Friday 7 August 2020

छत्तीसगढ़ी भाँखा म किसम किसम के चिट्ठी पत्री

छत्तीसगढ़ी भाँखा म किसम किसम के चिट्ठी पत्री


 सरला शर्मा: श्री राम 
                                                                               दुर्ग
                                                       5 . 8 . 2020 
     ननकी कका , 
          पांव परत हौं , 
सब कुशल मंगल हे फेर  उम्मर बाढ़े  के संगे संग मनसे अपन आप ल स्थापित करे के नाना बिध  उदिम करे धर लेथे का ? देख न ...आम आदमी के जिनगी मं छोटे मोटे हार - जीत, सुख - दुख के घटना तो घटते रहिथे उही ल अनमोल समझ के लिखे धर लेथे मनसे ...अरे भाई ! बड़े बड़े साहित्यकार मन आत्म कथा , संस्मरण , डायरी लिखथें  जेकर से नवा पीढ़ी ल जिनगी के ऊंच - नीच , नफा - नकसान समझे के ज्ञान मिलथे । फेर संसो ये बात के होंगे हे के आजकल संस्मरण मं गरम पानी मं नहायें के ठंडा मं , आलू बरी के साग मं दू ठन हरियर मिर्चा पीस के डारेंव के लाल भुरका मिर्चा ....नहीँ त ...बंगला पान खायें के , कपूरी के , के सांची फेर कत्था वाला के चूना वाला ...? मर गयें रे ...ये सब लिख के कोन देश - राज , समाज -  साहित्य के कल्याण होही ? पहिली तो डायरी अउ संस्मरण , जीवनी अउ आत्मकथा के अंतर ल समझे बर परही न ? रहिस डायरी त धोबी के कपड़ा के हिसाब ,  बनिया दुकान के ख़र्चा पाती लिखना हर डायरी नोहय ....कोनो दिन अइसन बात होइस कोनो अइसन घटना घटिस जेला सदा दिन सुरता राखे बर लिख लेथन या जेला पढ़के मनसे ल सीख मिलही तेला डायरी कहिथें न ? 
     कोनो बड़े आदमी के जीवन के बारे मं  हमर कलम चलथे तेला जीवनी कहिथन फेर अपन बारे मं जब हम लिखथन त ओला आत्म कथा कहिथन । ठीक कहत हंव न कका ? 
        फेर कका आजकल न कलम धरे सीखत देरी हे के लोगन उत्ता धुर्रा लिखे बर सुरु कर देथें ..चल ओहू ल जान देइन  ,मरन तो तब हो जाथे जब इन स्वयम्भू , स्वनामधन्य लेखक मन के लिखे के समीक्षा लिखे बर परथे काबर के तब तो हमला चारण , भाट बने बर पर जाथे ...शनि, राहु , केतु के दशा अउ का ? एकरो ले मरन होथे जब मारक दसा चलथे  उही जौन  तै समझाये तो रहे न कका के राहू ,  शनि कोनो के महादशा नहीं निदान छठवां घर (  भाव  रोग शत्रु के )   मं बइठ के बारहवां घर (  व्यय , ख़र्चा ) ल देखही तब हमर कोनो हितवा  संगवारी अपन पाण्डुलिपि च ल धरा देथे ....अब लग जावव मात्रा , शब्द , वाक्य सुधारे बर जादा कुछु नई होवय डॉक्टर तीर जाके चश्मा के नम्बर बढ़वाए पर जाही । महामृत्युंजय मंत्र के 

सवा लाख जप घलो हमर जीव नई बंचाये सकही। 
   कका ! तहीं तो कहिथस न जन्मकुण्डली मं तन स्थान (  घर , भाव ) ले मोक्ष स्थान तक बारहे ठन तो घर होथे त बपुरा ग्रह मन कहां जाहीं  ?नवो झन ओतके मं किंदरत रहिथे । तैं अइसन हितवा मन ल चीन्हे सीख जा .... अपन करनी अपन पार उतरनी होथे  । 
      कका ! एदारी के चिट्ठी मं समीक्षा कइसे लिखना चाही तेला बताबे भाई । 
                          तोर भतीजिन 
                              बड़े नोनी

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 शकुंतला शर्मा: "रामनाम वरानने"
अत्र कुशलं तत्रास्तु।
प्रिय राम,
 "छत्तीसगढ़ लोकाक्षर" के साहित्यकार, हम सबो झन, साहित्य सृजन मा भरदराय हन, फेर तुँहर मन बर बने शुभ समाचार हावै।  
कई बरिस ले भटकत तुँहर मन के परिवार बर, जम्बूद्वीप भरतखण्ड के अवध नगरी मा, सरयू नदी के तीर मा, तुँहर जूना महल के तीरेच मा, आज  तुहँर घर के नेह डारत हन। हनुमानजी ले पूछ पूछ के बनावत हन। राम घर मा सब ला सुख संवाद सुना देबे।आउ सब बने बने हे... तोर घर बन जाही तव मैं खचित आहवँ। 
    तोर मयारुक बहिनी ...
शकुन्तला शर्मा...
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*ऑनलाइन चिट्ठी*

                           ॐ
                                      स्थान - दुरुग
                                      दिनांक - 05.04.2020
मयारुक संगी (छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर)
जय जोहार !

दू तीन दिन पहिली सुधीर भाई ह कहे रहिस कि छत्तीसगढ़ी लोकक्षर मा एकोदिन "चिट्ठी-पतरी" के विषय होना चाही त आज उँकरे सुझाए विषय रखे हँव। सबले पहिली हमर सरला दीदी के चिट्ठी पढ़े बर मिलिस, जेला उन मन अपन कका के नाम मा पठोये हें। पढ़ मँय सोच मा पर गेंव कि ये चिट्ठी आय के व्यंग्य आय। नवा त नवा जुन्ना अउ वरिष्ठ लिखइया के कान ला धर के अइसन उरमेट दिन हे कि न बोलत बनत हे, न बतावत बनत हे। कतको झन के कान गजब दिन तक सनसनावत रही। सरला दीदी के चिट्ठी पढ़े के बाद लिखे बर अउ का बाँच गे ? तभो लिखे के चुलुक लगिस हे त लिखत हँव। कोरोना के मास्क के संगेसंग अपन कान के सुरक्षा बर कटकटा के कंटोपा ला बाँध ले हँव।

जब बोली भाषा नइ बने रिहिस तउन जुग मा अपन मन के बात बताए खातिर इशाराबाजी चलत रहिस। बोली भाषा बनिस त मन के बात कहे मा सरल होगे फेर कोनो दूसर मनखे झन सुने सोचके कान मा फुसफुसाए के चलन चालू होइस। जब भाषा के लिपि बनगे तब झाड़ के पत्ता अउ छिलका मा चिट्ठी लिखना चालू होगे। कपड़ा के चलन आइस तब कपड़ा मा संदेसा लिखके मन के बात के आदान प्रदान होइस। तइहा के जमाना मा राजा के चिट्ठी लेगे के काम दूत मन करत रहिन। कबूतर अउ बाज ला ट्रेनिंग देके अपन गोपनीय चिट्ठी भेजे के घलो इतिहास मा पढ़े सुने बर मिलथे। कालिदास जइसन कवि मन बादर ला संदेशवाहक बनाके महाकाव्य तको लिख डारिन। मनखे हर अउ विकास करिस तब पोस्ट-आफिस अउ पोस्ट-मेन के माध्यम ले चिट्ठी के आदान-प्रदान चालू होइस। पोस्टकार्ड, अन्तर्देशी अउ लिफाफा मा संदेसा पठोये के सुविधा मिलना चालू होगे। रात रात भर जाग जाग के चिट्ठी लिखना, लिखके पोस्ट आफिस के लाल डब्बा मा डारना, चिट्ठी के जवाब पाए बर पोस्टमेन के अगोरा….एक सुग्घर जमाना रहिस। मया करइया मन के चाँदी होगे रिहिस। आँसू टपका टपका के चिट्ठी लिखई, आँसू नइ ढरिस त पानी छींच के भेजत रहिन ताकि पढ़इया ला भोरहा होवय कि मोर मयारुक ह रोवत रोवत चिट्ठी लिखिस हे। इम्प्रेस करे बर डिजाइन  लेटर पेड़ के पन्ना, लिखे के बाद पन्ना मा अत्तर के छींटा, लिफाफा मा बंद करे के बाद चिपके वाले जघा ऊपर कटमट, कटमट के चिनहा पारना ताकि कोनो दूसर मन झन खोल पावैं। 

जब ले इंटरनेट के जमाना आगे, हाथ हाथ मा मोबाइल आगे चिट्ठी-पतरी के चलन खतम होगे। मैसेंजर अउ वाट्सएप मा चैटिंग मा सब काम बन जाथे। भाषा के शॉर्टकट आगे। धन्यवाद हर Thank You, फेर Thanks फेर Txn बनगे। यहू नइ लिखना हे त इमोजी मा घलो काम चल जाथे। ये फायदा जरूर होइस कि अब सन्देसा के आदान प्रदान तुरत फुरत हो जाथे। पहिली एके मनखे के नाम मा चिट्ठी लिखे के सुविधा रहिस। अब सोशल मीडिया मा एके संग कई झन ला संबोधित करके एक्के चिट्ठी मा अपन बात पहुँचाये जा सकथे। मोर ये चिट्ठी, एखरे उदाहरण आय। 

सुधीर भाई आज लव लेटर पढ़े के घलो शउँक करे हें। प्रभु राम उँकर इच्छा ला पूरा करैं। देखव साँझ-रात तक उँकर बर ककरो मया-पाती आ जाए। ऑनलाइन चिट्ठी मा संदेशा के आदान प्रदान तो हो जाही फेर आँसू अउ अत्तर-फुलेल के भरपाई नइ हो पाही। जम्मो सियान मन ला पैलगी अउ नान्हें मन ला मया-दुलार।

आप मन के - 

*अरुण कुमार निगम*
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 रामकली कारे: बालको नगर कोरबा
                    5/8/2020
              
गुरुदेव
सादर प्रणाम 

            
      नमन बंदन अभिनंदन
आप मन के चिट्ठी ला पढ़ के गुरु देव, मोला 30, 35  साल पाछू के सुरता आगे। जब हमन नानकुन रहेन। वो दिन हा ऑखी के आघू मा चलचित्र असन चारों कती झूले लागिस। बचपन के सुरता स्कूल मा पढ़त समय के सुरता फेर लहुॅट के आगे संगी सहेली अउ गाॅव घर मा बबा डो़करी दाई बर चिट्ठी,ममा दाई ममा बर चिट्ठी, बड़ मया करके लिखे रहन, अउ कहुॅ के चिट्ठी आय ता बिन पढ़े चैन नइ मिलय। अंतर्देशी पोस्ट कार्ड हा अब घर घर ले नॅदागे।चिट्ठी आय ता अइसन लागय के साक्षात् मनखे हा हमर घर आ गये हे। मुहल्ला भर मा पता चल जाय की आज काखर घर मा दुख सुख के चिट्ठी आय हे।आपमन के चिट्ठी ला पढ़ के मॅय अपन आप ला चिट्ठी लिखे ले रोक नइ सके। चिट्ठी पत्री के शुरुवाती दौर ले लेके आज तक के वर्तमान परिदृश्य ला एक ठन चिट्ठी मा बहुत सुग्घर ढंग ले संजो लेहे हव गुरुदेव जी। 
आपमन के शिष्या
छ: के छंद परिवार के          
छंद साधक रामकली कारे
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*एक पाती, छ.ग. राजभाषा आयोग रायपुर के नाम मा।*
सेवा मा,
            श्रीमान् अध्यक्ष महोदय जी
            छ.ग. राजभाषा आयोग रायपुर
बिषय - छत्तीसगढ़ी गज़ल संग्रह *मयारू के गोठ* ला प्रकाशित करवाय खातिर आवेदन।

महोदय जी,
           हाथ जोरे अनुनय विनय करत हँव कि मँय हर, अपन गज़ल संग्रह *मयारू के गोठ* ला आद.गुरुदेव जी *श्री निगम जी* के निर्देशन मा लिखे हावँव। ये संग्रह मा 100 छत्तीसगढ़ी गज़ल संग्रह हावय अउ सबो गज़ल "बहर" (मात्रा) मा लिखाय हावय। ये सबो मोर मौलिक रचना हावय । ये संग्रह ला मँय *छ.ग.राजभाषा आयोग रायपुर* के सहयोग ले प्रकाशित करवाना चाहत हँव । 
            एखर सेती आप ले मोर अनुनय विनय हावय कि मोर छत्तीसगढ़ी गज़ल ला *छ.ग.राजभाषा आयोग रायपुर* के सहयोग ले छापे बर अपार किरपा करहू।

दिनाँक - 
05/08/2020
                       
                       
                          पाती लिखइया
            बोधन राम निषादराज"विनायक"
                         छंद साधक - सत्र-5
           सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)
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 श्री गणेशाय नम:
    
           स्थान : पठारीडीह
          दिनाँक: ...........
उद्घोषक सगँवारी
जय जोहार
         मँय आकाशवाणी रायपुर के नियमित श्रोता अँव। जुलाई १९९३ ले युवा सँगी मन के कार्यक्रम युववाणी सरलग सुनत आवत हौं,ए कार्यक्रम युवा सँगी मन बर घात सुघर कार्यक्रम हवै।जेमा उँखर मनोरंजन बर गीत संगीत के सँगेसंग कैरियर निर्माण अउ प्रतियोगिता परीक्षा के तियारी के कतको कार्यक्रम रोजे दिन संझा ५:०५ ले ६:०५बजे तक चलथे।इहाँ युवा सँगी मन के प्रतिभा प्रदर्शन बर घलुक सुरीली साँझ (सँगीत), सर्जना(कविता-कहिनी पाठ), दृष्टिकोण(कोनो भी विषय ऊपर मौलिक विचार), प्रश्नोत्तरी, प्रश्नमंच, आज मेरी बारी है, जइसन कतको कार्यक्रम सुने बर मिलथे। प्रतियोगी परीक्षा म सफल युवा सँगी मन ले साक्षात्कार भी सुने मिलथे, जौन सबो ल कुछ कर दिखाय के हौसला देथे।प्रेरणा देथे।
      अब जब छत्तीसगढ़ नवा राज बन गे हे। त युवा सँगी मन बर भी युववाणी ल छत्तीसगढ़ी म प्रसारित करे जाय।जइसन आकाशवाणी ले लोकरंजनी, चौपाल, आप मन के गीत जइसे छत्तीसगढ़ी के कार्यक्रम चलथे। एकर ले छत्तीसगढ़ जौन देश भर म अपन सँस्कृति ले अलग पहचान बनाय हे, जेकर दम नवा राज बने हे, ओ अपन भाखा बोली म अपन सँस्कृति ल बगरा सकै।छत्तीसगढ़ी बोले बर इहाँ के युवा सँगी शरमावय झन। आजो रेडियो ह गाँव-गँवई म अभी सबके सबले ले जादा मनोरंजन के साधन हे। रेडियो ह आज घला हमर सँस्कृति ल सहेजे सरलग नवा नवा प्रोग्राम देत हे।कहूँ युवा सँगी मन बर छत्तीसगढ़ी म कार्यक्रम बन जही त एकर छत्तीसगढ़ी भाषा अउ सँस्कृति के संरक्षण घला होही अउ छत्तीसगढ़ी ल कोनो जगा बोले म नइ हिचकिचाही।
      छत्तीसगढ़ी बोले म सरल हवै लिखे अउ पढ़े म कठिन महसूस होथे काबर कि ओखर अभ्यास नइ हे। अइसन म *पत्र मिला* जइसन एक ठन अउ प्रोग्राम *चिठ्ठी मिलिस* या *आप मन के चिठ्ठी* शुरु करे के माँग करत हँव, जेखर ले छत्तीसगढ़ी ल सजोर होही।

पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह (पलारी)
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अजय अमृतांसु: हे वरुण देवता,
         तोला दण्डासरन पैलगी।

तैं काबर रिसा गे हस महराज..? तैं जानत हस तोर दया के बिगर मोरे का पूरा दुनिया मा ककरो गुजारा नइ हो सकय। तैं देखत हस खेती खार जम्मो सुखावत हे। तोला बरसे पन्द्रही ले ऊपर होगे हे। खेत मन दर्रा हानत हे । चिरई चिरगुन मन के टोटा सुखावत हे। नरवा, नहर तो ठाड़ सूखागे हे।

तोर पूजा पाठ ,मान मनौती मा कोनो कमी होगे होही त बता.? तैं बरसथस त अतका बरसथस कि नदिया,नरवा मा बाढ़ आ जथे। तरिया ढोड़गी घलो छलकत रहिथे। खेत के खड़े फसल तक नइ बाँचय। मनखे संग मवेशी मन घलो बोहा जथे। हफ्ता-हफ्ता दिन के झड़ी मा किसान मन धान-पान तको ल नइ बों पावयँ । अउ नइ बरसस त अइसे आँखी कान ल मूँद लेथस कि "चिरैया दुकाल" पर जाथे। खेती खार ल छोड़ पीये तक बर पानी नइ मिलय। तोर गुस्सा के कहर ला सबले जादा किसाने मन तो झेलथे । हमर मन के दुःख पीरा ल समझ भगवान।

तैं अतका झन रिसा मोर बाप..। अइसन झन तरसा ददा..। सबो झन तोरे डहर बोट-बोट निहारत हवय। सबके "आँखी पथरा गेहे" । थोरिक दया कर भगवान। तोला मनाये खातिर यज्ञ हवन के तियारी घलो चलत हे । 21 गाँव ले 21 किलो शुध्द देशी घी मँगवाय हवन। तै तो जानत हस कलजुग म देशी घी सूँघे बर नइ मिलय, तभो ले तोला मनाय खातिर कइसनो करके जुगाड़ करे हवन। अब तो बिसवास कर मोर बाप.. तोर मान मनौती मा कोनो कमी नइ होवय । अब तो बरस जा..। 

पाछू साल नइ बरसेस,अकाल परगे। लाखो किसान करजा मा बूड़गे । हजारों झन कमाय खाय दूसर राज चल दिन। कतको किसान फाँसी लगा लिन। मही करमछड़हा रहेंव,फाँसी के डोरी टूटगे अउ बाँच गेंव। बाँच तो गेंव फेर अइसन मा जी के घलो का करहूँ । अपन डउकी-लइका, माल मत्ता ल अपन आघू म मरत नइ देख सँकव। करजा-बोड़ी करके फेर खेती करत हँव। साहूकार  मन पाछू पाछू घुमत हे। मैं का करँव तँही बता...?
मोर बर "दूबर ल दू असाढ़" सरिक होगे हवय।  तोर अगोरा हे भगवान थोरिक दया कर। संसार म तोर सबले बड़े भगत किसान आय तहूँ जानत हस अउ "कहूँ किसान मर जही त मनखे के पेट कोन भरही..? अपन पेट काट के दूसर के पेट भरइया हमर दुर्दशा मा थोरिक तो दया कर भगवान। 
                अब जादा का लिखँव,तुमन खुदे जानकार हव,समझदार हव।  

                      तुँहर भगत
                        तिहारु
अजय अमृतांशु, भाटापारा
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             : नाती के पाती

                                     ठउर-बाल्को,कोरबा
                                     तारिख-05/08/2020

*यहाँ कुशल सब भाँति भलाई*
   *वहाँ कुशल राखे रघुराई*
बबा,
       पायलागी गो।
       आप ल ये बतावत अबड़ उछाह होवत हे, कि तीजा पोरा लट्ठावत हे, घर मा झाँपी झाँपी ठेठरी, खुरमी कलेवा बनही। यहू दरी मैं तुम्हर  बर मँझोलन मोटरा म ठेठरी अउ खुरमी ल कूट के गठिया देहूं, ताहन पहली कस बनेच दिन ले फँकियात रहू। गँइंज दिन होगे बबा, तोला देखे नइ हँव, अउ सपना म घलो दरस नइ देखावस। फेर सपना म आहू घलो कइसे? ये नवा जमाना के चकाचौंध म मिही तोर सुरता नइ करँव। हाथ म मोबाइल, घर म टीवी, भरर भरर भागत मोटर- गाड़ी -कार अउ ज्ञान- विज्ञान के नवा चोचला तोला छेंक देथे। अउ बबा आजो घलो यदि लोकाक्षर म चिठ्ठी पाती विषय नइ होतिस त तुमन ल मैं सुरता नइ करतेंव। अउ अब सुरता म चढ़ गे हव तब तुम्हर संग बिताये बेरा रहिरहि के उबाल मारत हे। *तोर पिठँइयाँ के पार, आज के ये अगास अमरत झूला ह घलो नइ पा सके।* तोर बनाये ढँकेल गाड़ी जेमा मैं रेंगे बर सीखेंव, आजो नजरे नजर म झूलत हे। तोर खाँसर गाड़ा के मजा महँगा मोटर कार घलो नइ दे सके। *गोरसी के आँवर भाँवर संगी संगवारी मन संग आगी तापत सुने तोर कहानी कन्थली आजो रटृम रट्टा याद हे। तोर संग घूमे बाजार हाट अउ गांव गँवतरी के सुरता भुलाये नइ भुले। आज मोर हाथ के महँगा मोबाइल भले लाख ज्ञान बाँटे फेर तोर बताये गुण गियान के गोठ के पार नइ पा सके।*
सिरतोन म बबा, वो बेरा के तोर मया के आघू, आज के सरी दुनिया भर के सैर सपाटा अउ सुख सुविधा फिक्का हे। जब तैं डोरी ल लामी लामा लमाके ढेरा आँटस, त पारा भरके लइका बड़ मजा करत चिल्लावत भागन। तोर कोकवानी लउठी के डर घलो रहय, फेर आज न तो दाई ददा के डर हे न कोनो आन के। सुतत उठत जागत बइठत, मिले तोर पबरित मया दुलार आजो अन्तस् म हिलोर मारत हे।
                बने हे बबा, तैं ये धरती ल छोड़ दे हस  काबर कि आजकल के लइका मन तो सियान मनके तीर म ओधत घलो नइ हे। आज उन ला न लइका लोग पुछे, न नाती नतुरा। बपुरा मन जुन्ना जमाना के कोनो छेल्ला जिनावर बरोबर घर के एक कोंटा म फेंकाय, खटिया म पँचत हे। सियान बर आज, न मान गउन हे, न उंखर सेवा सत्कार। सब नवा जमाना के रंग म रंग के अपनेच म मगन अउ मस्त हे, चाहे लइका लोग होय चाहे कोनो बड़का। तैं तो हमला गीत गा गाके, पुचकार पुचकार खेला के बड़े करेस, फेर आज के दुधमुहा लइका मन ल घलो दाई ददा मन सियान कर नइ छोड़त हे। उंखर देखरेख बर नौकरानी संग  स्कूल खुलगे हे। आज सियान मनके न घर में, न घर के बाहर गाँव गुड़ी म पहली कस कोनो पुछारी हे। फेर बबा ये गूगल कतको ज्ञान बाँट लय, मोबाइल ,टीवी कतको मनखे के मन मोह डरय, तोर सिखाये पढ़ाये खेलाये कस लइका नइ बना सकय। आज जुन्ना जमाना के जम्मो जिनिस ल मनखे खोधर खोधर के खोजत हे, फेर जीयत जुन्ना मनखे उपर धियान नइ देवत हे। तहूँ देखत होबे बबा, त आँखी डबडबा जात होही। *जीयत मा, न मया हे, न नाम। अउ मरे के बाद उही भगवान राम।*  आज के जमाना म *"बबा मरे चाहे बँचे सब,,,,,,,,,,, बरा खावत हे।"*
            अउ पायलागी गो
                                        चिट्ठी पठोइया

                                 तोर बड़का नाती- खैरझिटिया
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*पाती मुख्यमंत्री के नाम*
प्रति,
       माननीय मुख्य मंत्री जी
         छत्तीसगढ़ शासन
विषय:- छत्तीसगढ़ के गौरव अउ पुरखा मन के संबंध मा ।

महोदय,
     आप मन जानते हावव , पूरा जग भर म हमर भारत भुइँया ला महतारी कहे जाथे, ठीक वइसने ही सौभाग्य से हमर राज छत्तीसगढ़ ल भी महतारी के मान हमर पुरखा मन दे हावय।
   कोई भी राज के मान म बढ़ोत्तरी ओकर पौराणिक,ऐतिहासिक ,सांस्कृतिकविरासत के अधार मा होथय। छत्तीसगढ़ वैदिक काल से ही फलत-फुलत हवय, ओकर नार-बिंयार ऐतिहासिक काल से लेके आज तक फइलतेच हावे। राजा भानुमंत, के बेटी कौशिल्या, के बेटा श्री राम ...ओकर वनवास , माता सीता के रख-रखाव...लव-कुश के जनम भूमि, विद्या भूमि , श्रृंगी ,अत्रि , लोमस , माता शबरी  के तप भुंइया ,  राजा मोरत ध्वज के कथा , कमल क्षेत्र पद्मावती पूरी , पंचकोशी धाम ,  आज भी वेद-पुराण म एकर महिमा बखानत हावे।
  ऐतिहासिक काल म सिरपुर , रतनपुर , के वैभवशाली राज ,कालिदास जी के मेघदूत , कबरा पहाड़ के नाट्यशाला , सुतनुका दासी , महाप्रभु वल्लभाचार्य , महायान शाखा के प्रवर्तक अउ रस शास्त्र ला उपजइया नागार्जुन , राजा इन्द्रभूत इत्यादि के नाम अजर-अमर हे।
   बाबा घांसीदास , माता राजिम , धनी धर्मदास मन के जनम अउ करम भूमि आय।
 हमर पुरखा मन ये सब ला जानत रिहिन अउ ओकरे सेती , एक स्वतंत्र राज के सपना ल संजोय रिहिन । ताकि इँहा के मान-सम्मान अउ महिमा ल जग जाने , देखे-सुने , अउ ओकर लिए ओमन अपन लहू अँउटाइन , पछीना बोहाइन , धरना दिन , जेल गिन , कलम चलाइन , आंदोलन करिन , तब कहूँ जाके उँकर नवा सुरुज , नवा राज के उविस। फेर आज भी उँकर सपना ह अधूरा हवय उँकर मनसा रिहिस की छत्तीसगढ़ जौन धान के कटोरा हे ओहर संस्कृति के फुलवारी घलो कहाय ये सपना रिहिस। आज नवा राज बने 20 बछर होगे सिरमिट के जंगल बनगे , उद्योग खुलगे , बिजली , पानी अउ अन्य जिनिस मन के विकास होगिस किन्तु फिर भी छत्तीसगढ़ के आत्मा दुखी हे , इँहा के लोक , कला , संस्कृति , परंपरा जो इँहा के आत्मा आय ओहर अइलावत हे । ओकर सोर लेने वाला मन , ओला पोठ करईया मन घलो माटी म समागिन , फेर जौन मान माटी ल मिलना रिहिस जो उँकर असली सपना रिहिस ओहर आज भी अधूरा हे।
  हमर छत्तीसगढ़ के ओ सियानन मन ल आज नवा पीढ़ी जानय नहीं , जौन मन अपन जिनगी ल राज निर्माण बर लगा दिन । एकर भाखा बोली अउ संस्कृति के बढ़वार बर उदिम करिन उन ल बिसरा दिए गिस। भाखा अउ संस्कृति के बढ़ोत्तरी बर मंत्रालय , आयोग जरूर बनिस फेर जौन काम होना रिहिस, जइसन ढंग ले होना रिहिस ओहर ओ हिसाब ले नइ हो सकिस। एमा कोनो ल दोषी नइ कहे जाथे , किन्तु हमर कहिना हे कि हमर पौराणिक, ऐतिहासिक अउ वर्तमान के गौरव मन के नाम ल अजर - अमर करे खातिर शासकीय , अर्धशासकीय , भवन , बाँध, इस्कूल , कालेज , अउ आने संस्थान मन के नाव पुरखा मन के नाव म रखे जाय। ओकर मन के जानकारी पाठ्यक्रम म लागू हो , उन मन के नाम से पुरस्कार मिलय , लोक-कला -साहित्य-संस्कृति बर जिनगी खपइया मन ल ऊँचहा सम्मान मिलय। अइसन उदिम के रद्दा जोहत हमर छत्तीसगढ़हिंन दाइ बइठे हावय। कब ओकर रतन बेटा मन ओकर गौरवशाली इतिहास ल जग भर म फैलाही अउ महतारी के दुलरुवा मन ल उचित सम्मान देवाही।
   महोदय आशा हवय आप मन हमर भावना ल समझत ये विषय म आरो लेके अइसन उदिम करिहौ की ऊपर लिखाय माँग के पूर्ति पूरा होही।

                 आपके 
          छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर परिवार
धनराज साहू
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 ज्ञानु-एक चिट्ठी मुख्यमंत्री के नाम
सेवा म,
           मुख्यमंत्री साहेब
          छत्तीसगढ़ शासन।
विषय-  दारू ल बंद करे खातिर अरजी।
साहेब, 
            आपले हाथ जोड़के अरजी हावय अब पिये बर एकोकनी मन नइ होवय। कतको टेंसन होथे तभो ले बिन पिये सुग्घर नींद आ जथे। संगी मन रोज संझा पूछय कुछु जुगाड़ हे का अब उहू मन नइ पूछय। घर म पहिली रोज महाभारत होवय अब तो बस हँसी ठिठोली होथे। लोग - लइका, बाई, दाई- ददा अउ पारा-परोस, गाँव-बस्ती वाले मन खुश हवय। काबर अब कोनो बड़बड़ावय नही, कोनो गली-खोर, नाली, रसता म गिरे- परे नइ रहय। बहिनी, बेटी- माई मन निडर होके रसता म चलत हे।हमर पुरखा मन जेन रामराज के कल्पना करें रिहिन लगत हे वो दिन आगे हवय।
          करोना के आय ले जेन लॉकडाउन करे हव। दारू दुकान बंद करे हव सिरतो म सोला आना सुग्घर उदिम होय हे। इही मौका हे  अपन जिगर ल बड़े करव अउ जेन दारू दुकान  बंद हे तेला बंद रहन दव। अतका दिन होगे कोनो मेर सुनई नइ आय हे कोनो पीके एक्सीडेंट म मरगे। मोर अरजी हे आय के अउ कुछु आने उपाय देखव, लोगन ल स्वालंबी बनावव। आपके उज्जवल भविष्य के कामना करत इही मेर अपन गोठ ल रोकत हँव।

                               आवेदक
                      अख्खड़ दरूवाहा
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 वीरेंद्र साहू: *भाई के पाती बहिनी के नाँव*

दुलउरिन बहिनी मइया, मया आशीष!

हमन इहाँ सबेझन बने-बने हावन, आशा हे के ससुरे मा तहुँमन बने-बने होहव। जब ले कोरोना वायरस के संकट ए दुनिया मा आय हे, तब ले दाई-बाबू मन तोर अउ बड़े भाई के नंगत संसो करथें। काबर के बड़े भाई हा अपन नउकरी के सेती रायपुर म छेंकागे हे, अउ तोला थोरकन गरमी जुड़ घलव नइ सहय। राखी के तिहार हा आवत हे, तोर सुरता घलो अब्बड़ आवत हे। फेर एसो के बिकराल संकट ला देखत मन मसोस के रहि जाना ठीक होही। ए कोरोना हा सुरसा के मुहूँ कस बाढ़त हे, दुनिया, देश, राज अउ शहर ले होवत अब गाँव मन ला घलो अपन पसरा बना ले हे, हमरो तीर के गांव मन मा सुनई आवत हे। तँय शुरू ले मयके आय बर उदाली मारथस फेर एसो दमाद ला राखी बाँधे ला आय बर लउहाबे, पदोबे झन। भइया हा खरचा के डर म मइके आय बर मना करत हे कहिके झन सोंचबे। 
ए कोरोना बीमारी हा बहुँते खतरनाक हवय। ए हा संक्रमित मनखे के संपर्क मा आय ले फैलथे, आवत जावत रद्दा म दुकानदार, फलवाला, होटल वाला अउ दूसर मनखे मन ले भेंट होही ए मन मा कोन हा संक्रमित हे एखरो पहिचान कर पाना बड़ कठिन हे काबर के पहिली एखर लक्षण सर्दी, खाँसी, बुखार के रूप मा दिखय फेर अब तो बिना लक्षण के घलो हो जावत हे। तब एखर बर सावधानी करना अउ ज्यादा जरूरी हे। ए हा सियनहा अउ छोटे लइका मन बर ज्यादा घातक हे, अउ तुँहरो घर तो तोर सास ससुर मन सियान होगे हें, अउ नान-नान लइका घलो हवय। अइसन मा नियम बारन करना तोरो जिम्मेदारी बनथे। एक बात अउ कहत रहेंव के डाक्टर मन बताथें के एखर ले बाँचे बर दू मनखे के बीच मा कम ले कम तीन हाथ के दुरिहा रहना चाही, चार झन के बीच मा आना-जाना होय ता नाक मुहुँ ला बने तोप ढाक के आना-जाना चाही, अनजान मनखे मन के छुए चीज ल छुए के बाद आँखी कान ल नइ छुना चाही, बीच-बीच साबुन ले हाथ धोना चाही, सेनेटाइजर घलव लगाना चाही, भेंट पायलगी ल घलो दुरिहा ले निभाना चाही, जतका हो सकय गरम पानी पीना चाही, बिटामिन वाले साग भाजी फल फूल खाना चाही। सिरतोंन मा बहिनी नियम बारन करे ले ही बचे जा सकथे। कोरोना हा तो एक न एक दिन ए दुनिया ला छोड़बे करही अउ जियत रहिबो ते मेल मुलाकात होबे करही; फेर ए घरी जानबूझके जान ला जोखिम मा डारना ठीक नइहे। राखी ला पोस्टआफिस के माध्यम ले भेंज देबे। भाँचा मन ला पायलगी अउ दमाद ल जोहार कहि देबे।
तोर बड़े भइया
विरेन्द्र कुमार साहू
ग्राम - बोड़राबाँधा(पाण्डुका) गरियाबंद

पवइया 
     सरस्वती (मइया)/ शैलेन्द्र साहू
    ग्राम - खैरझिटी (मधुबन) धमतरी
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 वासन्ती: *दाई बर पाती*
                                  21 मई, 1981

 *पुजनीया दाई महतारी,* 

     तोर गोड़ छू के पाँव परत ये चिट्ठी ला लिखत हौं। इहाँ ससुरार म कबीर साहेब के दया ले सबो झन बने-बने हावँय।बिनती करत हँव-उहाँ मइके म सबो बने-बने होहू। 
        दाई! मोला भुला गेहा का? बिहाव होके जबले मैं ससुरार आय हँव दाई, तोर अब्बड़ेच सुरता आवत रइथे। बिहाव के पहिली मैं तोला कभ्भू नई छोड़े रहेंव। *तोर कोरा म* *खेलत-खावत कब बड़े होगेंव अउ बिहाव होके ससुरार आ गेंव-गम नि पायेंव।आज चार दिन* *होगे-कोनो ला देखे बर,* *मोर सोर खबर लेहे बर तैं* *भेजे नई अस* ।नानकुन रहेंव तव तैं लोरी गीत सुनावस अउ मैं लोरी सुनत-सुनत सुत जावंव।अभी मोर आँखी म नींद नइए अउ मैं तोर सुरता म रोवत-रोवत एक ठिन गाना लिख डारे हँव। तोर सुरता म लिखे ए मोर रचित पहिली गीत ए दाई-एखरे बर चिट्ठी म ओखर कुछ लाइन ला तोला लिख भेजत हौं। तैं कोनो करा पढ़वा के सुन लेबे अउ ओला बोल-बोल के मोर बर एक ठिन चिट्ठी लिखवा के भेज देबे। *त मोर गीत ला सुन* *दाई*-

अंगठी धर के सीखेंव दाई, रेंगे बर एक-एक पाँव।
रंग-रंग के खाई खजाना,खायें खेलेंव तोर छाँव।

अपन मुँहू के कँवरा दाई, तैं बेटी ला खवाए।
गोरस पिया के दाई मोला,कोरा म अपन बढ़ोए।

राम राज के कथा सुनाए, रावण बनगे मोर बैरी।
सीता मैया के बिरथा सुनावत,तोर आँखी होगे भारी।

सुरता आवथे मोला दाई, पढ़े भेजेव इस्कूल पहिली।
कोरे चुंदी फेर गाँथे बेनी, टिकली- फुंदरी आनी-बानी।

नावा कुरता, नावा बस्ता,दिखंव मैं सहरी लड़की।
कूदत-फांदत, चौकड़ी मारत, बनगेंव मैं घर म हिरनी।

आरती करेंव मैं सरसती के,मन म दाई तैं करे गोहार।
बेटी पढ़-लिख बने सुरूज,बाँटे जग म मया उजियार।

दाई तैं मोर पहिली गुरु, सीखेंव मैं -दाई' बोले शुरू।
दाई होथे जनम महतारी,रक्षा करे बन दुर्गा अवतारी।

फेर सुरता आथे दाई,तोर मया-दुलार के गोठ ओ।
आँखी के आँसू मैं लुकाहूँ,कइसे अँचरा के ओट ओ।

दाई तोर अँचरा म,जिनगी के सबो सुख हावै ना।
दाई तोर परंव पइयाँ ओ,गिन-गिन सौ कोरी ना।

        दाई,कोनो ला मोला देखे बर भेज।तैं तो जानत हस मोर ससुरार हर बड़का परिवारआय। बिदा के बेरा तैं हर बोले रहे- मंझली नोनी तैं बड़े परिवार म जावत हस, मोर मान ला रखबे।ओही गोठ ला गठिया के धरे हँव। तोर दमाद के छुट्टी चार दिन म खतम हो जाही फेर ओ रायगढ़ चल दिहीं। मैं इहें ससुरार म सास-ससुर, ननद- भावज संग रहूँ। ए चिट्ठी ला करमन कोटवार के हाथ भेजत हौं।वापिसी जवाब-हालचाल के आरो देबे।   दाई अब चिट्ठी ला एही मेर रोकत हौं।बाबूजी, बबा अउ सबो बड़े मन के पाँव परत हौं अउ छोटे बहिनी ला मया दुलार के संग चुम्मा।

    *तोर मयारुक मंझली बेटी* 
        
               वसन्ती वर्मा
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: *एक ठन चिट्ठी माँ अउ बाबू जी के नाँव* 
बाबू जी सादर पायलगी , 
माँ ला घलव गोड छुके पायलगी , 

               हमन इहाँ रायपुर मा      दुनो झीन (आप मन के बहू अउ मैं ) कुशल मंगल ले बने बने हावन , आपो मन सबो झीन घर मा बने बने होहवँ इही आशा हे ।
आघू लिखना समाचार इही रहिस - की येदे अभी राखी के तिहार हा घलव निकल गे , हमन हा अभी राखी मा घर आबोन कहिके अब्बड़ कोशिश करे हावन , फेर अभी ये कोरोना वायरस के नाँव लेके नइ आ पाएँ हन , तिहार के दिन आप सबो झन ला अब्बड़ सुरता करत रहे हन , आप मन सबो झीन गाँव मा तिहार ला बने सुग्घर मनाय होहवँ , हँमु मन इहाँ अलवा जलवा जइसे तइसे तिहार ल मनाय हवन , काली समाचार मा सुनत रहे हँव की अभी ये कोरोना वायरस के सेती , गाँव मन म घलव हाँका परे हवय कहिके की आसो तीजा पोरा म कोनो भी अपन बेटी माई मन ला नइ लाना हे कहिके , अभी इहाँ हमर मन के बुता काम हर घलव बने चलत हावय , अउ ये कोरोना वायरस के बिमारी हर रोज के फइलतेच हावय , तेपाय के ये दरी आप मन के बहू किरण हर घलो तीजा पोरा माने बर अपन मइके नइ जाँववँ कहत रहिस हे , गाँव कोती के सोर संदेश ला चिट्ठी लिख के हमन ला अगउँहा बताहव , तेखर हिसाब ले बनही त हँमु मन हा तिहार माने बर घर आबोन , अउ नइ बनही त इँहे मनाबोन , ओती आना जाना चलत होही ता बड़े नोनी घर जाके नोनी ला तीजा पोरा माने बर लीह के लान लेहव , अउ घर मा सबो लोग लइका मन हर घलव सब बने बने होही , दादी जी ला घलव हमर मन के पायलगी कइ देहव , अब्बड़ दिन होंगे हे घर नइ आय हन ,  तेपाय के आप जम्मो झन के अब्बड़ सुरता आथे , झटकुन चिट्ठी लिखहव चिट्ठी के अगोरा रही , बड़े बाबू अउ बड़े माँ मन ला घलव हमर मन के पायलगी कइ हव , अउ लइका मन ला बहुत अकन मया दुलार । 

               आप मन के दुलरवा बेटा 
                 मोहन कुमार निषाद
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महेंद्र बघेल: ................   
   स्थान- डोंगरगांव
                          दिनांक-31/7/20
परम प्रिय मितान जी
        जै जोहार
 घर मा हमन सब बने बने हावन, आशा हे आपो मन कुशल मंगल होहू।
बड़ दिन के जोखत रेहेव चिट्ठी लिखहू कहिके फेर का करबे उसरत नइ रिहिस। पढ़त रेहेन तब के मेल जोल होय रहिस ,ओकर बाद न भेंट हो पाइस न गोठबात ।
  उड़ती खबर मा सुने रहेव मितान तहूॅं ला बड़े जान लेखक होंगे कहिके , अउ एक दिन तुम्हर लिखे आलेख ला पढ़ेव। का लिखथस मितान सबके वाट लगादेथस। अत्याचारी ,शोषक मन के फोर फोर के बखिया उधेड़ देथस , बड़ हिम्मत घलो करथस तॅंय हा मितान ,फेर टीवी ,अखबार द देख सुन के डर्रा घलव जथो । फूॅंक मारके पानी ला पवित्र करइया बहुरूपिया मन के बारे मा लिखके अंधविश्वास ला भगाय के कोशिश करत हस, बने करतहस  फेर संभल के रहिबे सॅंगवारी ,तोरो नान नान लोग लइका हे ।
उॅंकर फायदा के अनुसार बनाय नीति नियम के उलट कहवइया मन के पाछू मा वोमन पेज पसिया धरके भिड़ जथे।
अउ मितान ये समय हा मुॅंशी प्रेमचंद के समय नोहे, जिहाॅं व्यवस्था के खिलाफ मा लिखे के आजादी तो रिहिस। कम से कम समकालीन लेखक मन ठाकुर, साहू , मातादीन जइसन अत्याचारी, भ्रष्ट्राचारी, पाखंडी अउ नान्हे नीयत वाले कुलीन शोषक मन के खिलाफ लिखे के साहस कर पावत रिहिन।
अब जमाना बदल गेहे ,तेकरे सेती चेतावत हवं मितान, हरिशंकर परसाई के गोड़ ला कोन मन टोरे रिहिस तेला तो जानते होबे,अउ कहूं नइ जानत होबे त गुगल गुरुजी के शरण मा जाके शोर खबर लेइ लेबे।
काली अउ आज मा का बदले हे मितान ,आज हा तो काली ले अउ गय गुजरे होगे हे, पहिली राजशाही रिहिस आज लोकशाही हे फेर लोकशाही मा लोक के अधिकार हर थपटी पिटे तक के रहिगेहे, बाकी उही राजशाही व्यवस्था तो चलत हे । 
व्यवस्था के खामी के बारे मा लिखना माने उघरा हिमालय पर्वत मा चढ़ना।
जनहित के उदिम मा अपन सब कुछ लगाके बने काम करबे ता जान ला जोखिम मा डारना हे , तेकर सेती चेतावत हव मितान, कलबर्गी,पानसारे, गौरी लंकेश, अउ दाभोलकर मन हर कोन से मार अपन स्वार्थ बर काम करत रिहिन वहू मन तो अव्यवस्था ला सुधारेच के बात ला आघू बढ़ावत रिहिन का। आखिर मा का होइस उॅंकर लोग लइका अनाथ होगे। 
   मॅंय जानथव मितान तॅंय समाज मा समता लाय बर नानमुन अपन पुरतिन उदिम मा लगे हस। जेहा सहुॅंराय के लइक काम आवय।
       तोर साहस ला नमन करत हॅंव मितान, फेर जरा धुर्तार मन ले सॅंभल के आगू बढ़बे अउ अपन कुल गाॅंव समाज के नाम ला रोशन करबे।
   कका काकी ला प्रणाम अउ भउजी ला भेंट पयलगी कहिदेबे।
     चिट्ठी के अगोरा मा
          तोर मितान
महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव
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: *डोकरी दाई बर चिट्ठी*
     
                        8 अगस्त 2011
    दूरिहा ले प्रणाम करत हव डोकरी दाई! 
                             बिक्कट दिन ले सोचत रेहेंव की आप ला चिट्ठी लिख दव फेर मोर समझ मा ए नइ आवत रिहिस की चिट्ठी मा काय लिखहूँ। तैं तो जानत हस डोकरी दाई मय इहाँ दुरुग मा रहिथव, इहाँ के काम काज ले थोरिक घलो फुर्सद नइ मिलय त कइसे चिट्ठी लिखव...ए दे आजे काम ला समय निकाले हव अउ तोर बर चिट्ठी लिखत हव। 
पउर के बात मोला याद हे जब तैं मोर बर चिट्ठी लिखे रेहे अउ मोर बर बहुत गुस्साए रेहे काबर की मय उहाँ जाके आप मन ला एको ठन चिट्ठी लिखे नइ रेहेंव। फेर आज मोला मउका मिलिश चिट्ठी लिखे त लिखत हव। 
                                             मय जानत हव डोकरी दाई तैं मोर सबले जादा चिंता करथस काबर की मय तोर दुलरूवा नाती आव। एक बात मय तोला खच्चित काहत हव तैं मोर अतेक जादा चिंता फिकर झन करे कर अइसन मा मय काम काज कइसे करहूँ......अउ कुछ दिन पहिली तैं हा बरा ठेठरी बना के भेजवाय रेहे ओ मोर मेर हवै रोज भिनसरहा उठ के खाथव, त फेर काम मा जाथव। 
डोकरी दाई तुमन सब ठीक हव अउ मोर मयारू बबा ओ कइसे हे सुघर खात पीयत हे अउ मोर नान नान भाई मन का करत हे कुछ काम वाम करथय की भईगे। डोकरी दाई मय तोला पहिली ले केहे रेहेंव ओ दूनो टूरा मन ला मोर करा भेज दे.......कम से कम इहाँ रइही त कुछ तो काम करही अइसन घर मा ठलहा बईठें रहि। 
                                अम्मा अउ पापा मन कइसे हे सब कुशल मंगल हे ...देखव तुमन मोर चिंता करथव त महू ला तो तुहर चिंता होथे ए सेती तुमन मोला जल्दी चिट्ठी लिख के भेजव अउ अपन हाल चाल बतावव।    ' डोकरी दाई तैं दुखी झन होबे ए दरी देवारी मनाय बर मय घर आहू सब झन मिलबे तिहार मनाबो अउ चीला भजिया खाबो।' 
                  बबा ला चरण छू के प्रणाम, दाई बाबू ला सादर पायलागि मोर भाई मन ला प्यार अउ तोला खूब सारा स्नेह! 
                                            तोर मयारू नाती 
                                                  अमित
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: मयारू के चिठ्ठी
पहिली जमाना में बिहाव के कुछ महीना या दिन के पाछू बेटी बिदा होवय।
वो पइत येला पठौनी काहय पहिली पठौनी  फेर दुसरैया पठौनी।
बिहाव के बाद मोरो पठौनी होइस  
चइत मा, ससुरार में रेहेंव चार महीना अषाढ़ आगे।
बाबूजी  लिवाय बर आगे  मैं अब मइके आगेंव आवत बेरा पति देव कहिस चिठ्ठी  भेजहूं पता  दे-दे ।
मंय पता दे देंव बाबूजी के नाम में भेजहू मोर नाम झन राहय।
पहिली बहुते लजावन सास ससुर के आगू में  गोठियावन नहीँ  मूड़ी ला ढ़ाके राहन ।
मोर ससुरार आरिंग हरे मोर ससुर जी मास्टर रिहिस सबो पारा भर मास्टर के बहू काहंय।
पंदरा दिन के बीते ले  पहिली क चिठ्ठी अइस बाबूजी हा चिठ्ठी ला मोर हाथ  में  दिस, मैं धर के कुरिया में जाके अक्केला पढेंव 
लिखे राहंय सबो कोई बने हावय माँ बाबूजी मन , दुनो नोनी मन के पढ़ई बने चलत हे।
भाई मन धलो बने हे।
फेर घर में  आथंव ताहन तोर बहुत  सुरता  आथे अइसे लागथे 
येती ओती रेंगत हावस नजर मा झूल जथे।
उही सुरता में  एक ठी गीत भेजत हँव  ।
गीत 
जब जब बहार आए और फूल मुस्कुराये मुझे तुम याद आये।
मुझे तुम याद आये।
जब बज भी चाँद निकला और तारे जगमगाये मुझे तुम याद आये।
मुझे तुम याद आये।
पूरा  लिखे राहंय पढ़ के तर तर तर तर आँसू बोहाय लगिस को जनी खुसी में  हरे धन काय हरे।
आँखी ला मूंद के सोचत राहंव अतका चुप अऊ शांत रहइया  अइसन  गीत लिखे हे ----
वोतके बेरा माँ आगे कहिस का होगे बेटी चुप  कइसे बइठे हस कुछु नइ बोले सकेंव बक्का  नी फुटिस कुछू तो नइ लिखे राहय गीत के छोड़े।
माँ कोती चिठ्ठी  ला बढ़ा देंव माँ पढ़िस अऊ कहिस देखे मोर दमांद के मया ला।
अभी चार दिन पहिली कहेंव लेना मोर बर चिठ्ठी  लिखव उही गीत ल लिखहू।
कहिन दूरहा में  रहिते त लिखतेंव तँय तो मोर आगू बइठे हस।
मोला कहाँ पता रिहिस ग्रुप मा चिठ्ठी  पत्री चलही।
तीनों  दीदी मन ला प्रणाम 
सबो झन देख के लिखे के कोशिश करे हंव।
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🙏🏼🙏🏼🙏🏼
सेवा म
          श्री मान कार्यपालन     
          अभियंता(पीडब्लूडी)
           विभाग रैपुर
विषय-सड़क ला हिरोइन के गाल असन चिक्कन बनाये बर।
महोदय,
मँय समारु राम हाथ जोड़ के गाँव वाले डाहर ले आप ला परणाम करत हँव।हमर गाँव ले दूसर गाँव जाय के सड़क हा पिछले बरसात के पहिली नवा बने रिहिस हे।एसो के एक्के पानी मा खलखल ले हिरोइन के मेकअप असन धोवागे।बड़का बड़का गड्ढा अउ कोनों कोनो मेर खोचका डिपरा होगे हे।काय हे हिरोइन के गाल मा फोड़ा फुंसी बिकटे हो जथे त बने नइ लागय देखे मा।फेर हमन तो सड़क मा चलैइया मनखे हरन,गाड़ी मोटर फटफटी तो नइये कि फट ले नहका दन, कूदा दन।बइला गाड़ी ले आना जाना होत रीथे।अउ इही बइला गाड़ी हा हमर गाँव  गवँई के जीवन रेखा हरे।हमर मन के कतको झन के बइला हा नेवरिया हरे,गड्ढा ला देख के बिचक जथे।कभू कभू तो  भड़ांग ले गड्ढा मा बोजा जथे।बइला ला उठावत अउ गाड़ी ला निकालत समे पहाथे एक घंटा के काम हा एक दिन खा देथे। एसो बरसात मा हमन जम्मो गाँव वाले नरक भोगत हाबन।आप मन ले हमन बिनती करत हाबन कि अइसे सड़क बनावँव जेन हिरोइन के गाल असन चिकना राहय,टपरे टपराय के कोनो गुंजाइश मत रखहूं।जय जोहार करत मेहा गाँव वाले कोती ले ये दरखास  आप मन ला भेजत हाबव।
                    गाँव वाले
                    समारू,बुधारू,
                  डमरू,तिरलोखी
विजेन्द्र वर्मा
नगरगांव धरसीवाँ

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 आरुग: मयारू सँगवारी रामहू
इहाँ कुशल सब भाँति भलाई, उहाँ कुशल राखे रघुराई ।
सँगवारी रामहू तोला तोर दाई बाबू सँग शहर गे आज चार बछर ले जादा होगे। एक पइत इहाँ ले गेस तेन तँय लहुट के नइ आएस । शुरू शुरू में एक दु पइत फोन करेस तहाँ भुलागेस । फेर मैं अकेल्ला होथंव त तोर गज्जब सुरता आथे । आज घलो तरिया पार मा बइठे रेहेंव त तोर सुरता ठक ले आगे ते पाय के तोला ये चिट्ठी लिखत हँव । इही तरिया पार के कोनहा के बर पेंड़ हा हमर खेले के अड्डा राहय । कतको बेरा ला इही मेरन खेल खेल के पहवा देत रेहेन । जेन जघा ले बिछल के तरिया मा कूदन, जेन डारा ले रेस टिप खेलत चूहन,  जेन बर्रइयाँ ला बांध के झूलना झूलन तोर जाय के बाद वो जघा मन मा मोरो जाना छूट गे रिहिस। आज उदुप ले देखेंव ता अइसे लागिस जइसे ये ठउर मन आज ले हमर सुरता अउ अगोरा करत हें । अउ काबर सुरता नइ करही कखरो बारी ले खीरा चोरा के आवन त इही बर पेंड़ के डारा में बइठ के दहेलन । कखरो खेत ले रात कन होरा बर चना चोरावन त इहिच मेरन होरा भूँज के खावन । तोर मोर जोड़ी तो वइसने गाँव भर मा प्रसिद्ध रिहिस घरो के मन हमन ला बने जान गे रिहिंन हे । कोनो भी एक झन नइ मिलतीस त घर के मन दूसर ला पूछय । तोला सुरता हे ? एक पइत कोहड़ा नार ला सुलगाके बीड़ी कस पियत रेहेन त बबा कोन डाहर ले आगे ओखर ले बाँचे बर भागेन त नार के आगी ह सिपचगे अउ बारी म आगी लगगे...उही आगी मा हमर भूरवा कुकुर जर के मरगे । मैं अब्बड़ रोय रेहेंव कखरो चुप कराए ले चुप नइ होवत रेहेंव त बबा ह तोला बुला के लाइस तहाँ हमन खेले ला धर लेन । एक घाँव तुँहर गाय हा खार म बछिया पिला जनमिस अउ घर नइ आइस त हमन दुनो झन जाके रात के खोज खाज के लाये रेहेन । मैं तीन दिन ले तुँहरे घर में रहिके छकत ले पेउस खाय रेहेंव । मोला तोर सापर में पहाय जम्मो बेरा के सुरता हे अउ वो मन ला मैं कभू नइ भुलावंव । पंड़की कुदावत खारे खार दउड़ई, बेंदरा कुदई । छेरछेरा मांगे बर जवई । तोर सँग दौड़े तितंगी, तोर सँग खेले गिल्ली, कबड्डी, खोखो, गेंड़ी दउड़ अउ कतेक ला सुरता करंव । अउ हाँ तोर दुनो मिल के फुरफुंदी मन ला पैसा अउ कौड़ी बनही कहिके जेन ठउर मा माटी म चपके रेहेन तेन ला बड़ दिन ले जा जा के देखेंव फेर न तो वो पैसा बनिस न कौड़ी । हाँ फेर अब जान गे हँव फुरफुन्दी ला हमन फोकटे मारके माटी म चपक दे रेहेन...हा हा हा । 
              सँगवारी रामहू तिहार आज घलो आथे । हरेली, पोरा, गणेश पक्ष, देवारी, छेरछेरा अउ होरी कस कतको तिहार आथे अउ चल देथे फेर तोर बिना तिहार मन फीका लागथे । कोन जनि तहूँ मोला अइसने सुरता करथस धुन नहीं । शहर ले आये कइ झन ला देखथंव अउ उँखर ले गोठबात करथंव त वोमन गाँव वाले मन ला देहाती कहिथें अउ उंखर ले ढंग ले गोठियावय तको नहीं । सँगवारी तहूँ थोरे बदले हस?  मोला तोर ऊपर पूरा भरोसा हे । अउ हमन भरोसाच तो कर सकत हन बाँकी भगवान जानै...।
              फेर जेन दिन तँय गाँव आबे अउ तोर मोर भेंट होही वो दिन मोर बर तिहार ले कम नइ राहय... 
              
                                  तोर सँगवारी
                                        कमलू
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चित्रा श्रीवास: सेवा म,
        मुख्यमंतरी
        छत्तीसगढ़ शासन
        छत्तीसगढ़
विषय-साग भाजी के समर्थन मूल्य निर्धारित करे बर।
महोदय,
          हम साग भाजी के खेती करवइया जम्मो किसान मन तुहँँर हाथ जोर परनाम करत हन ।आप मन धान के समर्थन मूल्य ला बढा़ देय हव जेखर बर छत्तीसगढ़ के जम्मो किसान डहर ले धन्यवाद।
हमर छत्तीसगढ़ राज मा धान, गहूँ, तिवरा, सरसों, चना, उरिद,भुट्टा के संगे संग आलू,गोदली, पताल,लसून,गोभी ,भाँटा, मुराई,मिरचा पालक,लालभाजी मेथी, धनिया,जइसे कतको कन साग भाजी के खेती करे जाथे हमर माटी हा सहीच मा सोना आय जेहा हमर खाय पीये के कुछु जिनिस के कमी नइ होय देवय।इहा ले कतको जिनिस हा दूसर राज मा घलो भेजे जाथे।आने फसल हा बढ़िया होथे ता किसान मन खुश हो जाथें बढ़िया कीमत मिलही सोच के फेर हमर भाग ओइसन कहाँ।साग भाजी बढ़िया होथे तव बजार मा ओखर कीमत गिर जाथे।हमला हमर लागत तको नइ मिल पाय इही पीरा मा हमर कतको संगी मन साग भाजी ला रस्ता मा,घुरुवा मा फेंक देथेंकतको किसान मन करजा लेके साग भाजी के खेती करे रथन तेहा मुड़ी मा पटका जाथे ।अपन घर परिवार ला तको चलाना मुश्किल पर जाथे।हमर दुख के कोनो हिसाब नइ हे।
      तेखरे सेतिर आप मन ले हमन बिनती बिनोवत हन कि आने फसल के जइसे साग भाजी के घलो समर्थन मूल्य देवाय के किरपा करव ।जेखर ले हमरो लोग लइकन ला भूख मरे बर मत परय ।हमरो गोहार ला सुन ले अउ
हमर मिहनत हा रद्दा मा मत फेंकाय  अतका किरपा करहूँ।
      जम्मो किसान
     साग भाजी लगवइया
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 ज्योति गबेल: 
*ऊँ*
*गियाँ बर  पाती* 
                                 6-8-2020
    
हमर नानपन के किरन गियाँ जी 
      सादर जै- जोहार, राम-राम
      मै हर अपन ससुरार मा बने-बने हँव , तुहुँ मन सब  कुसलता से बने - बने होहिया।
     कई साल बाद चिट्ठी भेजत हौं। मोर दुइठन  लइका हावय एक नोनी एक ठिन  दऊ  हे।
दऊ बेटा ह पढ़ लिख के नौकरी  पा गय हावय। मै हर ओकर बिहाव करहौं -  ओकरे खातिर गाँव आय हाववँ  अउ गियाँ दई  ले तुँहर पता ल माँगे हँव । ए साल कोरोना के कारण जादा झन ल बिहाव नेवता नइ देवत हँव। गियाँ दई ह बतावत रहीस कि तुँहरो दूइठन लइका हे नोनी-बाबू अउ तुँहर इहाँ के दमाद हर जिंदल रायगढ़ म नौकरी करथे।  सब हाल सुनके मन ह गदगद हो गय। त मोर नेवता पाती ल पा के आप मन जरूर आइहा। बिहाव कार्ड म फोन न. लिखे हावय  -फोन करिहा। अब्बड़ दिन हो गय हावै, हमन दूनो गियाँ भेंट  नई होय पाय हन।बिहाव म खचित आइहा। तुँहर लइका मन ल आशीष।अउ  बड़का मन ल पायलगी।
        *तुँहर नानपन के  भोजली गियाँ* 
       ज्योति गभेल (कोरबा)
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] हीरा गुरुजी समय: यमराज ला चिट्ठी 
सेवा म,
          सिरी यमराज देव
           यमलोक 
बिषय:- भारत के यमदूत मनके समसिया के                 निराकरण खातिर।
          पाँच हाथ दुरिया ले पलगी,
        तुँहला बतावत अउ सरेखत बड़ दुख लागत हवय कि हफ्ता भर पहिली भारतीय यमदूत संगठन के अध्यक्ष हा मोला चिट्ठी लिखे हवय अउ गोहार करे हवय कि उन मन अबड़ अकन समसिया ले पीड़ित हँवय।उँखर समसिया के जल्दी समधान करवाय जाय।
       सबले बड़का तुँहर शिकायत हवय कि एसो मनखे ला मारे के ठेका चीन के बहुराष्ट्रीय कंपनी कोरोना के यमदूत मनला दे दे हवय।ओमन आधा काम ला करथँय, मनखे ला मरे के वाइरस ला छोड़भर देथँय अउ मर जाही ता भारत के जीव ला यमलोक लाने के बोझा हमर उपर खपल देहँय।हमन पहिली तो कमती मनखे मरत रहिस तब कइसनो कर के अपन ड्यूटी बजात रहेन फेर यहा तो रोज के रोज मरइया मन बाढ़त जावत हे। कतको ला फोकटे फोकट कोरोना पाजेटिव बता देथँय। चीनी वाइरस के भरोसा नइ रहय। छे सात दिन ले रात दिन अड़े रहिथन कि मरही ता जीव ला लेगबो, फेर रिपोट निगेटिव निकल जाथय। जीव नइ लेखन ता रोजी नइ बनय। सब फऊ हो जाथय।
      दूसर ये की नवा करमचारी भरती नइ करत हें, स्टॉफ के कमती होय ले उभर टाइम ड्यूटी करेबर परत हे।एखर भत्ता घलाव नइ देवत हे।कोरोना मा मरे जीव ला लानत हन ता घर जायबर नइ मिलत हे। चार महिना ले आगर होगे लोग लइका ले दुरिहा राखे हावय। बाई के मुहूँ देखे बर नइ मिलत हे।घर के बेवस्था, नान्हे यमदूत मनके जनमदिन बर घलाव छुट्टी नइ देवत हे। संगठन के बिगर सलाहा लेय भारत के यमदूत के ड्यूटी कभू कभू फ्राँस अमरिका मा लगा देथय काबर कि उहाँ जादा मरत हँवय। सेफ्टी किट घलाव नइ देवत हे।उही ला धोवत हन उही ला पहिरत हन।सेनेटाइजर के नाव मा दरबार के बाबू मन जबर खर्चा देखात हे फेर फिल्ड ड्यूटी वाला ला कुछ मिलत नइ हे।बेरा कूबेरा खाय बर मिलथे।आनलाइन संदेश मिलथे कि फलाँजगा के कोरिना पाजेटिव हा अब तब मरनेच वाला हवय लघियाँत जावव, ता उल्टा पाँव जायबर परथे। 24 घंटा तैनाती कर दे हवय।
           यमराज जी एकक ठन समसिया ला गिनाय मा दस बारा पन्ना भर जाही, कम लिखे ला जादा  समझलव अउ उँखर समसिया के तुरते समाधान निकालव।जइसे कोरोना मा मारे के चीन के ठेका ला रद्द करव। भारत के यमदूत ला अपन प्रांत अउ जिला मा ड्यूटी लगावव।उँखर घर परिवार के हियाव करव। यमदूत मन ला एक एक हफ्ता के छुट्टी देवव,अउ कोरोना के दवाई बुटाई बनई मा लगे बिज्ञानिक मन तीर यमदूत ला झिन भेजव। उभर टाइम के भत्ता, सेफ्टी कीट(चाइना माल छोड़के) तुरते देय जाय।
         तीन - चार दिन के भीतरी ये माँग पूरा नइ होही ता आगू जउन तकलीफ होही ओखर जिम्मेदार तुहीचमन होहव ।
                पाँच हाथ दुरिया ले जोहार।
                                    तुँहर
                          हीरालाल गुरुजी "समय" 
                  अध्यक्ष,पीड़ित मुक्ति संगठन 
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: मोर मयारूक ददा लोकाक्षर के नाव म पाती 
06-08-2020
मोर मयारुक लोकाक्षर, 
पाँव परत हौं गा ददा |
दादा गा मैं इहाँ बने-बने हववं, आसा करत हवं तहूँ बने होबे |
बने-बने का गा तोर तो मजा चलत हे गा ददा | कतना लईका होगे तोर गने हस का ? रोजेच्च एकात झिन बाढ़त जावत हें |जम्मो ला मौक़ा मिलगे हवे अपन-अपन मन के बात ला गोठियाए बर | कभू संस्मरण त कभू गीत-ग़ज़ल, कभू कथा-कहिनी, संस्मरण अउ अब तो चिट्ठी पतरी ला घलो लिखे लगगे हवयं | हव ददा गा मोबाईल जमाना के लईका मन घलो चिट्ठी लिखे बर सीखगे  हवयं |
भईगे---- चिट्ठी पतरी मा तो अइसे लागत हे जानो मनो अपन मन के बात ला लिखे बर भर बांचे रिहिस अब वहू होगे | देख ना कोनो दारु बंद करे बर अरजी देवत हे त कोनो ममा ला गोहारत, कोनो काका ला गोहारत, कोनो एडमिन ला , अउ तो अउ मुख्यमंत्री के नाव म  तो कई ठिन चिट्ठी लिखागे हे गा ददा | मिही पछ्वागे हववं मोला छिमा कर देबे | 
काबर कि काली हमर प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय भूपेश बघेल हर झौहां म गोबर धर के बलाए रिहिस | त झौहां धर के पहिली तो गोबर संइते बर गएंव | उहाँ घलो अब मारा मारी चलत हे गा गोठान डाहर, जंगल कोती, अतका भीड़ लगे हे जनो मनो दू महिना म राशन के लाइन लगे होही| गाय गरु के पाछू-पाछू माई लोगन झौहां धरे-धरे रेंगत हे अउ चिरौरी करत हें _---“गोबर दे बछरू गोबर दे” का करबे दू पईसा कहूँ ले मिल जाथे तब बने लागथे गा ददा | ओखरे बर तोला चिट्ठी लिखुब मा देरी होगे गुसियाबे झिन ना गा ददा, तोर पाँव्  परत हौं | मया दया ला रखे रहिबे काबर! कि एसो तीजा घलो नई आना हे | कोतवाल हर हांका पारत रिहिस ओ का जती के कोरोना आए हवय हमर पहुना बनके बिन बलाए | बस तयं हर मोर बर लुगरा बिसा के रख ले रबे |
तोर मयारूक बेटी 
शकुंतला तरार
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ओम प्रकाश अंकुर: जय सिया राम 
                             लालबहादुर नगर 
                               6 अगस्त 2020
            संगवारी
                 जय जोहार 
            मेहा इहाँ ठीक हवँ.भगवान के कृपा ले तहू हा बने बने होबे .अइसन मोला बिश्वास हवय.गजब दिन होगे मेहा 
चिट्ठी नहिं लिख पायेंव. तोरो चिट्ठी नहिं मिलिस. आज मोला तोर गजब सुरता आथे. ननपन के याद हा घेरी बेरी आथे. कइसन हमन एके संग भंवरा, बांटी, गिल्ली डंडा, चोर पुलिस अउ स्कूल मा जाके लुकउल खेलन,रहिचुली झूलन. गर्मी दिन मा तरिया मा एकदम डूबकन. बरगद 
पेड़ मा चढ़ के तरिया मा कूदन. अउ हजारी बबा जउन हा ग्राम पंचायत के चपरासी राहय. ओहा जब खिसिसाय तहाँ ले हमन अपना कपड़ा ला लकर धकर धरके गिदगिद भागन . हाईस्कूल मा पढ़त रहन ता क्रिकेट खेले बर भांठा जावन. अउ संझा बेरा जब गरुवा मन घर आय ता डोकरी दाई हा मरो जियो ले चिल्लाय कि कतिक बेर ले खेलत रहू. कई दिन खरखरा नदी कोति टहले बर जान. ये सबो सुरता हा आज मोर आँखी के सामने झूलत हवय. 
       ये डहर दो दिन होगे बने  पानी गिरत हे. हमर गाँव डहर पानी के का हाल चाल हवय संगवारी. कोरोना के कारण लईका मन हा स्कूल नहिं अावत हवय.  मोबाइल मा आन लाईन पढ़ात हवन. अब पारा मोहल्ला मा बइठाके घलो पढ़ाय के चालू कर दे हन. कोन जनि ये कोरोना हा कब तक चलही. सबके मति ला छरिया देहे. 
         मोर डहर ले कका- काकी ला पैलगी कहि देहू. परिवार संग हमरो डहर घूमे ला आहू. तोर चिट्ठी के अगोरा रहि. 
                              तोर मितान 
                         ओमप्रकाश साहू 
                
                 प्रति,  
                    श्री राम लाल साहू 
                  ग्राम + पोष्ट - सुरगी (शनिच्चर बाजार के पास) 
              तहसील अउ जिला -       राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) 
  पिनकोड - 491443

प्रेषक -
        ओमप्रकाश साहू" अंकुर "
      
       ग्राम +पोष्ट - लाल बहादुर नगर ( छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक के पास) 
 तहसील - डोंगरगढ़ 
  जिला - राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़)
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] मीता अग्रवाल: जयमहमई     
रइपुर
5/2/2020            
मयारुक अंतु,
                 का बात होगे हे,बड बेरा होंगे हमर मेल मुलकात ला लाक डाउन लगे।कलेचुप रही के मोर संग गोठ बात बंदे कर देहस अंतु।एक वहू बेरा रहिस जब छुपा छुपी खेलत खेलत कभ्भू मोर संग ला छोडते नइ रहेस ,आखी मूंदे मूँदे  मोर ऊपर भरोसा करत रहास। जब तक सब ला छोड के विजयी भवः के आशीष फलित नइ होतिस,तब तक मोरे संग सरी धरम करम कारण काज के निदान मांगत  रेहेस, थोरोको संसो परन देवत नइ रेहेस।फेर अब? अब मोर ले जादा पियारा,मोर बैरी मोबाइल होगे हवय,आँखी खुलिस नइ के अंगरी सुते सुते चलथे,अउ नीद ला उडावतअध रतिहा तक उही हाल मा फंसे देखथव, का होगे तोर हाल,जानथच? आज फुरसतहा मा तोला अपन सुरता देवात हव।ले एक ठी सायरी झोंक---
बड बेरा होगे गोठ बात नइ होय पाय।
काबर नइ तोर नाव ले चिट्ठी-पत्री लिख डारे जाय।
तय झूलथस आँखी आँखी मा दुख पीरा नइ सहाय।
तोर मया बंधना मा मंतु बेरा नइ पहाय।
लिखना दिल के दरवज्जा खोल के आखिर मोही ला परीस, काबर की मोर ठिकाना उही हे।आजकल तोर नता, नसा ,असन सोशल
 मीडिया ले जादा होगे हे,रकम -र कम के छंद,गोठ,लेख सबो बिधा ले अपन नता जोरे मा दिन रात खपात हस।बने बात हे कम से कम सुग्घर काज मा अपन बेरा पहावत हस।छंद के छ के गुरु भाई गुरु दीदी मनले बड खुस रहिथस।अउ नावा समूह छत्तीसगढ़ लोकाक्षर मा ,अपन भाखा के विकास मा कतीक का लिख पढ लव सोच केबने भिड़े रहिथच,बने करम हे करत रहा,फेर मोर संग साथ रनचिक जुरबे नइ करस। मोर संग अभी गोठियाबे तभी गोठियाये के सोच मा मोर कोती तोर धियान घलोक नइ जावय,बड दुख लागथे,मंतु अंतु के जोरि ला काखर नजर लाग गे कहिके।रातदिन सुसकत सुसकत अब थक हार के बइठ गेव,जाबे कहाँ रे बाबु?कोन संग कतेक दिन के संगी हो ही महू पझोगत हव।पीरा दुख म बुरबे तव मंतुच काम आथे,इही सोच ले कलचुप धरे बइठे हव।तोर जीव छूटही तभो एके संग जाबो ,हमन 
जनम मरन के संगी हन,कखरोके बात बने नइ लागीस, केआँखी ले गंगा जमुना रेमटहा संग बोहाय लागथे।ललियाय आँखी ले येती वोती देखथस,कोन हा साथ दिही धीरज बंधाय के जोखा तो मोरे करा माढे रथे ना आखिर मा,झन भुलाय कर मोला तैहर,
मन के हारे हार हे मन के जीते जीत, ऐती वोती झन देख मै हव तोर *मन* मंतु मीत।
हाय रे मोर बोरे बरा किंदर फिर के उही करा,आबे अंतु।तोरेच फिकर मा,तोर अंतस-

 *सिरिफ तोर मंतु* 
मीता अग्रवाल रायपुर छत्तीसगढ़
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] ज्ञानू कवि: 'श्री सत्य कबीर'
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                               ६/८/२०२०
                                  बोड़ला
मोर दुख सुख के संगिनी,  
                 मनु के दाई - अड़बड़ मया।
         मैं इहाँ सुग्घर हवँव अउ ये आशा करत हँव तूँहु मन उहाँ सुग्घर होहू। दाई- बाबू ल मोर प्रणाम कहिबे । अउ ह हमर मया के बगिया म खिले फूल सही दुलौरिन बेटी मनु ल गज़ब मया देबे मोर। 
                 तोर चिट्ठी  कालिच्च संझाकुन  मिलिस। पढ़ के आँखी ले गंगा-जमुना के धार सही बोहाय लगगे। मनु के बार- बार पापा- पापा कहई  अउ  दाई- बाबू के घलो बार - बार पूछई  बेटा के कुछु खबर आइस का बहू। कब आवत हे, कइसे हे अउ ओखर काम बूता बने चलत हे के नइ। अउ  आँखी ले आँसू  ल लुकावत तँय हँसके बताथस हव बाबू ओहा बने हे, जल्दी आहू कहे हे। 
            मन बिकट होथे ओ दू- चार दिन के छुट्टी लेके घर आँव। होली म आहूँ केहे रेहेंव फेर ठउका समे म लॉकडॉउन लगगे। अउ जानथस तो ए स्वास्थ्य विभाग के नउकरी म छुट्टी के बहुत दिक्कत होथे। ऊपर ले अभी कोरोना के सेती एस्मा लगे हे। छुट्टी बर कहू अधिकारी मन ल बोलबे त उंखर हाथ पाँव फुलथे। नोनी ल देखे के बड़ मन होथे ७-८  महीना होगे देखे।
          दिन ब दिन कोरोना बढ़त जात हे डर घलो लगथे फेर का करबे नउकरी ए करे ल तो परहीच। बने हियाव करत रहू, दाई- बाबू अउ नोनी के चेत करे रहिबे। अब सोचत हँव अकेटठा देवारी तिहार म आहूँ तब तक कहूँ कोरोना कुछ कम हो जाय। 
            मोला बड़ गरब हे ओ तोला जीवनसंगिनी के रूप म पाके। मोर अनुपस्थिति म बहू के संग -संग बेटा बनके दाई-बाबू के बने सेवा जतन करत हस। लिखना तो बहुत कुछ चाहत हँव फेर सोचथंव का लिखव। अब बस अतके अपन संग दाई- बाबू अउ मनु के बने ख्याल रखबे ।
             एक बेर अउ दाई- बाबू ल प्रणाम , मनु अउ तोला अड़बड़  मया
                     तोर
               जीवनसाथी
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 वीरेंद्र साहू: *श्री घनश्याम दास बिड़ला के बेटा के नाँव चिट्ठी - भाषा - छत्तीसगढ़ी - अनुवादक - विरेन्द्र कुमार साहू*

दुलरवा बेटा बसंत...

ए जे चिट्ठी लिखत हँव ओला तँय तोर कोन्हों भी उमर रइही सुरता करके खच्चित पढ़ते रहिबे। एमा मँय अपन जिनगी के अनुभव ला भरत हँव।

ए संसार मा मनखे तन पाना बहुते नोहर हे! अउ जेन हा एला पाके गलत काम मा बउरथे ओ हा मनखे नइ जानवर आय।

अगर तोर तीर पइसा कौड़ी हे, तन हा भला चंगा हे अउ सुग्घर जिनगी बर आनी-बानी के थेभा हे, तब एखर बउराई परमारथ मा होइस ता ठीक हे नइते एला बेंदरा के हाथ मा छूरी बरोबर जान। तँय हरदम ए बात ला सुरता राखबे।

धन ला कभू मजा पाय बर ते अपन सऊँख पूरा करे बर झन बउरबे। काबर के धन हा काखरो दास बनके नइ राहय, जतेक भी दिन तोर हिस्सा मा रइही एला नीक काम मा माने के परमारथ मा लगाबे। अपन ऊपर कम ले कम धन ला सिराबे। ज्यादा ले ज्यादा धन ला दीन, दुखी अउ गरीबहा मन बर खरचा करबे।

धन हा मनखे के ताकत अउ गुमान हरय, एखर नशा मा काखरो संग अन्याय हो जवई पक्का हे, फेर ध्यान मा रहय के अपन धन-दौलत के बउराई ले काखरो संग अन्याय झन होवय।

अपनो नोनी-बाबू बर ए संदेश ला छोड़बे। कँहू लइका मन मजा पवइया,रिंगी-चिंगी के सँऊखीन, ठलहा रहइ ला पसंद करइयाँ अलाल होहीं ते पाप करहीं अउ धंधा पानी ला टुटुम ले कर देहीं। अइसन नालायक मन ला धन कभू झन देबे। ओमन धन दौलत ला हँथियाँय एखर पहिलिच दीन,दुखी अउ रोगी मन के सेवा मा लगा देबे। तँय स्वार्थी सहींक लोग लइका मन के मोंहो मा अँधरा होके नइ बउर सकस। हमन सबो भाई मिल के अनसम्हार मेहनत करके धंधा-पानी ला बढ़ाय हन। तब हमन सोंचे अउ समझे हन के एमन एला नीक काम मा बउरहीं कहिके।

भगवान ला कभू झन भुलाहू ओ हा सुग्घर मति देथे। अपन इन्द्री मन ला काबू मा रखिहव, नहिते ए तुमन ला बुड़ो देही। रोज्जे नियम बारन ले योग बियाम करहव। सुग्घर स्वास्थ्य हा बड़का दौलत आय। स्वास्थ्य बने रहिथय ता काम ला फटाक ले करे के गुण आथे। एखरे ले काम हा सफल होथे अउ काम हा सफल होथे ता धन दौलत के बढ़वार होथय।

सुख-समृद्धि खातिर स्वास्थ्य हा पहिली करार हरय। मँय हा देखे हँव के सुग्घर स्वास्थ्य नइ होय के सेती, करोड़ों अरबों के मालिक मन हा गरीबहा ले गरीबहा हो जाथँय। सुग्घर स्वास्थ्य नइ होय के सेती सुख बर माढ़े साधन मन घलो बिरथा हो जाथँय। तेखर सेती स्वास्थ्य सम्पदा के रक्षा बर जतन करबे। खाना ला दवई समझ के खाबे। सुवाद के दास होके खातेच झन रहिबे। ज़िये बर खाना हे नइ के खाये बर जीना।

घनश्यामदास बिड़ला

अनुवादक :

विरेन्द्र कुमार साहू, बोड़राबाँधा(राजिम)
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 आशा देशमुख: *करोना के पाती यमराज के नाम।*
श्री यमराज महाराज
घोलण्ड के पाँव परत हँव
    तोर कहे मुताबिक मँय दुनिया भर मा घूमत हँव।ये धरती के रहइया मन तो तोर ले ज्यादा मोर नाम से काँपत हें।मनखे मन मनखे ला देख के डरावत हें, इंखर तो घर ले निकलना मुश्कुल कर दे हवँव ।
महराज एक बात तो अउ जब्बर अचरिज के हावय ,इहाँ बड़े बड़े बम बना के एक दूसर ला मारे बर बइठे हवँय उंखरो टोंटा सुखावत हे ।कछु नइ कर पावत हें।
तँय चिंता झन कर महराज
मँय कोनो ला नइ दिखँव।
         सब लोगन मन भोरहा मा रहिथें  ये करोना हमर काय बिगाड़ करही,अइसने सोचत सोचत 10मनखे से  20 लाख मनखे होगे मोर शिकार तभो ले कतको झन मन मटमटावत रहिथें।
           यमराज महराज ये मनखे मन अबड़ चतुरा हें तोर बड़े बड़े शस्त्र ल फेल करत रहिंन हें टीका दवा खोज खोज के,पर मोर बर इंखर मन कर कोनो हथियार नइहे।
में अब्बड़ मजा म हँव जेन भी मिलथे उही ल धरके अपन पेट भरथो अउ ओखर सँग जेन भी मिलत हें वहु मन ल नइ बचावत हँव।
        धरती के मन तो जतका गरीबी भूखमरी में नइ मरे हें।
वतका मोर हाथ ले मरत हें।मोर जबड़ भाग हे महराज आप मन के  किरपा ले मोर असन नानकुन जीव हा घलो बड़का योद्धा बनके घूमत हँव।
  कखरो का मजाल जेन मोर ले टक्कर ले सकय।
चारों कोती मोर नाम के डंका बाजत हे ।
बड़े बड़े नाम वाले मन घलो चुपे खुसर के बइठे हे घर मा, अस्पताल मा।
का मंत्री, का नेता ,का अभिनेता,
का गरीब ,का अमीर
मोर बर सबो झन एक बरोबर हे।
जेन भी मोला रद्दा में दिखथे वोला में धरके मुसेट देथंव।
ये खेल मा मोला अब्बड़ मजा आवत हे पर मनखे मन के कोई भरोसा नइहे।
का पता कब मोला भगाय बर दवा बनाले अउ मोर बिदा कर दे
येखर पहिली आपमन ले एक बिनती हे महराज।कहत में मोला लाज तो आवत हे पर बिना माँगे कुछु मिलय घलो नइ।
तेखर सेती कहत हँव महराज।
में आपमन के अतका बड़े काम ला करत हँव जेन काम ल आपके अभी तक कोनो भी सिपाही मन नइ करे रहिन।
त मोर नाम* *गिनीज बुक यमपुर* में रिकार्ड कर देतेव।
अतकी ही बिनती हे महाराज।
थोकिन दिन के बाद यमपुरी लहुट जाहूँ।
 मोरो जिनगी अब ज्यादा दिन के नइहे।

*आपमन के दुलौरिन करोना
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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 कवि हेम: *भाई के पाती मयारुक बहनी के नाँव*
ठउर - शिक्षक नगर  
धमधा, जिला दुरुग (छ. ग.)          
                                                 तारिख-07-08-2020         
मोर मयारुक बहनी
तोला आर्शीवाद हे 
             ले जा पाती मोर तँय, बहनी बर संदेश।
             बढ़िया दे देबे मया, अउ हर देबे क्लेश।।
             मोर मयारुक मंझली बहनी इहाँ हमन सबो झन बढ़िया हवन, आशा करत हव उहो सब झन बढ़िया होहूँ। तोला मोर मया भर आशीर्वाद हावय, जिनगी मा सदा सुखी रहा बहनी। दमाद बाबू ला जय जोहर कहि देबे अउ भांची भांचा ला चरण छू के प्रणाम हावय। दाई बाबू डहर ले सबो झन ला मया दुलार हावय।
             मोर मयारुक बहनी तोर भेजे राखी हा तिहार के एक दिन पहली मिल गे रहिस हावय। तोर बनाय राखी ला देख के मोला बहुत खुशी होइस हावय, बढ़िया करे बहनी चाइनीज़ राखी के जगह मा अपन हाथ के सुघ्घर बनाये राखी भेजे हस। तोर बनाय राखी ला देख के संगी संगवारी मन बड़ तारीफ करत रहिस हावय, अउ कहत रहिस सबके बहनी ला अपन हाथ से बनाये राखी पहनाना चाही। तोर राखी ला पहिने के बाद मन ला सम्बल अउ तन ला शक्ति मिलिस हावय, जेन तोर हाथ के बनाय राखी मा हावय ओ चाइनीज राखी मा कहाँ। मोर मयारुक बहनी मोला बतावत बड़ दुःख लागत हावय, कोरोना काल के चलते आसो के तीजा पोरा मा तोला लिहे बर नई आवत हावँव। येदे कालिच कोटवार हा गाँव मा हाँका पारे हावय गाँव गाँव मा कोरोना अपन पैर पसारत हावय आसो कोनो भी अपन बेटी बहनी ला तीजा पोरा मा लिहके झन लाहू अउ लाहू त 14 दिन तक कोरनटाइन रइही अउ उचित कार्यवाही करे जाही। तेकर सेती लेहे बर नई आवत हवँव, मोर रद्दा झन देखबे अउ मन ला हरदास झन करबे भाई हा मोला छोड़दिस कहिके, तोर भाई सदा तोर साथ हावय। आसो के तीजा तुँहर बिना सुन्ना लगही भांची भांचा सबो झन आवव त घर भरे भरे लगय अउ तीजा पोरा के खुशी हा दुगुना हो जावय।
                  मोर काम धाम बने चलत हावय फेर कोरोना काल के चलते डर तको बने रहिथें। ऑफिस मा नानम प्रकार के लोग आवत जावत रहिथें ता। तुंहरो काम धाम बढ़िया चलत होही भांची भांचा ला येति ओती घूमे ला झन दे कर कोरोना गाँव गाँव मा पैर पसारत हावय। मँय अपन कलम ला विराम देवत हव अपन अउ अपन परिवार के बढ़िया ख्याल रखबे बहनी। पाती मिले के बाद तहुँ पाती  मा सोर संदेश भेज देबे। 

पाती पठोइया
तोर बड़का भाई
हेमलाल साहू

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: अब्राहम लिंकन का पत्र प्रिंसिपल के नाम

छत्तीसगढ़ी अनुवाद :- जगदीश "हीरा" साहू

अब्राहम लिंकन ह ये चिट्ठी ल अपन बेटा के स्कूल प्रिंसिपल बर लिखे रहिस। लिंकन ह एमा वो जम्मो बात ला लिखे रहिस जेन वो अपन बेटा ला सिखाना चाहत रहिस। ये बात सिरिफ कोनो एक पढ़इया लइका बर ही खास काबर होवय, जम्मो झन बर काबर नहीं।
आदरणीय गुरुजी
मैं जानत हँव कि ये दुनिया मा जम्मो मनखे अच्छा अउ सच्चा नइ हे। ये बात मोर बेटा घलो ला सीखे बर पड़ही। फेर मँय चाहत हँव कि आप वोला ये बतावव कि हर बुरा आदमी के पास घलो अच्छा हिरदय होथे। हर स्वारथी नेता के भीतरी मा घलो अच्छा मुखिया बने के क्षमता होथे। मँय चाहत हँव कि आप वोला सिखावव कि हर दुसमन के भीतरी म घलो एक सँगवारी बने के संभावना घलो होथे। ये सब बात सीखे मा वोला समय लगही, मँय जानत हँव। फेर आप वोला सिखाहू कि मेहनत ले कमाये एक रुपया घलो, सड़क मा मिले पाँच रुपया के नोट ले जादा कीमती होथे।
आप वोला  बताहव कि दूसर बर जलन के  भावना अपन मन मा मत लावय। संगे संग इहू ला घलो कि खलखला के हाँसे के बेरा घलो  शालीनता बरतना कतका जरूरी हे। मोला उम्मीद हे कि आप वोला बता पाहू कि दूसर मन ला  धमकाना अउ  डरहुआना कोनो अच्‍छा बात नोहय। अइसन काम करे ले वोला दूरिहा रइना चाही।
आपमन वोला किताब पढ़े बर कइहुच, फेर संगे संग वोला अकास मा उड़त चिरई मन ला, घाम मा हरियर-हरियर मइदान मा खिले-फूल के उप्पर मँडरावत तितली मन ला निहारे के सुरता घलो देवावत रइहू। मँय समझथंव कि ये बात ओकर बर जादा काम के हे।
मैं मानथंव कि स्कूल के दिन मा ही ओला ये बात घलो सिखाये बर पड़ही कि नकल मारके पास होय ले  फैल होना जादा अच्छा हे। कोनो बात मा भले दूसर ओला गलत कहँय, फेर अपन सच बात मा अडिग रहे के गुन ओमा होना चाही। दयालु मनखे मन संग नम्रता ले पेश आना अउ  बुरा मनखे मन संग सख्ती ले पेश आना चाही। दूसर मन के जम्मो बात सुने के बाद ओमा ले काम के चीज ला चुनना ओला इही बेरा मा सीखे बर पड़ही।
आप ओला ये बताय बर मत भूलाहू कि उदासी ला कइसनो करके खुशी मा बदले जा सकथे। अउ ओला इहू बताहू कि जब कभू रोये के मन करही त रोये मा शरम बिलकुल झन करही। मोर मानना हे कि ओला खुद के ऊपर भरोसा होना चाही अउ दूसर उपर घलो। तभे तो ओहा एक अच्छा इंसान बन पाही।
ये बात अबड़ अकन हे अउ लंबा घलो। फेर आपमन एमा के जतेक ला ओला बता सकथव ओतके ओकर बर अच्छा होही। फेर अभी मोर बेटा बहुत छोटे हे अउ अबड़ मयारुक घलो।
                        आपके अपनेच
                        अब्राहम लिंकन
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 स्वास्थ्य मंत्री के नाव  एक पाती 
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सेवा में, 
           आदरणीय स्वास्थ्य मंत्री जी, 
           छत्तीसगढ़ शासन।
विषय-कोरोना ले संबंधित वायरल खबर के पड़ताल करे बर 
      महोदय, 
               पाछू कई रोज ले सोशल मीडिया मा एक दू ठन वीडियो वायरल  होवत हे कि छत्तीसगढ़ के एकलौता एम्स अस्पताल  रायपुर मा कतको मरीज मन भगवान भरोसा परे हें, डाॅक्टर मन लहुट के नइ देखत हें। उहाँ आम मरीज के कुछू पूछाड़ी नइये। 
       दूसर कुछ अइसे मैसेज वायरल होवत हे ,जेमा स्वास्थ्य विभाग अउ प्रशासन ऊपर ए आरोप लगत हे कि थोरकुन खाँसी-खोखी, जर-बुखार मा घलो कोरोना मरीज बता के अस्पताल मा ठूंसे जात हे,ताकि केन्द्र सरकार  दुवारा मरीज पाछू आबंटित लाखों रूपिया के बंदरबाट हो सकय। 
          अइसन वायरल वीडियो, आडियो अउ मैसेज मन ले आम जनता के बिश्वास शासन-प्रशासन ऊपर ले डोल जथे। अउ कोरोना के जउँहर बिपदा मा हलाकान जनसमाज के फिकर अउ निराशा घलो बाढ़ जथे। 
       एकर सेती आप मन करा करजोर अरजी हे कि अइसन वायरल खबर या घटना के सच्चाई ला टमर के अउ बने पड़ताल करके जिहाँ खामी दिखय उहाँ  सुधार बर जरूरी कदम उठाहू ।सँगे-संग हमर राज मा कोरोना के कतका असर पड़े हे अउ इलाज के वस्तुस्थिति के सोला आना सिरतोन जानकारी जनता के आघू कोनो भी माध्यम ले सरलग रखत जाहू ,ताकि शासन-प्रशासन के कार्य पद्धति ला आम नागरिक ठीक ढंग ले समझ के कोरोना संग लड़ई मा पूरा बिश्वास के साथ अपन सहयोग प्रदान कर सकँय।
          सादर धन्यवाद  
                                      निवेदक
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                        जम्मो छत्तीसगढ़िया
दीपक निषाद-बनसाँकरा (सिमगा)
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 खैरझिटिया: --------मया के पाती----------

             ठउर- बाल्को, कोरबा
            दिनाँक- 07/08/2020

*मोर मया ल छोड़, कखरो मया मा झन अरझबे।*
*खून ले लिखत हँव पाती,सियाही झन समझबे।*

मोर मयारु,
               ----------,
               मया का होथे? गउकिन नइ जानव। फेर तोला देखे बिना न नींद आय न चैन, तोर सुरता अन्तस् मा अउ तोर मुखड़ा आँखी म समाये रथे। जेती देखथों तेती तिहीं दिखथस। तैं देखे होबे मैं बइहा बरन तोर आघू पीछू किंजरत रहिथों, कोन जनी मोला का होगे हे, का सिरतोन म मया होगे हे? हाँ, मोला तो लगथे हो गेहे, फेर तोर हामी बिना का मया?  मैं ये पाती नइ लिखतेंव, फेर का करँव? तोला देखथंव त मुँह ले बोली भाँखा चिटिको नइ फुटे। मोर हाथ गोड़ म कपकपी अउ जिया म डर हमा जथे। मोर जिया म तोर बर मया तो बनेच दिन ले हिलोर मारत हे, फेर वो मया के लहरा भँवरी कस घूम घूम के उही मेर सिरा जावत रिहिस, आज तक किनारा नइ पा सकिस। तेखर सेती मैं अपन मन के बात  बताये बर तोला ये मया पाती पठोवत हँव। तोला अपन संगी संगवारी संग हाँसत मुस्कात देख मोला अब्बड़ खुशी होथे। मोर मन मया के अगास म पंछी बरोबर उड़त सोंचथे कि उही मंदरस कस बानी कहूँ मोर बर छलकही तब का होही, कोन जनी कतेक खुशी मन मे समाही। तोर मया बिन मोर जिनगी अमावस कस कारी रात हे, जेमा चमचम चमकत पुन्नी के चन्दा बन उजियारा फैलादे। ये पाती लिखे के बाद, मैं अब तोर आघू पीछू घलो नइ हो सकँव। कोन जनी  अब तैं का सोंचबे?  मोर मन म तो तैं बसे हस, तोर मन म का हे? जवाब के अगोरा रही,
                     " तोर  मयारू"
                       खैरझिटिया
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7 comments:

  1. छत्तीसगढ़ी साहित्य के उत्कृष्टता अउ विविधता के प्रमाण हे ए संग्रह!

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  2. बहुत सुंदर संकलन, बड़ मजा आइस हे चिट्ठी पढ़े मा

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  3. बहुत ही अनुपम चिट्ठी पाती संग्रह गुरुजी साधुवाद 🙏 🙏 💐

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  4. चिठ्ठी पतरी के महत्तम आज भी वइसनेच हे जउन अंतर्देशीय लिफाफा अउ पोष्ट कार्ड कम लिखावत रहिन, बस ऑनलाइन होगे हे,व्हाट्सएप के रूप धरे।
    सुघर संकलन बर बधाई

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  5. बड़ सुग्घर लगिस ।वाह वाह

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  6. बहुत सुग्घर चिट्ठी पाती के संकलन

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