Friday 5 March 2021

नारायण लाल परमार (भावानुवाद--चोवा राम 'बादल')



*गद्दार कौन*

नारायण लाल परमार

(भावानुवाद--चोवा राम 'बादल')


नवलगढ़ राज म ये रिवाज तइहा ले चलत आवत रहिस हे के दशहरा तिहार के दिन बहुत बड़े मेला भरावय। वो दिन राजमहल ल खूब सजाये जावय अउ प्रजा मन यथाशक्ति राजा ल भेंट देवयँ।  राजधानी मानिकपुरी म भारी उत्साह राहय।सचमुच नगर ह दुल्हिन जइसे सजे-धजे दिखय। दूरिहा-दूरिहा के नामी नाचा अउ संगीत मंडली मन सकलाकें कार्यक्रम देवयँ। रामलीला तो होबे करय। 

एक साल भेंट अतका चढ़िस के राजा रामशाह ह अचरज म परगे। वोकर राज पुरोहित पंडित रामभगत ह राजा के बहुतेच बड़ाई करत वोकर महिमा ल भगवान रामचंद्र जइसे बताये ल धरलिस। वो ह एहू कहे ल धरलिस के पूरा संसार म कोनो राज अइसे हे जिहाँ शेर अउ बकरी एके घाट म पानी पिथें त वो सिरिफ नवलगढ़ राज आय।

  राजा जी सुनके अबड़ेच खुश होइस। पंडित रामभगत ल वो अपन राजपुरोहित ले जादा दोस्त जइसे मानय। खुश होके राजा ह पंडित जी ल अबड़ कस सोन के मोहरा भेंट करिस।

  रतिहा पंडित जी ह घर म अपन पंडिताइन संग   गोठियावत कहिस--" ये तो मोर कमाल ये जेन ह राजा के जस ल चारों खूँट बगरा देंव। जिनगी ल पार पाये के बहुत कस रहस्य ल महीं ह राजा ल बताके सदमार्ग म चले ल सिखोये हँव तेकरे सेती वो मोर सब कहना ल मान लेथे अउ  प्रजा के भलाई म ध्यान देथे तेकरे सेती प्रजा घलो वोला चाहथे।

    ये सब गोठ ल सुनके पंडिताइन सिरतो म मानगे के वोकर पति ह बड़ गुनी अउ राजा के खासमखास हे।

 पंडित रामभगत ह समे-समे म  अपन एकलौता पुत्र रामचरण ल अपन विद्या के शिक्षा देवत राहय। वोला ये भरोसा रहिस के जब राजा के बेटा ह राजा बनही त मोर बेटा ह वोकर राजपुरोहित बनही। वोइसने होबो घलो करिस।  शिक्षा -दिक्षा के पाछू राजा के बेटा राजेंद्रशाह ह राजा बनिस अउ पंडित रामचरण ह वोकर पुरोहित। नवा उमर रहिस, नवा जोश। कभू-कभू नवा राजा अउ नवेरिया राजपुरोहित के विचार म अंतर पर जावय। राजेंद्रशाह ह अपन पिता ले उलट उद्दंड अउ विलासी रहिस भलुक पुरोहित पंडित रामचरण ह अपन पिता ले जादा ज्ञानी अउ सज्जन निकलिस।वो ह तर्कशास्त्र म पारंगत रहिस।

  अब तो रोज राज दरबार म नाच-गाना अउ बाजा-गाजा के महफिल जमय।राजा राजेंद्रशाह ह राग-रंग म डूबे राहय।राजपुरोहित कभू टोंकय त वोला झिड़क दय। हालत अजीब होगे। पंडित रामचरण ल अबड़ेच अपमान सहे ल परय तभो अपन कर्तव्य के पालन करय । फेर कब तक साहय? वो ह सोचय के कइसे करके राजा के ये आदत ल बदले जाय। एती राजा के भोग- विलास ह दिन दूना रात चौगुना बाढ़ते गिस अउ वोती खजाना ह तरिया के पानी कस अँउटत गिस। प्रजा के दुख बाढ़े लागिस। पंडित रामचरण ह समझाइस त राजेंद्रशाह ह वोकर राजपुरोहिती ल छिनलिस।

  पंडित रामचरण ह निराश नइ होइस भलुक जोर शोर ले  गाँव मन म जाके ज्ञान के अँजोर बगराये ल धरलिस। वोकर ये नेक काम ह राजा के खुशामद करइया कुछ दरबारी मन ल खटके लागिस। जइसे-जइसे पंडित जी के जस फइले ल धरलिस तइसे-तइसे राजा सो वोकर शिकायत तको जादा होये लागिस। एक दिन वोला प्रजा ल भड़काये के आरोप म पकड़के दरबार म खड़ा करे गिस।

   नवा बनाये गे राजपुरोहित ह जेन ह पंडित रामचरण ले बहुत जलनखोरी करय तेन ह कहिस--" प्रजा ल बगावत करे बर भड़काना सबले बड़े अपराध अउ पाप होथे। जेला ये ह करे हे।" चापलुस दरबारी मन तको हाँ म हाँ मिलाइन। बेचारा पंडित रामचरण ह का करय? वोकर अर्जी-बिनती ल कोनो नइ सुनिन।

 मौत के सजा सुनाये के पहिली राजा राजेंद्रशाह कहिस--" तोर कोनो आखिरी इच्छा होही त बता डर?"  सुनके अउ गुनके पंडित रामचरण ह कहिस- "महाराज मैं ह तोला बहुत अकन रहस्य के बात बताये हँव।मरे के पहिली एक ठन अउ मोती के फसल पैदा करे के रहस्य ल बताना चाहत हँव।"

 अतका ल सुनके राजा अउ दरबारी मन दंग होगें।कतको झन ल शंका होये ल धरलिस के कहूँ ये ह कुछु गुनतारा करके भाग झन जावय फेर राजा ह बिंसवास करके कहिस--" हम तोला मौका देवत हन।तैं ये विद्या मोला सिखो दे।" राजा ले आज्ञा लेके पंडितजी ये शर्त रखके के वो ह अपन काम चुपचाप करही।कोनो ह अड़ंगा झन डारहीं।तहाँ ले वो अपन काम म लगगे।  वो ह कुछ ईकड़ बढ़िया जमीन लिस। वोला जोंत-फाँद के गेहूँ बोंवा दिस।

  जलनखोर बैरी मन ये सोचिन के ये पंडित के बच्चा भला का कर सकही।वो मन विघ्न- बाधा डारे के बहुत कोशिश करिन फेर गम नइ पाइन। समे म अंकुर फूटिस अउ पौधा बाढ़े लागिस।

 एक दिन बड़े बिहनिया जब कसके धुँधरा छाये रहिस ,पंडित रामचरण ह राजा अउ वोकर मंत्री-संत्री मन ल खेत म लेके गेइस। जम्मों गहूँ के पौधा मन ओस के बूँद म गुँथाये मोती असन चमकत राहयँ। पंडित जी ह सबो झन ल देखावत कहिस--" लेवव ये दे मोती के फसल हावय।" एक झन दरबारी ह जइसे वोला टोरे बर आगू बढ़िस,पंडित रामचरण ह चिल्लाके कहिस--" ठहर जा! ये ह मोती के पवित्र फसल आय।एला उही मनखे छू सकथे जेन ह कभू देश ले गद्दारी नइ करे होही।"

 सुनिन तहाँ ले सबके चेहरा सेटरागे। कुछ समे ले सबो झन एक दूसर ल देखे ल धरलिन। तहाँ ले सब टरक दिन।राजा भर बाँचिस । वो ला ज्ञान मिलगे। वोकर आँखी आत्मज्ञान ले चमके ल धरलिस। देखते-देखत वो ह पंडित रामचरण के गोड़ ल धरलिस।


चोवा राम "बादल"

हथबंद, छत्तीसगढ़

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