Thursday 5 January 2023

पोखनलाल जायसवाल: विमर्श: छत्तीसगढ़ी भाषा

पोखनलाल जायसवाल: विमर्श: छत्तीसगढ़ी भाषा

 

*छत्तीसगढ़ी नँदाय के पैडगरी म रेंगत जावत हे*

       आज विकास के चिकमिकी म सबो मोहाय हन। सब ल अपन विकास दिखत अउ सूझत हे। विकास के संग कलेचुप विनाश ह दबे पाँव आथे। कहे के मतलब हे, विकास अउ विनाश दूनो एक-दूसर के छइहाँ आँय। विकास केहे ले सबो के एके च कोति धियान जाथे, वो हरे आर्थिक विकास। विकास के गंगा बोहावत हे / बोहाही। सबो कोई सुने होहू। 

      चिटिक गुनान करन, आर्थिक विकास के पटरी म दउड़े बर साँस्कृतिक अउ पारंपरिक धरखन ल, थाती ल, का खूँटी म टाँग नइ डरेन? प्राकृतिक संसाधन के तो दोहन का शोषण करत हन। पर्यावरण संरक्षण के नाँव म सिरिफ कागजी घोड़ा दउड़थे। अभी तो विकास के घोड़ा ह जउन साँस्कृतिक अउ पारंपरिक चरी करके मोटावत हे, ओकरे गोठ करे बेरा हे।

      कोनो देशराज के साँस्कृतिक अउ लोक परम्परा अउ रीत-रिवाज के बढ़वार उहाँ के भाषा-बोली ले होथे। कोनो लोक अउ लोक के भाखा-बोली ल अलगिया के देखे नइ जा सके। दूनो एक-दूसर म अइसे रचे-बसे रहिथे, जइसे साग म नून। जिहाँ लोक ले भाषा-बोली ह जिनगी पाथे, उहें भाषा-बोली ले लोकजीवन ल नवा जिनगी मिलथे। भाषा-बोली ले एक-दूसर संग मेल-जोल बढ़ाय म सुभीता होथे। लोक ह जेन भाषा-बोली ल सरलग बउरत रथे, ओकरे विकास होथे। जेन भाषा बर लोक के मोह सिरा जथे, ओ भाषा उबर नइ पाय। जन के भाषा नइ रहि पाय। सिरिफ गिनती म रहि जथे अउ ओ पीढ़ी के संग दम टोर देथे। नइ ते घिसलत रहिथे।

      लोगन के भाषा ले मोह छूटे के कतको कारण हो सकत हे। एक बड़का कारण तो रोजगार ले जुरे नइ होना ए। जेन रोजी-रोटी जुगाड़ही तेने तो चेत म रही। 

       दूसर बड़े कारण हे, भाषा के लोक म प्रभाव। जेन भाषा के प्रभाव या असर समाज म जादा रहिथे, ओकर ले सबो नइ चाह के घलव जुड़ जथे। ए ह शिक्षा के प्रसार के संग अपन भाषा के प्रति हेव भाव (हीन-भाव) के जनमे ले होथे। भले अपन भाषा म ज्ञान के अक्षय भंडार रहय, मोह छूट जथे।

        तीसर बड़े कारण आय आवाजाही। आज कतको कारण ले लोगन अपन मूल जघा ले आने जघा म आवाजाही करथे। बड़े कारण रहिथे पेट। एकर चलत क्षेत्रीय भाषा के आगू ए संकट अउ खतरा दिन ब दिन सुरसा सहीं बाढ़त जाथे...अउ एक दिन....।

        शहरीकरण ह घलव भाषा के नँदाय म बड़का कारण साबित होय हे। शहर के रस्ता धरे जीव उहाँ रच-बस के अपन पुरखौती चिह्ना ल मुरसरिया बना के रख देथे।

        आज दुनिया ह सिमटत जावत हे, नेट-इंटरनेट के आय ले एक ठन गाँव सहीं होगे।दुरिहा दुरिहा के मनखे एके जघा जुरियाय दिखथें। अइसन म घलव अपन क्षेत्रीय भाषा के प्रभाव दिमाग ले उतर जथे।

        ए बात शोध म आ चुके हे के, दुनिया भर ले कतको भाखा अउ बोली नँदा गे हे अउ कतको ह अपन आखरी साँस लेवत हे। भारत म अइसन खतरा कुछ जादा बताय जाथे। 

          आज छत्तीसगढ़ी म खूब साहित्य लिखे-पढ़े जावत हे, फेर एकर पढ़इया कतेक हें अउ कोन हें? गुनान करे म मन निराशा के गहिर खाई म गिर जथे। छत्तीसगढ़ी म कागज ल रँगे ले भर छत्तीसगढ़ी के उद्धार नइ होय। जरूरी हे जन-जन अपन होके छत्तीसगढ़ी बोले सुने के संग नवा पीढ़ी ल सिखावय।

        बड़ दुख के बात आय कि छत्तीसगढ़ी नवा पीढ़ी ले दुरिहावत हे। कारण हे, एक स्कूली पाठ्यक्रम म बरोबर पाठ शामिल नइ हे। माध्यम तो दूर के बात आय। अँग्रेजी बर मोह गलत नइ हे, काबर कि नेट इंटरनेट के जम्मो बूता तो अँग्रेजी म होना हे। दूसर, छत्तीसगढ़ी पढ़े-लिखे ले रोजगार के गारंटी नइ हे। शासन कोति ले छत्तीसगढ़िया परम्परा ल बढ़ावा तो मिलत हे, फेर छत्तीसगढ़ी भाषा बर अइसन कुछू होवत नइ दिखत हे, जेन एला जन-जन के भाषा बनाय।

     छत्तीसगढ़ी के नाँव म होवत प्रयोग ल बंद कर के कहूँ छत्तीसगढ़ी ल भाषा के रूप म एक विषय कस पढ़ाय के योजना करे के जरूरत हे।अइसन करे ले छत्तीसगढ़ी के दिन बहुरे म कोनो देरी नइ हे। 

         आज सबो वर्ग के लोगन भविष्य के संसो करत अपन लइका ल छत्तीसगढ़ी ले अलग रखत हें, ओला अवइया समे के माँग के मुताबिक तियार करत हें। अइसन म इही कहे जा सकत हे के छत्तीसगढ़ी ह नँदाय के पैडगरी म रेंगत जावत हे। शुतुरमुर्ग के सहीं आँखीं मूँदे के बेरा नइ हे। समे रहत कोनो उदिम नइ होही त छत्तीसगढ़ी के दुर्गति घलव देववाणी संस्कृत के जइसे हो जही।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

जिला बलौदाबाजार


6261822466

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*छत्तीसगढी भाषा नंदा जाही का ?*- विमर्श के सुग्घर शुरूवात बर भाई  पोखन लाल जायसवाल ला बधाई।  विचारपरक आलेख। वैश्विक स्तर म कतकोन भाषा मन विलुप्त होत जावत हें। छत्तीसगढी के गिनती घलो ओमा करथें! कोनो भी भाषा के प्रवाह ला यदि लिपि या व्याकरण के आधार म बाधित किये जाही त ओ भाषा ला बचा पाना मुश्किल हे। छत्तीसगढी के पुराना व्याकरण म देवनागरी के अनेक वर्ण ला बहिस्कृत करे रिहिन जइसे श,ष,क्ष,त्र,ज्ञ,श्र,व आदि। एहर छत्तीसगढी के प्रवाह ला रोक दे रिहिस अउ छत्तीसगढी लेखन अपभ्रंश के मायाजाल म फंदा गे रिहिस। *भाषा अउ मंदिर के कपाट ला कभू भी बन्द नि रखना चाही। ओखर खुला रहना श्रेयकर अउ समृद्धकर होथे।* अभी छत्तीसगढी गद्य अउ पद्य साहित्य लेखन म राष्ट्रीय स्तर के रचना आवत हे। देवनागरी के हिन्दी बर अंगीकृत सबो 52 वर्ण के प्रयोग छत्तीसगढी लेखन म होवत हे। भाषायी जनगणना 2021 के आधार म पूरा भारत म छत्तीसगढी बोलइया मन के संख्या *1,90,27,743* हे। छत्तीसगढी भाषा बोलइया के कुल संख्या ह आठवीं अनुसूची म स्थान प्राप्त भाषा- असमिया ( 1,53,11,351 ), मैथिली ( 1,35,83,464 ), संथाली ( 73,68,192), कश्मीरी ( 67,57,587 ), नेपाली ( 29,16,168 ), सिंधी ( 27,72,264), डोंगरी ( 25,96,767 ), कोंकणी ( 22,56,502 ), मणिपुरी ( 17,61,079 ), बोडो ( 14,82,929 ) अउ संस्कृत ( 24,821 ) मन ले बहुत जादा हे। 

     जहाँ तक संस्कृत के बात हे त संस्कृत साहित्य अउ व्याकरण कठिन होय के कारण आमजन मन स्वीकार नि कर सकिन अउ संस्कृत के ही अपभ्रंश रूप ले अनेक भारतीय भाषा के जन्म होइस जेमा हिन्दी, मराठी, बांग्ला, गुजराती, कश्मीरी,  उड़िया आदि शामिल हें। 

     छत्तीसगढी एक भाषा के रूप म कभू भी खतम नि हो सके...... ओखर नंदाय के खतरा अभी नि हे। हाँ, यदि छत्तीसगढी ला प्राथमिक अउ माध्यमिक स्तर म पढाई के माध्यम बनाय के उदिम करहीं त छत्तीसगढ के युवा मन रोजगार के रेस म पिछड़ जाँहीं अउ दर-दर भटकहीं।🙏🌹


           - विनोद कुमार वर्मा

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