Saturday 20 May 2023

बनौती बनादे महेंद्र बघेल

 बनौती बनादे 

                         महेंद्र बघेल 


कोमल के संग जब-जब मोर भेट होथे,ओकर सुभाव ह सिरबिस शिकायती च रहिथे।आजो ओकर ले गांधी चौक म ओरभेट्टा होगेंव...,भइगे मोला बनेच जोहार दिस अउ शुरू होगे - " कतको कहिबे थोरको नइ माने,मन के बात गड़रिया जाने.., कोन जनी मास्टर संगवारी मन ल का हो जथे ते,येमन ह जब -जब सॅंघरथें ,तब-तब आपस म गोठ-बात करत अइसे रबक जथें जइसे महाअघाड़ी के माफिक तिरसठ-तिरसठ खेलत हें।येमन ल देखके,सुनके अउ सूॅंघके अइसे लगथे मानो येमन कोनो शोध करने वाले शोधार्थी ऑंय अउ कोनो  विषय म शोध प्रबंध लिखे के जुगाड़ करत हें। कहुॅं एके दिन म एक ले जादा घाॅंव मिल जहीं तभो ले जोर-शोर ले मिलहीं, मुॅंहुॅं जोड़ के मिलहीं।"

                कोमल के मितान के नाम दिनेश.., मितान कहे म मितान के वजन ह थोकिन हल्का कस जनाथे.., येला लंगोटिया मितान कहे म जादा फबथे। फेर आजकल लंगोट के नाम ह खुदे नंदाय वाले सूची म आ गेहे। बीते समय म लंगोट के अपन अलग नाम रहिस। लंगोट के नाम सुनतेच अभिजात्यपना के अनुभो होवय अउ ऑंखी के आगू म साॅंघर-मोंघर पहलवान के फोटू ह उपक जाय। येमा बड़े ई के मात्रा लगाय म दिमाग ल अभाव म जीयत मनखे के अनुभो होवय अउ दिमाग के बत्ती ह तइहा जमाना म बबा तक पहुंच बना के ओकर जीवन संघर्ष के कहानी ल उघार देवय।

         पहलवान मने दूध-दही, घीव-मलई अउ काजू-बादाम झोरइय्या मोठ-डाट मनखे जेला देखके सधारण मनखे के हालत ह पातर-सीतर हो जथे।एक डहर दबंगई के खुला मैदान म कुर्सी वाले पहलवान मन सूरुज ल बुड़ती डहर ले उवोय म ताकत लगा देहें। अउ ओती कुश्ती लड़ईय्या महिला पहलवान मन बीच सड़क म अपन इज्जत -आबरू बचाय के लड़ाई लड़त दिखथें। तब लगथे देश के दिल म बेटी- बचाव अउ बेटी -पढ़ाव के ये नारा ह छिदिर-बिदिर होके खून के ऑंसू रोवत हे। आजकल तो न्यायालय के पहिली मीडिया म बैठे पुचपुचहा एंकर मन ह खुदे सच अउ झूठ के फैसला करत दिखाई देथे। का करबे कई ठन गोठ ल ऑंखी अउ कान के मान-सम्मान खातिर गोठियाना जरूरी हो जथे। चलो छोड़ो ये गोठ ल।

                  एक दिन कोमल अउ दिनेश दूनो झन एक ठन होटल म सॅंघरगें अउ रट्ठाके जमगें.., मतलब चाय-चुहके के दौर चलगे..।कोमल ह देशी अंदाज म चहा पीये के मजा लेय त दिनेश के मुॅंहूॅं ले अवाजे नइ निकले।चहा के असली मजा तो देशी अंदाज के सड़फड़हा अवाज म रहिथे।कड़क चहा के  सुड़क्का मजा ल सुगर वाले मन भला का जान पाहीं..।बात लंगोट के चलत रहिस त ओकर विकास के कहानी ल जानना भी हमर लंगोट धरम आय। येहा भूतकाल म लंगोट (लंगोटी) रहिस , मध्यकाल म बेगी (कच्छा), वर्तमान म सबके डियर अंडरवियर..।

             लंगोटिया मितान के मतलब ल समझत -समझत बुध पतरा जथे फेर मामला कुछ समझेच नइ आवय। एके ठन आइटम (लंगोट) ल दूनो झन कइसे बउॅंरत रहिन होहीं। हो सकथे ननपन म दूनो मितान मन अलग-अलग लंगोटी पहिरे गली-खोर म फूल खिलात रहिन होही। सुबे -सुबे बाटी-भौरा, घरघुॅंदिया खेलत-खेलत धुर्रा -माटी म मटक-मटक के रेंगत रहिन होही। तरिया म नहाय के बेर कपड़ा बदले के का रोडमेप रहिस होही उही मन जाने। मॅंय तो जब-जब देखेंव उनला नाश्ता झोरत अउ चहा चुहकते देखेंव।ओ हिसाब म येमन ल चहेड़िया मितान कहना जादा उचित लगथे।

          फेर पुरखा मनके लंगोटिया मितान के ये जो हाना चलत हे उही ल चलाय म समझदारी हे नइते जम्मो पुरखा मन रिसा जहीं अउ पीतर पाख म कौवा देखई ह घलो नोहर हो जही। मंजन -मुखारी, बरा-सोंहारी अउ तोरई-बरबट्टी के जतन अकारथ हो जही। सौ बात के एक बात कोमल अउ दिनेश दूनो झन चहेड़िया नइ लंगोटिया मितान आय।

                     कोमल ह खेती -किसानी के काम म व्यस्त रहिथे, चिंतन-मनन अउ ध्यान के गहराई म तऊॅंरे बर साधु-संत अउ जान-पहचान संग भेंट-मुलाकात म मस्त रहिथे।दिनेश के बात कुछ अलग हे, वो सरकारी नौकरी म हवय, उपर ले स्कूल मास्टर। गांव के तीर म पोस्टिंग हे..., मने ऊपरवाला जेला देथे छप्पर फाड़के देथे।

                  मास्टर (गुरूजी) मन जेन जगा म सॅंघर जथे उही कर उनकर दरबार लगना शुरू हो जथे अउ खुल जा सिम-सिम कहे के पहली उनकर समस्या के पिटारा खटले खुल जथे।अगल-बगल म कोन हे उनला कोनो मतलब नइ रहय.., दुनिया जाय चूल्हा म..।

                  साॅंझ कुन बजार जावत रहेंव त मोर अउ कोमल के भेंट होगे तहां दिनेश ल लेके दिमाग म सकलाय जम्मो गुस्सा ल मोर उपर झर्रसले कचार दिस।कोमल के चार-सौ चालिस वोल्ट वाले झटका ले मॅंय हड़बड़ा गेंव। देखते-देखत कोमल के कोमलता ह कठोरता म बदलगे अउ धारावाहिक कस शुरू होगे - " दिनेश गुरूजी अउ रमेश गुरूजी के रात-दिन बस उही-उही गोठ.., डीए, एरियस, क्रमोन्नति, पदोन्नति, ट्रेनिंग, मानदेय, छुट्टी, मार्निंग स्कूल, समयमान-वेतनमान अउ हड़ताल। एक झन बोलथे त दूसर ह टुपले झोंकथे, दूसर बोलथे त पहली झोकथे, संग म अउ कोन हे तेकर येमन ल कोई लेना देना नइ रहय। बोलई-झोंकई में मगन एक झन के मूड़ी के चुॅंदी पाकगे अउ दूसर के चुॅंदी झरगे। फेर डाई करे बर अउ पाटी मारे बर नइ छोड़िन। न मुंहुं जोड़ के गोठियाय बर छोड़िन..।तहूॅं ह तो मास्टर हस तोरो का भरोसा।"

       ओकर तमतमाय बरन ल देखके मॅंय धीरलगहा बोलेंव- "आदमी ल खुद के उपर कतका विश्वास हे दूसर मन ह का जान सकही भैया ओला उहीच आदमी ह जानही।" 

    अतका सुनतेच मोर बात ल फाॅंक दिस अउ तोर बिरादरी के मन का कहिथे तेला सुन कहिके फेर शुरू होगे - " केंद्र सरकार ह डीए के घोषणा कर डरिस, राज्य सरकार ह सुते हे, सातवाॅं वेतनमान के एरियर्स बाॅंचेच हे, को जनी येमन कब सुलमुलही। आज प्रार्थना होय के बाद थोकिन देरी म का स्कूल नइ अमरेंव, बड़े गुरूजी उपदेश झाड़ दिस। का मिहिच ह देरी म अमरत होहूॅं।अपन ह अनुदान के पैसा के का करथे कोनो ल नइ दिखत हे का..।बेटा के मोबाइल दुकान म एककन बैठ गेंव त देरी होगे त कोनो बड़े जन अपराध थोरे कर डरेंव। मैडम मन साढ़े तीन बजे मोटर चढ़े बर निकल जथे उनला बोले बर सुपुक्की माॅंगथे।एक ल माई अउ एक ल मोसी..।जब जुलाई महीना म इनकर ले सॅंघरबे तब इन्क्रीमेंट के सेती ग्रास अउ नेट ल सेट करत बीजी मिलथें।"

   मॅंय कहेंव -" सबके अपन हिसाब- किताब होथे, दुःख पीरा होथे,ओला एक दूसर ले गोठियाय म जी हल्का होथे जी।"

अतका सुनके फेर शुरू होगे -" का तुम्हरेच कर दुख पीरा रहिथे,दूसर कर नइ रहय। चौबीस घंटा समस्या ल नरी म बाॅंध के घूमत रहिथव, बाल्टी,सुपली ल कते दुकान ले बिसाय हस, फिनाइल ल कहां ले लाय हस। पदोन्नति के समय-  पदोन्नति लेय म बेसिक म अंतर होही कि नइ, पद- पैसा म कतिक के फायदा होही..। चुनाव के समय -  तोर एक नंबर कोन हे, दू नंबरी कोन हे,पीठासीन ह बने हे ते गिनहा..। चुनाव के बाद  - तोर पोलिंग पार्टी वाले मन कैसे रहिन, पार्टी -वार्टी चलिस।हमर बर सरपंच ह जुगाड़ करत रहिस फेर भोकवा पीठासीन ह मना कर दिस,का बताव भाई जीव चुरमुरागे।तुम्हर मन के इही गोठ ह जादा चलथे।"

             बात ल लमियावत कोमल फेर बफलिस-" कहना तो नइ चाही फेर ये तो दर्पण म दग-दग ले दिखत हे कि आप मन के लोग -लइका बर सरकारी स्कूल ह अस्पृश्यता केंद्र बनके रहि गेहे। खुद सरकारी स्कूल म पढ़ाथो अउ अपन लइका ल प्राभेट म भर्ती कराथो।अउ लइका बर सरकारी नौकरी के सपना पालथो।जे डहर नजर घुमाबे उही डहर तुम्हर मनके कथनी अउ करनी के पोल खुलत दिखथे।हाथी के दाॅंत खाय के अउ देखाय के अउ। सकल समाज ह चाहथे कि आप मन के मान सम्मान म कोई कमी झन आय फेर येकर बर छत्तीस-तिरसठ खेलना छोड़ आपो मन ल चिंतन करे के जरवत हे।

     कोमल के ठाढ़ झटका के बिझियाहा झार ल सहत भर ले सहेंव फेर कहेंव -" देखव जी कोमल भैया आपके अइसन कहना ठीक नइहे,कतको मास्टर के लइका मन स्कूल म पढ़त हे अउ अपन जिनगी ल गढ़त हे ।"

       कोमल अतका म फेर जुबानी हमला करिस -" हम जानत हन जी जे गांव के तीर म कोनो प्राभेट स्कूल नइ रहय उही मन आय-जाय के मजबूरी म सरकारी म पढ़ाथें नइते सरकारी आदमी ल सरकारी स्कूल ले भारी एलर्जी रहिथे। आप मन मानो चाहे झन मानो इही सबले बड़े सच्चाई हे। चाहे नेता होवय चाहे अधिकारी, सबके इही हे बीमारी। एकादे झन बिरला मिलही जेन अइसन नइ होही। बाकी अपन काम बनता, चूल्हा म जाय जनता..। तेकर सेती हमर कहना हे ,इही मास्टरी के परसादे तुम्हर घर परिवार म सुख -सुविधा हावय। त सरकारी स्कूल के अइसे बनौती बनादे कि प्राभेट वाले मन घलव झाराझार सरकारी स्कूल म आके भर्ती हो जाय ।"

         मोर सबर के आगू म कोमल के झटका के झार ह सजोर रहिस तभे तो दिनेश  के जगा ये मोनोलाॅग के टेंशन शिविर म मॅंय फॅंसगे तिलमिलात रहेंव। मजबूरी म अइसे अरझे रहेंव कि मोरे विभाग के दही के मही करइय्या कोमल के तर्क के आगू म मॅंय बोटांची हो गेंव। 


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

बासी तिहार-*

 *बासी तिहार-*


छत्तीसगढ़ के बासी-


            गरमी के दिन अइस तहन जेवन म बासी ह अब्बड़ सुहाथे। रातकुन तो कइसनो करके भात ल खा डारेबे फेर दिनमान बासीच ह बने लगथे। गरमी दिन म भात ल खाय म मन नई भरे। कहूं बासी मिलगे त ससन भरले खवाथे। रतिया के बचे भात ल पानी म बोर के रखे ले, बिहने के होत ले बासी बन जाथे। अउ भात म तुरते पानी डार के खाथे तेला बोरे बासी कहिथे। येकर संग म चेंच भाजी, पटवा भाजी, सुकसा भाजी अउ अमारी के भुरका, गोंदली होगे तहन फेर का कहना हे। बासी म एककनी नून डारे ले सबो पसिया ह सपसपले पिया जाथे। सियान मन पहली कहय जेहा जादा पसिया पीथे ओकर चुन्दी ह जल्दी बाढथे। कोनो मुंडा रहय तेला पसिया पीये बर जादा जोजियाय।  बासी ह आजकल के दिन म अमृत बरोबर लगथे। पेट अघा जाथे, मोर छत्तीसगढ़ के बोरे बासी म।


पहली लोगन मन बासी के खवईया मन ल अनपढ़ अउ गंवार गंवईया मन के जेवन समझे। वोमन ल का पता होही, छत्तीसगढ़ के बासी के गुण ह। जबले वैज्ञानिक मन ह बासी बर शोध करके बताईस हवे कि बासी म कतका विटामिन हवे। तबले ऐदे कतको हिनमान करईया मन के मुरझा मरीस हे। अउ बासी के गुण ल जनिन-मानिन हे। हमर सियान मन वैज्ञानिक मनले पहली के कहत हवे कि बासी म अब्बड़ विटामिन भरे हवे। फेर कोनो नई मानत रिहिन। सड़े हुए खाना कहिके मजाक उड़ावत। हमर सियान मन कोनो वैज्ञानिक के कम नई रिहिन। अब पता चलिस हवे कि सियान मन के गोठबात ह धियान देके लईक होथे। 


हमर घर आज घलो सबो झन बासी खाथन। लईका मन बासी खाये बर अगवाय रथे। कहूं एकात झन बर कम होथे त बासी ल खाये बर झगरा घलो होथे। मोर दाई ह बारो महीना बासी ल बने कथे। बरसात अउ ठंडा दिन म बासी बांचथे तेला कोई ल खावन नई देय। गरमी दिन आये के बाद दिनमान एको दिन भात नई खाये, बासीच ल खाथे। कोनो दिन बासी बर रतिया के भात नई बांचे त अपन बहु मन ल अब्बड़ खिसियाथे। महुवा बीने ल जावन त बासी ल धरके जान अउ मंझनिया महुआ के छैईया म बैठ के बासी ल झड़कन। अउ साग बर कटोरी के जरूरत नई होय, महुआ के पाना म साग ल धर के खावन।


छत्तीसगढ़ राज के सपना देखईया  डॉ. खूबचंद बघेल जी घलो बासी के गुण गावत केहे रिहिन--


बासी के गुण कहुँ कहाँ तक,

इसे न टालो हाँसी में,

गजब बिटामिन भरे हुये हैं,

छत्तीसगढ़ के बासी में।


बासी म ब्लडफ्रेसर घलो बने होथे। शरीर के तापमान ल बरोबर करे के काम करथे। गरमी के दिन म बासी खवईया मन ल झोला-झांझ घलो नई धरे। बासी ह अब्बड़ पाचुक होथे। कोनो-कोनो मन तो दही-मही ल मिलाके घलो खाथे। बासी बर साग के घलो जरूरत नई होय। निरवा नून संग खवा जाथे। नहिते पलपला म भूंजे सुक्खा मिरचा काफी हे। कढ़ी साग होगे तहन अउ झन पूछ, बासी के सुवाद ल। कच्चा मिरचा अउ गोंदली संग अब्बड़ गुरतुर लगथे बासी ह।


जनकवि कोदूराम दलित जी ह अपन कविता म बासी के गुणगान करत महतारी-बेटा के गोठबात ल सुघ्घर ढंग ले लिखे हवे-


दाई! बासी देबे कब? बेटा पढ़ के आबे तब।


पढ़ लिख के दाई, मैं ह हो जाहूँ हुसियार,

तोला देहूं रे बेटा, मीठ-मीठ कुसियार,

खाबे हब-हब,

मजा पाबे रे गजब,

बेटा, पढ़ के आबे तब,

दाई,बासी देबे कब....


दिनभर काम करईया मन बर बासी ह जादा पुस्टई होथे। घर ले दुरिहा काम मे जवईया मन टिपिन म  बासी अउ साग संग आमा के चटनी धरके जाथे। मंझनिया के खाये के बेर हाथ-गोड़ लमा के बासी जइसे अमृत के स्वाद लेवत अघात ले खाथे।


पीछू बछर छत्तीसगढ़िया मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी ह 1 मई मजदूर दिवस के दिन बासी दिवस मनावत सब झन ल बासी खाये के आरो देय हे। मजदूर दिवस म छत्तीसगढ़ के कमईया संगवारी मन के प्रिय भोजन के शोर करके छत्तीसगढ़ी भोजन बासी के मान बढाईस  हे।  हेमचन्द यादव दुर्ग विश्वविद्यालय के कुलपति आदरणीय अरुणा पल्टा जी ह घलो बासी के महिमा बतावत बासी खाय ल कहत रिहिस हे। छत्तीसगढ़िया मन तो बासी ल रोज खावत हवे। अब जम्मो मंत्री, नेता अउ अधिकारी अउ बड़हर मनखे मन ल घलो बासी खाये के शुरूवात करना चाही। सिर्फ बासी दिवस के दिन फोटो खींचवात खाये म थोड़ी बनही। अब शहर के बड़े-बड़े होटल मन म घलो बासी मिले के शुरुआत होना चाही। ताकि हम छत्तीसगढ़िया मन बिना झिझके कहचों होय, अपन जेवन ल खाये मन झन लजावन। जम्मो झन बासी ल खाबोन तभे तो बासी के मान ह बाढही।



           हेमलाल सहारे

मोहगांव(छुरिया)राजनांदगांव

शब्द साधक डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा

 शब्द साधक डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा 

       1 मई मजदूर दिवस तो आय फेर एकझन लिखइया डॉ . पालेश्वर प्रसाद शर्मा के जन्मदिन घलाय तो आय । उन कलम हांथ मं ले के साहित्य के मजदूरी च तो करत रहिन । छत्तीसगढ़ी , हिंदी गद्य के मुसाफिर पाठक मन ल सुसक झन कुररी सुरता ले , तिरिया जनम झनि देय , गुड़ी के गोठ , सुरुज साखी हे , नमोस्तुते महामाये , छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक इतिहास , छत्तीसगढ़ के खेती किसानी , छत्तीसगढ़ के लोकोक्ति , मुहावरे आदि कृति भेंट करिन । 

     उन लगभग पचास साल तक छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक इतिहास ल लोककथा , जनश्रुति , लोकपरम्परा , लोकगीत , लोकगाथा , लोकोक्ति मन ल निरख परख के अपन रचना मन के माध्यम से सम्प्रेषित करे के उदिम करत रहिन । उंकर शब्द साधना के बानगी इही कृति मन तो आंय फेर ध्वन्यात्मक शब्द मन के प्रयोग , ललित निबंध के रवानगी सराहनीय , अनुकरणीय हे । शोध प्रबंध मं तीन हजार दू सौ छप्पन छत्तीसगढ़ी शब्द मन के संकलन हे , तीन सौ हाना ल जघा मिले हे त छतीसगढ़ के बावन हजार वर्गमील के भुइयां मं रहइया , बसइया मनसे मन के जीवन संग खेती बारी करइया किसान मन के कृषि संस्कृति के लेखा जोखा घलाय तो शामिल हे । 

      उंकर कहानी के पात्र के मंनोभाव सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होवत चलथे त पाठक पड़थे मनोविश्लेषण जेहर असाधारण मन के असाधारण अंतः वृत्ति मन ल विश्लेषित करथे । रहिस बात नारी पात्र मन के त कोनो मेर उंकर नायिका अबला , बिचारी के रूप मं नइ दीखय । प्रेम मं जीवन निछावर करथे फेर अन्यायी के हाथ अपन गरब गुमान ल बेचय नहीं । अइसे लागथे के बिधाता हर डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा के पुरुष देंह मं हृदय तो नारी के देहे रहिस । हिंदी छत्तीसगढ़ी दूनों भाषा मं बरोबर अधिकार रहिस तभो कहे च बर परही के उन छत्तीसगढ़ी साहित्य के घन छांव वाला बर पेड़ रहिन । आधुनिक छत्तीसगढ़ी के पहिली कहानी" नांव के नेंह मं "ल माने जाथे  ...जेहर बिलासपुर शब्द के एक एक अक्षर ल लेके एक एक अंश मं लिखाए हे । 

         छत्तीसगढ़ी भाषा ल समृद्ध बनाये बर उंकर योगदान ल कभू भुलाए नइ जा सकय । 

आज उनला मन प्राण ले प्रणाम करत हंव । 

   सरला शर्मा

बटकी म बासी अउ चुटकी म नून !!

 बटकी म बासी अउ चुटकी म नून !!




बटकी म बासी  अउ चुटकी म नून

मैंहँ गावथौं ददरिया तैं कान देके सुन रे, चना के दार

चना के दार रानी, चना के दार राजा

चना के दार गोंदली कड़कत हे रे 

टुरा हे परबुधिया होटल म भजिया धड़कथे रे ..... 

येला सुनके कतकोन जहुँरिया संगवारी मन हँ तइहा के बालापन बेरा म लहुटगे होही अउ बटकी के बारा म रखे नून चाँटत बासी बोजत सुरता के उलानबाँटी खेले लगे होही। अभीन के परबुधिया मन बर तइहा के बात ल बइहा लेगे। उन न बटकी जानय न बासी। उन्कर बर झिल्ली म महीना भर के भराए नड्डा मुरकू ताजा हे, फेर बिटामिन सम्राट बासी बसियाहा हे। ये सब शिक्षा, संस्कार अउ नीति के बनियायीकरण-व्यापारीकरण के प्रभाव हरे। नान्हे लइका खेलत-कूदत, देखत-सुनत, संगी-संगवारी अउ तीर-तखार के बोली-बतरस अउ रहन -सहन ल अपना-अँगोछ लेथे।

मनखे के रहन-सहन, खान-पान, बोली -बतरस अउ पहिरावा-ओढ़ावा हँ एक समाज ले दूसर समाज म अइसेने खेलत-कूदत, मेल -मिलाप ले संचरथे। संगत के असर, जादा नहीं ते थोरहे, फेर होथे बजुर।

पढ़त पइत संगी-जहुँरिया एक दूसर ल कुड़कावत कहन- ‘अरे ! तैं का जानबे रे बोरे-बासी खवइया।’

इही नान्हे-नान्हे लइकई गोठ ल लेके कुछ चुचरू-बुचरू सयाणा मन हमार सियान मन ल कुड़काए लगिन। सियान मन सहिथे तेकर लहिथे काहत लहा लिन। हमन परबुधिया भइगेन। होटल म हदर-हदर भजिया धड़के लगेन, अमटहा मैगी म मइन्ता भर मजा उड़ाए लगेन।

ये मुड़पेलवा मैगी कोन जनी काके बने रिथे। कब के बने रिथे। सनपना म सकपकाए मुँह लुकाए घुसरे रहिथे अउ बड़ा टेस मारथे। 

फेर आज ले मोला ये समझ नी आइस कि रतिहा के बासी ल गाँव अउ गँवार के जिनिस कहइया मन बर तीन चार दिन के फुलफुलहा खमीर उठे फफुँदियाए बसियाहा ब्रेड (डबलरोटी) कइसे ताजा हो जथे। रात भर के बोरे पिसान ले बने बोजर्रा दोसा काबर, कतेक अउ कइसे पुस्टई हो जथे।

हमर सियान मन बासी खावत तरगे। उन्कर तीरन कभू बड़का बीमारी बेलबेला नइ पाइस। उन आठो काल बारो महीना बासी खाके सरीदिन टन्नक रिहिन। हम परबुधिया रतिहा के बने-बाँचे गहूँ के रोटी ल तको बासी हे कहिके नइ खावन। उही सेति आज के पीढ़ी पुलपुलहा-पिनपिनहा अउ पोंगपोंगहा कस पँगुरहा होगे हे। थोरके म बहुते काँखे लगथे। बीपी, सुगर, डाइबिटिज अउ नइ जाने अइसनेहे कतको अकन बीमारी के फाँदा म फँदाए, गोली -गाठा म लदाए जिनगी के बोझा ल हँफर-हँफर के डोहारत हे। 

सही म देखे जाय त मैगी अउ ये किसम -किसम के खई-खजाना अनदेखना, कायर अउ जलनकुकड़ा बेवसाय के कीरहा चाल हरे। जऊन विग्यापन के दुस्टई देखावत, बासी के पुस्टई ल बंचक अउ बस्सावत धंधा के बाँगा म बोरके रख दिस। गंदा होय के मंदा होय, धंधा, धंधा होथे। धंधा के ये उभरौनी म लालची मन दाहरा के भरोसा बाढ़ी खावत देश, दुनिया अउ समाज ल दफोड़त रहिथे। ये भकमुड़वा धंधा हँ जयचंद ले कम नई होवय। जब देखथे अपन बढ़वार देखथे। देश, समाज अउ विकास ले येला कोनो मोह, मया अउ मतलब नइ होवय। इतिहास साखी हवय जयचंद मन के सेति ही कतकोन बड़का, हुँड़का अउ मुड़का मन पोंगा-पँगुरहा लहुटगे।

बेरा कतकोन बंचक, पंचक अउ नवटप्पा बनके तप लेवय, सत सरीदिन पोठ अउ ठाहिल रहिथे। ये बात सिध होगे हे कि जऊन बासी ल गरीब, गँवार अउ घोंचू मन के खाए के जिनिस काहय उही बासी ले बड़का कोनो पोठहा नास्ता नइ हे।

आज अमेरिका घलो मानगे, जानगे अउ तान तको गे। हमरो गरब -गुमान तनियागे। आज छत्तीसगढ़ के छाती छप्पन इंच अउ मेंछा पैंसठ इंच लामगे।

सुनके अबड़ खुशी होइस। बब्बा हो ! तुँहर जय बोलाववँ, हब्ब, हब्ब। तुँहर नाक तो सरीदिन ऊँच रिहिसे। नकटा, बैचकहा अउ परबुधिया हम भए रहेन। जऊन तुँहर बनाए रद्दा म चल सकेन न ओकर मान रख सकेन, विकसित, सुजानिक अउ वैग्यानिक कहावत हवन। तुँहर अबोला ग्यान- विग्यान अउ नेंग, नीत-नियम के आगू म हमर झोला भर तकनीक के टिंगटिंगावत उड़न खटोला तोला भर के बरोबर हे।

रतिहा के भात ह पसिया अउ पानी डारके बोरे ले बिहिनिया बासी कहाथे। येला चिटिक नून डारके दही, गोंदली जउ चटनी संग खाए म बड़ मजा आथे। 

आमा के अथान अउ दही होगे त तो झन पूछ, बासी हँ अटारीवासी मनके छप्पनभोग के आगू म तको राजकुँवर बन जथे। राजकुँवर तो हे फेर अतेक अप्पत, अटेलिहा अउ अहंकारी तको नइहे कि दही, गोंदली अउ अथान के सैनिक संग नइ रहिही त जिनगी के जंग म जोजवा पर जही। जुच्छा नून संग तको बासी सुवाद अउ सेहत बर सरस मथुरा-काशी हे। 

बासी म विटामिन- 11 अउ विटामिन -12 के तो नंगते पौ-बारा होथे। टरटर -टरटर ले बासी रटरट -रटरट ले देंह-पाँव। एकर खाए ले पाचन क्रिया पोठ होथे अउ अचपचन नाम के बीमारी किरिया खाके दूरिहा जथे। येकर आगू म गैस अउ गैस्टिक के हवा-पानी बंद हो जथे। साधारण भात ले 60 प्रतिशत जादा ताकत बासी ले मिलथे। बासी के ताकत के आगू म फल-मेवा मन मुँह ताकत अगल-बगल झाँकत बइठे रहि जाथे। बीपी  अउ हाइपरटेंसन के टेंसन पेंसन झोंके बर रेंग देथे। बासी खाए ले ओंट नइ फटय अउ शरीर के ठंडक नइ हटय। येमा बिटामिन, कैल्सियम, आयरन अउ पोटेशियम ठोमहा-ठोमहा टोम-टोम ले भराए रिथे।

त चलव गुरू ! बासी दमोरते हैं।



धर्मेन्द्र निर्मल

9406096346

समझ अपन अपन

 समझ अपन अपन 


                    एक दिन के बात आय ... एक झन साहेब हा बिहाने बिहाने ले हमर घर अमर गिस अऊ हमर दई ला पूछे  लगिस  - काकी तुँहर घर बासी हाबे का । हमर महतारी हा जइसे हव किहिस तहन तुरते साहेब हा केहे लगिस – महूँ ला एक कनिक देतेव या काकी .. । मोर महतारी हा हव किहिस अऊ भितरि डहर निंगत अपन बहू ला पताल के चटनी घँसरे बर कहत .... पोता दसा डरिस अऊ हाथ धोके बटकी म बासी हेर डरिस .. मही डार डरिस अऊ साहेब ला  भितरि म लाने बर चल दिस । 

                    साहेब पूछिस – भितरि डहर काये करबो काकी । मोर महतारी किथे – बासी ला भिंयाँ म बइठके खाथे बेटा । भितरि डहर पोता दसा डरे हँव ... उही म बइठके खाबे । साहेब किथे – मोला बासी थोरेन खाना हे काकी । महतारी पूछिस – त काये करबे बेटा । येला काबर मांगे । साहेब किथे – अपन संग लेगहूँ कहिके मांगे हँव काकी । महतारी पूछिस – अपन घर लेजके खाबे तेकर ले हमरे घर नइ खा डरतेच बेटा । तोर भउजी हा पताल के चटनी घँसरत हे । साहेब किथे – मोला थोरेन खाना हे काकी तेमा । दई पूछिस – त बहुरिया खाही का बेटा । साहेब किथे – उहू नी खाय .. ओला तो एक कनिक म जुड़ सर्दी धर लेथे । दई फेर किथे – त काये करबे बेटा । साहेब किथे – रेस्ट हाउस लेगहूँ काकी । उहाँ मोर ले अऊ बड़े बड़े साहेब मन आही । दई किथे – अई बड़े बड़े साहेब मन घला बासी खाथें गा । साहेब बताय लगिस – खाये बर नोहे काकी ... फोटू खिंचवाय बर आय या ... । दई पूछ पारिस – अई .. हमन अभू तक बासी ला फकत खाये के होही कहत रेहे हन .. येहा फोटू खिंचवाय के घला काम आथे तेला नइ जानत रेहे हँव बेटा .. । मोर एक ठन सवाल के अऊ जवाब देतेस का बेटा – येमा फोटू कइसे खिंचवाथव । साहेब कट्ठलगे ‌। हाँस लिस तब बतइस –  बासी खाये के नाटक करत फोटू खिंचवाके जगह जगह देखाबो तब .... कर्णधार के नजर म आबो अऊ तभे नौकरी चाकरी म प्रमोशन पाबो या काकी .... ।  

                    मोर दई हा किथे – बासी खावत हमरो मन के फोटू खिंचवा देतेव ... हमू मन ला थोक बहुत फायदा मिल जतिस छोकरा । साहेब किथे –  बासी खावत तोर फोटू हा काकरो बैठक खोली म राखे लइक नइ रहय काकी ... तैं जनता अस ... तोर काय प्रमोशन ... । ओतके बेर हाथ म चटनी के थरकुलिया धरे मोर बाई हा पहुँचगे । ओहा केहे लगिस – बासी खावत फोटू के सेती प्रमोशन के बात हा लबारी आय बाबू ... अइसन होतिस त बीते बछर तुँहर साहेब ला सस्पेंड काबर होय ला परिस । साहेब बतइस – ओहा गलत जगा म फोटू डार पारिस भऊजी । ओला देख के सब झन इही समझिन के गरीब के खाना ला नंग़ा के खावत हे तेकर सेती सस्पेंड होगिस । मोरो बाई के याददास्त बहुत तगड़ा रिहिस खास करके अइसन मामला म जेमा ओहा काकरो उपर उपकार करे रिहिस । ओहा साहेब ला फेर पूछिस – बीते बछर हमर घर ले बटकी भर बासी लेगे रिहिस अऊ खाय रिहिस तेला प्रमोशन तो धूर कन्हो पूछे बर तको नी अइन ... बपरा हा पाख भर सर्दी के मारे जपजपागे रिहिस । कोरोना होगे होही कहिके कन्हो ओकर तिर म नी ओधत रिहिन । साहेब किथे – ओमा बासी के कोई दोष निये भऊजी । ओला केवल फोटू भर खिंचवाना रिहिस ... कभू देखे निये तइसे हबर हबर ... पेट के फूटत ले कोट कोट ले खा डरिस । ओतो अच्छा होइस ... येला बड़े साहेब मन नइ जानिन निहिते ...  बासी ला बदनाम करे के जुर्म म ओला घला सस्पेंड कर दे रहितिन । 

                    मोर बई फेर पूछिस – तहूँ मन तो बीते बछर खाय रेहेव ... फेर जे तिर रेहेव तिही तिर ले एक इंच आगू नी बढ़ेव ... ये बछर काय तीर मार लेहू तेमा ... । बासी के जुगाड़ तूमन करथव  अऊ प्रमोशन दूसर के खाता म चघ जथे । साहेब किथे – सब अपन अपन नसीब आय भउजी । वास्तव म  बासी हा केवल प्रतीक आय ... खाना कुछ अऊ हे । मोर दई के मुहुँ फरागे । ओहा केहे लगिस – अबड़ धँवाय छोकरा ... । बासी हा खाय के नोहे ... प्रतीक आय कहिके हमला काबर भरमावत हस । येहा केवल छत्तीसगढ़ अऊ छत्तीसगढ़िया के प्रतीक आय । साहेब किथे – इहीच तिर फरक पर जथे काकी । बासी खाय के असली मतलब कुछ अऊ आय जेला समझइया मन समझ जथे अऊ नइ समझइया मन बटकी म हाथ डारके फोटू खिंचावत बासी ला प्रमोट करे के उदिम करत खुद के प्रमोशन के सपना देखथें । साहेब बहुत गम्भीर होके बात बताए लगिस – बासी खवई  ला समझना बड़ कठिन बुता आय । एक तो बपरा कर्णधार मन .... अतेक बछर पाछू कुर्सी अमराये हे तेकर सेती दूध म जरे कस मही ला फूँक फूँक के पियत हे । ओमन पहिली कस बदनामी नइ चाहय तेकर सेती बासी खाये के अलग अलग तरीका अऊ मतलब अलग अलग मनखे बर बना देहे । छोटे मन बर भात के जुगाड़ नइ हो सकत हे .. त ओमन ला कलेचुप बासी खाके रहना हे । बड़े साहेब मन बर बासी खाये के मतलब ये आय काकी के .... अभी येती ओती के न कमावव ... न अइसन कमई बर ध्यान देवव ... हमर आय के पहिली जतका कमाके राखे हाबो तिही ला उपभोग करव । इँकर मन बर बासी हा जुन्ना कर्णधार के समे के कमई आय । उही  बासी ला जतका पाय ततका झड़कव । 

                    मोरो बई हा खुबेस के पुछइया ताय । ओहा पूछे लगिस – ओतो समझ आगे बाबू ... फेर कर्णधार मन .. अपन मनखे ला घला बासी खाये के हिदायत देवत हाबे । इँकर तिर बासी लइक का होही ... इन तो अभी अइन हे ... इनला कमाये के मौका तो मिलबेच नइ करे हाबे । साहेब किथे – इँकर बासी के बात हा गूढ़ रहस्य आय । इही मन देश ला आजाद करइया के चेला चंगुरिया आवन कहिके ... अपन डिही डोंगर म सकलाये उही कमई ला खाना हे अइसे सीधा सीधा नइ  कहिके ... बासी खाव बासी खाव ... कहत रहिथे । तैं हम अइसन बात ला आसानी से काय जानबो । ये बात ला फोर के केहे नइ जा सकय .. जेन भी संगवारी इही गूढ़ रहस्य ला समझ जथे ... तेहा उही ला बासी के रूप म खावत हमर उपर राज करे के उदिम जुगाड़त हे । 


हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन . छुरा

बासी जब सम्मानित होही - छत्तीसगढ़ सम्मानित होही

 "बासी जब सम्मानित होही - छत्तीसगढ़ सम्मानित होही" 


"बासी" खानपान के आइकॉन मात्र नोहय, एहर हर उपेक्षित छत्तीसगढ़िया के प्रतीक आय शायद तभे लक्ष्मण मस्तुरिया जी कहे रहिन -


"ओ गिरे थके हपटे मन अउ परे डरे मनखे मन

मोर संग चलव रे….


अलग-अलग दशक मा छत्तीसगढ़ के कवि मन घलो बासी ला सम्मानित करके छत्तीसगढ़ ला सम्मानित करे के उदिम करे रहिन। आवव, देखव…कोन दशक मा कोन-कोन कवि मन बासी ला कइसे सम्मानित करे हवँय………..


"छत्तीसगढ़ी काव्य मा -  छत्तीसगढ़ के बासी"


अमरीकन न्यूट्रीशन एसोसियेशन के कहना हे कि ‘बासी भात’ मा आयरन, पोटेशियम, कैल्शियम तथा विटामिन घलो मिल जाथे। एमा विटामिन बी-12 घलो रहिथे।.बासी के वैज्ञानिक अउ अंग्रेजी नाम हे - होल नाइट वाटर सोकिंग राइस। अमरीका के शोध कहिथे कि बासी खाए ले गर्मी और लू नइ लगय। हाइपरटेंशन अउ बीपी घलो नियंत्रण मा रहिथे। नींद बर घलो ए बढ़िया होथे। अमेरिका का कहिथे, हम ला का लेना देना हे ? हमर छत्तीसगढ़ मा बासी एक परम्परा बन गेहे। कुछ शहर वाला मन टेस बताए बर भले नइ खाँय फेर बहुत झन शहर मा अउ जम्मो झन गाँव मा नेत नियम ले बासी खाथें।


छत्तीसगढ़ के कवि मन घलो अपन कविता मा बासी के महिमा ला गावत रहिथें। आवव कुछु कवि मन के कविता के झलक देखे जाय - 


सब ले पहिली लोकगीत ददरिया सुनव - 


बटकी मा बासी अउ चुटकी मा नून

मँय गावsथौं ददरिया, तँय कान दे के सुन।


जनकवि कोदूराम "दलित" के कुण्डलिया छन्द मा बासी के सुग्घर महिमा बताए गेहे - 


बासी मा गुन हे गजब, एला सब झन खाव।

ठठिया भर पसिया पियौ, तन ला पुष्ट बनाव।।

तन ला पुष्ट बनाव, जियो सौ बछर आप मन

जियत हवयँ जइसे कतको के बबा-बाप मन।

दही-मही सँग खाव शान्ति आ जाही जी - मा

भरे गजब गुन हें छत्तिसगढ़ के बासी मा।।  


जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी के सुप्रसिद्ध गीत चल चल गा किसान बोए चली धान असाढ़ आगे गा, मा बासी के वर्णन हे -

धंवरा रे बइला कोठा ले होंक दै।

खा ले न बासी बेरा हो तो गै।।


भिलाई के कवि रविशंकर शुक्ल के सुप्रसिद्ध लीम अउ आमा के छाँव, नरवा के तीर मोर गाँव के एक पद बासी ला समर्पित हे - 


खाथंव मँय बासी अउ नून, 

गाथंव मँय माटी के गुन। 

मँय तो छत्तीसगढ़िया आँव।।


खुर्सीपार भिलाई के कवि विमल कुमार पाठक के कविता मा बोरे बासी के सुग्घर प्रयोग देखव - 


छानी चूहय टप टप टप टप

परछी मं सरि कुरिया मा।

बोरे बासी रखे कुंडेरा मा, 

बटुवा मं, हड़िया मा।।


गंडई के लोकप्रिय कवि पीसी लाल यादव के गीत मा गँवई के ठेठ दृश्य देखव - 


चँवरा में बइठे बबा, तापत हवै रऊनिया।

चटनी बासी झड़क़त हे, खेत जाय बर नोनी पुनिया।।


शिक्षक नगर, दुर्ग के कवि रघुवीर अग्रवाल "पथिक" के कविता मा बासी के प्रयोग देखव - 


जनम धरे हन ये धरती मा, इहें हवा पाए हन।

गुरमटिया चाँउर के बासी, अउ अँगाकर खाए हन।।


छन्द के छ परिवार के कवि मन घलो अपन रचना मा बासी के वर्णन करिन हें - 


कचलोन सिमगा के छन्द साधक मनीराम साहू "मितान" के रचना मा पहुनाई ला देखव -


हाँस के  करथे पहुनाई ,

एक लोटा पानी  मा।

बटकी भर बासी खवाथे,

नानुक अथान के  चानी।

कभू तसमई कभू महेरी,

भाटा खोइला मही मा कढ़ी जी ।


चंदैनी बेमेतरा के छन्द साधक ज्ञानुदास मानिकपुरी के घनाक्षरी के अंश मा बासी के महिमा देखव - 


नाँगर बइला साथ, चूहय पसीना माथ

सुआ ददरिया गात, उठत बिहान हे।

खाके चटनी बासी ला,मिटाके औ थकासी ला

भजके अविनासी ला,बुता मा परान हे।


सारंगढ़ के छ्न्द साधक दुर्गाशंकर इजारदार कहिथें कि चैत के महीना मा सबो झन बासी खाथें - (रोला के अंश)


अड़बड़ लगथे घाम, चैत जब महिना आथे

रोटी ला जी छोड़, सबो झन बासी खाथें।


बलौदाबाजार के छन्द साधक दिलीप कुमार वर्मा के कुण्डलिया छन्द के अंश मा बासी के प्रयोग -


खा के चटनी बासी रोटी अब्बड़ खेलन।

गजब सुहाथे रोटी बेले चौकी बेलन।।


डोंड़की,बिल्हा के छन्द साधक असकरन दास जोगी के उल्लाला छन्द मा बासी के स्वाद लेवव - 


बोरे बासी खास हे, खाना पीना नीक जी।

गर्मी लेथे थाम गा, होथे बोरे ठीक जी।।


हठबंद के छन्द साधक चोवाराम "बादल" के रोला छन्द मा बासी के महिमा - 


बासी खाय सुजान, ज्ञान ओखर बढ़ जावय

बासी खाय किसान, पोठ खंती खन आवय।

बासी पसिया पेज, हमर सुग्घर परिपाटी

बासी ला झन हाँस,दवा जी एहा खाटी।।


बाल्को मा सेवा देवत ग्राम खैरझिटी के छन्द साधक जितेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया" बासी गीतिका छन्द मा देखव - 


चान चानी गोंदली के, नून संग अथान।

जुड़ हवै बासी झड़क ले, भाग जाय थकान।।

बड़ मिठाथे मन हिताथे, खाय तौन बताय।

झाँझ झोला नइ धरे गा, जर बुखार भगाय।।


खैरझिटिया जी के आल्हा छन्द के एक अंश - 


तन ला मोर करे लोहाटी, पसिया चटनी बासी नून।

बइरी मन ला देख देख के, बड़ उफान मारे गा खून।।


धमधा मा कार्यरत ग्राम गिधवा के युवा छन्द साधक हेमलाल साहू के गीतिका छन्द के अंश देखव - 


लान बासी संग चटनी, सुन मया के गोठ गा।

खा बिहिनिया रोज बासी, होय तन हा पोठ गा।।


एन टी पी सी कोरबा के छन्द साधिका आशा देशमुख के चौपाई के एक अर्द्धाली मा बासी अउ अथान के संबंध के सुग्घर बखान - 


आमा लिमउ अथान बना ले।

बासी भात सबो मा खा ले।।


बिलासपुर के छन्द साधिका वसंती वर्मा के चौपाई छन्द के एक अर्द्धाली मा बासी के प्रयोग -  


लाली भाजी गजब मिठाथे।

बासी संग बबा हर खाथे।।


नवागढ़ के छन्द साधक रमेश कुमार सिंह चौहान के एक गीत के हिस्सा मा बासी के प्रयोग देखव - 

 

जुन्ना नाँगर बुढ़वा बइला, पटपर भुइँया जोतय कोन।

बटकी के बासी पानी के घइला, संगी के ददरिया होगे मोन।।


दुरुग के छन्द साधक अरुण कुमार निगम के छन्द मा बासी के महिमा देखव - 


मँय  बासी हौं भात के, तँय मैदा के पाव।

मँय  गुनकारी हौं तभो, तोला मिलथे भाव।। 

(दोहा)


बरी बिजौरी के महिमा ला।पूछौ जी छत्तिसगढ़िया ला।।

जउन गोंदली-बासी खावैं। सरी जगत बढ़िया कहिलावैं।।

(चौपाई) 


छत्तिसगढ़िया सबले बढ़िया , कहिथैं जी दुनियाँ वाले।

झारा-झार नेवता भइया , आ चटनी-बासी खा ले।।

(ताटंक)


माखनचोर रिसाय हवे कहिथे नहिं जावँ करे ल बियासी

माखन, नाम करे बदनाम अरे अब देख लगे खिसियासी 

दाइ जसोमति हाँस कहे बिलवा बिटवा तँय छोड़ उदासी  

श्री बलराम कहे भइया  चटनी सँग खाय करौ अब बासी

(सवैया)


छत्तीसगढ़ी भाषा के हर कवि के एक न एक रचना मा बासी के वर्णन जरूर मिलही। आज मोर करा उपलब्ध रचना मन के उन डाँड़ के संकलन करे हँव जेमा "बासी" शब्द के प्रयोग होए हे।


आलेख - अरुण कुमार निगम

             आदित्य नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़

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"बोर बासी-भात" विषय पर छंदबद्ध रचनाएँ -


कुण्डलिया छन्द -


खावव संगी रोजदिन, बोरे बासी आप |

सेहत देवय देंह ला, मेटय तन के ताप ||

मेटय तन के ताप, संग मा साग जरी के |

भाथे अड़बड़ स्वाद, गोंदली चना तरी के ||

खीरा चटनी संग, मजा ला खूब उडा़वव |

पीजा दोसा छोड़, आज ले बासी खावव ||


सुनिल शर्मा "नील"

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बरवै छन्द - 


पॉलिश वाला चाँउर, बड़ इतराय।

ढेंकी-युग कस बासी, नही मिठाय।।


हवै गोंदली महँगी, कोन बिसाय।

नान-नान टुकड़ा कर, मनखे खाय।।


साग चना हर अपने, महिमा गाय।

देख जरी वोला मुच-मुच मुस्काय।।


आमा-चटनी मुँह मा, पानी लाय। 

खीरा धनिया अड़बड़, स्वाद बढ़ाय।।


शहर-डहर के मनखे, मन अनजान।

नइ जानँय बासी के, गुन नादान।।


फूलकाँस के बटकी, माल्ही हाय!

ये युग मा इन बरतन, गइन नँदाय।।


अरुण कुमार निगम, दुर्ग

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कुण्डलिया छन्द


बासी ला खा के चलै,जिनगी भर मजदूर।

थरहा रोपाई करै,ठेका ले भरपूर।।

ठेका ले भरपूर,कमावय जाँगर टोरत।

डाहर देखय द्वार,सुवारी रोज अगोरत।।

घर आवत ले साँझ,देख लागै रोवासी।

जोड़ी भरथे पेट,नून चटनी खा बासी।।


राजकिशोर धिरही, तिलई, जांजगीर-चाँपा

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दोहा छंद


बोरे बासी गोंदली,अउ खेड़ा के साग।

कतको झन के भाग ले,काबर जाथे भाग।।


मनखे मन समझैं नहीं,मनखे के जज्बात।

एकर से जादा नहीं,जग मा दुख के बात।।


कभू कभू देदे करव,लाँघन मन ला भात।

अइसन पुन के काज ला,जानौ मनखे जात।।


जीतेन्द्र निषाद 'चितेश', सांगली, बालोद

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छप्पय छंद


बासी पसिया पेज, पेट बर पाचुक खाना।

फोकट अब झन फेंक, हरे महिनत के दाना।


खाव विटामिन जान, स्वस्थ रइही जी काया।

चना जरी के साग, रोग के करे सफ़ाया।


जागौ चतुर सुजान मन, जिनगी बर उपहार ये।

कतका गुन हे जान लौ,बात इही हर सार ये।।


संगीता वर्मा, भिलाई, छत्तीसगढ़

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चौपाई छंद  


जिहाँ मारबल टाट हे, ओ का बासी खाय। 

जब खावत हे गोंदली, तहाँ भरोसा आय।1।(दोहा)


जेमन छितका कुरिया रहिथें। 

दुख पीरा ला निशदिन सहिथें।।

दार भात ला जे नइ पावयँ।  

बासी खा दिन रैन बितावयँ।।


कभू गोंदली नइ ले पावयँ।

नून मिरच मा काम चलावयँ।।

ओ का खीरा ककड़ी खाहीं। 

बस आमा के चटनी पाहीं।।


पर ये बासी अलगे लागे।

लगे सौंकिया के मन जागे।।

बासी मा तो मही डराये। 

अउर गोंदली दिये सजाये।।


दुसर प्लेट खीरा ले साजे। 

अउर चना कड़दंग ले बाजे।।

जरी बने हे चट अमटाहा। 

तीर सपासप काहय आहा।।


बासी के सँग जरी खिंचावय। 

अउर गोंदली कर्रस भावय।।

मजा उड़ावय खाने वाला। 

बासी के हे स्वाद निराला।। 


बासी बावयँ छत्तीसगढ़िया।  

कहिथें जिन ला सबले बढ़िया।।

फिर काबर बेकार कहावँव। 

बासी मँय तो मन भर खावँव।।


हबरस हइया कभू न खावव। 

नहिते आफत जान फँसावव।।

बासी नरी बीच जा अटके। 

बिन पानी बासी नइ गटके।।


समे रहे तब माँग के, स्वाद गजब के पाव। 

बइठ पालथी मार के, मन भर बासी खाव।2। (दोहा)


दिलीप कुमार वर्मा, बलौदाबाजार

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त्रिभंगी छंद


नइ लगे उदासी,खा ले बासी ,साग हवै जी ,चना जरी।

चटनी मन भावय,खीरा हावय,मीठ गोंदली,थाल तरी ।।

सब रोग भगावय,प्यास बुझावय,बासी पाचन,खूब करे।

खा ले जी हॅसके,निसदिन डटके,भर के बटकी, ध्यान धरे।।


लिलेश्वर देवांगन, बेमेतरा

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सरसी छन्द - 


छत्तीसगढ़ के बासी पसिया, संग खेड़हा साग।

बइठे आये देख पड़ोसी, खाँवे येला मांग।।


चना साग अउ आमा चटनी, बासी खाँय बुलाय।

खेड़हा झोरहा खीरा मा, बासी गजब मिठाय।।


छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, बासी हे पहिचान।

बोरे बासी चटनी खा के,जावे खेत किसान।।


वसन्ती वर्मा, बिलासपुर

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कुण्डलिया छंद -

(1)

खालौ अम्मट मा जरी, संग चना के साग।

बोरे बासी गोंदली, मिले हवै बड़ भाग।

मिले हवै बड़ भाग, पेट ला ठंडा करही।

खीरा फाँकी चाब, मूँड़ के ताव उतरही।

हमर इही जुड़वास, झाँझ बर दवा बनालौ।

बड़े बिहनिया रोज, नहाँ धोके सब खालौ।।1।।

(2)

चिक्कट चिक्कट खेंड़हा, चुहक मही के झोर।

बासी ला भरपेट खा,जीव जुड़ाथे मोर।

जीव जुड़ाथे मोर, जरी सस्ता मिल जाथे।

मनपसंद हे स्वाद, गुदा हा अबड़ मिठाथे।

सेहत बर वरदान, विटामिन मिलथे बिक्कट।

बखरी के उपजाय, खेंड़हा चिक्कट चिक्कट।।2।।


चोवाराम 'बादल', हथबंद, छत्तीसगढ़

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कुण्डलिया छन्द - 


बोरे बासी गोंदली,देखत मन ललचाय।

आमा चटनी संग मा,देख लार चुचवाय।।

देख लार चुचवाय, खेड़हा तरी मिठावय

चना साग हे संग,खाय तालू चटकावय।।

कँकड़ी खीरा खाय,घाम कब्भू नइ झोरे।

धनिया ले ममहाय,हाय रे बासी बोरे।।


दुर्गाशंकर ईजारदार, सारंगढ़ (मौहापाली)

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आल्हा छंद


बोरे बासी खालव भैया,झन फेंकव तुम बाॅंचे भात।

अन्न हमर हे जीवन दाता,प्राण बचाथे ओ दिन रात।।


सुग्घर मिरचा चटनी देखव,साग खेड़हा भाजी आय।

स्वाद ग़ज़ब के रइथे ओकर,लार घलो चुचवावत जाय।।


काट गोंदली गरमी जाही,खाबो जी हम मन भर आज।

देशी खाना खालव कइथॅंव,एमा का के हावय लाज।।


ओम प्रकाश पात्रे "ओम", बेमेतरा

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कुंडलिया छंद -


बासी चटनी संग मा, खावँय घर परिवार|

अब तो नइहे गाँव मा, चिटको मया दुलार||

चिटिको मया दुलार, कहाँ अब बँटथे पीरा|

चुचरन चुहकन पोठ, जरी अउ खावन खीरा ||

साग चना के जोर, भेज दँय बतर बियासी

चिटिक मही ला डार, ससन भर झड़कन बासी||


अनुज छत्तीसगढ़िया, पाली जिला कोरबा

 

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सार छंंद -


साग अमटहा खेड़ा के अउ, चना संग मा हावय।

बासी के संग गोंदली ला,  मजा खाय मा आवय।। 


करय गोंदली रक्षा लू ले, बासी प्यास बुझाथे।

भरे बिटामिन खेड़ा मा अउ, शक्ति चना ले आथे।।


अनुज छत्तीसगढ़िया, पाली जिला कोरबा

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सार छंद आधारित गीत - 


बासी मा हे सबो बिटामिन, चवनप्रास नइ लागे।

खा ले भइया कॅवरा आगर, मन उदास नइ लागे।।

(1)

रतिहा कुन के बोरे बासी, गुरतुर पसिया पीबे।

मही मिलाके झड़कत रहिबे, सौ बच्छर ले जीबे।।

नाॅगर बक्खर सूर भराही, करबे तिहीं सवाॅगे……

(2)

बटकी के बारा उप्पर मा, थोरिक नून मड़ाले ।

थरकुलिया के आमा चटनी, गोही चुचर चबाले ।

ठाढ मॅझनिया पी ले पसिया, प्यास ह दुरिहा भागे…

(3)

कातिक अग्घन सिलपट चटनी, धनिया सोंध उड़ाथे ।

पूस माॅघ मा तिंवरा भाजी, बासी संग मिठाथे ।

बासी महिमा ला सपनाबे, रतिहा सूते जागे…..


राजकुमार चौधरी, टेड़ेसरा

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घनाक्षरी छन्द - 

(1)

माड़े  हवै  बटकी मा मही डारे बोरे बासी,

तँउरत ए प्याज देख मन छुछुआत हे।

गाँवे म रहइ अउ बोरे बासी के खवइ के बने,

रहि रहि के तो आज सुरता देवात हे।।

एकर असन कहाँ पाहीं कोनो टॉनिक जी,

शहरी मानुष एला खाए बर भुलात हे।।

फास्ट फुड पिज्जा बर्गर के दीवानगी गा,

नवा पीढ़ी के तो कथौं हेल्थ ला गिरात हे।।

(2)

झोर वाले चना संग माड़े आमा चटनी अउ

परुसाए थरकुलिया मा बने जरी साग।

तिरियाये खीरा चानी कहत शहरिया ल,

अइसन टॉनिक छोड़ फोकटे जाथौ जी भाग।।

बटकी म बासी चुटकी म नून गीत के तो,

अमर ददरिया के सुनव सुनाव राग।

सेहत गिराऔ झन खाके मेगी फास्ट फुड,

अभी भी समे हे संगी चलौ सब जावौ जाग।।


सूर्यकान्त गुप्ता, सिंधिया नगर दुर्ग 

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कुण्डलिया छन्द -

(1)

बासी खाये ले कथे,ठंड़ा रहे शरीर।

बी पी हा बाढ़े नहीं,हरथे तन के पीर।

हरथे तन के पीर,पियो पहिया ला हनके।

दिन भर करलो काम,चलो तुमन हा तनके। 

पिज्जा बर्गर छोड़,खाय ले  लगे थकासी।

मानो सब झिन बात,पेट भर खाने बासी।।

(2)

मँगलू बासी खाइ के, करथे दिन भर काम।

गरमी जबले आय हे, नइतो लागे घाम।

नइतो लागे घाम, गोंदली संग म खाथे।

जरी चना के दार,खाव जी गजब मिठाथे।

खीरा ठंडा होय,नहीं लागय ऊँघासी 

कतको करले काम,गोंदली झड़को बासी।।


केवरा यदु"मीरा", राजिम

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कुण्डलिया छन्द - 

(1)

बासी आय गरीब के, आज सोचथें लोग।

पर ये आवैं काम बड़, जाय खाय मा रोग।

जाय खाय मा रोग, ताकती होथे तन बर।

जरी गोंदली नून, संग सब खाय ससन भर।

राजा हो या रंक, सबे के हरय उदासी।

बचे रात के भात, कहाये बोरे बासी।।

(2)

बासी के गुण हे जबर, हरथे तन के ताप।

भाजी चटनी नून मा, खा मँझनी चुपचाप।

खा मँझनी चुपचाप, खेड़हा राँध मही मा।

होय नही अनुमान, खाय बिन स्वाद सही मा।

बासी खा बन बीर, रेंग दे मथुरा कासी।

छत्तीसगढ़ के शान, कहाये चटनी बासी।।

(3)

थारी मा ले काँस के, नून चिटिक दे घोर।

चटनी पीस पताल के,भाजी भाँटा झोर।

भाजी भाँटा झोर, खेड़हा बरी बिजौरी।

आम अथान पियाज, खाय हँस बासी गौरी।

खा पी के तैयार, सिधोवै घर बन बारी।

अउ बड़ स्वाद बढ़ाय, काँस के लोटा थारी।।

(4)

लगही पार्टी मा घलो, बासी के इंस्टॉल।

खाही छोटे अउ बड़े, सबे उठाके भाल।

सबे उठाके भाल, झड़कही चटनी बासी।

आही अइसन बेर, देख लेहू जग वासी।

पिज़्ज़ा बर्गर चाँट, मसाला तन ला ठगही।

पार्टी परब बिहाव, सबे मा बासी लगही।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया", बाल्को,कोरबा

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छन्नपकैया छंद -


छन्न पकैया छन्न पकैया,खालव बोरे बासी।

जाँगर पेरव बने कमावव,होवय नहीं  उदासी।   


छन्न पकैया छन्न पकैया,बासी  के  गुन  भारी।

जरी खेड़हा घुघरी खीरा,खावव सब सँगवारी।।


छन्न पकैया  छन्न  पकैया, छत्तीसगढ़ी  जेवन।

सुत-उठ के जी बड़े बिहनिया,बोरे बासी लेवन।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, खावव  बहिनी भाई।

एमा सबके मन भर जाही,नइ होवय करलाई।।


छन्न पकैया छन्न पकैया,बासी के गुन भारी।

रात बोर के बिहना खावव,संग गोंदली चारी।।


छन्न पकैया छन्न पकैया,सदा  निरोगी  रहना।

खावव बासी फेर देख लव,मोर बबा के कहना।।


छन्न पकैया छन्न पकैया,करौ किसानी जा के।

छत्तीसगढ़ी बोरे बासी,जम्मों देखव खा के।।


बोधनराम निषादराज "विनायक", सहसपुरलोहारा

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कुण्डलिया छंद -

(1)

बोरे-बासी खाय ले, भगथे तन ले रोग।

सुबह मझनिया शाम के, कर लौ संगी भोग।।

कर लौ संगी भोग, छोड़ के कोका कोला।

हरथे तन के ताप, लगे ना गर्मी झोला।।

नींबू आम अथान, मजा के स्वाद चिभोरे।

दही मही के संग, सुहाथे बासी-बोरे।।

(2)

बोरे-बासी खाय ले, पहुँचे रोग न तीर।।

ठंडा रखे दिमाग ला, राखे स्वस्थ शरीर।

राखे स्वस्थ शरीर, चेहरा खिल-खिल जाथे।

धरौ सियानी गोठ, कहे ये उमर बढ़ाथे।।

गाँव शहर पर आज, स्वाद बर दाँत निपोरे।

पिज़्ज़ा बर्गर भाय, भुलागे बासी-बोरे।।

(3)

गुणकारी ये हे बहुत, भरथे तन के घाँव।

बोरे-बासी खाव जी, मेंछा देवत ताव।

मेंछा देवत ताव, मजा मन भर के पा लौ।

जोतत नाँगर खेत, ददरिया करमा गा लौ।।

मिर्चा नून पताल, संग मा पटथे तारी।

बोरे-बासी खाव, हवय ये बड़ गुणकारी।।

(4)

बोरे-बासी संग मा, जरी चना के साग।

जीभ लमा के खा बने, सँवर जही जी भाग।

सँवर जही जी भाग, संग मा रूप निखरही।

वैज्ञानिक हे शोध, फायदा तन ला करही।।

गजानंद के बात, ध्यान दे सुन लौ थोरे।

छत्तीसगढ़ के मान, बढ़ावय बासी-बोरे।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध", बिलासपुर

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सार छन्द -


नून गोंदली अउ बासी के, टूटिस कहूँ मितानी।

तरुवा तीपत देर न लगही, सुन लेवय रजधानी।


मँहगाई के मार जना गे, पेट पीठ करलागे।

भारी अनचित हमर गोंदली, हमरे ले दुरिहागे।


सरू सकाऊ सरसुधिया मन, ठाढ़े ठाढ़ ठगा गें।

बैंक लूट चरबाँक चतुर मन, रातों-रात भगा गें।


हमरे जाँगर नाँगर बैला, हमरे ले बयमानी।

तरुवा तीपत देर न लगही, सुन लेवय रजधानी।


झोला-झक्कर घाम-तफर्रा, धूँका-गर्रा आथे।

नून गोंदली बोरे बासी, पेट मुड़ी जुड़वाथे।


एनू-मेनू हम का जानी, खाथे तउन बताथे।

जरी खेड़हा मही म राँधे, गउकी गजब सुहाथे।


हँसी उड़ाही कोनो कखरो, कहिके आनी-बानी।

तरुवा तीपत देर न लगही, सुन लेवय रजधानी।


सुखदेव सिंह "अहिलेश्वर ", गोरखपुर, कबीरधाम

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(21) दोहा छन्द - 


भइया नांगर जोत के, बइठे जउने छाँव।

भउजी बासी ला धरे, पहुँचे तउने ठाँव।।


भइया भउजी ला कहय, लउहा गठरी छोर।

लाल गोंदली हेर के, लेय हथेरी फोर।।


बासी नून अथान ला, देय गहिरही ढार।

उँखरु बइठ के खात हे, मार मार चटकार।।


भइया भउजी के मया, पुरवाही फइलाय।

चटनी बासी नून कस, सबके मन ला भाय।।


सुखदेव सिंह "अहिलेश्वर ", गोरखपुर, कबीरधाम

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छप्पय छन्द - 


एक बीज दू नाम, जगत बर बहुत जरूरी।

दू बित्ता के पेट, करावत हे मजदूरी।।

बइठे चूल्हा संग, साग चाउंर अउ पानी।

समय चले दिन रात, बीच झूलय जिनगानी।

जरी चना अउ गोंदली, बइठे बासी संग मा।

गरमी हर मुरझात हे, तन मन रहय उमंग मा।।


आशा देशमुख, एन टी पी सी कोरबा

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संकलन - अरुण कुमार निगम

संस्मरण झिरिया के पानी

 संस्मरण

           झिरिया के पानी


 एक छोटे से गांव म मैं  छोटकुन किसनहा परिवार म जनम लेयेव वो समय देश ल आजाद होए दस बछर होए रहीस गांव म मध्यमिक पाठशाला रहीस फेर नाम मात्र के लइका आठ कक्षा पास होगे हाई स्कूल म दाखिला ले रहीस ले देके कोनो ग्यारहवीं पास रहीस ओमन ल गुरुजी या पटवारी बनगे जेन फेल होगे ओमन खेती किसानी आऊ मजदूरी के काम म लग गए

ओ समय पढई लिखई के महत्व ल सियान मन नई समझत रहीन 

हमर गांव म ओ समय कोनो कालेज म दाखिला नहीं ले रहीन हमर साथ के तीन साथी हाई स्कूल पास होके हिम्मत करके कालेज म दाखिला लिएन अऊ ग्रेजुएशन के बाद छोटे से नौकरी म हमन गांव के ३ लड़का भर्ती होए न ओ समय हमर गांव म जुवा चित्ती नशा पान जैसे खराब आदत नहीं रहीस सियान मन के दबाव बहुत रहे आगे गांव मा का तकलीफ बैसाख जेठ के महीना महोवे ओला बतावत हव हमर गांव म गर्मी दिन आवय ता जमे कुआ तरिया के पानी सुखा हो जाय पानी के बडा किल्लत जेठ बैशाख के भुभरा पाव म कोनो चपल्ल न जूता खड़ी मझनिया के बेरा गांव के बाहर के तालाब म झिरिया जेमा पानी झीमिर झीमीर झरय ओहि पानी ल पिए के लिए लाए ल जान ओ समय के पानी के करलाई ला व्यक्त करना दुखदाई हे गांव के तरिया के पानी

कईहा काई के मारे बिस्सर महाकय ओ कठिन समय गांव के देखें हन ऊहू मा गांव के बदमाश लइका मन काड़ी कचरा आऊं गाय के गंदगी घलो डार दय

नहाए बर ,, ४किलोमिटर पैदल शिवनाथ नदी जाए बर पड़य ये दुर्दिन ल आज के लोगन मन बर अचंभा होगे येकर सेती पानी के महत्व ल समझव आऊ पानी ला संरक्षित करके चलव ताकी आने वाला पीढ़ी ला पानी मिल संकय

पानी के वीना सब सुन हे पानी हाेही तब काया भी निर्मल हाेहि त अभी से मन मा ठानव

पेड़ लगाबो पानी बचाबो


मोहन लाल" निर्दोष"

डेरी हाथ के दम "". ब्यंग

 "" डेरी हाथ के दम "".                    

                                           ब्यंग

           हमरे पारा के एक झन निठल्ला दास जे हर सवाल धारी प्राणी आय। एकर ले मुलाकात होगे माने कुछ न कुछ सवाल ढील दिही। आजो अपन सवाल ला अधिवेशन सत्र मा विपक्ष के भूमिका निभात  दाग दिस। अउ पूछिस कि डेरी हाथ के का दम अउ महत्व हे? सत्ता पक्ष के तीन पंचवर्षी पानी खाय प्रभावी नेता कस महूँ जवाब देय बर गुनान करेंव। जवाब नइ देना माने अपन इज्जत के सत्ता ला भाजी भाँटा करना हे। तब बुद्धिजीवी प्राणी होय के हक ले समझावत केहेंव - - - - - - - - - - - देख भाई मनखे के शरीर मा आठ अंग अउ दस इन्द्री के लेखा जोखा मिलथे। सबो अंग के अपन अलग अलग मान महत्तम हे। कोनो काकरो ले कमजोर नइये। बात ला काटत सवाली राम कथे----आरे भाई वो सब तोर तार्किक गोठ ला तिरिया अउ ये बता कि बिलार सिंग ला खादीधारी लाल बत्ती वाले के डेरी हाथ काबर कथे? तब ये असंतुष्ट जीव के संका दूर करे बर महूँ टी बी डिबेट मा हिस्सा लेय हाजिर जवाबी प्रवक्ता कस स्पष्टीकरण के भाव मा हाजिर होके निबंध बतावत केहेंव कि------- अइसन डेरी हाथ के बड़ महत्व हे ये मान सम्मान के पद पाये बर घोर संघर्ष करना परथे। पहिली बात तो आदमी ला शुद्ध खाँटी अपराधी प्रवृत्ति के होना परथे। आज कल जेकर मा ये गुण नइये ओला कोनो पारटी के टिकट तो का वोटिंग बूथ के एजेंट तको नइ बनाय। जेकर मा हिंसा बलात्कार हत्या के केस चलत रथे वोला अव्वल दरजा के समाज सेवी माने जाथे। सबो किसम के डर भय आतंक फैलाए के पंडिताई गुण रथे वोकर मान सम्मान सबो जगा होथे। अइसन परजीवी मन बिना मिहनत के फोकट मा सबो सुख सुविधा के भोग करथे। रहिगे बात बिलार सिंग के त वोकर मा इही किसम के समाज सेवा के सबो गुण भरे हे। बिचारा नारी उत्थान समिति के अध्यक्ष आय। ये अलग बात हे कि बलात्कार के चार ठन केस चलत हे। वो अतका धार्मिक अउ दयालु हे कि वोकर ले तू - तड़क रे-बे ले गोठियाबे त बिना रिजर्वेशन के यम लोक भेज देथे। चार महिना पहिली छठवाँ नंबर के हितग्राही ला एकर लाभ मिले हे। पचास पचास कोस दुरिहा गांव के जवान लइका मन चुनाव के बखत एकरे नाम के गुटका खाथे। फेर मजाल हे कोनों थूँक तो देय। बिचारा गली मुहल्ला मा दारू बेंचके नवा पीढ़ी के खून ला गरम करे के काम ले अपन समाजिक सेवा के बोहनी करे हे। प्रेम से गरीब परोसी के आधा जमीन ला हथिया डारे हे। जान बचे तो लाखों जमीन बिचारा के छइँहा भर बाँचे हे। ठेंगा कटारी के जमानत जप्त हे त अपन बचाव बर पिस्टल तमंचा धरके किंजरथे त का खराबी हे। वो तो ओमा भराय कारतूस के समझदारी बनथे कि काकर छाती मा जाके अराम करना हे।

         माँगे मा भीख नइ मिले तब नँगा के झपट के डाका डार के खाये के सूत्र ला राष्ट्रीय मान्यता मिलगे हे तब हल्ला करना छोड़ के इँकरे मन सँग हिल मिल के रहना उचित रथे। तब बिलार सिंग जइसन सर्वगुण सम्पन्न प्रतिभा के धनी ला राजधानी के आसंदी मन अपन छत्रछाया के सुख मा पोसवा राखना चाहथे। काबर कि बिलार सिंग जइसे डेरी हाथ के बिना नेता जी अभी तक एको चुनाव नइ जीत पाये हे। इही डेरी हाथ के बिना सिंघासन परस्त मन अपन जनाधार खड़ा नइ कर सके। सरपंच से लेके सांसद अउ विधायक तको ला अपन डेरी हाथ ला मजबूत करके रखना परथे। जे हर सर्वमान्य हे। फेर ये डेरी हाथ के दम अउ महत्व ला संविधान मा लिखे बर चूक कर डारे हे।आज बिलार सिंग जइसन समाज सेवक के हाथ गोड़ मूँड़ सबके माँग बढ़गे हे। माने राजनीति मा अपराधी अउ अपराध ला उत्तम कृत्य माने जाथे। तब बिलार सिंग असन  के जरूरत ला समझे जा सकथे। राजनीति करे बर जतका साम दाम दंड भेद लोकतंत्र के विधान मा हे वो सब के पालन पूरा ईमानदारी ले बिलार सिंग के डहर ले निभाय जाथे। तभे नेताजी जीत पाथे। एमा बिलार सिंग के भूमिका ला नकारे नइ जा सके। नेताजी के सौहार्दपूर्ण चलत गोरख धंधा के देख रेख बिलार सिंग असन मन ही करथें। वोकर बाहिर भीतर सबो के राजदार रेहे ले एकर काम एतिहासिक हे।

 डेरी हाथ बनना माने सबले बड़का उपलब्धि पाना। इही कारण हे कि गांव शहर से लेके राज के राजधानी से लेके देश के राजधानी तक सब कोनों ना कोनों उँचहा ओहदा वाले के डेरी हाथ बने के सौभाग्य ला अगोरत रथे। जेकर छबि मा उपर के सबो गुण रथे वो इँकरे सरणागत होके गंगा नहा लेथे। राजनीति मा अपराध अउ अपराध मा राजनीति के शिखर वार्ता के परिणाम सून्य मा फँसे हे। डेरी हाथ के उपर कोनों न कोनों दमदार जेवनी हाथ के आशिष रथे। ओहदेदार के बरदहस्त ले कानून घलो इँकर रुँआ नइ हला सके। जेवनी हाथ जब न्याय के नरी चपके मा सक्षम हे तब लोक हित मा डेरी हाथ के अपराध ला अपराध नइ कहे जाय। उभरौनी मा आके जनता जनार्दन ला छाती पीटे के का जरूरत?  नैतिक व्यवहार मा संसोधन हो जही तब जे हाथ परजा के पाकिट मारे बर छोड नइ सके गंगा घाट मा धुनि रमाहीं का? जेवनी हाथ दिखावा के दान करथे वो तक ला वापस लूट के लाने मा इही डेरी हाथ हर साथ निभाथे। संगीन सेवा देवत फँसगे तब जेवनी हाथ के राजदार होय के हैसियत ले सच ला बफल के उजागर झन कर देय एकर डर ले बिचारा डेरी हाथ के एनकाउंटर घलो करवा देय जाथे। अइसन डेरी हाथ के चिता चंदन के लकड़ी मा जरथे। तभे तो अवइया पीढ़ी बिलार सिंग जइसे दमदार हाथ बने के उदिम करथे। तब जान ले कि डेरी हाथ के कतका दम अउ महत्व हे।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव

मंगरोहन* चन्द्रहास साहू मो. 8120578897

 [5/5, 10:18 AM] Chandrahas Sahu धमतरी: *मंगरोहन*


                                  चन्द्रहास साहू

                         मो. 8120578897


नत्ता-गोत्ता, पारा-परोस, पार-पांघर जम्मो कोई जुरियाये लागिस। अंगना के मोंगरा ममहावत हावय वइसना गमकत हाबे जम्मो के मन हा। बाजे लागिस पैजनिया गाये लागिस चुरी अउ खनके लागिस स्वर ले स्वर। गरब अउ गुमान नइ हाबे  काकरो अंतस मा। सब परिवार भर  सांझर-मिंझर बुता करत हाबे। किराया भंडार ले सुघ्घर समियाना अउ कनात लगा डारिस। छिंद पाना ले मड़वा सजाये लागिस। आमा पान परसा पान घला मान पाये बर मंडप मा सजगे।....महुँ हा मेंछा अटियावत पागा बांधे हावव।

"ये दे भाटो ! बने हनियाके खनबे अउ माई मड़वा ला गड़िया दे। ... कतको हाले-डोले लहस जावय फेर गिरे झन।''

मोटियारी राधिका गड्डा खने के साबर ला देवत अपन मीठ बोली के बाण मारत किहिस। 

खोर के माई मड़वा ला गड़ियावत हावव सारा मन संग। 

" नइ सुल्हराये सारी ! अइसे गड़ियाहू मड़वा कि तोर लइका-पिचका के जनम आवत ले जस के तस ठाड़े रही येहाँ !''

मेंहा साबर चलावत ठट्ठा करेंव । सारा टूरा हा माटी निकालत हाबे। जम्मो कोई ठठा के हाँस डारेंन अब।

"धत....भाटो !''

सारी लजागे। चेहरा मा लाली उतरगे। दूध मा चिटिक कुहकू गिरे के रंग कस उजास दिखत हाबे। गाल गुलाबी होगे। खीरा बीजा कस दाँत अउ गुलाब के पंखुड़ी बरोबर होठ,कजरारी आँखी। सौहत धरती मा कोनो अप्सरा उतरे कस दिखत हाबे राधिका हा। मोर सारा मन घला पंदोली देवत हाबे मड़वा गड़ियाये बर। माई मोहाटी के दुनो कोती हाथ भर ले आगर गड्डा खन डारेंन सारा-भाटो मिलके।

अगास ला अमरत चार ठन बाँस लानके अब अगोरा करेन सियान मन के। घर के सियान सास-ससुर ला नेग के जिनिस माँगेव। पीयर चाँउर, कौड़ी, दूबी अउ जुन्ना सिक्का रानी विक्टोरिया के बेरा के। दूबीवाला जल छिड़क के बाँस मन ला आरुग करेन। गड्डा के पांव परत जम्मो डीही-डोंगर के सुमरन करके मड़वा बने बाँस ला गड़ियाये लागेंन अब ।

"जम्मो काज हा सुघ्घर होवय बने सुमरन कर दे गा दमाद बाबू !'' 

कका ससुर आवय।

अगास कोती ला देखत एक बेरा अउ सुमिरन करेंव। कतका सुघ्घर लागत हाबे मड़वा के फुनगी मा बंधाये मोवा के तीन बेनी के धजा  गोंदली मिरचा पापड़ अउ छेना। जइसे अगास ला छू के सरग के देवता मन ला नेवता देवत हाबे।

"ये ले भाटो ! चाहा पी ले। अब्बड़ थक गे होबे।''

"चाय पीये मा थोड़े थकासी भागही सारी...!''

"पी के देख भाटो ! तोर मयारू सारी हा अपन हाथ ले बनाये हाबे अइसे नशा चढ़ही कि नइ उतरे कभू।''

इतरावत किहिस सारी हा।

"मड़वा मा ये आनी-बानी के जिनिस ला काबर बांधथे भाटो !''

"बता गा कका ससुर !''

"तही बता गा रूपेश ! तुमन जादा पढ़े लिखे हव।... अउ तेहाँ तो डॉक्टर घला हरस जम्मो ला जानथस।''

कका ससुर मोला ढ़केल दिस।

"ये जम्मो जिनिस ला फोकटे-फोकट तो नइ डारे। तइहा के सियान मन भलुक कमती पढ़े-लिखे रिहिन फेर वोकर बनाये नेग-जोग,रीति-रिवाज,परब-तिहार के वैज्ञानिक महत्तम होये के संग दर्शन अउ फिलॉसफी घला होथे। जम्मो जाति-धरम मा मड़वा छववनी के आने-आने विधान हाबे फेर जम्मो मा दू परिवार अउ दू संस्कृति के जुड़ाव के नेग हावय। बाँस के महत्तम बतावत हावव मोर मतिनुसार। दुनिया मा सबले जादा तेजी ले बाँस हा बाढ़थे।  येमा जीवन के दर्शन हाबे। दू परिवार के संग दू मनखे के जुराव होवत हाबे तब मया अउ वंश झटकुन बाढ़े। बाँस तो जनम ले मरन तक बउरे के जिनिस आवय। तइहा के बेरा ब्लेड नइ रिहिस तब बाँस के पत्ती बनाके नेरवा कांटे।  जीयत भर बाँस के बने सुपा मा चाँउर निमार के  जेवन करथन। वनवासी मन बाँस के खोड़री मा भात रान्ध डारे। जीयत भर ले अतका बुता आथे अउ संसार ला छोड़ देथे तब...?  इही बाँस के खटरी बनाके मसानगंज लेगथे।''

मोर गोठ ला मोर मयारुक सारी राधिका हा धियान ले सुनत रिहिस।

"मोवा के दर्शन हाबे कि जेठ के गर्मी मा कतका उसना-भूंजा जावय फेर चौमासा के पानी मा फेर हरिया जाथे वइसने जीवन मा कतको दुख आ जावय बिपत पर जावय हार नइ मानना हे। दुख के पाछू सुख अउ सुख के पाछू दुख आथे ये सास्वत सत्य ला बताथे। मोवा के तीन बेनी हा सौहत ब्रम्हा विष्णु महेश तिरलोक के स्वामी आवय।''

".... सुघ्घर बताये भाटो ! ...अउ गोंदली ला काबर बांधथे ।''

सारी पूछिस।

" गोंदली ला धियान लगा  के देख नोनी खुदे कुछु काहत हाबे। गोंदली के स्वाद चुरपुर रहिथे फेर तासीर जुड़ होथे।''

सारी देखे लागिस। 

"वोकरे सेती झांझ-झोला मा गोंदली बासी खाथन।''

सारी मुचकावत किहिस। 

"देख गोंदली हा कतका पागी पहिरे हाबे। गृहस्थी मा कतको बिपत आ जावय फेर इज्जत मान-सम्मान ला साबुत राखे के संदेश देथे। गोसाइन-गोसइया के बीच कतको उच्च-नीच हो जावय घर के चीर हरण झन होवय। इही ला सीखोथे गोंदली हा। मिरचा तो चुरपुर आगी के बरन आवय अउ आगी माने शक्ति। जीवन के गाड़ी चलाबे तब बिना शक्ति के नइ चल सकय। कभू-कभू चुरपूर गोठ ला घला सहन करके मया मा रहना हाबे दुनो परानी ला। पापड़ कतका सुघ्घर दिखथे फेर धरते साठ टूट जाथे येहाँ जीवन के दर्शन आवय। काया कतका सुघ्घर रहिथे जौन एक दिन चुराचुर हो जाही।'' 

सारी धियान ले सुनिस। ...अउ छेना तो - झन कर गुमान रे भइयां..! हो जाबे राख। तहुँ हो जाबे राख, महुँ हो जाहु राख..। हलाहल पीके मीठ बोली देना वोकरे सेती भगवान शंकर घला चुपरे हे राख...अउ सारी ये मोर गोठ ला धियान मा राख।''

मेंहा गाना गाये बरोबर इतरा देंव पवन दीवान जी ला सुरता करत।

"का बइटका बइठे हावव तुमन जम्मो कोती।रूपेश ! चलो घर कोती।''

सास आवय। अब जम्मो कोई घर चल देन। मोला अउ गोसाइन ला बलाइस कुरिया मा। पीड़हा मा बइठारिस दुनो झन ला। फुलकांस के थारी मा पीयर चाँउर लान के टीका लगाइस। नरियर दूबी फुलपान ला धराइस अउ मोर खांध मा धोती डारिस अउ गोसाइन के खांध मा लुगरा देवत किहिस सास-ससुर दुनो झन।

"बेटी-दामाद हो तुमन बड़का दीदी-भाटो आवव वोकरे सेती ढ़ेरहा-ढ़ेरहीन बनहु अउ बर-बिहाव के काज ला सपुरन करहु। बेटी ! ढ़ेरहीन बनके सिंदूर दान करबे अउ  तेहाँ रूपेश बेटा ! ढ़ेरहा बनके गृहस्थ जीवन के रद्दा के सारथी बनबे।जइसे महाभारत मा कृष्ण भगवान अर्जुन के सारथी रिहिन वइसने इखर सारथी बनो।''

"हँव दाई-ददा !''

हमन दुनो कोई मुचकावत हुकारु देयेंन अउ सियान मन के टुपटुप पांव परेंन। सारी मोला अपन कुरिया मा बलाइस।

"भाटो ! सिरतोन कोनो अलहन झन होवय  धियान राखे रहिबे। वो मनचलहा मनीष ले भय हाबे मोला।''

सारी अकेल्ला मा किहिस। 

"तोर मन मा कोनो गोठ नइ हाबे न ।''

"नही ।'' 

सारी राधिका हुकारु दिस।

"मेंहा तोला अब्बड़ मया करथो फेर आने संग बिहाव करबे ते.....? देख लुहु कइसे बिहाव होही तेला। मोला पन्दरा दिन आगू मेसेज करे रिहिन अइसने मनीष हा। मोला फुटे आँखी नइ सुहावय लपरहा हा अउ वोहा इतरावत हव कहिके कुछु भी काहत रहिथे।''

"छोड़ न अइसन सुरबइहा मन ला । कुछु नइ करे, वोकर बर पूरन अउ बाचन। लेट्स एन्जॉय सारी। मेंहा हव न।''

सारी के संसो ला टारत केहेंव।

                 गड़वा बाजा वाला मन  आइस घर कोती। मोर सास हा मोहाटी मा पानी रिको के स्वागत करिस पान-सुपारी के पाछू अब मंगरोहन लकड़ी बर गेयेंन। घर के माईलोगिन मन तियार होके नवा लुगरा पहिरके गोड़ मा आलता माहुर लगा के रेंगत हाबे ... अब्बड़ सुघ्घर लागत हे। सब कोई उछाह मा बुड़े हाबे। बबा जात मन घला कमती नइ हे। डूमर रुख के पूजा-पाठ करके जांघ मोठ के डारा ला कांट के पर्रा मा बोहो के ले आनेन। मुड़ा परघावत घर अमरगेंन।  घर मा अब जम्मो नत्ता के सगा-पहुना मन आ गे रिहिन अउ कतको झन आवत घला हाबे।

           अब बसूला मा छोल-चाच के डूमर लकड़ी ले बइठे बर पिल्ली बनायेव । तेल चघाये के बेरा मा बइठही सारी हा वोमा।  मंगरोहन  घला बनावत हँव।

"ये का बनावत हस भाटो ?''

".....फेर आ गेस सारी ! एकेक ठन के पोस्टमार्टम करके पुछबे फेर ।''

"काबर नइ पूछहु ? मोर बिहाव होवत हाबे तब जम्मो नेग-जोग,विधि-विधान ला जानना हे मोला। तभे तो जानहु हमर पोठ छत्तीसगढ़ी संस्कृति कतका सुघ्घर हाबे।''

"हव भई .....जम्मो कोई ला जानना चाहिये। फेर अब कुछु भी पूछबे तब पाहंदा वाली दीदी ला पुछबे। वोहा जानथे।''

"पाहंदा वाली दीदी ? बड़े दाई के बेटी आय....?  डॉ सत्यभामा दीदी...?''

"हव रे ! अब्बड़ तिखारथस ।''

"पांच हाथ दुरिहा ले पांव परत हँव भाटो वोकर। नइ पूछहु तेहाँ चलही फेर...? डॉक्टर हाबे,  कालेज मा बड़का प्रोफेसर । वोला देखते साठ थरथर काँपथो मेंहा। कोन जन का पूछ दिही...? ...मेंहा निच्चट गदही।''

"वो तो हस सारी !  सोला आना सिरतोन कहेस। दिखे मा श्यामसुंदर अउ पा.... ।  छत्तीसगढ़ी के एक ठन हाना ला ढ़ील दे रेहेंव सारी कोती। हा......हा.....हा....। अब दुनो कोई हाँस डारेंन कठल-कठल के।

"का होगे रूपेश ? का होगे राधिका ? सारी भाटो दुनो अब्बड़ खिलखिलावत हव भई...।''

जौन ला सुरता करेन तौन आगू मा दमदम ले ठाड़े होगे। हमन ला तो जइसे सांप सूंघ गे। ...अब दुनो कोई सत्यभामा दीदी के पांव परेंन ।

"मंगरोहन का हरे दीदी ! काबर बनाथे येला ? बताना। आपेमन बतावव।''

मेंहा सामरथ करके गिलौली करेंव।

डॉ सत्यभामा दीदी बताये लागिस अब।  मंगरोहन ला ऐखर सेती मड़वा मा बइठारथे कि बर-बिहाव के मंगल काज मा कोनो अलहन अउ बिपत-बाधा झन होवय। मंगरोहन माने बिपत-बाधा टरइया। सुनो, मेंहा बतावत हावव।''

दीदी हा अपन चश्मा ला सोज करत किहिस अउ बताइस।

"महाभारत काल के गोठ आवय। गांधारी हा अपन ननपन मा डूमर रुख के तीर मा  संगी-संगवारी मन संग छू-छुवउल खेलत रिहिन आँखी मा पट्टी बांधके । डूमर रुख मा चिरई के जोड़ा राहय गोसाइन-गोसइया बरोबर। गांधारी अपन संगी-संगवारी मन ला खोजे अउ लुकाये के उदिम करत भोरहा मा गोसइया चिरई के घेंच ला धर के मुरकेट डारिस अउ गोसइया चिरई मरगे। बड़ा बिपत होगे।  गोसाइन चिरई अब्बड़ कलप-कलप के रोये लागिस अउ तड़प-तड़प के मरगे बिरह मा। जम्मो ला देख के डूमर रुख अगियाबेताल होगे, गोड़ के रिस तरुवा मा चढ़गे। दुनो चिरई ला अपन कोरा मा खेलाय-खवाय हाबे, जी तो जरबे करही। जा पापनिन गांधारी तोरो बिहाव होवय फेर तोर गोसइया मर जाये। तब जानबे बिरह के पीरा ला अउ रूप के गरब हाबे तौनो हा टुटही। अइसना डूमर रुख श्राप दे दिन।''

डॉ दीदी बताये लागिस। 

"....तब दीदी वोकर तो बिहाव कइसे होइस अंधरा धृतराष्ट्र संग ? दुर्योधन संग सौ झन लइका घला बियाईस । कइसे ?''

सारी राधिका पूछिस।

डॉ सत्यभामा  दीदी फेर आगू बताइस।

"जब गांधारी बड़े होइस तब बिहाव होइस फेर गोसइया मर जावय। बड़का-बड़का पंडित-पुरोहित ले विचार-मंथन होइस तब डूमर के श्राप के जानबा होइस। जौन श्राप देये हाबे तेखर संग बिहाव कर देथन ताहन न गांधारी राड़ी होवय न डूमर गोसइया मरे। सब विद्वान मन सुंता बंधाये लागिस अउ डूमर संग बिहाव कर दिन गांधारी के। गांधारी तो मनुख जनम आय। रुख अउ मनुख के मिलाप ले वंश के बढ़वार कइसे होही ? वोकरे सेती बिहाव ले मुक्त होगे डूमर हा फेर जम्मो अलहन बिपत-बाधा ला टारे के वचन दिस डूमर हा। वोकरे सेती बेटी-बेटा के पहिली बिहाव डूमर संग होथे मड़वा मा। पहिली हरदी तेल मड़वा मा चढ़थे नही ?''

"हव दीदी !''

जम्मो कोई हुकारु देयेन।

सत्यभामा दीदी पानी पीये बर अतरिस।

"दीदी ! गांधारी श्राप ले मुक्त होगे तभो ले वोकर  जिनगी मा तो अब्बड़ बिपत आइस काबर ?''

मेंहा मन मा उठत सवाल ला पुछेंव।

"देख, रुपेश ! जौन जइसन करम करथे तइसन भोगथे दमाद बाबू दुलरू। गांधारी अपन रूप के गरब करिस तेखर सेती अंधरा गोसाइया मिलिस। जौन कभू वोकर रूप-सौंदर्य ला नइ देख सकिस फेर गांधारी तो अपन गोसइया बरोबर बनगे आँखी रही के अंधरी। गांधारी के जीवन ले नवा जोड़ी ला अब्बड़ सीखे ला मिलथे।''

"हाव दीदी सिरतोन काहत हस।''

दीदी के गोठ सिराइस अउ सारी राधिका हुकारु दिस।

          अब जम्मो कोई तियार होके देवतला गिस जम्मो कोई अउ राउत घर धुर्रा उड़ावत ले नाचीस।  तेल हरदी चढ़िस। मैन नाचा नाचीस। सारी राधिका ला पर्रा मा बइठार के झूला-झूला के नाचेंन। हरदी दान करके हरदी अउ रंग खेलेंन जम्मो कोई। ..अउ मुँहफुल्ला फूफा ला घला मनायेन।

               आज बरात अवइया हाबे। रातभर बने नींद नइ परे रिहिन सास-ससुर के तभो ले बिहनियां झटकुन उठगे जम्मो कोई। तियारी करिस। राधिका घला मेंहदी रचाके अपन राजा के अगोरा करत हाबे। कलेवा वाला मन ले अउ हियाव कर डारिस सास हा। ससुर जम्मो कोई घराती-बराती पहुना मन के स्वागत बर बुता सौप डारिस। बेटी भेंट के जम्मो जिनिस हियाव करत फुलकास के थारी-लोटा,पंचरतन ला अलगा डारिस, दूल्हा-दुल्हिन के पांव पखारे बर परही। आज राजा-रानी बने हाबे। जम्मो पहुना मन ला कपड़ा-लत्ता बांटे बर प्लान कर डारिस। 

"साढू भइयां ! हमन निकल गे हावन मिनी बस अउ बोलेरो  मा आवत हावन। अभिन बारा बजे निकलत हन  तब तीन बजे तक हबर जाबो।''

राधिका के होवइया गोसइया राहुल, दूल्हा जी अउ मोर साढू भाई के फोन रिहिस।

"ले साढू भाई झटकुन पहुँचो। जम्मो जोरा-जारी तियारी होगे हाबे। तुंहर स्वागत हाबे।''

मेंहा केहेंव अउ मशीन बरोबर सब अपन-अपन बुता मा भिड़गेन।

          घेरी-बेरी घड़ी देखत हावव मेंहा। दू बजे ले सवा दू, पौने तीन, तीन अउ सवा तीन। फोन लगायेंव। टू.. टू करिस अउ नॉट रिचेबल बताइस।.... अउ उदिम करेंव फेर नइ फोन लगिस। अब तो संसो होगे। तीन ले चार अउ चार ले पांच होगे। कोनो दउहा नइ हाबे दूल्हा अउ बरतिया मन के। 

"का होगे भगवान  ?''

जम्मो सगा-सोदर, गाँव भर ला संसो होगे अब। सास-ससुर मन के तो मुँहू सुखागे। राधिका तो अब बही होगे जब सुनिस। 

"नेशनल हाइवे मा दूल्हा राहुल के एक्सीडेंट होगे।''

कोन जन कोन कोती ले खबर आइस अउ जम्मो छिही-बिही बगरगे। जम्मो कोती रोवा-राई परगे। कतको झन ला फोन करिस फेर काकरो फोन नइ लगे अब। 

"का करही अब अइसन बिपत मा ?''

देवता धामी जम्मो ला सुमर डारिन।

"अब तोरेच आसरा हाबे तिरलोकीनाथ गरीब के लाज ला राख ले।''

ससुर किहिस अउ रोये लागिस। घर के माई मुड़ी रोइस तब तो सरी दुनिया रो डारिस।

'मेंहा राधिका ला कइसे समझावव ? कइसे दिलासा देवव। मोर बुध पतरागे। महुँ हा जम्मो डीही-डोंगर, मंगरोहन ला सुमिरन कर डारेंव। अउ ......अब जौन होइस ते जम्मो कोई ला संजीवनी दे दिस।

"भलुक बिलम होगेंन साढू भइयां फेर दुल्हन हम लेकर जायेंगे।''

राहुल रिहिस। मरे-हरे के जम्मो गोठ अफवाह रिहिन। कोनो एक्सीडेंट होगे रिहिन अउ रोड जाम मा फँसगे रेहेंन। वोकरे सेती आने रद्दा मा जाये ला परिस। आज तो जिमीकांदा के छिलाई अउ पाछू के खजरी कस बिपत परगे। एक ले उबरेन अउ औघट जगा मा गाड़ी बिगड़गे अउ बनावत ले ये दे आधा रात होगे। ....अउ अफवाह बगराइस तौन कोन आय कुछु जानबा नइ होइस।


                धुर्रा उड़ावत ले  नागिन डांस करके बरतिया परघायेन। अब जम्मो नेग-जोग ले विधि-विधान ले होइस बिहाव हा। राम-सीता बरोबर जोड़ी हाबे राहुल अउ राधिका के। अपन घर मा जाके दुधे खावत हाबे दुधे अचोवत हाबे। सब उछाह-मंगल ले जीवन जीयत हाबे। 


"भइयां रूपेश मोर अर्जी ला सुन ले भइयां ! ससुराल गाँव के मनीष के गोठ सुनके मोर सुरता के धार टूटिस। मोर अस्पताल मा ये अतराब के मन ईलाज करवाये बर आथे न।सिरतोन बीस बच्छर आगू के जम्मो गोठ ला सुरता कर डारेंव।

"मोर बेटी ला बचा ले डॉक्टर भइयां।''

"का होगे मनीष भइयां ?''

शादी के मंडप मा दुल्हिन बनके बइठे रिहिन बेटी हा  अउ दूल्हा राजा एक्सीडेंट होगे,  ड्राइवर संग जम्मो कोई नशापान करके गाड़ी मा बइठे रिहिन। अलहन होगे अउ दूल्हा संग पांच झन बरतिया मन घला मरगे। उछाह के बेरा मा मोर लइका ला सदमा लग गे।  दूसर बर गड्डा खन के इतराये रेहेंव तौन  मोर घर मा सिरतोन होगे डॉक्टर भइयां।

....... अउ वो दिन के अफवाह के जानबा बीस बाइस बच्छर मा होइस। मनीष आवय। 

जम्मो ला जांच-परख के  ईलाज करेंव। रायपुर के मेकाहारा के मनोरोग विभाग मा कंसल्ट करके सूजी दवई देयेंव। पांच दिन मा खबर देये बर केहेंव। हाथ जोर के धन्यवाद काहत अब   दुनो झन मोर अस्पताल ले निकलगे। निकलत ले देखेंव। 

"जाने-अनजाने मा काकरो दिल झन दुखे तिरलोकीनाथ। काकरो हाय झन लगे। बचा के राखबे मालिक !''

केबिन मा लगे शंकर जी के फोटो मा माथ नवावत फुसफुसायेंव।

 अस्पताल के खिड़की ला झाकेंव। पड़ोसी मन बाजा-गाजा के संग मंगरोहन ला धरके मुड़ा परघाये ला जावत रिहिस गली मा। गड़वा बाजा के धुन मा सब झुमरत रिहिन।

माथ नवावत सबके बिपत टारे बर आसीस माँगेंव मंगरोहन ले मेंहा अउ आने पेशेंट ला देखे लागेंव।


चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

[5/8, 11:37 AM] पोखनलाल जायसवाल: छत्तीसगढ़ के लोक परम्परा इहाॅं के लोकजीवन बर एक बरदान आय। जतका भी परम्परा अउ रिवाज इहाॅं के लोकजीवन म रचे-बसे हे, वो सब ले आनंद के अमरित धार निकलथे, अउ जम्मो नता-गोत्ता ल सींचथें। जेकर ले नता-गोत्ता मन अउ जिनगी पाथें। सदासोहागी बरोबर हरियर रहिथे। इही परम्परा मन म ठठ्ठा-दिल्लगी घलव समाय हे। इहाॅं के कतकोन नता-गोत्ता म हाॅंसी-दिल्लगी थके-माॅंदे जिनगी म नवा उछाह अउ उमंग के संचार करथे। जिनगी म नीरसता नइ आवन दय। जिनगी के उबासी ल हर लेथे। हॅंसी मजाक के संग बर-बिहाव अउ सुख के कोनो कारज म नेंग बुता मनखे ल बोझा नइ जनावय। अजीरन नइ लगे। गोठे गोठ म कतको भारी बुता कब सरकथे, गम नइ मिलय। जम्मो थकान बिसर जथे। बबा-नाती, सारी-भाटो, देवर-भउजी... सब म मुॅंहाचाही गोठ एक अलगे आनंद के महौल बनाथे। बर-बिहाव म भड़ौनी गीत इही कड़ी म आनंद ल दुगुना करथे। काम बुता के टेंशन कति उड़न छू रहिथे, कोनो नइ जानय।  

        बद्रीविशाल परमानंद के लिखे मया गीत सुने ल मिलथे.. .का तैं मोला मोहिनी डार दिये गोंदा फूल...ए गीत अइसे तो मया के गीत आय।

         गीतकार के मुताबिक ए गीत उन मन अपन नतनिन के पैदा होय ले लिखिन। मूल ले जादा ब्याज बर संसो रहिथे या कहन लगाव रहिथे। इही लगाव अउ मोह ल लिखथें - का तैं मोला मोहिनी डार दिये गोंदा फूल... आगू मन के एक पीरा ल घलो लिखथें, जेन म नतनिन के जनम के बेरा म अपन (बबा के) चला-चली के बेरा होय ल सुग्घर प्रतीक म पिरोय हें।

       तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती....

         ए गीत म जिनगी के जउन दर्शन हे, वो अनूठा हे, अनुपम हे। हमर लोकजीवन म रचे-बसे परम्परा अउ रीति रिवाज म घलव जिनगी के कतको मरम समाय हे। जउन म वैज्ञानिकता हे। बस जरुरत हे कि नवा पीढ़ी उन ल कोनो किसम के अंधविश्वास अउ आडंबर के पूर्वाग्रह के चश्मा ले झन देखय। ओमा के वैज्ञानिकता ल खोजे के कोशिश करय। त पुरखा मन के दूरदर्शिता घललव दिखही। ए परम्परा मन म लोक हित हे। लोक कल्याण हे। कहे के मतलब हे कि लोक परम्परा लोक कल्याणकारी होथे। एमा लोक हित छुपे होथे, बस जरुरत हे ओला समझे के। 

         बिहाव म कतको उपयोग ले जुरे जिनिस जइसे बाॅंस, गोंदली, डूमर डार, ... मन के वैज्ञानिक तथ्य ल उजागर करत चंद्रहास साहू अपन कहानी मंगरोहन ल बढ़िया ढंग ले गढ़े हे। कहानी म इंकर ले जुरे पौराणिक कथा अउ महत्व ल बढ़िया चित्रित करे गे हे।

            कहानी के मूल स्वर तो 'जैसी करनी वैसी भरनी' हे। मनखे दूसर बर गड्ढा खोदथे त उही गड्ढा म खुद समा जथे। मनीष एकतरफा मया करत राधिका के बिहाव म बाधा डारे सहीं घटना दुर्घटना के अफवाह उड़ा दे रहिस। अउ समे के फेर म आगू जा के खुद वइसन पीरा म फॅंस गे। कहानी म बर बिहाव के जउन वर्णन हे, जीवंत हे। बिहतरा घर म जउन गोठबात होथे वो सब कहानी म हे। संवाद अउ भाषा सरल अउ सहज हे। बेटी के इच्छा जाने अउ मान दे के उदिम बढ़िया हे। तभे तो भाटो रूपेश, राधिका ले पूछथे- "तोर मन म कोनो गोठ नइ हाबे न?"  अभिन के बेरा म अइसन जरुरी हे। काबर कि बर-बिहाव कोनो घरघुंदिया नोहय।

          मंगरोहन के महत्तम अउ सार्थकता ल पूरा करत कहानी मंगरोहन बर कहानीकार चंद्रहास साहू जी ल बधाई 💐🌹


पोखन लाल जायसवाल पलारी (पठारीडीह)

जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग

भाव पल्लवन-- कबीरा कुआँ एक है,पानी भरैं अनेक।

 भाव पल्लवन--



कबीरा कुआँ एक है,पानी भरैं अनेक।

भांड़े में ही भेद है,पानी सबमें एक।।

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संत कबीरदास जी ह ब्रह्म ज्ञान के मरम ल पटंतर देवत समझावत कहे हें के--कुँआ एके ठन हे वोमा ले कई झन पानी भरथें।बर्तन बस ह अलग-अलग नाम अउ रूप-रंग के हो सकथे। कोनो मरकी म भरथे त कोनो बाल्टी म,हँउला म ,गंजी म भरथे। जम्मों म भराये पानी ह एकेच कुँआ के उहीच्च पानी होथे।

   बिल्कुल ओइसनहे परम ब्रह्म ह एके हे ।जतका जीव-जंतु,चर-अचर सृष्टि हे उही परम सत्ता ले सिरजे आयँ। सब म उही समाये हे।इही बात ल "एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति " मतलब ब्रह्म के अलावा दूसरा कुछ नइये --कहे गे हे।

 मनखे ह अलग-अलग जाति,धरम,रंग-रूप,खान-पान,वेषभूषा,बोली-भाखा के हो सकथे फेर सबके जीवात्मा एके हे।मनखे-मनखे एक समान हें।मूल रूप ले कोनो छोटे-बड़े नइयें।सबके श्वांसा म उही एके ब्रह्म समाये हे भले वो ईश्वर ल अलग-अलग नाम ले पुकारे जाथे।

    जीव अउ ब्रह्म म कोनो भेद नइये।ब्रह्म के अँजोर सब म हे। "ईश्वर अंश जीव अविनाशी" कहे गे हे।

 ये विचार ह "वसुधैव कुटुम्बकं" के मूलमंत्र आय। ये ज्ञान ला आत्मसात करके जाति-धरम के भेदभाव अउ झगरा ले बाँचे जा सकथे। 


चोवाराम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

उज्जर ओनहा/नान्हे कहिनी*

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*मनखे के दो मुँहा चरित्र...अपन भ्र्ष्टाचार रिश्वतखोरी करही तब ले भी अपन ओनहा ल उज्जर समझथे, अउ आगु वाला हर नानकुन खीला ल धर लिस ,तब वोहर गारी खाय लायक अखंड चोर...*





         *उज्जर ओनहा/नान्हे कहिनी*

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         धरम जी  के अपन ये सरकारी ऑफिस म बड़ नाम हे । वो बड़े -बड़े 'कारज' ल वोइच दे तुरत- ताही सलटिया डारथें । बड़े- बड़े लेन देन डील करे म अब्बड़ हुशियार  हावें वो! येकरे बर कोनहु साहब आँय अलदी -बदली म उँकर पद अउ कद उपर म फरक नई परे  । उँकर वोइच मान- सम्मान...पूछ- पुछारी सदाकाल बने रहिथे । 


            वो तो आजेच बने पोठ 'बुता' करिन हें । वइसन इंकर बुता हर तब शुरू होथे, जब आने मन के हर छेवर होत रहिथे । ये बनेच बेर म अपन घर कोती लहुटथें, फेर आज बनेच 'बुता' हर जल्दी हो गय, तेकर सेथी घर कोती वो भी जल्दी लहुटत हावें ।


          वो तीर के शॉपिंग सेंटर ले जरूरत -बिन जरूरत के समान ल लाद भरे हावें । वो जे दिन बड़े 'बुता' करे रथें, वो दिन ठीक अइसनहेच लेनदेन करथें । तभो ले जेब हर गरू रथे । उंकर रहन -बसन , ओनहा-कपड़ा सब एक नम्बर के रथे । पहिने के कपड़ा म नानकुन दाग ल  वो सहन नई कर पांय, वो पूरा उज्जर अउ जतन करे रहिथें । घर के सेवा जतन म फर्नीचर वाला, पेंटर जइसन मन भिड़ें च रहिथें । वो परछर गोठ करना पसंद करथें । अउ उंकर परछर गोठ के छेवर म रहिथे - तनखा के पईसा के लेनदेन करे, घर चलाय त काय सरकारी नौकरी करे ...! वो एईच मूलमन्त्र के साधक अउ उपासक दुनों आँय ।


        आज घर आइन , तब आज ये नावा आय फर्नीचर वाला टुरा के खाली टिफिन  डब्बा उपर इंकर नजर पर गय । वो छोकरा हर दस -बारह ठन स्क्रू मन ल धर लेय रहिस एमा, अपन घर ले जाहूँ कहके...


        धरम सब सह लिही, फेर चोरी नहीं -वो बिगड़ गिन ।"तँय काल ल बुता झन आबे !" वो फिर वो टुरा ल धमकात कहिन ।


साला ! नीच ! चोर जात ! ये सब साले मन अइसनहेच रहिथें । वो फिर बुदबुदाइन ।


         वो लड़का तरी मुड़ करके वो स्क्रू मन ल छोड़ के अपन टिफिन- डब्बा ल संकेलत रहिस ।



*रामनाथ साहू*



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कवि बादल: एक चुप, सौ सुख -----------------------

 [5/9, 2:59 PM] कवि बादल: एक चुप, सौ सुख

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वाद- विवाद के मौका म चुप रहइ ल सुग्घर गुण माने जाथे काबर के नइ चुप रहिके अगर दूनों पक्ष ह चिल्लाते रइहीं त बाते-बात म झगरा ह बाढ़के गहिरा जाथे।

   गुस्सा म मुँह ले का निकल जही तेकर ठिकाना नइ रहै।बात के तीर ह एक पइत ठिलागे तेन ह फेर लहुट के वापस नइ आवय। कड़ुवा बोली के जहर म बूड़े तीर ह दूसर ल घायल तो करबे करथे,बोलइया  के आत्मा ल तको पाछू पश्चाताप के आगी म भूँजत रहिथे। आन घाव ह तो दवई-पानी करे म झटकुन मिटा सकथे फेर बात के घाव के भरना बड़ मुश्किल होथे तेकर सेती चुप सहीं सुख नइये।चुप रहे म शांति अउ सुखे-सुख मिलथे।

   अइसे भी गुस्सा करना अबड़ नुकसान पहुँचाथे। अबड़ गुस्सैल आदमी ल कोनो नइ भावय, समाजिक मान-सम्मान नइ मिलय।संग म दू झन बइठइया तको नइ मिलय। अइसन आदमी के घर म कलह छाये रहिथे। अब्बड़ क्रोध करे ले खून के दौरा बाढ़ जथे,मस्तिष्क के नस फटे अउ लकवा मारे के डर रहिथे चेहरा-मोहरा बिगड़ जथे। क्रोध के गरमी म खून तको अँउटे ल धर लेथे।

        मौन रहना ह तको चुप रहना कहिलाथे। मौन ह शक्ति आय।वाणी के संग विचार म भले कुछ घड़ी बर होवय कहूँ मौन आगे,थिरबाँव आगे त का कहना?  मौन के अभ्यास ले वाणी म धार आथे, बुद्धि तेज होथे। चौबीस घंटा एती-वोती सोचते रहे ले, जादा बड़बड़-बइया करे ले, मनमाड़े गोठ करे ले शक्ति ह बेफजूल खर्चा होथे, शरीर म थकावट आथे। जादा गोठकाहर ह  अपने बात के फांदा म फँस जथे। वोहा जाने-अनजाने अपने भेद ल उगल डरथे अउ अपमान सहिथे। अइसन गोठकाहर के बात ल कोनो जादा चेत करके नइ सुनयँ काबर के जानत हें के ये तो ओसाते रइही।


चोवाराम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

[5/10, 3:33 PM] कवि बादल: भाव पल्लवन--


झन खेल जुआँ,झन झाँक कुआँ

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जुआँ नइ खेलना चाही चाहे वो ह पासा ,काट पत्ती,रमी,सट्टा,लाटरी ,घुड़दौड़ आदि कोनो रूप म होवय काबर के एकर ले जिंदगी बरबाद हो जथे।

 जुआँ ह एक प्रकार ले भयानक नशा आय। नशा चाहे कोनो होवय वो नुकसान तो करबेच करही। जुआँ ह अइसन लालच के बुराई आय जेन ह आदत परिच तहाँ ले छोड़े म छूटे ल नइ धरय । ये हा धीरे-धीरे जिनगी के आनंद ल चुहक के सेटराहा कर देथे।

  जुआँ खेले के अतका जादा नुकसान हे के गिने नइ जा सकय।रुपिया पइसा, धन-दौलत अइसे बरबाद होथे के राजा ल रंक बनत देरी नइ लागय। जुआरी के बाई,लोग-लइका रिबी-रिबी बर तरस जाथें। घर-परिवार म दुख के बासा हो जथे।जुआरी ल उदासी अउ क्रोध ह हरदम घेरे रइथे।जिनगी के किमती समे अइसे नष्ट होथे के झन पूछ? समाज म इज्जत घट जथे।

  कर्जा म बूड़े हारे जुआरी के हालत बइहाय कुकर या फेर मनमाड़े घायल शेर कस हो जथे ।वो कुछ भी कर देही। जुआरी के पाप करम शराब खोरी,व्यभिचार,चोरी, डकैती आदि म डूब के मरे के पूरा संभावना रहिथे।

  ओइसनहे कोनो गहिरा कुआँ ल निहरके नइ झाँकना चाही काबर के थोरको बेलेंस बिगड़ीच ,चिटको असावधानी होइस तहाँ ले मुड़भसरा गिरके पानी म बूड़के मरना हो जथे। कुआँ कहूँ सुक्खा हे त तो  मूँड़-कान फूटहीच, हाड़ा-गोड़ा टूटहीच अउ प्रान निकलहीच।


चोवाराम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

आत्मानंद

 "आत्मानंद"

         लईका मन भाठा म लेसत राहय, में पूछेंव काय करथो जी कथे रावण मारत हन। यहा गरमी म जी हव।ओ समे सियान मन मारथे तो पेरा लकड़ी मन मौसरहा रहिथे त बने ढंग ले नी जले कहूं मुड़ी बांच जथे त, कहूं हाथ, नही ते गोड़। बिचारा आत्मा भटकत रहिथे।एकर हाड़ा -गोड़ा ल बने ढंग ले ठंडा नी करे हो ही तभे ये साल के साल जी जथे।पहिली के दस मुड़िया रावण ले अब के एक मुड़िया रावण मन जादा ख़तरनाक होथे।कथे न बिच्छू कांटे के इलाज होथे फेर मनखे कांटे के इलाज नइ होय।

      अब के मनखे मन ल रावण कहना घलो रावण के इंषट आय। रावण ह राक्षस कुल के रिहिस फेर महाज्ञानी रिहिस।पर के तिरिया के सम्मान करे बर कोनो रावण ले सीख सकथे।अब के रावण मन तो नत्ता -गोत्ता ल घलो नी जाने।चील गिधान कस होगे।नान्हे नान्हे डोहरु ल घलो चीथ डरथे।

         रावण मारना घलो बड़ हिम्मत के काम आय।हमन तो मोमबत्ती बस जला सकथन , रैली -शैली कर सकथन।ये हमर जनम सिद्ध अधिकार आय।ये कर ले दूसर के आत्मा ल तो पता नही फेर खुदे के आत्मा ल शांति मिलथे। जेकर आंखी म पट्टी बंधाय हे ओकर ले नियाय के उम्मीद करई माने अंधियार म तीर मरई कस जान।पड़गे त ठीक नही ते अपने माथा पीट।इहां फंसे ले जादा बोचके के आइडीया हे।तेकरे सेती बिच्छू,इरपीटी पीरपीटी नाग, कोबरा ,करात मन कथे व्हाट एन आइडिया सर।

  पूतला फूंकई कानून के हिसाब ले अपराध हे ,भले मनखे जर बर जाय, फेर पुतला नइ बरना चाही।एखर माने पूतला म घलो आत्मा रहिथे।ऐला बंचाय बर पूरा दल बल जी जान लगा देथे। खुद के जान,जान हथेली म लेके भीड़ जथे। पुतला घलो सोंचत हो ही वाह रे पढ़े लिखे जानवर हो ,मोर असन पुतला बर अतिक झगरा। मनखे मन ल तो सबो जीव ले  हुसियार हे कथे  फेर इंकर आचरण ले तो पूरा गदहा समाज सरमिंदा हे।हमर बिचार म पुतला बरइ ले कोनो समस्या के हल हो जथे त एक नही पचासों पुतला जलना चाही।सब जुरमिल के जलाना चाही।

जहां सुमति तहां सम्पत्ति नाना

जहां कुमति तहां विप्पत्ति विधाना।

         ऐ डहर आत्मानंद अंगरेजी म टपर टपर गोठियात राहय।आई एम आत्मानंद,आई एम वेरी फाइन।में पूछेंव काय कहेस जी , कथे मोर नाम आत्मानंद हे, में बहुत अच्छा से हो।मे कहेव टीप टाप टाइल्स,कुरसी,टेबल डेंटिग पेंटिंग दुल्हिन असन सजे त काबर आत्मा आन्नद नी हो ही,अउ फाइन घलो हो ही। हमन तो टुटहा कुरसी अउ टाट पट्टी म मन ल मढ़हा लेथन।टपकत छत के पानी ले बरसात के जमगरहा मजा उड़ाथन गरमी अउ बरसात हमर बर एके बरोबर ।गरमी म पसीना म नहाथन।हमर पढ़हइ रोजगार गारंटी कस चलथे।लइका आथे त गुरु जी नी आय, गुरु जी आथे त लइका नी आय ,दुनो आथे त छुट्टी। एक कन फाइन हमु मन रहिथन खाना छुट्टी म मध्यान भोजन खाके।।

 हमन उही छत्तीसगढ़िया तान जी जेन तेइस बछर ले छत्तीसगढ़ी ला राजभाखा बनाएं बर तरसत हन।हमन उही छत्तीसगढ़िया तान जेकर बोरे बासी के तिहार मनाथन ।जेकर सुवाद ला चम्मच म घलो ले लेथन। हमन उही छत्तीसगढ़िया  तान जेन जंगल झाड़ी के ओनहा कोनहा म संप्रदाय वाद ला झेलत हन। आखिर ये संप्रदायवाद कोन जीन के अंगरी ल धर के जंगल झाड़ी म उड़थे। जी हां के बेवस्था ह आंखी म वोट बैंक के भभूत डाल के बइठे हे। हमन उही छत्तीसगढ़िया आन आत्मानंद जीहां फाइन ले जादा वाइन बिकथे। हमन उही छत्तीसगढ़िया  आन आत्मानंद जिहा गंगा जल बधथन ।हमर इतिहास ल रायपुर के घड़ी चौक ल पूछ। फूटडालो राज करो के पीरा ल पहिली घलो भुगते हन अउ आज घलो "आत्मानंद "।

                     फकीर प्रसाद साहू

                        फक्कड़ -सुरगी

भाव पल्लवन--

 


भाव पल्लवन--



जागते रहो

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जागते रहो के मलतब रात-दिन जागत रहव,सूतव झन अइसन नोंहय काबर के कोनो मनखे रात-दिन जागत रइही त तो वोकर तबियत खराब हो जही। स्वस्थ रहे बर पर्याप्त नींद जरूरी हे।

       जागते रहो के अर्थ हमेशा सचेत रहना आय ।इही ल जागरूकता तको कहे जाथे। कोनो लक्ष्य ल, कोनो उपलब्धि ल पाये बर सचेत होके कारज करे बर लागथे। जागरूकता नइ रहे ले जिनगी के कीमती समय के, मिहनत के अउ धन के बर्बादी होये के बहुतेच संभावना रहिथे। जागरूक नइ रहे ले बार- बार चूक होवत रहिथे तहाँ ले तनाव अउ चिड़चिड़ाहट पैदा होथे। मानसिक अउ शारिरीक तंदरुस्ती म गिरावट आथे।

   एकर उलट जागरूकता के अब्बड़ फायदा हे। सचेत रहे ले मानसिक तनाव, चिंता ,उदासी जइसन दिमागी बीमारी ले बँचाव होथे। कोनो योजना ह ,कारोबार ह सचेत रहे ले ही सफल होथे। जागरूक रहिके मनखे ह अपन कमजोरी ल पहिचान के वोला जीत सकथे अइसने अपन अच्छाई ल तको जान के वोकर सद उपयोग के संगे-संग वोला अउ बढ़ा सकथे । जागरूकता ह ज्ञान अउ जानकारी म बढ़ोत्तरी करथे। सावचेती ह सही रूप म निस्फिकरी के रद्दा आय ।सावचेत मनखे ह कोनो उदुक ले आये या अवइया आफत ले बने ढंग से लड़ सकथे।


चोवाराम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

एक हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा //* =====०००=======

 एक हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा //*

=====०००=======

         (पल्लवन)

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*उंघर्रा -* लबरा कहीं के, कभू सुने हस- ,"एक हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा होथे?

*फेकू*- हव मैं सुने हंव,आंखी म देखे घलो हौं |

*उंघर्रा*- चुप रे लपरहा "लबरा के खाय,तभे पतियाय !"

*फेकू*- ईमान से पल्लोक,गऊ कसम कहत हौं भईया  | "एक हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा मैं अपनेच आंखी म देखे हौं!

*उंघर्रा* - सब मनसे अपनेच आंखी म देखथैं रे अउ अपनेच कान म सुनथैं घलो, फेर तैं अब्बड़ेच कोरा झूठ बोल देथस,कोनो पतियाय नहीं तईसे !


*फेकू*- अरे भाई तोला कईसे यकीन दिलावौं-" एक हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा होबेच करथे! 

*उंघर्रा*- चुप रे लपरहा, सिरतोन म तैं अब्बड़ेच लबरा हस ,जईसन तोर नाव,तईसनेच फेकू हो गए हस !

*फेकू* अउ तोला देखा देहूं -" एक हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा !  तव का शर्त राखे हस ?

*उंघर्रा*- ले एक ठन बीड़ी पीया देहूं |

*फेकू*- ऊंहूं- ऊंहूं,अत्तेक सस्ता म सौदा नइ होय | मोला निचट गंवार समझ लें हस का ?

*उंघर्रा* तव का शर्त राखे हस ? ले तहीं बता ?

*फेकू*- तोर सारी ल मोला देवा देबे भईया,अउ कुछू बड़े शर्त नइ कहौं |

*उंघर्रा*- अरे चुप रे लंगूर मुंह के ! मोर सारी ल देवा देहूं, तव ओकर सवांगा के पूर्ती करे सकबे ? तोला दू लात मार के बिहाने दिन भाग जाही !

*फेकू* हव भईया,ओकर सब सवांगा,साड़ी-व्लाऊज के साथ -साथ अउ जो भी फर्माईश करही,सब जिनीस के पूर्ती करहूं |

*उंघर्रा* ऊं हूं ओकर फर्माईश के पूर्ती करेच नइ सकस, तोर बहरा खेत बेंचा जाही  बेटा,समझे?

*फेकू* समझ गयेंव भईया,तभो ले तोर सारी बर मोर नीयत गड़ गए हे, एसों दसहरा के झांकी देखे बर आए रहिस,तव एक झलक ओला का निहार पारेंव,दसहरा के झांकी ल भुला गयेंव,तोर सारीच ल एकटक निहारत रहेंव,फेर ओ निर्मोही ह मोला  निहारबेच नइ करीस ! दिल टुक-टुक होंगे !!!

*उंघर्रा* अरे छोड़ तोर नीयतखोरी बात ल रे, मोर सारी ल तो का,ओकर छांव ल तैं नइ छुए सकस ! 

    अउ ए तो बता - " *एक हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा कईसे होथे ?*


    तव फेकूराम ह कहिस  कालि के घटना ए- "पाटन (दुर्ग) के रेस्ट हाउस के पास इंदिरा नगर के एक कुआं  भीतरी ले भात-साग निकलत हवय ! सब मनसे देख के अचंभा म पड़ गए हवंय ! "कुआं भीतरी ले भात-साग" ओ हो! खूब अचंभा बात आय ! अईसने भात-साग निकलही ? तव कोनो मनखे ल  बूता-काम करे के जरूरते नइ पड़ही,सब ल मुफत म खाना-दाना मिल जाही!

*उंघर्रा*- अरे छोड़ तोर फेकू बात ल रे | दुनिया ले अचरित गोठ झन गोठियाय कर | अरे लपरहा, कुआं के भीतरी ले भला रांधे भात-साग निकलही ? लबरा कहीं के ! 

*फेकू* बड़े भईया,तोला विश्वास नइ हे मोर बात म,तव चल देखाहूं- लोगन के भीड़ लगे हवय !  नरियर,सुपाड़ी,फूल,पान चढ़ावत हें, कोनों गुड़-घी के हूम देवत हें,तव कोनो भजन-कीर्तन गावत हें ! बड़का पंडाल लगे हे ! पत्रकार मन आ के फोटो खींचत हवंय,कालि के पेपर म पढ़ लेबे समझे |

    *उंघर्रा कहिस- चल चली हमू देखबो | दुनो झन जा के देखिन, तव सिरतोन म इंदिरा नगर के एक छोटे से कुआं भीतरी ले रहि-रहि के भात-साग निकलत रहिस !*

    *तव चिंतन-मनन करिन | खोजबीन म पता चलिस- एक दिन पहिली ओही पड़ोस म एक घर बिहाव होए रहिस, बफर सिस्टम म लोगन आधा ल खा के आधा ल फेंकत रहिन,वोही खाना ह नगरपंचायत के पानी म बोहावत-बोहावत ए कुआं के एक स्रोत ले कुआं भीतरी भर गईस,तऊने ह रहि-रहि के कुआं के पानी म उपलावत रहिस!

*उंघर्रा* - *अरे एही ल कथें रे फेकू -"एक हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा !"*


*फेकू*- अब तोला विश्वास होईस- मैं हा फेकू नइ हौं | 

       *तैं तो जानते हस- ओ साल हमर देस भर के शिव मंदिर म गणेश भगवान ह दूध पीयत रहिस ! छिन भर म देस भर के डेयरी दुकान अउ घरोघर के दूध खल्लास हो गए रहिसे !*

     *ओ साल शंकर भगवान के नंदी ह पानी पीयत रहिस ! जत्तेक शिव मंदिर रहिसे,तेमा लोगन के भीड़ लगे रहिस, सब मनखे खूब श्रद्धा भाव से नंदी ल पानी पिलावत रहिन समझे ?*


*उंघर्रा* *अरे फेकू, तैं किसम-किसम के गोठ गोठियाथस रे , तोर गोठ म जेन विश्वास करही,तेन "सुक्खा डबरी म बोजा के मर जाहीं*

     

*फेकू* *नहीं भईया, मोर गोठ ह लबर-झबर नइ रहय,मोर गोठ म विश्वास करहीं,तउने मनखे के भलाई हवय | मैं ह बड़े बिहान ले देस-दुनिया  के समाचार ल गांव भर के गली-खोर अउ घर-घर म, तलाब,नदिया, गुड़ी-चौपाल अउ खेत-खार म "बिजली के तार सहीं" सोर बगरावत रहिथौं  !*


     *कुछ दिन पहिली एक अजूबा बात सुने रहेंव- एक ठन लीम पेड़ के डाली से लगातार पानी बोहावत रहिस ! सुने हस के नहीं ?*


*उंघर्रा* हां  सुने हौं भाई सुने हौं |


*फेकू*- *एक ठन अउ अजूबा घटना मैं अपनेच आंखी म देखे हौं - करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर से लोरमी मार्ग म खपराखोल के पास एक इमली पेड़ के जरी म भिंभोरा ले सैंकड़ो-हजारों के तादात म बिच्छी निकलत रहिन!!! बड़े-बड़े जुन्नेटहा एक-एक बीत्ता के रोवां जामे-जामे करिया-करिया बिच्छी !!! सब ले ताज्जूब बात तो ये देखेंव- वो बिच्छी मन ल देखैया सैकड़ों लोगन मन गुड़-घी के हूम देवत रहिन, अगरबत्ती धूप-दीप जलावत रहिन, दूध चढ़ावत रहिन | एको ठन बिच्छू ल कोनो मारत नइ रहिन, अउ वो बिच्छी मन घलो कोनो मनखे ल डंक नइ मारत रहिन !!!*

    

   *हफ्ता भर बाद वो  सैकड़ो-हजारों बिच्छी मन  बड़े अजूबा ढंग से कहां अछप हो गईन !!!*


*उंघर्रा*- अरे फेकू, अब जादा झन फेंक | "एक हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा कईसे होथे ? तेन ल बता |

*फेकू*- हव भईया, तोर सारी ल मोर बर पटा देबे,तैं हम साढ़ू हो जाबो, तब तोला एक से बढ़कर एक घटना आकाशवाणी -दूरदर्शन सहीं सुनाए करहूं, ईमान से पल्लोक, लबारी नइ मारत हौं !


*उंघर्रा* * *अरे एक हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा कईसे होथे ? तेला  प्रमाणित कर देबे, तव सिरतोन म मोर सारी संग तोर बिहाव करवा देहूं, समझे के नहीं ?*

    *फेकू कहिस- तीन बाचा बाच के जल धर के संकलप करबे,तब सिरतोन म "एक हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा कईसे होथे ? प्रमाणित करके देखा देहूं*

*उंघर्रा ह फेकू के कहे अनुसार  तीन बाचा बोलके जल धर के संकलप करिस- "एक हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा कईसे होथे? तेला प्रमाणित कर देबे, तब मोर सारी संग तोर बिहाव करवा देहूं*


* *तब फेकू ह एक हाथ के पाके खीरा ल चीर के ओकर जम्मो बीजा ल जमीन म लमा देहिस, तव नौ हाथ तक वो बीजा मन लम  गईन !*


    *फेकूराम के अक्कल ल देख के उंघर्रा के आंखी खुल गे, मुंह फार के फेकूराम ल देखे लागिस!*


*फेकूराम- मैं तो प्रमाणित कर देहेंव- "एक हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा ए दईसे होथे ! अब तहूं अपन वादा पूरा कर, तेमा हम दूनो साढ़ू बन जाई , कईसे भईया सुनत हस के नहीं ?*


*उंघर्रा ल जाना सांप सुंघ गए  हे तईसे हो गे ! फेकूराम के मुंहे-मुंह ल ताके लागिस !*


( दिनांक - 15.05.2023)


आपके अपने संगवारी


*गया प्रसाद साहू*

"रतनपुरिहा"

*मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़)*



👏☝️❓✍️🙏

भाव पल्लवन-- बैरी बर ऊँच पिढ़वा

 

भाव पल्लवन--


बैरी बर ऊँच पिढ़वा

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 आगी ल आगी नइ बुझा सकय वोला तो पानीच ह बुझा सकथे।ओइसनहे क्रोध ह क्रोध करे ले शांत नइ होवय वोकर बर सहनशीलता चाही।जुबान म लगाम चाही।अइसनेच बैर के भाव ह तको होथे।वोला हवा देये ले अउ मनमाड़े भभक जथे।

     कोनो ह कोनो ल अपमानित करदिच,कुछ अइसे बात कहि दिच जेन ह हिरदे म बान असन गड़के घाव करदिच तहाँ ले दूनों म दुश्मनी पैदा हो जथे। दूनों झन एक-दूसर ल झुकाये बर ,चोंट पहुँचाये बर मौका के तलाश म लगे रहिथें।कइसनों करके बैर ल भुनावत रहिथें।एतरा ले उँकर दुश्मनी गढ़ावत जाथे।

  बैर करना अच्छा नइ माने जाय फेर स्वाभिमान अउ देश के रक्षा खातिर जूझना ह मान तको पाथे।

 अधिकांश दुश्मनी ह छोटे-मोटे कारण ले पैदा होके विकराल रूप ले लेथे अउ दूनों दुश्मन ला भारी नुकसान पहुँचाथे। झगड़ा-लड़ाई ,मारपीट युद्ध ले ककरो भला नइ होवय।

  बैरी ल जीतना तब सहज हो जथे जब वोकर दिल ला जीत ले जाथे। कोनो कुछु भी कारण ले बैरी होगे हे त वोला अपन कोती ले सम्मान देके ये बैर ला खतम करे जा सकथे। बैरी ल ऊँच पिढ़वा देके बइठाना अच्छा होथे।अइसन करे म खाँटी दुश्मन ला दोस्त बनत देरी नइ लागय।


चोवाराम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

पल्लवन-तीन पइत खेती,दू पइत गाय

 पल्लवन-तीन पइत खेती,दू पइत गाय

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खेती-किसानी अउ पशुपालन ह बहुतेच मेहनत के बुता आय।अबड़ेच देखरेख करे ला परथे। 

      अइसे तो किसान हा दिन-रात खेत मा गड़े रहिथे फेर जेन किसान हा कम से कम तीन पइत-बिनहिया,दोपहर अउ बेरा बुड़ती झुलझुलहा के होवत समे अपन खेत मा लगे फसल के का स्थिति हे तेला नइ निहारय तेला नुकसान उठाये ला परथे।काबर के नाखा -मुही,मेड़-पार फूटगे अउ वो हा नइ देखिच ता जम्मों पानी बोहा जही अउ खेत सुक्खा होके, फसल भूँजा जही,बरा जही। चेत नइ करे ले हरही-हरहा गाय-गरुवा मन फसल ला चर तको देथें। ओइसनहे फसल के कई ठन बीमारी अइसे हें जे मन दिखिच अउ तुरत-फुरत उपाय ,दवा के छिड़काव नइ करेगिच ता पूरा खेत मा फइल के फसल ला चौंपट कर देथें। कनकट्टा फाँफा मन तो हजारों-लाखों के झुंड मा आथें अउ फसल ला कतर के ,खाके सफाचट कर देथें।तेकर सेती हमेशा नजर रखना चाही।

  खेती-किसानी मा किसान ला माटी मा माटी मिले बर परथे। जाँगर ओथारी करके ,घर मा फोसोर-फोसोर नींद भाँजे  मा खेती के काम ढंग ले नइ हो पावय।

   अइसनहे गाय ला पालना तको सावचेती अउ अबड़ मिहनत के कारज आय। गाय ला सुबे-शाम पौष्टिक चारा अउ पानी ला देबर लागथे। गाय के पेट नइ भरही ,वोहा पियास मरत रइही ता बने दूध कइसे देही? वोकर कोठा के बिहनिया संझा दू पइत साफ-सफई होथे,गोबर-कचरा ला हटाये जाथे त गाय हा स्वस्थ रइथे। गाय के देंह मा किन्नी अउ घाव-गोदर थोरे होगे हे तेनो के हरदम चेत राखे ला परथे। कोठा मा मनमाड़े मच्छर मन के बासा थोरे होगे हे तेकरो खियाल रखे बर परथे।


चोवाराम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

पल्लवन-बिन रोये दाई दूध नइ पियावय



पल्लवन-बिन रोये दाई दूध नइ पियावय

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मनखे के जिनगी मा कतको समस्या आवत-जावत रहिथे।व्यक्तिगत समस्या मन ले अक्सर कतकोन पिड़ित रहिथें। समाज मा तको कई ठन समस्या खड़ा हो जथे। कहे जाथे के समस्या हे ता वोकर समाधान तको हे। कोनो प्रश्न हे ता वोकर उत्तर तको हे।

   समस्या के, बाधा-बिपत के हल सब कोई चाहथें फेर समस्या के सहीं ढंग ले समाधान तभे होथे जब वोला उचित जगा मा उचित तरीका ले रखे जाथे।कतेक झन ला अपन समस्या ला बने ढंग ले रखे तक ला नइ आवय।जब वो हा अपन समस्ये का हे तेला नइ बता पाही ता कोनो हा कइसे समझही अउ कइसे दूर करही। लइका हा जेन बोल के नइ बता सकय तेनो ह भूँख मरथे ता चिल्ला-चिल्ला के रो-रोके अपन महतारी ला संकेत करथे तहाँ वोकर दाई हा समझ जथे अउ दूध पिया देथे।

    कतेक मनखे ला एहू पता नइ राहय के वोकर कोन काम कहाँ होही।बस भटकत रइथे अउ धन के संग समय के बर्बादी होवत रहिथे।अइसनहे हा दाँत में दरद अउ आँखी के इलाज कराये सहीं हो जथे।अइसन बखत वोला जानकार आदमी मन ले पूछ के उँनकर सलाह ले काम करना चाही। 

   अगर कहूँ पारिवारिक समस्या हे ता परिवार के मुखिया सियान मन सो गोहराना चाही। कहूँ सामुदायिक गाँव-बस्ती के समस्या हे ता वोला शासन-प्रशासन सो रखना चाही।अइसन समस्या के निदान अकेल्ला के बजाय सामूहिक रूप मा रखे ले जल्दी होये के संभावना रइथे।


चोवाराम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

ब्यंग "" "आम आदमी खास आदमी" ""

 ब्यंग  


  "" "आम आदमी खास आदमी" ""       


             आदमी के फकत आदमी होय ले कोनों बात नइ रतिस। फेर इहाँ तो वर्ण भेद के चिखला मा सबो सनाये हे। जात धरम रंग के भेद। अब एकरे भीतर वर्ग भेद। जिंहा छोटे बड़े आम आदमी अउ खास आदमी के भेद हे। वर्ग भेद के भोंड़ू मा कुछ मन खास होगे अउ कुछ मन आम। खास मन के मुड़ी मा पद पावर पइसा रुतबा ठसन के सिंग रथे। जेला व्ही आई पी दर्जा के घलो कथें। अउ दूसर आम आदमी जेकर खाय बर खपुर्रा ना बजाय बर दफड़ा। ये हाना हर आम आदमी के सबो भूगोल अउ अर्थशास्त्र के परिभाषा ला अवगत कराथे। फेर अटल सत्य ये हे कि इही लँगोटी वाले के बल मा धोती वाले टोपी वाले मन फुदरथें। ये आम आदमी ला आमा के रूप मा समझ सकथन। एला कइसनो सेवन करले सवाद दिही। पना बना ले सिलपट रगड़ले नून चर्रा से लेके अथान डार के मजा ले सकथस। अउ ते अउ गेदराय पाके ला गोही छोड़त ले गुदेल गुदेल के चुचर सकथस। ये आमा रूपी आम आदमी ला कइसनो उपयोग करले सवाद बरोबर मिलही। डर भय देखाके रेवड़ी बतासा के लालच देके वोट डरवा ले। भाषण झाड़ना हे त इही आम आदमी के भीड़ बढ़वा ले। दंगा करवाना हे त लाठी डंडा धरादे। माटी तेल माचिस धराके कोनों न कोनों आम आदमी के घर भुँजवादे।जेकर आँच खास मन के छइँहा नइ खूँदे। जर भुँज के राख हो जही तब मरे लाश अउ जरे घर के आँच मा रोटी सेंके बर आहीं। दरद निवारक औषधि बनके हल्ला मचावत संसद भवन ला हलाहीं। अउ आम आदमी के संताप ला पोष्टर बनाके चौराहा मा टाँगहीं।

          आम आदमी के समझ ये हे कि सबो मनखे अपने जइसे होही। फेर समझ समझ के फेर हे। हमरे बीच के आम हर खास बन जथे तब आमा सही गुदेल के चुचरे के फेरा मा रथे। झूठ फरेब धोखा बइमानी के बजार मा ईमानदारी के पसरा कब के उठ चुके हे। चाँदी के चमचा तो देखे ला नइ मिले। फेर कतको कोचिया किसम के चाँदी खास मन के पाँव धो के पिये ले होवत रथे। खास मन के अँगना मा सुरुज पहिली उथे तब आम जन के कुकरा बासथे।

           पाछू बखत के बात आय। आम आदमी के हैसियत ले गाँव गली के हाल जाने बर अपन दुरदर्शी चश्मा पहिर के चौराहा मा पहुंच गेंव। एक झन आम आदमी खास बने के सपना साधे अखंड भारत के निर्माण बर कसम खाके मोला अवाज देत रहय। देखते देखत मोर ले कका बबा के रिस्ता बना डारिस। फेर अस्सी साल के बहुरुपिया आरो सुन सुनके कान पाक के पीप बोहात रिहिस। तब असली आम आदमी के कला रचत भैरा बनके मौनी ब्रत के रियाज करत सुटुर सुटुर रेंगे लगेंव। मोला अंदाजा हो गेय रिहिस कि ये आदमी खास बने बर ऊँचा दर्जा के भिखारी के भूमिका निभावत हे। कतको दिन के लाँघन भूखन कस आके पाँव पर डारिस। कका बबा फूफा मोसा के रिस्ता बना डारिस। अपन लाम लाहकर एजेंडा के सूचि देखावत वादा वचन निभाय के किरिया कसम तको खा डरिस। अउ लड़हार पुचकार के मोर एक वोट के माँग करत मोरे लइका बनके मोला अपन बाप घलो बना डारिस। अपन अधिकार के सही उपयोग करत हवँ कहिके दया करके दे पारेवँ। ओकर सपना तो पूरा होगे। वोकर बाद कोन कका कोन बबा सब रिस्ता खतम। ओकर वादा वचन के कचरा मा दिंयार चढ़गे। अटके बनिया परे बखत मा काम आना तो दूर पहिचानिस तको निंहीं।

            हमर असन आम जन इँकर रोना धोना लमछोरहा एजेंडा अउ रेवड़ी बतासा के मोंह मा फँसके बाँचे खोंचे एक ठन अधिकार के घलो बली चढ़ा देथन। तब धोखा मा हाथ झर्राना बाँचे रथे। अउ फेर इतिहास गवाही हे आज तक कोन खास अपन जबान मा अटल हे? फेर वाह रे आम आदमी अपन एक वोट के कीमत जान सके न कदर। छोटे बड़े आम अउ खास के बीच के खाई पटबे नइ करे। भरे ला भरे जावत हे अउ जुच्छा के कनोजी खपलावत हे। लोक लुभावन गोठ के सँग धार्मिक आस्था के चारा सान के गरी काँटा मा  गुँथके आम जनता के बीच फेंके के चलन बाढ़ गेहे। इँकरे हाथ मा छूरा अउ मूड़े बर हमरे मुँड़ी। जतके बाल ओतके माल। दिल्ली हीरा ले भरे कोइला के खदान आय। हाथ सनाये के चिन्ता नइये हीरा तो खास मनके हाथ लगत हे। दरी जठइया मन दर दर भटकत हे। जमीन ले जुड़े जमीदार मन सरकारी मुआवजा के अरजी धरके किंजरत हे। मजदूरी करइया रिक्शा ठेला रेहड़ी वाला पाव भर दारू के चक्कर मा खास मनके जनम दिन के पोष्टर टाँगे मा लगे हे।

                आज देश उद्योगपति बैपारीअउ राजपथ वाले मन के ताल मेल ले चलत हे। इही तीनो मन आम के पना बनाके पियत हे। यहू कहि सकथन कि आम आदमी माने हलाल करे के वो कुकरी जेकर प्राण हरे ना सुलिन लगाके जीयन देय। अब तो आम आदमी के भरम हे कि सरकार हम बनाथन कहिके। फेर सच ये हे कि सरकार मशीन बनाथे उद्योगपति बैपारी जेला कार्पोरेट घराना के खास कथन वोमन बनाथे। अपन फायदा के हिसाब ले इही खास मन खास मनके निर्माण करथे। आम आदमी अपन अँगरी मा परे सियाही के निसान देखके खुशी मा तिहार मनावत रथे। कि सरकार हम बनाय हन। मशीनीकरण के तहखाना मा काजर के डबिया हे आँजबे तभो अँधरा नइ आँजबे तभो अँधरा। जेन खास मन खास के चुनाव करथे उँकर लागत अउ लाभ चार गुना का चोबिस गुना होके मिलथे। आम जन के हाथ चरन्नी नइ लगे। हम जब "आप" के कथन तब जुरमी अपराधी करार देय जाथे। "का" के सँग जुड़के रेहे मा देश ला कँगला अउ गरीब बनइया के सूची मा नाम सँघेर देथे। "भा" वाले मन तो भकला भोंदू समझके ठग जग करे मा माहिर दिखथे। ओकर सेती "आ" मे "म" जोड़ के अँगरी मा सियाही के निसान लगाना ला अपन सौभाग्य मानत हे। दानवीर करण कस कवच कुंडल तो का कनिहा के लँगोटी तको उतरगे तभो ले नाती भतीजा मन ला खास बनाके बरेंडी मा टाँगे के धरम निभावत हवन।आम जनता आमा कस गुदेलाय पिचकोलाय चाहे चुहकाय राष्ट हित मा  त्याग करे के कसम खा डरे हे। फेर अपन अधिकार ले अनजान मन आज ले नइ जान पाये हे कि आम कोन हरे अउ खास कोन हे।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

Friday 12 May 2023

कुटनी चाल महेंद्र बघेल

 कुटनी चाल 

                  महेंद्र बघेल 


ननपन म हमर परोस म एक झन होनहार कका रहय।ओला कई ठन कथा-कहानी ह मुअखरा याद रहय।जब कभू किस्सा -कंथली सुने के मन होय मॅंय कका कथा दास के आरो लेवत ओकर तपोभूमि म पहुॅंच जाॅंव।उपन्यास कस बड़े ले बड़े, लघुकथा कस नान्हे ले नान्हे अउ कहानी कस मॅंझोलन टाइप के कथा-कहानी सुनाय म एक नंबर के उस्ताज रहिस कका कथा दास ह।कथा दास ह कतको कथा- कहानी ल जाने फेर ओकर जिनगी म कथा- कहानी सीखे के कोई विशेष कथा- कहानी नइ रहिस।

          कभू-कभार बबा (कका के ददा) ल पूछन त ओहा बताय - "हमन कथा दास ल बड़ मुशकुल म पाय हन बेटा.., कई साल ले इहाॅं -उहाॅं जा-जाके मूड़ी नवायेन, मनौती माॅंगेन.., घर-दुवार अउ डिही-डोंगर म बड़े-बड़े कथाकार मन ले कथा कहवायेन।त ले देके ऊपरवाला के हेड आफिस म हमर मनौती के बनौती बनिस। कथा दास ह जब लघु कथा कस नान्हे रहिस तभे कथा-कंथली कहवइय्या सियान मन ल सुन-सुन के कथा कहे बर सीखगे रहिस।"        

          जातक कथा, लोक कथा, परी कथा, जोक्कड़ कथा, एकम कथा ,दूज कथा, एकादशी कथा.., पुन्नी कथा, अमौसी कथा, राजा रानी के कथा, माल मवेशी के कथा अउ किस्सा-कंथली..,जेन कथा के फरमाइश कर दे उही कथा ल सुनाय बर एक गोड़ म खड़े रहय कका कथा दास ह..। तुम नइ पतियहू फेर कथा दास के अवाज ह अमीन सयानी के अवाज कस बड़ गुरतुर रहिस। सुनत-सुनत पेट ह लाॅंघन पर जतिस फेर सुने बर मन ह नइ अघाय।

                 जेठ के गरमी म घर के सबो परानी मन खा-पीके मंझन कुन ढार परत रहेन। हमन मंझनिया ल अभी ढारतेच रहेन कि सबरदिन कस आजो बिजली माता ह खुद मंझनिया ढार परे बर नौ दो ग्यारा होगे। बिजली आफिस के सम्मान करे बर हमर कर करेंट वाले एको ठन शब्द नइहे फेर बिजली बाबू-साहेब मन कर कतको शिकायत करले, उद नइ जले..।एकरे ओधा म उनकर भरे मंझनिया ढार परे के प्रोग्राम ह पहिली ले सेट रथे। एती बिजली माता के किरपा ल देखके घर के जम्मो पंखा,कुलर मन घलव ढार परगें। इनकर ढार परई ल देखत हमर ढार परई के पसीना छूटगे । शिवनाथ खारून के धारा कस तरतर-तरतर बोहावत पसीना के डीओ टाइप नेचरल खुशबू ले जीव ह हलाकान होय लगिस। तुरते एक ठन गमछा ल धरके बिजना कस धूॅंकत अउ एसी के अनुभो करत बेरा पहाय के उदीम म अपन गोड़ के दिशा ल कका कथा दास के तपोभूमि के दरबार हाल डहर जाय बर मोड़ देंव।

   कहाॅं जी कका..,का करत हस मॅंय हूॅंत करायेंव। कका कहिस-" घर के भीतरी म हॅंव जी..,माछी खेदारत हॅंव। बिजली गोल होय के खुशी म माछी मन आजादी के तिहार मनावत मुॅंहुॅं-कान म भरतनाट्यम करत हें,उही मन ल खेदत अपन राष्ट्रीय धरम निभावत हॅंव।चल बता कइसे आना होइस।

          बिजली महतारी के किरपा ले खटिया मा ढलंगे कथा दास ह गरमी म खुदे तालाबेली होके छटपटावत मोबाइल ल कोचक- कोचक के ओकर प्राण पुदक डरे रहय। अउ नब्बे परसेंट बतावत डाटा ह लसियाके टाटा करे बर उल्टी गिनती गिनत रहय।

         कथा दास के कथात्मक गोठ ल सुनके सबले पहिली बिजली विभाग ल श्रद्धा सुमन अर्पित करेंव अउ गरमी के मारे चोपियाय अपन बक्का ल खोलेंव -" बड़ दिन ले तोर कन आय बर योजना बनात रहेंव कका..,फेर नइ उसरत रहिस,आज धन्य मनावत हॅंव बिजली महतारी के जेकर परसादे कथा-कहानी सुने के मौका मिलही।" 

        कका कथा दास ह बड़ बेर ले मनेमन म गुनिस अउ कथा सुनाय के बोहनी करिस -" तोर आय के पहली एक ठन समाचार ल पढ़त रहेंव बाबू रे.., रातकुन बीच सड़क म बइठे कारी गाय म झपाके होंडा सवार बाप-बेटा के अस्पताल म मौत।एक तो पक्की सड़क उपर ले कारी गाय,अइसन अलहन ले भगवान बचाय।चल आज मॅंय तोला इही मवेशी समाज के किस्सा सुनावत हॅंव।चातर राज म माल-मवेशी मन के भरोसा म किसान मन अपन खेती-बाड़ी करत सुख-दुख म जिनगी पहावत रहिन। ओ राज के किसान के बेटा मन बड़ हुसियार रहॅंय,ओमन खेती-किसानी ल सरल बनाय बर खोज-खोज के नवा-नवा मशीन बनाना शुरू करिन। मोटर पंप बनाय ले किसान के चेहरा म खुशियाली छागे। फेर उड़ावनी पंखा, थ्रेसर अउ हार्वेस्टर जइसे किसानी के जम्मों औजार बना-बनाके किसान मन के काम ल सुभित्ता करत गिन। होनहार पुत्तर मन के नवा-नवा खोज के सेती किसानी काम-काज म माल-मवेशी के पूछ -परख कम होगे। पूरा मवेशी समाज मन अकाल बेरोजगारी के शिकार होगें, समाज के समरसता छिदिर-बिदिर होय लगिस। बिना काम-धाम के बैठांगुर गाय-भैंस परिवार के बछवा, पड़वा मन के आदत एकदम बिगड़गे।सड़क होय चाहे बरदी येमन खुलेआम छेड़छाड़ अउ नान्हे नीयत रखना शुरू कर दिन। मने येमन टपोरी,सड़क छाप होगें अउ अपन खानदानी संस्कार ल भुलाय लगिन। मवेशी समाज म असहिष्णुता के बोलबाला होगे। समाज म समरसता के भाव ल छर्री-दर्री होवत देखके चारा,आवास अउ रोजगार के फिकर करत एक दिन मवेशी समाज के जम्मो सियान मन आम सभा बलाइन। एमा गधा-घोड़ा, उॅंट, छेरी-भेड़ी गाय अउ भइस समाज के सियान मन अपन अपन बात ल लइन से रखिन अउ सबके सहमति ले गाय समाज ले गबरू गोल्लर अउ भइस समाज ले भुसुंड भैसासुर ल अपन महासभा के सियान मनोनीत कर दिन। फेर बारी-बारी ले अपन- अपन समाज के समस्या अउ सुझाव ल बइसका म सुनाय बर कहिन।

                सबले पहिली छेरी-भेड़ी समाज डहर ले डड़िहारा बोकरा ह में-में-में.. राग धरत बुलंद अवाज म मेमियावत चार समाज म अपन बात ल रखिस -" में -में.., मॅंय का बोलव में-में..हमर तो अवाजे थोरको नइ सुने सरकार ह.., कुछु कहिबे ते चुप रे छेरी कहिके हमर बोलती बंद कर देथें।हमर चारा के चरागन- ये भाठा,पाई -परिया ह डिस्पोजल कप ,पतरी-पलेट, गिलास, झिल्ली, सनपना के मारे पटा गेहे,चतुरा किसान मन मेड़ -पार म सफाया छिंच -छिंच के चारा के भ्रूण हत्या करे म लगे हें।मनखे समाज के दाढ़ी वाले मन अपन तिहार म हमर सामूहिक कतल करत जशन मनाथें अउ मनौती माॅंगे बर चोटइय्या वाले मन हमर बली दे-देके घंटी बजावत नोट गिनत हें। सुवारथी मनखे के धरम -करम ह हमर प्राण ले जादा किमती हे का..। मनखे के चोला म येमन शेर-भालू ले जादा हिंसक नइ होगे हें..।

ये आमसभा म हमला इही कहना हे कि झिल्ली डिस्पोजल के बउरई अउ सफाया छिंचई उपर तत्काल बेन लगाय जाय अउ हमर बर कोंवर-कोंवर, हरियर-हरियर हाइजीनिक चारा के व्यवस्था करे जाय। नइते ठगेश्वर बाबा सही हमन ला तांत्रिक विद्या सिखोय बर ठगानंद विद्यालय खोले जाय।जेकर ले हम अपन सिंग म तंत्र विद्या सकेल सकन,समाज म एकता ला सकन अउ हमर छेरी समाज के हत्यारा बैरी मन ले हुमेल-हुमेल के ऐतिहासिक बदला ले सकन।

      दूसरइय्या नंबर म ऊंट अउ घोड़ा समाज मन अपन अल्पसंख्यक होय के रोना रोइन अउ खेत-खार, परिया-कछार जिहां तक हरिहर-हरियर दिख जाय उहाॅं तक चरे बर विशेष सुविधा देय बर आवेदन लगाइन।एक ठन सुधवी बपरी सही दिखत धौरी घोड़ी ह समाज के दुख म अपन दुख ल मिंझारके हिनहिनावत कहिस-" विकास बाबू के राज म हमन तो अल्पसंख्यक होगेन जी, राजा-महाराजा के समे म हमर अलगे धाक रहय, हमर बिना एक ठो पत्ता नइ डोले। आजकल तो हमर कोई पूछन्त्ता नइहे। बिहाव सीजन म एकाद कनी रोजगार मिल जथे फेर यहू डहर कभू-कभू जात-पात म बुड़े दबंग समाज के ॲंखफुट्टा मनखे मन मोर उपर बइठे दूल्हा मन ल जबरन खींचके उतार देथें।मनखे डहर ले मनखे के अतिक हिनमान होवत देखके पोटा अइॅंठ जथे।दबंग समाज के मनखे मन अतिक देखमरा होथे,हम बता नइ सकन..,फेर हम ये ॲंखफुट्टा मन ल छटारा (दुलत्ती) मारके अपन बेइज्जती घलव नइ करा सकन, घोड़ा समाज के अपन इज्जत के सवाल रहिथे। आखिर म हमर एके ठो डिमांड हे हमर पुरखा.., घोड़ा शिरोमणी खूर-वंदनीय एक हजार एक घोड़ेश्वर चेतक महराज के जन्म जयंती अउ पुण्य तिथि बर शासकीय अवकाश के घोषणा करे जाय।

        अपन पारी म गधा ह रूतबा देखाय के चक्कर म अपन अवाज ल बदलके कोयली कस मीठ अवाज म बोले के कोशिश करिस फेर बिचारा गरीब ह रेक डरिस अउ आखिर म होची- होची करत अपन बात ल रखिस-" हमर दुख ल हम का बतान सियान बबा हो, दुनिया म जब तक हुशियार मन ह रहीं तब तक हमरो नाम ह अमर रही। हमर तो नामे ह हुशियार लइका अउ सरकारी स्कूल के भरोसा म जिंदा हे।कते दिन सरकार ह यहू ल बेच भाॅंज के प्राभेट कर दिही ते हमर नाम के अर्थी निकल जही। सरकारी स्कूल के मास्टर मन कमजोरहा लइका ल बात-बात म अरे गधा हो कहि कहिके हमर समाज के नाम ल अमर कर देहें।प्राभेट स्कूल के सूट-बूट पहिरे लइका ल भला गधा कहिके तो देख।  मनखे समाज मन कूद-कूद के कतको चिल्लावत हें, हमर जनगणना करो कहिके फेर कुर्सी म बइठे हमर टाइप के सगा मन कहाॅं मानत हें।अउ हमर ल देख लेबे कइसे फटाफट जनगणना हो जही तेला।अब चार समाज मन खुदे समझ सकथो जनगणना के मामला म मनखे अउ हमर म काकर रूतबा ह जादा हे।एती मिक्सी ग्राइंडर के जलवा सेती जाॅंता अउ सील -लोढ़ा म वाट लगगे हे।एकर साइड इफेक्ट अइसे कि बेल्दार भैया मन हमला लात मार के भगा दिन।वांशिग मशीन के सेती बरेठ भाई मन लचार हें त हमर हाल ल समझ सकथो बबा हो..। हमरो समाज के रोजी-रोजगार बर कुछ योजना बना देतेव ते गधा समाज ह ये महासभा के जीयत भर आभारी रही बबा हो.., होची..होची।

              जब भैंइस समाज के पारी अइस तब सियान भैंसासुर ह समाज के समस्या ल बताय बर मुर्री भैइॅंसी ल नेम दिस।मुर्री भैइॅंसी ओंय..,ओंय.. नरियावत कहिस -" हम हमर दुख ल का गोहरावन जी हमर बर तो हमर कायाच ह ॲंधियार हे,एक कन घाम म जाथन त चट ले जरथे..,जीव अगिया जथे।फेर का करबे जीयत हन,लद्दी म घोलन्डबे त मालिक ह धो देथे।इही लद्दी ह हमर बर एसी के काम करथे फेर वाह रे सुवारथी मानुष चोला, धो-धो के हमला गरमी के मुंहुं म ढकेल देथें..। हमर भैइस समाज के दूध एकदम गाढ़ा रहिथे तभो हमर ले दुवा-भाव, मनखे मन अपन देवता-धामी म नइ चढ़ाॅंय।बेचे बर,इस्पेशल चहा बनाय बर, लस्सी बनाय बर हमरे दूध एक नंबर माने जाथे। फेर हड़ही गाय जेकर कोई औकात नइहे.., निच्चट पनीयर दूध देवइय्या ल मुड़ी म चढ़ाय रहिथें। ओकरे दूध ल देवता म चढ़ाथें, घीव के दीया जलाथें। हमर तो पूछन्त्ता नइहे।

           गाय समाज के निंदा ल सुनके उनकर युवा वाहिनी के नेता गबरू गोल्लर ह बगियागे फेर सियान होय के नाते मन मसोस के रहिगे। येकर जगा कन्हो मनखे समाज के नेता रहितिस ते ओकर भावना ह खच्चित आहत हो जाय रहितिस। अब आखिरी वक्ता के रूप म गाय समाज ल बोले के मौका देय गीस त गाय समाज के चतुरा सियान मन मुर्री भैइॅंसी ल धवाॅंय बर हरही-चोट्टी टाइप के मुहुबाड़िन गाय ल बोले बर उठईन । ठड़सिंगी चोरही गाय ह उनिस न गुनिस सोज-सोज शुरू होगे अउ भैइसी समाज के सात पुरखा म पानी रितो दिस-" हाव रे.., बिलवी भैइसी.., भदही.., भाॅंठा के चारा ल सफाचट कर देथस, हमर बाटा के काॅंदी -पैरा ल मनमौजी खाथस ,कोटना के दाना-पानी ल दमोर के झड़कथस तब तो तोला कुछु नइ लागिस,आज भरे मिटिंग म ओंय-ओंय करत हस खबड़ी.., पेटमाॅंहदूर..। गऊ माता कहि-कहिके हमला कट्टीपार भेजत हें,रात-दिन सड़क म रउॅंदा -रउॅंदा के मरत हन, तेकर कुछ हिसाब हे..।

 नइ जानस तेला आज जान ले। मनखे समाज कस जानवर समाज म कन्हों पोथी-पत्तर होतिस ते हमर गाय समाज ल सबले ऊंचा जात के पदवी मिलके रहितिस समझे। हमर मान गौन ह मनखे समाज ले कौन मार से कम हे। दंगा म लिल्हर मनखे ह मर जही ते दबंग समाज मन ल कोई फरक नइ परे फेर हाॅं दूसरा धरम वाले ह हमर समाज के लेवई तक ल छू दिही ते इनकर भावना ह खट ले आहत हो जथे अउ लड़ई-गुंडई के कोशिश म लग जथें। अब समझेस कि अउ समझाॅंव.., गाय के आगू म लिल्हर मनखे के का औकात हे..‌। मनखे समाज म हमर तो अइसे-अइसे ऑंखी वाले भगत हें..,जेन सु-सु ते सु-सु गोबर ल घलव गापा मार देथें त हमर का दोष..।

              जानवर समाज के महासभा म अपन दबंगई दिखाय के गाय समाज के कुटनी चाल ल समझत मुर्री भैइॅंसी ल देरी नइ लगिस। ओ मने मन म गुनान करे लगिस -" लफर- लफर डिंग मारके जानवर समाज ल कइसे भोंदू बनाना हे, इही मन ल आथे। हत रे कपटी हो दिखत के सुधवा-सुधवी फेर दिल- दिमाग म जहर भरे हे रे बैरी हो। एक्के घाॅंव पखुरा ल हुदेनहू ते तुॅंहर बुता बन जही फेर ठउॅंका समय म मोरे समाज के डरपोकना मन संग दिही कि नइ दिही तेकर का भरोसा, कतिक बेर पाछू घूॅंच दिही..,जानवर समाज के बाते झन पूछ..।"  इही सोचत मुर्री भैइॅंसी ह अपमान के घूॅंट ल गटागट पीगे..। अउ चार समाज के हित के बारे म सोचत अपन बात ल महासभा के बीच म फेर रखिस -" टार बहिनी तुमन फोकट के झगरा मतावत हो,आज ले गाय समाज के एको मेंमर ह हमर समाज के नानचुन लेवई तक ल बिलवी भैइसी नइ कहे रहिन। अउ तुमन भरे आमसभा म नसल भेद के बात करत हो। जानवर ते जानवर मनखे समाज ह घलव अइस ठोसरा नइ मारे रहिन।" 

       भैइसी ह जानत रहिस अपन समाज के कमजोरी ल.., कइसे भुसुंड भैसासुर ह गाय समाज अउ गोल्लर के घपघप (बहकावा) म आ जथे अउ सबो जगा म गबरू गोल्लरे के कूटना चाल अउ दबंगई ह चल जथे। मनखे वाले लोकतंत्र सही अपनो लोकतंत्र ल दबंग मन के कठपुतली बनत देख.., मवेशी समाज म समरसता ल सदा कायम रखे बर मुर्री भैइॅंसी ह अपन अंतस के आक्रोश ल चुमुक ले दबा दिस।तहाॅं अवइय्या विश्व जानवर दिवस बर अइसनेच बइसका के घोषणा करत गोल्लर ह भूॅंकर -भूॅंकर के सभा समापन के घोषणा कर दिस..।


महेंद्र बघेल डोंगरगांव