Saturday 28 August 2021

श्रद्धेय स्व. नंद कुमार साहू साकेत के 58 वीं जयन्ती मा विशेष...








 

श्रद्धेय स्व. नंद कुमार साहू साकेत के 58 वीं जयन्ती मा विशेष... 


गजब प्रतिभा के धनी रीहीस हे नंद कुमार जी हा 


ये शरीर हा नश्वर हे. जउन ये दुनियां मा आहे वोहा एक दिन इहां ले जरूर जाही. लेकिन दुनियां ला छोड़ के जाय के बाद कोनो मनखे ला सुरता करथन ता वोकर पीछे  कारण उंकर सुग्घर कारज हा होथे. कम उम्र मा ये दुनियां ला छोड़ के अपन एक अलग छाप छोड़ीस अइसन प्रतिभा मा श्रद्धेय नंद कुमार साहू साकेत के नाम शामिल हावय. वोहा गजब प्रतिभा के धनी रीहीस हे.     

       जीवन परिचय 


   26अगस्त के श्रद्धेय नंद कुमार साहू साकेत के 58 वीं जयंती रीहीस हे. उंकर जनम राजनांदगॉव जिला के मोखला गाँव मा 26 अगस्त 1963 मा होय रीहीस हे. उंकर बाबू जी के नाँव कृश लाल साहू  अउ महतारी के सोहद्रा बाई साहू नाँव

 हे. वोकर पत्नी के नाँव लता बाई साहू, बेटा के नाँव हितेश कुमार साहू, अउ बेटी मन के नाँव केशर साहू अउ प्रेमा साहू हे. 


 ननपन ले गायन अउ वादन मा रुचि 


  पढ़ाई जीवन ले ही उंकर रुचि गायन, वादन मा रीहीस हे. स्कूल मा पढ़ाई करत करत गाँव मा अपन सँगवारी मन सँग मिल के 1980 मा मानस मंडली के गठन करीस हे. गाँव के नाचा मंडली मा घलो योगदान दीस हे. शुरु ले ही लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम के प्रति रुचि राहय. नाचा, रामायण के सँगे सँग 



जस गीत, फाग गीत मा गायन अउ हारमोनियम वादन करय. 


  आकाशवाणी मा गीत प्रसारित होइस 

 श्रद्धेय साकेत जी हा पढ़ाई जीवन ले गीत लिखे के शुरु कर दे रीहीस हे. वोहा लोक गीत, जस गीत अउ फाग गीत के अब्बड़ रचना करीस. 1990 -91मा उंकर गाये लोकगीत आकाशवाणी रायपुर ले प्रसारित होइस हे. माननीय दलेश्वर साहू जी  येकर अगुवाई करे रीहीस हे. 


  नौकरी मिले के बाद प्रतिभा हा अउ निखरीस 


मैट्रिक के परीक्षा पास होय के बाद शासकीय प्राथमिक शाला में शिक्षक बनगे. अब उंकर प्रतिभा के सोर अउ बगरत गीस. वोहा धामनसरा,  मुड़पार, सुरगी, बुचीभरदा जिहां नौकरी करीस पढ़ाई के सँगे सँग उहां अपन व्यहार ले सब झन ला गजब प्रभावित करीस. 


   उद्घोषक अउ निर्णायक के जिम्मेदारी निभाइस 


अब वोहा सबो प्रकार के मंच जइसे सांस्कृतिक प्रतियोगिता, मानस गान टीका स्पर्धा, रामधुनी स्पर्धा जसगीत प्रतियोगिता,फाग स्पर्धा मा उद्घोषक अउ निर्णायक के भूमिका निभात गीस. अपन गाँव मोखला के सँगे सँग अब दूरिहा- दूरिहा मा वोकर नाँव के सोर चले ला लागीस. स्कूली कार्यक्रम मा घलो अपन प्रतिभा ला दिखाइस. लइका मन ला सुग्घर ढंग ले सांस्कृतिक कार्यक्रम 

खातिर सहयोग करय. 


  लोक कला मंच द्वारा उंकर गीत के प्रस्तुति 


आडियो, वीडियो प्रारुप के माध्यम ले उंकर गीत के गजब धूम मचीस हे. फेसबुक, वहाट्सएप, यू ट्यूब मा खूब उंकर गाना चलीस. धरती के सिंगार भोथीपार कला अउ दौना सांस्कृतिक मंच दुर्ग के मंच ले उंकर गीत सरलग चलत गीस. कुछ गीत ला खुद गाइस अउ कुछ 

ला दूसर कलाकार मन आवाज दीस. 1 अप्रैल 2018 मा रवेली मा आयोजित मंदराजी महोत्सव समिति मा उंकर लोक गीत अउ जस भजन एल्बम के विमोचन लोक संगीत सम्राट  श्रद्धेय खुमान साव जी, स्वर कोकिला आदरणीया कविता वासनिक जी, वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय डॉ. पीसी लाल यादव जी, आदरणीय कुबेर सिंह साहू जी ,साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव के अध्यक्ष अउ मंदराजी महोत्सव के मंच संचालक भाई लखन लाल साहू लहर जी के द्वारा करे गीस. 


साकेत साहित्य परिषद् ले अब्बड़ लगाव 


 जसगीत मा उंकर प्रेरणा स्रोत सुरगी निवासी श्री मनाजीत मटियारा जी अउ कविता के क्षेत्र मा  वोहा श्री लखन लाल साहू लहर जी अध्यक्ष, साकेत साहित्य परिषद् सुरगी ला प्रेरणा स्रोत माने. 

 श्रद्धेय नंद कुमार जी हा साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव के गजब सक्रिय सदस्य अउ पदाधिकारी रीहीस हे. कवि गोष्ठी मा अपन नियमित उपस्थिति देय .साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव ले उंकर लगाव अत्तिक रीहीस कि अपन उपनाम " साकेत "रख लीस. 


कवि सम्मेलन मा सराहे गीस 


अब कवि सम्मेलन मा घलो भागीदारी होय लगीस. साकेत के सँगे सँग दूसर साहित्य साहित्य समिति मन के कार्यक्रम

मा उछाह पूर्वक भाग लेय. कोरबा, बेमेतरा मा छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के भव्य मंच मा अपन काव्य प्रतिभा के दर्शन कराइस. 


कवि सम्मेलन मा स्व. लक्ष्मण मस्तुरिहा, स्व. विश्वंभर यादव मरहा अउ, जनाब मीर अली जी मीर जइसे बड़का कवि मन सँग कविता पाठ करीस हे. 


सम्मान -


 श्रद्धेय नंद कुमार जी  ला कई लोक कला मंच, रामायण मंडली, फाग मंडली, जस गीत मंडली,रामधुनी मंडली  अउ युवा संगठन हा निर्णायक अउ उद्घोषक के रुप मा सम्मानित करीन. 

 सम्मान के कड़ी मा 29 फरवरी 2012 मा रघुवीर रामायण समिति राजनांदगॉव द्वारा उद्घोषक के रुप मा विशेष सम्मान, 23 फरवरी 2014 मा साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव द्वारा "साकेत साहित्य सम्मान",जिला साहू संघ राजनांदगॉव द्वारा  1 अप्रैल 2019 मा कर्मा जयंती मा "प्रतिभा सम्मान ", शिवनाथ साहित्य धारा डोंगरगॉव द्वारा 25 अगस्त 2019 मा " साहित्य सम्मान ",  पुरवाही साहित्य समिति पाटेकोहरा विकासखंड छुरिया जिला राजनांदगॉव द्वारा 2021 मा " पुरवाही साहित्य सम्मान -2020 " सहित कतको सम्मान शामिल हवय. 


ये गीत अउ कविता के गजब सोर 


उंकर लिखे गीत /कविता जउन हा लोगन मन के जुबान मा छागे वोमा  "महतारी के लागा", " वो पानी मा का जादू हे "",तीजा पोरा, " "विधवा पेंशन ", "आँखी के पुतरी," "जिन्दगी एक क्रिकेट", "तिरंगा," " सरग ले सुग्घर गाँव "

शामिल हे.  पर्यावरण अउ कोरोना जागरुकता उपर सुग्घर रचना लिखे हे. 


 मिलनसार अउ मृदुभाषी रीहीस 


    श्रद्धेय नंद कुमार साहू हा गजब सुग्घर इन्सान रीहीस हे. वोहा अब्बड़ सरल, सहज ,मृदुभाषी अउ हंसमुख व्यक्तित्व के धनी रीहीस हे. वोहा बहुमुखी संपन्न कलाकार रीहीस हे. पर येकर बावजूद वोमा घमण्ड थोरको नइ रीहीस हे. एक डहर वोहा अपन ले वरिष्ठ मन के झुक के पैलगी अउ मान सम्मान ला कभू नइ भूलीस ता दूसर कोति अपन ले छोटे मन ला वोहा कभू छोटे नइ समझीस. वहू मन ला गजब स्नेह दीस. 


   सीखे मा गजब उछाह दीखाय 


58 साल के उम्र मा घलो वोकर मन मा सीखे के गजब उछाह रीहीस हे. 

  श्रद्धेय साकेत जी हा छंद के छ के संस्थापक आदरणीय अरूण कुमार निगम जी द्वारा स्थापित "छंद के छ " मा छंद सीखे बर 2021 मा तैयार हो गे रीहीस हे. पर दुर्भाग्य ये रीहीस कि वो सत्र के शुरु होय ले पहिली वोहा ये दुनियां ला छोड़ के चले गे. 

जब उंकर निधन के खबर चले ला लागीस ता आदरणीय गुरदेव निगम जी हा मोर करा फोन करके कीहीस कि "ओमप्रकाश कइसे खबर ला सेन्ड करे हस. बने पता कर लव भई. खबर ला डिलीट करव. "काबर कि  छंद सीखे बर जउन मन के मँय हा नाँव भेजे रेहेंव वोमा श्रद्धेय नंद कुमार साहू जी के सबले पहिली रीहीस हे. ता मेहा गुरुदेव जी ला बतायेंव कि "काश! ये खबर हा गलत होतीस गुरुदेव जी पर होनी के सामने हमन मजबूर हन. मेहा खुद उंकर घर गे रेहेंव. "


तब गुरुदेव जी हा मोला बताइस कि एक सप्ताह पहिली मोर ले बात करे रीहीस कि गुरुदेव जी महू हा छंद सीखना चाहत हवँ. मोला आप मन हा शिष्य के रुप मा स्वीकार कर लेहू. मोर बिनती हे गुरुदेव जी. तब गुरुदेव जी हा श्रद्धेय साकेत जी ला कीहीस कि -  ".नंद जी मँय हा आप ला का सिखाहूं . आप हा तो पहिली ले सुग्घर -सुग्घर रचना लिखत हवव .सबो डहर छाय हवव. " ता नंद कुमार साहू जी हा बोलिस कि " गुरुदेव जी छंद के छ अउ आपके मेहा गजब सोर सुने हवँ.  मँय हा आप मन ले छंद सीखना चाहत हवँ गुरुदेव जी. मोला निराश झन करहू. " 

श्रद्धेय नंद जी के सरल, सहज अउ सरस 

व्यवहार ले गुरुदेव जी हा गजब प्रभावित होइस. वोला अपन अगला सत्र मा छंद साधक के रुप मा शामिल कर लीन. पर ये छंद सत्र हा चालू होय ले पहिली  19 अप्रैल 2021 मा  58 वर्ष के कम उम्र मा ये दुनियां ला छोड़ के चल दीस. 

जब ये साल के छंद सत्र हा शुरु होइस ता गुरुदेव निगम जी हा मोर करा मेसेज करीस कि "- आज  नवा छंद सत्र शुरु होय के बेरा मा श्रद्धेय नंद कुमार साहू साकेत के गजब सुरता आथे. उंकर याद करके मोर आँखी हा डबडबागे. "

  सरल, सहज, सरस, मृदुभाषी, हंसमुख व्यक्तित्व ले भरपूर अउ गजब प्रतिभा के धनी श्रद्धेय नंद कुमार साहू जी साकेत ला शत् शत् नमन हे.🙏🙏💐💐

                

 ओमप्रकाश साहू "अंकुर "

सुरगी, राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) 

 मो.  7974666840

छत्तीसगढ़ी साहित्य म बाल साहित्य दशा अउ दिशा* साहित्य म जब कभू बाल साहित्य के बात आथे तब कुछ

 *छत्तीसगढ़ी साहित्य म बाल साहित्य दशा अउ दिशा*

        साहित्य म जब कभू बाल साहित्य के बात आथे तब कुछ मन ल भरम हो जथे कि बाल साहित्य लइका मन के लिखे साहित्य आय,   जबकि अइसन नोहय। बाल साहित्य असल म लइका मन के मनोभाव ल धियान मा रख के लइका मन बर लिखे गे साहित्य हरे। जेला नान्हे नान्हे लइका मन के कल्पना अउ ज्ञान बढ़ाय के उद्देश्य ले लिखे जाथे। बाल साहित्य मा बाल मन के मनोरंजन हर बड़का बात होथे. एकर लिखइया लइका घलव हो सकथे फेर लइका मन के भाषा म साहित्यिक भाषा के कमी देखब म मिलथे। जउन प्रोत्साहन ले आगू जा के मँजा जथे, परिष्कृत हो जथे।             बाल मनोविज्ञान के बने जानकार हर बढ़िया बाल साहित्य के सिरजन कर सकथे। बाल सुलभ मनोवृत्ति के जानबा नइ रेहे ले बाल साहित्य म मनोरंजन, चरित्र निर्माण अउ ज्ञानवर्द्धन संभव नइ हो सकय। बाल साहित्य के लिखइया चाहे कोनो उमर के हो बाल साहित्यकार कहलाथे। बाल साहित्य के भाषा निचट सरल होथे , येकर ले लिखे गे साहित्य के  संप्रेषण सहज हो सकय। रूढ़ (कठिन) शब्द, समास ले भरे अउ प्रयोग पूर्ति लाक्षणिक भाषा ले  बाल साहित्य लइका के मन बहलाव म बाधा बनथे। इही पाय के कतको बाल साहित्यकार मन ए मन के प्रयोग ले बाँचे के सुझाव देथें। बाल साहित्य म भाषा बाल सुलभ अउ लइका मन के मन लुभावन होना चाही। 

         बाल साहित्य ले जुरे लइका म साहित्य के समझ बाढ़े ले लइका के मन म साहित्य के उपचारित बिजहा के अंकुरण बने हो सकत हे। गीत, कहिनी अउ नाटक लइका मन के सबले बड़े चहेता विधा आय।                         लइकापन म डोकरी दाई/ ममा दाई अउ बबा ले कहिनी सुनत रतिहा नींद आथे। लोरी जिनगी म सोहर गीत के संग आनंद ले के आथे। इही गीत कहिनी के आनंद म बालमन स्कूल के जावत ले नवा-नवा अउ किसिम किसिम के मनोरंजन खोजथे। जउन मनखे उँकर मनोरंजन करथे उही ल भाथे अउ ओकरे तिर रहिना पसंद करथे। लइका मन  के सुभाव हर बड़ चंचल सुभाव के होथे। छिन-छिन म उनकर मन बदलत रहिथे। ते पाय के बाल साहित्य म रचना छोटे-छोटे होना चाही। खेल-खेल म रचना के पाठ हो सकय अउ एक-दूसर ल सुनावत जोरे रखे जा सकय। जादा लाम रचना अउ कठिनशब्द के  होय ले रचना याद नइ रखे जा सकय। यहू बात के खियाल रचनाकार ल रखे जाना चाही।                        लघुता के संगे-संग मनोरंजन अउ जिज्ञासा बालसाहित्य के अंग माने जाथे। बालसाहित्य म मनोरंजन के संग विज्ञान, कल्पना, चिंतन अउ तर्क के समावेश होना जरूरी आय। बालसाहित्य म बाल मनोविज्ञान के बड़ महत्तम हे। बाढ़त उमर के संग लइका के मन अउ सुभाव बदलत जाथे। जेला समझत उमर के मुताबिक लेखन म मनोरंजन के विषय चुने बर पड़थे। खेल खेलौना ,जीव-जनावर, खई खजाना, मड़ई-मेला, हाट-बजार, नदी,पहाड़, चंदा सुरुज, ग्रह-नक्षत्र के संगे-संग आसपास के विषय हर बाल साहित्य लेखन के विषय होना चाही। बाल कहिनी मन ले चरित्र निर्माण के बात उभर के आवय ए कोशिश होना चाही। सभ्य अउ सुसंस्कृत बनाय बर बाल कहिनी अउ नाटक के बड़े भूमिका हे।

        बाल साहित्य ले जेन  चारित्रिक अउ मानवीय गुण के सीख अउ जानबा दिए जा सकत हें, वो अइसन ढंग ले हावँय।

       १ राष्ट्रीय/ देशभक्ति

       २ हास्य-व्यंग्य

       ३ साहसिक

       ४ ऐतिहासिक

       ५ वैज्ञानिकता

       ६ सामाजिक

       ७ साँस्कृतिक

       ८ काल्पनिकता

        आज साहित्यिक पत्रिका मन म घलव बालकोना के नाँव ले बाल साहित्य ल प्रमुख ठउर/जगहा दिए जात हे। रेडियो टेलीविजन के जम्मो चैनल मन म अब लइका मन के खयाल रखत कार्यक्रम बनाए जावत हे अउ सरलग प्रसारण घलव होवत हे। एकर ले बाल साहित्य के महत्तम अउ आवश्यकता का हे एकर अंदाजा लगाय जा सकत हे। आज काल शिक्षा म नवाचार के चलत बाल साहित्य के जरूरत महसूस करे जावत हे। एला ध्यान रखत शिक्षा विभाग कोति ले बाल साहित्य लेखन ल प्रोत्साहन दिए जावत हे।

       छत्तीसगढ़ी साहित्य म बाल साहित्य के ऊपर करे गे चर्चा के मुताबिक छत्तीसगढ़ी बाल साहित्य के कमी हे, अइसे कहना थोरिक जल्दबाजी होही। कमी हे त बाल साहित्य ल बरोबर महत्तम दे अउ लेखन ल प्रोत्साहन के संग उजागर करे के कमी हवय। महँगाई के चलत प्रकाशक अउ बाल साहित्यकार के उदासीनता ह घलव बालसाहित्य ल पीछू ढकेल दे हवय। फेर सोशल मीडिया के आय ले फेसबुक व्हाट्सएप अउ आने आने ठउर म बाल साहित्य के रचना अउ चर्चा संगोष्ठी ले इही कहे जा सकत हे कि कुछ समे ले बाल साहित्य ह सरपट दौड़े लग गे हे। नवा रफ्तार पा गे हवय। बाल साहित्य म कतको नाटक कहिनी अउ बालगीत के लेखन करे जा चुके हवय। आगू एकर भविष्य बने रइही एला नकारे नइ जा सकय।

       छत्तीसगढ़ी बाल साहित्य के लेखन बहुत पहिली ले होय हवय ए अलग बात आय कि सबो ह प्रकाशित नइ हो पाय हे। बाल रचना बहुत अकन होय हे। सोला आना बाल साहित्य के रूप म किताब भले उपलब्ध नइ दिखय। जन कवि कोदूराम दलित जी मन बाल निबंध कथा कहिनी अउ बालगीत लिखे हवय।

          पुरखा कवि अउ साहित्यकार अउ वरिष्ठ साहित्यकार मन के बालसाहित्य के जानबा गूगल बबा ह देवत तो हे।फेर का का संग्रह हे एकर जानबा नइ मिल पाइस। गूगल बबा के बताए जानकारी के मुताबिक जनकवि कोदूराम दलित, नारायण लाल परमार, मुरारी लाल साव, जयप्रकाश मानस, परदेसी राम वर्मा, जीवन सिंह ठाकुर, मन बाल निबंध, बाल गीत, कहिनी लिख के छत्तीसगढ़ी बालसाहित्य के मजबूत नेंव रखिन हे।

 छत्तीसगढ़ी बाल साहित्य म कहिनी के नेंव ल अउ सजोर करे म लोक सँस्कृति के सँवाहक साहित्यकार डॉ. पीसी लाल यादव के बड़ भूमिका हवय। चतुर चिरई, डोकरी के गीत, महिनत के पूजा, कहिनी संग्रह ले अपन हाजिरी देवत लइका मन बर पढ़े के लइक कहिनी के सिरजन करे हे। इही कड़ी म बाल साहित्यकार श्री बलदाऊ राम साहू जी मन चिंकी के सपना कहिनी संग्रह घलव हे। नवा पीढ़ी के रचनाकार द्रोण कुमार सार्वा के 10 ठन कहिनी के कहिनी संग्रह बहुतेच जल्दी पढ़े बर मिल सकत हे। सुधा वर्मा मन बाल साहित्य म नाटक के लेखन करे हवय जेमा प्रकृति अउ मनखे, किस्सा ठलहाराम के, नीता पढ़े बर गीस प्रमुख हावय। सुधा वर्मा जी मन अउ कतको नाटक लिखे हवय जेन अवइया बेरा म हमन ल पढ़े बर किताब के रूप म मिलही। 

      बालगीत अउ कविता मन के संग्रह म डॉ. माँघीलाल यादव के करिया बादर, मड़ई जाबो,डॉ. पीसी लाल यादव के १० ठन संग्रह सरग निसैनी,झूलना के झूल कदम के फूल, बगरे हे चंदा अँजोर, चँदैनी चमके झिलमिल,मोर गाड़ी, बादर के जब माँदर बाजे, खिस बेंदरा खिस, जोगनी बरे जुग जुग, छत्तीसगढ़ मैया, बिलई बोले माऊ रे, शंभूलाल शर्मा के बादर के माँदर, नोनी बर फूल,(बालगीत), आजा परेवा कुरू कुरू (शिशुगीत), बलदाऊ राम साहू के बिन बरसे झन जाबे बादर, आओ भैया पेड़ लगाएँ, जल बिन मछरी मरे प्यास, गर मछरी के पाँख होतिस, पर्यावरण ल सुग्घर बनाबो प्रमुख रूप ले पढ़े बर मिलथे। आज के नवा पीढ़ी म मनीराम साहू 'मितान' के खोखो मोखो डलिया, कन्हैया साहू 'अमित' के फुरफुंदी, मीनेश साहू के सगा पुतानी मन बाल कविता अउ बालगीत ले बाल साहित्य ल पोठ करत हे। इही क्रम म द्रोण कुमार सार्वा, मधु तिवारी, मन के बालगीत संग्रह ल पढ़े के हमन के अगोरा बहुत जल्दी खत्म होवइया हे।चोवाराम वर्मा बादल, दिलीप वर्मा, सुधा शर्मा, टिकेश्वर सिन्हा, द्रोपदी साहू मन घलव धीरे-धीरे छत्तीसगढ़ी बालगीत के सिलहोना सिलहोय म लगे हावँय। इँकर लेखन ले छत्तीसगढ़ी बाल साहित्य ल ताकत मिलही इँकर ले प्रेरणा पाके अउ कतको साहित्यकार मन बाल साहित्य  के सेवा बजाही अइसे विश्वास होवत हे।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह(पलारी) बलौदाबाजार

आत्म प्रशंसा के बीमारी

 आत्म प्रशंसा के बीमारी

          आत्म प्रशंसा के बीमारी कहत हव त  कहे सुने बर अउ कुछु नइ बाचत हावे ,काबर की  बीमारी शब्द  ह अपन आप म बतावत हे कि संबंधित ह बीमार हे, अउ बीमार तो हमेशा से दया के पात्र माने गे हे । छूत के बीमारी बरोबर आत्म प्रशंसा के बीमारी सबो डहर अइसे फइले हे कि का बड़े- का नान्हे , बाचना थोरकन मुश्‍किल होवत जात हे ,जेन बाचे हे तेकर धन भाग कि आज के युग म भी आत्म प्रशंसा के कोन्हो रुप के शिकार नइ होय हे ।

       आत्म प्रशंसा कहत हव त प्रशंसा के दो ठन रुप बनत हे अपन प्रशंसा अउ आन के प्रशंसा । आज अपन प्रशंसा जतका सहज हे ,आन के प्रशंसा वतका ही दूभर बात होत हे , अउ भूले-भटके कोन्हों ह आन के प्रशंसा करत भी हे त मुँहू देख के जादा होवत हे ,अइसन छद्म  प्रशंसा म वास्‍तविक प्रतिभा ह घिरलत रथे । येकर नुकसान मनखे ल तो होबे करथे ,वोकर ले जादा देश ल होथे । 

            वइसे आत्म प्रशंसा के बीमारी ल आत्म प्रशंसा के नकारात्मक रुप मान लेव, जेकर दरशन -परशन अपन से लेके आन तक , इती- उती  चारों- कुती हर जगह म होत रहिथे ।आत्म प्रशंसा के नकारात्मक रुप के बड़ बखान आय हे , त चलव अब येकर अइसन  रुप ल घलो देखन जेला थोरकन  सकारात्मक कहि सकत हव।

               परिचय आत्म  प्रशंसा के सुघ्घर रुप आय  , जेन ल  सरल आत्म प्रशंसा कहि सकत हव । कोन्हों भी जब हमर बारे म जानना चाहत हे , जइसे कोन अस ? कहाँ रहिथस ? काय करथस ? त ऐकर उत्तर म जेन बताहूं तेन ह  परिचयात्मक आत्म प्रशंसा  आय । बातचीत से लेके बर बिहाव तक ,अउ नौकरी- चाकरी से लेके मौज -मस्ती तक म, आत्म प्रशंसा ह अप्रत्यक्ष रुप म समाय हवे ।   परिचयात्मक आत्म प्रशंसा जतका सुघ्घर, वतका ही ओकर महत्ता बाढ़त हे ,तेकर सेती आज के युग म तो हर कोई परिचयात्मक आत्म  प्रशंसा करत हे । येहा अभिधा  म होवत हे पर  , कभू -कभू लक्षणा या व्यंजना म भी बदल जाथे । प्राय: नाम गाम वाले मनखे के अभिधात्मक परिचय ल भी लक्षणा या व्यंजना समझे बर हमन ल जल्दी रथे, अउ वोकर धीर गंभीर व्यक्तित्व ल  भी अहंकार  ले जोड़ देथन,  काबर कि धारणा त दूनों पक्ष के काम करत हे न । अइसन में यहू ह आत्म प्रशंसा के बीमारी बने ल लग जथे ।

               इही म आत्म - प्रशंसा के एक ठन रुप अउ देखे बर मिलथे ,जब अपन प्रशंसा खुद न करके अपन आश्रित या अधीनस्थ से चाहथन अउ वो करथे भी कभू देखाय बर ,कभू  कुछु पाय बर ,या कभू अउ कुछु  बर ।

               विज्ञापन भी आत्म - प्रशंसा के सकारात्मक रुप आय ,अपन -आप के कहूं कि अपन जिनीस के, जब ओकर अतिशयोक्ति पूर्ण प्रदर्शन अइसे करे जाथे कि सबे  खुशी - खुशी हलाल होय बर तैयार रहिथे ।  आज अरबों -खरबों में येकर बाजार हवे ,  हर व्यवसायी जानत हे , जेन दिखत हे तेन बिकत हे ,मसाला से लेके मशीन तक , अउ गोठ-बात से लेके पुरुस्कार तक म आत्म  प्रशंसा ल ही आज के गला काट प्रतियोगिता म  जगह मिलत हे । अइलावत संवेदना म वोकर साड़ी मोर ले सफेद कईसे , इही ल गुनत रहिथे , अउ अपन पिछवाये के एक कारण आत्म  प्रशंसा के कमी ल भी पावत हे ।

           व्यवहारिक आत्म  प्रशंसा के भी सकारात्मक रुप अपन चारों कोती  देखे बर मिलथे ,  कहिथे गोठअइया के सरहा बोइर ह बेचा जथे अउ नइ गोठअइया के अमरुद ह घलो माडे़ रहि जथे । ठकुर सुहाती गोठ करैय्या अउ सुनैया के कमी हमर देश  म एको कनिक नइ हे ,एक तो लोगन के मरत ले संख्या, ऊपर ले ठेलहा , रसास्वादन लेत रहिथन ,सबै जानत रहिथे कि बगल म छुरी हवे पर उपर छइया बने लगथे  ।

    आत्मकथा अउ अन्य ह भी  साहित्यिक आत्म - प्रशंसा के  सकारात्मक रुप तो आय ,जेमे हमन, अपन से संबंधित अइसन विचार के चयन करथन जे हमर व्यक्तित्व ल अउ उभारत हवे ,शेष  गोठ बात  ल येमा जगह नइ मिले या नइ देना चाहन ।

            आत्म प्रशंसा के आक्रामक रूप भी होथे जइसे युद्ध आदि जेन अपन मन मरजी चलाय बर साम ,दाम ,दंड अऊ भेद संग होवत  हे , येला आत्म प्रशंसा के भयंकर रूप मान लेव ।

           आखिर म अतना ही कहना चाहत हव कि अहम् ब्रह्मास्मि ल छोड़ के , त्वम असि म पहुँचे बर ,मैं ल छोड़े ल पड़ही  , तभे आत्म प्रशंसा ह सुघ्घर- सुघ्घर रूप ल पाही ,संत कबीर  भी तो इही कहत हे -

जब मैं था ,तब हरि नहीं ,अब हरि है, मैं नहीं ।

प्रेम गली अति सांकरी ,जामे दो न समाही ।।

       ✍️श्रीमती गीता साहू

        19.08.2021

चिट्ठी महराज के नाम*

 


चिट्ठी महराज के नाम*


आदरणीय महराज जी,

 घेरी बेरी प्रणाम।


 लिखत हवँ खत आँसू ले स्याही झन समझना।

असो मोरो बिहाव के दिन आही वो मत समझना।

  इहाँ मैं बिल्कुल बने नइ अवँ।मोला मालूम हे कि आपो बने नइ होहू काबर कि ए कोरोना के सेती सबके धंधा पानी चौपट होगे हे। त आपो के पूजा पाठ,सतनारायण के कथा मन कमतियागे होही।  शादी बिहाव तको ढंग ले नइ होवत ए तेकर सेती आपो ल रोना परगे होही।

     खैर मैं ह आप ल एकर सेती चिट्ठी लिखे हँव कि असो मोर लगिन ल आपे ह धराये रहेव तेमा बिघन बाधा परगे। बने नइ देखे रहेव का? चारे दिन बाँचे रहिसे ओइसने शनी गिरहा समागे। लॉक डाउन उपर लॉक डाउन होये ल धरलिच अउ मोर शादी के दिन ह, भागे मछरी जाँघ असन होगे। फेर सुने हवँ --ददा ह आप करा गे रहिसे अउ नवा मुहरत निकलवा के आये हे। जेमा बिन गाजा बाज के मोर बिहाव ल पुतरा पुतरी कस करही। सगा सोदर घलो नइ आवय। सुने हँव- अराती बराती तको नइ राहय, फटाका तको नइ फुटय ।महराज जी अइसन म तो मोर करम फुट जही। 

   मोर ददा ह कहे रहिसे कि जोंडी गंड़वा बाजा बजवाहूँ, तेकर का होही। मोर संगवारी मन नागिन नाचे के जोखा मंढ़ाये रहिन हें काबर कि मैं उँकर बर आने टाइप के जोखा चार महीना पहिली ले करके रखे हँव ,तेकर का होही?

     अउ ओती वो नीतू के ददा माने मोर ससुर जी हा, संझा बिहनिया दूनों पाँव म खड़े ,सांस ले ले के ददा ल फोन करथे अउ कहिथे निपटा देतेन समधी, निपटा देतेन समधी। ओला काहे।कंजूस हे तइसे लागत हे।अउ मोरो ददा एकदम परबुधिया--मानगे। निपट जही त समझ आही।सुक्खा सकरायेत निकलही न तब चेत चढ़ही।

      महराज जी ,बुरा मत मानहू। आपके कोनो गलती नइये । आप तो बड़ दयालु हव त अतके बिनती हे --ददा ल आके कहि देते कि पोथी पतरा ल जल्दी जल्दी म बने नइ बाचे पाये अवँ।जेन नवाँ मुहरत बताये हवँ ओमा भारी अलहन हे। मृत्यु योग हे----आदि आदि।

      बस मोर बाप काम जोरदार बन जही। मोर शादी केंसिल हो जही। नहीं ते मोला घर ले भाग के ए शादी योग ल दुर्योग म बदले ल परही । बस अतके बिनती हे।इज्जत के सवाल हे। बँचा लौ महराज जी। 

        आप जब कइहू तब  दान दक्षिणा ल अभी जतका मिलतीच तेकर ले डबल तिबल चुपचाप आपके घर पहुँचा देहूँ।

                    प्रार्थना करइया

               आपके जजमान समारू के बेटा भावी जजमान धर्मेंदर


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

Friday 27 August 2021

रेल के दुख

 रेल के दुख 


               रेल के अगोरा करत करत स्टेशन म बइठे बइठे मुड़ी पिराये बर धर लिस । उबासी अऊ उदासी दुनों चारों मुड़ा लपेट डरिस । आँखी झम झम मुँदाये लगिस .. जे तिर बइठे रेहेंव तिही तिर .. ढलँग देंव .. देखते देखत पटले नींद परगे । 

               रेल हा सड़क म रेंगत हे कहिके चारों डहर कोहराम मातगे रहय । में नइ पतियायेंव .. । में केहेंव .. मेहा रेलवे कर्मचारी अँव .. में जानत हँव रेल सड़क म नइ रेंग सके .. ये सबो कोरा अफवाह के सिवाय अऊ कुछु नोहय .. । जम्मो झिन मोर तिर जुरियागे अऊ मोला केहे लगिन .. गऊकिन .. हमन सिरतोन कहत हन .. हम रेल ला सड़क म रेंगत सवांगे देखे हन । मेहा खिसियावत केहेंव – मेहा जब तक अपन आँखी म नइ देखहूँ तब तक नइ मान सकँव .. । रहा भलुक मोला आकब करन दव । सब झन मोर आगू ले घुच दिन .. रेल हा सहींच म सड़क म रेंग के हमरे तिर आके खड़े रहय । मेहा होशियारी मारत केहेंव .. मोला रेल हा देख पारिस होही अऊ चिन्ह घला डरिस होही .. तिही पायके हमर तिर नइ ओधिस .. ।  

               मोर तिर जुरियाये मनखे मन किथे – तोला रेल हा चिन्हथे अऊ जानथे त एकर मतलब तोर ओकर बनेच जान पहिचान हे .. एक कनि पूछथे का भइया .. हमन पटरी तिर अगोरत हन अऊ ओहा सड़क म काबर विचरन करत हे ... ? गऊकिन गो बहुत मुश्किल से अपन प्राण बचाये हन । मेहा अपन कालर ला ऊंच करत रेल के थोकिन आगू म पहुँच गेंव अऊ रेल ला दबकारत पूछेंव ... कस रे  रेल ! ... तोर बर सरकार हा अतेक लम्भा लम्भा पटरी बनाये हाबे .. ओला छोंड़ .. तोला सड़क म रेंगे के का साध लागिस होही ? बिचारा रेल हा बने ढंग ले नरिया नइ सकत रहय .. काँखत काँखत केहे लगिस – तुँहरे सेवा करत करत मेंहा सड़क म आ चुके हँव भइया .. । में फेर पूछेंव – हमर सेवा तोला करना हे त पटरी म नइ रहितेस .. । सड़क म आके काबर देश ला सड़क म काबर लानत हस ? रेल किथे – मेहा अपन से पटरी छोंड़ सड़क म नइ आये हँव जी .. मोला सड़क म लाने के जुम्मेवारी तुँहरे मन के आय । में सोंचेंव ... जान न पहिचान उपर से फोकट इल्जाम कहि दुहूँ तब ... जम्मो झन जान डरही के .. रेल अऊ मोर कोई परिचय नइहे .. । तभो ले बात ला घुमावत फेर केहेंव – तोला सड़क म झन आये बर परे कहिके देश के कर्णधार मन तोर रेंगे बर पटरी बनाये हाबे .. तैं उही म रेंगते .. काबर सड़क म आके मनखे ला पदोवत हस .. देख अतेक मनखे चपका के मरत मरत बाँचिन हे । रेल केहे लगिस – सड़क म रेंगे के सऊँख महूँ ला नइहे .. फेर पटरी म जगा रइहि तब तो .. ? मोला रेल उपर घुस्सा लागिस .. में केहेंव .. पटरी म तोर अलावा कोनेच रेंगथे तेमा .. तोर बर जगा नइ पुरत हे ? रेल हा बड़ दायसी से जवाब दिस – तैं पेपर मेपर नइ पढ़स का भइया .. ? बने देख .. कभू ये छपथे – फलाना बुता के पाछू .. कश्मीर के पर्यटन उद्योग पटरी म लहुँट चुके हे .. कभू ये आथे .. भारत म अतेक महामारी के बावजूद ... अर्थव्यवस्था पटरी म आ चुके हे .. कभू पढ़हे ला मिलथे के .. छ्त्तीसगढ‌ म .. बिगन केंद्रीय सहायता के विकास पटरी म दँऊड़े बर धर लेहे .. महारास्ट्र म कानून बेवस्था वापिस पटरी म अमर चुके हे .. । अऊ का का बतावँव भइया ... जे पाथे ते .. लहुँटके पटरी म पहुँच जथे .. । अब अतेक कंजेशन म मोर बर जगा कहाँ ... ? में केहेंव – तोर पटरी अलग हे अऊ ओकर मन के पटरी अलग हे .. तोला ओकर से का .. ? तभो ले अतेक देरी करके आथस अऊ फोकट बहाना घला मार देथस .. । रेल किथे – पटरी म अतेक झन रइहि तब मोर गति तो धीरे होबेच करही .. डर लागथे के कन्हो ... खुँदा चपका रौंदा झन जाये ... ताकि कन्हो झन कहि सकय के ... कन्हो व्यवस्था हा मोर सेती चौपट होवत हे । अब बता अतेक झन ला पटरी म सुरक्षित राखत .. तुँहर कस जनता ला .. लानत लानत मोर हालत सड़क म उतरे लइक तो होबेच करही .. । उदुपले सायरन के जोरदार अवाज सुन नींद खुलिस .. । रेल ला मोर कोती आवत सोंच पोटा काँपगे .. झकनाके उचेंव । 

                प्लेटफार्म म भजिया बेचइया के अवाज सुन ... समझ आगे के मोर लोकल अवइया हे । लकर धकर झोला धरके तैयार होवत सोंचे लगेंव ... वाजिम म अतेक झन ला पटरी म लाने बर .... रेल के भरोसा करबो .. तब रेल हा सड़क म आबेच करही । बपरा रेल के दुख बड़ भारी रिहीस ... को जनी पटरी म आये बर ओहा केवल दूसर मनला जगा देवत रइहि के ... उहू ला पटरी म लहुँटे के मौका मिलही ... ? 


हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

Thursday 26 August 2021

छत्तीसगढ़ी कलेवा

 छत्तीसगढ़ के कलेवा



सरला शर्मा: जोरन के कलेवा 

******* 

    बेटी के बिहाव समधी -सजन , सगा- पहुना , हितू -पिरितू , पारा- परोस  सबो झन बर कलेवा ओहू महीना भर तक तो चलबे करथे तेकर सेती तइहा दिन मं विशेष ध्यान देके बनाए बर परय , अभियो जोरन के बड़ महत्ता हे ...देखनी हो जाथे । हमर छत्तीसगढ़ मं जोरन बर लाडू , पपची के चलागत हे । 

 लाड़ू .... दू किसिम के बनथे पहिली बूंदी के लाड़ू जेला छींट के लाड़ू भी कहिथें । बेसन घोर के बूंदी छान लेथें फेर गुड़ के नहीं त शक्कर के चाशनी बनाथें थोरकुन कड़क चाशनी के लाड़ू हर जादा दिन तक चलथे त बन्धाथे भी बने ...। 

दूसर किसिम के बूंदी छोट छोट छानथें , गहूं पिसान ल घी  डारके मद्धम आंच मं भुजंथें , घी अतका रहय के लाड़ू बंधा जावय , पीसे सक्कर , इलायची पावडर डार के लाड़ू बांध लेथें ..तब तक बूंदी ल चाशनी मं डार देथे फेर पिसान के लाड़ू के ऊपर बूंदी लपटा देथे ऊपर ले ओहर बूंदी के लाड़ू असन दीखते . ... फेर लाड़ू ल फोरे ले भीतर के पूरन दीखथे एला पूरन लाड़ू कहिथें । 

बहुत सावधानी संग बनाये बर परथे एहर महीना , डेढ़ महीना तक खराब नइ होवय । 

        पपची .....

छाने हुये  गेहूं पिसान नहीं त मैदा ल बहुत अकन मोअन ( घी के ) डार के मो लेथें अतका के हाथ मं लाड़ू बंधा जावय । थोरकुन कुनकुन पानी मं कड़ा सान लेथें , फेर घी कड़का के मद्धम आंच मं चुरोथें ...छान के निकाल देहे ले भीतरी हर कच्चा रहि जाथे । बड़ बेरा लागथे पपची चुरे मं काबर के  एहर हथेरी अतका बड़े अउ ओतके मोठ भी रहिथे । सबो पपची के तियार हो जाए के बाद कम से कम दू घण्टा जुड़ाये देथे   ... गरम पपची ल पागे ले बाद मं पपची सेवर हो जाथे ।  गुड़ या शक्कर के बताशा पाग चाशनी मं पपची ल बोर बोर के परात मं अलग अलग रखत जाथें ताकि एक दूसर मं  लपटाय झन । चार , पांच घण्टा जुड़ाये देथे ..। 

मसखरी बर बड़का पपची बना के समधिन मन के नांव बेटी के कका , बड़ा मन के नांव संग लिखे के रिवाज पहिली रहिस हे । त जोरन के सात ठन बड़का पूरन लाड़ू मं गुप्त दान समझ के अपन शक्ति मुताबिक चांदी , सोना नहीं निदान कलदार रखे जावत रहिस । 

   बहू के मान बाढ़ जावत रहिस जोरन के कलेवा देख के ...। आजकल तो आनी बानी के मिठाई , खाजा घलाय जोरन मं जोरे जाथे । 

    बिहाव के दिन ले पन्द्रही पहिली ले कलेवा बने बर तेलाई माढ़  जावय , अरोस परोस के सियानिन मन कलेवा बनावयं तइहा दिन मं हलवाई बलाये के रिवाज़ नइ रहिस त छुआ निकता के बात घलाय रहिस ....कलेवा बनावत काकी , फूफू दीदी , मामी मन सुंदर बिहाव गीत गावत रहंय ...गारी घलाय गांवय त मरजाद राख के ....

" का गारी देबो हमन समधी सजन ला , हमर नता परे हे बड़ भारी ।

   उनकर चरण कमल बलिहारी हो रैया रौरी के रार बड़े भारी ...। " 

        वाह ! गारी भी देहीं फेर बिनती ये के आप मन तो रौरी ( राजा ) अव हमन तो आपके रैया (  परजा ) अन आप संग रार ( झगरा ) कइसे करे सकबो हम तो बेटी वाला अन । 

    सरला शर्मा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

*विषय--छत्तीसगढ़ी कलेवा*

--------


कलेवा हा हिंदी के शब्द आय  जेला जस के तस छत्तीसगढ़ी भाखा मा तको बउरे जाथे। अइसने अउ बहुत अकन हिंदी के शब्द हें जेन ला हमन    जस के तस बोलथन। ये हा हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के घनिष्ठ संबंध के पुख्ता सबूत आय।

       कलेवा शब्द के उत्पत्ति संस्कृत के कल्पवर्त या कल्लवट ले होए हे।हिंदी शब्दकोश म कलेवा शब्द के अर्थ  बासी मुँह नाश्ता या हल्का भोजन बताये गे हे। एखर एक अउ संस्कृत नाम हे-पाथेय।पाथेय मतलब कहूँ गाँव -गौंतरी या यात्रा मा जावत बेरा रस्ता मा खाये बर हल्का-फुल्का नाश्ता।  एक अउ अर्थ बिहाव के वो रस्म ले हे जेमा दुल्हा राजा के संग सगा-सोदर मन ला रोटी-पीठा परोसे जाथे। कहूँ-कहूँ मरनी-हरनी (दशगात्र, तेरही) मा परोसे व्यंजन ला तको कलेवा कहे जाथे। फेर प्रमुख रूप ले एखर सबंध बिहाव ले हाबय। बिहाव के समे बेटी बिदा करे के बखत  हँउला-हंडा या फेर झाँपी मा जोर-जतन के, ढाँक 

के समधी घर भेजे रोटी-पीठा ला तको कलेवा कहे जाथे। तइहा के समे कई पइत शैतान बरतिया मन जोरन कलेवा ला रद्दे मा झड़क दँय।

           हमर देश मा अलग-अलग क्षेत्र अउ प्रांत मा कई ठन अलगेच-अलग कलेवा के चलन हे, जेकर कारण हम स्थानीय प्रभाव कहि सकथन।

           हमर छत्तीसगढ़ राज्य के कलेवा के चर्चा करन त, इहाँ सब ले बड़े कलेवा बासी हर आय। बड़े बिहनिया ले नहाँ धोके किसान-किसनहिन मन, बनिहार-भूतिहार मन इही कलेवा ला टठिया भर दहेल के दिन भरहा खेत कोती चल देथें।

  हमर छत्तीसगढ़ मा नाना प्रकार के कलेवा के चलन हे जेमा मुख्य रूप ले--- करी लाड़ू,  बूँदी लाड़ू ,बरा, सोंहारी, पपची, बोबरा , चीला, देहरौरी, ठेठरी, खुरमी, अँगाकर रोटी, फरा, दूध फरा, अइरसा ,चौसेला, मुठिया, गुझिया, पेठा अउ खाजा ,गुलगुल भजिया आदि मन आयँ।

          आजकल वैश्वीकरण के प्रभाव हमर कलेवा मा तको पड़े हे त बालू साही, जलेबी, मुरकू, साबू दाना बड़ा, मिर्ची भजिया,सलौनी ,सेवई ,दोसा ---मन तको शामिल होगे हें।

        ये अधिकांश कलेवा मन स्वाद मा या तो मीठा होथे या फेर खारा ।

       कहे गे हे --"जइसन देश तइसन भेस।" ये बात हमर छत्तीसगढ़ी कलेवा मन बर घलो लागू होथे काबर के इहाँ  धान के फसल सब ले जादा होथे तेकर सेती बारा आना ले जादा कलेवा मन चाउँर पिसान ले बनथे।

     एक खुशी के बात हे के हमर छत्तीसगढ़ी कलेवा के सोर-संदेश देश-विदेश मा अब्बड़ होए ला धर लेहे। रायपुर के गढ़ कलेवा हा बड़ प्रसिद्ध हे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

छत्तीसगढ़ी गोठ के गुरतुर गुरतुर मिठास के संग मा अगर गुलगुल भजिया ह मिल जाय त विदेशी *मिल्क बार सिल्क* चाकलेट अउ रंग रंग अंग्रेजी मिठाई हर मुँह दिखाय लाइक नइ रहय अउ वोखर आघू मा पानी माँग दारही।

आजकल लइकन मन पिज्जा बर्गर के आघू कछु ल नइ  सुँघय फेर एही मन मेर अँगाकर अव पताल के भुँजिया, पानपुरोय गोदली ला मढा़ देवा तो देखव लार ह नइ  चुचवाही त कहिहा मुँह मा पानी आइच जाथे फेर गलती काखर आय हमी मन तो हाई सोसायटी देखाय बर अँगाकर ल नाम तको नइ  ले काबर हमन ले स्टेटस  ह कमसल झन हो जाय एही डर म अवइया पीढी़ ह कछु छत्तीसगढ़ी कलेवा ल नइ जान पावत हे ।जरुरत हे हमन ल आघू आय हर तिहार म ठेठरी खुरमी के अलावा अइरसा घुचकुलिया , पपची अउ नाना परकार के व्यंजन ल बनाइ अउ बताई।फरा के सामने अच्छा अच्छा ब्यंजन हा फेल हे। *अइरकन*  कलेवा के पाग ल जेहा पागे ता स्वाद के मजा का पूछना। सिंधी कढी़ गुजराती कढी़ महाराष्ट्रीयन कढी़ सुनें हन फेर हमर छत्तीसगढ़ी कढी़ *कइथला* जेला कनकी ले अमटहा कढी़ बनथे वोमा कोनों टक्कर लेहे नइ सकय अतका कन हमर छत्तीसगढ़ीया मन करा कलेवा भरे हे जरुरत हे बगराय के हमर गवइहा देहाती कही दिही कइके हमन कोनो ल नइ बतान *बासी के मिठास* काबर जानत हन बासीखया मतलब छत्तीसगढ़ीया हन पर एही म अमरीका हा रिसर्च कर डारिस ओखर महत्व ल कतका बडे़ हवय तब दुनिया समझत हे बासिखाया मा करा कतका ऐसन खजाना भरे हवय।

ऐसन कतका कलेवा होही जेला हमन नाम तको नइ सुनें हन।

*एक काम दुकारज* छत्तीसगढ़ीया पुरखा मन के मेनेजमेंट अतका बढि़या रहिस दुध हा अगर फटगे त आजकल खराब होगे कहिके फेंक देथे फेर सुनें हन पहिले पुरखा मन ओला अउ नीबू अम्मट डारके फटो के गुर डारके *बिनसा* अउ चीला खावय फेर फेकत नइ  रहिन । पनीर कस रात भर सील मा दबो के फटे दूध ला छानके पनीर बना डारत रहिन मिठाई तको बनात रहिन ।



🙏🙏

धनेश्वरी सोनी

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

रामनाथ साहू: -


        *दु वनगींहा खाजी*  

  --------------------- 



       छत्तीसगढ़ी व्यंजन मन के सत्र चलत हावे  तब आज तीन विशेष वनगंवा ( वनांचल ) व्यंजन मन के चर्चा कर ली जउन ला सहाराती मनखे मन शायद  सुने - जानत नई होंही ।


 *1.  महुआ- लपसी* 

-------------------------


निमारे- धोए महुआ ल माटी के हाड़ी म एकदम धीमी आँच म रात भर चुरोय जाथे । वोमे स्वाद बढ़ाय बर कुररू,  अमली चिचोला, चार चिरौंजी घलव  मिलाए जाथे ।  ठंडा होय के बाद एला भोज्य पदार्थ के रूप में खाय जा सकत हे ।  येला खाय ले पेट के  भरपूर भरही । ये बात के गारंटी है ।


*2. बोइर-सेमी*

------------------

 माटी के करसकरवा या छोटे हडिया म धोय- निमारे निकता बोइर मन ल अउ थोरकुन नून- मिर्चा ना के चुरोय जाथे। तीवरा भाजी के सुस्का,  सेमी के सुस्का , भांटा के खोईला सबो ल वोमा ना के धीमी आंच म बहुत देर तक ल चुरोय  जाथे अउ और जब ये सब मन चूर जाथें, तब फिर ओमन ल छौंक -बघार  के सब्जी के रूप में खाए जाथे। 


*रामनाथ साहू*


💐💐💐💐💐💐💐💐

छत्तीसगढ़ के रसगुल्ला

*देहरउरी*


का बताव देहरउरी कहे म मुँह म पानी आ जाथे। ये हर अइसन कलेवा हे जेखर भोग कुल देवता ,नवा पानी खाय के दिन जादा होथे अगहन गुरुवार दीवाली के परसाद सधौरी के खास व्यंजन आय।

विधान बनाय के ..........

चाउँर ला बढ़िया मजा के सफ्फा धो डारव फेर ओला छइहाँ मा सुखो दव।

तिहा सुखा जही ता दर्रहा पीस लव। पहली के मन ढेकी म कुटय फेर आजकल मिक्सी म इड़ली रवा कस पीसव । ओमा दही अउ घी ल मिझार के सान देवव। सान लिहा तहा दु दाना फेट देवव ताकी हल्का हो जावय । घी ल कढा़ही मा चढाके धीमी आँच म छान देवा। गुर या चीनी के चाशनी दू तार के बना के डारव ।डारे के पहिली ओला सूजा म छेद कर देवव रसा ह अंदर बरोबर भेद जाही ।फेर देखव मजा ले के खाव अउ परोसिन मन ला भी बाँटव।।


🙏🙏

धनेश्वरी सोनी

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

छत्तीसगढ़ के चटाका 


चटाका बनाय के विधि। 

अउ समाग्री, 


सूख्खा अमली, थोकिन गुड़, अउ नमक, सूख्खा मिरचा, खड़ा धनिया, अउ कमचिल के पातर असन काड़ी। 


अमली ल सील लोढ़हा मा कुचर के बिजा ल हेर के अलग कर लव अउ अमली ल थोकिन कुचर लव चिटिक कुचरा जही त सबो चटाका के सामग्री ल मिला के एकदम अलकरहा टाइप कुचर लव जब बने कुचरा जही तेकर बाद नमक धनियां अउ गुड़ ल मिला के अउ कुचर लव, तब तक मुँह पानी ल कंटरोल मा रखव, बने कुचरे के बाद ओला हाथ मा धर के गोलिया लव, तेकर बाद कमचिल के काड़ी ल गोलियाय चटाका मा खुसेर लव तत् पश्चात कलेवा खाये के बाद चार झन के बीच मा बइठके चट चट कर के खाव।। 


ये हा कलेवा तो नोंहय फेर कोनों कलेवा ले कमती नोंहय। अउ एकात ठन सामग्री ल भूलाए होहुँ त किरपा कर के बताहू। येमा पेट तो नइ भरय फेर मन भर जथे। 


सुमित्रा कामड़िया 


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

जइसे अलग अलग जघा के रहन -सहन, भाषा -बोली पहनावा, अलग अलग होथे वइसने खान -पान घलौ हा अलग अलग होथे।विशेष खान-पान हा वो जगह के पहिचान  घलौ बन जाथे।जइसे लीटी-चोखा बिहार, पूरनपोली महाराष्ट्र, ढोकला गुजरात, छोले -भटूरे,जोधरी के रोटी,सरसों के साग पंजाब, त इडली दोसा दक्षिण के पहिचान आय ।हमर छत्तीसगढ़ के खानपान हा हमर पहिचान आय।धान के कटोरा होय के कारन चाउँर हा हमर

मुख्य  भोजन आय ।अउ चाउँर ले बने जिनिस हा हमर कलेवा मा शामिल हवे।

               छत्तीसगढ़ मा अलग अलग तिहार मा अलग अलग कलेवा बनाये के चलन हावे।बछर के पहिली तिहार हरेली मा गुरहा चीला बनाये जाथे।तीजा पोरा मा ठेठरी, खुरमी,सलोनी त होली मा कुशली,खाजा अउ देहरौरी बनथे।उपास म फलहार बर तिखुर, सिंघाड़ा, सूजी चाहे बेसन के कतरा बनाय जाथे।गोवर्धन पूजा के दिन सोहारी बरा बना के गरुवा बइला ल खवाय आजकल पूरी बनाय के चलन हावे।पितर पाख म बरा, बोबरा,गुलगुल भजिया चौसेला बना के पितर मन ला हूम धूप देहे जाथे।

         लइका होय ले छेवारी बर सोंठ पीपर मा जड़ी बूटी मिला छेवारी लड्डू, तिल अउ अरसी के लड्डू त छट्ठी के दिन सगा पहुना ल बाँटे बर कसार के लड्डू (चाउँर पिसान ल बढ़िया घी मा भूँज के गुड़ के चाशनी म बाँधे जाथे)बनाथें।नोनी के बिहाव  मा जोरन बर करी,बूँदी लाड़ू,पपची ,बालूसही ,खाजा  जोरे जाथे।विहाव म कुअँर कलेवा के रसम घलौ होथे जेमा दमाद के संग सुआसा ल तरह तरह के कलेवा परोसें जाथे।

   ये तरह ले हमन देखथन कि छत्तीसगढ़ मा एक ले बढ़ के एक कलेवा बनाये जाथे जेहा इहाँ के पहिचान आय।



चित्रा श्रीवास

बिलासपुर

छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 छत्तीसगढ़ी कलेवा- *रसवन्ती* 


रसवन्ती बनाये के विधि बहुत सरल आय। येला होरी तिहार म  विशेष कर हमर कोती बनाथन। मूंग दार के मंगोड़ी ले रसवन्ती बनाये जाथे। येहर मीठा कलेवा आय। मूंग के दार ला रात कुन फूलो देवा अउ बिहनिया पानी ला निथार के ओला दरदरा पिस लेवा। आघु जमाना सिल-सिलौटी में पिसय फेर अब तो मिक्सी मा पिस लेथन। दरदरा पिसे पिठी म थोरिक खाये के सोडा डार के फेंट लेवा- अतका कि पानी में  डारव  तव उपला जावय, फेर तेल गरम करके सिठ्ठा भजिया- मंगोड़ा बना लेवा।  जतका कस भजिया हावय वही हिसाब के कराही मा पानी अउ शक्कर डार के चासनी बना लेवा। चासनी एकदम पतला रहय एक तार ले भी कम स्वाद बर लायची भुरका पिस के डार देवा। पानी अतका रहय की मूंग भजिया बनाय हव तेहर चासनी के पानी म फूल जाय अउ थोरुक झोर हर तको बाँचे रहय। ये तरा  ले छत्तीसगढ़ के विशेष कलेवा- रसवन्ती बनथे। येखर सुवाद हर बंगाली मन के रसोगुल्ला- सादा वाला ले कमती नई रहय। एक ठन खाहु तव खाते रहँव जईसे लगथे।



     वसन्ती वर्मा बिलासपुर 

     नेहरूनगर (छत्तीसगढ़) 

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

Monday 16 August 2021

सुरता- स्व. श्री महेंद्र देवांगन माटी जी*

 सुरता माटी जी- भावांजलि(छंद के छ परिवार)








 *सुरता- स्व. श्री महेंद्र देवांगन माटी जी*

माटी ल शत शत नमन,

छंद के छ परिवार म आय के बाद माटी जी ले मोर घनिष्टता बाढ़िस, येखर पहली माटी जी ल ज्यादातर पेपर म पढ़ँव, माटी जी के गद्य नही ते पद्य लगभग सबे पेपर म पढ़े बर मिल जावय। कोरबा म जब राजभाषा आयोग के 5वा प्रांतीय सम्मेलन होय रिहिस, त उंहे उन मन ले मुलाकात होय रिहिस। माटी जी मंच के नीचे बइठे बइठे घलो कविता लिखत दिखे, आयोजक मंडल म होय के कारण व्यवस्थापक म मोरो नाम रिहिस, त अउ करीब आय के मौका मिलिस, हालचाल अउ बातचीत करत मैं पूछेंव- आप के कविता कहानी मैं पेपर मन म् पढथे रहिथंव, का अइसन करे बर रोज लिखेल लगथे? त माटी जी मुस्कावत  किहिस, नही जी जेखर जइसन शौक ? मोला साहित्य लिखना बड़ भाथे, जब भी समय मिलथे मोर थैली के डायरी पेन हाथ म आ जथे, अउ मन के भाव डायरी के पन्ना म। मैं बहुत प्रभावित होय रेहेंव, माटी जी के समर्पण ल नमन करत बिदा लेय रेहेंव। तेखर बाद छंन्द  परिवार के सदस्य के रूप म माटी जी छंद समूह म जुडिस अउ छंद सीखिस। चूंकि मैं पहली जुड़े रेहेंव त, माटी जी मोला गुरु कहिके मान देवय, फेर मैं ओला सर कहँव। माटी जी पहली ले लिखे म पारंगत रिहिस, तेखर सेती ओला जादा महिनत छंन्द सीखे म नइ लगिस। एक बेर विधान धरे ताहन बिगन गलती के धड़धड़ धड़धड़ कविता गढ़े। तुरते ताही(समसामयिक, आसू) लिखे म माटी जी अघवा रहय, सबे विषय म झट झट कलम  चलावय। छंन्द परिवार के दिवाली मिलन समारोह कबीरधाम म अंतिम दर्शन होय रिहिस, उंहे ओखर पुस्तक के विमोचन मोला अच्छा से याद हे, मोला पुस्तक घलो दे रिहिस, उंहे बढ़िया काव्य पाठ घलो करे रिहिस। माटी जी कम समय म् बड़ अकन साहित्य गढ़ डरे रिहिस, उनला साहित्य के कोठी ल लबालब करे बर अउ रहना रिहिस, फेर दुखद,,,विधाता उन ल अपन तीर बुला लिस। माटी जी अपन लिखे गीत, कविता, कहानी लेख के माध्यम ले अउ अपन व्यक्त्वि ले सदा अमर हे। माटी जी कोरबा सम्मेलन के बाद मोर फेसबुक फ्रेंड बनिस, अउ आजो हे। नोनी प्रिया ह, वो नम्बर ल चलात हे, मैं नाम ल बदले नइ हँव, फेसबुक  वाट्सअप म अभो घलो नोनी के कोनो पोस्ट आथे  त माटी जी सउहत हे तइसे लगथे, अउ सोचथंव त आँखी नम हो जथे। माटी जी के साहित्यिक लगन अउ सक्रियता वन्दनीय हे। एक घाँव अउ माटी जी ल शत शत नमन।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

कोरबा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: *जमीन ले जुड़े मनखे रिहिन महेंद्र देवांगन ‘माटी' जी* 


मोर महेंद्र देवांगन ‘माटी' जी संग पहिली मुलाकात यादगार रिहिस हे। कबीरधाम मा आयोजित छंद के छ परिवार के स्थापना दिवस समारोह मा उनकर कृति ‘तीज 

-तिहार अउ परंपरा’ के विमोचन होइस ता ‘माटी' जी बहुत खुश नजर आवत रिहिन। अपन सबो छपे किताब मन के प्रति सबो अतिथि मन ला भेंट करत रिहिन । ‘माटी' जी जइसे बड़े साहित्यकार हा जब मोर तीर आइन अउ अपन किताब ‘माटी के काया’ के प्रति मोला भेंट करिन ता मोर खुशी के ठिकाना नइ रिहिस। किताब देके बेर उन हा मोला किहिन “चंद्राकर जी मोर किताब के बारे मा आपमन के प्रतिक्रिया के अगोरा रइही।” मे केहेंव “हव सर जी! पढ़के प्रतिक्रिया लिखे के प्रयास करहूँ।” ता ‘माटी’ जी हा मोला कहिन “चंद्राकर जी, आपमन बेबाक समीक्षा लिखहू, ज्यादातर मनखे मन बस तारीफ़ करथें। किताब मा का कमी रहिगे येला नइ बतावँय। आप ला कुछु कमी नजर आही ता बताहू। सीखेबर मिलही। मँय अगला संस्करण मा कमी मन ला सुधार के प्रयास करहूँ।" मोला उनकर ये बात बड़ा प्रभावित करिस। ‘माटी’ जी हा जेन ढंग ले मोर संग गोठ-बात करिन हे ओकर ले मोला उनकर व्यक्तित्व ला जाने मा देर नइ लागिस। साहित्य के क्षेत्र मा एक मुकाम हासिल करे के बाद भी उनकर अंदर सीखे के गजब के ललक रिहिस। अपन ‘माटी' उपनाम ला सार्थक करत जमीन ले जुड़े मनखे रिहिन। सबके मदद करइया, व्यवहार कुशल अउ मीठ बोलइया एक सच्चा साहित्यकार रिहिन।

स्थापना दिवस समारोह के समापन के बाद उनकर साथ साहित्य के बारे मा जे चर्चा होइस वहू हा मोर जइसे नवरिया लिखइया बर संजीवनी बूटी ले कम नइ रिहिस। ‘माटी' जी हा सरल, सरस भाषा शैली मा कविता लेखन के पक्षधर रिहिन। उनकर कहना रिहिस हम ला अइसे लेखन करना चाही जेला पाठक आसानी ले समझ जाये।

ओ मुलाकात के बाद ‘माटी' संग मोबाइल मा बीच बीच मा बात होवत रिहिस। अउ मोला हर बार उनकर ले कुछ न कुछ नवा सीखे बर मिलिस। नवा लिखइया मन ला रद्दा दिखइया, अउ समर्पित छंद साधक महेंद्र देवांगन ‘माटी’ जी आज हमर बीच भले नइ हे फेर अपन रचना के माध्यम ले हमेशा हमर साथ हें। प्रथम पुण्यतिथि मा महान साहित्यकार महेंद्र देवांगन ‘माटी’ जी ला शत शत नमन। 

💐🙏💐

श्लेष चन्द्राकर,

छंद के छ सत्र - 09

खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा,

महासमुंद (छत्तीसगढ़)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: "सुरता"...... महेन्द्र देवांगन माटी 


माटी के ये देंह ला, करे जतन तैं लाख।

उड़ा जही जब जीव हा, हो जाही सब राख।।1।।

का राखे हे देंह मा, काम तोर नइ आय ।

माटी के काया हरे, माटी मा मिल जाय।।2।।

  

         दोहा के ये कथन छत्तीसगढ़ी के युवा छंदकार महेन्द्र देवांगन माटी के आय जउन अपन माटी के काया ला माटी मा छोड़ के पंचतत्व मा विलीन होगे ।

         सहज,सरल,मृदुभाषी स्व. महेंद्र देवांगन माटी जी के जाना छत्तीसगढ़ी साहित्य बर अपूरणीय क्षति आय। 16 अगस्त 2020 के हमन अइसन हस्ताक्षर ल खो देन जेन छत्तीसगढ़ी साहित्य ल समृद्ध करत रहिन अउ अवइया दिन मा घलो छत्तीसगढ़ी साहित्य ल बहुत कुछ दे के जातिन। साहित्य के क्षेत्र मा माटी जाना पहिचाना नाम रहिन अउ अपन अलग पहिचान बनाइन। बीते डेढ़ दशक से भी जादा समय से उमन प्रदेश के अखबार अउ पत्र पत्रिका मा छाये रहिन। उँकर हिन्दी रचना के प्रकाशन देश के विभिन्न समाचार पत्र मा होवय। गद्य अउ पद्य दुनों म माटी जी समान रूप से लिखत रहिन। 

            अब तक उँकर तीन कृति प्रकाशित होय रहिस- 1. पुरखा के इज्जत, 2. माटी के काया

3. हमर तीज तिहार (अंतिम कृति) ।  छन्द के छ से जुड़े माटी जी सत्र- 6 के साधक रहिन अउ लगभग 50 प्रकार के छन्द के जानकार रहिन।  माटी जी से छन्द के कक्षा मा रोजिना भेंट होवय। अभी 1-2 महीना से उमन कक्षा मा नइ आ पात रहिन,पूछेंव त बताइन कि स्कूल के ऑनलाइन क्लास के कारण व्यस्तता बाढ़ गे हवय। लेकिन उँकर शारीरिक अस्वस्थता के कहीं कोई जिक्र नइ रहिस। फेसबुक मा लाइव टेलीकास्ट के लिए दीपक साहू अउ मैं उँकर से 20-25  दिन पहिली वीडियो कान्फ्रेंसिंग मा गोठ बात करे रहेन तब भी ये अंदाजा नइ रहिस कि माटी जी हम सब ला अतका जल्दी छोड़ के चल दिही। लेकिन सच्चाई इही हे कि माटी जी हम सब ला छोड़ के परमधाम चल दिन ।

         अइसन कोनो बिषय नइ होही जेमा माटी जी के कलम नइ चले रहिस होही। उँकर कलम निरंतर चलते रहय। देश, समाज म व्याप्त बुराई उपर माटी जी तगड़ा प्रहार करँय। साधु बनके समाज ल लूटने वाला बहरूपिया मन ला माटी जी बनेच लताडिन । येकर बानगी उँकर मत्तगयंद सवैया मा दिखथे-


साधु बने सब घूमत हावय डार गला कतको झन माला ।

लूटत हावय लोगन ला सब फंस जथे कतको झन लाला।

हाथ भभूत धरे चुपरे मनखे मन के घर डारय जाला।

लूट खसोट सबो जग होवत रोकय कोन बतावँव काला।।


एक सच्चा साहित्यकार वो होथे जेन समाज ल जागृत करे के काम करथे। समाज मा व्याप्त कुरीति उपर मा माटी जी के शानदार कुण्डलिया -


आये पीतर पाख हा, कौआ मन सकलाय ।

छानी ऊपर बैठ के, बरा भात ला खाय ।।

बरा भात ला खाय, सबो पुरखा मन रोवय ।

जींयत भर तरसाय, मरे मा पानी देवय ।।

राँधय घर मा आज, बरा पूड़ी ला खाये ।

कइसन हवय विधान, मरे मा पीतर आये ।।


पर्यवारण संरक्षण उपर माटी जी के कई कविता अउ छन्द मिलथे । वाम सवैया मा पर्यवारण के प्रति उँकर चिंतन देखव -


भरे तरिया अब सूखत हे कइसे सब प्राण बचाय ग भाई।

करे करनी अब भोगत हे रुखवा सब आग लगाय ग भाई।

परे परिया अब खेत सबो जल के बिन धान सुखाय ग भाई।

करे कइसे सब सोंचत हे अन पान बिना दुख पाय ग भाई।।


छत्तीसगढ़ के पारंपरिक तिहार "तीजा पोरा" के जीवंत चित्रण लावणी छन्द मा-


तीजा पोरा आ गे संगी, बहिनी सब सकलावत हे।

अब्बड़ दिन मा आज मिले हे, सुख दुख सबो बतावत हे।।

कइसे दिखथस बहिनी तैंहर,अब्बड़ तैं दुबराये हस।

काम बुता जादा होगे का,नंगत के करियाये हस ।।

फिकर करे कर तैं जादा झन,दीदी हा समझावत हे।

अब्बड़ दिन मा आज मिले हे,सुख दुख सबो बतावत हे।।


अपन कविता मा स्वदेशी के नारा ल माटी जी बुलंद करँय -

माटी के दीया जलावव संगी, माटी के दीया जलावव ।

चाइना माल के चक्कर छोड़ो, स्वदेसी ल अपनावव।


बेटी के सपना ला माटी रोला छन्द मा लिखथें- 


बेटी हावय मोर, जगत मा अब्बड़ प्यारी।

करथे बूता काम, सबो के हवय दुलारी।

कहिथे मोला रोज, पुलिस बन सेवा करहूँ।

मिटही अत्याचार, देश बर मँय हा लड़हूँ।


निधन के ठीक एक दिन पहिली माटी जी आजादी के ऊपर अपन रचना फेसबुक मा पोस्ट करे रहिन वोकर कुछ अंश देखव -


चन्द्रशेखर आजाद भगतसिंह,भारत के ये शेर हुए।

इनकी ताकत के आगे, अंग्रेजी सत्ता ढेर हुए ।।

बिगुल बज गया आजादी का, वंदे मातरम गायेंगे ।

तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे ।।


           साहित्यकार अपन कृति के माध्यम ले हमेशा अमर होथे। वो केवल अपन माटी के काया ला छोड़ के जाथे। अइसने महेन्द्र देवांगन माटी भी अमर हवय। उँकर रचे साहित्य आजीवन उँकर सुरता देवाही अउ जब जब छत्तीसगढ़ी साहित्य के बात होही उँकर नाव सम्मान के साथ ले जाही। 


*16 अगस्त 2021 प्रथम पुण्यतिथि म माटी जी नमन*


अजय अमृतांशु

भाटापारा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

.माटी जी के पहिली पुण्य तिथि म वोला शत शत नमन


माटी के रचनाकार : स्व. महेन्द्र देवांगन 

  आज छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी मा समान रुप ले लिखइया कवि, गीतकार, शिक्षक स्व. महेन्द्र कुमार देवांगन "माटी " के पहिली पुण्य तिथि हे. जब 16 अगस्त 2020 मा फेसबुक अउ व्हाट्सएप मा एक शोक समाचार चले ला लगीस कि जाने माने कवि, गीतकार, छंद साधक अउ शिक्षक श्री महेन्द्र कुमार  माटी हा हमर बीच मा अब नइ हे ता कोनो ला बिश्वास नइ होत रीहीस हे. पर धीरे धीरे श्रद्धांजलि के पोस्ट के संख्या हा बाढ़त जात रीहिस हे.  विधि के विधान के सामने हम सब मन नतमस्तक हो गेन. कोनो ला एको कनक विश्वास नइ होय कि माटी जी हा अचानक ये दुनियां ला छोड़ दीस काबर कि वोहा 15 अगस्त 2020 मा अपन स्कूल शासकीय प्राथमिक शाला डोमसरा विकासखंड़ पंडरिया(कवर्धा) मा सुग्घर ढंग ले ध्वजारोहण करे रीहीस हे. येला फेसबुक मा घलो पोस्ट करे रीहीन हे. 

ये वो समय रीहीस जब माटी जी के प्रतिभा हा पूरा ऊफान मा रीहीस हे. वोहा छत्तीसगढ़ी के सँगे सँग हिन्दी मा घलो बरोबर ढंग ले लिखत रीहीस हे. उँकर रचना अउ लेख हा कतको अकन पत्र पत्रिका मा प्रकाशित होत रीहीस हे. शोसल मीडिया मा खूब 

छाय राहय. कवि सम्मेलन मा घलो गजब चलत रीहीस हे. 

     परम पूज्य गुरुदेव अरुण कुमार निगम जी द्वारा स्थापित" छंद के छ " मा वोहा सत्र - 6 के साधक रीहीस हे. जब छंद साधक के रुप मा जुड़िस ता वोकर प्रतिभा मा अउ निखार आय लगगे. छंद के छ ले जुड़े के प्रभाव वोकर लेखन मा स्पष्ट झलकत रीहीस हे. वोहा अब्बड़ सुग्घर ढंग ले छंदबद्ध रचना शोसल मीडिया मा पोस्ट करे अउ कतको साहित्यिक पत्रिका मन मा प्रकाशित होय.


   जीवन परिचय -


   महेन्द्र कुमार देवांगन माटी के जनम  6 अप्रैल 1969 मा गरियाबंद जिला के बोरसी गाँव मा साधारण किसान परिवार होय रीहीस हे. वोकर पिता जी के नाँव थानू राम देवांगन अउ महतारी के नाँव नित कुंव देवांगन  हे.  आप मन के पिता जी हा कपड़ा बेचे के घलो काम करय. प्राथमिक शाला मा पढ़ई के समय ले वोकर रुचि गीत अउ कविता प्रस्तुत करे मा राहय. वोहा कम उम्र मा रचना लिखे के चालू कर दे रीहीस हे. उंकर शिक्षा के बात करन ता हिन्दी साहित्य अउ संस्कृत साहित्य मा एमए, अउ बीटीआई करे रीहीस हे.  


    नौकरी 


2008 मा उंकर नियुक्ति शिक्षा कर्मी वर्ग - तीन मा कवर्धा जिला के पंडरिया विकासखंड के शासकीय प्राथमिक शाला डोमसरा मा होइस . 1 जुलाई 2018 मा वोहा शिक्षा विभाग मा सहायक शिक्षक (एल. बी.) मा संविलियन होय रीहीस हे. देहावसान तक वोहा डोमसरा स्कूल मा ही सेवा देत रीहीस हे. श्रद्धेय माटी जी के जीवन सँगिनी के नाँव मंजू देवांगन हे.  वोकर  एक बेटा अउ एक बेटी हवय. वोकर बेटा के नाँव श्री शुभम देवांगन हे जउन हा माटी जी के देहावसान के बाद कवर्धा जिला मा अनुकम्पा नियुक्ति करत हवय.बेटी  प्रिया देवांगन हा कॉलेज के पढ़ई कर डरे हे. प्रियू बिटिया हा "छंद के 


छ" मा सत्र -13 के साधिका हवय. सुग्घर ढंग ले माटी जी के साहित्य विरासत ला आगू बढ़ावत हे.


साहित्य समिति मन ले संबद्ध 


माटी जी हा त्रिवेणी संगम साहित्य समिति राजिम, भोरमदेव साहित्य सृजन मंच कवर्धा, छंद के छ परिवार छत्तीसगढ़, आरुग चौरा परिवार छत्तीसगढ़, "कलम के सुगंध "छंद शाला ,कला परम्परा भिलाई, छत्तीसगढ़ कलमकार मंच भिलाई के सक्रिय 

सदस्य रीहीस हे. 

  

प्रकाशित किताब 


माटी जी जमगरहा रचनाकार रीहीस. लगातार साधनारत रहीके लिखत राहय. उंकर प्रकाशित किताब मा काव्य संग्रह "माटी के काया" 2015 मा प्रकाशित होय रीहीस हे." पुरखा के इज्जत" अउ "तीज - तिहार  अउ परंपरा " घलो छपीस हे.


   साहित्य सम्मान 


माटी जी हा लेखन मा अब्बड़ सक्रिय राहय. वोकर साहित्य साधना ला देखत कतको साहित्य समिति अउ संगठन मन सम्मानित करीस हे. जेमा  24 सितंबर 1994 मा संगम साहित्य समिति नवापारा राजिम ,साहित्य बुलेटिन नई कलम द्वारा राज्य स्तरीय प्रतिभा सम्मान (14 सितंबर 2014), भारतीय दलित साहित्य अकादमी धमतरी द्वारा महर्षि बाल्मीकि सम्मान (8 अक्टूबर 2014), छत्तीसगढ़ क्रान्ति सेना द्वारा सम्मान,  2015 मा छत्तीसगढ़ के पागा सम्मान, कलम साहित्य सम्मान नवागढ़ 2015, सिरजन लोक कला एवं साहित्य संस्था द्वारा बेमेतरा में सम्मान 2015,  छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना द्वारा  1 नवंबर 2016 मा "जबर गोहार " सम्मान रायपुर मा,  21 दिसंबर 2016 मा पंडित सुन्दर लाल शर्मा साहित्य उत्सव समिति द्वारा सम्मानित, सगुन चिरइया सुरतांजलि साहित्य सम्मान (13 अक्टूबर 2017), छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा 21 जनवरी 2016 मा बेमेतरा मा प्रशस्ति पत्र से सम्मानित, छत्तीसगढ़ कलमकार मंच सम्मान 2018, राज रचना कला एवं साहित्य समिति द्वारा 16 मई 2016 मा सम्मानित, छंद के छ परिवार द्वारा  13 मई 2018 मा सिमगा मा सम्मान, मधु शाला साहित्य परिवार द्वारा साहित्य रचना सम्मान 2018,  2018 मा ही कृति कला एवं साहित्य परिषद् सीपत (बिलासपुर) द्वारा "कृति सारस्वत सम्मान, प्रजातंत्र का स्तंभ गौरव सम्मान हरियाणा (10 जनवरी 2019), राज पब्लिकेशन दुर्ग द्वारा साहित्य वीर अलंकार सम्मान, अउ जनवरी 2020 मा पुष्प गंधा प्रकाशन कवर्धा द्वारा नारायण लाल परमार सम्मान शामिल हे.


सरल अउ हंसमुख व्यक्तित्व के धनी 


 श्द्धेय स्व. माटी जी हा गजब सरल, सरस अउ हंसमुख व्यक्तित्व के धनी रीहीस हे. छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के वार्षिक समारोह मा बिलासपुर, कोरबा, राजिम अउ बेमेतरा मा भेंट होय के सँगे सँग छत्तीसगढ़ कलमकार मंच भिलाई अउ भोरमदेव साहित्य सृजन मंच कवर्धा के स्थापना दिवस समारोह मा माटी जा सँग भेंट होय रीहीस हे. वोहा अब्बड़ मिलनसार रीहीस हे. जून 2019 मा आयोजित भोरमदेव सृजन साहित्य मंच कवर्धा के स्थापना दिवस समारोह मा उंकर से मोर आखिरी बार भेंट होय रीहीस हे. लोक संगीत सम्राट स्व. खुमान लाल साव जी ला समर्पित ये कार्यक्रम मा मँय हा पुरवाही साहित्य समिति पाटेकोहरा विकासखंड छुरिया के मोर सक्रिय सँगवारी अमृत दास साहू के सँग गे रहेंव. इहां समिति डहर ले जउन सँगवारी मन हमर स्वागत द्वार मा सम्मान करीन हे वोमा राम कुमार साहू, ईश्वर साहू आरुग, घनश्याम कुर्रे, मिनेश कुमार साहू जी के संग श्रद्धेय माटी जी हा घलो शामिल रीहीस हे. इही हा माटी जी सँग आखिरी भेंट रीहीस हे. वोकर बाद मँय हा दो तीन बार माटी जी सँग फोन मा बातचीत करे रहेंव. जब 16 अगस्त 2016 मा माटी जी के गुजर जाये के दु:खद खबर फेसबुक अउ व्हाट्सएप मा पढ़े ला मिलीस ता एको कनक बिश्वास नइ होइस कि माटी जी हा हमर बीच अब नइ हे. पर का करबे होनी ला कोन टारे हे  . वोकर निधन के खबर ला पढ़के आँखी हा डबडबागे.वोकर ले जउन भेंट होय रीहीस वो सब दिन अउ जगह हा आँखी के सामने दिखे ला लागिस .स्व. 

 माटी जी ला उंकर पहिली पुण्य तिथि मा शत् शत् नमन हे. विनम्र श्रद्धांजलि. 


        ओमप्रकाश साहू" अंकुर "

    छंद साधक, सत्र - 12

   सुरगी, राजनांदगॉव

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

Saturday 14 August 2021

विषय : आत्म-प्रशंसा के बीमारी

 🌹 *छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर* 🌹


दिनांक : 12 अगस्त 2021


*विषय : आत्म-प्रशंसा के बीमारी


*************************

          *आत्म प्रशंसा एक बीमारी*


             आत्मप्रशंसा अर्थात् अपनी प्रशंसा स्वयं (आप) ही करना है.इसी को "अपने ही मुँह मियाँ मिट्ठू बनना" कहा जाता है. यह एक मुहावरा है. जिसे हम आम बोलचाल की भाषा में सहज ही प्रयोग में लाते हैं. आत्मप्रशंसा कोई बुरी बात नहीं है, किन्तु अपने ही गुणों का गुणगान यदि व्यक्ति स्वयं ही करने लग जाता है तो उसकी गरिमा वहीं पर घट जाती है. आपने देखा होगा या गौर किया होगा कि विद्वान महापुरुष कभी भी अपनी प्रशंसा नहीं करते हैं बल्कि अपने सारे अच्छे कर्मों का श्रेय भगवान को या अन्य को दे देते हैं. यही उनकी महानता का प्रथम परिचय भी होता हैं.


            ऊँचे या शीर्ष पद पर आरुढ़ व्यक्ति को आपने देखा होगा कि उनके खान -पान, बोल-चाल एवं वेश-भूषा एकदम साधारण होते हैं. उनमें कोई दिखावा नहीं होता है. वे बहुत ही सरल, सहज एवं सादगी से परिपूर्ण होते हैं. ऐसे सरल व्यक्ति ही वास्तव में महामते और महाज्ञानी होते हैं. उनके शब्दों में मिठास होती हैं. वे शांत होते हैं. धीरे से अपनी बातों को सहजतापूर्वक समझाते भी हैं. ऐसे लोग सफलता की चरम सीमा के उस पार हो जाते हैं कि जहाँ कोई भी कार्य उनके लिए असम्भव नहीं होता है वे जीवन के विभिन्न परिस्थितियों से गुजर चुके होते हैं. इसीलिए उनके स्वभाव में स्थिरता आ जाती है. और ऐसे व्यक्ति ही वास्तव में मनुष्यता के वास्तविक स्वरूप को परिभाषित करते हैं अपने नेक और लोकहित के कार्यों के माध्यम से. ये ईश्वर द्वारा भेजे गये परमार्थी और प्रतिनिधि होते हैं. जिनका उद्देश्य ही परमार्थ के कर्मों में जीना होता हैं.


          वर्तमान परिवेश की बात करें तो हमारे आस पास ऐसे सैकड़ों व्यक्ति मिल जाएंगे. जो अपने छोटे -छोटे कर्मों को रिकार्ड, फोटोग्राफी, अखबारों एवं मीडिया में बढ़ा -चढ़ाकर प्रेषित करते फिरते हैं. ऐसे लोगों की वाहवाही भी खूब होती है. आजकल लोगों को स्वयं ही बताना पड़ता है कि मैंने फलां ट्रस्ट या संगठन या फिर अनाथालय को इतना दान किया.... आदि वगैरह वगैरह..... मेरे भाई!ये अच्छी बात है कि आपने अच्छा और अनुकरणीय कार्य किया और समाज के लिए एक सकारात्मक पहल वाले भी है आपके सारे कार्य. लेकिब जरा विचार कीजियेगा और खुद से प्रश्न भी कीजियेगा कि क्या मैं अपनी प्रशंसा करुँगा तभी लोगों को मेरे कर्मों के बारे में पता चलेगा? तब देखिएगा, आपके अंतर से आवाज आएगी कि नहीं अच्छे कर्मों को बखान करने कि आवश्यकता नहीं पड़ती है. बल्कि आपका व्यक्तित्व ही आपके कर्मों की पहचान हैं. इसमें तनिक भी संदेह नहीं कीजियेगा. आजकल तो प्रत्येक क्षेत्र में पुरस्कार रख दिया गया है. जो उस पुरस्कार को पाने की योग्यता रखता है उसे खुद ही आवेदन करना पड़ता है. इसके लिए विशाल मात्रा में लोगों के मध्य अंधाधुंध होड़ सी लगी होती हैं. यही सबसे दुःखद और बड़ी विडंबना है.मुझको बहुत ही कष्ट होता है जब लोगों को खुद ही अपने बारे में बताना पड़ जाता है कि मैं अमुक अधिकारी हूँ. मैंने ऐसा किया.. वैसा किया.... इत्यादि. ये सब चीजें व्यर्थ एवं बाह्य आडंबर को बढ़ावा देने का एक मात्र तरीका है और इसके अलावा कुछ भी नहीं है. आत्मप्रशंसा के भूखे लोग बड़े ही स्वार्थी, चापलूसी और ईर्ष्यालु होते हैं. वे अपने समकक्षी मित्रों के साथ धोखा करने से भी नहीं चूकते हैं. हमेशा दूसरों को नीचा दिखाने के प्रयास में लगे होते हैं. इस तरह से ऐसे लोग खुद के ही शत्रु बन जाते हैं. दूसरों की नजरों से तो गिरते ही हैं स्वयं की दृष्टि से भी गिर जाते हैं. जब उन्हें अपनी भूल या गलती का एहसास होता है तब तक बहुत देरी हो चुकी होती है.


        अतः भलाई इसी में है कि लोगों को आत्मप्रशंसा नामक बीमारी से बचे जाने की हर सम्भव कोशिश की जानी चाहिए. क्योंकि हम तो मनुष्य शरीर में कर्म करने के उद्देश्य से ही धरती पर अवतरित हुए हैं. ये हमारा परम एवं सर्वोच्च कर्तव्य है. अच्छा कर्म करना हमारा नैतिक धर्म है. फिर क्यों इतनी अपेक्षा करते हैं. यदि हमारा कर्म उत्तम हैं तो उसका मीठा फल हमें ही प्राप्त होगा और यदि हमारा कर्म नीचा है तो उसका कड़वा फल भी हमको ही चखना पड़ेगा. फिर इतनी आतुरता क्यों? क्या  एक पुरस्कारया मेडल ही आपकी योग्यता को सिद्ध करता है? नहीं!बिल्कुल नहीं!! अतः स्वयं से ही विचार मंथन कीजियेगा कि हमारा वास्तविक धर्म क्या है? इसी से आपके सारे सवालों का जवाब मिल जायेगा.


#######################

      धन्यवाद!! 🌹🙏


दिनाँक

12-08-2021


          सीमा यादव, ps सिंगारपुर, मुंगेली (छ. ग.)

विषय--आत्म-प्रशंसा के बीमारी* ------------------------


*विषय--आत्म-प्रशंसा के बीमारी*

------------------------


आत्मप्रशंसा के बीमारी

---------------------------------

आत्मप्रशंसा-रोग ले, बाँचे हावय कोन।

फइलावत हे आज तो, ये मोबाइल फोन।।


     आजकल आत्मप्रशंसा के बीमारी ह महामारी के रूप ले ले हावय। शायदेच कोनो मनखे ये बीमारी ले बाँचे होही।एखर मोटा-मोटा लक्षण बताये गे हे के ये बीमारी ले पीड़ित ह अपने मुँह ले अपने बड़ाई बहुत बढ़ा-चढ़ा के करे ल धर लेथे। फेर जइसे कभू -कभू कोरोना के लक्षण नइ दिखय अउ बीमारी हो ज रइथे ओइसने एखरो कई ठन बारीक लक्षण ह पकड़ म नइ आये ल धरय।

       जब ये बीमारी ह घर कर जथे त, आत्मप्रशंसा के रोग ले जकड़े व्यक्ति ह गाहे-बगाहे, बात-बात म--मैं -मैं-मैं----ओरियाये ल धर लेथे। मैं अइसे करेंव--मैं वइसे करेंव कहे बगैर वोकर गोठ पूरा होबेच नइ करय।अपन गुण अउ ज्ञान के बखान करत वोकर मुँह नइ पिरावय ,भले सुनइया के माथा पिरा जथे।ये बीमारी ले छटपावत मनखे ह रात-दिन वो अवसर के तलाश म रहिथे के कब वो ह दूसर सो अपन छोटे से छोटे उपलब्धि ल ,जना-मना अगास ल अमर के सिरतोन म चँदैनी ल टोर के लान डरे हे तइसे बता सकय ,देखा सकय। अइसन आत्मप्रशंसा के दौरा परे मनखे ल पतेच नइ चलय के कब वो ह अति ल लाँघ डरे हे अउ अबक-तबक वोकर मान-मर्यादा के मौत होने वाला हे।ये तरा के आत्मप्रशंसा के बीमारी ह एकदम घटिया, नकारात्मक किस्म के होथे।

        अइसन बिमरहा बेचारा ह सहानुभूति  के हकदार होथे काबर के वोमा गुण अउ ज्ञान तो होबे करथे फेर का करबे---जब दूसर मन वोकर बड़ाई नइ करय त खुदे अपन बड़ाई करे ल धर लेथे। ये अइसे करमछँड़हा हो जथे के दूसर मन ल ढपेल के गिराये ल नइ परय--- खुदे ह खुद ल ढपेल के अनजाने म अपने खने गड्ढा म गिर जथे। सहानुभूति के दूसर कारण इहू हे के --कोनो भला बता दय के अपन बड़ाई सुनना या अपन बड़ाई करना , काला अच्छा नइ लागत होही?

         आत्मप्रशंसा के एक रूप सकारात्मक तको होथे, मतलब एखर ले दूसर ल चिटिक फायदा हो सकथे।जइसे पढ़ावत-लिखावत बेरा गुरुजी मन अपन कोनो बढ़िया आदत ,गुण या अनुभव के बखान करथें जेकर ले विद्यार्थी मन ल प्रेरणा मिलथे।अइसने माता-पिता ,बुजुर्ग मन के या कोनो प्रेरक वक्ता के संबोधन ल कहे जा सकथे।

      आत्म प्रशंसा के बीमारी ह अपन संग दू-चार ठन अउ घातक बीमारी ल सँटिया के ले आथे जेमा अहंकार प्रमुख हे।ये ह बड़े-बड़े पद म बइठे सत्ताधीश, मठाधीश, 

ज्ञानी-ध्यानी,महा पंडित--विद्वान मन मा जादा दिखथे। वोकर आँखी म अइसे टोपा बँधा जथे के अपन ले श्रेष्ठ ,दुनिया म वोला कोनो दूसर दिखबे नइ करय।

         कभू-कभू आत्म प्रशंसा के बीमारी ह हीनभावना के कारण तको पैदा हो जथे। गुणहीन मन ह अपन ल जताय बर आत्म प्रशंसा करे ल धर लेथें। "थोथा चना ,बाजे घना" अउ "अधजल गगरी छलकत जाय" वाले कहावत इँखरे बर बने हे।

          आत्मप्रशंसा के बीमारी के बारीक लक्षण जेन पकड़ म नइ आये ल धरय वोहर ये----मैं ल दबा के मोर के बखान। मोर ये अइसे रहिसे---मोर वो वइसे रहिसे। दूसर के नाम अउ काम के सहारा लेके अपन नाम ल चमकाये के जतन करना---एहू ह एक प्रकार ले आत्मे प्रशंसा होथे।कान ल चाहे ए हाथ ले पकड़े जाय ,चाहे वो हाथ ले--बात तो एके आय।

   एही तरा परनिंदा,आलोचना म तको आत्मप्रशंसा के भाव छिपे रहिथे। दूसर ल कमतर साबित करके बिन कहे अपन ल श्रेष्ठ बताना--आत्मे प्रशंसा करनेच तो आय।

      ये लेख ल लिखे के बेरा संत कबीर दास जी के वाणी मनोमस्तिष्क म गूँजत हे।उन कहे हें--

बुरा जो देखन मैं चला,बुरा न मिलया कोय।

जो दिल देखा आपनो ,मुझसे बुरा न कोय।

        विद्वान मन सहीं कहे हें--दूसर ल एक अँगरी देखाबे त चार अँगरी खुदे कोती इशारा करथें।

 अपन आत्मा म झाँक के देखे म पता चलत हे के हम ला तो आत्म प्रशंसा बीमारी के कई अटेक आ चुके हे। नइ चाह के तको आ जथे। मातु शारदा ले बिनती हे के --आत्म प्रशंसा बीमारी के मेजर अटेक ले बँचाये के कृपा करहीं।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

आत्म प्रशंसा के बीमारी "

 " आत्म प्रशंसा के बीमारी " 

      ओइसे तो तुलसीदास आठों काल बारहों महीना सुरता आथे फेर अभी तो तुलसी जयंती के सेतिर अउ जादा सुरता आवत हे उन लिखे हें ...

" निज कवित्त केहि लाग न नीका , सरस होय अथवा अति फीका । " 

सोला आना सही बात ...फेर अपन रचना अपन लइका असन तो होबे करथे । कतका पढ़ , गुन के , सोच विचार करके लिखइया हर लिखथे त मोह ममता तो जागबे करही ? जागना चाहिए भी ..। गाड़ा मं कतको महंगी  जिनिस लदाए रहय ..गाड़ा रवन ले गाड़ा उतरिस त पलटे के डर तो रहिबे करथे ...गाड़ा पलटय झन अउ फेर गाड़ा रवन ल धर लय एकर जिम्मेदारी तो गाड़ा चलइया के होथे न ? ठीक उही तरह मनसे कतको ज्ञानी ध्यानी , बुधियार लिखइया रहय जहां मैं ये लिखें हंव , अतका कन लिखे हंव , अतेक दिन ले लिखत आवत हंव ...मैं ..मैं अउ मैं ..तहां आत्म प्रशंसा के जनम हो जाथे । मजा तो तब बाढ़ जाथे जब आत्म प्रशंसा हर सुरसा कस मुंह बढ़त जाथे ...। 

   तुलसी दास जी सत्तर साल के उमर मंच रामचरित मानस लिखिन ..जेकर पहिली भी किताब लिख डारे रहिन तभो उंकर विनम्रता देखव लिखे हें ...

" स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा ।" 

कोनो ल नीक लगही तभो ठीक हे , नइ लगही तभो ठीक हे ...। इही भाव हर आत्म प्रशंसा के बीमारी के रामबाण दवाई आय । तभो बीमारी तो बीमारी च आय समय रहत इलाज पानी मिल जाथे त मनसे भला चंगा हो जाथे । आत्म प्रशंसा के बीमारी ले बांचना हे त दूसर के लिखे ल पढ़ना जरुरी हे । पहिली फायदा के लोगन कोन विषय मं का लिखे हें , कोन तरह से लिखें हें ए 

पता चलथे दूसर ज्ञान के अंजोर बगरथे त जुच्छा के ' मैं' उही आत्म प्रशंसा जेला आत्म मुग्धता भी कहिथन तेहर भाग जाथे । बहुते आत्म प्रशंसा हर बहुत अकन विरोधी घलाय तो बनाथे । 

  ये बीमारी हर जुन्ना हो जाथे त कैंसर असन घमंड बीमारी बन जाथे जेहर लाइलाज होथे । 

अब जल्दी से कलम बन्द कर देवत हौं नहीं त आत्म प्रशंसा के बीमारी मोई ल हो जाही ...रोग ऱाई के बंहुते सुरता करे ले अपने उपर झंपा जाथे । 

  सरला शर्मा

छेवर_अउ_दुधभात ●

 ● #छेवर_अउ_दुधभात ●


समुच्चा देश के कोनों भी कोन्हा के गोठ करे जाय त सब्बो राज्य के गाँव-गँवई बासा म कई किसम के नियम,रीति-रिवाज,मान्यता देखे बर मिलथे इँहा के जिनगी,रहन-सहन म मया,भाईचारा भरे रहिथे नइतो अइसन भी  कहि सकथन  कि गाँव हर सँस्कृति के दुसरइया नाव आय |

अइसने हमर छत्तीसगढ़ जेन अपन धान संपदा के सेतिर 'धान के कटोरा' कहाथे जिंहाँ कतकोन जुन्ना रीत-रिवाज रहिस जेन खेती किसानी ले जुरे रहय तेन म एक ठिन रिवाज रहिसे 'छेवर के दिन दुधभात' |

छेवर माने किसान जब धान मिसाई करय त आख़िरी के दिन जेन दिन समुच्चा धान मिसाके घर के कोठी म हबर जावय त उही दिन साँझकुन आनन्द, खुशी से किसान सब्बो लइका मन ल छेवर के रूप म अन्नदान करय ये दिन सब लइका जेकर भी कोठार म छेवर मिसाई होवय तेन दिन सब्बो एक सँग जुरियावंय फेर किसान सब्बो झिंन लइका मन ल अपन हिसाब से कम -जियादा जइसनों भी छेवर अउ नरियर परसाद सँग गुड़  देवंय सब्बो लइका मन अब्बड़ खुशी मनावय हमर बचपना के एक परम सुख कहि सकथन एला जेन ल हमन जीए हन इकर सँगे-सँग छेवर देवइया किसान मन अपन पारा-परोस के रहइया मन ल रथिया के जेवन बर नेवता देहे रहँय तेकर खास महत्ता रहय दुधभात | किसान दार-भात परोसे के पहिली दुधभात खवावय जेन ल कहूँ तस्मई ,गुरतुर भात घलो कहिथें| छेवर अउ दुधभात के ए परम्परा घरो-घर चलय अउ एकर आनंद अइसे लागय जइसे कोनों तिहार |

फेर जब ले अंधाधुंध आधुनिकरण होइस किसानी के घलो मशीनीकरण होगे तब ले सब जुन्ना परम्परा नँदावत  चले गिस अब कहूँ गाँव म ए सब नियम,रिवाज नइ बाँचे दिखय सब्बो कोती भारी बदले-बदले गाँव के सरूप,किसानी अउ मनखे दिखथे आस-परोस के मनखे ले मनखे के मेल-मिलाप,दया-मया, सुमता सब जइसे कोनो सुघ्घर सपना होगे अब कोनों मनखे ल ककरो ले मतलब नइहे सब अपन-अपन हिसाब के खेती करत हें अउ पुरखा ले चलत आवत जम्मों परम्परा ल भुलावत हवंय अब न तो नांगर म बऊग होवय,न बियासी,न कोपर,न बइलागाड़ी,गोबरखत्ता ,न कलारी,पैरा,कोठार  न ही 'छेवर अउ दुधभात' |


    शशिभूषण स्नेही 

    बिलाईगढ़ (कैथा)

तिरंगा कब ऊँच होही- हरिशंकर गजानन्द देवांगन

 तिरंगा कब ऊँच होही- हरिशंकर गजानन्द देवांगन

                              रिगबिग सिगबिग चारों मुड़ा दिया कस बरत रहय झालर लट्टू । झिमिर झिमिर गिरत पानी बरसात म .. किंजरे बर निकले शंकर भगवान पूछिस – ए काये होवथे पार्वती । पार्वती मइया किथे – तहूँ मन कहींच नइ जानव हो .. पंद्रह अगस्त के भारत आजाद होये रिहीस .. ओकरे खुशी म इहाँ के जनता मन अपन झंडा ल फहराये के तैयारी अऊ बेवस्था करत हे .. मिठई बनावत हें .. नाचत गावत हें । भगवान किथे - खाये पीये नाचे कूदे के बात समझ आगे पार्वती .. फेर झंडा काबर फहराथे .. मे समझेंव निही या । मइया किथे - दुनिया ल देखाथें के .. हमन अजाद हन .. देखव हमर झंडा .. एकर ले ऊँच कहींच निये .. एकर तरी म हमर समृद्धि अऊ खुशी देखव .. कहिथें । भगवान मने मन सोंचत हे - काये काये करथे बिया मन.. इच्छा जागृत होगे जाने अऊ देखे के ।  

                              पंद्रह अगस्त के दिन , बिहिनिया ले .... शंकर जी हा नावा पटका सलूखा पहिरीस अऊ निकलगे । पार्वती मइया हा शंकरजी ल भीड़ भड़क्का म जाये बर बरजिस । फेर भोले बाबा सुनय तब ...... । मइया किथे - नइ मानव तूमन ....... जाये बर जावव फेर .. कुछू उलटा सीधा झिन करहू । शिवजी सभा स्थल तिर पहुंचके .. बइठे के जगा खोजे लागिस । भीड़ भड़क्का म जाये बर पार्वती मइया हा बरजे हे तेकर सेती .. खाली दिखत मंच म चइघगे । उहाँ बींचों बीच एक ठिन बड़े जिनीस चमचम चमकत खाली खुरसी दिखीस .. मोरे बर राखे होही कहिके ... टप्पले बइठगे । भोले बाबा ला देख .. हथियार धरे एक झन मनखे पहुंचगे । भगवान ल लगिस पूजा करे बर आये होही ... ओहा आँखी मूँद लिस । थोरिक बेर म भगवान के आँखी खुलिस त .. अपन आप ल अंधियारी खोली म पइस । अपन देहें म कतको अकन चोट के निसान देखिस ... कपड़ा घला चिरागे रहय । उहाँ ले ड्रेस बदल के फेर पहुंचगे मंच तिर । तभे एक झिन मनखे पहुँचगे ... उही खुरसी म बइठिस .. तइसने म दूसर मनखे घला तिर म आगे अऊ जै जोहार करत बाजू के खुरसी म बइठगे । भगवान जान डरिस .. येमन तो उही आये जेमन .. कुछेच दिन पहिली बड़का खुरसी म बइठे बर लड़त रिहीन अऊ कस के लड़ लीन .. तँहंले कोंटा म जाके समझौता घला कर डरिन के .. कुछ समे तें बइठ .. कुछ समे में .... फेर ....... तोर … मोर या हमर परिवार के अलावा अऊ कन्हो झिन बइठे पाय … एकर ध्यान रखना हे । भगवान जान डरिस के येहा .. बेचरऊहा खुरसी आय .. अऊ ओहा बिगन बिसाये बइठत रिहिस ... तेकर सेती ओला मार पीट के ... काल कोठरी म फटिक दे रिहीन । 

                              भगवान देखत रहय .. बड़का खुरसी वाला मनखे .. एक ठिन बड़े जिनीस खम्बा के तिर म गिस । कोन जनी काये करिस .... सुट ले एक ठिन बड़े जिनीस झंडा ऊँच म लहराये लागिस । जम्मो मनखे खड़े रिहीन । भगवान बइठेच रहय .. कहींच नइ दिखिस .. न समझ अइस । तब भगवान हा नारद ल सुरता करिस । नारद किथे - इहाँ कइसे भगवान ? भगवान किथे - देख तो नारद .. बड़ बिचित्तर खेल चलथे । डोरी म बंधाये .. एक ठिन झंडा ल फहराये के पाछू भजन गइस .. तहँले झंडा देखते देखत करियागे । इहाँ के मनखे मन तो देवता मन ले घला जादा मंतर जानथे तइसे लागथे रे .... । नारद किथे - तैंहा कहींच नइ जानस भगवान .. इहां के मनखे मन जे करतब जानथे .. तेकर पार .. ब्रम्हा घला नइ पा सकय । रिहीस बात झंडा फहराये के .. त सुन भगवान ...... येमन जेन झंडा ल फहराये हे .. उहीच अतेक ऊँच म जाके लहरावत हे । वा .... तेंहा नइ देखे हाबस नारद .. एमन तिरंगिया झंडा फहरइन हे .. फेर ऊँच म करिया झंडा लहरावथे – भगवान फेर पचारिस । नारद किहिस - तैं निच्चट सिधवा अस जी भगवान .. तीन रंग के झंडा फहराये बर केवल आजादी के पहिली मरत रिहीन इहाँ के मनखे मन । जब ले देश आजाद होये हे तब ले .. सब अपन मनपसंद झंडा फहराये अऊ लहराये बर धर लिन ।  तिरंगा देखा के जनता ला ठगथे । भगवान किथे - कोन मनखे आये ओहा .. अऊ काबर अइसने करथें .. मजा बताथँव इँकर .... । नारद जवाब दिस - थोरेच बेर पहिली तोर बहाँ ल हेचकार के .. खुरसी ले उतार दे रिहीस तेला भुलागेस का ? मजा पाये ल धरबे या बताये ल धरबे ते .. मई पिल्ला ला जेल म डार दिही .. जिनगी भर सरत रहिबे .. नंगरा अभिनेता हरस तेंहा .. जींस वाला नोहस .. तेमा कुछ भी करे के छूट मिल जही । नारद बताये लगिस - खुरसी वाला मनखे मन .. जनता ल देखाये बर तिरंगा ल बांधथें .. ओहा बंधायेच रहिथे .. ऊप्पर म इँकर करिया झंडा पहुंचथें .. अऊ उही ल फहराथें । वास्तव म ये .. राजनीति के झंडा आये | ये झंडा के खासियत ये आये के .. जे मनखे एकर तरी म आथें तेहा .. भ्रस्टाचार .. मक्कारी अऊ धोखाबाजी सीख जथे । एकर तरी म भलुक गिनती के मनखे मन रहिथे .. फेर उही मन देस म राज करथें .. अऊ गजब फूलथे फरथे । साधारन मनखे ल एकर दायरा म खुसरे के कनहो अधिकार निये । फेर एकर छाँव के सुख .. एकर तरी म ठाढ़ नइ होवइया .. घला पा जथे ।   

                             भगवान प्रश्न करिस -  त ये तिरंगा काये .. कोन फहराथें एला ? नारद जवाब देवत किहीस - एहा आम जनता बर आये .. उही मन फहराथें .. चल दूसर कोती तोला देखाहूँ .....। दुनों झिन उहाँ ले उच के रेंग दिन । ठईं म .. बड़े जिनीस खम्बा गड़े देखिन ...। ओमन सोंचिन एमा जरूर तिरंगा होही .. झंडा लहर लहर लहरावत रहय .... येमे तो दूये रंग के झंडा रहय .. उहू अलग अलग कपड़ा म । भगवान पूछिस - तैं तो केहे नारद के तीन रंग के झंडा इहाँ के जनता फहराथें कहिके ? नारद किथे - ये जेन झंडा दिखथे भगवान … यहू इहाँ के जनता के नोहे .. ये झंडा साम्प्रदायिकता के झंडा आये .... कभू केसरिया ऊँच होवथे .. कभू हरियर । भगवान पूछथे - त एकर तरी म जनता घला ठाढ़हे हे ? नारद किथे - एमन भटके मनखे आये .. इही झंडा वाला मन .. हमर ले बेहतर कन्हो निये कहिके जनता ल बरगलाके .. अपन उल्लू सोज करे बर .. इही झंडा के तरी म सुकून मिले के सपना देखाथें । 

                             तिरंगा कइसना होथे .. जेला फहराये के लबारी बर अतेक बड़ जश्न मनाथें .. ढमढम करथें .. भगवान के मन म देखे के इच्छा बलवती होगे । भगवान किथे - चल अऊ कहूँ करा .. कहूँ न कहूँ तिर मिलबे करही । नारद किथे - तैं उहाँ जाये के साध झिन कर भगवान ..., तैं जा नइ सकस ओ तिर .... । भगवान किथे - तैं चल तो ... । थोरेच आगू म लामी लामा खम्बा म सफेद झंडा फहरावत दिखिस । नारद बतावत रहय - येहा झूठ , फरेब अऊ बईमानी के झंडा आये भगवान । यहू बड़ ऊँच ऊँच म फहरथे । एकरो चमक दमक अऊ महक बड़ दूरिहा दूरिहा तक बगरे हे । फेर एकर तरी म दूसर ल खुसरे बर सोचे परथे । एकर तरी म केवल एकर फहराने वाला या ओकर परिवार खुसर सकत हे .. तभे तो एला सार्वजनिक नइ फहाराये .. अपन अपन घर म फहराथे । येहा व्यापारिक झंडा आय .. एकर छाँव केवल ओतकेच झिन ल सुख देथे .. जेमन एला फहराये के उदीम करथे ।

                              थोरेच कुन दूरिहा म .. बड़े जिनीस बंदूक के नली के ऊप्पर म .. लाली झंडा फहरावत दिखिस । नारद बतावत रहय – ये आतंक के झंडा आये भगवान । एला कभू उग्रवादी  कभू नकसलवादी त कभू अलगाववादी मन ऊँच करत रहिथे । एकर छाँव कन्हो ल सुकून नइ देवय । फेर केवल अपन बात मनवाये अऊ अपन जिद पूरा करे बर येमन बंदूक म अपन झंडा फहराके दुनिया म अपन नाव ल बगराना चाहथे । एकर तरी कन्हो स्वेच्छा से आना नइ चाहे .. कभू आक्रोश कभू दुख कभू पीरा त कभू स्वारथ त कन्हो मजबूरी म .. ठाड़ हो जथे ।  

                              भगवान कथे - परब तो एमन तिरंगा फहराये के खातिर मनाथे .. फेर कहुँच करा नइ अमरावत हन ओला । अऊ कतका रेंगे लागही नारद ? नारद किथे - तैं काबर साध करत हाबस भगवान .. तिरंगा देखे के ..... । या तो वापिस चल .. या कलेचुप रेंगत रहा मोर संग .. उदुप ले कहूँ तिर मिल सकत हे ..... ये देख में केहेंव न ..... आगे  तिरंगा तइसे लागत हे । या यहू नोहे भगवान , येहा नीला रंग के झंडा आये या येहा गुलाबी होगे .. अरे देखते देखत पिंवरावत घला हे । केऊ रंग बदल डरिस थोरकेच बेरा म । ये झंडा स्वार्थी मन के आय । एकर फहराने वाला सुख पाथे जरूर .. फेर ओकर बर ओला कतको झूठ बोले बर परथे .. केऊ बेर अपन ईमान बेंचथें .. अपन जमीर के हत्या कर देथें । 

                               थोकिन आगू गिन त  भगवान किथे - ये काकर झंडा आये .. कन्हो नइ दिखत हे नारद । नारद बतइस - ये तीर झंडा कहाँ हे भगवान । केवल खम्बा भर खड़े हे । ये अकर्मन्यता के झंडा आये .. जेहा दिखय निही । येला सरकारी कर्मचारी मन फहराथें । ये झंडा के तरी म ठाढ़ होवइया ल बिगन काम बूता करे समृद्धि मिल जथे । इँकर अपन अलग ले कन्हो अस्तित्व निये । समे अनुसार देखाये बर के .. हमन तुँहर कोती हाबन कहिके .. अपन झंडा बदलत रिथे .. फेर उहू दिखय निही के .. काकर झंडा ल फहरावत हे । 

                               भगवान केहे लागिस - अरे बापरे ! थक गेंव नारद । गोड़ पिरागे । तिरंगा देखे के साध म .. अब मोरो शक्ति जवाब देवत हे ।  नारद किथे - थोरेच कुन अऊ सबर कर भगवान ..... , थोरिक आगू म ..... मोला तिरंगा कस दिखत हे । तिरंगा तिर जाये के रसता म ..... माड़ी भर चिखला .. काँटा खूँटी .. उघरा नंगरा खेलत कूदत लइका .. बलकरहा मेहनतकस जवान .. खाँसत खखोरत बइठे सियान .. मुड़ी ढाँके हउँला धरे लजावत रेंगत नावा बहुरिया .. खदर छानी माटी के घर कुरिया .... । भगवान पूछिस - तैं कतिहाँ मोला लेगत हस नारद ? नारद किथे - मे तोला केहे रेहेंव न भगवान .. तेंहा झिन साध कर तिरंगा तिर जाये के , तिरंगा तिर पहुंचे के रद्दा म .. न आजादी के पहिली सुख रिहिस .. न अभू हे .. फेर तोर इच्छा देख लाने बर परिस । भगवान प्रश्न करिस - जेकर मन तिर कहींच निये ते मनखे मन .. का तिरंगा फहरावत होही .. कइसे झंडा ल ऊंच रखत होही .. अऊ कइसे झंडा के सुख के अनुभौ करत होही ............ ? 

                              तभे तिरंगा दिखगे । भगवान खुश होके थपड़ी पीटत किहिस - वा ..... उही तिरंगा आये का जी ? कइसे भुंइया म माढ़हे कस दिखत हे ? नारद बतावथे – नानुक ढारा म लटके हे भगवान ... बने देख । तिर म जाये बर धरिन । भारी भीड़ । जेती देख तेती मनखे के रेलम पेल । हरेक मनखे तिरंगा के छांव म जाना चाहत रहय । भगवान किथे - कइसे करथे बिया मन नारद ...... ? नानुक झंडा , एक कनिक ऊंच ..... कतका छांव मिलही ..... कतेकेच मनखे हमाही ओकर छाँव तरी । ध्यान से देखे लागिस । जे मनखे रहय तेला .. सुख पाये बर .. ओकर तरी जाके ओकर छाँव पाये के आवसकता नइ परय .. धूरिहा रहि के घला ओकर छाँव के कल्पना करइया ला अपने अपन सुकून मिल जाय .. सुख शांति मिल जाय । नारद किथे – इही तिरंगा आये भगवान .. जेला आजादी के बाद ले अभू तक जनता मन , फहरा के राखे हे । ये बात जरूर हे के येला ओमन ऊँच नइ कर सकत हें .. फेर येकर छाँव म जनता बनके रहवइया कन्हो भी मनखे ल .. सुख शांति अऊ सुकून मिलत हे । तिरंगा के सुख पाके .. शंकर भगवान जी अतका बइहागे के .. अपन असली रूप म आगे । ओला देखते साठ जनता ओकरे कोती दउँड़े लगिन अऊ पान फूल चइघाके अपन झंडा ल सबले ऊँच करे के माँग करिन । भगवान प्रसन्न होके किहिन के - बाकी झंडा मन के लंबरदार मन तुँहर सुकून ल देख नइ सकय .. तेकर सेती .. तिरंगा के हक ला .. हकले मारके .. ऊँच होये ले छेंकत हे । जे दिन तूमन जागरूक हो जहू .. जम्मो लबरसट्टा मनला चिन डरहू .. उही दिन सबले पहिली करिया झंडा .. अपने अपन कोन जनी .. कती करा गिर जही तेकर पता नइ चले । करिया झंडा ल गिरत देख .. भटकइया मनके एको झंडा नइ ठहर पाही .. सब्बो तरी ऊप्पर पड़पड़उँवा गिरके भुंइया म हमा जही .. अऊ उही दिन ले देश भर केवल तिरंगा लहराही ... अऊ अतका ऊँच म लहराही के जम्मो धरती एकर खालहे म आके .. एकर छाँव म सुख के अनुभौ करही । 

 हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन .. छुरा

Thursday 12 August 2021

13 अगस्त : स्व. डॉ. नरेश कुमार वर्मा के 62 वीं जयंती पर विशेष लेख...



















13 अगस्त : स्वर्गीय डॉ. नरेश कुमार वर्मा जी के 62 वीं जयंती पर विशेष लेख...
जनम - 13 अगस्त 1959  

 देहावसान - 27 अप्रैल 2021

छत्तीसगढ़ महतारी बर अपार श्रद्धा रखइया साहित्यकार - नरेश वर्मा 

हमन महान व्यक्ति के जीवनी पढ़थन ता पता चलथे कि वोहर अपन जीवन मा कत्तिक संघर्ष करके आगू बढ़ीस हे. कम सुविधा के बावजूद जब कोनो मनखे हा अपन जीवन मा कुछ करे बर ठान लेथे अउ जब अपन मंजिल ल प्राप्त करथे ता अइसन मनखे हा दूसर मन बर प्रेरणास्रोत बन जाथे. गरीबी ला झेलके आगू बढ़इया मा एक नाँव हवय श्रद्धेय स्वर्गीय डॉ. नरेश कुमार वर्मा जी. स्वर्गीय वर्मा जी गरीब परिवार मा जनम लेके बावजूद प्रोफेसर बनीस अउ अपन कर्म के माध्यम ले दूसर मन बर एक उदाहरण बनके सामने आइस. 
  नरेश कुमार वर्मा के जनम 13 अगस्त 1959 मा बलौदाबाजार जिला मा भाटापारा ले 12 किलोमीटर दूरिहा फरहदा गाँव मा छोटे किसान परिवार मा होय रीहीस. वोकर पिता जी के नाँव उदय राम वर्मा अउ माता जी के नाँव पुनौतिन वर्मा रीहीस हे. वोमन तीन भाई अउ तीन बहन रीहिस हे. तीन भाई मा वोहा सबले बड़े रीहीस हे.
 
    पढ़ाई -लिखाई 

माता -पिता के अनपढ़ अउ आर्थिक समस्या के बावजूद अपन मन ला पढ़ई डहर खूब लगाय राहय. गाँव मा प्राथमिक शिक्षा पूरा करे के बाद मीडिल स्कूल के पढ़ाई जरोद अउ हायर सेकण्डरी के पढाई भाटापारा मा करीस. महासमुंद ले बीटीआई अउ बीए व हिन्दी अउ भूगोल मा एमए बलौदाबाजार ले करीस. राजनांदगॉव के दिग्विजय कॉलेज मा सहायक प्राध्यापक पद मा रहत वोहा हिन्दी मा पीएचडी करीन. 
   1975 मा वोहा बीटीआई महासमुंद ले अध्यापक प्रशिक्षण बर प्रवेश परीक्षा 75 प्रतिशत अंक के साथ उत्तीर्ण की. 

प्राथमिक शाला के शिक्षक ले प्रोफेसर तक के सफर 


 1979 मा शासकीय प्राथमिक शाला वटगन (रायपुर) मा शिक्षक बनके गीस. येखर बाद विश्वविद्यालय के सबो परीक्षा मन ला स्वाधायी छात्र के रुप मा दिलइस अउ उच्च अंक के साथ उत्तीर्ण होत गीस. 
  कॉलेज के प्रोफेसर बनना अपन जीवन के लक्ष्य बनाय रीहीस अउ येला वोहा गजब संघर्ष करके प्राप्त करीन. आर्थिक समस्या ले जूझत अपन रास्त बनइस. जब हिन्दी के सामान्य वर्ग ले  आठ पद बर अखिल भारतीय विज्ञापन आधार मा वोकर नियुक्ति होइस ता अपन लक्ष्य ला प्राप्त करके अपन जीवन के सबले बड़े खुशी प्राप्त करीस. 
   1986 मा ऊंकर नियुक्ति शासकीय माखन लाल चतुर्वेदी महाविद्यालय बाबई (होशंगाबाद)मा हिन्दी के सहायक 
प्राध्यापक पद मा होइस. 1987 मा वोहा दिग्विजय कॉलेज राजनांदगॉव मा स्थानांतरित होके आइस. इहां वोहा जुलाई 2008 तक रीहीन. 21 वर्ष तक ये कॉलेज म टिके रीहीस यहू हा गजब बड़े उपलब्धि रीहीस. 2006 मा वोहा सहायक प्राध्यापक ले प्राध्यापक (हिन्दी) बनगे.  21 वर्ष मा वोहा अपन एक अलग छाप छोड़िस. वोहा महाविद्यालय के शैक्षणिक गतिविधि के सँगे सँग साहित्यिक, सांस्कृतिक अउ राष्ट्रीय सेवा योजना के गतिविधि के जिम्मेदारी ला बने ढंग ले निभाइन. 

    पीएचडी के उपाधि 

  वर्मा जी हा 1992 मा विद्वान  डॉ. गणेश खरे जी (राजनांदगॉव) के प्रेरणा ले डॉ. गीता पाठक के मार्गदर्शन मा " साठोत्तरी हिन्दी कविता में राष्ट्रीय -सामाजिक चेतना "विषय मा पीएचडी के उपाधि प्राप्त करीस.

स्थानांतरण पर हाईकोर्ट ले स्टे लाइस 

छत्तीसगढ़िया व्यक्तित्व के धनी जत्तिक सरल, सहज अउ सरस रीहीस वतकी दृढ़ता के घलो प्रतीक रीहीस. जब साभिमान ला ठेस पहुंचे के नौबत आय ता करिया डोमी कस फूंफकार के अपन मान -मर्यादा के रक्षा करे. 
2007 मा वर्मा जी के स्थानांतरण दिग्विजय कॉलेज राजनांदगॉव ले कवर्धा के नया कॉलेज मा सहायक प्राध्यापक मा करे गीस जबकि वोहा 2006 मा प्राध्यापक बन गे रीहीस. कवर्धा कालेज में हिन्दी में प्राध्यापक के पद नइ रीहीस हे. इहां वर्मा जी हा अपन हक बर लड़ाई करत हाई कोर्ट ले स्टे ला लीस अउ ये प्रकार ले ऊंकर स्थानांतरण रुकगे. वर्मा जी हा शासकीय दिग्विजय स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष रीहीन. 

स्वेच्छा स्थानांतरण मा भाटापारा गीस
   21 साल तक दिग्विजय कॉलेज मा सेवा देय के बाद जुलाई 2008 मा अपन स्थानांतरण अपन जनम भूमि फरहदा के तीर भाटापारा कॉलेज मा करा लीन.  जुलाई 2008 मा साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव द्वारा दिग्विजय कॉलेज के नवीन सभागार मा विदायी समारोह के आयोजन करे गीस जेमा जेमा जिला भर के तीन दर्जन साहित्यकार मन अपन उपस्थिति देके वर्मा जी के प्रति अपन मया ला उड़ेलिन. उंकर विदायी बेला मा सबके आँखी हा डबडबागे. ये प्रकार ले वर्मा जी हा अपन दृढ़ता अउ दूरदर्शिता ले शासकीय गजानन स्नातकोत्तर महाविद्यालय भाटापारा मा आके सेवा करे लागीस. इहां वोहा हिन्दी विभागाध्यक्ष रहे के सँगे सँग 
2017 मा प्रभारी प्राचार्य घलो रीहीन. कॉलेज मा राष्ट्रीय स्तर के सेमीनार करइस .अपन दूरदर्शिता ले प्रभारी प्राचार्य रहत भाटापारा कॉलेज के नेक का मूल्यांकन कराय मा सफल होइस. ये प्रकार ले  भाटापारा कॉलेज ला नेक से मान्यता प्राप्त कॉलेज के श्रेणी मा आगे. 

विश्वविद्यालय के हिन्दी अध्ययन मंडल के अध्यक्ष बनीस 

श्रद्धेय वर्मा जी के योग्यता अउ विद्वता ला देख के  नवंबर 2020 मा पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर मा हिन्दी अध्ययन मंडल के अध्यक्ष बनाय गे रीहीस. येकर सदस्य पहलीच ले रीहीस हे. 

     साहित्य सेवा 

वर्मा जी हा 1975 ले कविता लिखे के शुरु करीस. महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी मा समान रुप ले लिखे हवय. रायपुर के कतको अखबार मा ऊंकर रचना छपिस. छत्तीसगढ़ महतारी के प्रति गजब प्रेम रखइया वर्मा जी हा 1979 मा अलग राज खातिर अपन लहू मा चिट्ठी लिखके छत्तीसगढ़ राज्य के समरथन करीन. 
वर्मा जी के आलेख, शोध पत्र, संस्मरण, समीक्षा, कविता हा कतको राष्ट्रीय अउ स्थानीय पत्र -पत्रिका मा प्रकाशित होत रीहीस हे. उंकर प्रकाशित पुस्तक मा "साठोत्तरी हिन्दी कविता में राष्ट्रीय -सामाजिक चेतना (शोध ग्रन्थ) 1999, "समकालीन हिन्दी कविता और राष्ट्रीय परिदृश्य "
(शोध पत्रिका संपादित) 2000, छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह "माटी महतारी 2001 , पुरातत्व अउ संस्कृति मंत्रालय छत्तीसगढ़ शासन के सहयोग अउ जिला प्रशासन राजनांदगॉव के सहयोग ले 2002 मा "छत्तीसगढ़ की अभिव्यक्ति, इतिहास एवं स्वतंत्रता", 2003 मा "छत्तीसगढ़ की जनभाषा और कथा कंथली " के संपादन,साकेत छत्तीसा भाग -1 (2003),साकेत छत्तीसा भाग -2 (2004),साकेत छत्तीसा -3(2005) के संपादन करीन. समकालीन हिन्दी कविता पर विश्व विद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली के सहयोग ले 2000 मा राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के आयोजन के दायित्व ला गजब सुग्घर ले निभाइस. लखनउ अउ रायबरेली के अखिल भारतीय कवि सम्मेलन मा भागीदारी करीस. 

   साहित्य सम्मान 

डॉ. वर्मा जी ला साहित्य सेवा खातिर कतको संगठन हा सम्मानित करीस. मध्यांचल कल्याण समिति उत्तरप्रदेश अउ महिला प्रगति संस्थान रायबरेली द्वारा " साहित्य शिरोमणि सम्मान "(1998),साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव द्वारा " साकेत साहित्य सम्मान "(2002),छत्तीसगढ़ी राजभाषा अउ आदिवासी संस्कृति संस्थान रायपुर द्वारा  "छत्तीसगढ़ी रत्न सम्मान "(26 नवंबर 2007 ) आदर्श युवा संगठन मुड़पार 
(सुरगी)  द्वारा "साहित्य सम्मान "के सँगे सँग कतको संगठन मा सम्मानित करीस. 

नवा प्रतिभा मन ला पलोंदी देवइया साहित्यकार 

वर्मा जी हा नवा लिखइया रचनाकार मन ला गजब पलोन्दी देय के काम करीस. दिग्विजय कॉलेज मा सेवा 
काल के समय साहित्य अउ भाषण कला मा रुचि रखइया छात्र मन ला आगू बढ़े बर मार्गदर्शन करय. राष्ट्रीय सेवा योजना के अधिकारी के रुप मा युवा वर्ग ला रचनात्मक अउ समाज सेवा के कार्य करे बर प्रोत्साहित करीस अउ साहित्य डहर जाय बर रास्ता घलो बतइस. महाविद्यालय मा आयोजित परिचर्चा, भाषण अउ वाद विवाद स्पर्धा, सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता मा विद्यार्थी मन ला भाग लेय बर अब्बड़ प्रोत्साहित करे.  1997 मा आजादी के स्वर्ण जयंती के सुग्घर बेला मा दिग्विजय कॉलेज मा स्वतंत्रता सग्राम पर परिचर्चा आयोजित करे गे रीहीस वोमा मुख्य अतिथि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्रद्धेय कन्हैया लाल अग्रवाल माई पहुना रीहिस. येमा प्रोफेसर मन के सँग महू ला अउ वक्ता सरोज कुमार मेश्राम ला विचार रखे बर बुलाय गे रीहिस. येमा वर्मा जी के ही हाथ रीहिस हे. मेहा उँहा काव्य पाठ घलो करे रेहेंव. कार्यक्रम के संचालन जाने माने वक्ता डॉ. चन्द्रकुमार जैन हा करत रीहिस हे. साकेत साहित्य परिषद् सुरगी के प्रमुख सलाहकार के पद के दायित्व ला सुग्घर ढंग ले निभावत 
येमा जुड़े जम्मो साहित्यकार मन ला अब्बड़ मया दीस. रचना लिखे बर गजब प्रोत्साहित करीस अउ अपन अमूल्य मार्गदर्शन ले नवा रास्ता दिखाइस. साकेत छत्तीसा भाग -1,2, 3(2003,2004,2005) के माध्यम ले नवा रचनाकार मन ला पलोंदी दीस. कार्यक्रम बर आर्थिक सहयोग करके साहित्यकार मन ला संबल प्रदान करय. वर्मा जी हा कॉलेज के प्रोफेसर होय के बावजूद ग्रामीण साहित्यकार मन सँग बहुत सरल,सहज अउ सरस ढंग ले पेश 
आय. कोनो सुझाव ला सुग्घर विनम्र ढंग ले बताय. गुनिक विद्यार्थी मन ला आर्थिक सहयोग घलो करय. 

हमर राजनांदगॉव जिला मा साहित्य के क्षेत्र मा आदरणीय वर्मा जी अउ आदरणीय कुबेर सिंह साहू जी के जोड़ी गजब सुग्घर ढंग ले चलीस. दूनों के जोड़ी हा साकेत साहित्य परिषद् सुरगी ला एक नवा ऊंचाई दीस.
दूनों के सुग्घर प्रयास ले हमर साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनॉदगॉव के वार्षिक सम्मान समारोह मा अंतरराष्ट्रीय पंथी नर्तक स्व. देवदास बंजारे जी, संत कवि पवन दीवान जी, तत्कालीन उपनेता प्रतिपक्ष अउ वर्तमान मुख्यमंत्री माननीय भपेश बघेल जी, प्रसिद्ध साहित्यकार,डॉ. परदेशी राम वर्मा जी, प्रख्यात भाषाविद् अउ छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पाठक जी, डॉ. विमल कुमार पाठक जी जइसे साहित्यकार मन हा पहुंच के क्षेत्र के साहित्यकार मन के मान बढ़इस. 






  कतको संगठन मा दायित्व ला निभाइस 

वर्मा जी हा साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव के प्रमुख सलाहकार, छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य परिषद् के कार्यक्रम मंत्री, छत्तीसगढ़ी साहित्य परिषद् राजनांदगॉव के जिला संयोजक, राष्ट्र भाषा प्रचार समिति उपाध्यक्ष, पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर मा हिन्दी अध्ययन मंडल के अध्यक्ष रहे के सँगे सँग मनवा कुर्मी क्षेत्रीय समाज राजनांदगॉव के अध्यक्ष अउ सर्व कुर्मी समाज के उपाध्यक्ष के दायित्व ला बखूबी निभाइस.

घर परिवार के जिम्मेदारी ला गजब सुग्घर निभाइस 

वर्मा जी हा छोटे किसान परिवार ले रीहीस. अब्बड़ संघर्ष करके आगू बढ़े रीहीस हे. तीन भाई मा सबसे बड़े रीहीस हे. वर्मा जी हा बड़का भाई के फर्ज ला सुग्घर ढंग ले निभाइस. जब वोहा राजनांदगॉव मा पदस्थ रीहीस ता अपन छोटे भाई अउ छोटे बहिनी ला अपन तीर रखके बने पढ़इस -लिखइस .छोटे भाई हा जब दूसर करा काम मा जाय ता अपन गाँव फरहदा मा रोड जगह मा जमीन खरीद के दुकान खोले मा सहयोग करीन अउ आत्म निर्भर बने के प्रेरणा दीस. जब भाटापारा कॉलेज मा स्थानांतरण होके गीस तब हर सप्ताह माता -पिता के दर्शन करे बार अपन गाँव फरहदा 
जरुर जाय. अपन घर परिवार के प्रति वर्मा जी के मन मा अगाध प्रेम राहय.  22 फरवरी 2017 के उंकर माताजी के निधन होइस. 

2018 मा विधानसभा चुनाव के समय अति व्यस्तता मा वर्मा जी के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ीस. 17 नवंबर 2018 मा बीमार पड़गे. रायपुर के मित्तल हास्पिटल मा 17 नवंबर 2018 से 1 जनवरी 2019 तक ईलाज चलीस. इही समय मेहा हमर पुरवाही साहित्य समिति पाटेकोहरा विकासखंड छुरिया जिला राजनॉदगॉव के अध्यक्ष भाई शिव प्रसाद लहरे के संग वर्मा जी ला देखे बर हास्पिटल पहुंचेन. वर्मा जी हा हमर दूनो सँग 
सुग्घर गोठ -बात करीस. वर्मा जी हमर सँग अउ बहुत कुछ बात करना चाहत रीहीस हे पर स्वास्थ्य ला देखत उंकर पुत्र मयंक वर्मा हा जादा बात करे ले रोकीस अउ कीहिस कि ले पापा जब पूरा ठीक हो जाहू ता बहुत अकन बात कर लेहू ता इही जगह वर्मा जी हा कीहीस मेहा ठीक हवँ मयंक. मोला बात करन दे. कई चीज हा कई घांव बतात ले छूट जाथे. वर्मा जी हा इहां अपन कवर्धा स्थानांतरण के बात करत छत्तीसगढ़िया अस्मिता के चर्चा करत रीहीस हे. थोरकुन बात सुने के बाद महू हा केहेंव कि ले सर जी जब आप हा पूरा ठीक हो जाहू ता बहुत सारा बात करबो. अभी आप मन आराम करव. हमन गुरुदेव जी के आशीर्वाद लेके हास्पिटल ले बिदा लेन. 
 ये बीच मा वर्मा जी के स्वास्थ्य हा पूर्णत : ठीक नइ हो पाइस. 20,21,22 अप्रैल 2019 तक मित्तल हास्पिटल मा फेर ईलाज बर भर्ती होइस. 7 जून 2019 के फिर से स्ट्रोक मा अटैक आगे. निमोनिया घलो होगे. ये बीच मा वर्मा जी ला कोनो चीज ला गुटके मा परेशानी होय लागीस. 
12 जुलाई से 12 अगस्त 2019 तक अमलेश्वर मा ईलाज चलीस. 
 13 अगस्त 2019 मा अपन जनम दिन मा कॉलेज ज्वाइन करीस. अक्टूबर 2019 मा बेल्लोर (तमिलनाडु) जांच हेतु ले जाय गीस. उँहा के डॉक्टर मन हा कीहिस कि वर्मा जी आप बने हवव.
  27 मार्च 2021 मा वर्मा जी के पिता जी गुजर गे. वोकर ठीक एक महीना बाद  27 अप्रैल 2021 मा वर्मा जी हा घलो ये दुनियां ला छोड़ दीस. लॉकडाउन के समय कुछ नकारात्मक खबर हा घलो वर्मा जी ला तोड़े के काम करीन . ये बीच मा अपनों अउ 
अपन जान- पहचान के गुजरे ले वोला धक्का लागत गीस. काबर कि पहिली ले वोकर स्वास्थ्य हा पूरा ठीक नइ रीहीस हे. 
वर्मा जी हा अपन यश रुपी शरीर ले हमर बीच जीवित हवय. वर्मा जी पत्नी के नाँव श्रीमती मीना वर्मा, बेटा मयंक वर्मा अउ बेटी भुप्रिया वर्मा हे. श्रद्धेय वर्मा जी हा सरल, मृदुभाषी अउ उदार मनखे रीहीस हे.वोहा भाषाविद्, कुशल संपादक, बड़का विद्वान, दूरदर्शी,स्पष्ट वक्ता अउ छत्तीसगढ़िया व्यक्तित्व के धनी रीहीस हे. महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी के बारे मा उंकर कहना राहय कि " छत्तीसगढ़ी मा भाषा के सबो गुन हे. एक दिन वोला भाषा के दर्जा मिलके रहिही. "छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान खातिर लड़इया स्व. वर्मा जी ला 62 वीं जयंती पर शत् शत् नमन है. विनम्र श्रद्धांजलि. 

        ओमप्रकाश साहू "अंकुर "
       सुरगी, राजनांदगॉव 
       मो.  7974666840