Friday 24 February 2023

21 फरवरी अंतर्राष्ट्रीय महतारी भाखा दिवस //

 21 फरवरी अंतर्राष्ट्रीय महतारी भाखा दिवस //

 छत्तीसगढ़ी खातिर सबो झनला समिलहा उदिम करे ल परही

    सन् 1999 ले विश्व स्तर म महतारी भाखा दिवस मनाए के चलन होए हे. काबर 21 फरवरी 1952 के बंगलादेश के ढाका यूनिवर्सिटी म पढ़इया लइका अउ सामाजिक कार्यकर्ता मन तत्कालीन पाकिस्तानी सरकार के भाषायी नीति के विरोध करत उहाँ के अपन महतारी भाखा बांग्ला के अस्तित्व बचाए रखे खातिर  जबर प्रदर्शन करे रिहिन हें. जेकर सेती पाकिस्तानी पुलिस ह वोकर मन ऊपर गोली बरसाए ले धर लिए रिहिसे. तभो प्रदर्शनकारी मन डटेच रिहिन. आखिर ए लगातार  विरोध के चलत उहाँ के तत्कालीन सरकार ल बांग्ला भाषा ल आधिकारिक रूप ले भाषा के दर्जा देना परिस. फेर आगू चल के ए भाषायी आन्दोलन म शहीद होए लइका मन के सुरता म यूनेस्को ह सन् 1999 म 21 फरवरी ल अंतर्राष्ट्रीय महतारी भाखा दिवस मनाए के घोषणा करे रिहिसे.

    महतारी भाखा दिवस मनाए के मुख्य उद्देश्य दुनिया भर म भाषायी अउ सांस्कृतिक विविधता के प्रचार प्रसार करना रिहिसे. संगवारी हो, अंतर्राष्ट्रीय स्तर म महतारी भाखा दिवस के संदर्भ म आज हमर अपन महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी खातिर दू आखर गोठियाए के मन होवत हे. काबर ते छत्तीसगढ़ी खातिर घलो कतकों बछर ले कोनो न कोनो किसम के आन्दोलन होतेच हे.

   जब हमर देश म सन् 1956 म अलग भाषायी अउ सांस्कृतिक आधार म जम्मो राज्य मन के पुनर्गठन करे खातिर 'राज्य पुनर्गठन आयोग' के स्थापना करे गे रिहिसे, तभेच ले हमर पुरखा मन घलो छत्तीसगढ़ राज्य के अपन खुद के भाखा अउ संस्कृति होए के आधार म अलग छत्तीसगढ़ राज खातिर मांग चालू करिन. राज आन्दोलन के नेंव रचिन. ए राज आन्दोलन के संगे-संग भाखा खातिर घलोक आवाज उठते रहिस. जम्मो गुनी साहित्यकार मन छत्तीसगढ़ी म जादा ले जादा लिखे के चालू करिन. हमर असन नेवरिया लिखइया-पढ़इया मन आरुग छत्तीसगढ़ी म पत्र-पत्रिका निकाले के उदिम घलो करेन, तेमा छत्तीसगढ़ी के लेखक के संगे-संग पाठक मन के संख्या म घलोक बढ़ोत्तरी होवय. ए सबके परिणाम ए होइस के 1 नवंबर सन् 2000 के अलग छत्तीसगढ़ राज के अस्तित्व तो स्थापित होगे, फेर भाषा के आधिकारिक दर्जा अभी तक नइ मिल पाए हे. हाँ, ए बीच ए जरूर होइस, के छत्तीसगढ़ सरकार ह 'छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग' के गठन जरूर करिस, जेकर ले कतकों किसम के भाखा अउ साहित्य ले संबंधित आयोजन बछर भर होवत रहिथे. फेर असल मांग तो आजो जस के तस हे. महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी म पढ़ई-लिखई के संग राजकाज के जम्मो बुता.

   एकर खातिर हमर देश के संवैधानिक व्यवस्था के मुताबिक छत्तीसगढ़ी ल संविधान के आठवीं अनुसूची म शामिल होना जरूरी हे. वइसे राज सरकार के हाथ म अतका अधिकार होथे, के वो ह केन्द्र सरकार द्वारा आठवीं अनुसूची म शामिल करे बिना घलो एला इहाँ महतारी भाखा ल प्राथमिक शिक्षा के माध्यम बना सकथे. बस जरूरी हे, ईमानदार नीयत के.

   जिहां तक एला आठवीं अनुसूची म शामिल करे के बात हे, त एकर खातिर हमर इहाँ के कोनो भी राष्ट्रीय राजनीतिक दल मन ईमानदार नइ दिखय. जब केन्द्र के कुर्सी म एक दल वाले मन बइठथें, त दूसर दल वाले मन आठवीं अनुसूची के नांव म राजनीतिक खुडवा खेलथें. अउ जब दूसर दल वाले मन केन्द्र के कुर्सी म अभर परथें, त दूसर दल वाले मन खुडवा खेलथें. कुल मिलाके दूनों दल वाले ओसरीपारी खुडवा खेलत रहिथें.

    इहाँ कुछ क्षेत्रीय दल वाले घलो हें, फेर उंकर मन के संख्या बल अतका नइहे, के केन्द्र वाले मन के कान ल पिरवा सकयं. तब एकर समाधान के रद्दा कइसे खुलही?

    निश्चित रूप ले जइसे बांग्ला भाषा खातिर उहाँ के पढ़इया लइका अउ समाजसेवी मन लड़िन-भिड़िन अउ कुर्बानी देइन, ठउका छत्तीसगढ़ी खातिर घलो अइसने करे बर लागही. 

    हमर इहाँ पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय म एमए छत्तीसगढ़ी पढ़इया लइका मन ए बुता ल ठउका करत रहिथें. एक-दू साहित्यिक अउ आने संगठन वाले मन घलो अपन सख भर हुंकार भरतेच रहिथें, फेर मोर अरजी हे, के इंकर मन संग-संग इहाँ के जतका छत्तीसगढ़िया समाज हे, उंकर संगठन हे, उहू मन ए उदिम म खांध म खांध जोर के आगू आवयं अउ अपन महतारी भाखा ल संवैधानिक दर्जा के मिलत ले सड़क के लड़ाई ल लड़त राहयं. अउ एक अउ बात, जब कहूँ इहाँ जनगणना होथे, त अपन महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी लिखवावयं. स्कूल मन म घलोक गुरुजी मन लइका मनके मातृभाषा के कालम म बिना पूछे-सरेखे हिन्दी लिख देथें. शहरी क्षेत्र म ए ह जादा देखे म आथे. एकर बर घलो सावचेत रेहे के जरूरत हे. एमा जम्मो पालक मनला चेत करके मातृभाषा छत्तीसगढ़ी लिखवाए के उदिम करना चाही.

जय छत्तीसगढ़.. जय छत्तीसगढ़ी

-सुशील भोले-9826992811

विश्व महतारी भाषा दिवस” - छत्तीसगढ़ी*

 

 *“विश्व महतारी भाषा दिवस” - छत्तीसगढ़ी*


घर के जोगी जोगड़ा, आन गाँव के सिद्ध - तइहा के जमाना के हाना आय। अब हमन नँगत हुसियार हो गे हन, गाँव ला छोड़ के शहर आएन, शहर ला छोड़ के महानगर अउ महानगर ला छोड़ के बिदेस मा जा के ठियाँ खोजत हन। जउन मन बिदेस नइ जा सकिन तउन मन विदेसी संस्कृति ला अपनाए बर मरे जात हें। बिदेसी चैनल, बिदेसी अत्तर, बिदेसी पहिनावा, बिदेसी जिनिस अउ बिदेसी तिहार, बिदेसी दिवस वगैरा वगैरा। जउन मन न बिदेस जा पाइन, न बिदेसी झाँसा मा आइन तउन मन ला देहाती के दर्जा मिलगे।


हमन दू ठन दिवस ला जानत रहेन - स्वतंत्रता दिवस अउ गणतन्त्र दिवस। आज वेलेंटाइन दिवस, मातृ दिवस, पितृ दिवस, राजभाषा दिवस, पर्यावरण दिवस अउ न जाने का का दिवस के नाम सुने मा आवत हे। ये सोच के हमू मन झपावत हन कि कोनो हम ला देहाती झन समझे। काबर मनावत हन ? कोन जानी, फेर सबो मनावत हें त हमू मनावत हन। बैनर बना के, फोटू खिंचा के फेसबुक मा डारबो तभे तो सभ्य, पढ़े लिखे अउ प्रगतिशील माने जाबो।


एक पढ़े लिखे संगवारी ला पूछ पारेंव कि विश्व मातृ दिवस का होथे ? एला दुनिया भर मा काबर मनाथें? वो हर कहिस - मोला पूछे त पूछे अउ कोनो मेर झन पूछ्बे, तोला देहाती कहीं। आज हमन ला जागरूक होना हे। जम्मो नवा नवा बात के जानकारी रखना हे। जमाना के संग चलना हे। लम्बा चौड़ा भाषण झाड़ दिस फेर ये नइ बताइस कि विश्व मातृ दिवस काबर मनाथे। फेर सोचेंव कि महूँ अपन नाम पढ़े लिखे मा दर्ज करा लेथंव।

फेसबुक मा कुछु काहीं लिख के डार देथंव। 


भाषा ला जिंदा रखे बर बोलने वाला चाही। खाली किताब अउ ग्रंथ मा छपे ले भाषा जिंदा नइ रहि सके। पथरा मा लिखे कतको लेख मन पुरातत्व विभाग के संग्रहालय मा हें फेर वो भाषा नँदा गेहे। पाली, प्राकृत अउ संस्कृत के कतको ग्रंथ मिल जाहीं फेर यहू भाषा मन आज नँदा गे हें  । माने किताब मा छपे ले भाषा जिन्दा नइ रहि सके, वो भाषा ला बोलने वाला जिन्दा मनखे चाही।


भाषा नँदाए के बहुत अकन कारण हो सकथे। नवा पीढ़ी के मनखे अपन पुरखा के भाषा ला छोड़ के दूसर भाषा ला अपनाही तो भाषा नँदा सकथे। रोजी रोटी के चक्कर मा अपन गाँव छोड़ के दूसर प्रदेश जाए ले घलो भाषा के बोलइया मन कम होवत जाथें अउ भाषा नँदा सकथे। बिदेसी आक्रमण के कारण जब बिदेसी के राज होथे तभो भाषा नँदा सकथे। कारण कुछु हो, जब मनखे अपन भाषा के प्रयोग करना छोड़ देथे, भाषा नँदा जाथे। 


छत्तीसगढ़ी भाषा ऊपर घलो खतरा मंडरावत हे। समय रहत ले अगर नइ चेतबो त छत्तीसगढ़ी भाषा घलो नँदा सकथे। छत्तीसगढ़ी भाषा के बोलने वाला मन छत्तीसगढ़ मा हें, खास कर के गाँव वाले मन एला जिंदा रखिन हें। शहर मा हिन्दी अउ अंग्रेजी के बोलबाला हे। शहर मा लोगन छत्तीसगढ़ी बोले बर झिझकथें कि कोनो कहूँ देहाती झन बोल दे। छत्तीसगढ़ी के संग देहाती के ठप्पा काबर लगे हे ? कोन ह लगाइस ? आने भाषा बोलइया मन तो छत्तीसगढ़ी भाषा ला नइ समझें, ओमन का ठप्पा लगाहीं ? कहूँ न कहूँ ये ठप्पा लगाए बर हमीं मन जिम्मेदार हवन। 


हम अपन महतारी भाषा गोठियाए मा गरब नइ करन। हमर छाती नइ फूलय। अपन भीतर हीनता ला पाल डारे हन। जब भाषा के अस्मिता के बात आथे तब तुरंत दूसर ला दोष दे देथन। सरकार के जवाबदारी बता के बुचक जाथन। सरकार ह काय करही ? ज्यादा से ज्यादा स्कूल के पाठ्यक्रम मा छत्तीसगढ़ी लागू कर दिही। छत्तीसगढ़ी लइका मन के किताब मा आ जाही। मानकीकरण करा दिही। का अतके उदिम ले छत्तीसगढ़ी अमर हो जाही?


मँय पहिलिच बता चुके हँव कि किताब मा छपे ले कोनो भाषा जिंदा नइ रहि सके, भाषा ला जिन्दा रखे बर वो भाषा ला बोलने वाला जिन्दा मनखे चाही। किताब के भाषा, ज्ञान बढ़ा सकथे, जानकारी दे सकथे, आनंद दे सकथे फेर भाषा ला जिन्दा नइ रख सके। मनखे मरे के बादे मुर्दा नइ होवय, जीयत जागत मा घलो मुर्दा बन जाथे। जेकर छाती मा अपन देश बर गौरव नइये तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर छाती मा अपन गाँव के गरब नइये तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर छाती मा अपन समाज बर सम्मान नइये, तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर छाती मा अपन भाषा बर मया नइये, तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर स्वाभिमान मर गेहे, तउन मनखे मुर्दा आय। 

जउन मन अपन छत्तीसगढ़िया होए के गरब करथें, छत्तीसगढ़ी मा गोठियाए मा हीनता महसूस नइ करें तउने मन एला जिन्दा रख पाहीं। 


अइसनो बात नइये कि सरकार के कोनो जवाबदारी नइये। सरकार ला चाही कि छत्तीसगढ़ी ला अपन कामकाज के भाषा बनाए। स्कूली पाठ्यक्रम मा एक भाषा के रूप मा छत्तीसगढ़ी ला अनिवार्य करे। अइसन करे ले छत्तीसगढ़ी बर एक वातावरण तैयार होही। शहर मा घलो हीनता के भाव खतम होही। छत्तीसगढ़ी ला रोजगार मूलक बनावय। रोजगार बर पलायन, भाषा के नँदाए के एक बहुत बड़े कारण आय। इहाँ के प्रतिभा ला इहें रोजगार मिल जाही तो वो दूसर देश या प्रदेश काबर जाही? छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार, लोक कलाकार ला उचित सम्मान देवय, उनकर आर्थिक विकास बर सार्थक योजना बनावय।


छत्तीसगढ़ी भाव-सम्प्रेषण बर बहुत सम्पन्न भाषा आय। हमन ला एला सँवारना चाही। अनगढ़ता, अस्मिता के पहचान नइ होवय। भाषा के रूप अलग-अलग होथे। बोलचाल के भाषा के रूप अलग होथे, सरकारी कामकाज के भाषा के रूप अलग होथे अउ साहित्य के भाषा के रूप अलग होथे। बोलचाल बर अउ साहित्यिक सिरजन बर मानकीकरण के जरूरत नइ पड़य, इहाँ भाषा स्वतंत्र रहिथे फेर सरकारी कामकाज बर भाषा के मानकीकरण अनिवार्य होथे। मानकीकरण के काम बर घलो ज्यादा विद्वता के जरूरत नइये, भाषा के जमीनी कार्यकर्ता, साहित्यकार मन घलो मानकीकरण करे बर सक्षम हें।


सरकार छत्तीसगढ़ी बर जो कुछ भी करही वो एक सहयोग रही लेकिन छत्तीसगढ़ी ला समृद्ध करे के अउ जिन्दा रखे के जवाबदारी असली मा छत्तीसगढ़िया मन के रही। यहू ला झन भुलावव कि जब भाषा मरथे तब भाषा के संगेसंग संस्कृति घलो मर जाथे।


“स्वाभिमान जगावव, छत्तीसगढ़ी मा गोठियावव”


*लेखक - अरुण कुमार निगम*



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 सारगर्भित आलेख।  सूत्र रूप म छत्तीसगढ अउ छत्तीसगढी भाषा के पीरा ला समेटे विचारपरक उत्कृष्ट आलेख। ए सदी म विश्व के कतकोन बोली-भाषा मन विलुप्त होवत जात हें। वैश्वीकरण के युग आ गे हे.....कतकोन बोली-भाषा मन विलुप्त होहीं.....ओमन ला बचा पाना संभव नि दिखत हे। छत्तीसगढ के कतकोन स्थानीय बोली मन विलुप्ति के कगार म ठाढ़े हें! छत्तीसगढी के नंदाय के संभावना तो बिल्कुल भी नि हे फेर भाषा के रूप म आठवीं अनुसूची म स्थान पाना जबर चुनौती हे। शासन स्तर म ये विषय के प्रति लगातार उदासीनता बने हुए हे!शासन स्तर म छत्तीसगढी ला एक विषय के रूप म पाठ्यक्रम म शामिल करना बहुतेच्च जरूरी हे, एकर साथ यदि छत्तीसगढी भाषा ला रोजगारपरक बनाय के उदिम सरकार कर सकही त छत्तीसगढी के संरक्षण-संवर्धन अउ बढ़वार तेजी ले  होही। अभी ये उदिम छत्तीसगढी बर समर्पित साहित्यकार मन के एक बड़े समूह एला करत हे फेर शासन स्तर म ओमन ला कोई आर्थिक मदद नि मिलत हे। कतेक शरम के बात हे कि एक-दू किलोमीटर स्मार्ट रोड बनाय बर शासन 10-15 करोड़ रूपिया खर्च कर देत हे अउ भाषा के संरक्षण-संवर्धन बर अतका बजट पाँच साल म घलो नि देवत हे!! सत्ता के आँखी कब उघरही- भगवान जाने??🙏🌹


             - विनोद कुमार वर्मा

महतारी भाँखा

 महतारी भाँखा

मोला अपन महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी उपर गरब हे।दाई के भाखा ही मातृभाषा आय। मोर महतारी के भाखा छत्तीसगढ़ी रहिस, तब मोरो भाखा आरुग छत्तीसगढ़ी आय।हिन्दी मोर पढ़े लिखे अउ कामकाज के भाखा बनिस। फेर छत्तीसगढ़ी मोर गली गाँव, घर द्वार, मेला मड़ई, नाता गोता, हाट बजार के भाखा आय। छत्तीसगढ़ी मोर डोंगरी पहाड़,खेती खार, तरिया डबरी घाट- घटौंदा के भाखा ये। छत्तीसगढ़ी इहाँ के दाऊ, मंडल, किसान, मजदूर अउ बनिहार - बनिहारिन के भाखा ये।पनघट, गोठान, बरदिहा अउ पनिहारिन के भाखा ये।

छत्तीसगढ़ी मोर अंतस मा समाय हे, जउन हा ददरिया, करमा, पंथी, पांडवानी, नाचा, चंदैनी, सुआ, बांसगीत, बिहाव अउ गौरी गौरा गीत के रूप मा प्रकट होथे। छत्तीसगढ़ी हे तब डुबकी हे, कड़ही हे।बोहार भाजी अउ तिवरा भाजी के साग हे। फरा हे, चीला हे। भात हे बासी हे, पेज हे पसीया हे, कोदो हे कुटकी हे।तसमई अउ सोंहारी हे।अपन भाखा के अपन मिठास। मैं इंकर बिना नइ रहे सकौं। सहर मोर जीविकोपार्जन के जगा आय। फेर गांव मा लाख बुराई पावँव, हरौं खाटी गवइंहा।छत्तीसगढ़ी मोर संवाद के भाखा ये। छत्तीसगढ़ मा कोन हे जेन छत्तीसगढ़ी नइ जानय।नइ जाने के नखरा करने वाला बहुत हे। उड़िया, बिहारी, अवधी, यूपी, राजस्थानी झारखंडी, मैथिल, हरियाणवी, बोलने वाला मन जगा छत्तीसगढ़ी में संवाद आसान हे। हिंदी के समस्त लोकबोली मा खून के रिश्ता हे। अपन अपन बोली भाखा मा गोठियाही एक दूसर संग तो सबो समझही। हमर भाखा हमर गुमान।


छत्तीसगढ़ी हे तभे तक छत्तीसगढ़ी संस्कृति घलो हे। जइसे जइसे भाखा मरत जाही हमर संस्कृति अउ संस्कार घलो नंदावत जाही।हमर पहचान ही छत्तीसगढ़ से हे। छत्तीसगढ़ी ले हे। हम कहाथन छत्तीसगढ़िया। हमर स्वाभिमान आय छत्तीसगढ़ी ।हमर अस्तित्व आय छत्तीसगढ़ी। हमन अपन लोग लइका ला विदेश मा टांग के गरब करत हन। फेर यहू जान लौ, एक पीढ़ी बाद ही वो ये पहिचान ला भूल जाही। अपन घर परिवार अउ संस्कार ला भूल जाही। फेर यहू बात हे कि जब भी दुनिया मा बाहरी वाद के खिलाफत होथे अपन देश अपन मूल मातृभूमि के कोख मा ही जगह पाथे। 

आवौ छत्तीसगढ़ी ला अपन संवाद के भाषा बनावन। छत्तीसगढ़ी एक संपूर्ण अउ समृद्ध भाषा आय। संप्रेषण क्षमता मा कोई कमी नइ हे। कमी हे तो हमर मानस मा। हमर ताकत ये छत्तीसगढ़ी। छत्तीसगढ़ी हे तभे तक हम असली छत्तीसगढ़ी हन। मातृभाषा के उपेक्षा करके हम विकास के सपना देखबो तो अधूरापन ही रइही। समय बदलत जावत हे।विद्वान मन के राय रहे हे कि प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा मा ही होना चाही, तभे बच्चा मन के सर्वांगीण विकास होथे। एकर कारण नवा शिक्षा नीति मा मातृभाषा मा प्रारंभिक शिक्षा के बात ला जोड़े गेहे। 

आप सब ला मातृभाषा दिवस के गाड़ा गाड़ा बधाई अउ शुभकामना ।आवव हम आज संकल्प लेवन कि हम अपन लोग लइका ला कतको उच्च शिक्षा देवन, अंग्रेजी हिन्दी संस्कृति अउ दुनिया के कोनों भी भाखा के ज्ञान देवन, अपन भाखा ले उन ला वंचित नइ रखन। अपन संस्कार अपन पहचान ला नइ भुलावन दन। 


हम गोठियाबो तभे पूरा छत्तीसगढ़ गोठियाही। 


जय छत्तीसगढ़। 

जय छत्तीसगढ़ी।। 


बलराम चंद्राकर भिलाई

महतारी भाँखा के जतन जरूरी हे

 महतारी भाँखा के जतन जरूरी हे


                     कखरो भी मुख ले निकले कोनो शब्द तब तक भाँखा नइ कहिलाये जब तक कि वो कोनो ला समझ मा नइ आ जाय, नही ते मनखे के आलावा चिरई- चिरगुन, कुकुर- बिलई, कीट- पतंगा ----- मनके बोली घलो भाँखा कहिलातिस। कोनो भी भाँखा कइसे बनिस? कोन बनाइस? कतिक महिनत लगिस? कतिक दिन मा बनिस? येखर बारे मा तनिक सोचबों ता, कोनो भी भाँखा ला छोटे- बड़े कहिथन तेखर भ्रम दुरिहा जही, हाँ कोनो भी भाँखा के बोलइया कम जादा हो सकथे, फेर भाँखा के निर्माण के प्रक्रिया अउ काम एके हे। लइका जने के बाद महतारी जइसे लइका के पालन-पोषण करत, वोला जिंदा रखथे, वइसने भाँखा ला जिंदा रखथे बोलइया मन। लइका बड़े होके अपन अकड़ गुमान या स्वारथ मा महतारी बिन रहि सकथे, फेर भाँखा बोलइया बिन नइ जी सके। महतारी अउ महतारी भाँखा ले दुरिहाई बने बात नोहे। जइसे कोनो लइका अपने महतारी ला महतारी कहिथे, कोनो आन ला नइ कहय, वइसने महतारी भाँखा ला घलो ओखर जनइया मन ला बोले, बउरे बर लगही। आन मनके मुँह ताकना गलत हे।  जइसे मातृ अउ मातृभूमि ला सरग ले बढ़ के हे केहे गेहे, वइसने बड़का हे मातृभाषा। जनम देवइया अउ पालन करइया ददा दाई के मुख के बोली लइका बर महतारी भाँखा बोली आय, जेमा दया, मया, ममता घुरे रहिथे।


                     कोनो भी भाँखा बोली कागज पाथर मा कतको लिखा जाये, यदि बोलइया समझया नइ रही ता, प्राचीन काल के कतको भाँखा- बोली अउ लिपि कस कोनो संग्राहालय मा माड़े रहि जाही या फेर बिरथा हो जही। मनखे अपन मन के भाव ला भाँखा मा उतारथे, जेला समझ के आन मनखे ओखर संग जुड़थे। भाँखा मनखे ला जीव जानवर ले अलगाथे,भाँखा बिन मनखे, मनखे मनले नइ मिल सके। भाँखा भाव, भजन, भ्रमण सबे बर जरूरी हे। मनखे भले सुख मा दाई, ददा ला नइ सोरियाही, फेर आफत मा ए ददा, ए दाई कहिबेच करथे। कहे के मतलब महतारी अन्तस् मा रचे बसे रहिथे, वइसनेच आय महतारी भाँखा। भले देखावा मा मनखे महतारी अउ महतारी भाँखा ला बिसार देथे, फेर आचार, विचार, संस्कार के दाता उही आय। महतारी भाँखा के संग मनखे के दया-मया, संस्कृति अउ संस्कार जुड़े होथे। महतारी भाँखा ले दुरिहाना मतलब अपन संस्कृति अउ संस्कार ला तजना हे। आज अपन भाँखा बोली के बढ़वार बर खुदे ला महिनत करे के जरूरत हे। कोनो भी चीज ला बनावत बड़ बेर लगथे, फेर उझारत छिन भर। अइसन मा चलत कोनो भाँखा बन्द हो जाय, दुर्भाग्य के बात हे। जइसे पानी ढलान कोती बहिथे, वइसने भाँखा घलो सरल कोती भागथे। अपन जुन्ना बोली बचन अउ माटी जे सुवाद मा नवा जमाना के शब्दकोश ला शामिल करत, कठिन ले सरल के रथ मा सवार होके, उदार भाव ले सबला स्वीकारत आज कोनो भी भाँखा बोली के अस्तित्व ला बचाये के उदिम करना चाही,तभे नवा जमाना संग जुन्ना बोली भाँखा टिक पाही। छत्तीसगढ़ी सवांगा पहिर के फ़ोटो खींचाय ले कुछु नइ होह, अन्तस् के निर्मल भाव अउ समर्पण जरूरी हे, नही ते देखावा रूपी सुरसा के मुँह मा कतको चीज समा जथे।


                    ये दुनिया विशाल हे। आज नवा जमाना मा मनखे सबे देश राज संग जुड़ के चलत हे। गाँव, शहर ले, शहर, महानगर अउ देश-विदेश ले जुड़े हे। सियान मन हाना मारत कहिथे कि, कोश कोश मा पानी बदले अउ  चार कोश मा बानी।  माने दुनिया मा बड़ अकन भाँखा  हे, जेखर पार पाना मुश्किल हे। आज मनखे सबे संग कदम ले कदम मिलाके चलत हे, अइसन मा एक सम्पर्क भाँखा जरूरत बन जाथे। मनखे ला महतारी भाँखा के संगे संग अपन देश अउ विश्व भर मा प्रचलित मुख्य भाँखा ला बोलना अउ समझना चाही। पहली संचार अउ सोसल मीडिया के अतिक व्यापकता नइ रिहिस, ना सबे मनखे के विश्वभर मा जाना आना, ते पाय के  वो समय मनखे मन एक या दुये भाँखा जाने, पर आज अपन अस्तित्व बर महतारी भाँखा के संगे संग सम्पर्क भाँखा ला जानना जरूरी हे। भारत मा आज हिंदी सबे कोती बोले समझे जावत हे। संगे संग व्यापारिक भाषा के रूप मा अंग्रेजी जम्मो देश मा पाँव पसारत हे। मनखे मन ला अपन महतारी भाँखा के संग हिंदी, अउ अंग्रेजी के ज्ञान घलो होना चाही। आज के लइका मानसिक रूप ले ये सब बर तियार हे, कोनो लइका मन  ऊपर  एक ले अधिक भाषा ला बोले सीखे बर कहना,थोपना नही, बल्कि आज के जरूरत के रूप मा, बहुभाषी बनना कहे जाथे। एक भाषा ला धरके चलना आज सम्भव नइ हे, काबर कि मनखे जुड़ चुके हे, सरी दुनिया संग। आज भाषा जमाना के  नवा रूप के संग, सोसल मीडिया मा घलो जघा बनावत जावत हे। सब ला अपन महतारी भाँखा ला नवा दशा दिशा देना चाही, ओखर प्रसिद्धि अउ बढ़वार बर सोचना चाही। अनुवादिक एप, गूगल, टाइपिंग जैसे आज के जरूरी एप मा महतारी भाँखा दिखे, एखर बर आज के बुधियार लइका मन ला बूता करना चाही, ताकि भाषा सोसल मीडिया मा  घलो जिंदा रहे अउ सबला सहज समझ आये, तभे भाँखा के उमर बाढ़ही।


अपन भाँखा के मान करव ,

दूसर भाँखा के सम्मान करव।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


महतारी भाँखा दिवस के आप सबो ला सादर बधाई,

21 फरवरी - महतारी भाषा दिवस मा मोर विचार

 21 फरवरी - महतारी भाषा दिवस मा मोर विचार 


  कतको इतिहासकार मन के मत हे कि हमर छत्तीसगढ भगवान श्री रामचंद्र के माता कौशल्या के मईके हरे. छत्तीसगढ़ के पुराना नांव कोसल रिहिस  अउ इहां के भाषा ल कोसली कहे जाय.कौशल्या के नांव भानुमति रिहिस जउन ह दक्षिण कौशल के महाप्रतापी राजा  भानुमनत के बेटी रिहिन. अयोध्या के राजा दशरथ के महारानी भानुमति कौशल प्रदेश के होय के कारन आगू चलके कौशल्या कहलाइस. आदिकाल म छत्तीसगढ़ महाकौशल  नांव ले प्रसिद्ध रहे हे. श्रीराम के जनम भले अयोध्या म होय हे पर कर्मभूमि छत्तीसगढ़ रहे हे. श्रीराम के ननिहाल दक्षिण कौशल म चंदखुरी (आरंग) हरे. बाल्मिकी द्वारा रचित रामायण के अनुसार सूर्यवंशी श्री राम अपन वनवास काल म लगभग बारह बछर तक इही छत्तीसगढ़ (सिहावा) राज्य म वो समय के सप्तऋषि क्षेत्र म बिताय रिहिन.


हैदरअली अउ रत्नदेव के बाद पृथ्वी देव,जाजल्व देव चेदीवंशीय राजा मन कोसल प्रदेश म ३६ किले (गढ़) बनवाइस.येकर अलावा गोंड राजा मन घलो गढ़ बनवाइस.चेदीवंशी राजा मन के कारन ये राज के नांव चेदीसगढ़ रखे गिस जो आगू चलके छत्तीसगढ़ कहलाइस. तेकर सेति इहां के कोसली भाषा ह घलो छत्तीसगढ़ी कहलाय लागिस.  छत्तीसगढ़ी अब्बड़ पुराना भाषा आय .राज्याश्रय नइ मिल पाय के कारन छत्तीसगढ़ी के लीखित रुप विकसित नइ हो पाईस.पर इहां के जन जीवन म ये भाषा ह मौखिक रूप ले बराबर फूल -फरत अउ बाढ़त रिहिस.अउ आजो सही ढंग ले राज्याश्रय नइ मिल पाय के कारन संविधान के आठवीं अनुसूची म शामिल नइ हो पात हे. 


आज छत्तीसगढ़ राज्य बने बाईस बछर होगे. अलगे छत्तीसगढ़ के मांग अंग्रेज शासन के समय ले करे जात रिहिस. हमर छत्तीसगढ ह मध्यप्रदेश संग चौंवालीस बछर तक रिहिस. अलगे छत्तीसगढ़ राज बर हमर पुरखा मन अब्बड़ लड़ाई लड़िन हे. राजनीति दल के संगे संग हमर छत्तीसगढ के साहित्यकार, कलाकार, पत्रकार अउ मजदूर, किसान मन के गजब सुग्घर योगदान हे. ये बहुत बढ़िया बात हे कि छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन म कोनो किसम के खून- खराबा, सरकारी संपत्ति ल नुकसान  नइ पहुंचाय गिस. ये हमर छत्तीसगढ के बड़का उपलब्धि हरे.आप सब ल मालूम हे कि 

आने राज बने म नंगत खून खराबा होय हे. 

  छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना म इहां के साहित्यकार अउ कलाकार मन के गजब सुग्घर योगदान हे.


कोनो भी देश अउ राज्य के पहिचान उहां के भाषा के माध्यम ले होथे.अपन स्वाभिमान, अतीत के गौरव, संस्कृति के रक्षा अउ विकास बर अपन मातृभाषा सबले बड़का माध्यम होथे. वइसने छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ के आत्मा हरे. हमर छत्तीसगढ़ी ह आठवीं अनुसूची म शामिल होय बर लड़त हे.


आवव अब छत्तीसगढ़ी साहित्यकार के व्यक्तित्व अउ कृतित्व के चर्चा करथन -


धनी धर्मदास - संत धर्मदास संत कबीर के शिष्य रिहिन. उंकर जनम  सन १३९५ म कसौदा गांव , बाधोगढ़,के वैश्य परिवार म होय रिहिन हे.  उन्कर कर्म क्षेत्र छत्तीसगढ़ रिहिन. बांधो गढ़ पहिली छत्तीसगढ़ म रहिस हे.१४५२ म वो सत्यलोक प्रयान करिन. हेमनाथ यदु जी ह धर्मदास ल छत्तीसगढ़ी के पहिली कवि मानथे.  वोहर कवर्धा (कबीरधाम) म कबीर पंथ‌ के स्थापना करिन. वोहर संत कबीर ले प्रेरित होके निर्गुन भक्ति के कतको पद के रचना छत्तीसगढ़ी भाषा म करिन. वोकर पद म हमला छत्तीसगढ़ी भाषा के पुराना रूप के दर्शन होथे.  छत्तीसगढ़ी चौका गीत म धर्मदास के नांव के उल्लेख हे.ये ह लोकगीत अउ लोक भजन के रूप म गजब प्रसिद्ध हे. संत धर्मदास ह लोक गीत के सहज,सरल शैली म निगूढ़तम दार्शनिक भावना ल अभिव्यक्त करिन. धर्मदास के उद्देश्य साहित्य सृजन करना नइ रिहिस. वोहर

तो निर्गुन भक्ति के प्रचार के रूप म छत्तीसगढ़ी ले प्रभावित होके पद लिख के संतोस कर लेइस.


जमुनिया की डार मोरी टोर देव हो।

एक जमुनिया के चउदा डारा,सार शबद ले के मोड़ देव हो.


मोर हीरा गवां के कचरा में, कोई पूरब,कोई पछिमम बतावै, कोई बतावै है पानी पथरा में।


छत्तीसगढ़ के संस्कृति, साहित्य अउ धर्म परंरपरा के बढ़वार म संत धर्मदास के अब्बड़ योगदान हे.


दलपत राव - खैरागढ़ के राजा लक्ष्मी निधि राय के चारण कवि दलपतराव ह सबले पहिली छत्तीसगढ़ शब्द के प्रयोग १४९४ ई.म करे रिहिन.


सुंदर राव - देवी प्रसाद शर्मा,बच्चू जाजगीरी है खैरागढ़ के कवि सुंदर राव ल छत्तीसगढ़ी के पहिली कवि बताय हे. १६४६ म रचित उंकर कविता म छत्तीसगढ़ी के पुट कम दिखथे अउ अवधी के नजदीक जादा दिखथे. 


गोपाल मिश्र और माखन मिश्र-  


 गोपाल मिश्र रतनपुर के हैहयवंशी राजा राज सिंह के राजकवि अउ दीवान रिहिन.राम नरेश त्रिपाठी ह उंकर जनम १६३३अउ 

प्यारेलाल गुप्त ह १६३४ माने हे. उंकर रचना' खूब तमाशा' अब्बड़  प्रसिद्ध होइस.उंकर आखिरी अपूर्ण ग्रंथ 'राम प्रताप' ल वोकर सुयोग्य बेटा कवि माखन मिश्र ह 

पूरा करिन.   हरि ठाकुर के कहना हे कि गोपाल मिश्र एक महान कवि रिहिन पर वो मन अपन साहित्य के रचना छत्तीसगढ़ी म नइ करिन. येला छत्तीसगढ़ी के दुर्भाग्य ही कहे जा सकथे.


बाबू रेवा राम - बाबू रेवा राम बहुमुखी प्रतिभा के धनी रिहिन. वोकर जनम रतनपुर म सन् १८१३ म होय रिहिस. वोहर हिंदी, संस्कृत, ब्रजभाषा,अउ छत्तीसगढ़ी के बढ़िया जानकार रिहिन हे. संगे संग उर्दू अउ फारसी म घलो अधिकार रखे. हरि ठाकुर जी के अनुसार रेवाराम बाबू छत्तीसगढ़ी म कुछ भजन लिखा के थिरागे. समीक्षक अउ भाषाविद् डा. विनायक कुमार पाठक के कहना हे कि बाबू रेवा राम के रचना 'सिंहासन बत्तीसी'  म छत्तीसगढ़ी के पुट देखे ल मिलथे.


प्रहलाद दुबे - सत्रहवीं शताब्दी म सारंगढ़ निवासी प्रहलाद दुबे के रचना 'जय चंद्रिका ' म छत्तीसगढ़ी के प्रकृत रूप देखे ल मिलथे.


संत घासी दास - संत घासीदास के जनम छत्तीसगढ़  के गिरौदपुरी म  होय रिहिस हे. सतनाम पंथ के संस्थापक संत घासी दास के उपदेश छत्तीसगढ़ी म लिखे गे हवय. उंकर रचना म संसारिक संबंध के असारता अउ ईश्वरीय  कृपा के प्राप्ति के इच्छा ह झलकथे. 'चल हंसा अमर लोक जइबो ' अउ ' खेलथे दिन चार मइहर मा '  जइसन पद येकर उदाहरण हे.


नरसिंह दास वैष्णव - समीक्षक डा.विनय कुमार पाठक ह जांजगीर जिले के गांव तुलसी निवासी नरसिंह दास वैष्णव ल छत्तीसगढ़ी के पहिली कवि मानथे. उंकर रचना शिवायन (१९०४)म आय रिहिस.


पंडित सुंदरलाल शर्मा - डा. नरेन्द्र देव वर्मा ह छत्तीसगढ़ी के प्रथम कवि चमसूर ( राजिम)निवासी, छत्तीसगढ़ के गांधी  पंडित सुंदरलाल शर्मा ल मानथे.छत्तीसगढ़ी म 

बड़का सृजन करइया वो पहिली रचनाकार रिहिन. १९०६ म प्रकाशित' छत्तीसगढ़ी दान लीला ' अब्बड़ प्रसिद्ध होइस.येहा छत्तीसगढ़ी के पहिली प्रबंध काव्य माने जाथे. ये कृति ह हमर छत्तीसगढ के साहित्यकार मन ल छत्तीसगढ़ी म लिखे बर प्रेरित करिन. उंकर देहावसान २८ दिसंबर १९४०म होइस.


पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय - नंद किशोर तिवारी जी ह पं.लोचन प्रसाद पाण्डेय ल छत्तीसगढ़ी के पहिली कवि बताय हे. अइसने दया शंकर शुक्ल ह घलो' कविता कुसुम ' १९०८-०९ म‌ प्रकाशित उंकर छत्तीसगढ़ी कविता ल छत्तीसगढ़ी के पहिली रचना माने हे. 


हरि ठाकुर -  सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर प्यारेलाल लाल सिंह जी के पुत्र, छत्तीसगढ़ी गीतकार हरि ठाकुर जी छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन ले 1956 ले जुड़ गे रिहिन. उंकर रचना म छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान झलकथे. छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह पर खण्ड काव्य अउ छत्तीसगढ़ी गीत अउ कविता लिख के छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ल जगाइस. राजनांदगांव के विद्रोही कवि कुंज बिहारी चौबे जी के छत्तीसगढ़ी कविता मन के संपादक करिन.


डा.नरेंद्र देव वर्मा - छत्तीसगढ़ राज्य गीत -अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार... के रचयिता डा. नरेन्द्र देव वर्मा हरे. ये गीत ह छत्तीसगढ़वासी मन के स्वाभिमान ल जगाय के काम करिन. सोनहा बिहान के लेखक.


लक्ष्मण मस्तुरिया - दाऊ रामचंद्र देशमुख द्वारा स्थापित' चंदैनी गोंदा' बर गीत लिख के स्थापित होय लक्ष्मण मस्तुरिया जी के छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना म अब्बड़ योगदान हे. उंकर लिखे गीत - 'मोर संग चलव रे' अउ  'मंय छत्तीसगढ़िया अंव रे'  ह अलग छत्तीसगढ़ राज्य के नेंव तइयार करिस.


संत कवि पवन दीवान - संत कवि पवन दीवान जी ह प्रवचन अउ कवि सम्मेलन के माध्यम ले अलगे छत्तीसगढ़ राज्य बर जनता मन ल जागरुक करिन. छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन म गजब योगदान दिस. दीवान जी के गीत 'तोर धरती तोर माटी ' ले छत्तीसगढ़वासी मन म जागृति आइस.


गिरिवर दास वैष्णव - छत्तीसगढ़ सुराज गीत


डॉ निरुपमा शर्मा- डॉ निरुपमा शर्मा छत्तीसगढ़ी के प्रथम कवित्री माने जाथे . उंकर पतरेंगी रचना के अब्बड़ सोर होइस.


अइसने  छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन म  बंशीधर पांडे ,सीताराम मिश्र ,लखन लाल गुप्त, प्यारे लाल गुप्त, नारायण लाल परमार, भगवती लाल सेन,चतुर्भुज देवांगन ,हनुमंत नायडू  कुंजबिहारी चौबे,द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र जी, कोदू राम दलित, मेहत्तर राम साहू जी, डॉ.खूबचंद बघेल, केयूर भूषण, श्याम लाल चतुर्वेदी, दानेश्वर शर्मा, रामेश्वर वैष्णव, नंदकिशोर तिवारी, डॉक्टर परदेशी राम वर्मा,डा.विमल कुमार पाठक,‌ बसंत दीवान,शिव शंकर शुक्ल, डा.बल्देव साव,डा. बिहारी लाल साहू, डॉक्टर बलदाऊ राम साहू, रामेश्वर शर्मा, लाला जगदलपुरी,विश्वंभर यादव मरहा, डा. गोरे लाल चंदेल,डा. जीवन यदु, रामेश्वर वैष्णव,डा.पीसी लाल यादव , पं. नूतन प्रसाद शर्मा, कुबेर सिंह साहू, डा. दादू लाल जोशी,मुकुंद कौशल  उधो राम झखमार , रामेश्वर वैष्णव,सुरेन्द्र दुबे, मीर अली मीर, संजीव बक्शी, संजीव तिवारी, शत्रुघन सिंह राजपूत ,हेमनाथ यदु, सुरजीत नवदीप ,गणेश सोनी प्रतीक, दुर्गा प्रसाद पाकर ,सुशील भोले, गुलाल वर्मा ,डॉक्टर धुर्वे नंदन , डा.दीनदयाल साहू ,प्यारेलाल देशमुख ,संतराम निषाद,सीता राम साहू श्याम , डॉक्टर रामनाथ साहू, टिकेंद्र टिकरिहा गजानंद देवांगन, चंद्रहास साहू, ध्रुव राम वर्मा, अरुण कुमार निगम,  डॉ निरुपमा शर्मा,डॉ सुधा वर्मा ,डॉक्टर सत्यभामा आडिल, सरला शर्मा, बसंती वर्मा,शोभा मोहन श्रीवास्तव,आशा देशमुख सहित कतको रचनाकार मन अपन रचना के माध्यम ले छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना अपन योगदान दिस. कतको साहित्यकार मन छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन म भाग लिस. 


छत्तीसगढ़ी शब्दकोश, व्याकरण म हीरालाल काव्योपाध्याय  डॉ क्रांति कुमार ,शंकर शेष, डा.पालेश्वर शर्मा डॉक्टर नरेंद्र  देव वर्मा ,भालचंद राव तैलंग ,नरेंद्र कुमार सौदर्शन ,रमेशचंद्र महरोत्रा, मन्नूलाल यदु ,साधना जैन,डॉक्टर विनय कुमार पाठक, डॉक्टर चंद्र कुमार चंद्राकर, पुनीत गुरु वंश ,डॉक्टर विनोद वर्मा ,डॉ गीतेश अमरोहित  जइसन विद्वान मन पोठ काम करे हे. 


पाछु पांच बछर ले छंदविद  अरुण कुमार निगम द्वारा स्थापित छंद के छ छत्तीसगढ़  के माध्यम ले छत्तीसगढ़ के कवि मन छत्तीसगढ़ी म छंदबद्ध रचना करके छत्तीसगढ़ी साहित्य के कोठी ल़

 समृद्ध करत हे. 

छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर ग्रुप के माध्यम ले पद्य के  गद्य म   सुघ्घर काम चलत हे  जउन छत्तीसगढ़ी साहित्य ल बढ़वार करत हे.



          ओमप्रकाश साहू" अंकुर"


        सुरगी, राजनांदगांव

किताब के गोठ// लइकई ल आॅंखी-आॅंखी म झुलावत 'फुरफुन्दी'


 

किताब के गोठ//

लइकई ल आॅंखी-आॅंखी म झुलावत 'फुरफुन्दी'


    मयारुक रचनाकार कन्हैया साहू 'अमित' के हाले म आए बाल कविता संग्रह 'फुरफुन्दी' ल हाथ म धरते अपन लइकई ह आॅंखी-आॅंखी म झुले लागिस. जब हमन फुरफुन्दी के पाछू भागत-भागत बारी-बखरी के संगे-संग स्कूल तक चल देवत रेहेन, अउ लहुटत घलो उहिच उदिम म बूड़े राहन. कभू-कभू तो फुरफुन्दी के पूछी म सुतरी बॉंध के संगी मन संग रेस घलो लड़ा देवन, के काकर फुरफुन्दी जादा उड़ियाथे.


    फुरफुन्दी किताब के भीतर म अमाते अपन लइकई के संगे-संग अपन नाती-नतुरा मन संग खेलत, उनला लुढ़ारत अउ कुछ बने बुता करे के गोठ सिखोवत जम्मो दृश्य ह चित्रमय कविता संग दिखे लागिस.


    आज के छत्तीसगढ़ी लेखन म चारों खुंट गहराई अउ चिंतन-मनन देखे म आवत हे. अब गरब होथे इहाँ के रचना संसार ल देख के अउ मन म भरोसा जागथे, के अब एला कोनो भी लोकभाषा संग सरेखा कर के देखे जा सकथे. खासकर अभी लेखन म सक्रिय नवा पीढ़ी जेन किसम ले हर विषय अउ हर विधा म कलम चलावत हे, वो ह अंतस ल आनंदित करने वाला हे.


    कन्हैया साहू जी प्राथमिक शाला म शिक्षक होए के संगे-संग एक सिद्धहस्त छंदबद्ध कविता के रचनाकार घलो आय, एकरे सेती उंकर ए संकलन म उंकर ए दूनों रूप के चिन्हारी मिलथे. नान्हे लइका मनला कक्षा म पढ़ावत-सिखावत उन उंकर मन-अंतस म झॉंके अउ टमड़े के उदिम करथें, उही मनला अपन कविता के विषय घलो बना लेथें. ठउका अइसने छंदबद्ध कविता लेखन म पारंगत होय के सेती उंकर जम्मो रचना मन म लय-ताल सउंहे दिखे लगथे. जब ए मनला पढ़बे त मन मस्तिष्क म सुर-ताल अपने-अपन गूंजे लागथे. देखव उंकर घरघुॅंदिया  खेले बर बलावत कविता ल-


आवव अघनू, अगम, अघनिया.

खेलन फुतका मा घरघुॅंदिया.. 

घर अॅंगना अउ कोलाबारी.

सुग्घर सबके पटही तारी.. 


    लइकई म फिलफिली चलाय के अपने च आनंद  होथे. देखव ए डॉंड़ ल-


चलय फिलफिली फरफर-फरफर. 

अपने सुर मा सरसर-सरसर.. 

रिंगी-चिंगी रंग मा रंगे.

चक्कर खाय हवा के संगे.. 

सनन-सनन ये बड़ इतरावय.

लइका मनला पोठ लुहावय.. 


    ए किताब के शीर्षक रचना फुरफुन्दी ल देखव-


लइकन ला भाथे फुरफुन्दी.

सादा, लाली, छिटही बुन्दी.. 

पकड़े बर लइका ललचाथे.

आगू-पाछू उरभट जाथे.. 

फूल-फूल मा झूमे रहिथें.

कान-कान म का इन कहिथें..

 

    रचना मन म ओ जम्मो विषय ल संघारे के कोशिश होय हे, जेन लइका मन बर आवश्यक होथे, एकर संगे-संग जनउला अउ हाना मनला घलो संघारे गे हवय. मच्छर जेला हमन छत्तीसगढ़ी म भुसड़ी कहिथन. एकर ले संबंधित ए जनउला देखव-


बिन बलाय मैं आथॅंव जाथॅंव.

फोकट म सुजी घलो लगाथॅंव.. 

साफ सफाई जे नइ राहय.

वोला तुरते रोग धराथॅंव.. 


    पान-सुपारी खवावत एक जनउला देखव-


पॉंच परेवा पॉंचों संग.

महल भितरी एक्के रंग.. 

एक जगा जम्मो सकलाय.

नइ कोनो पहिचाने पाय.. 


    जी. एच. पब्लिकेशन, प्रयागराज ले छपे ए बाल कविता संग्रह म कुल 47 कविता मनला संग्रहित करे गे हवय. कुल 64 पेज म सकलाय ए संग्रह के कीमत 150 रु. राखे गे हवय. 


    ए संकलन खातिर मैं रचनाकार कन्हैया साहू 'अमित' जी ल गाड़ा-गाड़ा बधाई संग शुभकामना देवत हौं, उन आगू घलो अइसन पोठ उदिम करत राहॅंय, छत्तीसगढ़ी के ढाबा ल भरत राहॅंय.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

लोक अउ साहित्यिक चेतना"

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       लोक अउ साहित्यिक चेतना एकर उपर बड़का विद्वान मन के गोठ जाने सुने बर मिलत रथे। अउ ये बिषय उपर कतको चर्चा होही कमती ही हो सकथे। आज कुछ विचार मन मा हिलोर मारिस त कुछ लिखागे। पहिली बात लोक - लोक माने आम जन मानस होथे। लोक समूह वाचक शब्द आय जेमा लिंग भेद नइ रहय। स्त्री पुरुष बुढ़वा जवान सब के समूह हर ही लोक आय। आगू के बात मा साहित्य चेतना आथे। अब यहू विचार करे जा सकथे कि आम जन मानस मा साहित्य के चेतना या चेतना मा साहित्य कइसे पनपिस होही। एकर सुत्रधार कोन हरे, कब के हरे। अउ कतको सवाल मन मा उथत रथे। चेतना माने चेतन या जागृत  अवस्था। जे हर लोक के संतुलित मानसिकता संतुलित व्यवहार ला दर्शाथे। चेतन या जागरूक अवस्था हर ही मनखे के पहिचान हो सकथे। नइते आदमी अउ पशु पक्षी मा भेद नइ रही जाही।

             मानवीय विकास के प्रक्रिया मा चेतना चैतन्यता विवेक अउ विचारशीलता हर नवा सृजन नवा निर्माण बर प्रेरित करिस होही। लोक के हर विकास क्रम मा एक ठन प्रयोग हर अंतिम रूप धारण करिस होही। लोक के बीच मा  आर्थिक विकास के चेतना संस्कृति अउ संस्कार के चेतना समाजिक स्वरूप के चेतना के सँग मनोरंजन के विकास बर चेतना जागिस। कभू कभू अइसे लगथे कि इन सब के कोनो न कोनो वाचिक या लिखित साहित्य हर ही चेतना जगाइस होही। हर छोटे बड़े क्रमिक विकास के प्रवृत्ति हर ही संस्कार हर बनत चले आगे। इही क्रम मा लोक के सँग एक बड़का प्रभावशाली तथ्य जुड़े मिलथे जेला साहित्य चेतना कहे जा सकथे। इही साहित्यिक चेतना हर मानवीय विकास के मूल हो सकथे। एकरे सेती साहित्य ला समाज के दर्पण अभी से नहीं बल्कि जबले साहित्य हर विचार अउ भावना ला लोक मा एक दूसर ले बाँटे के माध्यम बनिस तब ले कहत हे ये सोच हो सकथे। साहित्य समाज ला रसता देखाथे लोक के भीतर लोक कल्याणकारी भावना जगाथे। लोक मा व्याप्त विसंगति ला दूर करे के सीख देथे। उही कारण हे कि साहित्य सदा अमर रथे। अउ समय काल परिस्थित के हिसाब ले साहित्य के अलग अलग विधा नवा सँवागा के सँग लोक के बीच आवत रथे।

      मानवीय विकास के प्रक्रिया मा मनखे चेतना जागे ले डारा पाना मा तन ढकने वाला मनखे कपड़ा लत्ता के आश्रय तक आगे। अपन विचार ला लोक तक पहुंचाय बर लोगन वो तरकीब ला घलो अपनाइन जेकर माध्यम ले  कमती मा जादा सरल सहज के सँग गहिरा चिंतन शीलबात ला कहे जा सके। शायद इही प्रयास के  नाम हर ही साहित्य परगे। ये हमर कल्पना हो सकथे। साहित्य के दू विधा हे एक गद्य अउ दुसर पद्य। दुनो विधा मा अपन वात ला प्रभावशाली शब्द शिल्प के माध्यम ले लोक तक रखे जाथे। शुरुआती वाचिक परम्परा से लेके लिखित अउ आधुनिक मिडिया के जमाना तक साहित्य लोक के बीच समाहित हे। या यहू कहे जा सकथे कि  लोक हर साहित्य सँग जीथे। साहित्य मा सम्पूर्ण लोक कल्याण सम्पूर्ण मानवीय विकास के चिन्तनशील विषय वस्तु रथे। इही कारण हे कि लोक मा साहित्य के प्रति चेतना कतको जुग ले जुड़े हे। अउ आगू घलो जुड़े रही।

           आज हम जौन पढ़त लिखत या सुनत हावन सब साहित्य चेतना के परिणाम आय। मानव समाज मा साहित्य के प्रति चेतना या लगाव नइ रही तौ ये सच हे कि सामाजिकता अउ मानवीय व्यवहार मा सुन्यता आ जही। विज्ञान के जोर ले विकास तो संभव हे फेर साहित्य के सुन्यता ले व्यवहार मा पशुता के भाव उभर सकथे। दुनिया मा सम्हल के तमड़ के रेंगे बर साहित्य रूपी गोटानी जरूरी हे।

         साहित्य के प्रति लगाव सबो मनखे ला रथे। कोनो सुनेके कोनो पढ़ेके त कोनो लिखे के रूचि रखथे। विचार अउ भावना के समुन्दर मा गोता लगाके शब्द ला पिरोके लिखथे तब वो साहित्य के रूप ले लेथे। लिखित साहित्य कतको जुग ले जिन्दा रहिके समाज ला रसता देखावत रथे। अब इँहा मन मा बात उभरथे कि आज के दुषित व्यवस्था गंदगी भरे वातावरण मा साहित्य कतका सामर्थ्यवान हे। दूसर आज जौन साहित्य रचे जावत हे लोक सँग जुड़े मा कतका बलकारी हे। साहित्यिक चेतना साहित्य के प्रति चेतना के स्तर का हे? लोक के प्रति चेतना या लगाव तभे होथे जब कोनो भाषा के साहित्य मा भाषा भाव कथ्य शिल्प अउ साहित्यिक सौन्दर्यता के दर्शन होथे। वो हर सहज रूप ले लोक   सँग जुड़ जथे। उही ला लोक चेतना कहे जा सकथे। इही कारण हे कि चार लाईन के दोहासोरठा चौपाई के भाव प्रधान कथ्य हर लोक मा जगा बनाके जबान मा रमे रथे।  तब अपन कथ्य ला  शब्द शिल्प मा ढालके लोक तक परोसे जाथे तब जेन लगाव या जुड़ाव के भाव लोक मा अवतरित होथे उही हर साहित्यिक चेतना हो सकथे। माने जौन लिखित या वाचिक साहित्य बर चित्त मा चिन्तन होय ले चेतना या चैतन्यता जागथे वो साहित्य हर लोक के होके मानविय विकास मा जुड़ जाथे तब कहि सकथन कि लोक के सँग साहित्य चेतना जुड़े हे। अउ हर साहित्य सृजन आ लोक के ही हर क्रिया कलाप आचार विचार व्यवहार अउ लोक जीवन के हर हिस्सा के किस्सा जुड़े रथे। तब लोक मा साहित्य चेतना कहन कि साहित्य चेतना मा लोक संदर्भ। एके बात हो सकथे।


               राजकुमार चौधरी "रौना"

            टेड़ेसरा राजनांदगांव 🙏🏻

Sunday 19 February 2023

शिव ही जीव समाना..


 


     शिव ही जीव समाना.. 

    शिव सनातन ये, आदि ये अंत ये, हम सबके जीवन के गीत ये संगीत ये। संत कबीर दास जी उंकर संबंध म कहे हें- 'ज्यूं बिम्बहिं प्रतिबिम्ब समाना, उदिक कुम्भ बिगराना, कहैं कबीर जानि भ्रम भागा शिव ही जीव समाना।" माने शिव सब कुछ ये, साकार ये, निराकार ये। समुंदर म छछले पानी कस निराकार घलो उही ये, त कोनो मरकी करसी म समा के वोकर रूप के आकार धरे साकार घलो उही ये। उही आत्मा ये, उही परमात्मा ये। जीव घलो उही ये अउ शिव रूपी परमात्मा घलो उही ये।


    महादेव के ये पावन परब म आज उंकर जम्मो रूप के, सरूप के सुरता करे के मन होवत हे। काबर उनला सर्वस्व कहे जाथे, माने जाथे एला सिरिफ साधना के माध्यम ले जे आत्मज्ञान मिलथे वोकरे द्वारा जाने जा सकथे। हर आदमी ल वो साधना करना चाही। काबर ते आज हमर मन जगा जतका भी लिखित अउ प्रकाशित रूप म साहित्य उपलब्ध हे, सब आपस म विरोधाभास पैदा करथें। तेकर सेती जेन कोनो ल भी सत्य तक पहुंचना हे, शिव तक पहुंचना हे, सुन्दर तक पहुंचना हे, वोला किताबी जंजाल ले बाहिर निकल के स्वतंत्र रूप ले साधना के माध्यम ले ज्ञान प्राप्त करना चाही।


    शिव ल मुख्य रूप ले तीन रूप म हमर आगू रखे जाथे- शिव लिंग या पिंड रूप, जटाधारी रूप अउ ज्योर्ति बिन्दु रूप। शिव ये तीनों रूप म लोगन ल अपन चिन्हारी दिए हें, उपासना के प्रतीक दिए हें अउ जीये के रस्ता बताये हें।  ज्योति स्वरूप ह वोकर मूल रूप ये, लिंग स्वरूप ह वोकर पूजा प्रतीक ये अउ जटा स्वरूप ह वोकर जीवन दर्शन ये।


   हमन ल जुन्ना ग्रंथ म एक कथा मिलथे के सृष्टिकाल म ब्रम्हा अउ विष्णु म कोन बड़े आय ये बात के सेती झगरा होवत रहिथे। दूनों अपन आप ल बड़े कहंय, तब दूनों के बीच म अग्नि स्तंभ के रूप म परमात्मा के प्रादूर्भाव होइस, अउ उनला ये कहिके शांत कराए गिस के असली तो मैं आंव, तुमन आपस म काबर लड़त हौ। तुंहला जेन बुता खातिर भेजे गे हवय वोला पूरा करव। तब जाके ब्रम्हा अउ विष्णु के झगरा थिराइस। ये अग्नि या ज्योति परगट होए के तिथि ह अगहन महीना के पुन्नी के तिथि आय। एकरे सेती अगहन महीना ल विशेष महीना माने जाथे। अग्नि स्वरूप परमात्मा ल अग्नि स्वरूप, ज्योति स्वरूप या ज्योर्तिबिन्दु के रूप म उल्लेख करे गे हवय।


    लागथे एकर असल कारन वो रूप के साक्षात करने वाला मनला वो दृश्य ल व्यक्त करे खातिर सहज ढंग ले जेन प्रतीक मिलिस तेकर उल्लेख करीन फेर आय सब एके मूल चीज। साधना काल म जब परमात्मा प्रसन्न होके साधक जगा ऊपर ले आथे तब जगाजग चमकत आके वोकर माथ म प्रवेश कर जाथे या फेर दिया जलाके रखे गे होथे वोकर बरत बाती म आसन पाथे। सृष्टि निरमान के बाद जब देवता मन परमात्मा ले अपन पूजा अउ उपासना के प्रतीक दिये के गोहार लगाइन तब उनला शिव लिंग के पूजा प्रताक दिये गिस। शिवलिंग के बारे म ए जानना जरूरी हवय के वोहर तेज रूप म संपूर्ण ब्रम्हाण्ड म व्याप्त सर्वव्यापी परमात्मा के प्रतीक स्वरूप आय।


    साधना काल म जब साधक ध्यान साधना म मगन रहिथे, तब तेज रूप म सर्वव्यापी परमात्मा अपन सबो रूप के दर्शन कराथे। सरी धरती अगास म संचरे वो परम शक्ति ह साधक ल दिखथे। वोकर ऊपरी आवरण ह हल्का भगवा गढऩ के दिखाई देथे। एकरे सेती परमात्मा के सर्वव्यापी रूप के प्रतीक स्वरूप शिवलिंग के पूजा करे जाथे अउ अवरण के रूप म भगवा रंग के वस्त्र के चलन होइस। परमात्मा शिव लिंग के रूप म पहिली बार सावन महीना के पुन्नी तिथि म परगट होए रिहिस हे तेकरे सेती सावन महीना ल ओकर पूजा के विशेष महीना के रूप म मनाये जाथे।


    सृष्टि संचालन होए लगिस त कतकों किसम के गुन अवगुन अउ सही गलत के चिनहा अनचिनहा के भेद म मति भ्रम के अवस्था बनत गिस। बने मनखे, गिनहा मनखे के भेद अउ न्याय व्यवस्था के स्थापना के जरूरत महसूस करे गिस तब परमात्मा जटाधारी रूप म परगट होईन अउ लोगन ल जीवन दर्शन देइन संगे-संग न्याय व्यवस्था के स्थापना खातिर संहारकर्ता के भूमिका घलोक निभाइन। आज तक बेरा-बेरा म जब अत्याचारी मन के चारों खुंट फैलाव हो जाथे तब न्याय रूपी धर्म के स्थापना खातिर अपन अंश के सिरजन करत रहिथें।


    सृष्टि के विकास क्रम म जतका भी अवतारी पुरुष संहारकर्ता के रूप म आवत रेहे हें सब वोकरे अंश यें। मोला तो इहाँ तक बताए गिस के राम अउ कृष्ण घलो मन वोकरे अंशावतार आंय। ज्ञान प्राप्ति काल म उन मोरे जगा पूछ बइठिन के संहारकर्ता काला कहिथें रे? त फेर राम अउ कृष्ण ह अपन जीवन म एकर छोड़ अउ का करे हे? 


    मैं बार-बार किताबी जंजाल ले निकले के बात करथंव। साधना के माध्यम ले ज्ञान प्राप्त करे के बात करथंव। तेकर असल कारन इही आय। असल म हमर इहां जतका भी किस्सा-कहानी के रूप म जतर-कतर किताब मन धर्म-ग्रंथ के रूप म चलत हें, वो सबला संशोधन करके प्रमाणित अउ हर किसम ले तर्क संगत ढंग ले नवा धर्म ग्रंथ या मार्गदर्शक ग्रंथ लिखे जाना चाही। कबीर दास जी एक जगा कहे हें- "तेरा-मेरा मनवा कैसे एक होई रे, तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आंखन देखी रे।" अइसने काल्पनिक किस्सा-कहानी मनके सेती आय तइसे लागथे।


    परमात्मा अपन जीवन-दर्शन दिए खातिर जेन जटाधारी रूप म आए रिहिन हें वो फागुन महीना के अंधियारी पाख के तेरस तिथि आय, जेला हमन महाशिवरात्रि के रूप म जानथन। हर देवता के साल म सिरिफ एके बार परब मनाये जाथे, फेर भोलेनाथ के तीन बार तीन अलग-अलग रूप म लोगन ल अपन चिन्हारी कराए हें तेकर सेती। उंकर साल म तीन पइत परब आथे- सावन पुन्नी, अगहन पुन्नी अउ फागुन अंधियारी पाख के तेरस तिथि। वइसे तो अपन आराध्य के हर दिन, हर पल सुमरनी करना चाही, फेर अइसन जेन वोकर मन के परगट होए के तिथि हे वोमा उंकर मन के पूजा उपासना के जादा महत्व अउ फलदायी होथे। भक्ति के, पूजा के, उपासना के कोई भी रूप हो सकथे, विविध विधि या शैली हो सकथे वोला पाये खातिर वो सबो ह सही अउ उचित होथे, पूर्ण होथे। एकरे सेती बिना कुछु अन्ते-तन्ते सोचे-गुने बिना परमात्मा पाये के मारग म आगू बढ़ना चाही।     

-सुशील भोले 

संजय नगर, रायपुर 

मो/व्हा. 98269-92811

मुँहु चिक्कन खबड़ा के

 मुँहु चिक्कन खबड़ा के 

                    भगवान कृष्ण के दुनिया ले विदा लेहे के सूचना चारों मुड़ा म जंगल म लगे आगी कस बगरगे ।  एला सुन ... गोकुल के जुन्ना संगवारी मन लकर धकर द्वारका कोति मसक दिन । भगवान हा ओमन ला देखिस त ओकर आँखी म आँसू आ गिस । भगवान हा केहे लगिस – तूमन ला मेहा कोन्हो सुख नइ देय पायेंव । अब तो जाय के बेर आगे हे ... अवइया युग म मिलबो त तुँहरों मन बर कुछ अच्छा करहूँ । ग्वाल सखा मन केहे लगिस – तोर दिये आशीष अभू तक चलत हे भगवान फेर तोर जाय के पाछू ... को जनि ओकर प्रभाव रइहि या सिरा जहि तेमा शंका हे .. तेकर सेती हमू मन अभू चल देबो । फेर आगू जनम म हमन मिलबो तेकर गारंटी देय बर लागही भगवान ।  तुँहर कृपा ले हमन ला अइसने खाय बर मिलत रहय तहू ला सुनिश्चित  करे बर लागही भगवान । 

                    भगवान किथे – तुम फिकर झन करव । तूमन ला खाय पिये बर लाला थापा  करे बर नइ लागय । तुमला खाय बर भरपूर मिलही । ग्वाला मन किथे – एक बात अऊ हे भगवान ... पूरा युग निकलगे हमन ला सत्ता के बागडोर नइ मिलिस । हमन तरस गेन । का अवइया युग म घला अइसने रहिबो अऊ खाये बर तुँहर मुँहु ताकबो ... । भगवान थोकिन सोंच म परगे अऊ केहे लगिस – तूमन मोर बहुत संग साथ दे हव .. तुँहर भारी उपकार हे मोर उपर ... तेकर सेती ब्रम्हाजी ला कहि देथँव ... ओहा अवइया युग म बाजी पलट दिही । तुँहर उपर मय आश्रित रइहूँ ... तुँहर ले बाँच जहि तभे मोला मिलहि । 

                    ग्वाला मन किथे – हमन राजा होके खाबो तहन हमन ला .... सब खावथे खावथे कहिके बदनाम करहि । तिंहीं केहे बर धर लेबे । भगवान किथे – तुँहरे संगवारी तुँही मनला बदनाम करही । तुम ओमन ला साध लेना । मे राम राम नइ कहँव ... मोर वचन हे  ।  तूमन अभू घला खाथव तेकर कोन्हो प्रमाण रहिथे का । अरे भई ... उहू समय ... सरबस खाके मोर मुँहु म चुपर देहु ... सब अभू कस  ... मुही ला खाये हे समझही ... । चाहे कतको खावव ... तुँहर मुँहु एक कनिक नइ छड़बड़ाय ... चिक्कन रहि । भगवान सब ला भरोसा देवा के चल दिस ।

                    कलयुग आ चुके रहय । सबके अगले इनिंग के तैयारी होवत रहय । ब्रम्हाजी हा भगवान कृष्ण के दिये वचन ला पूरा करे बर उपाय खोजत पस्त हो चुके रहय । ब्रम्हाजी के माथ म पछीना के धार बोहावत रहय । ओकर स्टेनो चित्रगुप्त किथे – का होगे भगवान ... भारी फिकर म बुड़े हस । सियनहा एकदमेच थकथकागे रहय । ओकर गमछा हा पछीना पोंछत निचोड़े लइक होगे रहय । चित्रगुप्त समझगे । ओला हार्ट अटेक फटेक झन आ जाय सोंच तुरते कारण खोज ... निवारण के उपाय रच डरिस । जम्मो झन ला भारत म जनम ले के व्यवस्था कर दिस ।  

                    कुछ दिन पाछू ... भगवान हा अपन दिये वचन के पालन सही साट होवत हे के निही ... तेकर सचाई जाने बर निकलिस । इहाँ अइस तब सत्यता जानिस । चित्रगुप्त हा जनता ला भगवान बना दे रिहिस । जेला खाय बर नइ मिलय फेर  ओकरे मुहुँ म जे पाये तेहा कुछु कहीं ला चुपर देथे । ग्वाल सखा मन देश म कर्णधार बन चुके रिहिस ... जेमन खावय तो बहुत फेर दिखय निही । भगवान पूछिस – मोला समझ नइ आवत हे  चित्रगुप्त । चित्रगुप्त बतइस – इहाँ लोकतंत्र के स्थापना कर दे हँव भगवान ... जेला समझ सकना तोर बस के बात नइहे ... तेकरे सेती तोला जनता के रूप दे देंव । जे मन समझ गिन तेमन ला कर्णधार बना देंव । तुँहरे दिये वचन के पालन होवत हे भगवान । भगवान ला बड़े बड़े पेट धरे कुछ बिगन खाये मनखे दिखगे ... जेमन खाये बर मरत रहय ... । भगवान पूछिस – येकर मन के पेट तो बड़े दिखत हे फेर येमन कभू खाय नइहे तइसे ... पोट पोट करत हे । चित्रगुप्त बतइस – इँकर धोंध भर चुके हे फेर खाय के इच्छा शक्ति कमतियावत नइहे तेकर सेती पोट पोट करत दिखत हे ... वाजिम म येमन खाये बर पोट पोट नइ करत हे भगवान ... बल्कि जनता के मुहुँ म खाये के सामान चुपरे के अवसर पाय बर पोट पोट करत हे । भगवान किहिस – फेर कलेचुप खवइया मन तो बिगन हुँके भुँके आराम से बइठे दिखत हे ... येमा का राज हे । चित्रगुप्त बतइस – वास्तव म इही मन सरकार आय ... अऊ पोट पोट करइया मन विपक्ष ... । भगवान पूछिस – मोर एक आखरी सवाल अऊ हे चित्रगुप्त .. येमन खाथे कहिथस ... त खाये के निशान तो एको कनिक नइ दिखत हे । चित्रगुप्त किहिस – तैं भुलागे हस भगवान । सब तोरे वचन के पालन करे के उदिम आय भगवान । जे जतका खाही ... ओतके ओकर मुँहु चिक्कन रइहि । 

                    भगवान भुखाये हाबे कहिके चारों मुड़ा म हल्ला माते रहय । ओला खवाये के होड़ लगे के ढिंढोरा पिटागे । खाये के सरी सामान जनता भगवान के आघू म आके माढ़गे । फेर ओला कोन्हो खाये बर नइ दिन ...  । ओकर हाथ म झुनझुना धरा दिन । जनता भगवान हा झुनझुना हलावत बइठे रहिगे । खाये के सरी सामान ... अपने अपन सिरागे ।  जनता  के मुँहु म खाये के सामान म छबड़ दिन ।  बिगन खाये जनता के मुँहु छबड़ाये  देख ... भगवान तिर पछताये के अलावा कुछ नइ बाँचिस । 

                    सरग पहुँचके ....  भगवान हा चित्रगुप्त ला तलब करिस । मोला तैं मारे के बनेच उदिम जमा डरे हस चित्रगुप्त । दू चार दिन धरती म अऊ रहि जतेंव ते भूख के मारे मर जतेंव । चित्रगुप्त किथे – तेकर सेती तो जनता बना के तोला राखे हँव ताकि तोला जादा दिन रेहे बर झन परय । ओकर जुम्मेवार घला तिंही तास । काँही जानस न सुनस ... जइसे पाय तइसे वचन देके लहुँट जथस । पालन करे बर  कतका उपाय करे बर लागथे तेला हमीं मन जानबो । भगवान किथे – ओ तो ठीक हे चित्रगुप्त ...  फेर मोला तोर संरचना म एक बात समझ नइ अइस । कोन्हो खावत दिखय निही तभो ले ... खाय के सामान हा अपने अपन कइसे सिरा जात रिहिस । चित्रगुप्त बतइस –  तोला के बेर उही उही बात ला बताहूँ ... अभू उहाँ लोकतंत्र हे भगवान । उहाँ  राज चलइया मन खुर्सी म बइठथे । उही खुर्सी म अइसे यंत्र फिट करदे हाँबो भगवान ... जेमा बइठे के पाछू कतको खा ...  दिखबे नइ करय । सामान सिरा जथे फेर खुर्सी म बइठइया हा खइस तेला प्रमाणित करना सम्भव नइ रहय । खुर्सी ले उतरे के पाछू ... कतका खइस ... तेहा दिखथे जरूर फेर प्रमाणित नइ होय सकय ...  । भगवान हा प्रश्नवाचक मुँहु बनाके देखिस । चित्रगुप्त समझगे के भगवान काये पूछना चाहत हे । ओहा बताये लगिस – मुँहु चिक्कन खबड़ा के ... तोरे वचन के पालन करे बर नियम बनगे  भगवान ... । भगवान हा उही दिन ले कोन्हो भी मनखे ला वचन नइ देय के कसम खा डरिस ।           

हरिशंकर गजानंद देवांगन .. छुरा .

सुरता - श्री रघुवीर अग्रवाल "पथिक"


 

*सुरता - श्री रघुवीर अग्रवाल "पथिक"* 


पथिक जी के जनम जन्म 4 अगस्त 1937 के ग्राम मोहबट्टा मा होइस। इनकर पिताजी के नाम नरसिंह प्रसाद अग्रवाल, माता जी के नाम अरुंधति देवी अग्रवाल अउ धर्मपत्नी के नाम निरूपण अग्रवाल हे।

 पथिक जी हिंदी और अर्थशास्त्र मा एम. ए. करे रहिन। उन मन  "साहित्य रत्न" के परीक्षा घलो पास करे रहिन। 

बी.एड. करे के बाद दुर्ग अउ विद्यालय मा अध्यापन के कार्य करिन। अगस्त 1995 मा बीएसपी कन्या उच्चतर माध्यमिक शाला सेक्टर 2 भिलाई ले वरिष्ठ उप प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त होए रहिन। पथिक जी 15 फरवरी 2020 के हम सब ला छोड़ के ब्रह्मलीन होगिन।


पथिक जी सन 1956 ले लेखन प्रारंभ करे रहिन। अनेक कविसम्मेलन के मंच मा आप काव्य पाठ करे रहेव। दूरदर्शन अउ आकाशवाणी ले अनेक कविता प्रसारित होए रहिन। राष्ट्रीय प्रादेशिक अउ क्षेत्रीय पत्र-पत्रिका मन मा आपके रचना प्रकाशित होवत रहिन। कई काव्य संग्रह में रचनाएं संग्रहित।


पथिक जी के पहिली हिन्दी काव्य संग्रह "जले रक्त से दीप" 1970 मा प्रकाशित होए रहिस।  छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह "उजियारा बगरावत चल" 2004 अउ 2009 मा प्रकाशित होइस। "काव्य यात्रा के 50 वर्ष" नाम के समीक्षात्मक पुस्तक 2011 मा प्रकाशित होइस। तेकर बाद "आही नवा अंजोर" नाम के  छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह 2015 मा प्रकाशित होइस। 


उत्कृष्ट लेखन बर पथिक जी ला अनेक संस्था मन सम्मानित करे रहिन। जइसे - 

प्रयास प्रकाशन एवं जिला छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति बिलासपुर द्वारा साहित्य सम्मान 2004 

अधिक सम्मान छत्तीसगढ़ लेखक संघ रायपुर 2008 

नारायण लाल परमार सम्मान धमतरी द्वारा प्रांतीय छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति रायपुर 2010 छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग द्वारा जगदलपुर में साहित्य सम्मान 2010 दुर्ग जिला हिंदी साहित्य समिति दुर्ग द्वारा आदर्श शिक्षक सम्मान 1999 एवं हिंदी दिवस पर शब्द साधक सम्मान 2001 सामुदायिक विकास विभाग भिलाई स्टील प्लांट भिलाई द्वारा साहित्य सम्मान 2002 स्टेट बैंक आफ इंडिया मुख्य शाखा दुर्ग द्वारा राजहरा सम्मान 2002 गायत्री प्रज्ञा पीठ आश्रम पुलगांव दुर्ग द्वारा प्रज्ञा प्रतिभा सम्मान 2010 गांधी विचार यात्रा के अंतर्गत ग्राम पारा में साहित्यिक सम्मान 2002 निवास शिक्षक नगर चिन्हारी सम्मान छत्तीसगढ़ साहित्य समिति दुर्ग द्वारा 2012 हीरालाल का उपाध्याय सम्मान रायपुर में सितंबर 2012


रघुवीर अग्रवाल "पथिक" जी के हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी भाषा ऊपर समान अधिकार रहिस। उँकर हिन्दी काव्य-संग्रह के कुछ पंक्ति मा उँकर शैली अउ श्रेष्ठता के सुग्घर परिचय मिल जाथे -   


जलें रक्त से दीप उठे ,बलिदानों की आरती।

उठो जवानो आज देश की धरती तुम्हें पुकारती ।।

(कविता - जलें रक्त से दीप के अंश)

 

हर सुबह यही लिखता सूरज का उजियारा 

संदेश सुनाता यही रात को हर तारा।

भारत का है कश्मीर सिर्फ भारत का है

लो घूम घूमकर पवन लगाता है नारा।

(कविता - अंगार उगलने लगी सुबह की लाली भी, के अंश) 


नौजवानों फिर हमें दी है चुनौती दुश्मनों ने 

फिर दिखा देंगे उन्हें क्या शौर्य है तूफान का 

मर मिटेंगे पर न देंगे हम कभी कश्मीर उनको 

जान ले संसार ही संकल्प हिंदुस्तान का 

(कविता - संकल्प हिंदुस्तान का, के अंश) 


*मुक्तक*


पसीने से लिखो साथी नए युग की कहानी 

दफन कर दो क्षमता की सभी बातें पुरानी 

हमारा देश मांगे रक्त या श्रम हम उसे देंगे 

बढ़ो आगे कहीं कल तक न ढल जाए जवानी ।।


*मुक्तक*


क्या पार हमारे भारत से टकराएगा 

क्या अंधकार सूरज से आँख मिलाएगा 

पाकिस्तानी शासन की अर्थी पर बैठे 

भुट्टो साहब क्या ढोलक रोज बजाएगा।।


रघुवीर अग्रवाल "पथिक" जी चार डाँड़ के मुक्तक असन कविता खूब करंय। उनकर पड़ोस मा कोदूराम "दलित" जी के निवास रहिस। दलित जी उँकर चार डाँड़ के कविता ला "चारगोड़िया" नाम दे रहिन। पथिक जी ला छत्तीसगढ़ी-चारगोड़िया के प्रवर्तक माने जाथे। छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह "उजियारा बगरावत चल" ले एक चरगोड़िया - 


*छत्तीसगढ़ी चारगोड़िया*


एक जन्म के नाता ला तुम टोरौ झन

सुनता के सुग्घर बँधना ला छोरो झन

बसे बसाई अपन देसला फोरो झन

बिख महुरा अलगाववाद के घोरव झन।


*छत्तीसगढ़ी दोहा* - 


राजनीति ल देख लौ, आजादी के बाद

संसद म टूटत हवै, संसद के मरयाद।।


ये मंदिर कानून के, बनिस अखाड़ा आज

मल्ल युद्ध नेता करें, देखे सकल समाज।।


हंगामा के होत हे, संसद म बरसात

धक्का मुक्की तो उहाँ, हे मामूली बात


*छत्तीसगढ़ी गजल*


गाँव सो कर मया दुलार संगी

गाँव चल देख खेतखार संगी।

देख आमा बगइचा के शोभा

धान के खेत कोठार संगी।। 

तैं गरीबी अउ अशिक्षा ला

देखबे गांव म हमार संगी।


*छत्तीसगढ़ी कविता*


कुर्सी फेंक, माइक टोर

अउ ककरो मूड़ी ल फोर

राजनीति म रोटी सेंक

पद अउ पइसा दुनों बटोर।

अतको म नइ काम बनय तौ

कालिख पोत दाँत निपोर

इही असीम ले हमर देश मा

जल्दी आही नवा अँजोर।


 आज तीसर पुण्यतिथि मा दुर्ग छत्तीसगढ़ लोकाक्षर परिवार के श्रद्धांजलि


*आलेख - अरुण कुमार निगम*

कागज/ नान्हे कहिनी*

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              *कागज/ नान्हे कहिनी*

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             बड़े भई हर कुछु कल कारखाना खोलिस। वो बुताक़रा- बनिहार मन ल भरती करिस। फेर सबके आघु दिखने वाला नोटिस बोर्ड म एकठन कोरा फारम ल घलव लगवा दिस। सबो बनिहार मन ,वोला आत- जात पढ़ें। वोहर नौकरी ले बाहिर निकाले के रिजाइन लेटर रहिस। अब तो सबो बनिहार मन चौकस- चोखट होके बुता ल करत रहिन।


         थोरकुन दिन के गय ले छोटे भई ल घलव ,वोइच धंधा म उतरे बर लाग गय। वो घलव बनिहार भरती करिस।सबो बुता करिस।फेर वोकर नोटिस बोर्ड म कुछु आन लिखाय कागज हर चपके रहिस।  बड़े भई ल ,शुरू म छोटे भई के धंधा हर चौपट दिखिस...


         फेर बच्छर के छेवर म सालाना टर्नआउट जोड़े के बेरा म छोटे भाई हर ,बड़े भाई ल कतको आगु रहिस।


        आज छोटे भई के प्रतिष्ठान म वार्षिक उत्सव अउ पुरुस्कार वितरण समारोह होवत रहिस।


*रामनाथ साहू*


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टूटहा हाथ

 टूटहा हाथ 

                    को जनी का होइस ना का .... कन्हो ढपेलिन के अपने अपन घट गिस .... एक दिन घर के बाहिर म किंजरत भोलाराम हा चिखला म गिरगे । गिरिस घला अतेक धीरे के , येकर जगा अऊ कन्हो होतिस त , नानुक खरोंच तको नइ आतिस । फेर भले मानुस के हाड़ा म कतेक दम ........ भाजी कोदई खवइया के हाथ म कतेक ताकत , बपरा के हाथ टूटगे । हाथ के टूटना कोई बहुत बड़े दुर्घटना नोहे । फेर हाथ टूटे के बाद , ओकर ले कतको बड़े बड़े दुर्घटना होवत देखे रिहिस भोलाराम हा , इही ला सुरता करके , फिकर म जहू तहू बेहोश हो जाय वोहा । अस्पताल म सियानिन नर्स के अलावा कोई शुभचिंतक नइ दिखय । एक दिन सेवा जतन करत , सियानिन हा , फिकर के कारन पूछिस । भोलाराम बतइस - बहुत समे पहिली के बात आय काकी .... एक झिन संगवारी के हाथ का टूटिस , बपरा के सरी गै । टूटहा हाथ म , रहि सहि संपति ला सम्हाले नइ सकिस , रिश्तेदार मन अपन अपन ले नंगा डरिन । दूसर संगवारी के संग तो येकरो ले बिचित्तर घटना होइस । ओकर सुवारी बड़ सुंदर रिहिस । कतको दूसर संगवारी मन के नजर गड़गे । बपरा के करम फूटगे । तीसर के तो बारा हाल होगे । हाथ का टूटिस , खुरसी छूटगे । टूटहा हाथ धरे अस्पताल म निही जेल म समे काटत रहय ।   

                     सियानिन नर्स किथे – जइसना संगवारी मनके नाव गिनाये हस , तइसना तोर तिर काये हे ? तोर तिर न पइसा हे , न तोर बई सुंदर हे , न पद हे , न प्रतिस्ठा ........ फेर तैं काबर फिकर करथस । भोलाराम किथे – अरे काकी दई , येमन मोरो तिर होतिस त , तोर अस्पताल म मोला देखे बर अवइया के , रेम नइ लगे रहितिस या .... ? नर्स किथे – अस्पताल म तोला देखे बर रेम लगे हे के निही , तै काला जानबे । तोर बर अवइया मनखे के सेती , अस्पताल के कर्मचारी मन थर्रा गेहे । भोलाराम किथे – मोला देखे बर मनमाने मनखे आथे कहिथस , फेर मोर तिर तो एको झिन नइ अमरे हे अभू तक । नर्स किथे – तोर तक काला अमरही बाबू ........ , जे आथे ते , अस्पताल के दरवाजा म पहुंचके फोटू खिंचवा के निकल जथे । एक दू झिन भितर निंगे के प्रयास करिन फेर सरकारी अस्पताल के महक म बेहोश हो गिन , ओमन ला तुरते प्राइबेट अस्पताल म भरती करे लगिस । तोर बड़ बदनामी होइस । भोलाराम किथे – अस्पताल बस्साही , तेमा मोर का बदनामी .......... ? नर्स किथे – जे आथे ते इही सोंचथे के , तोरे सेती अस्पताल बस्सावत हे । भोलाराम किथे – मोर सेती कइसे बस्साही या काकी अस्पताल हा ? नर्स किथे – कोरी खइरखा कस भरती रहू त अस्पताल तो बस्साबे करही । भोलाराम किथे – खसखस ले चांटी फांफा कस बियाये के बेर तूमन ला कहींच नइ लागिस काकी , अऊ सरी होय के पाछू हमन ला दोस देथव या ............ । ओमन काबर मोर तिर नइ आये तेला में जानत हंव । नर्स पूछिस – काबर ? भोलाराम बतइस – ओमन मोला चिन डरही कहिके नइ आवय । नर्स पूछिस – तैं चिन डरबे तेकर का डर ........ ? भोलाराम किथे – में कहूं उगल दुहुं के , इही मन हाथ ला टोरे हे .... । नर्स किथे – अई ......... , में नइ जानत रेहेंव बाबू । फेर ये मन दिखथे बहुत भला आदमी , तोर बड़ फिकर घला करथे , काकरो हाथ म कइसे नीयत गड़ही ........ ? भोलाराम किथे – फिकर के बूता उपजाये बर , छद्म सहानुभूति जताये बर , हाथ टोरे के उदिम रचथे बिया मन ........ । 

                     नर्स पूछिस – ओमा येमन ला का फायदा हे तेमा ? भोलाराम किथे – फायदा हे काकी , तभे करथे । येमन जानथे के , हमर हाथ सही सलामत रइहि , त येमन ला अपन व्यभिचार के तुरते दंड भुगतना पर जही । हमर हाथ सलामत रइहि त , हमर देश के तरक्की म बाधक मनखे के जीना हराम हो जही । तेकरे सेती हमर हाथ ला टोर के बइठार देथे । नर्स किथे – तोर हाथ मजबूत नइ होही तभे तो , जेन आथे तिही तुंहर हाथ के बूता बना देथे । भोलाराम किथे – हमर मेहनतकस हाथ हा , पहिली बहुतेच मजबूत रिहिस काकी , फेर मुफत के माल हा हमर सरी देहें ला खोखला कर दिस । ये बैरी मन नइ चाहे के हमन मेहनत करके , मजबूत बनन । येमन हमर छीनी उंगरी ला जबरदस्ती बड़का मई उंगरी के बरोबर लाने बर , आरक्षण के फरिया ला लपेटके छीनी उंगरी संग , पूरा हाथ के ताकत ला खतम कर देथे । बिगन बूता काम के , मुफत म चऊंर देके , देहें के लहू म , आलस के वाइरस घुसेड़ देथे । इही वाइरस हा देहें के लहू ला चुचर देथे । उपर ले ससता म मिलत सोमरस हा , हमर दिमाग ला अइसे भरमा देथे के , हमन समझे लग जथन के , इही मन हमर तारन हार आय । 

                   नर्स किथे – ओ तो ठीक हे बाबू , अतेक जानत हस तभो , येमन ला काबर अपन तारनहार समझथव ? भोलाराम किथे – हाथ टूटे के पहिली समझेच नइ आवय के , कोन हमर तारनहार आय काकी , फेर एक बात महू ला समझ नइ अइस आज तक , हाथ टोर के बइठार दिस , कोलवा करके मरीज बना दिस , अस्पताल म भरती कर दिस फेर , हमन ला घेरी बेरी देखे बर काबर आथे ? नर्स किथे – येकर जवाब मोर तिर हे बाबू , तूमन मर झिन जावव ताकि , इंकर दुकान निर्बाध चलत रहय कहिके , घेरी बेरी देखे बर आथे । मोला ओकरेच बर तो राखे हे बेर्रा मन । एक कोती , में तूमन ला मरन नइ दंव , त दूसर कोती , येमन तूमन ला ठीक से जिये बर , तुंहर हाथ ला ठीक घला नइ करन देवय । येमन सहींच म जानथे के , एक बेर हाथ ठीक होगे तो , तूमन इंकर बारा बजा दुहू ..... । 

                    भोलाराम हमर देश के जनता आय , जेकर देखरेख करइया नर्स , हमर देश के लोकतंत्र आय , जेहा जनता ला मरन तो नइ देवय , फेर ठीक से जिये बर कहींच नइ कर सकय ।   

 हरिशंकर गजानंद देवांगन . छुरा

बदलाव

 बदलाव

                    जबले पुलवामा म सैनिक मन उपर अटेक होय रहय तबले सरी देश म तूफान मचे रहय । पान ठेला तक म इही चरचा जोर पकड़े रहय के अब पाकिस्तान उपर हमला कर देना चाही । गली गली म अऊ घर घर म रक्षा अऊ विदेशी मामला के विशेषज्ञ जनम धर डरे रहय । कन्हो कहय के येकर ले बड़का मौका अऊ नी मिलय । तुरत हमला कर पाकिस्तान के नामोनिशान मिटा देना चाही । देश के जनता के बाढ़हत दबाव ला राजनीतिक दल मन घला समझगे । राजनीतिक दल मन स्थिति के फायदा अपन पक्ष म उचाये के सोंचिन । येमन सब मिल के फैसला करिन के पाकिस्तान के उप्पर हमला कर दे जाय । जब तक इँकर फैसला हा अमली जामा पहिरतिस तब तक ... देश के भला चहइया एक झिन मनखे हा कछेरी पहुँचके नालिस कर दिस के ... देश के सैनिक मनला अपन स्वार्थ बर नेता मन युद्ध म झोंकना चाहत हे । येहा गलत हे ... येला रोकना चाही । युद्ध म स्टे लगगे । अदालत हा सरकार ला तलब करिस । सरकार ला अपन पक्ष रखे के मौका दिस । 

                     सरकार अपन पक्ष रखत कछेरी म बयान दिस के ... सैनिक के भरती ओकरेच बर करे जाथे ... जब जब देश के दुश्मन मन जब आँखी देखावय तब ओकर आँखी ला फोरय । येमा का नावा बात हे । नालिस करइया के बकील हा अदालत के माध्यम ले सरकार ला पूछिस - तूमन सैनिक भरती करथो त देश के सुरक्षा बर करथो के सैनिक के मरे बर । सरकार कहिथे - देश के सुरक्षा बर करथन । याचक वकील पूछथे – त सैनिक मन ला मरे बर काबर झोंकत हव । ये सैनिक मन मर जही त देश के सुरक्षा कइसे होही ? सरकार किथे – नावा सैनिक भरती करबो । याचक वकील कहिथे – कतका झिन जवान ला सैनिक बना बना के मारहू । ओहा जज ला बतइस के राजनीतिक पार्टी म अबड़ अकन कार्यकर्ता होथे ... इही मनला सैनिक के ड्रेस पहिरा के बंदूक धरा के लड़े बर भेज देना चाही । यहू मनला जिनगी म एक बेर देश सेवा के मौका दे देना चाही । जज कहिथे – राजनीतिक पारटी के कार्यकर्ता मन का करही ? याचक बकील किथे – यहू मन लड़ही जज साहेब अऊ दुश्मन ला मारही । अइसन तर्क सुनके पूरा राजनीतिक पार्टी सकलाके एके होगे । देश म कन्हो संकट परे म भलुक एके नी होय फेर अपन उपर संकट आय म अऊ अपन फायदा देखे म ... येमन अभू तक कभू अलग अलग बिचारधारा नी रखिन ।  

                     संयुक्त राजनीतिक पार्टी के बकील नामित होगे । ओहा अदालत म जिरह करे लगिस अऊ केहे लगिस के – अरे भई मोर्चा म जाके लड़ई करना राजनीतिक मनखे के काम थोरहे आय । फेर बंदूक धरे बर अऊ हथियार चलाये बर अनुभौ के जरूरत परथे । बिगन अनुभौ के कइसे करही ? याचक बकील किथे – खुरसी म बइठके अतेक बड़ देश ला बिगन अनुभौ के चला सकत हे जज साहेब ........ त बंदूक नी चला सकही गा तेमा ........ । बिगन बात के मुँहु चलाके अपन दुश्मन ला ढेर करइया मनला हथियार चलाये बर कन्हो प्रशिक्षण के का जरूरत ? संयुक्त बकील किथे – जेकर काम तिही ला फबथे जज साहेब । येहा सैनिक मन के काम आय । तिहीं बता जज साहेब ........ का सैनिक मन देश चला सकत हे ...... ? याचक वकील किथे – जज साहेब एक बेर रद्दा छोंड़ के देखय ... सैनिक हा देश चलाके बता दिही के देश ला कइसे चलाना चाही । संयुक्त वकील किथे – अइसे कइसे हो सकत हे ...... हमर देश म लोकतंत्र हे तेकर का होही ....... । अइसन म लोकतंत्र मर जही । याचक बकील किथे – लोकतंत्र कती मेर जियत हे जज साहेब ? तेमा येमन ला लोकतंत्र के फिकर होवत हे । लोकतंत्र के लाश ला जनता ला देखा के ओला जियत हे कहिके जनता ला भरमावत हे येमन । संयुक्त बकील किथे – जज साहेब ....... समस्या के समाधान राजनीतिक हो जतिस त राजनेता मन जातिन अऊ सुलझातिन .....। ये समस्या राजनीतिक नोहे । याचक बकील किथे – जज साहेब ........ कश्मीर के समस्या ला सैनिक मन बियाये हे तेमा का ....... ? येला राजनेता मन पैदा करे हे त ....... उही मन ला हल करना हे । बातचीत म हल नी कर सकही त युद्ध के मैदान म जाये अऊ झोंक दै अपन कार्यकर्ता मनला । उही मन ला येमन अपन अनुशासित सैनिक कहिथे ना । अपन कार्यकर्त्ता मनला इही मन अपन पार्टी के सिपाही बताथे ना ....... । एक बेर यहू सिपाही मन के उपयोग हो जाय । जइसे येमन अपन घर म एक दूसर ले लड़थे ततके ताकत म बाहिर म लड़ के देखा देवय । लोकतंत्र के लहू पीके मोटइया मनखे मनके देंहे ले ... देश के खातिर जे दिन लहू बोहाही त पोट पोट करत लोकतंत्र के हिरदे के धड़कन वापिस शुरू हो जही । 

                    अदालत म जिरह चलतेच हे । फैसला आयेच निये । राजनीतिक पार्टी म काम करइया मन अदालत के अवइया फैसला के अंदेशा म .... डर के मारे धड़ाधड़ अपन अपन पार्टी छोंड के देश के बिकास बर ... काम धंधा म लगगे । निचले स्तर म देश म बइमानी करइया घटगे । ओकर असर उपर तक दिखे लगिस । फैसला आयेच निये तभो ले लोकतंत्र ला स्वस्थ हावा मिले लगिस । लोकतंत्र के मुँहु म पानी आय कस दिखे लगिस । थोकिन हरियाये कस दिखे लगिस लोकतंत्र ....... । पदनी पाद पदइया पाकिस्तान समर्थक राजनीति हा पाकिस्तान म शरण मांगे लगिन । अभू सेना के कन्हो जवान ला शहीद होवत नी सुनेन । कश्मीर संग पूरा देश म शांति के वातावरण बगरगे । 

                                               मोर नींद उमचिस .. पछीना म नहा डरे रेहेंव ...  देंहें के बुखार उतर चुके रिहिस ... काश मोर सपना सच हो जतिस ...  लबर लबर मरइया मन ला .. जीरो डिग्री तापमान म घर परिवार ले धूर हमर सुरक्षा बर बर कुछ करे के मौका मिल जतिस .. देश के भला अपने अपन हो जतिस । 

                                                            हरिशंकर गजानंद देवांगन

धर्मेंद्र निर्मल: कहानी -लोटा भर पानी

 धर्मेंद्र निर्मल: कहानी -लोटा भर पानी

अकती हँ अँ़़़़गरी म पाँचे दिन बाँचे हे। मनोज के बिहाव हँ अभी ले तय नइ होय हे। देवसिंग हँ फागुन के नंगारा थिराय के बिहान भर ले पानी पी पी के बहू खोजत हे। फेर बात हँ अभीन ले नइ बने हे। कईयो गाँव घूम डरिस। कतकोन छोकरी देख डरिस। फेर उही बात, भरम भारी पेटारा खाली। 


बहू बर जतका के चढ़ावा लेगतिस तेकर चवन्नी हिस्सा तो मोटरे गाड़ी म फूँकागे होही। देवसिंग अपन गाँव के मोटहा किसान हरे। पैंतीस चालिस एकड़ के जोतनदार हे। तीर तखार म अइसे कोनो गाँव नइ होही जिहाँ ओकर मेंछा नइ गड़े होही। कोस कोस ले पूछ परख होथे। गाँव म कोनो बात होवय ओकर सुमत-सुलाह बिना चिटको पाँव नइ उसाले सकय। नर -नियाव म ओकरे बानी हँ निरने के रूप लेथे अउ नियम बनके गाँव म बगर जथे। 


कोनो दिन अइसे नइ होही जे दिन चहा के डेगची हँ चूल्हा ले उतर के चोंगी पीयत ले थिराय पावत होही। जेन गाँव म लड़की हे सुनतिस देवसिंग तुरत- फुरत गाड़ी धरके पहुँच जाय। संझा लहुट के गोठिया डरय-

‘लडकी तो सनान हे, फेर वा भई ! आजकाल के लडकी मन ल माने बर परही। ....मैं अपन कान म सुने हवँ जी ! हमरे आगू म अपन दाई तीर कहि देवय-‘मैं अउ पढ लेतेवँ दाई, मोर बिहाव ल अभीन झन करव।’

गाँव के मन चहा ल सुड़कत हूँकारू भरय -‘हव्व गा !’ 


कोनो दिन कहूँ ले लहुटके गोठियातिस-‘लडकी के बाप हँ हमर संग गोठियाते रिहिस हे। ओकर दाईच हँ दुवार के आड़ ले कहिदिस-‘हमन अपन बेटी ल नौकरी वाले संग बिहाबो।’ 

देवसिंग करय त का करय। ककरो बेटी परिया म तो नइ बइठे हे, जेन ल जावय अउ ‘टुप ले’ झोला-झंकर कस उठाके ले लानय। बेटा बने पढ़ेच- लिखे हे, घर म दूकान चलावत हावय, त काय काम के। लडकी वाले मन ल सरकारी दमांद चाही, जऊन सरकार के संगे-संग उन्कर बेटी के तको नौकरी बजावय।


कभू कभू कऊव्वा के कहे लगय- ‘आजकाल लइका ल सरकारी आफिस के बाहरी धरा लेवय फेर डिगरी के बोजहा ल झन बोहावय।’ लड़की वाले खेती बारी,  घर -दुवार, पढ़ई- लिखई ल नइ पूछके, लड़का का करथे तेला पूछथे। ये सब बात ल देख -सुनके देवसिंग के मति छरिया जथे। 


गाँव वाले मन पहिली -पहिली तो देवसिंग के गोठ- बात ल सुनय त चकरित खा जय। अब वइसन बात नइ रहिगे। चहा- पानी, चोंगी -माखुर के पीयत ले ओकर बात म हूँकारू भर भरथे। एक कान ले सुनके दूसर कानले बदरा कस उड़ा देथे। 


पीठ पीछू उही मन गोठियाथे-‘ये काला बताही गा, सगा छाँटत हे।’ 

कोनो कहय -‘अतेक बड़ संसार म टूरी के दूकाल परे हे ? चलय न हमर संग, हम अभीन देखा देथन, कइसन टूरी चाही ?’ 

माईलोगन मन मुँहजोरे गोठियावय-‘अई ! इही बहू खोजइया ये या, दाईज देखत हे दाईज। दुनियाभर के गोठ ल फलर-फलर ओसावत भर हवय, हम नइ जानबो एकर चाल ल।’


साँप के चाबे मुँह जुच्छा के जुच्छा ! जे ठन मुँह तेठन गोठ, भागे मछरी जाँघ अस रोंठ। भाँड़ी के मुँह म परइ ल तोपबे, आदमी के मुँह ल कामा ढाँकबे। 

देवसिंग एक ठो गाँव गए रहय। सुने हावय कि घर -दुवार, खेत -खार बने हे। छोकरी सुजानिक लगिस। तभो बात उही मेर अटकगे। लड़की वाले मन ये बछर बिहाव नइ करन कहिदिन।

 

देवसिंग ल चट मँगनी पट बिहाव करना हे। सियान दाई के पाँव हँ कबर म लटके हे अउ साध हँ मड़वा तरी अटके हे। संझा-बिहिनिया रेकत रहिथे-‘देवसिंग ! दू बीजा चाऊँर टीक लेतेवँ बेटा। कोन जनी कब बुलऊवा आ जही ते, बहू हाथ के पानी पीए के साध हँ साधे झन रहि जाय।’


 लड़की अतेक सुघ्घर रिहिस हे के देवसिंग के मन हँ चार महिना रूके रजुवागे रिहिस हे। फेर खाए के बेरा होगे राहय तभो ले सगा घर चहा -पानी बर तको नइ पूछिस, खवई -पीयई तो दूरिहा के बात ये। 


देवसिंग ल इही बात खटकगे अउ बनेच खटकगे। हाले के देवसिंग जादा पढ़े लिखे नइहे फेर चार झन रोज उठत -बइठत हे, धरमी- सुजानिक, छोटे- बड़े सबो संग बरोबर मेल जोल होवत हे। संगत के जोर, जादा नहीं ते थोर-थोर। 


ओकर लइका मनोज घला कम नइ हे। जइसन -जइसन दाई- ददा तइसन तइसन लइका, जइसन जइसन घर -दुवार तइसन- तइसन फइरका। पढ़े लिखे के रूवाब ल अपन तीर म थोरको नइ ओधन दिस। तभे तो आज तक अपन ददा संग लड़की देखे बर नइ गिस। 

जब पहिली पइत बिहाव के गोठ चलिस, त आनन्द बबा हँ बलाके कहिस-‘ ले न संगवारी ! लाड़ू-उड़ू कब खवावत हस जी।’ 

‘ओमा का बात हे बबा ! पाग-वाग ल धर डर ताहेन लाड़ूच-लाड़ू ।’


जब लड़की देखे बर जाए के पारी आइस त कहिदिस -‘माँ- बाप हँ मोर बर सिरिफ बाई नइ खोजय, अपन बर बहू पहिली देखही। मैं अनुभवहीन लइका बाहिर के सुघरई भर ल देखहूँ। जाँचहू -परखहू त सियाने मन। तुमन ल जेन जँच जाय, मैं ओकरे संग भाँवर किंजर लेहूँ।’

बबा हाँसे लगिस- ‘ स्साले बूजा हँ अच्छा फाँदा म फाँद दिस भई।’ 


पसंद -नापसंद के बात आइस त मनोज सोज्झे कहिस-‘माँ-बाबू बइरी तो नोहय, जेन निचट अंधरी -खोरी ल मोर संग धरा देही।’ देवसिंग अपन लइका के हुसियारी ल भाँपगे अउ मनेमन गदगद घलो होइस। 

आनंद बबा कहिथे- ‘ भागमानी हवस देवसिंग ! आजकाल अइसन लइका मुड़ म राख डारके खोजे नइ मिलय।’

पूत के पाँव पलने म दीख जथे। अइसन पूत ल पाके देवसिंग धन हे येला सबो गोठियाथे। 


देवसिंग अब हारगे। भइगे एसो के साल बिहाव नइ करना हे। इही सोच के वोहँ अपन घर लहुटे लगिस।

ओतके बेरा घरजोरूक सगा राहय ते हँ मुड़ ल खजुवावत गुनमुनाथे-

‘एक झिन अउ सगा हे। लड़की जादा पढ़े लिखे नइहे। गरीबहा हे फेर...... लड़की बने आए -जाए के लइक हे।’ 


देवसिंग के मन थोरको नइ रिहिस हे। मन तो बतइयो के नइ रिहिस हे। बता के पादा भर चुकाना रिहिस हे। आधा बतइया के बात राखे बर अउ आधा इही सोचके कि दिन भर बर निकले हावन, घर जाके करबोच्च का ? चल काहत देवसिंग गाडी ले उतर के ओकर पीछू -पीछू रेंगे लगिस। घरजोरूक संसो म परगे। 


‘कहाँ- कहाँ बता परेवँ। कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली। बिजती भर होही।’

अंगसी-संगसी होवत सगा घर पहुँचिन। देवसिंग देखथे, गिनके दूए ठिन कुरिया, छोटकन परछी अउ खदर के छानी। 


घरजोरूक रेंगान म मुड़ ल गड़ियाए ‘ठुक ले’ खड़ा होगे -‘ हवस गा रामाधीन ?’ 

लड़की घर म अकेल्ला राहय। संग आए लोगन मन उकूल - बुकूल होगे।

‘ए कहाँ लान के धँसा दिस गा।’

देवसिंग बिना हूँके-भूँके कलेचुप सब ल आकब देखत रहय। 

 

नोनी हँ लोटा म पानी धरके निकलिस। लोटा ल आगू म रखके जम्मो झन के ‘टुपटुप’ पाँव परिस। नोनी ल पाँव परत देख चिक्कन-चाँदर भीथिया म लटकत ओकर बनाए झूमर अउ भीथि-सज्जा मन मुचमुचाए लगिन। बइठारे बर घर म कुर्सी-मुर्सी तो नइ राहय। एक ठन टेड़गा-कुबरा मुँहा खटिया भीथिया म पीठ टेकाए टुकुर-टुकुर देखत राहय। उही ल बिछाके ओमा चद्दर बिछावत कहिस-

‘बइठौ।’ 


पाँव हँ अतका दूर उसल के आइगे हे त मुँह ल तो उसालेच बर परही। आनन्द बबा पूछिस- ‘तोर का नाँव हे नोनी ?’ 

‘लक्ष्मी।’ 

एक झन सगा मने मन मुस्कुराइस- ‘अहा ह ! खदर के छानी म लक्ष्मी के बसेरा। तोरो लीला अपरम्पार हे लीलाधर।

‘कतका पढे़ हस ?’ देवसिंग तिखारिस।

‘दसवी पढ़के छोड़ दे हववँ।’ अउ कोनो सवाल के अगोरा म चिटिक रूकके नोनी लहुटे लगिस -‘दाई -बाबू मन येदे मेरन खन्ती गए हवय। मैं आरो देथवँ ।’

सगा मन संघरे कहिन- ‘नहीं नहीं राहन दे।’ देवसिंग चुप रिहिस। 

‘दूरिहा नइ हे, बइठव न बुलुवा देथवँ।’


ठाढ़े मँझनिया। थोरको बाहिर निकले म रगरग-रगरग करत गुसियाए घाम हँ कनपटी ल ‘चाँय ले’ देवय। सबो झिन भूख के मारे कलबलागे राहय। एकर पहिली घर म देवसिंग गुस्से -गुस्सा म पानी घलो नइ पीए रिहिस हे। लक्ष्मी के दे पानी ल एके साँस म गटागट पीके देवसिंग जुड़ागे। छाती जुड़ोवत पीछू कोति हाथ ल टेकिया के खटिया म बइठ गे। सगा मन फुसुर -फासर करे लगिन - 

‘नोनी तो बने सुग्घर हे।’

‘हहो, आए-जाए के लइक हे !’

‘सबो बने हे फेर का काम के ? तुरते निचोए तुरते पहिरे ....।’ 


अतका म लीमऊ के सरबत बनाके लान डरिस लक्ष्मी हँ। सबो झन के जी तर होगे। कुंद -कुंद के गोठियाए लगिन। सरबत पीयाए नइ पाए रिहिस। खन्तिहार मन घलो पहुँचगे। दाऊ के शोर तो चारो मुड़ा उड़त रहय। नोनी के ददा रामाधीन देखते साथ पहिचान डरिस। सकुचागे बपुरा हँ। छोटे मुँह बड़े बात, बिचारा कते मुँह म पूछय ? जोहार-भेंट करके ‘कुकरूस ले’ एक कोन्टा म बइठ गे। 

देवसिंग सोचत राहय-‘पूछवँ त कोन ढंग ले पूछवँ ?’


आखिर म घरजोरूक पूछिस - ‘बिहाव करबे नहीं सगा ?’

रामाधीन  हाथ ल जोर के काँपत खड़ा होगे - ‘बाढ़े बेटी ल घर म बइठारे के सऊँक कोन ल होथे दाऊ ! ...फेर मोर तो सबो डाहर ले उघरा हे, तुँहर आगू म हवँ।’


अतके काहत वो घर म चुप्पी हँ हाथ- गोड़ ल लमाके पसर गे। घर डाहर ले खाए के बुलऊवा हो गे। फेर का मजाल के ठहिरे शांति हँ टस ले मस हो जाय। कोनों तो खुर-खार करतिस। सबो के मुँह बँधाए के बँधाए रहिगे। 


नोनी के दाई हँ कपाट के आड़ म छपटे, साँस ल थाम्हे सुनत राहय। धड़कन ह लुहुर-तुकुर करत अइसे धकधक-धकधक करत हे जानो मानो छाती ल फोर के बाहिर आ जही। ओकर बस चलतिस त वोहँ उहू ल थाम लेतिस। 


ओकर पीछू म लछमी मुड़ी ल गड़ियाए खड़े हे - हाँ या न, दू ठन डोर म बँधाए असमंजस के झूलना झूलत। दूनों के कान जुवाब के अगोरा म बिलई कस कान टेंड़ाए हे। घरजोरूक अउ देविंसंग के घरोधिहा सगा मन तो बनेच भूखा गे राहय। सबो झन एलम -ठेलम करत देविंसग के मुँह ल ताके लगिन। 


आखिर म देवसिंग कहिथे-

‘ए उघरे अउ मुँदाय ल तैं झन सोच। लक्ष्मी हँ मोर मन आगे हे येला मैं जानथौं।’ 

भरमाभूत धरे कस, सुनके सबो के सबो अकबका गे। कोनो ल अपन कान म भरोसा नइ होवत राहय। 

देवसिंग आगू कहिस-‘तोला मोर समधी बनना हे के नहीं, तेन ल तैं बता ? बेटी तोर ये, फेर बहू तो मोर होही न। मोर बहू ल मैं अपन बरोबर कइसे बनाके ले जाहूँ येहँ मोर चिन्ता हरे।’


लक्ष्मी के दाई अपन मुँह ल सीलके नइ राखे सकिस। पीछू मुड़ के लक्ष्मी ल ‘हबरस ले’ कहि भरिस- ‘हाय ! बने घर पा लेस बेटी ! भागमानी हवस। तोला जनम देके आज मोर कोख धन्न होगे।’ लक्ष्मी अपन महतारी के मुँह ल एक पइत देखके जस के तस होगे- मुक्का अउ मुड़ी ल गड़ियाए। 


रामाधीन के मुँह ले बक्का नइ फूटत हे। देवसिंग रामाधीन के मन ल टटोल डरिस। आसरा के डोर लमाए मुस्कावत पूछिस- 

‘कइसे ! का विचार हे सगा ?’

रामाधीन सोच म परगे-‘नान्हे मुँह ले बड़े बात कइसे करवँ।’ 

ओतका ल सुन-परख के महतारी के जी हँ अंगार होके भरभरागे- 

‘इही हावय नटवा। न हूँकत हे, न भूँकत हे। घर बर कइसे टाँय-टाँय करथे।’ 


ओकर मन तुकतुकाए लगिस। जी तो होवत रहय के जोर से चिचियाके कहि देववँ-

‘बने हे सगा ! आज ले हमर करेजा के कुटका ल तुँहला सुपरित कर देन। हमला खुशी हे।’ 

रामाधीन धीर लगाती मुँह ल उलाइस - ‘ठीक हे दाऊ, फेर.........।’.देवसिंग हाथ के इशारा करत रामाधीन के मुँह ल बाँध दिस अउ हूत कराइस-  ‘लक्ष्मी ! 

कबके गिरे -परे, अपटे - थम्हे बेरा ल थाम्हे-थेगे के आसरा मिल गे। हवा के पाँखी जामगे, सरसराय लगिस। उछाह के लहरा हरेक मन म हलोर मारत दँऊड़े लगिस।


महतारी हँ खुशी -खुशी..... फेर एक बिरहा के भय म झुरझुरावत कहि डरिस -‘जा बेटी ।’

खुशी हँ दू कदम आगू रेंगत आँखी के पार ले कूदके छलक गे। लक्ष्मी अपन ले बिरान होए बर जावत हे।

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 पोखनलाल जायसवाल:

 'जनम-विवाह मरण गति सोई, जहाँ जस लिखा तहाँ तस होई।' 

      मानस म तुलसीदास जी के लिखे ए चौपाई लोकजीवन के जिनगी म  जादा करके सिरतोन जनाथे। जब मनखे जनम धरथे त कब जनम लिही? जनम होय के पक्का बेरा अउ ठउर कोनो नि बता पावय। ए अलगे बात आय कि अभी के समय म जचकी अस्पताल म होना तय च होगे हे। फेर विज्ञान घड़ी के मुताबिक जनम के समय अभियो नइ बता पावय। यहू हे कि लोगन आज शुभ घड़ी देख के ऑपरेशन ले जनम के बेरा जरूर तय कर लेवत हें।

         बिहाव बर दूनो पक्ष के रजामंदी जरूरी होथे, इही रजामंदी ह बिहाव कब, कहाँ अउ काकर ले होही? के बीच बाधा परथे। कभू बेटा वाला के मन आ जथे, त बेटी वाला मन ल मन नि आय। कभू बेटा च वाला मन मन नइ करयँ। धन-दोगानी, रंग-रूप, पढ़ई-लिखई ए सब रजामंदी ऊपर फरक डारथे।। लोकाचार के दृष्टि ले काहन त देवसिंग के बेटा संग लक्ष्मी के बिहाव तय होवई ह तुलसीदास जी के लिखे चौपाई ल एक पइत फेर सही साबित करथे। अइसन संयोग हम ल अपन तिर तखार म देखे ल घलव मिलथे।

       अपन घर-दुआर अउ रहन-सहन के मुताबिक घर म सबो कोई बहू-बेटी लेन-देन करई पसंद करथें। दाई-ददा चाहथें कि मोर बेटी मोर ले सजोर अउ बने घर जावय, नइ ते बरोबर घर म जावय। फेर हरदम...अइसन नइ हो पावय। 

        कई बखत देखे म आथे कि कई झन बछर दू बछर ले जोरा करके पहुना के अगोरा करत रहि जथे, बखत संग ठगा जथे। अइसन म जे मनखे ते गोठ होय धर लेथे। ए गोठ मन के न मुड़ी के ठिकाना रहे ल पूछी के। जेकर ऊपर बीतथे तउने जानथे। 

      इही सब गोठ-बात के चित्रण करत कहानी आय- 'लोटा भर पानी' । कहानी के संवाद अउ वर्णन मन ले जुरे दृश्य आँखी के आगू सिनेमा सहीं दगदग ले नजर आथे। समाज म बिहाव के पहिली होवइया सबो किसम के गोठ बात ल कहानी म सुग्घर ढंग ले रखे गे हे। 

        बदलत समय के संग पढ़े-लिखे नोनी बर नौकरिहा दमाद के सपना सँजोए दाई-ददा मन ऊपर कहानी म व्यंग्य घलव हे।

         'लोटा भर पानी' हमर संस्कृति अउ परम्परा के चिन्हारी आय। कोनो भी पहुना के आय ले लोटा म पानी दे के स्वागत करे के चलन हे। ए चलन के पाछू के वैज्ञानिकता घलो समझे के लाइक हे।  

         ए कहानी के शीर्षक 'लोटा भर पानी' यहू दृष्टि म सार्थक हे कि लक्ष्मी के दाई-ददा भलुक देवसिंह के बरोबरी नइ कर पाहीं, फेर ऊँकर स्वागत म हरदम 'लोटा भर पानी' दे म समरथ हे।

       कहानी के भाषा शैली प्रभावित करथे। भाषा के प्रवाह पाठक ल बाँधे म समर्थ हे। कहावत मुहावरा के सटीक प्रयोग होय हे। संवाद पात्र अउ जघा के मुताबिक हे। कथानक ल आगू बढ़ाय म मददगार घलो हे। सुग्घर कहानी बर धर्मेंद्र निर्मल जी ल बधाई💐🌹


पोखन लाल जायसवाल

पलारी पठारीडीह

जिला बलौदाबाजार छग

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छत्तीसगढ़ी कहानी

छत्तीसगढ़ी कहानी

 : भलुवा ल चकमा

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       चैत के महिना चारो कोती मैनपुर के जंगल हर घाम म तको हरियाय , साल, सरई, महुआ, तेंदु के बड़का-बड़का रूख म तोपाय जंगल हर महुआ के सुबास म महमहावत हवय। मुधरहा चरबजी उठ के रधिका हर महुआ बिने बर अपन संगवारी मन संग घर कुरिया ले जंगल डहार निकलगे। महुआ के सुबास ले सफ्फा बन हर महमहावत हे, महुआ फूल हर सुरूज निकले ले टप-टप रुख तरी गिरे ल लगथे। बड़का -बड़का बास के टुकना ल धरे रधिका अपन संगवारी मनटोरा, फगुनी, सुहासिनी अउ रमसिला संग जंगल के रद्दा म रेंगे लगिन।  जंगल पहुंचत थोरकुन अंजोर होवत रहिस, सफ्फा जंगल के रुख-राई सुत के उठ के मुंहकान धोय बरो बर उज्जर दिखत रिहिस।

          जंगल के जेन रद्दा म महुंआ के रुख हर लगे महमहावत रिहिस, तेही डहार सब्बो संगवारी मन रेंगेन लगिस।  फेर का देखथे के जम्मो रुख अउ रुख तरी के पाके महुंआ फूल ल  कोनो ऊखर आय ले पहिली बिन डरे हवय। आगु सब्बो बन हर त महुंआ ले पटाय हवय,  फेर जंगल भीतरी नींगे के कोनो हिम्मत नइ करय। रधिका हर संगवारी मन ले किहिस- "मोला अइसने लागथे के, इहां हमर ले पहिले कोनो आके महुंआ बिन डरे हवय।  चलव संगी आज हमन जंगल के भीतरी निंग के महुंआ बिनबो, नइ त हमन ल दुच्छा टुकना, धर के अपन घर कुरिया जाय ल परहि. राधिका के गोठ ल सुन के मनटोरा हर कहिस- "बहिनी इंही महुंआ फूल हर हमर रोजी -रोटी अउ जिनगी के आधार आय। आज हमन दुच्छा टुकना धर के जाबो त, आज के मजूरी के हमन ल घाटा हो जाही, तीस रूपिया किलो के हिसाब ले हमर एक टुकना म पचास किलो त महुंआ हर धराथे। इहीं घाटा ल हमन कइसे भरबों,चलव आज जंगल के भीतरी म निंगबों।" अइसना कहिके चारों संगवारी जंगल भीतरी म निंगगे।

                जंगल भीतरी नींगत,रमसीला हर चिन्हा बनावत गिस । सब्बो झिन जंगल भीतरी डहार रेंगत गिन। थोरकुन एको मील रेंगिन त का देखथे। चारो मुड़ा महुंआ के रूख रहाय, रूख तरी महुंआ के फूल हर गिरे रहाय, सब्बो संगवारी महुंआ ल देख के खुस होगिन अउ महुंआ  बिने लगिन. देखते-देखत उँखर टुकना हर महुंआ फूल ले भरगे रहाय। बाचे महुंआ फूल ल पहिरे सारी के अंचरा म तको बांध डरिन। चारो संगवारी एक दूसर के टुकना ल मुंड़ी म बोहाय लगिन। घर बस्ती कोती जाय बर, जंगल ले बाहिर निकले लगिन।

               जंगल रद्दा म सबले आगू रमसीला रहाय,ओखर पाछू मनटोरा अउ सुहासनी रहाय, सबले पछुवाय रधिका हर आज चपक -चपके महुंआ फूल ल अपन झऊहा म भरे रहाय,संगे-संग अंचरा म तको अब्बड़ अकन महुंआ ल धरे रहाय। पचास किलो ले जादा महुंआ ल मुंडी़ म बोहे,अंचरा म धरे लकर -लकर रद्दा म पछुवाय रेंगे लगिस।

                 उही बेरा जंगल के भीतरी ले भलुवा के हुंकारु हर सुनाई  परिस। सब्बो झिन के  हाथ -गोड़ फुले लगिस, जुड़ाय लगिस। सबके जीव हर कांपे लगिस के अब का करिन। सबले आगू रमसीला हर पाछू मुंड़ के देखिस त देखते रहिगे। एक झिन भलुवा हर पाछू ले आवत रिहिस; रमसिला हर जोर ले चिचियाइस अउ कहिस-"भलुवा हमर पाछु हावय, भागव-भागव जल्दी दउड़व, भागव संगवारी हो भागव... ।"

                  रमसिला के चिचियई अउ ओखर गोठ ल सुन के सब्बो झिन कांपगे। रमसिला त सड़क के तीर कना आगे रिहिस, फेर जमके दउडे़ लगिस,  ओखर पाछु सब्बो झिन अपन टुकना ल उंही मेर मड़ाके, दउडे़  लगिन । सबले पाछु रधिका हर दउड़त रिहिस, त भलुवा हर ओखर संघरा होगे रहाय. रधिका  भलुवा के मुँहु ल देखके, महुंआ ले भरे टुकना ल ओखर ऊपर पटक दिस अउ कछु नई सूझिस त तेन्दू रूख म चघे लगिस । रधिका ल रूख म चघत देख के, भलवा तको रूख म चघे लगिस। रधिका हर अपन डहार आवत भलुवा  ल देखके डरागे ।  डर के मारे ,रूख के डारा हर ओखर हाथ ले छूटगे  अउ  रूख तरी धडाक ले गिरगे। रधिका रूख ले अइसना गिरिस के,पेट के बल मुंड़ी कान सब्बो भुइयाँ म गढ़ियागे। अइसे लगिस के रूख ले गिरके ओखर प्रान पखेरू उड़ियागे; न हिले न डुले सिरतोन रधिका के जीव छूटगे।

            ऐतीबर रधिका के संगवारी मन सड़क मेर जुरियागे रिहिन अउ रधिका के अगोरा करत रिहिन। भगवान ले सुमिरन करे लगिन, हे भगवान रधिका ल भलुवा ले बचा ले,  रधिका के नान-नान लइका -पिचका हवय; ओहर मर जाही त लइका मन के का होही??

                 जंगल के सड़क के रद्दा तीर म अगोरा करत ,मनटोरा हर सड़क म चलत गाड़ी -मोटर वालामन ल रोक के, रधिका ल बचाय बर गुहार लगाईस फेर कोनो अपन गाड़ी ल नइ रोकिन। इही इलाका हर लाल बबामन के अड्डा हरे, इही पायके कोनो अपन गाड़ी मोटर ल नइ रोकय। अब भइगे बस के अगोरा हवय। बस हर त इही रद्दा म आबे करही, कंडक्टर अउ डायवर हर थोरकुन मदद करबे करही, अइसना बिचार गुनत फगुनी हर जंगल डहार रूवासी मुंह करके देखे लगिस।

              रमसिला हर आंसू पोछत कहे लगिस-"हहो संगवारी हमन  जंगल के रहवइया, आदिवासी कहाथन। इही जंगल के रूख-राई ऐखर ले उपजे  फूल- फर,पाना -डारा -बीजा ,लकड़ी हमर रोजी-रोटी आय, फेर इही थोरकुन साल बीजा, महुंआ फूल, तेन्दुपाना के संग्रहन ले हमन ल थोरकुन रूपिया-पइसा मिलथे.इही रोजी-रोटी बर हमन  अपन जिनगी ल दांव म लगाय परथन। इही जंगल म पग-पग म जिनगी के खतरा हवय। हमर परान लेहे बर कोन जाने तेन्दुआ, भलुवा घात लगाये बइठे हवय।भइगे आज हमन अपन एक झिन संगवारी ल खो देबो।" अइसना कहिके रमसिला अउ सब्बो संगवारी मन रोय लगिस।जंगल म मनखे मन के अगोरा करे लगिन।

              इही पइत कतको घव हुँवा-हुँवा  के हुंकारू लगा डारिन, हुं. ...ऊई-उई.. हुंआ.. हुंआ... जंगल राज के जम्मो हुंकारू ल लगा डरिन।सब्बो झिन के हुंकारू  ले जंगल हर गूंजे लगिस,फेर कोनो जंगल भीतरी नींगे के हिम्मत नइ करिन। सुरुज हर लुकात रिहिस।

जम्मो संगवारी मन बीन पानी मछरी कस तरफत रिहिन। कइसे करन घर कुरिया जांवन के इही मेर थोरकुन अउ अगोरा कर लेन।

             ठउका उही बेरा जंगल भीतरी ले रधिका ल आवत देख के ,सब्बो संगवारी मन

के आँखी म चमक आगिस। माथा फूटे, लहु -लुहान रधिका ल पोटार लिन। सड़क के रद्दा के ओरी म बइठार के ,पानी ल पियायिन । लहुं ल पोछत ,रमसिला हर रधिका ले कहिस-"रधिका तेहर बांचगे, हमन तोला जंगल भितरी अंग छोड़ के भाग के आगे रेहन।"   रधिका हर किहिस- "बने होइस तुमन भागगेव, आज हमन सबो झिन भलुवा के सिकार बन जातेन; मोला खुसी हवय के मेंहर आज भलुवा ल चकमा दे हवव। मिही हर सबले पाछू रेहेव, भलुवा मोर संघरा होगे रहाय, ओला देख के मेंहर  डरागे रेहेव, फेर हिम्मत कर के मेंहर ,भलुवा के मुंड़ी ऊपर महुंआ ले भरे झंउहा ल पटक देव त ले भलुवा हर महुंआ ल खाय बर छोड़ मोर डहार आय लगिस। भलुवा ल अपन कोती आवत देख के मेंहर रूख म चघे लगेव। भलुवा तको रूख म चघे लगिस, त भइगे मेंहर अपन परान ल बचाये बर, रूख ले कूद गेव अउ पेट के बल अपन सांस ल रोक के,अपन तन ल मरे कस बना डारेव। मोर आगू- पीछू भलवा हर किंदर -किंदर के मोला सूंघीस अउ मोला हलाईस -डुलाईस  अउ मोला मरे जान के जंगल डहार नींगगे,फेर तुंहर मन के जंगल हुंकारू ल सुनके भगागे। मेंहर अब्बड़ बेरा ले अइसने परे रेहेव फेर भगवान ल सुमिर के उठेव अउ अपन परान ल बचावत दउड़त-दउड़त आवथव।

             जम्मो संगवारी मन रधिका ल पोटार के ओखर बुद्धि अउ चतुराई ल देखके अब्बड़ खुस होगिन। भगवान ल सुमिरन करिन अउ धन्यवाद करिन। सारदा बस तको उही बेरा आगिस. बस म बइठार के रधिका ल जिला अस्पताल लेगिन, उहां ओखर इलाज कराइन। चारो मुंड़ा पट्टी बंधागे रिहिस। डाक्टर हर दवई तको खाय बर दिस अउ रधिका के बहादुरी के सराहना करे लगिस। उही बेरा पत्रकार मन ओखर फोटु खिंचिन अउ ओखर साहस के बड़ाई करिन  के भलुवा ल चकमा देके रधिका हर मउत ल तको चकमा दे दिस।

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                        लेखिका

             डॉ.  जयभारती चंद्राकर

                     सहायक प्राध्यापक

                         रायपुर (छ.  ग.)

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उड़िया जाही हंस अकेला

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      माटी के तन माटी म मिल जाही,कतको संभाल राखो इही हंस उड़िया जाही।का राजा - रंक के,का अमीर-गरीब के, का डॉक्टर- कलेक्टर के जम्मो गुन इही जग म बगराही, फेर माटी के तन माटी म मिल जाही, हंस अकेला उड़िया जाही।

       अब्बड़ उदिम करिन डॉक्टर के परान बाच जाय । जम्मों गरियाबंद के रहिवासी के तीर-तखार के जम्मों गंवई गाँव के लोगन मन अपन डॉक्टर के जीव बांच जाय।ऐखर सेती अपन-अपन देवता धामी ल सुमिरन करिन। प्रार्थना  सभा करिन,के डॉक्टर हर बांच जाय।फेर विधि के विधान ताय,जम्मों ओखी हर फेल होगे अउ डॉक्टर के परान पखेरू उड़ियागे।पंछी परेवा उड़ियागे। 

       जम्मों लोगन मन के आँखी म धारे-धार आँसू बोहाय लगिस। हमर डॉक्टर सुवरग वासी होगे,अब हमर इलाज ल कोन करही।

        आज बिहिनिया ले जम्मों गरियाबंद के दुकान बंद होगे,लोगन मन सोक म समागे।डॉक्टर के गुन के बखान हर जम्मों मनखे के हिरदय म समागे।का अमीर- गरीब, नेता,अधिकारी कर्मचारी,सियान ,लइका-पिचका,माईलोगन मन ओखर दुवारी म जुरियाय लगिन।

मुसलिम समाज के रीति-रेवाज ले डॉक्टर के तन ल ताबूत म घर के दुवारी म राखिन।जम्मों जुरिया लोगन मन के आँखी म आँसू बोहाय लगिस।जात-पांत के भेद ले उप्पर ,मनखे बर देवदूत रिहिस डॉक्टर मेमन हर दस-बीस रुपिया फीस ले के गरियाबंद के आदिवासी कमार,भुंजिया लोगन मन के इलाज करत रिहिस।अधरथिया  म तको मरीज ल देखे बर दूरिहा-दूरिहा गाँव रेंग देत रिहिस।

     जुरिया भीड़ म हिन्दू,मुसलमान,सिख , 

ईसाई अउ आदिवासी परिवार,कमार ,भुंजिया मन अब्बड़े संख्या म डॉक्टर के परिवार के संगे -संग जुरियाय रिहिन।

         भीखम के लुगाई हर त गोहार पार के रो डरिस अउ कहे लगिस- " हमर डॉक्टर ते हर जी जतेस ,अभे हमर का होही, हमरे अउ लइका-पिचका के इलाज ल कोन करहि।" दयाबती हर कहे लगिस-" डॉक्टर के देहे दवई  म हमन दु-तीन दिन म बने हो जात रेहेन। "

     सुकारो  कहे लगिस- "मनखे-मनखे मां अंतर ,कोनो हीरा त कोनो कंकर' हमर डॉक्टर हर हीरा अस रिहिस।वोखर बोली हर देवता अस रिहिस।मोर कना डॉक्टर ह गोठियावय अउ कहाय -'का ओ दाई बने लागिस ,ले अभी कुन पइसा नई धरे हस त रहन दे ,तोर कना जभे पइसा होही, त दे देबे।अभे कुन इही दवई ल खा अउ जल्दी बने हो जा।' आज इही गोठ हर अब्बड़े सुरता आवत हे।" अइसना कहिके गोहार पार के रो डरिस।ओखर गोठ अउ रोवई ल सुन के जम्मों जुरियाय मनखे मन के छाती हर फाटे अस लागिस।जम्मों लोगन के आँखी म आँसू धारे-धार बोहाय लगिस।

        गरियाबंद के लोगनमन अउ तीर तखार के लोगनमन अपन देवता डॉक्टर के अंतिम दरसन करत,ओखर जनाजा म रद्दा म फूल ल बिछा दीन।जेन डॉक्टर हर जम्मों लोगन मन  के परान ल बचात रिहिस,तेन डॉक्टर के परान ल लोगन मन नइ बचा पाइन।

अपन मयारू,देवदूत ल बिदा करत, हिदय म पथना राख डरिन ।जम्मो लोगनमन ल मया करइया,जम्मो के मयारूक डॉक्टर मेमन हर देवदूत रिहिस,अपन देव लोक म रेंग दिस। माटी के तन माटी म मिलगे अउ जीव हर उड़ियागे।


                            लेखिका

        डॉ.जयभारती चंद्राकर 

              छत्तीसगढ़ 

मोबाइल न. 9424234098

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 समीक्षा--पोखनलाल जायसवाल:

 जात-धरम ले ऊप्पर होथे, मनखे के करम। मनखे के सद्-करम अउ सद् बेवहार ह जग म ओकर नवा पहिचान बनथे। जन-जन के हिरदे म जघा बनाथे। माटी के चोला माटी म मिलना च हे। ए संसार म का हे? जे नश्वर नइ हे। तभे तो कहे जाथे- मनखे! तैं जतन कर लाख, होना च हे एक दिन राख। जिनगी के इही सार ल पहिचाने के जरूरत हे। जेला जान के अनजान बने रहिथे मनखे।

       जब माटी म मिलना च हे, राख होना च हे त का के गरब अउ अभिमान? साँसा के डोर के राहत ले जिनगी के ठाठ (गाड़ी)ल हाँक ले। नर सेवा नरायण सेवा मान के, कखरो हिरदे ल झन दुखा। 

        कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये।

       ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये।।

       कबीर के ये सीख ल असल जिनगी म अपना के जिनगी जियइया कतको हें। अइसन जिनगी जिए बर धन-दोगानी, मान-सम्मान अउ पद के लालच छोड़ के नवा रद्दा बनाना परथे। ये रद्दा जतके सरल होथे, ओतके कठिन घलव होथे। इहू ह एक तपस्या आय। जे ल घर परिवार म रहिके करे जा सकथे। जौन सब के दरी नइ हो सकय। सब के वश के बात नोहय। समाज ल इही मन नवा उजास देथे। मनखे-मनखे म फरक नइ करयँ। 

         सुग्घर कथानक ल लेके कहानी गढ़े के बढ़िया प्रयास हे। बढ़िया संवाद हे। मोर विचार म अभी ए कहानी नइ बन पाय हे। अभी एक वृत्तांत हे, ए अलग बात ए कि कहानी घलव वृत्तांत होथे, जेमा कल्पना के संग एक मोड़ (घटना) रहिथे। जेन ह कहानी अउ वृत्तांत म बारीक विभाजन रेखा खींचथे। अभी लोकप्रिय मनखे के परलोक गमन के शोक म बूड़े वृत्तांत लगत हे।


        जात-धरम ले ऊपर उठे अउ समता के संदेश बगरावत सुग्घर सृजन बर बधाई

लइका मन के सगा-पुतानी बन उँकर मन जीतही: सगा-पुतानी के गीत*


 

*लइका मन के सगा-पुतानी बन उँकर मन जीतही: सगा-पुतानी के गीत*


        ननपन ले ही मनखे गीत सुने के आदी रहिथे। गोदी म रखे लइका रोय ल धरिस तहाँ ले मनखे के गुनगुनई शुरु, भले गीत याद राहय ते झन राहय। कभू-कभू तो इही गीत ले थपकी दे सुताय के उदिम घलव करे जाथे। सुर कइसन हे माने नइ रखय। मूल रहिथे नान्हे लइका ल भुलवारना। कोनो-कोनो किस्सा-कहिनी कहिथे। 

          ननपन ले ही मनखे बनाय के उदिम आय गीत। गीत ले ही मनखे म मनखेपन के विकास होथे। मनखे के अंतस् म गीत के उद्गार होथे। मनखे अकेल्ला रहिथे त कुछु न कुछु गुनगुनाथे, इही ए बात के प्रमाण आय कि मनखे के अंतस् गीत प्रेमी होथे। गीत लइकापन म गोरस के संग लोरी बन के रग-रग म समा जथे, लइकापन ले अंतस् म गीत के नेंव रखा जथे। भाषाविद् अउ साहित्यकार डॉ. चितरंजन कर कहिथें - "जब तक माँ है तब तक ममता है, ममता है तब तक लोरी है, लोरी है तब तक गीत है, गीत है तब तक संवेदना है, संवेदना है तब तक मनुष्यता है।" संवेदना ले भरे गीत जिनगी के जम्मो उतार-चढ़ाव ल घलो समेटे रहिथे।

          बाल साहित्य के बुता ए लइका मन के मनोरंजन संग ओमन ल सीख देना, ए सीख संग मानवीय मूल्य ल सजोर करना प्रमुख होथे। लइका मन म जिज्ञासा, वैज्ञानिकता, जागरूकता लाय अउ साँस्कृतिक अउ राष्ट्रीय चरित्र निर्माण म बाल साहित्य के बड़ भूमिका हे। एकर ले शब्द भंडार म बढ़ोतरी घलव होथे। बालगीत ले लइका मन मोहाथें, एक सुर म खींचत चले आथें, एक जघा सकलाथें। छत्तीसगढ़ी बाल साहित्य लम्बा समय ले वाचिक रेहे हे। अब एला लिखित रूप म सहेजे अउ सिरजाय दूनो के बढ़िया उदिम होवत हे। अभी के बेरा म छत्तीसगढ़ी बाल साहित्य डाहन कतको रचनाकार मन सरलग लिखत हें। जउन म उभरत नाम हे मिनेश कुमार साहू।

      साहित्य सिरजन कभू सरल नइ रेहे हे, कहूँ बाल साहित्य के बात होगे तब तो ए अउ कठिन हो जथे। बाल रचना दिखब म बड़ सरल दिखथे। जे जतका सरल दिखथे, वो ओतका सरल रहय नहीं। बाल साहित्य सिरजन परकाया सिरजन माने जाथे, काबर कि ए सिरजन बाल मन म प्रवेश करे पाछू संभव हो पाथे। ए अलग बात आय कि जादातर लेखक ए उमर के अनभो रखथें, फेर पीढ़ी के फरक तो रहिबे करही। बालगीत /बालसाहित्य अइसे साहित्य आय जेला पढ़के लइका ल मजा आथे, जे उँकर मानसिक विकास के रद्दा खोलथे। छोटे छोटे रचना म मनोरंजन के संग बाल सुभाव, मनोविज्ञान, लोक संस्कृति ले जुड़ाव, स्वच्छता के महत्तम, प्रकृति प्रेम, पर्यावरण संरक्षण, देशभक्ति अउ आचार-व्यवहार  जइसे रकम-रकम के विषय के सिखौना बाल साहित्य म जरूरी ए। बालमन के थाह लगा उँकर नस पकड़े म मिनेश साहू जी पारंगत हें। बालसाहित्य बर जरूरी जिनिस उँकर लिखे बालगीत म दिखथे। मिनेश जी के एक खास बात ए हे कि उन मूल रूप ले गीतकार आयँ। आज इँकर लिखे सिंगार गीत सोशल मीडिया म बड़ चलत हे। 

         अभी के चरचा मिनेश जी के लिखे बालगीत ऊपर हे। जेन म विषय के विविधता हे। मनोरंजन संग वैज्ञानिकता हे। बाल सुभाव के झलक हे। सीख हे। पर्यावरण बर संसो करत संदेश हे। देशहित बर चिंतन हे। जीव जनावर बर लगाव हे।

        पुरखा रचनाकार मन के रद्दा म चलत मिनेश जी जउन गीत लिखे हें, ओमा गेयता के कोनो कमी नइ हे। छंदबद्ध भले नइ हे जउन ओकर सँघरा बालगीत लिखइया कन्हैया साहू 'अमित' के गीत मन म मिलथे। अमित जी जइसे मिनेश जी लइका मन के मनोरंजन के पूरा खियाल करत लिखथें-

          बेंदरा ममा के हवय शादी, कुरता धोती पहिरे खादी।

         भालू कका बजावै ढोल, धिन्नक धिन्नक जेखर बोल।

         एमा जिहाँ मनोरंजन हे, उहें संस्कार अउ परम्परा के आरो हे। 'खादी' गांधीजी के सुरता करावत देशभक्ति के भाव मन म भरे म सक्षम हे।

         माँ खादी की चादर दे दे, मैं गांधी बन जाऊँ।

        लइकापन म पढ़े ए कविता सहज सुरता आ जथे।

        जिनगी म स्वच्छता के का महत्तम हे?  सबो ल पता हे। गंदगी ले बीमारी सँचरथे। तन म दुख आथे, पइसा के बरबादी अलगे। अइसन म स्वच्छता जिनगी म सुख के आधार आय।  इही बात लिखें हे-

        राखौ बढ़िया साफ-सफाई।

        जिनगी भर सुख पाबो भाई।।

        भारतीयता के दर्शन मीनेश जी के रचना म होथे। जब उन सर्वे भवंतु सुखिनः ... के सूत्र वाक्य ल अपन शिशु गीत गणपति वंदना म जघा देवत लिखथें-

        सुखी सबो राहय, विनती हावय मोर।

        लइका मन म अइसन विचार अउ सोच पैदा करे के सुग्घर उदिम मिनेश जइसे विचारवान रचनाकार ही कर सकथे।

         घर म टँगाय टिक टिक करत घड़ी हम ल जउन संदेश देथे ओला आप लिखथव-

         घड़ी के गोठ धियान ले सुनव।

         सरलग बुता बर जी गुनव।

         बेरा हाथ म रखाय रेती सहीं होथे, जउन मुठा बाँधत खिसल जथे। जेकर बीते ले पछतावा भर हाथ लगथे। अइसन म बड़ कीमती बेरा ल बिरथा झन जावन दन, लइका मन ल ए संदेश दे म मिनेश जी अव्वल नंबर म पास हे। तभे तो संसो करत लिखथें-

        बेरा कोनो गवाँ न जावय।

       बीते बेरा फेर नइ आवय।।

बेरा (समय) के कीमत समझावत आगू लिखथें-

        बेरा हवय बड़ अमोल।

        समझव एखर  जानव मोल।।

        केरा कब खाना अउ नइ खाना चाही एकर विज्ञान सम्मत् डाँड़ देखव- 

        बवासीर अनपचक अलसर, रोग राई ल लेथे हर।

        जेन ल हवय कफ सुगर, झन खावय वो केरा फर।।

         दूसर रचना म कुनकुन पानी के फायदा के बानगी हे-

       बड़े बिहना झटकुन उठ।

       कुनकुन पानी पी घुट-घुट।

       पेट ल साफ करही भाई।

       कटही कतको रोग-राई।।

           आज जब लइका के हाथ म मोबाइल अउ रिमोट आ गे हे। लइका मन टीवी कम्प्यूटर म चिपके रहिथें। वहू ल मिनेश जी 'टीवी कार्टून' म गजब ढंग ले लिखें हें।

        कृष्णा अउ शिवा, बाल हनुमान।

        डबलू डबलू ले, लख्खा परेशान।।

          मोबाइल आज सब के जिनगी म घुसर गेहे। एकर नफा-नुकसान दूनो म सुग्घर समन्वय बिठा उन सावचेत करत सुग्घर संदेश दे हें।

         आज घलव गँवई-गाँव म साधन विहीन (जिंकर तिर खेलौना नइ रहय) लइका मन धुर्रा-माटी खेलथें, अक्ती तिहार के पहिलीच उन मन पुतरा-पुतरी के बिहाव रचथें। सगा-पहुना बनके आय-जाय के खेल खेलथें। लइकामन के इही खेल ऊपर लिखे गीत के भाव ल किताब के नाम रखे गे हे। जउन बताथें कि मिनेश जी लइकामन ले कतेक जुरे हें। 

       बालसाहित्य ल लइका के चंचल मन ल एकाग्र करे के उपक्रम के रूप म देखना सही रही। एमा साहित्य के गहिर शिल्प अउ भाव खोजई बिरथा रही। बालगीत म काव्य के जम्मो काव्य सौंदर्यं ल सँघारे ले गीत लइका के समझ नइ आही, अइसे मोर मानना हे। 

            छत्तीसगढ़ी बाल साहित्य म मिनेश जी के ए संग्रह अपन नवा छाप छोड़ही। आकर्षक कव्हर पेज के संग भीतर बने चित्र मन मनभावन हें। एमा सँघरे गीत मन लइका मन के सगा-पुतानी बन के उँकर मन जीते म जरूर सफल होही।

संग्रह के नाम - सगा-पुतानी

रचनाकार- मिनेश कुमार साहू

प्रकाशक- आशु प्रकाशन रायपुर

प्रकाशन वर्ष- 2021

पृष्ठ सं.- 75

मूल्य -150/-


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

जिला -बलौदाबाजार छग

6261822466

Tuesday 14 February 2023

हमर भाँखा हमर अभिमान-

 हमर भाँखा हमर अभिमान-


             चिरई चिरगुन, कुकुर बिलई, गाय गरुवा सबे के मुख ले बोल निकलथे, जेला हमन नरियई या चिल्लई कही देथन, फेर मनखे के मुख ले निकले बोल ला भाँखा या बोली कहिथन, काबर कि मनखे मन के बोली भाँखा एक खांखा मा चलथे, कहे के मतलब एक बेर बने या बोले बात बोली सरलग वो शब्द या फेर वो बूता काम बर बउरे जाथे। चिरई चिरगुन मन का बोलथे तेखर बर तो इहिच कहिबों- "खग ही जाने खग की भाषा"। फेर गाय गरुवा चिरई चिरगुन घलो हमर थोर बहुत भाँखा ला समझथे तभे तो कुकुर बिलई गाय गरुवा ला आआ, हई आ, ले ले---- कहे मा आ जथे अउ हूत,हात, भाग --- कहे मा भगा जथे।

 हमर महतारी बोली भाँखा छत्तीसगढ़ी आय। एखर जनम कब होइस कइसे होइस तेखर बारे मा कुछु कही पाना सम्भव नइहे। बोली भाँखा ला स्थापित करे मा कतका उदिम लगे होही सोच के थरथरासी लगथे, काबर कि कोनो अंचल या क्ष्रेत्र के भाँखा बोली वो क्षेत्र के सबें रहवासी ला मान्य होथे, अउ तर्कसंगत घलो अउ ओला आन क्षेत्र जे मन घलो नइ डिगा सके। जइसे टेड़ा ल टेड़ के पानी निकाले बर पड़थे, ता वो टेड़ा होगे अउ ओखर पटिया पाटी, जे अपन काल मा मान्य रिहिस अउ आजो  मान्य या चलन मा हे। आज येला बदले नइ जा सके। गांव या अंचल के नामकरण घलो भौगोलिक, राजनीतिक, धार्मिक या अन्य कोनो परिदृश्य मा होवय, जइसे भांठा भुइयां के सेती भांठागाँव, खैर के लकड़ी के कारण खैरझिटी, डीही डोंगरी या देव धामी के कारण देवडोंगढ़, अमलीडीही, डोंगरगढ़ आदि आदि। आज भले स्थल या स्थान विशेष के नाम ल शाब्दिक अभाव या आधुनिकता  के कारण बदलत सुनथन, फेर ओखर मूल कतको बदलना उही रथे। पर वस्तु विशेष या क्रिया विशेष के नाम ला नइ बदल सकन। पंखा पंखा ही कहाही, ढेंकी ढेंकी ही कहाही, लमती, चकरी, टेड़गी तको उहीच कहाही। फेर नइ जाने तेमन ओ वस्तु के रंग रूप अनुसार कुछु आन तान बतावत गोठीयावत काम घलो चला लेथे।  कई ठन शब्द  या बोली अपभ्रंस, देशज रूप मा  घलो चलथे, पर लिखित या भाँखा के रूप मा जस के तस नइ लिखे जाय। कोनो अंचल विशेष मा सरलग बउरे जाने वाला बोली ही भाँखा के रूप लेथे। कोनो चीज जब नवा रूप मा अस्तित्व मा आथे ता ओखर नामकरण ओखर अविष्कारक मन करथे, अइसने काम बूता के नामकरण घलो होय होही। जानकार जे मन वो वस्तु या बूता काम ला आन भाँखा मा का कथे तेला जानत रिहिस होही ता उसनेच शब्द लिस होही, काबर की कई शब्द कई भाँखा मा एके रथे। अउ अनजान या येला का कथे अइसन चीज बस बर नवा शब्द गढ़ीन होही, फेर एखर बारे मा कुछु ठोसलगहा प्रमाण नइ हे। वो समय मनखे के सम्पर्क घलो सिमित राहय अउ आना जाना घलो सहज नइ रहय, ते पाय के हर अंचल के भाँखा बोली लगभग अलगे मिलथे।

             भाँखा घलो पानी कस ऊंच ले नीच कोती भागथे , कहे के मतलब सरलता कोती मुड़ जथे। दुनिया मा असंख्य भाँखा हे, सबके अपन अलग अलग अस्तिवव घलो हे। कतको भाँखा के अलगेच लिपि हे ता कतको भाँखा कई लिपि मा ही बउरावत रथे। बोली के जब तक समझइया नइ रही वो भाँखा नइ बन सके। छत्तीसगढ़ी बोली छत्तीसगढ़ भर मा बोले अउ समझे जाथे। जब भाँखा बनिस ता वो समय जेन भी चीज या जेन भी काम धाम वो अंचल विशेष मा चलत रिहिस वो सबके नामकरण होइस होही। जइसे हमर छत्तीसगढ़ मा ढेरा आँटना, मछरी धरना, मुही बाँधना, निंदई करना, धान मिंजना जइसन असंख्य काम--- । अब वो समय कम्प्यूटर, ट्रेक्टर, हार्वेस्टर नइ रिहिस ता कम्प्यूटर, ट्रेक्टर या हार्वेस्टर। चलाये बर अलग से शब्द नइ बनिस, बल्कि मशीन के नाम के अनुसार जब आइस तब अपना लेय गिस। आजो अइसने होवत हे कोनो भी नवा चीज न सिरिफ छत्तीसगढ़ी भाँखा मा बल्कि जम्मे भाँखा बोली मा जस के तस आवत हे,  येला बदले या अपभ्रंस करे के जरूरत घलो नइहे। भाँखा के बारे मा सोचबे ता एकठन अचरज घलो होथे जइसे कतको जुन्ना अउ जरूरी शब्द के नाम कतको भाँखा मा एके दिखथे, उदाहरण बर नाक, कान, दाँत ----  आदि कस कतको अकन शब्द हिंदी या अन्य बोली भाँखा मा वइसनेच मिलथे। जब भौह बर छत्तीसगढ़ी बोली मा चंडी/बटेना/टेपरा बनाइस ता कान ला कान ही काबर किहिस होही, या कान कहिस ता आन भाषी मन तको जस के तस कइसे अपनाइस होही। या हिंदी के शब्द कान ला  छत्तीसगढ़ी मा घलो कान लिस ता भौह ला चंडी काबर किहिस? खैर ये सब ला उही मन जाने।   कतको शब्द के एक ले जादा नाम तको दिखथे। एखर ले साबित होथे, भाँखा के निर्माण कोनो एक व्यक्ति या अंचल विशेष ले नइ होय हे, बल्कि जम्मे कोती के खोज खबर अउ महिनत,मान मनउवल मिले हे। इही क्रम मा सुरता आवत हे, आज कतको संगी मन धन्यवाद या धनबाद या धनेवाद कहिके छत्तीसगढ़ी शब्द बनाथे ,फेर ये उचित नइहे। काबर कि जुन्ना काल मा ये बात बात मा धन्यवाद कहे के परम्परा हमर छत्तीसगढ़ मा नइ रिहिस, बल्कि सेवा के बदला सेवा, अउ बड़े के छोटे के प्रति किये कोनो काम धाम कर्तव्य मा गिनती आवय। ददा अपन लइका बर खजानी लावय ता लइका ददा ला धन्यवाद नइ काहय, दाई रोटी खवावय तभो लइका गबर गबर खाये, धन्यवाद कहिके अभिवादन नइ करे। काबर कि वो दाई ददा के कर्तव्य अउ आदतन निःस्वार्थ बूता रहय,  जेखर करजा लइका बड़े होके चुकावै, धन्यवाद कहिके नइ बोचके। फेर आज तो लइका का दाई, ददा , भाई, बहिनी, यार दोस्त सबें एक दूसर ला धन्यवाद कहत फिरत हे। खैर छोड़व यदि कहना हे ता कहव, फेर छत्तीसगढ़ी भाँखा कहिके बिगाड़ के झन बोलव। मोर कहे के मतलब हे  हमर भाँखा प्राचीन हे जे चीज वो समय रिहिस ओखर बर प्रचलित शब्द हे, अउ नइ रिहिस तेखर बर नइहे। यदि नइहे ता वोला उही रूप मा शामिल करन अउ हवे या महिनत करके जुन्ना सगा सियान ले पूछन। आज कतको अकन प्रचलित ठेठ शब्द मन नइ बउराय के कारण उड़ावत जावत हे, जे हमर पुरखा मनके महिनत के उचित मान सम्मान नोहे।  दाई ला ओखर लइका ही दाई कही, कोनो आन नही अउ दाई के सेवा घलो लइका ल करेल लगही ,काबर की महतारी के करजा ले उऋण होना सम्भव नइहे, वइसने भाँखा घलो हमर महतारी आय अउ हम सब जम्मो छत्तीसगढिया मन ओखर लइका। अब कतका सेवा जतन, मान सम्मान करथन हमरे उपर हे। 

            आवन इही क्रम मा हमर शरीर के अंग मन के नाम ला जानन कि कोन अंग ला छत्तीसगढ़ी मा का कथे---


हिंदी ले छत्तीसगढ़ी नाम


बाल/केश-चुन्दी

सिर- मूड़

मस्तक-माथा/कपार

भौंह- चंडी/टेपरा/बटेना

पुतली-पुतरी

आँख- आँखी

पलक- बिरौनी

मुँह- मुँहु

कान के बाहरी भाग- कनपट्टी

सिर के पीछे के भाग- चेथी

गला- घेंच/ टोंटा

गाल- कपोल

होट- ओंठ

ठुड्डी- दाढ़ी

कंधा-खाँध

कोहनी- हुद्दा

कलाई-मुरुवा

बाँह-बाँही

उंगली- अँगरी

अँनूठा-अंगठा/ठेंगा

नाखून- नख

जंघा-जांग

हड्डी-हाड़ा

तर्जनी उंगली- डुड़ी अँगरी

मध्यमा- माई अँगरी

अनामिका- पैंती अँगरी

कनिष्ठ- छीनी अँगरी

पंजा- थपोल

पैर- गोड़

टखना-घुटवा

नाभि- बोड़ड़ी

तलवा-पंवरी/तरपंवरी

धमनी/शिरा- नस/रग

कमर-कनिहा

चेहरा-थोथना

ताली-थपड़ी/थपौड़ी

हाथ को कुछ चीज को उठाने के लिये आधा सर्कल में जोड़ना-पसर

मुट्ठी- मुठा

घुटना- माड़ी

आँत-पोटा

काँख-खखोरी

कलेजा-करेजा

मूँछ-मेछा


क्रमशः

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

अउ एको अंग अउ नाम के सुरता आही ता जरूर कमेंट करके बताहू