Saturday 29 August 2020

चंगुल-चोवाराम वर्मा बादल

 चंगुल-चोवाराम वर्मा बादल
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कतेक झन कहिथें कि नो नालेज ,विदाउट कॉलेज। कभू- कभू सोचबे त ए बात ह बिल्कुल सिरतोन लागथे।काबर कि मनखे के स्कूली जीवन अउ कालेज के पढ़ाई जीवन म जमीन-आसमान के फरक होथे।  कालेज  पढ़ई जीवन म अबड़ कस खट्टा -मीठा , दुखद-सुखद अनुभव होये ल धरथे।लइका जब स्कूल म पढ़त रहिथे त ओकर उपर माता-पिता अउ गुरुजी मन के नजर रहिथे। लइका ल एती-वोती जादा गिंजरे के अजादी नइ राहय। घर ले स्कूल अउ स्कूल ले घर।संगी-संगवारी तको पास -पड़ोस के गिने-चुने। ज्ञान के दायरा घलो सिमटे रहिथे।
       फेर इही लइका जब कालेज पढ़े बर जाथे तब पिंजरा ले निकले पंछी कस अगास म डेना फइलाये जेती पाथे तेती ससन भर उड़े ल धर लेथे। अपन युवा मन म जागे नाना किसिम के सपना म बिधुन होके रंग भरे ल धर लेथे। इही समे नवाँ-नवाँ अनचिन्हार चाहे वो लड़का होवय या लड़की मन ले दोस्ती होना चालू होथे। पिंयार-मोहब्बत के पीका तको फूटे ल धर लेथे। दोस्त मन बने-बने मिलगे त सब बने ,नहीं ते  धारे-धार.बोहावत देर नइ लागय। ए उमर जिनगी के अइसे अंधा मोड़ होथे जेमा बड़े-बड़े दुर्घटना घटे के अबड़े अंदेशा होथे।
      सबो चीज बर नवयुवके मन ल दोष नइ दे जा सकय।कुछ बात ह तो स्वाभाविक होथे।परिवर्तन ल प्रकृति के नियम कहे गे हे। बसंत आही त आमा मउराबे करही,कोइली ह कुहकबे करही। मतौना फागुनी हवा ह तो सुरसुराबे करही।
         ए समे म माता-पिता ल अंध-निरंध नइ रहना चाही। बेटा-बेटी के आदत म होवत  बदलाव उपर बारिक नजर रखना चाही ।नहीं ते "डार के चुके बेंदरा अउ बेरा के चुके किसान" कस  जिनगी भर पछताये ल परथे।
  मोला काबर ए ते परोसी भाई दिनेश के घर म घटे घटना के घेरी-बेरी सुरता आथे। 
   वोकर एके झन बेटा---नाम रहिसे विवेक कुमार। जइसे नाम तइसे गुन। पढ़ई-लिखई म बड़ हुशियार।  कक्षा म पहला आवय। आदत -व्यवहार बहुतेच बढ़िया। कालेज म गिच तहाँ ले सबले पहिली चश्का महँगा मोबाइल के लागिच। कई झन दोस्त-यार बनगें।  आनी- बानी के बहाना बना-बना के दाई-ददा सो पइसा माँग-माँग के उड़वाये ल सीखगे। दूये साल म फेल घलो होगे। दिनेश ह दू-चार पइत टोंकिच तको फेर वोहा एक कान ले सुनके दूसर कान ले निकाल दय।
   अभी पँदरा दिन पहिली के बात आय। विवेक ह घर ले दिल्ली नौकरी के इँटरव्यू दे बर जात हँव कहिके पाँच हजार रुपिया माँग के गे रहिसे। पाछू पता चलिस --वोहा अपन महतारी के पेटी ल टोरके जम्मों गाहना गुरिया अउ पचास हजार  रूपिया ल तको ले गे रहिसे।
   वो ह इंटरव्यू दे बर नइ गे रहिसे। फेसबुक म  सुंदर फोटू देख के एक झन अनचिन्हार लड़की ले दोस्ती होये रहिसे। उही लड़की सो मिले बर दिल्ली के बताये पता म मिले बर घर ले बहाना बनाके भागे रहिसे। जिहाँ वोकर पइसा, गहना गुरिया संग मोबाइल ल नँगा के वोकर मडर कर दे  गिस।
     दिल्ली के पुलिस ह वोकर लहू म बोथाये कुरता जेमा टेलर के नाम अउ पता लिखाये रहिसे तेला धरे पता करत -करत दिनेश घर आइन अउ सबो बात ल बताइन कि विवेक ह  अपराधी गेंग के चंगुल म फँस गे रहिसे जेन मन सुंदर लड़की के आड़ लेके लड़का मन ल पिंयार के जाल म फँसा के अइसने काम करथें। देख सुन के हमन हक्का-बक्का होगे रहेन।
    दिनेश बिचारा के तो जिनगी दुख म बूड़गे।  एकलौता बेटा----बुढ़ापा के लाठी टूटगे। कुल के दिया बुझागे।

चोवा राम वर्मा 'बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़

परिवार के किम्मत (नान्हे कहिनी)*

 *परिवार के किम्मत (नान्हे कहिनी)*

एक ठन गाँव मा सुखराम नाँव के , एक झन छोटकुन  किसान , अपन जम्मो परिवार के संग राहत रहिस हे ।
सुखराम मेर अपन पुरखा मन के देय , दू चार एकड़ खेत खार रहिस । जेमा किसानी के काम बुता संग बनिभूति ल करत , बपुरा सुखराम हर अपन परिवार ला सुग्घर पालत पोषत रहिस । सुखराम के घर म ओखर बाई अउ ओखर तीन झन लड़के लड़का बस रहिस हे , जिनगी सुग्घर चलत रहिस । 
सुखराम अब अपन तीनो बेटा मन ला बने पढ़ाय लिखाय बर सोचे लगिस , काबर सुखराम हर घलव बने पढ़े लिखे रहिस । कहिथे कोनो भी जिनिस के किम्मत ला उही मनखे मन जानथे अउ समझथे , जउन मनखे मन हर ओ दउर ले गुजरे रहिथे । सुखराम जी मन हर बतावय की , उखर ददा मन हर घलव थोड़ बहुत पढ़े लिखे रहिन हे , तेपाय के उन मन हर ओमन ला घलव बने पढ़ाईन लिखाईन हवै । 
सुखराम जी मन के बड़का बेटा के नाँव - श्यामलाल , अउ मंझिला बेटा के नाँव - रामलाल , अउ ओखर छोटे बेटा के नाँव - लक्ष्मन रहिस हे , श्यामलाल अउ रामलाल दुनो भाई पढ़ई लिखई मा अब्बड़ हुशियार रहिन । फेर लक्ष्मन हर ननपन ले पढ़ई लिखई मा एकदम कमजोर रहिस हे , ओखर तो चेत हर नइ लगत रहिस हे , स्कुल अउ उँहा के पढ़ई लिखई मा ।
लक्ष्मन हर अपन पढ़ई लिखई ला छोड़ दिस , अउ अपन ददा सुखराम जी मन के संग म खेती किसानी के काम बुता मन ला करे लगिस ।  अब धीरे धीरे लक्ष्मन हर अपन पूरा ,  खेती बाड़ी के काम बुता मन ल देखे बर धरलीच । ओ समे तीर तखार के गाँव के मनखे मन हर , बनिभूति मा कमाय बर उखर गाँव आवत रहिस हे । उही समय लक्ष्मन ला पास के गाँव के , सावित्री नाँव के एक झन बनिहारिन लड़की करा मया होंगे ।
 अउ ओ बनिहारिन नोनी ला घलव लक्ष्मन सो अब्बड़ मया होंगे रहिस हे , दिनों दिन दुनो झन के मया हर बाढ़त जावत रहिस । उखर दुनो झन के मया के शोर सन्देश हर , पूरा गाँव बस्ती मा फइलगे रहिस । ये सब गोठ बात मन के जानकारी लक्ष्मन के ददा सुखराम जी मन ल होइस ।  लक्ष्मन हर अपन ददा ला सबो बात मन ला बतावत कहिस : - बाबू जी मँय अउ सावित्री हमन दुनो झन एक दूसर ल अब्बड़ मया करथन , अउ बिहाव घलो करना चाहत हावन । 
अतका सुनके सुखराम जी मन हर ,  जात अउ समाज के जम्मो गोठ बात मन ल गुनके , अउ समाज के डाड़ बोड़ी संग बदनामी के डर ले । अपन बेटा लक्ष्मन ला समझावत कहिन : - लक्ष्मन सावित्री आन जात के बेटी ये बेटा , अउ दूसर जात के बेटी ला कहूँ हम बहू बनाबो ता जात अउ समाज संग दुनिया भर के लोगन मन हर हमर मन ऊपर हाँसही अउ थूकही बेटा । ये बिहाव नइ हो सकय
 कहिके , सुखराम जी मन सोज सोज अपन बेटा लक्ष्मन ला समझा दिन । फेर लक्ष्मन के समझ मा सुखराम जी मन के , कोनो गोठ बात हर समझ मा नइ आइस , अउ सबो झन के ओतका बरजे के बाद घलो ,  आखिर मा लक्ष्मन हर जाके मन्दिर मा सावित्री मेर बिहाव कर लीस । जात समाज के लोगन मन हर लक्ष्मन अउ सावित्री ला समाज ले बाहिर कर दिन हे । 
अब सुखराम जी मन हर घलव ओमन ल उंकर बाँटा हिस्सा ला देके अपन अलग तिरियादिन । लक्ष्मन अउ सावित्री संग म बने सुग्घर जिनगी ला बिताय ल धरलीन , धीरे धीरे समय हर निकलत गीस । लक्ष्मन के गोसाइन सावित्री हर भारी पाव ले (गर्भवती) रहिस , सावित्री ला जजकी करवाये बर अस्पताल म भरती करवाय गीस । अस्पताल मा डॉक्टर साहब अउ सिस्टर दीदी मन कहि  दिन की लइका हर पेट भीतरी उल्टा होंगे हावय । 
अब जजकी सरल सहज अउ सामान्य ढंग ले नइ हो पावय । आपरेशन करे बर पड़ही , तभे हम लइका अउ महतारी दुनो झीन ल बचा सकबो कहिके । डॉक्टर साहब मन लक्ष्मन ल आपरेशन के पइसा ला बताइन हे चालीस पचास हजार रुपया  लगही । 
जल्दी जमा घलो करना हे कहिके , बपुरा लक्ष्मन मुड़ मा हाथ धर के सोचत बइठगे । का करे जाय कहाँ ले अतेक कन पइसा लाय जाय कइके । अब्बड़ सोचे के बाद आखिरी म लक्ष्मन हर अपन बाबू सुखराम जी अउ अपन बड़का भइया मन के तीर गीस ।  अउ उंकर ले माफी माँग के अपन जम्मो हाल ल सुनाइस । तब सबो गोठ बात ल सुन के ,  सुखराम जी अउ ओखर बड़े भइया मन हर लक्ष्मन ल , अपन बहू के इलाज कराय बर रुपया देइन । सावित्री के आपरेशन सुग्घर अउ सफल होइस , ओहर लक्ष्मी असन बेटी ल जन्म दिस ।
 घर के पहिलावत लइका रहिस , तेपाय के सुखराम जी मन के घर अउ परिवार म अब्बड़ खुशी के माहुल छागे रहिस । हमर सियानन मन हर घलव कहिथे : - की पूत भले कपूत हो जावय , फेर माता कभू कुमाता नइ होवय । ओइसने हे हमर अपन परिवार हर होथे , जीखर किम्मत हमन ला बाद म समझ आथे , जइसे लक्ष्मन ल आइस हे । ये दुनिया म अउ कोनो रिस्ता नाता मन हर काम नइ आवय , जब भी काम आथे ता सिरिफ अउ सिरिफ परिवार हर आथे । 

                         मोहन कुमार निषाद
                      गाँव - लमती , भाटापारा , 
                    छंद साधक सत्र कक्षा - 4

अब तो चेतव मनखे*- चित्रा श्रीवास

 अब तो चेतव मनखे*- चित्रा श्रीवास


अइसन लागथे कि दूबर मा दू असाढ़ कहावत ला इही समय बर केहे गय हे।एक तो कोरोना महामारी ले पूरा दुनिया थर्रात हे।दिनों दिन संक्रमित मनखे मन के संख्या बाढ़त जात है।अर्थव्यवस्था चौपट हो गिस हे बेरोजगारी के समस्या मुँह फारे खड़े हे।काम धंधा छूट गिस हे।न कहूँ आना ना जाना ,जीव हलकान हे।तीज तिहार, बर बिहाव ,मरनी हरनी घलाव मा कहूँ आय जाय मा जीव काँपत हावय । हे !भगवान हम मनखे मन बर अतका दंड हा का कम रहिस हे कि इन्द्र देव घला रिसा गिन ।कई साल बाद अइसन पानी गिरत हे जेखर सेतिर तलाव, नदियाँ,नरवा ,खचवा, डबरा,के संगे संग बाँध मन घलो लबालब हो गिन हे।कई ठन गाँव मा बाढ़ के पानी घुस गिस हे लोगन ला अपन जान बचाना भारी परत हे। जादा बारिश मा कई जघा फसल हा बरबाद होय लगिस।कोनो साल अतका पानी गिरथे कि फसल बरबाद हो जाथे ता कोनो साल पानी गिरबेच नइ करय सुक्खा पर जाथे ,जामे बीज सूखा जाथे।अतको मा मनखे चेतत नइ हे ।प्रकृति से खेलवार करतेच जावत हे।रुख राई ला काटके बिकास करत हे जेहा वोखर बर बिनास साबित होवत हे।प्रकृति अपन रौंद्र रूप ला देखा के बार बार चेतावत हे फेर मनखे हे कि सुधरबेच नइ करय ।अपन सुआरथ मा मनखे अंधरा हो गय हावय।जंगल ला काट के कंक्रीट के जंगल बसात हे।नदी,नरवा,पहाड़,झील जम्मो प्रकृति के गहना गुरिया ला नोचत जावतहे।इन सब ला कचरा ले पाटत जावत हे।इही कारन ये कि कभू सुनामी ,कभू सुक्खा कभू  बाढ़ कभू महामारी के रूप मा प्रकृति अपन गुस्सा देखावत हे।
           मनखे अभी घलौ समय हे चेत जावव ।प्रकृति के मालिक बनना छोड़ देवव अउ प्रकृति के बेटा बन जावव ।बेटा अपन दाई ला नुकसान नइ पहुंचाय बल्कि ओखर सेवा करथे।हमर संस्कृति मा प्रकृति ला दाई कहे गय हे।प्रकृति दाई के सेवा करके संगे संग अपन बिकास करव, नही ता वो दिन जादा दुरिहा नइ हे जब मनखे के अस्तित्व घलो संकट मा पर जाही।

चित्रा श्रीवास
बिलासपुर छत्तीसगढ़

Sunday 23 August 2020

सुरता के बादर(संपूर्ण लेख) -बलराम चन्द्राकर

 


सुरता के बादर(संपूर्ण लेख) -बलराम चन्द्राकर

*छत्तीसगढ़ी काव्य के बदलत स्वरूप*

*लेखक - स्व. हरि ठाकुर*

अनुवाद - बलराम चंद्राकर 
साभार - अमृत कलश(छत्तीसगढ़ साहित्य सम्मेलन 2002 के स्मारिका) 

                ✡️
               सरगुजा के रामगढ़ पहाड़ के खोल (गुफा) मा जउन लेख उत्कीर्ण हे, वो ला 23 सौ साल पूराना माने जाथे। ये हा पाली या अर्धमागधी भाषा मा लिखाय हे। ग्रियर्सन जइसे भाषाविद मन छत्तीसगढ़ी ला अर्धमागधी ले उद्गरे भाषा मानथे।आगू चल के अलग- अलग अंचल मा भाषा के अपन- अपन ढंग ले विकास होइस। तब छत्तीसगढ़ के भाषा कोसली रहिस।छत्तीसगढ़ के पुराना नाव घलो कोसल हरे। एकरे सेती इहां के राजकन्या मन कौशल्या कहलावय। अउ इहाँ के राजा कोसली। अगर ये नाव ला स्वीकार कर लन त छत्तीसगढ़ी हा  तब कोसल राज के अंतर्गत भाषा रहिस। सत्रहवी शताब्दी मा जब ये राज के नाव छत्तीसगढ़ के रूप मा प्रचलित होगे, तब ओकर कोसली घलो छत्तीसगढ़ी कहाय लगिस।छठवीं सातवीं सदी मा अपभ्रंश के विकास होइस। श्रीपुर(सिरपुर) के लक्ष्मण मंदिर के प्रशस्तिकार कवि ईशान ला बाणभट्ट हा अपन मित्र अउ भाषा के कवि बताय हे। *इहाँ भाषा के मतलब वो समय प्रचलित अपभ्रंश से हवै*। आठवीं सदी मा छत्तीसगढ़ मा अपभ्रंश के एक अउ बड़का कवि होइन पुष्पदंत।अपभ्रंश के प्रचलन 11वीं शताब्दी तक रहिस। दसवीं सदी के अंत मा गोरखनाथ होइस। गोरखनाथ घलो अपन जम्मो पद के रचना ला अपभ्रंश मा लिखिन। रतनपुर के कल्चुरि नरेश जाजल्यदेव (1085-1120)हा गोरखनाथ के चेला रहिन। जाजल्यदेव के उल्लेख उज्जैन के मंदिर के शिलालेख मा घलो मिलथे। भरथरी घलो गोरखनाथ के चेला रहिन। छत्तीसगढ़ी मा आजो गाए जाथे-

"बूझो बूझो गोरखनाथ अमरित बानी
बरसे ले कमरा भींजे ले पानी जी।"
वो समय के भरथरी गाथा आज भी छत्तीसगढ़ी मा गाए जाथे।गोरखनाथ के पद अउ भरथरी गाए के परंपरा दसवीं सदी ले आज तक चले आवत हे। एकर मतलब यहू हे कि छत्तीसगढ़ी भाषा दसवीं शताब्दी मा प्रचलन मा आ गे रिहिस। फेर वो समय के कोन्हो लिखित साहित्य उपलब्ध नइ हे।  मुअखरा गोरखनाथ के पद अउ भरथरी लोकगाथा गाए के परंपरा हा आज तक इहाँ प्रचलित हे। एकर आधार मा छत्तीसगढ़ी ला एक हजार साल पुराना माने जा सकत हे। जउन भाषा मा लोक काव्य मौखिक रहिथे वो मा समय के साथ संसोधन- परिवर्धन होवत रहिथे।

*पंद्रहवीं सताब्दी* के महान संत कबीर के सबले बड़े चेला धनीधरम दास के काव्य पद मन मा छत्तीसगढ़ी के प्रभाव हा स्पष्ट दिखथे-

   "गुरू बिन कोन हरै मोर पीरा
रहत अलिन-गलिन जुगन जुग राई बिनत पायेंव हीरा। 
पायेंव हीरा, रहै न धीरा, लेइ के चलेंव, पारख तीरा।। 
सो हीरा साधू सब परखैं, तब से भयेवँ मन धीरा। 
धरम दास बिननै कर जोरी, अजर-अमर गुरू कबीरा।।" 

संत धरम दास के बाद छत्तीसगढ़ी साहित्य के लिखित इतिहास सन् 1900 के आसपास ले ही मिले बर धरथे। सन् 1885 मा जब काब्योपाध्याय हीरालाल हा छत्तीसगढ़ी के व्याकरण लिखिन, त वोमे उदाहरण स्वरूप कुछ गीत लिखिन। फेर वो गीत मन वो समय के प्रचलित लोकगीत रिहिन। अइसे समझे जाथे कि काब्योपाध्याय के ये ग्रंथ ले प्रेरणा पा के ही पं लोचन प्रसाद पांडेय हा घलो छत्तीसगढ़ी मा काव्य सृजन के शुरुआत करिन। लिखित साहित्य के अभाव मा, ढाई - करोड़ बोलइया होय के बावजूद छत्तीसगढ़ी हा बहुत अकन अन्य भाषा, जेंकर कम बोलइया रहिन, ओकरो मन ले पिछुवागे। लोकगीत अउ लोक कथा मन कोनों भी लोक भाषा ला साहित्यिक भाषा के दर्जा नइ दिलवा सकँय। एकर लिए प्रचुर मात्रा मा श्रेष्ठ साहित्य के सिरजन जरूरी हे। 
    
   पं. लोचन प्रसाद पांडेय हा सन् 1904-05 मा साहित्य सृजन करे के शुरुआत करे रिहिन-

 "सुतत हवव नींद के भोर। 
हंडा बटउवा लेगे कोड़।।" 

पं. लोचन प्रसाद पांडेय ला छत्तीसगढ़ी के प्रथम क्रांतिकारी कवि माने जाथे, जउन हा कुम्भकरण कस सोय छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़िया मन ला जगाय के प्रयास करे रिहिन अउ जनता के धियान ला आकर्षित करे के प्रयास करिन , उन चोर मन कोती जउन मन, इहाँ के अथाह संपदा ला लूट डोहार के लेगत रिहिन। पांडेय जी हा अउ बहुत अकन रचना छत्तीसगढ़ी मा लिखिन।उन सब के एकमेंव उद्देश्य रिहिस, 'छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान ला जगाना अउ हमार भितरी बइठे बुराई ले सावधान करना' । पांडेय जी पहिली व्यक्ति रहिन जउन इहाँ के कृषि संस्कृति ला फिर से स्थापित कर के गरब करे बर सिखाय के प्रयास करिन। वो पहिली मनखे होइन जउन अपन भाषा बोली छत्तीसगढ़ी मा वंदना गाइन जइसन हम भारत माँ के वंदना करथन-

"जयति जय छत्तीसगढ़ देश 
जनम भूमि सुंदर सुख खान। "
पं लोचन प्रसाद पांडेय के छत्तीसगढ़ी काव्य रचना मन बहुतेरे नीतिपरक हे। नीति परक कविता मन में कलात्मक - सौष्ठव के जगा कम होथे। *छत्तीसगढ़ी काव्य ला कलात्मक सौष्ठव मा ढाले के पहिली श्रेय जाथे पं सुंदर लाल शर्मा जी ला*। उकर रचना-" छत्तीसगढ़ी दान लीला" पौराणिक कथा ला आधार ले के लिखे गेहे। फेर ओमे जउन कलात्मक सौंदर्य हे वो हा, छत्तीसगढ़ी मा अद्भुत काव्य सृजन क्षमता हे, ए तथ्य ला पहिली बार उजागर करिस। ये दृष्टिकोण ले ए काव्य के ऐतिहासिक मूल्य हे। ये ग्रंथ के मूल्य एकर सेती भी महत्वपूर्ण हे कि छत्तीसगढ़ी भाषा भाषी साहित्यकार मन के ए हीन भावना दूर होइन कि छत्तीसगढ़ी मा काव्य रचना कोई महत्व नइ रखै। छत्तीसगढ़ी दान लीला के चहुंओर प्रसिद्धि हा साहित्यकार मन ला छत्तीसगढ़ी मा लिखे बर प्रेरित करिस ।पौराणिक आख्यान उपर आधारित होय के बावजूद छत्तीसगढ़ी - संस्कृति के सम्पन्नता ला उजागर अउ अभिव्यक्त करे के ए ग्रंथ मा गजब प्रयास होय हे। तनिक गोपी मन के चित्रण देखौ-

"काजर आँजे, अलगा डारे, मूँड़ कोराये, पाटी पारे। 
पाँव रचाये, बीरा खाये, तरुवा मा टिकली चटकाये।। 
बड़का टेड़गा खोपा पारे, गोंदा खोंचे, गजरा डारे। 
नगता लाली माँग लगाये, बेनी में फुंदरा लटकाये।। 
चांदी के सूंता चमकाये, गोदना ठांव - गांव गोदवाये। 
दुलरी तिलरी कटवा मोहे, अउ कदमाही सुर्रा सोहे।
पुतरी अउ जुगजूगी माला, रूपस मुंगिया पोह विसाला।। "

*एकर बाद पंद्रह - बीस साल तक छत्तीसगढ़ी काव्य चारण मन तान के सुत गे। अउ ये वो समय रिहिस जब हिन्दी ला राष्ट्र भाषा के रूप मा प्रतिष्ठित करे बर साहित्यकार मन युद्धस्तर मा संघर्ष करत रहिन। पद्मश्री पं मुकुटधर पांडेय, पदुमलाल पुन्नुलाल बख्शी, पं राम दयाल तिवारी जइसन साहित्यकार मन ये कालखंड मा सब ले ज्यादा सक्रिय रहिन। फेर इन हिंदी मा ही लिखैं। एमे कोनों संदेह नइये, हिंदी मा लिख के इतिहास मा इंकर नाव सुरक्षित होगे। फेर ये छत्तीसगढ़ी भाषा - भाषी कवि लेखक मन कोनों छत्तीसगढ़ी मा थोक बहुत घलो लिखे रितिन तो ये 15-20 साल के कालखंड हा सन्नाटा के हवाला नइ होतिस। साहित्य सृजन के अद्भुत प्रतिभा ए साहित्यकार मन मा रहिन।इंकर लेखनी ले हिंदी समृद्ध होइन। फेर महतारी भाषा के चिर प्यासी होठ बर जल के एक बूंद चुहाय के फुरसत इन मन ला नइ रिहिस।प्रतिभा के धनी ये धुरंधर साहित्यकार मन थोर कन भी छत्तीसगढ़ी साहित्य के सुध लेतिन तो आज के पीढ़ी बर इन मन आदर्श रहितिन*। मोर विरोध हिन्दी लेखन ले बिलकुल नइ हे।मोर विरोध हा छत्तीसगढ़ी भाषा के उपेक्षा ले हे। छत्तीसगढ़ी भाषा के काव्य के अवरोध के कारण के निष्पक्ष भाव ले विवेचना होना ही चाही...... 

*1940 के आसपास के काल मा एक नवा पीढ़ी के उदय होइस। ये पीढ़ी छत्तीसगढ़ी भावना ले भरे-पूरे रिहिस। आत्मविश्वास से लबालब*। ए मन छत्तीसगढ़ी काव्य के ध्वजा ला बुलंदी से उठा के अगास मा फहराइन। ये पीढ़ी के अगुवाई करइया मा पं द्वारिका प्रसाद तिवारी'विप्र', कोदूराम 'दलित ', पं. कुंज बिहारी चौबे अउ प्यारे लाल गुप्त प्रमुख रिहिन । इन चारों झन मन छत्तीसगढ़ी के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर रिहिन।

विप्र जी शुरुआत मा हिंदी मा ही लेखन करत रिहिन।फेर उन ला लगिन कि हिंदी अतेक मजबूत हो गे हे कि उॅकर सेवा के जरूरत हा अब ओतेक नइ हे पहिली जइसे।इही भावना हा उन ला छत्तीसगढ़ी कोती झुकाव बर प्रेरित करिस। अउ एक समय के बाद छत्तिसगढ़ी बर पूर्णतः समर्पित होगे। विप्र जी हा छत्तीसगढ़ी काव्य ला जन-मानस ले जोड़े के प्रयास करने वाला पहिली व्यक्ति रिहिन। मोर ये सोच बिलकुल नइ हे कि हिन्दी छंद के प्रयोग ही न किया जाय। फेर छत्तीसगढ़ी लोक छंद के अस्तित्व ला बचा के रखना घलो हमर जिम्मेदारी हरे। सुआ, करमा, ददरिया जइसन लोक छंद हमर सैकड़ों बरस के काव्य परंपरा के देन हरे, हमर पहिचान हरे।

"तोला देखे रेहेव गा
धमनी के हाट में बोइर तरी।"

विप्र जी के ये कविता लोक गीत के उन्मुक्त भाव अउ आनंद हरे। अइसन गीत मन सहजता ले लोगन के कंठ मा बस जथें।
विप्र जी के एक अउ खासियत ये रहिन- 'छत्तीसगढ़ी काव्य मा प्रकृति चित्रण के माध्यम ले कलात्मक सौंदर्य ला अभिव्यक्त करना। 'शरद ऋतु के वर्णन करत लिखिन-

" चउमास के पानी परागे।
जाना-माना अगास हर-
चाँउर सहीं छरागे।।"

राष्ट्रीय जागरण के कविता मन विप्र जी के समय मा बड़ प्रतिष्ठा पाइन। कुंज बिहारी चौबे जी के कविता मन मा राष्ट्रीय चेतना के स्वर मुखर रहै, साथ मा बेहद प्रगतिशीलता भी रहै।

"चल मोर भैया बियासी के नागर"
चौबे जी के ये कविता लोकगीत कस विख्यात हे। कुंज बिहारी जी ला छत्तीसगढ़ी काव्य के पहिली विद्रोही कवि के संज्ञा दिये जा सकथे।

उही पीढ़ी के कोदूराम 'दलित' जी शिष्ट हास्य अउ व्यंग्य ला प्रतिष्ठा देवइया पहिली कवि होइन -

"ढोंगी मन माला जपयँ, लमभा तिलक लगायँ।
हरिजन ला छूवयँ नहीं, चिंगरी मछरी खायँ।।" 
"खटला खोजो मोर बर, ददा बबा सब जाव।
खेकसी साहीं नहीं, बघनिन साहीं लाव।। 
बघनिन साहीं लाव, बिहाव मैं तब्भे करिहौ। 
नई तो जोगी बन के, तन मा राख चुपरिहौं।। 
जे गुण्डा के मुँह मा, चप्पल मारै फट ला।
खोजौ ददा बबा तुम, जो के अइसन खटला।। "

*हिंदी कवि सम्मेलन मन मा धाक जमइया दू कवि रहिन -कोदू राम जी अउ विप्र जी ।विप्र जी ला घलो शिष्ट हास्य अउ व्यंग्य लिखे मा महारत हासिल रहिस। ये दोनों कवि मन, वो काल खंड मा, हिंदी के बीच छत्तीसगढ़ी के अलग पहचान बनाइन।*
*विप्र जी अउ दलित जी के पीढ़ी हर छत्तीसगढ़ी कविता ला गजब प्रतिष्ठा दिलाइन।* युवा पीढ़ी ला छत्तीसगढ़ी मा लिखे के एमन प्रचुर प्रेरणा देइन। एकर बाद तो छत्तीसगढ़ी लेखन हा एक आंदोलन के रूप ले लिन। ये पीढ़ी के हस्ताक्षर मा प्रमुख रिहिन श्याम लाल चतुर्वेदी, हरि ठाकुर, लाला जगदलपुरी, विमल पाठक, भगवती लाल सेन, कपिल नाथ कश्यप, लखन लाल गुप्ता, विद्या भूषण मिश्र, लक्ष्मण मस्तुरिया, नारायण लाल परमार, मेहतर लाल साहू, बद्री बिसाल परमानन्द, हेमनाथ यदु आदि।

ये सबो कवि मन के अपन - अपन शैली हे। विषय मा विविधता हे। सबले बड़े बात छत्तीसगढ़ी काव्य बर समर्पण के भावना हे। श्याम लाल चतुर्वेदी जी मा ग्रामीण जीवन के चित्र खींचे के अद्भुत क्षमता हे। विशेष रूप मा नारी मन के पीरा ला व्यक्त करे के अद्वितीय क्षमता उॅकर कलम मा हे-

"संसार के जतका दुख हे
फेर बेटी ले छोटे
डेरी आँखी फरकत हे, लगये आजे च उन आहीं।
उँकर सुभाव ला जानत हौं, आते च टूरी ला पाहीं।" 

हरि ठाकुर जी के काव्य मा विद्रोहीपन के तेवर देखे बर मिलथे। उंकर कविता राष्ट्रीय अउ सामाजिक विचारधारा के प्रतिनिधित्व घलो करथें।
*1857  भारत के आजादी बर पहिली लड़ाई के योद्धा वीर नारायण सिंह छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद ला, काव्य मा नायक के रूप मा प्रतिष्ठित करइया हरि ठाकुर जी पहिली कवि रिहिन*।छत्तीसगढ़ी गीत मा जतेक प्रयोग उन करिन, शायद ही कोनों करे होहीं। खासकर प्रकृति चित्रण के उॅकर शैली अउ प्रयोग गजब के हवैं-

"बादर मा पर गे हे
आगी के डाँड़ असन।
बादर गँजा गे हे
रुई के पहाड़ असन।।"

धाम कहाँ उतरत हे
अरझे हे झाड़ मा।
छापा अस चटके हे
घाम हा पहाड़ मा।।
बोल असन अटके हे
सुरुज हा ताड़ मा।। "

कपिल नाथ कश्यप जी हा मुख्य रूप ले प्रबंध काव्य के रचइता कवि रहिन। सहीं बात तो ये हे कि छत्तीसगढ़ी मा प्रबंध काव्य मा रचना के कमी हे। प्रचुर मात्रा मा एकर होना निहायत जरूरी हे।सिर्फ *छिर्रा (फुटकर) कविता मन के भरोसा छत्तीसगढ़ी ला साहित्यिक भाषा के दर्जा दिलाय मा ओतेक सहायता नइ मिलय*।द्विवेदी युग मा  अकेल्ला मैथिलीशरण गुप्त के प्रबंध काव्य मन हिंदी ला सामर्थ्यवान बनाय मा अहम भूमिका निभाईस।हाँ, फेर ये बात ला ध्यान रखे के हे कि अगर प्रबंध काव्य कसावटविहीन हे तो वो हा भाषा उपर बोझ घलो बन सकत हे। कपिल नाथ कश्यप जी के 'रामकथा' छत्तीसगढ़ी मा प्रबंध काव्य के उत्कृष्ट उदाहरण हवै। विप्र जी के ही परंपरा मा  विमल पाठक जी छत्तीसगढ़ी लोक छंद मन मा प्रयोग करके अपन एक अलग पहचान बनाइन। प्रकृति चित्रण के पाठक जी के अपन एक शैली हे। भाषा हा गत्यात्मक (Dynamic) भी हे फेर विषय विविधता लाय के प्रयास मा कमी दिखथे।

लोक छंद के सबले ज्यादा अउ बढ़िया प्रयोग बद्रीबिशाल परमानन्द के गीत मन मा मिलथे।परमानंदजी मूलतः भजनहा कवि हरें।उन हा लगभग सौ भजन मंडली के स्थापना करिन।  ये भजन मंडली मन छत्तीसगढ़ी भाषा के बड़ सेवा करे हें। *स्वामी आत्मानंद जी के बहुत स्पष्ट कहना रहिन कि छत्तीसगढ़ी ला लोकप्रिय बनाय मा अउ भाषा के प्रचार-प्रसार मा भजन सर्वाधिक सहायक सिद्ध हो सकथे। सूर, कबीर, तुलसी, रविदास के पद मन एकर उदाहरण के रूप मा हमर सामने हें*। काव्य हा  साहित्यकार तक ही सीमित झन रहै। एकर कोई मतलब नइ होही। जन जन तक पहुँचै, एकर खातिर भजन जइसे लोकप्रिय माध्यम मन के उपयोग करे जाय।
लखन लाल गुप्ता जी ला छत्तीसगढ़ी मा छंद मुक्त नवा कविता  शैली शुरू करे के श्रेय जाथे। छंद मुक्त कविता के मतलब उन्मुक्त हो जाना नोहै। गुनवत्ता के कसौटी मा छंद मुक्त काव्य ला कसना अनिवार्य हे। छंद मुक्त काव्य लिखे ले ही कोनों आधुनिक नइ हो जाय। अउ छंद बद्ध लिखे ले कोनो काव्य पूरातन नइ हो जवय। *नवा-नवा विषय अउ मौलिक शैली ही काव्य ला आधुनिक बनाथे*। छत्तीसगढ़ी मा मुक्त छंद शैली के परंपरा ला नंद किशोर तिवारी, भगत सिंह सोनी, मेहतर लाल साहू, अउ केयूरभूषण मन आगू बढ़ाइन।फेर निराला, मुक्तिबोध, धर्म वीर भारती मन के जइसन साधना के नितांत आवश्यकता हे।

      लक्ष्मण मस्तुरिया माटी के कवि हरे। छत्तीसगढ़ के शोषण ला ले के जतेक आक्रोश मस्तुरिया जी के मन मा हे, वतेक बहुत कम लोगन मा मिलथे। *देश मा छत्तीसगढ़ के अपन पहिचान बनै, ओकर स्वाभिमान अउ पौरुष जागै, ओकर गौरव-गरिमा के रक्षा होवै, ये चिंता हा लक्ष्मण मस्तुरिया जी के कविता मन ला ओजस्वी अउ तेजस्वी बना देथे-*

"अमरित अमरित बाँट-बाँट, मैं जहर पी-पी करिया गेंव
तुम काट-काट के जुरिया गेव, मैं बाँध-बाँध के छरिया गेंव
कंकालिन के आह भभकही, तौ किल्ला तड़क-तड़क जाही
रणदेवी के देखत तुहार,छाती दरक दरक जाही
फेर भागत बन नइ पाही रे, मैं सर्पिन घरे बारी आँव
मैं छत्तीसगढ़ के माटी आँव। "

            ✡️

सुरता"...... महेन्द्र देवांगन माटी


 "सुरता"...... महेन्द्र देवांगन माटी 

माटी के ये देंह ला, करे जतन तैं लाख।
उड़ा जही जब जीव हा, हो जाही सब राख।।1।।
का राखे हे देंह मा, काम तोर नइ आय ।
माटी के काया हरे, माटी मा मिल जाय।।2।।
  
         दोहा के ये कथन छत्तीसगढ़ी के युवा छंदकार महेन्द्र देवांगन माटी के आय जउन अपन माटी के काया ला माटी मा छोड़ के पंचतत्व मा विलीन होगे ।
         सहज,सरल,मृदुभाषी स्व. महेंद्र देवांगन माटी जी के जाना छत्तीसगढ़ी साहित्य बर अपूरणीय क्षति आय। 16 अगस्त 2020 के हमन अइसन हस्ताक्षर ल खो देन जेन छत्तीसगढ़ी साहित्य ल समृद्ध करत रहिन अउ अवइया दिन मा घलो छत्तीसगढ़ी साहित्य ल बहुत कुछ दे के जातिन। साहित्य के क्षेत्र मा माटी जाना पहिचाना नाम रहिन अउ अपन अलग पहिचान बनाइन। बीते डेढ़ दशक से भी जादा समय से उमन प्रदेश के अखबार अउ पत्र पत्रिका मा छाये रहिन। उँकर हिन्दी रचना के प्रकाशन देश के विभिन्न समाचार पत्र मा होवय। गद्य अउ पद्य दुनों म माटी जी समान रूप से लिखत रहिन। 
            अब तक उँकर तीन कृति प्रकाशित होय रहिस- 1. पुरखा के इज्जत, 2. माटी के काया
3. हमर तीज तिहार (अंतिम कृति) ।  छन्द के छ से जुड़े माटी जी सत्र- 6 के साधक रहिन अउ लगभग 50 प्रकार के छन्द के जानकार रहिन।  माटी जी से छन्द के कक्षा मा रोजिना भेंट होवय। अभी 1-2 महीना से उमन कक्षा मा नइ आ पात रहिन,पूछेंव त बताइन कि स्कूल के ऑनलाइन क्लास के कारण व्यस्तता बाढ़ गे हवय। लेकिन उँकर शारीरिक अस्वस्थता के कहीं कोई जिक्र नइ रहिस। फेसबुक मा लाइव टेलीकास्ट के लिए दीपक साहू अउ मैं उँकर से 20-25  दिन पहिली वीडियो कान्फ्रेंसिंग मा गोठ बात करे रहेन तब भी ये अंदाजा नइ रहिस कि माटी जी हम सब ला अतका जल्दी छोड़ के चल दिही। लेकिन सच्चाई इही हे कि माटी जी हम सब ला छोड़ के परमधाम चल दिन ।
         अइसन कोनो बिषय नइ होही जेमा माटी जी के कलम नइ चले रहिस होही। उँकर कलम निरंतर चलते रहय। देश, समाज म व्याप्त बुराई उपर माटी जी तगड़ा प्रहार करँय। साधु बनके समाज ल लूटने वाला बहरूपिया मन ला माटी जी बनेच लताडिन । येकर बानगी उँकर मत्तगयंद सवैया मा दिखथे-

साधु बने सब घूमत हावय डार गला कतको झन माला ।
लूटत हावय लोगन ला सब फंस जथे कतको झन लाला।
हाथ भभूत धरे चुपरे मनखे मन के घर डारय जाला।
लूट खसोट सबो जग होवत रोकय कोन बतावँव काला।।

एक सच्चा साहित्यकार वो होथे जेन समाज ल जागृत करे के काम करथे। समाज मा व्याप्त कुरीति उपर मा माटी जी के शानदार कुण्डलिया -

आये पीतर पाख हा, कौआ मन सकलाय ।
छानी ऊपर बैठ के, बरा भात ला खाय ।।
बरा भात ला खाय, सबो पुरखा मन रोवय ।
जींयत भर तरसाय, मरे मा पानी देवय ।।
राँधय घर मा आज, बरा पूड़ी ला खाये ।
कइसन हवय विधान, मरे मा पीतर आये ।।

पर्यवारण संरक्षण उपर माटी जी के कई कविता अउ छन्द मिलथे । वाम सवैया मा पर्यवारण के प्रति उँकर चिंतन देखव -

भरे तरिया अब सूखत हे कइसे सब प्राण बचाय ग भाई।
करे करनी अब भोगत हे रुखवा सब आग लगाय ग भाई।
परे परिया अब खेत सबो जल के बिन धान सुखाय ग भाई।
करे कइसे सब सोंचत हे अन पान बिना दुख पाय ग भाई।।

छत्तीसगढ़ के पारंपरिक तिहार "तीजा पोरा" के जीवंत चित्रण लावणी छन्द मा-

तीजा पोरा आ गे संगी, बहिनी सब सकलावत हे।
अब्बड़ दिन मा आज मिले हे, सुख दुख सबो बतावत हे।।
कइसे दिखथस बहिनी तैंहर,अब्बड़ तैं दुबराये हस।
काम बुता जादा होगे का,नंगत के करियाये हस ।।
फिकर करे कर तैं जादा झन,दीदी हा समझावत हे।
अब्बड़ दिन मा आज मिले हे,सुख दुख सबो बतावत हे।।

अपन कविता मा स्वदेशी के नारा ल माटी जी बुलंद करँय -
माटी के दीया जलावव संगी, माटी के दीया जलावव ।
चाइना माल के चक्कर छोड़ो, स्वदेसी ल अपनावव।

बेटी के सपना ला माटी रोला छन्द मा लिखथें- 

बेटी हावय मोर, जगत मा अब्बड़ प्यारी।
करथे बूता काम, सबो के हवय दुलारी।
कहिथे मोला रोज, पुलिस बन सेवा करहूँ।
मिटही अत्याचार, देश बर मँय हा लड़हूँ।

निधन के ठीक एक दिन पहिली माटी जी आजादी के ऊपर अपन रचना फेसबुक मा पोस्ट करे रहिन वोकर कुछ अंश देखव -

चन्द्रशेखर आजाद भगतसिंह,भारत के ये शेर हुए।
इनकी ताकत के आगे, अंग्रेजी सत्ता ढेर हुए ।।
बिगुल बज गया आजादी का, वंदे मातरम गायेंगे ।
तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे ।।

           साहित्यकार अपन कृति के माध्यम ले हमेशा अमर होथे। वो केवल अपन माटी के काया ला छोड़ के जाथे। अइसने महेन्द्र देवांगन माटी भी अमर हवय। उँकर रचे साहित्य आजीवन उँकर सुरता देवाही अउ जब जब छत्तीसगढ़ी साहित्य के बात होही उँकर नाव सम्मान के साथ ले जाही। 

अजय अमृतांशु
भाटापारा

Wednesday 12 August 2020

राजागुरु बालकदास''छत्तीसगढ़ गवाही हे-

 ''राजागुरु बालकदास''छत्तीसगढ़ गवाही हे-


भिंसरहा के बात आय चिरइ चुरगुन मन चोंहचीव चोंहचीव करे लगे रहिन...अँजोरी ह जउनी हाथ म मोखारी अउ लोटा ल धरे डेरी हाथ म चूँदी ल छुवत खजुवावत पउठे पउठा रेंगत जात हे धसर धसर।जाते जात ठोठक गे खड़ा हो के अंदाजथे त देखथे आघू डहर ले एक हाथ म डोल्ची अउ एक हाँथ म बोहे घघरा ल थाम्हे दू परानी मुहाचाही गोठियावत आवत रहँय...दसे हाथ बाँचे रहिस होही सतवंतिन दीदी के मुँह माथा झक गय,जोहरीन दीदी के का पूछबे मुँह ला मटका मटका के गोठियई राहय कउ घघरा म भरे झिरिया के कंच फरी पानी छलक-छलक के कुँदाय असन डाढ़ी ले चुचवावत रहय रितउती ओरवाती असन।काहत राहय...भारी सुग्घर राजा बरोबर लइका अँवतरे हे सफुरा घर...छकछक ले गोरियानरिया लाम लाम हाथ गोड़ सूपाभर दई भोकण्ड हे लइका ह काहेक सुघर आँखी करिया करिया घुघरालू चूँदी अँइठे अँइठे बाँह नाक ह तो ऊपरे म माढ़े हे...मुँह के फबित ह मन ल मोहत हे।

पुरखा के आशीर्वाद नइते साहेब के भेजे काँही संदेश होही काहत रहिन सियान दाई मन लइका के छाती म परे चिन्हा ला... जोंकनँदिया के कंकरा म देखे रहेन बघवा के पाँव के चिन्हा ल तइसने डिट्टो दिखत हे लइका के छाती म छपे छप्पा ह...।

बने कब्खन देख के आ गेयेस बहिनी जोहरीन..ए दे महूँ ह पानी ल उतारतेसाट जाहूँ अउ आँखी भर देख के आहूँ अपन घासी के दुलरुवा ला.....कहिथे सतवंतिन ह।

ठॅंउका!पाँव परत हँव दीदी कहिथे अँजोरी ह सतवंतिन ला।जीयत रहा के आशीर्वाद अउ खबर ल पा के अँजोरी के अंतस ह गदगदा गय..मने मन मा पुरुषपिता ल सुरता करत मुड़ नवा के भज डरिस अउ गोठिया डरिस तोर महिमा अपरंपार हे पुरुषपिता दुखिया घासी के दुख ला हर लेये तैं..बेटा के बिछोह म कल्पत बपुरी सफुरा के गोदी म बेटा दे देये।

पुरुष तोर महिमा अपार...

गुरू हो तोर महिमा अपार...

बबा हो तोर महिमा अपार...गुनगुनावत गुनगुनावत झोरकी डहर उतर गय अँजोरी ह।

1795 के बछर भादो के अँधियारी पाख आठे के दिन आय सुरुज नारायण आधा घड़ी ठहर गे राहय घासी के अँगना म लइका ल देखे बर..लइका ल टकटक ले निहारिस तेजस्वी होय के आशीर्वाद देइस अऊ घासी संग सतनाम जोहार करत चल दिहिस अपन बूता म।तिहार के दिन परे रहय लइका ल देखे बर गाँव के नर-नारी मन के रेम लग गे घासी के अँगना म..पता नइ चलिस बेरा जुड़ाय लगिस फुरहुर फुरहुर पुरवई तन ल छुवे लगिस,हिरदे म पंथी के धुन उठे लगिस पाँव उसले लगिस हाथ के थपोरी ह लय ताल बनाय लगिस अउ खूंटी म ओरमे माँदर पता नइ चलिस कतका बेर गर म ओरम गे..कण्ठ ले पंथी गीत फूटे लग गे तन मन मा जोश के संचार होगे मँदरहा के चारो-मुड़ा गोल घेरा बन गे पंथी पहुँचे लगिस...अबाध अगास डहर गाँव शहर अउ ओ पुरुष के दरबार डहर...।


सन्ना ना नन्ना..ना नन्ना हो ललना

सन्ना ना नन्ना..ना नन्ना हो ललना


ए घासी के अँगना...ए घासी के अँगना

भेंट होगे संत गुरू राजा संग ना........।


माँदर के ताल उही दिन अगास म ढिंढोरा पीट के बता दे रहिस गुरु घासीदास के ये ललना आघू चलके अपन पिता के पद चिन्हा म चलही जनमानस म शौर्य अउ सभिमान के भाव जगाही देश राज अउ समाज ल रीति नीति अनुशासन के गुरुमंत्र दीही, एकता के सूत्र म पिरोवत दया मया अउ महिनत के पाठ पढ़ाही,सतनाम पंथ(धर्म)के सादा धजा ला दुनिया दुनिया म फहराही।चारो दिशा म मनखे मनखे एक के संदेश गूँजे लगही...गुरु घासीदास बाबा अउ सतनाम के जय जयकार होय लगही तब समय रूपी शासक शूरवीर बालक के लोकप्रियता नेतृत्व क्षमता अउ सियानी करे के गुण ल देखही अउ देख के ढाल तलवार हाथी अउ लिखित म राजा के उपाधी भेंट करही।सच होगे.... राजागुरु बालक दास साहेब सादा के राजपगड़ी पहिरे हाथ म ढाल तलवार धरे हाथी म असवार हो के आजू बाजू अंगरक्षक महाबली सरहा जोधाई अउ लाव लश्कर के साथ निकले हे भंडारपुरी के महल के सींग दरवाजा ले।

ठँउका सुरता देवाये सुखदेव आज के दिन नेव परगे मानो लोकतंत्र के...छत्तीसगढ़ गवाही हे....।


-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

वर्तमान संदर्भ म राम अउ कृष्ण* :एक विमर्श

 *वर्तमान संदर्भ म राम अउ कृष्ण* :एक विमर्श


1, पोखनलाल जायसवाल

       भारतीय लोकजीवन म राम अउ कृष्ण के का महत्तम हे? कोनो ल बताय के जरूरत नइ हे।लोक जीवन के दिन के  शुरुआतेच राम अउ कृष्ण के नाँव ले होथे। बिहनिया ले एक-दूसर ले भेंट होय म सबो *राम-राम*, *जय राम जी की* अउ *जय श्री कृष्ण* ले हाल-चाल जाने बर गोठ-बात ल शुरू करथे। घर म बिहनिया ले कोनो उल्टा-पुल्टा बात हो जथे त बड़े सियान मन कहिथे राम-राम के बेरा ए का होवत हे? अतका ल सुन झगरा-झंझट   घला बंद हो जथे। दशना ले उठतेच साठ कतको मन *राम* नाम के सुमिरन करत धरती दाई के पँयलगी करथे। भारतीय सँस्कृति म जीवन के अंतिम यात्रा घलो राम के नाँव ले होथे, *राम नाम सत हे,सबके इही गत हे।*

      गाँव म विकास के घोड़ा अतेक भारी दौड़े लग्गेहे के गाँव अब अपन चिन्हारी ल अपन दशना के मूरसरिया म छोड़ दौड़े लगे हे। शहर के संगेसँग चले के कोशिश म गाँव एको कदम पिछुवाय रहना नइ चाहत हे। शहरी चकाचौंध म चौंधियागे हे फेर चेथी के ह आगू नइ आत हे। सोचे समझे के शक्ति कमती होगे हे। शहरी रद्दा चलत अपन सँस्कृति रीति-रिवाज अउ परम्परा ल घलो छोड़े लग गेहे। गाँव के मनखे तिर काखरो तिर बइठ के नीति-नियाव, सेवा-जतन अउ समाज खातिर परहित म सोचे बर समय नइ बाँचत हे। नैतिकता जइसे कोनो मेर छुट गे, हे लगथे। एक जमाना रहिस जब दाई ददा अउ सियान मन लइका के नाँव भगवान मन के नाँव ऊपर रखै।उँखर सोंच रहय के मरत खानी लइका के परेम म लइका ल एक बेर देखे के मोह म उँखर नाँव लेके बहाना भगवान के नाँव ले म भव ले तर जबो। लोकजीवन म मान्यता हवै के *जइसे मति, तइसे गति*। मतलब भगवान के नाँव ले भगवान के धाम जाय म कोनो बाधा नइ होय।अइसन मानना हे। समाज म एक ठन सोच अउ हे के जइसे नाम तइसे गुन मिलथे। इही बात ले घलो अपन बुढ़ापा के सहारा बर लइका के नाँव भगवान मन के नाँव ऊपर राखै। एखर फायदा होय के नइ होय भगवान जानै अउ वो मनखे, जेखर सँग अइसन बेरा आइस। *सरग तो मरे के पाछू दिखथे*। उहाँ कोन हे कोन जाने? फेर आज के समय म ए नाँव अब दुर्लभ होगे। अइसे नइहे के मनखे के आस्था अउ विश्वास कमतियागे हे। आज पहिली ले जादा भक्ति भाव देखे म मिलथे। ए भक्ति भाव म श्रद्धा कतका रहिथे उही जाने।

      शहरी रहन सहन बर शहर म बड़े-बड़े बिल्डिंग बनगे फेर ओ बिल्डिंग म एक ठन कुरिया नइ बन पात हे, जिहाँ दाई ददा के रेहे के बेवस्था हो सकै। आज बनवास दाई ददा ल मिलत हे, अपने मिहनत ले सिरजोय घर-द्वार अउ खेती-बाड़ी ले बेदखल होय लगत हे। वृद्धाश्रम म आश्रय ले बर मजबूर हो जथे, त कतको ल बेटा बहू खुदे पहुँचा आथे। बुढ़ापा ल देख आज के बेटा घर-कुरिया, खेती-खार के बाँटा लेत हे। अउ उन ल तिपो के जेवन कराना घलुक धरम नइ मानत हे। सोचे के बात हे एक समय रहिन जब दाई ददा के कहे म बेटा चौदह बछर के वनवास गिस। आततायी भाई के कारावास ले दाई ददा ल मुक्त कराय बर बेटा संघर्ष करिन। फेर आज ए का होगे? ए ग्रहण सिरीफ शहर ल नइ गाँव ल घलो धरे हे। ए सूतक कब उतरही एखर ठिकाना नइ हे।

      आज एक मर्यादित जीवन जीना मुश्किल जरूर हे फेर असंभव नइ हे। हम ए कहिके बाँचे के कोशिश कर सकथन के राम भगवान आय, लीला दिखाना रहिस ते पाय के सब लीला करिन। उँखर जइसे हम नइ जी सकन। फेर कहे जाथे *राम से बड़ा राम का नाम* त इही नाम के सहारा लेके जिनगी जिएँ के जरूरत हे। राम के चरित्र म जम्मो नता-रिश्ता के आदर्श समाय हे। जरूरत हे राम के स्थापित रस्ता म चले के। राम राजा घर अवतरे रहिन फेर बन बन भटकिन ये यहू बताथे के धन दौलत ह हर हमेशा काम नइ आय। अपन हिस्सा के सुख दुख खुद ल भोगना हे। अपन समय के चुनौती ले लड़े म ही रामत्व हे।

        बस एक बात धियान म रखे बर परही। *राम-राम जपना, पराया माल अपना* के चरित्र ल ओढ़े जीयत मन के पहचान होय। जनता छले मत। *खाय के दाँत आने अउ दिखाय दाँत आने।*  जगजाहिर होत हे।अइसन म राम अउ कृष्ण के नाँव ल कलंकित करैया ढोंगी मन समाज ल *दिंयार* कस खा मत डरै चिंता होथे। भगवान के नाँव म कोनो भी ऊपर विश्वास करे के पहिली अपन चेतना ल जागृत करे के जरूरत हे। 

        कृष्ण के जीवन चमत्कार ले भरे पड़े हे।जब जनम धरिन तभे ले  लीलाधर के लीला देखे ल मिलिस। राम अउ कृष्ण दूनो के जीवन लोक हित बर रहिन। मनखे-मनखे एक समान के जौन संदेश संत-महात्मा मन दे हे, उँखर ले पहिली राम जी ह  हर जीव ल महत्तम दे हे। जात-पात के कोनो भेद नइ करिन। मर्यादा म रहिन। राम के जइसे कृष्ण जी अपन समय म आततायी मन के नाश कर मानव कल्याण करिन।कोनो भी घटना ले देखे जा सकथे।धरम रक्षा अउ मानव कल्याण ह जीवन के उद्देश्य रहिन।

        आज समाज अउ देश म कतको रावण, दुर्योधन अउ दुःशासन सरीखे दुरात्मा मन मानवता ल कलंकित करत हें। नारी-अस्मिता ल दाग लगावत हें। साधु के भेष म मारीच हे, जउन राम नाम के जाप कर हनुमान जी ल भटकाय के उदीम करत हे। जउन धरम अउ मानवता के हित म नइ हे।अइसन पापी दुराचारी मन के नाश करे बर अपने भीतर के राम अउ कृष्ण ल पहचान करे के जरूरत हवै।

       एक बात के खच्चित धियान राखे के हे के राम अउ कृष्ण पूरा मानव जाति के आय। काबर के दूनो के जीवन काहन चाहे लीला मानव जाति अउ धर्म के रक्षा खातिर रहिन। ए म काखरो पोगरी बाँटा नइ हे। जेन राम के आय, राम ओकरे ए, जेन कृष्ण के ए ओकर कृष्ण आय।

       पोखन लाल जायसवाल

पलारी  बलौदाबाजार

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2,नीलम जायसवाल: विमर्श - वर्तमान संदर्भ मा राम अउ कृष्ण

भारत के संस्कृति म राम अउ कृष्ण अइसे रचे-बसे हें, जइसे सागर म नून-अउ शरीर म खून।

   राम अउ कृष्ण के कथा कभू जुन्ना नइ हो सकै। राम भर ल कहे म राम के पूरा चरित्र ओमा समाहित हो जथे। आज भी कोनो पति-पत्नि के जोड़ी ल राम अउ सीता कस कहे जथे। दू भाई के मया ल बताय बर राम-लखन के जोड़ी कहना भर काफी होथे।

   राम के मतलब होथे, मर्यादा पुरुषोत्तम एक आदर्श मनसे। दाई-ददा अउ गुरु के आज्ञाकारी,वीर-धीर, त्याग के मूर्ति।

   अउ कृष्ण, कृष्ण जिहाँ एक नटखट लइका हे, उँहे समय अनुसार सही निर्णय लेहे के समझ बर घलव जाने जाथे।स्वभाव ले ही मया करइया हर,समाज ल गीता के ज्ञान घलव देवत हे। 

   राम अउ कृष्ण के प्रासंगिकता कभू कम नइ हो सकय। समाज म जतका भी बुराई, अपराध बाढ़त जावत हे, अउ आधुनिकता के नाम म पतन के रद्दा धरावत जावत हे। ओतके राम अउ कृष्ण के चरित्र ला आत्मसात करे के

 जरूरत बाढ़त जावत हे।

   मोर विचार ले वर्तमान संदर्भ मा राम अउ कृष्ण के जरूरत बहुत ज्यादा

हे,

नीलम जायसवाल

भिलाई, दुर्ग, छत्तीसगढ़।

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3,चोवाराम वर्मा  बादल: *वर्तमान संदर्भ मा राम अउ कृष्ण*--- *विमर्श*

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परमपिता परमेश्वर, सर्व शक्तिमान ईश्वर के ए सृष्टि म नाना रूप म अवतार अउ  अवतार लेये के अनेक कारण बताये गेहे। वो परमेश्वर ह जब -जब जेन प्रकार के जरूरत परथे उही प्रकार ले जन्म ले लेथे।

    भगवान के अनेक अवतार हे जेमा दस ठन मुख्य हे तेन म  ओकर सातवाँ राम अउ आठवाँ कृष्ण के रूप म नरावतार हमर देवभूमि भारत के कन-कन अउ जन-जन के हिरदे म रचे बसे हे।

   वर्तमान संदर्भ म ए दूनो अवतार के नर तन धरे कारण अउ चरित्र ल, देये शिक्षा ल जानना समझना बहुत जरूरी हे।

     गोस्वामी तुलसीदास जी ह राम जन्म के कारण ल बतावत लिखे हे कि -

*जब जब होई धरम की हानि। बाढहिं असुर अधम अभिमानी ।।*

*तब-तब प्रभु धरि विविध सरीरा। हरई कृपा निधि सज्जन पीरा।।*

      महाभारत के रचनाकार श्री वेदव्यास जी ह लिखे हे-  भगवान कृष्ण ह अपन अवतार के कारण बतावत कहे हे कि--

*यदा यदा धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम।* *परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृतम् धर्म संस्थापनार्थाय  संभवामि युगे युगे।*

        ए दूनो अवतार के जन्म लेये के मुख्य कारण चरम रूप म नष्ट भ्रष्ट होये *धर्म* के पुनः स्थापना करना अउ धर्म ल नष्ट करइया पापी, अत्याचारी मन ल मृत्युदंड देके ,खासकर *नारी ,साधु, सज्जन ,दीन हीन मन के* उपर अत्याचार करइया मन ल मारके इँकर  मान सम्मान के रक्षा करके सुग्घर *मानवता* ल बँचाना आय।

        श्री राम अउ श्री कृष्ण ल जाने बर उकर देये शिक्षा ल अपनाये बर *धर्म* ल जानना जरूरी हे। इहाँ धर्म के मतलब हिन्दू, मुस्लिम ,सिक्ख, ईसाई, बौद्ध ---आदि नोहय। कोनो भगवान ह ए तथाकथित कलजुगिहा मनखे मन के बनाये धर्म के नाम नइ ले हें।

ऊँकर *धर्म के मतलब तो मनुष्य के आदर्श आचरण जेला हमन मानवता कहिथन* आय। दया -मया,क्षमा, करुणा, सत्य ,अहिंसा, पवित्रता, जियव अउ जियन दव के भावना , ककरो संग भेदभाव नइ करना ,न्याय ,सबके सम्मान करना, माता पिता के सेवा करना उँकर आज्ञा के पालन करना , गुरु भक्ति ,रिश्ता नाता ल यथायोग्य  निभाना, ककरो हक ल नइ मारना, अपन होके जबर्दस्ती लड़ाई झगरा नइ करना फेर कोनो अतलंग करत हे त ओला नइ सहना भले प्रान रहे चाहे जाय, सत्य,न्याय के संग देना, अन्यायी मन के साथ नइ देना , सत्य , न्याय अउ नारी के अस्मिता के रक्षा बर  हिंसा करे ल परय ल पिछू नइ हटना ,भाई भतीजावाद नइ करना ,साफ, सुंदर स्वस्थ रहना------- आदि जतका अच्छा मानवीय गुन हे , मनुष्य के चरित्र के जतका उज्जर पहलू हे, कर्तब्य हे इही मन असली धर्म आय। इही असली धरम ह मनखे ल अउ समाज ल सुख,शांति देथे। तभे *राम राज आथे।*

     भगवान राम अउ कृष्ण ह एकरे स्थापना बर जनम धरथें।इही उँकर नरलीला के शिक्षा आय।

*वर्तमान संदर्भ म राम अउ कृष्ण*---वर्तमान समय म चारों कोती देख लव अधर्म के बोल बाला हे। हाँ अतका बात जरूर हे कि पाँचो अँगरी अभी एके बरोबर नइ होये हे।कभू-कभू, कोनो-कोनो मेर मानवता के ,धर्म के दिव्य दर्शन होवत रहिथे ।फेर अधर्म अउ अत्याचार बाढ़ गेहे।   हत्या ,लूट ,डकैती ,बलत्कार सरे आम होवत हे ,राजनीति छल-प्रपंच ले भर गेहे, जात पाँत के भेदभाव खतम होबे नइ करत हे।अत्याचारी असुर, निसाचर मन अँधेरा कायम रहे के नारा लगावत गली-गली ढिंढोरा पीटत हें।

      तेकरे सेती पूरा मानव जाति अउ समाज दुख के सागर म बूड़त जात हे।

  अगर हमला आज सुख शांति चाही त भगवान राम अउ कृष्ण के चरित्र ले शिक्षा लेके ,असली धरम ल अपना के जिये ल लागही। यदि हम अइसन कर लेन त निश्चित रूप ले राम राज आही, श्री कृष्ण के बँसुरी के मधुर तान चारों मुँड़ा सुनाही।आसा म दुनिया टिके हे-----।

चोवा राम वर्मा'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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 शकुन्तला शर्मा

वर्त्तमान सन्दर्भ मा राम अउ कृष्ण 

तुलसीदास हर राम ला परिभाषित करे हे.."प्राण प्राण के, जीवन जी के।" हर युग मा राम आथे, फेर मनखे मन हकन के नइ कह सकैं कि एहर राम ए। राम धीर वीर हें।वोहर समरस हे, समर्थ हे। नीति नेम के रसदा मा रेंगत हे, सबके समस्या के समाधान करत हे। शोषित पीढ़ित अहिल्या के उद्धार करके, राम हर स्वनाम धन्य गौतम ऋषि के अपराध ला रेखाञ्कित करिन हें।

आज के संदर्भ मा बहुत झन होहीं जेमन राम जैसे बुता करत होहीं। दशरथ माँझी जैसे मनखे मा मैं हर राम ला देखथवँ। अइसने अनूठा काम अड़बड़ झन करत हें, वोमन राम के ही वंशज होहीं।
अभी तो रामजी हर अपन नवा घर के रूपरेखा ला देखे मा भरदराय होहीं, उँकर मन मा कई ठन प्लान होही, साज सज्जा के प्रति सजग रहिथें। अड़बड़ दिन ले खड़े - खड़े बिताए हें, अभी आराम करत होहीं।

राम अउ कृष्ण आज भी भगवान माने जाथें। राम यदि मर्यादा पुरुषोत्तम ए, तव कृष्ण बर कोई नियम कानून जरूरी नइए। वोहर जौन कर देथे, तेहर नियम कहाथे।

बलराम भैया हर, अपन बहिनी "सहोदरा" के बिहाव ला दुर्योधन के संग करना चाहत रहिस हे, फेर कृष्ण जानत रहिस हे कि सहोदरा हर "अर्जुन" ला पसंद करथे। वोहर एक ठन प्लान बनाइस, सहोदरा ला अर्जुन के रथ मा चढ़ा दिस अउ कहिस "रथ ला तैं हाँकबे, अउ देवी मंदिर मा जाके तुमन बिहाव कर लेहा।" जब बलराम भैया ल पता चलिस कि अर्जुन हर सहोदरा ल अपन रथ मा लेगत हे, तव वोहर, रथ ला रोके बर सेना भेजिस, फेर सहोदरा हर रथ ला पल्ला भगाइस अउ "सहोदरा- अर्जुन" के बिहाव होगे।
बलराम हर कृष्ण ला खिसियाइस कि "रथ ला रोके काबर नहीं?" तव कृष्ण हर कहिस - "भैया ! आप गलत समझत हव, अर्जुन हर सहोदरा ला नहीं, भलुक सहोदरा हर अर्जुन ला भगा के लेगिस हे। मैं खुद देखे हवँ, आप सेना के कोनो भी सिपाही मेरन पूछ लव।" 

कृष्ण हर मामा कंस के दुराचार से तंग हो के, समुद्र के भीतर मा एक नगर बनवा के अपन "यदुकुल" ला रातोंरात शिफ्ट कर दिन, अउ जब नींद खुलिस तव अपन घर के भोरहा, कपाट खोजैं, अउ कहैं "द्वारि कः ?" अर्थात् वो बखत संस्कृत हर जनभाषा रहिस हे, "दरवाजा कहाँ है ?"
अधमुँधरा मा उठिन , " द्वारि कः ?" कहत - कहत वो नगर के नाम हर "द्वारिका" परगे। 
राम - कृष्ण के कथा अनंत हे। हर युग मा एमन रइहीं।

शकुन्तला शर्मा...

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चित्रा श्रीवास: **वर्तमान संदर्भ मा राम अउ कृष्ण*

हमर भारतीय जनजीवन मा राम अउ कृष्ण अइसे रचे बसे हे कि राम अउ कृष्ण के बिना भारतीय समाज के कल्पना घलौ नइ करे जा सके ।दू अलग युग त्रेता अउ द्वापर।दू अलग व्यक्तित्व एक धीर गंभीर मर्यादा पुरुषोत्तम आदर्श मनखे अउ दूसर नटखट  लइका ।दूनो अवतारी माने गय हें।अउ दुनो के अवतार के उद्देश्य एके बताये गय हे।धर्म के हानि।इहाँ धर्म के मतलब मनखे धर्म ले हावय।मनखे धर्म का ये।दूसर ला दुख नइ देना, नारी ला सम्मान देना,दूसर के हक नइ मारना, आन के चीज मा लालच नइ  करना, अपन कर्म ला मर्यादित रखना ।अइसे कोनों काम झन करे जाय जेखर ले कोनो ला दुख पहुंचे।हमन राम अउ कृष्ण दुनो के जीवन चरित्र ला सुनथन ता कइ ठन समानता घलौ पाये जाथे।दुनो मा मानवता के  गुण भरे रिहिस।दुनो नारी सम्मान के रक्षा करिन,दाई ददा गुरु ला मान दिहिन।भगवान राम हा तो ददा के बचन के मान राखे बर राज पाठ के सुख ला छोड़ वन मा गइन अउ सबो तरह के पीरा ला झेलिन।दुनो समाज के वंचित वर्ग के सहारा बनिन।
        अभी के समय मा हमर समाज ला दुनो के चरित्र ला आत्मसात करे के जरुरत हे।मन ले भर बस नहीं कर्म ले घलौ।हम अपन कर्म ला सही करके  धर्म ला बचा सकत हन।आज धर्म के मतलब मनखे धर्म नइ रही के आडंबर हा हो गय हे।आज राम अउ कृष्ण के संदेश दया,मया,परोपकार, करुणा, ला मनखे भुलात जात हे।राम कृष्ण के नाम के आड़ मा मनखे अपन रोटी खूब सेंकत हे कभू चुनाव के मुद्दा बना लिये जाथें ता कभू धन कमाय के साधन।आज मनखे ला राम के व्यक्तित्व ले सहनशीलता, त्याग, करुणा दया समरसता के भाव ला अपनाय के जरुरत हे ता कृष्ण जइसे कर्मठता, के जरूरत हे।परमपिता परमेश्वर ये जगत के कर्ता ये,जेहा प्रकृति के कण कण मा चाहे वो जड़ होय या चेतन व्याप्त हे।उही परमपिता त्रिदेव के रूप मा जगत के रचना ,पालन,संहार घलौ करत हे।अउ जब जब पाप बढ़थे,
 धर्म के हानि होथे ता अवतार आथे अउ अधर्मी के संहार करके धर्म यानि कि मनखे धर्म के स्थापना करथे।येखर पहिली कि एक अउ अवतार ला मनखे धर्म ला बचाय खातिर भुइयाँ मा आना पर जाय हम मनखे मन चेत जाइन त बढ़िया हे।प्रकृति  ले छेड़छाड़ के कीमत हमला ओखर नराजगी कभू बाढ़ ,कभू अकाल,कभू सुनामी के रूप मा ता अब कोरोना के रूप मा चुकाय बर परत  हे।राम अउ कृष्ण के संदेश ला जिनगी मा उतार के हम सुखी समाज बनाय सकबो जिहा ऊँच नीच,अमीर गरीब के बीच भेदभाव नइ रइही अउ समता समानता रइही अउ अइसने समाज हा आदर्श समाज कहे जाथे। राम अउ कृष्ण  हमर जनजीवन मा हरदम व्याप्त हें अउ जुग जुग तक रइहीं।


चित्रा श्रीवास
बिलासपुर छत्तीसगढ़

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 बलराम चन्द्राकर : वर्तमान संदर्भ मा राम अउ कृष्ण

राम न्याय प्रिय हे। मर्यादा पुरूषोत्तम ।रघुकुल रीति सदा चली आई। प्राण जाइ पर बचन न जाई।अर्थात राम जन्मजात मर्यादा ले बँधे हे।लाभ हानि माया मोह ले दूर। वंश के मर्यादा सर्वोपरि हे। राम के हर सांस मा संयम हे।

 कृष्ण स्वयं न्यायधीश हे। जग के रीति अउ नीति के बाते नइ करै। कोई बंधन नइ हे। ओकर फैसला ही तात्कालिक परिस्थिति उपर निर्भर हे। कृष्ण सबो कला मा माहिर हे। माखन चोर कृष्ण। धेनु चरैया कृष्ण ।रास रचैया प्रेमी कृष्ण। त्यागी कृष्ण। मायावी  छलिया कृष्ण।विराट स्वरूप धारी गीतोपदेशक कृष्ण। चक्रधारी कृष्ण। सखा कृष्ण।
कृष्ण के जीवन मा घलो वियोग हे, पर छोभ नइये।
ओकर राधा के वियोग ला सिरिफ ओकर मुरली जानथे।कर्म कभू रूकै नहीं।
राम के जीवन चरित्र पहिली ले विधाता लिख दे हे। वियोग संयोग सब विधाता के अधिन।मानव जीवन मा आदर्श गढ़े बर ही राम जन्म ले हे।
राम अउ कृष्ण के संस्कार ये धरती के संस्कार हरे।हमर अपन जीवन शैली हरे। भारत प्रखंड युग युग ले इही संस्कार ला आत्मसात करे हे। राम मा सगुन अउ निर्गुण दोनों हे। राम कभू नइ कहै कि मोला पुजौ। राम कहिथे मोला आत्मसात करौ। राम कभू भेद नइ करै। राम के जीवन कठिन हे पर लक्ष्य तय हे। राम अधीर नइ होय कभू। राम परिश्रमी हे।गुरू के मार्गदर्शन ले राम सबल हे। राजमहल त्याग के राम वनवासी होगे।जीवन पथ मा कतको संगी साथी होगे। राम राह बनाथे।सदैव नारी जीवन के मर्यादा लाज रखैया राम। सीता के सिवाय राम के मन मा कोई नइ हे आजीवन। सीता राममय हे अउ राम हर पल सीतामय। एक राजकुमार अउ राजा के रूप मा ये आदर्श मिसाल हे। 
राम राजा होगे, फेर प्रजा के हित सर्वोपरि हे।
कृष्ण द्वारिकाधीश होगे। दूध दही ले लबालब बृंदाबन के बचपन। कृष्ण के जीवन मा संपन्नता के संदेश हे। ग्वाला के रूप मा भी कृष्ण आत्मनिर्भरता के संदेश देथे।
कृष्ण के प्रेम सब ला लुभाथे।कृष्ण के बाल रूप, ममता मयी दाई यशोदा। बाबा नंदलाल। गोप गोपिका मन के बीच मुरली धारी कृष्ण के जीवन हम सब मा उत्साह उमंग अउ प्रेम के तरंग भर देथे।फेर कर्म क्षेत्र मा उतरते ही कृष्ण ला सिर्फ कर्म ध्येय के ही ध्यान रहिथे। अनुरागी अउ प्रेमी कृष्ण जब युद्ध क्षेत्र मा अर्जुन ला लडे़ बर प्रेरित करथे तब  ओकर गोठ अकाट्य गीता के उपदेश बन जथे। जउन हा जन जन ला जीवन पथ मा कर्म करे बर प्रेरणा देथे। कृष्णा कर्मकांडी बिलकुल नइ हे। कृष्ण कर्म उपर भरोसा करथे। मानव ला संपंन रहे के गुर सीखना हे तो कृष्णमय होना जरूरी हे। कृष्ण सर्वथा आदर्शवादी नोहय। बुराई के नाश बर छलिया घलो हो जथे। आज इहाँ पग पग मा धोखा लालच झूठफरेब के दर्शन होथे तब लकीर के फकीर बनइ घलो ठीक नइहे।कृष्ण लकीर के फकीर नइ रिहिस।
राम अउ कृष्ण के जीवन ही हमर संस्कार अउ संस्कृति हरे। दोनो गुरू से दक्ष हे। दोनों शिक्षित हे। दोनों के मार्ग मा कठिनाई हे। दोनो के जीवन मा वियोग हे। दोनों कर्मठ हे। दोनों पराक्रमी हे। दोनों विजेता ये। दोनो ला संघर्ष के बाद राजपाठ मिले रिहिस।
आज के संदर्भ मा हमन ला इंकर जीवन के हर पहलू के अध्ययन अउ मनन कर के चले के जरूरत हे। सबक ले के हम आगू बढ़बो त हमरो जीवन निश्चित ही सफल होही।
कर्म करौ फल जरूर मिलही। ध्येय निश्चित करौ, मंजिल अवश्य आही।छोट मोटे असफलता सिर्फ सबक हो सकथे, आगू बढ़े के । निरंतर प्रयास करना हमर जिम्मेदारी ये। रूकना मौत चलना जीवन। राम अउ कृष्ण के जीवन घलो इही कहिथे।

बलराम चंद्राकर भिलाई


Monday 10 August 2020

माता कौशल्या अउ ओकर मयारुक बेटा राम*

 *माता कौशल्या अउ ओकर  मयारुक बेटा राम*

 छत्तीसगढ़ महतारी भुइयाँ अउ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के अटूट नाता हे। ए भुइयाँ ह ओकर ननिहाल आय।
    प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ के नाम दक्षिण कौशल रहिसे। जिहाँ त्रेता युग में राजा भानुमंत के राज रहिसे। इही राजा के एक झन बेटी  रहिसे।जेकर नाम राजकुमारी भानुमति रहिसे।राजकुमारी के एक ठन अउ नाम दक्षिण कोसल नरेश के बेटी होये के सेती  कौशिल्या परिच। जेकर बिहाव अवधपति कौशल नरेश राजा दशरथ ले  होइच।तेकर  बेटा भगवान राम ह आय। तेकरे सेती हमन बहुत ही गरब ले कहिथन कि  भगवान राम ह हमर भाँचा आय। 
   अंते जगा के रहइया मन अपन भाँचा करा पाँव परवाथें । भगवान राम ह उँकर भाँचा होतिच त शायद उहू  मन पाँव नइ परवातिन। फेर हमन भाँचा के पाँव परथन चाहे वो ह उमर म भले कतको छोटे रहय। काबर कि श्री राम ह हमर भाँचा आय। अउ वोहा  भगवान आय।  भगवान के पाँव परे जाथे। ए बात मन सिद्ध करथे कि छत्तीसगढ़ के पावन भुइयाँ ह भगवान राम के ननिहाल आय।
 सरी दुनिया म माता कौशिल्या के एके ठन मंदिर हे।एहा रायपुर ले 45 किलोमीटर दूरिहा चंद्रखुरी नामक गांँव के जलसेन तलाब जेन 16 एकड़ में फइले हे,तेकर बिचो बीच बने हे।ए गाँव ह त्रेता युग में राजा भानुमंत के राजधानी रहिसे। ए मंदिर के गर्भगृह म माता कौशिल्या के मूर्ति हावय जेकर कोरा म बालक राम बइठे हे। प्राचीन मंदिर अउ मूर्ति ले ए बात सिद्ध होथे कि चंद्रखुरी ह भगवान राम के ननिहाल आय। मोर बिचार ले भाँचा राम के नाम म इही चंद्र ह लगे हे।

 एक बात अउ  हे कि इहाँ के बहुत झन महिला के नाम संग मति लगे रहिथे जइसे माता कौशल्या के नाम भानुमति रहिसे ओइसने देवमति, सुख मति, कलामति, वेदमति आदि। अइसन मति वाले नाम इहें रखे मिलथे। अन्य प्रांत  के बहिनी मन के नाम म नइ दिखय।
इहाँ कौशिल्या नाम के महतारी, बहिनी, बेटी ,बहू हर  गाँव शहर म मिलथें।

*छत्तीसगढ़ के तिहार अउ संस्कार म राम*---
 हमर छत्तीसगढ़ के संस्कार म श्रीराम के झलक मिलथे। जब ककरो ले भेंट होथे त राम-राम कहे के परंपरा हे। बिहनिया के बेरा ल राम राम के बेरा कहे जाथे।  अभो जब धान के रास ल काठा म नापे जाथे तब गिनती ह राम, दू, तीन ----- सरा अइसे  चालू होथे। जब शव यात्रा निकलथे   त  राम नाम सत्य हे  ,सब के इही गत हे काहत निकलथे।  गांँव-गांँव में नवधा रामायेन, रामलीला के आयोजन होथे। सावन के महीना म सवनाही रामायेन के आयोजन करे जाथे।अखंड राम नाम सप्ताह के परंपरा छत्तीसगढ़ म हावय। छट्ठी छेवारी म रमायेन होथे।
*राम बनवास अउ छत्तीसगढ़* ----कहे जाथे कि माता कौशिल्या के मयारुक बेटा राम ह अपन दाई के मइके  भुइयाँ के मया म बंँध के ,हमर छत्तीसगढ़ म अपन बनवास के बारा बछर ल बिताये हे। वोहा कोरिया ले लेके कोंटा तक  लगभग ग्यारा हजार किलोमीटर ल महानदी के तीरे तीर रेंगत , रिसी मुनि मन के आश्रम म जाके दरसन-परसन करत पहाये हे।
     राम वन गमन मार्ग के मुख्य  इंक्यावन जगा के पहिचान छत्तीसगढ़ म करे गे हे।
उत्तरी छत्तीसगढ़ के सरगुजा के रामगढ़ के गुफा ,मध्य छत्तीसगढ़ के जांजगीर,  चंद्रपुर, खरौद, शिवरीनारायण जिहाँ भगवान राम सबरी के जूठा बोइर ल खाये रहिसे,  रमायेन के रचइता आदिकवि वाल्मिकी ऋषि के आश्रम तुरतुरिया , सिरपुर जिहाँ प्राचीन लक्ष्मण मंदिर हे, राजिम जिहाँ माता सीता ह कुलेश्वर महादेव के पूजा करे रहिसे, सिहावा जेन भगवान राम के भाँटो श्रृंगी ऋषि के आश्रम स्थली रहिसे,ओइसने दक्षिण छत्तीसगढ़ के वो इलाका जेला रामायेन म दंडकारण्य कहे गे हे उहाँ कांकेर जिहाँ कंक रिसि के आश्रम रहिसे, चित्रकूट जिहाँ श्री राम ह चौमासा बिताये रहिसे, बारसूर, दंतेवाड़ा, कोंटा आदि  जगा मन म भगवान राम ह अपन वनवास काल म आये रहिसे। 
     ए प्रकार ले समझे जा सकथे कि भगवान राम छत्तीसगढ़ के रग-रग में रचे बसे हे। हरि अनंत अउ हरि कथा अनंत हे।
 लेख बहुत लंबा हो जही तेकर सेती माता कौशिल्या के मयारुक बेटा भगवान श्रीराम के चरण वंदन करत, परम पूज्य संत कवि स्व पवन दीवान जी जेन ह माता कौशिल्या के नाम उजागर करत अपन जिनगी खपा दिच ,उनला श्रद्धा सुमन अरपित करत  अपन कलम ल  विराम देवत हँव।

चोवा राम वर्मा'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़

Friday 7 August 2020

छत्तीसगढ़ी भाँखा म किसम किसम के चिट्ठी पत्री

छत्तीसगढ़ी भाँखा म किसम किसम के चिट्ठी पत्री


 सरला शर्मा: श्री राम 
                                                                               दुर्ग
                                                       5 . 8 . 2020 
     ननकी कका , 
          पांव परत हौं , 
सब कुशल मंगल हे फेर  उम्मर बाढ़े  के संगे संग मनसे अपन आप ल स्थापित करे के नाना बिध  उदिम करे धर लेथे का ? देख न ...आम आदमी के जिनगी मं छोटे मोटे हार - जीत, सुख - दुख के घटना तो घटते रहिथे उही ल अनमोल समझ के लिखे धर लेथे मनसे ...अरे भाई ! बड़े बड़े साहित्यकार मन आत्म कथा , संस्मरण , डायरी लिखथें  जेकर से नवा पीढ़ी ल जिनगी के ऊंच - नीच , नफा - नकसान समझे के ज्ञान मिलथे । फेर संसो ये बात के होंगे हे के आजकल संस्मरण मं गरम पानी मं नहायें के ठंडा मं , आलू बरी के साग मं दू ठन हरियर मिर्चा पीस के डारेंव के लाल भुरका मिर्चा ....नहीँ त ...बंगला पान खायें के , कपूरी के , के सांची फेर कत्था वाला के चूना वाला ...? मर गयें रे ...ये सब लिख के कोन देश - राज , समाज -  साहित्य के कल्याण होही ? पहिली तो डायरी अउ संस्मरण , जीवनी अउ आत्मकथा के अंतर ल समझे बर परही न ? रहिस डायरी त धोबी के कपड़ा के हिसाब ,  बनिया दुकान के ख़र्चा पाती लिखना हर डायरी नोहय ....कोनो दिन अइसन बात होइस कोनो अइसन घटना घटिस जेला सदा दिन सुरता राखे बर लिख लेथन या जेला पढ़के मनसे ल सीख मिलही तेला डायरी कहिथें न ? 
     कोनो बड़े आदमी के जीवन के बारे मं  हमर कलम चलथे तेला जीवनी कहिथन फेर अपन बारे मं जब हम लिखथन त ओला आत्म कथा कहिथन । ठीक कहत हंव न कका ? 
        फेर कका आजकल न कलम धरे सीखत देरी हे के लोगन उत्ता धुर्रा लिखे बर सुरु कर देथें ..चल ओहू ल जान देइन  ,मरन तो तब हो जाथे जब इन स्वयम्भू , स्वनामधन्य लेखक मन के लिखे के समीक्षा लिखे बर परथे काबर के तब तो हमला चारण , भाट बने बर पर जाथे ...शनि, राहु , केतु के दशा अउ का ? एकरो ले मरन होथे जब मारक दसा चलथे  उही जौन  तै समझाये तो रहे न कका के राहू ,  शनि कोनो के महादशा नहीं निदान छठवां घर (  भाव  रोग शत्रु के )   मं बइठ के बारहवां घर (  व्यय , ख़र्चा ) ल देखही तब हमर कोनो हितवा  संगवारी अपन पाण्डुलिपि च ल धरा देथे ....अब लग जावव मात्रा , शब्द , वाक्य सुधारे बर जादा कुछु नई होवय डॉक्टर तीर जाके चश्मा के नम्बर बढ़वाए पर जाही । महामृत्युंजय मंत्र के 

सवा लाख जप घलो हमर जीव नई बंचाये सकही। 
   कका ! तहीं तो कहिथस न जन्मकुण्डली मं तन स्थान (  घर , भाव ) ले मोक्ष स्थान तक बारहे ठन तो घर होथे त बपुरा ग्रह मन कहां जाहीं  ?नवो झन ओतके मं किंदरत रहिथे । तैं अइसन हितवा मन ल चीन्हे सीख जा .... अपन करनी अपन पार उतरनी होथे  । 
      कका ! एदारी के चिट्ठी मं समीक्षा कइसे लिखना चाही तेला बताबे भाई । 
                          तोर भतीजिन 
                              बड़े नोनी

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 शकुंतला शर्मा: "रामनाम वरानने"
अत्र कुशलं तत्रास्तु।
प्रिय राम,
 "छत्तीसगढ़ लोकाक्षर" के साहित्यकार, हम सबो झन, साहित्य सृजन मा भरदराय हन, फेर तुँहर मन बर बने शुभ समाचार हावै।  
कई बरिस ले भटकत तुँहर मन के परिवार बर, जम्बूद्वीप भरतखण्ड के अवध नगरी मा, सरयू नदी के तीर मा, तुँहर जूना महल के तीरेच मा, आज  तुहँर घर के नेह डारत हन। हनुमानजी ले पूछ पूछ के बनावत हन। राम घर मा सब ला सुख संवाद सुना देबे।आउ सब बने बने हे... तोर घर बन जाही तव मैं खचित आहवँ। 
    तोर मयारुक बहिनी ...
शकुन्तला शर्मा...
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*ऑनलाइन चिट्ठी*

                           ॐ
                                      स्थान - दुरुग
                                      दिनांक - 05.04.2020
मयारुक संगी (छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर)
जय जोहार !

दू तीन दिन पहिली सुधीर भाई ह कहे रहिस कि छत्तीसगढ़ी लोकक्षर मा एकोदिन "चिट्ठी-पतरी" के विषय होना चाही त आज उँकरे सुझाए विषय रखे हँव। सबले पहिली हमर सरला दीदी के चिट्ठी पढ़े बर मिलिस, जेला उन मन अपन कका के नाम मा पठोये हें। पढ़ मँय सोच मा पर गेंव कि ये चिट्ठी आय के व्यंग्य आय। नवा त नवा जुन्ना अउ वरिष्ठ लिखइया के कान ला धर के अइसन उरमेट दिन हे कि न बोलत बनत हे, न बतावत बनत हे। कतको झन के कान गजब दिन तक सनसनावत रही। सरला दीदी के चिट्ठी पढ़े के बाद लिखे बर अउ का बाँच गे ? तभो लिखे के चुलुक लगिस हे त लिखत हँव। कोरोना के मास्क के संगेसंग अपन कान के सुरक्षा बर कटकटा के कंटोपा ला बाँध ले हँव।

जब बोली भाषा नइ बने रिहिस तउन जुग मा अपन मन के बात बताए खातिर इशाराबाजी चलत रहिस। बोली भाषा बनिस त मन के बात कहे मा सरल होगे फेर कोनो दूसर मनखे झन सुने सोचके कान मा फुसफुसाए के चलन चालू होइस। जब भाषा के लिपि बनगे तब झाड़ के पत्ता अउ छिलका मा चिट्ठी लिखना चालू होगे। कपड़ा के चलन आइस तब कपड़ा मा संदेसा लिखके मन के बात के आदान प्रदान होइस। तइहा के जमाना मा राजा के चिट्ठी लेगे के काम दूत मन करत रहिन। कबूतर अउ बाज ला ट्रेनिंग देके अपन गोपनीय चिट्ठी भेजे के घलो इतिहास मा पढ़े सुने बर मिलथे। कालिदास जइसन कवि मन बादर ला संदेशवाहक बनाके महाकाव्य तको लिख डारिन। मनखे हर अउ विकास करिस तब पोस्ट-आफिस अउ पोस्ट-मेन के माध्यम ले चिट्ठी के आदान-प्रदान चालू होइस। पोस्टकार्ड, अन्तर्देशी अउ लिफाफा मा संदेसा पठोये के सुविधा मिलना चालू होगे। रात रात भर जाग जाग के चिट्ठी लिखना, लिखके पोस्ट आफिस के लाल डब्बा मा डारना, चिट्ठी के जवाब पाए बर पोस्टमेन के अगोरा….एक सुग्घर जमाना रहिस। मया करइया मन के चाँदी होगे रिहिस। आँसू टपका टपका के चिट्ठी लिखई, आँसू नइ ढरिस त पानी छींच के भेजत रहिन ताकि पढ़इया ला भोरहा होवय कि मोर मयारुक ह रोवत रोवत चिट्ठी लिखिस हे। इम्प्रेस करे बर डिजाइन  लेटर पेड़ के पन्ना, लिखे के बाद पन्ना मा अत्तर के छींटा, लिफाफा मा बंद करे के बाद चिपके वाले जघा ऊपर कटमट, कटमट के चिनहा पारना ताकि कोनो दूसर मन झन खोल पावैं। 

जब ले इंटरनेट के जमाना आगे, हाथ हाथ मा मोबाइल आगे चिट्ठी-पतरी के चलन खतम होगे। मैसेंजर अउ वाट्सएप मा चैटिंग मा सब काम बन जाथे। भाषा के शॉर्टकट आगे। धन्यवाद हर Thank You, फेर Thanks फेर Txn बनगे। यहू नइ लिखना हे त इमोजी मा घलो काम चल जाथे। ये फायदा जरूर होइस कि अब सन्देसा के आदान प्रदान तुरत फुरत हो जाथे। पहिली एके मनखे के नाम मा चिट्ठी लिखे के सुविधा रहिस। अब सोशल मीडिया मा एके संग कई झन ला संबोधित करके एक्के चिट्ठी मा अपन बात पहुँचाये जा सकथे। मोर ये चिट्ठी, एखरे उदाहरण आय। 

सुधीर भाई आज लव लेटर पढ़े के घलो शउँक करे हें। प्रभु राम उँकर इच्छा ला पूरा करैं। देखव साँझ-रात तक उँकर बर ककरो मया-पाती आ जाए। ऑनलाइन चिट्ठी मा संदेशा के आदान प्रदान तो हो जाही फेर आँसू अउ अत्तर-फुलेल के भरपाई नइ हो पाही। जम्मो सियान मन ला पैलगी अउ नान्हें मन ला मया-दुलार।

आप मन के - 

*अरुण कुमार निगम*
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 रामकली कारे: बालको नगर कोरबा
                    5/8/2020
              
गुरुदेव
सादर प्रणाम 

            
      नमन बंदन अभिनंदन
आप मन के चिट्ठी ला पढ़ के गुरु देव, मोला 30, 35  साल पाछू के सुरता आगे। जब हमन नानकुन रहेन। वो दिन हा ऑखी के आघू मा चलचित्र असन चारों कती झूले लागिस। बचपन के सुरता स्कूल मा पढ़त समय के सुरता फेर लहुॅट के आगे संगी सहेली अउ गाॅव घर मा बबा डो़करी दाई बर चिट्ठी,ममा दाई ममा बर चिट्ठी, बड़ मया करके लिखे रहन, अउ कहुॅ के चिट्ठी आय ता बिन पढ़े चैन नइ मिलय। अंतर्देशी पोस्ट कार्ड हा अब घर घर ले नॅदागे।चिट्ठी आय ता अइसन लागय के साक्षात् मनखे हा हमर घर आ गये हे। मुहल्ला भर मा पता चल जाय की आज काखर घर मा दुख सुख के चिट्ठी आय हे।आपमन के चिट्ठी ला पढ़ के मॅय अपन आप ला चिट्ठी लिखे ले रोक नइ सके। चिट्ठी पत्री के शुरुवाती दौर ले लेके आज तक के वर्तमान परिदृश्य ला एक ठन चिट्ठी मा बहुत सुग्घर ढंग ले संजो लेहे हव गुरुदेव जी। 
आपमन के शिष्या
छ: के छंद परिवार के          
छंद साधक रामकली कारे
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*एक पाती, छ.ग. राजभाषा आयोग रायपुर के नाम मा।*
सेवा मा,
            श्रीमान् अध्यक्ष महोदय जी
            छ.ग. राजभाषा आयोग रायपुर
बिषय - छत्तीसगढ़ी गज़ल संग्रह *मयारू के गोठ* ला प्रकाशित करवाय खातिर आवेदन।

महोदय जी,
           हाथ जोरे अनुनय विनय करत हँव कि मँय हर, अपन गज़ल संग्रह *मयारू के गोठ* ला आद.गुरुदेव जी *श्री निगम जी* के निर्देशन मा लिखे हावँव। ये संग्रह मा 100 छत्तीसगढ़ी गज़ल संग्रह हावय अउ सबो गज़ल "बहर" (मात्रा) मा लिखाय हावय। ये सबो मोर मौलिक रचना हावय । ये संग्रह ला मँय *छ.ग.राजभाषा आयोग रायपुर* के सहयोग ले प्रकाशित करवाना चाहत हँव । 
            एखर सेती आप ले मोर अनुनय विनय हावय कि मोर छत्तीसगढ़ी गज़ल ला *छ.ग.राजभाषा आयोग रायपुर* के सहयोग ले छापे बर अपार किरपा करहू।

दिनाँक - 
05/08/2020
                       
                       
                          पाती लिखइया
            बोधन राम निषादराज"विनायक"
                         छंद साधक - सत्र-5
           सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)
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 श्री गणेशाय नम:
    
           स्थान : पठारीडीह
          दिनाँक: ...........
उद्घोषक सगँवारी
जय जोहार
         मँय आकाशवाणी रायपुर के नियमित श्रोता अँव। जुलाई १९९३ ले युवा सँगी मन के कार्यक्रम युववाणी सरलग सुनत आवत हौं,ए कार्यक्रम युवा सँगी मन बर घात सुघर कार्यक्रम हवै।जेमा उँखर मनोरंजन बर गीत संगीत के सँगेसंग कैरियर निर्माण अउ प्रतियोगिता परीक्षा के तियारी के कतको कार्यक्रम रोजे दिन संझा ५:०५ ले ६:०५बजे तक चलथे।इहाँ युवा सँगी मन के प्रतिभा प्रदर्शन बर घलुक सुरीली साँझ (सँगीत), सर्जना(कविता-कहिनी पाठ), दृष्टिकोण(कोनो भी विषय ऊपर मौलिक विचार), प्रश्नोत्तरी, प्रश्नमंच, आज मेरी बारी है, जइसन कतको कार्यक्रम सुने बर मिलथे। प्रतियोगी परीक्षा म सफल युवा सँगी मन ले साक्षात्कार भी सुने मिलथे, जौन सबो ल कुछ कर दिखाय के हौसला देथे।प्रेरणा देथे।
      अब जब छत्तीसगढ़ नवा राज बन गे हे। त युवा सँगी मन बर भी युववाणी ल छत्तीसगढ़ी म प्रसारित करे जाय।जइसन आकाशवाणी ले लोकरंजनी, चौपाल, आप मन के गीत जइसे छत्तीसगढ़ी के कार्यक्रम चलथे। एकर ले छत्तीसगढ़ जौन देश भर म अपन सँस्कृति ले अलग पहचान बनाय हे, जेकर दम नवा राज बने हे, ओ अपन भाखा बोली म अपन सँस्कृति ल बगरा सकै।छत्तीसगढ़ी बोले बर इहाँ के युवा सँगी शरमावय झन। आजो रेडियो ह गाँव-गँवई म अभी सबके सबले ले जादा मनोरंजन के साधन हे। रेडियो ह आज घला हमर सँस्कृति ल सहेजे सरलग नवा नवा प्रोग्राम देत हे।कहूँ युवा सँगी मन बर छत्तीसगढ़ी म कार्यक्रम बन जही त एकर छत्तीसगढ़ी भाषा अउ सँस्कृति के संरक्षण घला होही अउ छत्तीसगढ़ी ल कोनो जगा बोले म नइ हिचकिचाही।
      छत्तीसगढ़ी बोले म सरल हवै लिखे अउ पढ़े म कठिन महसूस होथे काबर कि ओखर अभ्यास नइ हे। अइसन म *पत्र मिला* जइसन एक ठन अउ प्रोग्राम *चिठ्ठी मिलिस* या *आप मन के चिठ्ठी* शुरु करे के माँग करत हँव, जेखर ले छत्तीसगढ़ी ल सजोर होही।

पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह (पलारी)
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अजय अमृतांसु: हे वरुण देवता,
         तोला दण्डासरन पैलगी।

तैं काबर रिसा गे हस महराज..? तैं जानत हस तोर दया के बिगर मोरे का पूरा दुनिया मा ककरो गुजारा नइ हो सकय। तैं देखत हस खेती खार जम्मो सुखावत हे। तोला बरसे पन्द्रही ले ऊपर होगे हे। खेत मन दर्रा हानत हे । चिरई चिरगुन मन के टोटा सुखावत हे। नरवा, नहर तो ठाड़ सूखागे हे।

तोर पूजा पाठ ,मान मनौती मा कोनो कमी होगे होही त बता.? तैं बरसथस त अतका बरसथस कि नदिया,नरवा मा बाढ़ आ जथे। तरिया ढोड़गी घलो छलकत रहिथे। खेत के खड़े फसल तक नइ बाँचय। मनखे संग मवेशी मन घलो बोहा जथे। हफ्ता-हफ्ता दिन के झड़ी मा किसान मन धान-पान तको ल नइ बों पावयँ । अउ नइ बरसस त अइसे आँखी कान ल मूँद लेथस कि "चिरैया दुकाल" पर जाथे। खेती खार ल छोड़ पीये तक बर पानी नइ मिलय। तोर गुस्सा के कहर ला सबले जादा किसाने मन तो झेलथे । हमर मन के दुःख पीरा ल समझ भगवान।

तैं अतका झन रिसा मोर बाप..। अइसन झन तरसा ददा..। सबो झन तोरे डहर बोट-बोट निहारत हवय। सबके "आँखी पथरा गेहे" । थोरिक दया कर भगवान। तोला मनाये खातिर यज्ञ हवन के तियारी घलो चलत हे । 21 गाँव ले 21 किलो शुध्द देशी घी मँगवाय हवन। तै तो जानत हस कलजुग म देशी घी सूँघे बर नइ मिलय, तभो ले तोला मनाय खातिर कइसनो करके जुगाड़ करे हवन। अब तो बिसवास कर मोर बाप.. तोर मान मनौती मा कोनो कमी नइ होवय । अब तो बरस जा..। 

पाछू साल नइ बरसेस,अकाल परगे। लाखो किसान करजा मा बूड़गे । हजारों झन कमाय खाय दूसर राज चल दिन। कतको किसान फाँसी लगा लिन। मही करमछड़हा रहेंव,फाँसी के डोरी टूटगे अउ बाँच गेंव। बाँच तो गेंव फेर अइसन मा जी के घलो का करहूँ । अपन डउकी-लइका, माल मत्ता ल अपन आघू म मरत नइ देख सँकव। करजा-बोड़ी करके फेर खेती करत हँव। साहूकार  मन पाछू पाछू घुमत हे। मैं का करँव तँही बता...?
मोर बर "दूबर ल दू असाढ़" सरिक होगे हवय।  तोर अगोरा हे भगवान थोरिक दया कर। संसार म तोर सबले बड़े भगत किसान आय तहूँ जानत हस अउ "कहूँ किसान मर जही त मनखे के पेट कोन भरही..? अपन पेट काट के दूसर के पेट भरइया हमर दुर्दशा मा थोरिक तो दया कर भगवान। 
                अब जादा का लिखँव,तुमन खुदे जानकार हव,समझदार हव।  

                      तुँहर भगत
                        तिहारु
अजय अमृतांशु, भाटापारा
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             : नाती के पाती

                                     ठउर-बाल्को,कोरबा
                                     तारिख-05/08/2020

*यहाँ कुशल सब भाँति भलाई*
   *वहाँ कुशल राखे रघुराई*
बबा,
       पायलागी गो।
       आप ल ये बतावत अबड़ उछाह होवत हे, कि तीजा पोरा लट्ठावत हे, घर मा झाँपी झाँपी ठेठरी, खुरमी कलेवा बनही। यहू दरी मैं तुम्हर  बर मँझोलन मोटरा म ठेठरी अउ खुरमी ल कूट के गठिया देहूं, ताहन पहली कस बनेच दिन ले फँकियात रहू। गँइंज दिन होगे बबा, तोला देखे नइ हँव, अउ सपना म घलो दरस नइ देखावस। फेर सपना म आहू घलो कइसे? ये नवा जमाना के चकाचौंध म मिही तोर सुरता नइ करँव। हाथ म मोबाइल, घर म टीवी, भरर भरर भागत मोटर- गाड़ी -कार अउ ज्ञान- विज्ञान के नवा चोचला तोला छेंक देथे। अउ बबा आजो घलो यदि लोकाक्षर म चिठ्ठी पाती विषय नइ होतिस त तुमन ल मैं सुरता नइ करतेंव। अउ अब सुरता म चढ़ गे हव तब तुम्हर संग बिताये बेरा रहिरहि के उबाल मारत हे। *तोर पिठँइयाँ के पार, आज के ये अगास अमरत झूला ह घलो नइ पा सके।* तोर बनाये ढँकेल गाड़ी जेमा मैं रेंगे बर सीखेंव, आजो नजरे नजर म झूलत हे। तोर खाँसर गाड़ा के मजा महँगा मोटर कार घलो नइ दे सके। *गोरसी के आँवर भाँवर संगी संगवारी मन संग आगी तापत सुने तोर कहानी कन्थली आजो रटृम रट्टा याद हे। तोर संग घूमे बाजार हाट अउ गांव गँवतरी के सुरता भुलाये नइ भुले। आज मोर हाथ के महँगा मोबाइल भले लाख ज्ञान बाँटे फेर तोर बताये गुण गियान के गोठ के पार नइ पा सके।*
सिरतोन म बबा, वो बेरा के तोर मया के आघू, आज के सरी दुनिया भर के सैर सपाटा अउ सुख सुविधा फिक्का हे। जब तैं डोरी ल लामी लामा लमाके ढेरा आँटस, त पारा भरके लइका बड़ मजा करत चिल्लावत भागन। तोर कोकवानी लउठी के डर घलो रहय, फेर आज न तो दाई ददा के डर हे न कोनो आन के। सुतत उठत जागत बइठत, मिले तोर पबरित मया दुलार आजो अन्तस् म हिलोर मारत हे।
                बने हे बबा, तैं ये धरती ल छोड़ दे हस  काबर कि आजकल के लइका मन तो सियान मनके तीर म ओधत घलो नइ हे। आज उन ला न लइका लोग पुछे, न नाती नतुरा। बपुरा मन जुन्ना जमाना के कोनो छेल्ला जिनावर बरोबर घर के एक कोंटा म फेंकाय, खटिया म पँचत हे। सियान बर आज, न मान गउन हे, न उंखर सेवा सत्कार। सब नवा जमाना के रंग म रंग के अपनेच म मगन अउ मस्त हे, चाहे लइका लोग होय चाहे कोनो बड़का। तैं तो हमला गीत गा गाके, पुचकार पुचकार खेला के बड़े करेस, फेर आज के दुधमुहा लइका मन ल घलो दाई ददा मन सियान कर नइ छोड़त हे। उंखर देखरेख बर नौकरानी संग  स्कूल खुलगे हे। आज सियान मनके न घर में, न घर के बाहर गाँव गुड़ी म पहली कस कोनो पुछारी हे। फेर बबा ये गूगल कतको ज्ञान बाँट लय, मोबाइल ,टीवी कतको मनखे के मन मोह डरय, तोर सिखाये पढ़ाये खेलाये कस लइका नइ बना सकय। आज जुन्ना जमाना के जम्मो जिनिस ल मनखे खोधर खोधर के खोजत हे, फेर जीयत जुन्ना मनखे उपर धियान नइ देवत हे। तहूँ देखत होबे बबा, त आँखी डबडबा जात होही। *जीयत मा, न मया हे, न नाम। अउ मरे के बाद उही भगवान राम।*  आज के जमाना म *"बबा मरे चाहे बँचे सब,,,,,,,,,,, बरा खावत हे।"*
            अउ पायलागी गो
                                        चिट्ठी पठोइया

                                 तोर बड़का नाती- खैरझिटिया
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*पाती मुख्यमंत्री के नाम*
प्रति,
       माननीय मुख्य मंत्री जी
         छत्तीसगढ़ शासन
विषय:- छत्तीसगढ़ के गौरव अउ पुरखा मन के संबंध मा ।

महोदय,
     आप मन जानते हावव , पूरा जग भर म हमर भारत भुइँया ला महतारी कहे जाथे, ठीक वइसने ही सौभाग्य से हमर राज छत्तीसगढ़ ल भी महतारी के मान हमर पुरखा मन दे हावय।
   कोई भी राज के मान म बढ़ोत्तरी ओकर पौराणिक,ऐतिहासिक ,सांस्कृतिकविरासत के अधार मा होथय। छत्तीसगढ़ वैदिक काल से ही फलत-फुलत हवय, ओकर नार-बिंयार ऐतिहासिक काल से लेके आज तक फइलतेच हावे। राजा भानुमंत, के बेटी कौशिल्या, के बेटा श्री राम ...ओकर वनवास , माता सीता के रख-रखाव...लव-कुश के जनम भूमि, विद्या भूमि , श्रृंगी ,अत्रि , लोमस , माता शबरी  के तप भुंइया ,  राजा मोरत ध्वज के कथा , कमल क्षेत्र पद्मावती पूरी , पंचकोशी धाम ,  आज भी वेद-पुराण म एकर महिमा बखानत हावे।
  ऐतिहासिक काल म सिरपुर , रतनपुर , के वैभवशाली राज ,कालिदास जी के मेघदूत , कबरा पहाड़ के नाट्यशाला , सुतनुका दासी , महाप्रभु वल्लभाचार्य , महायान शाखा के प्रवर्तक अउ रस शास्त्र ला उपजइया नागार्जुन , राजा इन्द्रभूत इत्यादि के नाम अजर-अमर हे।
   बाबा घांसीदास , माता राजिम , धनी धर्मदास मन के जनम अउ करम भूमि आय।
 हमर पुरखा मन ये सब ला जानत रिहिन अउ ओकरे सेती , एक स्वतंत्र राज के सपना ल संजोय रिहिन । ताकि इँहा के मान-सम्मान अउ महिमा ल जग जाने , देखे-सुने , अउ ओकर लिए ओमन अपन लहू अँउटाइन , पछीना बोहाइन , धरना दिन , जेल गिन , कलम चलाइन , आंदोलन करिन , तब कहूँ जाके उँकर नवा सुरुज , नवा राज के उविस। फेर आज भी उँकर सपना ह अधूरा हवय उँकर मनसा रिहिस की छत्तीसगढ़ जौन धान के कटोरा हे ओहर संस्कृति के फुलवारी घलो कहाय ये सपना रिहिस। आज नवा राज बने 20 बछर होगे सिरमिट के जंगल बनगे , उद्योग खुलगे , बिजली , पानी अउ अन्य जिनिस मन के विकास होगिस किन्तु फिर भी छत्तीसगढ़ के आत्मा दुखी हे , इँहा के लोक , कला , संस्कृति , परंपरा जो इँहा के आत्मा आय ओहर अइलावत हे । ओकर सोर लेने वाला मन , ओला पोठ करईया मन घलो माटी म समागिन , फेर जौन मान माटी ल मिलना रिहिस जो उँकर असली सपना रिहिस ओहर आज भी अधूरा हे।
  हमर छत्तीसगढ़ के ओ सियानन मन ल आज नवा पीढ़ी जानय नहीं , जौन मन अपन जिनगी ल राज निर्माण बर लगा दिन । एकर भाखा बोली अउ संस्कृति के बढ़वार बर उदिम करिन उन ल बिसरा दिए गिस। भाखा अउ संस्कृति के बढ़ोत्तरी बर मंत्रालय , आयोग जरूर बनिस फेर जौन काम होना रिहिस, जइसन ढंग ले होना रिहिस ओहर ओ हिसाब ले नइ हो सकिस। एमा कोनो ल दोषी नइ कहे जाथे , किन्तु हमर कहिना हे कि हमर पौराणिक, ऐतिहासिक अउ वर्तमान के गौरव मन के नाम ल अजर - अमर करे खातिर शासकीय , अर्धशासकीय , भवन , बाँध, इस्कूल , कालेज , अउ आने संस्थान मन के नाव पुरखा मन के नाव म रखे जाय। ओकर मन के जानकारी पाठ्यक्रम म लागू हो , उन मन के नाम से पुरस्कार मिलय , लोक-कला -साहित्य-संस्कृति बर जिनगी खपइया मन ल ऊँचहा सम्मान मिलय। अइसन उदिम के रद्दा जोहत हमर छत्तीसगढ़हिंन दाइ बइठे हावय। कब ओकर रतन बेटा मन ओकर गौरवशाली इतिहास ल जग भर म फैलाही अउ महतारी के दुलरुवा मन ल उचित सम्मान देवाही।
   महोदय आशा हवय आप मन हमर भावना ल समझत ये विषय म आरो लेके अइसन उदिम करिहौ की ऊपर लिखाय माँग के पूर्ति पूरा होही।

                 आपके 
          छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर परिवार
धनराज साहू
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 ज्ञानु-एक चिट्ठी मुख्यमंत्री के नाम
सेवा म,
           मुख्यमंत्री साहेब
          छत्तीसगढ़ शासन।
विषय-  दारू ल बंद करे खातिर अरजी।
साहेब, 
            आपले हाथ जोड़के अरजी हावय अब पिये बर एकोकनी मन नइ होवय। कतको टेंसन होथे तभो ले बिन पिये सुग्घर नींद आ जथे। संगी मन रोज संझा पूछय कुछु जुगाड़ हे का अब उहू मन नइ पूछय। घर म पहिली रोज महाभारत होवय अब तो बस हँसी ठिठोली होथे। लोग - लइका, बाई, दाई- ददा अउ पारा-परोस, गाँव-बस्ती वाले मन खुश हवय। काबर अब कोनो बड़बड़ावय नही, कोनो गली-खोर, नाली, रसता म गिरे- परे नइ रहय। बहिनी, बेटी- माई मन निडर होके रसता म चलत हे।हमर पुरखा मन जेन रामराज के कल्पना करें रिहिन लगत हे वो दिन आगे हवय।
          करोना के आय ले जेन लॉकडाउन करे हव। दारू दुकान बंद करे हव सिरतो म सोला आना सुग्घर उदिम होय हे। इही मौका हे  अपन जिगर ल बड़े करव अउ जेन दारू दुकान  बंद हे तेला बंद रहन दव। अतका दिन होगे कोनो मेर सुनई नइ आय हे कोनो पीके एक्सीडेंट म मरगे। मोर अरजी हे आय के अउ कुछु आने उपाय देखव, लोगन ल स्वालंबी बनावव। आपके उज्जवल भविष्य के कामना करत इही मेर अपन गोठ ल रोकत हँव।

                               आवेदक
                      अख्खड़ दरूवाहा
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 वीरेंद्र साहू: *भाई के पाती बहिनी के नाँव*

दुलउरिन बहिनी मइया, मया आशीष!

हमन इहाँ सबेझन बने-बने हावन, आशा हे के ससुरे मा तहुँमन बने-बने होहव। जब ले कोरोना वायरस के संकट ए दुनिया मा आय हे, तब ले दाई-बाबू मन तोर अउ बड़े भाई के नंगत संसो करथें। काबर के बड़े भाई हा अपन नउकरी के सेती रायपुर म छेंकागे हे, अउ तोला थोरकन गरमी जुड़ घलव नइ सहय। राखी के तिहार हा आवत हे, तोर सुरता घलो अब्बड़ आवत हे। फेर एसो के बिकराल संकट ला देखत मन मसोस के रहि जाना ठीक होही। ए कोरोना हा सुरसा के मुहूँ कस बाढ़त हे, दुनिया, देश, राज अउ शहर ले होवत अब गाँव मन ला घलो अपन पसरा बना ले हे, हमरो तीर के गांव मन मा सुनई आवत हे। तँय शुरू ले मयके आय बर उदाली मारथस फेर एसो दमाद ला राखी बाँधे ला आय बर लउहाबे, पदोबे झन। भइया हा खरचा के डर म मइके आय बर मना करत हे कहिके झन सोंचबे। 
ए कोरोना बीमारी हा बहुँते खतरनाक हवय। ए हा संक्रमित मनखे के संपर्क मा आय ले फैलथे, आवत जावत रद्दा म दुकानदार, फलवाला, होटल वाला अउ दूसर मनखे मन ले भेंट होही ए मन मा कोन हा संक्रमित हे एखरो पहिचान कर पाना बड़ कठिन हे काबर के पहिली एखर लक्षण सर्दी, खाँसी, बुखार के रूप मा दिखय फेर अब तो बिना लक्षण के घलो हो जावत हे। तब एखर बर सावधानी करना अउ ज्यादा जरूरी हे। ए हा सियनहा अउ छोटे लइका मन बर ज्यादा घातक हे, अउ तुँहरो घर तो तोर सास ससुर मन सियान होगे हें, अउ नान-नान लइका घलो हवय। अइसन मा नियम बारन करना तोरो जिम्मेदारी बनथे। एक बात अउ कहत रहेंव के डाक्टर मन बताथें के एखर ले बाँचे बर दू मनखे के बीच मा कम ले कम तीन हाथ के दुरिहा रहना चाही, चार झन के बीच मा आना-जाना होय ता नाक मुहुँ ला बने तोप ढाक के आना-जाना चाही, अनजान मनखे मन के छुए चीज ल छुए के बाद आँखी कान ल नइ छुना चाही, बीच-बीच साबुन ले हाथ धोना चाही, सेनेटाइजर घलव लगाना चाही, भेंट पायलगी ल घलो दुरिहा ले निभाना चाही, जतका हो सकय गरम पानी पीना चाही, बिटामिन वाले साग भाजी फल फूल खाना चाही। सिरतोंन मा बहिनी नियम बारन करे ले ही बचे जा सकथे। कोरोना हा तो एक न एक दिन ए दुनिया ला छोड़बे करही अउ जियत रहिबो ते मेल मुलाकात होबे करही; फेर ए घरी जानबूझके जान ला जोखिम मा डारना ठीक नइहे। राखी ला पोस्टआफिस के माध्यम ले भेंज देबे। भाँचा मन ला पायलगी अउ दमाद ल जोहार कहि देबे।
तोर बड़े भइया
विरेन्द्र कुमार साहू
ग्राम - बोड़राबाँधा(पाण्डुका) गरियाबंद

पवइया 
     सरस्वती (मइया)/ शैलेन्द्र साहू
    ग्राम - खैरझिटी (मधुबन) धमतरी
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 वासन्ती: *दाई बर पाती*
                                  21 मई, 1981

 *पुजनीया दाई महतारी,* 

     तोर गोड़ छू के पाँव परत ये चिट्ठी ला लिखत हौं। इहाँ ससुरार म कबीर साहेब के दया ले सबो झन बने-बने हावँय।बिनती करत हँव-उहाँ मइके म सबो बने-बने होहू। 
        दाई! मोला भुला गेहा का? बिहाव होके जबले मैं ससुरार आय हँव दाई, तोर अब्बड़ेच सुरता आवत रइथे। बिहाव के पहिली मैं तोला कभ्भू नई छोड़े रहेंव। *तोर कोरा म* *खेलत-खावत कब बड़े होगेंव अउ बिहाव होके ससुरार आ गेंव-गम नि पायेंव।आज चार दिन* *होगे-कोनो ला देखे बर,* *मोर सोर खबर लेहे बर तैं* *भेजे नई अस* ।नानकुन रहेंव तव तैं लोरी गीत सुनावस अउ मैं लोरी सुनत-सुनत सुत जावंव।अभी मोर आँखी म नींद नइए अउ मैं तोर सुरता म रोवत-रोवत एक ठिन गाना लिख डारे हँव। तोर सुरता म लिखे ए मोर रचित पहिली गीत ए दाई-एखरे बर चिट्ठी म ओखर कुछ लाइन ला तोला लिख भेजत हौं। तैं कोनो करा पढ़वा के सुन लेबे अउ ओला बोल-बोल के मोर बर एक ठिन चिट्ठी लिखवा के भेज देबे। *त मोर गीत ला सुन* *दाई*-

अंगठी धर के सीखेंव दाई, रेंगे बर एक-एक पाँव।
रंग-रंग के खाई खजाना,खायें खेलेंव तोर छाँव।

अपन मुँहू के कँवरा दाई, तैं बेटी ला खवाए।
गोरस पिया के दाई मोला,कोरा म अपन बढ़ोए।

राम राज के कथा सुनाए, रावण बनगे मोर बैरी।
सीता मैया के बिरथा सुनावत,तोर आँखी होगे भारी।

सुरता आवथे मोला दाई, पढ़े भेजेव इस्कूल पहिली।
कोरे चुंदी फेर गाँथे बेनी, टिकली- फुंदरी आनी-बानी।

नावा कुरता, नावा बस्ता,दिखंव मैं सहरी लड़की।
कूदत-फांदत, चौकड़ी मारत, बनगेंव मैं घर म हिरनी।

आरती करेंव मैं सरसती के,मन म दाई तैं करे गोहार।
बेटी पढ़-लिख बने सुरूज,बाँटे जग म मया उजियार।

दाई तैं मोर पहिली गुरु, सीखेंव मैं -दाई' बोले शुरू।
दाई होथे जनम महतारी,रक्षा करे बन दुर्गा अवतारी।

फेर सुरता आथे दाई,तोर मया-दुलार के गोठ ओ।
आँखी के आँसू मैं लुकाहूँ,कइसे अँचरा के ओट ओ।

दाई तोर अँचरा म,जिनगी के सबो सुख हावै ना।
दाई तोर परंव पइयाँ ओ,गिन-गिन सौ कोरी ना।

        दाई,कोनो ला मोला देखे बर भेज।तैं तो जानत हस मोर ससुरार हर बड़का परिवारआय। बिदा के बेरा तैं हर बोले रहे- मंझली नोनी तैं बड़े परिवार म जावत हस, मोर मान ला रखबे।ओही गोठ ला गठिया के धरे हँव। तोर दमाद के छुट्टी चार दिन म खतम हो जाही फेर ओ रायगढ़ चल दिहीं। मैं इहें ससुरार म सास-ससुर, ननद- भावज संग रहूँ। ए चिट्ठी ला करमन कोटवार के हाथ भेजत हौं।वापिसी जवाब-हालचाल के आरो देबे।   दाई अब चिट्ठी ला एही मेर रोकत हौं।बाबूजी, बबा अउ सबो बड़े मन के पाँव परत हौं अउ छोटे बहिनी ला मया दुलार के संग चुम्मा।

    *तोर मयारुक मंझली बेटी* 
        
               वसन्ती वर्मा
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: *एक ठन चिट्ठी माँ अउ बाबू जी के नाँव* 
बाबू जी सादर पायलगी , 
माँ ला घलव गोड छुके पायलगी , 

               हमन इहाँ रायपुर मा      दुनो झीन (आप मन के बहू अउ मैं ) कुशल मंगल ले बने बने हावन , आपो मन सबो झीन घर मा बने बने होहवँ इही आशा हे ।
आघू लिखना समाचार इही रहिस - की येदे अभी राखी के तिहार हा घलव निकल गे , हमन हा अभी राखी मा घर आबोन कहिके अब्बड़ कोशिश करे हावन , फेर अभी ये कोरोना वायरस के नाँव लेके नइ आ पाएँ हन , तिहार के दिन आप सबो झन ला अब्बड़ सुरता करत रहे हन , आप मन सबो झीन गाँव मा तिहार ला बने सुग्घर मनाय होहवँ , हँमु मन इहाँ अलवा जलवा जइसे तइसे तिहार ल मनाय हवन , काली समाचार मा सुनत रहे हँव की अभी ये कोरोना वायरस के सेती , गाँव मन म घलव हाँका परे हवय कहिके की आसो तीजा पोरा म कोनो भी अपन बेटी माई मन ला नइ लाना हे कहिके , अभी इहाँ हमर मन के बुता काम हर घलव बने चलत हावय , अउ ये कोरोना वायरस के बिमारी हर रोज के फइलतेच हावय , तेपाय के ये दरी आप मन के बहू किरण हर घलो तीजा पोरा माने बर अपन मइके नइ जाँववँ कहत रहिस हे , गाँव कोती के सोर संदेश ला चिट्ठी लिख के हमन ला अगउँहा बताहव , तेखर हिसाब ले बनही त हँमु मन हा तिहार माने बर घर आबोन , अउ नइ बनही त इँहे मनाबोन , ओती आना जाना चलत होही ता बड़े नोनी घर जाके नोनी ला तीजा पोरा माने बर लीह के लान लेहव , अउ घर मा सबो लोग लइका मन हर घलव सब बने बने होही , दादी जी ला घलव हमर मन के पायलगी कइ देहव , अब्बड़ दिन होंगे हे घर नइ आय हन ,  तेपाय के आप जम्मो झन के अब्बड़ सुरता आथे , झटकुन चिट्ठी लिखहव चिट्ठी के अगोरा रही , बड़े बाबू अउ बड़े माँ मन ला घलव हमर मन के पायलगी कइ हव , अउ लइका मन ला बहुत अकन मया दुलार । 

               आप मन के दुलरवा बेटा 
                 मोहन कुमार निषाद
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महेंद्र बघेल: ................   
   स्थान- डोंगरगांव
                          दिनांक-31/7/20
परम प्रिय मितान जी
        जै जोहार
 घर मा हमन सब बने बने हावन, आशा हे आपो मन कुशल मंगल होहू।
बड़ दिन के जोखत रेहेव चिट्ठी लिखहू कहिके फेर का करबे उसरत नइ रिहिस। पढ़त रेहेन तब के मेल जोल होय रहिस ,ओकर बाद न भेंट हो पाइस न गोठबात ।
  उड़ती खबर मा सुने रहेव मितान तहूॅं ला बड़े जान लेखक होंगे कहिके , अउ एक दिन तुम्हर लिखे आलेख ला पढ़ेव। का लिखथस मितान सबके वाट लगादेथस। अत्याचारी ,शोषक मन के फोर फोर के बखिया उधेड़ देथस , बड़ हिम्मत घलो करथस तॅंय हा मितान ,फेर टीवी ,अखबार द देख सुन के डर्रा घलव जथो । फूॅंक मारके पानी ला पवित्र करइया बहुरूपिया मन के बारे मा लिखके अंधविश्वास ला भगाय के कोशिश करत हस, बने करतहस  फेर संभल के रहिबे सॅंगवारी ,तोरो नान नान लोग लइका हे ।
उॅंकर फायदा के अनुसार बनाय नीति नियम के उलट कहवइया मन के पाछू मा वोमन पेज पसिया धरके भिड़ जथे।
अउ मितान ये समय हा मुॅंशी प्रेमचंद के समय नोहे, जिहाॅं व्यवस्था के खिलाफ मा लिखे के आजादी तो रिहिस। कम से कम समकालीन लेखक मन ठाकुर, साहू , मातादीन जइसन अत्याचारी, भ्रष्ट्राचारी, पाखंडी अउ नान्हे नीयत वाले कुलीन शोषक मन के खिलाफ लिखे के साहस कर पावत रिहिन।
अब जमाना बदल गेहे ,तेकरे सेती चेतावत हवं मितान, हरिशंकर परसाई के गोड़ ला कोन मन टोरे रिहिस तेला तो जानते होबे,अउ कहूं नइ जानत होबे त गुगल गुरुजी के शरण मा जाके शोर खबर लेइ लेबे।
काली अउ आज मा का बदले हे मितान ,आज हा तो काली ले अउ गय गुजरे होगे हे, पहिली राजशाही रिहिस आज लोकशाही हे फेर लोकशाही मा लोक के अधिकार हर थपटी पिटे तक के रहिगेहे, बाकी उही राजशाही व्यवस्था तो चलत हे । 
व्यवस्था के खामी के बारे मा लिखना माने उघरा हिमालय पर्वत मा चढ़ना।
जनहित के उदिम मा अपन सब कुछ लगाके बने काम करबे ता जान ला जोखिम मा डारना हे , तेकर सेती चेतावत हव मितान, कलबर्गी,पानसारे, गौरी लंकेश, अउ दाभोलकर मन हर कोन से मार अपन स्वार्थ बर काम करत रिहिन वहू मन तो अव्यवस्था ला सुधारेच के बात ला आघू बढ़ावत रिहिन का। आखिर मा का होइस उॅंकर लोग लइका अनाथ होगे। 
   मॅंय जानथव मितान तॅंय समाज मा समता लाय बर नानमुन अपन पुरतिन उदिम मा लगे हस। जेहा सहुॅंराय के लइक काम आवय।
       तोर साहस ला नमन करत हॅंव मितान, फेर जरा धुर्तार मन ले सॅंभल के आगू बढ़बे अउ अपन कुल गाॅंव समाज के नाम ला रोशन करबे।
   कका काकी ला प्रणाम अउ भउजी ला भेंट पयलगी कहिदेबे।
     चिट्ठी के अगोरा मा
          तोर मितान
महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव
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: *डोकरी दाई बर चिट्ठी*
     
                        8 अगस्त 2011
    दूरिहा ले प्रणाम करत हव डोकरी दाई! 
                             बिक्कट दिन ले सोचत रेहेंव की आप ला चिट्ठी लिख दव फेर मोर समझ मा ए नइ आवत रिहिस की चिट्ठी मा काय लिखहूँ। तैं तो जानत हस डोकरी दाई मय इहाँ दुरुग मा रहिथव, इहाँ के काम काज ले थोरिक घलो फुर्सद नइ मिलय त कइसे चिट्ठी लिखव...ए दे आजे काम ला समय निकाले हव अउ तोर बर चिट्ठी लिखत हव। 
पउर के बात मोला याद हे जब तैं मोर बर चिट्ठी लिखे रेहे अउ मोर बर बहुत गुस्साए रेहे काबर की मय उहाँ जाके आप मन ला एको ठन चिट्ठी लिखे नइ रेहेंव। फेर आज मोला मउका मिलिश चिट्ठी लिखे त लिखत हव। 
                                             मय जानत हव डोकरी दाई तैं मोर सबले जादा चिंता करथस काबर की मय तोर दुलरूवा नाती आव। एक बात मय तोला खच्चित काहत हव तैं मोर अतेक जादा चिंता फिकर झन करे कर अइसन मा मय काम काज कइसे करहूँ......अउ कुछ दिन पहिली तैं हा बरा ठेठरी बना के भेजवाय रेहे ओ मोर मेर हवै रोज भिनसरहा उठ के खाथव, त फेर काम मा जाथव। 
डोकरी दाई तुमन सब ठीक हव अउ मोर मयारू बबा ओ कइसे हे सुघर खात पीयत हे अउ मोर नान नान भाई मन का करत हे कुछ काम वाम करथय की भईगे। डोकरी दाई मय तोला पहिली ले केहे रेहेंव ओ दूनो टूरा मन ला मोर करा भेज दे.......कम से कम इहाँ रइही त कुछ तो काम करही अइसन घर मा ठलहा बईठें रहि। 
                                अम्मा अउ पापा मन कइसे हे सब कुशल मंगल हे ...देखव तुमन मोर चिंता करथव त महू ला तो तुहर चिंता होथे ए सेती तुमन मोला जल्दी चिट्ठी लिख के भेजव अउ अपन हाल चाल बतावव।    ' डोकरी दाई तैं दुखी झन होबे ए दरी देवारी मनाय बर मय घर आहू सब झन मिलबे तिहार मनाबो अउ चीला भजिया खाबो।' 
                  बबा ला चरण छू के प्रणाम, दाई बाबू ला सादर पायलागि मोर भाई मन ला प्यार अउ तोला खूब सारा स्नेह! 
                                            तोर मयारू नाती 
                                                  अमित
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: मयारू के चिठ्ठी
पहिली जमाना में बिहाव के कुछ महीना या दिन के पाछू बेटी बिदा होवय।
वो पइत येला पठौनी काहय पहिली पठौनी  फेर दुसरैया पठौनी।
बिहाव के बाद मोरो पठौनी होइस  
चइत मा, ससुरार में रेहेंव चार महीना अषाढ़ आगे।
बाबूजी  लिवाय बर आगे  मैं अब मइके आगेंव आवत बेरा पति देव कहिस चिठ्ठी  भेजहूं पता  दे-दे ।
मंय पता दे देंव बाबूजी के नाम में भेजहू मोर नाम झन राहय।
पहिली बहुते लजावन सास ससुर के आगू में  गोठियावन नहीँ  मूड़ी ला ढ़ाके राहन ।
मोर ससुरार आरिंग हरे मोर ससुर जी मास्टर रिहिस सबो पारा भर मास्टर के बहू काहंय।
पंदरा दिन के बीते ले  पहिली क चिठ्ठी अइस बाबूजी हा चिठ्ठी ला मोर हाथ  में  दिस, मैं धर के कुरिया में जाके अक्केला पढेंव 
लिखे राहंय सबो कोई बने हावय माँ बाबूजी मन , दुनो नोनी मन के पढ़ई बने चलत हे।
भाई मन धलो बने हे।
फेर घर में  आथंव ताहन तोर बहुत  सुरता  आथे अइसे लागथे 
येती ओती रेंगत हावस नजर मा झूल जथे।
उही सुरता में  एक ठी गीत भेजत हँव  ।
गीत 
जब जब बहार आए और फूल मुस्कुराये मुझे तुम याद आये।
मुझे तुम याद आये।
जब बज भी चाँद निकला और तारे जगमगाये मुझे तुम याद आये।
मुझे तुम याद आये।
पूरा  लिखे राहंय पढ़ के तर तर तर तर आँसू बोहाय लगिस को जनी खुसी में  हरे धन काय हरे।
आँखी ला मूंद के सोचत राहंव अतका चुप अऊ शांत रहइया  अइसन  गीत लिखे हे ----
वोतके बेरा माँ आगे कहिस का होगे बेटी चुप  कइसे बइठे हस कुछु नइ बोले सकेंव बक्का  नी फुटिस कुछू तो नइ लिखे राहय गीत के छोड़े।
माँ कोती चिठ्ठी  ला बढ़ा देंव माँ पढ़िस अऊ कहिस देखे मोर दमांद के मया ला।
अभी चार दिन पहिली कहेंव लेना मोर बर चिठ्ठी  लिखव उही गीत ल लिखहू।
कहिन दूरहा में  रहिते त लिखतेंव तँय तो मोर आगू बइठे हस।
मोला कहाँ पता रिहिस ग्रुप मा चिठ्ठी  पत्री चलही।
तीनों  दीदी मन ला प्रणाम 
सबो झन देख के लिखे के कोशिश करे हंव।
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🙏🏼🙏🏼🙏🏼
सेवा म
          श्री मान कार्यपालन     
          अभियंता(पीडब्लूडी)
           विभाग रैपुर
विषय-सड़क ला हिरोइन के गाल असन चिक्कन बनाये बर।
महोदय,
मँय समारु राम हाथ जोड़ के गाँव वाले डाहर ले आप ला परणाम करत हँव।हमर गाँव ले दूसर गाँव जाय के सड़क हा पिछले बरसात के पहिली नवा बने रिहिस हे।एसो के एक्के पानी मा खलखल ले हिरोइन के मेकअप असन धोवागे।बड़का बड़का गड्ढा अउ कोनों कोनो मेर खोचका डिपरा होगे हे।काय हे हिरोइन के गाल मा फोड़ा फुंसी बिकटे हो जथे त बने नइ लागय देखे मा।फेर हमन तो सड़क मा चलैइया मनखे हरन,गाड़ी मोटर फटफटी तो नइये कि फट ले नहका दन, कूदा दन।बइला गाड़ी ले आना जाना होत रीथे।अउ इही बइला गाड़ी हा हमर गाँव  गवँई के जीवन रेखा हरे।हमर मन के कतको झन के बइला हा नेवरिया हरे,गड्ढा ला देख के बिचक जथे।कभू कभू तो  भड़ांग ले गड्ढा मा बोजा जथे।बइला ला उठावत अउ गाड़ी ला निकालत समे पहाथे एक घंटा के काम हा एक दिन खा देथे। एसो बरसात मा हमन जम्मो गाँव वाले नरक भोगत हाबन।आप मन ले हमन बिनती करत हाबन कि अइसे सड़क बनावँव जेन हिरोइन के गाल असन चिकना राहय,टपरे टपराय के कोनो गुंजाइश मत रखहूं।जय जोहार करत मेहा गाँव वाले कोती ले ये दरखास  आप मन ला भेजत हाबव।
                    गाँव वाले
                    समारू,बुधारू,
                  डमरू,तिरलोखी
विजेन्द्र वर्मा
नगरगांव धरसीवाँ

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 आरुग: मयारू सँगवारी रामहू
इहाँ कुशल सब भाँति भलाई, उहाँ कुशल राखे रघुराई ।
सँगवारी रामहू तोला तोर दाई बाबू सँग शहर गे आज चार बछर ले जादा होगे। एक पइत इहाँ ले गेस तेन तँय लहुट के नइ आएस । शुरू शुरू में एक दु पइत फोन करेस तहाँ भुलागेस । फेर मैं अकेल्ला होथंव त तोर गज्जब सुरता आथे । आज घलो तरिया पार मा बइठे रेहेंव त तोर सुरता ठक ले आगे ते पाय के तोला ये चिट्ठी लिखत हँव । इही तरिया पार के कोनहा के बर पेंड़ हा हमर खेले के अड्डा राहय । कतको बेरा ला इही मेरन खेल खेल के पहवा देत रेहेन । जेन जघा ले बिछल के तरिया मा कूदन, जेन डारा ले रेस टिप खेलत चूहन,  जेन बर्रइयाँ ला बांध के झूलना झूलन तोर जाय के बाद वो जघा मन मा मोरो जाना छूट गे रिहिस। आज उदुप ले देखेंव ता अइसे लागिस जइसे ये ठउर मन आज ले हमर सुरता अउ अगोरा करत हें । अउ काबर सुरता नइ करही कखरो बारी ले खीरा चोरा के आवन त इही बर पेंड़ के डारा में बइठ के दहेलन । कखरो खेत ले रात कन होरा बर चना चोरावन त इहिच मेरन होरा भूँज के खावन । तोर मोर जोड़ी तो वइसने गाँव भर मा प्रसिद्ध रिहिस घरो के मन हमन ला बने जान गे रिहिंन हे । कोनो भी एक झन नइ मिलतीस त घर के मन दूसर ला पूछय । तोला सुरता हे ? एक पइत कोहड़ा नार ला सुलगाके बीड़ी कस पियत रेहेन त बबा कोन डाहर ले आगे ओखर ले बाँचे बर भागेन त नार के आगी ह सिपचगे अउ बारी म आगी लगगे...उही आगी मा हमर भूरवा कुकुर जर के मरगे । मैं अब्बड़ रोय रेहेंव कखरो चुप कराए ले चुप नइ होवत रेहेंव त बबा ह तोला बुला के लाइस तहाँ हमन खेले ला धर लेन । एक घाँव तुँहर गाय हा खार म बछिया पिला जनमिस अउ घर नइ आइस त हमन दुनो झन जाके रात के खोज खाज के लाये रेहेन । मैं तीन दिन ले तुँहरे घर में रहिके छकत ले पेउस खाय रेहेंव । मोला तोर सापर में पहाय जम्मो बेरा के सुरता हे अउ वो मन ला मैं कभू नइ भुलावंव । पंड़की कुदावत खारे खार दउड़ई, बेंदरा कुदई । छेरछेरा मांगे बर जवई । तोर सँग दौड़े तितंगी, तोर सँग खेले गिल्ली, कबड्डी, खोखो, गेंड़ी दउड़ अउ कतेक ला सुरता करंव । अउ हाँ तोर दुनो मिल के फुरफुंदी मन ला पैसा अउ कौड़ी बनही कहिके जेन ठउर मा माटी म चपके रेहेन तेन ला बड़ दिन ले जा जा के देखेंव फेर न तो वो पैसा बनिस न कौड़ी । हाँ फेर अब जान गे हँव फुरफुन्दी ला हमन फोकटे मारके माटी म चपक दे रेहेन...हा हा हा । 
              सँगवारी रामहू तिहार आज घलो आथे । हरेली, पोरा, गणेश पक्ष, देवारी, छेरछेरा अउ होरी कस कतको तिहार आथे अउ चल देथे फेर तोर बिना तिहार मन फीका लागथे । कोन जनि तहूँ मोला अइसने सुरता करथस धुन नहीं । शहर ले आये कइ झन ला देखथंव अउ उँखर ले गोठबात करथंव त वोमन गाँव वाले मन ला देहाती कहिथें अउ उंखर ले ढंग ले गोठियावय तको नहीं । सँगवारी तहूँ थोरे बदले हस?  मोला तोर ऊपर पूरा भरोसा हे । अउ हमन भरोसाच तो कर सकत हन बाँकी भगवान जानै...।
              फेर जेन दिन तँय गाँव आबे अउ तोर मोर भेंट होही वो दिन मोर बर तिहार ले कम नइ राहय... 
              
                                  तोर सँगवारी
                                        कमलू
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चित्रा श्रीवास: सेवा म,
        मुख्यमंतरी
        छत्तीसगढ़ शासन
        छत्तीसगढ़
विषय-साग भाजी के समर्थन मूल्य निर्धारित करे बर।
महोदय,
          हम साग भाजी के खेती करवइया जम्मो किसान मन तुहँँर हाथ जोर परनाम करत हन ।आप मन धान के समर्थन मूल्य ला बढा़ देय हव जेखर बर छत्तीसगढ़ के जम्मो किसान डहर ले धन्यवाद।
हमर छत्तीसगढ़ राज मा धान, गहूँ, तिवरा, सरसों, चना, उरिद,भुट्टा के संगे संग आलू,गोदली, पताल,लसून,गोभी ,भाँटा, मुराई,मिरचा पालक,लालभाजी मेथी, धनिया,जइसे कतको कन साग भाजी के खेती करे जाथे हमर माटी हा सहीच मा सोना आय जेहा हमर खाय पीये के कुछु जिनिस के कमी नइ होय देवय।इहा ले कतको जिनिस हा दूसर राज मा घलो भेजे जाथे।आने फसल हा बढ़िया होथे ता किसान मन खुश हो जाथें बढ़िया कीमत मिलही सोच के फेर हमर भाग ओइसन कहाँ।साग भाजी बढ़िया होथे तव बजार मा ओखर कीमत गिर जाथे।हमला हमर लागत तको नइ मिल पाय इही पीरा मा हमर कतको संगी मन साग भाजी ला रस्ता मा,घुरुवा मा फेंक देथेंकतको किसान मन करजा लेके साग भाजी के खेती करे रथन तेहा मुड़ी मा पटका जाथे ।अपन घर परिवार ला तको चलाना मुश्किल पर जाथे।हमर दुख के कोनो हिसाब नइ हे।
      तेखरे सेतिर आप मन ले हमन बिनती बिनोवत हन कि आने फसल के जइसे साग भाजी के घलो समर्थन मूल्य देवाय के किरपा करव ।जेखर ले हमरो लोग लइकन ला भूख मरे बर मत परय ।हमरो गोहार ला सुन ले अउ
हमर मिहनत हा रद्दा मा मत फेंकाय  अतका किरपा करहूँ।
      जम्मो किसान
     साग भाजी लगवइया
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 ज्योति गबेल: 
*ऊँ*
*गियाँ बर  पाती* 
                                 6-8-2020
    
हमर नानपन के किरन गियाँ जी 
      सादर जै- जोहार, राम-राम
      मै हर अपन ससुरार मा बने-बने हँव , तुहुँ मन सब  कुसलता से बने - बने होहिया।
     कई साल बाद चिट्ठी भेजत हौं। मोर दुइठन  लइका हावय एक नोनी एक ठिन  दऊ  हे।
दऊ बेटा ह पढ़ लिख के नौकरी  पा गय हावय। मै हर ओकर बिहाव करहौं -  ओकरे खातिर गाँव आय हाववँ  अउ गियाँ दई  ले तुँहर पता ल माँगे हँव । ए साल कोरोना के कारण जादा झन ल बिहाव नेवता नइ देवत हँव। गियाँ दई ह बतावत रहीस कि तुँहरो दूइठन लइका हे नोनी-बाबू अउ तुँहर इहाँ के दमाद हर जिंदल रायगढ़ म नौकरी करथे।  सब हाल सुनके मन ह गदगद हो गय। त मोर नेवता पाती ल पा के आप मन जरूर आइहा। बिहाव कार्ड म फोन न. लिखे हावय  -फोन करिहा। अब्बड़ दिन हो गय हावै, हमन दूनो गियाँ भेंट  नई होय पाय हन।बिहाव म खचित आइहा। तुँहर लइका मन ल आशीष।अउ  बड़का मन ल पायलगी।
        *तुँहर नानपन के  भोजली गियाँ* 
       ज्योति गभेल (कोरबा)
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] हीरा गुरुजी समय: यमराज ला चिट्ठी 
सेवा म,
          सिरी यमराज देव
           यमलोक 
बिषय:- भारत के यमदूत मनके समसिया के                 निराकरण खातिर।
          पाँच हाथ दुरिया ले पलगी,
        तुँहला बतावत अउ सरेखत बड़ दुख लागत हवय कि हफ्ता भर पहिली भारतीय यमदूत संगठन के अध्यक्ष हा मोला चिट्ठी लिखे हवय अउ गोहार करे हवय कि उन मन अबड़ अकन समसिया ले पीड़ित हँवय।उँखर समसिया के जल्दी समधान करवाय जाय।
       सबले बड़का तुँहर शिकायत हवय कि एसो मनखे ला मारे के ठेका चीन के बहुराष्ट्रीय कंपनी कोरोना के यमदूत मनला दे दे हवय।ओमन आधा काम ला करथँय, मनखे ला मरे के वाइरस ला छोड़भर देथँय अउ मर जाही ता भारत के जीव ला यमलोक लाने के बोझा हमर उपर खपल देहँय।हमन पहिली तो कमती मनखे मरत रहिस तब कइसनो कर के अपन ड्यूटी बजात रहेन फेर यहा तो रोज के रोज मरइया मन बाढ़त जावत हे। कतको ला फोकटे फोकट कोरोना पाजेटिव बता देथँय। चीनी वाइरस के भरोसा नइ रहय। छे सात दिन ले रात दिन अड़े रहिथन कि मरही ता जीव ला लेगबो, फेर रिपोट निगेटिव निकल जाथय। जीव नइ लेखन ता रोजी नइ बनय। सब फऊ हो जाथय।
      दूसर ये की नवा करमचारी भरती नइ करत हें, स्टॉफ के कमती होय ले उभर टाइम ड्यूटी करेबर परत हे।एखर भत्ता घलाव नइ देवत हे।कोरोना मा मरे जीव ला लानत हन ता घर जायबर नइ मिलत हे। चार महिना ले आगर होगे लोग लइका ले दुरिहा राखे हावय। बाई के मुहूँ देखे बर नइ मिलत हे।घर के बेवस्था, नान्हे यमदूत मनके जनमदिन बर घलाव छुट्टी नइ देवत हे। संगठन के बिगर सलाहा लेय भारत के यमदूत के ड्यूटी कभू कभू फ्राँस अमरिका मा लगा देथय काबर कि उहाँ जादा मरत हँवय। सेफ्टी किट घलाव नइ देवत हे।उही ला धोवत हन उही ला पहिरत हन।सेनेटाइजर के नाव मा दरबार के बाबू मन जबर खर्चा देखात हे फेर फिल्ड ड्यूटी वाला ला कुछ मिलत नइ हे।बेरा कूबेरा खाय बर मिलथे।आनलाइन संदेश मिलथे कि फलाँजगा के कोरिना पाजेटिव हा अब तब मरनेच वाला हवय लघियाँत जावव, ता उल्टा पाँव जायबर परथे। 24 घंटा तैनाती कर दे हवय।
           यमराज जी एकक ठन समसिया ला गिनाय मा दस बारा पन्ना भर जाही, कम लिखे ला जादा  समझलव अउ उँखर समसिया के तुरते समाधान निकालव।जइसे कोरोना मा मारे के चीन के ठेका ला रद्द करव। भारत के यमदूत ला अपन प्रांत अउ जिला मा ड्यूटी लगावव।उँखर घर परिवार के हियाव करव। यमदूत मन ला एक एक हफ्ता के छुट्टी देवव,अउ कोरोना के दवाई बुटाई बनई मा लगे बिज्ञानिक मन तीर यमदूत ला झिन भेजव। उभर टाइम के भत्ता, सेफ्टी कीट(चाइना माल छोड़के) तुरते देय जाय।
         तीन - चार दिन के भीतरी ये माँग पूरा नइ होही ता आगू जउन तकलीफ होही ओखर जिम्मेदार तुहीचमन होहव ।
                पाँच हाथ दुरिया ले जोहार।
                                    तुँहर
                          हीरालाल गुरुजी "समय" 
                  अध्यक्ष,पीड़ित मुक्ति संगठन 
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: मोर मयारूक ददा लोकाक्षर के नाव म पाती 
06-08-2020
मोर मयारुक लोकाक्षर, 
पाँव परत हौं गा ददा |
दादा गा मैं इहाँ बने-बने हववं, आसा करत हवं तहूँ बने होबे |
बने-बने का गा तोर तो मजा चलत हे गा ददा | कतना लईका होगे तोर गने हस का ? रोजेच्च एकात झिन बाढ़त जावत हें |जम्मो ला मौक़ा मिलगे हवे अपन-अपन मन के बात ला गोठियाए बर | कभू संस्मरण त कभू गीत-ग़ज़ल, कभू कथा-कहिनी, संस्मरण अउ अब तो चिट्ठी पतरी ला घलो लिखे लगगे हवयं | हव ददा गा मोबाईल जमाना के लईका मन घलो चिट्ठी लिखे बर सीखगे  हवयं |
भईगे---- चिट्ठी पतरी मा तो अइसे लागत हे जानो मनो अपन मन के बात ला लिखे बर भर बांचे रिहिस अब वहू होगे | देख ना कोनो दारु बंद करे बर अरजी देवत हे त कोनो ममा ला गोहारत, कोनो काका ला गोहारत, कोनो एडमिन ला , अउ तो अउ मुख्यमंत्री के नाव म  तो कई ठिन चिट्ठी लिखागे हे गा ददा | मिही पछ्वागे हववं मोला छिमा कर देबे | 
काबर कि काली हमर प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय भूपेश बघेल हर झौहां म गोबर धर के बलाए रिहिस | त झौहां धर के पहिली तो गोबर संइते बर गएंव | उहाँ घलो अब मारा मारी चलत हे गा गोठान डाहर, जंगल कोती, अतका भीड़ लगे हे जनो मनो दू महिना म राशन के लाइन लगे होही| गाय गरु के पाछू-पाछू माई लोगन झौहां धरे-धरे रेंगत हे अउ चिरौरी करत हें _---“गोबर दे बछरू गोबर दे” का करबे दू पईसा कहूँ ले मिल जाथे तब बने लागथे गा ददा | ओखरे बर तोला चिट्ठी लिखुब मा देरी होगे गुसियाबे झिन ना गा ददा, तोर पाँव्  परत हौं | मया दया ला रखे रहिबे काबर! कि एसो तीजा घलो नई आना हे | कोतवाल हर हांका पारत रिहिस ओ का जती के कोरोना आए हवय हमर पहुना बनके बिन बलाए | बस तयं हर मोर बर लुगरा बिसा के रख ले रबे |
तोर मयारूक बेटी 
शकुंतला तरार
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ओम प्रकाश अंकुर: जय सिया राम 
                             लालबहादुर नगर 
                               6 अगस्त 2020
            संगवारी
                 जय जोहार 
            मेहा इहाँ ठीक हवँ.भगवान के कृपा ले तहू हा बने बने होबे .अइसन मोला बिश्वास हवय.गजब दिन होगे मेहा 
चिट्ठी नहिं लिख पायेंव. तोरो चिट्ठी नहिं मिलिस. आज मोला तोर गजब सुरता आथे. ननपन के याद हा घेरी बेरी आथे. कइसन हमन एके संग भंवरा, बांटी, गिल्ली डंडा, चोर पुलिस अउ स्कूल मा जाके लुकउल खेलन,रहिचुली झूलन. गर्मी दिन मा तरिया मा एकदम डूबकन. बरगद 
पेड़ मा चढ़ के तरिया मा कूदन. अउ हजारी बबा जउन हा ग्राम पंचायत के चपरासी राहय. ओहा जब खिसिसाय तहाँ ले हमन अपना कपड़ा ला लकर धकर धरके गिदगिद भागन . हाईस्कूल मा पढ़त रहन ता क्रिकेट खेले बर भांठा जावन. अउ संझा बेरा जब गरुवा मन घर आय ता डोकरी दाई हा मरो जियो ले चिल्लाय कि कतिक बेर ले खेलत रहू. कई दिन खरखरा नदी कोति टहले बर जान. ये सबो सुरता हा आज मोर आँखी के सामने झूलत हवय. 
       ये डहर दो दिन होगे बने  पानी गिरत हे. हमर गाँव डहर पानी के का हाल चाल हवय संगवारी. कोरोना के कारण लईका मन हा स्कूल नहिं अावत हवय.  मोबाइल मा आन लाईन पढ़ात हवन. अब पारा मोहल्ला मा बइठाके घलो पढ़ाय के चालू कर दे हन. कोन जनि ये कोरोना हा कब तक चलही. सबके मति ला छरिया देहे. 
         मोर डहर ले कका- काकी ला पैलगी कहि देहू. परिवार संग हमरो डहर घूमे ला आहू. तोर चिट्ठी के अगोरा रहि. 
                              तोर मितान 
                         ओमप्रकाश साहू 
                
                 प्रति,  
                    श्री राम लाल साहू 
                  ग्राम + पोष्ट - सुरगी (शनिच्चर बाजार के पास) 
              तहसील अउ जिला -       राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) 
  पिनकोड - 491443

प्रेषक -
        ओमप्रकाश साहू" अंकुर "
      
       ग्राम +पोष्ट - लाल बहादुर नगर ( छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक के पास) 
 तहसील - डोंगरगढ़ 
  जिला - राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़)
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] मीता अग्रवाल: जयमहमई     
रइपुर
5/2/2020            
मयारुक अंतु,
                 का बात होगे हे,बड बेरा होंगे हमर मेल मुलकात ला लाक डाउन लगे।कलेचुप रही के मोर संग गोठ बात बंदे कर देहस अंतु।एक वहू बेरा रहिस जब छुपा छुपी खेलत खेलत कभ्भू मोर संग ला छोडते नइ रहेस ,आखी मूंदे मूँदे  मोर ऊपर भरोसा करत रहास। जब तक सब ला छोड के विजयी भवः के आशीष फलित नइ होतिस,तब तक मोरे संग सरी धरम करम कारण काज के निदान मांगत  रेहेस, थोरोको संसो परन देवत नइ रेहेस।फेर अब? अब मोर ले जादा पियारा,मोर बैरी मोबाइल होगे हवय,आँखी खुलिस नइ के अंगरी सुते सुते चलथे,अउ नीद ला उडावतअध रतिहा तक उही हाल मा फंसे देखथव, का होगे तोर हाल,जानथच? आज फुरसतहा मा तोला अपन सुरता देवात हव।ले एक ठी सायरी झोंक---
बड बेरा होगे गोठ बात नइ होय पाय।
काबर नइ तोर नाव ले चिट्ठी-पत्री लिख डारे जाय।
तय झूलथस आँखी आँखी मा दुख पीरा नइ सहाय।
तोर मया बंधना मा मंतु बेरा नइ पहाय।
लिखना दिल के दरवज्जा खोल के आखिर मोही ला परीस, काबर की मोर ठिकाना उही हे।आजकल तोर नता, नसा ,असन सोशल
 मीडिया ले जादा होगे हे,रकम -र कम के छंद,गोठ,लेख सबो बिधा ले अपन नता जोरे मा दिन रात खपात हस।बने बात हे कम से कम सुग्घर काज मा अपन बेरा पहावत हस।छंद के छ के गुरु भाई गुरु दीदी मनले बड खुस रहिथस।अउ नावा समूह छत्तीसगढ़ लोकाक्षर मा ,अपन भाखा के विकास मा कतीक का लिख पढ लव सोच केबने भिड़े रहिथच,बने करम हे करत रहा,फेर मोर संग साथ रनचिक जुरबे नइ करस। मोर संग अभी गोठियाबे तभी गोठियाये के सोच मा मोर कोती तोर धियान घलोक नइ जावय,बड दुख लागथे,मंतु अंतु के जोरि ला काखर नजर लाग गे कहिके।रातदिन सुसकत सुसकत अब थक हार के बइठ गेव,जाबे कहाँ रे बाबु?कोन संग कतेक दिन के संगी हो ही महू पझोगत हव।पीरा दुख म बुरबे तव मंतुच काम आथे,इही सोच ले कलचुप धरे बइठे हव।तोर जीव छूटही तभो एके संग जाबो ,हमन 
जनम मरन के संगी हन,कखरोके बात बने नइ लागीस, केआँखी ले गंगा जमुना रेमटहा संग बोहाय लागथे।ललियाय आँखी ले येती वोती देखथस,कोन हा साथ दिही धीरज बंधाय के जोखा तो मोरे करा माढे रथे ना आखिर मा,झन भुलाय कर मोला तैहर,
मन के हारे हार हे मन के जीते जीत, ऐती वोती झन देख मै हव तोर *मन* मंतु मीत।
हाय रे मोर बोरे बरा किंदर फिर के उही करा,आबे अंतु।तोरेच फिकर मा,तोर अंतस-

 *सिरिफ तोर मंतु* 
मीता अग्रवाल रायपुर छत्तीसगढ़
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] ज्ञानू कवि: 'श्री सत्य कबीर'
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                               ६/८/२०२०
                                  बोड़ला
मोर दुख सुख के संगिनी,  
                 मनु के दाई - अड़बड़ मया।
         मैं इहाँ सुग्घर हवँव अउ ये आशा करत हँव तूँहु मन उहाँ सुग्घर होहू। दाई- बाबू ल मोर प्रणाम कहिबे । अउ ह हमर मया के बगिया म खिले फूल सही दुलौरिन बेटी मनु ल गज़ब मया देबे मोर। 
                 तोर चिट्ठी  कालिच्च संझाकुन  मिलिस। पढ़ के आँखी ले गंगा-जमुना के धार सही बोहाय लगगे। मनु के बार- बार पापा- पापा कहई  अउ  दाई- बाबू के घलो बार - बार पूछई  बेटा के कुछु खबर आइस का बहू। कब आवत हे, कइसे हे अउ ओखर काम बूता बने चलत हे के नइ। अउ  आँखी ले आँसू  ल लुकावत तँय हँसके बताथस हव बाबू ओहा बने हे, जल्दी आहू कहे हे। 
            मन बिकट होथे ओ दू- चार दिन के छुट्टी लेके घर आँव। होली म आहूँ केहे रेहेंव फेर ठउका समे म लॉकडॉउन लगगे। अउ जानथस तो ए स्वास्थ्य विभाग के नउकरी म छुट्टी के बहुत दिक्कत होथे। ऊपर ले अभी कोरोना के सेती एस्मा लगे हे। छुट्टी बर कहू अधिकारी मन ल बोलबे त उंखर हाथ पाँव फुलथे। नोनी ल देखे के बड़ मन होथे ७-८  महीना होगे देखे।
          दिन ब दिन कोरोना बढ़त जात हे डर घलो लगथे फेर का करबे नउकरी ए करे ल तो परहीच। बने हियाव करत रहू, दाई- बाबू अउ नोनी के चेत करे रहिबे। अब सोचत हँव अकेटठा देवारी तिहार म आहूँ तब तक कहूँ कोरोना कुछ कम हो जाय। 
            मोला बड़ गरब हे ओ तोला जीवनसंगिनी के रूप म पाके। मोर अनुपस्थिति म बहू के संग -संग बेटा बनके दाई-बाबू के बने सेवा जतन करत हस। लिखना तो बहुत कुछ चाहत हँव फेर सोचथंव का लिखव। अब बस अतके अपन संग दाई- बाबू अउ मनु के बने ख्याल रखबे ।
             एक बेर अउ दाई- बाबू ल प्रणाम , मनु अउ तोला अड़बड़  मया
                     तोर
               जीवनसाथी
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 वीरेंद्र साहू: *श्री घनश्याम दास बिड़ला के बेटा के नाँव चिट्ठी - भाषा - छत्तीसगढ़ी - अनुवादक - विरेन्द्र कुमार साहू*

दुलरवा बेटा बसंत...

ए जे चिट्ठी लिखत हँव ओला तँय तोर कोन्हों भी उमर रइही सुरता करके खच्चित पढ़ते रहिबे। एमा मँय अपन जिनगी के अनुभव ला भरत हँव।

ए संसार मा मनखे तन पाना बहुते नोहर हे! अउ जेन हा एला पाके गलत काम मा बउरथे ओ हा मनखे नइ जानवर आय।

अगर तोर तीर पइसा कौड़ी हे, तन हा भला चंगा हे अउ सुग्घर जिनगी बर आनी-बानी के थेभा हे, तब एखर बउराई परमारथ मा होइस ता ठीक हे नइते एला बेंदरा के हाथ मा छूरी बरोबर जान। तँय हरदम ए बात ला सुरता राखबे।

धन ला कभू मजा पाय बर ते अपन सऊँख पूरा करे बर झन बउरबे। काबर के धन हा काखरो दास बनके नइ राहय, जतेक भी दिन तोर हिस्सा मा रइही एला नीक काम मा माने के परमारथ मा लगाबे। अपन ऊपर कम ले कम धन ला सिराबे। ज्यादा ले ज्यादा धन ला दीन, दुखी अउ गरीबहा मन बर खरचा करबे।

धन हा मनखे के ताकत अउ गुमान हरय, एखर नशा मा काखरो संग अन्याय हो जवई पक्का हे, फेर ध्यान मा रहय के अपन धन-दौलत के बउराई ले काखरो संग अन्याय झन होवय।

अपनो नोनी-बाबू बर ए संदेश ला छोड़बे। कँहू लइका मन मजा पवइया,रिंगी-चिंगी के सँऊखीन, ठलहा रहइ ला पसंद करइयाँ अलाल होहीं ते पाप करहीं अउ धंधा पानी ला टुटुम ले कर देहीं। अइसन नालायक मन ला धन कभू झन देबे। ओमन धन दौलत ला हँथियाँय एखर पहिलिच दीन,दुखी अउ रोगी मन के सेवा मा लगा देबे। तँय स्वार्थी सहींक लोग लइका मन के मोंहो मा अँधरा होके नइ बउर सकस। हमन सबो भाई मिल के अनसम्हार मेहनत करके धंधा-पानी ला बढ़ाय हन। तब हमन सोंचे अउ समझे हन के एमन एला नीक काम मा बउरहीं कहिके।

भगवान ला कभू झन भुलाहू ओ हा सुग्घर मति देथे। अपन इन्द्री मन ला काबू मा रखिहव, नहिते ए तुमन ला बुड़ो देही। रोज्जे नियम बारन ले योग बियाम करहव। सुग्घर स्वास्थ्य हा बड़का दौलत आय। स्वास्थ्य बने रहिथय ता काम ला फटाक ले करे के गुण आथे। एखरे ले काम हा सफल होथे अउ काम हा सफल होथे ता धन दौलत के बढ़वार होथय।

सुख-समृद्धि खातिर स्वास्थ्य हा पहिली करार हरय। मँय हा देखे हँव के सुग्घर स्वास्थ्य नइ होय के सेती, करोड़ों अरबों के मालिक मन हा गरीबहा ले गरीबहा हो जाथँय। सुग्घर स्वास्थ्य नइ होय के सेती सुख बर माढ़े साधन मन घलो बिरथा हो जाथँय। तेखर सेती स्वास्थ्य सम्पदा के रक्षा बर जतन करबे। खाना ला दवई समझ के खाबे। सुवाद के दास होके खातेच झन रहिबे। ज़िये बर खाना हे नइ के खाये बर जीना।

घनश्यामदास बिड़ला

अनुवादक :

विरेन्द्र कुमार साहू, बोड़राबाँधा(राजिम)
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 आशा देशमुख: *करोना के पाती यमराज के नाम।*
श्री यमराज महाराज
घोलण्ड के पाँव परत हँव
    तोर कहे मुताबिक मँय दुनिया भर मा घूमत हँव।ये धरती के रहइया मन तो तोर ले ज्यादा मोर नाम से काँपत हें।मनखे मन मनखे ला देख के डरावत हें, इंखर तो घर ले निकलना मुश्कुल कर दे हवँव ।
महराज एक बात तो अउ जब्बर अचरिज के हावय ,इहाँ बड़े बड़े बम बना के एक दूसर ला मारे बर बइठे हवँय उंखरो टोंटा सुखावत हे ।कछु नइ कर पावत हें।
तँय चिंता झन कर महराज
मँय कोनो ला नइ दिखँव।
         सब लोगन मन भोरहा मा रहिथें  ये करोना हमर काय बिगाड़ करही,अइसने सोचत सोचत 10मनखे से  20 लाख मनखे होगे मोर शिकार तभो ले कतको झन मन मटमटावत रहिथें।
           यमराज महराज ये मनखे मन अबड़ चतुरा हें तोर बड़े बड़े शस्त्र ल फेल करत रहिंन हें टीका दवा खोज खोज के,पर मोर बर इंखर मन कर कोनो हथियार नइहे।
में अब्बड़ मजा म हँव जेन भी मिलथे उही ल धरके अपन पेट भरथो अउ ओखर सँग जेन भी मिलत हें वहु मन ल नइ बचावत हँव।
        धरती के मन तो जतका गरीबी भूखमरी में नइ मरे हें।
वतका मोर हाथ ले मरत हें।मोर जबड़ भाग हे महराज आप मन के  किरपा ले मोर असन नानकुन जीव हा घलो बड़का योद्धा बनके घूमत हँव।
  कखरो का मजाल जेन मोर ले टक्कर ले सकय।
चारों कोती मोर नाम के डंका बाजत हे ।
बड़े बड़े नाम वाले मन घलो चुपे खुसर के बइठे हे घर मा, अस्पताल मा।
का मंत्री, का नेता ,का अभिनेता,
का गरीब ,का अमीर
मोर बर सबो झन एक बरोबर हे।
जेन भी मोला रद्दा में दिखथे वोला में धरके मुसेट देथंव।
ये खेल मा मोला अब्बड़ मजा आवत हे पर मनखे मन के कोई भरोसा नइहे।
का पता कब मोला भगाय बर दवा बनाले अउ मोर बिदा कर दे
येखर पहिली आपमन ले एक बिनती हे महराज।कहत में मोला लाज तो आवत हे पर बिना माँगे कुछु मिलय घलो नइ।
तेखर सेती कहत हँव महराज।
में आपमन के अतका बड़े काम ला करत हँव जेन काम ल आपके अभी तक कोनो भी सिपाही मन नइ करे रहिन।
त मोर नाम* *गिनीज बुक यमपुर* में रिकार्ड कर देतेव।
अतकी ही बिनती हे महाराज।
थोकिन दिन के बाद यमपुरी लहुट जाहूँ।
 मोरो जिनगी अब ज्यादा दिन के नइहे।

*आपमन के दुलौरिन करोना
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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 कवि हेम: *भाई के पाती मयारुक बहनी के नाँव*
ठउर - शिक्षक नगर  
धमधा, जिला दुरुग (छ. ग.)          
                                                 तारिख-07-08-2020         
मोर मयारुक बहनी
तोला आर्शीवाद हे 
             ले जा पाती मोर तँय, बहनी बर संदेश।
             बढ़िया दे देबे मया, अउ हर देबे क्लेश।।
             मोर मयारुक मंझली बहनी इहाँ हमन सबो झन बढ़िया हवन, आशा करत हव उहो सब झन बढ़िया होहूँ। तोला मोर मया भर आशीर्वाद हावय, जिनगी मा सदा सुखी रहा बहनी। दमाद बाबू ला जय जोहर कहि देबे अउ भांची भांचा ला चरण छू के प्रणाम हावय। दाई बाबू डहर ले सबो झन ला मया दुलार हावय।
             मोर मयारुक बहनी तोर भेजे राखी हा तिहार के एक दिन पहली मिल गे रहिस हावय। तोर बनाय राखी ला देख के मोला बहुत खुशी होइस हावय, बढ़िया करे बहनी चाइनीज़ राखी के जगह मा अपन हाथ के सुघ्घर बनाये राखी भेजे हस। तोर बनाय राखी ला देख के संगी संगवारी मन बड़ तारीफ करत रहिस हावय, अउ कहत रहिस सबके बहनी ला अपन हाथ से बनाये राखी पहनाना चाही। तोर राखी ला पहिने के बाद मन ला सम्बल अउ तन ला शक्ति मिलिस हावय, जेन तोर हाथ के बनाय राखी मा हावय ओ चाइनीज राखी मा कहाँ। मोर मयारुक बहनी मोला बतावत बड़ दुःख लागत हावय, कोरोना काल के चलते आसो के तीजा पोरा मा तोला लिहे बर नई आवत हावँव। येदे कालिच कोटवार हा गाँव मा हाँका पारे हावय गाँव गाँव मा कोरोना अपन पैर पसारत हावय आसो कोनो भी अपन बेटी बहनी ला तीजा पोरा मा लिहके झन लाहू अउ लाहू त 14 दिन तक कोरनटाइन रइही अउ उचित कार्यवाही करे जाही। तेकर सेती लेहे बर नई आवत हवँव, मोर रद्दा झन देखबे अउ मन ला हरदास झन करबे भाई हा मोला छोड़दिस कहिके, तोर भाई सदा तोर साथ हावय। आसो के तीजा तुँहर बिना सुन्ना लगही भांची भांचा सबो झन आवव त घर भरे भरे लगय अउ तीजा पोरा के खुशी हा दुगुना हो जावय।
                  मोर काम धाम बने चलत हावय फेर कोरोना काल के चलते डर तको बने रहिथें। ऑफिस मा नानम प्रकार के लोग आवत जावत रहिथें ता। तुंहरो काम धाम बढ़िया चलत होही भांची भांचा ला येति ओती घूमे ला झन दे कर कोरोना गाँव गाँव मा पैर पसारत हावय। मँय अपन कलम ला विराम देवत हव अपन अउ अपन परिवार के बढ़िया ख्याल रखबे बहनी। पाती मिले के बाद तहुँ पाती  मा सोर संदेश भेज देबे। 

पाती पठोइया
तोर बड़का भाई
हेमलाल साहू

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: अब्राहम लिंकन का पत्र प्रिंसिपल के नाम

छत्तीसगढ़ी अनुवाद :- जगदीश "हीरा" साहू

अब्राहम लिंकन ह ये चिट्ठी ल अपन बेटा के स्कूल प्रिंसिपल बर लिखे रहिस। लिंकन ह एमा वो जम्मो बात ला लिखे रहिस जेन वो अपन बेटा ला सिखाना चाहत रहिस। ये बात सिरिफ कोनो एक पढ़इया लइका बर ही खास काबर होवय, जम्मो झन बर काबर नहीं।
आदरणीय गुरुजी
मैं जानत हँव कि ये दुनिया मा जम्मो मनखे अच्छा अउ सच्चा नइ हे। ये बात मोर बेटा घलो ला सीखे बर पड़ही। फेर मँय चाहत हँव कि आप वोला ये बतावव कि हर बुरा आदमी के पास घलो अच्छा हिरदय होथे। हर स्वारथी नेता के भीतरी मा घलो अच्छा मुखिया बने के क्षमता होथे। मँय चाहत हँव कि आप वोला सिखावव कि हर दुसमन के भीतरी म घलो एक सँगवारी बने के संभावना घलो होथे। ये सब बात सीखे मा वोला समय लगही, मँय जानत हँव। फेर आप वोला सिखाहू कि मेहनत ले कमाये एक रुपया घलो, सड़क मा मिले पाँच रुपया के नोट ले जादा कीमती होथे।
आप वोला  बताहव कि दूसर बर जलन के  भावना अपन मन मा मत लावय। संगे संग इहू ला घलो कि खलखला के हाँसे के बेरा घलो  शालीनता बरतना कतका जरूरी हे। मोला उम्मीद हे कि आप वोला बता पाहू कि दूसर मन ला  धमकाना अउ  डरहुआना कोनो अच्‍छा बात नोहय। अइसन काम करे ले वोला दूरिहा रइना चाही।
आपमन वोला किताब पढ़े बर कइहुच, फेर संगे संग वोला अकास मा उड़त चिरई मन ला, घाम मा हरियर-हरियर मइदान मा खिले-फूल के उप्पर मँडरावत तितली मन ला निहारे के सुरता घलो देवावत रइहू। मँय समझथंव कि ये बात ओकर बर जादा काम के हे।
मैं मानथंव कि स्कूल के दिन मा ही ओला ये बात घलो सिखाये बर पड़ही कि नकल मारके पास होय ले  फैल होना जादा अच्छा हे। कोनो बात मा भले दूसर ओला गलत कहँय, फेर अपन सच बात मा अडिग रहे के गुन ओमा होना चाही। दयालु मनखे मन संग नम्रता ले पेश आना अउ  बुरा मनखे मन संग सख्ती ले पेश आना चाही। दूसर मन के जम्मो बात सुने के बाद ओमा ले काम के चीज ला चुनना ओला इही बेरा मा सीखे बर पड़ही।
आप ओला ये बताय बर मत भूलाहू कि उदासी ला कइसनो करके खुशी मा बदले जा सकथे। अउ ओला इहू बताहू कि जब कभू रोये के मन करही त रोये मा शरम बिलकुल झन करही। मोर मानना हे कि ओला खुद के ऊपर भरोसा होना चाही अउ दूसर उपर घलो। तभे तो ओहा एक अच्छा इंसान बन पाही।
ये बात अबड़ अकन हे अउ लंबा घलो। फेर आपमन एमा के जतेक ला ओला बता सकथव ओतके ओकर बर अच्छा होही। फेर अभी मोर बेटा बहुत छोटे हे अउ अबड़ मयारुक घलो।
                        आपके अपनेच
                        अब्राहम लिंकन
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 स्वास्थ्य मंत्री के नाव  एक पाती 
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सेवा में, 
           आदरणीय स्वास्थ्य मंत्री जी, 
           छत्तीसगढ़ शासन।
विषय-कोरोना ले संबंधित वायरल खबर के पड़ताल करे बर 
      महोदय, 
               पाछू कई रोज ले सोशल मीडिया मा एक दू ठन वीडियो वायरल  होवत हे कि छत्तीसगढ़ के एकलौता एम्स अस्पताल  रायपुर मा कतको मरीज मन भगवान भरोसा परे हें, डाॅक्टर मन लहुट के नइ देखत हें। उहाँ आम मरीज के कुछू पूछाड़ी नइये। 
       दूसर कुछ अइसे मैसेज वायरल होवत हे ,जेमा स्वास्थ्य विभाग अउ प्रशासन ऊपर ए आरोप लगत हे कि थोरकुन खाँसी-खोखी, जर-बुखार मा घलो कोरोना मरीज बता के अस्पताल मा ठूंसे जात हे,ताकि केन्द्र सरकार  दुवारा मरीज पाछू आबंटित लाखों रूपिया के बंदरबाट हो सकय। 
          अइसन वायरल वीडियो, आडियो अउ मैसेज मन ले आम जनता के बिश्वास शासन-प्रशासन ऊपर ले डोल जथे। अउ कोरोना के जउँहर बिपदा मा हलाकान जनसमाज के फिकर अउ निराशा घलो बाढ़ जथे। 
       एकर सेती आप मन करा करजोर अरजी हे कि अइसन वायरल खबर या घटना के सच्चाई ला टमर के अउ बने पड़ताल करके जिहाँ खामी दिखय उहाँ  सुधार बर जरूरी कदम उठाहू ।सँगे-संग हमर राज मा कोरोना के कतका असर पड़े हे अउ इलाज के वस्तुस्थिति के सोला आना सिरतोन जानकारी जनता के आघू कोनो भी माध्यम ले सरलग रखत जाहू ,ताकि शासन-प्रशासन के कार्य पद्धति ला आम नागरिक ठीक ढंग ले समझ के कोरोना संग लड़ई मा पूरा बिश्वास के साथ अपन सहयोग प्रदान कर सकँय।
          सादर धन्यवाद  
                                      निवेदक
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                        जम्मो छत्तीसगढ़िया
दीपक निषाद-बनसाँकरा (सिमगा)
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 खैरझिटिया: --------मया के पाती----------

             ठउर- बाल्को, कोरबा
            दिनाँक- 07/08/2020

*मोर मया ल छोड़, कखरो मया मा झन अरझबे।*
*खून ले लिखत हँव पाती,सियाही झन समझबे।*

मोर मयारु,
               ----------,
               मया का होथे? गउकिन नइ जानव। फेर तोला देखे बिना न नींद आय न चैन, तोर सुरता अन्तस् मा अउ तोर मुखड़ा आँखी म समाये रथे। जेती देखथों तेती तिहीं दिखथस। तैं देखे होबे मैं बइहा बरन तोर आघू पीछू किंजरत रहिथों, कोन जनी मोला का होगे हे, का सिरतोन म मया होगे हे? हाँ, मोला तो लगथे हो गेहे, फेर तोर हामी बिना का मया?  मैं ये पाती नइ लिखतेंव, फेर का करँव? तोला देखथंव त मुँह ले बोली भाँखा चिटिको नइ फुटे। मोर हाथ गोड़ म कपकपी अउ जिया म डर हमा जथे। मोर जिया म तोर बर मया तो बनेच दिन ले हिलोर मारत हे, फेर वो मया के लहरा भँवरी कस घूम घूम के उही मेर सिरा जावत रिहिस, आज तक किनारा नइ पा सकिस। तेखर सेती मैं अपन मन के बात  बताये बर तोला ये मया पाती पठोवत हँव। तोला अपन संगी संगवारी संग हाँसत मुस्कात देख मोला अब्बड़ खुशी होथे। मोर मन मया के अगास म पंछी बरोबर उड़त सोंचथे कि उही मंदरस कस बानी कहूँ मोर बर छलकही तब का होही, कोन जनी कतेक खुशी मन मे समाही। तोर मया बिन मोर जिनगी अमावस कस कारी रात हे, जेमा चमचम चमकत पुन्नी के चन्दा बन उजियारा फैलादे। ये पाती लिखे के बाद, मैं अब तोर आघू पीछू घलो नइ हो सकँव। कोन जनी  अब तैं का सोंचबे?  मोर मन म तो तैं बसे हस, तोर मन म का हे? जवाब के अगोरा रही,
                     " तोर  मयारू"
                       खैरझिटिया
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