेलना. 

    गाँव म किसान-किसानीन, बनिहार-कमईया सबोच के दिनचर्या बियारा म पैर बगराना, बेलन फॉंदना, कलारी म खोभा मारना, धान के दाना मन झरझें, त पैरा ल झर्रावत हेरना अउ पैरावंट म गॉंजत जाना, पैर के झरे जम्मो धान मनला सकेल के एक तीर म रास मढ़ाना, फूल-पान नरियर चघा के हूम-धूप देना. तेकर पाछू फेर वोला काठा म राम ले लेके सरा (1 ले 20) तक के गिनती गिनत नापना. एक सरा माने एक खॉंड़ी पूर जाय त फेर एक बाजू म वोकर खातिर एक मुठा धान के कुढ़ेना मढ़ा देना. अइसने एकक मुठा करत बीस मुठा हो जावय, त फेर एक गाड़ा (बीस खॉंड़ी) के वो सबो कुढ़ेना ल एक तीर सकेल दिए जाय.

    घर के सियान- सियानीन मन तो अतकेच म चिथियाय राहंय, फेर हमन कूद-फॉंद अउ एती-वोती धूम-धड़ाका म राहन. सूत के उठन तहाँ ले बियारा के आगू म गड्ढा खान के बनाए कौड़ा म आगी तापना. थोकिन चरचराए असन लागिस तहाँ ले मुखारी चगलत तरिया जाना, फेर उहाँ नहाए के पहिली घठौंदा म बगरे चिरी मनला सकेल के भुर्री बारना. भुर्री के दगत ले धरारपटा तरिया म कूद के निकलना अउ झटपट कपड़ा पहिर के फेर भुर्री तापना.

   घर म आवन त घीव चुपरे अंगाकर रोटी बर झपेट्टा मारन. अउ देखन त अंगाकर के फोकला अतका मन हमर बॉंटा म राहय अउ वोकर जम्मो गुदा मनला हमर बिन दॉंत के भोभला बबा खातिर अलगिया दे राहय. हमन बस गोरसी तापत फोकला अतका ल झड़कन तहाँ फेर स्कूल के बेरा हो जावय.

    संझा स्कूल ले लहुटे के पाछू फेर बियारा म धान मिंजाय बर बगरे पैर म चलत बेलन म चढ़ना, बीच-बीच म उलानबाटी खेलना चालू हो जावय. कभू-कभू बियारा म गाड़ा ल पैरा म तोप के रतिहा के रखवारी करइया मन बर बनाए कुंदरा म खुसरना, उहाँ माढ़े जिनिस मनला देखना-हुदरना बस अतकेच म बेरा पहा जावय.

    मुंधियार अस जनावय त फेर घर कोती जाना, चिमनी अंजोर म गुरुजी मन घर म लिखे-पढ़े बर कुछू अढ़ोय राहय तेला सिध पारन. फेर रतिहा बियारी के पाछू डोकरी दाई जगा कहानी सुनना. सबो भाई-बहिनी गोरसी के आंवर-भांवर बइठ के कहानी सुनन. एक झन कोनो ह हुंकारू देवय. हमर तो कहानी सुनत ही नींद पर जावय, कतका जुवर कोन ह हमला खटिया म ढनगा दिस तेकरो गम नइ मिलय.

   इतवार के छुट्टी के दिन के दिनचर्या ह थोरिक अलगे राहय.  ए दिन बिहनिया गोरसी तापत अंगाकर रोटी दमोरे के पाछू खेत डहार जावन. कोनो मिठहूं असन बोइर के पेड़ म चढ़ना, कोनो पाके असन दिखत बोइर वाले डारा ल हलाना, फेर खाल्हे म उतर के पेंठ के दूनों खीसा म खसखस के बोइर ल भरना तहाँ ले खेत म उल्होए तिंवरा भाजी ल सुरर-सुरर के हकन के कोल्हान नरवा कोती बढ़ जावन. कभू कभू तो सबो संगी तिंवरा भाजी ल रॉंध के खाए खातिर तेल-फूल जइसे जम्मो जिनिस मनला अपन-अपन घर ले धर ले राहन अउ नरवा खंड़ म आगी सिपचा के वोला रॉंध के खावन. ए किसम वो छुट्टी के दिन हमर मन के तिंवरा भाजी अउ बटकर के पिकनिक पार्टी हो जावय.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

भाव पल्लवन-- तेल न तेलई, बरा-बरा नरियई

 भाव पल्लवन--


तेल न तेलई, बरा-बरा नरियई

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बरा खाना हे त उरिद दार के पीठी भर ले काम नइ चलय ।वोला बनाये बर तेल अउ तेलई(कड़ाही),चुल्हा-आगी के तको जरूरत होथे। समान अउ इंतजाम अधूरा हे त बरा खाहूँ---बरा खाहूँ--झटकुन बरा चाही --चिल्लाये भर ले नइ मिल जवय।कतेक झन अइसने बिना मतलब के चिल्ल पों मचावत रहिथें। 

  कोनो चीज के साध करना बुरा नोहय फेर साध तभे पूरा होथे जब वोकर लइक सराजाम होथे--बढ़िया तैयारी होथे।

  जे मन बिना तइयारी के कोनो प्रतियोगी परीक्षा म बइठहीं वो मन ला भला सफलता कइसे मिलही? टूटहा--अधमरहा मन ले, आधा-अधूरा  तइयारी करे ले सफलता मिलबेच नइ करय।कतेक झन तो दसों साल ले तको अइसनहे तइयारी करत रथें अउ बार-बार असफल होके निराश हो जथें।ये मन ला तो शांत मन ले कारण ला खोजके निवारण के उपाय करना चाही। 

                    किसान हा बिना बिजहा, खातू-माटी अउ बिना पानी के खेती करही त फसल कहाँ ले लूही? जमीने रहे भर ले कुछु नइ होवय ।फसल बर माटी म माटी मिलके,पसीना ओगारे बर परथे।

  अइसने कोनो आयोजन के सफलता बर वोकर हर पहलू मा ध्यान देके मुकम्मल तइयारी करे बर लागथे।छोटे-छोटे जिनिस मन के चेत रखे बर लागथे नहीं ते कभू-कभू अइसे देखे म आथे के उद्घाटन के समे, दिया बारेच के बेरा छिहीं-छिहीं माचिस खोजे ल पर जथे।कार्यक्रम म बाधा आये ले हल्ला-गुल्ला तो होबे करथे अतिथि मन के आगू म आयोजक मन ला मूँड़ी गड़ियाये  ल पर जथे।

   मनखे के जिनगी ल संग्राम कहे जाथे। ये युद्ध म कई प्रकार के बाधा-बिपत्ति ले लड़े बर लागथे।लड़ना हे त साहस अउ हथियार दूनों चाही। सैनिक ह युद्ध के मैदान म बिना हथियार के लड़े बर जाही त मरही धन बाँचही तेन ह गुने के बात आय।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद छत्तीसगढ़

नवा सरकार के शपथ-ग्रहण छत्तीसगढ़ी मा होही!?

 *नवा सरकार के शपथ-ग्रहण छत्तीसगढ़ी मा होही!?*


छत्तीसगढ़ी ला राजभाषा बने सोलह बछर बीत गे हे। फेर न तो राजकाज के भाषा बन सकत हे, न पढ़ाई के माध्यम बन सकत हे, न बने ढंग ले येला मान-सम्मान मिलत हे। आज घलो कतरो लोगन छत्तीसगढ़ी मा गोठियाय बर नाक-कान सिकोड़त रथे। का अइसने मा छत्तीसगढ़ी भाषा के बढ़वार होही। जम्मो छत्तीसगढ़िया मन अपन महतारी भाखा के मान रखत छत्तीसगढ़ी ला अंतस ले नइ स्वीकारबो, तब कइसे बनही। अपन भाखा-बोली बोले मा काके लाज।


अभी समाचार पत्र, फेसबुक, व्हाट्सएप मा देखे बर मिलत हे, कि का हमर नवा सरकार के शपथ ग्रहण हा छत्तीसगढ़ी मा होही? बात तो बिल्कुल सोला आना हे। बिल्कुल होना चाही, अउ काबर घलो नइ होना चाही? आखिर छत्तीसगढ़ी हमर महतारी भाखा आय। जम्मो नवा-जुन्ना 90 विधायक मन ला छत्तीसगढ़ी मा शपथ लेना चाही। विधायक मन खुदे कहय कि हमन छत्तीसगढ़ी मा शपथ लेबो। फेर अधिकारी मन खुद लेवाही।


का छत्तीसगढ़ी गोठियाय बतराय के ठेका गाँव के लोगन मनके, अउ शहरिया छत्तीसगढ़िया मनखे मनकेच आय का। सबो झन के तो आय। का छत्तीसगढ़ी हा दिखावटी भाखा आय? ये चुनाव के पहित वोट माँगे के भाखा भर नोहे। 'छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया' केहेच में कहीं नइ होय। अभी येला शपथ-ग्रहण मा साबित करे के बढ़िया मौका हे। का होगे आठवीं अनुसूची मा नइ जुड़े हे। हमर राजभाषा तो आय ना।


हमर एम.ए. छत्तीसगढ़ी छात्र संगठन के संगवारी मन ऋतुराज साहू जी के संग सरकार ल छत्तीसगढ़ी मा शपथ ग्रहण बर ज्ञापन देहे। ये खबर पढ़के बढ़िया लगिस। महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर सराहनीय प्रयास हे। वरिष्ठ साहित्यकार सुशील भोले, अजय अमृतांशु के फेसबुक मा घलो अइसने बात चलत हे।। मोर चिन्हारी छत्तीसगढ़ी राजभाषा के संरक्षण नंदकिशोर शुक्ल घलो डॉ. रमन सिंह जी ले मिल के छत्तीसगढ़ी मा शपथ-ग्रहण बर जोर देहे। संग मा जम्मो छत्तीसगढ़ी प्रेमी मनके अइसने कहना हे।


अब अवइया शपथ-ग्रहण मा देखे बर मिलही, कि का हमर नवा राजनेता मन छत्तीसगढ़ी मा शपथ लिही, कि आठवीं अनुसूची मा नइ होय के बहाना करही, कि हिंदी मा लेके राजभाषा के हिनमान करही। हमर महतारी भाखा के कोन कतिक मान-सम्मान ला रखहीं। कोन कतिक छत्तीसगढ़िया हवे, ये सब ला देखे बर मिलही। असली छत्तीसगढ़िया के पहिचान के अवसर आही। अब शपथ-ग्रहण के खचित अगोरा हवे।


हेमलाल सहारे

मोहगाँव(छुरिया)

राजनांदगाँव

मील के पथरा बनही महाकाव्य श्री सीताराम चरित


 मील के पथरा बनही महाकाव्य श्री सीताराम चरित


           प्रभु श्रीराम के जीवन गाथा ला सबले पहिली आदिकवि बाल्मीकि संस्कृत म लिखिन। 16 वीं सदी मा महाकवि तुलसीदास जी रामचरित मानस ला अवधि मा लिख के जन जन म लोकप्रिय कर दिन। येकर अलावा सैंकड़ों के संख्या मा कई भाषा मा रामायण लिखे गिस। छत्तीसगढ़ी भाषा मा घलो ये उदिम होइस । छत्तीसगढ़ी भाखा म कपिलनाथ नाथ कश्यप सहित कुछ अऊ लेखक मन के रामायण आ चुके हव फेर वोमा छन्द के अभाव रहिस। परंतु बादल जी के महाकाव्य पूर्णतः छन्दबद्ध अउ व्याकरण के दृष्टिकोण ले पूर्णतः परिमार्जित हवय।  

          ये महाकाव्य मा कुल 9 सर्ग (पूजा के फूल) हवय जेमा श्रीराम जन्म से लेके रावण के वध अउ श्रीराम के राज्याभिषेक तक के संपूर्ण घटना के चित्रण हवय। महाकाव्य के आधार छंद दोहा अउ चौपाई हवय। कुल 98 प्रकार के छन्द के प्रयोग ये महाकाव्य मा होय हवय । मानस मर्मज्ञ बादल जी के अथक मेहनत अउ भागीरथ प्रयास ये महाकाव्य मा साफ दिखाई देथे। महाकाव्य के शुरुवात गणपति वंदना से होथे। तदुपरांत श्रीराम, हनुमान,माता सरस्वती,भोलेनाथ,आदि शक्ति मां दुर्गा,अउ गोस्वामी तुलसीदास जी के वंदना हवय। महाकाव्य मा रामायण के संपूर्ण घटनाक्रम के चित्रण करत श्रीराम के राज्याभिषेक के संग महाकाव्य के समापन करे हवय। मर्मस्पर्शी चित्रण होय के कारण पाठक शुरू ले अंत तक भावुक होके येला पढ़ही। 

            महाकाव्य 309 पेज के हवय जेमा कुल 98 प्रकार के  छंद - दोहा,सोरठा,चौपाई,अनुष्टुप छंद, अमृतध्वनि,कुण्डलिया,त्रिभंगी,आल्हा, ताटक,रूपमाला,हरिगीतिका,सरसी, कामरूप,जनक,सार छंद,उल्लाला,पद पादालुक,जयकारी,प्रमाणिका,आनंदवर्धक,वीर छंद, कज्जल,शक्ति,विधाता,कुकुभ, लावणी, मंगलवत्थु,मधु वल्लरी, बरवै, त्रिभंगी, शार्दुल विक्रडीत,विष्णुपद,मधु मालती,रोला,शंकर छंद,जयकारी छंद,वसंत तिलिका,डिल्ला,मालिनी,शोभन, भुजंग प्रयात,पुनीत,कुण्डल, हाकलि,रास, 

राधिका,मनोरम,मुक्तामणि छंद,शुद्ध गीता,शिव छंद,तोटक,सिंधु छंद,सुखदा छंद,गोपी,गगनांगना छंद,दिगपाल,मानव, चण्डीका,त्रिलोकी छंद,अखण्ड छंद,अनुगीत, विंध्वकमाला,वंशस्थ, कामना,वर्णिक, राधिका, तोमर,निश्छल,दीप, आनंदवर्धक, सुगति,श्रृंगार, पद्धरी छंद, डिल्ला, छप्पय, विजात छंद,त्रोटक, अरिल्ल,तामरस छंद,शशि वंदना, तोमर,गीतिका,उपजाति, भुजंगप्रयात वर्णिक छंद के अलावा 

मनहरण घनाक्षरी,रूप घनाक्षरी बउरे गे हवय। सवैया में -दुर्मिल,मदिरा, बागीश्वरी,अरविंद सवैया, सुन्दरी,मुक्तिहरा, मत्तगयन्द,सर्वगामी,सुमुखी,चकोर, महाभुजंगप्रयात, मोद,वाम, मत्त्त, अरसात अऊ सुखी सवैया कुल 12 प्रकार के सवैया के सुग्घर प्रयोग हवय।

             महाकाव्य के भाषा सरल अऊ बोधगम्य हवय। रस छन्द अउ अलंकार के प्रयोग ले महाकाव्य के खूबसूरती म चार चाँद लगगे हवय। घटना के कलात्मक चित्रण मा बादल जी माहिर हवय। बादल जी के ये अनुपम कृति छत्तीसगढ़ी साहित्य मा अपन अलग स्थान बनाही। ये महाकाव्य मा अतेक अकन छंद के प्रयोग करके छत्तीसगढ़ी साहित्य ला पोठ करे के सुग्घर उदिम बादल जी करे हवय। छत्तीसगढ़ी म प्रकाशित उत्कृष्ट महाकाव्य खातिर बादल जी ला अंतस ले  बधाई अऊ शुभकामना।


कृति  -   श्री सीताराम चरित

लेखक -  चोवाराम वर्मा 'बादल'

प्रकाशक -शिक्षादूत ग्रंथागार प्रकाशन,

              नई दिल्ली

समीक्षक -अजय अमृतांशु

छत्तीसगढ़ी साहित्य के एक ठन कलगी: वीर हनुमान सिंह प्रबंध काव्य*


 *छत्तीसगढ़ी साहित्य के एक ठन कलगी: वीर हनुमान सिंह प्रबंध काव्य*


छत्तीसगढ़ी साहित्य के दिन बहुरत हे। अब छत्तीसगढ़ी म नरवा नदिया, घाट घटौंदा, डोंगरी-पहाड़, खेत-खार अउ माटी-महतारी के संग शृंगार के गीत भर नइ लिखे जावत हे। आज के साहित्य म मनोरंजन भर नइ रहिगे हावय। अब गंभीर किसम के साहित्य लिखे जावत हे। इतिहास अउ संस्कृति ल सरेखत अउ आज के संघर्ष ले भरे जिनगी के जीजिविषा संग मनखे के चिंतन अब साहित्य के विषय बनत हे। साहित्य के सब विधा म एकर प्रभाव अउ असर दिखत हे। बस जरूरत हे कि हम उन ल पढ़न। हम कखरो लिखना ल पढ़बो तभे तो कोनो हमरो लिखे ल पढ़़ीं। आज भले किताब बिसा के पढ़इया मन के गिनती कमती दिखत हे। फेर व्हाट्सएप अउ फेसबुक जइसन सोशल मीडिया म साहित्य पढ़े जावत हे।

           पढ़न अउ पढ़ावन के इही चलन ल आगू बढ़ाय म बड़का उदिम हे, श्री अरुण कुमार निगम जी के छंद के छ परिवार। जेन ऑनलाइन कक्षा के रूप म संचालित होथे। एहर गुरुकुल आय। जेन ह 'सीखबो अउ सिखाबो' के मूल मंत्र ल ले के सरलग आगू बढ़त हे। २०१६ ले अब (२०२३) तक २०० ले आगर अनगढ़ कविता लिखइया मन छंद के साधना करत हें अउ उँकर लेखन छंद साधना के पटरी म सरलग चलत हे। निगम जी के मिहनत रंग लावत हे। छंद के छ परिवार गुरु-शिष्य के परम्परा संग आगू बढ़त उँकर सपना ल पूरा करत हे। जेन हमर पुरखा जनकवि श्री कोदूराम दलित के नेंव धरे आय। अरुण कुमार अपन सियान ददा कोदूराम दलित जी के विरासत ल खड़े करे हें। जे आज एक आंदोलन बनगे हावय। जेकर प्रभाव अउ चर्चा अब छत्तीसगढ़ के साहित्य म दिखत हे, होवत हे। इही गुरुकुल के भट्टी (साधना) म तपे अउ निखरे साधक आँय मनीराम साहू 'मितान'। जे मन मंचीय कवि के रूप म तब चर्चित रहिन अउ आजो छत्तीसगढ़ के चारों खुँट म अपन मंचीय प्रतिभा के लोहा मनवाथें। वीर रस ले सनाय गीत ले जिहाँ श्रोता मन के रग-रग म जोश भरथें, उहें पारम्परिक सुर म साजे गीत ले मनोरंजन कराथें अउ जागरण के गीत सुनाथें। सुधि श्रोता मन बर गंभीर किसम के रचना के पाठ घलव करथें।

         छंद म लिखना कोनो खेल तमाशा नोहय। एक कोति छंद के नियम ल साधना रहिथे, त दूसर कोति भाव पक्ष ल सजोर रखे के चुनौती रहिथे। भाव पक्ष लोगन ल झटकुन समझ म आथे। अइसन म भाव पक्ष श्रोता अउ पाठक बर जरूरी हे। अइसे भी कविता बर भाव पक्ष पहिली आवश्यकता बताय जाथे अउ कतकोन बुधियार मन एला पहिली शर्त मानथें। ए दूनो पक्ष कहे के मतलब शिल्प अउ भाव पक्ष म मितान कोनो मेर समझौता करत नइ दिखँय। मितान दूनो पक्ष म बड़ सावचेती ले लेखन करथें। अभ्यास अउ लगन के संग शब्द भंडार बाढ़थे। शब्द भंडार के मामला म मितान धनी आवँय, कहि सकथँव। कतको नँदावत शब्द इँकर रचना म जीयत-जागत हें। छंद म लिखई ल कतकोन मन छँदाना समझ के दुरिहा भागे लगथें। छंद म फँसना मतलब भाव पक्ष ले दुरिहाना ए। भाव नइ समा सकय कहिके अपन कमजोरी ल छुपाथें, फेर मितान ल तो छंद लिखे म मजा आथे। तभे तो इन मन रोज नामचा के गीत लिखे के संग प्रबंध काव्य लिखे बर अपन पाँव उसालिन अउ एक नहीं तीन-तीन ठन खंड काव्य लिख डरिन। हीरा सोनाखान के, महापरसाद अउ छत्तीसगढ़ के मंगल पांडे : वीर हनुमान सिंह। खंड काव्य कोनो विशिष्ट विषय ऊपर लिखना होथे। जे ल कई खंड/खँड़ म बाट के लिखे जाथे। अतके च नइ, हर खँड़ बर आने-आने छंद के नियोजन करे बर परथे। अइसन सिरिफ उही कर पाथें जे छंद म पकड़ रखथें अउ ओकर बने जानकार होथें।

           छंद भर साधे ले रचना के सुघरई नइ आवय। छंद के संग अलंकार अउ रस के सँघरे ले रचना श्रेष्ठ बन जाथे। कालजयी हो जथे। अइसन करे म शब्द चयन के बड़ भूमिका होथे। शब्द चयन ह विषय वस्तु अउ प्रसंग ल जीवंत बनाय म साहमत होथे। एकरे ले अलंकार जगर-मगर होथे। रस के धार बोहाय लगथे।  मुहावरा अउ हाना के प्रयोग ले रचनाकार पाठक के तिर पहुँचथे। गद्य साहित्य एकर बिना बिन लिपाय-पोताय घर बरोबर होथे। हाना मुहावरा के प्रयोग पद्य म करना बड़़ कठिन होथे, काबर कि छंद विधान के पालन करना होथे, फेर मँजे छंदकार बर ए कोनो कठिन बुता नोहय। ए बात के प्रमाण आय मितान अउ एक सबूत देवत हे उँकर सिरजाय प्रबंध काव्य वीर हनुमान सिंह। प्रबंध काव्य म प्रसंग के मुताबिक रस तभे आ पाथे जब नायक के जिनगी के वृत्तांत रचनाकार तिर होवय। जीवन वृत्त बर अध्ययनशील अउ जिज्ञासु होना जरूरी होथे। जतके जादा जानबा रही, ओतके सुघर लिखना हो पाही। जानबा सकला करे बर खोजी होना जरूरी हे। मितान पेशा ले मास्टर आय। मास्टर के स्वाभाविक गुण होथे अध्ययनशीलता अउ खोजी। मितान के इही गुण के चलत ए खंडकाव्य संग्रह रूप म आज अपन पाठक तिर पहुँचे के यात्रा पूरा कर ले हावय। 

         मितान किसनहा परिवार के बेटा आय। किसानी म घलव भरपूर बेरा देथे। खेती अपन सेती, कहे गे हे, एकर मतलब हे मिहनत ले पाछू नइ हटना।  इही मिहनत उँकर साहित्य साधना म घलव देखे ल मिलथे। ऐतिहासिक अउ शोधपरक विषय के भुइँया म अध्ययन के बीजा डार लगन अउ मिहनत के खातू पानी ले मितान खंडकाव्य के बड़ पोठ खेती करे हावय। जेकर दाना आज आपके हाथ म हे।

        मोर नजर म ए प्रबंध काव्य शिल्प अउ विधान के पैडगरी म कोनो मेर डगमगावत लड़खड़ावत नइ लगत हे। भाव पक्ष के जतका गोठ करन ओतके कम हे। तभे तो ए किताब के भूमिका म प्रणम्य गुरुदेव अरुण कुमार निगम लिखे हवँय- "मनीराम साहू जी वीर रस आधारित ये किताब म कहूँ भी वीर छंद माने आल्हा छंद के प्रयोग नइ करके ये बात ल साबित करिन हें कि बिना आल्हा छंद के घलो वीर रस आधारित प्रबंध काव्य लिखे जा सकथे।"

          प्रूफ रीडिंग के कमी के चलत ही कोनो-कोनो तिर व्याकरणिक चूक नजर आवत हे। इशारा अउ इसारा दूनो के प्रयोग 47/41 पृष्ठ। समासिक शब्द खासकर द्वंद्व के चिह्न। कुछ एक जघा म विधान ह पटरी ले बेपटरी हो गे हावय।

          टंकन के चलत अर्थ स्वाभाविक अर्थ ले भिन्न हो गे हे। 

          *तपत हवँय ये गोरा मन हा,  मौत उँमन ला भागे हे।*

          एमा भा गेहे/ भा गे हे होना चाही। अभी भागना के अर्थ व्यंजित होवत हे। जबकि भा जाना ले भा गे हे होना चाही।

          आख्यानक काव्य या प्रबंध काव्य बर जरूरी रचनाकार के उड़ान (कल्पना) सिरतो म वीर हनुमान सिंह म हावय। जे पाठक के नस-नस म उतर जाही।

           हमर भारतीय संस्कृति म कोनो भी बड़का काज के शुरुआत करत खानी अपन ईष्ट देव मन ल भजे जाथे। उन ल सुमरन करे जाथे। जेमा काज के सुफल होय बर असीस ले जाथे। ए ह हमर साहित्य म घलव दिखथे। प्रबंध काव्य म इही ह मंगलाचरण के रूप म नजर आथे। जेकर ले काव्य के शुरुआत अउ कतको मन हर खँड़ के शुरुआत मंगलाचरण ले करथे। मितान के ए प्रबंध काव्य म मंगलाचरण दस किसम के छंद म देखे ल मिलथे। जेन म उन मन अपन इष्ट देवी-देवता, जनम भुइयाँ, गुरु सहित बड़का मन ले असीस माँगत वीर हनुमान सिंह के गाथा ल जन-जन तिर पहुँचाय के शुभ काज के श्री गणेश करें हें।

     *दोहा* 

उमापूत बुधनाथ गा, हे गजकरन कवीस।

भकला मनी मितान ला, देदे बुद्धि असीस।

     *अनुष्टप*

दाई उमा भवानी वो, अंतस मा उम्हाव दे।

बीर जस लिखौं मैं हा, आरुग पोठ भाव दे।

रहै न खोट एको माँ, देदे असीस दास ला।

तैं सीघ-सीघ दे माता, अक्षर शब्द रास ला।

तैं हा सुने सबो के माँ, सुनले मोर आज वो।

मूरख ये मनी हावै, दे माई काज साज वो।

         संग्रह के पहलइया खँड़ मनहरन खँड़ नाँव के मुताबिक भारत के गौरवशाली इतिहास के बखान करत मन हर लेथे। स्वतंत्रता संग्राम के शंखनाद ले लेके छत्तीसगढ़ के योगदान ल बढ़िया चित्रण हावय। वीर हनुमान के परिचय सुग्घर ढंग ले कराय गे हे।

        दउँड़य राजपुताना शोणित, ओकर जब्बर छाती मा।

        जेन लगाइस जीव दाँव मा, माटी रक्षा खाती मा।।

         दूसर खँड़ म अत्याचारी अंग्रेज मन के अत्याचार ले वीर सपूत मन के हिरदे म धधकत पीरा हे। ए पीरा छत्तीसगढ़ के वीर सपूत शहीद वीर नरायन सिंह ल दे गे फाँसी के घलव आय।

       आय दिसम्बर के दस तारिट, करिया घोर उदासी के।

       जन-जन ला पीरा देवइया, वीर नरायन फाँसी के।।

         विजया खँड़ म गुलामी ले मुक्ति बर अँग्रेज़ मन ले विजय बर दृढ़ निश्चय के जउन नेंव धरे हे। वो कवि के कल्पना हो सकत हे, फेर कवि के ए उड़ान वीर हनुमान सिंह के संकल्प ले आने नइ हे। ए खँड़ म मितान के आखर-आखर भारत माता के सपूत मन के अंतस् के आरो देवत हे। स्वतंत्रता बर ललकार के सुर हे। वीर हनुमान सिंह के संगी-साथी मन म स्वतंत्रता बर अलख जगाय के आह्वान हे। दृष्टांत देखव-

बंदुक ला सब रखव सँवारे, टेंये राखव खाँड़ा ला।

तन के गरमी रखव बढ़ाये, फटकन झन दव जाड़ा ला।

जबर गुलामी साँकड़ काटे, साथ तुँहर मोला चाही।

एक दुये मा बनय नहीं गा, होवय बल हाही-माही।

       कृपाण खँड़ के ए ताटंक छंद देखव-

       खँधँय बगावत करबो कहि जब, हनुजी के सँगवारी गा।

       सोचय बम्बर बारे बर हनु, मेटे बर अँधियारी गा।

       इहाँ अँधियारी के मतलब गुलामी ले हे अउ बम्बर बारे के तार जुरे हावय, स्वतंत्रता के उजियार ल जन-जन के अंतस् म जलाय ले।

       कृपाण के अर्थ ल सार्थक करत ए खँड़ म हनुमान सिंह अउ उँकर संगवारी मन भारत माँ के बइरी मन ल उँकर नानी याद कराय हे।

      बोलत जय जय भारत माता, बीच पेट लउहे जोंगै।

       तुरत उठा सँगवारी खाँड़ा, आल पाल वो दे भोंगै।

      खींचत वो खाँड़ा ला तुरते, वार दुसर कर देवै गा।

      कहत वार ये सिंह फाँसी के, बदला ला ले लेवै गा।


       इहें रण क्षेत्र के लड़ई के जीवंतता के दृश्य उकेरे म मितान के कलम पाछू नइ हे-

       टकरावँय जब एक दुसर ले, खाँड़ा मन हा भारी जी।

        लागय बिजली लउकत हे का, उठय अबड़ चिंगारी जी।

        वीर सपूत हनुमान सिंह ल समर्पित ए संग्रह वीर रस म पगाय हे, अइसन म वीर के शौर्य वर्णन खातिर जरूरी अलंकार सहज रूप ले इहाँ झलकथे। कवि के कल्पना सुघ्घर हे।

      पचवइया अउ आखिरी खँड़ 'रूप खँड़' म छत्तीसगढ़ के मंगल पांडे वीर हनुमान सिंह अउ उँकर संगी मन के जे रूप और शौर्य के गुनगान गे हे वो सउँहत स्वतंत्रता दिलाय म कोनो कसर नइ छोड़तिस।

       सउँहे यम के दूत असन जब, उँकर रूप हा लागै गा।

        डर के मारे बइरी काँपत, भिरभिर भिरभिर भागैं गा।।

        तभे एक भिंड़त म गोली बारूद के कमतियाय ले वीर सपूत मन के मन म उदासी आगे फेर हिम्मत ले भारत माँ के रक्षा बर आखिरी साँस तक लड़िन अउ वीर हनुमान ल उहाँ ले सुरक्षित निकल संगठन ल अउ मजबूत करे बर भारत माँ के किरिया दिन। हनुमान सिंह मन मार के उहाँ ले निकलिन अउ दुबारा जबर कोशिश करिन एकर सुघ्घर वर्णन हे, पर आगू कोनो पुख्ता खबर नइ मिलिस।

       मनीराम साहू 'मितान' अपन अध्ययन अउ शोध ले जतका हो सकिस वीर हनुमान सिंह के चरित गाथा ल छंद बद्ध समेटे के उदिम करिन अउ दुमदार दोहा के संग छेवर करत लिखिन- 

        सिधगे पूरा पाँच खँड़, सुग्घर नाने-नान।

        लिखके जस हनुमान के, होगे धन्य 'मितान'।।

        भाग ला वो सँहरावै।

        मया जम्मो के पावै।

        स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन के जीवन चरित ल  खंड काव्य के रूप म सिरजाय के, मितान के ए उदिम के जतका बड़ई करे जाय, ओतके कमती रही। उँकर ए उदिम ले अउ कतको सेनानी मन के गाथा कोति कवि मन के चेत जाही अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य ल नवा अउ उत्कृष्ट रचना मिले के आस बँधथे।

          छत्तीसगढ़ के मंगल पांडे: वीर हनुमान सिंह, प्रबंध काव्य छत्तीसगढ़ी साहित्य के एक कलगी साबित होही। एकर ले छत्तीसगढ़ी साहित्य मान पाही। ए किताब छत्तीसगढ़ी साहित्य ल नवा उँचास दिही। वीर हनुमान सिंह के वीरता ल सरेखत मनीराम साहू 'मितान' के मिहनत अउ लेखनी ल नमन। उँकर ए प्रयास स्तुत्य हे, बंदनीय हे। 

      

रचना: *छत्तीसगढ़ के मंगल पांडे*: वीर हनुमान सिंह

रचनाकार:  श्री मनीराम साहू 'मितान'

प्रकाशक: शिक्षादूत ग्रंथागार प्रकाशन नई दिल्ली

प्रकाशन वर्ष: 2023

पृष्ठ : 96

मूल्य:  299/-

कापीराइट : रचनाकार

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पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह (पलारी)

जिला - बलौदाबाजार भाटापारा छग.

मो. 6261822466

नानूक कथा - छैँईहा

 नानूक कथा -

     छैँईहा 

देख बहू  -तोर मन म का हे नई जानन? हमन  तोला गरु लागत होबोन त जाव  l तुमन जिंहा जाव तुंहर मर्जी हे  l जिंहा रहे के l ठोस निर्णय सुनावत ससुर कहिस l दिन रात उठा -पटक,बर्तन भाड़ा के  कचराई अउ भांय -भांय के बोली ले तंगा डरेस l  


             बुढ़त खानी म सहे के ताकत नई रहय  मन टोरा  के मन घलो कहिस l ओकर मन रहिस  हर हर कट कट ले हमी मन निकल जातेंन,तेन बने रहिसl

अपन आदमी सुखी ला समझावत रहिस l पर कोठा ले आथे तेन  ला हमर कोठा पर अस लगथे l जी जबो मनटोरा

तिपो के खा लेबो l फेर तपनी ताप नई सहावय l

आजकल के लइका मन ला अलग रहे घूमे फिरे के आजादी चाही l बाहिर म रही त पता चलही l कतका ऐठन हे उलर जही दू एच दिन म l ले अब चुप रह जादा रोस झन कर - मनटोरा कहिस l  अपन छैँईहा बनाके देखाय l गारी देय भर ला आथे  थोथानाहीं ल -थोरको नई घेपय  l मनटोरा अतके कहिके अपन मन ला मढ़ा लीस l

उही दिन ले बहू के मुँह म चपका धरागे l लोगन मन का कइही मोला?

नई कह सकत हे जाथन तोर घर ला छोड़ के l

सास ससुर के छैईहाँ बाहिर म नई मिलय l जान डरिस l


मुरारी लाल साव

कुम्हारी

कहानी--मौन मुक्का

 

कहानी--मौन मुक्का

                             

                                   चन्द्रहास साहू

                              मो .8120578897



गाॅंव भर मा सनसनी दउड़गे आज। डोंगरी मा लाश मिले हाबे। मोला तो जानबा नइ रिहिस फेर गोसाइन बताइस  तब जानेंव। धान बेचे ला गेये रेहेंव सोसायटी। रात दिन उहां ओड़ा ला टेकाये रहिबे तब धान बेचाही.....!

 

                      जेवन के पाछू सुतत हंव अउ गुनत हंव अब कोन मरगे रे , कोन फांसी अरो डारिस ते। कायर झन बनो रे । जीये ला सीखो । गुनत -गुनत मोला सुध आये लागिस बिसालिक के। ओखरे तो पाॅंच छे दिन ले आरो नइ हावय। पचपन साठ बच्छर के किसान मोर संग पढ़े हावय। पांचवी मा फेल होगे अउ पढ़ई छोड़ दिस। हमजोली हावय तभो ले मोला कका कहिथे।

"ठाकुर घर के बइला बनके कब तक कमाबे बिसालिक ! नानमुन कोनो करा भुइयां बिसा लेतेस ।''

" हमन जूठा खवइया आन मालिक ! भगवान हमर हाथ के डाढ़ मा अइसने लिखे हावय । ओखर बिना पत्ता नइ हाले। कब देखही हमर कोती ला ते ?''

 मोर गोठ ला सुनके काहय बिसालिक हा संसो करत। जम्मो ला सुरता करत हंव।

                     आज बिसालिक अब्बड़ उछाह मा रिहिस । ओखर संग गाॅंव के आने किसान मन घला रिहिन। जेन ला जुटहा काहय तौन मन आज मालिक बनत हावय। मजदूर मन  बित्ता भर भुइयां बिसा लेथे ते मालिक ला अतका झार लागथे , जइसे मेंछा के चुन्दी ला पुदक डारे हावय। आज तो सिरतोन दो पाॅंच दस अउ बारा एकड़ फारेस्ट भुइयां ला खेत बना के सरकार हा देवत हावय  एक -एक झन ला। हम पातर जंगल ला खेत बनावत हन काबर..? तुंहर विकास बर।  अब तुंहर दुवार तुंहर सरकार  हावय काबर ..? तुंहर विकास बर।  सिरमिट के जंगल बनत हावय काबर..? तुंहर विकास बर। तरिया ला पाटके स्विमिंग पुल बनावत हावन.. काबर ?  तुंहर विकास बर। वन मंत्री गरीब भूमिहीन मजदूर ला वन अधिकार पट्टा बाँटत हावय। अउ नारा लगवावत हावय।

           आज मंत्री जी  लबरा नइ रिहिस। सिरतोन मा जंगल ला काटके  चौमासा के आगू  खेत बना डारिस। चैतू बुधारू  रमतू असन मन ला किसान भूमिस्वामी बना दिस। बिसालिक ला घला पाॅंच एकड़ खेत मिलिस। 

        सिरतोन किसान के पछीना भुइयां मा चुचवाथे तब सोना उगलथे खेत हा। भलुक पछिना अउ पानी के रंग एक्के होथे तभो ले जब सिंचाई के पानी मा पछीना मिंझरथे तब ओखर रंग हरियर हो जाथे। चारो कोती हरियर- हरियर दिखत हे। लहरावत धान बड़का -बड़का खेत चाकर मेड़, मेड़ मा राहेर अउ घपटे तिली के पौधा। आज बिसालिक के संग ओखर खेत गे रेहेंव। पोरा तिहार आय न ! धान ला चिला खवाय ला गेये रेहेंव।

"तेहां तो हाथ मार देस बिसालिक अतका धान मा कोन पोठ नइ होही..?''

"हाॅंव कका ! सब तुंहर असीस आवय।'' 

               बिसालिक के खेत ला देख के सिरतोन अकचका गेंव। काली के बंजर भुइयां मा आज अतका फसल लहरावत हे हरियर - हरियर । मेड़ के डिपरा मा छेना मा खपत आगी ला मड़ायेंन। फुलकाछ के लोटा के पानी ले आचमन करेंव। धूप दशांग अउ गुड़ के हुम देयेंव। गुड़हा चिला के नानकुन कुटका ला आगी देव मा अरपन करेंव। सिरतोन हमर कतका सुघ्घर नेग हावय।  किसान हा गभोट धान  अन्न्पूर्णा दाई ला बेटी मानके सधौरी खवाथे । 

"सदा दिन बर छाहत रहिबे अन्न्पूर्णा दाई ! अपन मया बरसाबे ओ ! कोठा कोठार अउ कोठी मा मेछरावत आबे ओ ! हमरो भाग ला जगाबे ओ !''

 अब्बड़ आसीस मांग डारेंव। पाॅंच चिला ला कुटका - कुटका करके आदर ले खेत मा परोसत केहेंव।

 "खेत तो बोये हंव कका ! फेर टोंटा के आवत ले करजा बोड़ी हो गेये हाबे ।''

"अब बड़का काया बर बड़का चददर ओढ़े ला पढ़ही भई। छुटा जाही जम्मो करजा हा।''

बिसालिक के गोठ सुनके केहेंव।

"कोन जन कका .....? तोर बहुरिया नेवनिन रिहिस तब मंगल सूत्र ला किसानी करे बर मांगेंव अउ आज ले नइ चढ़ा सकेंव। एकोदिन ठोसरा नइ मारिस गोसाइन हा फेर सगा - पहुना, बाजार -हाट,मेला-मड़ई, बर-बिहाव मा बजरहा डालडा के जेवर ला पहिरके जाथे तब लजाथे। फेर का करही..? तरी - तरी रो डारथे। मुॅॅंहू फटकार के येदे ला खाहूं नइ किहिस। अपन भुखाये रहिथे तभो ले मोला जेवन करवाथे। ओखरे सेती ये फसल ला बेंच के गोसाइन बर गुलबंद बिसाहूं कका !'' 

बिसालिक किहिस।

खेत किंजरत हंव अउ बिसालिक बतावत हावय।  कभु मुचकावत हावय तब कभु उदास हावय। चेहरा कभु झक्क ले दमक जाथे तब कभु मुरझा जाथे गरीबी अउ अभाव के गोठ करथे तब।

"फुटहा करम के फुटहा दोना,लाई गवां गे चारो कोना। अइसन होगे हावय कका ! थोकिन पइसा सकेलथन अउ घर मा कोनो न कोनो बुता आ जाथे सिराये बर। तीस हजार सकेले रेहेंव गोसाइन के गुलबन्द लेये बर । अबक-तबक जवइया घला रेहेंव सोनार दुकान। उदुप ले दमाद के फोन आगे। बाबू जब ले तोर बेटी हमर घर मा आये हावय तब ले हमर घर मा गरीबी के चमगेदरी उड़ावत हावय। बेटा अउ गोसाइन के जर बुखार मा मोर जैजात सिरावत हावय। आज घला मोर डेरउठी के दीया ला झन बुतावन दे बाबू। मोला पइसा दे...। दे देंव। एक दरी फेर पइसा सकेलेंव । बहुरिया हरू-गुरु होइस। छट्टी बरही , नत्ता-गोत्ता सयनहिन दाई के खात -खवई अउ टूरी के पढ़ई के फीस, जम्मो मा उरकगे फेर गुलबन्द नइ बिसा सकेंव।''

बिसालिक बतावत रिहिस अउ हमन खेत किंजरत रेहेंन। बम्बूर रुख  ला देखेंव। डोड़का के नार छिछले रिहिस। पियर फूल अउ झूलत डोड़का। टोरे लागेंव। 

"लइका मन तो बने कमावत होही बिसालिक ..? संसो झन कर सब सुघ्घर हो जाही । बहुरिया ला गुलबन्द पहिरा डारबे।''

"कोन जन कका...? टूरा मन ला पुछेस!'' बिसालिक मौन मुक्का होगे। फेर किहिस। 

"एक झन ट्रक चलाथे अउ दुसर हा गरवा चरातिस ते जादा कमातिस..। मास्टर हावय। शिक्षा मितान। दूनो के दुये हाल। ट्रक वाला ला बरजथो झन पी रे मंद महुआ। मुॅंही ला भोकवा कहिथे ।  इही तो कलजुग के अमरित आवय ददा ! तभे तो अस्पताल ला प्रावेट डॉक्टर हा चलाथे अउ सरकार हा दारू भठ्ठी ला। अब्बड़ फरजेंट गोठ-बात मा मोला चला देथे। भलुक ओखर गोसाइन लइका ला चलाये के सामरथ नइ हावय अउ एसो सरपंच बनके पंचायत ला चलाहूं कहिथे। बिसालिक बताइस अपन बड़का लइका के बारे मा।

"ले बिसालिक बने अउ समझाबे मंद महुआ ला झन पीये अइसे।''

मेंहा केहेंव। मेड़ मा जागे पटवा अउ अमारी भाजी ला टोरत हन अब दूनो झन। शिक्षा मितान  बने हावय पढ़ लिख के नान्हे टूरा हा। कमती वेतन वाला हा रेगड़ा टूटत ले कमाथे अउ जादा वाला हा मोबाइल मा गेम खेलथे स्कूल मा । अइसना बताथे लइका हा। अब्बड़ सिधवा । कइसनो होवय  लइका लोग ला पालत पोसत हावय। महीना पुट चाउर पठो देथंव । मोला लागथे इही लइका हा नाव के अंजोर करही कका ..।

बिसालिक के चेहरा दमकत रिहिस आस मा।

"कका ! सब लइका मन अब अपन - अपन खोन्दरा सिरजा डारिस। बस नान्हे नोनी के हाथ मा दू गांठ के हरदी लगा देतेंव ते मोरो कन्या दान के नेंग हो जातिस। अब्बड़ संसो रहिथे । कोनो गरीब अलवा-जलवा लइका मिलही ते बताबे कका !

"हाॅंव ।''

बिसालिक के गोठ सुनके हुंकारु देये हंव। जाम पेड़ मा छछले लट्टू कस फरे  तुमा ला टोरे के उदिम करत हंव अब अउ बिसालिक फेर बतावत हावय।

"लइका के दाइज डोली देये बर एको पइसा नइ सकेले हंव कका ! पांव पखारे बर फुलकाछ के लोटा थारी लेये हंव। भांवर बर सील अउ जोरन बर कंडरा ला  झांपी बनवाये बर केहे हंव।  ... अउ  धौरी बछिया ला घला राखे हंव। फेर सगा सोदर बरतिया घरतिया बइठे बर ठौर नइ हावय कका !''

बिसालिक बताये लागिस सुरता कर - कर के। 

''घर तो बने हावय का बिसालिक । आवास योजना मा नाव आये हे कहिके पीछू दरी बताये रेहेस।

"नाव तो आये हे कका   फेर....।'' 

दमकत चेहरा फेर बुतागे बिसालिक के ।

"का होगे ?''

"काला बताओ कका ! पहिली क़िस्त मिलिस  जुन्ना घर ला उछाह मा उझारेंन अउ ईटा पथरा के नेंव निकालेंन अउ धपोड़ दे हावन अभिन। तीन बच्छर होगे थुनिहा गड़िया के  झिल्ली - मिल्ली ला छा के गुजारा करत हावन। एसो बनाहूं कका पक्का घर चाहे सरकार पइसा देये कि नही....। मोर धरती मइयां हा मोला उबारही गरीबी ले । लइका के बिहाव हो जाही घला ।''

".... अउ  तोर गोसाइन के गुलबन्द ?''

"अब तो डोकरी होगे हाड़ा अउ मांस ला साजे के दिन नइ हे अब कका ! का गुलबंद पहिरही गोसाइन कही लिही "लबरा'', सुन लुहूं मेंहा।''

बिसालिक अब बिद्वान महात्मा बरोबर गोठियावत हावय। बोर के हरियर बटन ला मसकिस । बम्बाट पानी निकलिस । पैलगी करिस गंगा मइयां ला। मोही के धार ला बहकाइस अउ अब घर आगेंन दुनो कोई धान ला देख के उछाह मा मगन होवत।

 कुकरी अपन अंडा ला कइसे सेथे  ? पांख मा लुका के।  चियामन ला कइसे राखथे ? महतारी लइका मन ला कइसे बटोर के जतन के राखथे ?  बस वइसना जतन करत हावय बिसालिक हा अपन खेत के, धान के, परिवार के।


"जतका के धान नइ बोये हे लइका लोग ला तियाग देहे । कका ! नान्हे देवर बाबू ला पठो दे तो, खेत ले खोज के ले आनही ।''

बिसालिक के गोसाइन आवय। आज रात के जेवन के बेरा आके किहिस। मोर नान्हे टूरा हा गिस। गाॅंव के निकलती अमरा लिस । खुटूर - खुटुर ठेंगा ला बजावत ठुकुर-ठुकुर खाॅंसत बीड़ी के सुट्टा मारत आवत रहिथे बिसालिक हा रोजिना । 

बिसालिक अउ गोसाइन एक उरेर के झगरा होतिस तेखर पाछू जेवन करतिस।

           ..... अउ सिरतोन भुइयां हा अतका धान उछरिस की देखनी होगे गाॅंव भर। पटवारी हा तो क्राप कटिंग के प्रयोग घला करिस। खेत ले कोठार अमरगे। कोठार ले कोठी जवइया हावय।

          कोठार के मंझोत मा धान के रास (हुंडी)

माड़े हावय। भुर्री के करिया गोल घेरा सोनहा धान अउ बीच के करिया मोती के माला बरोबर। मोखला काॅंटा नजर डीठ ले बाॅंचे बर। काठा कलारी जम्मो । कोठार के तीर मा पैरा के पैरावट । अन्नपूर्णा दाई ला परघा के कोठी अउ ससराल पठोये के तियारी होये लागिस। 

बिसालिक के मन गमके लागिस। मोर जम्मो करजा छुटा जाही नोनी के बिहाव अउ घर...। जम्मो सुघ्घर हो जाही।

                  

                  रतिहा तीन चार बजे ले सोसायटी मा दू दिन ले ओड़ा ला टेकाये रिहिस। कतका लड़ई झगरा तना - तनी सहिस अपन कुरता अउ पगड़ी के बलि दिस । तब टोकन मिलिस। ओ तो बिसालिक के किस्मत जब्बर हावय तभे कनिहा के ओन्हा बाचिस नही ते कतको झन तो ...?

                 इंदर भगवान तो अखफुट्टा आवय सबरदिन । बोता घरी मा भोम्भरा जरथे अउ लुवे के घरी पूरा बोहाथे। अउ बिसालिक कोनो राजा  नोहे कि ओखर भाग जब्बर रही..। अउ न ही मालगुजार आवय । धान के सोनहा रास हा ताम्बई रंग के हुंडी बनगे। भलुक अकरस पानी अतरगे रिहिस फेर बिसालिक के आँखी के पानी नइ अटाये हे। सुरुज नरायेन के किरपा ले सुखाइस अउ सोसायटी मा लेगगे किराया के टेक्टर मा।

"ये धान बिकने लायक नही है। सब बदरंग और पाखर हो गया है।'' 

ससन भर देखिस जम्मो धान ला अउ आँखी ला नटेरत किहिस साहब हा। मॉइश्चर मीटर ले धान के नमी घला नाप लिस। जौन हा जादा रिहिस।

"ले लेव साहब ! येहां धान भर नोहे मोर सपना आय। मोर जिनगी आय....।''

बिसालिक करेजा ला निकाल के किहिस फेर साहब तो दाऊ संग ठठ्ठा करत हावय।

 "साहब ! दाऊ के धान ला बिसा लेव वइसना मोरो....?''

साहेब कलेचुप।

"साहेब ! बोकरा भात खवा दुहूं महूं हा...।''

चभलावत पान के पीक ला थुकिस साहब हा। बिसालिक के गोड़ मा घलो परिस थूक हा फेर का करही ...?

दुनो हाथ जोर के अरजी करिस बिसालिक हा। फेर कलेक्टर मंत्री अउ राजधानी जाये के सुझाव दिस साहेब हा।

" का करहूं साहब  ? मोर मा अतका ताकत नइ हावय। न मेंहा खा सकंव न जानवर ला खवा सकंव।  न बेच सकंव । घुरवा मा घला फेक नइ सकंव तब करहूं ते का....? हा ....फेर जाहूं..... तेहां जिहां पठोबे तिहां जाहूं ।''

 सिरतोन करेजा निकाल के चिचियाइस बिसालिक हा ।

                

            जम्मो ला गुनत-गुनत नींद परगे। चारबज्जी उठेंव। तियारी करेन जाये के।  भिनसरहा होगे । अब जंगल के रस्दा नाहक के डोंगरी ला चढ़त हावन। छे झन पुलिस वाला। लाश ला देखइया जवनहा गाॅंव वाला अउ मेंहा। पुलिस वाला अब पहिली देखइया जवनहा बर गुर्रावत हाबे।

"का करे बर अतका दुरिहा आये रेहेस रे ? लकड़ी जंगली जानवर के तस्करी तो नइ करस न..? करत होबस ते बारा बच्छर बर धांध दुहूं जमानत घला नइ होवय।''

"जब देख डरेस कलेचुप नइ रहितेस । मर जातिस सड़ जातिस नही ते कुकुर कोलिहा खा डारतिस।''

"जिमकांदा खाये रेहेस का बे ! तोर मुॅंहूअब्बड़ खजवात रिहिस । अउ लाश घला छे सात दिन जुन्ना ..। यहुं हा बताये के कोई जिनिस आय ? ''

पुलिस वाला मन जवनहा ला चमकाये लागिस। जवनहा तो अतका चेत गे कि अब न लाश ला  का ...., कोनो ला एक गिलास पानी घला नइ पियाय। 

                         अभिन दूसरिया बेरा आवय मंद के भभका लेवत हावय पुलिसवाला अउ गाॅंव वाला मन। मंद पीये ले लाश नइ बस्साये कहिथे। अब अमरगेंन ओ ठउर मा।

                         ससन भर देखेंव। तेंदू रुख के तीर मा परे तुतारी अउ रुख मा बॅंधाये नायलोन के डोरी ला। डोरी मा गठान अउ गठान मा अरझे झूलत लाश। काया के उप्पर कोती उघरा अउ कनिहा मा नानकुन पटकू सूती के। आँखी के जगा मा मांस के लोथा अऊऊ गोटारन कस झूलत आँखी। कोनो जिनावर कोचक के निकाल देहे। आधा हाथ नइ हे कोलिहा चफल दे होही। नाक के जगा नाक नही, कान के जगा कान नही। पेट तुमा कस फुले छाती मा हाड़ा नही... अउ कही हावय ते बिलबिलावत किरा- सादा सादा। एक,दो , हजार , लाख नही...करोड़ो के संख्या मा सादा किरा। रुख के डारा मा किरा। डोरी मा लबर - लबर रेंगत किरा अउ लाश नइ झूलत हावय अब जइसे किरा हा फांसी के डोरी मा झूलत हावय। लाश के एक कुटका संग अब लंझका-लंझका गिरे लागिस। भुइयां भर बिगरे लागिस किरा अब। मेहत्तर के गोड़ मा चढ़त हे। बुधारू के धोती मा अउ लाश.. हवा के झोंका आइस अउ  फेर एक कोती गिरगे। अकरस पानी .. अउ बस्साई...पेट खदबदाये लागिस । ..उच्छर डारेंव। अपन उम्मर भर नइ देखे रेहेंव अइसन लाश। क्षत- विक्षत लाश। मास्क अउ हेन्ड ग्लव्स पहिरके लाश ला उतारत हावय । लाश नही ....?  किरा ला उतारत हावय। टूरा आवय कि टूरी, माईलोगिन आवय कि बबा जात । कुछु नइ जानबा होवत हावय। 

"वो तो विधान सभा प्रश्न उठ गया है इसलिए इतना मसक्कत करना पड़ रहा है वरना कितने ही लाश को गुमशुदगी अउ लावारिश बना के रफा दफा कर देते है।'' 

पंचनामा बनावत किहिस पुलिसवाला हा। प्लास्टिक के थैली मा भर डारिस अउ लेबल लगा दिस अज्ञात लाश के। फोरेंसिक जांच बर राजधानी जाही । तुतारी ला घला जोरत हावय।

                  कोन जन का पता चलही ते...? बिसालिक घला  कहाॅं गेये हावय ते ? कलेक्टर करा गेये हावय कि मंत्री कि राजधानी। संसो होये लागिस। मन अब्बड़ बियाकुल हावय टीवी चालू करेंव। गाना सुनके मन नइ करिस। फिलिम देखे के मन नइ करिस। समाचार लागयेंव मछरी बाजार कस हांव-हांव होवत रिहिस। कुकुर झगरा। लोकतंत्र के पुजारी आवय ये मन। किसान आत्महत्या के आंकड़ा बतावत रिहिस खुर्सी के सपना देखइया मन। अउ खुर्सी वाला मन सबुत मांगत रिहिस। हमर छत्तीसगढ़ मा एको झन किसान आत्महत्या नइ करे हे...?  मेंहा मौन मुक्का हो गेंव। एकदम चुप कलेचुप। टीवी ला बंद करेंव अउ आरो कोती धियान लगायेंव। बिसालिक के गोसाइन आवय अब्बड़ बम्फाड़ के रोवत रिहिस।

" मोर राजा! मोर दाऊ  ! ते कहा लुकागेस धनी ....?''

थोकिन मा थक गे अउ वहु होगे मौन मुक्का...।


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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com



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समीक्षा


      कहानी - मौन मुक्का


कहानीकार - चंद्रहास साहू 


   समीक्षक - ओमप्रकाश साहू "अंकुर "


साहित्य के गद्य विधा म  कहानी एक प्रमुख विधा हरे. कहानी के माध्यम ले एक कोति समस्या ल उजागर करे जाथे  त दूसर कोति येकर माध्यम ले सीख देये जाथे. समाज अउ सरकार के धियान दिलाय जाथे कि ये समस्या ल उलझाव झन बल्कि सुलझाव. इही म भलाई हे. समाज अउ सरकार के" मौन मुक्का" होय ले बिपत्ति ह सुरसा सहिक अउ बाढ़थे. अइसने किसान के पीरा ल  महतारी भाषा छत्तीसगढ़ी म  लिखे हावय  युवा कहानीकार भाई चंद्रहास साहू ह अउ कहानी के नांव हे "मौन मुक्का".

        मौन मुक्का कहानी ल पढ़ के प्रेमचंद के कहानी "पूस की रात" , अउ उपन्यास" गोदान" के चित्र बरबस सामने आ जाथे. बाबा नागार्जुन ह अपन कविता "अकाल और उसके बाद" के माध्यम ले अकाल के मार्मिक चित्रण करे हावय.  कतको लेखक,कवि मन किसान के पीरा के बरनन करे हावय.अइसने किसान के पीरा के मार्मिक चित्रण हावय कहानी " मौन मुक्का" म. येमा एक भारतीय किसान के जांगर टोर कमाई के बखान हे त दूसर कोति करजा -बोरी म डूबे किसान  के चिंता- फिकर ल उकेरे हावय. दाऊगिरि अउ सरकारी बेवस्था के पोल खोले गे हावय. बेईमानी, कामचोरी अउ भ्रष्टाचार के कुवां ह कत्तिक गहरा हे वहू ल बताय गे हावय.लोक तंत्र के बात करथन त विपक्ष अउ पक्ष म कइसे तनातनी होथे. सत्त पक्ष कइसे सबूत ल दबा देथे. टीवी म डिबेट के स्तर कत्तिक गिर गे हावय. विकास के नांव म प्रकृति के जउन बिनाश होवत हे. आज के नवजवान संगवारी मन मंद- महुआ के फेर म पड़ के कइसे अपन जिनगी अउ घर वाले मन के जिनगी ल नरक बना के रख देथे. सरकार ह शिक्षा के नांव म कभू शिक्षाकर्मी त कभू शिक्षा मितान जइसे योजना लाके बेरोजगार मन के मजाक उड़ाथे. कर्मचारी अउ गुरूजी मन के अलग -अलग कैटेगरी बना के फूट डालके राज करथे. घोषणा पत्र म वादा करे रहि तेला पांच बछर म घलो पूरा नइ करय. दू चार महीना म पगार देथे अउ ओपीएस के जगह एनपीएस लाके कर्मचारी मन ल अब्बड़ टेंसन देथे.ये सबके बरनन देखे ल मिलथे " मौन मुक्का " म.

    मौन मुक्का के प्रमुख पात्र हरे बिसालिक. येहा गरीब किसान हरे अउ उमर हे पचपन - साठ बछर के जउन ह पहिली दाऊ घर चरवाहा लगे. सासन के योजना के मुताबिक बिसालिक ल घलो खेती किसानी बर बंजर बन भूमि देये गे हावय. खेती अपन सेति नइ ते नदिया के रेती कहे गे हावय.बिसालिक ह जांगर टोर कमाके बंजर भुइयां ल अब्बड़ उपजाऊ बना डरिन. ये जगह कहानीकार ह सुघ्घर बरनन करथे कि " सिरतोन किसान के पसीना भुइयां म चुचवाथे तब सोना उगलथे खेत हा".

     त दूसर कोति किसान के पीरा के बरनन करत बिसालिक के माध्यम ले कहिथे -" खेत तो बोये हंव कका! फेर टोंटा के आवत ले करजा- बोड़ी हो गेये हावय ". येमा एक भारतीय किसान के पीरा के मार्मिक चित्रण देखे ल मिलथे.ऊपराहा मउसम के मार ह किसान मन बर दुब्बर बर दू असाड़ हो जाथे. 

  बने धान लुवई के बेरा म मउसम कइसे पेरथे वोकर बरनन करत कहानी ह कहिथे -" इंदर भगवान ह तो अंखफुट्टा आय सबर दिन. बोता घरी म बोम्भरा जरथे अउ लुवे के घरी पूरा बोहाथे." मउसम के मार ह किसान ल मार डारथे. किसान के कमर तोड़ के रख देथे बेमउसम बारिश ह. चिंता फिकर म न दिन के चैन मिलथे अउ न रात म नींद आथे. अइसन बिपत्ति के बेरा के बरनन करत कहानीकार ह लिखथे - फुटहा करम के फुटहा दोना,लाई गंवागे चारो कोना ". ये जगह कहानीकार ह सुघ्घर हाना के प्रयोग करके कहानी के भाषा शैली ल पोठ बनाहे. कइसे बछर भर के कमाई ह पानी के मोल हो जाथे अउ नंगत झड़ी के कारन धान ह खराब हो जाथे. ये जगह अपन पात्र बिसालिक के माध्यम ले प्रकृति के मार के मार्मिक बरनन करथे - " भलुक अकरस पानी अतरगे रिहिस फेर बिसालिक के आंखी के पानी नइ अटाये हे."

      जब बिसालिक ह अपन धान ल बेचे बर सोसायटी ले जाथे त उहां साहब ह धान ल रिजेक्ट कर देथे. ये जगह कहानीकार ह भ्रष्टाचार ल उजागर करत गरीब किसान बिसालिक के माध्यम ले कहिथे - " साहब! दाऊ के धान ल बिसा लेव वइसना मोरो....?

साहेब कलेचुप...? साहेब! बोकरा भात खवा दुहूं महूं हा ."  येहा सरकारी बेवस्था म ब्याप्त बेईमानी, भ्रष्टाचार ल उजागर करथे कि कइसे दाऊ के खराब धान ल साहेब ह बिसा लेथे अउ गरीब किसान मन ल खून के आंसू रोवाथे.येकर सेति थक- हार के आत्म हत्या जइसे कदम उठा लेथे. फांसी जगह म पुलिस वाले मन के बेवहार के सजीव बरनन कर के जब्बर व्यंग्य करे हावय कि संवेदना नांव के चीज नइ हे.


  कहानी के भाषा सरल अउ सहज हे. पात्र के अनुसार भाषा के चयन करे हावय. किसान ल ठेठ छत्तीसगढ़ी बोलवाय हे त सोसायटी के साहब बर हिंदी भाषा के प्रयोग करे हावय.कहानी लंबा हे पर पाठक वर्ग ल बने बांध के राखथे. कहानी के शैली नदिया के धार कस प्रवाहमयी हे. कहानी के शीर्षक ह  सार्थक हे. एक उद्देश्य हे कि भुइयां के भगवान कत्तिक हे परेशान. समाज अउ सरकार कब तक मौन मुक्का बन के किसान मन के पीरा ल नजर अंदाज करहू अउ कब तक बिसालिक जइसे गरीब किसान मन करजा -बोड़ी म डूबके आत्महत्या जइसे कदम उठात रहि. 

               ओमप्रकाश साहू "अंकुर "

             सुरगी, राजनांदगांव

मान* (नान्हें कहानी)

 *मान* (नान्हें कहानी)


जमील सेठ एतराब के बहुत बड़े वनोपज अउ अनाज के बैपारी रहय।चार पांच बच्छर पहिली परदेस ले आइस अउ बनेच गिराहिकी जमा डरिस।जिनिस के रेट बने देवय फेर काकरो ऊपर चार आना के विश्वास नी करय।अपन नौकर चाकर मन ऊपर घलो ओला भरोसा नी रहय।घेरी बेरी समान ल तौलावय।अपन आंखी में नजर भर देखय तभे पतियावय। रामलाल ओकर पोगरी गिराहिक रहय।सबर दिन के लेन देन चलत रहय।

एक दिन के बात आय। रामलाल कना हाट जाए बर नगदी पैसा नी रिहिस।एक झोला धान ला कोठी ले निकालिस अउ साइकिल के हेंडिल में अरो के जमील सेठ के दुकान पहुंचिस।जय जोहार अउ एती ओती के गोठ बात करत रामलाल के धान तउलागे।ओकर बाद जमील सेठ रामलाल ला सौ के नोट देवत किहिस-रामलाल भाई तोर धान के पैसा चार कोरी सत्रह रु बनत हे।तीन रु धरे होबस त दे। रामलाल किहिस-में तो जुच्छा हाट आय हंव सेठ!!पैसा धरे रतेंव त धान ला काबर बेंचतेंव। ले तोर तीन रुपिया ला हाट ले समान बिसा के लहुटत खानी अमर देहूं।

जमील सेठ किथे-बन जही रामलाल भाई!!फेर तोर गमछा ला छोड़ दे रतेस त बने होतिस।लहुटत खानी सुरता आ जतिस।

जमील सेठ के गोठ ला सुन के रामलाल ला गुस्सा आगे।ओहा जमील सेठ ला ललकारत किहिस-वा रे परदेसिया सेठ!!तोर दुकान मा तीन रुपिया बर में अपन सम्मान ला गिरवी रखंव।तें लेन देन करे के बाद चार दिन बाद पैसा देहूं केहेस कतको घांव।हम भरोसा करेन।अउ तें तीन रुपिया बर मोर गमछा रखबे।जा लान मोर धान ला तौल के वापस कर।सौ के नोट ला ओकर थोथना में फेंकत किहिस-मोला अपन इज्जत प्यारा हे!तोर पैसा ला तोर खींसा में राख!!!

अतका काहत नौकर कना गिस अउ अपन धान ला तौला के रामलाल झोला में धरिस अउ चलते बनिस।

जमील सेठ मुॅंहू फार के देखत रहिगे।


रीझे यादव

टेंगनाबासा (छुरा)

भाव पल्लवन-- घर म नाग देव, भिंभोरा पूजे ल जाय।

 भाव पल्लवन--


घर म नाग देव, भिंभोरा पूजे ल जाय। 

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मनखे के जिनगी मा कतका भटकाव भरे परे हे,गुने मा बड़ अचरज होथे। पूजा करे बर--आशिर्वाद पाये बर घर मा नागदेवता  हे तेला नइ जान के व्यर्थ मा खेत खार मा भिंभोरा खोजत बइहा-भुतहा कस घूमत रहिथे। नागदेवता हा एक प्रकार ले उदाहरण आय, असली बात तो मनखे के भटकाव ला फोरियाना आय।वो कभू माया के पिछू परे रहिथे ता कभू मायापति के पिछू।ए चक्कर मा वोकर हालत कस्तुरी मिरगा कस हो जथे। कहे गे हे के--

कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।

ऐसे घटी-घटी राम हैं दुनिया जानत नाँहि॥

वो हा सुख ला --आनंद ला ,देवता-धामी ला,भगवान ला नाना प्रकार के अंटा-टंटा मा,टोना-टोटका मा एती-वोती खोजत रहिथे। जबकि असली आनंद तो वोकरे तीर मा--वोकर हिरदे के खजाना मा--आत्मा मा भराये रथे। वोहा अज्ञानता मा परके वोला टमड़ के नइ देखय।भगवान के निवास स्थान तो आत्मा ला बताये गेहे।अइसे भी ईश्वर के सत्ता कण-कण मा हाबय। मनखे हा अपन एही आत्मज्ञान ला जगालिस त वोला पल भर मा तको पा सकथे। भटके के जरूरत नइ परय।संत कबीरदास जी ज्ञान के उजास फइलावत कहे हें--

मोकों कहाँ ढूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में। 

ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में। 

ना तो कौन क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग में। 

खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तलास में। 

कहैं कबीर सुनो भाई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में॥ 

   इही बात ला गोस्वामी तुलसीदास कहिथें के--

सिया राम मय सब जग जानी।

करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी।

    तीर्थ यात्रा,पूजा-पाठ सबके महत्व हे फेर कोनो चाहै ता अपने घर मा बिराजमान सब ले बड़े देवी-देवता माता-पिता के निश्छल सेवा करके जम्मों पुण्य के भागी हो सकथे। सब जीव जंतु के आत्मा मा ईश्वर के निवास मान के --सब संग अच्छा व्यवहार करके परमानंद के अनुभव कर सकथे। हर आत्मा मा परमात्मा हे।

सब घट मेरा साईंयां,सूनी सेज न कोय।

बलिहारी वा घट्ट की,जा घट परगट होय।।

🙏🙏


चोवाराम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

Friday 8 December 2023

सुरता 'मयारु माटी' के..

 






सुरता 'मयारु माटी' के.. 

  अइसन बेरा म छत्तीसगढ़ी भाखा म मासिक पत्रिका निकाले के बारे म सोचना, जब लोगन रायपुर जइसन शहर म छत्तीसगढ़ी गोठियाए तक म लजावंय. फेर जेन मनखे चेतलग होए के संग छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन म जुड़ जाय, अउ वोकरेच संग छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया के रंग म रंग जाय, तब तो अइसन सोचना कोनो किसम के अचरज वाले बात नइ हो सकय. 

   सिरतोन आय, तब वो बखत हमन ल छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया के छोड़ अउ कुछू नइ सूझत रहय. बस इही सोच म दिन पहा जावय के कइसनो कर के छत्तीसगढ़ी के सेवा कर लेतेन. वइसे तो मैं छात्र जीवन ले ही अलवा-जलवा लिख के खुदे पढ़ के खुश हो जावत रेहेंव, फेर सन् 1982 के आखिर म जब अग्रदूत प्रेस म काम करे बर गेंव, अउ 1983 ले जब अग्रदूत ह दैनिक के रूप म निकले लगिस, त उहाँ के साहित्य संपादक प्रो. विनोद शंकर शुक्ल जी ल मोर छोटे मोटे लिखे रचना मनला देखावंंव उन वोमा कुछू जोड़ सुधार के छाप देवंय. उही म मोर छपे रचना ल पढ़ के छत्तीसगढ़ी सेवक के संपादक जागेश्वर प्रसाद जी अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के सुशील यदु अउ रामप्रसाद कोसरिया जी मोर संग मिले बर अग्रदूत प्रेस आइन. तहाँ ले एकरे मन संग चारों मुड़ा के छत्तीसगढ़ी लेखक मन संग जुड़े बर धर लेंव. संग म पत्रकारिता म घलो जाना होगे. फेर आगू चलके अइसन संयोग बनिस के अपन खुद के प्रिंटिंग प्रेस घलो चालू कर डारेन. मन तो छत्तीसगढ़ी म एक पत्रिका निकाले के रहय, तेकर सेती पंजीयक, दृश्य एवं प्रचार निदेशालय, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय नई दिल्ली के कार्यालय म पत्रिका के रजिस्ट्रेशन खातिर चार-पांच अलग अलग नाॅव लिख के पठो देंव. महीना भर के बुलकते उहाँ ले मोर जगा चिट्ठी आगे, जेमा 'मयारु माटी' के नॉव ले तीन महीना के भीतर पत्रिका चालू करे के निर्देश रिहिस हे. 

   मैं तुरते प्रकाशन के प्रक्रिया म भीड़ गेंव. संग म चारों मुड़ा के छत्तीसगढ़ी लिखइया-पढ़इया मन ल सोर दे लगेंव. महीना भर के भीतर पूरा छत्तीसगढ़ के साहित्य जगत म एकर सोर बगरगे. कतकों झन छत्तीसगढ़ ले बाहिर रहइया मन के घलो पता-ठिकाना के आरो कराइन. उहू मनला, पाती भेजेंव.

    'मयारु माटी' के पहला अंक खातिर चारों मुड़ा ले रचना अउ शुभकामना आए लागिस. फेर वोमन म पद्य रचना ही जादा रहय. मैं शुरू ले पत्रकारिता ले जुड़े रेहे के सेती गद्य रचना के जादा मयारुक रेहेंव, एकरे सेती गद्य के विविध रूप एकर प्रकाशन खातिर चाहत रेहेंव. कतकों झन ल जोजिया के कहानी, नाटक, व्यंग्य, मुंहाचाही, आनी-बानी के लेख आदि लिखे बर काहंव. पहिली के एक दू अंक म तो महिंच ह कतकों किसम के रचना ल अलग अलग नांव म लिखंव, कतकों झन के हिन्दी रचना मन के अनुवाद घलो कर देवंव. वोकर बाद फेर भरपूर रचना आए लागिस, तब मोला वोमा छांट- निमार करे बर लग जावय.

    पहला अंक के छपई लगभग पूरा होए ले धर लिए रिहिसे, तब एकर विमोचन खातिर चर्चा होए लागिस. विमोचन कार्यक्रम म मैं कोनो नेता- फेता बलाए के पक्ष म नइ रेहेंव. आदरणीय हरि ठाकुर जी घलो कहिन- सिरतोन आय बाबू, अइसन पवित्र काम के शुरुआत कोनो पवित्र हाथ ले होना चाही. वो बखत मोर सबले बड़े सलाहकार आदरणीय टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी रहिन, वोमन सुझाव देइन के छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंच  'चंदैनी गोंदा' के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ल बलाए जाए. मोला उंकर बात जंचगे.

   मैं तो चाहते रेहेंव के जे मन के छत्तीसगढ़ी भाखा संस्कृति के बढ़वार म योगदान हे, उही मनला पहुना के रूप म बलाए जाय. रामचंद्र देशमुख जी के संग सोनहा बिहान के सर्जक दाऊ महासिंग चंद्राकर जी ल घलो बलाए के बात तय होगे.

    छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंच के दूनों पुरखा मन ले अनुमति ले खातिर उंकर घर जाए के कारज ल मैं टिकरिहा जी संग पूरा करेंव. इतवार के दिन दूनों झन रायपुर ले रेल म चढ़के दुर्ग पहुंचेन. उहाँ ले पहिली बघेरा जाए के गुनेन, लहुटती म दुर्ग तो फेर आना हे, त महासिंग दाऊ इहाँ हमा लेबो केहेन.

    बघेरा के पहुंचत ले बेरा बने चढ़गे रहय. टिकरिहा जी दूनों हमन देशमुख जी के घर पहुंचेन. वतका बेरा वोमन अकेल्ला कुर्सी म बइठे राहंय. उंकर आगू के टेबल म डाॅक्टर मन के कान म अरझा के मरीज के देंह ल टमड़े के जिनिस माढ़े राहय. तब तक मैं नइ जानत रेहेंव के वोमन लकवा के मरीज मन के इलाज घलो करथें कहिके. 

  उन टिकरिहा जी ल देखते तुरते कुर्सी ले खड़ा होके अगवानी करीन अउ तीर म माढ़े कुर्सी म बइठे बर कहिन. महू ल बइठे के इशारा करीन. वोकर बाद टिकरिहा जी उंकर जगा मोर परिचय बताइन, संग म छत्तीसगढ़ी म मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' निकाले के बात घलो बताइन. देशमुख जी बड़ा खुश होइन. टिकरिहा जी उनला विमोचन कार्यक्रम खातिर पहुना के रूप म पहुंचे खातिर पूछिन, त उन तुरते तैयार होगें. तहांले उंहचे दिन बादर घलो धरा डारेन के 9 दिसंबर 1987 दिन इतवार के संझा 5 बजे तात्यापारा रायपुर के कुर्मी बोर्डिंग म विमोचन कार्यक्रम ल राखबो कहिके. 

    दाऊ जी फेर पूछिन के अउ कोन कोन अतिथि रइहीं कहिके, त हमन बताएन के महासिंग चंद्राकर जी ल घलो बलाए खातिर सोचे हावन, अभी इहाँ ले लहुटती म उंकर जगा अनुमति ले खातिर जाबो, त उन कहिन के ठीक हे, अच्छा बात हे, फेर मैं चाहथंव के दैनिक नवभारत के संपादक कुमार साहू जी ल घलो बला लेहू, मोर नॉव बताहू त उन तुरते तैयार हो जाहीं. हमन हव कहिके वापस दुर्ग लहुटेन. तहाँ दाऊ महासिंग चंद्राकर जी के इहाँ गेन. उहू मन कार्यक्रम म आए खातिर अनुमति दे देइन.

    रायपुर आए के बाद नेवता पाती छापे अउ वोला चारों मुड़ा बगराये के बुता म भीड़गेन. 9 दिसंबर के बिहनिया ले जतका हमर संगी साथी राहंय सबो झनला अलग अलग बुता खातिर जिम्मेदारी सौंप देन. फलाना फलाना काम फलाना ल करना हे, अउ वोकर बाद संझा 4 बजे तक जम्मो झनला कुर्मी बोर्डिंग पहुंच जाना हे.

     वाजिब म संझा 4 बजे तक हमर जम्मो संगी कुर्मी बोर्डिंग पहुंचगे रिहिन हें, तहां ले उहाँ के ऊपर वाले सभा कक्ष म विमोचन के तैयारी होए लागिस. रायपुर के जतका छत्तीसगढ़िया साहित्यकार, भाखा प्रेमी अउ मयारुक लोगन रहिन सब उहाँ पहुंचगे राहंय. पहुना मन म सबले पहिली दाऊ महासिंग चंद्राकर जी लाल रामकुमार सिंह संग पहुंचीन, तेकर पाछू कुमार साहू जी पधारिन. दाऊ रामचंद्र देशमुख जी घलो थोरकेच बेर म पहुंच गिन.

   उंकर मन के आवत ले हमर मन के सबो तैयारी होगे राहय. उंकर पहुंचते डाॅ. सुखदेव राम साहू 'सरस' जी कार्यक्रम के संचालन म लगगें. माता सरस्वती के छापा म फूल माला अउ हूम धूप के पाछू सबो पहुना मन के फूल माला ले स्वागत होइस. 'मयारु माटी' के मुंह उघरउनी (विमोचन) होइस, तेकर पाछू पहुना मन के आशीर्वचन होइस. तहांले उहाँ पहुंचे जम्मो झनला मयारु माटी के प्रति बांटे गिस.

   पहला अंक ल देखे के बाद लोगन के भारी दुलार मिले लागिस. अपन अपन ले सब रचनात्मक सहयोग करे लागिन. जे मन गद्य रचना म अच्छा सहयोग करीन उंकर मन के नांव मैं ए जगा जरूर लेना चाहहूं- श्यामलाल चतुर्वेदी, हरि ठाकुर, डॉ. बलदेव साव, लक्ष्मण मस्तुरिया, रामेश्वर वैष्णव, चेतन आर्य, राजेश्वर खरे, हेमनाथ वर्मा 'विकल', तीरथराम गढ़ेवाल, मुकुंद कौशल, डॉ. महेंद्र कश्यप 'राही', डॉ. व्यास नारायण दुबे, डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्रा, डॉ. निरूपमा शर्मा आदि मन के सरलग सहयोग मिलय. इंकर मन के छोड़े डॉ. विमल पाठक, नारायण लाल परमार, लाला जगदलपुरी, जीवन यदु 'राही' के संगे संग अबड़ झन जुन्ना अउ नवा लिखइया मन एमा अलग अलग स्तंभ के अन्तर्गत छपत राहंय.

     'मयारु माटी' के सरलग प्रकाशन म तब आर्थिक समस्या घलो आये लागिस, जइसे के जम्मो साहित्यिक पत्रिका मन के आगू म आथे. एमा जादा फोरियाए के जरूरत नइए, काबर ते प्रकाशन के कारज ले जुड़े जम्मो मनखे एकर पीरा ल जानथें. 

  पंजीकृत पत्रिका के प्रकाशन म ए नियम हे, के छै महीना लगातार प्रकाशन के बाद सरकारी सहायता विज्ञापन के रूप म मिले लगथे. आज अलग छत्तीसगढ़ राज बने के बाद ए ह बहुत आसान होगे हे वोकरे सेती इहाँ कतकों छोटे बड़े पत्र पत्रिका आज देखे बर मिल जाथे. फेर वो बखत हमन संयुक्त मध्यप्रदेश के अन्तर्गत राहत रेहेन, तेकर सेती जम्मो जिनिस खातिर भोपाली मन के मुंह ताकना परय. वोमन तो छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया के नाॅव सुनते बिदके बर धर लेवंय, अंगरा कस गंजा जावंय. अइसे म भला सरकारी सहयोग कइसे मिले पातीस, सोचे के लाइक बात आय.एक दू छत्तीसगढ़िया नेता मन भोपाल ले सहयोग करवा देबो काहंय, फेर नेता मन के बात ह बाते बन के रहि जाय. अइसे तइसे करत कुल 13 अंक करीब डेढ़ बछर अकन म निकाल पाएन तहांले आगू नइ सक पाएन.

-सुशील वर्मा 'भोले'

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811


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9 दिसंबर : वो ऐतिहासिक बेरा के सुरता... 

    छत्तीसगढ़ी साहित्य के इतिहास म 9 दिसंबर 1987 के दिन ल सबर दिन सुरता राखे जाही, जे दिन छत्तीसगढ़ी भाखा के ऐतिहासिक मासिक पत्रिका 'मयारु  माटी' के विमोचन रायपुर के आजाद चौक तीर तात्यापारा के कुर्मी बोर्डिंग के सभा भवन म जम्मो छत्तीसगढ़ी के मयारुक मन के उपस्थिति म संपन्न होए रिहिसे.


    ए विमोचन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंच 'चंदैनी गोंदा' के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी रहिन हें. अध्यक्षता दैनिक नवभारत के संपादक कुमार साहू जी करे रिहिन हें. संग म 'सोनहा बिहान' के सर्जक दाऊ महासिंह चंद्राकर जी विशेष अतिथि के रूप म पधारे रिहिन हें. ए बेरा म छत्तीसगढ़ी भाखा साहित्य के जम्मो मयारुक मन उहाँ बनेच जुरियाए रिहिन.


चित्र 1- 'मयारु माटी' के विमोचन के बेरा. डेरी डहर ले- सुशील वर्मा (भोले), पंचराम सोनी, टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा, विमोचन करत दाऊ रामचंद्र देशमुख जी अउ नवभारत के संपादक रहे कुमार साहू जी.


चित्र 2- डेरी डहर ले- कुमार साहू जी के स्वागत होवत, स्वागत करत 'मयारु माटी' के संपादक सुशील वर्मा 'भोले', अउ बीच म कुर्सी म बइठे दिखत हें- सोनहा बिहान के सर्जक दाऊ महासिंह चंद्राकर जी.


चित्र 3- विमोचन के बेरा म उपस्थित छत्तीसगढ़ी के मयारुक मन म. डेरी डहर ले-  जागेश्वर प्रसाद जी, डॉ. देवेश दत्त मिश्र जी, डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र जी, डॉ. शालिक राम अग्रवाल 'शलभ' जी, डॉ. व्यास नारायण दुबे जी, जगदीश बन गोस्वामी जी

उंकर पाछू म डॉ. भारत भूषण बघेल जी, डॉ. राजेन्द्र सोनी जी रामचंद्र वर्मा जी संग डॉ. सुखदेव राम साहू 'सरस' अउ जम्मो छत्तीसगढ़ी के मयारुक मन.