Saturday 20 May 2023

बनौती बनादे महेंद्र बघेल

 बनौती बनादे 

                         महेंद्र बघेल 


कोमल के संग जब-जब मोर भेट होथे,ओकर सुभाव ह सिरबिस शिकायती च रहिथे।आजो ओकर ले गांधी चौक म ओरभेट्टा होगेंव...,भइगे मोला बनेच जोहार दिस अउ शुरू होगे - " कतको कहिबे थोरको नइ माने,मन के बात गड़रिया जाने.., कोन जनी मास्टर संगवारी मन ल का हो जथे ते,येमन ह जब -जब सॅंघरथें ,तब-तब आपस म गोठ-बात करत अइसे रबक जथें जइसे महाअघाड़ी के माफिक तिरसठ-तिरसठ खेलत हें।येमन ल देखके,सुनके अउ सूॅंघके अइसे लगथे मानो येमन कोनो शोध करने वाले शोधार्थी ऑंय अउ कोनो  विषय म शोध प्रबंध लिखे के जुगाड़ करत हें। कहुॅं एके दिन म एक ले जादा घाॅंव मिल जहीं तभो ले जोर-शोर ले मिलहीं, मुॅंहुॅं जोड़ के मिलहीं।"

                कोमल के मितान के नाम दिनेश.., मितान कहे म मितान के वजन ह थोकिन हल्का कस जनाथे.., येला लंगोटिया मितान कहे म जादा फबथे। फेर आजकल लंगोट के नाम ह खुदे नंदाय वाले सूची म आ गेहे। बीते समय म लंगोट के अपन अलग नाम रहिस। लंगोट के नाम सुनतेच अभिजात्यपना के अनुभो होवय अउ ऑंखी के आगू म साॅंघर-मोंघर पहलवान के फोटू ह उपक जाय। येमा बड़े ई के मात्रा लगाय म दिमाग ल अभाव म जीयत मनखे के अनुभो होवय अउ दिमाग के बत्ती ह तइहा जमाना म बबा तक पहुंच बना के ओकर जीवन संघर्ष के कहानी ल उघार देवय।

         पहलवान मने दूध-दही, घीव-मलई अउ काजू-बादाम झोरइय्या मोठ-डाट मनखे जेला देखके सधारण मनखे के हालत ह पातर-सीतर हो जथे।एक डहर दबंगई के खुला मैदान म कुर्सी वाले पहलवान मन सूरुज ल बुड़ती डहर ले उवोय म ताकत लगा देहें। अउ ओती कुश्ती लड़ईय्या महिला पहलवान मन बीच सड़क म अपन इज्जत -आबरू बचाय के लड़ाई लड़त दिखथें। तब लगथे देश के दिल म बेटी- बचाव अउ बेटी -पढ़ाव के ये नारा ह छिदिर-बिदिर होके खून के ऑंसू रोवत हे। आजकल तो न्यायालय के पहिली मीडिया म बैठे पुचपुचहा एंकर मन ह खुदे सच अउ झूठ के फैसला करत दिखाई देथे। का करबे कई ठन गोठ ल ऑंखी अउ कान के मान-सम्मान खातिर गोठियाना जरूरी हो जथे। चलो छोड़ो ये गोठ ल।

                  एक दिन कोमल अउ दिनेश दूनो झन एक ठन होटल म सॅंघरगें अउ रट्ठाके जमगें.., मतलब चाय-चुहके के दौर चलगे..।कोमल ह देशी अंदाज म चहा पीये के मजा लेय त दिनेश के मुॅंहूॅं ले अवाजे नइ निकले।चहा के असली मजा तो देशी अंदाज के सड़फड़हा अवाज म रहिथे।कड़क चहा के  सुड़क्का मजा ल सुगर वाले मन भला का जान पाहीं..।बात लंगोट के चलत रहिस त ओकर विकास के कहानी ल जानना भी हमर लंगोट धरम आय। येहा भूतकाल म लंगोट (लंगोटी) रहिस , मध्यकाल म बेगी (कच्छा), वर्तमान म सबके डियर अंडरवियर..।

             लंगोटिया मितान के मतलब ल समझत -समझत बुध पतरा जथे फेर मामला कुछ समझेच नइ आवय। एके ठन आइटम (लंगोट) ल दूनो झन कइसे बउॅंरत रहिन होहीं। हो सकथे ननपन म दूनो मितान मन अलग-अलग लंगोटी पहिरे गली-खोर म फूल खिलात रहिन होही। सुबे -सुबे बाटी-भौरा, घरघुॅंदिया खेलत-खेलत धुर्रा -माटी म मटक-मटक के रेंगत रहिन होही। तरिया म नहाय के बेर कपड़ा बदले के का रोडमेप रहिस होही उही मन जाने। मॅंय तो जब-जब देखेंव उनला नाश्ता झोरत अउ चहा चुहकते देखेंव।ओ हिसाब म येमन ल चहेड़िया मितान कहना जादा उचित लगथे।

          फेर पुरखा मनके लंगोटिया मितान के ये जो हाना चलत हे उही ल चलाय म समझदारी हे नइते जम्मो पुरखा मन रिसा जहीं अउ पीतर पाख म कौवा देखई ह घलो नोहर हो जही। मंजन -मुखारी, बरा-सोंहारी अउ तोरई-बरबट्टी के जतन अकारथ हो जही। सौ बात के एक बात कोमल अउ दिनेश दूनो झन चहेड़िया नइ लंगोटिया मितान आय।

                     कोमल ह खेती -किसानी के काम म व्यस्त रहिथे, चिंतन-मनन अउ ध्यान के गहराई म तऊॅंरे बर साधु-संत अउ जान-पहचान संग भेंट-मुलाकात म मस्त रहिथे।दिनेश के बात कुछ अलग हे, वो सरकारी नौकरी म हवय, उपर ले स्कूल मास्टर। गांव के तीर म पोस्टिंग हे..., मने ऊपरवाला जेला देथे छप्पर फाड़के देथे।

                  मास्टर (गुरूजी) मन जेन जगा म सॅंघर जथे उही कर उनकर दरबार लगना शुरू हो जथे अउ खुल जा सिम-सिम कहे के पहली उनकर समस्या के पिटारा खटले खुल जथे।अगल-बगल म कोन हे उनला कोनो मतलब नइ रहय.., दुनिया जाय चूल्हा म..।

                  साॅंझ कुन बजार जावत रहेंव त मोर अउ कोमल के भेंट होगे तहां दिनेश ल लेके दिमाग म सकलाय जम्मो गुस्सा ल मोर उपर झर्रसले कचार दिस।कोमल के चार-सौ चालिस वोल्ट वाले झटका ले मॅंय हड़बड़ा गेंव। देखते-देखत कोमल के कोमलता ह कठोरता म बदलगे अउ धारावाहिक कस शुरू होगे - " दिनेश गुरूजी अउ रमेश गुरूजी के रात-दिन बस उही-उही गोठ.., डीए, एरियस, क्रमोन्नति, पदोन्नति, ट्रेनिंग, मानदेय, छुट्टी, मार्निंग स्कूल, समयमान-वेतनमान अउ हड़ताल। एक झन बोलथे त दूसर ह टुपले झोंकथे, दूसर बोलथे त पहली झोकथे, संग म अउ कोन हे तेकर येमन ल कोई लेना देना नइ रहय। बोलई-झोंकई में मगन एक झन के मूड़ी के चुॅंदी पाकगे अउ दूसर के चुॅंदी झरगे। फेर डाई करे बर अउ पाटी मारे बर नइ छोड़िन। न मुंहुं जोड़ के गोठियाय बर छोड़िन..।तहूॅं ह तो मास्टर हस तोरो का भरोसा।"

       ओकर तमतमाय बरन ल देखके मॅंय धीरलगहा बोलेंव- "आदमी ल खुद के उपर कतका विश्वास हे दूसर मन ह का जान सकही भैया ओला उहीच आदमी ह जानही।" 

    अतका सुनतेच मोर बात ल फाॅंक दिस अउ तोर बिरादरी के मन का कहिथे तेला सुन कहिके फेर शुरू होगे - " केंद्र सरकार ह डीए के घोषणा कर डरिस, राज्य सरकार ह सुते हे, सातवाॅं वेतनमान के एरियर्स बाॅंचेच हे, को जनी येमन कब सुलमुलही। आज प्रार्थना होय के बाद थोकिन देरी म का स्कूल नइ अमरेंव, बड़े गुरूजी उपदेश झाड़ दिस। का मिहिच ह देरी म अमरत होहूॅं।अपन ह अनुदान के पैसा के का करथे कोनो ल नइ दिखत हे का..।बेटा के मोबाइल दुकान म एककन बैठ गेंव त देरी होगे त कोनो बड़े जन अपराध थोरे कर डरेंव। मैडम मन साढ़े तीन बजे मोटर चढ़े बर निकल जथे उनला बोले बर सुपुक्की माॅंगथे।एक ल माई अउ एक ल मोसी..।जब जुलाई महीना म इनकर ले सॅंघरबे तब इन्क्रीमेंट के सेती ग्रास अउ नेट ल सेट करत बीजी मिलथें।"

   मॅंय कहेंव -" सबके अपन हिसाब- किताब होथे, दुःख पीरा होथे,ओला एक दूसर ले गोठियाय म जी हल्का होथे जी।"

अतका सुनके फेर शुरू होगे -" का तुम्हरेच कर दुख पीरा रहिथे,दूसर कर नइ रहय। चौबीस घंटा समस्या ल नरी म बाॅंध के घूमत रहिथव, बाल्टी,सुपली ल कते दुकान ले बिसाय हस, फिनाइल ल कहां ले लाय हस। पदोन्नति के समय-  पदोन्नति लेय म बेसिक म अंतर होही कि नइ, पद- पैसा म कतिक के फायदा होही..। चुनाव के समय -  तोर एक नंबर कोन हे, दू नंबरी कोन हे,पीठासीन ह बने हे ते गिनहा..। चुनाव के बाद  - तोर पोलिंग पार्टी वाले मन कैसे रहिन, पार्टी -वार्टी चलिस।हमर बर सरपंच ह जुगाड़ करत रहिस फेर भोकवा पीठासीन ह मना कर दिस,का बताव भाई जीव चुरमुरागे।तुम्हर मन के इही गोठ ह जादा चलथे।"

             बात ल लमियावत कोमल फेर बफलिस-" कहना तो नइ चाही फेर ये तो दर्पण म दग-दग ले दिखत हे कि आप मन के लोग -लइका बर सरकारी स्कूल ह अस्पृश्यता केंद्र बनके रहि गेहे। खुद सरकारी स्कूल म पढ़ाथो अउ अपन लइका ल प्राभेट म भर्ती कराथो।अउ लइका बर सरकारी नौकरी के सपना पालथो।जे डहर नजर घुमाबे उही डहर तुम्हर मनके कथनी अउ करनी के पोल खुलत दिखथे।हाथी के दाॅंत खाय के अउ देखाय के अउ। सकल समाज ह चाहथे कि आप मन के मान सम्मान म कोई कमी झन आय फेर येकर बर छत्तीस-तिरसठ खेलना छोड़ आपो मन ल चिंतन करे के जरवत हे।

     कोमल के ठाढ़ झटका के बिझियाहा झार ल सहत भर ले सहेंव फेर कहेंव -" देखव जी कोमल भैया आपके अइसन कहना ठीक नइहे,कतको मास्टर के लइका मन स्कूल म पढ़त हे अउ अपन जिनगी ल गढ़त हे ।"

       कोमल अतका म फेर जुबानी हमला करिस -" हम जानत हन जी जे गांव के तीर म कोनो प्राभेट स्कूल नइ रहय उही मन आय-जाय के मजबूरी म सरकारी म पढ़ाथें नइते सरकारी आदमी ल सरकारी स्कूल ले भारी एलर्जी रहिथे। आप मन मानो चाहे झन मानो इही सबले बड़े सच्चाई हे। चाहे नेता होवय चाहे अधिकारी, सबके इही हे बीमारी। एकादे झन बिरला मिलही जेन अइसन नइ होही। बाकी अपन काम बनता, चूल्हा म जाय जनता..। तेकर सेती हमर कहना हे ,इही मास्टरी के परसादे तुम्हर घर परिवार म सुख -सुविधा हावय। त सरकारी स्कूल के अइसे बनौती बनादे कि प्राभेट वाले मन घलव झाराझार सरकारी स्कूल म आके भर्ती हो जाय ।"

         मोर सबर के आगू म कोमल के झटका के झार ह सजोर रहिस तभे तो दिनेश  के जगा ये मोनोलाॅग के टेंशन शिविर म मॅंय फॅंसगे तिलमिलात रहेंव। मजबूरी म अइसे अरझे रहेंव कि मोरे विभाग के दही के मही करइय्या कोमल के तर्क के आगू म मॅंय बोटांची हो गेंव। 


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

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