Thursday 30 November 2023

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य - गुरुजी के गुरुरनामा

 छत्तीसगढ़ी व्यंग्य -

गुरुजी के गुरुरनामा

बरसो बाद कालि फेर उदुपहा ‘‘नमो भूखमर्रा गुरूजी’’ के आगू म हपटके अभर गेवँ। 

पढ़त रहेन तेन समे सब्बो लइका वो गुरूजी संग कोनो मेरन झन संघरन कहिके बिनती बिनोवय। वो कहूँ बजार-हाट, रद्दा-बाट म दिख जावय त दुरिहे ले सब कन्नी काटके छू-लम्मा हो जावय। 

‘बाँचेवँ रे भाई !!’

कोनो जगा अचानक-भयानक संघर जावय त वो गुरूजी अपन सब काम -बूता ल भूला-छोड़ देवय। एकदम टकटकी लगाय हमरे कोति ल देखत राहय। उत्ता-धुर्रा सरपट रेंगत रहय तेनो हँ मरहा-खुरहा-पंगुरहा मन बरोबर एकदम धीरे-धीरे रेंगे-घिसले लगय। हमन ओला देख परन त मुड़ी ल नवाए कनेखी देखत ओकर नजर ले बाँचे के प्रयास म बिलई कस सपटे-लुकाए-तीरियाए असन रहन।

कहूँ हमन गुरूजी ल नइ देखे राहन त वोहँ हमन ल देखय-जानय अउ नमस्ते करय कहिके अपने अपन खाँसय-खखारय। अचानक नजर मिल जावय, देख परन, त वोहँ बिलकुल विकेटकीपर बरोबर तियार देखत राहय कि कब हम नमस्ते के बॉल फेंकन अउ वो ‘गपाक-के’ लपक-छपकके चपक लेवय। जब ओकर खखाय-भूखाय चेहरा, लार बोहावत लपलपावत बाहिर निकले जीभ अउ उसवाय आँखी ल नमस्ते बर अलकरहा अकबकाए-कलबलाए देखन त हमीमन ल नकमर्जी लगे लगय। नइ चाहते हुए घलो जबरन ’नमस्ते गुरूजी’ कहे बर लग जावय। हम पूरा-पूरा नमस्ते नइ कहे पाए राहन, वोहँ बिना कुछु देरी करे ‘तपाक-ले’ ताते-तात जुवाब दे देवय-

नमस्ते ! नमस्ते !!

गुरू आखिर गुरू होथे। वोहँ हमर चेहरा ल देखके पढ़-जान-समझ लेवय कि अब येहँ नमस्ते करइया हे। तेकर पाए के हमर आधे अधूरा नमस्ते निकले राहय अउ वोहँ मुड़ी ल हलाके जोरदरहा काँखत किकिया-चिचियाके नमस्ते कहि डारय। एके घँव तको नहीं, दू-तीन घँव कहि डारय- नमस्ते ! नमस्ते !! नमस्ते !!!

ओकर ले लगे हाथ फोकटइहा ये विज्ञापन हो जावय कि तीर-तखार के मनखे देख-सुनके जान-समझ जावय कि येहँ गुरूजी हरे। अउ इहाँ गुरू-चेला के राम-भरत-मिलाप होवत हे।

हरू खर्चा म गरू विग्यापन हो जावय। येला कहिथे असल अक्कल, चुस्त-दुरूस्त व्यवस्था अउ पोठ प्रबंध।

हमर ले नमस्ते झोंक-लपकके अपन झोला ल भर लेवय, तेकर पीछू उही नमस्ते ल चाँटत-चिचोरत-चबुलावत वोहँ अपन काम-बूता कोति ध्यान देवय।

बिहान भर ओ घटना हँ जम्मो छात्र मित्र मण्डली म दिनभरहा मनोरंजन के साधन बने कुण्डली मारे बइठे राहय।

उही ल खाके खखाय गुरूजी हँ दिनभर अपन गम भुलाए गुमसुम गमगमाए राहय।

गुरूजी ल देखते ही दुरिहा ले मैं दूनो हाथ ल जोर लेवँ-‘नमस्ते गुरूजी !’

वो मनढेरहा किहिस- नमस्ते ! (जानो मानो काहत हे कि राहन दे, अब मोला तुँहर झोला-छाप, झिटी-झाँझर, रिंगी-चिंगी नमस्ते के जरूरत नइहे) बड़ अचम्भा लगिस। अचम्भा के खम्भा ल खखौरी म चपके-दाबे मैं होंठ म मुस्कान ल हुदेनत लान के कहेंव -‘अबड़ दिन बाद आपके दर्शन होइस गुरूजी, बड़ खुशी होवत हे।’

गुरूजी मुसकियावत असमान ल देखे लगिस। ( मानो काहत हे -तोर ले जादा तो मोला खुशी होवत हे।)

‘मोर अहो भाग्य !’ (मन के बजबजावत नाली ले बुलबुला फूटिस, सोचेंव -‘अब तो सोचते होबे गुरूजी कि मोला नमस्ते कहइया मिलगे रे कहिके ?’)

होथे .....होथे। (गुरूजी सोचिस - ‘उहूँ ..... मोला ‘‘सच्चा गुरूजी पुरूस्कार’’ मिले हे तेला तोला बताना हे कहिके।)

गुरूजी के गुरूता, उदारता अउ महानता देखव कि वोहँ अपन चुचरू चेला के चेहरा देखके मन के बात ल टमर डारिस। ओइसने योग्य चेला तको मिले हे। दूनो के बीच तन अउ मन दूनो ले दुमुँहा गोठ-बात होय लगिस।

मैं कहइयच रहेंव- ‘आपमन ल ‘‘सच्चा गुरू.......’’ मोर मुँह के भाखा ल फटाकले झपट लिस अउ आँखी ल लिबलिबावत गुरूजी शुरूजी हो गइस -‘इही साल मैं ‘‘सच्चा गुरूजी पुरूस्कार’’ से सम्मानित होए हौं।’

‘गाड़ा गाड़ा बधाई हो गुरूजी।’

वो बिलई कस आँखी मूँदे टेटका कस मुड़ी ल हला-डोलाके स्वीकार करिस। ( स्वीकार का करिस जानो मानो कोनो कपड़ा के धुर्रा झटकारथे, तइसे झर्रा दिस-हूँ .........का झोलाछाप तैं अउ का तोर झोल्टू बधाई।)

‘आपमन ये पुरूस्कार ल पाके कइसे अनुभव करत हौ ? ........ ’ गुरूजी दूनो हाथ ल उठा भर दिस, भीतरे -भीतर गदगदई के मारे गदफद कुछू नइ बोल सकिस। मैं जानत रेहेंव कि एकर ले तिरछन, बंचक-पंचक, नवटप्पा अउ तीन-पाँच करइया कोनो हे, न तीन काल म कोनो होवय। तभो कहेंव - ‘सब आपके मेहनत, ईमानदारी अउ लगन के फल ये गुरूजी।’

‘बहुत चिला लहुटाए बर परथे बेटा !’ अतके काहत गुरूजी मोर हाथ ल धरके तीरत अपन घर कोति लेगे।

‘चल न .. एमेर खड़े-खड़े का बताहूँ, घर म बने बइठ के फुरसुतहा गोठियाबो।’

मैं अपन चरणकमल ले चरणदास ल नइ निकाले पाएँव वोहँ लकर-धकर जाके भीतर ले अपन पोथी -पुरान ल ले लानिस। मोला एकक करके देखाए लगिस -‘देख, तुँहर समाजिक बइठका के प्रमाणपत्र। अउ ये ओकर फोटू।’

‘अरे ! ये बइठका कब, कहाँ होइस गुरूजी, हमला काँही पतच् नइ चलिस।’

‘उहीच तो .....खोजे बर परथे गा, मोती बइठे-बइठे अइसने भूइयाँ म परे नइ मिलय -‘जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ’। गुरूजी मंद-मंद मुसकाए लगिस -‘कोनो जात के समाजिक बैठक होवय, मैं जरूर उपस्थित राहँव। ओ जात के विशेषता के बखान करौं। दू चार झिन ओ जात के मनखे मन ल महापुरूष बता देववँ। प्रमाणपत्र मिलनच् हे।’

‘अच्छा ! आपमन तो अक्सर इहाँ-उहाँ ये कार्यक्रम कभू ओ कार्यक्रम म घूमते राहव।’

‘त .... मैं कोनो दिन बारा बजे के पहिली स्कूल नइ गेवँ, न दू बजे के बाद कभू स्कूल म रहेवँ। तभो ये शत-प्रतिशत मोर हाजरी के प्रमाण देख ! अब सोच, ये कमाल होइस कइसे ?’ गुरूजी अँखिया-अँखियाके बताए लगिस -‘बीमार खटिया म परे रहँव तभो मोर गैरहाजरी नइ चढ़ै। दूसर गुरूजी अनुपस्थित हे अउ छुट्टी के आवेदन घलो नइ हे। अउ कहूँ कोनो साहेब-सुधा जाँच बर पहुँच गे त वो जाँच के आँच ले उन्कर म लाल स्याही के टीका लग जही। हमार न नइ लगय।’

गुरूजी ये। चुप रहिबे त एकर समझ म नइ आवत हे कहिके उल्टा गोला दाग देथे। ओकर ले अच्छा मैं कुछ पूछना ही उचित समझेवँ। मैं हल्लु-कन ओकर दिमाक के तरिया म अपन दिमाक के भैंस ल ढील देवँ - ‘अइसे काबर गुरूजी ?’

गुरूजी जोशियागे - ‘काबर कि हम पहिलीच ले टीकावन टीक डारे रहिथन। अइसन म कतको बड़े साहेब-सुधा होवय हमर सेर-सीधा के सुविधा के आगू म बोक्को-बोकरा होइ जथे। ये सब प्रबंध-व्यवस्था देखे-बनाए बर परथे, जाने।’

ओतके म एक झिन लबरा नेता ‘मीठलबरा सिंग छेरीचरे’ के गोड़ म घोण्डइया मारत गुरूजी के फोटू ल देख परेवँ। जेला जनम भर गुरूजी पानी पी-पीके गारी देवय। 

‘एहँ तो आपमन ले कतकोन के छोटे हरे का गुरूजी ?’

‘का होही त ! पाँव परे म माथा नइ खियावय। जेमा फर लगथे उही पेड़ नवथे। एहू जानत होबे माथ नवाए ले कोनो छोटे नइ हो जाय बेटा । मोला प्रमाणपत्र से मतलब। उही चढ़ौतरी के पलौंदी ले तो ड्यूटी के दौरान प्रमाणपत्र के फर म बढ़ौतरी करना रिहिस हे बस।’

गुरूजी ओतके म कुर्सी ले झुकके मोर कान तीर अपन बस्सावत मुँह ल टेकाके धीरे से कहिस -‘तैं तो अतके ल देखे हस। मैं तो एकर कस कतको जीछुट्टा, चोरहा, लबरा अउ लंपट नेता मन के मंच म चढ़के उन्कर चरण पखारे हौं। चारण घलो गाए हौं। एहँ अइसनेहे सब करम के परिणाम हरे बेटा ! जउन आज मैं सम्मानित होए हौं। स्वाभाविक हे, मान देबे त सम्मान पाबे। लगाए बर बम्हरी, फरे बर आमा कहिबे त कइसे होही बता ? पाँव परत म पद मिलय, त कोन फोकट के करम छीलय।’

गुरूजी आगू बोमियाते रिहिस -‘जनगणना ड्यूटी मैं कभू नइ करेवँ। बेरोजगार टूरा मन ले ठेका म करवाके ’सर्वश्रेष्ठ जनगणना करमचारी’ के प्रमाणपत्र पा लेवँ। सरकार ल जनगणना से मतलब, बेरोजगार ल पइसा से अउ हमला प्रमाणपत्र से जी ! पोलियो ड्राप मैं नइ पिलाएँव तभो सर्वश्रेष्ठ पोलियो करमचारी हौं। हाथ कंगन को आरसी क्या ? प्रमाण तोर आगू म हे।’

मैं मनेमन सोंचे लगेंव - ‘अरे ! भयंकर !! गुरूजी तो वाकई म गुरूजी हे भई। विचार भले पोलियो-ग्रस्त हे फेर दिमाक एक नंबर के मौकापरस्त हे।’

गुरूजी सरलग अपन बखान के गरू-गरू, बड़े-बड़े बात ढीलते गइस -

‘कोनो बड़का करमचारी-अधिकारी आवय, सबले पहिली मैं पाँव परवँ। चिन्ह-पहिचान होनच् हे।’

मैं कहेवँ -‘गुरूजी ! एक बात मोर दिमाक म नइ पचत हे।’

गुरूजी तुरत हाजमोला फेंकिस - ‘पूछ ! पूछ !! आज तोला सब ज्ञान से परिपूर्ण कर देथौं बेटा।’

‘सरकारी योजना, जइसे कि पोलियो ड्यूटी, जनगणना या चुनाव हँ सरकार के जिम्मा होथे त हाजरी चढ़गे। फेर कोनो समाजिक सम्मेलन के बेरा म आप उहों उपस्थित हौ अउ रजिस्टर के हिसाब से स्कूल म घलो उपस्थित हौ, ये कइसे होइस ?’

‘उही ....सब व्यवस्था। जइसे पैसा हाथ के मैल, तइसे सब व्यवस्था के खेल।’

गुरूजी हिन्दी साहित्य के बने जानकार रिहिस। अपन झोली ले निकालके एक ठन जोरदरहा लाइन फेंकिस - ‘सेवा ले मेवा बढ़य, त कोन बलि कस बोकरा चढ़य।’

मैं वाह ! वाह !! काहत गुरूजी के चाहत ल गोड़ ले तरूवा म चढ़ाए लगेवँ -‘ओकर फायदा गुरूजी ?’

गुरूजी के थोथना म गुरूता-गरूर के प्रमाण पत्र ‘लकलक-ले’ चमके लगिस।

‘उही सब प्रमाणपत्र ल नत्थी करे बर परथे ‘‘सच्चा गुरूजी पुरूस्कार’’ के फारम संग।’

‘जब आप अपन करम म बने हौ, त ये सब प्रमाणपत्र अउ दुनियादारी के का मतलब गुरूजी ?’

मोर सवाल के लबेदा परे ले गुरूजी के मंघार झन्नागे। दिमाक चार भाँवर घूमगे। वो अपन सात भँवरी संगिनी ल तुरत चिचियाइस - ‘पानी लान तो वो एक गिलास।’

गुरूजी सोचे लगिस -‘पूरा गोबर गणेश हे टूरा हँ। रात भर रामायण पढ़े, बिहिनिया पूछे, राम-सीता कोन ? त बताथे, भाई -बहिनी। पानी के लानत ले गुरूजी आँखी ल मूँदके माथा म अँगरी फेरत मने मन मोला गारी देये लगिस - ‘अतका चिचिया-चिचियाके सिखाएवँ-पढ़़ाएवँ फेर तैं बोदा के बोदा रहे रे। अरे अक्कल के दुश्मन ! सौ बक्का एक लिक्खा। कोन-कोन ल बतावत फिरतेवँ कि मैं टाइम म स्कूल आथौं-जाथां। हरेक सरकारी योजना ल बिना नागा करे जी परान देके सबले पहिली मैं पूरा करथौं। मैं सदा समे के पाबंद रथौं। ये सब प्रमाणपत्र के बिना मोला ‘‘सच्चा गुरूजी पुरूस्कार’’ कइसे मिलतिस।

मोर प्रश्न के बाद मोर प्रति गुरूजी के मन म तिरस्कार भाव आगे। संगे-संग ओकर कुचराए-कोचराए दिमाक म चारी चरित्र के घलो सूत्रपात होगे। घेरघेरहा टोटा ले धीरे से कहिस - ‘वो करमचंद सतरंगा हे न ?’

मैं पूछ परेवँ  -‘बीईओ साहब गुरूजी ?’

‘हाँ ...हाँ उही। वो नालायक ल साहब झन कहे करौ मोर आगू म, मोर मइन्ता भोगा जथे ओकर नाम सुनके। जनम के जाँगर चोट्टा आय वोहँ। जस नाम तस काम। इही करम करके वो सकलकर्मी, पहिली संकुल अधिकारी बनिस। छुट्टी के आवेदन पत्र लिखे बर नइ आवत रिहिसे। छुट्टी ल छट्ठी लिखय। हप्ता म चार दिन स्कूल आजय त अब्बड़ होजय। कोनो दिन मुड़ पिरावथे, कोनो दिन बाई के कनिहा धर लेहे, त कोनो दिन लइका ल दस्त होवथे कहि-कहिके नागा करय अउ घर म मस्त राहय। .......आज वो....... हमला सिखोथे ......अयँ।’

अचानक पता नहीं गुरूजी ल का सूझिस। पोंगा बंद होगे। चारी के बाना ल उतारके गंभीरता के चद्दर ओढ़ लिस। फेर धीरे से कहिथे-‘अइसे......मैं अब संकुल समन्वयक होगे हौं। जिला ले आर्डर निकल गेहे। बस एक दू दिन म मोर हाथ म अइच् जथे। अब मोर बर गुरूजी गरू होय लगे रिहिस अउ मैं गुरूजी बर हरू। मैं लकर-धकर संकुल समन्वयक के बधाई थमावत उठते रहेवँ, ओइसने म गुरूजी कहिथे - ‘चल, ठीक हे। अच्छा लगिस। मिलत रहिबे।........चाय तो नइ पीयत होबे ?’

‘नहीं.......नहीं गुरूजी।’

गुरूजी दाँत ल खिसोरिस - ‘ओकरे सेति तोर बर नइ बनवाएवँ हें हें हें .........!

महूँ दाँत ल निपोरत हें हें हें करत रेंगते बनेवँ।


धर्मेन्द्र निर्मल 

9406096346

कहानी: पिंजरा के चिरई

 कहानी: पिंजरा के चिरई


                                  चन्द्रहास साहू

                                मो 8120578897       

"तपत कुरु रे मिठ्ठू ''

पिंजरा मा धंधाये मिट्ठू ला आरो करत किहिस मोटियारी गंगा हा। मिट्ठू फर-फर उड़ावत हाबे।

"टेऊँ-टेऊँ टे... टे तपत कुरु !''

मिठ्ठू घला मया के गोठ सुनके कभु चोंच ला पाँख मा टोंचथे तब कभु पिंजरा भर पाँख ला फरिहा के उड़ियाये के उदिम करथे। का होइस चिरई  तो आय फेर जम्मो ला सीख डारथे,रट डारथे। मन मगन हो जाथे मया के बानी सुनके वोकरो। 

कटोरी भर भात लानके मड़ाइस गंगा हा।

"ले खा ले मिट्ठू !''

फेर मिट्ठू ला तो उसमान छूटे हाबे। हिरक के नइ देखिस। एक चोंच मारिस अउ गोड़ मा उण्डाये के उदिम करत हे कटोरी ला।

"चिकनू महराज ! थोरिक दम धर जादा रिसा झन, नही ते जौन मिलत हाबे तौन घला नइ मिलही....।''

गंगा हा मिट्ठू संग गोठियावत हाबे। कभु बरजथे तब कभु दुलारथे घला मिट्ठू ला। भलुक गंगा के अंतस के गोठ ला कोनो नइ जाने-समझे फेर गंगा ही तो आय जम्मो परिवार के अंतस के गोठ ला जानथे। मिट्ठू के अंतस के गोठ ला घला जान डारिस। बड़का  मिर्चा लानिस लाल-लाल,अब्बड़ चूरपुर अउ साग ला डारिस भात मा तब खाये लागिस मिट्ठू हा। चिकनू महराज !

भलुक जम्मो ला सीख डारथे मनखे बरोबर मिट्ठू हा फेर बिसवास टोरे बर नइ सीखें हाबे। कोन जन गंगा के मया-दुलार आय कि मिट्ठू हा उड़ियाये ला बिसरा दे हे, भगवान जाने। पिंजरा के फईरका भलुक उघरा हो जाथे तभो ले उड़ियाके अगास के गहिरी ला नइ नाप सके। भलुक परछी भर ला किंजर लिही अउ सबरदिन बरोबर फेर लहुट के धन्धा जाथे पिंजरा मा  गंगा बरोबर। हाय रे मोर बोरे बरा घूम फिरके मोरे करा। सिरतोन तो आय गंगा घला पिंजरा के चिरई बन गे हावय। माइके के उतबिरिस झक्की टूरी अउ ससुरार के- जिम्मेदार बहुरिया। ये जिम्मेदार आखर.... ? कोनो आखर नोहे भलुक बेड़ी आय गोड़ के। पिंजरा आवय जब तक जीयत रही तब तक धन्धा जाही माईलोगिन हा। न कभु कोनो आस ला सपूरन कर सकस,न अगास ला अमर सकस। रंधनी कुरिया के पुरती होगे पढ़े लिखे गंगा हा। इंजीनियरिंग मेकैनिकल ब्रांच के टॉपर गंगा भलुक एक दू बेर बुता खोजिस अपन लइक फेर गोसाइया के गोठ।

"अभिन तो नवा-नवा बिहाव होये हाबे अभिन इंजॉय कर लेथन ताहन सरी उम्मर बाचे हाबे नौकरी करे बर।'' 

अइसना तो केहे रिहिन गोसाइया राहुल हा। एक बेर अउ डेरउठी ले निकले के उदिम करिस तब फेर बेड़ी लगा दिस। 

"अभिन तो लइका मन नान-नान हाबे। छोटकी नोनी हा तो दूध पीयत हाबे कइसे जीही बपरी हा। तोर आवत-जावत ले लाँघन नइ हो जाही ?''

ये यक्ष प्रश्न के का जवाब दिही महतारी गंगा हा। कलेचुप कुरिया मा लहुट गे। अछरा के कोर के भिंजत ले रोइस फेर कोनो चुप नइ कराइस। जिम्मेदार बहुरिया आवय ना, अपन आँसू पोछे के जिम्मेदारी घला उठाये ला परथे। तभो ले, एक बेर अउ सामरथ करके नौकरी करे बर अपन कागज-पाती ला धरके गिस। 

"तोर असन माइलोगिन ला का जरूरत हाबे इहाँ नौकरी करे के ? तोर गोसइया राहुल हा सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज मा नामी प्रोफेसर हाबे। पइसा के का कमती तुंहर घर। जादा पइसा कमाके का करहु ? राहुल के कमई नइ पुरत हे का ?''

एक झन संस्था के मुखिया आवय। अइसन मइलाहा बिचार वाला संग बुता करके गंगा मइलाहा नइ हो जाही...? गंगा फेर लहुट गे अपन कुरिया।

           गंगा अपन दाई-ददा के एके बेटी आय-एकलौती। फुरफन्दी बरोबर किंजरे। जम्मो कोई बर मयारुक- गंगा,लाडो,भूरी,पांखी,पीहू, मिट्ठू जतका मुँहू वोतका नाव। एक झन टूरी गाँव भर नाव धरइया। बेटी तो बांस आय। झटकुन बाढ़ जाथे। अभिन-अभिन तो आठवी पास होइस, अभिन दसवीं अउ अभिन बारवी।....अउ बारवी पास होइस ताहन ददा के संसो बाढ़गे। अब कइसे पढ़ाव बेटी तोला ! बड़का कॉलेज फीस शहर के खरचा ? 

"मोला पढ़ा दे बाबू ! महुँ कुछु करना चाहत हँव बाबू ! कुछु बनना चाहत हँव। महुँ अगास मा उड़ियाहू, ददा मोला पाँख दे दे। शहर पठो दे। इंजीनियरिंग कॉलेज में भरती कर दे बाबू !''

गंगा रोये लागिस। 

"बीस हजार रुपिया लागही बेटी ! कहाँ ले अतका पइसा लानहु ? दुनिया मे सबले बड़का पाप आय बेटी-गरीब होना। ...अउ जन्मजात गरीब होना ? महापाप आवय-महापाप। काला बेंचो-भांजों ? न तोर दाई करा गहना-जेवर हाबे न ददा करा जमीन जैजात। नइ पढ़ा सकंव बेटी  ! अब अतकी मा मान जा। अब गोदी-माटी खनके जिनगी के पाठ ला पढ़।''

ददा हरा गे अब। सुन्ना अगास ला देखत किहिस। जनम आइस तब अब्बड़ सपना देखे रिहिन गंगा ला अब्बड़ पढ़ाबो-लिखाबो अइसे फेर .....?

"संसो झन कर लइका ला पढ़ाबो। मन ले झन हार। रद्दा देखाही भोलेनाथ हा।''

कुछु गुनत किहिस गंगा के दाई हा। रोवत गंगा के चेहरा मा उछाह तौरे लागिस अब। दाई आवय-पंदोली देवइया दाई। भोलेनाथ के नाव मा कोनो मंतर मारही। .... अउ सिरतोन दाई के मुँहू ले निकले गोठ संजीवनी बूटी होगे गंगा बर।

" हे भोलेनाथ ! तोर वाहन ला अब लेग जा। मोर लइका के पढ़े लिखे बर पइसा के बेवस्था कर दे। गाँव के लुबरु कोचिया ला बला अउ  लखिया-धौरा बइला मन ला बेंच दे, गाड़ा सुद्धा। गाड़ा हा सरत हाबे अउ बइला मन बुढ़ात हाबे। टेक्टर के आय ले कोनो नइ पूछे कमाये-धमाये बर अब।'' 

दाई भलुक टाय-टाय कहि दिस ददा ला फेर अंतस अब्बड़ रोवत हाबे। कमइया बेटा तो आय लखिया-धौरा बइला मन। ....फेर बेटा हो बहिनी के जिनगी बनाये बर बेचत हँव तुमन ला, मोला माफी दे देबे दाऊ !''

दाई अब्बड़ कलप-कलप के रोवत हाबे बइला मन ला पोटार के। ...अउ बइला मन ? वोकरो आँखी ले आँसू बोहावत हे। चांटत हाबे दाई के हाथ ला। करेजा फाट गे दाई के जब लुबरु कोचिया हा पइसा देके अपन घर लेगिस बइला गाड़ा मन ला तब। जावत बइला हा गोबर देके आसीस दिस गंगा के उज्जर भविस बर। तुलसी चौरा मा मान पावत हाबे कमइया बेटा के इही गोबर हा अब।

"बेटी अपन रद्दा मा आबे, अपन रद्दा मा जाबे ओ ! टूरी हा बांस आय बेटी ! अब्बड़ झटकुन आगी धर लेथे....... सावचेती रहिबे।''

"कतको आगी-बुगी लग जाये बेटी ! उहाँ विद्या हा बचाही। कलम के सामरथ हा तलवार के सामरथ ले जादा होथे बेटी। तलवार के दम मा खुर्सी नइ पावस भलुक कलम के बल मा बड़का इंजीनियर के खुर्सी ला पा लेबे। ... अउ बड़का खुर्सी वाली बन, इही तो हमरो सपना हाबे बेटी ! अब्बड़ पइसा अउ नाव कमा अउ हमर गरीबी ला टार दे।''

दाई-ददा दुनो कोई समझाये लागिस। अरपा-पैरी के धार बोहावत हे दुनो कोई के आँखी ले अब। रायपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज मा भर्ती कर दिस। मेकैनिकल ट्रेड। अउ उहाँ  के हॉस्टल मा राहय गंगा हा।

                   गोबर चिखला मा सनाये गाँव जोरातरई के बेटी अब राजधानी मा पढ़त हाबे। पहिली बच्छर, दूसरा बच्छर ....अउ अब फाइनल ईयर। जम्मो क्लास मा फर्स्ट डिवीज़न मा पास होइस गंगा हा।


"तेहां तो टॉपर अस बहिनी ! हमन ला झन बिसराबे बड़का अधिकारी बनबे तब।'' 

आवत जावत रहिबे रे गंगा हॉस्टल मा, कॉलेज मा।''

आज आखिरी दिन रिहिस गंगा बर। जम्मो संगी-संगवारी मन सुख-दुख के गोठ गोठियावत हाबे। येहाँ भलुक कॉलेज आय फेर चारो कोती के चाल-चलागन रस्म-रिवाज संस्कार-संस्कृति के मिलाप के ठउर घला आवय। रिकम-रिकम के सुभाव वाली लइका मन संग घला पढ़ीस गंगा हा फेर अपन आदत ला नइ बिगाडिस।

"आज आखिरी रात आय बहिनी ! एक चीज के साध पूरा कर दे मोर।''

"आज तो मोर संगी के रात आवय। हॉस्टल लाइफ कोनो कमती होही तौन ला पूरा करबो। जब छोड़ के जाही तब कोनो जिनिस के कमती झन होवय।''

"आज तो गंगा ला नइ छोड़ो मेंहा। एक बेरा मोर रंग मा जरूर रंगहू वोला।''

लता नेहा मनीषा मंदाकिनी जम्मो कोई संगी-संगवारी मन केहे लागिस गंगा ला दबोचत। जम्मो कोई अब्बड़ सुघ्घर हाबे फेर मइलाहा घला अब्बड़। बीड़ी सिगरेट के घला सुट्टा मार डारे हाबे अउ चखना संग सोमरस ला घला चीख डारे हाबे मंदाकिनी अउ सुरेखा हा। पढ़त खानी अब्बड़ जोजियावय गंगा ला घला। फेर गंगा भाग जावय। .....आज नइ बांचे गंगा हा।

दाई किरिया,ददा बबा ममा मामी ...अउ अब दोस्ती के किरिया खा डारिस सुरेखा हा।

"गंगा कांच के गिलास मा ढ़राये जिनिस ला पीये ला लागही सिगरेट के सुट्टा तीरे ला लागही...नही ते दोस्ती खतम।''

"डौका घर जाबे तब पछताबे रे टूरी! सरी रिकम ला इहींचे कर ले। पिंजरा के चिरई हो जाबे।''

मंदाकिनी आवय बरपेली सिगरेट ला ठुसत किहिस गंगा ला। जम्मो कोती हा.... हा.... ही...ही... के आरो आवत हे।

गिलास के पीयर रंग ला एक घुंट पीयिस तब सिरतोन गंगा हा जम्मो कोई के वादा पूरा कर दिस ...अउ बेलबेलही टूरी मन शर्त जीत डारिस। गरब करत हे अपन संगी मन उप्पर।

              आज डिग्री झोंक के घर अमरिस तब अब्बड़ मान पाइस गंगा हा। दाई-ददा काबा भर पोटार लिस बेटी ला- इंजीनियर गंगा ला। चित्र मित्र अउ चरित्र के सोर अब्बड़ उड़ाथे। गंगा के चरित्र के सोर उड़ाये लागिस। सुघ्घर सुशील गृहकार्य में दक्ष.......! अउ पढ़े-लिखे इंजीनियर गंगा । इंजीनियरिंग कॉलेज बिलासपुर के इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकॉम्युनिकेशन डिपार्टमेंट मा राहुल नाव के टूरा हाबे असिस्टेंट प्रोफेसर। सरपंच चोवाराम के संदेस सुनिस तब गंगा के ददा उछाह मा मुचकाये लागिस। न कोनो राग-पाग न कुंडली मिलान। दू इंजीनियरिंग के डिग्री मा गुन मिलगे-छत्तीस के छत्तीस गुन।भविस के उज्जर सपना देखे लागिस दुनो परिवार हा अब। मुचकावत डोली बइठके राहुल के डेरउठी के बहु लछमी बनगे अब गंगा हा।  सब तो मिलगे अब। मेरिट मा आय डिग्री, लाखो में एक गोसाइया, सुघ्घर घर परिवार अउ बड़का घर दुवार। चिरई बरोबर उड़ावय अपन सपना ला सपूरन होवत देख के गंगा हा। उछाह मा गमकत रहिथे। अब्बड़ ऊंचा अगास मा अब्बड़ ऊंचा उड़ान राहय गंगा के।

"गंगा अभिन सियान दाई ददा के संग रहा गाँव मा। बेरा-बखत देख के लेग जाहू बिलासपुर।''

गोसाइया के गोठ सुनिस तब जइसे भुइयां मा गिरगे धड़ाम ले गंगा हा। कभु नइ गुने रिहिस गंगा हा गाँव मा रहे ला लागही अइसे फेर एकलौता आवय राहुल हा, अब जम्मो जिम्मेदारी ला निभाये ला परही गंगा ला। ससुरार के जिम्मेदारी अब नागपाश बनगे। अरहज गे गंगा हा। अब दू लइका के महतारी बनगे फेर बेटी बनके सास ससुर के सेवा-जतन मा कोनो कमती नइ करिस।


"बेटी गंगा कहाँ हस ओ ! अकरस पानी मा जम्मो छेना-लकड़ी कपड़ा-लत्ता भींज जाही बेटी।''

सियान सास ससुर के गोठ सुनिस गंगा हा अउ सुरता के धारी ले निकलिस। लकर-धकर जम्मो ला सकेले लागिस। उत्ता-धुर्रा जम्मो ला तोपे ढांके लागिस। आषाढ़-सावन के पानी सिरतोन अब्बड़ बिटोना रहिथे। कभु सुरुज नारायेण चरचराथे तब कभु ओइरसा चुहँव पानी। 

लकड़ी छेना ला रंधनी कुरिया मा भीतराइस अउ चूल्हा बारे लागिस फु.....फु.....।

पानी मा मउसार लकड़ी छेना अब्बड़ पदनी-पाद पदोथे। आँखी ले आँसू आ जाथे चूल्हा के सपचावत ले। 

"जा बेटी ! लइका मन ला देख। मेंहा देखत हँव ये आगी ला। ये अगिन महराज हा कइसे नइ बरही देखथो। भलुक गाँव मा हाबे गंगा हा तभो ले सास बरोबर चूल्हा के मरम ला कहाँ जानही ? सास के बारे चूल्हा भरभर-भरभर बरे लागिस अब। .......उरीद दार अउ तुलसी मंजरी चाउर अब डबकत हाबे। पारा भर जान डारिस चाउर के ममहासी ला। उरीद दार घला डबकत हाबे बुडूक-बुडूक डुबक-डुबक। ...अउ खेखसी के साग ?  इही चौमासा मा निकलथे बोड़ा खेखसी केरा गभोती हा। जम्मो जिनिस घर के बखरी मा मिल जाथे। ठाकुर देव मा चार ठन पहिली फर ला टोर के चढ़ाए रिहिस सियान हा अउ बाचल-खोंचल खेखसी ला साग रांधत हाबे। अब बन गे जेवन। घर के डीही डोंगर बर नानकुन परसा पान मा जेवन परोसिस अउ फुलकांच के लोटा मा पानी दिस सास ससुर ला जेवन करे बर।  

"ये दे बाबूजी माँ पानी, चलो जेवन करहुँ।''

सियान-सियानहिन मन जेवन करिस। लइका मन ला खवाइस तब गंगा हा आचमन करके धरती मइयां मा माथ नवाके जेवन करे लागिस। अब्बड़ सुघ्घर साग-गुरतुर। गंगा जेवन करत हे । छेना लकड़ी सपच के बुतागे हाबे। फेर एक ठन गोठ रोज बरोबर अटके लागिस। महुँ हा छेना बरोबर सपच के बुतागेंव का....? अब जम्मो मोर सपना टूटत हाबे। दाई-बाबू जी के घला सपना रिहिन - लइका हा समाज बर कुछु करे अइसे। गाँव के लइका मन ला पढ़ाये, कुछु सिरजन के बुता करे अइसे। फेर का करत हँव मेंहा ? दाई-ददा अब्बड़ पढ़ाइस लिखाइस अउ मेंहा चूल्हा चुकी के पुरती होगेंव। गंगा अब फेर छटपटावत हाबे, गुनत हाबे। दू चार बेरा तो केहे रिहिन गंगा हा गोसाइया ला कुछु नौकरी करहुँ अइसे फेर .....? पिंजरा के चिरई बन गे। जिम्मेदारी के पिंजरा मा धन्धागे। 

                         गोसइया राहुल आज चाउर लेगे बर गाँव आये हाबे। सांझ कन आइस, टीवी मोबाइल मा देश दुनिया के हाल-चाल जानिस। दाई-ददा ला "बने तो हो का ?'' पाँव परत पूछिस अउ बस ....। दाई-ददा करा अब्बड़ समस्या हाबे फेर बेटा करा सुने बर बेरा नइ हाबे। ...बहुरिया सुन लेथे फेर जम्मो हा बहुरिया के बांटा तो नो हे ? दाई-ददा गोठियाये के उदिम करथे फेर बेटा तो अधिकारी आय। आने स्टाफ संग फोन मा डिस्कशन करत हे स्टाफ वाली मेडम के पहिनइ-ओढ़हई के सम्बंध मा। अब आही तब आही ...बेटा नइ ओधिस तीर मा। सोवा परगे तब गोठ उरकिस।  गंगा के टोंटा मा फेर उही गोठ अटकगे हाबे। छटपटावत हे, अकबकावत हे। फेर मन ला शांत करिस अउ पूछिस।

" गाँव तीर के आई टी आई मा पढ़ाये बर जाहू का जी !''

राहुल तो अकचकागे। गंगा अभिन तक नइ माने हाबे। एड़ी के रिस तरवा मा चढ़गे।

"तोला कतका बरजे हावंव तभो ले ...? मोर कमई नइ पुरत हे का ? दाई ददा ला फेंक देंव का मोर ? दाई ददा के जतन-पानी के डर मा भागे बर गुनत हावस। मेंहा अपन नौकरी मा बिलमे रहिथो तब कोन करही मोर दाई-ददा के सेवा। दाई-ददा के सेवा कर घर दुवार के जतन अउ लइका पिचका उपर सुघ्घर संस्कार दे। अतकी के आस राखथे जम्मो गोसइया हा। महुँ हा अतकी के पंदोली दिही कहिके तोर संग बिहाव करे हँव।.....फेर तोला तो मौका चाही हरहिंछा किंजरे बर ?''

राहुल तमकत हाबे। जच्छार होगे। फेर गंगा घला कमती हे का ?

"अतका पढ़ लिख के अप्पड़ बरोबर झन गोठिया जी। तोर दाई-ददा ला अपन सगे मानथो। फेर तेहां बिरान मानथस मोर दाई-ददा ला। कभु गुने हस मोरो कोनो साध होही कहिके  ? कभु गुने हावस मोरो दाई-ददा के सपना का हाबे मोर बर तेन ला ? बेटी पढ़ लिख के समाज के विकास मा पंदोली देबे अइसे कहाय ददा हा। तेहां पुरुष आवस न- पुरूष सत्ता के पक्षधर। नारी पढ़ लिख डारही तौन ला खिल्ली उड़ाथो। कॉलेज मा घला पढ़ाथस नर नारी एक बरोबर फेर घर मा का हो जाथे ? तुमन ला तो डर लागे रहिथे माईलोगिन भाग तो नइ जाही घर छोड़के ? आनी-बानी के भरम रहिथे तेकरे सेती पिंजरा मा धान्ध देथो।'' 

गंगा अब अगियाये लागिस। 

अब तो सियान मन घला पंदोली देये लागिस। 

"बेटा ! मेंहा धन्य हँव गंगा बरोबर बहुरिया पा के। अब्बड़ गुणवती हाबे बेटा येहां। तेहां तो मरही-खुरही दाई-ददा ला खाये हस कि नही तेला नइ पूछ सकस अउ बहुरिया हा हमर जम्मो नखरा ला उठाथे रे ! खटथे रात अउ दिन। तोर भरोसा मा रहितेन ते मर जाये रहितेन आज तक। बहुरिया के सेवा ले चंगा हावन। बिहाव के बेर तो आदर्श टूरा बनत रेहेस। गंगा तोर जौन साध हाबे तौन ला पूरा करहु कहिके किरिया खाये रेहेस। अतका दिन ले तोर बर खप गे बपरी हा। अब अपन साध ला पूरा करन दे। आई टी आई मा पइसा कमाये बर नइ जावत हे गंगा हा भलुक विद्या दान करे ला जावत हाबे। गरब कर अइसन गोसाइन बर।''

राहुल के दाई-ददा आवय। आज मयारू गंगा बर नित के गोठ गोठियावत हाबे दुनो कोई। बिसवास कर बेटा गंगा ऊपर सुघ्घर अउ संस्कारवति हाबे।''

राहुल ठुड़गा रुख बरोबर ठाड़े हाबे। मुँहू ले बक्का नइ फूटत हाबे-बोक-बाय होगे।

सास-ससुर के मया पाके गमके लागिस गंगा हा। बिहनिया तियार होइस। सास-ससुर के पाँव-पैलगी करिस अउ पिंजरा के मिट्ठू ला पिंजरा ले उड़ाइस। 

मुँहु मा स्कॉर्फ बाँधिस, हेलमेट पहिरिस, चश्मा चढ़ाके पर्स ला खांध मा अरोइस अउ स्कूटी स्टार्ट करके आई टी आई के रद्दा मा चल दिस गंगा हा अब। सास-ससुर अब हाथ हलाके आसीस देवत हाबे।

"दुधे खा, दुधे अचो बेटी !''

"जा मोर मयारू मिठ्ठू ! अब उड़ान तोर अउ जम्मो अगास तोर।''

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

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1,समीक्षा-पोखनलाल जायसवाल:

 आज शिक्षा के अँजोर चारों मुड़ा जगर-मगर करत हे। शिक्षा के प्रचार-प्रसार होय ले समाज ल कतको कुरीति अउ आडंबर ले मुक्ति मिले हे। शिक्षा के चलत लोगन के सोच बदले हे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण आय हे। नइ बदले हे त नारी के दशा। नारी शिक्षा पाके ससन भर उड़ना तो चाहथे, फेर उँकर हाल पिंजरा के चिरई जस हे। उड़ान भरना तो चाहथे, फेर भर नइ सकय। खासकर ए दशा सुशिक्षित परिवार म जादा देखे सुने मिलथे। पढ़े-लिखे अउ कमाऊ पुरुष नारी ल घर के भीतर कैद करके रखना चाहथे। तरह-तरह के जिम्मेदारी म फाँस उँकर क्षमता के शोषण करथे। उँकर सपना ले ओला कोनो मतलब नइ रहय। कहूँ कमई के (पइसा के) बात आथे त दंभ भरथे, कि का कमी हे तोला? ...का चीज के पुरती नइ होवत हे तउन ल बता? पढ़े लिखे पुरुष जब पढ़े लिखे नारी ल सम्मान नइ देवय, त ओकर नकसान पूरा समाज ल भोगे बर परथे। आज के तथाकथित सभ्य अउ सुशिक्षित समाज म नारी शोषक के समर्थक कतको राहुल हें। जउन नारी ल चिरई सहीं पिंजरा म धाँध के रखना चाहथें।

        गंगा गरीब मजदूर के मान बढ़ोइया सुशिक्षित अउ संस्कारित बेटी आय। जउन बेरा के संग जिम्मेदारी ल पूरा करथे। अपन अउ अपन दाई-ददा के सपना पूरा करे बर नारी जात ल लेके राहुल के दोहरा चरित्र ल उघारत झंझेटथे। ओकर बोलती बंद करथे। आज के जादातर शिक्षित अउ सम्पन्न(आर्थिक रूप ले) घर-परिवार म नारी के प्रति करनी अउ कथनी म इही फरक जादा मिलथे। सिरतोन म इहें नारी के जिनगी पिंजरा के चिरई ले कमती नइ जनावय। 

           नारी विमर्श के ए कहानी म युवा वर्ग के जीवनशैली अउ हॉस्टल लाईफ के जीवंत चित्रण कहानी के सुघरई तो बढ़ाबे करथे, कहानी बर काल्पनिकता ले हकीकत के जमीन तियार करथे। एक कहानीकार कोनो घटना ल कल्पना के उड़ान भर अइसन गढ़थे कि पाठक कहानी म अपन आसपास के घटना ल ही पाथे। 

       चंद्रहास साहू के कहानी के भाषा शैली उत्तम हे, कहानी के प्रवाह पाठक ल मिल्की मारन नइ दय। 

        कथानक के मुताबिक कहानी के शीर्षक सार्थक हे। सच म नारी के जिनगी पिंजरा के चिरई ले आने जनाबे नइ करय। 'जिम्मेदार बहुरिया' म जुड़े 'जिम्मेदार' शब्द ल लेके कहानीकार के कहना ....कोनो आखर नोहे भलुक बेड़ी आय गोड़ के। पिंजरा आवय जब तक जीयत रही तब तक धँधा जाही माइलोगिन हा...। सोला आना सिरतोन जनाथे। पिंजरा के चिरई बर।

      नारी विमर्श के सुघर कहानी अपन उद्देश्य म सफल हे, अइसन सुघर कहानी बर चंद्रहास साहू को बधाई💐🌹


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह (पलारी)

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2,समीक्षा--ओम प्रकाश अंकुर:


 सुघ्घर संदेश समाय हे चंद्रहास साहू जी के कहानी " पिंजरा के चिरई" म. चंद्रहास साहू के सबो कहानी ह दमदार रहिथे अउ अपन कहानी के माध्यम ले एक सुघ्घर संदेश देथे. अइसने यहू कहानी म देखे ल मिलथे. 

कहानी के मुख्य पात्र गंगा एक गरीब घर के बेटी आय. गंगा के ददा ह कहिथे कि अब मंय ह तोला इंजिनियरिंग कालेज नइ पढ़ा सकंव बेटी. गरीब होना सबले बड़का पाप हे.ये जगह के मार्मिक चित्रण भाई चंद्रहास साहू ह करे हावय. आगू बढ़े के सपना देखे बर गंगा ह अपन ददा -दाई कर कइसे कलपथे. तहां ले दाई ह गंगा ल आगू बढ़ाय बर हामी भरथे. फेर  गंगा ल इंजिनियरिंग पढ़ाय बर बइला अउ गाड़ी ल बेचे के दृश्य ह पाठक मन ल झकझोर के रख देथे. आंख ले आंसू टपका देथे. 


गंगा के कालेज म 

अब्बड़ मिहनत,उंकर सहेली मन के बेवहार के वर्णन के सजीव चित्रण करे गे हावय . फेर कालेज पढ़ के गांव म आना अउ अपन बेवहार ले सब झन ल प्रभावित करे के बात ल उकेरे गे हावय.

   फेर कहानी म टर्निंग पाइंट आथे बिहाव के बाद. वोकर गोसइया राहुल खुद इंजिनियरिंग कॉलेज म प्राध्यापक हावय. बिहाव के समय राहुल ह वादा करे रिहिस कि गंगा के योग्यता के मान राखे जाही. वोला नौकरी करे के इजाजत देबो कहिके. पर ये का राहुल ह तो गंगा के सबो सपना के छर्री -दर्री कर दिस अउ गंगा ह पिंजरा के चिरई बन के रहिगे जेहा मन से न पिंजरा ले निकल सकय न उड़ सकय. धंधाय रहिगे पिंजरा म. आजो गंगा असन न जाने कतको गंगा ले वोकर गोसइया अउ ससुर- सास मन बिहाव होत ले आगू बढ़ाय के हामी भरे रहिथे तहां ले धीरे ले पिंजरा के चिरई कस धांध के राख देथे अउ गंगा मन के सबो सपना ह टूट जाथे.!

पर चंद्रहास साहू के गंगा ह अपन अधिकार बर जोम दे देथे. सास ससुर के अब्बड़ सेवा घलो करथे तेकर सेति वोला सास ससुर मन वोला बेटी बरोबर मानथे. गंगा के बने बेवहार ह वोला आगू बढ़े म मदद करथे. वोकर सास ससुर मन अपन लड़का राहुल ल वोकर बेवहार बर फटकारथे अउ अपन बहू गंगा ल नौकरी करे बर भेजथे. राहुल के आंखी ल खोलथे कि बेटा अपन वादा ल झन भुला.

  ये मामला म चंद्रहास साहू जी के गंगा ह अब्बड़ भाग्यशाली हावय. नि ते गोसईया , सास -ससुर के कतको सेवा करय लेय गंगा मन. पर वोला आगू बढ़ाय बर उंकर मन के कान म जुआं नइ  रेंगे. अउ बिहाव के बेरा के अपन वादा ल नेता मन कस भुला जाथे!


  एक धारदार अउ सीखपरक कहानी हे " पिंजरा के चिरई" ह. पात्र के हिसाब ले सुघ्घर भाषा के प्रयोग करे गे हावय. कहानी के शैली सरल,सहज अउ प्रवाहमयी हे. बोलचाल के अंग्रेजी शब्द मन के प्रयोग करे गे हावय. घर,कालेज अउ आफिस के सजीव चित्रण देखे ल मिलथे. एक बढ़िया कहानी बर कहानीकार भाई चंद्रहास साहू ल गाड़ा - गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना हे. 

ओमप्रकाश साहू अंकुर

गऊ माता के इच्छा

 गऊ माता के इच्छा 

                    सरग म गऊ महतारी ला मनाये बर ब्रम्हाजी लगे रहय । गऊ माता हा धरती म जनम धरे बर बिलकुलेच मना कर दे रिहिस । ब्रम्हाजी कारण पूछिस तब गऊ माता बतइस - धरती के रहवइया मन महू ला मनखे समझथे अऊ अपने कस … खाये बर चारा देथे । मेहा मनखे थोरहे आँव ... तिहीं बता , मोला पचही तेमा  ? मोर रेहे बर .. बड़े बड़े गौशाला बना देथे ... हमन नानुक कोठा अऊ परसार के रहवइया आवन .. ओतेक बड़ जगा के आक्सीजन ... हमन ला बर्दाश्त नइ होवय , साँस ले बर तकलीफ शुरू हो जथे । इलाज पानी तो अतेक कर देथे के .. झिन पूछ ...। दूध नइ आही त सुजी , बाढ़हे बर सुजी ....... । बछरू बियाये बर सुजी .....। मोला अस्पताल सुजी पानी दवई बूटी हा डर लागथे ...... कहूँ मनखे मन कस घिसट घिसट के झन मरँव .. । ब्रम्हाजी किथे – तोला तो खुश होना चाही के .... तोर बहुतेच ख्याल राखथे धरती के मन .... ? गऊ माता किथे – खुश होके जातेंव ... फेर मोर का उपयोगिता हे उहाँ ... ? मोर दूध के कन्हो आवश्यकता निये .... मिठई बनाये बर यूरिया आ चुके हे । मोर गोबर कन्हो ला नइ चाही । छेना के जगा गेस सिलेंडर म जेवन चुरथे । उपज बढ़होये बर ... गोबर खातू के जगा .... रासायनिक कचरा हा खातू बन चुके हे । अब तो मोला बछरू जनमे के घला जरूरत निये ... मनखे के पेट ले ... भुकुर भुकुर के खवइया .... कतको गोल्लर ..... जनम धर डरे हे । मोर  पिला के का आवश्यकता हे अब तो खेती करे बर ...... मशीन निकल चुके हे । 

                  ब्रम्हाजी किथे – जे गऊ पोसथे तेला सरग मिलथे .... तैं नइ जाबे त .. मनखे मन कोन ला पोस के सरग म आहीं । गऊ माता किथे – धरती म पोसे पाले बर कुकुर हाबे .. । रिहिस बात तोर सरग के .. त सुन भगवान , जे कुकुर पोसथे तेकर घर , तोर सरग ले कतको सुंदर होथे .... । जीते जी सरग भोगइया मनखे ला मरे के पाछू ... तोर सरग के काये आवश्यकता । एक बात अऊ ... मेहा धरती म जाथँव त .... मोला कन्हो पोसय निही ..... मेंहा पोसथँव ... कतको झिन ला जियत ले अऊ कतको झिन ला ..... मरे के बाद .... । ब्रम्हाजी पूछिस - कइसे ? गऊमाता किथे – जियत रहिथँव त .... मोर नाव के सरकारी लछमी म .... कतको मनखे पल जथे । मर जथँव त .... मोर लाश म रोटी सेंकत ..... कतको के जिनगी सँवर जथे ..... । 

                    ब्रम्हाजी किथे – जनम धरे के बेरा लकठियावत हे ..... तैं जा बेटी ... ? गऊ माता किथे – तोर आदेश ...... मुड़ी नवा के स्वीकार हे फेर ...... मोरो एक ठिन शर्त हे ....... में उहां गाय के पेट ले जनम नइ धरँव ...... । उदुपले अइसन अलकरहा बिचार सुन ....... सुकुरदुम होके ब्रम्हाजी मुहुँ फार दिस ..... । पछीना पछीना होके ... सियान थकथकागे । हावा धुँकत .... चित्रगुप्त उपाय बतइस – येला दू गोड़िया बना देथन । वइसे भी धरती म येहा साधारन दू गोड़िया कस .... उपयोगिता विहीन होके ..... बिगन हुँके भुँके भुगतत हे .... । दू गोड़िया बन जही ते कम से कम मुहुँ तो दिखहि ....... । ब्रम्हाजी किथे – अतेक सिधवी ला काकरेच पेट म डार देबे .... ? मुहुँ ला काये करही देखाके .. ? चित्रगुप्त किथे – तैं ओकर फिकर झिन कर भगवान । में ओकर बेवस्था कर देवत हँव ..... । रिहीस बात मुहुँ के ... येहा बोलय झन कहिके ... जम्मो झन एकर सेवा बजाये के छ्द्म उदिम करही ... ।  उही समे ले गऊ माता हा जनता के नाव ले जनम धरके आये लगिस अऊ ओकरे कस भुगतत .. जिये मरे लगिस । तभो ले गऊ माता सिर्फ अतके म बड़ खुश हे के .... अब ओला जियत ले दूसर ला पोसे बर नइ लागे .... बल्कि उही ला पोसे के नाव म .... इहाँ के इंद्र मन .... जियत मरत लड़त भिड़त रहिथें ।  

  हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

कहानी : *एक लोटा पानी*

 कहानी : *एक लोटा पानी*

                       पोखन लाल जायसवाल

           भादो के महीना रहिस, अगास म पड़री बादर अइसे बगरे रहय, जइसे कोनो पोनी बेचइया ह पोनी के कुढ़वा मन ल बगरा दे हे, बीच-बीच ले झाँकत घाम चाम ल जरोते राहय। कमरछठ मनगे रहिस। आठे घलव बुलक गे राहय। आठे के दिन कृष्ण भगवान के असनादे बर घलव दया नइ दिखइस, बइरी बादर ह। करिया करिया मार घपटे रहिस अउ कोन जनी कति बिलम गे। द्वापर युग म इही बादर ह कइराहा इंद्रदेव के कहे ले जमके बरसे रहिस, वहू ल कातिक के महीना म। तभे तो एक अँगरी म गोवर्धन पर्वत ल उठाँय रहिन हें किसन महराज ह। छाता बरोबर सब के रखवारी करे रहिस तब गोवर्धन पर्वत ह। फेर अभी दिन अइसे जनावत हे कि चउमासा बुलक गे हे। कोनो-कोनो मेड़ पार के फूले काँसी ह बरसा के बुढ़वा होय के चारी करत हे। सफाचट के उतरे ले मेड़ पार के काँसी घलव नँदाय ल धर ले हे। अधछइहाँ घाम म फुरफूँदी मन बिकटे उड़त हवँय।

           आज तीजा हरे। बिहनिया ले घर-अँगना अउ दुआरी ल बहार-बटोर के बहिनी-माई मन असनान-ध्यान म लगे हें। भोले बाबा ल सुमिरन करत हें। माटी के बनाय शिवलिंग के अभिषेक करत  मोर माँग के सिंदूर सदा दिन चमकत रहय, कहिके पूजा पाठ करत विनती करत हवयँ। तीजा उपास ल पति के लम्बा उमर बर रखे जाथे। कोनो-कोनो मन अपन मइके तो आय हवयँ, फेर उपास नइ राखे हें। बेरा-कुबेरा कहूँ ए उपास टूट जथे त अउ रखे नइ जावय, इही मानता ले कुछ झन मन उपास रहई के शुरुआत नइ करे हें। वइसने जेन मन ए उपास ल शुरुच नइ कर पाय रहिन हें, ओमन आसो लौन के बाढ़े ले उपास नइहें। लौन नइ बाढ़े रहितिस, त अभी नवरात्र परब चलत रहितिस। चउँक-चउँक म देवी पूजा होवत रहितिस। माँदर के थाप अउ झाँझ के संग जसगीत सुनत मन झुमरत-नाचत रहितिस। गाँव के महामाई अउ शीतला दाई के मंदिर सजे मिलतिस। आस्था के जोति ले मन म उजास बगरत रहितिस। ए जोत अंँजोर तो आगू बगराबे करही, ओकर पहिली गणपति ल भजे ल परही अउ ओकर गे ले सरगवासी पुरखा मन ल परघा के असीस ले ल परही। अपन पुरखा मन ल हम नइ सोरियाबोन त काली हमर लइकामन हमर कति ले हियाव करहीं? अब तो कतको मन कहे धर लेहे - 'जीयत म पुछारी नहीं अउ मरे म सोहारी।' त कोनो अउ पटंतर देवत कहिथे- 'जीयत भर दू लोटा पानी बर नइ पूछे, अउ मरे म गंगा।' 

         शहरिया मन के चरितर ल सुन के गँवइहा मन के छाती फाट जथे। जेन ददा पुरखा के कमई ले टींग पूछ करथे। अपन गोड़ म ठाड़ होय रहिथे। उही दाई ददा के हियाव नइ करँय। अथक होय ले उन ल आश्रम म भरोसा छोड़ आथे। बने हे, ए बीमारी अभी गाँव म नइ सँचरे हे। 

          गणपति पंडाल तिरन इही गोठ ल सुन के सुरता आगिस पउर साल के। इही मेर के गोठ आय। जब अइसन पटंतर देवइया जवनहा मन के गोठ ल सुन के मनराखन बबा के रिस तरवा म चढ़गिस। अउ गुसिया के चिचियाइस। ' रे! परलोखिया हो!! तुमन अपन ल देखव। दूसर ल दोष काबर देथव? तइहा के मनखे मन अपन दाई-ददा के तन-मन ले सेवा करँय, खटिया म परे तभो जतन करँय। कभू दाई-ददा के आगू मुँह नइ उलत रहिन उँकर। अभी के मन ... एक ले दू होइस अउ दू ले चार महीना नइ बीते पाय, दू ठन चूल्हा बना डारथे घर म। घर के अँगना खँड़ा जथे। दाई-ददा बइरी जनाथे। अइसन मन बर तो दाई-ददा बोझा होथे... बोझा..।' 

        मनराखन बबा इही मेर नइ थिराइस आगू काहते गिस - अपन करनी ल तोपे बर दस बहाना तूहीं मन ल आथे, रे ननजतिया हो! पुरखा मन के नेंग-जोंग मन ल निभा नइ सकव त झन निभाव, फेर उँकर भावना के मजाक झन तो उड़ावव। कोन काहत हे तुम मानौ। फेर एकरे बहाना जउन पुरखा ल मानत हें उँकर आस्था ल तो चोट झन करव।'

        कोन जनी? मनराखन बबा के कोन पीरा ह उसल गे रहिस ते ओ दिन? बड़ सुनाय रहिस टूरा मन ल। सब्बो झन के मुँह सिलागिस बबा के गोठ सुन के। पंडाल सजई ल छोड़ के सुटूर-सुटूर टरक दे रहिन सबझन। 

       'ले बबा! चुप रहा...सबो झन भगा गिन हें अब। कोनो नइ हे। लइका आय नइ जानय। रीत रिवाज अउ उँकर मानता ल। हमीं मन सिखाबो अउ उँकरे मन के रम के समझाय म समझहीं। बिशेसर कका ह बबा ले कहिस।

*******

          'कुछु होवय एक बात तो मानेच ल परही कि तीज तिहार के बहाना हम बेटी मन बर मइके के दुआरी खुला रहिथे। कभू-कभू मन मुटाव अउ कोनो किसम के अनबोलना होगे हे, गलतफहमी होगे हे, वहू ह एकरे बहाना दुरिहा जथे। मन मिल जथे।'  करू भात खावत-खावत महेश्वरी ह अइसने च तो केहे रहिस काली अउ छोटे फुफू ह हुँकारू देवत कहिस - 'बने काहत हस बेटी! हम नारी-परानी मन तो बिहा के, मइके बर पहुना हो जथन। एक लोटा पानी भर मिलत रहय, मन म अतकेच के आस रहिथे। मया के बँधना ल इही एक लोटा पानी ह जोर के राखथे।' 

          बड़की फूफू ह जुन्ना दिन ल सुरता करत कहिस, 'अब तो पहिली के जइसे दिन नइ रहिगे हे। पहिली बहिनी-माई मन तीजा माने अठुरिया अकताहा मइके आ जवत रहिन। अब तो पोरा घलव ससुरार म मान लेवत हे। तीजा उपास रहे के दिन ले मइके के अँगना म हबरथे। करू भात के दिन बेरा आछत ले मइके पहुँचे के दिन-बादर (नेत मढ़ाथें) धरथें। लइका मन के पढ़ई-लिखई बहाना जउन होगे हे। पढ़ई ले जिनगी के अँगना म अंजोर बगरथे। बस्ता ल खूँटी म टँगई ह बने बात नोहय। प्रतियोगिता बाढ़ गे हावय, अइसन म चेत तो करेच ल परही। जे पढ़थे, ते बढ़थे।'

           फूफू के गोठ लम्बा रेस सहीं नॉनस्टॉप चलते रहिस।

           'मोटर गाड़ी घलव अब अपने हाथ के बात होगे हवय। घरोघर फटफटी जउन होगे हवय। बरसा पानी ले नरवा-ढोंरगी के पूरा आय के तो गोठेच नइ रहिगे हे। रपटा-पुलिया मन पक्की हो होगे हें। चउमासा म घलव पहिली घरी कस अब झड़ी नइ होवय। सुरुज नरायन के दर्शन बिगन बासी खवइया मन ल लाँघन रेहे के जरूरत नइ रहिगे हे।' बड़की फूफू कोनजनी अउ कतेक ल अमरतिस ते। रोटी-पीठा बनाय बर पिसान अउ जरूरी सबो जिनिस के गोठ करत महेश्वरी ह फूफू ल अपन गोठ ल घिरियाय बर कहिस। फूफू ह महेश्वरी के चाल ल समझ गिस, तभे तो कहिस- 'महेश्वरी ल मोर गोठ कभू भाबेच नइ करय।'

        महेश्वरी ह फूफू ल मनावत कहिस, 'अइसन बात नोहय दीदी, तहीं बता न? काली पूजा पाठ करे मंदिर जाबोन कि नहीं? अभी संसो नइ करबो त फेर तेलई कतका बेर बइठबो? ...मन नइच माढ़े होही त गोठियाइच ले। फेर मन ल झन मार ...मोर माता।'

         'नहीं बेटी ! में तो ठठ्ठा करत रेहेंव। तें सहीं काहत हस। ...अउ सुन न बेटी! काली अतके जुआर तोर मोबाइल म 'श्री शिवाय नमस्तुभ्यं' वाले महराज के कथा चलाय बर भुलाबे झन। शिव-पारबती के कथा सुनवाबे हँई?' अतका ल सुन सबो कोई हाँस डरिन। 

          दीदी! महराज तो तीजा तिहार म फुलेरा बाँधे बर कहिथे, बाँधबोन का ओ ...अतका ल सुन के छोटकी फूफू ल खलखला के हाँस डरिस।...

         तीजा के अगोरा तो सबो ल रहिबे करथे। लइका मन ल घलव ममा घर जाय के बड़ अगोरा रहिथे। आजकाल तो गरमी छुट्टी ह होमवर्क के भेंट चढ़ि च जथे। प्राइवेट स्कूल के तो हाल अउ झन पूछव। अइसन म घर म धँधाय लइका मन बाहिर जाय के सोचथें। फेर अब तो ओमन ल तिमाही परीक्षा के राहू गिरहा मन ह जम के घेर ले रहिथें। उँकर मनसा म पानी फेर देथे। महेश्वरी सात बछर के नोनी ल घर म छोड़ के आय रहिस। फूफू के मोबाइल कहे म नोनी कोति महतारी के मया उफनाय लगिस। सुरता के डोर लाम गिस। नोनी ले तुरते गोठियाइस तब कहूँ महतारी के उफनात मया शांत होइस।

          कुछु रहय मइके के सुरता ल तीजा के जोरन म अकताहा जोरत रहिथें। बेटी-माई मन घलव भाई-भौजी के घर एक लोटा पानी के थेभा बने रहय, सोचथें। इही आस म अपन मन ल मढ़ा लेथें। एकरे ले मया के बँधना जुरे रहय, इही आसरा करथें। इही आस ल तीजा तिहार ह बछर भर म पूरा करथे। 

           कोरोना बइरी ह अँगना ल उजाड़ कर दे रहिस। महेश्वरी के दाई-ददा अउ कोइली कस कुहकत नान्हे भतीजिन ल अपन गाल म भख ले रहिस हे। भाई कमलेश के अँगना सुन्ना होगे रहिस। बिपत के ओ घरी म भाई कमलेश ह यमराज के दुआरी ले, ले दे के घर लहुटे रहिस। बीस-बाईस दिन ले बिस्तर म परे रेहे रहिस। सबो के मन उतर गे रहिस हे। कोनो ल भरोसा नइ रहिस कि भाई ह हाथ आही। कमलेश के दाना-पानी बाँचे रहिस, तभे तो घर आ पाइस।.... बड़ दिन ले घर के हाँसी ल गरहन धर ले रहिस हे। कोरोना के लगे सूतक उतरे नइ रहिस। 

           चार महीना पहिली घर म नवा सगा के आय ले खुशहाली ह लहुटे हावय। इही तो जिनगी आय। दुख के पाछू सुख अउ सुख के पाछू दुख लगे रहिथे। बेरा एके ठउर म नइ ठहरय। उवत बेरा धीरे-धीरे बुड़ती म जाथे, त रतिहा पोहाय ले फेर उत्ती डहर ले झाँके लगथे। बिहनिया सुरुज नरायन अपन अँजोर ले घर के मुहाटी खटखटाथे। अउ नवा संदेशा देथे, नवा शुरुआत के। दुख के दिन ल बिसार हँसाय के उदिम करथे। दुख के घड़ी आथे त चल घलव देथे। घड़ी के काँटा कब रुके हे, भितिया म टँगाय घड़ी के जेन काँटा बारा बजावत ठाड़ तपथे, उहीच काँटा तो छै बज्जी अपन थोथना उतार देथे। बस मनखे ल मन म आस अउ धीर राखे के चाही। अइसने कमलेश के जिनगी म छाय उदासी के अँधियार घलव छटगे रहिस हे। अँगना म फूल ममहात रहिस। ओकर जिनगी अब उछाह ले भरगे हावय।

          चतुर्थी के दिन हरे। कमलेश तीजहारिन फूफू अउ बहिनी मन ल तीजहा लुगरा देवत हावय। लुगरा झोंकत फूफू मन के आँखी छलछलाय लागिस।  बड़की फूफू के मुँह अपन भाई-भौजी के सुरता करत रोनहुत होगे। सुरता कइसे नइ आतिस, जइसने लुगरा भाई भौजी बिसावय तइसने च लुगरा भतीजा घलव बिसाय हे। कोनो भेद नइ करे हे कमलेश ह बहिनी अउ फूफू म। लुगरा ल झोंकत बड़की फूफू कहिस,  ''कमलेश बेटा! हम ल अइसने तीजा म सोरिया ले करबे बेटा। भलुक लुगरा झन बिसाबे। मन म अतके आस हावय कि जीयत भर ए घर म एक लोटा पानी मिलत राहय। मया के पाग म जुरे नता कभू छरियाय झन।"

           अतका सुन के कमलेश कहिथे- "दीदी! ददा के रहिते आवत रेहे, त ददा के गे ले नता गोता ल मैं नइ सरेखहूँ त कोन सरेखही? बाप एके झन रहिन अउ महूँ तो अकेला हवँव। पुरखा मन के चलागन ल आगू बढ़ाय बर। भाई रहितिस त ओकर हिजगा करतेंव। बाप अउ भाई के आँखी मूँदे ले तोर मइके डेरउठी तो इही भतीजा के डेरउठी आय। तीजा ले जुरे तुँहर आस ल कभू नइ टोरँव दीदी मैं ह। काहीं ल सकँव, ते झन सकँव... एक लोटा पानी ल जरूर सकहूँ।"

          भादो के महीना म पानी बरसत नइ हे त का होइस, फूफू-भतीजा के मया छलके लगिस। दूनो के आँखी ले अरपा-पैरी बोहाय लगिस। महेश्वरी फरहार बर लोटा के पानी मढ़ावत दू मन आगर फूफू मन ल कहत हावय- मोरो घर एक लोटा पानी तुँहर अगोरा करत हावय दीदी हो। भाई ऊपर जम्मो मया ल झन ढकेलव, थोर बहुत मोरो बर बचाहू।....अब जम्मो झन खिलखिला के हाँसत हावय।



*पोखन लाल जायसवाल*

पठारीडीह (पलारी)

जिला: बलौदाबाजार भाटापारा छग

मो. 6261822466

जेठउनी

 जेठउनी ....

    कातिक के दूसर पाख एकादशी ...तुलसी बिहाव है न ? आज के बाद चार महीना ले सुते देवता धामी मन जागहीं तभे तो लोग लइका मन के बर बिहाव सुरु होही । लोक मान्यता आय ओइसे मुख्य कारण ये हर आय के चार महीना चौमास मं लोगन खेती किसानी मं बिपतियाय रहिथे । पानी बादर मं बर बिहाव करे ले घराती , बराती सबो ल परेशानी तो होबे करथे । 

      वृंदा पतिव्रता नारी रहिस फेर मति फिर गे ते पाय के छल ल नइ चीन्ह पाईस , रिसा के पति महाराज श्राप दिस जा तैं तुलसी के बिरवा बन जा फेर तोर जघा घर के बाहिर अंगना मं रहिही । ठीक हे भाई सदा दिन ले तो नारी ही सजा पावत आवत हे । चिटिकन ध्यान देहव ...हमर संस्कृति मं नारी के शक्ति रुप के पूजा अर्चना के विधान घलाय तो हे न ? तभे तो वृंदा श्राप दिहिस भगवान हरि ल , गुनव तो नारी के शक्ति ल ..दूसर बात के भगवान हरि नारी के सम्मान करीन तभे तो मूड़ नवा के सालिग राम पथरा बन गिन । ओकरो ले बड़े बात के तुलसी चौंरा मं सालिग राम तुलसी के जरी मेरन  माने गोड़ तीर बिराजथें ...। भगवान तो पुरुषोत्तम आयं न फेर नारी ल सम्मान देहे बर शरणागत हो गए हें । 

     इही हर आय हमर संस्कृति के विशेषता जिहां नर नारी दूनों एक दूसर के सम्मान करथें , कोनो छोटे बड़े नोहयं बल्कि एक दूसर के पूरक आयं । 

वृंदा के महत्ता ल उजागर करे च बर तो कहिथन वृंदावन बिहारी ...। 

   फेर कोनो दिन अउ लिखिहंव ...चलत हंव कुसियार के मड़वा तियार हे तुलसी , सालिगराम के बिहाव करे बर हे । 

सरला शर्मा

शिक्षा माध्यम के महत्व..

 शिक्षा माध्यम के महत्व..

    जेन भाखा म हम शिक्षा पाथन वो भाखा के संगे-संग वोकर ले जुड़े कला, संस्कृति, साहित्य, इतिहास अउ गौरव सबके हमन ल जानकारी होवत जाथे. वोकर ले जुड़े धर्म, पूजा उपासना के प्रतीक अउ जीवन पद्धति घलोक कोनो न कोनो माध्यम ले हमर जिनगी म समावत जाथे. 

    आज अपन आसपास ल देख लेवव. हमन ल हिन्दी भाखा के माध्यम ले शिक्षा दिए गे हे, तेकर सेती जतका हिन्दी भासी क्षेत्र अउ राज्य हे, उन सबो ले जुड़े संस्कृति अउ परंपरा ल घलो हमला पढ़ाए गे हे. जबकि हमर महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी आय, फेर हमला छत्तीसगढ़ी के माध्यम ले शिक्षा नइ दिए गे हे, तेकर परिणाम ए आय के हम छत्तीसगढ़ी ले जुड़े संस्कृति अउ परंपरा ल वतका नइ जानन जतका हिन्दी ले जुड़े संस्कृति अउ परंपरा ल जानथन-समझथन. इही शिक्षा के माध्यम के सेती आज हम अपन मूल संस्कृति अउ परंपरा ल बिसरावत जावत हन. एकर ले बचे बर एकर असल कारन, माने शिक्षा के माध्यम ल अपनाना परही. जब हमर शिक्षा के माध्यम छत्तीसगढ़ी बनही, तभे छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी ले जुड़े जम्मो कला, संस्कृति परंपरा, इतिहास अउ गौरव बांचे पाही, हमर आने वाला पीढ़ी जान पाही, आत्मसात कर पाही.

    मैं तो इहाँ तक कहिथौं, हमन ल धर्म अउ पूजा उपासना के बारे म घलो इही मानक ल अपनाना चाही. मैं हमेशा लिखत-बोलत रहिथौं- छत्तीसगढ़ आध्यात्मिक रूप म अतका समृद्ध हे, ते हमला कोनो भी बाहर के न कोनो गुरु के जरूरत हे, न कोनो ग्रंथ के, न कोनो उपासना के प्रतीक या विधि के. इहाँ सबकुछ हे, बस जरूरत अतके हे, के हम अपन पुरखौती परंपरा ल झांकन, वोला धो-मांज के उजरावन अउ अपन संगे-संग जम्मो पिरोहिल मनला आत्मसात करे बर जोजियावन.

    आज हमन छत्तीसगढ़ी भाखा ल शिक्षा के माध्यम बनाए खातिर सरकार जगा गोहरावत रहिथन, वोकर इही सब कारन आय. जे दिन छत्तीसगढ़ी इहाँ के शिक्षा के माध्यम बन जाही, हमर हर किसम के विकास अपने-अपन हो जाही. हमला 

 कोनो भी कारन ले ककरो मुंह देखे के जरूरत नइ परही. 

जय छत्तीसगढ़.. जय छत्तीसगढ़ी

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

छत्तीसगढ़ी" कब बनही राज-काज के भाखा ..???

 "छत्तीसगढ़ी" कब बनही राज-काज के भाखा ..???


28 नवंबर 2007 के  छत्तीसगढ़ विधानसभा म छत्तीसगढ़ी ला राजभाषा के दर्जा दे खातिर विधेयक पारित करे गे रहिस । तब ले हमन 28 नवम्बर के दिन ला छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के रूप म मनावत आत हन। 16 बछर होगे हवय छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा बने फेर अब तक राज-काज के भाखा नइ बन पाना ये चिंता के विषय हे ।


पाठ्क्रम म छत्तीसगढ़ी भाखा ला शामिल करें के माँग कई बच्छर ले उठत रहिस । प्राथमिक स्तर म कक्षा पहली ले पाँचवीं तक कम से कम एक विषय छत्तीसगढ़ी ल अनिवार्य रूप से लागू करे के माँग ल सरकार पूरा तो करिस फेर छत्तीसगढ़ी के संग अन्य क्षेत्रीय बोली ल अलग अलग जगा पढ़ाये के उदीम कर के छत्तीसगढ़िया मन ल बांटे के काम सरकार हा कर दिस। जब कोनो राज के भाखा,साहित्य अउ संस्कृति के विकास होही तभे सही मायने मा उँहा के मनखे मन के विकास होही। छत्तीसगढ़ी म सरलता अउ सहजता लाये खातिर देवनागरी लिपि के जम्मो 52 वर्ण के प्रयोग होना चाही संगे संग दूसर भाखा ले आये शब्द ल ज्यों के त्यों ले बर परही येकर ले छत्तीसगढ़ी के शब्द भंडार घलो बाढ़ही । शब्द भंडार बाढ़े ले भाखा के प्रसार अउ व्यापक होही।

          छत्तीसगढ़ी प्रायमरी स्कूल म लागू होय के पहिली ले एम.ए.के कोर्स विश्वविद्यालय म पढ़ाये जात हवय फेर  छत्तीसगढ़ी भाखा फिलहाल तक रोजगारोन्मूलक नइ हे। एम.ए.करे के बाद युवा मन बेरोजगार घूमत हवय। यदि भाखा हा रोजगारोन्मूलक नइ होही तब वो भाखा ला कोनो काबर पढ़ही ? सवाल यहू हवय कि जब हिन्दी, अँग्रेजी, संस्कृत सहित अन्य प्रदेश के भाखा म पढ़े लिखे युवा मन बर रोजगार के अवसर हवय तब छत्तीसगढ़ी भाखा के पढ़े लिखे युवा मन बर काबर नहीं ? अउ यदि छत्तीसगढ़ी मा एम.ए.करे युवा ल रोजगार नइ मिलही तब ये कोर्स चलाय के का फायदा ?


छत्तीसगढ़ी ला आठवीं अनुसूची में शामिल करे बर के बात कहे जाथे ये केवल मन ला बहलाए के उदिम आय। प्रदेश के सांसद मन लोकसभा अउ राज्यसभा मा ये मुद्दा ला उठाइन,बने बुता करिन हवय फेर एक संग एक स्वर म काबर नहीं। फेर मोर सवाल अतके हवय कि पहिली अपन राज म तो छत्तीसगढ़ी ला राज-काज के भाखा बना लव फेर आठवीं अनुसूची कोती जाबों । छत्तीसगढ़ी आठवीं अनुसूची म जब आही तब आही अभी फिलहाल तो राज-काज के भाषा बनाना जरूरी हवय। जेन काम केंद्र के आय तेकर बर दउड़ धूप अउ जेन काम राज के आय तेकर बर सबो चुप..? 


छत्तीसगढ़ के जम्मो जन प्रतिनिधि मन छत्तीसगढ़ी ल बने ढंग से जानथे अउ बोलथे घलो फेर विधानसभा के कार्यवाही, मंत्रालयीन कार्य, प्रेस कांफ्रेंस अउ आम बोलचाल मा छत्तीसगढ़ी के उपयोग काबर नइ करय ? जइसन धारा प्रवाह छत्तीसगढ़ी के प्रयोग चुनावी भाषण म करथे, चुनाव होय के बाद अपन महतारी भाखा ल काबर भुला जथे ? सही मायने म देखा जाय ता छत्तीसगढ़ी ल यदि कोनो बचा के रखे हवय ता वो हे- गाँव के किसान, मजदूर, काम वाली बाई, मिस्त्री, बढ़ई मन हे। जेन दिन इमन छत्तीसगढ़ी बोले ल छोड़ देही वो दिन छत्तीसगढ़ी नँदाय के कगार म पहुंच जाही। 


छत्तीसगढ़ी के प्रशासनिक शब्दकोष तैयार करे गिस अउ प्रशानिक अधिकारी मन ला मंत्रालय मा  प्रशिक्षण भी दे गिस फेर मंत्रालय के अधिकारी मन छत्तीसगढ़ी के कतका प्रयोग करथे ये बताय के जरूरत नइ हे। जब राजनेता मन छत्तीसगढ़ी  बोलही तभे अधिकारी अउ कर्मचारी मन छत्तीसगढ़ी बोलही। काबर जेन भाखा ल राजा बोलथे उही भाखा के प्रयोग नौकरशाह करथे। छत्तीसगढ़ी तो केवल नाम के राजभाषा हावय काम तो होबे नइ करत हे। छत्तीसगढ़िया मनखे मन सरकार डहर आस लगाए देखत हवय आखिर  छत्तीसगढ़ी कब बनही राज-काज के भाखा..?


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

छत्तीसगढ़ी राज्य भाषा दिवस म विशेष छत्तीसगढ़ी के दशा अउ दिशा

 छत्तीसगढ़ी राज्य भाषा दिवस म विशेष 



छत्तीसगढ़ी के दशा अउ दिशा 


 छत्तीसगढ़  देस के 26 वां राज्य हरे.  छत्तीसगढ ह 1 नवंबर 2000 म नवा राज्य के रुप सामने आइस.  




 इहां के राज्य गीत 'अरपा पैरी के धार...' हे. येकर रचयिता डा. नरेंद्र देव वर्मा हरे. राजकीय पशु वन भैंसा, राजकीय पक्षी बस्तर के पहाड़ी मैना, राजकीय वृक्ष साल या सरई, राजकीय फूल गोंदा  ( गेंदा)अउ प्रमुख भाषा छत्तीसगढ़ी हरे. इहां के अभी राजभाषा हिंदी हे. छत्तीसगढ़ी राजभाषा बने खातिर आठवीं अनुसूची म सामिल होय बर अगोरा करत हे. इहां के रहवासी मन येकर बर अपन अपन तरीका ले उदिम करत हे. छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग घलो बने हावय. 




  कतको इतिहासकार मन के मत हे कि हमर छत्तीसगढ भगवान श्री रामचंद्र के माता कौशल्या के मईके हरे. छत्तीसगढ़ के पुराना नांव कोसल रिहिस  अउ इहां के भाषा ल कोसली कहे जाय.कौशल्या के नांव भानुमति रिहिस जउन ह दक्षिण कौशल के महाप्रतापी राजा  भानुमनत के बेटी रिहिन. अयोध्या के राजा दशरथ के महारानी भानुमति कौशल प्रदेश के होय के कारन आगू चलके कौशल्या कहलाइस. आदिकाल म छत्तीसगढ़ महाकौशल  नांव ले प्रसिद्ध रहे हे. श्रीराम के जनम भले अयोध्या म होय हे पर कर्मभूमि छत्तीसगढ़ रहे हे. श्रीराम के ननिहाल दक्षिण कौशल म चंदखुरी (आरंग) हरे. बाल्मिकी द्वारा रचित रामायण के अनुसार सूर्यवंशी श्री राम अपन वनवास काल म लगभग बारह बछर तक इही छत्तीसगढ़ (सिहावा) राज्य म वो समय के सप्तऋषि क्षेत्र म बिताय रिहिन.


हैदरअली अउ रत्नदेव के बाद पृथ्वी देव,जाजल्व देव चेदीवंशीय राजा मन कोसल प्रदेश म ३६ किले (गढ़) बनवाइस.येकर अलावा गोंड राजा मन घलो गढ़ बनवाइस.चेदीवंशी राजा मन के कारन ये राज के नांव चेदीसगढ़ रखे गिस जो आगू चलके छत्तीसगढ़ कहलाइस. तेकर सेति इहां के कोसली भाषा ह घलो छत्तीसगढ़ी कहलाय लागिस.  छत्तीसगढ़ी अब्बड़ पुराना भाषा आय .राज्याश्रय नइ मिल पाय के कारन छत्तीसगढ़ी के लीखित रुप विकसित नइ हो पाईस.पर इहां के जन जीवन म ये भाषा ह मौखिक रूप ले बराबर फूल -फरत अउ बाढ़त रिहिस.अउ आजो  छत्तीसगढ़ राज बने तेवीस बछर पूरा होगे पर सही ढंग ले राज्याश्रय नइ मिल पाय के कारन संविधान के आठवीं अनुसूची म शामिल नइ हो पात हे. 


आज छत्तीसगढ़ राज्य बने 23  बछर होगे. अलगे छत्तीसगढ़ के मांग अंग्रेज शासन के समय ले करे जात रिहिन हे. हमर छत्तीसगढ ह मध्यप्रदेश के 44  बछर तक हिस्सा रिहिन.




  अलगे छत्तीसगढ़ राज बर हमर पुरखा मन अब्बड़ लड़ाई लड़िन हे. राजनीति दल, राजनीतिज्ञ के संगे -संग हमर छत्तीसगढ के साहित्यकार, कलाकार, पत्रकार अउ मजदूर, किसान मन के गजब सुग्घर योगदान हे. ये बने बात हे कि छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन म कोनो किसम के खून- खराबा, सरकारी संपत्ति ल नुकसान  नइ पहुंचाय गिस. ये हमर छत्तीसगढ के बड़का उपलब्धि हरे.आप सब ल मालूम हे कि 

आने राज बने म नंगत खून खराबा होय हे. 


  छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना म इहां के साहित्यकार अउ कलाकार मन के गजब सुग्घर योगदान हे.




कोनो भी देश अउ राज्य के पहिचान उहां के भाषा के माध्यम ले होथे.अपन स्वाभिमान, अतीत के गौरव, संस्कृति के रक्षा अउ विकास बर अपन मातृभाषा सबले बड़का माध्यम होथे. वइसने छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ के आत्मा हरे. हमर छत्तीसगढ़ी ह आठवीं अनुसूची म शामिल होय बर लड़त हे.


  


धनी धर्मदास - संत धर्मदास संत कबीर के शिष्य रिहिन. उंकर जनम  सन १३९५ म कसौदा गांव , बाधोगढ़,के वैश्य परिवार म होय रिहिन हे.  उन्कर कर्म क्षेत्र छत्तीसगढ़ रिहिन. बांधो गढ़ पहिली छत्तीसगढ़ म रहिस हे.१४५२ म वो सत्यलोक प्रयान करिन. हेमनाथ यदु जी ह धर्मदास ल छत्तीसगढ़ी के पहिली कवि मानथे.  वोहर कवर्धा (कबीरधाम) म कबीर पंथ‌ के स्थापना करिन. वोहर संत कबीर ले प्रेरित होके निर्गुन भक्ति के कतको पद के रचना छत्तीसगढ़ी भाषा म करिन. वोकर पद म हमला छत्तीसगढ़ी भाषा के पुराना रूप के दर्शन होथे.  छत्तीसगढ़ी चौका गीत म धर्मदास के नांव के उल्लेख हे.ये ह लोकगीत अउ लोक भजन के रूप म गजब प्रसिद्ध हे. संत धर्मदास ह लोक गीत के सहज,सरल शैली म निगूढ़तम दार्शनिक भावना ल अभिव्यक्त करिन. धर्मदास के उद्देश्य साहित्य सृजन करना नइ रिहिस. वोहर

तो निर्गुन भक्ति के प्रचार के रूप म छत्तीसगढ़ी ले प्रभावित होके पद लिख के संतोस कर लेइस.


जमुनिया की डार मोरी टोर देव हो।

एक जमुनिया के चउदा डारा,सार शबद ले के मोड़ देव हो.


मोर हीरा गवां के कचरा में, कोई पूरब,कोई पछिमम बतावै, कोई बतावै है पानी पथरा में।


छत्तीसगढ़ के संस्कृति, साहित्य अउ धर्म परंरपरा के बढ़वार म संत धर्मदास के अब्बड़ योगदान हे.


दलपत राव - खैरागढ़ के राजा लक्ष्मी निधि राय के चारण कवि दलपतराव ह सबले पहिली छत्तीसगढ़ शब्द के प्रयोग १४९४ ई.म करे रिहिन.


सुंदर राव - देवी प्रसाद शर्मा,बच्चू जाजगीरी है खैरागढ़ के कवि सुंदर राव ल छत्तीसगढ़ी के पहिली कवि बताय हे. १६४६ म रचित उंकर कविता म छत्तीसगढ़ी के पुट कम दिखथे अउ अवधी के नजदीक जादा दिखथे. 


गोपाल मिश्र और माखन मिश्र-  


 गोपाल मिश्र रतनपुर के हैहयवंशी राजा राज सिंह के राजकवि अउ दीवान रिहिन.राम नरेश त्रिपाठी ह उंकर जनम १६३३अउ 

प्यारेलाल गुप्त ह १६३४ माने हे. उंकर रचना' खूब तमाशा' अब्बड़  प्रसिद्ध होइस.उंकर आखिरी अपूर्ण ग्रंथ 'राम प्रताप' ल वोकर सुयोग्य बेटा कवि माखन मिश्र ह 

पूरा करिन.   हरि ठाकुर के कहना हे कि गोपाल मिश्र एक महान कवि रिहिन पर वो मन अपन साहित्य के रचना छत्तीसगढ़ी म नइ करिन. येला छत्तीसगढ़ी के दुर्भाग्य ही कहे जा सकथे.


बाबू रेवा राम - बाबू रेवा राम बहुमुखी प्रतिभा के धनी रिहिन. वोकर जनम रतनपुर म सन् १८१३ म होय रिहिस. वोहर हिंदी, संस्कृत, ब्रजभाषा,अउ छत्तीसगढ़ी के बढ़िया जानकार रिहिन हे. संगे संग उर्दू अउ फारसी म घलो अधिकार रखे. हरि ठाकुर जी के अनुसार रेवाराम बाबू छत्तीसगढ़ी म कुछ भजन लिखा के थिरागे. समीक्षक अउ भाषाविद् डा. विनायक कुमार पाठक के कहना हे कि बाबू रेवा राम के रचना 'सिंहासन बत्तीसी'  म छत्तीसगढ़ी के पुट देखे ल मिलथे.


प्रहलाद दुबे - सत्रहवीं शताब्दी म सारंगढ़ निवासी प्रहलाद दुबे के रचना 'जय चंद्रिका ' म छत्तीसगढ़ी के प्रकृत रूप देखे ल मिलथे.


संत घासी दास - संत घासीदास के जनम छत्तीसगढ़  के गिरौदपुरी म  होय रिहिस हे. सतनाम पंथ के संस्थापक संत घासी दास के उपदेश छत्तीसगढ़ी म लिखे गे हवय. उंकर रचना म संसारिक संबंध के असारता अउ ईश्वरीय  कृपा के प्राप्ति के इच्छा ह झलकथे. 'चल हंसा अमर लोक जइबो ' अउ ' खेलथे दिन चार मइहर मा '  जइसन पद येकर उदाहरण हे.


नरसिंह दास वैष्णव - समीक्षक डा.विनय कुमार पाठक ह जांजगीर जिले के गांव तुलसी निवासी नरसिंह दास वैष्णव ल छत्तीसगढ़ी के पहिली कवि मानथे. उंकर रचना शिवायन (१९०४)म आय रिहिस.


पंडित सुंदरलाल शर्मा - डा. नरेन्द्र देव वर्मा ह छत्तीसगढ़ी के प्रथम कवि चमसूर ( राजिम)निवासी, छत्तीसगढ़ के गांधी  पंडित सुंदरलाल शर्मा ल मानथे.छत्तीसगढ़ी म 

बड़का सृजन करइया वो पहिली रचनाकार रिहिन. १९०६ म प्रकाशित' छत्तीसगढ़ी दान लीला ' अब्बड़ प्रसिद्ध होइस.येहा छत्तीसगढ़ी के पहिली प्रबंध काव्य माने जाथे. ये कृति ह हमर छत्तीसगढ के साहित्यकार मन ल छत्तीसगढ़ी म लिखे बर प्रेरित करिन. उंकर देहावसान २८ दिसंबर १९४०म होइस.


पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय - नंद किशोर तिवारी जी ह पं.लोचन प्रसाद पाण्डेय ल छत्तीसगढ़ी के पहिली कवि बताय हे. अइसने दया शंकर शुक्ल ह घलो' कविता कुसुम ' १९०८-०९ म‌ प्रकाशित उंकर छत्तीसगढ़ी कविता ल छत्तीसगढ़ी के पहिली रचना माने हे. 


हरि ठाकुर -  सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर प्यारेलाल लाल सिंह जी के पुत्र, छत्तीसगढ़ी गीतकार हरि ठाकुर जी छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन ले 1956 ले जुड़ गे रिहिन. उंकर रचना म छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान झलकथे. छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह पर खण्ड काव्य अउ छत्तीसगढ़ी गीत अउ कविता लिख के छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ल जगाइस. राजनांदगांव के विद्रोही कवि कुंज बिहारी चौबे जी के छत्तीसगढ़ी कविता मन के संपादक करिन.


डा.नरेंद्र देव वर्मा - छत्तीसगढ़ राज्य गीत -अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार... के रचयिता डा. नरेन्द्र देव वर्मा हरे. ये गीत ह छत्तीसगढ़वासी मन के स्वाभिमान ल जगाय के काम करिन. सोनहा बिहान के लेखक.


लक्ष्मण मस्तुरिया - दाऊ रामचंद्र देशमुख द्वारा स्थापित' चंदैनी गोंदा' बर गीत लिख के स्थापित होय लक्ष्मण मस्तुरिया जी के छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना म अब्बड़ योगदान हे. उंकर लिखे गीत - 'मोर संग चलव रे' अउ  'मंय छत्तीसगढ़िया अंव रे'  ह अलग छत्तीसगढ़ राज्य के नेंव तइयार करिस.


संत कवि पवन दीवान - संत कवि पवन दीवान जी ह प्रवचन अउ कवि सम्मेलन के माध्यम ले अलगे छत्तीसगढ़ राज्य बर जनता मन ल जागरुक करिन. छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन म गजब योगदान दिस. दीवान जी के गीत 'तोर धरती तोर माटी ' ले छत्तीसगढ़वासी मन म जागृति आइस.


गिरिवर दास वैष्णव - छत्तीसगढ़ सुराज गीत


डॉ निरुपमा शर्मा- डॉ निरुपमा शर्मा छत्तीसगढ़ी के प्रथम मंचीय कवयित्री माने जाथे . उंकर पतरेंगी रचना के अब्बड़ सोर होइस.


अइसने  छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन म   मुकुटधर पांडेय,द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र, बंशीधर पांडे ,सीताराम मिश्र , ,लखन लाल गुप्त, प्यारे लाल गुप्त,  निरंजन लाल गुप्त,पालेश्वर शर्मा, अमृत लाल दुबे , कपिल नाथ कश्यप प्रणयन जी, कपिल नाथ मिश्र, सुकलाल प्रसाद पाण्डेय, शिवदास पाण्डेय,नारायण लाल परमार,  भगवती लाल सेन, स्वर्ण कुमार साहू,चतुर्भुज देवांगन , रवि शंकर शुक्ल,  पं. रामदयाल तिवारी,बद्रीविशाल परमानंद,हनुमंत नायडू  कुंजबिहारी चौबे,, कोदू राम दलित, मेहत्तर राम साहू जी, डॉ.खूबचंद बघेल, केयूर भूषण, श्याम लाल चतुर्वेदी, दानेश्वर शर्मा, रामेश्वर वैष्णव, नंदकिशोर तिवारी, नंद किशोर शुक्ल, डॉक्टर परदेशी राम वर्मा, हरि ठाकुर, डा. विनय कुमार पाठक,डा.विमल कुमार पाठक,‌ जागेश्वर प्रसाद ( छत्तीसगढ़ी सेवक के संपादक), डा. चित्तरंजन कर,सुशील यदु,बसंत दीवान, किसान दीवान,शिव शंकर शुक्ल, डा.बल्देव साव,डा. बिहारी लाल साहू,मंगत रवीन्द्र,  जी. एस. रामपल्लीवार नूतन प्रसाद शर्मा ( गरीबा महाकाव्य),डॉ. बलदाऊ राम साहू,(बाल साहित्यकार, गजलकार, छत्तीसगढ़ी निबंध अउ आलेख - मोटरा संग मया नंदागे)रामेश्वर शर्मा, कृष्ण कुमार शर्मा,सीता राम मिश्र, विद्या भूषण मिश्र,विमल मिश्र,सीता राम मिश्र,मेदिनी प्रसाद पाण्डेय,लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव, देवी प्रसाद वर्मा,डा. नरेश कुमार वर्मा, नरेंद्र वर्मा, विश्वंभर यादव मरहा, डा. गोरे लाल चंदेल,डा. जीवन यदु, डा. देवधर महंत, संत राम साहू,विनय शरण सिंह,  सुरेन्द्र दुबे,रामेश्वर वैष्णव, बंधु राजेश्वर खरे,डा.पीसी लाल यादव ,  आचार्य सरोज द्विवेदी, कुबेर सिंह साहू( छत्तीसगढ़ी कहानी संकलन- भोलापुर के कहानी2010, कहा नहीं 2011,निबंध, आलेख अउ संस्मरण- सुरति अउ सुरता (2021), महान रूसी कहानीकार अंतोन पाब्लाविच चेखव के कहानी के हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी अनुवाद),  लोक कथा संग्रह -छत्तीसगढ़ी कथा कंथली, साकेत स्मारिका के संपादक) जे. आर. सोनी,


 डा. दादू लाल जोशी( भारतीय ज्ञानपीठ ले पुरस्कृत चौदह भारतीय भाषा के कविता मन के छत्तीसगढ़ी अनुवाद) आनी बानी- ,मुकुंद कौशल, बसंत देशमुख,  उधो राम झखमार ,  मीर अली मीर( कविता- नंदा जाही का रे), डा. अनिल भतपहरी, संजीव बक्शी, डा. माणिक विश्वकर्मा नवरंग,संजीव तिवारी, आरेख चंद्रकांत, अनंत राम पांडेय, दया शकर शुक्ल, शत्रुघन सिंह राजपूत ,हेमनाथ यदु, सुरजीत नवदीप ,गणेश सोनी प्रतीक,  प्रभंजन शास्त्री,दशरथ लाल निषाद,दुर्गा प्रसाद पाकर ,सुशील भोले, कांशीपुरी कुंदन, चेतन भारती, गुलाल वर्मा , परमानंद वर्मा( उपन्यास- करौंदा),डॉक्टर सुखनंदन सिंह धुर्वे नंदन , कामेश्वर पांडेय, डा.दीनदयाल साहू ,  डा. सी. एल. साहू ( कहानी), डा. राजेंद्र सोनी ( छत्तीसगढ़ी के प्रथम लघु कथा संग्रह के लेखक,  व्यंग्य -खोरबाहरा,तोला गांधी बनाबो),  रमेश कुमार सोनी,भगत  सिंह सोनी, डी. पी. देशमुख ( कला परंपरा के संपादक), प्रदीप कुमार दास" दीपक", नवल दास मानिकपुरी, गिरवर दास मानिकपुरी, नरेश मानिकपुरी,बुधराम यादव,पुनू राम साहू राज,  लतीफ खान गजलकार,डुमन लाल ध्रुव,प्यारेलाल देशमुख , गजपति साहू,संतराम निषाद,सीता राम साहू श्याम , डॉक्टर रामनाथ साहू, रामनाथ साहू, टिकेंद्र टिकरिहा, चंद्रशेखर चकोर,गजानंद देवांगन,  हरिशंकर गजानंद देवांगन, वीरेंद्र साहू सरल, ध्रुव राम वर्मा, अरुण कुमार निगम, रमेश कुमार सिंह चौहान,मुरली चंद्राकर,प्रेम साइमन,  चंद्रहास साहू, भोला राम सिन्हा गुरुजी, हीरा लाल साहू गुरूजी,दिनेश चौहान, राजेश चौहान, गया प्रसाद साहू, मुरारी साव, बसंत साव राघव, टिकेश्वर सिन्हा गब्दीवाला,चोवा राम वर्मा बादल, बलराम चंद्राकर, कन्हैया साहू अमित,बोधन राम निषाद, जितेन्द्र वर्मा खैरझिटिया, विजेन्द्र वर्मा, सुखदेव सिंह अहिलेश्वर, द्वारिका प्रसाद लहरे, 

पोखन लाल जायसवाल, अजय साहू अमृतांशु, मनी राम साहू मितान, जगदीश साहू हीरा, राम कुमार चंद्रवंशी,  ज्ञानु मानिकपुरी,कमलेश शर्मा बाबू , मोहन निषाद मयारू,गैंद लाल साहू दीया, तिलोक साहू बनिहार, नंद कुमार साहू साकेत, कृष्ण कुमार चंद्रा,आत्मा राम कोशा अमात्य,राज कुमार चौधरी रौना( व्यंग्य संग्रह -का के बधाई, गजल संग्रह - पांखी काटे जाही)महेन्द्र कुमार बघेल मधु, श्रवण कुमार साहू,ओमप्रकाश साहू अंकुर ( काव्य संग्रह - जिनगी ल संवार -2008) लखन लाल साहू लहर ( काव्य संग्रह - मंय छत्तीसगढ़ तांव), गिरीश ठक्कर, फागू दास कोसले ( काव्य संग्रह - वाह रे जमाना), शिव प्रसाद लहरे ( काव्य संग्रह - सुनता के गांठी)अशोक पटेल, जयंत साहू,तुका राम कंसारी, धनराज साहू,  राज कुमार मस्खरे,मिनेश कुमार साहू, राम कुमार साहू, ईश्वर साहू आरूग, ईश्वर साहू बंधी, हेम लाल सहारे कृष्णा भारती, अरविन्द कुमार लाल,वीरेन्द्र कुमार तिवारी वीरू,‌ रामानंद त्रिपाठी,कैलाश साहू कुंवारा, ग्वाला प्रसाद यादव नटखट,पुष्कर सिंह राज, शिव कुमार अंगारे, शशिभूषण स्नेही, गजराज दास महंत, नारायण चंद्राकर, सुनील शर्मा नील, हीरामणि वैष्णव,  गुणी राम बादल, जयवंत जंघेल,शेर सिंह गोड़िया आदिवासी, अमृत दास साहू,रमेश कुमार मंडावी,कुलेश्वर दास साहू ( एकांकी) ,फकीर प्रसाद साहू फक्कड़, भूखन वर्मा,रोशन लाल साहू , ऋतु राज साहू , दुर्गेश सिन्हा दुलरवा, घनश्याम कुर्रे, जयंत पटेल,  देवनारायण नंगरिहा,द्रोण कुमार सार्वा सहित कतको साहित्यकार मन महतारी भाषा म कलम चलावत हे.


महिला साहित्यकार मन के योगदान 



हमर छत्तीसगढ के छत्तीसगढ़ी महिला साहित्यकार मन म डॉक्टर सत्यभामा आडिल,  डा. सुधा वर्मा, डा. निरूपमा शर्मा,सरला शर्मा,  डा. उर्मिला शुक्ला, शकुंतला तरार, शकुंतला शर्मा( छंदबद्ध काव्य- छंद के छटा, चंदा के छांव म)  , शकुंतला वर्मा,गीता शर्मा, डा. शैल चंद्रा,  डा. मीता अग्रवाल,बसंती वर्मा,शोभा मोहन श्रीवास्तव,आशा देशमुख , हंसा शुक्ला, लता शर्मा, डा. जयाभारती चंद्राकर, लता राठौर, शुचि भवि, धनेश्वरी गुल,नीलम जायसवाल,केंवरा यदु, शशि साहू, द्रोपदी साहू सरसिज, सुमित्रा कामड़िया,चित्रा श्रीवास, पदमा साहू पर्वणी, प्रिया देवांगन, गायत्री श्रीवास,  अउ आने महिला साहित्यकार  मन  अपन सुघ्घर लेखनी ले छत्तीसगढ़ी भाषा ल समृद्ध करत हे.



 हमर छत्तीसगढ के कतको रचनाकार  रचना के माध्यम ले छत्तीसगढ़ी भाखा के सेवा करत हे.

साहित्यकार मन छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना म अपन योगदान दिस. कतको साहित्यकार मन छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन म भाग लिस. 


छत्तीसगढ़ी शब्दकोश, व्याकरण म हीरालाल काव्योपाध्याय  डॉ कांति  कुमार  जैन, डा.शंकर शेष तिवारी, डा.पालेश्वर शर्मा डॉक्टर नरेंद्र  देव वर्मा ,भालचंद राव तैलंग ,नरेंद्र कुमार सौदर्शन ,रमेशचंद्र महरोत्रा, नंद किशोर तिवारी,मंगत रवीन्द्र,मन्नूलाल यदु , महावीर अग्रवाल, जय प्रकाश मानस,  ,बिहारी लाल साहू,साधना जैन,डॉक्टर विनय कुमार पाठक, डा. सोमनाथ यादव,डॉ. चंद्र कुमार चंद्राकर, पुनीत गुरु वंश ,डॉक्टर विनोद वर्मा , डा. सुधीर शर्मा,डॉ गीतेश अमरोहित  जइसन विद्वान मन पोठ काम करे हे. 


पाछु पांच बछर ले छंदविद  अरुण कुमार निगम द्वारा स्थापित छंद के छ छत्तीसगढ़  के माध्यम ले छत्तीसगढ़ के कवि मन छत्तीसगढ़ी म छंदबद्ध रचना करके छत्तीसगढ़ी साहित्य के कोठी ल

 समृद्ध करत हे. अब छत्तीसगढ़ी साहित्य म गद्य विधा ह घलो पोठ होवत हे. ब्लॉग छंद के छ गद्य खजाना अउ पद्य खजाना, संजीव तिवारी के गुरतुर गोठ, छत्तीसगढ़ आसपास के ब्लॉग (  प्रदीप भट्टाचार्य)म जाके ठाहिल रचना पढ़े जा सकथे.

छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर ग्रुप के संगे- संग अखबार मन के स्तंभ दैनिक देशबंधु के मड़ई अंक( संपादक- सुधा वर्मा)

, दैनिक हरिभूमि के चौपाल अंक( संपादक- दीनदयाल साहू), दैनिक पत्रिका के पहट अंक( संपादक- गुलाल वर्मा), लोकसदन के झांपी अंक( संपादक- डा. सुखनंदन सिंह धुर्वे), गुड़ी के गोठ ( आशीष सिंह) साकेत स्मारिका ( सालाना पत्रिका - कुबेर सिंह साहू)आरूग चौरा( ईश्वर साहू आरूग) , अरई तुतारी पत्रिका , "अंजोर"( जयंत साहू) अउ आने मन के पत्रिका अउ ब्लॉग के माध्यम ले पद्य के   संगे -संग गद्य म   सुघ्घर काम चलत हे  जउन छत्तीसगढ़ी साहित्य ल बढ़वार करत हे. 

 

 23 बछर  छत्तीसगढ़ राज बने अउ 16 बछर छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा बनाय के घोषणा करे होगे पर आज तक येहा राजकाज के भाषा नइ बन पाईस. इहां के अफसर मन के छत्तीसगढ़ी के प्रति उदासीनता अउ नेतामन द्वारा  छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा बनाय म श्रेय लेय के चक्कर म आज तक येहा काम- काज के भाषा नइ बन पात हे. उपलब्धि के नांव म प्राथमिक शिक्षा म हिंदी विषय म कुछ छत्तीसगढ़ी पाठ सामिल करके, छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के कुछ आयोजन करके अपन मन ल मड़ा लेथन.  


 छत्तीसगढ़ी ह संविधान के 8 वीं अनुसूची म सामिल होय बर छूट जाथे अउ छत्तीसगढ़ी ल राज -काज के भाषा के रूप म देखे के सपना ह टूट जाथे.  16 बछर ले बस लालीपाप धराथे.


 



          ओमप्रकाश साहू" अंकुर"


        सुरगी, राजनांदगांव

  लेखक संपर्क - 7974666840

28 नवंबर// छत्तीसगढ़ी दिवस के बधाई संग चिटिक आस..

 28 नवंबर//

छत्तीसगढ़ी दिवस के बधाई संग चिटिक आस.. 

    छत्तीसगढ़ राज के महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी ल 28 नवंबर 2007 के छत्तीसगढ़ विधानसभा म सर्वसम्मति ले पास करके हिंदी संग ये राज के "राजभाषा" के रूप म स्वीकृत करे गे रिहिसे। एकरे सेती ये राज के जम्मो भाखा प्रेमी साहित्यकार, पत्रकार, समाजसेवी अउ बुद्धिजीवी मन मिलके हर बछर 28 नवंबर के "छत्तीसगढ़ी दिवस" मनाये के निर्णय लिए रिहिन  हें. तब ले हर बछर 28 नवंबर के लोगन अपन-अपन सख के पुरती ए दिन आयोजन अउ आने उदिम करत रहिथें. छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग डहार ले घलोक सरकारी खानापूर्ति के आयोजन कर के अपन कर्तव्य ल झर्रा दिए जाथे, फेर आज तक जेन ए भाखा के असल बढ़वार के रद्दा हे, तेकर डहार ककरो चेत नइ गे हे.


     इहाँ के जम्मो भाखा प्रेमी कतकों बछर ले छत्तीसगढी ल शिक्षा अउ राजकाज के भाखा बनाए के माॅंग करत हें, फेर सत्ता म बइठे लोगन एक दूसर के ऊपर आरोप लगा के अपन-अपन धुर्रा ल झटकार देथें. एक पार्टी के मन केंद्र के सत्ता म बइठथें, त दूसर मन छत्तीसगढ़ी ल आठवीं अनुसूची म शामिल करे के नाटक करथें, अउ जब वोमन सत्ता म बइठ परथें, त पहिली वाले मन नौटंकी करथें. कुल मिलाके दूनों पार्टी वाले मन ओसरी-पारी नौटंकी करत रहिथें. एकर परिणाम ए हे के छत्तीसगढ़ी आज अलग राज बने के कोरी भर बछर ले आगर होए के बाद घलो अपन स्वतंत्र चिन्हारी म गरब करे खातिर छटपटातेच हे.


     अभी केंद्र म बइठे सरकार ह एक ठन नवा शिक्षा नीति के कारज करे हे, तेमा जम्मो देश भर म उहाँ के अपन महतारी भाखा म प्राथमिक शिक्षा दे खातिर जोजियाय हे, फेर हमर राज के सरकार अभी अंगरेजी माध्यम के नॉव म दंतखिसरोई करे म बिधुन रिहिसे. सिरिफ अतकेच नहीं, पॉंच बछर के अपन शासन काल म 'छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग' के गठन तक नइ कर पाए रिहिस हे. एकर ले जादा दुर्भाग्य के बात अउ का हो सकत हे...? जेन ह अपन आप ल छत्तीसगढ़िया सरकार काहत राहय, तेकर अइसन हाल हे, त जे मनला परदेशिया के चिन्हारी कराए जाथे, उंकर ले कतका आस मढ़ा सकथन? 


       त आवव संगवारी हो, हमन सरकार मन के मुंह तकंई ल छोड़ के अपन महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी के बढ़वार खातिर परन ठानन के आज ले जम्मो काम-काज अउ लेखा-जोखा ल छत्तीसगढ़ीच म करबोन, सरकार ल येला शिक्षा अउ राजकाज के माध्यम बनाये खातिर मजबूर करके रहिबोन. 


    वइसे तो अभी तक इही देखे म आए हवय के छत्तीसगढ़ी भाखा खातिर इहाँ के आम लोगन अउ भाखा प्रेमी मन अपन स्तर म जतका ठोसहा बुता करे हे, वतका अभी तक तो कोनोच सरकार ह नइ कर पाए हे. इही सच्चाई आय, अउ ए सच्चाई ल सरलग उजरावत रहना हे.


जय छत्तीसगढ़ी... जय महतारी भाखा...  


-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)

मो/व्हा. 98269-92811

भाषा ला जिन्दा रखे बर जिन्दा मनखे के जरूरत पड़थे - अरुणकुमार निगम

 भाषा ला जिन्दा रखे बर जिन्दा मनखे के जरूरत पड़थे

 - अरुणकुमार निगम


"छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के औचित्य"


आत्म समीक्षा अउ आत्म चिंतन बर कोनो *दिवस* मनाए जाथे। जनम दिवस, लइका मन बर खुशी अउ मनोरंजन के दिवस हो सकथे फेर बड़े मन बर आत्म चिंतन अउ आत्म समीक्षा के दिवस होथे। *अतिक उमर पहागे - मँय का कर पाएँव ? कोन जाने अउ कतका दिन बाँचे हे, मोला का-का काम निपटा लेना चाही?*  एक उमर के बाद हरेक के मन मा ये दू सवाल जरूर आत होही ? अभी तक के उपलब्धि नहीं के बराबर दिखथे फेर जउन काम बाकी हें, वोकर सूची बहुत बड़े दिखथे। अइसनो विचार आथे कि अतिक काम करे बर बाकी के जिनगी कम पड़ जाही।


छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस मा घलो अइसने आत्म समीक्षा अउ आत्म चिंतन होना चाही। मनखे त मनखे, सरकार तको ला ए विषय मा सोचना चाही। अपन राज्य बने 23 बछर होगे, राज भाषा बने 15 बछर होगे। अभी तक के उपलब्धि नहीं के बराबर हे फेर असल मा जउन काम बाकी हे वोला पूरा करे बर जिनगी झन कम पड़ जाए। महतारी भाषा मा वोट माँगे जा सकथे, शालेय पाठ्यक्रम मा शामिल करे डहर ध्यान नइ जाय। सरकारी कामकाज मा प्रयोग करे डहर ध्यान नइ जाय। फेर चुनाव आही, फेर लाउडस्पीकर मा मोर संग चलव गाना बजाए जाही, फेर जइसन चलत हे, वइसने चलत रही। 28 नवम्बर के आयोजन होही। छत्तीसगढ़ी भाषा के दशा अउ दिशा ऊपर उही उही मन भाषण देहीं, जउन मन के भाषण ला हर साल सुनत हन। लंच पैकेट के वितरण होही। कविसम्मेलन होही अउ *सफलतापूर्वक समापन* हो जाही। 29 नवम्बर के अखबार मा रिपोर्ट छप जाही अउ पेपर कटिंग ला राजभाषा के फाइल मा चस्पा कर दे जाही। का इही ला औचित्य कहे जाय ?


किताब अउ ग्रंथ छपे ले औपचारिकता पूरा हो सकथे, उद्देश्य पूरा नइ हो सके। भाषा ला जिन्दा रखे बर जिन्दा मनखे के जरूरत पड़थे। कागज के खेत मा आँकड़ा के खेती करे ले पेट नइ भर सके। खेत मे नाँगर चलही, बीजा डारे जाही, पानी के व्यवस्था करे जाही, खातू अउ दवाई डारे जाही तब फसल काटे बर मिलही अउ पेट हर भराही। ये एक लम्बा प्रक्रिया आय। सरलग निगरानी चाही। भाषा के बीजा बर मनखे मन खातिर सबसे उपजाऊ खेत प्राथमिक शाला आय अउ सरकार बर सरकारी ऑफिस आय। कुछु सार्थक काम करे बर महतारी भाषा ला प्रायमरी स्कूल के पाठ्यक्रम मा शामिल करना पड़ही। सरकारी लिखा पढ़ी महतारी भाषा मा अनिवार्य करना पड़ही। परिपत्र निकाले से कुछु नइ होने वाला हे। एक किसान असन ये दुनों खेत के निगरानी करना पड़ही। परिणाम कागज मा नइ, परिवेश मा दिखाना चाही। ये काम चालू हो जाही तब मानकीकरण अपनेआप होना शुरू हो जाही। साहित्यकार अउ लोक कलाकार मन अपन काम पूरा निष्ठा अउ मनोयोग से करत हें। अब छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस मा सरकार ला छत्तीसगढ़ी भाषा बर आत्म समीक्षा अउ आत्म चिंतन करना चाही। दिवस मनाए के औचित्य तभे पूरा होही। 


छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के शुभकामना।


अरुण कुमार निगम

महतारी भाखा के मान करव--

 महतारी भाखा के मान करव--


                 हमर छत्तीसगढ़ राज बने अब तेईस बरस होगे। छत्तीसगढ़ी भाखा के छोड़ राज के विकास अन्य क्षेत्र मा उम्मीद के अनुरूप तो होवत हे। सोन, चांदी, टिन, लोहा, कोईला जइसे खनिज संपदा ले भरे अउ महानदी, शिवनाथ, अरपा, पैरी,कन्हार, इंद्रावती जइसन अमरीत सही बोहात नदिया,बड़े-बड़े घनघोर जंगल, पर्वत, पठार ले सोहे भुइयाँ, अन्न-धन्न ले भरे कुबेर के कोठी कस हमर थाती छत्तीसगढ़ राज बर कोई जिनिस के कमी नई हे।


फेर हमर बर एक ठन बात के कमी जरूर हावे, कि आज तक महतारी भाखा ला मान सनमान बरोबर नई मिलिस हे,न ही स्कूल म लइका मन ल पढ़ाय-लिखाय के बने जुगत होय हे। ओमन 3-4 पाठ ल शामिल करके अपन काम पूरा होय सही सोरियात रथे। येकर ले हमर भाखा पोठ नई होय। येकर बर बने कसोरा भीर के भीड़े ल लगही। पूरा पाठ ला छत्तीसगढ़ी मा होना चाही।


राजभाखा के दर्जा--

28 नवम्बर 2007 के मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह जी द्वारा हमर भाखा ल राजभाषा के दर्जा देके बिल पास करिन अउ छत्तीसगढ़ी ला आठवीं अनुसूची में शामिल कराय के गोठ बात घलो होय रिहिस। तब ले राजभाषा दिवस ल मनात भर आवत हन। दिन भर छत्तीसगढ़ी म गोठियाही,बिहान दिन ले हिन्दी म उतर जाहि। अउ साल भर ल फुरसत होंगे फेर। अब कोन जनी आठवीं अनुसूची म शामिल कब होही वोला ऊपर वाले ल जानही। अभी तो राजभाषा आयोग के सियान घलो नई हे। सियान बिन कहाँ के धियान। हमर ले नान्हे-नान्हे राज के भाषा शामिल होगे त हमन आज ले देखत हन। आज ले हमरो भाखा ल हो जाना रिहिस।


गुरतुर भाखा--

हमर भाखा जइसन मीठ अउ कोई भाखा नई हे। कथे घलो--तोर बोली लागे बड़ मिठास रे छ्त्तीसगढिया....। पर इहाँ के लोगन मन तो हिन्दी अउ अब तो मोबाइल के जमाना म अउ दु कदम आघु खस मिंझरा भाखा बना डारिन हे तेला हिंग्लिश भाखा कहे जात हे। का अइसने म भाखा समृद्ध बनही। अपन छोड़ के दूसर के बोली-भाखा ल पोटारत हे। आज के मनखे मन ल छत्तीसगढ़ी गोठियाय, लिखे,पढ़े बर लाज लगथे। देहाती अउ जंगली मन के भाखा हरे कथे। कोई ल गोठियात देखही-सुनही त वोहा निचट अनपढ़ गंवार समझथे। ये नई कहय की अपन महतारी भाखा म गोठियात-बतरात हे। इहि पाय के हमन भाखा ह आज पिछवाये हे जेकर बर ये राज भर के मनखे मन जिम्मेदार हे।


भाखा ल सीखन--

हमन ल सबो भाखा ल सीखना चाही। लइका मन ल घलो सीखना जरूरी हे। पर सबले पहली अपन महतारी भाखा ल सीखन। दूसर के चक्कर म हमर महतारी भाखा पछवावत हे। ये कोनों डहन ले बने नई हे। टीवी म आज तक सरलग छत्तीसगढ़ी कार्यक्रम नई आइस। लोगन मन भोजपुरी,  हिंदी,सिनेमा टीवी, सीरियल भर ला देखत हे। कोई-कोई समाचार पत्र म छत्तीसगढ़ी रूप बने बुता दिखत हे, हरिभूमि में चौपाल, पत्रिका म पहट, देशबंधु म मड़ई, दैनिक भास्कर म संगवारी,आरुग चौरा, दैनिक दावा, किरण दूत, झाँपी, सबेरा संकेत, सुग्घर छत्तीसगढ़ जइसन अउ पत्रिका कतको मन अच्छा काम करत हे। एक पेज म छत्तीसगढ़ी भाखा ल छाप के महतारी भाखा के जरूर सेवा करत हे। अइसने व्हाट्सएप ग्रुप मा मयारू माटी, छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर, आदि धर्म जागृति संस्थान, आरुग चौरा, झाँपी, पुरवाही साहित्य समिति जइसन कतको ग्रुप मा सरलग चलत हे।अरुण कुमार निगम जी के छन्द के छ ग्रुप मा छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर जोरदार काम होवत हे।


गाँव मा सम्मान--

आज महतारी भाखा के मान सनमान ल कोई करत हे त वो गांव के अनपढ़-गंवार मन करत हे। एककनी पढ़े हे तेमन तो हिन्दी, हिंग्लिश,अंग्रेजी ल झाड़े ल धर लेहे। अइसने में तो करलई हो जही। मने गाँव म ही भाखा जीयत हे शहर म तो कब के बीमारी के खटिया म पढे हे। अधिकारी, कर्मचारी, बाबू, साहब, नेता, मंत्री मन ल अउ जादा लाज लगथे। छत्तीसगढ़ी समझ नई आय कथे। हां एक बात ठउँका हे नेता अउ मंत्री मन चुनई के पहित जरूर महतारी भाखा म गाँव के मन संग गोठियाथे। ये बात ठउँका हे कि पूर्व मुख्यमंत्री स्व.अजीत जोगी जी बहुत बढ़िया ढंग ले छत्तीसगढ़ी भाखा म गोठियाय। ओकर बोली ठेठ गँवईया मन के बोली लगय। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह जी ला जादा गोठियात नई सुने हो, फेर ओकर बेटा पूर्व सांसद अभिषेक सिंह ला बढ़िया छत्तीसगढ़ी गोठियात सुने हो। अभी वर्तमान मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी ह घलो बढ़िया ठेठ छत्तीसगढ़ी मा गोठियाथे। फेर तीनों झन के छत्तीसगढ़ी बर ठोस बुता नइ दिखिस। अभी वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी हा प्राथमिक शाला ले एक विषय छत्तीसगढ़ी के होही कहिके घोषणा जरूर करे हे। येकर परिणाम आघू देखे बर मिलही, का होथे ते। छ्त्तीसगढिया सबले बढिया नारा केहे मा कहीं नइ होय येला सबो क्षेत्र मा मूर्त रूप देय बर जम्मो झन ल भीड़े ल पड़ही। छत्तीसगढ़ी म लिखन, गोठियान,पढ़न अउ लजान मत, भाखा ल आघु डहन बढ़ाय के कोई ठोसहा जतन करन।


भाखा के इतिहास--

हमर भाखा अभी के नोहे हे वोहा अब्बड़ जुन्ना भाखा हरे। खैरागढ़ रियासत के राजा लक्ष्मीनिधि रॉय के दरबारी अउ चारण कवि रिहिन दलपत राव जेहा सन 1494 में अपन साहित्य रचना म सबले पहली छत्तीसगढ़ी भाखा ले काम करिस...


'लक्ष्मीनिधि राय सुनो चित दे।

गढ़ छत्तीसगढ़ में न गढ़ैया रही।।


पीछू कलचुरी राजा राजसिंह के दरबारी कवि गोपाल मिश्र ह सन 1746 म अपन रचना 'खूब तमाशा' में हमर भाखा के उल्लेख करिन। ऐसे तो पहली ब्रज,अवधि,भोजपुरी भाषा जेमे सुर, तुलसी के काव्य रचना हावे उहा छत्तीसगढ़ी के सब्द मन अब्बड़ मिल जथे। रामचरित मानस में कतरो छत्तीसगढ़ी शब्द भरे पड़े हे। येकर सेती अपन भाखा बर तो अब्बड़ गुमान हे। कतको शब्द के मिलती-जुलती रूप के सेती अवधि ल छत्तीसगढ़ी के सहोदरा कहे जाथे।


राजगीत के सौगात-- सन 2019 के राज्य उत्सव म वर्तमान मुख्यमंत्री माननीय भूपेश बघेल जी ह राजगीत के रूप म आचार्य नरेन्द्र देव वर्मा रचित छत्तीसगढ़ी गीत"अरपा पैरी के धार..." ल राजगीत के रुप म मान देके छत्तीसगढ़ के जम्मो झन ल सौगात देके बढ़िया काम करिस। ये सब के अब्बड़ जुन्ना सपना घलो रिहिस।


आजकल के नवा बिचार--

आज कोई पालक अपन लइका मन ल सरकारी स्कूल में नई पढ़ाना चाहे। सब अंग्रेजी स्कूल म मोहा गेहे। ये लइका मन बर बड़ टिपटॉप बेवस्था करथे। गृहकार्य पूरा करही,जूता-मोजा, टाई-बेल्ट,खाना-डिब्बा सब करही। फेर परिणाम देखबे ल संकोच लगथे। अभी अंग्रेजी के चलन आत्मानंद स्कूल के सेती अउ बढ़त हे। मुख्यमंत्री जी घलो उहें के लइका मन संग गोठियाथे। ये उदीम बढ़िया हे। सियान ला सबो लइका संग गोठियाके उँकर बात ला सुनना जरूरी हे। अउ येती सरकारी स्कूल के लइका मन के कोई दाई-ददा नई हे, जेला पहिरे हे उही ल, बिना जूता-मोजा, टाई-बेल्ट,तेल-फूल के। घर के मन ला कमई ले फुरसत नइ हे। अंग्रेजी वाले लइका मन अंग्रेजी म गोठियाथे दाई-ददा ल समझ नई आवत हे। कुल मिला के महतारी भाखा ल सत्यानाश करना हे। कोई-कोई मन गुरुजी के छत्तीसगढ़ी गोठियाई ल घलो देहाती पन समझथे,गुरुजी मन हिन्दी, अंग्रेजी म बात करही त लइका मन घलो सिखही। अइसे घलो कहि डारे हे। वाह, फेर अपन भाखा म गुरुजी मन लइका मन संग झन गोठियाय। जबकि महतारी भाखा ले लइका मन जल्दी समझते अउ उँकर मन  ले जादा लगाव होथे,ये बात ल समझे नहीं, त का कर डारबे।


पालक मन के सोच--

एक बार एक झन पालक ल अपन लइका ल मारत देखेव त मोला अब्बड़ दुख होइस,कि तेहा हिंदी म काबर नई बोले।छत्तीसगढ़ी म काबर गोठियाय। वो लइका अपन घर आय सगा सन छत्तीसगढ़ी म गोठियात रहय। इहाँ फोकट सेखी मरैया के कोई कमी नई हे। अस्पताल में एक झन पालक ल अपन लइका सन हिन्दी में गोठियाय, अउ रहय गाँव के। बाद म घर जाय के समे समझ आथे, जब लइका ह कथे- बाबू धर न तोर मोबाईल ल गा। मने सबके सामने छत्तीसगढ़ी म बात करही ते वोला शरम आही। इहि पाय के हिंदी झाड़त हे बिचारा ह। त अइसनो घलो डींग मरई कोई काम के नोहे। अइसन कतको जगह देखे बर मिल जथे। जेला अपन भाखा ल लाज आवत हे वो का अपन भाखा के मान सनमान करही। हमन खुद अपन भाखा के अपमान करे के जिम्मेदार हन।


आठवीं अनुसूची में शामिल होय--

समे समे राजनीति डहन ल घलो येला आठवीं अनुसूची में जोड़े बर अब्बड़ परयास होत रथे। पर जब जुड़ही तभे भाखा ह अउ बिकास के गति ल पकड़ही। हमर 2 करोड़ जनता के भाखा जेला आधा ले जादा आदमी मन बोलते, समझथे अउ लिखे बर तो कमेच हवे। लोगन मन लिखे बर कठिन हावे कथे। हिज्जा करके तो लते-पटे पड़थे। येकर रूप क्षेत्र बिसेस म थोड़ बहुत बदल जाथे। पर आत्मा के भाव वोइसने हावे हे। फेर अब के नवा पीढ़ी के लइका मन के व्हाट्सएप, फेसबुक ग्रुप मा चैटिंग मैसेज ला छत्तीसगढ़ी मा लिखत रथे। बढ़िया हे, अइसने मा धीरे-धीरे लिखे-पढ़े के तहू आदत होही। हमर भाखा म गीत, कविता, साहित्य के घलो भंडार भरे हे। छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के मुखिया के चयन होना घलो जरूरी हे। जेकर ले आयोग के काम सरलग चलत रहय, अउ  भाखा के बिकास बर नवा रद्दा बनाये के जुगाड़ होय। हम सब झन ल हमर महतारी भाखा के मान-सनमान बर आगू आये ल पड़ही। स्कूल म तो एक बिषय छत्तीसगढ़ी के जरूर होना चाहि। जब पंजाब, बिहार, महाराष्ट्र, ओडिसा,केरल,कर्नाटक जइसे राज म अपन महतारी भाखा म पढ़ई-लिखई हो सकत हे, त हमर छत्तीसगढ़ म काबर अउ कइसे नई होही। बड़े-बड़े विकसित देश में के शुरुआती पढ़ई अपन महतारी भाखा म ही कराथे। जेकर ले लइका मन ल जल्दी समझ बनथे। येकर बर जम्मो झन ल आगू आय ल पड़ही।


                    हेमलाल सहारे

          मोहगांव(छुरिया)राजनांदगांव

अभी घलो छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस मनाय के आदेश निकाले जा सकथे"

 "अभी घलो छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस मनाय के आदेश निकाले जा सकथे"


छत्तीसगढ़ राज्य तेइस बछर पूरा करके चोबीसवाँ बछर म पाँव धर दे हवे। छत्तीसगढ़ी इहाँ के प्रमुख महतारी भाखा आय। छत्तीसगढ़ी ल राज्य के राजभाषा घोषित करे जा चुके हे। छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा बनाय बर 28 नवंबर 2007 के विधानसभा म प्रताव पारित होय रिहिस तिही पाय के 28 नवंबर के दिन छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस मनाय जाथे। सन् 2012 म 28 नवंबर  के दिन तब के मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह ह घोषणा करे रिहिन के हर बछर 28 नवंबर के दिन ल छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के रूप म मनाय जाही।


कोन-कोन मनाथे छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस?


एला तो पूरा प्रदेश वासी ल मनाना चाही। फेर का मनाथे? मोर जानती म एकात दू ल छोड़ के कोनो इसकुल-कालेज तक म छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस मनाय के जानकारी नइ मिले हे। साहित्यकार अउ साहित्यिक संस्था भर म छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस मनाय के आरो मिलथे। यदि मैं ये काहँव ते गलत नइ होही के इस्कुल कालेज वाले मन ल तो जानकारिच नई हे के छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस कोन दिन मनाय जाथे। 


सरकारी आदेश के अपेक्षा


यदि कोनो जानकार मास्टर छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस मनाय के बात करही तौ स्टाफ के बहुत झन मन जेन छत्तीसगढ़ी ल हीन भावना ले देखथे अउ छत्तीसगढ़ी ल भाषा नहीं बोली मानथे तेन मन बिरोध म खड़े हो जाथे। अइसन हालत म छत्तीसगढ़ी  राजभाषा दिवस मनाय के सरकारी आदेश के बड़ जरूरत महसूस होथे। तौ सरकार आज तक अइसन आदेश काबर नइ निकाल सकिस? सुरता करव सरकार कई पइत आने-आने भाषा बर आदेश निकाल चुके हे। कभू गुजराती बर, कभू उड़िया बर तो कभू बंगला भाषा पढ़ाय बर आदेश निकाले गे हे। तौ का छत्तीसगढ़ी भाषा बर अइसन आदेश नइ निकाले जा सकय?


जरूर निकाले जा सकथे। आजकल वाट्सऐप मैसेज के जमाना हे। सरकार अपन काम करवाय बर रातोंरात मैसेज वाट्सऐप कर देथे। अउ सरकारी अमला ओखर पालन म जुट जाथे। सरकार के मुखिया चाहे तो 28 नवंबर  के दिन जम्मो शैक्षणिक संस्थान म छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस मनाय के आदेश वाट्सऐप अभी करे जा सकथे। हिंदी सप्ताह अउ हिंदी पखवाड़ा कस छत्तीसगढ़ी सप्ताह अउ छत्तीसगढ़ी पखवाड़ा घलो मनाय जा सकथे।


इस्कुल-कालेज के मास्टर मन ले बिनती हे के सरकारी आदेश के रद्दा देखे बिना काली 28 नवंबर के छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस धूमधाम ले मनावँय।


जय जोहार! जय छत्तीसगढ़ी!! जय छत्तीसगढ़ महतारी!!!


-दिनेश चौहान

  छत्तीसगढ़ी भाषा मयारुक

राजभाषा के ओढ़ना ओढ़े मान पाय बर ताकत हे छत्तीसगढ़ी*

 **राजभाषा के ओढ़ना ओढ़े मान पाय बर ताकत हे छत्तीसगढ़ी*

       छत्तीसगढ़ अपन लोकसंस्कृति अउ परम्परा ले  जाने जाथे। अलगे राज के रूप म एकर निर्माण घलव इही लोक संस्कृति अउ लोक परम्परा के पहचान संग होइस। छत्तीसगढ़ ल राज बने २३ बछर होगे अउ छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा के दर्जा मिले १६ बछर। फेर छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा के रूप म मान नइ मिल पाय हे। 

       अभी चुनई घरी सबो झन वोट माँगे बर छत्तीसगढ़ी के शरणागत रहिन। सियान-सियानिन मन तिर वोट के फसल काटे बर गुड़ म पागे बरोबर मीठ-मीठ छत्तीसगढ़ी गोठियाइन। रकम-रकम के गीत बजवा के प्रचार-प्रसार करिन। छत्तीसगढ़िया के जम्मो छत्तीसगढ़ियापन ल ओढ़े मुँहाटी-मुहाँटी किंजरिन हें। अइसन सिरिफ अभिन भर नइ पीछू चुनई म घलव करिन। जनता तिर जाके उँकर हितवा बने के कोनो मौका नइ छोड़िन। सबो दल देखावा करे के इहीच दल-दल म बोजाय हें। कोनो सहराय के लइक नइ हे। छत्तीसगढ़ी बर इँकर दाँत हाथी सहीं हे। खाय के आने अउ दिखाय के आने।

           वर्तमान सरकार छत्तीसगढ़ियावाद ल लेके अतेक बुता करिन कि लोक संस्कृति, लोक परब मन के प्रति लोगन के झुकाव फेर बाढ़े लगिस। अपन संस्कृति अउ परम्परा बर लोगन के स्वाभिमान जागिस। फेर सरकार लोकसंस्कृति लोक परब के संवर्धन बर जरूरी माध्यम कोति चेत नइ करिन। अपन वोट के खेती करत दिखिस। कोनो भी लोकजीवन के लोकसंस्कृति अउ लोकपरम्परा के संवाहक ओकर भाषा होथे। छत्तीसगढ़ी राजभाषा बने के पाछू उपेक्षित हे। राज-काज के भाषा १६ बछर म नइ बन पाइस। एकर बड़का कारण सरकार के इच्छा शक्ति आय। चाहे सरकार म कोनो दल राहय, जरूरी हे छत्तीसगढ़ी के प्रति उँकर समर्पण दिखय। छत्तीसगढ़ी ल मिले राजभाषा के दर्जा एक ठन कलगी बरोबर शोभायमान हे। ओकर संवर्धन होय अउ राज-काज के भाषा बनय ए दिशा म कोनो किसम के उदिम नइ करिन। आजकाल एक ठन नवा ट्रेण्ड दिखत हे नेता मंत्री मन के, जनता ले छत्तीसगढ़ी म गोठियाय के। 

           आज छत्तीसगढ़ी एम ए स्तर म पढ़ाय जावत हे। भाषाई दृष्टि ले एकर पढ़ई प्राथमिक कक्षा ले होना चाही, तब कहूँ छत्तीसगढ़ी के विकास सब दृष्टि ले हो पाही। स्कूली शिक्षा म नेंग छूटई पाठ्यक्रम रहे ले न रोजगार के अवसर मिल पावय अउ न ओकर बरोबर पढ़ई च हो पावय। जब तक जेन शिक्षा या विषय ले रोजगार के अवसर नइ मिलही, वो विषय म भला कोनो पढ़ के का करहीं? भाषाई शिक्षा म रोजगार के अवसर शिक्षा संस्थान म ही हो पाथे। आने क्षेत्र म रोजगार के अवसर सरकारी उपक्रम ले ही समझौता कर के बन पाथे। अइसन म जब तक सरकार ऊपर दबाव नइ बनही, तब तक छत्तीसगढ़ी राजभाषा के ओढ़ना ओढ़े मान पाय बर सरकार के मुँह ताकत रही। कहूँ कुर्सी खतरा म जनाही, अउ डूबत बर तिनका के सहारा सहीं छत्तीसगढ़ी उन ल तिनका जनाही, वो दिन नेता मन घलव एला थाम के अपन नैया पार लगाय म चिटिक देर नइ करँय। सरकार राज-काज दूनो बर छत्तीसगढ़ी के मोहताज होवय, वो दिन के अगोरा हे। बेवसाय ले जुड़े मनखे जिंकर घर भीतरी छत्तीसगढ़ी नइ चलय, ओमन घलव अपन व्यापार ल चलाय बर सुघर छत्तीसगढ़ी बोले बर सीख लेवत हें, फेर हम छत्तीसगढ़िया मन अपने बोली-भाखा म बोले ले हीन भाव समझे धर ले हन। अतका घलव नइ देखन कि अलगे भाषा के दू मनखे हमरे बीच अपन बोली-भाखा म कतका गर्व के संग गोठियाथें। जेन दिन छत्तीसगढ़ी बर हमर भीतर के स्वाभिमान जागही, तेन दिन तय हे सरकार अउ सरकारी तंत्र घलव छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा के बरोबर मान दिहीं। यहू सुरता रखन कि छत्तीसगढ़ी चुनाव म प्रचार प्रसार के माध्यम हो सकथे, त राजकाज के काबर नइ हो सकय? ....झुकता है आसमान झुकाने वाला चाहिए। 




पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह(पलारी)

एकरूपता के आस म छत्तीसगढ़ी भाखा..

 एकरूपता के आस म छत्तीसगढ़ी भाखा.. 

    छत्तीसगढ़ी भाखा म साहित्य सिरजन तो सैकड़ों बछर ले होवत हे. आज हमर आगू म लोकसाहित्य मन के अथाह खजाना दिखथे, तेन ह वोकरे परसादे आय. फेर ए भाखा ल एकरूपता दिए खातिर उदिम थोर कमतिच दिखथे. एकरे सेती लोगन अपन-अपन सोच अउ उच्चारण के मुताबिक एला लिखत अउ बउरत रेहे हें, अभी घलो वइसने च बउरत हें.

     छत्तीसगढ़ी व्याकरण खातिर उदिम तो काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू जी के सन् 1885 म लिखे 'छत्तीसगढ़ी बोली का व्याकरण'  किताब ले देखे बर मिलत हे. एकर पाछू अउ कतकों विद्वान मन के घलो किताब आइस, फेर सर्वस्वीकारिता कोनो ल नइ मिलिस. सन् 2000 म अलग छत्तीसगढ़ राज के गठन के बाद ए बुता म अउ जादा गति देखे बर मिलिस. खास करके 'छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग' के गठन के बाद एक भरोसा जागिस के सरकारी मंच के माध्यम ले जेन निर्णय लिए जाही, तेला सबो एक सुर म मानहीं, अउ वोकरे मुताबिक छत्तीसगढ़ी के लेखन करहीं.

    राजभाषा आयोग के पहला अध्यक्ष श्यामलाल चतुर्वेदी जी संग ए संबंध म गोठ करे गिस, त उन कहिन- 'मोला लागथे, के अभी हमन ल मानकीकरण ले जादा साहित्य के लेखन डहार जादा जोर देना चाही. जादा ले जादा साहित्य लोगन के आगू म आही. सब एक-दूसर के रचना ल पढ़हीं. वोमा के अच्छा-अच्छा शब्द मनला बउरत जाहीं, तहाँ ले अपने-अपन मानकीकरण हो जाही. छत्तीसगढ़ी म एकरूपता दिखे बर लगही.

    राजभाषा आयोग के दूसरा अध्यक्ष दानेश्वर शर्मा जी संग घलो ए विषय म गोठ करेन, त उन हाँ एकर ऊपर तो ठोस बुता होना चाही, कहिन अउ सिरतोन म ए रद्दा म पाॅंव घलो राखिन. एक दिन पूरा प्रदेश भर के पोठहा साहित्यकार, भाषाविद् मनला सकेल के आयोग के ही हाल म एकर ऊपर चर्चा करवाइन. ए चर्चा म सबो विद्वान मन डहार ले एक बात ऊभर के आइस, के देवनागरी लिपि के जम्मो 52 वर्ण ल छत्तीसगढ़ी लेखन म बउरे जाना चाही, छत्तीसगढ़ी के लेखन म कहूँ दूसर भाखा के शब्द ल बउरथन त वोला जस के तस लेना चाही. वोमा कोनो किसम के टोर-फोर नइ करना चाही.अब शिक्षा के अंजोर के संग लोगन आने भाखा ले आने वाला शब्द मन के उच्चारण ल शुद्ध रूप म करथें, त लेखन म घलो शुद्ध रूप के ही उपयोग करना चाही.

    ए बइठका के पाछू एक अउ बइठका कर के वोमा मानकीकरण खातिर अंतिम निर्णय लेबोन कहे गिस, फेर दूसरइया बइठका के आरो शर्मा जी के कार्यकाल के सिरावत ले नइ मिलिस.

    हाँ, दानेश्वर शर्मा जी के कार्यकाल म राजभाषा आयोग डहार ले सलाना जलसा के बेरा म एक स्मारिका छपवाए के उदिम घलो करे गिस. ए स्मारिका खातिर चार झन  साहित्यकार मन के संपादक मंडल बनाए गिस, जेमा- डाॅ. परदेशी राम वर्मा, जागेश्वर प्रसाद, रामेश्वर शर्मा अउ सुशील भोले ल संघारे गिस. वइसे तो संपादक मंडल म चार सदस्य रेहेन, फेर एकर जम्मो पोठहा बुता ल मोर जगा करवाए गे रिहिसे, तब मैं आयोग के अध्यक्ष, सचिव, जम्मो सदस्य अउ संपादक मंडल के सदस्य मन ले स्मारिका के भाखा ल मानकीकरण खातिर होए बैठक चर्चा के अन्तर्गत रखे जाय का? कहिके पूछे रेहेंव, तब कहे गे रिहिसे- जब तक मानकीकरण के बुता ह सर्वसम्मति ले पूरा नइ हो जाय, तब तक लोगन जइसे लिख के दिए हें, वइसने छापे जाय कहे गे रिहिसे.

    मानकीकरण ले रद्दा म राजभाषा आयोग के तीसरा अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पाठक जी के कार्यकाल म पोठहा बुता होइस. 22 जुलाई 2018 के दिन बिलासपुर म डाॅ. विनोद कुमार वर्मा जी के संयोजन म आयोजित राज्यस्तरीय संगोष्ठी म सर्वसम्मति ले प्रस्ताव पारित करे गिस- "छत्तीसगढ़ के राज्यपाल द्वारा 11 जुलाई 2018 के अधिसूचित राजभाषा (संशोधन) अधिनियम 2007 (धारा 2) के संशोधन के अनुरूप छत्तीसगढ़ी भाषा के मानकीकरण बर देवनागरी लिपि (वोकर 52 वर्ण मन) ल यथा-रूप अंगीकृत करे जाही, जेला केन्द्र शासन ह हिन्दी भाषा खातिर अंगीकृत करे हे.

    ए राज्यस्तरीय संगोष्ठी म छत्तीसगढ़ के जम्मो ठोसहा साहित्यकार अउ भाषाविद् मन संघरे रिहिन हें. ए पूरा कार्यक्रम के लेखाजोखा राजभाषा आयोग के कार्यवाही रजिस्टर म लिखाय हे, तभो ले खुद राजभाषा आयोग अउ वोकर ले जुड़े लोगन काबर वोकर पालन या अनुसरण अभी घलो नइ करत हें? 

    मन म एक बात इहू उठथे- का सत्ता म आए बदलाव के सेती पहिली के सरकार के बेरा म पारित प्रस्ताव ल घलो बदलगे हवय या वोला राजनीतिक प्रस्ताव जइसन कचरा के संदूक म झपा दिए गिस? जबकि होना तो ए रिहिस, के वो प्रस्ताव ल शासन प्रशासन के संगे-संग जतका भी ठीहा म छत्तीसगढ़ी भाखा ल कोनो न कोनो रूप म बउरे जावत हे, सबो म लागू करवाय के उदिम करे जाना रिहिसे. भरोसा हे, जिम्मेदार लोगन के ए मुड़ा चेत जाही. अउ एला एकरूपता के रूप म सबो डहार एक रूप म पढ़े लिखे बर मिलही. 

   मोर तो ए कहना हे, के हमन सिरिफ नागरी लिपि के जम्मो 52 वर्ण मनला ही अपन-अपन लेखन म सरलग बउरे लगीन, हिंदी या आने भाखा ले आने वाला शब्द मनला बरपेली छत्तीसगढ़ीकरण करे के नॉव म टोर-फोर करे के बलदा जस के तस लिखे ले धर लेईन तभो मानकीकरण के रूप म एकरूपता के आधा ले जादा समस्या उरक जाही.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

अगहन बिरस्पत कहानी 1

 अगहन बिरस्पत कहानी 1

  

   अन्न के करौ जतन.. 

          

     एक गाँव म साहूकार अउ साहूकारीन रहिन। बड़ मेहनती रहिन। स्वभाव ले दयालु सबके सुख -दुःख म खड़े होय। चीज -बस के कुछु कमी नइ रहिस। कोठी मन ले धान -पान उछलत रहय। धान के बड़ जतन होय फेर कोदो -कुटकी के पुछारी नइ रहय खेत -खलिहान, कोठार म परे रहय। ओखर भूर्री बारय।

        एक दिन के बात आय. अधरतिया के बेरा लक्ष्मी दाई मन बइठे गोठियावत रहए , कोदईया दाई कहीस -बहिनी हो इहाँ मोर बड़ अपमान होथे  रात-दिन मोला होरा भूंझत हें मोर देंह जरत हे हाथ -गोड़ कुटकुट ले पिराथे , लइका -बाला मोर ऊपर थूकथें -मूतथे। तुंहर तो अड़बड़ जतन होथे फेर मोर एक रत्ती  कदर नई हे। मैं अब इहाँ नई रहौं , इहाँ ले जाहूं। धनईया दाई कहिथे बहिनी सबले बड़े तहीं अस  तैं नई रहिबे त मैं का्य करहूं। आज जतन होत हे कोन जाने काली मोरो हाल तोरे असन होही। महूं नई रहंव तोरे संग जाहूं। दूनों के गोठ ल सोनईया दाई सुनत रहय उहू कहिस तुमन बड़े मन नइ रहू तो मैं काबर रहूँ महूं जाहूं तुहर संग , सोनईया दाई के बात ल सुन के रूपईया दाई कहिथे महीं अकेल्ला काय करहूं महूं जाहूं तुहर संग। चारों लछमी माई मन सुनता -सलाह होगें। 

    दूसर दिन अधरतिया जब सबे झन सुत गें चारों लछमी माई साहूकार के घर ले निकल गिन। चारों झन जात गिन रस्ता म जंगल आ गे , एकदम घनघोर , कोदईया दाई कहिथे जंगल अड़बड़ घना हे बहिनी आगू नइ जान कोनो बने असन जगा देख के रुक जथन। कुछ दूर म एक ठन दिया बरत दिखिस। चारों झन उही कोती चल दीन।  देखिन एक ठन नानकुन  झोपड़ी भर हे , आसपास अउ घर नई हे। इहाँ जंगल म कोन रहिथें ? 

  फेर आसरय तो चहिये , दरवाजा ल खटखटाईन आरो ल सुन के भीतरी ले एक सियान दाई कंडील धरे आइस  चारों माई ल देख के अकबका गे। यहा घना जंगल अधरतिया के बेरा अउ चार झन जवान -जवान सुंदर लकलक करत माई लोगिन देख के अकबका गे , फेर आधा डर -बल के पूछिस -काय बेटी हो।

    लक्षमी दाई मन पूछिस -अउ कोन-कोन रहिथे तोर संग। सियान कहिस -अकेल्ला रहीथों। 

लछमी दाई- दाई हमन ल आसरा चाही।

सियान थोरकन गुनिस फेर कहिथे मोर कुरिया तो नानकुन हे बेटी हो तुमन बड़े घर के लगथो , कइसे रहू इहाँ। 

लछमी दाई- ओखर फिकर झन कर हमन रहि जबो. इहाँ जंगल म अउ कहां जाबो।

सियान ल दया आगे. सिरतोन कहिथो बेटी कहां जाहु। आओ भीतरी म। 

भीतरी म लछमी दाई मन गिन। सियान ओमन ल बैठे बर खटिया ल दीस। पानी लान के दीस अउ कहिस बेटी हो मैं गरीबीन छेना थाप के अउ बेच के जिनगी चलाथों खाय बर पेज -पसिया मिलही। 

लछमी दाई- हमन ल परेम ले जेन खवाबे तेन ल खाबो , पेज -पसिया ल पीबो। एकठन बात हे - हमन इहाँ हन कोनो ल झन बताबे। खा- पी के सबो झन सुत गें। सियान मुधरहा ले उठ के गोबर बिनय अउ तहाँ ले छेना थोपय, बेरा उवय तो बस्ती म घूम -घूम के  छेना बेचय , बेचे से जेन पैसा मिलय तेखर खई -खजाना लेवय। रोज के ओखर यही नियम रहय। सियान भले गरीबीन रहीस फेर बहुत ईमानदार , दयालु अउ संतोसी रहीस हे।  वहु दिन सियान  मुंधरहा ले उठिस , ओखर संग संग लछमी दाई मन घलो उठ गें। 

पूछिन बाहिर -बट्टा केती बर जाबोन दाई। सियान गुनिस यहा जवान म जंगल भीतरी कहाँ जाही , सोच के कह दिस - इही तीर में निपट लो बेटी।

चारों झन झोपडी के चारों कोती बइठ गें। 

बेरा उवीस तो सियान के आंखी फटे के फटे रहीगीस , झोपड़ी के चारों कोती ल देख के। यहा का एक कोती कोदो के कुड़ही ,दूसर डहर धान , तो तीसर कोती रुपया -पैसा , अउ चौथइया कोती सोन -चांदी के ढेरी। सियान अकबका गे , सोच म परगे , कोनो जादू टोना तो नई करत हे , असिखिन -बही तो नो हे। लदलद कांपे लगीस। धाय भीतरी धाय बाहिर होय।

   लछमी -दाई मन सियान के भाव ल भांप लीन , ओला समझाईंन , दाई भगवान तोर मेहनत ल चिन्हिस अउ तोला दे हे , सकेल डर।

सियान के डर थोरकन कम होइस। मरता क्या न करता आधा डर-बल के सबे ल सकेलिस। दुसरया तिसरया दिन फेर वसनेहे होइस। सियान समझ गे एमन साधारण मनखे नई हे , हो न हो  साक्षत लछमी दाई ए।

सियान के दिन फिर गे। अब वो गोबर बीने ल , छेना बेचे ल नई जाय , झोपड़ी के जगह सुंदर महल बन गे। पूरा बस्ती म. दूर -दूर गांव म बात फ़इल गे। सियान सबके मदद घलो करेय , दान  -पून करय। सबो झन सियान ल घूमा -फिरा के , डरा -धमका के पूछय काय करेस के तोर दिन फिर गे। फेर सियान बताय नई।

        लछमी दाई मन ओला चेताय रहय। ओती साहूकार के घर धीरे -धीरे सबो धन -संपत्ति खतम होगे। कतकोन मेहनत करय खेत -खलिहान सूख्खा के सूख्खा ,धूर्रा उडियावत । मेहनत -मजदूरी करें के नवबत आगे। सियान के ख्याती साहूकार तक पहुंच गे। साहूकार ल शक होगे हो न हो लछमी दाई ओखरे घर गे हे। खोजत -खोजत साहूकार सियान के घर पहुंच गे। 

   सियान  साहूकार के सुंदर आवभगत करीस।

साहूकार धीरे ले सियान ल पूछिस , का करेय दाई के तोर दिन फिर गे। झोपड़ी ले महल हो गे।  सियान टस के मस नई होइस। साहूकार डराइस -धमकइस , पुचकारीस । 

सियान डेराय -डेराय भीतरी में गीस अउ  लछमी दाई मन ल कहीस , चलव बेटी हो साहूकार आय हे तुमन ल खोजत -खोजत। तुमन ल बलावत हे। बहुत जोजियाइस। आखिर म लछमी दाई मन मिले -बर हामी भरीन अउ बाहर आइन।  लछमी दाई मन ल देख के साहूकार उखर पांव तरी गीर गे , रोय-गाय लगीस , माफ़ी मांगीस। सबे  लछमी दाई मन पसीज गे , जाय-बर तइयार होगे। 

फेर कोदईया दाई  कहीस- तोर  घर म मोर बड़ अपमान होथे, नई जाव। साहूकार कहीस अब नई होय दाई , भूल हो गे माफ क़र  दे , तोर सखला-जतन करहू। आखिर म कोदईया दाई घलो मान गे  . सबे लछमी दाई मन सियान ल अड़बड़ आसिरवाद दीन अउ साहूकार के संग चल दीन। 

साहूकर के दिन फेर बहूर गे। साहूकार ल समझ आगे , घर म सबोझन  ल समझाइस, भगवान दे हे तेन सबे जिनीस के  सखला-जतन करना चाही।


प्रेम से बोलो लछमी महरानी के जय। 

"मोर कहानी पूरगे , दार- भात चूरगे। 


(प्रस्तुति : सुशील भोले) 

***

राजभाषा दिवस के पखवाड़ा बेरा म गाड़ा गाड़ा बधाई

 राजभाषा दिवस के पखवाड़ा बेरा म गाड़ा गाड़ा बधाई  

नानकुन गोठ  -

लिखे के विचार आइस l गद्य विधा म बहुत अकन लिखें के काम होवत हे l अपन गोठ ल इही ढंग ले करे के  मोर प्रयास रही l l जउन कहना चाहत हँव लोक साहित्य -संस्कृति के वाचिक परम्परा ले जुड़े हे l लिखित म नई हे फेर बोल चाल अउ लोक व्यवहार म परम्पराअसन चले आवत हे l lपाँच पंचाईत के गोठ  सगा पहुना संग के गोठ रिस्ता नाता लागमानी के गोठ  अउ मुँह ओखरा परम्परा गत जीवन हे लोक साहित्य  संस्कृति के झलक हे जेमा मैनखे के सुख -दुख,हँसना -गाना,दया -मया

करूना  -सहानुभूति  सबो मिलही lओखर ले बहुत अकन गोठ -विचार निकल के आही l भाखा  के मरम ल जाने बर,समृद्ध करे बर,लिखित रूप दे बर ये उदिम ल उठावत हवं l

ओला बढ़िया हमन जानन -नेरवा काकर इहाँ गड़े हे?

छत्तीसगढ़  अउ छत्तीसगढ़ी के आत्मा  कइसे  अउ कहाँ लुकाये हे?  का उहू अब नंदा जाय? नंदावत जान दे?गुने ला पड़ही lहमर जीवन के गीता सार लोक परिपाटी लोक व्यवहार म घलो हे l  लिखें -लिखाये अउ पढ़े - पढ़ाये के बात होवत हे त जीवन मूल्य ला महत्व देवन l शिक्षा म  आचरण मूल्य जुड़ना जरूरी हे l  सब रिस्ता छूटत जात हे,टूटत जात हे lमूल्य रहित ज्ञान -शिक्षा बेकार हे l रूढ़िवादी नई बनना हे फेर नैतिक आचरण के खजाना ल तो खोजन l 

       रेट माइनर्स मतलब मुसवा जइसे खोदी मजदूर असन कीमती बिचार ला बाहिर कोती निकालन -लावन lछत्तीसगढ़ी बर नवा उदिम मान लुहूl अपन सुझाव अउ पदोंलीं घलो दुहू l


                      तुहरेंच

               मुरारी लाल साव

                कुम्हारी

Friday 17 November 2023

लोककथा मन के संरक्षण बर बड़का उदिम आय लोककथा संग्रह - ठग अउ जग*

 *लोककथा मन के संरक्षण बर बड़का उदिम आय लोककथा संग्रह - ठग अउ जग*

           शहरी जिनगी एक-दूसर ले सरोकार कमती रखथे, नइ ते रखबे नइ करय। इँकर जुड़ाव म सामाजिकता कमती रहिथे। हाथ जरूर मिलथे फेर दिल नइ मिले। फार्मेलिटी निभाय के जुड़ाव होथे।लोकजीवन के समाव खोजे ल परथे। फेर गँवइहा जिनगी म लोकजीवन के दर्शन पल-पल म होथे। जे जादा कर के श्रमजीवी होथे। बेरा उवे के आरो संग काम बुता म लग जथे। चिरई-चिरगुन के सँघाती अपन डेरा छोड़ के खेत-खार, धनहा-डोली, बारी-बखरी कमाय बर जाथे। गाय-गरु मन के लहुटे पाछू बेरा ढरकत अपन डेरा लहुटथे। इही बीच खेत-खार अउ डोंगरी-पहाड़ म कमइया मन कतको किसम के गीत गाथें। जउन अंतस् ले निकलथे। एकर कोनो सिरजनहार नइ होवय। 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' सहीं तुक ले तुक मिलावत लोक के अंतस् ले निकले एक-एक डाँड़ मिलथे अउ गीत बन जथे। जउन ह लोक के अंतस् ल जुड़ोवत लोक म समा लोक ल आनंदित करथे। जेमा सिरिफ अंतस् के पीरा नइ रहय, उछाह घलव रहिथे। लोक के इही गीत मन लोकगीत हरें। ए लोकगीत मन उँकर थके मन ल थिराय म बड़ साहमत देथें। मन म उछाह अउ उमंग भरथें। हारे मन म नवा जोश भरथे। ए गीत मन ले एक-दूसर संग मन के पीरा कहे जाथे, त कभू मया रस म पागे गीत मन ले मयारुक तिर मया के संदेशा भेजे जाथे। मन नइ मिले अउ नराजगी रेहे, त ठेसरा घलव गीते च माध्यम ले दे जाथे। पिरोहिल ल मना घलव लेथे। करमा, सुआ, ददरिया गीत मन म एकर परछो मिलथे। उहें बिहाव, सोहर, फाग, पंथी, जसगीत जइसन गीत मन ले मन म उछाह अउ उमंग के ठिकाना नइ रहय। 

         दूसर कोती घर म घर रखवार के बुता घलव बाढ़े रहिथे। रँधनी खोली अउ अँगना बुता ल सम्हालत लइका मन के हियाव करना पड़थे। नान्हे लइका मन तब आज सहीं स्कूल नइ जा पावत रहिन। एकर पीछू गिने बर कतको वजह हे। ...तब घर म डोकरा बबा अउ डोकरी दाई मन कतको कथा कंथली सुनावँय। खासकर रतिहा बेरा। बहुत पहिली गुरुकुल राहय। जिहाँ नैतिक अउ मानवीय मूल्य ल सहेजे शिक्षा दे जावय। आम आदमी अपन लइका ल गुरुकुल पठोय नइ सकँय त घरे म कथा-कंथली ले पारिवारिक अउ सामाजिक जीवन के ज्ञान दे के उदिम जरूर करँय। दाई-ददा मन के बुता म भुलाय रेहे ले रतिहाकुन डोकरा बबा नइ ते डोकरी दाई मन कथा-कंथली के शुरुआत करँय। ए कहानी मन के मूल उद्देश्य तो मन बहलाव रहिन, मनोरंजन रहिन। रंधई-गढ़ई म बेरा होय ले भुलवारे के उदिम म कथा-कंथली चलय। इही ल सुनत लइका मन जागँय ...तभे तो खाय बर आरो मिलते साठ जम्मो कहानी के आखिर म इही काहय- 'दार भात चुर गे, मोर कहानी पुर गे।' फेर गुनान करे म इही समझ आथे कि आज के कहानी इही कथा-कंथली के नवा सरूप आय। मैं ए संग्रह के मुख पृष्ठ म लिखाय लोककथा ऊपर विचार करत इही सोच पाय रेहेंव। भीतरी म हिरदे के गोठ म वीरेन्द्र सरल लिखे हवय कि....लोककथा मन ल हमर आधुनिक कहानी के महतारी कहि सकथन। मैं उँकर ए गोठ ले सहमत हँव। इँकरे ले प्रेरित होके लिखे के शुरुआत होय हे कहे जा सकत हे। दूनो म एके फरक हे कथा कंथली वाचिक परम्परा ले कई पीढ़ी ल मनोरंजन के संग नैतिकता अउ मानवता के सीख दे म सक्षम रहिस। जेन आज के कहानी म दुर्लभ हे। आज के कहानी कालजयी नइ हो पावत हे। ए संग्रह के भूमिका म हरिहर वैष्णव दू ठन बढ़िया बात लिखे हवँय - एक, कथा-कंथली याने लोककथा लोक संस्कृति के अनमोल थाती आय। दूसर, लोककथा मन लोक साहित्य के रीढ़ के हड्डी आय।

          जन मन म छिटके बगरे लोककथा मन ल सिला सहीं सिल्हो वीरेन्द्र सरल ह लोककथा मन ल लिखित रूप म सहेजे के बड़का उदिम करे हे। काबर कि जम्मो लोककथा मन वाचिक परम्परा ले एक ले दूसर पीढ़ी ल मिले हे। फेर आज लिखना के जुग आय। अइसन म आगू घलव मुअँखरा रेहे ले, इँकर नँदाय के खतरा मँडरावत रहिस हे। लोककथा के संसार अगाध हे, जरूरत हे ओला सहेजे के। कतको कथा तो सहेजे च नइ गेहे अउ कम्प्यूटर अउ मोबाइल के आय ले सुनइया-कहइया दूनो चेत नइ करत हें। अइसन म वीरेन्द्र सरल के प्रयास स्तुत्य हे, बंदनीय हे। वीरेंद्र सरल के ए बुता एकरो सेती अउ स्तुत्य हे कि उन देश के स्थापित व्यंग्यकार होय के बावजूद ए कोति अपन योगदान दे हवँय।

         लोककथा मन के कथानक अउ प्रस्तुति ले ए कहे जा सकत हे कि ए हर आज के बालकहानी ले अलग नइ रहे हे। अइसे भी जम्मो कथा मन लइका मन ल साध (निशाना) के गढ़े गे हवय। जंगल-झाड़ी, पशु-पक्षी, छोटे-बड़े सबो जीव-जंतु, तरिया-नदिया, राजा-रानी जउन लइका के शब्द कोष म (जानबा) रहिथे, उही ह कथानक ल आगू बढ़ाय म मददगार दिखथे।

        बेरा के संग स्कूली शिक्षा म 'हितोपदेश अउ पंचतंत्र की कहानियाँ' सिरीज ले नैतिक मूल्य अउ मानवीय मूल्य शामिल करे गे रहिस। जेकर आज के पाठ्यक्रम म कमी दिखथे अउ एकर प्रभाव मनखे के बेवहार म घलव झलकथे। जिनगी म तनाव अउ परिवार म बिखराव एकर बड़े उदाहरण आय। मनखे म सबर करे के क्षमता ए नइ रहिगे हे। ऐन-केन प्रकारेण सब हासिल करना चाहथे। चाहे ओकर बर कुछु दाँव लग जय। ओकर संसो नइ हे। औपचारिक शिक्षा के संग हम दू अउ हमर दू के रुँधना म अनौपचारिक शिक्षा घलव सिमट गे हे। सुवारथ म सनाय हे। नान-नान बात म झगरा-लड़ई होवत हे। अपनापन अउ भाईचारा ह कोन खूँटी म टँगा गे हे ऊपरे वाला जानय। अइसन म लोगन के चारित्रिक निर्माण बर आज लोककथा मन के प्रासंगिकता बाढ़ गे हवय। 

         ऊपर कहि डरे हँव कि लोककथा मन बाल कहानी ले अलग नइ हे। लइकामन ल केन्द्र म रख के कथा गढ़े जाय। कल्पना के उड़ान घलव रखे जाय। अचम्भा गोठ जानबूझ के डारे जाय ताकि लइका मन रिझे राहय। कल्पना शक्ति के विकास होवय। लोककथा मन म कल्पनाशीलता बड़ गजब के मिलथे। अतिश्योक्तिपूर्ण कथन अउ घटना ले कथा म रोचकता बने रहिथे। बाल मनोविज्ञान तो साग म डारे नून सहीं रचे बसे हे। भले बाल पात्र नइ रही फेर कथा के प्रवाह अउ संवाद ह बालमन ल बाँधे रहिथे।

         अब किताब म शामिल कुछ लोककथा मन के गोठ कर लेवन।

         छत्तीसगढ़ के गँवइहापन म कुछ मनखे के बेवहार अउ हाव-भाव अइसे रहिथे जेन ल लेड़गा कहि दे जाथे। जेकर चलना-फिरना अउ गोठियई के लोगन हाँसी उड़ाथें। काबर कि लेड़गा सूझ-बूझ ले बुता नइ कर पावय। कर भी लेही त उल्टा-पुल्टा कर डारथे। दूसर के बुध म झटकुन आ जथे। चतुरा मन ओकर फायदा उठा लेथें। जेन ल अभिन के बेरा म कमती बुद्धि के लइका म गिने जाथे। हमर कथा-कंथली म लेड़गा के पात्र के चरित्र ल बढ़िया गढ़े गे हावय। जम्मो कथा मन म कभू उँकर हँसी नइ उड़ाय हे। भलुक ओकर मनोविज्ञान ल समझे के उदिम मिलथे। उन मन अनजाने म सहीं अपन सूझ-बूझ के आरो देवत समाज बर चेतलग बुता घलव कर डारथें। अइसन कथा मन ले लइका मन बड़ मजा मिलथे। फेर बड़का सीख घलव पाथें। एक तो उँकर जइसन नइ करना हे।

        'करम के नाँगर ल भूत जोंतय' म लेड़गा अपन महतारी के दे सात ठन मुठिया रोटी बर पीपर तरी बइठे चिचिया कहिथे - 'एक ल खाँव कि सातो ल खाँव। एक ल खाँव कि सातो ल खाँव। इही ल दुहराय त पीपर म रहइया सत बहनिया मन अपने आप ल समझत डर जावय। दूसर कोति ओकर ललचाहा मितान के करनी के भेद ए कथा म हे।

         'भाँचा के चतुराई अउ ममा के करलाई' लेड़गा के सूझ बूझ ले दिन बहुरे के कथा ए।

          'परबुधिया' म लेड़गा के चरित्र बिल्कुल लोकजीवन म प्रचलित चरित्र के जइसे हावय। जेन ह अभिन के बेरा म अविश्वसनीय हे। अइसन कहानी ल जस के तस आगू बढ़ाय ले नवा पीढ़ी अउ समाज ऊपर गलत छाप परही। परबुधिया अउ लेड़गा के कड़ही दूनो कथा महज मनोरंजन के लइक हे। 

            भांटा ऊपर कांटा पहेली बूझत हास्य कथा आय। उहें जानपाड़े लोककथा ए बताय म सक्षम हावय कि जान मुसीबत म फँसथे त सबो के दिमाग के ताला खुल जाथे। सब ल उपाय सूझथे।

           छत्तीसगढ़ लोकपरब के भुइँया आय। जिहाँ नारी परानी कतको किसम के उपास-धास रखथें। कमरछठ उपास इही म के आय जउन तइहा ले चले आवत हे। एकर महत्तम अउ मरम ल सरेखत छै ठन बढ़िया लोक कथा ए संग्रह म सकेले गे हे। ए विषय के एक दू लोककथा ल सरेखे के पाछू अउ दूसर किसम/विषय के लोककथा मन ल जघा दे जाय म छूटे अउ लोककथा ल नवा जीवन मिल पातिस।  नवा संग्रह बर एमा ले बाँचत अउ कथा ल दूसर संग्रह म शामिल करे ले ओकरो विविधता बने रहितिस। अइसे मोर मानना हे। खैर, ए लेखक के एकाधिकार आय कि का शामिल करय अउ का नइ?

         'मंत्री मन के घमंड'  जन-हितवा राजा मंत्री मन के घमंड कइसे टोरथे एकर परछो देथे। 

         आज दिनोंदिन मनखे नैतिकता ले गिरत पताल लोक म जावत जात हे, अपने ले आँखी नइ मिला सकत हे। अइसन म 'चोर के ईमानदारी' लोककथा मनखे के चारित्रिक उत्थान बर मील के पत्थर साबित होही। जेन म परिस्थितिवश एक राजा अपन छोटे बेटा ल कहिथे-...तैं चोरी करके जिनगी जीबे खाबे...फेर मोर ए बात ल हमेशा सुरता रखबे कि कभू कोनो दास, कंजूस अउ मित्र घर चोरी झन करबे,.. अउ एकरे संग असीस देथे- भगवान तोर भला करही। ददा राजा के दिए ए मंतर ल अपनाय चोर बेटा कइसे आने राज के राजकुमार बनिस एकर बढ़िया कहानी आय, चोर के ईमानदारी।

            जे पाय आँच, ते खाय पाँच लोककथा जिद म अड़े रहे ले मनखे के संग का अनीत घट सकथे, एमा बढ़िया समझे जा सकत हे। 

          ठग अउ जग ए बताथे कि कभू भी अपन आप ल हरदम श्रेष्ठ अउ जेष्ठ माने के नोहय। हमरो ले कोनो श्रेष्ठ हो सकत हे।

           'कुकरी के लइका' प्रेम अउ समर्पण के मिशाल दे म समरथ हे।

           जम्मो लोककथा मन के बारे म कहूँ थोर थोर गोठ लिख दे जाही त आप किताब कइसे पढ़हू। ठग अउ जग, बनकैना रानी, कुकरी के लइका, दसोमती रानी, महराज के बेटा, मनखे के भाई साँप, सूरजभान, फूलबासन,  राजा वीर देव, हाथी अउ कोलिहा सहित कुल ३२ कथा-कंथली अइसे ढंग ले सकला करे गे। जे मनखे के ३२ दाँत कोति घलव इशारा करथे। आखिर लोककथा दंतकथा तो हरेच भई। 

          ठग अउ जग लोककथा संग्रह लोक ल हाँसे के मौका देवत नैतिक मूल्य अउ मानवीय मूल्य ल अपन अंतस् म उतार मनखे बने रहे के सीख देथे। लिखना रूप म सिरजावत वीरेंद्र सरल के लेखन शैली सराहे के लइक हे। जेन प्रवाह के संग सुने हँव उही प्रवाह ए लोककथा मन म मिलथे। वीरेंद्र सरल के मँजे कलम ले ए संग्रह के जम्मो लोककथा मन ल आज के भागमभाग ले भरे जिनगी म अपन ठउर बनाही। एमा कोनो दू मत के गोठ नइ हे।

           लोककथा मन ल वाचिक परम्परा ले लिखना म सँघारे के उदिम आगू घलव होवत रहना चाही। बस अइसन करत बेरा ए बात के ख्याल रखे बर परही कि विशुद्ध मनोरंजन बर कहे कथा-कंथली के संग छत्तीसगढ़ के अस्मिता अउ स्वाभिमान ल नवा उचास देवय, उँकर सकला होवय। वीरेंद्र सरल के ए उदिम नवा-जुन्ना(नवोदित अउ स्थापित) दूनो लिखइया मन ल ए दिशा म बुता करे के प्रेरणा दिही, इही भरोसिल मन ले वीरेंद्र सरल ल पुरखौती जिनिस ल सहेजे के ए कारज बर बधाई देवत हँव।


लोककथा संग्रह: ठग अउ जग

लेखक: वीरेंद्र सरल

प्रकाशक: कल्पना प्रकाशन दिल्ली

प्रकाशन वर्ष : 2023

कापीराइट: लेखक

पृष्ठ : 224

मूल्य : 450


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह(पलारी)

जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग.