Monday 29 June 2020

छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ समाज, विषय म छंद परिवार के साधक मनके विचार




छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ समाज, विषय म छंद परिवार के साधक मनके विचार


 छत्तीसगढ़ के समाज अउ साहित्य

     हमर छतीसगढ़ के समाज के सबले बड़े गुन के नाता रिश्ता म व्यापरिकता अउ गणितीय सुभाव यानि लेन देन , जोड़ घटाव नइये ..। दूसर बात के जनम - मरन , सुख - दुख , तीज- तिहार  मं  छोटे बड़े सबो जात बिरादरी के मनसे के जथा जोग मान सनमान करे जाथे । धोबनिन काकी , मरदनीया बड़ा , पहटिया भैया , तुरकिन बड़े दाई के चूरी , पंडित बबा के पूजा पाठ , अउ बहुत अकन उदाहरण हे । त समाज के इन्ही मन के रहन - सहन , सोच - विचार ल तो साहित्यकार मन लिखथे चाहे ओहर गद्य होय  या पद्य ...साहित्यिक विधा के चुनाव तो लिखइया मन अपन रुचि अनुसार करथें । आज के विमर्श के विषय अनुरूप हमन देखबो के छत्तीसगढ़ी साहित्य मं समाज के बदलत सरूप ल कतका अउ कोन तरह से जघा मिलत आवत हे ।

सरला शर्मा

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आशा देशमुख: समाज अउ साहित्य

हर जाति हर मनखे के खास महत्व होथे।
पहली ये नियम सामाजिक व्यवस्था अउ आपसी तालमेल के लिए काम बाँटे रहिन।
धीरे धीरे ये छुआ छूत ऊंच नीच के तुच्छ भावना घर कर लिस।
येखर पाछु अज्ञानता अशिक्षा ही महत्वपूर्ण कारण हे।
सीधे सरल मन में ये प्रश्न नइ आइस कि हमन ला काबर अइसने ऊंच नीच के डोरी में बाँधे है समाज हा।
सबो मनखे एक बरोबर हे।
सिर्फ काम के विभाजन में छोटे बड़े नइ होवय।

सबो के सहयोग से ही समाज काम करथे।
सबो के बरोबर सम्मान होवत रहय।
आपसी भाई चारा रहय।
सबो के जीविका रोजगार चलय,
सबके काम निपटे ,कोनो शोषक ,शोषित मत रहय।

आशा देशमुख
एनटीपीसी कोरबा

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तइहा-तइहा के लोक साहित्य गाँव-गँवइ के गुणी अउ सियान मनखे के अँतस म भरे राहय,जौन समे-समे म मुँह अँखरा निकले। ये साहित्य के न कँहू लिखैय्या के नाँव ने , न उँकर एको किताब।
   तभो ले लोक साहित्य म हमर छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति अउ परंपरा के प्रभाव ह , जन मानस म आज तक भरे हावय। जोंन ह ददरिया , सुवा , करमा , राहस , डंडा गीत , लोक धर्मी गीत , गौरवगाथा गीत आदि म झलकत हावय। एखर ले अलग छोटे-छोटे गियान के पद , हाना- बिस्कुटक , साखी-जनउला जानकारी लोक जीवन के सँस्कार ल बतावत रहिथे।
हमर ये लोक साहित्य ल खोजे म  देखे म लागथे की छत्तीसगढ़ के जम्मो साहित्य ह उपकार करे हावय। एकरे ले अँजोर पाके साहित्य के मनीषी मन साधू-संत मन छत्तीसगढ़ी भाखा म साहित्य के रचना कर सकिन।
  कइ ठन सदी निकलगे ये साहित्य ह परंपरा ले ममहात आवत हे , पहिली के नाँचा -गम्मत , भजन म , लोक गाथा मन म , परंपरा गीत ले मनोरंजन होवत रिहिस। आजतक लोक नाटिका , पंडवानी , अहिमन , रेवारानी , केवला रानी , फुलबासन , फुलकुँवर , कल्याण सहाय के गाथा, राजा बीर सिंह , ढोला-मारू , लोरिक चंदा ....आदि म लोक साहित्य के गुण ह उजागर होथे.. बगरत हे ...। लोक मानस ह सत के पथ ल , देखत अउ आनंद उठावत पीढ़ी दर पीढ़ी आवत हे।
   छत्तीसगढ़ के लोक साहित्य ह इँहा के जन-जन के जीवन म समाय हे। जनम से लेके मृत्यु तक हमर लोक में सँस्कार गीत अउ नेम-धेम हावय...सोहर गीत , बिहाव सँस्कार गीत , जगन्नाथी गीत ...देव धामी मनौति गीत , किसानी गीत , तीज-तिहार परब मन मे गीत...अउ तो अउ छत्तीसगढ़ के पारंपरिक खेल कूद के गीत मन भी छत्तीसगढ़ के जीवन म लोक संस्कृति के छाप ह जन -जन में रचे बसे दिखथे।
  फेर अब ये लोक संस्कृति अउ परंपरा ले नवा पीढ़ी हर धुरिहात हावे। हमर कइ संस्कार, रीति-नीति आधुनिकीकरण के नाँव म धीरे-धीरे खीरत हावय..जेन ल सहेजे अउ पोठ करे के उदिम करना परही। अउ एकर जिम्मेदारी साहित्यकार , लोक कलाकार के सँग आम जन मानस ल घलो हावय तभे हमर कोठी के साहित्य-संस्कार-परंपरा अउ लोक के रक्षा हो पाही।

धनराज साहू बागबाहरा

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 हमर छत्तीसगढ़ मा कौनो विद्या के कमी नइ हावय फेर उचित मार्गदर्शन के अभाव मा ओकर कला या विद्या हा समाज ऊपर गलत प्रभाव डाल देथे। हमर समाज ला सुधारना हावय त सबले पहली अपन आप ला सुधारना होही। आधुनिक विचार के संगे संग जुन्ना विचार मा सामंजस्य लाये ला पहड़ी। लोक कलाकार अउ साहित्यकार मन ला लिखे या दिखाए ले पहली सोचे ला परही की हम समाज ला का संदेश देत हन अउ एकर प्रभाव समाज मा का परही? अच्छा परही की बुरा, काबर की मनखे जेला देखथे,सुनथे अउ पढ़ते उहि ला व्यवहार मा घलो लाथे। का हमन अपन संस्कृति के मजाक उड़ाके समाज ला सुधार सकथन? का हमन चुटकुला बाजी कविता लिख पढ़के समाज ला संदेश दे सकथन? नहीं ता फेर अइसन करइया ला साहित्य या समाज मा स्थान अउ सम्मान काबर? जब तक हमन अइसन मनखे ला साहित्य अउ समाज मा स्थान देबो अउ सम्मान करबो तब तक  हमर समाज मा उचित बदलाव के कल्पना नई कर सकन। अगर नवा साहित्यकार आय त ओला उचित मार्गदर्शन दव अउ जुन्ना हरय ता ओला स्थान मत दव फेर ओकर सोच जरूर बदल जाही। साहित्य होय या लोक कलाकार हमन अपन बात ला अइसन परोसन की जन मानस के दिमाग हमर बात ला घर कर लेवय अउ अपन व्यवहार मा लावय। अगर हमन छत्तीसगढ़ के व्यंजन ला छोड़ पिज्जा बर्गर के प्रचार प्रसार करबो त चीला फरा के जो गुन हे ओकर से हमर पीढ़ी वंचित हो जाही ना। जब लोक कलाकार, हमर सिनिमा, साहित्यकार मन  समाज के जो कुरीति हवय ओकर खुलके विरोध अउ प्रचार प्रसार करही अउ ये बात ला जन मानस सुनही, पढ़ही, देखही त काबर बदलाव नई आही। जब तक हमन घर परिवार अउ अपन से उठके समाज हित अउ देश हित के बारे मा नई सोचबो तब तक बदलाव कहा ले आही ?

-हेमलाल साहू

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कहे गे हे "साहित्य समाज के दर्पण आय"। मैं सोंचत हंव छत्तीसगढ़ के संबंध मा ए बात। का हमर साहित्य मा हम अपन वर्तमान ला शामिल करथन, कि परंपरा रीति रिवाज के नाव मा सिरिफ अतीत मा फदके रहिथन? सम सामयिक विषय ला हम कतका कन अपन लेखन मा शामिल करथन?हमर आसपास के अखबार, संचार माध्यम हमर कतका कन बात करथे? हमर समस्या हमर गोठ बात ला आगू लाय के अउ सुलझाय के कतका उदीम करथे हमर कलम? का हमर रहन - सहन,मान- मर्यादा, पढ़ई - लिखई अउ पद प्रतिष्ठा बर हमर कलम संसो करथे? का हमर कलम गांव के समारू अउ सुकवारो तक जाथे? ओकर आरो ले बर? का हमर कलम दुनिया मा होवत परिवर्तन ले हम ला जोड़े के कोशिश करथे? अउ हम अपन अंदर परिवर्तन ला स्वीकार करे के कतका हिम्मत करथन? अगर ये बात मन ला हमर साहित्य नइ काहत होही त आईना कइसे बनही?
 समाज ला गढ़े बर अउ आगू बढ़े बर साहित्य ला पोठ करना जरूरी हे, हम अपन भाखा मा प्रारंभिक शिक्षा लेवन, अपन दाई के बोली मा, ए माटी के मुल निवासी के बोली मा। हम झूठ लिखथन कि मातृभाषा का हरे, सच लिखव छत्तीसगढ़ी। हिंदी अउ अंग्रेजी ला अनिवार्य स्वीकारव फेर छत्तीसगढ़ी ही छत्तीसगढ़ के संदर्भ मा स्वाभिमान के भाषा आय। ए ला हम जतके पोठ करबो, हमर गांव गंवई गरीब किसान ओतके वाचाल होही, अपन बात ला संप्रेषित करे मा सक्षम होही। अउ तभे हमर साहित्य मन घलो पढ़े जाही, पोठ होही, मान पाही, सम्मान पाही अउ दुनिया मा पुछ परख बाढ़ही।जइसे तमिल हे मराठी हे उडिया हे बंगला हे। वइसने छत्तीसगढ़ी घलो हे।अइ नइहे ते हमर संकल्प होय कि अपन भाखा ला समृद्ध करे के। तभे हम पार पाबो।
अगर साहित्य समाज के दर्पण हरे। फेर ए बात हमर संबंध मा कइसे मा सच होही? *"चेहरा देखना हे तो दर्पण के सामने खड़े होय बर पड़थे। छत्तीसगढ़ी ला खड़ा करबो तभे तो साहित्य के दर्पण मा हमू मन वाजिब मा दिखबो, वरना परछाई बन के रह जबो।"*

बलराम चंद्राकर भिलाई

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शशि साहू

 साहित्य ला समाज के दर्पण कथे। जेमा अवइय्या पीढ़ी हर बीते पीढ़ी के सुख - दुख ला देखके अपन भविष्य के जोखा जमाथे। आज देखव कतको लइका मन उच्च शिक्षा ले के खेती बाड़ी, मछली -पालन, पशु पालन, करत हे अउ सफल होत हे। रचनाकार मन घलो अपन रचना मा खेती - बाड़ी, नागर- बियासी, नदी - नरवा, ला विषय बना के लिखत हे।
मोबाइल, लैपटॉप, कम्प्यूटर  जानना घलो जरूरी हे। आज के बेरा मा ये सब के बिना हम खोरवा हो जबो। अइसे लागथे, हम पाछू लहुटना भी चाहथन अउ आघू बढ़ना भी चाहथन। जेन अच्छा संकेत ये। गाँव मा स्वास्थ्य सुविधा हो। बरोबर नेट चले। बिजली पानी के सहज व्यवस्था होय ले, गाँव असन रहे के दूसर जघा नइ हे। देखव ना मजदूर मन के आय के पहिली गाँवेच हर कोरोना ले सुरंक्षित रिहिसे। फेर गाँव मा राजनीति अउ शराब के धुर्रा उड़त हे।
होली, देवारी  दशहरा, गौरी गौरा कोनो भी तिहार बिगर शराब, लड़ाई झगरा के पूरा नइ होय।

खेती अधिया कट्टू मा चलत हे। गाय रखना झंझट हे, रूख- राई बिन खेत जंगल भाय -भाय करत हे। 30 बछर पहिली जेन गाँव ला छोड़ के आय हन, अब वो गाँव कहाँ हे। ये बात ला आप सबो जानथव,
मस्तुरिया जी कथे- कतेक ला सइहँव। पीरा ला तो कइहँव।
जय जोहार

शशि साहू
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साहित्य बगैर समाज गूंगा हे अउ समाज बगैर साहित्य हा कोरा कल्पना मात्र आय। दोनो हा अपन अस्तित्व अउ बिकास बर एक दूसर के मुँह ताक थे।
जब तक साहित्यकार मन स्व हित ला छोड़ के परहित बर काम नइ करही तब तक साहित्य के अउ समाज के बिकास संभव नइये।
आज हमन बात बड़का बड़का गोठ बात करथन फेर जब कभू अपन अस्मिता अउ भाखा रीति रिवाज, परंपरा संस्कृति बचाय के बात आथे त हमन अलग अलग रद्दा चुन लेथन।
व्यक्तिगत हित ल छोड़ के लोक हित बर काम करबो तभे जरुर समाज के सही रूप साहित्य मा देखे बर मिलही।तभे अपन भाखा संस्कृति, परंपरा पोठ बनही।

विजेन्द्र वर्मा

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साहित्य ह समाज के दरपन होथे।ऐ दूनो एकठन सिक्का के दू ठन भाग आवय, साहित्य ह मनखे ल नवा-नवा सीख अउ जगाए बर वरदान हरय। ऐखर अस्तित्व कवि अउ लेखक बर बंधाए नइ हे।
"अपनेच सुख"बर लिखे गोस्वामी तुलसीदास जी के रामचरितमानस आज समाज के सुख आवय जेन आज समाज के सुख बर, समाज ल नवा रद्दा मे जाए बर एक आदर्श ग्रंथ बनगे हवय। साहित्य ह शक्ति के नवा उदिम आवय। समाज के काम-बुता लोगन मन बर चिहुर अउ असकट ले भरे हवय।अउ साहित्य म पोठ भाव लोगन मन ल जगाए बर हवय।जेखर मनखे जीवन के ऊपर म असर ह झटकुन दिखथे। दया,मया अउ सेवा भाव जइसन मनखे मा गुन हा समाथे,जौन ह समाज म साहित्य के माध्यम ले ही हो सकथे।
           आज के नवा जुग ह दुनिया भर के खोजे के जुग हरय।अउ हमन पाश्चात्य संस्कृति के रंग म अतका बूड़ गे हवन अउ ऐमा ले निकले बर हमन अपन बिनास समझत हवन।ऐ विज्ञान के बाढ़त पांव है हमर मनोबल ल रटरट ले टोर के रख दे हवय।अउ हमर समाज ल अल्लर होवत जावत हे,अउ नवा सभ्यता के पुजारी मन बैठे-बैठे हमर तमाशा देखत हवय। समाज ल पोठ साहित्य के अगोरा अउ जरुरत हवय जेखर ले समाज के भला हो सकय।हमन साहित्य के नवा-नवा रुप ल देवन। हमर काव्य लेखन हमर करम के आधार म होवय, कोनो कहानी हमर जिनगी के अंतस म उतरै अउ गीत के बीजहा हमर हिरदै म जामय।हमर समाज ह जुन्ना मान सम्मान अउ वैभव पा सकय। ऐखर बर हम साहित्य ल नवा-नवा अउ जादा ले जादा बढ़ावा देवन।


मिनेश कुमार साहू
गंडई भुरभुसी/माना कैंप रायपुर
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मीता अग्रवाल: साहित्य अउ समाज एक सिक्का के दू पहलू आय।बिना समाज के  साहित्य  को कोनो विधा नई गढ़े जा सकय, साहित्य के सरलग विकास ला देखन तव, बेरा बेरा के बात समाज के सरुप ,वो जुग ला देखा देथे।आज नवा नवा विषय मा लघुकथा, कहनी ,कविता अउ छंद मा भी छत्तीसगढ़ के वर्तमान समाज के भाव बोध देखे  जा सकथे।जेमा आधुनिक सभ्यता के प्रभाव के संग अपन खानपान ,रीति रिवाज,बोलचाल प्रभावित होइस फेर, अपन जर- जमीन ला नइ बिसारिस।विमर्श के ये बिंदु सावचेत करा थे कि अपन भासा संस्कृति अउ समाज बर कतका सचेत हवा साहित्य ।सब ले जादा हम लोकगीतअउगाथा ,कहानी  के माध्यम ले हमर छत्तीसगढ़ी समाज के प्रतिबिम्ब साहित्य मा पाथन।जउन बीत गे तेला हम अभी साहित्य मा पढ़त हन,आज जउन लिखे जात हवे आने वाला पीढ़ी मन बर एक दरपन के काम करही।इही पाय के कहे जथे,साहित्य समाज के दर्पण होथे।
आज हमन अतका झन, समूह मा जोरियाय हन,यहू समाज हे साहित के बारे मा सोचत हे,ये नवाचार उदमी, नवाचार गढिइया समाज, काली ,साहित्य के भाव होही।
साहित्य कोनो भाखा के रहाय हमें शा समाज के  कई पक्ष रथे,तेला उजागर करे मा सरलग लगे रथे।जरवत हे पढ़े  के।

मीता अग्रवाल रायपुर
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 शोभमोहन श्रीवास्तव: छत्तीसगढ़ के समाज अउ साहित्य

 समाज मा साहित्य हे अउ साहित्य में समाज हे,  दूनो आ अलग करके नइ देखे जा सकै, जइसे समाज रही वइसने साहित्य हर ओला लिखही, कोनो भी रचनाकार अपन तीरतखार मा जेन देखके अनुभव करथे उही ला लिपिबद्ध करथे, साहित्य ला तेकरे सेती विद्वान मन समाज के दर्पण कहें हें । साहित्य समाज के लिखित अउ सबले जादा प्रामाणिक दस्तावेज होथे, बशर्ते लिखइया हर लबरा झन होय । अलग अलग भाषा के साहित्य मा एक्के बात मा अतेक लालित्य कहाँ ले आथे, काबर कि भाव हर जब भाषा के चोला धरथे तब ओकर तत्व एक ही होय के बावजूद पूरा के पूरा नवीनीकरण हो जाथे । उदाहरण बर ज इसे ब्रजभाषा के कवि हर ग्वाला ग्वालिन मनके  चित्रण करथे तब ब्रज भाषा के सुगंध बगरथे अउ जब उही प्रसंग उपर छत्तीसगढ़ी के कवि पं. सुंदरलाल शर्मा हर दानलीली लिखिन तब ओमा रउताइन मनके छत्तीसगढ़ी गहना-गूठा दुहना, टुकना, तउला, कनउजी, कतकोन शब्द मन साहित्य संस्कार मा संस्कारित होके आँखी मा झूले लगगे ।

 साहित्यकार हर अपन समाज के तत्व ला जब संस्कारित करके समाज ला फेर बहुराथे तेन प्रक्रिया मा भाव के तरंग मा आखर मा लुकाय भाव मन उजराथे ।
 तभे समाज के मुहरन पंछार होथे ।

छत्तीसगढ़ी साहित्य के भरे पूरे ओरी हे बात बात के हाना, कहावत, मुहावरा, एकर प्रमाण हे । वर्तमान छत्तीसगढ़ी साहित्य सोनहा इतिहास लिखत हे ।

शोभामोहन श्रीवास्तव
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आशा आजाद: छत्तीसगढ़ के समाज अउ साहित्य

साहित्य हा हमर समाज बर हिरदे ले निकले ओ भाव हे जेला हम अपन आँखी मा देख के चाहे ओ कोनो सुख-दुख,कोनो अइसन पीरा जे आज के कलजुग मा घटत हावै...जो आज नइ होना चाही...ओला अपन साहित्य के माध्यम ले सत्य घटना ला हमला लिखना चाही।जेखर ले मनखे मनखे साहित्य ला पढ़के गलत रद्दा ला पूरा त्याग दय।तब साहित्य के माध्यम ले देश के उत्थान होही।साहित्य मा गद्य या पद्य के माध्यम ले एक संदेश होना चाही जेन आज के कलजुग मा होत भ्रष्टाचार, अनाचार,पाप,कुरिती,..आदि जम्मो ला मिटाये के संदेश छुपे होना चाही।
हमर द्वारा जो रचना लिखे जाथे ओ हा पूरा के पूरा समाज बर समर्पित होथे अउ समाज के गतिविधि ला देख के साहित्य सिरजन करे जाथे।मोर बिचार ले साहित्य बर अगर कोनो साहित्य परोसे जाथे(चाहे छत्तीसगढ़ी भाखा होय के हिंदी भाखा)ता ओहा सरल अउ सहज भाखा मा होना चाही,काबर के समाज के रहोइया मन साहित्य ला पढ़े बर तब आकर्षित होही जब ओ सरल अउ सहज भाषा मा लिखाय होही।जेन अनमोल शब्द अउ ज्ञान उँखर दिमाग ला तुरंते छू जाय,अउ समाज मा जागरूकता हा नित प्रतिदिन बाढ़य।

समाज के एक ठन सोच हा नित उपजथे ओहे..कोनो रचना ला जब ओ पढ़थे था बीच मा बहुत कठिन शब्द आ जथे,उहा ओ रुक जथे..काबर के ओ शब्द हा लेखक ला मालूम रहिथे फेर समाज हा अइसन शब्द चाहत हे जेला बिना अटकाल (बिना प्रश्नवाचक के) रचना के अंत तक पहुंच जाय, अउ जेन संदेश लेखक देना चाहत हे ओ पहुँच जाय।तब हमर साहित्य हा सही मायने मा सही दिशा मा जात हे।
हमर परम श्रद्धेय गुरुदेव श्री अरुण निगम जी कहिथे के एक अच्छा साहित्य लिखे बर हमला साहित्य ला पढ़ना बहुत जरुरी होथे।बगैर पढ़े हम समाज ला अच्छा साहित्य नइ परोसे सकन। ऐ बात सोला आना सही हे साहित्य ला हमला पढ़ना चाही ओखर गहराई तक जाना चाही के ओमा कोन भाव अउ का संदेश छुपे हे।ओखर बाद हमला ओ साहित्य ला आगे ले जाय बर नवा कछु गढ़ना चाही,अउ आज के नावा जुग मा तकनीकी के माध्यम ले बहुत अकन साधन मिल गे हे,ता हमला अच्छा साहित्य ला समाज बर परोसे के नित्य प्रयास करना चाही।
जय जोहार छंद छत्तीसगढ़

आशा आजाद
मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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साहित्य का हरय?

हर मनखे अपन आप मा कवि, लेखक, दार्शनिक, विचारक, वैज्ञानिक होथे। सबके अपन मुहअँखरा नहिते लिखित साहित्य होथे। सबे झन अंतस मा उठत भाव ला स्वर देथे, शब्द के मर्यादा मा गुँतथे, इही शब्द के गँथना हा साहित्य हरय।

साहित्य के बूता का हरय?

साहित्य के बूता हरय विचार, ज्ञान, विद्या अउ जानकारी ला बाँटना। ए बूता मा मनोरंजन, जनजागरण घलो सँघरे हवय।

साहित्य समाज के दर्पण कइसे?

जइसे मनखे मन तन से सजे सँवरे के बूता ला दरपन ला देख के करथें, वइसने मन, बुद्धि से सजे सँवरे मा साहित्य थेभा होथे। दूसर बात दरपन मा ना भूत दिखे ना भविष्य, सिरिफ वर्तमान हा दिखथे। साहित्य मा घलो वोकर रचना के समय के समाज हा स्पष्ट दिखथे, कहे के मतलब समाज कइसे रीहिस होही पढ़ के पता लगाये जा सकथे। साहित्यकार मनगणित करके वर्तमान अइसे हे ता बीते समय कइसे रीहिस होही अउ अवइया समय कइसे होही येखर अंदाजा लगा लेथे।

छत्तीसगढ़ के साहित्य अउ समाज -

छत्तीसगढ़ मा अभी तक उपलब्ध साहित्य मा कुछ ला पढ़े के बाद पाय हौं, के इहाँ के साहित्य मा सब बर यहां तक के चिरई चुरगुन, बेंदरा, बिलाई, कुकुर मन बर दया, मया, समरसता के भाव भरे हे। हमर समाज के सोच हा अइसन हवय तभे ये बात हा साहित्य मा हे। छत्तीसगढ़िया मन हमेशा नारी के सम्मान करे हे, बेटी-बहिनी के मान सम्मान के प्रति समर्पित हे। माटी ला महतारी कहइया छत्तीसगढ़ के साहित्य हरय। दुनिया भर मा भारत ला दाई कहिथन,भारत भर मा
छत्तीसगढ़ ला दाई कहिथन, पंजाब दाई, गुजरात दाई नइ सुने हँव। बहुत झन मन कहिथें इहाँ छुआछूत हे, लेकिन मँय येखर समर्थन नइ करँव, सदा दिन ले पौनी पसारी हमर राज मा चलत आवत हे, गांव या घर के कोनो भी बूता ला सब जात के सहयोग ले करथन, अउ सम्मान देखव हमर छत्तीसगढ़ के सब सेवक मन ला ठाकुर कहिथन। दुकालू यादव के जस गीत सुनव जेमा माता के सब जिनीस मन अलग अलग जात के घर ले आथे कहिके उन गाथें, ये गीत हमर लोकगीत लोकसाहित्य के प्राण हरय, हमर सामाजिक समरसता के पहिचान हरय।

विरेन्द्र कुमार साहू,
 बोड़राबाँधा(पांडुका) जिला गरियाबंद।

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छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ समाज-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

           चाहे कोनो भाँखा होय, साहित्य समाज ले उपजथे अउ समाज म ही घुल मिल जाथे। फेर साहित्य के समाज म मानव भर मन नइ आय, ओखर समाज म पेड़ पौधा, जीव जंतु अउ जम्मो जिनिस शामिल हे, जेखर कल्पना कलम करथे। ये मोर पोगरी बिचार आय, कोनो सहमत हो सकथे त कतको नही घलो। साहित्य समाज के बुराई ल घलो उकेर के अच्छाई कोती खींचे के प्रयास करथे। जेन साहित्य म समाज विशेष बर कोनो चिंतन मनन नइ रहय, उहू का साहित्य। चाहे जुन्ना साहित्य होय या फेर नवा, सबो तो अपन कहानी कन्थली अउ कविता के माध्यम ले समाज ल जगाये के काम करे हे, अउ करत घलो हे। बुराई के परिणाम दुखदाई अउ अच्छाई ल सुखदाई बताय हे, अउ बताना घलो चाही, नही ते साहित्य म भटकाव आ जाही। यथार्थ घलो इही आय। मनखे म दया मया के  संचार करके पेड़ पात, जीव जंतु, जल थल वायु अउ जम्मो जिनिस म सकारात्मक भाव समाज म साहित्य जगाथे। तभो तो साहित्य ल समाज के दर्पण घलो केहे जाथे। अउ जब साहित्य दर्पण आय त वोमा समाज के गुण दोष दिखना भी चाही। जेन लेख समाज म विकृति पैदा करय, वो साहित्य कइसे हो सकथे।साहित्य भाँखा के समृद्धि, अउ समाज के द्योतक होथे। साहित्यकार ल तटस्थ न होके, सम्पूर्ण जीव जगत के प्रति उत्तरदायी होना चाही। आने के संग खुद के बुराई अउ अच्छाई ल घलो झाँकना चाही। इही बड़का साहित्यकार के निसानी आय। साहित्य म लोभ लालच अउ चाटुकारिता के छीटा घलो नइ पड़ना चाही,नही ते साहित्य के दशा अउ दिशा दोनो म दाग लग जाथे। साहित्य सीख देथे, साहित्य  गुण अउ ज्ञान देथे, साहित्य संस्कार घलो देथे, फेर  साहित्य रोटी नइ, यहू कहना गलत हे, साहित्य जब ज्ञान दे सकथे, त रोटी काबर नइ दे सकही। साहित्य म सबे चीज देय के ताकत हे। बशर्ते पाठक या स्रोता वोला कइसे ग्रहण करथे , वो ओखर ऊपर हे।
            हमर पुरखा मनके साहित्य आजो धरोहर हे, उँखर कल्पना के पार पाये नइ जा सके या उँखर ले अच्छा अउ लिखाही नही, ये कहना घलो गलत हे। महिनत ले का नइ सम्भव हे। उँखर समय म जेन चलत रिहिस ओला ओमन बखूबी सामने लाइन। ओला आजो हमन पढ़त लिखत अउ देखत घलो हन। फेर कई झन साहित्यकार मन कल्पना के कलम धर अइसे अइसे रचना करिन जेन कालजयी होगे , अउ आजो  प्रासंगिक लगथे। उँखर चिंतन ल नमन हे, जेन मन भूत ,वर्तमान अउ भविष्य ल ले के चलिन। वो समय के साहित्य वो समय  के दशा अउ दिशा के बोध कराथे। आजो के साहित्यकार मन ल घलो अपन कलम ल धरहा करके सकारात्मक भाव ले समाज ल जगाना चाही। अउ अपन समय के छाप ले छोड़ना चाही। छत्तीसगढी साहित्य बासी पेज, खेती खार ल सीमित झन रहे, जमाना के संग कलम कदम मिलाके चले। अउ हो सके त अपन चिंतन मनन ले पुरखा साहित्यकार मन असन भविष्य ल घलो झाँके। तभे हमर भाँखा  मान पाही, अउ हम सबके नाक ऊँच होही। साहित्य सिर्फ कहानी कविता घलो नइ होय, साहित्य तो असीमित हे, साहित्य खोज आय, साहित्य   म सबे चीज समाहित हे। साहित्य ल ऊँचा उठाय बर साहित्यकार ल अपन सोच ल ऊपर उठाये ल पड़ही।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा
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    साहित्य समाज के दरपन तो आय ...सँगे सँग साहित्य ला मानव समाज के धरखन कहे जाय तव कोनो अगरहा गोठ नोहय । बने साहित्य हा बने  समाज के निरमान करथे...समाज ला सहीं रद्दा देखाथे उहें समाज हा साहित्य ला कतका स्वीकार करथे ऐहा साहित्य के  पोठहाई उपर घलो  निर्भर करथे ...लकिन कभू कभू पोठहाई घलो ला समाज कगरिया के नहके मा बेर नई करय ।
रमायण मा जिनगी के जमो सार भरे हे ...ओखर पोठहाई मा कोनो शंका नई ये लकिन ऐखर बावजूद हम कतका कन अच्छई ला धरे हन  ..?
लकिन जतका जानेन ... मानेन हमार बर ओतके खूब हे ...कहे के मतलब हावय के साहित्य अपन रद्दा मा जब ईमानदारी ले चलही तभे ऐ ढुलगत समाज के कल्यान हे अऊ ऐखर बर साहित्य कार ला गुनन मनन करे बर परही...वोला अपन सुवारथ ला छोंड़ समाज बर सोचे ला परही जेन आज बहुँत कम साहित्यकार मन मा दिखत हे। सिरिफ पईसा पहुँच के ही बल मा छा जवई हा साहित्य के पुरा तो ला सकत हे फेर समाज बर एक पोठ धरखन कभू नई बन सकय ...आज काल जेन किताब छपत हे या जेन साहित्य अखबार पेपर छपत हे वो जादा करके अईसने कच्चा साहित्य आय जेन सही ज्ञान के जघा पाठक के मन मा भरम के बिरवा लगावत हे...!
      एक बात हमका जरुर माने बर परही के पोठ साहित्य के निरमान तभे हो सकत हे जब साहित्यकार हा पोठ रइही ...
साहित्य चाहे  कोनो बोली भाखा मा लिखे जाय जब तक ओखर सिरजन हार वो बोली भाखा के सही जानकार नई रइही तब तक एक अच्छा अऊ पोठ सिरजन के आसा पाले राखना सपुना बरोबर आय..
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              राधेश्याम पटेल
            तोरवा बिलासपुर

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हमर छत्तीसगढ़ के साहित्य मा तो इहाॅ वीर गाथा, दान धरम,दया मया , प्रेम पिरित ,समाज सुधारक  वीर बलिदानी,सावन ,बसंत, प्रकृति पूजा के ले संस्कृति भरे हवय, अउ अड़बड़ अकन साहित्य रचना चलो होय हवय। जेन ले हम सब ला सुघर शिक्षा रहन सहन के तौर तरीका के शिक्षा मिलथे। अउ हमर इहाॅ छत्तीसगढ़ प्रदेश हर तो  आदिवासी समाज संस्कृति ले भरे हवय,जेन मन सीधा सादा ,भोला भाला,प्रकृति पूजक ,सत सेवा भाव ,जल जंगल जमीन के रक्षक आय।
जेन ला हम छोड़त जात हवन ।

 आज हमर विषय समाज अउ साहित्य के ऊपर हवय,
छत्तीसगढ़ प्रदेश मा सबो राज्य के लोग रहिथें। सब के अपन-अपन समाज अउ संस्कृति हवय। जेन मन अपन समाज भाखा अउ साहित्य ला पोठ बनाये हवय। समाज ले साहित्य बनथे। खान पान,रहन सहन,तीज तिहार ,इही से हमर संस्कृति बनथे।जेन हा साहित्य  के रूप ला धरथे। हमर तीर सर्वश्रेष्ठ संस्कृति हे जेन मा सब मनखे बरोबर हे। जइसन अंगाकर के एक पोठ रोटी असन हे।  वोकर बर हम सब आॅखी ला मुंद लेथन, टुकड़ा टुकड़ा होके कइसे एक पोठ समाज निर्माण कर पाबो।
कहे बर तो हम सब छत्तीसगढ़ियाॅ हवन। का वास्तव मा हम सब छत्तीसगढ़ महतारी के बरोबर मान करथन, छत्तीसगढ़ी ला जीथन। आज जुरमिल के नवा बिचार सोच समझ ले मजबूत समाज रचना कर अउ भेद भाव ला मिटा के ही समाज मा साहित्य ला पोठ कर सकत हवन। रूढ़ि वादी सोच के त्याग अउ समे संग बदलाव जरुरी होथे। नइतो आने वाला पीढ़ी ला कुछ नइ दे पाबो।आज हमर खाय के अलग अउ देखाय के अलग दाॅत हो गये हे।येला रवैया ला बदले बर परही। आज वर्तमान के सब ला संग लेके चले बर परही जेन ले  समाज अउ साहित्य ला पोठ कर पाबो।

रामकली कारे
बालको कोरबा
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साहित्य वो लिखाय रपट या दस्तावेज आय,जउन म कोनो क्षेत्र के,अंचल के ,देश-परदेश के रहवइया जनजीवन, लोक मानस के रीति-रिवाज, परम्परा, मान्यता, रहन-सहन अउ जीवन शैली ल आने-आने रूप म लिपिबद्ध कर रखे जाथे। जीवन हे त जीवन म सुख-दुख तो लगे रइथे।काम बूता म भुलाय मनखे जब फुरसुदहा म रहिथे त मनोरंजन बर कुछु काहीं सुनथे सुनाथे।कोनो सुर म,कोनो किस्सा कहिनी म मन के बात कहिथे।अइसने ढंग ले अपन मनोरंजन करथे त कभू अवइया पीढ़ी ल नैतिक शिक्षा दे के उदीम करथे।चरित्रवान बना के अच्छा समाज के चिंता घला दिखथे। तइहा के समे म जब पढ़े लिखे कम रहिन,बरोबर साधन नइ रहिन त इही गोठ बात मौखिक  रूप म एक पीढ़ी ले दूसर ल मिलय।जेन ल आज लोक साहित्य के नाव ले जानथँन।जतका हाना मिलथे ओहर आज हम ल वाचिक परम्परा ले मिले हे।जेकर संरक्षण अब लिपिबद्ध होय ले होगे हे,फेर कतको नँदा गे।अउ कतको ह अब किताब म समटागे हे।जेन चलन म रहिथे उही अपन अस्तित्व बचा पाथे।अइसने हे साहित्य बर भाखा जरूरी हे। भाखा रही त साहित्य रही।मनखे के राहत ले भाखा कभू खतम नइ होय। हाँ ! भाखा के स्वरूप बदल भले जही।कोनो भाखा बर एक ठन संकट वो क्षेत्र के जनता ह खड़ा करथे।जेन दूसर के सँस्कृति ल अपनात अपन भाखा के उपेक्षा करे धर लेथे।सँस्कृति अउ सभ्यता के पोषक साहित्य हरे।इही पाय के कोनो सँस्कृति अउ सभ्यता ला नाश करे बर साहित्य ल बिगाड़े अउ नाश करे के सोचथे।ए कर उदाहरण देश परदेश के इतिहास म मिलथे।राजा महराजा अउ विदेशी आक्रमण के काल के इतिहास म छेड़छाड़ घला इही कोति इशारा करथे।
      शहरीकरण अउ नवा तकनीक मोबाइल, टीवी,नेट कम्प्यूटर के बड़ फायदा हे, फेर एखर सँस्कृति अउ सामाजिक संबंध बर खतरा घला हे।एखर उपयोग करत हमर  संवेदना कमती होत जावत हे।एकर सीमित उपयोग अउ समे प्रबंधन करे के जरूरत हे।आज अइसे होगे हे एक चूल्हा के खाना खा के एके घर म राहत  हमर जिनगी एकाकी होगे हे।अइसन म बदलत समे के माँग के मुताबिक समाज ल जोरे के उदीम म साहित्य लेखन जरूरी हे।अइसन नइ हे कि समाज नइ जुरे हे।सोशल मीडिया ले दूरिहा के मनखे नजदीक लागथे।फेर घर अउ घर के आसपास के मन दूरियागे हे।एक साहित्यकार पहिली मनखे आय ,जउन समाज म रही समाज ल जीथें,समाज ल नजदीक ले देखथें।उहें ले उपजे सुख-दुख के भाव ल शब्द मन के मोती ले जउन माला पिरोथे,उही साहित्य आय।जेन म समाज के पूरा झलक दिखथे।उही पाय के साहित्य ल समाज के दर्पण कहे गे हे।
       समाज के भलाई बर समाज के बुराई ल मेटे के रस्ता अपन कल्पना ले साहित्यकार खोजथे।एखरे सेती एक साहित्यकार ल समाज सुधारक भी कहे जा सकत हे।कबीर दास जी अउ मुंशी प्रेमचंदजी ल भला कोन नइ जानँन।
      मोर नजर म स्वतंत्र साहित्यकार तब ले आज तक समाज हित म ही लिखे हे अउ लिखत आत हे।अपन अपन समे के समाज के अच्छाई अउ बुराई के लेखन के संग म समाज उत्थान जरूरी हे।अपन समे के अपन चुनौती घलाव होथे जेखर ले पार पा के साहित्य लेखन करना साहित्यकार के करतब समझथँव।

*पोखन लाल जायसवाल*
पलारी बलौदाबाजार छग
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साहित्य ह समाज के दरपन आय

साहितकार जउन  देखत हे उही लिखत हवय , भले ही रोचक बनाय खातिर कुछ अलंकार(मसालेदार) या फिर अतिशयोक्ति म लिख देवत हे|
कुछ जिनिस ल सही सही अउ कुछ ल कल्पना ले लिखथे या भविष्यवाणी कस आघू के बात कही देथे लिख देथे| लेकिन वोकर ले भी समाज ल दिशा मिलथे| उदाहरण सरुप कुछ हमर पुरखा कवि- लेखक मन गीत म  गाये- बताये हवँय कि गोबर के मोल का हो सकत हे? आज देख सकत हवन गऊ धन के का महत्तम हवय अवइया  समे म का होही?
समाज ले साहित के लिये विषय मिलथे अउ समाज उपर ओ विषय हर लागू भी होथे| तेकर पाय के जउन समाज म घटत हे उही साहित बनत हे| अउ कुछ साहित म पहिली ले लिखे हे वो कर आवरती होवथे|मने लागू होवत हे|

ये दू ठन बात ह संघरा चलत रही|
बने साहित ले बने संस्कार परंपरा के निरमान होथे| ये कर उलट घलो होही| बने संस्कार परंपरा ले बढ़िया साहित बनही| ये म स्वतंत्र चिंतन , विवेक, समे काल ,वातावरण परकिति के परभाव दशा| ल जोड़ सकत हवन|
   का हमन करोना ल पहली
साहित म लिखे पढ़े रहेन ?नही न! अभी कुछ दिन म कई ठन छंद ,कविता ,कहानी कई विधा बनगे, कई -कई उप विषयवस्तु म लेख बन गय|
समाज के परिस्थिति ले घलो साहित बनथे| अउ परिस्थिति ले गुजर के समाज बनथे|समाज के सबो अंग के विकास पर  बढ़िया साहित्य होना भी जरुरी हे| साहित के उपयोग समाज के विकास के सबो पहलू म होवय|
तभे साहित ह दरपन बन सकत हे|

अश्वनी कोसरे

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 समाज ऊपर साहित्य के प्रभाव

आज हम सबे झन जानथन , हमन जउन माहुल (वातावरण) मा रहिथन , ओही माहुल (वातावरण) ल हमन समाज कहिथन । हमर देश ल बहूसाम्प्रादायिक राष्ट्र घलो कहे जथे , काबर हमर इहाँ कइयो प्रकार के जाति , अउ धर्म के लोगन मन हर हम सब संझरा मिलके रहिथन । अब अतेक जात अउ धर्म वाले देश मा , हम सब झन रहिथन , त छुआ छुत अउ भेदभाव के होना तो सहज गोठ रहिच , अउ ये छुआ छुत हर हमर पूरा समाज म फइल गे रहिस । अब हम गोठ करथन साहित्य के , साहित्य ला "समाज के दर्पण" (आइना) कहे जाथे , कोनो भी समाज के सुग्घर रचना अउ निर्माण करे म साहित्य हर ओ काम करथे , जउन काम एक झन कुम्हार हर करथे । पहिली के हमर साहित्यकार मन हर देखिन , की आज हमर समाज म जउन ये छुआ छुत अउ उँच निच के भेदभाव हे , तउन हर हमर समाज ला पूरा मइला के राख दे हवँय । अब कहूँ लोगन मन के मनले अइसन जात पात उँच निच के भाव मन हर नइ मिटही , तब तक हम नवाँ अउ जागरूक समाज के बारे म सोंच घलव नइ सकन । अइसन सब बात मन के विचार करके , समाज मा फइले सबो बुराई मन ला मिटाय खातिर बर अउ लोगन मन जगाय खातिर ही । साहित्यकार मन हर समाज मा साहित्य के जोत ला जलाइन हे , अउ अपन रचना मन ले समाज के लोगन मन ला जगाय के सुग्घर उदीम करिन हावय । अगर कहूँ हम कोनो साहित्यकार मन के नाम ला गिनाबोन ता , हमर कइ ठन पेज हर अइसने हे भर जही , फेर साहित्यकार मन के नाम हर नइ सिरावय । जउन मन हर हमर समाज के नवाँ निर्माण करे म सहयोग दिन हे । अउ जउन मन ला हमन आज ले घलव जानथन अउ उंकर बारे म आज ले पढ़थन अउ सुनथन । सबो समय म समय समय के हिसाब ले साहित्यकार मन हर होइन , अउ आज ले घलव हावय जउन मन उही बेड़ा ला उठाके । समाज ला जगाय खातिर सरलग उही उदीम ल चलावत आवत हावय , पहिली हमर समाज मा जइसन छुआ छुत उँच निच अउ जात पात मन के भेदभाव रहिस हे । ओहर आज कल जागरूक अउ पढ़े लिखे लोगन मन के आय ले , बहुते कम होंगे हावय । कहूँ हम पहिली के समय अउ आज के समे ला तउल के देखथन ता हमला आज नही के बरोबर , ओइसन भेदभाव अउ छुआ छुत के भाव हर हमर समाज म देखे बर मिलथे । हम सबो झन जानथन की समाज ला , जागरूक करके समाज के नवाँ रचना अउ निर्माण करे मा साहित्य अउ साहित्यकार मन हर कतका कन अपन योगदान देथे । तेपाय के कोनो कवि घलव कहे हावय : -
             अंधकार है वहाँ ,  जहाँ आदित्य नही है ।
             मुर्दा है वह देश ,  जहाँ  साहित्य नही है ।।

                           मोहन कुमार निषाद
                       गाँव - लमती , भाटापारा ,
                     जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)

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 छतीसगढ़ी साहित्य अउ समाज
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विद्वान मन साहित्य ल परिभाषित करत कहें हे कि --जेन हा हित करय वो साहित्य ए। अब प्रश्न उठते काकर हित करय? उत्तर मा कहे जा सकथे कि --खुद लिखइया के अउ ओला पढ़इया - गुनइया मनखे के मतलब समाज के हित करय।  आप सब जानत हव कि साहित्य के कहानी, कविता , नाटक , उपन्यास, आत्मकथा आदि अबड़ अकन रूप होथे।  जेन रचना चाहे कुछु भी विधा मा राहय , जेमा भी समाज कल्याण के भावना , मानवता  के समर्थन अउ व्यक्ति के विकास के भावना रइही  उही हा साहित्य आय बाँकी ह मोर विचार ले शब्द जाल अउ बकवास बस आय ।  जइसे धर्म बर कहे गे हे "धर्म इति धारयिति" अर्थात धर्म उही विचार या व्यवहार  हरे जेन धारण मतलब अपनाये के  लायक राहय अउ जेन हा मनखे ला गिरन मत दय या गिरत ल धर के थाम लय। ओइसने साहित्य घलो उही हरे जेमा व्यक्त विचार मन अपनाये के लायक राहय ।जेकर ले कोनो प्रेरणा मिलय, मनखे ला सहीं मा मनखे मतलब अपन मन के खेवइया    बनावय। मन मा भरे संकीर्णता के घेरा ल टोरके विशाल हृदय वाला बने के ज्ञान देवय, समझ देवय उही हा साहित्य ए।
        अपन नाम के संग साहित्यकार जोड़ लेना बड़ सरल हे फेर सच म साहित्यकार बनना अबड़ेच कठिन हे।
          साहित्य ल समाज के दर्पण कहे गे हे।  मोर व्यक्तिगत विचार आय हो सकथे  तुच्छ होही ।एला अइसना कहना सहीं होही --लेखक/ कवि मन के रचना हा समाज के दर्पण होथे। समाज के जेन रीति रिवाज, खान पान ,रहन सहन ,घटना-दुर्घटना  , संस्कार -कुसंस्कार  रइही वो सब कोनो न कोनो रूप म वो समे के रचना म दिखथे । फेर दोहराये के धृष्टता करना चाहहूँ कि -सबो रचना साहित्य नइ होवय। कोनो रचनाकार अपन हीन भावना म ग्रसित होके , कोनो वाद के आड़ लेके या राजनैतिक दृष्टिकोण ले कुछु भी गलत सलत लिख देही त का दर्पण म सहीं सहीं दिखही? नइ दिखय ।ये तो ओइसने होगे जइसे मनमाड़े धुर्रा जमे दर्पण मा ककरो चेहरा ह दिखही।
कोनो कहूँ दर्पण ल पथरा मार के फोर डरे ह त का  एके ठ जइसे हाबय तइसे चेहरा दिखही? मोला लागथे नइ दिखय।
           आज के बेरा मा अगर छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ समाज मा उपर लिखे बात ल भँजा के देखन त दूनो बात दिखथे। हमर  संत महात्मा अउ  पुरखा साहित्यकार मन के रचना मन सच म समाज के दर्पण हें  फेर अभी के लिखइया मन साहित्यकार के दर्जा म कतका झन आ सकथें ? सोचे के बात आय।
             पाँचो अँगरी बरोबर नइ होवय। वर्तमान म घलो वो रचनाकार जेन मन कोनो वाद-विवाद  ले ऊपर उठके, मानवता अउ आत्म कल्याण , दीन दुखी मन के उत्थान के भावना ले कलम चलावत हे , फलदाई छत्तीसगढ़ी सद साहित्य के सिरजन करत हें।
  छत्तीसगढ़ राज बने के बाद , महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी म लिखे के क्रांति होगे हे। हजारों पुस्तक छपत हें। अब तो समय बताही ओमा कतका कस, कतका दिन ले जी पाहीं ,कतका कस  लोक हितकारी अउ कालजयी होहीं।
        हाँ अतका संतोष के बात जरूर हे कि छत्तीसगढ़ी साहित्य के कोठी ए दौर म दिन दूना ,रात चौगुना भरत जावत हे।

चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़
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छत्तीसगढ़ के साहित्य अउ समाज

साहित्य अउ समाज के बीच गाढ़ा नाता हे ।कोनो साहित्य ला पढ़के हमन वो साहित्यकार जे समाज मा रहिथे वोखर देशकाल परिस्थिति ला जान लेथन।रवीन्द्र नाथ टैगोर जी ला पढ़के बांग्ला समाज के रीतिरिवाज वो भी आजादी के पहली के ला जान लेथन।प्रेमचंद जी ला पढ़के  उत्तर भारत के रीतिरिवाज से परिचित होथन।फणीश्वरनाथ नाथ रेणु जी ला पढ़ के बिहार के समाज के रहन सहन ला जान जाथंन।हमर छत्तीसगढ़ घलो बड़़े बड़े साहित्यकार मन के कर्मभूमि आय ।चाहे सुंदर लाल शर्मा जी के दान लीला हो चाहे गोपाल मिश्र जी
 के खूब तमाशा जेमा रतनपुर के एक तत्कालीक घटना के वर्णन हे।अउ कई साहित्यकार जइसे कोदूराम दलित जी,लक्ष्मन मस्तुरिया जी जिखर साहित्य ला पढ़के छत्तीसगढ़ के समाज अउ ओखर संस्कृति ला समझे जा सकत हे।परिवर्तन संसार के नियम आय ।समय के संग समाज मा बदलाव आथे ये बदलाव ले साहित्य अछूता नई राहय ।टैगोर जी के बांग्ला समाज मा आज बदलाव आ गय हे ।शर्मा जी के छत्तीसगढ़िया समाज भी बहुतेच बदल गे हे।बदलाव के असर साहित्य मा घलो पड़ना स्वभाविक हे भले रीतिरिवाज नइ बदले पर वोला निभाय के तरीका जरुर बदल  गय हे अब खेत मा हमला अर्र तता तता  सुनाई नई देवय त धरले नाँगर धर तुतारी के गीत कइसे गाबो ।अब तो टेक्टर हार्वेस्टर के जमाना आ गय हे।हा कई चीज अभी घलो नई बदले वो हे शोषण ।शोषक बदल गय हे फेर शोषित आज भी उहें हे प्रवासी मजदूर मन के पीरा कखरो ले छुपे नइहे।।खेती के नवा नवा साधन अपनाय ले घलो किसान के अपन पीरा हे जेमा सबले बड़े पीरा हे वोखर फसल के सही कीमत नई मिल पावय इहाँ तक सुनाई परथे कि किसान मन ला अपन टमाटर रद्दा मा फेंकना परगे।अउ कतको बिषय हे जेमा लिखे जा सकत हे।लिखे के काहे लिख तो कोनो भी सकत हे ।सबो लिखाई साहित्य नई कहे जा सके।कोनो रचना साहित्य तभे कहाही जब वोमा भाव रइही,शोषित के पीरा के अवाज रइही अउ समाज ला नवा रद्दा देखाय के गुन रइही।

चित्रा श्रीवास
बिलासपुर छत्तीसगढ़
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 साहित्य संस्कृति के असल रूप तो हम अपन बबा,नाना,कका दाई,ममा दाई मन के किस्सा कहानी में सुने हन,फेर आज वो संस्कृति अउ शबद मन तको आधुनिकतावाद प्रगतिवाद, पाश्चात्य संस्कृति के कुँहरा मा धूमिल होगे हे।
हमन खुद घर परिवार अपन बीच मा भी अपन मातृभाषा छत्तीसगढ़ी मा गोठियाना उचित नइ समझन यहाँ तक शरम महसूस करथन, अउ पाश्चात्य भाषा ला गोठियाये मा गर्व महसूस करथन। जब हम खुद अपन नव पीढ़ी मा अपन पुरखा बबा के रीति संस्कृति ला नव पीढ़ी मा स्थान्तरित नइ करबो ता फेर हमर मातृभाषा कइसे समृद्ध हो पाही। अगर इही दशा रइही तो कुछ साल दशक मा हमर मातृभाषा ला हमर लइका, नव पीढ़ी खुद नइ जान पाही।
अगर मातृभाषा छत्तीसगढ़ी ला सही मान सम्मान देना हे, मातृभाषा के दर्जा दिलाना हे तो हम सब अपन घर से ही एखर शुरुआत करिन।

इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
                 बिलासपुर

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कोई भी साहित्य ओखर समाज के दरपन होथे। ये बात छत्तीसगढ़ी साहित्य बर घलाव लागू होथे। छत्तीसगढ़ मा जेन भी साहित्य रचे जावत हे,फेर ओ पद्य होवय कि गद्य,ओमा समाज के छाया दिखना स्वाभाविक हे,एक बात यहू हे कि अपेक्षाकृत गद्य कम लिखे जात हे, रचनाकार मन ल यहू ध्यान म रखना पड़ही, संगे संग रचना म गंभीरता लाए ल पड़ही,,अपन समाज के रीति-रिवाज, संस्कृति ,तीज तिहार, हाना, आदि ल जीवित रखे के उदिम करना पड़ही।
       कतको जन लेख कहिनी आदि लिखत हें,अउ अखबार आदि म छपत हें। जेन जन साधारण ल पढ़ें बर सस्ता सामाग्री के रूप म उपलब्ध हे।,अइसे म हमर कर्त्तव्य बन जथे कि हम पाठक ल अच्छा सामाग्री पहुँचावन।
  मोर विचार म एक बात के विशेष रूप से ध्यान रखना चाही, कि भाषा म बनावटी पन झन दिखय--यानी हिंदी के शब्द ल तोर मरोर के छत्तीसगढ़ी झन बनाए जाय ,हमर भाषा बहुत समृद्ध हवै। प्रयास रहै कि भाषा ल शुद्ध रखें जाय। अउ यहू कि बावन अक्षर के प्रयोग ल घलौ, बेझिझक करें जाय। जेखर ले हमर भाषा अउ समृद्ध होवय। एखर अलावा, विषय ल लेके नवापन जरूरी हे, मोर विचार म हर नवा विषय म लिखना चाही। आधुनिकता ले लेके, तकनीकि तक सब ल समेटे के आवश्यकता हवय।तभे छत्तीसगढ़ी साहित्य समाज म स्थान बना सकही अउ लोकप्रियता पा सकही। एखर बर हम सब ला मिहनत करना पड़ही।
   पद्य काफी लिखे जावत हे। तभो ले कविता के स्तर अच्छा होना चाही। जब हम स्तरीय रचना समाज ल देबो,तभे समाज बर साहित्य के योगदान सफल कहाही
-- नीलम जायसवाल, भिलाई, छत्तीसगढ़ ---

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समाज म जेन गतिविधि होवत हे ,साहित्य उही ल लिखही
साहित्य कोनो धर्म जात के बात नइ करय,वो सिर्फ सही अउ गलत के बात करथे।आजकल एकल परिवार ज्यादा हे अउ आज के पीढ़ी संयुक्त परिवार के महत्व ला नइ जानँय।
पहिली के आवागमन ,रीति रिवाज तीज त्योहार ,नेंग नत्ता,रहन सहन अइसे बहुत से पहलू हे जेखर जानकारी नवा पीढ़ी ला होना चाही,
आज वैज्ञानिक युग आगे हे
हमन ल कतिक सुविधा मिलत हे
आज घर बइठे मनखे सबो दुनिया देखत हे।
वो समय भी रहिस हे जब एक टेलीविजन ल पूरा गाँव देखे,
अउ अब तो हर कुरिया में टीवी लगे हे।
ये विज्ञान हमन बर कइसे वरदान बनगे।
अउ येखर हानि भी बहुत होगे।
कहानी किस्सा के चलन नइ रहिगे
लइका मन कार्टून देखके उही मन ला नायक समझ लेथे।
जब तक साहित्य अतीत वर्तमान ला समो के नइ चलही।
तब तक विकास नइ कहे जा सके।
हमर दायित्व बनथे।
आज ,कल दुनो ला साहित्य में लेकर चलन।


आशा देशमुख

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Friday 26 June 2020

आलेख-मँहगाई चौमास म(जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया")

आलेख-मँहगाई चौमास म(जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया")



             बरसा के बेरा का आइस, सबे साग भाजी एक्केदरी अब्बड़ मँहगा होगे। अइसन मँहगाई करलाई ताय। सेठ साहूकार मन घलो कल्हरत दिखते, त गरीब मनके का ठिकाना। दुच्छा भाते भात घलो तो टोंटा ले नइ उतरे, तब तो एके उपाय बचथे, जइसने दाम म मिलत हे, तइसने बिसावन अउ खावन। मँहगाई के रोना रोय ले कुछु नइ होय, आखिर ये सबके जिम्मेदार हमिच मन तान। आज  हम सब सुखियार होगे हवन, शहर नगर अउ कई किसम के  दिखावा कस चोचला म फँस गे हवन, खेत खार कोला बारी ले दुरिहागे हवन, अउ जउन जुड़े हे, तेखर बर का मँहगाई? कथे कि प्रकृति ले जुड़े जीव के परवरिस प्रकृति खुदे करथे। गायेच गरवा मन ल देख लव, बरसात म हरियर चारा पाके  मगन हो जथे।फेर आज हमर जुड़ाव सिर्फ दिखावा हे। जइसे ही बरसा के बेरा हबरथे रिकिम रिकिम के साग भाजी प्रकृति बिन माँगे परोस देथे। कतको बीजा भुइयाँ ल फोड़ के बरपेली उग जथे। मनखे बरसात म साग भाजी बर तरसथे अउ जानवर मन बरसा घरी हरसथे।  एखर मतलब साफ हे कि हमला प्रकृति के साथ चलना चाही, फेर कथनी अउ करनी म फरक हे। जेन प्रकृति ले सीधा जुड़े हे, तेखर बर चिरचिर ले जामे चरोटा संग रंग रंग के भाजी पाला, करील अउ पुटू कस मुफत के साग भाजी हे। बारी बखरी म घलो खेकसी, कुंदरू कस कई किसिम के साग सब्जी उपजथे। बाजार हाट जाये के जरूरत घलो नइ पड़े। कई मनखे तो प्रकृति के ये वरदान ल भले बाजार ले बिसा लेथे, फेर टोर टार के खाये म घलो शरम मरथे।
             पहली के मनखे मन चौमासा के तियारी गरमीच घरी कर लेवय। साग भाजी  के खोइला संग बरी बिजौरी बना के रखय। अउ जब चौमासा लगे त, बरी बिजौरी,रंग रंग खोइला, चरोटा, पुटू,अउ करील जइसन साग भाजी ल हाँस हाँस के खाय। बरसा घरी उपजइया पुटू, करील, चरोटा जइसन जम्मो साग भाजी मन मनखे मन ल बरसा घरी होवइया जर अउ रोग राई ले घलो बचावव, तन ल तन्दरुस्त रखय। फेर आज हम सब बाजार भरोसा होगे हवन। त अइसन म बाजार के उतार चढ़ाव ल झेलेच ल पड़ही। खवैया जादा होगे हवन अउ उपजइया लगभग नही के बरोबर, त सबला पूर्ति घलो कइसे होय। तेखरे सेती जेखर कर पइसा हे, उही ह बाजार हाट अउ मँहगाई ले आंख मिला सकथे।
                  ऊँच ऊँच इमारत, होटल,ढाबा, मॉल,बड़े बड़े टावर, रेल पाट अउ कई लेन के सड़क, आज खेत खार अउ बारी बखरी ल हड़प लेहे।  आज मनखे चाँद तारा ले गोठियात हे, अगास पताल सब ला अपन मुठा म धरत हे, कहे के मतलब विकास के रथ म सवार हे, फेर विकास के रथ बइठे बइठे पेट नइ भरे। पेट के अगिन,  भात-बासी , रोटी- पीठा ले बुझाथे। प्रकृति पनप नइ पावत हे, विकास के पाँव म हरिया,परिया, तरिया, रुख राई जम्मो खुन्दावत हे। अइसन म प्रकृति खुदे बचे त मनखे ल मुफत म बाँटे। कथे कि ये हमर मानुष तन घलो माटी के आय, माटी, जंगल झाड़ी, रुख राई, जीव जंतु जम्मो के थेभा होथे, फेर आज शहरीकरण के जोर म क्रंकीट अउ सीमेंट ह, माटी के छाती उप्पर बिछत जावत हे, अइसन म माटी जेन कतको युग ल पाले हे, आज का करे। माटी म दबे बीच भात, क्रंकीट अउ सीमेंट ल फोड़ के तो नइ उग सके। माटी ल माटी रहन देय म हमरे भलाई हे। माटी ले सोन उपजथे, क्रंकीट अउ सीमेंट ले का उपजही तेला, ये नवा जमाना जाने।  बिन रुख राई के धरती बोंदवा होवत जावत हे, गरमी मरे जिये बाढ़त हे, माटी नइ रही त का खेती बाड़ी,अउ बिन खेती बाड़ी के का साग भाजी, त मँहगाई तो बढ़बेच करही। विकास आज बिल्कुल जरूरी हे, फेर पेट के ठेका का सिरिफ किसाने मन ले हे? उंखरो अन्न अउ साग भाजी ल व्यपारी मन अवने पवने खरीद के, व्यपार करत हे। चाहे मनखे होय या कोनो जीव सबला खाये बर चाही , तभे जिनगी रही, एखर बर महल,मीनार, टावर,सड़क  काम नइ आय। खान पान के थेभा सिरिफ खेत खार, बारी बखरी, अउ जंगल-झाड़ी आय। आज ये सब ला सिर्फ बढ़ावा देय के जरूरत नही बल्कि इंखर ले जुड़े के जरूरत हे। मनखे जंगल म घलो कांदा- कुसा, फर-फूल, साग भाजी खाके जी सकथे, फेर शहर नगर म, बिन पइसा  के जीना मुश्किल हे। विकास के रद्दा म रेंगत रेंगत भूख घलो लगही, एखरो जोरा करके चलेल लगही। एखर बर जंगल झाड़ी, खेती बाड़ी  ले लगाव अउ जुड़ाव, दूनो जरूरी हे। अभी तो एक समय विशेष म मँहगाई  झेलेल लगत हे, यदि हम सबके झुकाव प्रकृति कोती नइ होही, त का गरमी, का सर्दी अउ का बरसा, सबे बेरा मँहगाई सुरसा कस मुख उलाये ठाढ़े रही।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

Friday 5 June 2020

कबीर जयंती मा विशेष आलेख-अजय अमृतांसु

कबीर जयंती मा विशेष आलेख-अजय अमृतांसु
 
              #संतो देखत जग बौराना#

            *सच काहूँ तो मारन धावे झूठे जग पतियाना संतो देखत जग बौराना.....*  कबीरदास जी के ये बानी तब भी प्रासंगिक रहिस अउ आज भी प्रासंगिक हवय । कबीरदास जी के नाम निर्गुन भक्तिधारा के कवि मा सबले ऊँचा माने जाथे,उन हिंदी साहित्य के महिमामण्डित व्यक्तित्व आय । कबीर दास जी जतका बात कहिन सब अकाट्य हे वोला आप काट नइ सकव, मानेच ल परही काबर कबीर हमेंशा यथार्थ के बात करथे । कोरी कल्पना या सुने सुनाये बात उँकर साहित्य म नइ मिलय। कबीर के साहित्य ल मूल रूप ले तीन भाग म बाँटे जाथे- साखी, सबद रमैनी ।
              'साखी' शब्द साक्षी शब्द के अपभ्रंश आय । येकर अर्थ - "आँखों देखी बात।" कबीर के साखी मन दोहा मा लिखे गए हवय जेमा भक्ति अउ ज्ञान के उपदेश हवय। 'रमैनी' और 'सबद' हा 'गीत / भजन' के रूप में मिलथे हैं ।
               उलटबासी मा कबीर ल महारत हासिल रहिस । दुनिया मा सबले जादा उलबासी कबीर ही लिखे हवय। उलटबासी पढ़े अउ सुने म तो उटपटांग अउ निर्थक लागथे फेर जब गहराई मा जाबे तब येकर गूढ़ अर्थ समझ आथे । पंडित मन के अहंकार ल टोरे खातिर ही कबीर उलटबासी लिखिन जेकर अर्थ ल बड़े बड़े ज्ञानी मन घलो बूझ नइ पात रहिन ।
कबीर के शिक्षा के बारे म विद्वान मन म मतैक्य नइ हे। कुछ के मानना हवय कि कबीर ल पढे-लिखे के अवसर नइ मिलिस लेकिन विद्वान मन के संग उन खूब रहिन तेकर सेती वेद अउ शास्त्र के पूरा जानकारी उमन ला रहिस। उँकरे शब्द मा--
*"मसि कागद छूवो नहीं, कलम गही नहिं हाथ।"*
            कबीर के छवि समाज सुधारक के रहिस। उँकर साहित्य हा काव्य पांडित्य दिखाय बर नइ रहिस बल्कि उँकर काव्य ह भक्ति काव्य रहिस जेमा रहस्यवाद के अद्भुत दर्शन मिलथे । कबीर ल स्वतंत्र अउ सम्मानजनक जीवन प्रिय रहिस,रूखा सूखा खा के ठंडा पानी पी के भी उन संतुष्ट रहिन। कबीर कहिथे :--
*खिचड़ी मीठी खांड है,मांहि पडै टुक लूण।*
*पेड़ा पूरी खाय के,जाण बंधावै कूण ॥*
           कबीर के भाखा सधुक्कड़ी माने जाथे जेमा-  खड़ी बोली, अवधी, ब्रज, राजस्थानी, हरियाणवी, पंजाबी के शब्द बहुतायत म मिलथे। उमन अपन भाखा ल सरल अउ सुबोध राखिन ताकि आम आदमी घलो समझ जाय । जीव ही ब्रम्ह आय अउ आत्मा ही परमात्मा ये बात ल कबीर कतका सुन्दर ढंग ले समझाथे-
  *ज्यों तिल माहीं तेल है, ज्यों चकमक में आग।*
   *तेरा सार्इं तुझमें है, जाग सके तो जाग।*
            ईश्वर के खोज म भटकइया मनखे ल कबीर सचेत करथे-
     *मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे मैं तो तेरे पास में*
       कबीरदास जी युग प्रवर्तक के रूप म जाने जाथे । हिंदी साहित्य के 1200 साल के  इतिहास म कबीर जइसन न तो कोनो होइस अउ न तो अवइया बेरा म कोनो हो सकय । कबीर अद्वितीय रहिन ये बात ल सबो स्वीकारथे ।

                              -----अजय अमृतांसु----