Friday 5 March 2021

छत्तीसगढ़ के पाठशाला मन म छत्तीसगढ़ी भाषा के पाठ्यक्रम अउ किताब के स्वरूप* - एक विमर्श

 *छत्तीसगढ़ के पाठशाला मन म छत्तीसगढ़ी भाषा के पाठ्यक्रम अउ किताब के स्वरूप* - एक विमर्श


        छत्तीसगढ़ के पाठशाला मन म छत्तीसगढ़ी भाषा के कोनो किताब चलन म नइ हे। राज बने २० बछर होगे हे। फेर छत्तीसगढ़ी म स्कूली किताब के दुकाल हे। अपन संस्कृति, परम्परा अउ भाषा ले अलग चिन्हारी रखइया राज म अपने भाषा म शिक्षा के कोनो सार्थक उदीम नइ दिखत हे। छत्तीसगढ़ी के प्रति शासन अउ प्रशासन कुंभकर्णी नींद भाँजत हे, कहे जा सकत हे। योजना-परियोजना के प्रचार-प्रसार बर इही मन आँखी रमजत छत्तीसगढ़ी के पाँव पलौटी करथे। छत्तीसगढ़ी के बिकास इहाँ के जनता अउ साहित्यकार , संस्कृति कर्मी अउ लोककलाकार मन के भरोसा हे। वहू म एमन उपेक्षा पूर्ण व्यवहार के संग जिनगी जियत हें। 

        दुनियाभर के शिक्षाविद् अउ शिक्षाशास्त्री मन घलव प्राथमिक शिक्षा ल मातृभाषा म दे के समर्थन करथें। मातृभाषा म शिक्षा ग्रहण सहज अउ सरल होथे माने हें। लइकामन बर मनोरंजन सही रहिथे। मुँहाचाही मुँहाचाही म पढ़े बर तियार होथे। खेल खेल म कतको जिनीस सीखे धर लेथे। इही शुरुआत ले पढ़ई म रुचि बाढ़े ले आने भाषा म शिक्षण घलव सुभीता होथे। शिक्षण सूत्र घलव हे, सरल ले कठिन के तरफ अउ ज्ञात ले अज्ञात के तरफ।  लइकामन स्कूल म भर्ती होथे त महतारी भाषा बस जानत रहिथे। आने भाषा के शब्द मनोवैज्ञानिक रूप ले कठिन होय ले पढ़ई म बाधा बनथे। एकर ले शाला त्यागी लइकामन के गिनती घलव बाढ़े लग जथे। अध्ययन के मुताबिक मातृभाषा म सीखे के दर घलव जादा देखे गेहे। फेर कोन जनी ? अइसे का अड़चन हे कि छत्तीसगढ़ के पाठशाला म छत्तीसगढ़ी म पाठ्यक्रम निर्धारित नइ करे जा सकत हे। पाठ्यक्रम के अभाव म किताब छपई संभव घलव नइ हो पात हे। भारत म ही आने राज मन अपन मातृभाषा म शिक्षा देथें, त हमर राज म काबर संभव नइ होही? छोटे कक्षा मन के पाठ्यक्रम के कोनो भी विषय के तकनीकी शब्द अइसे नइ होही जउन छत्तीसगढ़ी अनुवाद करे म कठिन होवय। 

        आज के बखत म प्रायमरी ले हाईस्कूल के पहुँचत ले सबो कक्षा म दू चार पाठ शामिल करे गेहे। बने रहितिस जम्मो पाठ के पुरती  प्रायमरी कक्षा म पाठ रख के छत्तीसगढ़ी म पढ़ाय जातिस। जइसे देश के अउ आने राज मन म पढ़ाय जाथे। छोटे लइका माटी के लोंदा होथे जउन साँचा म ढालबे तउन बन जथे। नैतिक शिक्षा अउ मानवीय मूल्य के समावेश अपने भाषा म रहे ले उत्तम होथे। इही हर जिनगी बर मजबूत नींव बनथे। लइकापन म सीखे के ललक ल धीर लगाके नवा शब्द मन ले जोड़त नवा दिशा दे जाय। हर उमर के लइका के रुचि अउ समय के माँग के अनुरूप पाठ्यक्रम बनाय के जरूरत हे। पाठ्यक्रम तियार करे के जिम्मा समाज के हर वर्ग के जम्मो विषय के विद्वान मन ल दिए जाय। मनोवैज्ञानिक मन के सलाह घलव लेना चाही। हाई स्कूल हायर सेकंडरी म उँखर भविष्य के आवश्यकता ल धियान रखत पाठ्यक्रम के बोझ जरूर कम करे बर गिनती के पाठ रखे जा सकत हे। जइसन अभी शामिल हवै।

       शिक्षा ल नौकरी अउ रोजगार मिले के साधन मान, इहें तक सीमित नइ रखना चाही। शिक्षा मनखे ल मनखे बना सकय एकर चिंता घलव होना चाही। यहू जिनीस के समावेश पाठ्यक्रम म होना चाही। हँ उच्च शिक्षा जरूर रोजगार मूलक होना चाही। लइका के सर्वांगीण विकास ल धियान रखत उच्च शिक्षा राष्ट्रीय अउ अंतर्राष्ट्रीय भाषा म होय। आज पूरा समाज रीति-रिवाज अउ परम्परा के नाँव म दू फाड़ होगे हवै। संस्कार अउ रीति-रिवाज ल ढकोसला मानत पीढ़ी म नैतिक पतन देखे जा सकत हे। एकर कमी ले एक दूसर ले मन के जुड़ाव कमती होवत हे। बुढ़ापा के सहारा वैज्ञानिकता के चकाचौंध म कति लुकाय धर ले हे, पता नइ चलत हे। एकाकी जिनगी आज के वैज्ञानिक युग के बड़ेजान अभिशाप होगे हे। अपन मातृभाषा ले नइ जुड़े अउ मशीन के बीच रहत मनखे मशीन बरोबर जड़ होवत हे। भावना के अभाव दिखथे। अपन तीरतखार म देख के अंदाजा लगाय जा सकत हे,कि संयुक्त परिवार म रहइया या अपन मातृभाषा म पढ़इया लइकामन के मानवीय मूल्य तुलनात्मक रूप ले बने हे।  अँग्रेजी माध्यम म पढ़ई शुरू करवइया दाई-ददा रोज बेटा-बहू के नाँव म दू आँसू रोवत हें। मैं अँग्रेजी पढ़ई अउ वैज्ञानिकता के विरोधी नइ हँव। मैं अतका चाहथँव कि प्राथमिक शिक्षा अपन मातृभाषा म होना चाही। अपन लइका ले अपन भाषा म सरलग गोठबात होते राहय। तभे मन के पीरा ल लइका समझ पाहीं अउ आँसू पोंछही।

        

   पोखन लाल जायसवाल

पलारी बलौदाबाजार

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