Sunday 25 February 2024

सुरता// 'का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल' के पाछू के दर्शन...


 

सुरता//

'का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल' के पाछू के दर्शन...

    छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत के मयारुक मन सुप्रसिद्ध गायक रहे केदार यादव के गाये ए लोकप्रिय गीत- "का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल, तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती, रेंगते- रेंगत आंखी मार दिए ना..." 

   एला जरूर सुने होहीं अउ घनघोर सिंगारिक गीत के सुरता करत मन भर मुसकाए होहीं. फेर ए गीत के रचयिता लोककवि बद्रीबिशाल यदु 'परमानंद' जी एला का कल्पना कर के कइसन संदर्भ म लिखे रिहिन हें. एला जानहू, त परमानंद जी के कल्पना अउ ओकर गहराई के कायल हो जाहू.

    बात सन् 1989-90 के आय. तब मैं छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के प्रकाशन-संपादन करत रेहेंव. एक दिन रायगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. बलदेव जी के मोर जगा सोर पहुंचिस के हमन लोककवि बद्रीबिशाल यदु 'परमानंद' जी संग भेंट करे बर रायपुर आवत हन. तहूं तइयार रहिबे. काबर ते हमन वोकर घर ल देखे नइ अन, तहीं हमन ल वोकर घर लेगबे. 

   निश्चित दिन 9 जनवरी 1990 के डाॅ. बलदेव जी रायगढ़ के ही एक अउ साहित्यकार रामलाल निषादराज जी संग रायपुर पहुँचगें. इहाँ रायपुर म आकाशवाणी म कार्यरत खगेश्वर प्रसाद यादव अउ मैं उंकर संग संघर गेंन. मोर बचपन रायपुर के कंकालीपारा, अमीनपारा आदि म ही बीते हे, तेकर सेती परमानंद जी के महामाई पारा वाले घर मैं कतकों बेर गे रेहेंव. 

     सबो साहित्यकार मनला लेके परमानंद जी के घर गेन. उहाँ आदर-सत्कार अउ चिन-चिन्हार के बाद साहित्यिक गोठ-बात चालू होइस. सब तो बढ़िया चलत रिहिस. तभे डाॅ. बलदेव जी थोक मुस्कावत, मजा ले असन पूछ परिन- 'परमानंद जी! का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल' जइसन गीत ल आप कब लिखे रेहेव?

   तब परमानंद जी डाॅ. बलदेव के मनसा भरम ल टमड़ डारिन, अउ घर के दुवारी कोती ल झांक के आरो दिन- 'ए गियां आ तो..' उंकर बुलउवा म एक चउदा-पंदरा बछर के चंदा बरोबर सुग्घर नोनी ओकर आगू म आके ठाढ़ होगे, अउ कहिस- 'काये बबा' तब परमानंद जी अपन उही नतनीन डहर इसारा करत कहिन- 'इही वो गियां आय. जे दिन ए ह ए धरती म आइस, उही दिन ए गीत ल लिखे रेहेंव. 'तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती, रेंगते-रेंगत आंखी मार दिए गोंदा फूल'. 

   वो नोनी छी: बबा कहिके घर म खुसरगे. तब परमानंद जी के निरमल हांसी घर-अंगना के संगे-संग हमरो मनके चेहरा म बगर गेइस. उन कहिन- 'डाॅक्टर साहेब, कवि के जाए के बेरा होवत हे, अउ आगू म उन्मत्त प्रकृति हे, उद्दाम कविता के रूप म दंग-दंग ले खड़ा हो गिस.'

     घनघोर सिंगारिक गीत कस लागत ए रचना के मूल म कतका निर्दोष अउ उज्जवल भाव. हमर जइसन आम कवि-लेखक मन के कल्पना ले बाहिर के दृश्य आय. 

    परमानंद जी आगू कहिन- 'नारी सौंदर्य अउ प्रेम बरनन म मैं ह ओकर प्राकृतिक स्वरूप ल जरूर अपनाय हौं, फेर शिथिलता ल कभू स्थान नइ दे हौं... आज तो हमर बड़े कवि मन घलो सीमा लांघ जाथें डाॅक्टर साहेब, सारी-सखा तो बेटी बरोबर होथे, फेर वोकर बरनन म बनेच मजाक होगे हे. शायद उंकर इशारा- ' मोर सारी परम पियारी' जइसन लोकप्रिय सिंगारिक रचना डहर रिहिस.

( ए प्रसंग संग संलग्न चित्र उही दिन के आय, जेमा नीचे म डेरी डहर ले- डॉ. बलदेव साव, बद्रीबिशाल यदु 'परमानंद' अउ रामलाल निषादराज. पाछू म खड़े- खगेश्वर प्रसाद यादव अउ मैं सुशील वर्मा 'भोले')

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

विश्व महतारी भाषा दिवस” - छत्तीसगढ़ी

 “विश्व महतारी भाषा दिवस” - छत्तीसगढ़ी


घर के जोगी जोगड़ा, आन गाँव के सिद्ध - तइहा के जमाना के हाना आय। अब हमन नँगत हुसियार हो गे हन, गाँव ला छोड़ के शहर आएन, शहर ला छोड़ के महानगर अउ महानगर ला छोड़ के बिदेस मा जा के ठियाँ खोजत हन। जउन मन बिदेस नइ जा सकिन तउन मन विदेसी संस्कृति ला अपनाए बर मरे जात हें। बिदेसी चैनल, बिदेसी अत्तर, बिदेसी पहिनावा, बिदेसी जिनिस अउ बिदेसी तिहार, बिदेसी दिवस वगैरा वगैरा। जउन मन न बिदेस जा पाइन, न बिदेसी झाँसा मा आइन तउन मन ला देहाती के दर्जा मिलगे।


हमन दू ठन दिवस ला जानत रहेन - स्वतंत्रता दिवस अउ गणतन्त्र दिवस। आज वेलेंटाइन दिवस, मातृ दिवस, पितृ दिवस, राजभाषा दिवस, पर्यावरण दिवस अउ न जाने का का दिवस के नाम सुने मा आवत हे। ये सोच के हमू मन झपावत हन कि कोनो हम ला देहाती झन समझे। काबर मनावत हन ? कोन जानी, फेर सबो मनावत हें त हमू मनावत हन। बैनर बना के, फोटू खिंचा के फेसबुक मा डारबो तभे तो सभ्य, पढ़े लिखे अउ प्रगतिशील माने जाबो।


एक पढ़े लिखे संगवारी ला पूछ पारेंव कि विश्व मातृ दिवस का होथे ? एला दुनिया भर मा काबर मनाथें? वो हर कहिस - मोला पूछे त पूछे अउ कोनो मेर झन पूछ्बे, तोला देहाती कहीं। आज हमन ला जागरूक होना हे। जम्मो नवा नवा बात के जानकारी रखना हे। जमाना के संग चलना हे। लम्बा चौड़ा भाषण झाड़ दिस फेर ये नइ बताइस कि विश्व मातृ दिवस काबर मनाथे। फेर सोचेंव कि महूँ अपन नाम पढ़े लिखे मा दर्ज करा लेथंव।

फेसबुक मा कुछु काहीं लिख के डार देथंव। 


भाषा ला जिंदा रखे बर बोलने वाला चाही। खाली किताब अउ ग्रंथ मा छपे ले भाषा जिंदा नइ रहि सके। पथरा मा लिखे कतको लेख मन पुरातत्व विभाग के संग्रहालय मा हें फेर वो भाषा नँदा गेहे। पाली, प्राकृत अउ संस्कृत के कतको ग्रंथ मिल जाहीं फेर यहू भाषा मन आज नँदा गे हें  । माने किताब मा छपे ले भाषा जिन्दा नइ रहि सके, वो भाषा ला बोलने वाला जिन्दा मनखे चाही।


भाषा नँदाए के बहुत अकन कारण हो सकथे। नवा पीढ़ी के मनखे अपन पुरखा के भाषा ला छोड़ के दूसर भाषा ला अपनाही तो भाषा नँदा सकथे। रोजी रोटी के चक्कर मा अपन गाँव छोड़ के दूसर प्रदेश जाए ले घलो भाषा के बोलइया मन कम होवत जाथें अउ भाषा नँदा सकथे। बिदेसी आक्रमण के कारण जब बिदेसी के राज होथे तभो भाषा नँदा सकथे। कारण कुछु हो, जब मनखे अपन भाषा के प्रयोग करना छोड़ देथे, भाषा नँदा जाथे। 


छत्तीसगढ़ी भाषा ऊपर घलो खतरा मंडरावत हे। समय रहत ले अगर नइ चेतबो त छत्तीसगढ़ी भाषा घलो नँदा सकथे। छत्तीसगढ़ी भाषा के बोलने वाला मन छत्तीसगढ़ मा हें, खास कर के गाँव वाले मन एला जिंदा रखिन हें। शहर मा हिन्दी अउ अंग्रेजी के बोलबाला हे। शहर मा लोगन छत्तीसगढ़ी बोले बर झिझकथें कि कोनो कहूँ देहाती झन बोल दे। छत्तीसगढ़ी के संग देहाती के ठप्पा काबर लगे हे ? कोन ह लगाइस ? आने भाषा बोलइया मन तो छत्तीसगढ़ी भाषा ला नइ समझें, ओमन का ठप्पा लगाहीं ? कहूँ न कहूँ ये ठप्पा लगाए बर हमीं मन जिम्मेदार हवन। 


हम अपन महतारी भाषा गोठियाए मा गरब नइ करन। हमर छाती नइ फूलय। अपन भीतर हीनता ला पाल डारे हन। जब भाषा के अस्मिता के बात आथे तब तुरंत दूसर ला दोष दे देथन। सरकार के जवाबदारी बता के बुचक जाथन। सरकार ह काय करही ? ज्यादा से ज्यादा स्कूल के पाठ्यक्रम मा छत्तीसगढ़ी लागू कर दिही। छत्तीसगढ़ी लइका मन के किताब मा आ जाही। मानकीकरण करा दिही। का अतके उदिम ले छत्तीसगढ़ी अमर हो जाही?


मँय पहिलिच बता चुके हँव कि किताब मा छपे ले कोनो भाषा जिंदा नइ रहि सके, भाषा ला जिन्दा रखे बर वो भाषा ला बोलने वाला जिन्दा मनखे चाही। किताब के भाषा, ज्ञान बढ़ा सकथे, जानकारी दे सकथे, आनंद दे सकथे फेर भाषा ला जिन्दा नइ रख सके। मनखे मरे के बादे मुर्दा नइ होवय, जीयत जागत मा घलो मुर्दा बन जाथे। जेकर छाती मा अपन देश बर गौरव नइये तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर छाती मा अपन गाँव के गरब नइये तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर छाती मा अपन समाज बर सम्मान नइये, तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर छाती मा अपन भाषा बर मया नइये, तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर स्वाभिमान मर गेहे, तउन मनखे मुर्दा आय। 

जउन मन अपन छत्तीसगढ़िया होए के गरब करथें, छत्तीसगढ़ी मा गोठियाए मा हीनता महसूस नइ करें तउने मन एला जिन्दा रख पाहीं। 


अइसनो बात नइये कि सरकार के कोनो जवाबदारी नइये। सरकार ला चाही कि छत्तीसगढ़ी ला अपन कामकाज के भाषा बनाए। स्कूली पाठ्यक्रम मा एक भाषा के रूप मा छत्तीसगढ़ी ला अनिवार्य करे। अइसन करे ले छत्तीसगढ़ी बर एक वातावरण तैयार होही। शहर मा घलो हीनता के भाव खतम होही। छत्तीसगढ़ी ला रोजगार मूलक बनावय। रोजगार बर पलायन, भाषा के नँदाए के एक बहुत बड़े कारण आय। इहाँ के प्रतिभा ला इहें रोजगार मिल जाही तो वो दूसर देश या प्रदेश काबर जाही? छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार, लोक कलाकार ला उचित सम्मान देवय, उनकर आर्थिक विकास बर सार्थक योजना बनावय।


छत्तीसगढ़ी भाव-सम्प्रेषण बर बहुत सम्पन्न भाषा आय। हमन ला एला सँवारना चाही। अनगढ़ता, अस्मिता के पहचान नइ होवय। भाषा के रूप अलग-अलग होथे। बोलचाल के भाषा के रूप अलग होथे, सरकारी कामकाज के भाषा के रूप अलग होथे अउ साहित्य के भाषा के रूप अलग होथे। बोलचाल बर अउ साहित्यिक सिरजन बर मानकीकरण के जरूरत नइ पड़य, इहाँ भाषा स्वतंत्र रहिथे फेर सरकारी कामकाज बर भाषा के मानकीकरण अनिवार्य होथे। मानकीकरण के काम बर घलो ज्यादा विद्वता के जरूरत नइये, भाषा के जमीनी कार्यकर्ता, साहित्यकार मन घलो मानकीकरण करे बर सक्षम हें।


सरकार छत्तीसगढ़ी बर जो कुछ भी करही वो एक सहयोग रही लेकिन छत्तीसगढ़ी ला समृद्ध करे के अउ जिन्दा रखे के जवाबदारी असली मा छत्तीसगढ़िया मन के रही। यहू ला झन भुलावव कि जब भाषा मरथे तब भाषा के संगेसंग संस्कृति घलो मर जाथे।


“स्वाभिमान जगावव, छत्तीसगढ़ी मा गोठियावव”


*लेखक - अरुण कुमार निगम*


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21 फरवरी - अंतर्राष्ट्रीय महतारी भाषा दिवस म विशेष साहित्य म नारी शक्ति के योगदान

 21 फरवरी -  अंतर्राष्ट्रीय महतारी भाषा दिवस म विशेष 


साहित्य म नारी शक्ति के योगदान 


महतारी भाषा ह दाई के दूध कस अमरीत बरोबर होथे। अपन भाषा म गोठियाय अउ लिखे ले वो भाषा ह समृद्ध होथे। अपन महतारी भाषा म गोठियाय अउ लिखे ले हिरदे ल

जउन उछाह मिलथे वोहा आने भाषा म नइ मिलय। आने भाषा ल सीखना बने बात हे पर अपन महतारी भाषा ल कभू नइ भूलना चाही। जउन मन अपन महतारी भाषा ल भुला जाथे वोमन धीरे ले अपन संस्कृति, संस्कार अउ सभ्यता ले घलो दूर हो जाथे। महान साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अउ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के संगे संग कतको महापुरुष अउ बुधियार साहित्यकार मन महतारी भाषा म शिक्षा देय के समर्थन करे हावय। जउन

भाषा ल नइ बउरे जाय वोहा एक न एक दिन नंदा जाथे। 



साहित्य ल समाज के दर्पन कहे जाथे। साहित्य के बारे म कहे गे हावय कि तोप अउ तलवार ले जादा साहित्य म जादा सक्ति होथे।  वो देस मुर्दा जइसे होथे जिहां साहित्य नइ हे।  इतिहास ले जानकारी होथे कि साहित्य अउ अखबार के बदउलत कतको देस के बेवस्था म बदलाव घलो होय हे। साहित्य म सबके हित छुपे रहिथे। जउन साहित्य म सुघ्घर संदेश रहिथे उही ह निक साहित्य हरे। जउन साहित्य ह लोगन मन ल बुराई डहन ढकेल देथे वोहा उथला साहित्य माने जाथे। 

   साहित्य  म पुरुष मन के संगे -संग नारी शक्ति के अब्बड़ योगदान हावय। नारी शक्ति मन अपन निक लेखनी ले साहित्य जगत  ल समृद्ध करे हावय। एक कोति नारी शक्ति मन कतको सामाजिक बुराई मन उपर कलम चलाके समाज अउ देस ल सुधारे बर सुघ्घर उदिम करे हावय त दूसर कोति स्त्री विमर्श पर कलम चला के नारी समाज के दयनीय दसा ल सुधारे बर समाज अउ देस के मुखिया मन के आंखी ल उघारे के काम करे हावय। त आवव वो नारी शक्ति मन के सुरता करथन जउन मन अपन कलम के ताकत दिखाय हे। जिंकर मन के लेखनी ह समाज अउ देस के बेवस्था ल बदल दिस। जिंकर मन के सुघ्घर लेखनी ले साहित्य के ढाबा ह लबालब भरे हावय।


    कृष्ण प्रेम म डूबे मीरा बाई के गिनती हमर देस के महान महिला साहित्यकार म होथे।  मीरा बाई भक्ति काल के कृष्ण भक्ति शाखा के प्रमुख रचनाकार म सामिल हे।महान संत रैदास उंकर गुरु रिहिन। भगवान कृष्ण उपर कतको पद के रचना करिन हे। नरसी जी का मायरा उंकर आख्यानक काव्य हरे। उंकर रचना म गीत गोविंद टीका,रंग गोविंद,राग सोरठ ( पद संग्रह) सामिल हे।सरोजिनी नायडू ह अंग्रेजी म रचना करिन। उंकर सुघ्घर रचना खातिर महात्मा गांधी जी ह वोला "भारत कोकिला" के उपाधि ले सम्मानित करिन।

अमृता प्रीतम हिंदी अउ पंजाबी म अपन लेखनी लेअपन एक अलग छाप छोड़िस।उंकर" पिंजर में " कहानी म भारत के बंटवारा के समय के स्थिति के मार्मिक बरनन करे गे हावय। शिवानी के उपन्यास अउ कहानी म कुमाऊं अंचल के संस्कृति झलकथे।


   आधुनिक मीरा के नांव ले प्रसिद्ध महादेवी वर्मा के गिनती छायावाद के  चार प्रमुख रचनाकार के रूप म होथे।उंकर रचना म  नीहार, रश्मि,नीरजा,आत्मिका, परिक्रमा,संधिनी, यामा,गीत पर्व,दीप गीत, स्मारिका, नीलांबरा के अब्बड़ सोर हे। उंकर निबंध म भारतीय संस्कृति के स्वर संकल्पिता, संस्मरण म " पथ के साथी", रेखा चित्र म " अतीत के चलचित्र",सुभद्रा कुमारी चौहान के रचना( आख्यानक काव्य)- खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.... के सुघ्घर सोर बगरे हे। उंकर कहानी म बिखरे मोती,उन्मादिनी अउ काव्य रचना म मुकुल, त्रिधारा सम्मिलित हे।अइसने बंग महिला ( दुलाईवाली),महाश्वेता देवी, मन्नू भंडारी के उपन्यास म एक इंच मुस्कान,आपका बंटी,महाभोज अउ स्वामी अउ कहानी म मैं हार गई,रानी मां का चबूतराअउ आत्मकथा म "एक कहानी यह भी") के सोर होइस।

।शोभा डे, मृणाल पांडे( कहानी -एक स्त्री का बिदा गीत, शब्द बेधी,दरम्यान)मृदुला गर्ग, मृदुला सिन्हा के उपन्यास ज्यों मेंहदी के रंग,अंजुम हसन,इंदिरा , कृष्णा अग्निहोत्री,चित्रा मुद्गल( कहानी- जहर ठहरा हुआ), बंग महिला ( दुलाईवाली), सूर्यबाला ( गृह प्रवेश),शिवानी (लाल हवेली), कृष्णा सोबती ( सिक्का बदल गया),  उषा प्रियंवदा ( वापसी), ममता कालिया,डा. वीणा सिन्हा, मैत्रेयी पुष्पा यात्रा वृत्तांत- अगन पांखी, कहानी -अब फूल नहीं खिलते),इंदिरा मिश्रा, इंदिरा राय, डा. कृष्णा अग्निहोत्री ( जीना मरना), वासंती मिश्रा ( मेरी स्मरण यात्रा), मालती जोशी,मेहरून्निसा परवेज,अनिता सभरवाल, उर्मिला शिरीष,स्वाति तिवारी,रेखा कस्तवार,अल्पना मिश्रा, 


इस्मत चुगताई,निर्मला देशपांडे,सुनीता देशपांडे,लीला मजूमदार, अरूंधति राय, तसलीमा नसरीन , शम्पा शाह, वंदना राग, मनीषा कुलश्रेष्ठ, इंदिरा दांगी जइसन कतको विदुषी साहित्यकार मन के सुघ्घर लेखनी के कारन साहित्य जगत म अब्बड़ पहिचान हावय।


 हमर छत्तीसगढ के नारी शक्ति मन  पोठ लेखनी के माध्यम ले साहित्य जगत म अपन एक अलगे पहिचान बनाय म सफल होय हे। छत्तीसगढ़ के सोना बाई के नांव ले प्रसिद्ध डा.निरुपमा शर्मा हमर छत्तीसगढ के पहिली कवयित्री माने जाथे।उंकर कविता  संग्रह म "पतरेंगी" रितु बरनन, दाई खेलन दे अउ" बूंदो का सागर" सामिल हे।  निबंध संग्रह म इन्द्रधनुषी छत्तीसगढ़, डा. सत्यभामा आडिल ह छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी म दूनों म कलम चलाय हे। उंकर छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह म गोठ,ठीहा, रतिहा पहागे अउ हिंदी काव्य संग्रह म नर्मदा की ओर,काला सूरज, नि: शब्द, उपन्यास म प्रेरणा बिंदु से निर्वेद तट तक, यात्रा कथा म पहाड़ की ढलान से समुंद्र की सतह पर , रेडियो रूपक म एक पुरुष , चंपू काव्य म दस्तक देता सूरज सम्मिलित हावय।


डा . सुधा वर्मा ह छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी म पोठ साहित्य के रचना करे हावय। उंकर छत्तीसगढ़ी रचना मन म उपन्यास - बन के चंदैनी, तरिया के आंसू,  काव्य संग्रह म कइसे हस धरती, कहानी संग्रह म धनबहार के छांव म, निबंध संग्रह म बरवट के गोठ,परिया धरती के सिंगार अउ तरिया के आंसू, नाटक म श्रीरामचरितमानस सामिल हावय। आप मन अरबी लोककथा के अनुवाद करे हौ। हिंदी काव्य संग्रह म क्षितिज के पार,नदी के किनारों का परिणय, कहानी संग्रह म मुन्नी का पौधा, संस्मरण म" वे दिन भी अपने थे," चित्रकथा म डा. खूबचंद बघेल, छत्तीसगढ़ अउ हिंदी काव्य संग्रह म कोख म बसेरा के सुघ्घर सोर बगरिस। देशबंधु के मड़ई अंक के संपादक हौ।


शरला शर्मा के  छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी  म दर्जनभर रचना प्रकाशित हो चुके हे। उंकर छत्तीसगढ़ी रचना म  -आखर के अरघ ( निबंध),  सुन संगवारी ( कविता, कहानी, निबंध), सुरता के बादर ( संस्मरण), माटी के मितान ( उपन्यास) अउ हिंदी म पंडवानी और तीजन बाई ( व्यक्ति परिचय), बहुरंगी ( निबंध संग्रह), वनमाला ( काव्य संग्रह) अउ कुसुमकथा ( उपन्यास) जइसे पोठ साहित्य हे। 

शकुंतला तरार ह  त्रैमासिक पत्रिका नारी संबल के संपादन करिन। नव साक्षर मन बर लघु पुस्तक बन कैना अउ "बेटिया छत्तीसगढ़ की" प्रकाशित होइस। उंकर हिंदी काव्य संग्रह के नांव "मेरा अपना बस्तर"हे।



शकुंतला शर्मा छत्तीसगढ़ी के संगे संग हिंदी म अब्बड़ कलम चलाय हे। उंकर छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह म चंदा के छांव म,चन्दन,कोसला,  महाकाव्य म कुमार संभव, लघुकथा म करगा, छंद काव्य संग्रह म "छंद के छटा "अउ गजल संग्रह म बूड़ मरय नहकौनी दय के सुघ्घर सोर हे। आप मन के हिंदी म दर्जनभर के करीब काव्य संग्रह, बेटी बचाओ, महाकाव्य अउ निबंध संग्रह प्रकाशित हो चुके हे।

शकुंतला वर्मा के "छत्तीसगढ़ी लोक जीवन और लोक साहित्य का अध्ययन",( शोध ग्रंथ),संतोष झांझी के हिंदी काव्य संग्रह म हथेलियों से फिसलता इन्द्रधनुष,डा. उर्मिला शुक्ला के छत्तीसगढ़ी रचना छत्तीसगढ़ के अउरत ( काव्य संग्रह), महाभारत म दुरपति (खंडकाव्य), गोदना के फूल ( कहानी संग्रह) के संगे संग हिंदी म इक्कीसवीं सदी के द्वार पर ( काव्य संग्रह), गुलमोहर ( गजल संग्रह) , अपने- अपने  मोर्चे पर ( कहानी संग्रह) अउ आलोचना म छत्तीसगढ़ी संस्कृति और हिंदी कथा साहित्य प्रकाशित होय हे।


, गीता शर्मा ह संस्कृत महाकाव्य शिवमहापुराण अउ इशादि नौ उपनिषद् के छत्तीसगढ़ी म गद्य अनुवाद करे हावय।  वसंती वर्मा हछत्तीसगढ़ी म सुघ्घर रचना करे हे। उंकर छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह म मोर अंगना के फूल, मितानिन अउ मउरे मोर आमा के डारा सामिल हावय। आप मन के छंदबद्ध रचना बर घलो अब्बड़ सोर हे।

डा. शैल चंद्रा के छत्तीसगढ़ी लघु कथा संग्रह म गुड़ी अब सुन्ना होगे अउ हिंदी रचना म विडंबना,घोंसला ( लघु कथा संग्रह), इक्कीसवीं सदी में भी ( काव्यसंग्रह), जुनून और अन्य कहानियां ( कहानी संग्रह) के चर्चा होथे।  डा. अनसूया अग्रवाल के छत्तीसगढ़ी रचना म छत्तीसगढ़ के ब्रत - तिहाउ अउ कथा - कहानी, छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियां अउ जन जीवन, हिंदी म नव साक्षर किताब मन म कहावतों की कहानियां अउ वसीयत, यात्रा वृत्तांत म "यात्रा द्वारिका धाम की" सामिल हावय। गिरिजा शर्मा ह संस्कृत म लिखे किताब कातिक महात्म के छत्तीसगढ़ी म गद्य अनुवाद करे हे। तुलसी देवी तिवारी के छत्तीसगढ़ी रचना म केजा ( कहानी संग्रह)अउ हिंदी रचना  म पिंजरा,मेला ठेला,परत दर परत, आखिर कब तक,सदर दरवाजा अउ उपन्यास म कमला अउ कहानी म शाम से पहले की स्याही सम्मिलित हे


अइसने हमर छत्तीसगढ के महिला साहित्यकार मन म डा . मीता अग्रवाल, डा . जयाभारती  चंद्राकर, डा. कल्याणी महापात्र, डा. शोभा श्रीवास्तव, ज्योति गभेल , आशा देशमुख( छंद चंदैनी),शोभा मोहन श्रीवास्तव, जया जादवानी( उपन्यास-तत्वमसि, कहानी- समंदर में सूखती नदी,आर्मीनिया की गुफा), अर्चना पाठक, वंदना केंगरानी,शांति यदु, स्नेहलता मोहनीश, आभा श्रीवास्तव,आभा दुबे,विद्या गुप्ता,जनक दुर्गवी,पूनम वासम,ऋचा रथ, गायत्री शुक्ला,शोभा निगम,सुमन मिश्रा, दुर्गा हाकरे, इंद्रा राय(कहानी-तुम इतनी अच्छी क्यों थी),कुंतल गोयल, मृदुला सिंह, विश्वासी एक्का,अनामिका सिंह, गुरप्रीत कौर चमन,


आशा झा,डा. वीणा सिंह, हंसा शुक्ला,लता शर्मा,लता राठौड़, केंवरा यदु, शशि साहू, संगीता वर्मा,नीरमणि श्रीवास,सरोज कंसारी, इन्द्राणी साहू सांची(  छंदबद्ध रचना -सांची साधना),द्रोपदी साहू सरसिज, पदमा साहू पर्वणी, नीलम जायसवाल,शुचि भवि( छंद फुलवारी),धनेश्वरी गुल,(बरवै छंद कोठी, सवैया छन्द संग्रह, गुल की कुंडलियां),

रश्मि गुप्ता, मनोरमा चंद्रा,सुमित्रा कामड़िया,  चित्रा श्रीवास, गायत्री श्रीवास, प्रिया देवांगन प्रियू, शैल शर्म,माधवी गणवीर, जागृति सार्वा, शकुन शेंडे, शशि तिवारी महुआ, गीता विश्वकर्मा,निशा तिवारी, संतोषी महंत श्रद्धा, संध्या राजपूत, सुजाता साहू प्राची साहू , धनेश्वरी साहू, केशरी साहू जइसन कतको नांव सम्मिलित हावय। छंदविद् अरूण कुमार निगम द्वारा संचालित आन लाइन गुरुकुल क्लास " छंद के छ" के माध्यम ले हमर छत्तीसगढ के सैकड़ों प्रतिभा मन साहित्य के क्षेत्र म पोठ उदिम करत हावय जेमा कोरी भर ले जादा महिला साहित्यकार मन के नांव घलो सम्मिलित हावय।  छंद के छ परिवार ले जुड़े दर्जन भर महिला साहित्यकार मन के कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हे जिंकर साहित्य जगत म सुघ्घर तारीफ होय हे। त ये प्रकार ले हमन देखथन कि हमर देस अउ हमर छत्तीसगढ के नारी शक्ति मन साहित्य डहन अपन एक अलगे पहिचान बनाय हावय। साहित्य के सबो विधा म सुघ्घर कलम चलावत हे अउ साहित्य के माध्यम ले जन जागरन के अंजोर बगरावत हे। 

हमर महतारी भाषा छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर इंहां के  भाषाविद्,

बुधियार साहित्यकार, कुछ 

 अखबार के संपादक के संगे -संग कुछ व्हाट्सएप ग्रुप, फेसबुक, ब्लाग, ई-पत्रिका मन ह सुघ्घर उदिम करत हे।  लोकाक्षर ग्रुप, छंद के छ परिवार, छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग,आरूग चौरा,नंदन झांपी, कला परंपरा,मयारू माटी, गुरतुर गोठ, अरई तुतारी, हमर गंवई गांव, छत्तीसगढ़ी मान सरोवर, वक्ता साहित्य मंच,बाल साहित्यकार,  लोकाक्षर पत्रिका,देशबंधु के मड़ई , हरिभूमि के चौपाल, पत्रिका के पहट, अपन डेरा, विचार विथि , विचार विन्यास,सुघ्घर छत्तीसगढ़ के सुघ्घर साहित्य, लोक सदन के झांपी, खबर गंगा, चैनल इंडिया, छत्तीसगढ़ आस पास, साकेत स्मारिका सुरगी,अपन चिन्हारी, गुड़ी के गोठ ,लोक असर, कृति कला एवं साहित्य परिषद सीपत, भोरम देव साहित्य मंच कबीरधाम,  मधुर साहित्य परिषद बालोद,पुरवाही साहित्य समिति पाटेकोहरा, छुरिया सहित कतको माध्यम ले सुघ्घर उदिम चलत हे। हमर छत्तीसगढ के बुधियार साहित्यकार मन ह पद्म के संगे संग गद्य विधा म अपन कलम चला के छत्तीसगढ़ी साहित्य ल पोठ करत हावय।

 


                 ओमप्रकाश साहू "अंकुर"

                सुरगी, राजनांदगांव

आखर के अरघ




 आखर के अरघ 

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        छत्तीसगढ़ी भाषा , साहित्य , संस्कृति , कला के बढ़ोतरी बर जनम भर लगे रहइया प्रदीप कुमार वर्मा 18 फरवरी 2024 के रात हमन ल छोड़ के चल दिन ...जाए बर तो सबला हे फेर अइसे बिन कुछु कहे सुने जवाई हर बने बात नोहय जी ....तभो बिधि के बिधान ल तो कोनो टारे नइ सकयं।

    प्रदीप कुमार वर्मा के जनम सरफोंगी गांव मं 3 जून 1945 के दिन होए रहिस फेर उंकर गांव तो अर्जुनी बलौदा बजार रहिस । भिलाई इस्पात संयंत्र मं नौकरी रहिस त भिलाई मं रहत रहिन । आजकल विद्युत नगर दुर्ग मं बेटा प्रशांत बहू किरण संग रहत रहिन । 

     उंकर साहित्यिक अवदान ल सुरता करबो त पहिली कृति 'दुवारी' काव्य संग्रह , दूसर हे 'प्रेमदीप ', तीसर हे  'भांवर'  कहानी संग्रह ।  

" सूरत " संस्मरण आय ज़ेहर प्रकाशनाधीन हे । " आँखी के काजर "  ऑडियो , वीडियो , सी डी के रचनाकार प्रदीप कुमार वर्मा जी रहिन । 

    छत्तीसगढ़ी कला अउ संस्कृति के बढ़ोतरी बर उन " दौनापान " के स्थापना करे रहिन जेमा लगभग चालीस झन योगदान देहे रहिन । 

छत्तीसगढ़ी भाषा के उन्नयन बर विमल कुमार पाठक , मुकुंद कौशल संग कई ठन कार्यक्रम मं सक्रिय रहिन । वीणापाणि साहित्य समिति के अध्यक्ष , दुर्ग जिला हिंदी साहित्य समिति दुर्ग के कोषाध्यक्ष रहिन । कुर्मी छात्रावास के पूर्व अध्यक्ष रहिन । सबले बड़े बात के 78 साल के उमर मं घलाय स्वस्थ , सक्रिय रहिन । 14 फरवरी 2024 के पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के अध्यक्ष रहिन । 

           दुख के बात के जेन एम्बुलेंस हर मनसे के जीव बंचाये बर सरपट अस्पताल डहर दौड़थे उही हर प्रदीप कुमार वर्मा जी के जीव ले लिस ...। 

 19 फरवरी के मंझनिया देंह के अंतिम संस्कार हो गिस ...फेर हमन तो उनला कभू भुलाए नइ संकन तेइ पाय के मैं लोकाक्षर मं प्रदीप भैया ल आखर के अरघ देवत हौं । 


सरला शर्मा

सुरता - श्री रघुवीर अग्रवाल "पथिक"*

 *सुरता - श्री रघुवीर अग्रवाल "पथिक"* 


पथिक जी के जनम जन्म 4 अगस्त 1937 के ग्राम मोहबट्टा मा होइस। इनकर पिताजी के नाम नरसिंह प्रसाद अग्रवाल, माता जी के नाम अरुंधति देवी अग्रवाल अउ धर्मपत्नी के नाम निरूपण अग्रवाल हे।

 पथिक जी हिंदी और अर्थशास्त्र मा एम. ए. करे रहिन। उन मन  "साहित्य रत्न" के परीक्षा घलो पास करे रहिन। 

बी.एड. करे के बाद दुर्ग अउ विद्यालय मा अध्यापन के कार्य करिन। अगस्त 1995 मा बीएसपी कन्या उच्चतर माध्यमिक शाला सेक्टर 2 भिलाई ले वरिष्ठ उप प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त होए रहिन। पथिक जी 15 फरवरी 2020 के हम सब ला छोड़ के ब्रह्मलीन होगिन।


पथिक जी सन 1956 ले लेखन प्रारंभ करे रहिन। अनेक कविसम्मेलन के मंच मा आप काव्य पाठ करे रहेव। दूरदर्शन अउ आकाशवाणी ले अनेक कविता प्रसारित होए रहिन। राष्ट्रीय प्रादेशिक अउ क्षेत्रीय पत्र-पत्रिका मन मा आपके रचना प्रकाशित होवत रहिन। कई काव्य संग्रह में रचनाएं संग्रहित।


पथिक जी के पहिली हिन्दी काव्य संग्रह "जले रक्त से दीप" 1970 मा प्रकाशित होए रहिस।  छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह "उजियारा बगरावत चल" 2004 अउ 2009 मा प्रकाशित होइस। "काव्य यात्रा के 50 वर्ष" नाम के समीक्षात्मक पुस्तक 2011 मा प्रकाशित होइस। तेकर बाद "आही नवा अंजोर" नाम के  छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह 2015 मा प्रकाशित होइस। 


उत्कृष्ट लेखन बर पथिक जी ला अनेक संस्था मन सम्मानित करे रहिन। जइसे - 

प्रयास प्रकाशन एवं जिला छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति बिलासपुर द्वारा साहित्य सम्मान 2004 

अधिक सम्मान छत्तीसगढ़ लेखक संघ रायपुर 2008 

नारायण लाल परमार सम्मान धमतरी द्वारा प्रांतीय छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति रायपुर 2010 छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग द्वारा जगदलपुर में साहित्य सम्मान 2010 दुर्ग जिला हिंदी साहित्य समिति दुर्ग द्वारा आदर्श शिक्षक सम्मान 1999 एवं हिंदी दिवस पर शब्द साधक सम्मान 2001 सामुदायिक विकास विभाग भिलाई स्टील प्लांट भिलाई द्वारा साहित्य सम्मान 2002 स्टेट बैंक आफ इंडिया मुख्य शाखा दुर्ग द्वारा राजहरा सम्मान 2002 गायत्री प्रज्ञा पीठ आश्रम पुलगांव दुर्ग द्वारा प्रज्ञा प्रतिभा सम्मान 2010 गांधी विचार यात्रा के अंतर्गत ग्राम पारा में साहित्यिक सम्मान 2002 निवास शिक्षक नगर चिन्हारी सम्मान छत्तीसगढ़ साहित्य समिति दुर्ग द्वारा 2012 हीरालाल का उपाध्याय सम्मान रायपुर में सितंबर 2012


रघुवीर अग्रवाल "पथिक" जी के हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी भाषा ऊपर समान अधिकार रहिस। उँकर हिन्दी काव्य-संग्रह के कुछ पंक्ति मा उँकर शैली अउ श्रेष्ठता के सुग्घर परिचय मिल जाथे -   


जलें रक्त से दीप उठे ,बलिदानों की आरती।

उठो जवानो आज देश की धरती तुम्हें पुकारती ।।

(कविता - जलें रक्त से दीप के अंश)

 

हर सुबह यही लिखता सूरज का उजियारा 

संदेश सुनाता यही रात को हर तारा।

भारत का है कश्मीर सिर्फ भारत का है

लो घूम घूमकर पवन लगाता है नारा।

(कविता - अंगार उगलने लगी सुबह की लाली भी, के अंश) 


नौजवानों फिर हमें दी है चुनौती दुश्मनों ने 

फिर दिखा देंगे उन्हें क्या शौर्य है तूफान का 

मर मिटेंगे पर न देंगे हम कभी कश्मीर उनको 

जान ले संसार ही संकल्प हिंदुस्तान का 

(कविता - संकल्प हिंदुस्तान का, के अंश) 


*मुक्तक*


पसीने से लिखो साथी नए युग की कहानी 

दफन कर दो क्षमता की सभी बातें पुरानी 

हमारा देश मांगे रक्त या श्रम हम उसे देंगे 

बढ़ो आगे कहीं कल तक न ढल जाए जवानी ।।


*मुक्तक*


क्या पार हमारे भारत से टकराएगा 

क्या अंधकार सूरज से आँख मिलाएगा 

पाकिस्तानी शासन की अर्थी पर बैठे 

भुट्टो साहब क्या ढोलक रोज बजाएगा।।


रघुवीर अग्रवाल "पथिक" जी चार डाँड़ के मुक्तक असन कविता खूब करंय। उनकर पड़ोस मा कोदूराम "दलित" जी के निवास रहिस। दलित जी उँकर चार डाँड़ के कविता ला "चारगोड़िया" नाम दे रहिन। पथिक जी ला छत्तीसगढ़ी-चारगोड़िया के प्रवर्तक माने जाथे। छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह "उजियारा बगरावत चल" ले एक चरगोड़िया - 


*छत्तीसगढ़ी चारगोड़िया*


एक जन्म के नाता ला तुम टोरौ झन

सुनता के सुग्घर बँधना ला छोरो झन

बसे बसाई अपन देसला फोरो झन

बिख महुरा अलगाववाद के घोरव झन।


*छत्तीसगढ़ी दोहा* - 


राजनीति ल देख लौ, आजादी के बाद

संसद म टूटत हवै, संसद के मरयाद।।


ये मंदिर कानून के, बनिस अखाड़ा आज

मल्ल युद्ध नेता करें, देखे सकल समाज।।


हंगामा के होत हे, संसद म बरसात

धक्का मुक्की तो उहाँ, हे मामूली बात


*छत्तीसगढ़ी गजल*


गाँव सो कर मया दुलार संगी

गाँव चल देख खेतखार संगी।

देख आमा बगइचा के शोभा

धान के खेत कोठार संगी।। 

तैं गरीबी अउ अशिक्षा ला

देखबे गांव म हमार संगी।


*छत्तीसगढ़ी कविता*


कुर्सी फेंक, माइक टोर

अउ ककरो मूड़ी ल फोर

राजनीति म रोटी सेंक

पद अउ पइसा दुनों बटोर।

अतको म नइ काम बनय तौ

कालिख पोत दाँत निपोर

इही असीम ले हमर देश मा

जल्दी आही नवा अँजोर।


 आज चतुर्थ पुण्यतिथि मा छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर के श्रद्धांजलि


*आलेख - अरुण कुमार निगम*

बसंत पंचमी*

 *बसंत पंचमी*


      

    माघ महिना के उज्जर पाख के पंचमी के दिन ला बसंत पंचमी कहे जाथे ।इही दिन ले ऋतु मन के राजा बसंत के राज हा प्रकृति मा सौहत दिखथे।बगीचा मा कोयली  कुहू कुहू कुहके लागथे।ओखर बोली कान मा रस घोरथे।खेत खार मा परसा फूले ला धर लेथे जेहा अइसे दिखथे  जइसे दरपन देखत माँघ भरे के बेर कोखरो हाथ ले बंदन हा छिटक गय हे।

सेम्हर के फूल हा दहकत अँगरा कस लागथे। मौरे आमा खुलखुल ले हाँसत नवा बहूरिया कस दिखथे।पींयर सरसों

ला देख मन घलौ बासंती हो जाथे।कचनार, गुलाब  के फूल मन ला मोहथे अउ मन कहिथे अब आगे बसंत।


         ये दिन हा सरस्वती देवी के प्रगटे के दिन घलौ आय।सरस्वती देवी ला बुद्धि ,ज्ञान, कला ,साहित्य ,संगीत के अधिष्ठात्री देवी माने गय हे। येही कारण आय की कला साहित्य ,सूर ,संगीत के साधक मन आज के दिन माँ शारदा के कृपा पाये बर ऊँखर आराधना  करथें।विद्यार्थी मन बर घलौ आज के दिन के अबड़े महत्तम हावे ज्ञान के देवी ले ज्ञान के वरदान माँगे के दिन।जब हम स्कूल मे पढ़न तब बड़ धूमधाम ले स्कूल मा सरस्वती दाई के पूजा पाठ करन। कोंडागाँव मा तो बसंत पंचमी के दिन हा तिहार कस लागय काबर की उँहा स्कूल कॉलेज के सब छोटे बड़े नोनी लइकन मन लुगरा पहिर के जावन ।कई दिन पहिली ले बसंत पंचमी आवत हे कहिके मन हा कूहके लागय। मानव चेतना के तीन गुण सत ,रज अउ तम  माने गय हे जेमा सतोगुण के देवी ये माँ शारदा। शीतल ,सौम्य  जगत ला वाणी के वरदान देवइया।

           हम मनखे मन के आम जीवन मा ज्ञान

 के जरूरत हर क्षेत्र मा हावे। बिना ज्ञान के मनखे कुछु काम ला नई करे सकय।विषयगत ज्ञान ,कम्प्यूटर ज्ञान,सामान्य ज्ञान,कार्यक्षेत्र के ज्ञान सब मा तो ज्ञान के जरूरत हे।विज्ञान घलौ मा तो ज्ञान छुपे हावय बिना ज्ञान के विज्ञान कइसे हो सकत हे।

           *या देवी सर्वभूतेषु विद्या रूपेण संस्थिता।

            नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमो नमः।।



चित्रा  श्रीवास

बिलासपुर छत्तीसगढ़

बसन्त ऋतु :- जम्मों ऋतु मन मा बसंत ऋतु ला ऋतु मन के राजा माने जाथे एखर सेती एला ऋतुराज बसंत घलो कहिथे।

 बसन्त ऋतु :-


        जम्मों ऋतु मन मा बसंत ऋतु ला ऋतु मन के राजा माने जाथे एखर सेती एला ऋतुराज बसंत घलो कहिथे। 


          जाड़ के मौसम के बाद जब मार्च महिना आथे तब बसंत ऋतु के आगमन होथे। ये हा कड़ाके के ठण्ड ले राहत दिलाथे अउ ये मौसम मा न तो जादा ठण्ड होथे अउ न ही जादा गर्मी। ए ऋतु मा पेड़-पौधा मन मा नवा-नवा पाना - पतउवा आ जाथे, चारो कोती चिरई चुरगुन मन के मनमोहक आवाज सुनाई देथे। बसंत ऋतु मा प्रकृति के खूबसूरती बाढ़ जथे तेखर सेती एला जम्मों ऋतु मन के राजा कहे जाथे।


बंसत ऋतु के आगमन के दिन बंसत पंचमी के तिहार मनाए जाथे। बंसत पंचमी के दिन ज्ञान के देवी माता सरस्वती के जन्म दिवस घलो होथे। महाशिवरात्रि, होली, बैसाखी जइसे तिहार घलो इही ऋतु मा आथे अउ बड़े धूमधाम ले मनाए जाथे। बसंत ऋतु हा जम्मों प्राणी जगत मा एक नवा उर्जा के संचार घलो करथे अउ ये ऋतु हर सब ला पसंद हे।


    हमर देश मा फरवरी और मार्च महिना मा बसंत ऋतु हा आथे। बसंत ऋतु ला सब ऋतु मन के राजा या ऋतुराज बसंत घलो कहिथे। ये ऋतु के आय ले प्रकृति मा कई किसम के बदलाव देखे बर मिलथे। वृक्ष मन मा नवा पाना घलो आ जाथे  आमा के पेड़ मन मा बौर घलो लग जाथे, सरसों के खेत मन मा पींयर-पींयर सुग्घर फूल खिल उठथे। कोयली के कुहू-कुहू बोली बड़ सुग्घर लगथे। ये दिन मा आसमान एकदम साफ सुथरा दिखाई देथे अउ दिन मा चिरई चुरगुन सुग्घर उड़त दिखाई देथे अउ रात मा चंदा के चंदैनी मन घात सुग्घर दिखाई देथे।


   बसंत ऋतु के आय ले किसान मन के फसल घलो पके बर लग जथे। पेड़-पौधा जम्मों जीव-जंतु अउ मनुष्य ये मौसम मा जोश अउ उल्लास से भरे होथे। बसंत ऋतु बड़ सुग्घर सुहावना होथे। ये स्वास्थ्य बर घलो एक सुग्घर मौसम होथे काबर कि ये महिना मा वातावरण के तापमान सामान्य हो जथे। न जादा ठण्ड अउ न जादा गर्मी।


चारों कोती हरियाली छा जथे :- 


हरियाली कोन ला पसंद नइ हे अउ बसंत ऋतु तो एक अइसे ऋतु आय जउन खासतौर मा एखरे लिए जाने जाथे। ये मौसम मा रंग बिरंगा फूल प्रकृति के शोभा बढ़ाथे अउ हरा-भरा डार पान शाखा मन एक नवा जान भर देथे जेखर ले एखर सुंदरता सुग्घर बढ़ जाथे। ये मौसम मा चिरई मन खूब चहचहाथे, कोयली गुनगुनाथे अउ आसमान सुग्घर साफ सुथरा दिखाई देथे।


ये मौसम किसान मन बर बहुत उम्मीद ले भरे होथे काबर कि ये समय उँखर मन के फसल पके बर लग जथे अउ ओखर कटाई लुवाई के बेरा घलो हो जाथे। खेत मन मा लगे सरसो के फूल देखब मा बहुत सुंदर प्रतीत होथे। बाग- उपवन मन के सुघराई देखे के लायक होथे। पशु पक्षि मन बर बसंत अब्बड़ उपहार लेके आथे। इँखर मन बर पेड़ मन मा लगे हरियर हरियर पाना अउ स्वादिष्ट फल मन ला खाए के कतको विकल्प होथे। ये प्रकार वोमन ये मौसम के भरपूर आनन्द उठाथे।


सुहावना हो जाथे ये दिन :-


 हम सब  लोगन मन ला घलो ये बसंत ऋतु बहुत प्रिय होथे काबर कि शीत ऋतु के जाड़ भरे साँझ ला बिताय के बाद ये सुग्घर दिन आथे। अपन मन पसन्द हल्का कपड़ा पहन सकत हन अउ राहत भरे हवा के मजा उठा सकत हन। बसंत ऋतु के हर दिन सुग्घर सुहावना रहिथे, चारों कोती सुग्घराई दिखाई देथे। बाग बगीचा मन मा सुग्घर फूल खिल  के अपन पूर्ण आकार ले चुके होथे अउ ये दिन नवा उमंग ले भरे होथे।


     बसंत ऋतु हा कवि मन ला बड़ सुग्घर अनुभूति करथे जेखर ले प्रभावित होके वो मन एक ले बढ़के एक कविता मन के रचना करथे है। उँखर मस्तिष्क ये बखत जादा सृजनात्मक हो जथे काबर कि बसंत ऋतु के मौसम मा तन अउ मन दूनों ला बहुत सुग्घर अनुभूति होथे। जेखर ले दिमाग मा सुग्घर विचार मन के उत्पति होथे। 


एक रोला छंद देखव -


(बसंत बहार)-

देखौ छाय  बहार, आय  हे  गावत  गाना।

मन होगे खुश आज,देख के परसा पाना।।

फूले परसा  लाल, कोयली  बोलय  बानी।

गुरतुर लागे बोल,करौं का मँय अब रानी।।


एक जलहरण घनाक्षरी देखव -


(बसंत बहार)-

मन मोर  झुमें  नाचे, पड़की  परेवा बाचे,

लागथे  लगन  अब, शोर   बगराय बर।

परसा के फूल लाली,गोरी होगे मतवाली,

कुहके कोयलिया हा,जिवरा जलाय बर।।

आमा मउँर महके, जिवरा  घलो  बहके,

सरसो  पिँयर  सोहे, मन  ललचाय  बर।

हरियर     रुखराई,    चलतहे     पुरवाई,

आस ला बँधावत हे,मया ला जगाय बर।।


माता सरस्वती के जन्मदिन :- 


        बसंत ऋतु के बात हो अउ माता सरस्वती के सुरता न हो, बसंत पंचमी तो हम सब मनाथन काबर कि ये दिन माता सरस्वती के जन्म दिवस के रूप मा माने जाथे। जेला हर भारतीय एक पर्व के रूप मा मनाथे अउ विद्या के देवी माता सरस्वती ले स्वास्थ्य अउ अच्छा मस्तिष्क अउ ज्ञान के कामना करथे।


        ये दिन जघा-जघा  सरस्वती माता के मूर्ति घलो स्थापित करे जाथे। जेला बहुत ही पूरी आस्था के साथ सजाए जाथे अउ एखर 2 या 3 दिन बाद सुग्घर हर्ष अउ उल्लास ले लोगन मन के एक टोली नाचत कूदत गावत मूर्ति विसर्जन खातिर जाथे। ताकि माता अगले साल फिर आवय अउ हम सब ला आशीर्वाद देवय। बसंत पंचमी वाले दिन स्कूल अउ कॉलेज जवैया वाले विद्यार्थी मन पूरे भक्ति भाव ले माता सरस्वती के विशेष पूजा करथे ताकि माता सदैव उँखर ऊपर अपन कृपा दृष्टि बनाये रहै। ये दिन हिंदू धर्म मन बर बहुत महत्वपूर्ण होथे, पीला रंग सरस्वती माता के पसन्दीदा रंग आय एखर सेती बहुत से लोगन मन ये दिन पीला रंग के कपड़ा घलो धारण करथे।


       इही दिन होली के डाँड़ घलो गड़ाय जाथे। बसंत ऋतु मा होली के तिहार देश भर मा बड़ धूमधाम ले मनाय जाथे।



आलेख :-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

आजादी के लड़ाई म नारी शक्ति के योगदान

 आजादी के लड़ाई म  नारी शक्ति के योगदान


पहली हमर देश ह "सोन के चिरइया" कहलाय। भारत वर्ष ह धन धान्य, खनिज संपदा के संगे -संग संस्कृति अउ सभ्यता ले अब्बड़ समृद्ध रिहिन हे। सिंधु घाटी के सभ्यता, नालंदा विश्वविद्यालय के संगे संग इहां के ऐतिहासिक अउ धार्मिक ठउर येकर उदाहरण हावय।  हमर देश म विदेशी लोगन मन बेपारी मन के आइस। इहां के राजा- महाराजा मन ले बेपार के अनुमति लेके इहां बेपार करे लागिस। इहां पुर्तगाली, फ्रांसीसी, डच, अंग्रेज आइस अउ अपन-अपन बेपार म लग गे। इंकर बीच बेपार खातिर आपस म नंगत लड़ाई चलिस जेमा आगू चलके अंग्रेज मन अपन धाक जमाय म सफल होइस। अंग्रेज मन हमर देश म एक छत्र राज करिस। फूट डालो अउ राज करो,हड़प नीति ल अपना के इंहा के राजा - महाराजा ल आपस म लड़ाइस। अंग्रेज मन भारतवासी मन उपर नंगत अत्याचार करिस।1857 म पहली बार हमर देश के राजा- महाराजा मन सुनता के गांठी म बंधके  लड़ाई लड़िन। कित्तूर के रानी चेन्नमा,भीमा बाई होल्कर, रामगढ़ की रानी,रानी जिंदन कौर,रानी टेसबाई,बैजा बाई, चौहान रानी, तपस्विनी महारानी जइसे कतको नारी शक्ति मन घर के चार दीवारी ले निकल के अपन धरती माता के संगे संग नारी जात के स्वाभिमान बर लड़िन।


    हमर देश के आजादी के लड़ाई म नारी शक्ति मन के अब्बड़ योगदान हावय। 1857 के पहली भारतीय स्वतंत्रता संग्राम म झांसी के रानी लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई अउ झांसी के कतको वीर नारी मन के योगदान ल भला कभू भुलाय जा सकथे का। सुभद्रा कुमारी चौहान ह अमर कविता के रचना करिन - खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.......।अइसने रानी दुर्गावती, अहिल्या बाई, बेगम हजरत महल, अउ ऊंकर सहयोगी वीर नारी मन के वीरता ले पूरा भारतवासी परिचित हावय। इंकर वीरता ले अंग्रेज शासन म हड़कंप मच गे रिहिस।


 ‌ आधुनिक काल म आजादी के लड़ाई के संगे संग पुनर्जागरण म नारी शक्ति के अब्बड़ योगदान हे। सावित्री बाई फूले ह पहिली महिला शिक्षिका के रुप म अपन अलग पहिचान बनाइस त आजादी के लड़ाई म घलो योगदान दिस।।नाना प्रकार के पीरा सहिस पर अपन उदिम ल नइ छोड़िन अउ नारी मन के जिनगी म शिक्षा के सुघ्घर अंजोर बगराइस। आयरिश महिला एनी बेसेंट भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहिली महिला अध्यक्ष बनिन। वोहा तिलक जी के साथ जुड़ के विदेशी जिनिस मन के बहिष्कार स्वदेशी जिनिस मन के प्रचार प्रसार म योगदान दिस। अंग्रेज सरकार के विरुद्ध अपन आवाज बुलंद करिन। अइसने मेडम भीकाजी कामा, सिस्टर निवेदिता ,कैप्टन लक्ष्मी सहगल,,सरोजिनी नायडू , सूचेता कृपलानी  कस्तूरबा गांधी, कमला नेहरू,राज कुमारी अमृत कौर,अरुणा आसफ अली,विजया लक्ष्मी पंडित, मीरा बेन, कमलादेवी चट्टोपाध्याय,इंदिरा गांधी जइसन महान नारी मन आजादी के  असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा अउ भारत छोड़ो आंदोलन म पुरुष मन संग कदम ले कदम मिला के भाग लिस अउ देश खातिर जेल गिस।


  हमर छत्तीसगढ के नारी शक्ति मन आजादी के लड़ाई म कइसे पाछू रहितिस। निकल पड़िस भारत महतारी के रक्षा खातिर। अंग्रेज मन ले जोम देके लड़िन। 1910 म बस्तर म भूमकाल विद्रोह म रानी सुवर्ण कुंवर के अब्बड़ योगदान रिहिन।रानी सुवर्ण कुंवर अउ लाल कलेन्द्र सिंह ह वीर गुंडाधूर ल भूमकाल विद्रोह के सेनापति बनाके अंग्रेज़ी शासन के अब्बड़ अत्याचार के विरोध म बस्तर के लोगन मन ल लड़े बर प्रेरित करिन।


  जब हमर देश म गांधी युग चलिस त वो बेरा म इंहा के नारी शक्ति मन असहयोग आंदोलन, कंडेल नहर सत्याग्रह, नमक कानून तोड़ो आंदोलन ( सविनय अवज्ञा आंदोलन), जंगल सत्याग्रह अउ भारत छोड़ो आंदोलन म अब्बड़ उछाह ले भाग लिस। गांधी जी के अहिंसक आंदोलन अउ उंकर बताय रद्दा शराब बंदी, स्वदेशी जिनीस के प्रचार प्रसार, विदेशी जिनिस मन के बहिष्कार अउ होली जलाना, कुटीर उद्योग ल अपनाय जइसे रचनात्मक कारज मन ल करिन। छत्तीसगढ़ म  आजादी के आंदोलन म भाग लेवइया 

नारी शक्ति मन म डा. राधा बाई,  बालिका दयावती,मिनीमाता,मूलमती, रोहिणी बाई परगनिहा,केकती बाई बघेल, रूक्मिणी बाई जइसन हजारों नारी मन  के  नांव सामिल हावय।


    ओमप्रकाश साहू" अंकुर"

    सुरगी, राजनांदगांव

मंच माईक अउ मँय जी*. (ब्यंग)

 *मंच माईक अउ मँय जी*.               

(ब्यंग)


           एक ठन हाना हे कि, राजा के पदई पाये ते हागत खानी गीत गाये। थोर बहुत नाम अउ पदवी पाये ले मनखे अपन आप ला खास मन के टोली मा सँघेर लेथे। अइसन मौका तलासी नामधारी मन अपन पहिचान ला जियाके राखे बर कोनों ना कोनों मंच मा हाजरी के मौका खोजत मिलथें। खुद के मँय मा अतका खुसर जथें कि फुनगी मा दीया बारत दिखथें। अपन आगू मा कोनों दूसर ला देखना सुनना नइ चाहे। ओइसे देखे जाय तौ मनखे के पहिचान तीन चीज के थुनही मा टेके हे। जेकर ले पान गुटका खाके थूँक मा ललियाय पथरा ला भगवान कहिके पैलगी करइया बुद्धिजीवी समाज आदर के भाव ले देखथे। इही तीन चीज ला हम मंच माईक अउ मँय के  रूप देख सकथन। जेन जगा मा तीनों के हाजरी हे तब वैचारिक शिखर वार्ता मा हिस्सा लेके खुद ला साबित करना मुख्य मंसा रथे।

मंच-----ये हा सबो साधन सुविधा ले सोभित जगा होथे। अइसन जगा मा भले जमघट कम रहय फेर बइठे के ठिकाना दू गुना रहना चाही। काबर कि कतको बखत खाली खुरसी ला घलो सुनाना परथे। अइसन मंच के खास बात ये होथे कि आखरी छोर पिछोत मा बइठने वाला ला घलो माईक उपर खड़े मँय जी के दरसन पा सके।

माईक-------जेकर अवाज उँकरो कान तक जाना चाही जे मन चाह के घलो सुनना नइ चाहे।

मँय-----ये जीयत जागत मानुस प्राणी होथे। जेला खास नेंवता देके मँगाए जाथे। इही तीसर हर दूनो के भोक्ता होथे। मंचासीन होय के बाद माईक तक चरण चल दिस तब एकर बीच हम या हमर, तोर तुँहर बर कोनों जगा नइ रहय। रथे तो फकत मँय।

            इही आदरणीय मँय जी ले भेंटाय के मौका पीछू हप्ता हमरो बनगे। घर मोहाटी मा पींयर चाँउर छिंतके जाही तभे बिहाव के नेंवता माने जाही अइसे नइये। वाट्सअपी निमंत्रण के नवाचार घलो उधो के पाती ले कम नइये। जेला स्वीकार के हमू मन चल पड़ेन। दुरिहा दुरिहा ले पधारे नामधारी अतिथि के सँग तिर तखार के  वरिष्ठता के गमछा टाँगे वाला मन के आगमन रिहिस। पारा मुहल्ला के गोठ होतिस तब तो माईक पोंगा के मुँहूँ ला हमरे घर कोती रखवातेन अउ परछी मा बइठके ज्ञान गंगा मा उबुक चुबुक होतेन। गहिरा बिचार मंथन के रसपान करतेंन।

     वो तिर मा आवत हे तब फरज बनथे कि दू लीटर पेट्रोल फूँक के एकाद झोरा सुविचार सीख संदेश लाने जा सके। उपर वाले जतका देय हवे वोमा खाल्हे वाले के ला अउ समोये जा सके। हमर असन के जेब मा दू रुपिया वाले लिखो फेंको अउ आधा लिखे कविता के सइघो कागज के छोड़े अउ कुछु नइ रहय। इही अधुरा कविता बर ज्ञान सकेले के फेरा मा चल पड़ेन। रसता मा सँगवारी मन ला ये कहिके चाहा पानी नइ पियायेन कि उँहा सबके तइयारी हे। आयोजक संयोजक मन ला धन्यवाद एकर सेती जरूरी हे कि अइसन सत्संग मा आधा तो बराती बनके पदार्पण करथें। जेकर सम्मान जरूरी हे। काबर कि दुलहा ला दुलहिन मिलथे समधी ला दाइज डोर। बजनिया अउ बराती ला तो पेटभरहा पकवान ही चाही। ओइसे आजकल तो भात देखके ही भीड़ बाढ़थे। भीड़ हर ही आयोजन के सफलता के सूत्रधार होथे।  भीड़ सकेलना घलो कला होथे। बेंदरा के करतब कइसनों रहय। डुगडुगी जोरलगहा बजना चाही। एकर ले जे नइ जाने कि वो आवत हे ओहू जान लेथे कि वो आवत हे। राजनीति के मंच होथे तब भीड़ बर दिन के रोजी खाना पीना अउ आवाजाही बर मोटर गाड़ी सब मिलथे। भीड़ मा खींचे फोटू ला सम्हाल के एकर सेती रखना परथे कि भगदड़ मा नेताजी के भक्ति मा चपकागेस तब माला डारे बर फोटू तो होना चाही।

           वरिष्ठ विचार वाचक वक्ता वो होथे जे मंच मा अपन बर पहिली ले जगा पोगराय के सामर्थ राखथे। राखथे के मतलब रिजर्वेशन आरक्षण करवाना। नइते वेटिंग लिस्ट वाले वक्ता मन समझौता करके अपन नाम के बोरा जठाय मा पीछू नइ रहय। काबर कि मंचासीन बने बर सम्मान सकेले बर समझौता वादी कायदा चलन मा हे। इँहा हर तिसरा कलम के सिपाही सफल वक्ता हें। चारन भाट गिरी करइया कवि मन राष्ट्रीय कवि मा गिने जाथे।बस नेता जी अउ वोकर पारटी के महिमा आरती गाये बर झन छोड़। 

            आदरणीय मँय जी ला बने फूल माला मा लादके मंचासीन कराये गिस लाम लाहकर परिचय देय मा संचालक जी कोनों कमी नइ करिस। माईक तक ताली पिटवा के हाजिर करे गिस।अब ओकर बाद मँय से शुरू। मँय ये करेंव मँय वो करेंव। मँय कठिन तप साधना करके छै ठन ग्रंथ लिखेंव। मँय साहित्य के सबो विधा ला घोर के पी डारे हवँ। कविता कहानी उपन्यास नाटक सब के दू दू जोड़ी छपवा डारे हवँ। मँय कोरी अकन जगा मा सम्मानित होय हवँ। मोर संस्मरण सुरता के तिसरा संकलन जल्दी अवइया हे। बड़का साहित्यकार जे मन ये दुनिया मा नइये उँकर सँग रेंगे के सुरता ला सकेलत हवँ। मँय जी अपन उपलब्धि ला सवा घंटा सुरता कर करके सुनाय के बाद हुरहा सुरता आइस कि समय के मरियादा हे। महानुभाव जी मँय मा अतका बुड़गे कि मँय अउ मोर के छोड़ तुम या तुँहर बर कुछु नइ बाचिस।

             भीड़ अगास ले रसगुल्ला बरसे के आस मा मुँहूँ फार के देखत रहिगे। काम के बरसा ला आदरणीय जी के उपलब्धि के हवा फाँक दिस। सबो श्रोता समाज मँय जी के उपलब्धि ला गठियाके लेगे बर गमछा के छोर तमड़त रिहिस। आयोजन मा चरचा तो पूस के रात उपर होना रिहिस फेर  वरिष्ठ वक्ता मँय जी के गोठ जेठ के मँझनिया मा फँसे रहिगे। विचार विन्यास धरती मां के करुण पुकार उपर होना रिहिस। फेर मँय जी अपन ससुरार यात्रा संस्मरण मा हास्य किस्सा सुनाके ताली पिटवाय मा मगन रिहिस। हम घर ले ये सोच चले रेहेन कि कम खरचा मा केसर युक्त पान मसाला खाय बर मिलही। आज हमर आधा अधुरा कविता बर मसाला मिल जही। फेर चिचोल बीजा ला सुपारी समझ के पघुरात रहिगेन। चरचा के विषय मँय जी के उपलब्धि मा रमँजागे। बुद्धिजीवी श्रोता मन ताली पीट पीट के अपन गुस्सा शांत करत मिलिस। आदरणीय मँय जी के उदारता ये रिहिस कि वो बड़का मंच के नेवता ला छोड़ के इँहा के नेवता स्वीकारे रिहिस।  जे हर ये मंच के उपलब्धि ले कम नइ रिहिस। अइसन सफल आयोजन के खबर वाट्सअप के ये डारा ले वो डारा बेंदरा कस कूदे मा कमती नइ करिस। आयोजन समाचार बनके अखबार मा अउ फ़ेसबुक मा सदा दिन बर लटकगे ।

           जेमन ला मँयमयी बिचार राखे के मौका नइ लगिस, वो ईर्ष्यालु बराती रूपी वक्ता मन घराती ला ताना सुनाके आधा बीच मा आधा सुनके चुकता प्रस्थान कर लिन। अवइया बेरा मा आयोजक मंडल अउ बड़का मंच सजाके कोनों नामधारी विचार वाचक ला हाजिर करहीं। तब हमर अधुरा कविता बर सीख सकेलाही। बिनती ये रही कि मंच मा विषय रहय, विषय संगत विचार रहय। अपन खुद के उपलब्धि के बोजहा धरके रेंगइया कोनों मँय जी झन रहय।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

आदरणीय केशव शुक्ल जी, (बिलासपुर) वरिष्ठ रचनाकार, पत्रकार और समीक्षक हैं। श्री शुक्ल जी की समीक्षा सादर अवलोकनार्थ-------।

 आदरणीय केशव शुक्ल जी, (बिलासपुर) वरिष्ठ रचनाकार,  पत्रकार और समीक्षक हैं। श्री शुक्ल जी की समीक्षा सादर अवलोकनार्थ-------।


"बलदाऊ राम साहू अग्रिम पंक्ति के हैं

      बाल साहित्यकार "

------------------------●केशव शुक्ला●

बाल साहित्य लेखन की दिशा में जिन साहित्यकारों का नाम आता है उनमें अग्रिम पंक्ति के साहित्यकार बलदाऊ राम साहू जी हैं।आपके 7 हिंदी बाल गीत संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।

      हाल ही प्रकाशित बाल कहानी संग्रह  " उड़ान " में 24 कहानियां दर्ज हैं।सभी कहानियां बाल मनोविज्ञान पर आधारित प्रभावशाली एवं पठनीय हैं।ये कहानियां किशोर होते बच्चों के स्तर की हैं जिनमें संस्कार,शिक्षा,साहस आदि गुणों को पुष्पित-पल्लवित करती हैं।

   " मेरे मन की बात " में आप लिखते हैं-" कहानी की भी कहानी होती है।या यूँ कहें,कहानी का जन्म किसी न किसी घटना से होता है।जब कोई घटना हमारे मन को भा जाती है,तब कहानी का सृजन हो जाता है।जीवन में ऐसे बहुत से अवसर आते हैं जो मन को किसी न किसी रूप में प्रभावित करते हैं।इनमें कुछ सकारात्मक होते हैं कुछ नकारात्मक भी,किंतु कहानीकार उन्हीं को अपनी परिकल्पना से कुछ नए मोड़ देकर कहानियां बना देता है और ये कहानियां हमसे बहुत कुछ कहती हैं।"

        इस संग्रह के प्रकाशक कांकेर साहित्य संस्थान है।इसके प्रकाशक ने अपने प्रकाशकीय में लिखा है- "बलदाऊ राम साहू जी की रचित ' उड़ान ' हिंदी कहानियों का उत्कृष्ट रोचक संग्रह है जिसे राज्य के बाल एवं किशोर विद्यार्थी व हिंदी साहित्य के सुधी पाठकों के समक्ष रखते हुए हमारे प्रकाशन संस्था को असीम प्रसन्नता हो रही है। "

      कहानियों के शीर्षक उड़ान, सबक,इनाम के हकदार, न्याय, टी-शर्ट, जंगल में सावन,स्मृतियां, गिलहरी का बच्चा, जंगल में छब्बीस जनवरी,चटोरी बकरी,स्कूल में मेला, मेरी दादी,सौतेला बेटा,अहसास, नौसिखिये के नौ दिन,नन्हा कौआ,दुख का कारण,सुबह का भूला,ममता की जीत,पतंग, जुगत,छातिम का पेड़,झूठ का फल और पप्पू जीत गया है।

     कहानी की भाषा-शैली पर चर्चा के पूर्व उड़ान कहानी के अंश देखें-" बच्चों तुम अभी छोटे हो,जब तुम बड़े हो जाओगे तो अवश्य मेरे साथ चलना।देखो,तुम्हारे पंख अभी कितने छोटे हैं।" भाषा कितनी नपी-तुली और सधी हुई है इसका यह उदाहरण है।चिड़िया और चूजों के बीच का यह संवाद सरल , सहज रूप में अभिव्यक्त है।यह कहानीकार की सफलता है।

       कहानियों की शैली रोचक है जो बच्चों से लेकर किशोर मन को प्रभावित करते हैं।उनकी कहानी इनाम के हकदार का प्रसंग देखें- "भले ही मैं परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करता हूँ ,परन्तु उधो मुझसे किसी मायने में कमतर नहीं है।जितना समय मुझे पढ़ने के लिए मिलता है उतना समय उसे नहीं मिलता।"

       बलदाऊ राम जी ने अपनी कहानियों में लोक कहावतें ,मुहावरों का प्रयोग भी किया है यथा-" खरतरिहा ल तुतारी " अर्थात जो काम करता है उसे अधिक जोता जाता है," सौ भाखा और एक लिक्खा," हिंदी में सौ बक्का और एक लिक्खा प्रयोग किया जाता है।इस तरह हम यह भी कह सकते हैं कि वे प्रयोगवादी कहानीकार हैं।

     उड़ान की कहानियों में बलदाऊ राम जी ने बालगीतों को भी तरजीह दी है।दृष्टव्य है-

" हमें नहीं आता है कुछ भी,

कैसे गीत सुनाएं।

मूड़ मुड़ाते पड़ गए ओले

पीड़ा किसे बताएं।"

दूसरी रचना देखें-

" हम जंगल के वासी हैं

हिलमिल कर हम सब रहते हैं।

बाधाएं जो भी आए

कभी नहीं हम डरते हैं।"

       ये गीत भी उनकी ही अपनी रचना है।104 पृष्ठ की इस किताब का मूल्य मात्र 230 रुपये है।यह कहानी संग्रह न केवल पठनीय है वरन् संग्रहणीय भी है।मेरी उन्हें शुभकामनाएं हैं कि बाल साहित्य जगत में उनका नाम अग्रणीय रहे।

                             

                                                      पत्रकार कॉलोनी

                                                       हाउस नम्बर-37

                                                           गौरव पथ

                                                      रिंग रोड क्रमांक-2

                                                           नर्मदा नगर

                                                            बिलासपुर

                                                            छत्तीसगढ़

                                                         पिन-495001

नाव दोष

 नाव दोष


          एक झन राजा रिहिस । राजा हा बिहाव नइ करे के परन कर डरे रिहिस । ओकर मन हा नियम धरम पोथी पतरा कोति जादा रहय .. राज काज म नइ लगय । देश कइसे चलही .. जम्मो झन के मन म फिकर हमागे रहय । विचारवान मन भविष्य म देश चलाये बर .. राजा ला .. एक झन बेटा गोद लेहे के सलाह दिन । राजा हा हव कहत एक झन बेटा गोद ले लिस । बेटा बड़ चंचल सुभाव के रिहिस .. ओहा राजा के नियंत्रण म नइ रहय । बेटा सम्हलत नइ रहय .. तेकर सेती .. बेटा ला अऊ देश ला सम्हाले बर .. प्रजा हा राजा ला बिहाव करे के सलाह दिस । हाँ ना करत राजा हा .. देश खातिर अपन परन ला तिलांजलि देवत .. बिहाव करे बर तैयार होगे । शुभ मुहूरत देख बहुत जोर शोर से राजा के बिहाव होगे । बिहाव होतेच साठ .. पूरा राज ला रानी हा कब्जिया डरिस .. । ओहा प्रजा के बीच म लोकप्रिय होय लगिस । सबो झन अपन आवश्यकता बर रानी कोति निहारत गिन । कुछ दिन म .. प्रजा ला राजा के आवश्यकता नइ रहिगे । राजा के बेटा कति किंजरत हे तेकर खोज खबर के कोनो जरूरत नइ रहिगे । रानी बहुत दुष्टिन रहय । ओहा एक कोति राजा के बारा हाल करय त दूसर कोति ओकर बेटा ला घेरी बेरी मारे के प्रयास घला करय । राजा हा बहुत दुखी रहय .. फेर कोन ला अपन दुखड़ा सुनावय .. । ओकर तो आँखी बिहाव होतेच साठ फूट चुके रहय .. कान म परदा नइ रहय .. जबान ला तो अतेक थुथरवा डरे रहय के .. बोले नइ सकय । राजा अऊ रानी के बीच कोनो अच्छा सम्बंध नइ रहय । रानी बहुतेच उच्छृंखल रहय । राजा के इशारा मानना तो धूर .. ओला देखय सुनय तको निही । जब पाये तब .. राजा ला अपन हिसाब से तैयार करत सुधार देवय । जे इच्छा रानी के रहय .. उही म राजा के हामी दिखय । राजा ला बने राखे हे कहिके सबो कहँय .. इही बताये देखाये बर .. रानी हा राजा के मुहुँ कान म .. आडम्बर छबड़ देवय । जब पाये तब .. ओकर जेला पाये तेला बदल देवय । बपरा राजा हा अतेक आतंक के बावजूद कुछ नइ कर सकय । ओहा कलेचुप रानी के सरी आतंक ला सहत रहय । 

          एक दिन रानी उपर .. राजा ला दुख दे के अऊ ओकर बेटा ला मार डरे के आरोप लगिस । चारों मुड़ा म हल्ला होय लगिस । अच्छा सम्बंध नइ होये के बावजूद .. राजा हा बदनामी के डर म ...  रानी ला खूब संरक्षण दिस अऊ ओकर उपर लगे सरी इल्जाम ले ओला बरी कराके दम लिस । अतका के बावजूद ... रानी हा .. राजा के उपर अत्याचार बंद नइ करिस । जब पाये तब ओला आहत करत रिहिस । एक दिन प्रजा ला असलियत पता लगिस .. राजा के उपर दया आ गिस । ओमन रानी ला बदले के उपाय खोज डरिस अऊ शुभ मुहुरत म .. ओकर जगा म दूसर रानी लान के खड़ा कर दिस । जुन्ना रानी हा बहुत हाथ गोड़ मारिस फेर प्रजा घला ... रानी बदले के कसम खा चुके रिहिस । 

          नावा रानी .. जुन्ना ले जादा खतरनाक रिहिस । ओहा आते साठ .. सउत बेटा के सीधा हत्या के प्रयास करे लगिस .. ओला घेरी बेरी आहत करे लगिस .. ओकर देंहें ला केऊ बेर आगी म दागे लगिस । अपन रहन सहन के हिसाब से राजा के रंगा ढंगा बदल दिस । ओला पेंट के जगा धोती पहिरा दिस । राजा बहुत आहत रहय ... । ओकर मुड़ से लेके गोड़ तक .. चोट के निशान बन चुके रिहिस । तभो ले बपरा हा आह नइ बोलय .. कोनो ला अपन अपन दुर्दशा देखा बता नइ सकय । 

          प्रजा जागरूक हो चुके रिहिस .. ओमन जान डरिन .. ये पइत तो ओकरो ले जादा निर्दयी रानी मिलगे ... फेर अब ओला बदले कइसे .. ? जब तक मुहुरत नइ आही तब तक ... बदल नइ सकय । तब तक ... जुन्ना अऊ नावा रानी हा .. प्रजा ला दू फाँकी कर डरे रिहिन । कुछ मन जुन्ना रानी ला गद्दी देवाये बर मुहुरत के अगोरा करय .. अऊ कुछ मन .. नावा रानी के उपकार म भीतर तक अतेक आल्हादित .. आच्छादित अऊ प्रभावित रहय के .. ओमन अलग रद्दा अख्तियार कर ले रहय । 

          एक दिन प्रजा के हिम्मत जोर मारिस । शुभ मुहुरत म अइसन उपकार पवइया के विरोध ला दरकिनार करत ... रानी ला बदल दिन ... जुन्ना रानी हा फेर आगे । ये पइत जुन्ना रानी हा जम्मो झन ला खमाखम आश्वासन दे के आये रहय के .. ओहा राजा के हिसाब से चलही ... ओकर बेटा ला सुखे सुख म राखही ... फेर रानी बनते साठ .. सरी आश्वासन ला कोंटा म त्याग .. राजा अऊ ओकर बेटा के बारा हाल करे लगिस । 

          देश विदेश के नामी पंडित मन .. राजा अऊ ओकर बेटा के उपर घेरी बेरी आवत संकट के निवारण बर ... बहुत विचार विमर्श खोजबीन करिन ... पोथी पतरा अऊ कुंडली के अध्ययन मनन ले पता लगिस .. सरी दोष हा नाव के आय । राजा के नाव संविधान रहय .. ओकर बेटा के नाव लोकतंत्र .. अऊ राजा संविधान के कुंडली म लिखाये रहय के ... उही हा ओकर पत्नि बनही .. जेकर नाव सरकार रइहि । नाव के सेती जिनगी भर .. न केवल ओकर घर म बल्कि देश म घला कलह माते रहय अऊ बपरा बाप संविधान अऊ बेटा लोकतंत्र हा .. दुख पाये बर मजबूर रहय .. अऊ सरकार नाव के रानी हा .. देश म राज करत मजा मारत रहय ..  ।  


हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

पुस्तक समीक्षा -* आल्हा छंद - जीवनी (छत्तीसगढ़ के छत्तीस साहित्यकार) **************************


 *पुस्तक समीक्षा -*  

आल्हा छंद - जीवनी (छत्तीसगढ़ के छत्तीस साहित्यकार)

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   आल्हा छंद ले भक्तिकाल म भक्तिभाव ले अपन ईष्टबर, गुरु वंदना के पद, स्तुति बर छंद बहुत रचे हावँय| जगनिक ह आल्हा छंद  म सुग्घर पद सृजित करे हवँय| आल्हा के शौर्य वर्णन ल वीर भाव( विरता के भाव ) म रचे के कारण ही ए छंद के नाम वीर हर पात्र के नाम म *आल्हा छंद* पड़गे| जबकि ए तो वीर छंद आय |


आल्हा छंद*   दू डाँड़ के  सम मात्रिक छंद आय, एकर खास विशेषता हवय के ए छंद के विधान 16-15 के भार ले कुल 31मात्रा होथे अउ आखिर म गुरु लघु के होय म गायन ले माधुरता उत्पन्न होथे| वीर भाव म शौर्य लिए प्रयोग ले छंद कर्ण प्रिय अउ हृदय ग्राह्य होगे हे| | 

   भक्तिकाल के विषय परिस्थिति अलग रहीस | ए काव्य हर वर्तमान माध्यम ले कहि सकत हवन केभविष्य ल सँवारना हे  तव वर्तमान के जानकारी रहय| आज के पीढ़ी ल अपन पुरखा मन के थाती के ज्ञान होना चाही|

   इहाँ संत महात्मा, समाज - सुधारक, क्रातिकारी,स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोक कलाकार,राजनीतिक छवि वाले मनखे मन, पत्रकार , साहित्यकार अउ आने आने क्षेत्र के ख्याति वाले पुरोधा मन अपन अपन विधा म, क्षेत्र म सुरुज कस अँजोर बगराय हें| जेकर ज्ञान अँजोर हर कई बछर तक नवा पीढ़़ी ला रद्दा देखाही| 

कुछ साहित्यकार  हरि ठाकुर, डाॕ बलदेव साव,डाॕ परदेशीराम वर्मा, सुशील यदु,जे आर सोनी, सुशील भोले,चोवाराम बादल, मनीराम साहू 'मितान', लोक नाथ साहू 'ललकार' आदि मन गद्य अउ पद्य म इन पुरोधा मन के गाथा, कृतित्व, व्यक्तित्व ल उकेरे के काम करे हें| उही मन म बोधन निषाद जी के नाम घलो शामिल होगे|

अल्हा छंद म सृजित पहली कृति आय|

  आल्हा छंद - जीवनी म छत्तीसगढ़ के 36 (छत्तीस ) साहित्यकार मन के जीवन वृत्त ल जाने बर मिलही|सृजित काव्य हर  छत्तीसगढ़ी भाषा के विशेष रुप लिए कभू शौर्य के तव कभू परिचयात्मक पद मन समाय हवँय|  

 ए मा विविध  कवि लेखक साहित्यकार मन के गाथा हर छंद बद्ध हे|


सरस्वती वंदना- 

जय हो शारद माता तोरे तहीं ज्ञान के भण्डार |

मँय अज्ञानी लइका आवँव, मोरो बिनती ला स्वीकार||

हे जगदम्बा आदी भवानी,हँस हरे माँ वाहन तोर|

एक हङथ मा बीना सोहे, एक हाथ मा ज्ञान अँजोर||



एक छंद देखन-

छत्तीसगढ़ राज के बेटा, नाम रहिन हे हीरा लाल|

लिखिन व्याकरण छत्तीसगढ़ी, छोट उमर मा करिन कमाल||

तीस रुपैया महवारी मा,करिन सहायक शिक्षक काम|

बिलासपुर के स्कूल प्राथमिक, बना डरिस विद्या के धाम||

शुरु करिन हे गायन वादन,रहै इँखर वो बड़ विद्वान|

अपन लगन महिनत के पाछू, हीरा जी पाइन सम्मान||


अइसने बढ़िया बढ़िया शब्द मन के संयोजन ले ये कृति हर पढ़े पढ़े के मन करथे|


एक अउ छंद देखन-


महानदी बोहावत सुग्घर, कल -कल - कल- कल सुन लौ धार|

राजिम नगरी तीर बसे हे, गाँव चँद्रसुर हे चिनहार||


चित्र कला अउ मूर्तिकला मा, पारंगत शर्मा विद्वान|

नाट्य कला के सुग्घर ज्ञाता, बने सिखाइन नाटक ज्ञान||

ग्रंथ लिखिन अठ्ठारह ले जादा, छत्तीसगढ़ी हिंदी लेख|

काव्य दान लंला बहुचर्चित,उपन्यास नाटक ला देख||

विक्टोरिया वियोग लिखिन अउ, सतनामी के भजन सुनाय|

छत्तीसगढ़ी रामायण अउ, श्री रघुनाथा गुण बरसाय||

अइसने अइसने घात नीक छंद बद्ध पद मन मा बंध मन मा रचना हर अपन डहर खीचते हवय|


भारत भुइयाँ- के छत्तीसगढ़िया सपूत मन के एक ले एक छत्तीस महान विभूति मन के जीवनी पढ़ सकत हवन|


गाँनी टोपी पहन पजामा, छाता धरै हाँथ मा एक|

मिलनसार सब ला वो चाहय, काम करै वो जन बर नेक||


कोदू राम समाज सुधारक,मानवता के बनिस मिसाल|

संस्कृत निष्ठ व्यक्ति अवतारी, भारत भुइयाँ के ये लाल||

 गोठ सियानी लिख कुण्डलिया, आडम्बर ल दूर भगाय|

छत्तीसगढ़ी दलित कहाये,ये गुरुजी गिरधर कविराय||

कुछ एक बानगी अउ देखन वीर छंद मा-

माटी पुत्र दुलरवा बेटा,माटी के करके गुणगान|

छत्तीसगढ़ी गीत लिखिन हे,अउ किसान के करिन बखान||


छत्तीसगढ़ी काव्य गगन मा, मेत्तर साहू जब आय|

सुरुज बरोबर चमकिन वो तो,छठी दशक मा नाम कमाय||

उही बछर मा एक पत्रिका,मासिक निकलय बड़ अनमोल|

होवत रहै प्रकाशित रचना,सबले जादा गुरतुर बोल||

संगी भागी रथी तिवारी, नरसिंह जी


ये कृति हर छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य ल पोठ करही|

 *काव्य तत्व* मन के बहुत सहज रुप म प्रयोग होय हे|

अलंकार ले युक्त छंद मन अनुपम अनुभूति देवत हें| 

अलंकृत शब्द, भाव लालित्य मन अलौकिक अउ शास्त्रीय होकर के भी मानवीय संवेदना म पाग धरे रस म भिंजोवत हें|

अनुप्रास, उपमा अलंकार , ध्वन्यात्मकता हर मनमोहत हे|

     वइसे तो कवि के छंद म ए हर चौंथा कृति आय| एकर पहली भी ओमन के "अमृतध्वनि छंद संग्रह" "छंद कटोरा" अउ "हरिगीतिका " प्रकाशित हो चुके हे| आपमन  छत्तीसगढ़ी भाषा म लिखइया एक स्थापित कवि आवव|


      बोधन राम निषादराज 'विनायक' जी के पेशा कहन तव   छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग म व्याख्याता के पद "शास.उ.मा.वि.सिंघनगढ़" म पदस्थ हावँय| 


ए कृति हर छत्तीसगढ़ी भाषा के कोठी ल भरत हे, छत्तीसगढ़ी भाषा - साहित्यकार मन के विकास म उपयोगी सिद्ध होही| नवा पीढ़ी मन ल सुग्घर साहित्य लिखे पढे़ बर रद्दा दिखाही अउ पाठक मन के दिल ल छूही अइसे विश्वास हे|


मै उँकर उज्जर जिनगी के कामना करत बहुत बहुत बधाई देवत हँवव|


कृति-आल्हा छंद - जीवनी (छत्तीसगढ़ के छत्तीस साहित्यकार)

छत्तीसगढ़ी में ;

 *छत्तीसगढ़ राज भाषा आयोग* डहन ले प्रकाशित

 मुद्रक- छत्तीसगढ़ संवाद


 *छंदकार-* 

बोधन राम निषाद 'विनायक'

स/ लोहारा जिला कबीरधाम

मूल्य-दू सौ रुपिया


समीक्षक- *अश्वनी कोसरे

कवर्धा कबीरधाम

छत्तीसगढ़

धुँधरा चन्द्रहास साहू मो 8120578897

 धुँधरा

                              चन्द्रहास साहू

                          मो 8120578897


एक लोटा पानी पीयिस  गड़गड़-गड़गड़ बिसालिक हा अउ गोसाइन ला तमकत झोला ला माँगिस। आगू ले जोरा-जारी कर डारे रिहिस। अउ झोला...?  झोला नही भलुक संदूक आय दू दिन के थिराये के पुरती जिनिस धराये हाबे।  गोसाइन घला कोनो कमती नइ हाबे। बिहनिया चारबज्जी उठके सागभाजी चुनचुना डारिस । चुल्हा-चुकी सपूरन करके टिफिन ला जोर डारिस। गोसइया ला खाना खवइस। गोसइया तियार होइस अउ एक बेर फेर देवता कुरिया मा खुसरगे। ससन भर देखिस बरत दीया अउ अगरबत्ती ला। दूनो हाथ जोरके कुछु फुसफुसाइस अउ जम्मो देबी देवता के पैलगी करिस। लाल ओन्हा मा बँधाये रामायण, फोटो मा दुर्गा,काली, हनुमान अउ बंदन पोताये तिरछुल वाला देवता, लिम्बू खोंचाये लाली पिवरी धजा - जम्मो ले आसीस माँगिस। 

       अब शहर के रद्दा जावत हावय। डोंगरी पहाड़ ला नाहक के मेन रोड मा आइस । फटफटी मा पेट्रोल भरवाइस। ......अब शहर अमरगे। शहर के कछेरी अउ कछेरी मा अपन वकील के केबिन कोती जावत हाबे।

"नोटरी करवाना हे का ?''

"लड़ाई झगरा के मामला हे का ?''

"जमीन जायदाद के चक्कर हे का ?'' 

आनी-बानी के सवाल पूछे लागिस वकील के असिस्टेंट मन। बिसालिक रोसियावत हाबे फेर शांत होइस।  कुकुर भूके हजार हाथी चले बाजार । बिसालिक काखरो उत्तर नइ दिस अउ आगू जावत हे। वोकर वकील के केबिन सबले आखरी मा हाबे। 

"तलाक करवाना हे का ?''

एक झन वकील के असिस्टेंट पूछिस अउ बिसालिक आसमान मा चढ़गे।

"बिहाव के चक्कर हाबे का भइयां ! लव मैरिज फव मैरिज।''

"हंव बिहाव करहुँ तुंहर बहिनी मन हाबे का बता ....?'' 

अब सिरतोन तमतमाये लागिस बिसालिक हा।

"का भइयां ! तहुं मन एकदम मछरी बाजार बरोबर चिचियावत रहिथो। दू झन लइका के बाप आवंव भइयां । मोर बर- बिहाव होगे हे। ....अउ मेहां कोन कोती ले कुंवारा दिखथो ? आनी-बानी के सवाल झन पूछे करो भई।''

बिसालिक अब शांत होवत किहिस ।

"अरे ! आनी-बानी के सवाल नइ हाबे। सरकारी उमर एक्कीस ला नाहक अउ कभु भी बिहाव कर कभु भी तलाक ले...! उम्मर के का हे....? उम्मर भलुक बाढ़ जाथे फेर दिल तो जवान रहिथे। पच्चीस वाला घला आथे अउ पचहत्तर वाला घला  आथे बिहाव करवाये बर या  तलाक लेये बर।''

असिस्टेंट किहिस अउ दूनो कोई ठठाके हाँस डारिस। कम्प्यूटर मा आँखी गड़ियाये ऑपरेटर अउ टकटकी लगाके देखत परिवार के जम्मो मनखे करिया कोट मा खुसरे वकील पान चभलावत नोटरी अउ दुख पीरा मा दंदरत क्लाइंट । 

                  बिसालिक घला क्लाइंट तो आय नामी वकील दुबे जी के। वकील केबिन ला देखिस झांक के। दुबे जी बइठे रिहिस। कोनो डोकरी संग कोई केस साल्व करत रिहिस। अब क्लाइंट मन बर लगे खुर्सी मा बइठगे। असिस्टेंट नाम पता लिखिस पर्ची मा अउ वकील दुबे जी के आगू मा मड़ा दिस।

               झूठ लबारी दुख तकलीफ सब दिखथे कछेरी अउ अस्पताल मा। उहाँ मनखे जान बचाये बर जाथे अउ इहाँ ईमान बचाये बर। उहाँ मरके निकलथे अउ इहाँ मरहा बनके निकलथे मनखे हा। नियाव मिलही कहिके आस मा हर पईत आथे बिसालिक हा फेर मिल जाथे तारीख। तारीख बदलगे, मौसम बदलगे, बच्छर बदलगे, वकील कोर्ट जज बदलगे फेर नइ सुलझिस ते एक केस। बिसालिक अउ वोकर नान्हे भाई बुधारू के बीच के जमीन विवाद।

               बिसालिक गाँव मा रहिथे अपन परिवार संग अउ बुधारू हा शहर मा अपन परिवार के संग। दाई ददा के जीते जीयत बाँटा-खोंटा होगे रिहिन। नानकुन घर खड़ागे। खार के खेत दू भाग होगे। अउ बाजार चौक के जमीन ....? इही आय  विवाद के जर । दाई ददा के सेवा-जतन सूजी पानी ऊँच नीच जम्मो बुता बिसालिक करिस। शहरिया बुधारू तो सगा बरोबर आइस अउ सगा बरोबर गिस। ऊँच नीच मा कभु दू चार पइसा दे दिस ते .?....बहुत हे। 

"ड्राइवर के बुता अउ आगी लगत ले महंगाई , वेतन पुर नइ आवय भइयां।''

अइसना तो कहे बुधारू हा जब पइसा मांगे बिसालिक हा तब। दाई ददा के जतन करे हस बाजार चौक  के जमीन तोर हरे बिसालिक। गाँव के सियान मन किहिस। कोनो विरोध नइ करिस। अब अपन कमाई ले बिसालिक काम्प्लेक्स बना दिस आठ दुकान के । ....अउ बुधारू के आँखी गड़गे। 

"मोर दू झन बेटा हाबे बिसालिक भइयां ! दू दुकान ला दे दे। नौकरी चाकरी नइ लगही ते दुकान धर के रोजी रोटी कमा लिही लइका मन ।''

 अतकी तो अर्जी करे रिहिस बुधारू हा। बिसालिक तो तमकगे। 

"मोर कमई ले दुकान बनाये हंव नइ देवंव कोनो ला।''

अब घर के झगरा परिवार मा गिस। परिवार ले पंचायत अउ अब कोर्ट कछेरी। छे बच्छर होगे केस चलत। पइसा भर ला कुढ़ोथे अउ नियाव नइ मिले तारीख मिलथे....।

 "बिसालिक !''

आरो करिस  असिस्टेंट हा अउ बिसालिक वकील के कुरिया मा खुसरगे। जोहार भेट होइस। अपन जुन्ना सवाल फेर करिस।

"केस के फैसला कब होही वकील साहब !'' 

अवइया तीस तारीख बर अर्जी करहुं जज साहब ले। उही दिन फैसला हो जाही। केस जीतत हन संसो झन कर। साढ़े सात हजार फीस जमा कर दे असिस्टेंट करा ।''

वकील किहिस अउ आस मा पइसा जमा करिस बिसालिक हा। घर लहुटगे अब।


 "बड़ा बाय होगे बिसालिक !''

रामधुनी दल के मैनेजर आय। दउड़त हफरत आइस अउ किहिस।

"का होगे कका! बताबे तब जानहुं।''

"का बताओ बेटा ! फभीत्ता हो जाही, जग हँसाई हो जाही अइसे लागथे। राम के पाठ करइया गणेश हा अपन गोसाइन संग झगरा होके भागगे रे ! गुजरात जावत हे कमाये खाये बर। वोकर पाठ ला कोन करही एकरे संसो हाबे बेटा ! तेहां करबे न !'' 

"मेंहा...? नइ आय कका ! जामवंत रीछ के पाठ करथो खाल ला ओढ़के उही बने लागथे। ''

बिसालिक अब्बड़ मना करिस फेर मैनेजर मना डारिस। 

          आगू गाँव भर मिलके कलामंच मा रामलीला करे अउ रावण मारे फेर अब तो गाँव भर दुराचारी रावण होगे हे तब कोन मारही रावण......? रामलीला नंदा गे। अब रामधुनी प्रतियोगिता होथे उही मा झाँकी निकाल के रामकथा देखाथे मैनेजर हा। जब तक मैनेजर जियत हे तब कलाकार के हियाव होवत हाबे। मैनेजर सिरा जाही...जम्मो नंदा जाही अइसे लागथे। संसो करे लागेंव मेंहा। जम्मो कलाकार मन ला जुरिया के लेगिस आमदी गॉंव अउ तियारी करे लागिस अपन कार्यक्रम के।

               गवइया सुर लमाइस। नचइया  मटकाइस मंच मा बाजा पेटी केसियो ढ़ोलक मोहरी बाजिस। अब मंगलाचरण आरती होये के पाछू कथा शुरू होइस राम बनवास के कथा। बिसालिक पियर धोती पहिरे हे। मुड़ी मा जटा, बाहाँ मा रुद्राक्ष के बाजूबंद, नरी मा रुद्राक्ष के माला, गोड़ मा खड़ाऊ, कनिहा मा लाल के पटका। माथ मा रघुकुल के तिलक अउ सांवर बरन दमकत चेहरा। दरपन मा देख के अघा जाथे। धनुष बाण के सवांगा मा सौहत राम उतरगे अइसे लागत हे।

          राजा दशरथ कोप भवन मा जाके अपन गोसाइन केकयी ला मनाथे। .......अउ नइ माने तब पूछथे का वचन आय रानी माँग ले।

"मागु मागु पै कहहु पिय कबहुँ न देहु न लेहु।

माँग -माँग तो कथस महाराज फेर देस नही।'' 

कैकयी हाँसी उड़ावत किहिस। 

"दुहुँ सिरतोन !''

"रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई ।''

"तब सुन महाराज ! मोर पहिली वचन

सुनहु प्रानप्रिय भावत जी का। देहुं एक बर भरतहि टीका॥

दुसर वचन

तापस बेष बिसेषि उदासी। चौदह बरिस रामु बनबासी॥

राम ला चौदह बच्छर के वनवास अउ मोर भरत ला राजगद्दी।

अइसने किहिस कैकेयी हा। दशरथ तो पछाड़ खा के गिरगे। अब्बड़ मार्मिक कथा संवाद मैनेजर गा के , रो के रिकम-रिकम के अभिनय करके बतावत हे।

 जम्मो  देखइया के आँसू चुचवाये लागिस। कतको झन कैकयी के बेवहार बर रोसियाये घला लागिस। 

राम के बरन धरे बिसालिक सबले आगू कैकेयी के पाॅंव परके आसीस माँगथे। फूल कस सीता घला रिहिस। लक्ष्मण घलो संग धरिस अउ गोसाइन उर्मिला ले बिदा माँगिस। उर्मिला मुचकावत बिदा दिस। अउ गंगा पार करके चल दिस जंगल के काॅंटा खूंटी रद्दा मा। भरत तमतमाये लागिस। राजपाठ ला नइ झोंको कहिके, अउ राम के खड़ाऊ ला धर के लहुटगे। भाई भरत तपस्वी होगे अउ शत्रुघन राज चलावत हे। 

              सिरतोन कतका मार्मिक कथा हाबे। समर्पण अउ त्याग के कथा आय रामायण। जम्मो ला देखाइस बिसालिक मन। बिसालिक गुनत हे जम्मो कोई अपन सवांगा ला हेर डारिस अब फेर बिसालिक नइ हेरिस।

कार्यक्रम सुघ्घर होइस बिसालिक घला बने पाठ करिस। अब गाँव वाला मन ले बिदा लेवत हाबे। 

"चाहा पीके जाहूं। छेरकीन डोकरी घर हाबे जेवनास हा।''

गाँव के सियान किहिस अउ चाहा पियाये बर लेग गे।

जम्मो कोई ला चाहा पियाइस डोकरी हा। राम लक्ष्मण भरत शत्रुघन के पाठ करइया मन चाहा पीयिस फेर मंथरा अउ कैकेयी ला नइ परोसे।

"दाई यहुँ बाबू ला दे दे ओ !''

मैनेजर के गोठ सुनके दाई खिसियाये लागिस।

"इही मन तो बिगाड़ करिस मोर फूल बरोबर सीता ला, राम ला बनवास पठोइस। नइ देंव चाहा।''

डोकरी बखाने लागिस। राम बने बिसालिक किहिस चाहा बर तब वोमन चाहा पीयिस। 

"तेहां काहत हस बेटा राम ! तब देवत हंव नही ते सुक्खा टड़ेड़तेंव।''

डोकरी किहिस।

"सबके घर मा तोर बरोबर मर्यादा पुरुषोत्तम राम अवतरे बाबू तभे ये दुनिया मा सत्य अउ धर्म के स्थापना होही। सब बर छाहत रह मोर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम।''

डोकरी अब भाव विभोर होगे।

अब जम्मो के आसीस लेके लहुट गे अपन गाँव बिसालिक अउ संगवारी मन।

       अधरतिया घर अमरिस बिसालिक हा। गोड़ हाथ धो के सुतिस फेर नींद नइ आय। गुने लागिस रामायण ला। नत्ता ला कइसे निभाये जाये ..? त्याग समर्पण इही तो सार बात आय रामायण के। ददा के बात मान के राम जंगल गिस - पुत्र धर्म के मान राखिस। गोसइया के संग देये बर फूल कस सीता चल दिस। उर्मिला मुचकावत लक्ष्मण ला बिदा दिस। भरत राजपाठ तियाग के तपस्वी होगे।...... अउ छोटे भाई शत्रुघन राज करत हे। जम्मो अनित करइया,चौदह बच्छर के बनवास भेजइया माता कैकयी ला प्रथम दर्जा देथे राम हा। कोनो बैर नही कोनो मन मइलाहा नही.....! जम्मो कोई ला मान देवत हे। अतका होये के पाछू घला भरत बर मया......? सिरतोन राम तेहां मर्यादा पुरुषोत्तम राम आवस।


बिसालिक गुनत हे।..........अउ मेंहा .....?अपन छोटे भाई संग का करत हंव.......? 

               मुँहू चपियागे। लोटा भर पानी पी डारिस। अब महाभारत के सुरता आये लागिस। पांडव मन आखिरी मा पाँच गाँव तो माँगिस वहुं ला नइ दिस चंडाल दुर्योधन हा अउ अपन कुल के नाश कर डारिस।

मोर छोटे भाई हा घला दू दुकान ला मांगत हाबे अउ मेंहा कोर्ट कछेरी रेंगावत हंव......?  का होइस दाई ददा के कमती सेवा जतन करिस ते .....? सिरतोन महंगाई मा वोकर घर नइ चलत होही ....? कभु एक काठा चाउर तो नइ पठोये हंव मेंहा एक्के मे रेहेंन तब। ड्राइवर के कतका कमई ...?  दुर्योधन बरोबर मोर बेवहार ....?

नत्ता-गोत्ता मा बीख घोर डारेंव....। भलुक राम नइ बन सकंव ते का होइस...भरत बन के दू दुकान के तियाग कर देंव.....?

बिसालिक अब्बड़ छटपटावत हे अब। 

अब नवा संकल्प लिस मेंहा लहुटाहूं आठ में से चार दुकान ला । बिहनिया जाहूं छोटे भाई घर ....। सुख-दुख जम्मो बेरा मा नत्ता निभाहूं.....। बिसालिक अब अगोरा करे लागिस बिहनिया के । करिया रात छटिस अउ सुरुज के उजास बगरे लागिस। हलु-हलु धुंधरा भागे लागिस। ...बिसालिक के मन के जम्मो मइलाहा घला  धोवा गे रिहिस। अब मन के धुँधरा सफा होगे रिहिस। 

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

रोज एक पुड़िया

 [1/27, 6:23 AM] +91 98261 60613: रोज एक पुड़िया 😃

नानकुन कहानी -


"  बात तो बनगे  "


  साग -भात,रांधत -रांधत गोठ -बात घलो मोबाइल म हो जथे l

" तुंहर आदमी बने हे, तनखा लाके दे थे जउन खर्चा करना हे कर पूछय घलो नहीं बने l कतेक खर्चा करे हच ? हमला तो पूछथे कहाँ गे पूरा तनखा के पइसा? हमला तो इही टेंशन हे l" भउजी के गोठ पूरा नई हो पाइस ओती ले ओकर दीदी के -"का हिसाब वो, घर ला औरत मन चलाथे उही मन जानथे l आदमी जात का जानही l

अपन ला देख नवा सोना के डिजाइन वाले झुमका आये हे

मै तो लुहूँ मोला बने लागिस l"


"महूँ ला बताबे कब जाबे ते l"


"तोर करा तो पइसा नई होही "


"हो जही, ओइसने गोठियाये के हरे वो आदमी मन ला खर्चा के गोठ सुनावत रहिबे त बने कमा थे l  अपने च बर तो लेथव "


"देख ले, ले बताबे , का साग रांधत हस त "


"हत तो बही बताते नहीं,ले जर गे वो बरी आलू हरे l"


"खिसियाही तोला "


"का खिसियाही,तेल सिरागे रहिस पानी म भूंज के रांधे हव

कहि दुहूँ तोर तनखा के पइसा पूरय नहीं तो मै का करहूँ कहि दुहूँ l"

"बड़ चतुरा हस बहिनी, ले मोबाइल ला बंद कर l ले,मोर बूता परे ओ l "

 साग -भात,भले जरगे lबात तो बनगे l


मुरारी लाल साव

कुम्हारी

[1/29, 10:36 AM] +91 98261 60613: रोज एक पुड़िया 😃

नानकुन कहानी -


     "मन मरजी "


   बिचारा चल दीस l बने  रहिस गुरूजी ह l सबसे मेल -जोल हित -मीत  करे म आघू रहिस l  किसुन अपन समय के गाँव के पहिली गुरूजी l ओकर पढ़ाये लइका मन ऊंचहा नौकरी करत हे l

बने मान सम्मान मिलत रहिस

किसुन गुरूजी ल l फेर अपन बेटी के मन मरजी के आघू कुछु नई चलिस l इही गोठ गाँव म होवत रहिस l

      ओकर दू बेटा दू बेटी l सबके बिहाव होगे हे l बेटी बेटा मन बने संस्कार नई  सीख पाइस l मया दुलार म  उज्जड  निकलगे l कामनी  ओकर छोटे बेटी अलग सोच के l 

"मोर मर्जी ले पति चाही l अपन मन ले बिहाव करहूँ" l किसुन गुरूजी बने  घर घराना देख के ओकर बिहाव करे रहिस l बिहाव होये दू महीना बाद  कामनी मइके म बइठ गे l बैठक पंचाईत होइस कामनी मुड़ी पटक दीसl ससुराल नई जाना हे , नई जाना हे l मन मरजी के चलते रिस्ता टूट गे l ककरो बात ल नई मानिस l

कारन एके ठो  बताइस झूठ बोलके बिहाव करें हे -पीते खाथे l 

 दस साल पुरो दीस मइके मा बइठ के  कामनी ह l  एती ओती घुमाई फिरई म मटर मटर म l अउ दूसर लड़का छांटत -छांटत l

अभी के बेरा म ओला सब पीने खाना वाला दिखीस हे  लबारी अइसे लगय lकामनी ला घमंड घलो रहिस अपन रूप रंग के l पढ़ाई मेट्रिक पास फेर चटर पटर म हुशियार l

किसुन गुरूजी के मन म डर भीतरी  म समाये रहिस l भरे जवानी म कुछु काँही मत कर लय l घऱ ला छोड़ के भाग मत जाय l एखरे सेती ओकर हर बात ल मानय l


चिंता आथे त रपोट के जघा पोगराथे l मर जथे इही चिंता म का होही?l अपन बेटी ला समझाये  अउ कहे रहिस- अपन मर्जी ले रिस्ता ल टोरे हस बेटी,दूसर रिस्ता ल जोड़ना सरलअउ आसान नोहय  l चार के मर्जी सलाह अउ आशीर्वाद काम आथे lअपन मर्जी सब जघा नई चलय कुछ सुन समझ l" सुरता हे कामनी ल फेर समझ नहीं l

आखिर म  कामनी अपन मर्जी फेर चलाईस l

 कामनी  दूसर रिस्ता तो बना लीस  l  महीना दिन नई पुरिस इहु रिस्ता ला नई निभाईस अपन उज्जड पन देखा ना  नई छोड़िस l दूसरैया ससुराल म ओकर मन मरजी

नई चलिस l उहू रिस्ता ला टोर दीस  l

   किसुन बिचारा चल दीस फेर ओकर चिंता ठाड़े रहिगे l


मुरारी लाल साव

कुम्हारी

[1/31, 5:23 AM] +91 98261 60613: रोज एक पुड़िया

 " चिबरी भात "

मजा के दिन म खीर भात बिगड़े दिन म चिबरी भात l जगत सुरता करत बइठे -बइठे सोचत रहिस l अपन गोसाइन परेमीन के बारे म l

  परेमीन के मया  के खीर भात के सुरता कम, चिबरी भात खाये रहिस तेन जादा आवत रहिस l

एक दिन के बात ए l परेमीन मया म अपन मन से भोजन बना वत रहिस l बढ़िया सोच के  बने बने ख्वाहूँ त मया जादा करही l मोर मन के राजा खुश होही l कीमती ऊंचहा लुगरा लेवाहूँ l

उही दिन ओकर भाई सगा अस आगे l बड़ ख़ुशी होइस l फेर जगत ला अचरज होइस l आज ओकर भाई आये हे त कइसे मन लगाके भोजन बनाही lजगत सोचिस अइसने रोज सगा आवत रहय बने बने खाये पिए के ब्यवस्था होवत रहय l जगत घलो बने आव भगत म लग गे l आज तो खीर भात खाये ला मिलही l

बात निकल गे तीजा के लुगरा के l

परेमीन कहिस -"भाई लुगरा देनी लेनी के चीज ए l मन ला मढ़ाये के l फेर भउजी के आदत बने नई ए ओला सुधार दे l" ओकर भाई कहिस -"मोर बस के बात नोहय l ओकर मर्जी  ओकर हरे l"

परेमीन गुस्सा करके -"ले जा लुगरा ला ओकर मर्जी के ए l"

"बहिनी मोर डहर ले "जगत बीच म गोठिया परिस -"तुंहर भाई बहिनी म अतेक मया हे

त मोर बर का बाँचीस? ये गोठ परेमीन ला झार लगगे l जगत ला रोज कहय  "बने ऊंचहा लुगरा ले l " उही लुगरा बर मन नई मिलत रहिस l तीजा के लुगरा  रंग ढंग नहीं भाई के मन के नोहय l भाई के मन लुगरा म नहीं ब्यवहार म रहिस lगोठ गुंग्वावत रहिस तीनो के भीतरी l जइसन मन ओइसन अन l

देखते देखत मन बिगड़गे l बात बनिस नहीं l बात कुछु नई रहिस l बात संग भात चिबरी होगे l


मुरारी लाल साव

कुम्हारी

[2/1, 8:06 AM] +91 98261 60613: रोज एक पुड़िया 😃

नानकुन कहानी -

   "  सुध अउ बुध "


दूनो पक्का संगवारी सुध अउ बुध l रहिथे एके संग जाही एके संग l सुध भोला अउ भुलक्कड़ बुध अकड़ू अउ घमंडी l दूनो म एक दिन  खटपट होगे l एक दिन सुध जंगल गे रहिस l जंगल  के बिस्तार अउ सुंदरता ला देख सुध के मन रम जथे l उही जंगल म सुन्दर रंग रूप वाली मोहनी मिलगे l सुध ओला देख के अपन बुध ला भुलागे l ओकर रंग रूप म अपन सब सुध ल खो डरिस l

बुध अंकडू रहिस सोचिस -परबूधिया मन ला कोन समझाये दू दिन के जवानी अउ दू दिन के मया मा भुला जथे l भटकन दे,मरन दे l

बुध अकेल्ला  कुछ दिन रहिस l बुध आखिर सुध बिना अकेल्ला कइसे रह पाही?एक दिन सुध ला चिल्लाईस -

"कहाँ जात हस एती आव?"

सुध कहिस -मजा म हँव l तै कइसे हस? बुध कहिस -"तोर बिना अधूरा हँव l"

तै आना l "  बुध के तीर कोनो मोहनी नई आवय lउही बेरा  अकेल्ला के हथोड़ी फेका के बुध के मुड़ी म लाग जथे l बुध अपन बुध ल खो डरिस l सुध घलो नई रहिस l

बिना बुध के सुध मोहनी के मया म फँसे हे l एती बिन सुध के बुध  आफत म कल्हरत परे हे l

मोहनी एक दिन हेचकार के कहिस "-तोर बुध कहाँ हे कुछु अक्कल हे लोरघे परे हस  तीर म l " तब सुरता आथे बुध के l सुध पल्ला भागिस बुध करा l तभे संत मन कहिथे -" जउन जतके मया म लप टाये रही  सुध बुध खो के ओकर दुर्गति होही l जेकर सुध नई हे बइहा होथे l जेखर बुध नई हे भकला होथे l अकेला बुध बेसुध परे रहीथे l "

 मोहनी के माया सुध अउ बुध ला अलगा के रखथे lदूनो के बिना ककरो पार नई लगय l सुध बुध के संग जिनगी चलथे l


मुरारी लाल साव

कुम्हारी 

"

[2/2, 8:20 AM] +91 98261 60613: रोज एक पुड़िया

नानकुन कहानी -

    " अपन मान  बर "

सिरतोंन म  बेरा एती ले ओती होगे l गोठ नई सिरईस अउ लामत गे l उंगरी ले बीता अउ बीता ले पोरीस भर l माथा म टीका लगाही सोचत रहिस फेर ये तो उल्टा होगे l चुंदी ला धर के इंचत हे l संभलू के दिन रात एके होगे l मंगलीन के मन नई माढ़ीस गोठियाये के l पति के संग रति तभे नौ लखिया हार आँखी म झूलत हे ओकर l

संभलू कहत कहत थक गे -रात होगे चुप राह l

मंगलीन के चार मांग संभलू बर पहाड़  धकेले बरोबर l कइकेई के दू मांग दसरथ बर भारी होगे l संभलू  महाराजा बने हे l छोटकुन घर चार एककड़ खेत अकेला कोनो परिवार नहीं l धरम पत्नि चल बसीस l मंगलीन ला लानिस l

ले मंगलीन मांग -बता?

मंगलीन कहिस -"मोला  पत्नी बनाये हस ना त अतका करे ला परही l पहिली मोर नाम म घर बार खेत खार ला रख l

दूसर  मोर बर गहना गूंठा ले के दे l

तीसर बैंक मा मोर नाम के खाता खोल दस हजार महीना दे l तोला जिनगी भर साथ दुहूँ l "

संभलू कहिस -अउ बता? मंगलीन कहिस -

"अपन  लरा जरा मन के बात झन मान l"

संभलू अइसे सुनिस संभल के l मंगलीन ला शक सुभा होगे l

मंगलीन ला भरोसा नहीं होइस l मोला कइकेई अस समझे नई करिस lपरान भले चल दय वचन काबर दिही l

संभलू ठोस अउ एक जुबान म कहिस -" मै तोर कोन अँव

मोला अपन जान  -मोला अपन मान l अतेक हिन मान अपमान झन कर  जघा जघा l एला -ओला बताके l भाड़ा किराया अस रिश्ता बनाये ले जिनगी नई चलय l"

मंगलीन  के मंथरा के बुध काम नई आइस l  मंगलीन पारा भर किंजर किंजर के सब ला बतावत हे lमोर बुद्धि काम नई करत हे राँहाव कि छोड़ दव मोला कुछु नई सूझत हे का करंव?

अपन मान बर जोखा उदिम करिस l


मुरारी लाल साव

कुम्हारी

[2/3, 9:14 AM] +91 98261 60613: रोज एक पुड़िया 😃

नानकुन कहानी -

 " खा झन मोटा झन "


कुरिया म लगे परदा हालिस l

चल उठ, बिहनिया होगे l दाई चिल्लाईस -बेरा उगे हे अतेक

कतेक सूतहू ते l"

बेटा उही हरे नवा बहूआहे हे घऱ म l

बहू उठिस l

सास अपन जात ला देखाइस l

"बेटी,  तोपे ढांके नई अस ना

दूध म चांटी परगे हे देख?"

बहू -" चांटी अतलंग करत हे "

खा झन मोटा झन l पियत हन त पी डरेव कहिके कहिते l

चांटी ला पियन दे l "फेर कहिस -

"दाई तहूँ बहू बन आये रहे त दूध ला पियत रहे त चांटी मन

देखत रहिस होही ना!"

सास सुनिस अउ कहिस  - "हमर जमाना म कसेली कसेली दूध होवय l"

तभे मोटायेहस घोसघोस ले बड़बड़ावत बहू कुरिया म आगे परदा ला गिरा दीस l


मुरारी लाल साव

कुम्हारी

[2/9, 6:12 AM] +91 98261 60613: रोज एक पुड़िया 😃

नानकुन कहानी -

   " मुँहरन  "

जचकी अस्पताल म रेवती ला भर्ती करे रहिस l घात पीरा  सहत रहिस बिचारी l नर्स आके बताथे -"लड़की हुई है बधाई l" सब ला ख़ुशी होइस सुनके l

"कतका जोर देखाबे मेडम हमर नवा सगा ल l "

"देखेच देखेच के मन होवत हे नोनी ल l" समारीन पूछिस l

थोकिन  बाद नर्स लेके आथे l

"ये लो देखो l"

बुवा ददा दादी कका काकी सब देखिस नोनी ल, नोनी के मुँहरन ला l सबके मन गदगद रहीस l  "आपस म एक दूसर ला बधाई दीस बड़ सुगघर भगवान देहे l"अपन डहर ले कोनो चंदा असन कोनो पुतरी बरोबर त कोनो सास आये कोनो लछमी के मुँहरन म देखिस l पडोसी सुखिया कइथे -" बजरहिन असन लागिस l ओकर दाई हाट बजार बने घूमे हे  जुगर जुगर बने सबो देखत हे l" रेवती सुन पाइस l "मोर बेटी के मुँहरन ला भगवान गढ़े हे ,फेर उल्टा पुल्टा नाव झन धरव l"  "जाकी रही भावना जैसी तिन मुरत देखी तिन तैसी l"सुखिया सुने रहिस बजार म बोधी के दुकान म रेवती बैठय l ओकरे मुँहरन  तो --? 

नानूक नोनी घलो देखिस सब झन ला सबके मुँहरन ला जुगर -जुगर,दीया असन लिप -लिप

मिळखी मार के l

अतका ल सुन के सुखिया ल अच्छा नई लागिस l अपन देवी मन ला  घलो कहि देथन -         कँकलहीन,  फुरहीं, फुलेशरी l"

नर्स कहिस - "देख लिए ना मुँहरन l "

  सुखिया के मुँहरन बिगड़े रहिस l भरमहीन,तउला मुँह बनाये l 


मुरारी लाल साव

कुम्हारी