Saturday 4 February 2023

अंतस् के आरो आय - तैं तो पूरा कस पानी उतर जाबे रे* पोखन लाल जायसवाल


 

*अंतस् के आरो आय - तैं तो पूरा कस पानी उतर जाबे रे* 

पोखन लाल जायसवाल


       मनखे कतको ऊँचई ल छू लेवय, ओला ओकर ले अउ आगू जाय के नवा साध हो जथे। ओ ऊँचई कमती च जनाथे। कतको पैसा अउ धन दोगानी कमा लेवय, दू आना कमे च लागथे। मान-सम्मान जइसे मिलथे, छाती तो तान लेथे। फेर मिले सम्मान के पाछू एक गरब ह घमंड म बदल जथे। धन-दोगानी, मान सम्मान, नता-गोता बर मया-मोह, लालच के नार फाँस ह अपन बँधना म अइसे जकड़थे कि छोरे के उदिम म अउ अरझत फँसत जाथे। नता-गोता, जमीन-जायदाद अउ रुपिया-पैसा सब इहें च के पूरती आय। ए सब ल इहें च रहि जाना हे। ...तब ले मन म चढ़े ए सब के मइल मनखे के चेत हर लेथे। कभू-कभू तो गियानी-धियानी के मति घलव छरिया जथे। जतका रहिथे ओकर ले आगर के चाह म मनखे धीर नइ धरय अउ भटकत रहिथे। मन बड़ चंचल होथे। पाँख लगाय बड़ अपन बनाय दुनिया म उड़त रहिथे। कहूँ मेर हाथी त कहूँ मेर घोड़ा पाहूँ के साध म मनखे सरी उमर भटकथे। कभू भटकन के भूल-भुलैया म थक हार के बइठथे त अंतस् म खियाल आथे ए सबो जिनिस तो इहें रहि जाना हे। हाथ पसारे जाना हे। ...फेर खियाल के चिरई जब फुर्र के उड़ जथे त मनखे फेर माया-मोह के फाँदा म अरहज जथे। इही भटकाव म जब मनखे शांति खोजथे त ओकर आत्मा परमात्मा के शरणागत हो जथे। शरणागति होय ले सुख सनात अउ शांति के अनभो करथे। इही अनभो परम आनंद आय, दिव्य ज्ञान आय। जउन संसार के निस्सारता ले परिचय कराथे। परम आनंद अउ दिव्य ज्ञान पाय के रस्ता हर तो आय भक्ति। भक्ति जउन भव बँधना म जकड़ाय जीव ल मुक्ति दिलाथे। धन-दोगानी, मया-मोह, राग-अनुराग, मान-सम्मान सब माया आय। ए माया हरदम भक्ति के मार्ग म बाधा परथे। मन के शांति के रस्ता ले भटकाथे। दुनिया ल देख लव जेकर तिर अपार धन हे, ओकर मन म शांति नइ हे। शांति तो एकेच रस्ता अउ एके दिशा म मिलथे का? सबो ल साधे के उदिम म मन फिरत रहिथे, थिर बाँह नइ पावय, अइसन म शांति मिल पाना संभव च नइ हे। एकरे बर चेतावत रहीम जी कहें हें ..एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।.... सब ल साधे के कोशिश म सफलता नइ मिले ले तनाव आथे, मन के शांति भंग होथे। जउन मनोगत आय। 

         लौकिक संसार म ए सब के बिना जी पाना घलव मुश्किल आय। यहू सुरता राखन कि दू डोंगा म पाँव रखे ले नदी पार नइ करे जा सकय। भव सागर ले पार होय अउ जनम-मरण के बंधन ले मुक्ति बर तो भक्ति साधे च ल परही। काबर कि ज्ञानी-धियानी मन एकर एक मात्र उपाय भक्ति बताय हें। मन के शांति अउ भवसागर ले मुक्ति बर रस्ता चतवारत भक्ति के निर्मल धार बोहावत रचना मन के संग्रह आय कवयित्री शोभामोहन जी के लिखे *तैं तो पूरा कस पानी उतर जाबे रे* । ए संग्रह के रचना मन म लयात्मकता हे। संगीतात्मकता हे। आँचलिकता हे। गहिर चिंतन हे। दर्शन हे। गजब के दृष्टांत घलव हे। 

         जीवन-मरण ले जुरे लोकजीवन के प्रचलित रीत-रिवाज अउ नेंग-जोंग ल सँघारे ले रचना मन के सौंदर्यं बाढ़े हे, उहें एमा समाय प्रतीक ले रचना के लौकिक आनंद ह अलौकिक आनंद के सुख देथे। अध्यात्म संग जोरथे। प्रतीक अउ बिम्ब विधान के प्रयोग ह ए संग्रह ल छत्तीसगढ़ी साहित्य म ऊँचा दरजा जरूर दिलाही। पाठक ल ए किताब म सबो किसम के काव्य तत्व मिलही। 

       ए संग्रह म शामिल रचना मन के भाव पाठक के अंतस् म उतर जथे। लौकिक-अलौकिक आनंद के समंदर म घेरी-बेरी डुबकी लगाय के मौका देथें। निमगा अध्यात्म ले भरे-पूरे रचना हे। आज के बेरा म जब मनखे पग-पग म संघर्ष करत हें, जिनगी ल बने ढंग ले जिएँ बर नवा-नवा जतन करत हें। अइसन म मन ल सजोर बनाय म अध्यात्मिक शक्ति के जरूरत पड़थे।  कोनो-कोनो कहि सकथें कि विज्ञान के युग म आत्मा अउ परमात्मा के का रटन? मोला लगथे कि मन के अशांति अउ तनाव के कोनो दवा विज्ञान तिर नइ हे, फेर लोगन भक्ति-भाव के सागर स्नान करथें, दू मिनट धियान लगाथें त उँकर मन ल शांति मिलथेच अउ मन के तनाव घलो मिट जथे। दिनभर के थकान परमात्मा के शरणागति होय ले मिटा जथे। 

       भारत के जउन अध्यात्मिक चिंतन के विश्व अनुगामी हें, उही गहिर अध्यात्मिक चिंतन ल सँजोये शोभामोहन जी के ए संग्रह छत्तीसगढ़ी भाषा ल सिरतो विश्व पटल म पहचान दिलाही। जेकर चरचा श्री अरुण कुमार निगम जी ए किताब के उतरनी (भूमिका) म लिखें हें।

         कला पक्ष के दृष्टि ले कुछ रचना गीत के कलेवर म हे त कुछ ह ग़ज़ल के तिर हें। सब म गेयता हे। हाँ, कुछ मन शिल्प के हिसाब म न तो गीत बन पाय हे अउ न ग़ज़ल। ग़ज़ल के अपन नियम होथे, नापनी म लिखे जाथे। गीत बर तीन पद नइ त एकर ले आगर पद होना चाही। ए कमी पाठक अउ रचना के आनंद के बीच आ जथे। जेकर ले पाठक के मन कई घँव भर नइ पाय। भटक जथे। जब कभू एकर नवा संस्करण आही त शोभामोहन जी ए कमी ल पूरा कर लिहीं, अइसे मोला अजम हे, विश्वास हे। काबर कि उँकर कलम म अतका दम हे। उँकर शब्द-भंडार के कोठी भरे-पूरे हे। संगेसंग टंकण त्रुटि कोति घलव थोरिक चेत करे के जरूरत हे। कुछ रचना मन अतेक छोटे हें कि अभी ओला कविता कहना ही सही रही। मारक अउ कसावट के कमी नइ हे। उन ल पढ़के बिहारी जी के दोहा सुरता आ जथे-

      सतसइया के दोहरे, ज्यों नाविक के तीर।     

      देखन में छोटे लगे, घाव करे गंभीर।। 


       छंद के छ परिवार संग छंद साधना के तप ले शोभामोहन जी के लेखनी अउ निखर गे हे। उँकर साधना छत्तीसगढ़ी साहित्य म नवा रंग लाही। छत्तीसगढ़ी साहित्य ल नवा दिही।

         तैं तो पूरा कस पानी उतर जाबे रे ...संग्रह के जादातर रचना म आत्मा के जीव ले मनुहार अउ आत्मा के परमात्मा ले गोहार के सुग्घर समन्वय हे। संसार ल गतिमान अउ चलायमान रखइया शक्ति आय परमात्मा।ए किताब म उही परमात्मा ले मिले अउ जन्म-मरण ले मुक्ति बर संसार के माया-मोह म फँसें जीव ल चेतवना के सुर हे अउ संसार के मोह-जाल म उलझे, तोर-मोर के झगरा अउ छल-प्रपंच म भटकत जीव ल जिनगी के सत् मार्ग म लाय के उदिम हे।

         भक्तिकालीन युग के अधिकतर कवि मन परमात्मा ल स्वामी मानत अपन रचना करें हें। शोभामोहन नारी आय, अइसन म उन परमात्मा ल पिया स्वीकारत लिखथें-

         मोर पिया हे गजब मयारू, रखय हथेरी छाँव।

         मोर पिया जग भर ले मंडल, सबले बड़का साव।

         पिया रंगरसिया के रँग रँग के, मैं तो सखी लहराँव।

         डेरा उसलत संझा बेरा, रोवा राही परबे करथे।

       लोकजीवन ले जुरे बिम्ब के संग आत्मा के परमात्मा ले मिलन बर आप लिखथौ-

          गवन करे के चलत तियारी, गठरी अपन उठाव

         रे सुवना जाबे पिया के गाँव।

     एक ठन अउ उदाहरण देखव--

         लेगे बर आही लेनहार, जाये बर रहिबे तियार।

         हरियर भिरहा के बाँस मँगाही, रचही काठ के डोली।

        लौकिक जीवन के दृष्टि ले अतिशयोक्ति अलंकार ले सजे डाँड़ देखव-

         मोर पिया घर चमचम चमकत, सहस सुरुज के गाँव।

         मोर पिया के गगन हवेली, बिन पँवठा चढ़ जाँव।

       ए डाँड़ तो सर्वशक्तिमान परमात्मा बर लिखे गे हे, जेकर कृपा ले सबो सहज अउ सरल हो जथे। हजारों सूरज के ताव ल आम आदमी भला कहाँ ले सहि पाही? ए सरी संसार के मालिक परमात्मा बर लागू होथे। शोभामोहन जी के कल्पना बेजोड़ हे।

      विज्ञान मानथे कि संसार म ऊर्जा अविनाशी हे। बानी (वचन/ध्वनि) ऊर्जा के एक रूप आय। पंचतत्व ले बने देह नाश हो जही, अपन अपन हिस्सा म मिल जथे, फेर बानी अमर रहि जथे। जिनगी ल बोधावत उन ए सच ल गहिर चिंतन के लिखथें-

     हाड़ा जरह मास टघलही, जर बर होबे राख।

     बाँचे रही तोर बानी जग मा, तैं हा लुका ले लाख।

     पाँचों जिनीस मा सरबस मिंझर जाबे रे।

     तैं तो पूरा कस पानी उतर जाबे रे.....

       किताब के नाँव 'तैं तो पूरा कस पानी उतर जाबे रे' एकर ऊपर विचार करे ले इही समझ म आथे कि ए ह अंतस् के आरो आय। जे ह ए किताब के केंद्रीय भाव ल सरेखथे। जेन लोक हित म हे। लोक हित म लिखे साहित्य सदा काल लोक म प्रचलित रहिथे। इही कामना करत हँव कि लोक जीवन म ए किताब अपन ठउर बनावय। 

       अपन अंतस् के बहाना कवयित्री शोभामोहन के लोक हित बर लिखे दू लाइन आप ल सादर समर्पित हे, जउन म जीव ल भक्ति के मार्ग म चले बर शुभ लगिन अउ बूढ़त काल के अगोरा नइ करे के संदेश दे हे। आजे ले भक्ति म लगे के बात कहे हे।

        पूरा मा पार नइ बँधावै, शुभ सुम्मत झन नेत।

        शोभामोहन रेंग अभी ले, चूँदी झन कर सेत।

        रे हंसा बेरा कहत हे चेत।

        

  *संग्रह के नाम*- तैं तो पूरा कस पानी उतर जाबे रे

   *रचनाकार - शोभामोहन श्रीवास्तव*

    *प्रकाशक- सर्वप्रिय प्रकाशन दिल्ली*

   *प्रकाशन वर्ष 2021*

*सहयोग राशि 200/-रूपये*

*पृष्ठ संख्या 160*


आलेख - *पोखन लाल जायसवाल*

पलारी (पठारीडीह) जिला बलौदाबाजार छग.

6261822466

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