Monday 15 March 2021

कंठ म जहर -हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

 कंठ म जहर -हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

               समुंदर मंथन म , चौदह प्रकार के रत्न निकलिस । सबले पहिली , कालकूट जहर निकलिस । ओकर ताप ले , जम्मो थर्राये लगिन । भगवान शिव हा ... दुनिया ला बचाये बर ... अपन कंठ म , ये जहर ला धारन कर लिन । दूसर बेर म , कामधेनु गऊ बाहिर अइस , तेला देवता के ऋषि मन लेग गिन । तीसर म , उच्चैश्रवा घोड़ा ल , राक्षस राज बलि धरके निकलगे । चौथा रत्न के रूप म निकले , एरावत हाथी , इंद्र धरके लेगे । पांचवा रत्न , कौस्तुक मणि निकलिस तेला , भगवान बिष्णु अपन हिरदे म राख लिस । छठवा रत्न , कल्पवृक्ष निकलिस तेला ,  देवता मन अपन सरग म , लगा दिन । सांतवा रत्न , रंभा अप्सरा निकलिस , यहू ला देवता मन धर के भाग गे । आंठवा रत्न के रूप म , लछमी बाहिर अइस तेला , भगवान बिष्णु अपन तिर राख लिस । अपन संग होवत अन्याव ला देखके , राक्षस मन घुस्सागे । जे निकलय तेला , देवता मन हाथ मार देवय । राक्षस मन ये दारी सोंच डरिन के , ये पइत चाहे जो निकले , उहीच मन धरही । नवमा रत्न , वारूणि निकलिस । येकर निकलतेच साठ , राक्षस मन छकत ले पी डरिन । दसवां रत्न , चंद्रमा निकलिस तेला शिवजी ला , जहर के ताप ले बांचे बर दे दिन । ग्यारहंवां रत्न पारिजात वृक्ष बाहिर अइस , यहू ला देवता मन सरग म रोप दिस । बारहवां रत्न पांचजन्य शंख ला , भगवान बिष्णु राख लिस । तेरहंवा रत्न भगवान धनवंतरी हा अपन संग , चौदहवां रत्न अमृत कलश ला धर के बाहिर अइस । एक कोती धनवंतरी हा सबो तिर रेहे के आश्वासन दिस त , दूसर कोती कलश के अमृत ला अकेल्ला देवता मन चुहंक दिन । 

                अमृत ला अकेल्ला देवता मन पी डरिन तेकर सेती , राक्षस मन बहुतेच नराज होगे । ओमन भगवान बिष्णु करा शिकायत करिन । भगवान किथे – कुछ समे के बाद हमन धरती म , मनखे के रचना करबोन । देवता अऊ राक्षस दूनो मनला , मनखे बना के भेजबो , उही समे अपन तिर के , कुछ समान ला , देवता मनले कतको जादा , तुही मन ला देबो । भगवान शिव ला घला कहि देहूं के , अपन तिर माढ़हे समान , तूमन ला बांट दिही । राक्षस मन खुश होगे ।    

               समे के साथ , धरती म .... मनखे के संरचना होगे । भगवान बिष्णु हा वादा निभावत , चुन चुन के , मनखे के देहें धरे राक्षस मनला , बिगन मेहनत करे , जादा जादा लछमी देवावत गिस । दूसर कोती , भगवान शिव जी हा .... भगवान बिष्णु के आस्वासन ला भुलागे अऊ चंद्रमा ला बरोबर बांट पारिस । मनखे रूपी राक्षस मन , नराज होगे शिवजी बर । शिव भगवान किथे – अब गलती तो होइगे रे भाई .... अब मोर तिर समुंदर मंथन ले निकले , सिर्फ जहर बांचे हे जेला कनहो राखे नी सकव , तेकर सेती , नी बांटव । मनखे मन किथे – जब तें राख सकत हस भगवान , त हमू मन तोरे अंस आवन , कइसे नी राख सकबो । मानलो जहर हा , दुखदायी होही , त येला यदि , हमन ला बांट देहू त , तुहंरो दुख , थोकिन हरू हो जही । तभे बिष्णु भगवान के फोन आगे , ओहा शिवजी ला अपन बचन के सुरता करावत , अपन तिर के समान ला बांटे के आग्रह करथे , तब , भगवान शिव किथे – बिगन सोंचे समझे , समुंदर मंथन ले निकले समान दे बर कहि देव तूमन .... चंद्रमा ला बरोबर बांट डरेंव , अभू मोर तिर सिर्फ जहर हे ..... येमन यहू ला मांगत हे , येला कइसे बांटव ? तिहीं बता भलुक ! भगवान बिष्णु कुछ कहि नी सकिस , फोन काट दिस । 

               बिष्णु जी के बिबसता , शिवजी समझगे । बिष्णु भगवान के आस्वासन पूरा करे बर , शिव भगवान , अपन कंठ ले जहर के कुछ अंश हेरिस अऊ मनखे मनला देवत किहीस के – येला सिर्फ एके शर्त म उही मनखे ला देहूं , जे किरिया खाके ये कहि के , जहर ला सिर्फ अपन कंठ म , धारन करहूं , कभू बाहिर नी निकालहूं । जम्मो झिन हव भगवान हव .... अइसे किहीन । शिवजी हा , येमन ला समझावत किहीस के - तूमन अभू घला मोर बात ला मान जावव अऊ येला अपन कंठ म , धारन करे के जिद ला छोंड़ देवव , येहा बड़ नकसान दायक आय , जे मनखे ये जहर ला भीतर घुटकही , ते खुद नकसान म रही अऊ यदि कंठ ले बाहिर निकालही ते .....  सरी दुनिया ला नकसान पहुंचाही ..... । जहर ला कंठ ले बाहिर नी निकाले के , खमाखम बिसवास देवत , राक्षस रूपी मनखे मन किहीन के , जहर कन्हो जादा पदोही , त , येला भितरी म घुटक के , अपन इहलीला ला खतम कर देबो भगवान , फेर , जनम बाहिर नी निकालन । भगवान शिव किथे – तुंहर जइसे इच्छा .....। फेर एक बात ये हे के , जे मनखे अपन मुहुं ले जहर उगलही तेला , इहां के मनखे मन जान डरहीं के , इही मन राक्षस आय ।   

                कुछ दिन बाद , राक्षस प्रजाति के मनखे मनला , बिख के गरमी हा पदोये बर धरिस । साधारन मनखे मन झिन जानय के , हमन राक्षस आवन कहिके , बिख ला अबड़ लुकाये के कोशिश करिन , फेर नी सकिन । बिख के प्रभाव म इही मन जरे बर धरिन तब ..... बिख ला उगले के सिवा अऊ कन्हो चारा नी दिखिस ...... तब , अपन प्राण बचाये बर , जे तिर पाये ते तिर , जतर कतर , जब पाये तब , जहर उगले के , ठान डरिन । येमन , जऊन खांधी म बइठ जावय , उही मेर , अपन कंठ ले जहर उगलय अऊ दुनिया ला बरबाद करय । जे धरम के खांधी म बइठे तेहा , जन सुधार के नारा देवत जहर निकालय ..... जे समाज के खांधी म बइठे तेहा , समाज सुधार के नारा देवत , समाज म जहर बगराये अऊ सत्ता के स्वाद जनइया मन , देश सुधार के नारा देवत , जब जब चुनई के मौका आय तब तब , अपन कंठ ले जहर निकालय अऊ जगा जगा बगरावय , अऊ मनखे ला मनखे संग लड़ाके सत्ता पा जाय । कती मनखे राक्षस अऊ कती देवता ............ तेकर भेद खुलगे । मनखे के याहा चरित्तर देख , भगवान शिव व्याकुल होके पछताये लगिस ।   

 हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

No comments:

Post a Comment