Thursday 18 March 2021

विमर्श के विषय--रचनाकार अउ प्रकाशक*

 

*विमर्श के विषय--रचनाकार अउ प्रकाशक*


साहित्य जगत के दू अविभाज्य प्रमुख अंग होथे --रचनाकार अउ प्रकाशक। दूनों एक दूसर के बिना अधुरा हे।

 कोनो रचनाकार हा कोनो भी विषय मा बनेच बढ़िया लिखे हे जेकर पांडुलिपि ह ओकरे करा चुपचाप सुरक्षित रखाय हे त उहू का काम के? हो सकथे एकर ले रचनाकार भर ला आनंद मिल सकथे । साहित्य के उद्देश्य तो सबके भला करना, सब ला सुख देना आय तेकर सेती वो पांडुलिपि के पुस्तक/ग्रंथ के रूप मा पाठक मन के हाथ मा पहुँचना जरूरी होथे। तभे तो वो पुस्तक के ज्ञान अंजोर ह दुनिया म फइलही, प्रकाशित होही। एकर बर प्रकाशक के होना लाजिमी हे जेन जिम्मेदारी उठा के  समाज के भलाई बर  ,रचनाकार के भलाई बर ये कठिन काम के बीड़ा उठा सकय।

  ये तो तय बात हे के जइसे शिष्य ह श्रेष्ठ गुरु अउ गुरु ह अनुशासित,प्रतिभावान शिष्य खोजत रहिथे ओइसने रचनाकार ह सुग्घर प्रकाशक खोजत रहिथे जेन ह अपन खर्चा म या फेर कम ले कम खर्चा म ओकर कृति ल छापके जन जन मा बगराये के काम करय।

     वोती बर प्रकाशक ह तको  सुग्घर रचनाकार ल  खोजत रहिथे ,वोकर रद्दा जोहत रहिथे। 

    ये तो तय हे कि आज के दुनिया म कोनो घाटा के सौदा नइ करना चाहय। प्रकाशक मन तको उही पुस्तक ल अपन पइसा लगा के छापना चाहथें जेला बेंच के मुनाफा कमा सकय।सबके पेट-रोजी के सवाल हे। प्रकाशन के काम मा कागज, बिजली, मजदूर---आदि के खर्चा आथे। 

  प्रकाशक मन लेखक सो इही खर्चा लेके ककरो भी कोनो पुस्तक ल छाप देथें। अइसन छपाई ले न तो प्रकाशक अउ लेखक के, न तो पाठक के भला होवय। एकरे सेती आलोचक मन कहिथे-किताब मन रद्दी के भाव म बेंचावत हे नहीं ते आलमारी म भरे- भरे दिंयार खावत हे।

     ये सब बात ल धियान म रखके रचनाकार मन ल सुग्घर रचना करना चाही ।प्रश्न ये हे के सुग्घर रचना काला कहे जाय। "मुंडे-मुंडे मति भिन्ना " के स्थिति हे। एक माँ-बाप ल अपन दिव्यांग बच्चा, मरार ल अपन कड़हा-कोचरा साग-भाजी ह घलो अब्बड़ प्यारा होथे ,ओइसने एक रचनाकार ल अपन लिखे ह बहुतेच प्रिय होथे।

कतकोन  गुदड़ी के लाल जइसे  उत्कृष्ट रचनाकार हें जेन मन गरीबी के सेती ,नहीं ते जानकारी के अभाव म या कोनो मार्गदर्शक , संरक्षक के अभाव म अपन किताब ल नइ छपवा सकयँ।

  अइसन द्वंद के स्थिति म प्रकाशक मन के बड़का जिम्मेदारी हे के वो मन खुदे अइसन  नवेरिया लेखक गरीब सृजनकार  मन ल खोज के,चयन करके प्रकाशित करे के पुनित कार्य करयँ।

    छत्तीसगढ़ म कुछ प्रकाशक मन अइसन पुनीत कार्य बर ध्यान दे हावयँ जेन अभिनंदनीय हे।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

रचनाकार अउ प्रकाशक --एक विमर्श* पोखन लाल जायसवाल

 *रचनाकार अउ प्रकाशक --एक विमर्श*

          पोखन लाल जायसवाल


        रचनाकार अउ पाठक ल जोरे के बड़का बूता प्रकाशक मन करथें। उन मन एला तइहा ले करतेच आवत हें। लेखक अउ पाठक के बीच समीक्षक एक सेतु सही होथे, वइसने प्रकाशक घलव पाठक अउ रचनाकार ल जोरे के बूता ल करथे। समीक्षक कोनो रचना ल पाठक ल समझे म मदद करथे, त प्रकाशक रचना ल पाठक तिर पहुँचाय म मदद करथे। जब तक प्रकाशक कोनो रचना ल प्रकाशित नइ करही, पाठक के हाथ म वो कइसे पहुँचही? इही पाय के रचनाकार अउ पाठक बर प्रकाशक के होना जरूरी हे। एक प्रकाशक अपन एक प्रकाशकीय उद्देश्य ल लेके चलथे। ए उद्देश्य उँखर निजी मामला ए। जेकर ले समझौता करना अउ नइ करना उँखर अधिकार क्षेत्र म रहिथे। इही पाठक बीच उँखर पहचान घलव बनथे। पाठक घलव अपन पसंदीदा प्रकाशन के नवा-नवा किताब के अगोरा म घलव रहिथें।

         प्रकाशक ल प्रकाशन बर रचना के पांडुलिपि के पहिली भौतिक संसाधन जइसे कागज, स्याही, छापा मशीन, बिजली अउ बिल्डिंग...मन के जरूरत परथे। मजदूर अउ बजार घलव जरूरी होथे। ए सब बर एक प्रकाशक ल बहुत अकन लागत लगाय ल परथे। जेकर म जोखिम उठाय के माद्दा रहिथे, उही ह प्रकाशन के दुनिया म पाँव धरथे। मजदूर के संग अपनो रोजी-रोटी के चिंता स्वाभाविक हे। लगाय लागत के मुनाफा तो सबे चाहथें। लेखक जउन लिखथे ओमा उँखर लागत न के बराबर रहिथे। स्वांतःसुखाय लिखथे। फेर प्रकाशक के का स्वांतःसुखाय? इही कारण ए कि प्रकाशक लेखक ले प्रकाशन के कीमत वसूलथे। स्थापित रचनाकार मन ल स्वयं के खरचा म घलव छापथे। जेकर पाठक के बीच माँग रहिथे। कुछ प्रकाशक रचनाकार के पीछू दउँड़ लगाथे, त कुछ लेखक प्रकाशक के । नवसीखिया या फेर नवा नेवरिया लेखक के बात अलग ए। स्थापित रचनाकार के बहाना प्रकाशक स्थापित होना चाहथे, त कुछ लेखक प्रकाशक ले नाम कमाना चाहथे।

        लेखक ल प्रकाशन के पहिली अपन रचना ल रचना के विधा के जानकार मन ले बरोबर जाँच करा लेना चाही। जेकर ले शिल्प म कोनो कमी मत रहय। व्याकरणिक दोष दूर हो जय। भाषा सहज सरल अउ पाठक ल बाँधे के लइक रहय।  अइसन रचना ल पाठक हाथों हाथ तो लेबे करही। प्रकाशक घलव अइसन रचना ल छापे बर आगू आथे। दोषमुक्त रचना अउ समाज हित के बात नइ होय ले रचना के प्रकाशन लेखक अउ प्रकाशक के साख म बट्टा लगाथे। ए बात दूनो ल धियान रखे के चाही। समय अउ पैसा के नुकसान अलगे होनाच हे। लिख के अउ छाप के खरही गाँजे ले न साहित्य के भला होय, न लेखक अउ प्रकाशक के। पहिली संस्करण म सीमित संख्या म किताब निकाले के चाही। लेखक अउ प्रकाशक ल माँग के मुताबिक दूसर संस्करण निकाले के योजना मिलके कर लेना दूनो के हित म रही।

       प्रकाशक के दिली इच्छा रहिथे कि अच्छा ले अच्छा साहित्य पाठक के बीच पहुँचा सकय। एक प्रकाशक खुदे अच्छा समीक्षक या साहित्य के जानकार हो सकथे अउ नहीं घलव। प्रकाशक ल धियान रखे के चाही कि मिले पांडुलिपि म कोनो प्रकार के कमी ले लेखक ल अवगत करा के सुधार कराय। छापे के अनुभव लेखक ले साझा होना चाही।

        लेखक अउ प्रकाशक दूनो के जिम्मेदारी बनथे कि साहित्य ल साहित्य जइसे ही प्रकाशित करँय। कुछ किताब अइसे देखे म मिलथे, जेमा लेखक अपन नाम बर किताब छपवाय हे कस लगथे। ए अलग बात आय कि सबो ल अपन रचना प्यारा अउ श्रेष्ठ लगथे। लेखक ल चाही कि वो पहिली छपे अउ चर्चित किताब पढ़ँय अउ अपन प्रस्तावित किताब ल उँकर ले आँकय। काबर कि कभू कभू प्रकाशक मन अपन दैनिक खरचा के पूर्ति करे बर साधारण रचना के प्रकाशन के खतरा मोल ले लेथें।यहू याद रखे के हे कि जब समाज के हित होही तभे आगू चलके लेखक अउ प्रकाशक दूनो के हित होही। 

         अभी के समय म कुछ साहित्यकार मन साझा साहित्यिक पत्रिका के प्रकाशन करे म सरलग धियान देवत हें। प्रकाशक के रूप म खुदे ल राख के मुनाफाखोरी घलव चलात हे। एहर प्रकाशक मन बर एक चुनौती हे।

         कुछ प्रकाशक मन नवा पीढ़ी के रचनाकार ल प्रोत्साहित करे खातिर काम करत हें। ए प्रशंसनीय हे। अपन प्रकाशकीय अनुभव ले उँखर मार्गदर्शन करे म भविष्य म अउ एक अच्छा साहित्य पढ़े के आस सँजोए जा सकथे। 


पोखन लाल जायसवाल

पलारी

बलौदाबाजार छग.

रचनाकार अउ प्रकाशक-सूर्यकांत गुप्ता कांत

 रचनाकार अउ प्रकाशक-सूर्यकांत गुप्ता कांत


सबले पहिली पटल के संस्थापक, छंदगुरु श्रद्धेय अरुण निगम भैया, पू० सरला शर्मा दीदी, पू० सुधा वर्मा दीदी, श्रद्धेय डॉ. विनोद वर्मा सर, डॉ. सुधीर शर्मा सर संगे सँग जतका ए पटल ले साहित्यविद् अउ विदुषी मन जुरे हें उन सबला पैलगी करत         

गुरुवर  अरुण निगम द्वारा उठाये विषय म अपन नानमुन जउन विचार मन म आए हे;  ओला इहाँ मड़ावत हौं। मोर हिसाब से सबले पहिली रचनाकार के रचना ल परखना चाही। मोर व्यक्तिगत रचना(मोर रचना लिख पारेँव, वास्तव म दाई सरसती के आदेस मानत मोर द्वारा लिखाए रचना मानौ...का "मैं "अउ का "मोर रचना") ल घलो प्रकाशित करे या करवाए म डर्राथौं।  आज तो साहित्यकार मन के बाढ़ आ गे हे। ओ बाढ़ म ए  विचार लिखइया ल झन मिलाहौ, काबर के ए हा साहित्यकार नो है।  क्षमा करिहौ, बाढ़ ह उतरथे त  पानी मतलहा नई रहय जम्मो कचरा काँड़ी एक जघा तिरिया के माड़ जथे। अउ फरियाये पानी के रंग, जेला हमन निर्मल जल कहिथन, अलगे होथे।  ओ पानी के महत्व अलग होथे। असली प्रकाशक त उही ल माने ल परही जउन रचना ल जाँच परख के प्रकाशित करे के लाइक मान के छापथे। हमर गुरुदेव निगम जी जानत हें, एक पइत ए सूर्यकांत के लगभग 40 ठन  कुंडलियाँ ल कोनो प्रकाशक मेर भेजे बर कहिन। भेजे गईस।ओ 40 कुंडलियाँ ले 20 कुंडलियाँ छँट के छपना रहिस। ओतको कुंडलियाँ मानक म खरा नइ उतरिस। ए होथे जाँच परख।


ए बात सोला आना सच ए के साहित्य जगत म छपास रोग फइले हे। इहू रोग दू किसम के हे; एक रचनाकार के ओकर रचना छपे के ललक अउ दूसर प्रकाशक के ओकर माध्यम से दू चार पइसा मिले के लालसा। अच्छा ! अभी साझा संकलन के चलन मरे जियो चलत हे। ११००/- अंशदान लगही तुँहर बर तीन पेज रिज़र्व होगे।  अब अइसन किताबल पढ़ के देखौ त समझ म आ जथे के लछमी दाई के आगू  महतारी सरसती के नइ चलय।

मोला ए बात केहे म एको संकोच नइ होवय के मोरो हाथ के लिखे चार लाइन घलो मानक म खरा उतरे बिन छप जथे।अंशदान देवाय रथे न, खैर !अपन चीज बर काला मया नइ लगै। का चीज बर हमर ममादाई पटंतर देत रहिन सुरता नइ आवत हे, अतके सुरता आवत हे के कोनो किस्सा म  "मोर असन धन राजा के नइये" कहवइया   के जिकर करय।  मैं नइ कहँव के फोकट म छपै। छपाई  बर पैसा त लगबे करथे। प्रकाशक तको दू पैसा कमाये बर  ए बूता म लगे हे।  


अब प्रकाशक छाप तो दिन किताब। सौ दू सौ प्रति निकल गय। जतका बँटना रहिस बँट गय। जउन लेगिन, उंखर अलमारी म सज गय। जब तक ओ किताब ल प्रसिद्धि नइ मिल जाय ओकर बेचाए के त सोचौ झन। 

 

त इही सब बात के ध्यान रखत रचनाकार अउ प्रकाशक ल सोच के रचना प्रकाशन करना अउ करवाना चाही। काँही अंते तंते लिखा गे होही त ओकर बर माफी माँगत....सादर पैलगी सहित


सूर्यकान्त गुप्ता, 

सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

रचनाकार अउ प्रकाशक-अरुण कुमार निगम

 *रचनाकार अउ प्रकाशक-अरुण कुमार निगम


 जैसे रक्षक के अर्थ रक्षा करइया, भक्षक के अर्थ भक्षण करइया होथे वइसने प्रकाशक के अर्थ प्रकाश करइया होना रहिस फेर प्रकाशक के अर्थ प्रकाशन करइया होथे, प्रकाश न करइया नइ। अंग्रेजी मा एला पब्लिशर कहे जाथे फेर आजकाल छपाई करइया (प्रिंटर) मन तको अपन आप ला प्रकाशक कहिथें अउ रचनाकार मन तको प्रिंटर मन ला प्रकाशक (पब्लिशर) मान लेथें। प्रिंटर के काम बिहाव, जनम दिन, गृह-प्रवेश आदि के निमंत्रण पत्र छापथें। पाम्पलेट अउ शोक-पत्र तको छापथें। प्रकाशक के काम किताब के पाण्डुलिपि के संपादन ले चालू होके किताब के प्रचार-प्रसार, विक्रय अउ वितरण तक होथे। एमन गुणवत्ता के ध्यान रखथें। प्रकाशक ला किताब के मुख-पृष्ठ, पन्ना के गुणवत्ता, छपाई के गुणवत्ता के अलावा प्रकाशित-सामग्री के गुणवत्ता बर सजग रहना पड़थे। इही गुणवत्ता के कारण प्रकाशक के ख्याति (गुडविल) बजार मा बनथे। इही ख्याति के कारण पाठक के मन मा विश्वास जनम लेथे। कुछ अच्छा प्रकाशक मन विमोचन के दायित्व के निर्वाह घलो करथें। किताब ला समीक्षा बर कई विद्वान तक भेजके समीक्षा करवाथें। ये सबके संग वोकर अंतिम उद्देश्य होथे लाभ कमाना। कई प्रकाशक मन ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाए के चक्कर मा गुणवत्ता के ख्याल नइ रखें तेपाय के बाजार मा उनकर गुडविल नइ बन पाए। इलाहाबाद के एक प्रकाशक अपन अनुभव के आधार मा बताए रहिस कि बजार मा कविता के किताब के मांग नइ रहे, गद्य साहित्य के मांग ज्यादा होथे। कुछ प्रकाशक मन गद्य के पाण्डुलिपि ला बिना पइसा लिए छापथें अउ बिक्री के अनुपात मा लेखक ला रॉयल्टी देथें। अपन प्रकाशन के बिक्री ला बढ़ाये बर कुछ प्रकाशक मन पुस्तक मेला के आयोजन या आयोजन मा सहभागिता तको करथें। कुछ प्रकाशक मन बहुत कम राशि मा किताब छापे के वचन देथें अउ रचनाकार ला वो राशि मा किताब के 10-20 प्रति दे देथें। इनकर लाभ कमाए के गणित मोला कभू समझ मा नइ आइस। एला कोनो प्रकाशके समझा सकथे। 


अब रचनाकार के अपेक्षा के बात करे जाए। ज्यादातर रचनाकार मन के अपेक्षा होथे कि प्रकाशक कम से कम लागत मा अच्छा से अच्छा अउ ज्यादा से ज्यादा प्रति छाप के देवँय। पन्ना अउ छपाई के गुणवत्ता बढ़िया देवँय। जल्दी से जल्दी छाप के देवँय। रचनाकार के मूलभूत अपेक्षा ज्यादा करके अतके बिंदु तक सीमित रहिथे। त्रुटिमुक्त पाण्डुलिपि तैयार करे के अउ प्रूफ रीडिंग के बारीक जाँच के जवाबदारी रचनाकार के होथे। डॉ. सुधीर शर्मा से मोर पहिली परिचय संजीव तिवारी जी के माध्यम से मोर पहिली अउ अभी तक के एकमात्र छत्तीसगढ़ी किताब "छन्द के छ" ला छापे के दौरान सन् 2015 मा होइस। ये किताब के मात्र 200 प्रति, सर्वप्रिय प्रकाशन, दिल्ली ले छपे रहिस। किताब मा नाम भले दिल्ली के हवय फेर ये रायपुर छत्तीसगढ़ मा छपे रहिस। आज मोर तीर ये किताब के मात्र एक प्रति बाँचे हे। शायद प्रकाशक के पास भी अब ये किताब के एको प्रति विक्रय बर नइ बाँचे होही। पर साल के पुस्तक मेला मा वैभव प्रकाशन के स्टॉल मा ये किताब (छन्द के छ) उपलब्ध नइ रहिस। मोर तीर जो एकमात्र प्रति हे वोकर बाइंडिंग अउ कलेवर अतिक शानदार हालत मा हवय कि ऐसे लागथे ये अभी अभी प्रेस से निकल के आइस हे। ये किताब के मांग आज भी बहुत ज्यादा हे फेर किताब के उपलब्धता नइये। छत्तीसगढ़ के प्रकाशक डॉ. सुधीर शर्मा द्वारा अगस्त 2015 मा प्रकाशित मोर एकमात्र छत्तीसगढ़ी किताब "छन्द के छ" मई 2016 मा छत्तीसगढ़ी भाषा ला समृद्ध करे के एक आंदोलन मा परिवर्तित होंगे अउ आज तक सुचारू रूप से चलत हे। "छन्द के छ" के किताब मन न मोर तीर हे अउ न प्रकाशक के पास तभो ले ऑनलाइन गुरुकुल मा एला छत्तीसगढ़ के कई नवोदित रचनाकार मन पढ़त हें, पढ़ात हें, सीखत हें, सिखावत हें अउ छत्तीसगढ़ी भाषा ला समृद्ध करत हें। मँय ये सोचथंव कि कोनो-कोनो किताब के लोकप्रियता मा प्रकाशक ले यश घलो महत्वपूर्ण भूमिका रखथे। मोर निजी अनुभव मा मँय अपन प्रकाशक के सेवा अउ काम ले सोला आना संतुष्ट रहे हँव अउ अगर भविष्य मा एकाध किताब छपवाए के महूरत बनगे तो मोर बर सर्वप्रिय प्रकाशन / वैभव प्रकाशन जिंदाबाद रही। 


*अरुण कुमार निगम*

Monday 15 March 2021

कंठ म जहर -हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

 कंठ म जहर -हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

               समुंदर मंथन म , चौदह प्रकार के रत्न निकलिस । सबले पहिली , कालकूट जहर निकलिस । ओकर ताप ले , जम्मो थर्राये लगिन । भगवान शिव हा ... दुनिया ला बचाये बर ... अपन कंठ म , ये जहर ला धारन कर लिन । दूसर बेर म , कामधेनु गऊ बाहिर अइस , तेला देवता के ऋषि मन लेग गिन । तीसर म , उच्चैश्रवा घोड़ा ल , राक्षस राज बलि धरके निकलगे । चौथा रत्न के रूप म निकले , एरावत हाथी , इंद्र धरके लेगे । पांचवा रत्न , कौस्तुक मणि निकलिस तेला , भगवान बिष्णु अपन हिरदे म राख लिस । छठवा रत्न , कल्पवृक्ष निकलिस तेला ,  देवता मन अपन सरग म , लगा दिन । सांतवा रत्न , रंभा अप्सरा निकलिस , यहू ला देवता मन धर के भाग गे । आंठवा रत्न के रूप म , लछमी बाहिर अइस तेला , भगवान बिष्णु अपन तिर राख लिस । अपन संग होवत अन्याव ला देखके , राक्षस मन घुस्सागे । जे निकलय तेला , देवता मन हाथ मार देवय । राक्षस मन ये दारी सोंच डरिन के , ये पइत चाहे जो निकले , उहीच मन धरही । नवमा रत्न , वारूणि निकलिस । येकर निकलतेच साठ , राक्षस मन छकत ले पी डरिन । दसवां रत्न , चंद्रमा निकलिस तेला शिवजी ला , जहर के ताप ले बांचे बर दे दिन । ग्यारहंवां रत्न पारिजात वृक्ष बाहिर अइस , यहू ला देवता मन सरग म रोप दिस । बारहवां रत्न पांचजन्य शंख ला , भगवान बिष्णु राख लिस । तेरहंवा रत्न भगवान धनवंतरी हा अपन संग , चौदहवां रत्न अमृत कलश ला धर के बाहिर अइस । एक कोती धनवंतरी हा सबो तिर रेहे के आश्वासन दिस त , दूसर कोती कलश के अमृत ला अकेल्ला देवता मन चुहंक दिन । 

                अमृत ला अकेल्ला देवता मन पी डरिन तेकर सेती , राक्षस मन बहुतेच नराज होगे । ओमन भगवान बिष्णु करा शिकायत करिन । भगवान किथे – कुछ समे के बाद हमन धरती म , मनखे के रचना करबोन । देवता अऊ राक्षस दूनो मनला , मनखे बना के भेजबो , उही समे अपन तिर के , कुछ समान ला , देवता मनले कतको जादा , तुही मन ला देबो । भगवान शिव ला घला कहि देहूं के , अपन तिर माढ़हे समान , तूमन ला बांट दिही । राक्षस मन खुश होगे ।    

               समे के साथ , धरती म .... मनखे के संरचना होगे । भगवान बिष्णु हा वादा निभावत , चुन चुन के , मनखे के देहें धरे राक्षस मनला , बिगन मेहनत करे , जादा जादा लछमी देवावत गिस । दूसर कोती , भगवान शिव जी हा .... भगवान बिष्णु के आस्वासन ला भुलागे अऊ चंद्रमा ला बरोबर बांट पारिस । मनखे रूपी राक्षस मन , नराज होगे शिवजी बर । शिव भगवान किथे – अब गलती तो होइगे रे भाई .... अब मोर तिर समुंदर मंथन ले निकले , सिर्फ जहर बांचे हे जेला कनहो राखे नी सकव , तेकर सेती , नी बांटव । मनखे मन किथे – जब तें राख सकत हस भगवान , त हमू मन तोरे अंस आवन , कइसे नी राख सकबो । मानलो जहर हा , दुखदायी होही , त येला यदि , हमन ला बांट देहू त , तुहंरो दुख , थोकिन हरू हो जही । तभे बिष्णु भगवान के फोन आगे , ओहा शिवजी ला अपन बचन के सुरता करावत , अपन तिर के समान ला बांटे के आग्रह करथे , तब , भगवान शिव किथे – बिगन सोंचे समझे , समुंदर मंथन ले निकले समान दे बर कहि देव तूमन .... चंद्रमा ला बरोबर बांट डरेंव , अभू मोर तिर सिर्फ जहर हे ..... येमन यहू ला मांगत हे , येला कइसे बांटव ? तिहीं बता भलुक ! भगवान बिष्णु कुछ कहि नी सकिस , फोन काट दिस । 

               बिष्णु जी के बिबसता , शिवजी समझगे । बिष्णु भगवान के आस्वासन पूरा करे बर , शिव भगवान , अपन कंठ ले जहर के कुछ अंश हेरिस अऊ मनखे मनला देवत किहीस के – येला सिर्फ एके शर्त म उही मनखे ला देहूं , जे किरिया खाके ये कहि के , जहर ला सिर्फ अपन कंठ म , धारन करहूं , कभू बाहिर नी निकालहूं । जम्मो झिन हव भगवान हव .... अइसे किहीन । शिवजी हा , येमन ला समझावत किहीस के - तूमन अभू घला मोर बात ला मान जावव अऊ येला अपन कंठ म , धारन करे के जिद ला छोंड़ देवव , येहा बड़ नकसान दायक आय , जे मनखे ये जहर ला भीतर घुटकही , ते खुद नकसान म रही अऊ यदि कंठ ले बाहिर निकालही ते .....  सरी दुनिया ला नकसान पहुंचाही ..... । जहर ला कंठ ले बाहिर नी निकाले के , खमाखम बिसवास देवत , राक्षस रूपी मनखे मन किहीन के , जहर कन्हो जादा पदोही , त , येला भितरी म घुटक के , अपन इहलीला ला खतम कर देबो भगवान , फेर , जनम बाहिर नी निकालन । भगवान शिव किथे – तुंहर जइसे इच्छा .....। फेर एक बात ये हे के , जे मनखे अपन मुहुं ले जहर उगलही तेला , इहां के मनखे मन जान डरहीं के , इही मन राक्षस आय ।   

                कुछ दिन बाद , राक्षस प्रजाति के मनखे मनला , बिख के गरमी हा पदोये बर धरिस । साधारन मनखे मन झिन जानय के , हमन राक्षस आवन कहिके , बिख ला अबड़ लुकाये के कोशिश करिन , फेर नी सकिन । बिख के प्रभाव म इही मन जरे बर धरिन तब ..... बिख ला उगले के सिवा अऊ कन्हो चारा नी दिखिस ...... तब , अपन प्राण बचाये बर , जे तिर पाये ते तिर , जतर कतर , जब पाये तब , जहर उगले के , ठान डरिन । येमन , जऊन खांधी म बइठ जावय , उही मेर , अपन कंठ ले जहर उगलय अऊ दुनिया ला बरबाद करय । जे धरम के खांधी म बइठे तेहा , जन सुधार के नारा देवत जहर निकालय ..... जे समाज के खांधी म बइठे तेहा , समाज सुधार के नारा देवत , समाज म जहर बगराये अऊ सत्ता के स्वाद जनइया मन , देश सुधार के नारा देवत , जब जब चुनई के मौका आय तब तब , अपन कंठ ले जहर निकालय अऊ जगा जगा बगरावय , अऊ मनखे ला मनखे संग लड़ाके सत्ता पा जाय । कती मनखे राक्षस अऊ कती देवता ............ तेकर भेद खुलगे । मनखे के याहा चरित्तर देख , भगवान शिव व्याकुल होके पछताये लगिस ।   

 हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

कहिनी : बिसाखा* पोखन लाल जायसवाल

 *कहिनी : बिसाखा*

          पोखन लाल जायसवाल


      बिसाखा रात दिन समझातिस फेर घरवाला के आगू वोकर कभ्भू नइ चलिस। ननकू बिसाखा के एको बात नइ धरिस, न गुनिस। दू ले तीन होगे, तीन ले चार अउ पाँच घलो होगे। दू बेटा अउ एक बेटी के बाप बनगे, फेर कोन जनी काबर ओकर आँखी नइ खुलिस। अपन परिवार बाढ़े के संग घर के कोनो संसो-फिकर नइ करत रहिस। इही हाल ल देख के वोकर दाई ददा उँकर ले छुटकारा पा लिन। ननकू के चेत आही कहिके दाई-ददा मूल के संगेसंग ब्याज के मोह ल छोड़ दिन। चार कुरिया अउ आठ परानी के घर म अब एक के जगा दू चूल्हा म जेवन बने लगिस। दाई-ददा अपन पढ़ंता छोटे लइका संग रहे ल धर लिन। अतका होय ले घलव ननकू के चेत चेथीच म रहिस। बिसाखा कइसनो करके चारो परानी के मुँह म चारा डारे के उदीम करत रहय। 

        ननकू जतका कमाय ततका ल उड़ा देवय। एको आना घर म नी लावय। दिनभर हरर-हरर कमातिस अउ संझौती पी के ढरका देतिस। चार झन लगवार मन ल घलव पिला देतिस फेर लइका मन बर कभू चना-फल्ली नइ जानिस। बिसाखा कभू लइकामन बर चिंता करे कहय त उल्टा कहे लगतिस , "बिसाखा! भगवान जनम दे हे के पहिली सबो परानी के खाय के बेवस्था खुदे कर देथे, त मैं काबर संसो करँव? इँकर चिंता कर अपन लहू काबर अउँटावँव?" अतका सुन के बिसाखा मुड़ धर रोय लगिस। सरी दुनिया अपन लोग-लइका के चिंता करथें। फेर ...याहा का मनखे के संग धरा दे हे मोर ...। रोय म जिनगी ह नइ चलय कहिके, बपुरी ह खुदे चुप होइस। मन ल मनाय घलव, मोर जिनगी भर रोना बदे होही त कोन काय करही? ननकू के नशा के आदत छुटबे नइ करिस। हाँ ननकू के एक ठन बढ़िया बात इही रहिस, के नशा पानी करे के पाछू कोनो ल कभू गारी-गुफ्तान नइ करिस। आन नशेड़ी मन कस कभू बिसाखा ऊपर हाथ घलव नइ उठाइस। एकर ले बिसाखा अपन लइका मन के बरोबर चेत कर लेवत रहिस हे। धीरे-धीरे दिन बीतत गिस। बिसाखा लइका मन के हाथ पिंवरा घलो डरिस। दूनो बेटा बहूमन संग शहर म जाके रोजी मंजूरी कर जिनगी जीयत हावय। गाँव म बारो महीना बूता नी मिले ले जिनगी मुश्किल होगे रहिस। खनती कुदारी के दिन तो अब तइहा के बात होगे हे। कोनो मेंड़ म ढेलवानी नी देवय। राहेर ओनहारी घलव अब नोहर होगे। बेंदरा के बहाना कर मनखे अलाल होवत जावत हे। गाँवभर ओनहारी बोही त बेंदरा कतेक ल खाही। ...फेर....। गँवइहाँ मनखे घलव कमती पइसा म का कमाबो कहिके शहर के रस्ता धर लेथे। जतका जादा कमाही तेला भले किराया भाड़ा दे के दूसर के भोभस भरहीं। 

        बेटी सोनकुँवर आठ कोस भर के दुरिहा गाँव म बने घर-दुआर म गे रहिस। बिसाखा एक सरविन नारी-परानी जात काला परखतिस? सास-ससुर दू बछर पहिली ओसरी-पारी सालभर म सरग सिधार गे रहिन हे। देवर बाँटे भाई परोसी होके अपन परिवार म भुलागे रहिस, ओकर ले का आस रखे जा सकत रहिस? बिसाखा सात-आठ एकड़ के जोतनदार किसान के बेटा संग सोनकुँवर ल बिहा दिस। ननकू ल पीए-खाए ले फुरसत मिलतिस त कुछु करतिच। 

       कहे गेहे बइठे-बइठे तरिया के पानी नइ पूरय। वइसने सोनकुँवर के ससुरार म होइस। दमाद ल कभू कमई-धमई ले मतलबे नइ रहिस। घूम-घूम के खाना बस ओकर बूता राहय। बइठाँगुर दमाद कभू-कभू ससुरार आइस त ससुर के रस्ता चले लगिस। कभू-कभू पियइया मनखे रोजे पीए धर लिस।  सोनकुँवर घलव महतारी बिसाखा सही घरवाला ल समझाना चाहय त कूट-कूट ले मार खावय। तीन आँसू रोये बिगन दिन नइ बीतत रहिस। "तोर ददा ल नइ समझा सकेच, त का मोला समझा पाबे।" अइसन सुन सोनकुँवर कहिस, "तैं समझना नइ चाहबे त ब्रह्मा घलो नइ समझा सकय, मोर जइसन नारी-परानी ल कोन कहय? जउन ल तुमन पाँव के पनही समझथव। तुम भुला जथव कि पनही हर ही काँटा-खूँटी ले बचाथे, भोंभरा जरे ले बचाथे। तुम का जानव पनही के मरम ल।" अतका सुन गुस्सा तरवा म चढ़गे।  आव देखिस न ताव, सोनकुँवर ल फेर पीटे ल धर लिस। सिहरत ले मार खाय के पाछू महतारी बिसाखा ल फोन करिस अउ कहिस, "दाई! जब ले तोर दमाद आय हे तब ले रोज बइहाय हे, सिरीफ पियईच करत हे। कछु कहे म सिहरत ले मारथे, पीटथे।...." सोनकुँवर के गोठ सुन बिसाखा फफक-फफक के रो डरिस।  महतारी के मया तुरते सोनकुँवर के ससुरार के रस्ता नापे धर लिस।

        दमाद बाबू ल तिर म बिठा समझाय लगिस। "देख बाबू! बाप पुरखा के जउन जमीन हे, ओला बरोबर कमा। खेती अपन सेती होथे। रेगहा दे म खेती बिगड़त हे।" अपने ससुर ल देख का करे हे जिनगी भर, सिरीफ पिए के।" 

       "मैं तोला मोर बेटी ल  मंद-मउहा पीके मारे बर नइ दे हँव। आज मोर बेटी ल अपन घर लेगे बर आय हँव।" 

       "तइहा के सियान मन मानिन त मानिन, घर ले बिदा होय के बाद बेटी बर बाप घर ले सबर दिन बर छुट्टी। मोर घर के दुवारी मोर बेटी बर हमेशा खुल्लाच हे। आज मैं लेके जाथँव।"

         अतका सुन के दमाद बाबू गिड़गिड़ाय लगिस, "मैं सोनकुँवर बिगन नइ जी सकँव। ओला झन लेगव।"

       "एक्के शर्त म सोनकुँवर इहाँ रही, जब तें मंद मउहा छोड़ के काम बूता करबे। अपन दाई ददा के संग अपन खेती ल खुदे करबे।" बिसाखा कहिस। 

         बिसाखा जानत रहिस कि बेटी अउ दमाद एक-दूसर ले दुरिहा नइ रहे सकय, अउ गृहस्थी के गाड़ी ल जिनगी के भुइयाँ म चलाय बर दूनो एक-दूसर के सारथी बने ल परही। बिसाखा के तीर सही निशाना म परिस।

          दमाद बाबू सोनकुँवर ले माफी माँगत अपन सास बिसाखा के शर्त मान लिस। अउ ठान लिस कि आज ले मंद-मउहा के दाहरा म डूबकी नइ लगावँव। सोनकुँवर महतारी बिसाखा ल पोटार रोय लगिस। फेर ए दरी खुशी के आँसू बोहात रहिस।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी बलौदाबाजार

लिफाफा-चोवराम वर्मा बादल

 *लिफाफा-चोवराम वर्मा बादल

अहोभाग्य! आवव---आवव समधी जी--बिराजव। कती ले आवत हव? सब बने-बने हे ना---?

रमेश हा महिना दिन पहिली रिश्ता जुड़े अपन बेटी के ससुर जेन अचानक वोकर घर आये हे के जै जोहार करत कहिस।

हाँ --समधी महराज सब बने-बने हे।इही कोती ले रामपुर गाँव गँड़वा बाजा लगाये बर जावत रहेंव त सोचेंव थोकुन हमा लँव।

ठीक करेव भई-- नता रिश्ता ल तो अइसने निभाये ल परथे।ले सुनावव अउ का चलत हे---

अउ का चलही महोदय--आप तो जानत हव--मोर दुलरवा बेटा के बिहाव होना हे। आठे दिन तो बाँचे हे-- समे मा गाड़ी-घोड़ा मिलय नहीं तेकर सेती अभी ले जोर-शोर ले तइयारी म लगे हँव। मोला तो पंदरा-बीस ठन गाड़ी करे बर लागही। आप तो जानते हव--पचीस-तीस साल ले समाज सेवा करत हँव।दू पइत सरपंची तको करे हँव।जम्मो साहेब-सोदा अउ बड़े-बड़े नेता मन ले उठना- बइठना हे। बरतिया दू सौ हो जही तइसे लागथे समधी--

हाँ-- सीला असन सिल्होहू तभो ओतका बराती होई  जही-रमेश हा गुनत कहिस।

हमर बहू गीता बेटी दिखत नइये --कहूँ गे हे का समधी?

 नहीं--घरे म हे। वो दे आप बर चाय-पानी धरके आवत हे।

गीता ह अपन ससुर के पाँव परके चाय-पानी दिस तहाँ ले लहुटके परछी ले उँकर बातचीत ल सुने ल धरलिस।

हाँ---एक बात अउ हे समधी जी--सुरता आगे त गोठियई लेथँव। आप ल तो बतई  डरे हँव - हमन दहेज के सख्त खिलाफ हन। हम तो दू लुगरा म बहू ल बिदा करा लेग जबो फेर आप तो आजकल के चलन सहीं बर्तन भाँड़ा,रंगीन टी वी, कूलर, सोफा--गाड़ी- उड़ी दे बर सोंचेच होहू---

हाँ-- समधी---बेटी ल बाप दुच्छा थोरे बिदा करथे ---  रमेश कहिस।


हाँ--हाँ-- उही तो महूँ काहत हँव---अइसे करहू कुछु समान झन देहू वोकर सेती कम से कम सात-आठ लाख के चेक लिफाफा म डार  के दे देहू-- तुँहरे बेटी -दमाद के काम आही--साँप घलो मर जही अउ लाठी तको नइ टूटही---ले अब चलत हँव--बिदा दव--।

वोकर बात ल सुनके रमेश के चेहरा फक परगे।वोला बिदा करे बर खोर तक  आइस ।पिछू -पिछू गीता ह तको अइस अउ अपन दू मिनट पहिली तक के ससुर जी के हाथ म एक ठन लिफाफा धरावत कहिस--बाबू जी एकर भितरी म मोर अभिच्चे एक लाइन के लिखे चिट्ठी हे तेला घर जाके पढ़हू।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

विमर्श के विषय--रचनाकार अउ प्रकाशक*


*विमर्श के विषय--रचनाकार अउ प्रकाशक*

साहित्य जगत के दू अविभाज्य प्रमुख अंग होथे --रचनाकार अउ प्रकाशक। दूनों एक दूसर के बिना अधुरा हे।

 कोनो रचनाकार हा कोनो भी विषय मा बनेच बढ़िया लिखे हे जेकर पांडुलिपि ह ओकरे करा चुपचाप सुरक्षित रखाय हे त उहू का काम के? हो सकथे एकर ले रचनाकार भर ला आनंद मिल सकथे । साहित्य के उद्देश्य तो सबके भला करना, सब ला सुख देना आय तेकर सेती वो पांडुलिपि के पुस्तक/ग्रंथ के रूप मा पाठक मन के हाथ मा पहुँचना जरूरी होथे। तभे तो वो पुस्तक के ज्ञान अंजोर ह दुनिया म फइलही, प्रकाशित होही। एकर बर प्रकाशक के होना लाजिमी हे जेन जिम्मेदारी उठा के  समाज के भलाई बर  ,रचनाकार के भलाई बर ये कठिन काम के बीड़ा उठा सकय।

  ये तो तय बात हे के जइसे शिष्य ह श्रेष्ठ गुरु अउ गुरु ह अनुशासित,प्रतिभावान शिष्य खोजत रहिथे ओइसने रचनाकार ह सुग्घर प्रकाशक खोजत रहिथे जेन ह अपन खर्चा म या फेर कम ले कम खर्चा म ओकर कृति ल छापके जन जन मा बगराये के काम करय।

     वोती बर प्रकाशक ह तको  सुग्घर रचनाकार ल  खोजत रहिथे ,वोकर रद्दा जोहत रहिथे। 

    ये तो तय हे कि आज के दुनिया म कोनो घाटा के सौदा नइ करना चाहय। प्रकाशक मन तको उही पुस्तक ल अपन पइसा लगा के छापना चाहथें जेला बेंच के मुनाफा कमा सकय।सबके पेट-रोजी के सवाल हे। प्रकाशन के काम मा कागज, बिजली, मजदूर---आदि के खर्चा आथे। 

  प्रकाशक मन लेखक सो इही खर्चा लेके ककरो भी कोनो पुस्तक ल छाप देथें। अइसन छपाई ले न तो प्रकाशक अउ लेखक के, न तो पाठक के भला होवय। एकरे सेती आलोचक मन कहिथे-किताब मन रद्दी के भाव म बेंचावत हे नहीं ते आलमारी म भरे- भरे दिंयार खावत हे।

     ये सब बात ल धियान म रखके रचनाकार मन ल सुग्घर रचना करना चाही ।प्रश्न ये हे के सुग्घर रचना काला कहे जाय। "मुंडे-मुंडे मति भिन्ना " के स्थिति हे। एक माँ-बाप ल अपन दिव्यांग बच्चा, मरार ल अपन कड़हा-कोचरा साग-भाजी ह घलो अब्बड़ प्यारा होथे ,ओइसने एक रचनाकार ल अपन लिखे ह बहुतेच प्रिय होथे।

कतकोन  गुदड़ी के लाल जइसे  उत्कृष्ट रचनाकार हें जेन मन गरीबी के सेती ,नहीं ते जानकारी के अभाव म या कोनो मार्गदर्शक , संरक्षक के अभाव म अपन किताब ल नइ छपवा सकयँ।

  अइसन द्वंद के स्थिति म प्रकाशक मन के बड़का जिम्मेदारी हे के वो मन खुदे अइसन  नवेरिया लेखक गरीब सृजनकार  मन ल खोज के,चयन करके प्रकाशित करे के पुनित कार्य करयँ।

    छत्तीसगढ़ म कुछ प्रकाशक मन अइसन पुनीत कार्य बर ध्यान दे हावयँ जेन अभिनंदनीय हे।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

Monday 8 March 2021

दाऊ रामचन्द्र देशमुख के "चंदैनी गोंदा की नृत्य निर्देशिका : शैलजा ठाकुर"


  दाऊ रामचन्द्र देशमुख के "चंदैनी गोंदा की नृत्य निर्देशिका : शैलजा ठाकुर"  

(भाग - 1)


"शैलजा ठाकुर" सत्तर और अस्सी के दशक  का एक जाना पहचाना और चर्चित नाम है। वर्तमान समय की युवा पीढ़ी के लिए संभवतः यह नाम नया हो क्योंकि शैलजा ठाकुर में कभी भी आत्म-प्रशंसा के लिए अपनेआप को कभी भी प्रचारित नहीं किया। आज की पीढ़ी के लिए छत्तीसगढ़ी रंगमंच की श्रेष्ठ कलाकार, शैलजा ठाकुर का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कर रहा हूँ। शैलजा ठाकुर का जन्म राजनाँदगाँव में हुआ था और उनका बचपन अंबिकापुर में बीता। वह बहुत छोटी थी फिर भी शैलजा ठाकुर के नृत्य के बिना अंबिकापुर में कोई भी सांस्कृतिक आयोजन सम्पन्न नहीं होता था।  उस दौर के सुप्रसिद्ध संगम आर्केस्ट्रा में उन्होंने अपनी मधुर आवाज आवाज का जादू बिखेरा था।


चंदैनी गोंदा के संस्थापक दाऊ रामचंद्र देशमुख जब प्रतिभावान कलाकारों की खोज में डोंगरगढ़ से लेकर रायगढ़ तक के चप्पे-चप्पे में उत्कृष्ट प्रतिभाओं की तलाश कर रहे थे, उस समय एक ही परिवार के दो अनमोल रत्न दाऊजी की नजर में आए। यह दो रत्न थे शैलजा ठाकुर और अनुराग ठाकुर। अनुराग ठाकुर चंदैनी गोंदा की प्रमुख गायिकाओं में से एक गायिका रही हैं। बखरी के तुमा नार,  हमका घेरी-बेरी देखे ओ बलमा पान ठेला वाला, पुन्नी के चंदा, संगी के मया जुलुम होगे आदि गीत आज भी आकाशवाणी और अन्य माध्यमों से सुने जाते हैं। चंदैनी गोंदा में पहले तो शैलजा ठाकुर कोरस की गायिका रहीं। तत्पश्चात उन्हें "गंगा" जैसे पात्र की भूमिका मिली। धीरे धीरे शैलजा ठाकुर चंदैनी गोंदा की मुख्य नृत्य निर्देशिका बन गयीं।


नृत्य निर्देशन के साथ ही चंदैनी गोंदा के ड्रेस-डिजाइनर का दायित्व भी उन्होंने सम्हाल लिया। छत्तीसगढ़ की महिला का प्रतीक परिधान - लाल पोलखा और हरी साड़ी, यह कॉम्बिनेशन शैलजा ठाकुर का ही दिया हुआ है।  इन्हीं बहुमुखी प्रतिभाओं के कारण दाऊ रामचंद देशमुख जी ने शैलजा ठाकुर को "कारी" की मुख्य नायिका बनाया था। "कारी" पर विस्तृत चर्चा अगले आलेख में की जाएगी। (क्रमशः)

(भाग - 2)


कल इस श्रृंखला के भाग - 1 पर आयी प्रतिक्रियाओं से यह स्पष्ट हुआ कि नयी पीढ़ी, छत्तीसगढ़ की प्रेरक-प्रतिभाओं के बारे में जानने के लिए कितनी उत्सुक रहती हैं। ऐसी ही प्रतिभाएँ नयी पीढ़ी का मार्ग प्रशस्त करती हैं। अंचल की विरासत जितनी सम्पन्न होगी, उतनी ही संस्कृति की चित्रोत्पला, नयी फसल को पोषित करती रहेगी। मेरी पीढ़ी के मित्रों की प्रतिक्रियाएँ बता रही हैं कि स्मृति पटल पर सबकुछ वैसा का वैसा ही अभी भी अंकित है। चंदैनी गोंदा के विशाल मंच पर सजीव होती दुखित की जीवन-गाथा, उत्सवों में झूमता-गाता लोक-जीवन, बेलबेलहिन टूरी की पैरी की छन्नर-छन्नर, अकाल की विभीषिका से जूझती संभावनाएँ, शोषकों के चंगुल में छटपटाता हुआ छत्तीसगढ़, अपने स्वाभिमान को जगाता छत्तीसगढ़।  शैलजा ठाकुर के नाम के साथ ही "कारी" की स्मृतियों तरोताजा हो गईं। वक़्त के पर्दे के पीछे सबकुछ तो वैसा का वैसा ही अंकित है स्मृति-पटल पर।  


भाग - 2 में शैलजा ठाकुर जी की एक और प्रतिभा से आपका परिचय कराया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के पारम्परिक आभूषणों के प्रचार-प्रसार  लिए "छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला मॉडल" का श्रेय भी शैलजा ठाकुर के खाते में जाता है। उनके इस कार्य से छत्तीसगढ़ के पारंपरिक आभूषणों का प्रचार-प्रसार विश्व के अनेक देशों तक हुआ। भिलाई इस्पात संयंत्र के कैलेंडर में (अगस्त 1983) इन्हें स्थान मिला। भिलाई इस्पात संयंत्र की प्रदर्शनी में ये पारम्परिक आभूषण आकर्षण का केंद्र रहे। पत्रिका प्रकाशित हुई। सोवियत रूस तक गयी। छत्तीसगढ़ के पारंपरिक आभूषणों की मॉडलिंग में शालीनता थी। बहुत से मित्र शैलजा जी की इस प्रतिभा से परिचित होंगे किन्तु नयी पीढ़ी की जानकारी के लिए इस परिचय को देना मुझे प्रासंगिक प्रतीत हो रहा है। अभी यह श्रृंखला जारी रहेगी। (क्रमशः)


आलेख - अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

Photo-  made by milan milhriya

घर के जोगी जोगड़ा आन गाँव के सिद्ध*(यात्रा संस्मरण)-सूर्यकांत गुप्ता

 



*घर के जोगी जोगड़ा आन गाँव के सिद्ध*(यात्रा संस्मरण)-सूर्यकांत गुप्ता


जम्मो संगवारी मन ल मोर जय जोहार. मैं हा ऊपर मा लिखे मोर राज के मिठ बोली के हाना (कहावत) ल ए पाय के लिखे हँव के लोकल मा, तीर तखार मा जउन रथे ओकर कोनो पुछारी नई रहय. दुरिहा के चाहे मनखे होय या जघा, उंखर देवता कस पूजा होथे।  कुदरत हा अपन खूबसूरती ल कहाँ नई दे हे. जरूरत हे ओला सम्हाल के रखे के. हमर  देश माँ सबले बढ़िया सरग (स्वर्ग) उत्तर भारत माँ  हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, उत्तरांचल,  पूरब  मा दार्जिलिंग, सिक्किम, पश्चिम मा मुंबई अउ  गोवा  के बीच  सतारा उतर  के जाथें  जेला महाबलेश्वर कथें, अउ खंडाला माथेरान घलो, दक्खिन मा ऊटी,  कोडेकनाल  ये सब  बरफ वाले  पहाड़ अउ उहाँ के सुग्घर हरियर हरियर पेड़ पौधा से सजे कुदरत ल मानथन.  बात गलत नई ये. फेर इहाँ जाय बर सबके टेंटुआ मा मनीराम होना चाही. " *चाहे वो दार्जिलिंग होवे या सिक्किम, काश्मीर होवे या ऊटी" लगत रथे सबोला जाँव येती ओती.  अउ एक दू जघा अउ  हे जेमा शामिल हे माउंट आबू.  ये सब जघा के बारे माँ सुन के मन ल नई कर सकन काबू.*       


     लेकिन   हमरो छत्तीसगढ़ मा कुदरती सुन्दरता के कमी नई ये. हमन अपन समाज के दुरुग भिलाई के समिति "छत्तीसगढ़ी केशरवानी सेवा समिति दुरुग-भिलाई " बनाए हन. अब समिति डहर ले सोचेन के हमन तो येती ओती घूम फिर के अपन मन बहला लेथन. बपरी   घर गोसैनिन मन (अरे आजकल घर देखैया तो हवेच, घर बाहिर दुनो जघा देखैया घलो हे,  याने नौकरी वाले घलो हावे )   काम बूता मा बिपतियाये रथें. ओहू मन ल लागथे  के कभू बाहिर घूमे फिरे बर जाना चाही. अउ इही हा बने समाज के अउ परिवार संग जाए जाय त झन पूछ ओखर मजा ला. बीते साल ले हमन इही सब ला गुन के पिकनिक मनाये बर बाहिर जाए बर धरे हन. पउर साल राजिम चंपारन  गे रेहेन. घटा रानी तभो ले बांच गे रहिसे.  


शिवरीनारायण, मैनपाट,  अचानकमार जंगल, बार नवापारा अभ्यारण, अउ सब के मन मोहैया जगदलपुर के चित्रकूट, तीरथगढ  झरना अउ कई स्थान हे जी जिहां प्रकृति हा ये धरती ला कतेक सुग्घर सजाये हे अपन हरियाली से, अउ नाना प्रकार के आकृति वाले झरना, पहाड़ चट्टान, जंगल के जानवर अउ कई जीव जंतु से . अच्छा!  रद्दा घलो कम घुमावदार नई ये चाहे आप केसकाल घाटी जाव चाहे चिल्फी घाटी जाव. अइसे लगे  लगथे    जैसे हमन हिमाचल प्रदेश के घाटी माँ आ गे हन. ऐतिहासिक  अउ पौराणिक धार्मिक स्थान माँ शिवरीनारायण, रतनपुर, खैरागढ़, डोंगरगढ़, सकती, रायगढ़ , सारंगढ़, कवर्धा, भोरमदेव राजिम बेलासपुर के ही तालागांव मल्हार अउ कई ठन जघा हवे. एकदम से सुरता नई आवै. 


         तौ ए दारी कवर्धा, भोरम देव,  सरोदा दादर के चोटी, सूपखार जाए के प्रोग्राम बनिस. ओइसे ये सब स्थान के बारे माँ  हमर समाज के भूतपूर्व प्रदेश अध्यक्ष श्री अश्विनी केशरवानी जी हा शायद अपन ब्लॉग माँ जिक्र करे हे. अब प्रोग्राम  बन गे रहिसे. इतवार के दिन तय होय रहिसे. आधा ग्रुप ला हमर  घर  अउ आधा ला हमर एक झन अउ सक्रिय मयारू संगवारी घर  जुरियाना  रहिसे. शनीच्चर रात धुकपुकी लगे रहय काबर के  सवा सौ - डेढ़ सौ किलोमीटर के यात्रा करना रहै. बिहनिया ले मोटर ला आना रहिसे. कइसनो करके सात बजे रवाना होए के फिक्स होए रहिसे.  ३२ सीटर मोटर के बेवस्था करे रेहेन. 


भिनसरहा ले उठे बर परिस. हमर तो नींद इसने खुल गे. जेखर नींद नई खुले रहिसे ओमन  ल अलारम हा जगाईस. जल्दी जल्दी कोला बारी ले निपट के नहा धो के तैयार होएन.   जाड़ कम नई होय रहिसे. कुहरा छाये रहै. कइसनो करके जुरियायेन. हमर घर ले रवाना होए के बाद दूसर पॉइंट कादंबरी नगर दुरुग  गेन. उहें ले बांचे खोंचे मन सकलाएन.  लम्बा दूरी के जात्रा मा देखे बर जाए वाले जघा मा बनाये खाए के  टाइम नई रहै. तेखरे पाय के घर घर ले कुछु कांही बना बना के धर ले रेहेन.  गाड़ी रवाना होए के पहिली बने बने रेंगे गाड़ी हा, रद्द मा कांही अड़चन झन आवै कहिके देवी देवता ल संउर के गाड़ी के चक्का तरी नरियर मड़ा के गाड़ी ल रेंगाएन. चरचरा के नरियर फूटिस त खुरहौरी के परसाद बांटेन. हमन लईका पिचका मिला के ३०-३२ झन होगे रेहेन. एमा एक ठन बिसेस बात ये रहिसे के माई लोगन मन एके टाइप के लुगरा पहिर के जाबो कहिके डिसाइड करे रहिन अउ बने लाल लुगरा म ललियावत रहिन. गाड़ी रवाना होगे. इहाँ शुरू होगे माई लोगन के अन्ताक्षरी, गीत भजन, लईका मन घलो शामिल होगे. उही मन ल त एक एक लाइन सुरता रथे गाना के . येती हमन अपन गोठ बात म मगन रेहेन. इहाँ एक बात ख़ास हे के जेन जघा म हमन गेन वो हा कवर्धा (जिला बन गे हे कवर्धा) ले  25-30 किलोमीटर हवे. कवर्धा हा समझ लौ तीन स्थान; रायपुर, राजनंदगांव अउ दुरुग ले करीब करीब समान दूरी म हे,  ओही करीब 116-120 किलोमीटर. 


हमन दुरुग ले धमधा गंडई रोड होवत गेन. धमधा -गंडई रोड म ५-६ किलोमीटर दूर बिर्झापुर  गाँव हे. ओ हा आज कल हमर छत्तीसगढ़ के शिगनापुर  होगे हे. उहाँ शनि देव ल बइठारे हें. मोटरेच मा बैठे बैठे दुरिहा ले हाथ जोड़ के प्रणाम कर लेन.  दुरुग ले धमधा 35 किलोमीटर, धमधा ले कवर्धा करीब 80 किलोमीटर होही. पहिली गंडई पहुचथेंं उहाँ ले राजनंदगांव कवर्धा रोड जुड़ जाथे. गंडई ले करीब 35-40 किलोमीटर होही. अब मोटर मा लाल लुगरा  वाले मन अउ लईका मन के अन्ताक्षरी चलते रहिस. एती जेंट्स  मन के गोठ बात अलग.  कतका जुअर गंडई आगेन पता नई चलिस. उहाँ थोरकिन  सुस्ता  के चाय नाश्ता करेन. अउ करीब 10-30 बजे कवर्धा पहुच गेन. कवर्धा मा वापसी के समय के भोजन के बेवस्था एक भोजनालय मा करके आगू  बढेन.  


हमन पहिली पहाड़ी एरिया मा सरोदा दादरी पहाड़ मा जाबो कहिके सोचे रेहेन. उहाँ जाए बर चिल्फी घाटी होके जाय बर परथे. अउ चिल्फी या तो बोडला होके जाव या भोरमदेव जउन ल छत्तीसगढ़ के खजुराहो कथें उहाँ ले होके जाय बर परथे. त हमन भोरमदेव वाले रद्दा (रस्ता) ल चुनेन. ओ मेरन ले वोइसे बड़े गाड़ी जाय बर मना हे.  फेर भैया कानून काखर बर आय, जन साधारण बर. वी आई पी बर थोरे आय. त हमू मन अपन  वी आई पी वाले जुगुत भिड़ा के  अपन गाड़ी ल ओही रद्दा ले लेगेन. बहुतेच बढ़िया घुमावदार रस्ता हे जी. ऐसे लगे  

जइसे हमन शिमला डहर घूमत हन. मोला तो जब नैनीताल गे रेहेंव त उहाँ के कैंची टेम्पल वाले रद्दा के सुरता देवा दिस. त चिल्फी अउ भोरम देव के ये रद्दा के बीच मा एक ठन टॉवर सरिक मचान बनाये गे हे. उहाँ ले चढ़ के बने पहाड़ी एरिया के दर्शन करौ. ऊपर देखौ त बढ़िया सीन अउ तरी डहर झान्कौ त गिरिच जाबो तैसे लगई. कइसनो  होय मजा आगे. 


उहाँ चढ़ के देखौ चारों मुड़ा ल. निहारते च रहौ लगइया नयनाभिराम दृश्य हवै. त उहाँ चढ़ के फोटू खीचेन. उहाँ ले थोरकिन देरी मा चिल्फी बर चलेन. चिल्फी पहुचे के बाद सरोदा दादरी बर बड़ अन्दर मा गाड़ी ल घुसेरे के कोशिश करेन एक जघा मोटर सटक गे रहिसे त जम्मो जात्री मन उतर के फेर ओला ओ प्वाइंट मेरन लेगेन. उहाँ के एक बिसेसता बताइन के हमर देस के बीचो बीच ले गे कर्क रेखा ए जघा ले गुजरे हे. एक ठन टीला असन ओला पॉइंट बना के संकेत करे गे हे. ए जघा ल पर्यटन स्थल बनाये के सरकार के योजना ल रोके बर परत हे काबर के इहाँ साइंटिस्ट मन कुछ प्रयोग करेके सोचत हें. अइसे चर्चा चलत रहिसे. अब इहाँ घलो सुंदर भियू (दृश्य) देखे बर गोल ऊँच म गोल छतरी वाले मचान  बनाये हेंं उहाँ ले चारों मुड़ा के भियू (View) देखथें ।इहाँ तो पर्यटक मन के रुके के घलो बेवस्था करे बर रेस्ट हाउस जइसे बनाये के  प्लानिंग रहिस  हे जी.  


अब इहाँ चारो मुड़ा घुम फिर लेन. कुदरती सुन्दरता के आनंद लेन. फेर ये पापी पेट, अउ बिचारी जीभ जउन ल नाक हा आनी बानी के खाए के आइटम के सुगंध लेके  उकसावत रहिसे के अब झन अगोर, मांग खाए बर कहिके त ओकर उदिम करत   दरी उरी बिछाएन. माई लोगन मन अपन अपन घर ले लाये माल पानी ल मढ़ावत गइन. पेपर प्लेट ले गे रेहेन. पिऔ पानी अउ फेंकौ गिलास वाले गिलास जेला डिस्पोजेबल गिलास कथें. परसत गिन ललवाइन(लाली लुगरा वाले मन) मन अउ जम्मो झन चटकार चटकार के खात गेन.

 *हाँ एक बात के हमन कसम खा के आये रेहेन के पर्यटन स्थल मा गंदगी नई फैलाना हे. तेखर पाय के जम्मो पेपर प्लेट, गिलास अउ कांही वेस्टेज निकलिस ओला एक ठन बोरा मा भर के कचरा फेंके के जघा मा  ही फेंकेन*


अब इहाँ ले जी भर गे त सूपखार बर निकलेन उहाँ जादा घूम त नई पायेन काबर के जल्दी वो भोरमदेव चिल्फी वाले रद्दा हा बंद हो जाथे कहिके. अच्छा सूप खार मा जादा घूमन नई दे उहाँ के रेंजर मन. जंगली जानवर के खतरा हे कहिके. उहाँ के गेस्ट हाउस ल देखेके लाइक हे कहिके उहें थोरकिन देर बइठेन पानी पी के आजू बाजू के  सीन देख के भोरमदेव बर रवाना होगेन. सूपखार के गेस्ट हाउस देखौ: एखर बारे मा कहे जाथे के ये अंग्रेज जमाना के आय बिजली नई रहिस त झुलावन पंखा लगे रहिसे शायद अभी भी लगे हे. अउ ओखर घास फूस के छपरा दिखते हे. ओइसे अन्दर बहुत सुन्दर हे भरपूर सुविधा जनक अउ कहे जाय त आरामदायक (लक्झरियस) हे. 


भोरम देव के दरसन बर अब रवानगी करेन. बेरा बूड़त रहिसे. मड़वा  महल देखेच नई पायेन. हाँ त भोरम देव पहुँँचे के बाद मंदिर मा दरसन करेन अउ तारीफ के बात ये हे के सरकार हा इहाँ बने बगीचा बनवा दे हे. भोरम देव हा बहुत प्राचीन ऐताहिसक जघा आय. एखर इतिहास बर मैं अत्केच लिख सकथौं के ये हा नौवींं सदी से लेके चौदहवींं सदी तक शासन करे नागवंशी राजा मन के बनवाये मंदिर आय. राजा गोपाल देव के शासन काल मा राजा लक्ष्मण देव हा बनवाए रहिसे. ये मंदिर हा खजुराहो अउ कोणार्क मंदिर कस  हे. इहाँ के मंदिर के अउ सरकार द्वारा ए जघा ल बढ़ावा दे बर बनवाये गे बगीचा के सुन्दरता के घलो हमन फोटो ले हन ओहू ल देखौ; वैसे   संझा पांच साढ़े पांच बजे पहुंचे के बाद सीधा भोरमदेव मंदिर मेरन लगे  बजार ले ताजा ताजा सब्जी ल देख के अउ सस्ता मिलत  रहै ते पाय के पहिली दू किलो पताल  (टमाटर) लेंव मैं हा. फेर मंदिर मा जाके भगवान् शंकर के पूजा अर्चना करेन. नवा बने बगीचा के भी घूम घूम के आनंद लेन. का होथे लहुटत खानी के जर्नी मा लरघियाये (अलसाए) बरोबर लगे लागथे तभो ले हमन कस के मजा लेन पिकनिक के. पूरा कार्यक्रम जोरदार रहिस. देखते देखत कइसे बेरा बूड़ गे पता नई चलिस. रात हो गे रहिसे करीब सात बज गे रहिसे. अब दुरुग पँहुचे बर कम से कम तीन घंटा लगतिस. कहूं भोजन बेवस्था नई होय रहितिस त सबके घर गोसइनिन मन का सोचतिस. अतेक दुरिहा ले घूम के आव अउ फेर रान्धौ. भोनालय मा खाएन मोटर स्टैंड मा मारवाड़ी भोजनालय हे उँँहचे.  सब झन बइठ गेन मोटर मा अउ करीब ८   बजे रवाना होएन. दुरुग पँहुचत ले ग्यारा बज गे रात के. सबो झन अपन अपन घर पँहुचेन. हम तो नींद के देवी के शरण मा जल्दी  चल देन. 

                                 

      *ये पिकनिक खातिर हमर कहना हे के हमर राज मा घलो देखे के लाइक अब्बड़ अकन जघा हे. प्रचार प्रसार के आभाव मा ये मन ल बढ़ावा नई मिलत हे. भले बर्फीला जघा के मजा अलग होथे फेर ओतेक दुरिहा जाए बर एक सामान्य आदमी के खीसा (जेब) ल घलो देखे बर परथे. 

सूर्यकांत गुप्ता"कांत"

दुर्ग

पुरखा के सुरता ...ओमप्रकाश साहू अंकुर


 

पुरखा के सुरता ...ओमप्रकाश साहू अंकुर


अब्बड़ छपय लखन लाल दीपक जी के रचना हा 


कम उम्र मा ये दुनियां ला छोड़ दिस !



       मनखे हा कतिक दिन जिनगी जियिस ओकर महत्व नहीं (नई )हे. बल्कि येकर महत्व हे कि वोहा अपन जिनगी मा का अच्छा काम करिस।समाज मा अपन कइसन चिन्हा छोड़िस जेकर ले दूसरा मनखे मन ला प्रेरणा मिल सके। वइसे गुनिक आदमी हा ये दुनियां ले जल्दी चले  जाथे ता  हमन ला अब्बड़ अखरथे । कई घांव अइसे होथे जेमा बिश्वास नहीं होवय कि अमुक आदमी हमर बीच मा अब नहीं हे ।अइसने हमर गाँव सुरगी मा एक गुनिक रिहिस जेकर नाव रिहिस लखन लाल साहू  "दीपक "। दीपक जी हा कम उम्र मा ये दुनियां ला छोड़ के चले गे। वोहा जवान मन बर प्रेरणास्रोत रिहिस।

  लखन लाल दीपक के जनम 12 सितंबर 1945  मा होय रिहिस. ओकर बाबू जी के नाव दुकालू राम साहू अऊ दाई(माता) के नाव बिसा बिसा बाई साहू रिहिस। अपन माता जी ला दीदी कहिके पुकारय। दीपक के पिता जी दुकालू राम के पहचान एक बढ़िया बढ़ई के रूप मा रिहिस हे। वोकर बनाय मोहरी ला लेय बर गजब दूरिहा ले लोक कलाकार मन ऊंकर घर आय। दाई हा धार्मिक सुभाव के राहय । दीपक जी हा चार भाई अउ तीन बहन मन मा बड़का रिहिस हे । आर्थिक दृष्टि ले परिवार हा साधारण रिहिस हे ।

    दीपक के प्राइमरी अउ मैट्रिक तक के पढ़ई लिखई सुरगी मा होइस । सुरगी मा सन् 1961 मा जन सहयोग ले हाईस्कूल खुल गे रिहिस हे. सिरिफ 9 पढ़इया लईका मन ले शुरुवात होय रिहिस । दीपक  हा पढ़ई लिखई मा गजब हुशियार रिहिस हवय । वोकर शादी टेड़ेसरा (सोमनी) के  श्याम बाई के साथ होइस.  साहित्य पुस्तक पढ़ना अउ पेन्टिन्ग काम मा रूचि रिहिस । जवान लईका मन ला संगठित करके गाँव के इमली पारा मा गणेश उत्सव के आयोजन करय ।सुग्घर ढंग ले लोक कलाकार मन के सांस्कृतिक कार्यक्रम रखे जाय । मेहा पहली बार हमर गाँव सुरगी मा लोक कलाकार रामाधार साहू ( कचान्दुर ) के चन्देनी (लोरिक चन्दा) कार्यक्रम देखे रेहेंव। दीपक जी हा अब्बड़ सीधा अउ हंसमुख स्वभाव के इन्सान रिहिस । घर परिवार ला सुग्घर सकेल के रखय ।संगे संग गाँव के सामाजिक, अउ 

सांस्कृतिक कार्यक्रम मा घलो गजब रूचि लेय । 

साहित्य मा तो वोकर आत्मा हा रच बस गे रिहिस । दैनिक सबेरा संकेत के रविवारीय अंक के साथ आपके पत्र स्तंभ, नवभारत रायपुर, देशबन्धु रायपुर, अरूणादित्य राजनांदगांव (संपादक - आदित्य प्रसाद वर्मा) अउ कतको पत्र पत्रिका मा कविता अउ लेख लगातार प्रकाशित होवत रिहिस । अादित्य प्रसाद वर्मा हा सुरगी हाईस्कूल के प्राचार्य रिहिस हे ।सम सामयिक विषय मा सुग्घर कलाम चलाय । संगे संग वोहा गाँव के युवा मन ला कविता अउ लेख लिखे बर प्रेरित करय । तेकर सेति दीपक जी ला रचनाकार अउ लोक कलाकार मनाजीत मटियारा,मानस व्याख्याकार हरभजन सिंह भाटिया, मुकुन्द राम सोनवानी, बसन्त कुमार साहू, धर्मेन्द्र पारख मीत मन हा श्रद्धा भाव से याद करथे । महू हा दीपक जी के परिवार के हरो । वोहा मोरो प्रेरणास्रोत हरे ।

 किसान परिवार के दीपक हा शिक्षक  रिहिस ।वोकर पहिली नियुक्ति राजनांदगांव जिले के खुज्जी परिक्षेत्र के शासकीय प्राथमिक शाला बड़भूम मा होय रिहिस ।फेर सुरगी के नजदीक बुचीभरदा, भर्रेगाँव, हाईस्कूल भरदाकला  (अर्जुन्दा ) अउ शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला सुरगी मा अपन सेवा दिस ।  पढ़ाई के संगे संग अपन सुग्घर व्यवहार ले पढ़इया लइका मन के बीच अपन अलगे प्रभाव छोड़िस हे । वोला डायरी लिखे के रुचि रहय । वोकर डायरी मा राष्ट्रीय, प्रादेशिक, जिला के संगे संग स्थानीय गाँव के मुख्य घटना मन के उल्लेख हवय । ये बात ला मोला तब पता चलिस जब वोहा मोला अपन डायरी ला उतारे बर अउ दूसर डायरी दिस ।संगे संग महू ला   21 जुलाई 1994 मा डायरी भेंट करिस । येहा वो समय 

रिहिस जब वोकर तबियत खराब रहय । वोकर डायरी ले पढ़े से मोला पता चलिस कि वोला केैन्सर रिहिस । रायपुर मा ईलाज कराय रिहिस । वोकर साहित्य सेवा ला देखके समाज सेवी संस्था  उदयाचल राजनांदगांव हा एक भव्य समारोह मा सम्मानित करे रिहिस । अइसन कतको गुण के धनी दीपक हा सिरिफ  50 बरस के उम्र मा  7 जनवरी 1995 मा भगवान ला प्यारा होगे. जब वोहा स्वर्गवासी होइस ता वोकर पिता जी दुकालूराम दीपक बढ़ई हा ये दुनियां मा रिहिस हे ।

वोहा समाचार पत्र खूब पढ़य ।वोहा साहित्यिक अंक के गजब अगोरा करय । दीपक जी के मंझला भाई समारु राम दीपक हा पत्रकार हवय ।स्व. दीपक जी हा गजब समाचार बनाय ।लोगन मन ला प्रेरित करके आस पास के गाँव के समस्या के संगे संग रचनात्मक काम के समाचार मंगाय अउ बढ़िया से बनाके दैनिक सबेरा संकेत राजनांदगांव अउ दैनिक नवभारत रायपुर मा प्रकाशित करवाय । वो समय पेपर मन के संस्करण नहीं रहय ।कोनो भी समाचार ला पूरा राज्य भर के मन पढ़य ।  वोकर अउ भाई मा चुन्नू लाल दीपक हा सेवा निवृत्त क्लर्क अउ यशवन्त कुमार दीपक हा शासकीय कमलादेवी महाविद्यालय राजनांदगांव मा क्लर्क हवय । चुन्नू लाल दीपक हा दुर्ग अउ यशवन्त कुमार हा राजनांदगांव मा रहिथे.दीपक जी के दो लड़का हवय जीतेश कुमार दीपक अउ सूर्यकान्त दीपक ।


  दीपक जी ला शत् शत् नमन हवय... 🙏🙏💐💐


            ओमप्रकाश साहू" अंकुर "     सुरगी, राजनांदगांव


अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस ( 8 मार्च )

 अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस ( 8 मार्च ) 


*आधुनिक भारत म नारी के दशा*

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यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।। (मनुस्मृति ३/५६ )

(मनु स्मृति में लिखे ये श्लोक आप सबो झन कभू न कभु जरूर सुने होहू। येकर भावार्थ हवय कि- जिंहाँ नारी के पूजा होथे उँहा देवता निवास करथे अउ जिंहाँ नारी के पूजा / सम्मान नइ होय उहाँ करे सबो काम निष्फल हो जाथे।)


अतका सब जानत हुए भी महिला मन प्रताड़ित काबर होवत हे ये यक्ष प्रश्न आय ? बहन, बेटी बहू के रूप म नारी ल जो सम्मान मिलना चाही का समाज में वो सम्मान इनला मिलत हे ? शायद नहीं.. ।  एक बात अउ कहे जाथे - "हर सफल पुरुष के पाछू कोनो न कोनो नारी के हाथ होथे।" ये निर्विवाद सत्य आय कि पुरुष अपन हर काम ल  यदि निर्विध्न करत हवय त येकर पाछू नारी के ही हाथ होथे।  महिला मन  चारदीवारी म रहि के पूरा जिम्मेदारी निभाथे।  रसोई, झाड़ू पोछा बर्तन से लेके घर ला व्यवस्थित करे के पूरा दायित्व महिलाओं मन के होथे तब कहूँ पुरुष वर्ग स्वतंत्र होके अपन जम्मो कारज ल कर पाथे। परिवार के देखरेख म महिला मन अपन सर्वस्व न्यौछावर कर देथे।  घर म यदि महिला मन नइ होही ता पुरुष मन के  जीवन घलो ये चार दीवारों के बीच में उलझ के रहि जाही अउ उन अपनी तरक्की के बात सोच भी नइ सकय। 


लइका मन ला संभालना वोला टाइम पर खाना खवाके स्कूल भेजना, टिफिन ये जम्मो काम महिला मन ही करथे। फेर जब बात महिला मन के सम्मान के होथे तब का हमन उनला वो सम्मान दे पाथन जेकर हकदार उन हवय? पुरुष ला  प्रसिद्धि अइसने नइ मिल जाय, वोकर पाछू महिला मन अपन सब कुछ न्योछावर कर देथे। 


शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।

न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ।।( मनुस्मृति ३/५७ )

अर्थात- जेन कुल में नारी कष्ट भोगथे वो कुल के शीघ्र ही नाश हो जाथे अउ जिंहाँ नारी हा प्रसन्न रहिथे वो कुल सदैव फलथे फ़ूलथे अउ समृद्ध रहिथे। 

           आधुनिक भारतीय समाज मा महिला मन  कई नवा आयाम स्थापित करे हे । मेडिकल, इंजीनियरिंग, वैज्ञानिक अनुसंधान, नैवी, इंडियन एयर फोर्स, आर्मी आदि जघा मा महिला मन अपन परचम लहराय हवय। फेर दूसर डहर महिला मन के साथ रोज रोज होने वाला हिंसा ह चिंता के लकीर ल अउ गहरा कर दे हावय। कानून के कड़ा प्रावधान होय के बावजूद भी बेटी मन सुरक्षित नइ हे। संचार और सुरक्षा के आधुनिक माध्यम होय के बाद भी हमन हिंसा ल नइ रोक पाथन। फास्ट ट्रैक कोर्ट होय के बावजूद न्याय म देरी होना कानून व्यवस्था उपर सवालिया निशान आय। 

              महिला संग होने वाला अत्याचार के कई कारण हे। नारी के साथ जेन घरेलू हिंसा  होथे वोकर सबसे ज्यादा जिम्मेदार महिला मन ही हवय। उदाहरण यदि बहू के साथ कोई अन्याय होवत हवय ता अक्सर येमा सास,ननंद,जेठानी के भूमिका देखे जात हे जेन स्वयं भी महिला ही आय। यदि उन नइ चाही तो कभी भी कोनो बहू के साथ घरेलू हिंसा हो ही नइ सकय। अक्सर ये देखे जाथे कि दहेज के नाम म जब भी महिला मन  प्रताड़ित होथे तब वोमा महिला मन घलो  शामिल होथे जेन पुरुष वर्ग ला उकसाय के  काम करथे । अगर महिला मन  पुरुष के साथ झन दँय तब घरेलू हिंसा ल 80% तक रोके जा सकत हे। 


         बहू ल प्रताड़ित करे के पहली सास ये काबर नइ सोंचय कि उहू ककरो बेटी आय। वोकरो बेटी एक दिन ककरो घर बहु बन के जाही अउ ओकरो संग अइसन अत्याचार होही तब ..? यदि अतका बात सास ल समझ आ जाय तब बहू मन के साथ काबर अत्याचार होही। ठीक अइसने बहू अपन सास ल महतारी सही मानही तब कोनो भी सास के साथ दुर्व्यवहार नइ हो सकय। येकर ले ये बात तो साफ हवय कि महिला मन के सबले बड़े दुश्मन महिला ही हवय। 

               समाज म महिला मन के दैहिक शोषण के सबले प्रमुख कारण विकृत मानसिकता अउ उपभोक्तावादी संस्कृति हे। पुरुष महिला मन ला केवल उपभोग के वस्तु मानथे अउ   विकृत मानसिकता के चलते अइसन  घृणित काम ल अंजाम देथे।  पुरुष ये काबर नइ सोंचय कि जेकर साथ वो ये घृणित काम करत हे उहू ककरो माँ, बहन अउ बेटी आय। यदि उँकर माँ,बहन अउ बेटी के संग ये प्रकार के कोनो घृणित काम करे जाहीं तब उन ला कइसे लागही ?

           छोटे छोटे बालिका मन के साथ होवत अनाचार के एक अउ कारण नशा आय। जब तक समाज म नशा के जाल होही तब तक महिला मन के संग अनाचार होते ही रइही। शराब,ड्रग्स,गाँजा, ब्रॉउन सुगर जइसन घातक नशीले जिनिस के सेवन करइया मनखे मन ही हत्या बलात्कार जइसन अमानवीय काम ल करथे। काबर कि नशा के हालत म उन सोंचे समझे के स्थिति म नइ रहय कि उन का करत हे। 

           घर ले बाहिर स्कूल कॉलेज या अन्य जघा मा नोनी अउ युवती मन के साथ जे दुष्कर्म होवत हे येकर पाछू संस्कार के की कमी आय। हमन केवल बेटी ला संस्कारित करने के काम करथन । उन ला कहिथन ये नइ करना हे, वो नइ करना हे अइसे रहना हे वइसे चलना हे। फेर अपन बेटा ला खुला छूट दे देथन , वोकर हर गलती ला माफ कर देथन। इही छूट के कारण बेटा मन अपन संस्कार ल भुला जाथे । जतका पाबन्दी बेटी उपर लगाए जाथे वतका बेटा उपर भी काबर नहीं ? यदि लड़का मन  संस्कारित होही ता कोनो भी प्रकार के दुष्कर्म बेटी मन से नइ हो सकय। 

              समाज के एक अउ विकृत पहलू ये कि दुष्कर्म पीड़िता के साथ सहानुभूति ना होके उल्टा उही ला दोषी ठहराथे जेन गलत हे। पीड़िता ल त्वरित न्याय के साथ समाज म सम्मान से जीये के अधिकार भी होना चाही । समाज ल उँकर भावना के सम्मान करना चाही। आखिर कब तक नारी ल अबला कहिके हम उँकर अपमान करत रहिबों।   भारत ल हम सदियों से विश्वगुरु के संज्ञा देवत हन, का महिला के अधिकार के प्रति हम आज संजीदा हवन....? अपन कलेजा म हाथ रख के विचार करव। 


अजय अमृतांशु 

   भाटापारा

Friday 5 March 2021

सुरता(मस्तूरिहा जी)-सूर्यकांत गुप्ता


स्व. लक्ष्मण मस्तूरिया जी ल शब्दांजलि अउ स्वरांजलि


          

सुरता(मस्तूरिहा जी)-सूर्यकांत गुप्ता

 हिरदे ले जतका खुशी बर भाव नई ओगरय ओखर ले जादा खुद के,  देस दुनिया, अपन राज के दसा दुर्दसा ल देख के ओगरथे। अउ वो भाव कथा, कहानी कविता, उपन्यास गीत संगीत के रूप म सबके आगू आथे। कोनो दिन रात मिहनत करके एक कलाकार बनथें त कोनो ल भगवान उपहार के रूप म वो कला दे रथे।भगवान ले उपहार के रूप म पाये अइसन कला के धनी के प्रत्यक्ष उदाहरण हमर छत्तीसगढ़ के माटी के पीरा ल अपन राज के गुरतुर बोली मा कविता, गीत, कहानी, उपन्यास के लिखइया, जिंखर गीत हा ए छत्तीसगढ़ के जन जन म लोकप्रिय हे, छत्तीसगढ़ महतारी के रतन बेटा लक्ष्मण मस्तुरिया जी 7 जून 1949 म ग्राम मस्तूरी (पुराना जि. बिलासपुर) म अँवतरिन। आज उंखर सबले लोकप्रिय गीत  "मोर संग चलव रे",  "पता दे जा रे गाड़ी वाला", मन डोलै रे माँघ फगुनवा" अऊ कई ठन हे...फिल्म मोर छंइया भुइंया बर लिखे उंखर गीत ला कोन नई जानत होही....छत्तीसगढ़ राज बने के कई साल पहिली रायपुर ल राजधानी के रूप देखइया लक्ष्मण मस्तूरिया जी के तीन नवंबर के अकस्मात निधन ह  ए राज के जन जन ल सदमा म बुड़ो दईस। आज महीना भर होत हे उंखर निधन ल। फेर ए राज के मनखे ओ सदमा ले उबरे नइयें। इही उंखर सुरता ल जिंदा रखना उनला अमर बना दे हे।


आज  02 दिसंबर 2018 दिन अइतवार के आदरणीय श्री अरुण निगम जी, अध्यक्ष, दुर्ग जिला हिंदी साहित्य समिति दुर्ग के सौजन्य से श्रद्धेय स्व. मस्तूरिया जी के व्यक्तित्व अउ  कृतित्व उपर भावांजलि अउ उंखर रचना के स्वरांजलि के आयोजन दुर्ग के आई एम. ए. भवन म रखे गे रहिस। माई पहुना रहिन वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप वर्माजी, अउ विशेष रूप से आमंत्रित छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध गायिका श्रीमती कविता वासनिक रहिन। कार्यक्रम के अध्यक्षता करिन; वरिष्ठ साहित्यकार अउ स्व. मस्तूरिया जी के साहित्य साधना के शुरुआती दिन म काफी लंबा समय तक उंखर नजदीक रहइया श्रद्धेय रवि श्रीवास्तव जी। श्रद्धेय स्व. लक्ष्मण मस्तूरिया जी के व्यक्तित्व ऊपर अपन उद्गार उंखर गीत "घुनही बँसुरिया" अउ "मोर संग चलव" के एक एक शब्द म छिपे जीवन-दर्शन ल समझावत हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकारा हम सबके मयारुक आदरणीया दीदी श्रीमती सरला शर्मा मन प्रकट करिन।  


                  ए कड़ी ल आगू बढ़ावत श्रद्धेय स्व. रामचंद देशमुख जी के मंच  "चँदैनी गोंदा" जउन हर श्रद्धेय स्व. मस्तूरिया जी ल प्लेट-फॉर्म दिस, उही "चँदैनी गोंदा ले जुड़े आदरणीया दीदी संतोष झाँझी मन उंखर गीत गा के स्वरांजलि दईन। इही कड़ी म माई पहुना श्री प्रदीप वर्माजी द्वारा उंखर संग रहे दिन के सुरता करे 

गईस।   शायद उनला बीते  अनुभव होइस होही के वास्तव म कतको बड़े बड़े साहित्यकार भले संग म रहँय, मंच साझा करँय, फेर दूसर के रचना के तारीफ कभू नई कर सकँय, खासकर मस्तूरिया जी संग अइसन वाकिया होय होहै;  एकरो जिक्र करिन।

अपन अध्यक्षीय उद्बोधन म श्रद्धेय रवि श्रीवास्तव जी स्व. मस्तूरिया जी के संग बिताये दिन के सुरता करत मस्तूरिया जी के जीवन के कुछ  अनकहे/छिपे पहलू ल भी मड़ाइन। इही बीच म हमर छत्तीसगढ़ के स्वर कोकिला श्रीमती कविता वासनिक द्वारा भी श्रद्धेय स्व. मस्तूरिया जी के गीत ला अपन स्वर दे के साथे साथ उंखर संग मंच साझा करे के समय के संस्मरण सुनाये गईस। अध्यक्षीय उद्बोधन के बाद प्रथम सत्र के समापन होइस। आभार प्रदर्शन समिति के पूर्व अध्यक्ष  आदरणीय डॉ. संजय दानी द्वारा करे गईस।


कार्यक्रम के संचालन अध्यक्ष, दुर्ग जिला हिंदी साहित्य समिति के अध्यक्ष, वरिष्ठ साहित्यकार  अउ जनकवि स्व. कोदूराम जी दलित के बड़े बेटा श्री अरुण निगम, सेवा निवृत्त मुख्य प्रबंधक भारतीय स्टेट बैंक अउ ,श्रद्धेय स्व. लक्ष्मण मस्तूरिया जी के डेढ़साले साहब अउ सबले बड़े बात हमर राजभाखा छत्तीसगढ़ी ल पोठ करे बर अथक प्रयास म लगे "छंद के छ" नाव के व्हाट्सएप म कक्षा चलवैया हमर छंद गुरु,  द्वारा करे गईस। उन कार्यक्रम संचालन के दौरान श्रद्धेय स्व. मस्तूरिया जी के  नियमित संयमित जीवन के बारे म बतावत गईन। उंखर सहजता सरलता के बारे म बतावत उंखर स्वाभिमान के चर्चा करिन। उंखर विशेष बात, चाटुकारिता ल अपन तीर फटकन नई दिन,  के विशेष जिक्र करे गईस।


दूसर सत्र प्रारंभ होइस, श्रद्धेय स्व. मस्तूरिया जी के गीत के संगीतमय प्रस्तुति ले। हमर राज के स्वर कोकिला श्रमती कविता वासनिक, उंखर बेटी, अउ ऊंखर समूह द्वारा मस्तूरिया जी के एक सेबढ़के एक गीत के लय सुर ताल के संग गायन चलिस। आदरणीया कविता दीदी के पति आदरणीय विवेक वासनिक जी हारमोनियम म संगत दईन । "मोर संग चलव रे" "पता दे जा रे...." के संग अउ अब्बड़ अकन गीत के प्रस्तुति दे गईस। पूरा हाल सुनते रहि गँय। उठ के जाय के मन नई करत रहिस। भाई महादेव हिरवानी जी, मनहरण साहू जी मन घलो एक से बढ़के एक गीत गाईन। ए सत्र के संचालन श्रद्धेय विजय मिश्राजी, डिप्टी जनरल मैनेजर, सी.एस.ई.बी करिन अउ आभार प्रदर्शन श्री विजय गुप्ता जी द्वारा करे गईस।


ए कार्यक्रम ल सफल बनाये बर  आदरणीय सर्वश्री नवीन तिवारी, सचिव दुर्ग जिला हिंदी साहित्य समिति दुर्ग, डॉ. संजय दानी,  श्री विजय गुप्ता, बलदाऊ रामजी साहू, सूफी शाद, डॉ. नौशाद, श्री यशवंत सूर्यवंशी, अउ बहुत झन बड़े बड़े साहित्यकार आये रहिन जिंखर नाव के सुरता मोला नई आवत हे; उंखर बहुत बड़े योगदान रहिस। उत्साह बढ़ाये बर सर्वश्री सुनील गुप्ता, सुनील जैन अउ सुभाष के उपस्थिति भी सराहनीय रहिस। दीदी  मन म श्रीमती विद्या गुप्ता, श्रीमती शुचि भवि संगे सँग अउ बहिनी मन के उपस्थिति भी महत्वपूर्ण रहिस। आदरणीय निगम जी के परिवार के जम्मो सदस्य; श्रीमती सपना निगम, उंखर छोटे भाई श्री हेमंत निगम, बेटा  चैतन्य निगम, अभिषेक निगम, स्व. मस्तूरिया जी के सुपुत्री श्रीमती शुभा यादव अउ दामाद के सहयोग अउ योगदान ल नई भुलाए जा सकै। 


               सूर्यकांत गुप्ता

                 रायपुर

नारायण लाल परमार (भावानुवाद--चोवा राम 'बादल')



*गद्दार कौन*

नारायण लाल परमार

(भावानुवाद--चोवा राम 'बादल')


नवलगढ़ राज म ये रिवाज तइहा ले चलत आवत रहिस हे के दशहरा तिहार के दिन बहुत बड़े मेला भरावय। वो दिन राजमहल ल खूब सजाये जावय अउ प्रजा मन यथाशक्ति राजा ल भेंट देवयँ।  राजधानी मानिकपुरी म भारी उत्साह राहय।सचमुच नगर ह दुल्हिन जइसे सजे-धजे दिखय। दूरिहा-दूरिहा के नामी नाचा अउ संगीत मंडली मन सकलाकें कार्यक्रम देवयँ। रामलीला तो होबे करय। 

एक साल भेंट अतका चढ़िस के राजा रामशाह ह अचरज म परगे। वोकर राज पुरोहित पंडित रामभगत ह राजा के बहुतेच बड़ाई करत वोकर महिमा ल भगवान रामचंद्र जइसे बताये ल धरलिस। वो ह एहू कहे ल धरलिस के पूरा संसार म कोनो राज अइसे हे जिहाँ शेर अउ बकरी एके घाट म पानी पिथें त वो सिरिफ नवलगढ़ राज आय।

  राजा जी सुनके अबड़ेच खुश होइस। पंडित रामभगत ल वो अपन राजपुरोहित ले जादा दोस्त जइसे मानय। खुश होके राजा ह पंडित जी ल अबड़ कस सोन के मोहरा भेंट करिस।

  रतिहा पंडित जी ह घर म अपन पंडिताइन संग   गोठियावत कहिस--" ये तो मोर कमाल ये जेन ह राजा के जस ल चारों खूँट बगरा देंव। जिनगी ल पार पाये के बहुत कस रहस्य ल महीं ह राजा ल बताके सदमार्ग म चले ल सिखोये हँव तेकरे सेती वो मोर सब कहना ल मान लेथे अउ  प्रजा के भलाई म ध्यान देथे तेकरे सेती प्रजा घलो वोला चाहथे।

    ये सब गोठ ल सुनके पंडिताइन सिरतो म मानगे के वोकर पति ह बड़ गुनी अउ राजा के खासमखास हे।

 पंडित रामभगत ह समे-समे म  अपन एकलौता पुत्र रामचरण ल अपन विद्या के शिक्षा देवत राहय। वोला ये भरोसा रहिस के जब राजा के बेटा ह राजा बनही त मोर बेटा ह वोकर राजपुरोहित बनही। वोइसने होबो घलो करिस।  शिक्षा -दिक्षा के पाछू राजा के बेटा राजेंद्रशाह ह राजा बनिस अउ पंडित रामचरण ह वोकर पुरोहित। नवा उमर रहिस, नवा जोश। कभू-कभू नवा राजा अउ नवेरिया राजपुरोहित के विचार म अंतर पर जावय। राजेंद्रशाह ह अपन पिता ले उलट उद्दंड अउ विलासी रहिस भलुक पुरोहित पंडित रामचरण ह अपन पिता ले जादा ज्ञानी अउ सज्जन निकलिस।वो ह तर्कशास्त्र म पारंगत रहिस।

  अब तो रोज राज दरबार म नाच-गाना अउ बाजा-गाजा के महफिल जमय।राजा राजेंद्रशाह ह राग-रंग म डूबे राहय।राजपुरोहित कभू टोंकय त वोला झिड़क दय। हालत अजीब होगे। पंडित रामचरण ल अबड़ेच अपमान सहे ल परय तभो अपन कर्तव्य के पालन करय । फेर कब तक साहय? वो ह सोचय के कइसे करके राजा के ये आदत ल बदले जाय। एती राजा के भोग- विलास ह दिन दूना रात चौगुना बाढ़ते गिस अउ वोती खजाना ह तरिया के पानी कस अँउटत गिस। प्रजा के दुख बाढ़े लागिस। पंडित रामचरण ह समझाइस त राजेंद्रशाह ह वोकर राजपुरोहिती ल छिनलिस।

  पंडित रामचरण ह निराश नइ होइस भलुक जोर शोर ले  गाँव मन म जाके ज्ञान के अँजोर बगराये ल धरलिस। वोकर ये नेक काम ह राजा के खुशामद करइया कुछ दरबारी मन ल खटके लागिस। जइसे-जइसे पंडित जी के जस फइले ल धरलिस तइसे-तइसे राजा सो वोकर शिकायत तको जादा होये लागिस। एक दिन वोला प्रजा ल भड़काये के आरोप म पकड़के दरबार म खड़ा करे गिस।

   नवा बनाये गे राजपुरोहित ह जेन ह पंडित रामचरण ले बहुत जलनखोरी करय तेन ह कहिस--" प्रजा ल बगावत करे बर भड़काना सबले बड़े अपराध अउ पाप होथे। जेला ये ह करे हे।" चापलुस दरबारी मन तको हाँ म हाँ मिलाइन। बेचारा पंडित रामचरण ह का करय? वोकर अर्जी-बिनती ल कोनो नइ सुनिन।

 मौत के सजा सुनाये के पहिली राजा राजेंद्रशाह कहिस--" तोर कोनो आखिरी इच्छा होही त बता डर?"  सुनके अउ गुनके पंडित रामचरण ह कहिस- "महाराज मैं ह तोला बहुत अकन रहस्य के बात बताये हँव।मरे के पहिली एक ठन अउ मोती के फसल पैदा करे के रहस्य ल बताना चाहत हँव।"

 अतका ल सुनके राजा अउ दरबारी मन दंग होगें।कतको झन ल शंका होये ल धरलिस के कहूँ ये ह कुछु गुनतारा करके भाग झन जावय फेर राजा ह बिंसवास करके कहिस--" हम तोला मौका देवत हन।तैं ये विद्या मोला सिखो दे।" राजा ले आज्ञा लेके पंडितजी ये शर्त रखके के वो ह अपन काम चुपचाप करही।कोनो ह अड़ंगा झन डारहीं।तहाँ ले वो अपन काम म लगगे।  वो ह कुछ ईकड़ बढ़िया जमीन लिस। वोला जोंत-फाँद के गेहूँ बोंवा दिस।

  जलनखोर बैरी मन ये सोचिन के ये पंडित के बच्चा भला का कर सकही।वो मन विघ्न- बाधा डारे के बहुत कोशिश करिन फेर गम नइ पाइन। समे म अंकुर फूटिस अउ पौधा बाढ़े लागिस।

 एक दिन बड़े बिहनिया जब कसके धुँधरा छाये रहिस ,पंडित रामचरण ह राजा अउ वोकर मंत्री-संत्री मन ल खेत म लेके गेइस। जम्मों गहूँ के पौधा मन ओस के बूँद म गुँथाये मोती असन चमकत राहयँ। पंडित जी ह सबो झन ल देखावत कहिस--" लेवव ये दे मोती के फसल हावय।" एक झन दरबारी ह जइसे वोला टोरे बर आगू बढ़िस,पंडित रामचरण ह चिल्लाके कहिस--" ठहर जा! ये ह मोती के पवित्र फसल आय।एला उही मनखे छू सकथे जेन ह कभू देश ले गद्दारी नइ करे होही।"

 सुनिन तहाँ ले सबके चेहरा सेटरागे। कुछ समे ले सबो झन एक दूसर ल देखे ल धरलिन। तहाँ ले सब टरक दिन।राजा भर बाँचिस । वो ला ज्ञान मिलगे। वोकर आँखी आत्मज्ञान ले चमके ल धरलिस। देखते-देखत वो ह पंडित रामचरण के गोड़ ल धरलिस।


चोवा राम "बादल"

हथबंद, छत्तीसगढ़

विमर्श के विषय--"छत्तीसगढ़ के पाठशाला मन मा छत्तीसगढ़ी भाषा के पाठ्यक्रम अउ किताब के स्वरूप'*


*विमर्श के विषय--"छत्तीसगढ़ के पाठशाला मन मा छत्तीसगढ़ी भाषा के पाठ्यक्रम अउ किताब के स्वरूप'*


संसार के जम्मों शिक्षाशास्त्री अउ मनोवैज्ञानिक मन के कहना हे कि छोटे बच्चा मन ल उँकर मातृभाषा म पढ़ाना-लिखाना सबले बढ़िया होथे काबर के मातृभाषा म पढ़ाये पाठ ल या देये ज्ञान ल वोमन सहजता ले समझ जथें। मातृभाषा ल छोड़ के आन भाषा ल समझना लइकामन बर कठिन अउ उबाऊ होथे। ऊँकर शब्द भंडार म आन भाषा के शब्द नहीं के बरोबर रहिथे।

   बहुत कस देश म अउ हमरो  देश के बहुत अकन प्रदेश म प्रायमरी शिक्षा मातृभाषा म दे जाथे जइसे उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात---आदि म।

 उच्च प्रायमरी अउ हाई स्कूल/हायर सेकेंडरी म त्रिभाषा फार्मूला भाषा शिक्षण म लागू हे जेन अच्छा हे काबर के आगू जीवन म समाजिक व्यवहार बर राष्ट्र भाषा हिंदी अउ अंग्रेजी ल जानना जरूरी हे।

   पाठ्यक्रम म उम्र अउ बच्चा के सिखे के क्षमता के अनुसार रचनात्मकता अउ शैक्षिक जरूरत ल ध्यान म राखके विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास बर अउ वोला एक अच्छा नागरिक बनाये बर सोच विचार के बने क्रमबद्ध रूप ले पाठ मन ल पुस्तक मा राखे जाथे।

   अब हम  पाठ्यक्रम के ऊपर बताये लक्षण ल देखत *छत्तीसगढ़ के पाठशाला मन मा छत्तीसगढ़ी भाषा के पाठ्यक्रम अउ किताब के स्वरूप* मा विचार करन त मोटी मोटा ये बात दिखथे---

(क) भाषा के पुस्तक मन मा कक्षा पहिली ले लेके बारहवीं तक काम चलताऊ दू-चार पाठ छत्तीसगढ़ी भाषा के राखे गे हे।उही 15--20% जबकि प्रायमरी म 100% पाठ छत्तीसगढ़ी म रहना रहिसे। 

 विद्वान मन इही मेर कहिथे के छत्तीसगढ़ी के कोन रूप के पाठ रहना चाही त एकर हल हे के भाषायी संकीर्णता ल त्याग के छत्तीसगढ़ी के जेन रूप व्यापक हे ,जेला सब समझथे वोला अपनाना चाही।

(ख) भाषा के किताब ल छोड़के आन विषय जइसे समाजिक विज्ञान, भूगोल, गणित के किताब म एको पाठ छत्तीसगढ़ी म नइये जबकि अनिवार्य रूप ले प्रायमरी स्तर म सबो विषय के सबो पाठ छत्तीसगढ़ी म होना चाही।

 छत्तीसगढ़ी भाषा अतका समृद्ध हे के वो कोनो भी अवधारणा ल व्यक्त कर सकथे।

    तकनीकी शब्द मन ल हम पाठ मन म ओइसने के ओइसने बउर सकथन।

( ख) एक अच्छा पाठ्यक्रम के विशेषता ल ध्यान म रख के विषय अनुसार पाठ मन के चयन करना चाही। हमर पाठशाला मन के भाषा के किताब म जेन थोर-बहुत छत्तीसगढ़ी भाषा के पाठ शामिल करे गे हे वो खरा नइये।

    छत्तीसगढ़ के लेखक कवि मन ल जिम्मेदारी देके सबो विषय के बढ़िया उपयोगी, सार्थक अउ ज्ञानवर्धक पाठ तइयार करे जा सकथे। हमर पुरखा साहित्यकार मन के रचना मन ला तको लिये जा सकथे।


      कुल मिलाके इही कहे जा सकथे के हमर पाठशाला मन मा भाषा के किताब मन मा शामिल छत्तीसगढ़ी के पाठ ऊँट के मुँह मा जीरा बरोबर हे फेर ये सोच के संतोष करे जा सकथे के मातृभाषा मा शिक्षा के शुरुआत तो होये हे।अँधियारा छँटही अउ अँजोर होबे करही।

अँधा मामा ले काने मामा सहीं।


चोवा राम "बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ के पाठशाला मन म छत्तीसगढ़ी भाषा के पाठ्यक्रम अउ किताब के स्वरूप* - एक विमर्श

 *छत्तीसगढ़ के पाठशाला मन म छत्तीसगढ़ी भाषा के पाठ्यक्रम अउ किताब के स्वरूप* - एक विमर्श


        छत्तीसगढ़ के पाठशाला मन म छत्तीसगढ़ी भाषा के कोनो किताब चलन म नइ हे। राज बने २० बछर होगे हे। फेर छत्तीसगढ़ी म स्कूली किताब के दुकाल हे। अपन संस्कृति, परम्परा अउ भाषा ले अलग चिन्हारी रखइया राज म अपने भाषा म शिक्षा के कोनो सार्थक उदीम नइ दिखत हे। छत्तीसगढ़ी के प्रति शासन अउ प्रशासन कुंभकर्णी नींद भाँजत हे, कहे जा सकत हे। योजना-परियोजना के प्रचार-प्रसार बर इही मन आँखी रमजत छत्तीसगढ़ी के पाँव पलौटी करथे। छत्तीसगढ़ी के बिकास इहाँ के जनता अउ साहित्यकार , संस्कृति कर्मी अउ लोककलाकार मन के भरोसा हे। वहू म एमन उपेक्षा पूर्ण व्यवहार के संग जिनगी जियत हें। 

        दुनियाभर के शिक्षाविद् अउ शिक्षाशास्त्री मन घलव प्राथमिक शिक्षा ल मातृभाषा म दे के समर्थन करथें। मातृभाषा म शिक्षा ग्रहण सहज अउ सरल होथे माने हें। लइकामन बर मनोरंजन सही रहिथे। मुँहाचाही मुँहाचाही म पढ़े बर तियार होथे। खेल खेल म कतको जिनीस सीखे धर लेथे। इही शुरुआत ले पढ़ई म रुचि बाढ़े ले आने भाषा म शिक्षण घलव सुभीता होथे। शिक्षण सूत्र घलव हे, सरल ले कठिन के तरफ अउ ज्ञात ले अज्ञात के तरफ।  लइकामन स्कूल म भर्ती होथे त महतारी भाषा बस जानत रहिथे। आने भाषा के शब्द मनोवैज्ञानिक रूप ले कठिन होय ले पढ़ई म बाधा बनथे। एकर ले शाला त्यागी लइकामन के गिनती घलव बाढ़े लग जथे। अध्ययन के मुताबिक मातृभाषा म सीखे के दर घलव जादा देखे गेहे। फेर कोन जनी ? अइसे का अड़चन हे कि छत्तीसगढ़ के पाठशाला म छत्तीसगढ़ी म पाठ्यक्रम निर्धारित नइ करे जा सकत हे। पाठ्यक्रम के अभाव म किताब छपई संभव घलव नइ हो पात हे। भारत म ही आने राज मन अपन मातृभाषा म शिक्षा देथें, त हमर राज म काबर संभव नइ होही? छोटे कक्षा मन के पाठ्यक्रम के कोनो भी विषय के तकनीकी शब्द अइसे नइ होही जउन छत्तीसगढ़ी अनुवाद करे म कठिन होवय। 

        आज के बखत म प्रायमरी ले हाईस्कूल के पहुँचत ले सबो कक्षा म दू चार पाठ शामिल करे गेहे। बने रहितिस जम्मो पाठ के पुरती  प्रायमरी कक्षा म पाठ रख के छत्तीसगढ़ी म पढ़ाय जातिस। जइसे देश के अउ आने राज मन म पढ़ाय जाथे। छोटे लइका माटी के लोंदा होथे जउन साँचा म ढालबे तउन बन जथे। नैतिक शिक्षा अउ मानवीय मूल्य के समावेश अपने भाषा म रहे ले उत्तम होथे। इही हर जिनगी बर मजबूत नींव बनथे। लइकापन म सीखे के ललक ल धीर लगाके नवा शब्द मन ले जोड़त नवा दिशा दे जाय। हर उमर के लइका के रुचि अउ समय के माँग के अनुरूप पाठ्यक्रम बनाय के जरूरत हे। पाठ्यक्रम तियार करे के जिम्मा समाज के हर वर्ग के जम्मो विषय के विद्वान मन ल दिए जाय। मनोवैज्ञानिक मन के सलाह घलव लेना चाही। हाई स्कूल हायर सेकंडरी म उँखर भविष्य के आवश्यकता ल धियान रखत पाठ्यक्रम के बोझ जरूर कम करे बर गिनती के पाठ रखे जा सकत हे। जइसन अभी शामिल हवै।

       शिक्षा ल नौकरी अउ रोजगार मिले के साधन मान, इहें तक सीमित नइ रखना चाही। शिक्षा मनखे ल मनखे बना सकय एकर चिंता घलव होना चाही। यहू जिनीस के समावेश पाठ्यक्रम म होना चाही। हँ उच्च शिक्षा जरूर रोजगार मूलक होना चाही। लइका के सर्वांगीण विकास ल धियान रखत उच्च शिक्षा राष्ट्रीय अउ अंतर्राष्ट्रीय भाषा म होय। आज पूरा समाज रीति-रिवाज अउ परम्परा के नाँव म दू फाड़ होगे हवै। संस्कार अउ रीति-रिवाज ल ढकोसला मानत पीढ़ी म नैतिक पतन देखे जा सकत हे। एकर कमी ले एक दूसर ले मन के जुड़ाव कमती होवत हे। बुढ़ापा के सहारा वैज्ञानिकता के चकाचौंध म कति लुकाय धर ले हे, पता नइ चलत हे। एकाकी जिनगी आज के वैज्ञानिक युग के बड़ेजान अभिशाप होगे हे। अपन मातृभाषा ले नइ जुड़े अउ मशीन के बीच रहत मनखे मशीन बरोबर जड़ होवत हे। भावना के अभाव दिखथे। अपन तीरतखार म देख के अंदाजा लगाय जा सकत हे,कि संयुक्त परिवार म रहइया या अपन मातृभाषा म पढ़इया लइकामन के मानवीय मूल्य तुलनात्मक रूप ले बने हे।  अँग्रेजी माध्यम म पढ़ई शुरू करवइया दाई-ददा रोज बेटा-बहू के नाँव म दू आँसू रोवत हें। मैं अँग्रेजी पढ़ई अउ वैज्ञानिकता के विरोधी नइ हँव। मैं अतका चाहथँव कि प्राथमिक शिक्षा अपन मातृभाषा म होना चाही। अपन लइका ले अपन भाषा म सरलग गोठबात होते राहय। तभे मन के पीरा ल लइका समझ पाहीं अउ आँसू पोंछही।

        

   पोखन लाल जायसवाल

पलारी बलौदाबाजार

छत्तीसगढ़ के पाठ्यक्रम म छत्तीसगढ़ी-मथुरा प्रसाद वर्मा


छत्तीसगढ़ के पाठ्यक्रम म छत्तीसगढ़ी-मथुरा प्रसाद वर्मा

 आज के विषय ल महत्व ल समझ के अपन अल्पमति से अपन बात रखे के प्रयास करता हँव। मोर विचार से असहमति हो सकत हे। ज्यादातर विद्वान मन कहिथे कि जेन लइका स्कूल आथे वो माटी के कच्चा लोंदा होथे स्कूल अउ शिक्षक जइसे चाहथे वइसे बना सकथे। फेर मोर मानना एकर ले अलग हे।

       लइका जब स्कूल आथे तब खाली हाथ नइ आवय । वो अपन सँग आपन मातृ भाषा के शब्द भण्डार लेके आथे।वो शब्द सयोजन अउ वाक्य विन्यास के अहम जानकारी ले के आथे। लइका खाली हाथ नइ आवय बहुत अकन गीत, कविता, कथा कहानी आदि रूप म साहित्य घलो जानथे। भले लइका मन हमर कस साहित्यिक शब्द अउ वाक्य म अभिव्यक्ति नइ कर सकय फेर ओखर  बोल चाल के भाषा हमर ले बहुत कमजोर नइ रहय। 

              अउ दूसर बात लइका केवल शिक्षक अउ स्कूल ले नइ सिखय । वो अपन मा-बाप, घर-परिवार, अउ परिवेश ले घलो सीखथे। अउ जे अपन परिवेश ले सिखथे वोहू महत्वपूर्ण होथे । ये बात ला मानना चाही। अउ ओखर उपयोग स्कूली शिक्षा म होय ले शिक्षा सरल अउ सुगम हो जथे। दूसर भाषा ले पढ़ना लिखना सीखे के कारण सबले ज्यादा प्रभावित हमर अभिव्यक्ति क्षमता होथे । ते पाय के 12 वी पास करे के बाद भी हमर 80 प्रतिशत लइका अपन बात ल बोल अउ लिख के नइ रख पावय। जबकि नवा स्कूल अवइया लइका ल आपन भाखा म बोले के अवसर दे जाय त अपन बात रखे सिख जथे।

    कुछ विद्वान कहिथे के लइका अपन शुरुवात के पाँच सात साल म जतका शब्द सीखथे, अउ ओतके शब्द सीखे म बहुत साल लग जथे। वो लइका मन ला पढ़ना लिखना सिखाये के नाम ले दूसर भाषा सीखना काफी कठिन कार्य होथे। लइका अपन अपरिचित शब्द जेकर उपयोग ओखर दैनिक जीवन म नइ हे ओखर माध्यम ले पढ़ना लिखना सीखना बहुत मुश्किल होथे। जइसे हमन वर्णमाला सीखे के समय ईख, शलजम, कबूतर, से वर्ण परिचय छत्तीसगढ़िया लइका बर कठिन हो जथे। काबर कि वो इखर ले परिचित नहीं रहय । तेकर सेती लइका ला पढ़ना लिखना ओकर अपन भाषा मा सीखना अति आवश्यक हे। जइसे हर बंगाली, गुजराती, मराठी लइका मन ल हे, आप मन ल पता हे कि नही ये नइ जानव फेर हमारे राज्य म मुस्लिम लइका मन उर्दू म पढ़े लिखे सीखथे । पूरा परलकोट पखांजुर क्षेत्र म आज भी बंगला भाषा से प्राथमिक शिक्षा के माध्यम हरे। अउ तो अउ हजारो प्राथमिक शाला के भर्ती घलो बंगला पढ़ाए बर होय हे। फेर छत्तीसग़ढ म छत्तीसगढ़ी के साथ ऐसे नइ होवत हे त ये हमर सरकार मन के षड्यंत्र हरे। छत्तीसगढ़िया लइका मन ऊपर अत्याचार हरय।  अउ अपन आप ल छत्तीसगढ़ी के रक्षक अउ सेवक कही कही के अपन कद ऊँचा करैया मन के नाकामी हरय। हम सब सच्चा मन से प्रयास करतेन अपन स्वहित ले ज्यादा महतारी भाषा के मान बारे मे सोचतेन त स्थिति दूसर होतिस। 



🙏🏻मथुरा प्रसाद वर्मा

छत्तीसगढ़ी अउ पाठ्यक्रम -सरला शर्मा

 छत्तीसगढ़ी अउ पाठ्यक्रम -सरला शर्मा

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    पटल मं बुधियार लिखइया मन के विचार पढ़े बर मिलत हे जेकर से बहुत अकन नवा अउ अच्छा सुझाव घलाय के जानकारी होवत हे । पटल मं विमर्श होथे त पाठक ल ही नहीं लेखक ल भी फायदा होथे काबर के गद्य लेखन के अभ्यास होथे जेहर छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास बर जरूरी हे दूसर बात के लोकाक्षर के स्थापना के उद्देश्य भी इही हर आय । 

      मातृभाषा मं लइकन के पढ़ाई के सुरुआत बने बात आय एकर से लइकन के रुचि बढ़थे , पाठ्यवस्तु ल जल्दी अउ अच्छा से समझे सकथे । हमर छत्तीसगढ़ मं हल्बी , गोंड़ी , कुडुक , सादरी अउ कई ठन रुप छत्तीसगढ़ी के चलागत मं  हावय त प्राथमिक कक्षा के पाठ्यक्रम मं क्षेत्र के अनुसार मातृभाषा ल स्थान मिलना उचित होही फेर माध्यम के रूप मं नहीं एक विषय , एक भाषा के रुप मं स्थान मिलय । बाकी विषय के पढ़ाई हिंदी मं ही होना चाही । 

    पूर्व माध्यमिक के पाठ्यक्रम मं त्रिभाषा सूत्र लागू रहे ले लइका मन हिंदी , अंग्रेजी , संस्कृत पढ़हीं फेर हिंदी मं छत्तीसगढ़ी के पाठ बरोबर रहय जइसे दस पाठ हिंदी के त दस पाठ छत्तीसगढ़ी के ...ए उमर के लइका छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी के अंतर , समानता अउ उपयोगिता समझे लाइक हो जाथे । 

    माध्यमिक स्तर के पाठ्यक्रम मं हिंदी के संग मातृ भाषा छत्तीसगढ़ी जरुर रहय फेर मानक छत्तीसगढ़ी के पाठ रहय । अंग्रेजी अउ संस्कृत भी रहय काबर के संस्कृत हर भारतीय भाषा के मूल आय जेहर मातृभाषा छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी दुनों ल समझे मं सहायक हे । अंग्रेजी जरुरी एकर बर हे के लइका रोजी रोजगार बर देश , विदेश कहूं  भी सुछंद जाये सकय ।

     उच्चतर माध्यमिक मं लइकन अपन रुचि अनुसार विषय ले के पढ़थें जेन हर उंकर भविष्य के पढ़ाई , रोजी रोजगार के आधार बनथे ते पाय के विषय चाहे आर्ट्स , साइंस , वाणिज्य जौन भी चुने जाथे तेकर पाठ्यक्रम बढ़ जाथे लइकन जादा ध्यान भी इही डहर देथें अइसन समय मं पाठ्यक्रम मं दू भाषा रहय पहिली राष्ट्रभाषा हिन्दी दूसर अंग्रेजी काबर के आजकल इही दुनों भाषा हर उदर भरण के भाषा बन  गए हे त दूसर बात के ये उमर के लइकन अपन मातृ भाषा छत्तीसगढ़ी ल बोले , समझे लाइक हो जाथें । 

    फेर सुरता कर लिन के छत्तीसगढ़ी ल माध्यम न बना के एक विषय के रुप मं पाठ्यक्रम मं स्थान मिलय । रहिस बात छत्तीसगढ़ी साहित्य के त साहित्यकार मन तो पहिली भी लिखत रहिन , अवइया दिन मं भी लिखहीं ...। छत्तीसगढ़ी पढ़े लिखे लइका मन तो अउ अच्छा लिखहीं कहि सकत हन छत्तीसगढ़ी साहित्य दिनों दिन जगर मगर करही ।

छत्तीसगढ़ के जनकवि :कोदूराम “दलित”*


 *5 मार्च को एक सौ ग्यारहवीं जयन्ती पर विशेष* :


{छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध कहानीकार और वरिष्ठ साहित्यकार श्री परदेशीराम वर्मा जी द्वारा लिखित उनकी किताब – “अपने लोग” के प्रथम संस्करण २००१ से साभार संकलित}


*छत्तीसगढ़ के जनकवि :कोदूराम “दलित”*


*भुलाहू झन गा भइया*


पिछड़े और दलित जन अक्सर अन्चीन्हे रह जाते हैं | क्षेत्र, अंचल, जाति और संस्कृति तक पर यह सूत्र लागू है | पिछड़े क्षेत्र के लोग अपना वाजिब हक नहीं माँग पाते | हक पाने में अक्षम थे इसीलिये पिछड़ गये और जब पिछड़ गये तो भला हक पाने की पात्रता ही कहाँ रही | 


हमारा छत्तीसगढ़ भी एक ऐसा क्षेत्र है जिसे हक्कोहुकूक की समझ ही नहीं थी | परम श्रद्धालु, परोपकारी, मेहमान-नवाज, सेवाभावी यह छत्तीसगढ़ इसी सब सत्कर्मों के निर्वाह में मगन रह कर सब कुछ भूल जाता है | “मैंने उन्हें प्रणाम किया” यह भाव ही उसे संतोष देता है | जबकि प्रणाम करवाने में माहिर लोग उसकी स्थिति पर तरस ही खाते हैं | छत्तीसगढ़ी तो अपनी उपेक्षा पर जी भर रोने का अवकाश भी नहीं पाता | जागृत लोग ही अपनी उपेक्षा से बच्चन की तरह व्यथित होते हैं ....


‘मेरे पूजन आराधन को

मेरे सम्पूर्ण समर्पण को,

जब मेरी कमजोरी कहकर

मेरा पूजित पाषाण हँसा,

तब रोक न पाया मैं आँसू’


हमारे ऐसे परबुधिया अंचल के अत्यंत भावप्रवण कवि हैं स्वर्गीय कोदूराम “दलित” | ५ मार्च १९१० को दुर्ग जिले के टिकरी गाँव में जन्मे स्व.कोदूराम “दलित” का निधन २८ सितम्बर १९६७ को हुआ | ये गाँव की विशेषता लेकर शहर आये | यहाँ उन्होंने शिक्षक का कार्य किया | अपने परिचय में वे कहते हैं.... 

                    

‘लइका पढ़ई के सुघर, करत हववं मैं काम,

कोदूराम दलित हवय, मोर गवंइहा नाम |

मोर गवंइहा नाम, भुलाहू झन गा भइया

जन हित खातिर गढ़े हववं मैं ये कुण्डलिया,

शउक मुहू ला घलो हवय कविता गढ़ई के

करथवं काम दुरूग मा मैं लइका पढ़ई के’ |


कोदूराम “दलित” का यह उपनाम भी महत्वपूर्ण है | वे महसूस करते थे कि वे ही नहीं अंचल भी दलित है | छत्तीसगढ़ी का यह कवि हिन्दी और कवियों से जगमग लोकप्रिय काव्य मंचों पर अपनी विशेष ठसक और रचनात्मक धमक के कारण मंचों का सिरमौर रहा | अपने जीवन काल में ही दलित जी ने स्पृहणीय मुकाम पा लिया था मगर अतिशय विनम्र और संस्कारशील होने के कारण यथोचित महत्त्व न मिलने पर भी वे कभी नहीं तड़फड़ाये |


शोषण की चक्की में पिस रहे दलितों के पक्ष में कलम चलने वाले कवि ने आर्थिक सहयोग देने वाले राजनेता दाऊ घनश्याम सिंह गुप्त जी के सम्बन्ध में “सियानी गोठ” काव्य संग्रह में जो लिखा वह उनके चातुर्य और साहस को ही प्रदर्शित करता हऐ | “सियानी गोठ” के प्रकाशन के लिये दुर्ग के धान कुबेर दाऊ घनश्याम सिंह गुप्त ने उन्हें मात्र पचास रुपया दिया | सविनय राशि स्वीकारते हुये संग्रह में दाऊ जी के चित्र को ही उन्होंने नहीं छापा, बाकायदा यह वाक्य भी लिख दिया .... 


“जानत हौ ये कोन ये

मनखे नोहय सोन ये”


यही दलित जी की विशेषता है |


“राजा मारय फूल म, त तरतर रोवासी आवय

ठुठवा मारय ठुस्स म, त गदगद हाँसी आवय”


यह कहावत है छत्तीसगढ़ में | कवि लेखक ठुठवा अर्थात कटे हाथों वाले लोग हैं |सत्ता, शक्ति से संचालित नहीं हैं लेखक के हाथ | इसीलिए वह ठुठवा है | और कमाल देखिये कि शक्ति संपन्न राजा जब फूल से भी मारता है तो मार भारी पड़ती है | मार खाने वाला बिलबिला कर रोने लगता है | लेकिन ठुठवा मारता है आहिस्ता और मार खाने वाला हँस पड़ता है क्योंकि चोट नहीं पड़ती | विरोध भी हो जाता है और सांघातिक चोट भी नहीं पड़ती | यह है कला की मार के सम्बन्ध में छत्तीसगढ़ का नजरिया | यह छत्तीसगढ़ी विशेषता है | दूसरे हमें फूल से छूते हैं तो हमें रोना आता है लेकिन हम दूसरों को मार भी दें तो वे आल्हादित होते हैं | यह प्रेम की जीत है | प्रेम का साधक किसी को मार ही नहीं सकता | छत्तीसगढ़ तो दूसरों को बचाता है स्वयं मिट कर | इसीलिए इसकी मार ऐसी होती है कि मार खाने वाले भी आनंद का अनुभव करते हैं |

 

छत्तीसगढ़ के लिए जो आंदोलन चला विगत पचीस बरस से, उसे आंदोलन के आदि पुरुष डॉ.खूब चंद बघेल ने अपने दम पर चलाया | छत्तीसगढ़ भातृ संघ के झंडे टेल संकल्प लेने वाले लाखों लोगों ने अपने खून से हस्ताक्षर कर उनके साथ जीने-मरने का संकल्प लिया | लेकिन छत्तीसगढ़ ने कभी तोड़-फोड़, मार -काट को नहीं अपनाया | जबकि दूसरे इलाकों में बात-बात में खून बह जाता है और लोग गर्वित भी होते हैं कि हमारे क्षेत्र में तो बात-बात में चल जाती है बन्दूक | हमें इस पर गर्व नहीं होता | हम तो गर्वित होते हैं कि हम सहिष्णु हैं | प्रेमी हैं | शांतिप्रिय और हितैषी हैं | इसीलिए कोदूराम दलित जैसा कवि हमारे बीच जन्म लेता है | और दान दाता धन कुबेर का सम्मान रखते हुए अपनी प्रतिपक्षी भूमिका भी पूरे गरिमा के साथ निभा ले जाता है …..


“जानत हौ ये कोन ये,

मनखे नोहय सोन ये”


यह मनुष्य नहीं सोना है | मनुष्य होता तो अरबों की संपत्ति का स्वामी साहित्य सेवक को मात्र पचास रुपया ही क्यों देता | व्यंग्य यह है | मगर पूरी मर्यादा के साथ | 


दलित जी ने छत्तीसगढ़ी कविता को एक आयाम ही नहीं दिया , उसे वे जनता तक ले जाने में सफल हुए | वे छत्तीसगढ़ी कुंडलियों के रचनाकार के रूप में विख्यात हुए | बेहद प्रभावी और बहु आयामी कुंडलियों को लेकर वे मंच पर अवतरित हुए | आजादी मिली | जनतंत्र में कागज़ के पुर्जे से राजा बनाने की प्रक्रिया चुनाव के माध्यम से शुरू हुई | इसे दलित जी ने कुछ इस तरह वर्णित किया......


'अब जनता राजा बनिस करिस देश मा राज,

अउ तमाम राजा मनन बनगे जनता आज |

बनगे जनता आज, भूप मंत्री पद मांगे,

ये पद ला पाए बर, घर-घर जाय सवांगे

बनय सदस्य कहूँ जनता मन दया करिन तब

डारयँ कागद पेटी ले निकरय राजा अब ||


दलित जी आधुनिक चेतना संपन्न एक ऐसे कवि थे जिन्होंने विज्ञान के लाभकारी प्रभाव को अपनी कविता का विषय बनाया | उनके समकालीन कवियों में यह दृष्टि बहुत कम दीख पड़ती है …


तार मनन मा ताम के, बिजली रेंगत जाय

बुगुर बुगुर सुग्घर बरय,सब लट्टू मा आय

सब लट्टू मा आय ,चलावय इनजन मन ला

रंग-रंग के दे अँजोर  ये हर सब झन ला

लेवय प्रान लगय झटका,जब एकर तन मा

बिजली रेंगत जाय, ताम के तार मनन मा ||


चाय, सिनेमा, घड़ी, नल, परिवार नियोजन, नशा, जुआ, पंचशील, अणु, विज्ञान, बम, पञ्चवर्षीय योजना, अल्प बचत योजना, चरखा, पंचायती राज आदि विषयों पर दलित जी ने कुंडलियों का सृजन किया है | अपनी धरती का मुग्ध भाव से उन्होंने यश गान किया ….


छत्तीसगढ़  पैदा  करय,  अड़बड़  चाँउर डार,

हवयँ लोग मन इहाँ के, सिधवा अऊ उदार

सिधवा अऊ उदार हवयँ दिनरात कमावयँ

दे दूसर ला मान, अपन मन बासी खावयँ

ठगथयँ ये बपुरा मन ला बंचक मन अड़बड़

पिछड़े हवय अतेक, इही कारण छत्तीसगढ़ |


पिछड़े छत्तीसगढ़ में भिलाई इस्पात संयंत्र के प्रादुर्भाव एवं उसके महत्त्व को कवि ने खूब रेखांकित किया है | वे एक चैतन्य कवि थे | उनकी चौकन्न आँखों ने अँधेरे उजले पक्षों को बखूबी देखा | भिलाई पर कवि की प्रतिक्रिया देखें …..


बनिस भिलाई हिन्द के, नवा तिरिथ अब एक

चरयँ गाय-गरुवा तिहाँ, बसगे लोग अनेक

बसगे लोग अनेक ,रोज आगी संग खेलें

लोहा ढलई के दुःख ला हँस-हँस के झेलें

रइथयँ मिल के रूसी- हिन्दी भाई-भाई

हमर देश के नवा तिरिथ अब बनिस भिलाई |


दलित जी अपने समकालीन कवियों में सर्वाधिक लोकप्रिय हुए | उनके सुयोग्य शिष्य के रूप में श्री दानेश्वर शर्मा आज उनकी परम्परा को और पुख्ता कर रहे हैं | श्री दानेश्वर शर्मा चौथी हिन्दी की कक्षा में उनके शिष्य थे | तब से ही लेखन और मंच के प्रति उनमें दलित जी ने संस्कार डालने का सफल यत्न किया | दलित जी छत्तीसगढ़ की परम्पराओं पर मुग्ध थे तो आधुनिक दुनिया के साथ कदम मिला कर चलने की कोशिश कर रहे छत्तीसगढ़ के प्रशंसक भी थे | उन्होंने राउत नाच इत्यादि के लिए भी अवसर आने पर दोहों का लेखन किया | यहाँ भी उनकी प्रतिबद्धता एवं दृष्टि का परिचय हमें मिलता है | 


गांधी जी के छेरी भइया दिन भर में-में नारियाय रे

ओखर दूध ला पी के भइया, बुढ़वा जवान हो जाय रे |


दलित जी परतंत्र भारत में जन्मे | उन्हें भारत की आजादी का जश्न देखने का अवसर लगा | भला उस यादगार दृश्य को वे क्योंकर न शब्दों में बाँधते ? उनका चित्रांकन जहाँ रंगारंग है वहीं अनोखेपन के कारण अविस्मरणीय भी ….............


आइस हमर लोक तंत्र के, बड़े तिहार देवारी

ओरी-ओरी दिया बार दे, नोनी के महतारी


विनोदी स्वभाव के दलित जी हास्य-व्यंग्य के अप्रतिम कवि सिद्ध हुए | भाषा और व्याकरण के जानकार दलित जी काव्यानुशासन को लेकर सतर्क रहते थे | जहाँ कहीं उन्हें रचना में अनुशासनहीनता दिखती वे सविनय रोकने से बाज नहीं आते | टोका-टोकी का उनका अंदाज अलबत्ता बहुत सुरुचिपूर्ण होता | टोके जाने पर भी व्यक्ति मुस्कुरा कर अपनी गलती स्वीकारता ही नहीं, सदा के लिए उनका मुरीद हो जाता | समाज में आर्थिक विषमता के कारण उत्पन्न कठिनाइयों का वर्णन उनकी रचनाओं में है | महत्वपूर्ण यह है कि वे अपनी रचनाओं के प्रतीक भी जीवनण और उससे जुड़ी अनिवार्य संगति से संदर्भित करते हुए उठाते हैं | इसीलिए दलित जी का व्यंग्य अपने अनोखेपन में उनके समकालीनों से एकदम अलग लगता है | यहाँ हम देख सकते हैं, उनकी विलक्षणता को.....


'मूषक वाहन बड़हर मन, हम ला

चपके हें मुसुवा साहीं

चूसीं रसा हमार अउर अब

हाड़ा -गोड़ा ला खाहीं |

हे गजानन ! दू गज भुइयाँ

नइ हे हमर करा

भुइयाँ देबो-देबो कहिथे हमला 

कतको झन मिठलबरा


शोषण के कारण बेजार जन का ऐसा चित्रण वे ही कर सकते थे | अमीरों ने खून तो चूस लिया लेकिन अब वे हमारी हड्डियाँ भी चबाएँगे, यह भविष्य वाणी आजादी के पचास वर्षों में कितनी ठीक उतर गई इसे हम बेहतर समझ पा रहे हैं | वे हिन्दी में भी रचना करते रहे | एक लंबे समय से छत्तीसगढ़ में तरह-तरह के रचनाकारों की साधना चलाती आ रही है | एक वे जो यहाँ का हवा, पानी अन्न-जल ग्रहण करते हुए छत्तीसगढ़ी नहीं जानने के कारण हिन्दी में लिखने को मजबूर थे | दूसरी तरह के कलमकार वे हैं  जिनके लिए छत्तीसगढ़ी दुदूदाई की बोली तो थी मगर वे उसमें रचना नहीं कर सके | उनका हिन्दीमय यशस्वी जीवन छत्तीसगढ़ी का कुछ भी भला नहीं कर सका | इसके अतिरिक्त ऐसे रचनाकार भी हैं जिन्होंने छत्तीसगढ़ में लेखन कर अपना स्थान बनाया और छत्तीसगढ़ी का गौरव भी बढ़ाया लेकिन सर्वाधिक कठिन साधना उनकी है जो हिन्दी और छत्तीसगढ़ी दोनों में ही सामान रूप से लिखने का जिम्मा सम्हाल रहे हैं | कोदूराम जी भी इसी परम्परा के कवि थे | यद्यपि सामान रूप से दोनों ही भाषाओं में या सभी विधाओं में महत्त्व प्राय: नहीं मिलता | दलित जी भी छत्तीसगढ़ी के कवि माने जाते हैं | चूंकि उनका काव्य वैभव छत्तीसगढ़ी में भी पूरे प्रभाव के साथ उपस्थित रहा | कल भी और आज भी उसका प्रभाव हमें दिखता है | इसीलिए उन्हें छत्तीसगढ़ी का संसार अपना प्रमुख कवि स्वीकारता है | लेकिन उनकी हिन्दी की रचनाएँ भी बहुत महत्वपूर्ण हैं |


काम और उससे उत्पन्न नाम ही महत्वपूर्ण है शेष काल के गाल में समा जाता है, इस भाव पर बहुत सारी रचनाएँ हम पढाते हैं | यहाँ देखें कुंडली कुशल दलित जी का काव्य वैभव उनकी हिन्दी कविता के माध्यम से....


'रह जाना है नाम ही, इस दुनियाँ में यार

अत: सभी का कार भला, है इसमें ही सार

है इसमें ही सार, यार तू तज दे स्वार्थ

अमर रहेगा नाम, किया कर तू परमारथ

काया रूपी महल एक दिन ढह जाना है

किन्तु सुनाम सदा दुनियाँ में रह जाना है |


*आलेख - डॉ. परदेशीराम वर्मा*

गुनान -सरला शर्मा


 

गुनान -सरला शर्मा

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   " मोला कोनो वाद छुअय झन राम 

     अलगे रहि के लिखत रहंव निहकाम । " 

शेषनाथ शर्मा " शील " लिखे हंवय ..। त पढ़ लेंव ...कुछु काहीं पढ़े के बान पर गए हे जेहर अब ए उम्मर मं छूटही तइसे तो लगत नइहे । गुनत हंव काबर अइसना लिखे रहिन होहीं ? 

वाद के मतलब तो छायावाद , प्रगतिवाद , प्रयोगवाद ही होइस न ? नहीं ..एमेरन वाद के इशारा कोनों विशेष धरन के लिखाई होइस । 

अलगे रहिके लिखना माने तो कोन काय लिखत हे तेला देख के नइ लिखना अपन मन के भाव ल लिखना होइस त  कोनों संग संघर के  नइ लिखना  भी तो होइस न ? दूसर बात के कोनो मोर लिखे के अनुकरण करत हें के नहीं , मोर लिखे संग सहमत हें या नहीं तेकर संसो करे बिना अपन विचार ल सुछंद लिखना घलाय तो होइस । 

   फेर निहकाम लिखना ...इही मेर तो मोर कलम ठाड़ होगिस ...गुनत हंव निहकाम माने तो जस -अपजस , लाभ- हानि से परे  लिखना होइस फेर मैं तो चार आखऱ लिखते साठ कोनो पत्र पत्रिका मं छपे बर उतियाइल हो जाथंव सम्पादक के सरन परथंव । आजकल तो सोशल मीडिया के सरन परे हर सहज उपाय बन परे हे तुरते फल घलाय मिल जाथे ...मुलाजा मं नहीं त बलदा मं लोगन मोर लिखे ल ...वाह ...वाह ..बढ़िया हे , सुग्घर रचना कहि देथें फेर का पूछना हे मोर कलम उत्ता धुर्रा चले लगथे , देंह मन विचार सब मोटाये सुरु कर देथे । 

एकरे ले बांचे बर शील जी लिखे रहिन होंही निहकाम लिखे के बात ...सिरतो तो आय नांव जस के लोभ मं पर के मन के सुख शांति काबर खतम करना ? दुनिया मं आजतक कतको भाषा मं जाने कतका झन लिखत आवत हें ..उनमन के रचना उंकर जियत जागत ले संतोष , मान सनमान जौन दिस जतका दिस उन देखिन सुनिन फेर उंकर जाए ले उंकर रचना ल कोन पढ़त हे , नइ पढ़त हे , कोन सराहत हे , कोन आलोचना करत हे तेला देखे , सुने तो उनमन आवयं नहीं ....त छपास रोग काबर पालना ? दूसर बात के निहकाम लिखे ले " मैं " के भाव घुंचही ...नहीं त उम्मर भर मैं ये लिखें , मैं एकर ओकर ले अतकिहा लिखें , बढ़िया लिखें । 

मैं ऐ विधा मं पहिली लिखें , मैं सबो विधा मं कलम चलाएं ....मैं , मैं अउ सिरिफ मैं ....काबर भाई ? त इही मैं ले उबरे बर शील जी निहकाम लिखे के बात कहिन होहीं ...। 

  अतेकन किताब विनय पत्रिका , कवितावली , गीतावली , राम लाल नहछू , पार्वती मंगल अउ कई ठन किताब लिखइया तुलसीदास रामचरित मानस लिखे धरिन त मैं ले  दुरिहाये बर लिखे रहिन "  स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा ..। " माने ..भाई मन जेकर मन लगय पढ़व ...। 

गीतांजलि असन विश्व प्रसिद्ध किताब के लिखइया गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर लिखिन ...मोर विचार ल , लिखे ल पढ़ के मोर संग चलिहव त ठीक नइ चलिहव तभो ठीक हे ...बल्कि चेताइन घलाय " जदि तोर डाक शोने केउ ना आसे , तबे एकला चलो रे ...। " गुरुदेव इही मेरन " मैं " ले उबर गए रहिन ...।  

    फेर मैं सरला शर्मा तो उबरे नइ सके हंव जी ...इही देखव न ..लोकाक्षर मं लिखत हंव अउ गुनत हंव कतका झन मोर लिखे ल पढ़हीं , कोन कोन लिखहीं सुग्घर , बढ़िया हे आउ कुछु काहीं ..जेला पढ़ के मोर भीतरी मं आसन मार के बइठे " मैं " हर फूलही , फरही , हरियाही ....।

मैं कभू निहकाम लिखे सकिहंव , कभू एकला चले सकिहंव , कोनो दिन स्वान्तः सुखाय लिखे पाहंव ??? 

    सरला शर्मा