Sunday 29 January 2023

चढ़व निसयनी

 चढ़व निसयनी

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             रददा रेंगत रेंगत बनथे। पहिली कोनो नइ रेंगे तेन रददा म कभू न कभू कोनो ल रेंगे ल परथे। नइ रेंगबे त का जानबे? आगू ओला काय मिलही? फेर हमर कोनो पुरखा इही रददा म रेंगे त झन रेंगे, मेंहर त , रेंगबे करहुं। मोला दाई तेहर, इस्कूल भेज दे। बिरादरी के गोठ ल झन सुन दाई, मेंहर पढ़हुं।  मोला पढ़ई -लिखई ,अब्बड़ बने लागथे। तोर काम बूता ल घलो करहुं दाई,आठवी कच्छा ल पढा़ये, तईसने आगू मोला पढ़न दे दाई। अईसना गोठ ल गोठियात गीता हर अपन दाई फूलमति तीर रोम  दिस।

                 फूलमति गीता ले किहिस-"नोनी हमर बिरादरी मा जादा कोनो पढ़े -लिखे नइये।  जादा पढ़ाबों त बिहाव  बर मुस्किल हो जाही।  हमर गोतियार म मनखेमन पढ़े-लिखे नई हवय। फेर पढ़ई -लिखई इही करा थोरकुन हवय। पढ़ई -लिखई म खर्चा तको लागथे।  हमर मन के बस के गोठ नईये इही पढ़ई -लिखई नोनी। अभी कुन त कच्छा पहली ले कच्छा आठवी तक सरकार डहार ले मुफत म सिक्छा रिहिस। जेमा खाय पिये के कोनो फिकर नई रिहिस।  मुफत म मध्यान भोजन रिहिस। पढ़ई-लिखई-खवई के कोनो चिन्ता -फिकर नई रिहिस। अब आगू तोर पढ़ई-लिखई  के खरचा ल कोन उठाही। तोर ददा ल देखत हस जतका बढ़ई के काम बूता म कमाथे त सफ्फा दारू पियई म सिरा जथे। नोनी तुंहर चारो लइका के पोसेबर मेंहर अब्बड़ उदिम करे हवव, त तुमन अतका बड़ बाढ़े हवव। फेर गोतियार सगा संबंधी  के कोनो परवाह नई करहुं, अउ तोला पढ़ाहूंत तोर पढ़ई के फीस ल कहां ले लानहुं अउ कहां ले पाहु"। गीता किहिस -"दाई तेंहर फीस के कोनो चिन्ता -फिकर झन कर,मेंहर तोर संग म घर के बुता ल करहुं। बिहिनिया मुधहरहा चरबजी उठ के तोर सरी काम बूता ल करहुं, तोर संगे- संग बूता म जाहुं अउ दाई तयं जानथस नवमी क्छा म इस्कूल म साइकिल तको नोनी मन ल सरकार हर देवत हवय।  पुस्तक तको फोकट म मिलही अउ स्कालरशिप तको पढ़े बर मिलही,दाई तेहर मोला इस्कूल पढ़े बर भेज दे।  अभेकुन तेहर दु घर काम बूता करत हस।  अब पांच घर बूता करबों। मोर फीस बर अब संसों झन कर ,मेंहर बूता ल खोज डरे हौंव। बिहिनिया टाइम  म अपन स्कूल जाके, अपन पढ़ई-लिखई ल कर डारहुं। मेंहर पढ़ई बर सब्बो दुख ल झेल लेहुं, फेर पढ़े ल नइ छोड़व, दाई तेंहर भइगे हाहो कहि दे"। फूलमति अपन नोनी के गोठ ल सुन के ओखर लगन अउ मेहनत ल देख के पढ़ाये बर तियार होगे अउ कहिस - "नोनी तोला मोर संगे काम-बूता म जाय के कोनो जरुरत नइ हवय, मैंहर तोर पढ़ई बर अतका त करे सकत हवव ,जा नोनी तैंहर इस्कूल म भर्ती हो जा"। गीता हर खुस होके दाई ल पोटार लिस।

      

           पहाती सुकुवा ल देख के मुधरहा ले गीता ह उठ के पढ़ई ल करे, विसय ल सुरता राखे बर लिख -लिख के पढ़ई ल करे अउ बने सुरता रहे बिचार के भगवान ल सुमिरन तको करे। बिहिनिया पांच बजे घर काम बूता ल कर डरे। बिहिनिया एके घंटा म अपन बूता ल करके नहा -खोर के थोरकुन पढ़ई-लिखई ल करय अउ इस्कूल बर तियार हो के बासी खा के इस्कूल डहार रेंग दे।

     

         गीता अपन कच्छा म अब्बड़ हुसियार रहाय.  सब्बो बहन जी मन ओला मया करे।  एक घाव कच्छा बहन जी सब्बोझन लइका मन तीर प्रस्न पूछिस-"तुमन पढ़ लिख के का बनना चाहू?" लइकामन अपन-अपन बिचार ल राखिन। कोनो डॉक्टर त कोनो नरस त कोनो वकील, त कोनो दुकानदार, त कोनो पुलिस कहिन।  त गीता हर किहिस-"बहन जी मेंहर पढ़ लिख के बहन जी, मेडम बनहू, काबर टीचर मन सब्बो लइकामन के हिदय म रहिथे। जइसे मोला आपमन बने लागथो,  आपमन के गोठ हर मोला नीक लागथे। आपमन के ग्यान ले मोर अग्यान हर मिट जथे। तइसने महू टीचर  बनके सब्बो लइकामन के अउ  समाज के अग्यान ल दूर करहूं"। गीता के गोठ ल सुन के बहन जी हर अब्बड़खुस होगे,कहिस-"गीता तेहर सिरतोन मेडम बनबे, तोर गोठ म अब्बड़ सच्चई हवय"।


          इही सब्बो गोठ हर गीता के आंखी म झूलत रहाय।  इही गोठ ल गुनत बिचार करत खुरसी म बइठे अपन पढ़ई-लिखई बर भोगे अतका दुख के दिन ल सुरता करत,अपन इस्कूल के कच्छा के लइका मन  ल देखत रहाय अउ मन म गुनत रहाय।  आज के समे म सिकच्छा बर चारों डहार सुघ्घर बेवस्था हवय।  आज समाज हर कतका उन्नति कर डरे हवय.  गांव, सहर ,जंगल, आदिवासी छेतर म तको पढ़ई -लिखई के गोठ हर गूंजत हवय।  कछु दिखे त झन दिखे, पराथमिक स्कूल हर सिरतोन सब्बो डहार दिख जथे। आज जम्मो बबा, ददा, महतारी मन अपन लइका ल पढ़ाये बर तइयार हवय। फेर लइका मन बने पढ़त नइये। आज त कच्छा पहली ले आठवी तक जम्मो पुस्तक, कापी, बस्ता, इस्कूल डिरेस, दार भात खाय बर तको फोकट म मिलथे इस्कूल म।  हाई इस्कूल तको गांव-गांव म खुलगे हे। थोरकुन पोठ गांव होगे त हायर सेकेन्डरी इस्कूल तको खुलगे।  इहीचो पुस्तक हर फोकट म मिलथे, फीस तको बहुत कम हवय। आज सिकच्छा के चारो कोती पुछारी  बाढ़गे हे, फेर आज नोनीमन पढ़ई म जादा धियान देवत हवय।  वोमन त आगू बढ़े के ठान ले हवय,काबर माई लोगन मन तको अब अपन नोनी  के पढ़ई म धियान देवत हवय।


         मैंहर त अपन गरीब मजूरी करइया दाई-ददा के बड़की नोनी रहेव,फेर मोर सिकच्छा के बड़ उदिम अउ मंसूबा ले मोर भाई बहिनी मन तको सोझ रददा म रेंगना सीख गिन। मेंहर आज पढ़-लिख के सिक्छिका बन गे हवव। मोर आगू पढ़े अउ बढ़े के अब्बड़ जिद रिहिस, आगू बढ़के जिनगी अउ समाज म कछु कर दिखाय के, नवा अंजोर लाये के जिद रिहिस। अबला ल सबला बनाय के जिद रिहिस. तेन हर आज पूरा होगे।  आज मेंहर अपन छोटे भाई -बहिनिमन के आगू-आगू रददा बतइया बन गे हवव। पढ़ई लिखई ले आज मोर दुनों भाई मन पुलिस म आरछक बन के देस अउ समाज के सेवा करत हवय।  बहिनीहर टेलरिंग के बूता म लग गे हवय,आनी बानी के, रंग-रंग के बिलाउज अउ सलवार, कुरता ल सिलथे। वोहर आज ससक्त होगे हे,काखरो आगू हाथ फैलाये के जरूरत नइये।  अपन खरचा- पानी पूरा करके घर म तको खरचा बर देथे। हमर घर म अब जम्मो सुख -सुभिता होगे हवय। परोसी मन तको जरत-भुंनत हवय.के पढ़ई -लिखई ले अतका उन्नति कर डारे हवय।


               आज मेंहर अपन आप म गरब करत हवव के मोर जिनगी म सिकच्छा के अतना उदिम ले , पढ़ई ले सिरतोन नियाव होगे जेखर सेती मोर जिनगी सवंरगे।


            आज मेंहर अपन गांव के इस्कूल म एक ठन आदर्स सिकछिका कहावत हवव।  मोर कच्छा के लइकामन  मोला अपन आदर्स मानथे। वोमन कहिथे मेडम हमन तको आपमन जइसन बहन जी बनबों । इही लइका मन के गोठ म मेंहर मोहाय अपन मंजिल ल पा डरे हव अउ अब्बड़ खुस हव। सिकच्छा ले मोर जिनगी म उजियारा आगे।  मोर दाई-ददा के जिनगी म तको सुरूज के किरन बनगे हव।  अपन दाई -ददा के सबले दुलारी नोनी बन गेव हवव। बाबू मोला अपन बड़का बेटा कहिथे ।  मोर घर परिवार म खुसहाली आगे। इही हाना हर सिरतोन होगे-

"स्कूल आ पढ़े बर, जिनगी ल गढ़े बर ।

 चढ़व निसयनी सिकच्छा के,  जिनगी संवरही सिकच्छा ले"।


            इही सफ्फा गोठ ल गुनत गीता हर सिरतोन चमक गिस। इस्कूल के घंटी हर जोर ले बाजिस। बड़े रिसेस खतम होगे। पांचवा पिरियेड सुरू होगे, कच्छा पांचवी म हिन्दी विसय लिहेबर कच्छा के भीतरी नींगगे।  लइका मन के सुघ्घर जिनगी ल गढ़े बर ।


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                    लेखिका

           डॉ. जयभारती चन्द्राकर

                  

       मोबाइल न. 9424234098

जनकवि कोदूराम "दलित" जी के काव्य मा गाँधी बबा*


 *जनकवि कोदूराम "दलित" जी के काव्य मा गाँधी बबा*


आज हमर देश महात्मा गाँधी के 75 वीं पुण्यतिथि मनावत हे। संगेसंग दुनिया के आने देश में मा घलो बापू जी के पुण्यतिथि मनत हे। ये बेरा म छत्तीसगढ़ के जनकवि कोदूराम "दलित" जी के रचना के सुरता करना प्रासंगिक होही। दलित जी के अनेक रचना मन मा महात्मा गाँधी के महातम ला रेखांकित करे गेहे। उनकर विचार ला छत्तीसगढ़ी कविता के माध्यम ले बगराए गेहे। विशेष उल्लेखनीय बात ये हे कि दलित जी परतंत्र भारत ला देखिन, आजादी ला देखिन अउ आजादी के बाद के भारत ला घलो देखिन। आजादी के पहिली आजादी पाए के संघर्ष, आजादी के दिन के हुलास अउ आजादी के बाद नवा भारत के नवा सिरजन बर उदिम, उनकर रचना मन मा देखे बर मिलथे। उनकर रचना मा महात्मा गाँधी के विचार के अनेक झलक देखे बर मिलथे। उनकर रचना मन मा जहाँ-जहाँ गाँधी जी के उल्लेख होइस हे, संबंधित पद ये आलेख मा रखे के कोशिश करे हँव। पूरा रचना इहाँ देना संभव नइ हो पाही। 


सब ले पहिली सुराज के बेरा मा भारत के नागरिक मन ला संबोधित गीत के अंश देखव -


(1)"जागरण गीत"


अड़बड़ दिन मा होइस बिहान।

सुबरन बिखेर के उइस भान।।


छिटकिस स्वतंत्रता के अँजोर।

जगमगा उठिस अब देश तोर।।


सत् अउर अहिंसा राम-बान।

मारिस बापू जी तान-तान।।


आजादी के पहिली सत्याग्रह करे के आह्वान करत सार छन्द आधारित कविता के अंश - 


(2) "सत्याग्रह"


अब हम सत्याग्रह करबो।

कसो कसौटी-मा अउ देखो,

हम्मन खरा उतरबो।

अब हम सत्याग्रह करबो।।


जाबो जेल देश-खातिर अब-

हम्मन जीबो-मरबो।

बात मानबो बापू के तब्भे

हम सब झन तरबो।

अब हम सत्याग्रह करबो।।


चलो जेल सँगवारी घलो आजादी के पहिली के कविता आय, सार छन्द आधारित ये कविता के एक पद -


(3) "चलो जेल सँगवारी"


कृष्ण-भवन-मा हमू मनन, गाँधीजी साहीं रहिबो।

कुटबो उहाँ केकची तेल पेरबो, सब दुख सहिबो।।

चाहे निष्ठुर मारय-पीटय, चाहे देवय गारी।

अपन देश आजाद करे बर, चलो जेल सँगवारी।।


आजादी के बाद आत्मनिर्भर बने बर गाँधी जी स्वदेशी अपनाए आह्वान करिन। चरखा अउ तकली के प्रयोग करे बर कहिन। इही भाव मा चौपई छन्द आधारित कविता के अंश - 


(4) "तकली"


सूत  कातबो   भइया , आव।

अपन - अपन तकली ले लाव।।


छोड़व आलस , कातव सूत।

भगिही  बेकारी  के भूत।।


भूलव  मत  बापू के बात।

करव कताई तुम दिन-रात।।


तइहा के जमाना मा खादी के टोपी के खूब चलन रहिस। इही टोपी ला गाँधी टोपी घलो कहे जात रहिस। खादी टोपी कविता के कुछ पद - 


(5) "खादी टोपी" 


पहिनो खादी टोपी भइया

अब तो तुँहरे राज हे।

खादी के उज्जर टोपी ये

गाँधी जी के ताज हे।।


येकर महिमा बता दिहिस

हम ला गाँधी महाराज हे।

पहिनो खादी टोपी भइया !

अब तो तुम्हरे राज हे।।


गाँधी बबा कहँय कि भारत देश ह गाँव मा बसथे। उनकर सपना के सुग्घर गाँव के कल्पना ला कविता मा साकार करिन दलित जी - 


(6)  सुग्घर गाँव के महिमा"


सब झन मन चरखा चलाँय अउ कपड़ा पहिनँय खादी के।

सब करँय ग्राम-उद्योग खूब, रसदा मा रेंगँय गाँधी के।।


आज के सरकार "गरुवा, घुरुवा, नरवा, बारी" के नारा लगाके छत्तीसगढ़ के विकास के सपना देखता हे। सरकार ला दलित जी के "पशु पालन" कविता ला पूरा जरूर पढ़ना चाही। ये कविता मा उनकर सपना साकार करे के मंत्र बताए गेहे। यहू कविता सार छन्द आधारित हे - 


(7) "पशुपालन"


पालिस 'गऊ' गोपाल-कृष्ण हर दही-दूध तब खाइस 

अउर दूध छेरी  के, 'बापू-ला' बलवान बनाइस।।


लोकतंतर के तिहार माने छब्बीस जनवरी के हुलास के बरनन हे ये कविता मा, एक पद देखव - 


(8) "हमर  लोकतन्तर"


चरर-चरर गरुवा मन खातिर, बल्दू लूवय काँदी।

कलजुग ला सतजुग कर डारे,जय-जय हो तोर गाँधी।।

सुग्घर राज बनाबो कविता के ये पद मा गाँधी के संगेसंग देश के महान नेता मन के मारग मा चलके समाजवाद लाए के सपना देखे गेहे - 


(9) "सुग्घर राज बनाबो"


हम संत विनोबा, गाँधी अउ नेहरु जी के 

मारग मा जुरमिल के सब्बो झन चलीं आज।

तज अपस्वारथ, कायरी, फूट अउ भेद-भाव

पनपाईं जल्दी अब समाजवादी समाज।।


धन्य बबा गाँधी गीत सार छन्द आधारित हे। चौंतीस डाँड़ के ये गीत महात्मा गाँधी ऊपर लिखे गेहे। कुछ पद देखव - 


(10) धन्य बबा गाँधी  


चरखा -तकली चला-चला के ,खद्दर पहिने ओढ़े।

धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े।।


सबो धरम अऊ सबो जात ला ,एक कड़ी मा जोड़े।

अंगरेजी कानून मनन- ला, पापड़ साहीं तोड़े।।

चरखा -तकली चला-चला  के, खद्दर पहिने ओढ़े।

धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े।।


रहिस जरुरत  तोर  आज पर चिटको नहीं अगोरे।

अमर लोक जाके दुनिया-ला दुःख  सागर मा बोरे।।

चरखा -तकली चला-चला  के ,खद्दर पहिने ओढ़े।

धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े।।


एक के महातम कविता दलित जी के सुप्रसिद्ध कविता आय। यहू कविता मा गाँधी जी के चर्चा होइस हे - 


(11) एक के महातम


एक्के गाँधी के मारे, हड़बड़ा गइन फिरंगी।

एक्के झाँसी के रानी हर, जौंहर मता दे रहिस संगी।।

एक्के नेहरु के मानँय तो, दुनिया के हो जाय भलाई।

का कर सकिही हमर एक हर ?अइसन कभू कहो झन भाई।

जउन "एक" ला  हीनत रहिथौ, तउन "एक" के सुनो बड़ाई।।

आजादी ला पाए बर कतको नेता मन प्राण गँवाइन, अघात कष्ट सहिन। ये आजादी बड़ कीमती हे। इही भाव आधारित ये कविता के कुछ अंश देखव - 


(12) "बहुजन हिताय बहुजन सुखाय"


फाँसी मा झूलिस भगत सिंह

होमिस परान नेता सुभाष।

अउ गाँधी बबा अघात कष्ट 

सहि-सहि के पाइस सरगवास।।

कतकोन बहादुर मरिन-मिटिन

तब ये सुराज ला सकिन लाय। 

बहुजन हिताय बहुजन सुखाय।।


ये कविता मा सत्य-अहिंसा के संदेश के संगेसंग भारत भुइयाँ ला गौतम अउ गाँधी के कर्म-भूमि निरूपित करे गेहे -


(13) वो  भुइयाँ  हिन्दुस्तान आय 


लाही जग-मा सुख शांति यही,कर सत्य-अहिंसा के प्रचार।

अऊ आत्म-ज्ञान,विज्ञान सिखों के देही सब ला यही तार।।

गौतम-गाँधी के कर्म भूमि , जग के गुरु यही महान आय।

वो  भुइयाँ  हिन्दुस्तान आय ।।


गुलामी का जमाना मा राष्ट्र प्रेम के बात करे के मनाही रहिस। वो जमाना मा दलित जी इस्कुल के लइका मन के टोली बनाके छत्तीसगढ़ी भाषा मा राऊत नाचा के दोहा के माध्यम ले गाँव गाँव मा जाके गाँधी जी के विचार बगरावत ग्रामीण मन मा राष्ट्र प्रेम के भावना भरत रहिन। ये काम आजादी के बाद घलो जारी रखिन। छत्तीसगढ़ी के राऊत नाचा के दोहा छन्द शास्त्र के दोहा विधान ले अलग होथे अउ सरसी छन्द जइसे होथे फेर बोलचाल मा दोहा कहे जाथे - 


(14) "राऊत नाचा के दोहा"


गाँधी-बबा देवाइस भैया  , हमला  सुखद सुराज।

ओकर मारग में हम सबला ,चलना चाही आज।।


(15) "राऊत नाचा के दोहा"


गाँधी जी के छापा संगी, ददा बिसाइस आज।

भारत माता के पूजा-तैं, कर ररूहा महाराज।।


(16) "राऊत नाचा के दोहा"


गोवध - बंदी  सुनके  भैया, छेरी बपुरी रोय।

मोला कोन बचाही बापू, तोर बिन आफत होय।।


(17) "राऊत नाचा के दोहा"


गाँधी जी के छेरी भैया, में में में नरियाय रे।

एखर दूध ला पी के संगी बुढ़वा जवान हो जाये रे।।


दलित जी के लोकप्रिय गीत छन्नर छन्नर पैरी बाजे, खन्नर खन्नर चूरी, उनकर धान लुवाई कविता के एक हिस्सा आय। सार छन्द आधारित यहू कविता मा गाँधी बबा के सुरता करे गेहे - 


(18) "धान लुवाई"


रहय न पावय इहाँ करलई,रोना अउर कलपना।

सपनाए बस रहिस इहिच,बापू- हर सुन्दर सपना।।


सुआ गीत, छत्तीसगढ़ के लोकगीत आय। एकर लोकधुन मा घलो दलित जी राष्ट्र-प्रेम अउ भाईचारा के संदेश देवत गाँधी जी ला स्मरण करिन हें - 


(19) "तरि नारि नाना"


भाई संग लड़ना कुरान हर सिखाथे ?

कि भाई संग लड़ना भगवान हर सिखाथे ?

मिल के रहव जी, छोड़व लेड़गाई

जीयत भर तुम्मन-ला गाँधी समझाइस।

अउ जीयत भर तुम्मन ला नेहरू मनाइस।।


"पढ़इया प्रौढ़ मन खातिर" रचना एक लंबा रचना आय जेला चौपाई छन्द मा लिखे गेहे। आजादी के तुरंत बाद दलित जी अपन संगी गुरुजी मन के साथ आसपास के गाँव मा प्रौढ़ शिक्षा के कक्षा लगावत रहिन। उनकर अधिकांश रचना मा गाँधी जी के जिक्र होए हे - 


(20) "पढ़इया प्रौढ़ मन खातिर"


बने रहव झन भेंड़वा-बोकरा।

यही सिखाइस गाँधी डोकरा।।

वो अवतार धरिस हमरे बर।

जप तप त्याग करिस हमरे बर।।


(21) "दोहा"


गाँधी जी के जोर मा, पाए हवन सुराज।

वोकर बुध ला मान के, चलना चाही आज।।


दलित जी कभू श्रृंगार रस के कविता नइ गढ़िन। उँकर रचना मा प्रकृति चित्रण, देश अउ समाज निर्माण, सरकारी योजना के समर्थन अउ सामाजिक बुराई मिटाए बर जागरण के बात रहिस। मद्य निषेध कविता ला मध्यप्रदेश शासन के प्रथम पुरस्कार मिले रहिस। यहू काफी लंबा रचना हे। अइसन रचना मन मा घलो गाँधी जी के उल्लेख होइस हे - 


(22) "मद्य-निषेध"


काम बूता कुछु काहीं, तेमा मन ला लगाहीं

जर-जेवर बनाहीं, धोती लुगरा बिसाहीं वो

मनखे बनहीं, अब मनखे साहीं, खूब

मउज उड़ाहीं, गाँधी जी के गुन गाहीं वो।।


(23) "पियइया मन खातिर"


मँद पीए बर बिरजिस गाँधी महाराज जउन लाइन सुराज।

ओकर रसदा ला तज के तँय, झन रेंग आज, झन रेंग आज।।

का ये ही बुध मा स्वतंत्र भारत के राजा कहलाहू तुम ?

का ये ही बुध मा बापू जी के, राम-राज ला लाहू तुम ?


आजादी के बाद देश के नवा निर्माण होइस। सब झन भारत ला बैकुंठ साहीं बनाये के सपना सँजोये रहिन। अइसने एक कविता मा गाँधी जी ला देखव - 


(24) "भारत ला बैकुंठ बनाबो"


अवतारी गाँधी जी आइन

जप-तप करिन सुराज देवाइन

हमर देश ला हमर बनाइन

सुग्घर रसदा घलो देखाइन।

उँकरे मारग ला अपनाबो।

भारत ला बैकुंठ बनाबो।।


दलित जी रवींद्रनाथ टैगोर, लोकमान्य गंगाधर तिलक, जवाहर लाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, विनोबा भावे जइसे अनेक महापुरुष ऊपर घलो कविता गढ़िन हें। तिलक के कविता मा घलो गाँधी जी के उल्लेख होइस है - 


(25) "भगवान तिलक"


बापू जी जेकर चेला।

श्रद्धांजलि अर्पित हे तेला।।


दलित जी के रचना मन मा गाँधी के विचार के संगेसंग दीगर महापुरुष जइसे संत विनोबा के भूदान यज्ञ असन आंदोलन के उल्लेख दीखथे - 


(26) "हम सुग्घर गाँव बनाबो"


गाँधी बबा बताइस रसदा, तेमा रेंगत जाबो।

संत विनोबा के भूदान-यज्ञ ला सफल बनाबो।


देश के विकास मा छुआ-छूत सब ले बड़े बाधा आय। ये कविता काफी लंबा हे, इहाँ घलो गाँधी जी के विचार देखे बर  मिलथे।1


(27) "हरिजन उद्धार"


गाँधी बबा सबो झन खातिर, लाए हवय सुराज।

ओकर प्रिय हरिजन मन ला, अपनाना परिही आज।।


देश मा किसान अउ मजूर के राज होना चाही, इही भाव के कविता आय सुराजी परब, कविता के कुछ अंश -


(28) "सुराजी परब"


घर-घर मा हो जाही सोना अउ चाँदी।

ए ही जुगत मा भिड़े हवै गाँधी।।

किसान मँजूर मन के राज होना चाही।

असली मा इँकरे सुराज होना चाही।।

गाँधी बबा ये ही करके देखाही।

फेर देख लेहू, कतिक मजा आही।।


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ददरिया राग आधारित कविता बापू जी के दू डाँड़ - 


(29) "बापू जी"


बापू जी तोला सुमिरौं कई बार।

आज तोर बिना दीखथे जग अँधियार।।


किसान अउ मजूर मन ला जगाए खातिर लिखे कविता मा गाँधीवादी विचार देखव - 


(30) "जागव मजूर जागव किसान"


बम धर के सत्य अहिंसा के

गाँधी जी बिगुल बजाइस हे।

जा-जा के गाँव-गाँव घर-घर

वो जोगी अलख जगाइस हे।।


आही सुराज के गंगा हर

झन काम करव दुखदाता के।

जय बोलव गाँधी बाबा के

जय बोलव भारत माता के।।


गाँधी जी गृह उद्योग अउ कुटीर उद्योग के समर्थक रहिन। उनकर विचार ला जन-जन तक पहुँचाए बर दलित जी के घनाक्षरी के एक हिस्सा देखव - 


(31) "गाँधी के गोठ"


गाँधी जी के गोठ ला भुलावव झन भइया हो रे

हाथ के कूटे पीसे चाँउर दार आटा खाव।

ठेलहा बेरा मा खूब चरखा चलाव अउ

खादी बुनवा के पहिनत अउ ओढ़त जाव।।


अंग्रेज के राज मा उँकर सेना मा हिंदुस्तानी मन घलो रहिन। अइसन सिपाही मन ला गाँधी जी के रसदा मा चले बर सचेत करत कविता झन मार सिपाही के चार डाँड़ - 


(32) "झन मार सिपाही"


फेंक तहूँ करिया बाना ला, पहिन वस्त्र खादी के।

सत्याग्रह मा शामिल हो जा, चेला बन गाँधी के।।

तोर नाम हर सोना के अक्षर मा लिक्खे जाही

हम ला झन मार सिपाही।।


जनकवि कोदूराम "दलित" जी के छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी भाषा ऊपर समान अधिकार रहिस। अब उनकर हिन्दी के कविता देखव जेमा गाँधीवादी विचारधारा साफ-साफ दिखथे - 


"दलित जी के हिन्दी कविता के अंश जेमा महात्मा गाँधी के उल्लेख हे"


आजादी मिले के बाद देश के नेता मन लापरवाह अउ सुखवार होवत गिन, उँकरे ऊपर व्यंग्य आय ये कविता - 


(33) "तब के नेता-अब के नेता"


तब के नेता को हम माने |

अब के नेता को पहिचाने ||

बापू का मारग अपनावें |

गिरे जनों को ऊपर लावें ||


महात्मा गाँधी के महातम बतावत कविता विश्व वंद्य बापू, दोहा अउ चौपाई छन्द मा लिखे गेहे - 


 (34) विश्व वंद्य बापू


दोहा


जय-जय अमर शहीद जय, सुख-सुराज-तरु-मूल।

तुम्हें  चढ़ाते  आज हम , श्रद्धा  के  दो फूल।।

उद्धारक माँ - हिंद के, जन - नायक, सुख-धाम।

विश्व वंद्य बापू तुम्हें , शत् -शत् बार प्रणाम।।


चौपाई


जय जय राष्ट्र पिता अवतारी।जय निज मातृभूमि–भय हारी।।

जय-जय सत्य अहिंसा -धारी। विश्व-प्रेम के   परम पुजारी।।

जय टैगोर- तिलक अनुगामी।जय हरि-जन सेवक निष्कामी।।

जय-जय कृष्ण भवन अधिवासी। जय महान , जय सद्गुण राशी।।

जय-जय भारत भाग्य-विधाता। जय चरखाधर,जन दुख: त्राता।।

जय गीता-कुरान –अनुरागी। जय संयमी ,तपस्वी, त्यागी।।

जय स्वातंत्र्य -समर -सेनानी। छोड़ गये निज अमर कहानी।।

किया देश हित जप-तप अनशन। दिया ज्ञान नूतन , नव जीवन।।

तुमने घर-घर अलख जगाया। कर दी दूर दानवी  माया।।

बापू एक बार  फिर आओ। राम राज्य भारत में लाओ।।

अनाचार - अज्ञान मिटाओ। भारत भू को स्वर्ग बनाओ।।

बिलख रही अति  भारत माता। दुखियों का दु:ख सुना न जाता।।


दोहा

दीन-दलित नित कर रहे, देखो करुण पुकार।

आओ मोहन हिंद में  , फिर लेकर अवतार।।

विश्व विभूति, विनम्र वर,अति उदार मतिमान।

नवयुग - निरमाता, विमल, समदरशी भगवान।।


मादक पदार्थ के त्याग करे बर निवेदन करत ये कविता के कुछ पद देखव - 


(35) "स्वतंत्र भारत के राजा" 


बापू के वचनों को न भूल

मादक पदार्थ मतकर  सेवन।

निर्माण कार्य में जुट जा तू

बन सुजन, छोड़ यह पागलपन।।


सुराजी परब के बेरा मा गाँधी अउ संगी महापुरुष ला सुरता करत ये कविता मन के कुछ डाँड़ - 


(36) "पंद्रह अगस्त"


आज जनता हिन्द की, मन में नहीं फूली समाती

आज तिलक सुभाष गाँधी के सुमंगल गान गाती।


(37) "पंद्रह अगस्त फिर आया"


जिस दिन हम आजाद हुए थे

जिस दिन हम आबाद हुए थे

जिस दिन बापू के प्रताप से 

सबल शत्रु बरबाद हुए थे

जिस दिन घर घर आनंद छाया।

वह पंद्रह अगस्त फिर आया।।


(38)  आठवाँ पन्द्रह अगस्त


इसी रोज बापू के जप तप ने आजादी लाई थी।

इसी रोज नव राष्ट्र ध्वजा, नव भारत में लहराई थी।

बापू के पद चिन्हों पर चलना न भुलावें आजीवन।

आज आठवीं बार पुनः आया पंद्रह अगस्त पावन।।


(39) "स्वाधीनता अमर हो"


हम आज एक होवें। कुल भेदभाव खोवें।।

बापू का मार्ग धारें। सबका भला विचारें।।


बापूजी के महिमा के बखान ये चरगोड़िया मा देखव - 


(40) "मुक्तक (चरगोड़िया) छत्तीसगढ़ी"


बापू हर  हमर सियान आय।

बापू हर हमर महान आय।

अवतरे रहिस हमरे खातिर।

बापू हमर भगवान आय।।


ये मुक्तक मा आजादी के बाद के हकीकत ला देखव - 


(41) "मुक्तक (चरगोड़िया) छत्तीसगढ़ी"


बबा मोर गाँधी, ददा धर्माधिकारी।

चचा मोर नेहरू अउ भारत महतारी।

कथंय मोला - "तँय तो अब बनगे हस राजा",

पर दुःख हे, के मँय ह बने-च हँव भिखारी।


कविता के ये चार डाँड़ , बापू के सीख के सुरता देवावत हें - 


(42) "राह उन्हीं की चलते जावें" -


बापू जी की सीख न भूलें

सदा सभी को गले लगावें

सत्य अहिंसा और शांति का

जन-जन को हम पाठ पढ़ावें।


गाँधी जी के सहकारिता के समर्थन करत घनाक्षरी छन्द के अंश देखव - 


(43) सिर्फ नाम रह जाना है -


सहकारिता से लिया गाँधी ने स्वराज्य आज

जिसके सुयश को तमाम ने बखाना है।

उसी सहकारिता को हमें अपनाना है औ

अनहोना काम सिद्ध करके दिखाना है।।


कविता के इन डाँड़ मा लोकतंत्र ला बापू के जिनगी भर के कमाई बताए गेहे - 


(44) हो अमर हिन्द का लोकतंत्र-

जो बापू की अमर देन

जो सत्य अहिंसा का प्रतिफल

उपहार कठिन बलिदानों का 

जिसका स्वर्णिम इतिहास विमल

परम पूज्य बापू जी के जीवन

भर की यही कमाई है

नव उमंग उल्लास लिए

छब्बीस जनवरी आई है।


दलित जी के बाल-साहित्य मा नीतिपरक रचना के संगेसंग राष्ट्रीय भाव ला जगाए के आह्वान घलो मिलथे - 


(45) बच्चों से -


अब परम पूज्य बापू जी का

है राम राज्य तुमको लाना 

उनके अपूर्ण कार्यों को भ

है पूरा करके दिखलाना।


गाँधीवादी कवि कोदूराम "दलित" गाँधी जी ला अवतार मानत रहिन - 


(46) बापू ने अवतार लिया - 


भारत माता अति त्रस्त हुई

गोरों ने अत्याचार किया।

दुखिया माँ का दुख हरने को

बापू जी ने अवतार लिया।।

पद-चिन्हों पर चल कर उनके

हम जन-जन का उद्धार करें।

अब एक सूत्र में बँध जाएँ

भारत का बेड़ा पार करें।।


गो वध के संदर्भ मा कविताई करत दलित जी ला गाँधी जी के सुरता आइस - 


(47) "गोवध बन्द करो"


समझाया ऋषि दयानन्द ने गो वध भारी पातक है

समझाया बापू ने गो वध राम-राज्य का घातक है।


जनकवि कोदूराम "दलित" जी के कविता "काला" अपन समय के बहुते प्रसिद्ध कविता रहिस ओकरे दू डाँड़ देखव - 

(48) "काला"


काला ही था रचने वाला पावन गीता।

बिन खट-पट के काले ने गोरे को जीता।।


नीतिपरक ये कविता मा बताए गेहे कि बापू के मार्ग मा चले ले हर समस्या के समाधान होथे - 


(49) "होता है उसका सम्मान"


बापू के मारग पर चल,

करें समस्याएँ अब हल।


वह मोहन और यह मोहन कविता मा "वह मोहन" माने कृष्ण भगवान अउ "यह मोहन" माने मोहनदास करमचंद गाँधी के कर्म अउ चरित्र के समानता बताए गेहे। यहू बहुत लंबा कविता आय। इहाँ कुछ पद प्रस्तुत करत हँव - 


(50) "वह मोहन और यह मोहन"

वह मोहन था कला-काला

यह मुट्ठी भर हड्डी वाला।।

कारागृह में वह आया था।

कालागृह इसको भाया था।।

उसका गीता-ज्ञान प्रबल था।

सत्य-अहिंसा इसका बल था।।

दोनों में है समता भारी।

दोनों कहलाते हैं अवतारी।।

इनके मारग को अपनाएँ।

लोकतंत्र को सफल बनाएँ।।


ये आलेख एक शोध-पत्र असन होगे। जब बाबूजी के गाँधी जी के उल्लेख वाला कविता खोजना चालू करेंव तब अधिकांश कविता बापू के उल्लेख वाला मिलिस। पचास कविता के उदाहरण खोजे के बाद मँय थक गेंव। मोर जानकारी मा छत्तीसगढ़ी मा अइसन दूसर कवि अभिन ले नइ दिखिस हे जिनकर अतका ज्यादा रचना मा गाँधी बबा के उल्लेख होइस हे। आपमन के नजर मा अइसन कोनो दूसर कवि हो तो जरूर बतावव। 

बहुत पहिली छत्तीसगढ़ के विद्वान साहित्यकार हरि ठाकुर जी, जनकवि कोदूराम "दलित" ऊपर एक आलेख लिखे रहिन जेकर शीर्षक दे रहिन - गाँधीवादी विचारधारा के छत्तीसगढ़ी कवि - कोदूराम "दलित"। आज मोला समझ में आइस कि हरिठाकुर जी अइसन शीर्षक काबर दे रहिन। 


महात्मा गाँधी के 75 वीं पुण्यतिथि बर ए आलेख ले सुग्घर अउ का लिख सकत रहेंव ? मोला विश्वास हे कि छत्तीसगढ़िया पाठक मन ला ये आलेख जरूर पसंद आही।


*आलेख - अरुण कुमार निगम*


Saturday 28 January 2023

नाचा

 नाचा 

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      मनसे के मन मं मूल रूप से दस ठन भाव जनमजात रहिथे इही दसो भाव के आधार मं कला साधना करे जाथे चाहे वो कला साहित्य होय , संगीत होय या होवय नृत्य त आज हमन नृत्य माने नाच जेकर एक रूप नाचा कहाथे तेकर सुरता करिन । 

   नृत्य के उद्गाता भगवान शंकर माने जाथें , माता पार्वती संग उंकर नाच सुख सनात के बरसा करइया , सृजन के प्रतीक आय जेला लास्य नृत्य कहे गए हे दूसर संसार के अनीति अनाचार ल देख के विनाश बर जेन नृत्य उन अकेल्ला करथें ओला तांडव कहे जाथे जेहर प्रलयंकर शंकर के रौद्र रूप आय । 

  हमर छत्तीसगढ़ मं नाचा के अधार भी भारतीय संस्कृति के सृजन अउ विध्वंस हर आय फेर तइहा दिन मं शिक्षा के अभाव रहिस ते पाय के नाचा के माध्यम से थोरिक मनोरंजन उही हांसी ठट्ठा त कभू सामाजिक विसंगति मन के चरचा करे बर गांव के चौपाल मं त कभू पंडाल बना के नाचा प्रस्तुत होवत रहिस । 

  नाचा हर छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य कला के उदाहरण आय जेमा पारम्परिक अउ लोक संगीत दूनों मिंझरे रहिथे । चार प्रकार के नाचा मिलथे पहिली ल खड़े साज के नाचा कहिथें एहर सबले जुन्ना रूप आय । 

दूसर गंड़वा नाचा ...बर बिहाव असन सुख सनात के मौक़ा मं देखे बर मिलय । 

तीसर हे देवार नाचा एकर विशेषता रहिस के ये नाचा मं महिला मन भी भाग लेवत रहिन फेर उनमन के मान सनमान के बरोबर ध्यान रखे जावत रहिस । 

चौथइया हे बइठे साज के नाचा एकर रूप हर गम्मत कहे जाथे ...जेमा जोक्कड़ के भूमिका महत्वपूर्ण होथे । 

     विशेष ध्यान देहे लाइक बात  एहर आय के नाचा हर सिर्फ मनोरंजन नोहय बल्कि समाज मं बगरे छुआ छूत , दहेज प्रथा , नशाखोरी , जुआ सट्टा , अशिक्षा , सूदखोरी असन विसंगति मन ल उजागर करना , सुधार के उपाय बताना घलाय आय । 

सुरता राखे बर परही के तइहा दिन मं गांव गंवई मं शिक्षा के साधन कम रहिस । 

    सबो नाचा मं भाव भंगिमा महत्वपूर्ण रहिस । देवार नाचा लोक नाट्य प्रमुख रहिस , लौकिक प्रेम प्रमुख रहय । चौमास सिराती मं मनसे खेती किसानी ले थोरकुन सुभित्था होवत रहिन त देवारी के संगे संग राउत नाचा शुरू होवय । राऊत नाचा हर वीरता प्रदर्शन आय त आश्वासन घलाय तो आय के गांव के भाई बहिनी मन निसाखतिर रहव हमर हाथ के तेल पियाये लाठी आप सबो के रक्षा करे बर तियार हे । घरोघर जा के इनमन दोहा पारथें , असीस देथें सब झन बर मंगलकामना करथें । रीति नीति के बात समझाने वाला दोहा पारथें ...। 

   गम्मत के जोक्कड़ आशुकवि होथे जेहर हांसी ठठ्ठा के ओढ़र मं गहन गम्भीर सामाजिक विसंगति ऊपर घन के चोट मारथे , मनसे तिलमिला जाथे फेर उजर आपत्ति तो करत बनय नहीं । 

 " मेहतरीन " नाचा ओ समय के बड़का सामाजिक रोग छुआ छूत ऊपर जोरहा प्रहार रहिस । आजकल तो बहुत अकन नाचा पार्टी के गठन हो गए हे । मंदरा जी ल नाचा के पुरोधा माने जाथे उंकर योगदान ल छत्तीसगढ़िया मन कभू भुलाए नइ सकयं । 

समाज के विकास मं लोकसंस्कृति , लोकगीत , लोकनाट्य ,लोकगाथा मन के योगदान रहिबे करथे त छत्तीसगढ़ के संस्कृति ल जाने समझे बर हमन ल ये सबो के अध्ययन करना परही । 

   लोकाक्षर के बुधियार लिखइया मन के विचार के अगोरा मं 

      सरला शर्मा 

        दुर्ग

मनोरंजन अउ जन जागरन के सशक्त माध्यम होथे नाचा

 मनोरंजन अउ जन जागरन के सशक्त माध्यम होथे नाचा 





धान के कटोरा छत्तीसगढ़ के लोक कला अउ संस्कृति के अलग पहचान हावय । हमर प्रदेश के लोकनाट्य नाचा, पंथी नृत्य, पण्डवानी, भरथरी, चन्देनी के संगे संग आदिवासी नृत्य के सोर हमर देश के साथ विश्व मा घलो अलगे छाप छोड़िस हे। पंथी नर्तक स्व. देवदास बंजारे ,पण्डवानी गायक झाड़ू राम देवांगन, तीजन बाई, ऋतु वर्मा, भरथरी गायिका सुरुज बाई खांडे जइसन कला साधक मन हा छत्तीसगढ़ अउ भारत के नाम ला दुनिया भर मा बगराइस हवय. रंगकर्मी हबीब तनवीर के माध्यम ले जिहां छत्तीसगढ़ के नाचा कलाकार लालू राम (बिसाहू साहू),भुलवा राम, मदन निषाद, गोविन्द राम निर्मलकर, फिदाद बाई  मरकाम, माला बाई मरकाम हा अपन अभिनय क्षमता के लोहा मनवाइस. ये नाचा के नामी कलाकार मन हा एक समय नाचा के सियान मंदराजी दाऊ के अगुवाई मा काम करे रिहिन हे ।मंदराजी दाऊ हा नाचा के पितृ पुरुष हरय. वो हा एक अइसन तपस्वी कलाकार रिहिस जउन हा नाचा के खातिर अपन संपत्ति ला सरबस दांव मा लगा दिस ।


नाचा अउ मंदराजी दाऊ


    नाचा के सियान मंदराजी दाऊ के जनम  1 अप्रैल 1911‌ मा संस्कारधानी शहर राजनांदगांव ले 5  किलोमीटर दूरिहा रवेली गांव मा  एक माल गुजार परिवार मा होय रिहिस हे ।मंदरा जी के पूरा नांव दुलार सिंह साव रिहिस । 1922 मा ओकर प्राथमिक शिक्षा हा पूरा होइस।दुलार सिंह के मन पढ़ई लिखई मा नई लगत रिहिस । ओकर धियान नाचा पेखा डहर जादा राहय । रवेली अउ आस पास गांव मा जब नाचा होवय तब बालक दुलार सिंह हा रात रात भर जाग के नाचा देखय ।एकर ले 

ओकर मन मा घलो चिकारा, तबला बजाय के धुन सवार होगे. वो समय रवेली गांव मा थोरकिन लोक कला के जानकार कलाकार रिहिस । ऊंकर मन ले मंदराजी हा 

चिकारा, तबला बजाय के संग गाना गाय ला घलो सीख गे । अब मंदरा जी हा ये काम मा पूरा रमगे ।वो समय नाचा के कोई बढ़िया से संगठित पार्टी नइ रिहिस । नाचा के प्रस्तुति मा घलो मनोरंजन के नाम मा द्विअर्थी संवाद बोले जाय ।येकर ले बालक दुलार के मन ला गजब ठेस पहुंचे ।


 1928-29 मा रवेली नाचा दल के गठन 

मंदराजी दाऊ हा अपन गांव अउ आस -पास के लोक कलाकार मन ला लेके 1928-29 मा रवेली नाचा पार्टी के गठन करिस ।ये दल हा छत्तीसगढ़ मा नाचा के पहिली संगठित दल रिहिस ।वो समय खड़े साज चलय । कलाकार मन अपन साज बाज ला कनिहा मा बांधके अउ नरी मा लटका के नाचा ला करय ।

 मंदराजी के नाचा डहर नशा ला देखके वोकर पिता जी हा अब्बड़ डांट फटकार करय ।अउ चिन्ता करे लगगे कि दुलार हा अइसने करत रहि ता ओकर जिनगी के गाड़ी कइसे चल पाही । अउ एकर सेती ओकर बिहाव 14 बरस के उमर मा दुर्ग जिले के भोथली गांव (तिरगा) के राम्हिन बाई के साथ कर दिस ।बिहाव होय के बाद घलो नाचा के प्रति ओकर रुचि मा कोनो कमी नइ आइस ।शुरु मा ओकर गोसइन हा घलो एकर विरोध करिस कि सिरिफ नाचा ले जिनगी कइसे चलही पर बाद मा 

वोकर साधना मा बाधा पड़ना ठीक नइ समझिस ।अब वोकर गोसइन हा घलो वोकर काम मा सहयोग करे लगिन अउ उंकर घर अवइया कलाकार मन के खाना बेवस्था मा सहयोग करे लगिन ।


खड़े साज के जगह बइठे साज शुरू 


 सन् 1932 के बात हरय ।वो समय नाचा के गम्मत कलाकार 

सुकलू ठाकुर (लोहारा -भर्रीटोला) अउ नोहर दास मानिकपुरी (अछोली, खेरथा) रिहिन हे ।कन्हारपुरी के माल गुजार हा सुकलू ठाकुर अउ नोहर मानिकपुरी के कार्यक्रम अपन गांव मा रखिस ।ये कार्यक्रम मा मंदरा जी दाऊ जी हा चिकारा बजाइस ।ये कार्यक्रम ले खुश होके दाऊ जी हा सुकलू

अउ नोहर मानिकपुरी ला शामिल करके रवेली नाचा पार्टी के ऐतिहासिक गठन करिस ।अब खड़े साज के जगह सबो वादक कलाकार बइठ के बाजा बजाय लागिस ।


चिकारा के जगह हारमोनियम  के चलन शुरू


सन् 1933-34 मा मंदराजी दाऊ अपन मौसा टीकमनाथ साव ( लोक संगीतकार स्व. खुमाम साव के पिताजी )अउ अपन मामा नीलकंठ साहू के संग हारमोनियम खरीदे बर कलकत्ता गिस ।ये समय वोमन 8 दिन टाटानगर मा  घलो रुके रिहिस ।इही 8 दिन मा ये तीनों टाटानगर के एक हारमोनियम वादक ले हारमोनियम बजाय ला सिखिस ।बाद मा अपन मिहनत ले दाऊजी हा हारमोनियम बजाय मा बने पारंगत होगे । अब नाचा मा चिकारा के जगह हारमोनियम बजे ला लगिस ।सन् 1939-40 तक रवेली नाचा दल हमर छत्तीसगढ़ के सबले प्रसिद्ध दल बन गे रिहिस ।


1943-44 मा बड़का कलाकार मन ले सजगे रवेली नाचा दल


   सन् 1941-42 तक कुरुद (राजिम) मा एक बढ़िया नाचा दल गठित होगे रिहिस ।ये मंडली मा बिसाहू राम (लालू राम) साहू जइसे गजब के परी नर्तक रिहिन हे । 1943-44 मा लालू राम साहू हा कुरुद पार्टी ला छोड़के रवेली नाचा पार्टी मा शामिल होगे ।इही साल हारमोनियम वादक अउ लोक संगीतकार खुमान साव जी 14 बरस के उमर मा मंदराजी दाऊ के नाचा दल ले जुड़गे ।खुमान जी हा वोकर मौसी के बेटा रिहिस ।इही साल गजब के गम्तिहा कलाकार मदन निषाद (गुंगेरी नवागांव) पुसूराम यादव अउ जगन्नाथ निर्मलकर मन घलो दाऊजी के दल मा आगे ।अब ये प्रकार ले अब रवेली नाचा दल हा लालू राम साहू, मदन लाल निषाद, खुमान लाल साव, नोहर दास मानिकपुरी, पंचराम देवदास, जगन्नाथ निर्मलकर, गोविन्द निर्मलकर, रुप राम साहू, गुलाब चन्द जैन, श्रीमती फिदा मरकाम, श्रीमती माला मरकाम जइसे नाचा के बड़का कलाकार मन ले सजगे ।


जन जागृति ले अंग्रेज सरकार बौखलाइस  


   नाचा के माध्यम ले दाऊ मंदराजी हा समाज मा फइले बुराई छुआछूत, अज्ञानता,दिखावा,बाल बिहाव के विरुद्ध लड़ाई लड़िस अउ लोगन मन ला जागरुक करे के काम करिस ।नाचा प्रदर्शन के समय कलाकार मन हा जोश मा आके अंग्रेज सरकार के विरोध मा संवाद घलो बोलके देश प्रेम के परिचय देवय ।अइसने आमदी (दुर्ग) मा मंदराजी के नाचा कार्यक्रम ला रोके बर अंग्रेज सरकार के पुलिस पहुंच गे रिहिस । वोहर मेहतरीन, पोंगा पंडित गम्मत के माध्यम ले छुआछूत दूर करे के उदिम, ईरानी गम्मत मा हिन्दू मुसलमान मा एकता स्थापित करे के प्रयास, बुढ़वा बिहाव के माध्यम ले बाल बिहाव अउ बेमेल बिहाव ला रोकना, अउ मरानिन गम्मत के माध्यम ले देवर अउ भौजी के पवित्र रिश्ता के रुप मा सामने लाके समाज मा जन जागृति फैलाय के काम करिस ।

1940 से 1952 तक तक रवेली नाचा दल के भारी धूम रिहिस ।



दाऊ रामचंद्र देशमुख हा देहाती कला विकास मंडल के  गठन करिन 


रवेली अउ रिंगनी नाचा दल के विलय होगे 


 सन् 1952 मा फरवरी मा मंड़ई के अवसर मा पिनकापार (बालोद )वाले दाऊ रामचंद्र देशमुख हा रवेली अउ रिंगनी नाचा दल के प्रमुख कलाकार मन ला नाचा कार्यक्रम बर नेवता दिस । पर येमा दूनो दल के संचालक सामिल नइ रिहिन हे । अइसने 1953 मा घलो होइस ।ये सब परिस्थिति मा रवेली अउ रिंगनी (भिलाई) हा एके मा शामिल (विलय) होगे ।एकर संचालक लालू राम साहू ला बनाय गिस ।मंदराजी दाऊ येमा सिरिफ वादक कलाकार के रुप मा शामिल करे गिस । अउ इन्चे ले रवेली अउ रिंगनी दल के किस्मत खराब होय लगिस ।रवेली अउ रिंगनी के सब बने बने कलाकार दाऊ रामचंद्र देशमुख द्वारा संचालित छत्तीसगढ़ देहाती कला विकास मंडल मा शामिल होगे ।


  नाचा कलाकार मन उपर रंगकर्मी तनवीर के नजर


जब छत्तीसगढ़ देहाती कला विकास मंडल के कार्यक्रम सप्रे स्कूल रायपुर मा होइस ।ये कार्यक्रम हा गजब सफल होइस ।ये कार्यक्रम ला देखे बर प्रसिद्ध रंगककर्मी हबीब तनवीर हा आय रिहिस ।वोहर उदिम करके रिंगनी रवेली के कलाकार लालू राम साहू, मदन लाल निषाद, ठाकुर राम, बापू दास, भुलऊ राम, शिवदयाल मन ला नया थियेटर दिल्ली मा शामिल कर लिस ।ये कलाकार मन हा दुनिया भर मा अपन अभिनय ले नाम घलो कमाइस अउ छत्तीसगढ़ के लोकनाट्य नाचा के सोर बगराइस । पर इंकर मन के जमगरहा नेंव रवेली अउ रिंगनी दल मा बने रिहिस ।


नाचा के सउक मा जमीन - जायदाद 

बेचागे


  एती मंदरा जी दाऊ के घर भाई बंटवारा होगे ।वोहर अब्बड़ संपन्न रिहिन हे।वोहर अपन संपत्ति ला नाचा अउ नाचा के कलाकार मन के आव -भगत मा सिरा दिस ।दाऊ जी हा अपन कलाकारी के सउक ला पूरा करे के संग छोटे -छोटे नाचा पार्टी मा जाय के शुरु कर दिस । धन- दउलत कम होय के बाद संगी साथी मन घलो छूटत गिस । वोकर दूसर गांव बागनदी के जमींदारी हा घलो छिनागे ।स्वाभिमानी मंदरा जी कोनो ले कुछ नइ काहय ।




मंदराजी दाऊ ला नाचा मा वोकर अमूल्य योगदान खातिर  जीवन के आखिरी समय मा भिलाई स्पात संयंत्र के सामुदायिक विकास विभाग द्वारा मई 1984 मा सम्मानित करिस । अंदर ले टूट चुके दाऊ जी सम्मान पाके भाव विभोर होगे ।

 सम्मानित होय के बाद सितंबर 1984 मा अपन दूसर गांव बागनदी के नवापारा (नवाटोला)मा पंडवानी कार्यक्रम मा गिस । इहां वोकर तबियत खराब होगे ।वोला रवेली लाय गिस । 24 सितंबर 1984 मा नाचा के ये पुजारी हा अपन नश्वर शरीर ला छोड़के सरग चल दिस ।


स्व. मंदरा जी दाऊ हा एक गीत गावय – “


 दौलत तो कमाती है दुनिया पर नाम कमाना मुश्किल है “.दाऊ जी हा अपन दउलत गंवा के नांव कमाइस ।

 मंदराजी के जन्म दिवस 1 अप्रैल के दिन हर साल 1993 से लगातार मंदरा जी महोत्सव आयोजित करे जाथे ।1992 मा ये कार्यक्रम हा कन्हारपुरी मा होय रिहिस ।जन्मभूमि रवेली के संगे -संग कन्हारपुरी मा घलो मंदराजी दाऊ के मूर्ति स्थापित करे गेहे ।वोकर सम्मान मा छत्तीसगढ़ शासन द्वारा लोक कला के क्षेत्र मा उल्लेखीन काम करइया लोक कलाकार ला हर साल राज्योत्सव मा मंदराजी सम्मान ले सम्मानित करे जाथे ।


 नाचा मा मटेवा (अर्जुन्दा, बालोद) के पार्टी के गजब सोर चलिस. येमा झुमुक दास बघेल अउ निहाईक दास मानिकपुरी जइसे अद्भुत कलाकार रीहिन हे. हमर छत्तीसगढ मा नाचा के कतको नामी नाचा दल हे. 


          

                      ओमप्रकाश साहू” अंकुर “

ग्राम + पोष्ट – सुरगी (हाई स्कूल के पास) 

तहसील + जिला – राजनांदगांव (छत्तीसगढ़) 

मो. न.  7974666840

छत्तीसगढ़ के लोक नाट्य गम्मत

 छत्तीसगढ़ी में पढ़े - नाचा गम्मत

छत्तीसगढ़ के लोक नाट्य गम्मत 

दुर्गा प्रसाद पारकर 

छत्तीसगढ़ म दू राज, जेमा अट्ठारा-अट्ठारा गढ़। दूनो राज ल मिल के छत्तीसगढ़ नाव परे हे। रतनपुर राज म- रतनपुर, मारो, विजयपुर, खरोद, कोटगढ़, नवागढ़, सौथी, ओखर, पडरभट्ठा, सेमरिया, चांपा, लाफा, छूरी, केड़ा, आतिन, उपरिया, पेंड्रा, फुरकुट्टी अऊ रायपुर राज म - रायपुर, पाटन, सिमगा, सिंगारपुर, लवन, अमेरा, दुर्ग, सारड़ा, सिरसा, मोंहदी, खल्लारी, सिरपुर, राजिम, सिंगनगढ़, सुअरमाल, टेंगनागढ़ अऊ अकलवारा ह आवय। छत्तीसगढ़ म मध्यप्रदेश के दक्षिण पूर्वी जिला रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़, सरगुजा, दुर्ग, राजनांदगांव अऊ बस्तर ह आथे। छत्तीसगढ़ी ह छत्तीसगढ़िया मन के चिन्हारी कराथे। इहें के प्रसिद्ध लोक कृति नाचा म छत्तीसगढ़ के झांकी देखे बर मिलथे। अइसे माने जाथे कि नाचा के पीकी गड़वा साज ले फूटीस होही। कोई कथे नाचा के शुरुवात चैंका ले होइस होही। जइसे भी हो। गड़वा साज ल गुदुम साज घलो भाखे जाथे। गाड़ा जात के मन दफड़ा, डमऊ (डमरु), मोंहरी, तासक, मंजीरा, गुदुम (सींघ) बजावय तेखरे सेती ए बाजा के नाव गड़वा बाजा परिस। अब गड़वा बाजा ल कोनो भी जात के मन बजाथे। तभे ए बाजा ल समाजिक बाजा के नाव ले जाने ल धर ले हे। गांव-गांव म बजनिया मन के साज रथे। छत्तीसगढ़ म प्रमुख रुप ले तीन साज हे- (1) गड़वा साज (2) खड़े साज (3) बइठक साज। गड़वा साज के चलते चलत खड़े साज (चिकारा, तबला, मंजीरा, परी अऊ मशालची) ह चलन म अइस होही। खड़े साज म मसाल (सीसी बोतल के) ले अंजोर के बेवस्था करय। जोक्कड़ ह तार म चेंदरी ल बांध के माटी तेल डार-डार के भपका बार-बार के कतको अकन खेल तमासा देखवत जनता जनारदन ल मोहे रहिथे। अब तो खड़े साज ल मसाल धर के खोजबे त ले दे के दुए चार ठन नेंग बर मिल जही। खड़े साज म खड़े-खड़े बजइया गवइया मन ओरी-पारी मंच म चघथे। देवी-देवता के वंदना करके कार्यक्रम के शरुआत करथे-

गाइए हो गनपति जगबन्दन

स्ंाकर सुअन भवानी जी के नंदन

पति जगबंदन, पति जगबंदन

गाइए हो गनपति जगबंदन

छत्तीसगढ़ म मानदास टण्डन (सेमरिया) अऊ समे दास बंदे (डूडेंरा) के खड़े साज ह जादा प्रसिद्ध हे। जऊन मन ए साज ल जिंदा राखे हे। खड़े साज म एक झन गाथे तेन ला बाकि मन झोंकथे। खड़े साज म रास गीद के बानगी एदइसन हे-

ठगनी का नैना चमकाए

कद्दू काट मिरदंग बनाए 

लीमू कांट मंजीरा

पांच तरोई मिल मंगल गावें

नाचे बालम खीरा 

ठगनी का नैना चमकावै

गाना के सरा देवाते भार जोक्कड़ मन गम्मत ल नापे ल धरथे। खड़े साज ह बइठका साज (हारमोनियम, ढोलक, तबल, जोक्कड़, परी, जनाना, बेंजो क्लारनेट) म विस्तार पइस। नवा-नवा म बइठक साज ह देखनी हो गे रीहिस हे। बइठक साज बर गियास (पेट्रोमेक्स) ले अंजोर के बेवस्था होय ल धर लीस अऊ अब बिजली बत्ती ले। सन् 1952 के आसपास जंजगीरी (नैला), रिंगनी-रवेली पार्टी (मंदराजी मदन), दुरुग पार्टी (सीताराम) मन ह नामी नाच पार्टी रीहिन। बिजली अऊ रेडियो आय के बाद तो नाचा के रौनक बाढ़ गे। जिंहा बिजली के बेवस्था नइ राहय उहाँ बड़े पार्टी मन अपन संग जनरेटर घलो लेगत रीहिन हे। जऊन ह गांव-गंवई म देखनी हो जय। डाॅ, बल्देव कथे- “गम्मत नाचा ह छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य संस्कृति के निर्मल दरपन आय। एमा एक तनी देहाती जीवन के संघर्ष, जटिलता अऊ विसंगति मन के दुखद चित्रण रहिथे त दूसर तनी देहाती (ग्राम्य) जीवन के सरलता, सादगी, अल्हड़, सौंदर्य अऊ भोलापन के झांकी देखे बर मिलथे।“ इही झांकी के पहिचान हबीब तनवीर ह देस-बिदेस म करइस। नाचा कलाकार मदन निषाद, मदरा जी, ठाकुर राम, बुलवा अऊ फीता बाई ल छत्तीसगढ़ कभू नइ भूलावय। पहिली कलाकार मन संवाद ल किकिया-किकिया के बोलय। पोंगा रेडियो (लाऊडिस्पीकर) के उद्गरिस होए ले नाचा के प्रस्तुति म चार चांद लग गे। नाचा कोनो विधा नोहे बल्कि नाचा म कतनो विधा ह समाए हे। लोक रंजन अऊ लोक शिक्षण के माध्यम नाचा छत्तीसगढ़ के आत्मा हरे। नाचा ले जुड़े थोर बहुत जानबा एदइसन हे- 

बियाना - कोनो उत्सव के उपलक्ष्य म नाचा लगाए खातिर गांव म बइठक सेकलाथे। बइठक म ये तय करे जाथे के कतका बजट के नाचा लगाए जाय अऊ एखर बर कतका बरारे जाय। नाचा लगाए खातिर बइठक म दू-तीन झन मनखे जोंग के दू चार ठन मन पसंद नाचा पार्टी के नाम ल जना देथे। गांव के प्रतिनिधि बन के नाच पार्टी के मनिज्जर करा पहुंचथे। मनिज्जर ह बियाना (अनुबंध राशि) झोंके के पहिली एक बात के खुलासा कर लेथे के नाचा ह मोंजरा के होही के बिगन मोंजरा के। त का दू गम्मत के बाद मोंजरा लेवन देहू? कतको नाच पार्टी मन पहिली मोंजरा भर म घलो नाच देवत रीहिन हे। बिन मोंजरा के नाचा अऊ सार्वजनिक नाचा बर जादा भाव लेथे जबकि व्यक्तिगत अऊ मोंजरा वाले नाच बर थोकिन कम भाव म मान जथे। सीजन म नाच माहंगी रहीथे। पहिली समे म नाचा के भाव बियाना मुअखरी तय हो जय अऊ इन्कावन रुपिया बियाना दे के बात ल पक्का मन लेत रीहिन हें कतको जघा धोखा खाए के बाद अब नाचा पार्टी वाले मन लिखित म बियाना ल झोंकथे। कतको पार्टी वाले मन तो कार्यक्रम के दिन मंच के पहिली पूरा रुपिया झोंक लेथे। 

मंच - नाचे के पुरतीन जघा राहे अइसे अन्दाज के चार कोन्टा म गड्डा खान के लकड़ी नही ते बांस ल गड़िया के धांस दे। ऊपर म बांस बांध के चांदनी छा दे। सफेद कपड़ा म लाल रंग के कपड़ा लटकत रहिथे इही ल चांदनी (पाल) कहिथन। मंच के बीचो-बीच डग्गा माइक ल बांध दे अऊ लकड़ी के बने बाजुवट ल मंच के कोरियाति मढ़ा देथन। बाजुवट मढ़ाए के बेरा ए बात के खियाल रखे ल परथे के देखइया मन ल बाजुवट के सेती नाचा देखे बर अड़चन झन होवय। 

मेकअप - नाचा पार्टी के गांव म पहुंचते भार खुशी के लहर दऊंड जथे। ऊंखर बर मेकअप कुरिया दे जाथें मेकअप के तीन चैथाई सराजाम के बेवस्था पारटी वाला मन करथे। गम्मत के मुताबिक बड़े जिनीस (मोरा, खुमरी, चरिहा, झऊंहा, कुकरी, फूल कांछ के लोटा आदि) आयोजन मन ल दे बर परथे। मेकअप (सम्हरे बर) बर तेल पानी, मुरदार संख, घेरु, अभरक, छूही, गुलाल, लाली, काजर,कोइला आदि जिनीस के जरुरत परथे। नाचा पार्टी वाले मन जनाना अऊ परी मन बर माईलोगन सिंगार के बेवस्था कर के रेंगथे। माईलोगन के अभिनय ल बेटा जात के मन निपटाथे। ऊमन मेहला बानी के दिखे ल धर लेथे। लम्बा लम्बा चूंदी, चाल-ढाल, गोठ-बात ले जनाना (लोटिहारिन) ल चिन्हे जा सकत हें पहिली तो मेकअप रुम कोठा ल दे देत रीहिन फेर अब दसा ह थोकिन सुधर गे हे। 

नाचा के शुरुआत - दर्शक मन नाचा देखे बर सरकी, बोरा जठा के अपन-अपन बर जघा पोगरा लेथे। आन गांव के मन घलो नाचा देखे बर जुरियाथे। देर रात बाजा-गाजा के मंच म आते भार दार्शक मन के हिरदे ह कुहकी मारे ल धर लेथे। बजनिया मन पान चबा के बन ठन के मंच म पांव धरथे। मनिज्जर के मुताबिक तबला, ढोल, बेंजो वाले मन सुर मिलाथे। एक दू ठन भजन गाए के बाद नचकाीरन (परी) मन मंच (कुंज) म पहुंचथे। ताहन मंच ह गरु-गरु लागे ल धर लेथे। परी मन मंच म चघते भार वाघ यंत्र के पलागी करथे। टोनही टम्हानी के नजर डीठ झन लागे, सोच के पांव के धुर्रा ल मुड़ी म भारथे। ओइसे तो नाचा पार्टी के बइगा ह पहिलीच ले मंच ल बांध डरे रहिथे। परी मन सरसती दाई के बंदना करके नाचथे-

सरसती ने स्वर दिए

गुरु ने दिए गियान

मातु-पिता ने जनम दिए 

रुप दिए भगवान

म्ंाच म आए के बाद ओखर नाव के बखान करथे-


बड़ नीक लागिस हे मोला, बुधारु भइया के गोठ या

पास म बुला के दिस हे, मोला दू के नोट या 


बंदना के बाद नचकारिन मन एक-एक करके ओरी-पारी गीत गा के समा बांधथे। एक परी के मोंजरा झोंक के आवत ले दूसर परी ह मंच ल सम्हालथे। परी ह इसारा ल समझ के मोंजरा ठऊर म जाथे। गाना गा के नाचथे। ताहन खुश हो के मोंजरा देवइया ह रुपिया ल पोलखा नही ते खोपा म खोंच के फरमाइस घलो करथे। परी ह मोंजरा देवइया के नाव गांव ल पुछ लेथे--

  दू चार ठन गीत होय के बाद मनिज्जर जोक्कड़ धुन ल बजाथे। सुन के जोक्कड़ मन पांव म घुंघरु पहिर के छमक-छमक करत पहुंचथे। जोक्कड़ मन बंदना करके गम्मत के मुहतुर करथे। जोक्कड़ मन साखी बोल के गाना गा के नाचथे। नाचा म तो छत्तीसगढ़ ल झांखे जा सकत हे। 

 जोक्कड़ मन के पहिनावा एदइसन हे- धोती, गमछा, सलूखा, कुरता, बंगाली, जाकिट अउ गाहना म रेसम के करधन हाथ म चांदी ढरकौउवा (मोट्ठा के, बिर्रे मन पहिरथे) टोटा (गर) म सोना चांदी नही ते तांबा के ताबीज अउ अंगरी म मुंदरी पहिरे रहिथे। पात्र के मुताबिक पहिनावा बदलत रहिथे। साखी निपटे के बाद जनऊला पुछी के पुछा होथे। इही बीच गम्मत के हिसाब से नता-रिश्ता तय हो जथे। एक जोक्कड़ ह कहिथे (कस भइया भउजी ह दिख तनइ हे?) त दुसर जोक्कड़ ह हांक पार के- ”ए ओ.........आना ओ” कहि के बलाथे। भाखा ल ओरख के जनाना ह फूल कांच के लोटा ल बोही के गीत गावत आथे। जनाना गीद ह कृष्ण अऊ पति ऊपर जादा अधारित रथे-

 अई हो....................................

 नारी बर पति सेवा हे ओ दाई 

 नारी बर पति देवता हे न

 पुरुष मन बर लाखन देवता हे ओ दाई

 नारी बर पति देवता हे न......

फूल कांछ के लोटा ल मंच म मड़ा के परन ताल (गोल घुम के) म जब नाचथे ते सब देखते रहि जथे। आजादी के बाद चीनी गम्मत बहुत प्रसिद्धी पाय रीहिसें चीनी गम्मत ह राष्ट्रीय बिचार धारा ले मुड़सुद्धा नहाए रीहिस हे। येखर बाद मोसी दाई, चरन दास चोर कोमिक ह लोगन मन के हिरदे म बस गे। कोनो भी नाचा देवार गम्मत बिना अधुरा रहिथे। देवार गम्मत ल हांस्य गम्मत के रुप म जाने जाथे। देवार गम्मत म हांसत हांसत पेट फूल जथे। कट्ठल जबे। देवार गम्मत ल नाचा के आंखरी गम्मत के रुप म घलो जाने जाथे। आज जऊन स्थिति देवार मन के हे उही स्थिति नाचा म देवार देवार गम्मत के। जेहा नंदाय ल धर ले हे। सरांगी, गोदना अऊ सुरा के अटकर नइ लगय। नाचा पार्टी मन एक से एक गम्मत बनइस, देखइन, संदेश दिन फेर ओखर रचनाकार के नाव अभी तक कलमबद्ध नइ हो पाइस। बस नाचिन कुदीन अउ सिरागे। नाचा ल अब चाब-चाब के चीथ डरीस टी.वी. संस्कृति ह। दु अर्थी संवाद ह अलहन होत जात हे। येखर ले परहेज करे बर परही। तभे स्वस्थ मनोरंजन के रुप म नाचा के सेहत ह बने रही। अब छट्ठी बरही म डेड़ दू सौ म विडियो आ सकत हे त हजार दु हजार म नाचा करवाए के झंझट कोन उठाही। अतेक होय के बावजूद नाचा के अपन महत्व ह बरकरार हे।


पारकर

छत्तीसगढ़ी नाचा गम्मत के तीन मुड़का परी नजरिया जोक्कड़

 छत्तीसगढ़ी नाचा गम्मत के तीन मुड़का परी नजरिया जोक्कड़


       छत्तीसगढ़ के लोक मनरंजन मा नाचा के घातेच महत्तम हे।मनखे के तन अउ मन के थकास दुरिहाय बर एला बनाय गय रहिस। जब ले नाचा गम्मत चलत हे तब ले आज तक एखर देखइया के कमती नइ होइस भलुक अगरावत हे। नवा पीड़ी हा इही नाचा गम्मत ला युट्यूब मा देखथे, फेर कतको किसम के लोक मनरंजन के जिनिस टीवी, मोबाइल, इंटरनेट मा डटे रहे के पाछू नाचा गम्मत ला रतिहा अउ दिन मा घलो देखइया मन के भीड़ लग जाथे।

    छत्तीसगढ़ मा नाचा जेला नाच घलो कहे जाथे एहा बेरा बखत परब, तीज तिहार मा अलग अलग किसम होथे। बिहाव नाचा जेमा मैननाचा, डिड़वानाच, नक्टानाच, बरतिया नाच। छत्तीसगढ़िया तिहार बार मा सुवानाच, डंडानाच, पंथीनाच, गेड़ी नाच, कर्मा नाच, रिलो नाच अइसने कतको किसम के नाव गिनाय जा सकत हे। फेर इहाँ जेन नाचा गम्मत के गोठ करत हन ओहा गीत संगीत अउ गम्मत मिंझरा लोक मनरंजन के नाच आय।

    कहे जाथे छत्तीसगढ़िया नाचा गम्मत के शुरुआत खड़े साज नाचा ले होय रहिस।एमा नचइया गवइया बजइया सबो खड़े रहय। गम्मत मा हँसी मजाक करत धार्मिक, सामाजिक, समसामयिक कटाक्ष विषय ला लोगन के बीच रखे जाथे। नाचा रातभर होथे पहाय के पाछू बंद होथे।नाचा पार्टी हा रातभर मा कम से कम तीन गम्मत देखाथे।

         छत्तीसगढ़ मा नाचा गम्मत अइसे तो बच्छर भर होवत रहिथे। फेर गाँव के मड़ई, मेला, गणेश पक्ष, नवरात्रि, दशहरा, नवाखई, छट्ठी, बिहाव, गाँव बनई, जात्रा अइसने कतको मउका मा विशेष रुप से एखर कार्यक्रम रखे जाथे।आजकल चुनाव प्रचार मा घलो मा नाचा होथे, काबर कि एहा मनखे सकेले बर सबले बढ़िया अउ सस्ता उदिम होथे।

     छत्तीसगढ़िया नाचा गम्मत मा दू पक्ष होथे एक पक्ष बजनिया अउ नचनिया(परी) दूसर पक्ष गम्मत।गम्मत  जेला हास्य प्रहसन कहे जाथे।नाचा गम्मत पार्टी मा मनखे के संख्या निश्चित नइ रहय। कोनों नाच पार्टी मा कम कोनों मा आगर रहिथे। नचनिया पक्ष मा नारी के पाठ ला पुरुष मन करथे। अब नारी मन घलो नाचा मा अपन कला देखाय बर मंच मा आ गय हें। फिलिम के आय ले तो नारी मन पुरुष ला पाछू छोड़ दिन।

     नाचा मा अइसे तो सबो पात्र मन के महत्तम हवय फेर एमा तीन मुड़का पात्र होथे पहला परी, दूसरा नजरिया अउ तीसरा जोक्कड़। इही तीन पात्र मन नाचा गम्मत ला रातभर तीरथे अउ मनखे ला बइठाय बाँधे रखथे। देखइया मन के असुसी एक गम्मत मा पूरा नइ होय ता दूसरइया गम्मत ला देखथे।।          

       छत्तीसगढ़िया नाचा गम्मत के पहिली मुड़का पात्र हरय "परी"। परी हा चेलिक नारी पात्र हरय। नाचा मा पुरुष मन नारी के सवाँगा पहिर के निकलथे। जब बजनिया मन मंच मा बइठ जाथे पाछू परीमन मंच मा चढ़थे।परीमन सुमरनी करे के पाछू गाना गाथे अउ नाचथे। शायरी मार के चेलिक मन ला मोहथे। एमन ला देखाइया मनखे मन अपन पसंग के गाना मा नचवायबर नोट देखाके अउ सीटी बजाके नइते टार्च मारके अपन तीर बलाथे अउ पइसा देके अपन पसंग के गाना बताथे।देखइया के देय नोट ला मोंजरा कहे जाथे। परी हा मंच मा लहुटे के पाछू कहिथे - बड़ नीक लागिस मोला ..... बाबू के गोठ इया, बलाके दिस हे मोला दस रुपया के नोट इया, अउ काय किहिस हे---- ओखर बताय(गाना)। एक नाचा पार्टी मा परी के संख्या तीन ले चार होथे। इही मन गम्मत मा बेटी, बहू, बहिनी , फूफू, मोसी, सास जेठानी के पात्र मा आथे।

        छत्तीसगढ़िया नाचा गम्मत के दूसरइया मुड़का पात्र हरय "नजरिया"।एला जनाना घलो कहे जाथे। यहू नारी पात्र आवय।परी मन के नाच गाना के पाछू अउ गम्मत शुरु होय के पहिली नजरिया मंच मा आथे। मंच मा आय के पहिली मंच के थोकिन दुरिहा ले अउ देखइया मन के बीच ले "अई होहहहह" कहिके हाँका पारत अउ गाना के मुखड़ा ला गावत धीरलगहा मंच मा आथे।नजरिया हा अपन मुड़ी मा फूल काँच के लोटा बोहे रथे। निमगा छत्तीसगढ़नीन बिहाता नारी के सवांगा मा रहिथे। मांग मा सेंदुर, कनिहा तक झुलत बेनी मा फुंदरा, नरी  मा मंगलसूत्र सूंता नइते रुपिया माला, हाथ के अंगरी मा मुँदरी, नखपालिस, अँइठी के संग बाहभर चूरी, दूनो बाँह मा पहुँची, कनिहा मा करधन गोड़ मा साँटी लच्छा अउ गोड़ के अंगरी मा बिछिया सोला सिंगार करे रथे। मंच मा आय पाछू  दू तीन ठन गाना गाथे अउ नाचथे। नजरिया हा गम्मम मा सास , भउजी, काकी, मामी, दुखिया डोकरी जइसन बिहाता नइते राड़ी के पाठ करथे।

      छत्तीसगढ़िया नाचा गम्मत के तीसरइया मुड़का पात्र हरय "जोक्कड़"। नजरिया के मंच मा चढ़े अउ ओखर नाचा गाना के आखिरी बेरा मा जोक्कड़ मंच मा आथे। मंच मा दू जोक्कड़ एक संग आथे। देखाइया मन उँखर पहिरावा अउ रंगरूप ला देख के हाँस डारथे। नजरिया के गाना मा थोकिन नाचथे पाछू दूनो जोक्कड़ के गोठ बात हँसी मजाक होथे।दोहा, शायरी, जनउला पूछथे गोठियाथे। इँखर गोठ बात अउ हाथ गोड़ मुहू के कला ला देख के नाचा देखाइया मन पेट चपक के हाँसथे। लइका चेलिक मोटियारी बुढ़वा सियान सबो इँखर गोठ बात अउ हँसी मजाक मा दिनभर के थकास ला भुला जाथे।आधा आधा घंटा ले आगर इँखर हँसी मजाक चलथे पाछू गम्मत के विषय के पात्र मा एमन अपन रुप धरथे। एक जोक्कड़ हा बेटा, दूल्हा, अनपड़, भाई, चोर, डाकू जइसन पाठ करथे दूसर जोक्कड़ हा संगवारी, बाप , ढेड़हा, ममा, समधी, पुलिस, डाक्टर, सरपंच, जइसन पात्र के पाठ करथे।गम्मत मा अउ पात्र मन के पाठ मा बजनिया मन घलो संग देथे।

   सिनेमा,फिलिम,टीबी सीरियल, यूट्यूब, इंटरनेट के आय ले लोक मनरंजन के साधन अउ संख्या बाढ़े हे फेर गम्मतिहा ला संउहत देखे के सँउख मनखे मन ला आज घलो नाचा गम्मत के मंच तीर सकेल लेथे।


हीरालाल गुरुजी "समय"

छुरा, जिला- गरियाबंद

(छत्तीसगढ़)9575604169


गम्मत = हास्य प्रहसन, मुड़का = आधार स्तंभ, थकास = थकान, पहाय = सूर्योदय, बजनिया = संगीत में साथ देने वाले,आगर = अधिक, असुसी = संतुष्टि, हाँका =आवाज देना, बिहाता= व्याहता,

बसन्त पंचमी:-

 बसन्त पंचमी:-


        जम्मों ऋतु मन मा में बसंत ऋतु ला ऋतु मन के राजा माने जाथे एखर सेती एला ऋतुराज बसंत घलो कहिथे। 


          जाड़ के मौसम के बाद जब मार्च महिना आथे तब बसंत ऋतु के आगमन होथे। ये हा कड़ाके के ठण्ड ले राहत दिलाथे अउ ये मौसम मा न तो जादा ठण्ड होथे अउ न ही जादा गर्मी। ए ऋतु मा पेड़-पौधा मन मा नवा-नवा पाना - पतउवा आ जाथे, चारो कोती चिरई चुरगुन मन के मनमोहक आवाज सुनाई देथे। बसंत ऋतु मा प्रकृति के खूबसूरती बाढ़ जथे तेखर सेती एला जम्मों ऋतु मन के राजा कहे जाथे।


बंसत ऋतु के आगमन के दिन बंसत पंचमी के तिहार मनाए जाथे। बंसत पंचमी के दिन ज्ञान के देवी माता सरस्वती के जन्म दिवस घलो होथे। महाशिवरात्रि, होली, बैसाखी जइसे तिहार घलो इही ऋतु मा आथे अउ बड़े धूमधाम ले मनाए जाथे। बसंत ऋतु हा जम्मों प्राणी जगत मा एक नवा उर्जा के संचार घलो करथे अउ ये ऋतु हर सब ला पसंद हे।


    हमर देश मा फरवरी और मार्च महिना मा बसंत ऋतु हा आथे। बसंत ऋतु ला सब ऋतु मन के राजा या ऋतुराज बसंत घलो कहिथे। ये ऋतु के आय ले प्रकृति मा कई किसम के बदलाव देखे बर मिलथे। वृक्ष मन मा नवा पाना घलो आ जाथे  आमा के पेड़ मन मा बौर घलो लग जाथे, सरसों के खेत मन मा पींयर-पींयर सुग्घर फूल खिल उठथे। कोयली के कुहू-कुहू बोली बड़ सुग्घर लगथे। ये दिन मा आसमान एकदम साफ सुथरा दिखाई देथे अउ दिन मा चिरई चुरगुन सुग्घर उड़त दिखाई देथे अउ रात मा चंदा के चंदैनी मन घात सुग्घर दिखाई देथे।


   बसंत ऋतु के आय ले किसान मन के फसल घलो पके बर लग जथे। पेड़-पौधा जम्मों जीव-जंतु अउ मनुष्य ये मौसम मा जोश अउ उल्लास से भरे होथे। बसंत ऋतु बड़ सुग्घर सुहावना होथे। ये स्वास्थ्य बर घलो एक सुग्घर मौसम होथे काबर कि ये महिना मा वातावरण के तापमान सामान्य हो जथे। न जादा ठण्ड अउ न जादा गर्मी।


चारों कोती हरियाली छा जथे :- 


हरियाली कोन ला पसंद नइ हे अउ बसंत ऋतु तो एक अइसे ऋतु आय जउन खासतौर मा एखरे लिए जाने जाथे। ये मौसम मा रंग बिरंगा फूल प्रकृति के शोभा बढ़ाथे अउ हरा-भरा डार पान शाखा मन एक नवा जान भर देथे जेखर ले एखर सुंदरता सुग्घर बढ़ जाथे। ये मौसम मा चिरई मन खूब चहचहाथे, कोयली गुनगुनाथे अउ आसमान सुग्घर साफ सुथरा दिखाई देथे।


ये मौसम किसान मन बर बहुत उम्मीद ले भरे होथे काबर कि ये समय उँखर मन के फसल पके बर लग जथे अउ ओखर कटाई लुवाई के बेरा घलो हो जाथे। खेत मन मा लगे सरसो के फूल देखब मा बहुत सुंदर प्रतीत होथे। बाग- उपवन मन के सुघराई देखे के लायक होथे। पशु पक्षि मन बर बसंत अब्बड़ उपहार लेके आथे। इँखर मन बर पेड़ मन मा लगे हरियर हरियर पाना अउ स्वादिष्ट फल मन ला खाए के कतको विकल्प होथे। ये प्रकार वोमन ये मौसम के भरपूर आनन्द उठाथे।


सुहावना हो जाथे ये दिन :-


 हम सब  लोगन मन ला घलो ये बसंत ऋतु बहुत प्रिय होथे काबर कि शीत ऋतु के जाड़ भरे साँझ ला बिताय के बाद ये सुग्घर दिन आथे। अपन मन पसन्द हल्का कपड़ा पहन सकत हन अउ राहत भरे हवा के मजा उठा सकत हन। बसंत ऋतु के हर दिन सुग्घर सुहावना रहिथे, चारों कोती सुग्घराई दिखाई देथे। बाग बगीचा मन मा सुग्घर फूल खिल  के अपन पूर्ण आकार ले चुके होथे अउ ये दिन नवा उमंग ले भरे होथे।


     बसंत ऋतु हा कवि मन ला बड़ सुग्घर अनुभूति करथे जेखर ले प्रभावित होके वो मन एक ले बढ़के एक कविता मन के रचना करथे है। उँखर मस्तिष्क ये बखत जादा सृजनात्मक हो जथे काबर कि बसंत ऋतु के मौसम मा तन अउ मन दूनों ला बहुत सुग्घर अनुभूति होथे। जेखर ले दिमाग मा सुग्घर विचार मन के उत्पति होथे। 


एक रोला छंद देखव -


(बसंत बहार)-

देखौ छाय  बहार, आय  हे  गावत  गाना।

मन होगे खुश आज,देख के परसा पाना।।

फूले परसा  लाल, कोयली  बोलय  बानी।

गुरतुर लागे बोल,करौं का मँय अब रानी।।


एक जलहरण घनाक्षरी देखव -


(बसंत बहार)-

मन मोर  झुमें  नाचे, पड़की  परेवा बाचे,

लागथे  लगन  अब, शोर   बगराय बर।

परसा के फूल लाली,गोरी होगे मतवाली,

कुहके कोयलिया हा,जिवरा जलाय बर।।

आमा मउँर महके, जिवरा  घलो  बहके,

सरसो  पिँयर  सोहे, मन  ललचाय  बर।

हरियर     रुखराई,    चलतहे     पुरवाई,

आस ला बँधावत हे,मया ला जगाय बर।।


माता सरस्वती के जन्मदिन :- 


        बसंत ऋतु के बात हो अउ माता सरस्वती के सुरता न हो, बसंत पंचमी तो हम सब मनाथन काबर कि ये दिन माता सरस्वती के जन्म दिवस के रूप मा माने जाथे। जेला हर भारतीय एक पर्व के रूप मा मनाथे अउ विद्या के देवी माता सरस्वती ले स्वास्थ्य अउ अच्छा मस्तिष्क अउ ज्ञान के कामना करथे।


        ये दिन जघा-जघा  सरस्वती माता के मूर्ति घलो स्थापित करे जाथे। जेला बहुत ही पूरी आस्था के साथ सजाए जाथे अउ एखर 2 या 3 दिन बाद सुग्घर हर्ष अउ उल्लास ले लोगन मन के एक टोली नाचत कूदत गावत मूर्ति विसर्जन खातिर जाथे। ताकि माता अगले साल फिर आवय अउ हम सब ला आशीर्वाद देवय। बसंत पंचमी वाले दिन स्कूल अउ कॉलेज जवैया वाले विद्यार्थी मन पूरे भक्ति भाव ले माता सरस्वती के विशेष पूजा करथे ताकि माता सदैव उँखर ऊपर अपन कृपा दृष्टि बनाये रहै। ये दिन हिंदू धर्म मन बर बहुत महत्वपूर्ण होथे, पीला रंग सरस्वती माता के पसन्दीदा रंग आय एखर सेती बहुत से लोगन मन ये दिन पीला रंग के कपड़ा घलो धारण करथे।


       इही दिन होली के डाँड़ घलो गड़ाय जाथे। बसंत ऋतु मा होली के तिहार देश भर मा बड़ धूमधाम ले मनाय जाथे।



आलेख :-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

Saturday 21 January 2023

विषय - यूरोपीय देश के नामी-गिरामी विश्वविद्यालय हमर देश मा आये के बाद के परिकल्पना*

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*विषय - यूरोपीय देश के नामी-गिरामी विश्वविद्यालय हमर देश मा आये के बाद के परिकल्पना*




             ये विषय म कतको शंका -कुशंका के बादल मण्डराय के शुरू हो गय हे।का निजी क्षेत्र के रूप म उतरत, ये ग्लोबल -यूनिवर्सिटीज मन ,हमर भलाई करहीं कि 'बांध मोटरिया भये बिराना' के तर्ज म, हमर संसाधन मन ल सोख के अउ समोख के फिर अपन ठउर ले जाहीं ?

ये विषय म लंबा बहस किये जा सकत हे।फेर अइसन कनहुँ बहस के परिणाम हर 'एक्जिट पोल' के नतीजा बरोबर,लग गय तो लग गय नहीं त हमर का गिस,जइसन लोक व्यवहार ही सिद्ध होही। वास्तविक परिणाम तो भविष्य के गर्भ म छिपे रहिथे।हाँ, कुछ परिणाम हर पांच- परगट दिखत रहिथे। अइसन कुछ परिणाम बन के बारे म हमन कयास लगा सकत हावन-

1.येकर ले हमर देश म 'ब्रेन- ड्रेन' प्रतिभा पलायन के गति म बढ़ोतरी होही। बने पढ़ही तेहर बने जिए- खाए के शउक करही। बनेच कम अइसन चेतन भगत निकलहीं, जेमन बाहिर के दुनिया, बड़े पोस्ट के स्वाद चीख के वापिस फिर नून बासी खाए बर स्वदेश फिरहीं। मास्टर के घर म बाबू जनमिस,तब मास्टर हर सुरता बर , अँगना म चंदन के पेड़ रोपे रहिस। दुनों बाढिन।दउ हर पढ़त -फलांगत धुर्रा फ़ुतका ले मुक्त परदेश ल अपन ठिकाना बना लिस। वो तो अब ये अंगना, जेमें पहिली पग धरे रहिस। कूदिस दउडिस हे वोमे डस्ट भराय हे कहथे। फेर पेड़ तो अपन जगहा वोइच अँगना वोइच धुर्रा फ़ुतका म अड़े रहिस। 


2.देश के रुपया पइसा हर फेमा कानून के भी पालन करत आन जगहा जाही।


3.हमर स्थानीय अउ समग्र भारतीय संस्कृति के ऊपर आक्रमण होही। वोमन काबर हमर संस्कृति ल संरक्षण दिहीं?


4.शिक्षा तंत्र में जादा यांत्रिकता आ जाही। 'मनखे हर मनखे बर' के जगहा म 'मनखे हर रुपिया बर' ,ये गोठ हर जादा बलवान हो जाही।


5.हमर विकसित होवत स्वतंत्र चेतना के जगहा म ,विदेशी विश्विद्यालय मन अपन मनोराग अउ मनोरोग दुनों ल ,हमर लइका मन ऊपर थोपहीं।


          ये तो होइस विपक्ष विरोध के गोठ।फेर समर्थन बर घलव अतकिच तर्क घलव हे।


*रामनाथ साहू*


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विमर्श: यूरोपीय देश के नामी-गिरामी विश्वविद्यालय हमर देश माये के बाद के परिकल्पना*

 *विमर्श: यूरोपीय देश के नामी-गिरामी विश्वविद्यालय हमर देश माये के बाद के परिकल्पना*


पोखन लाल जायसवाल

      

       आज भूमंडलीकरण के प्रभाव सबो चारों डहन देखब म आवत हे। एक कोति पर्यावरण म तेजी ले होवत बदलाव सब के बुध ल हर ले हे, उहें सरी संसार ल संसो के गहिर सागर म चिभोर दे हे। दूसर कोति कोनो देश के आर्थिक रूप ले आत्मनिर्भरता एक-दूसर के सहयोग बिगन पटरी म नि चल सकय। सहयोग बर हाथ मिलाय म बड़ सावचेत रेहे के जरूरत हे। नइ ते आर्थिक मंदी के चलत मटियामेट होय के डर घलव हे। आत्मनिर्भरता के दिशा म आगू बढ़े बर समुचित शिक्षा के जरूरत ल अनदेखी नि करे जा सकय। सही शिक्षा विकास के डगर ल गढ़थे।

         एक समे रिहिस जब शिक्षा बर भारत के सिक्का जमे रिहिस। विदेश ले शिक्षार्थी मन इहाँ अध्ययन करे बर आवयँ। आज यूरोपीय देश के नामी-गिरामी विश्वविद्यालय के हमर देश म आय के आरो मिलत हे। एकर आये ले शिक्षा के स्वरूप म बदलाव होना तय हे। एकर ले इहाँ के आर्थिक, सामाजिक, साँस्कृतिक, शैक्षिक सबो क्षेत्र के दशा अउ दिशा दूनो म बदलाव घलव स्वाभाविक हे।

      ए विषय म जे मनखे, ते विचार हो सकथे। मोर विचार म यूरोपीय विश्वविद्यालय के आय ले सब ले बड़का खतरा इहाँ के संस्कृति ऊपर आही। भारत अनेकता म एकता के देश आय। ए एकता ल संस्कृति ह एक माला म पिरो के रखे हे। जब यूरोपीय विश्वविद्यालय रही, त वो ह इहाँ के संस्कृति बर काबर चेत करही। शिक्षा अउ साहित्य ले संस्कृति के बढ़ोतरी होथे। अपन पइसा लगा के भला ओमन इहाँ के संस्कृति ल काबर बढ़ावा दिहीं।

      मालदार मनखे मन अपन लइका ल आजो बाहिर भेज के कहूँ पढ़ा सकत हें, गरीबहा मनखे इहें के विश्वविद्यालय म ले दे के पढ़ावत हे, त गरीब ल का फायदा मिल पाही? बने होतिस इहें के विश्वविद्यालय ल स्तरीय बनाय के दिशा म विचार करे जाय। एकर पहिली अउ जरूरी हे कि स्कूली पढ़ई बर जरूरी जम्मो जोखा दुरुस्त हो जय। दूरांचल म घलव शिक्षा के अप्रोच बढ़ाय के उदिम होवय।

      शिक्षा के नाँव म अभियो विदेशी मुद्रा के रूप म पइसा खरचा होवत हे। फेर एकर सीमा कमती हे। विदेशी विश्वविद्यालय के खुले ले जम्मो बेवस्था (पठन संसाधन, खासकर मानवीय संसाधन) बर विदेश के मुँह ताके ल परही। विदेशी मुद्रा चाही। ओकर चकाचौंध के पाछू हमर विश्वविद्यालय के का हाल रही? एकरो विचार करे के जरूरत हे।

        इहाँ पढ़ लिख के निकले प्रतिभा ल पर्याप्त अवसर नि मिले ले पलायन के खतरा घलव बढ़ जही। जे आज घलव आगू खड़े एक समस्या आय। कतको प्रतिभा इहाँ ले पलायन कर चुके हें। इहाँ रहना नि चाहय।

     जरूरी हे कि प्रतिभा बर इहाँ अवसर बनाय जाय। पढ़ई म लागत के अनुरूप पगार दे सकन अइसन योजना होवय। 

        उच्च शिक्षा के नाँव म लगे पइसा कौड़ी ले मनखे मशीन बन जथे। पइसा च छापे के उदिम करथें।

       दूनो किसम के विश्वविद्यालय के रेहे ले समाज म वर्ग भेद बाढ़ जही। जे पारिवारिक महौल म कलहा पैदा कर सकत हे। 

         विदेशी विश्वविद्यालय ले वैश्विक मुकाबला करे म सुविधा जरूर होही। फेर एकर फायदा गिनती च के लोगन ल होना हे। अइसन म भारतीय समाज बर विदेशी विश्वविद्यालय हितकर कमती अउ विघ्ना डरइया जादती लगत हे।


पोखन लाल जायसवाल

(पठारीडीह) पलारी

जिला बलौदाबाजार

खाँड़ा गिरे कोहँड़ा म त कोंहँड़ा जाय , कोंहँड़ा गिरे खाँड़ा म त कोंहँड़ा जाय

 खाँड़ा गिरे कोहँड़ा म त कोंहँड़ा जाय , कोंहँड़ा गिरे खाँड़ा म त कोंहँड़ा जाय

 

           बहुत बछर पहिली के बात आय । अकबर के राज म चारों कोती सुख शांति के वातावरण रहय । एक दिन अकबर अऊ बीरबल हा राज के कामकाज ला देखे बर गाँव गाँव म किंजरे के योजना बनइन । अकबर के दरोगा मन कइसे काम काज करत हे । कन्हो कर्मचारी मन आम जनता ला सतावत पदोवत तो निये ...... इही सब बात ला अपन आँखी म देखे बर अकबर हा बीरबल संग हुलिया बदलके बिगन काकरो जानकारी के निकलगे । 

          एक ठिन गाँव के बाहिर म पहिली पड़ाव परिस । सांझकुन दुनों झिन गाँव किंदरे बर निकल गिन । गाँव के चौपाल म चौसर चलत रहय । सियान मन तास म माते रहय । ओमन अकबर बीरबल ला न बइठ किहीन न उठ ....... । दुनों झन गाँव के मनला निहारत रहय ...... तइसना म ....... क्षेत्र के दरोगा हा खड़दक खड़दक करत घोड़ा म अइस । उदुपले दरोगा ला देखके जम्मो झन सुकुरदुम होगे । दरोगा हा फड़ म गोड़ मढ़हा दिस । जम्मो खेलइया के खींसा ले एकेक पइसा गिन गिन के निकलवा लिस । अऊ तो अऊ जेमन खेल ला सिर्फ देखे बर खड़े रहय ....... तहू मनखे के पइसा म हांथ मार दिस । बहुत अनुनय बिनय हाथ पाँव जोरे के बाद भी गरीब के पइसा ला वापिस नइ करिस । येला देख अकबर अऊ बीरबल चुपके से निकले बर धरिस ...... । दरोगा के नजर परगे । ओकरो मन के खानातलासी होइस । थोर बहुत ओकरो मनके खींसा ले निकलगे । बीरबल पूछ पारिस – काबर अइसन वसूली करत हव ...... हमन जुँवा चित्ती थोरेन खेलत हन तेमा ....... कम से कम गरीब के पइसा ला वापिस कर देतेव दरोगा साहेब । बपरा मन दुवा देतिन । दरोगा हा बीरबल उपर भड़कगे अऊ एक सोंटा मारत किथे – तोर बाप के लागत हँव ...... तेमा अतेक मेहनत के कमाये पइसा ला वापिस करहूँ साले ......... । अकबर हा कुछ कहना चाहत रिहिस फेर बीरबल हा ओला चुप करा दिस ...... । 

          दूसर दिन ...... अकबर अऊ बीरबल हा दूसर गाँव गिस । मुंधियार कुन गाँव म एक झन बड़का दाऊ हा अपन परछी म हुक्का गुड़गुड़ावत बइठे रहय । बीड़ी पियत नौकर चाकर संग ऊँकर चरबत्ता चलत रहय । अकबर अऊ बीरबल घला ओकरे मन के पाछू म बइठगे । चार झिन मनखे संग उही क्षेत्र के दीवान हा पहुंचगे । दाउ हा दीवान साहेब के अबड़ आवभगत करिस । दाऊ हा धीरे से दीवान साहेब ला पूछथे – भितरि डहर जाबो का दीवान साहेब ...... ? दीवान किथे – का दाऊ ........ । तैं मोला छोटे मोटे आदमी समझथस का ..... ? लान इही तिर ...... कतका मोर हिस्सा बनत हे तेला ....... मेंहा बेर उज्जर मांगहूँ अऊ लेगहूँ घला ...... कोन्हो मना कर सकत हे का ...... ? कन्हो मोर बिगाड़ सकत हे का ....... ? बेरा होगे जल्दी जाना हे ...... दूसर जगा अऊ वसूली करना हे । काली परन दिन ले सरकारी वसूली के अभियान घला शुरू करना हे तेकर सेती समे निये ....... । दाऊ के हाथ ले हिस्सा पाके दीवान साहेब चुपचाप निकलगे । 

          अपन डेरा म पहुँचके अकबर किथे – बीरबल में सोंचे नइ रेहे हँव के , मोर कर्मचारी मन जनता के बीच अतेक आतंक मताके राखे हे । मेंहा अइसन मनला जरूर सजा देहूँ । वइसे बीरबल ..... तोला नइ लगे के दरोगा के निपटारा तो जनता खुदे कर सकत रिहिस हे ...... । आपस म मनोरंजन के नाव म चौसर तास खेलना कन्हो जुरुम थोरेन आय । ओमन काबर दरोगा ला पइसा ले से मना नइ करिस .... अऊ तो अऊ साले दरोगा हा गरीब तको के पइसा ला खींसा ले हेर के लेगे । कम से कम ओला तो रोक सकत रिहिन । बीरबल किथे – एकर उत्तर अऊ कभू देतेंव त नइ बनतिस राजा साहेब ...... ? अकबर किथे – ठीक हे भई समे के अगोरा रइहि ..... । फेर बड़े जिनीस दाऊ जे खुदे चार झिन दीवान पाल सकत हे तेहा काबर दीवान ला पइसा दिस होही ? ओ चाहतिस त अइसन अइसन कतको दीवान ला सत्ता से हटवा सकत हे ........ । बीरबल किथे – अभू सिर्फ देखत रहव राजा साहेब के , तुँहर राज म काये काये होवत हे ...... समे आही त येकरो उत्तर देहूँ ..... । 

          दू चार दिन घूमत किंजरत अकबर ला अपन कर्मचारी मनके असलियत पता चलगे । एक दिन अकबर अऊ बीरबल हा एक ठिन गाँव के बखरी के तिर म मुनगा रुख के तरी म कोहँड़ा बेंचत मनखे संग गोठियावत रहय । कोहँड़ा बेंचइया हा कोहँड़ा ला खचाखच काटके चानी चानी करके राखत रहय । कुछ बेर म अकबर हा खड़े खड़े थकगे । भुँइया म बइठ घला नइ सकत रहय । ओहा मुनगा रुख के डारा ला सहारा बर धर पारिस । रटहा डारा टुटगे । डारा उपर लटके नानुक कोंहँड़ा हा सीधा मरार के खाँड़ा म गिरके खच ले कटा के दू फाँकी चनागे । दुनों झन उहाँ ले चुपचाप खिसकना उचित समझिन । 

          जावत जावत अकबर किथे – अच्छा होइस । मरार ला घुस्सा नइ अइस । निही ते अपन खाँड़ा ला फेंक के हमी मनला मार देतिस तो उही तिर राम नाम सत हो जतिस बीरबल ....... । बीरबल किथे – हव सही बात आय राजा साहेब । तब तुँहर दुनों प्रश्न के उत्तर कोन सुनतिस राजा साहेब ... ? अकबर पूछथे - कोन से प्रश्न ? बीरबल किथे – ओ दिन के दुनों प्रश्न के उत्तर कोंहँड़ा हा दे दिस राजा साहेब । गाँव के मनखे मन दरोगा ला अवैध वसूली बर मना कर देतिस तब , मना करइया मन बहुत जादा नकसान म रहितिन । ओमन ला सार्वजनिक जुँवा खेले के जुरूम म जेल म डरवा देतिस ....... तेकर ले अच्छा चिटिक अकन देके बाँचगे । रिहीस बात दाऊ के ...... त वोहा जरूर वइसन कतको दीवान ला बांध के किंजर सकत हे फेर सत्ता हा सत्ता होथे ....... । ओहा तुँहर दीवान के बिरोध करही त कहूँ न कहूँ नकसान म दाऊ रइहि ....... दीवान निही ....... । दीवान हा तुँहर ले शिकायत करके दाऊ के टेक्स ला बढ़वा देतिस ...... तुँहर जांच अधिकारी मन येकर ले कतको जादा वसूल लेतिन । टेक्स चोरी के आरोप म बदनामी अलग अऊ सजा अलग पातिस दाऊ हा .... ।       

          बीरबल हा अकबर ला समझाये लगिस - जेकर हाथ म सत्ता के धार अऊ ताकत के मूठ होथे न राजा साहेब तेकर संग बिरोध करके का करही ...... खुदे नकसान म रइहि । सत्ता के धार हा काकरो उपर गिरके टुकड़ा टुकड़ा कर सकत हे ....... अऊ अपन उपर गिरइया के चानी चानी घला कर सकत हे ......... । मुनगा रुख तरी खड़े होके तहूँमन खुदे देख डरेव राजा साहेब - खाँड़ा गिरे कोहँड़ा म त कोंहँड़ा जाय , कोंहँड़ा गिरे खाँड़ा म त कोंहँड़ा जाय । 


          हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

नान्हें कहिनी- नम्बरी आदमी

 नान्हें कहिनी- नम्बरी आदमी


         " ये तोर फोटू ल  झन देखा बबा, तोर आधार नंबर  ल बता?"

         स्मार्ट कार्ड बनाये बर गे रहे बबा ल आफिस के बाबू ह् कहत रहय।

       "हे!नम्बर तो सुरता नइ ये गा। अब अतेक लंबा नम्बर हे। कोन ल सुरता रही? तोला  सुरता हे तो अधार नम्बर हा?"

          उल्टा  बबा ह बड़े बाबू  ल पूछ दिस। बाबू ह आँखि ल तरेर के देखिस अउ कहिस  ,"कालि आबे त अधार कार्ड ल धर के  लानबे  तभे तोर स्मार्ट कार्ड ह् बनही।"

         बबा ह मुड़ी ल गड़ियाय चुपे चाप घर वापिस आ गे।

       आज अधार कार्ड ल  धर के बबा ह् आफिस के बाबू तीर खुसी -खुसी खड़े  रहय।

      बाबू ह अधार कार्ड के नम्बर ल लिखिस  अउ कहिस,"तोर मोबाईल नम्बर ल बता?"

     अब बबा फेर अकबकागे। मोबाईल नबंर  ह् तो सुरता नइये बाबू साहेब।"

         बाबू कहिस अब ते मोला ये झन पुछबे 'तोला  तोर मोबाईल नम्बर सुरता हे का?' त मेँ कहूँ हाँ हवय ।"

       अइसने कहत  बाबू खुस होगे।

     बबा ह अपन मोबाईल नम्बर ल अपन नानकुन डायरी म खोजेल लागिस।

        ततकेच म बाबू पूछिस-"तोर घर के पता बतावव?"

        बबा कहिस-"अमली  के रुख तरी , डोंगरी पारा।"

          "अरे बबा, अइसने  पता म अब काम नइय चले। तोर घर के नम्बर बता ।तोर वार्ड के नंबर बता।"

           "ये ददा ,फेर नम्बर? अब आदमी कतेक नम्बर ल सुरता राखहि भगवान!" कहिके बाबा ह अचकचागे।

             डॉ.शैल चन्द्रा

             रावण भाठा, नगरी

              जिला-धमतरी

              छत्तीसगढ़

सम्प्रति

प्राचार्य

शासकीय उच्च  माध्यमिक विद्यालय टांगापानी

तहसील- नगरी

जिला- धमतरी

छत्तीसगढ़

खाँसी (नानकुन कहिनी)*

 *खाँसी (नानकुन कहिनी)* 


प्रोफेसर शर्मा आज प्रेक्टिकल परीक्षा लेहे बर हबर हें बगल के कॉलेज में। जइसे ही हबरीन गेट म त, बुढ़वा चौकीदार हाथ के इसारा करत किहिस-

"ओ..डहर साहब!.. .ओती मोटर खड़ा करे बर छाइहा (शेड) बने हे ...उहें लगा देवा" 

अतकेच गोठियाय म घलव चौकीदार खोख..खोख करत खांस दारिस।

प्रोफेसर शर्मा मनेमन  सोचिन -कि "आज तो स्वागत खाँसी ले होत हे..कोन  जानी.. दिन कईसे निकलही?"

      पूछत- पूछात प्रोफेसर शर्मा डिपार्टमेंट म पहुँचिन।

"अरे ! आव- आव सर ...आपेमन के डहर देखत बइठे हन।"

विभागाध्यक्ष प्रोफेसर टण्डन किहिन।

  "अरे मोला पहिली वाशरूम के जगा बताव सर..जल्दी- जल्दी म घर म मौका ए नी मिलिस।" प्रोफेसर शर्मा टण्डन सर मेर हलो- हाय करत किहिन।

प्रोफेसर टण्डन प्रोफेसर शर्मा ल समझा दिन -

"पहिली डेरी हाथ जाना हे सर ..फेर उहाँ ले सिद्धा दिख जाहि ...दीवार म लिखाय घलव हे - 'केवल स्टाफ हेतु'।"

    प्रोफेसर शर्मा वाशरूम डहर पहुँच के अकचका गे। उहाँ ले हाथ ल सुखात एकठन मेडम निकलत रहय। सोच म परगे.. कि अंदर जाय कि निहि ?

उहिं समे एक्ट स्टाफ के कोनो करमचारी खाँसत- खाँसत अंदर हमा गे। एकझन अउ आगे.... उहू खाँसत- खाँसत अंदर हमा गे।

  प्रोफेसर शर्मा विभाग म लहुट गे।समझे नी अइस ओला कि का करे?

"कईसे पांडे  जी ! ..आपमन के कॉलेज म जेन  देख त उही खाँसत हे भई!..सब ठीक तो हे...।" 

प्रोफेसर पांडे पहिली तो समझे नी पइन। फेर ...जब समझ म अइस त ठठा के हाँसत- हाँसत किहिन -

"अरे ..! डरावव झन सर....कहूँ ल कोरोना - वोरोना नी होय हे । एकठन वाशरूम हे न स्टाफ बर... एकरे कारण जेन भी अंदर जाथे ...वो सचेत करे बर खांस देथे....जइसे पहिली घर म नावा बोहासिन आय त सियान मन खाँस - खंखार के भीतर हमांय न .. बस ओइसने।"

   प्रोफेसर शर्मा घलव ठठा के हांस दारिस । 

      उहू हबरे हे वाशरूम के मुहटा म एदे ...अउ अभिनय करत हें खांसे के -

"खोख ..खोख..खँव....!


डॉ. सी.एल. साहू

शिवा रेसिडेंसी, रायपुर

बिलासा : अरपा के बेटी* (छत्तीसगढ़ी लघु नाटिका)

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*बीरता, बहादुरी अउ सुंदरता के दूसर नांव - बिलासा*-


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             *बिलासा :अरपा के बेटी*

          

            (छत्तीसगढ़ी लघु नाटिका)



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पात्र -


परसू -लगरा गांव के एकझन केंवटा जवान (बिलासा के ददा)


विशाखा - परसू के सुआरी बिलासा के महतारी


बंशी - बिलासा के गोंसान


कल्याण साय - रतन पुर के कल्चुरी राजा 


      अउ आन आन।  


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                  *पूर्व पीठिका*


                जय गौरी गजानन

                जय शारदा भवानी

  

नेपथ्य म सुत्रधार -झन समझव छत्तीसगढ़ के ये माटी लल निच्चट सोझवा। इहाँ घलव नदिया मन म गहिल दहरा हे, तब डोंगरी के ऊंच पहरा भी हे।समतल मैदान हे तब कठर्री  वन- डोंगरी घलव भी हे। निच्चट गउ- गंगा असन कौशल्या- सगरी जगत म पूजा पवईया राम के महतारी हे, तब हुंकार भरत गरजत परम् विरांगना बिलासा सुंदरी घलव हे। आवव आज वोई सुंदरता- बीरता- बुध- अकिल अउ हिम्मत के भंडार  बिलासा ल थोरकुन सुरता कर ली,जउन हर छत्तीसगढ़ी के नारी रतन ये।जउन हर छत्तीसगढ़ के न्यायधानी बिलासपुर के आदि महतारी ये।जउन हर अपन स्वाभिमान- आन -बान अउ शान बर अपन जीवन ल होम चढ़ा दिस।


नारी स्वर -


मंय बिलासा अंव। मंय अरपा के बेटी, अउ बिलासपुर के महतारी अंव। मंय छत्तीसगढ़ के चिन्हारी अंव...

    

                           *गीत*


                    तँय बने देय दाता 

                    मोला भेंट उपहार... ।


            घाम          कस    उज्जर मोर 

            हाथ      गोड़      सबो     अंगा

            लाली होंठ     हावे वोकर संगा

            करिया        चुंदी नयन रतनारे

            देख मोला दई ददा दुख बिसारे

            नहीं काकरो से मोर बैर व्यवहार।



          मैना मंजूरनी मंय नइये काकरो पहरा

          चाल म मोर    मचले अरपा के लहरा

          बहाँ भुजा मोर सरई के गोल   पेड़वा

          हांसी मोर जइसे     छलकत हे नरवा

          हिम्मत बुद्धि अंव सबके मया दुलार।

          

                   तँय      बने देय दाता 

                   मोला भेंट उपहार... ।


           मंय बिलासा अंव....


*** 


                        *दृश्य-1*

                        ---------------


ठउर - परसू केंवटा अउ वोकर सुआरी विशाखा के कुंदरा।


परसू -विशाखा !


विशाखा - हाँ जोहीं ! का कहत हव?


परसू - चल हमन कनहुँ आन जगहा म जाके बसबो।


विशाखा(अचंभा करत) - वो काबर ओ...? भले ही ये जगहा हर मोर जनम भूमि नई होइस,फेर तुँहर तो आय न।


परसू-कहत तो ठीक हस। जनम भूमि ल तियागे के काम तो नइये।फेर ये जगहा म हमरेच मनखे हमरेच कुटुंब कबीला मन भर बोजाइन न।अब हमन बर सबो जिनिस हर कम परत जात हे...


विशाखा - कहत तो तूं सोलह आना सच हव।


परसू -येकरे बर तो मंय कहत हंव...चल हमन कनहुँ आन जगहा चली जिये खाये बर।


विशाखा - फेर कहाँ जइबो ?


परसू -अरे हमन तो ठहरेंन जलछत्री मछी कोतरी धरने वाला। किसान के खेत ये खार विंयार तब हमन के खेत ये अरपा महतारी के अथाहा जल हर। हमन जाबो तब भी अपन ये जलदेवती महतारी अरपा ल छोड के कनहुँ आन नई जान।


विशाखा (हाँसत) - ठीक कहत हवा।


                 परदा गिरथे


***




                    *दृश्य 2*


(अरपा नदी के खंड़ म बने एकठन कुंदरा)


परसू (हाँसत)- देखे बिशाखा  !हमर देखा- हिजगा कतेक न कतेक झन मनखे कतेक न कतेक परिवार ये जगहा  म आ ठुला गिन न।ये  दूसर लगरा गांव बन गय।


बिशाखा (विसनहेच हाँसत )- मोला तो बने लागिस हे।अपन गांव घर ल छोड़े के दुख हर अब नई जनात ये। ये सब मन के आय ले अइसन लागत हे, जइसन अपन जुन्ना च गांव म हावन।


परसू - वो तो ठीक हे फिर...


बिशाखा -त एमे अउ का फिर,बबा ? सब अपन बहाँ भुजा के कमई ल खाहीं।हाँ...सुख दुख म जरूर सँग दिहीं।


परसू -वो तो हे। वोहर जानब बात ये। अभी मोइच ल देख न । जब ले येमन आईंन हें, मंय तोला एकेझन छोड़ के नदिया म उतर जांथव बेधड़क।तोर अइसन दिन पुरताही अवस्था म,मोला एको फिकर नई रहे। अतेक झन म कनहुँ न कनहुँ रहहीं आरो- गारो लेय शोर -संदेशा बजाय बर।


बिशाखा(हाँसत) -अउ मोला अब एको डर नई लागे।नहीं त पहिली दुइक दुवा आये रहेन।तब मोला विक्कट डर लागे।


परसू (हाँसत)- फेर अब तो दुइक- दुवा कहाँ बांचबो। अब तो दु ल तीन चार होवत जाबो।


बिशाखा (लजात )- फेर येती तो हुर्रा अउ खेखल्ली मन के भरमार ये। देखत रहिथों न कईसन रात भर खे खे खे खे हाँसत रहिथें वोमन।


      ( नेपथ्य म कोलिहा हुर्रा लकड़बग्घा अउ आन जंगली जानवर  मन के आवाज आवत रहिथे।)


परसू -अरे येहर तो वो जनाउर के आवाज ये।ये कोती हुर्रा लकड़बग्घा मन के तो भरमार ये।सार चेत रहे बर लागही।


(अचानक बिशाखा के मुख मुद्रा बदल जाथे। वोहर पेट ल धर के बइठ जाथे।)


परसू (हड़बड़ात) -लागत हे येकर दुखान- पीरा उबक आइस। जात हंव कनहुँ नारी परानी ल येकर संग देय बर बला लानहां,तभे तो बनही।


      (परसू जाथे फेर तुरन्त एक झन आन मई लोग के संग म प्रवेश करथे)


अवइया नारी -परसू दउ !तूँ थोरकुन बाहिर बईठा। भीतर मंय देख लेवत हंव।


परसू (हाथ जोरत )-हाँ, भौजी !


  (  परसू बाहिर निकल आथे। वो एक घरी ल एती वोती किंजरथे। तभे भीतर कोती लइका रोय के अवाज आथे। बड़खा भौजी नवजात लइका ल ओनहा म लपेट के निकलथे।)


बड़खा भौजी -परसू दउ !नोनी ये। पहिलात ये। पहिली नोनी होवई हर सदाकाल शुभ मंगल आय। नोनी होये ले ददा हर पुरखा मन के करजा ले,धरती माई के करजा ले छुटकारा पा जाथे।फेर ये लइका हर देखा तो कईसन अगास के बिजली कईना असन दिखत हे। अइसन कईना हर ही कंस राजा के हाथ ल छूट के अकास म बरिस होही। येकर नांव बिजली नहीं...नही... बिजली असन सुंदर नांव  बिशाखा के बेटी बिलासा धरबो।


परसू (हाथ जोड़ के )- जोहार हे भउजी जोहार हे! बिशाखा ल पार लगा देया। अउ...अउ सुंदर नांव घलव धर देया... बिशाखा के बेटी बिलासा! (लइका ल ओझियात ) बिलासा !ये बिलासा... बिलासा मोर बेटी!


      (परसू लइका ल अपन हाथ म लेके चुम लेथे।)



                परदा गिरथे


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                      *दृश्य 3*


(अरपा नदी के तीर के मैदान।बहुत अकन लइका मन खेलकूद म मगन हें। सुघ्घर बिलासा नोनी घलव खेले के नांव म उहाँ जाथे।)


चंपा -ये आ गय बिलासा ?


बिलासा - हाँ चंपा !


चंपा - आ ये दे  कईंचा बालू ले घरगुंदिया बनाबो।फिर नोनी बाबू के बिहाव के खेल खेलबो। मंय बाबू के ददा बनहां अउ तँय नोनी के दई।


बिलासा - खेलबो तो सही। फेर मंय दउ के ददा बनहां, तभे खेलबो।


चंपा - चल ठीक हे।फेर तँय आ !मोला तोर संग म खेले के बड़ मन करथे।


      (दुनों के दुनों खेले लग जाथें।तभे तीर म गुल्ली -डंडा खेलत टूरा मन के किलबोल हर बड़ जोर ले सुनाथे। बिलासा वो कोती ल खड़ा होके देखथे।तब फिर वोहर अपन घरगुंदिया ल एक लात मार के फोर देथे अउ वोकरा ले भाग पराथे।)


चंपा - ये... !ये बिलासा...कइसे करत हस?अभी तो दूल्हा के मउर नई पउरछाय ये।भाँवर नई  परे ये। दूल्हा -दुलहिन बइठे नइये।आ...! आ...!


बिलासा -तँय एके झन खेल !मोला ये बार बिहाव वाला खेल मा मन नई लागत ये।मंय तो जावत हंव टूरा मन संग गुल्ली खेलहां।


चंपा(आंखी बटेरत)- ये दई !तँय टूरा मन असन गुल्ली खेलबे। का तँय टूरा अस।


बिलासा -हाँ, मंय टूरा अंव।


     (हाँसत बिलासा चंपा तीर ले भाग जाथे अउ टूरा मन के तीर म जाके डमरू के हाथ ले डंडा ल लुटके गुल्ली के ऊपर रटाक...ले चला देथे ।तभे टूरा मन के दुनों दल तीरा- घिंचा होथें)


डमरू (खुश होवत)-–आ गय बिलासा ! हमर कोती रहही।वोकर बलदा ये साखी लाल ल तोर कोती ले ले बदलू।


बदलू -नहीं ...!नहीं...! बिलासा हर अकेल्ला जितवा देथे।येहर इचक दुचक गुल्ली उचका के फोरथे तब पांच ले कम तो कभु आबे नई करे।येहर हमर कोती रहही।


डमरू - नहीं ...नहीं। येहर हमर कोती रहही।


बदलू -अरे नहीं।


डमरू -पहिली मंय कहे हंव।


बिलासा -अरे लड़व झन न!मंय खड़ मुरदुंग जावत हंव। तुमन हाथ तय कर लेवा।


बदलू -ठीक हे।


डमरू -चल ठीक हे। फेर गुल्ली के बाद डुडुवा कबड्डी खेलबो तब येहर मोर कोती रहही हाँ !


बिलासा (कंझात)-हाँ...! चल पहिली गुल्ली तो शुरू कर !


             परदा गिर जाथे।


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                      *दृश्य 4*


    (रात के समे ये। अंजोरी तेरस के चंदा उये हे।जवाली नाला के तीर म बसे अपन घर म  ददा परसू अउ दई बिशाखा के मंझ म बिलासा बइठे हे। )


बिशाखा -बिलासा के ददा !


परसू -हाँ,का कहत हस?


बिशाखा- देखत हव ,ये लइका के हाथ -गोड़ ल ! 


परसू -का हो गिस?लाख म निमरा हे मोर बेटी हर।


बिशाखा - येई हर तो मरना आय।


परसू -अरे का हो गिस, बने फरिया के बता ? तब समझ आही, तोर गोठ हर।


बिशाखा -  नई देखत हव, येकर बहाँ -भुजा ल,कइसे बाबू लइका मन कस दिखत हे। बहाँ म पइनहा मछरी हर तउरत दिखथे, जब येहर बहाँ मन ल एती वोती करथे तब।


परसू (खुश होवत)- तब तो कहत हंव। मोर बेटी लाख म एक हे।अउ वोहर मोर म गय हे।


बिशाखा - अउ होही काबर नहीं। दिन- रात टूरा मन संग खेलत कूदत हे।अउ येकर खेल...दई ...दई !काल तो येहर लउठी चालत रहिस। बने पोठ सटका हर पान बरोबर येकर हाथ म उड़ियात रहिस।


परसू -अउ अउ का...?बस अतकिच देखे हस। वो घोड़ा ल बेशरम गोजी के लगाम खवा के सुध्दा भर कुदा थे,वोला तँय नई देखे अस काय।


बिशाखा (खुश होवत) - तूँ नई देखे आ। टूरा मन ल धर के दलाक दलाक कचारत रहिथे पटकी धरा खेलत तउन ल।


परसू -मंय सब ल देखे हंव,बिशाखा !


बिशाखा (चिंता करत)-फेर अइसन हर अच्छा तो नोंहे। येकर बर कोन सगा पहुना आही?सुनही तउन हर दु हाथ धुरिहा घुच जाही।


परसू -तँय वोला छोड़ !वोला तो विधाता जानही...


      (परसू के गोठ पूरे नई पाय रहिस हे कि परोस कोती ल एकझन नारी कंठ ले किल्ली- गोहार  सुनाथे...कुदव रे !कुदव ग बबा हो !मोर सुतत लइका ल हुर्रा हर उठा के ले जात हे वह दे...! बिलासा येला सुनके अपन महतारी- बाप करा ले छूट के, एक ठन सटका ल धर के वो हुर्रा के दिशा म  सरनटात छुटथे।अउ कूदत जाके वोला छेंक डारथे। वो हुर्रा ल डंडा म पीटत लइका ल छोड़ा लेथे।  )


बिलासा -ले बदली काकी !तोर लइका ल।


बदली -जुग जुग जिवव मोर बेटी ! आज तूँ नई रहथा तब तो मोर बर अँधियार हो गय रहिस।


बिलासा (हाँसत )- काकी ये तो चंदा चंदैनी के जश ये। अंजोर रहिस तब छेंक डारें हुर्रा ल।अँधियारी रहिथिस तब कोन जानी का होय रहिथिस।


बिशाखा - ये बेटी, तोर माढ़ी -कोहनी हर छोला गय हे...!


बिलासा (हाँसत) - छोलान दे वोतका तो छोलातेच रहिथे।


बिशाखा (अपन आप म)-येहर छोकरी ये कि छोकरा?फेर छोकरा मन घलव कहाँ करे सकत हें येकर बरोबरी येकर असन बुता मन ल।


                 परदा गिर जाथे


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                    दृश्य- 5


( बिलासा  एक पइत फेर टुरा मन संग खेल म माते हे।फेर ये पइत के खेल हर कुश्ती पटकी -धरा ये। बिलासा हर दांव पेंच लगात हे।एक एक करके वोहर दु तीन झन ल चित्त कर देय हे।)


बिलासा - आ बंशी !अब तोर बारी ये।


         (बंशी हाँसत आगु आ जाथे। बिलासा दांव आजमाथे फेर हाँसत बंशी के पार पा जांहाँ अइसन नई लागे वोला। बिलासा के चेहरा म थोरकुन तनाव  अउ दुख के भाव दिखथें। तब हाँसत बंशी सहज सरल दांव म पट्ट ल  चित्त पर जाथे अउ बिलासा ले हार जाथे।तभे घर कोती ल बिलासा के महतारी बिशाखा वोला हाँका पारत बलाथे।बिलासा अखरा डाँड़ ल छोड़ के महतारी के संग आ जाथे।)


बिशाखा (थोरकुन रिस म)- तोला कै न कै पइत मंय बरज डारें न ।अइसन कुचरई- पटकई के खेल झन खेल  कहत।फेर तोर बर का ये न का। बेटी अब तँय सज्ञान हो गय हस। पथरा ढेला कस तोर शरीर हर दिखत हे।अउ पटकी धरा के खेल, वोहू ल टूरा मन करा ।


बिशाखा (हाँसत)-कुछु नई होय दई ! सब हर खेल -खेलवारी ये।फेर आज मोर  जीवरा हर थीर नइये...


बिशाखा -वो काबर ओ ?


बिलासा - बंशी हर मोला आज फिर जितवा दिस अपन खुद हार के।


बिलासा -  बंशी...!मोपका कोती ले आये  जगेसर निषाद के पूत ।फेर तोर ले अउ सुंदर ओ बिलासा ! पुनिया वोकर महतारी।हमन सखी बदबो कहत  रहेन।


बिलासा (अपन म )- हाँ दई !बंशी हर मोर ले अउ सुंदर हे।अउ वोकर ताकत घलव मोर ले कतेक न कतेक जादा हे।फेर हाँसत मोर ले हार जाथे अउ मोला जितवा देथे। यही तो मरना आय। सत- ईमान ले खेलबो तब बंशी हर ही मोला हराय सकही। कनहुँ मोला हराय नई सकें...बंशी ल छोड़ के।


बिशाखा - मंय तो आनेच गुनथंव जब भी बंशी ल देखथंव तब।


        (परदा गिर जाथे।)



                    दृश्य 6


(बिलासा बाढ़े नदिया नदिया म असनान करे जावत हे। तीर म बंशी हर अपन धुन म मगन, बांस बजात भईंस चरात हे।)


                 नदिया   गहरी रे

                  पूरा         पहरी

                  देख   ले   नोनी

                  पानी कहाँ ठहरी।


                  जाम के लोर  म

                  कदम्ब नई फरे रे

                  तोरे हाँसी ले ये

                  हीरा लरी झरे रे।


(बिलासा वोकर गीत अउ बांस ल एक घरी खड़ा होके सुनाथे। फेर बंशी के ध्यान वोकर कोती नई जाय।तब बिलासा मुचमुचात नदी घाट कोती बढ़ जाथे।)


बिलासा - ओहो !अरपा रानी के तो आज गजब के ठाठ हे।दुनों पाट ल चपकिच डारे हे।

अउ येमा ये रंग- रंग के जिनिस मन बोहात जात हें।


    ( बिलासा स्नान करे बर लग जाथे तभे वोकर आगु थोरकुन बनेच गहिल अउ तेज धार म एकठन विचितर फेर बहुत ही सुघ्घर लाल फूल हर बोहात जात रहिथे।बिलासा वोला नजर भर देखथे अउ वोला पाय के मन म इच्छा पोस लेथे। अब तो वोहर वो बोहात फूल ल पाये बर नदिया म झँपा जाथे।फूल हर हाथ तो आथें फिर बिलासा हर बुड़ा उबका हो जाथे।वोला लगथे कनहुँ वोकर सहाय नई होहीं तब अरपा म वो समा जाही।तब वो बल भरके हाँक पारथे।)


बिलासा - बंशी...!!!


(बंशी बिलासा के हाँका ल एके पइत म  सुन डारथे अउ आवाज ल चिन्ह के वो आवाज कोती कूदथे। तब तक ल बिलासा हर पानी भीतर हो जाय रहिथे फेर वो फूल के संग म हाथ भर हर ऊपर दिखत रहिथे। बंशी सब समझ के पानी म कूद देथे अउ बिलासा के तीर जाके वोकर चुंदी ल धर डारथे ।अब वोला तीर म लांन के अलगा के लानथे। फेर ये बुता म वो विचित्र लाल फूल हर अछोप हो जाय रहिथे।)


बंशी -बिलासा !बिलासा !!


बिलासा -हाँ बंशी !तँय मोला आज बचाय हावस।तँय नई आय रहिथे तब तो ये अरपा हर मोला लीलते रहिस।फेर मोर वो फूल कहाँ हे...?


बंशी (चकरात )- फूल...? तोर फूल तो बोहा गय।


बिलासा - मोर फूल नई बोहाय ये।वोहर मोर अंतस म समा गय हे अउ वोकर महमहाई हर अभी ले ये जगहा म हे।


बंशी(हाँसत)- वाह ! 


बिलासा (गंभीर स्वर म )- बंशी !


बंशी - हाँ !


बिलासा - मोर ये नावा जनम ये।अउ येहर तोर देय दक्षिणा आय। तँय मोला अंग लगाय तब मंय बाँचे हंव।अब तँय मोला सब दिन बर अपन अंग म लगा ले।


      (बिलासा तरी मुड़ कर लेथे अउ बंशी एक पांव पीछू घुच जाथे।)


बंशी -बिलासा ! मंय अइसन कुछु नई सोंचे अंव।फेर तँय कहत हस तब मोला घलव मंजूर हे।फेर तोर मोर दाई ददा मन घलव मान जतिन तब ये अरपा महतारी के बड़ दया होतिस।


बिलासा(खुश होवत )-मानहीं !सबो मानहीं। अब मंय समझें ये अरपा महतारी हर मोला तोर से मिलाय बर अइसन भेवा रचे रहिस। मोर हाथ गोड़ ल कनहुँ तीरत मोला विवश कर देत रहिस। नहीं त मंय येकर ये खंड़ ले वो खंड़ अभी नहाक के बता देत हंव।


बंशी -नहीं ...! नहीं... ! तँय एती आ! 


 (बंशी मांग के बिलासा के हाथ ल धर लेथे। बिलासा के कंठ ले गीत हर फुट परथे-


                     गीत

                 

ये भव सागर के लहरा ले


जिनगी  पार लगा दे नैया 


पार लगादे        मोर नैया


मोर पींयर              सैया


पार लगा दे       मोर नैया


मोर      पींयर        सैंया ।



एक     हाथ तोर नांव गोदायें


दूसर             म     तोर गांव


तीसर चउथा होथिस त राजा


छापथें       दुनों पांव हो सैंया


पार लगा दे...



पींयर     पींयर धोती कुरता


पींयर    हावे         उरमाल 


पींयर पींयर फूल के मंझ म


चिलके हे दुनों गाल हो सैंया


पार लगा दे...



राजा रानी महल अटारी


कै            पैसा के मोल


सोन तराजू तउले लाइक


मया के दू  बोल हो सैया


पार लगा दे...



मया।      के मंधुरस छाता


चुही         चुही        जाय 


डर     मोला     लागे सैंया


व्याधा। झनि आय हो सैंया


पार लगा दे...



               परदा गिर जाथे।



***




                       दृश्य 7


( रतनपुर राज म अरपा खंड़ के कटकट  कठर्री डोंगरी भीतर म बिलासा अउ बंशी ,दुनों जोड़ी- जांवर आये हांवे। बंशी हर अपन भईंस  -भैंसा मन ल चरात हे। बीच बीच म ,जब मन म तरंग आथे,तब वोहर अपन बंसरी ले बड़ मीठ मीठ  धुन निकालत रहिथे। बिलासा हर अपन टुकनी म चार चिरौंजी ल संकेलत हे) 


बिलासा -  अब घर फिरे के बेरा हो गय। चला अब ये जनाउर मन ल संकेला।


बंशी -मंय तोला हजार पइत कह डारे न । हमन दुइक दुवा रहिबो तब तँय मोर नांव लेके बलाबे हाँका पारबे,फेर तोर बर का ये  न का।


बिलासा - वोकर पहिली मंय फिर दहरा म डूब नई मरहां न।फेर एकठन गोठ मंय पुछंव ?


बंशी -वो का जी...?


बिलासा -हमन रोज ये बन डोंगरी कोती आथन फेर अतेक आड़ हथियार धरके।ये सब ख़ईता ये।येमन कभु काम नई आंय। तुंहर ये चिलकत भाला हर तो अउ निमगा बोझा च आय।


बंशी -अइसन नई कहें बिलासा !कोन जनी का हर कब काम पर जाय...


     (बंशी के गोठ पूरे नई पाय रहे कि थोरकुन धुरिहा म बघवा के  दहाड़ सुनाई परथे। संग म घोड़ा के हिनहिनाय के आवाज के संग , वोकर टाप के आवाज घलव  वोमन के नजदीक कोती आत  सुनई परथे। देखते देखत घोड़ा म चढ़े  राजा राठी मन कस बाना वाला घुड़सवार हर परगट हो जाथे। वोकर पीछू पीछू बघवा हर घलव दहाड़त आत दिखथें। बिलासा हर ये सब देख के समझ जाथे कि घुड़सवार उपर बघवा हर चढ़ बइठत हे।वोकर जान खतरा म हे। बिलासा अपन मुड़ के चार के टुकनी ल फेंक देथे अउ बंशी के हाथ ले वोई भाला ल लेके निशाना साध के बघवा ऊपर बने पोठ बल लगा के फ़ेंकथे। वोकर अचूक निशाना सीधा बघवा के करेजा म जा के गड़ जाथे। बघवा घुड़मुड़ी खाके  वोइच करा गिरथे अउ चित हो जाथे। फेर ये सब ल देखत वो घुड़सवार के आंखी अचंभा म बटरा जाथे)


घुड़सवार -शाबाश नोनी ! आज तँय मोर जान बचाय। तोर बहुत बहुत जश होय।


बंशी - आप...आप कोन अव। पिंधना- ओढ़ना हर हमर बनगींहा मन असन नईये। कनहुँ बड़े मनखे होवा,अइसन लागथे।


घुड़सवार - मंय कनहुँ रहंव।अभी तो मोर जीवन हर ये अतेक बलखरही अउ बीर ये नोनी के जीवनदान देय जिनिस आय।


बंशी -अतका हर तो येकर खेल खेलवारी ये।


बिलासा (हाँसत)- अउ ये खेल खेलवारी बर ये मोर गुरु  होइन।


घुड़सवार (थोरकुन उदास होवत) -अब मंय तोला का भेंट देंव नोनी।


बिलासा अउ बंशी (एके स्वर म )- कुछु नहीं !कुछु नहीं...! 


घुड़सवार(थोरकुन गुनत) - तुमन रतन पुर ल जाँनथा न...?


बंशी (हाँसत )- महाराजा कल्याण साय के शहर रतन पुर !रईया रतन पुर...!


घुड़सवार -तब बस दाउ !मंय वोइच कल्याण साय अंव। 


बंशी अउ बिलासा (एके संग  )- महराज  !


 राजा कल्याण साय -  हाँ, मंय हर ही राजा कल्याण साय अंव। शिकार खेले आए रहें। वन बीच म रस्ता भटक गंय। मोर संग -संगवारी सिपाही मन कोन जानी कोन कोती छूट गय हें।  मंय अकेला डहर खोजत येती आवत रहंय अउ ये बघवा हर घात लगा के मोर ऊपर कूद देय रहिस। तब पहिली मोर ये घोड़ा अउ दूसर म तुमन मोर जान बचाय हावा।


बंशी (प्रणाम करत) -आप महाराज अव आपके  जयजयकार हे।आप महाराज नई भी रहतव तब ले भी आपमन के वोइच सेवा होतिस। आपमन ल बनेच चोट लगे हे।येकर ददा बड़ गुनिक बईद हें। चलव आप मन के वहीं सेवा जतन होही।


राजा कल्याण साय - मंय तुमन के संग तुँहर घर  पहुँनई करे जांहाँ,फेर तुमन ल मोला अमराय बर मोर घर रतनपुर तक जाय बर लागही।


बिलासा - जाबो महराज जरूर जाबो।पहिली तो आप अभी हमर छितका कुरिया के पहुनई करव।


राजा कल्याण साय - चलव !



             परदा गिरता हे।



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                        दृश्य 8


        (रतनपुर म राजा कल्याण साय के दरबार सजे हे। राजा कल्याण साय अपन सिंहासन म बईठे  हें । वोकर जेवनी हाथ 

 कोती बिलासा अउ बंसी बईठे  हें। महामंत्री हर महाराजा कल्याण साय ल जोहारत, दरबार शुरू करे  के हुकुम मांगथे।)


राजा कल्याण साय-  आज के हमार दरबार म पधारे- बईठे हमर खास पहुना बिलासा अउ वोकर गोंसान बंसी के  मैं स्वागत करत हंव। अउ बहुत ही भावना के साथ मैं सब झन ला बतावत हंव कि ये सब ल बोले बर  मैं जिंदा हंव  त वोहर हे ये दुनों जांवर- जोड़ी के दया ये। वो दिन जब मंय डोंगरी म भटक गय रहें तब मोर ऊपर बघवा हर झपट परे रहिस, तब ये बहादुर नोनी बिलासा हर एक भाला म वोला चित्त कर दिस। नहीं त मंय वो बाघ के ग्रास बन गय रहें।


महामंत्री -जोहार हे !जोहार हे हमर राजा के प्राण बचईया बर लाख लाख जोहार हे।


सबो सभासद (खड़ा होके) - जोहार हे !जोहार हे!


(बिलासा अउ बंशी दुनों खड़ा होके सबो ल।जोहार थें)


राजा कल्याण साय - अतेक बड़े मोर ऊपर करे उपकार के बदला म,  मंय नानबुटी भेंट देना चाहत हंव । कृपा करके नहीं  झन कहिहा। तुमन जउन जगह म रहत  हव। वो सब हर मोर राज के सिवाना सीमा म आथे। मंय अरपा खंड़ के  वो  दुनों गांव के मालगुजारी- जागीर बिलासा ल देवत हंव। वो साल मालगुजारी वसुलत प्रजा के सुख दुख  ल देखत वोमन ल समोखत अपन जीवन चलाय। अउ आज के बाद हमर मीत -मितानी सगा- पूतानी बने रहे।


सभासद - धन्य हे हमर राजा !धन्य हे बिलासा !


                   परदा गिर जाथे



***

                 

             

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                  *दृश्य 9*

        

( राजा कल्याण साय के महल। एक लंबा समय कटे के बाद बिलासा अउ बंशी फेर  महल म आय हें। बिलासा अउ बंशी थोरकुन बने भेस म हें)


राजा कल्याण साय -आवो बिलासा अउ बंशी।बने बने हावा न। सबो मनखे बने हे न।


बिलासा अउ बंशी (दुनों खड़ा होके)-  हाँ, महाराज।आपके दया ले सब कुशल -मंगल हें।


राजा कल्याण साय (हाँसत)- मंय जानत हंव।तुमन के करे -धरे सब निकता ही होही।


बंशी -महाराज !हमन बर कुछु हुकुम हे?


राजा कल्याण साय -  हाँ बंशी !दिल्ली दरबार जहाँपनाह जहाँगीर हर हमन ल सुरता करत हे।हमन ल दिल्ली जाए बर हे। हमु मन कोई कम थोरहे हावन जी।पूरा सेना साज के दल- बल के साथ जाबो। 


बंशी - बढ़िया महाराज !


राजा कल्याण साय - तब फिर तुमन दुनों घलव चलव अपन  सेना कुटी ल धरके! कइसे बनही न बिलासा ?


बिलासा -महाराज  के जय हो !बनही महराज काबर नई बनही।ये तो बड़ खुशी के बात आय।


राजा कल्याण साय -तब फिर पांच दिन बाद चइत सुदी पंचमी के हमर डेरा उसल ही।सब आओ तियार होके।


               परदा गिर जाथे।


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                 दृश्य 10


        ( दिल्ली म मुगल सम्राट जहांगीर के दरबार सजे हे। कई जगह के राजा मन आके अपन हाजिरी बजात नजराना भेंट करत हें। नाम पुकारने वाला हर रईया रतनपुर के राजा कल्याण साय के नाम  पुकारथे।राजा कल्याण साय उठके जहांगीर के आगु म  थारी म ढंकाय भेंट ला चढाथे। तभे अपने आप बिलासा अउ बंसी उठ के राजा कल्याण सहाय के अंगरक्षक बरोबर आ खड़ा होथें। पूरा मुगल दरबार हर गर्दन ऊंचा करके, यह दोनों के सुंदरता अउ शरीर ल देखथें।)


जहांगीर - दिल्ली दरबार में इस्तकबाल हे राजा कल्याण साय !


राजा कल्याण साय-  जहांपनाह के जय हो !


जहांगीर-  जय  तो तोर होय कल्याण साय , जेकर करा आइसन सुंदर अंगरक्षक मन हांवे। 


राजा कल्याण साय - येमन  अंगरक्षक नोंहे महाराज ! येहर बिलासा आय अउ येहर एकर पति बंशी आय।ये मन तो स्वतंत्र सामंत आंय। अभी भावना में आके मोर अंगरक्षक असन आ खड़ा होइन हें।


जहांगीर - अरे ये तो बढ़िया ये।का नाम बताये राजा कल्याण साय ? 


राजा कल्याण साय -  ये बिलासा अउ ये बंसी !


जहांगीर - बहुत बढ़िया !  चला चला  तुंहु मन के भी बहुत-बहुत इस्तकबाल  हे दिल्ली म वि बंसी  अउ बिलासा ।


बंसी- जय हो जहाँपनाह !


 जहाँगीर - राजा कल्याण साय ! जब ये मन  तोर संग म आये हें, तब जरूर कोई खास बात होही।


राजा कल्याण साय -  हां महाराज ! खास नहीं... बहुत ही खास ! ये बिलासा के चलते ही आज मैं जियत हंव।नहीं त डोंगरी म शिकार के बखत बघवा हर मोला शिकार बना डारे रहिस।


जहांगीर-  ये का कहत हस राजा? मैं समझ नहीं पाँय। सब फरिया के बता !


(राजा कल्याण साय  हर जहांपनाह जहांगीर  अउ सबो सभासद मन ल, अपन ऊपर बीते घटना का बताथे।)


जहांगीर-  शाबाश...! शाबाश...!! फेर जब  अतकी अचूक हे येकर निशाना हर, तब ओला देखे के हम सब ल लोभ लागत हे।


राजा कल्याण साय - कइसे बिलासा...? कइसे बंसी ...?


बंसी- महाराज के जय हो ! जहांपनाह के जय हो! जब आ गय हावन अतेक धुरिहा ले चल के तब हमरो मनोरंजन हो जाय और जहांपनाह के भी मनोरंजन हो जाय। यह तो बड़ बात ये ।हमन तियार हावन।


राजा कल्याण साय -  जहाँपनाह ! तब  काल कुश्ती अउ निशाना के प्रतियोगिता करावा।  बिलासा बंसी अउ आन सैनिक मन अपन करतब  दिखाहीं।


जहांगीर(ताली पीटत) -  बहुत खूब ! बहुत खूब !कल जरूर प्रतियोगिता होही।



      (परदा गिर जाथे।)

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     *बिलासा :अरपा के बेटी*


(लघु नाटिका )


अंतिम अंश-

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                     दृश्य 11 


         (दिल्ली म जहांपनाह जहांगीर के लाल किला में बने अखाड़ा । बनेच झन कुश्ती लड़ईया पहलवान, तलवारबाज, धनुषधारी अउ भाला फेंकने वाला खिलाड़ी योद्धा मन तियार हें। राजा कल्याण साय के संग बिलासा और बंसी घलव उहाँ हाजिर हें। सब के सब जहांपनाह जहांगीर ला अगोरत हें। अखाड़ा के जगह म जहांगीर के आना होथे। सब के सब अपन जगह म खड़ा होके  वोकर स्वागत करथें। वोहर हाथ के  इशारा ले सबो झन ल बइठे बर कहथे )


दरबारी उद्घोषक-  जहाँपनाह के जय हो ! सब तियार हें। बस आप मन के अगोरा रहिस।


जहांगीर -ठीक है। अब मंय आ गय हंव।अब प्रतियोगिता ला शुरू करव।


उद्घोषक - जहांपनाह के हुकुम मिल गय हे। चलो ,अब प्रतियोगिता शुरू करे जात हे।  सबले पहिली तलवारबाजी के प्रतियोगिता होही। हमर दिल्ली दरबार की छंटे हुए तलवारबाज मन खड़े हें।अलग अलग राज के जउन भी राजा मन जुरे हव अउ आप मन अपन जउन श्रेष्ठ तलवारबाज मन ल लाने हव, वोमन ल येमन करा प्रतियोगिता पर भेजो ।


( ये घोषणा ल सुन के  मेवाड़ बंगाल कांगड़ा के तलवारबाज मन आगु आथें।)


उद्घोषक-  येहर ये मेवाड़ ल आए अमरसिंह !


(अमर सिंह आगु आके पहिली जहाँगीर ल फिर सबो झन बर नमस्कार मुद्रा बनाथे) 


उद्घोषक - यह बंगाल ल आए समसुद्दीन अउ  येहर कांगड़ा ल आए नलपत ।येमन बारी-बारी से दिल्ली के हमार तलवारबाज जुनेद करा मुकाबला  करहीं।



            (तलवारबाजी के मुकाबला होवत हे। समसुद्दीन हर तीनों के तीनों तलवारबाज मन ला हरा देथे )


उद्घोषक- आज के तलवारबाजी के मुकाबला म समसुद्दीन हर श्रेष्ठ हे।


राजा कल्याण साय - जहांपनाह !  अभी मुकाबला हर छेवर नई  होय ये। अभी तो मोर संग आए संगवारी मन उठे भी नई यें अउ मुकाबला हर छेवर हो गय।


जहांगीर-  हां, कल तँय कहे रहे ।हम तो बिलासा के हाथ के करतब देखना चाहबो।


राजा कल्याण साय-  जरूर महाराज... ! (बिलासा अउ बंसी कोती मुंह करके) बिलासा- बंसी ! तुमन दुनों के दुनों बराबरी हव।तुमन तय कर लव कोन पहिली समसुद्दीन करा आगु आही।


बिलासा-  नहीं महाराज ! मंय तो  चेला अंव। ये तो मोर गुरु आंय। चेला के रहत ले गुरु ल गुरु ल क़ाबर उठे बर लागही।


जहांगीर -  वाह भाई वाह !आनंद आ गय...!


      ( बिलासा दोनों ला प्रणाम करके अपन तलवार धर के समसुद्दीन के आगु म आ जाथे   अउ दु चक्र म ही वोकर ऊपर हावी हो जाथे। शमसुद्दीन की तलवार गिर जाथे)


जहांगीर( खड़ा होके ताली पीटत) -शाबाश !शाबाश !(घेंच के मोती के माला ल इनाम म देथे) शाबाश !



 सब के सब - शाबाश बिलासा !


जहाँगीर - बस हो गय मुकाबला ! खुद बिलासा कहत हे तब हम मान लेत हावन कि बंसी हर बड़े तलवारबाज होही ।नहीं त आज के ये मुकाबला म सर्वश्रेष्ठ तलवारबाज बिलासा हर आय।



                    ( नेपथ्य म)


अइसन खेल खेलिस बिलासा 

तलवार चलाईस

सब ला आगू 

कुश्ती म दांव दिखाइस

सब ला आगू 

धनुष चलाइस 

बंसी 

सब ला आगू 

भाला फेंक दिखाइस 

बिलासा 

सबला आगू !

पूरा होगे 

राजा के मन के अभिलाषा 

आंखीं मन  जुड़ाइन

जहांपनाह जहांगीर के 

चकरा गिन सब खेल-खिलाड़ी ।


( राजा कल्याण साय के दल रतनपुर राज फिर आथे)


राजा कल्याण साय- शाबाश बिलासा !शाबाश बंसी! रतनपुर राज्य के  नांव दिल्ली म जगा देया! चलो अइसने आना- जाना लगे रही। सचेत होके जावा अपन जगह में राज पाठ ला बने करिहा।


बिलासा अउ बंशी - महराज के हुकुम हमर सिर  माथा म (दुनों प्रणाम मुद्रा बनाथें।)




           परदा गिर जाथे



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                     दृश्य 12 


         कई दिन ले झमाझम बरखा होवत हे। ये पाय के तीर- तखार के आन आन नदी नाला के संग जवाली नाला घलव पानी में ऊभ चुभ होवत हे। देखते- देखत  अरपा हर घलव विकराल रूप धर के तीर मा चढ़े  लग गय। अपन सतखंडा घर में बईठे-बईठे बिलासा अउ बंसी दुनों के दुनों चिंता में पड़ गय  हें। )


बंसी-  देखत  हस बिलासा नदी के बउराय रूप ल ! अइसन लागत हे कि ये अरपा हर  पूरा के पूरा  गांव ल लील  लिही।


बिलासा- हाँ ।फेर अरपा हर हमर महतारी आय। वोहर हमन ल कइसे लीलही ?


बंसी-  कहना तो ठीक हे फिर अभी के समय हर अच्छा नई लगत ये। मंय अपन डोंगी लेकर जावत हंव। 


बिलासा-  तू जावत हा, त मैं घर में बइठ के का करहाँ ? चला महुँ घलव आन डोंगी ल धरके निकलत हंव।


बंसी-   येमन हमन ल मालगुजारी देवत हें तब तो  वोमन के थोर -मोर  सेवा सहायता कर के जरूरत हे।


बिलासा -जरूर !जरूर !फेर अभी गोठ करे के बेरा नइये । (चिल्लावत) देखव न देखते देखत वो पीपर के कनिहा भर ल चढ़ गय पूरा हर...


   (बिलासा अपन घर ल बाहिर निकल के खोल- गली म आथे। वो जोर से चिल्ला - चिल्ला के सबो झन मन ल अपन गाय गरु मन ल लेके चले बर कहत किंजरत रहिथे।)


बिलासा -सब के सब अपन डोंगी मन ल  बउरो । चलव ऊपर कोती चलव।


       (कई ठन डोंगी चलथें।ये पाय के पूरा गांव  भर के मनखे जीव- जनाउर ऊपर पहुंच जाथें। बिलासा हर खुद कै न कै पइत डोंगी ल येती ले वोती ले जाथे।)


सपूरन (अपन डोंगी ल खेवत) - चल काकी !अब वापिस फिर । अब कोई नई बाँचे यें।मंय देख डारे हंव।


बिलासा -ठीक हे बेटा !तभो ले मंय एक पइत अउ देख लेवत हंव।


सपूरन (किल्लावत)-पूरा हर चढ़तेच जात हे। भँवना मन के डर हे काकी !


बिलासा -बेटा !वो मन तो मोर संगवारी यें।वोमन ले का के डर ...?


(बिलासा के डोंगी बाढ़त पूरा म , कनहुँ छेवर मनखे के खोजार म बढ़ जाथे)


                  परदा गिर जाथे



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                    दृश्य 13


     (बिलासा अउ बंशी अपन सतखंडा घर म बइठे हें।ये साल के पूरा मालगुजारी संकेला गय हे। कोठी मन म धरे के जगहा नई ये।)


बंशी -बिलासा !


बिलासा -हं...बतावा ?


बंशी(कनखी करके बिलासा के चेहरा ल पढ़त) - अतेक मालगुजारी आ गय हे।धान- पान के पहार खड़ा हो गय हे। अतेक जिनिस ल अइसन राख के का करबो? मंय गुनत हंव...तोर बर तीन खंड़ के एकठन अउ महल बनवा दँव अउ रतनपुर ले सोन के तीन लरी के तीन ठन  माला गूँथवा लांनव।


बिलासा (अपन कान छुवत)- राम जोहार !राम जोहार मालिक ! ये कुछु भी नहीं।दाता ये कुछु भी नहीं।ये सतखंडा हर राजकाज चलाय बर जरूरत रहिस। झाला झोपड़ी म राज काज थोरहे चलतिस।ये पाय के येला बनवा लेन।अब हमन ल कुछु के जरूरत नइये।आज भी सब मन कस कोदो कुटकी घलव खा लेथन...


बंशी -बस बिलासा... बस ! मंय तो तोर मन के थहा लेत रहें।ये सब हर धान नोंहे।ये सब मन हर वोकर उपजाने वाला मन के तरुवा ले चूहे पसीना अउ रकत के बूंदी आंय। 


बिलासा -अउ वो उपजाने वाला मन हमरेच भाई बन्धु यें। ये पाय के ये सब के सब ये बच्छर के दरब हर सिंचाई के जोखा मढ़ाय।म खरचा होही। थोरमोर हर हमरो जउन सेना हो गय हे वोमन के ख़र्चरी म जाही।


बंशी(हाँसत) -अउ बिलासा अउ बंशी बइठ के बासी खाहीं...


बिलासा(भाव म भरके )- बिलासा हर अपन धनी के पेट भरे बर अभी घलव समरथ हे। रुख म चढ़ही अउ चार तेंदू लान दिही।अरपा म बुड़ही अउ...


बंशी (हाँसत )-बस बस... बिलासा !मोर पेट भर गय।


( बिलासा अउ बंशी गोठ बात करतेच रहिथें कि वोमन के दरवाजा म गांव के एकझन महिला फुलकी आथे )


फुलकी (हाथ जोरत)- रानी दई !रानी दई !


बिलासा (फुलकी कोती ल देखत)- ये आ काकी !


फुलकी (हाथ जोरत)-रानी दई !


बिलासा -काकी...!काकी...!मंय तोर वोइच बिलासा अंव। कब ले मंय रानी दई हो गंय ओ। मोला बिलासा बेटी कह पहिलीच असन...


फुलकी -बेटी...!मोर घर के चोरी होय जिनिस बरतन भाँड़ा ल तोर मनखे मन खोज के लान दिन हें। वो चोर हर आन देश राज नेगुवा डीही के रहिस। वोकरे शोर सुनाय तोर जस गाय आंय हंव।


बिलासा - जश तो मोर सेना के मनखे मन के हे काकी। बइठ ये फरा खा के जाबे।


फुलकी - नहीं नहीं बेटी।राजा राठी मन के अलग खान पान होथे वो।


बिलासा- वह दे काकी फिर शुरू हो गय तँय। बिलासा माने बिलासा !वोइच मछिधरी बिलासा वोइच रुखचेघी बिलासा।फेर अभी मुड़ म पागा अउ हाथ म तलवार भर हर आगर हे पहिली ले। नहीं त बिलासा हर सब के जइसन आम मनखे आय। बिलासा के दुवारी सब बर खुला हे।सब आके अपन गोठ इहाँ कह सकत हें।सबके अउ सबके सुनवाई हे इहाँ।अउ अउ सब के सब संग म जीबो म अउ संग म मरबो...!


फुलकी(अशीष देवत)- जुग जुग जी बेटी !


                   परदा गिर जाथे



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                       दृश्य 14


(नेगुरा डीही के भेलवां राजा  अपन महल -घर म बइठे हे।  वोकर समधी परसा खोल राज के दामु राजा पहुना आय हे। दुनों समधी गोठ - बात म मगन हें। संगे संग नेवता- भक्ता के बुता चिखना अउ पव्वा- पानी घलव बने जोर शोर ले चलत हे।)


भेलवां राजा - जोहार हे समधी महराज !भेलवां राजा  के घर म तोर जोहार हे।


दामु राजा - जोहार हे भई जोहार हे !


भेलवां राजा - का हाल चाल हे समधी महराज ? सब बने तो हें देश राज तीर तखार ...?


दामु राजा - हाँ बने तो हे अभी महराज।फेर जवाली जोरान म नावा नावा चलागत चलत हे जी।


भेलवां राजा - वो का ये जी।


दामु राजा - अरे हमर तो पुरखा हर राजा महाराजा ये।आन ऊपर राज करईया जातेच अंन हमन ,फेर उहाँ एकझन पोठ मोटियारी केंवटिन बिलासा ल राजा कल्याण साय हर मालगुजारी सौंप के राजा असन बना दिस हे।


भेलवां राजा - बने गोठ तो ये ग । बने पोठ खाये  अउ  हमीं मन असन पोठ पिये।कोन छेंके हे वोला ...?


दामु राजा (गिलास उठात) -येई तो मरना आय। वो खात नइये।  वो तो सबो के सेवा करहाँ कहत ये बच्छर के पूरा मालगुजारी ल लगा के तीर के सबो खेत मन म सिंचाई हो जाय कहके नहरी सगरी बंधवात हे नहरी खनवात हे अउ कतेक न कतेक नावा नावा चलागत चलात हे।


भेलवां राजा - हुंह ! ये तो बहुत अच्छा नई होत ये जी।


दामु राजा -अरे वईच तो मंय कहत हंव। वोकर देखा सीखा हमर राज के मनखे मन घलव अइसन चाहहीं तब हमन का के सगरी नहरी मंदिर  बनवाया सकबो । दवा -बईदई कराय सकबो जी ? सबो मालगुजारी के मालिकदार हम ।अउ हम जउन चाहबो वो करबो। खाबो अउ पीबो (फिर गिलास ढरकाथे )


भेलवां राजा - अउ का नावा चलागत ये जी।


दामु राजा - अरे वोकर मरद बंशी हर पीछू हो जाथे।वोहर खुद मुड़ म पागा अउ हाथ म तलवार लेके अकेल्ला किंजरत रहिथे।


भेलवां राजा - येहर तो अच्छा गोठ नई होइस।नारी जात के ठिकाना चुल्हा अउ दसा दसना भर ये न। ये राज काज के बुता वोकर काम नई होय।


दामु राजा -फेर वोहर तो ये सब करत हे।


भेलवां राजा - वोला रोके ल परिही।


दामु राजा - कोन रोकही वोला ?


भेलवां राजा (उत्तेजित होके) - तँय रोकबे मंय रोकहाँ।अउ हम सब रोकबो फब ल अनफब जिनिस ल सबो रोकहीं।


दामु राजा ( लडखडात उठ खड़ा होथे )- सुनथन संगी!वोहर तलवार लाठी बिड़गा सबो चलाथे। रतनपूर नरेश ऊपर झपटत बघवा ल एके भाला म चित्त कर देय हे।अउ राजा के संग दिल्ली जाके घलव उहाँ तलवार भाला कुश्ती म अब्बड़ नांव कमा आइस हे।


भेलवां राजा - तभे तो वोकर मन हर बाढ़ गय हे जी।


दामु राजा -फेर एकठन जिनिस म चुकत हे।


भेलवां राजा - वो का...?


दामु राजा - वो सबो मालगुजारी आवक ल जस के तस परजा ल कुछु कुछु करके फ़िरो देत हे। वोकर सेना बर कुछु नई बाँचत ये। वोला अपन गोंसान बंशी उप्पर बड़ भरोसा हे।


भेलवां राजा(हाँसत) - अउ बंशी ल अपन नारी बिलासा उप्पर न ...?


दामु राजा -हाँ...!फेर वोकर राज कोष म माल खजाना के कमी नई ये।(आंखी ल मिचकत)कइसे का कहत हस।हो जाय कुछु का ...?


भेलवां राजा - हाँ...!एकझन उतीआइल उतपतिया नारी ल हमन कभु सहे नई सकन।येला पाठ पढोयेच बर लागही।


दामु राजा -तब भेज नेवता हमर अउ संगवारी मन ल। नरेठी के भेलनसाय अउ खड़साल के चिचोला राजा ल । अंधियारी अमावस के दिन चारों कोती ल घेरना हे।


भेलवां राजा - पक्का !


दामु राजा -पक्का !फेर माल सब म बराबर !


भेलवां राजा - हाँ पक्का !


                 परदा गिर जाथे



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                   दृश्य 15


(अपन सतखंडा घर म बिलासा अउ बंशी फिर बइठे हें। बिलासा हर बंशी के झुलुप म अंगठी फँसो के उलटा पलटा कर के देखत हे। )


बिलासा -चलव ये वच्छर के बुता मन के बने पया धरा गय । शुरू होय बुता हर तो पूरा होबे करही। 


बंशी -बिलासा !सबो मनखे मन हमरेच जन परिवार कुटुम्बी जन आंय। सिंचाई के जोखा हर माढ़त जातिस तब हमन भूख के लड़ई ल जीत जाये रहथेन।


बिलासा -खुद तूँ  खुद मंय अउ हम सब तो ये बुता म भिड़ेच हावन। जरूर तुँहर सपना पूरा होही।


बंशी -तोर मुँहू म दूध- भात...!


बिलासा (हाँसत)- अउ तुँहर मुँहू म का...?


बंशी(हाँसत) - रात के दार भात अउ दुपहर के बोरे बासी।फेर तँय कब तक मोर चुंदी मुड़ी झुलुप ल छुवत रईबे बिलासा।


बिलासा -सब दिन !सब जनम !


बंशी (हाँसत) - समझ ले मंय सब दिन बर चल देंय तब...


बिलासा -वोहर दिन रहही त रात नई लगे अउ रात रहही तब दिन नई पहाय , मंय तुँहर ठउर  पहुंच जांहाँ।


बंशी - वाह !ठउका कहे तँय(बंशी के गोठ पूरे नई पाय रहे कि एकझन सैनिक वेश वाला मनखे हर आके वोमन ल पांव परत कहथे कि टीड़ी फांफ़ा असन सैनिक मन चारों खूंट ले हमर कोती आवत हें )


बंशी -ये का ये...!


बिलासा -कुछु नहीं । पड़ोसी राज मन घेरत हें हमन ल लूट मचाय बर। फेर मोर  रहत ले मोर सिवाना के भीतर कनहुँ पांव नई मढ़ाय सकें।(तलवार ल  खींच लेथे ) तूँ देखिहा एती ल ।मंय रैनी म जात हंव।


बंशी (चिल्लावत) -मोर रहत ले तँय काबर जाबे।


बिलासा -तूँ अभी बड़ धुर ले काम -बुता देख के आय हव। अउ तूँ मोर बर मोर जान ले जादा कीमती जिनिस अव।


बंशी (चिल्लावत )- नहीं !तँय हमर रानी अउ मंय तोर सेनापति बस्स...अउ कुछु नहीं आन। अउ सेनापति के रहत ले राजा हर थोरहे जाही रैनी म !अब मोला हुकुम दे। बेर होवत हे...


     (बिलासा भारी मन ले बंशी के तरुवा म तिलक टीका लगाथे।)


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                   दृश्य 16



    (बिलासा सतखंडा म व्याकुल एती वोती किंजरत हे।)


बिलासा (व्याकुल होके)-  जुवार भर हो गय।उँकर कोती ल कुछु शोर सन्देशा नई आइस। का होवत हे रैनी म...? महुँ चल दँव का ...?


    (एकझन सैनिक कुदत आथे अउ बिलासा के गोड़ ल धर दारथे।)


बिलासा (वोला उठात) - उठ ! उठ...!बोल का ये तउन ल?


सैनिक (रोवत) -हमर सेनापति (तरी मुड़ कर लेथे) 


बिलासा -  रो झन ! येहर तो बीर बहादुर के  बीरता के ईनाम ये। चल लहुट !मंय संग म चलत हंव ।


    (बिलासा तलवार अउ  भाला ल धरके घोड़ा म उचक के जा बइठ थे।)


सैनिक (नावा जोश ले भरके ) - रानी बिलासा के जय ! माटी महतारी के जय।


      (युद्ध हर एक पइत फेर भड़क जाथे।बिलासा हर पूरा दिन भर शत्रु सेना में ल कुदात थर खवा देथे फिर वो तो समलाती आक्रमण रहिस। फेर बेर बुड़े के पहिली वोहर भुईंया म गिर जाथे। गिरते ही वोहर माटी ल चुमथे।)


बिलासा - बिलासा के  आखिरी जोहार झोंक ले माटी महतारी ! धनी ! मोर प्रण पूरा होवत हे बेरा बुड़े के पहिली मंय तोर करा पहुँचत हंव। (चिल्लावत ) माटी महतारी तोर जय होय...!


     (बिलासा हर शांत हो जाथे।सबो के सब तलवार धनुष रोक के तरी मुड़ी कर लेथें।)


  

                 परदा  गिर जाथे।


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                 दृश्य 17


(राजा कल्याण साय युद्ध भूमि म पहुँचथे । वोकर आगु म बिलासा अउ बंशी के दुश्मन मन ल बंदी बना के लानथें।)


राजा कल्याण साय  (भारी मन ले )- जउन हर मोर जान ल बचाय रहिस।वोकर मंय जान ल बचाय नई सकें ...येहर मोर बर बड़ दुख के बात ये (गुस्सा म ) सेनापति !


सेनापति -हाँ महराज !


राजा कल्याण साय - कहाँ हें वो नीच लोभी अउ नारी  रकत के धार बोहाने वाला मन ?


   (बंदी मन ल पेश करे जाथे।)


राजा कल्याण साय - अरे दुष्ट हो !ये भुईंया हर तो मोर राज सिवाना आय। बिलासा ल तो येकर सेवा करे बर मंय ये सब ल देय रहें। का समझत रहा तुमन ...


बंदी मन (हाथ जोरत) - छिमा महराज ! छिमा करव !


राजा कल्याण साय -तुँहर फैसला तो राजधानी म होही। (तरी मुड़ करके ) माफ करबे बिलासा !माफ करबे बंशी!!मंय खबर नई पाँय !मोर आय म देरी हो गय। (सेनापति कोती देखत) -सेनापति !जउन जगहा म बिलासा हर बीर गति ल पाय हे, वो जगहा म वोकर मठ वोकर समाधि बनवा दो अउ अउ बिलासा के ये गांव हर आज ले वोकर नांव म बिलासपुर कहाही।


सेनापति -महराज कल्याण साय की जय!



                   परदा गिर जाथे।

                          *समाप्त*


*रामनाथ साहू*