Saturday 14 August 2021

तिरंगा कब ऊँच होही- हरिशंकर गजानन्द देवांगन

 तिरंगा कब ऊँच होही- हरिशंकर गजानन्द देवांगन

                              रिगबिग सिगबिग चारों मुड़ा दिया कस बरत रहय झालर लट्टू । झिमिर झिमिर गिरत पानी बरसात म .. किंजरे बर निकले शंकर भगवान पूछिस – ए काये होवथे पार्वती । पार्वती मइया किथे – तहूँ मन कहींच नइ जानव हो .. पंद्रह अगस्त के भारत आजाद होये रिहीस .. ओकरे खुशी म इहाँ के जनता मन अपन झंडा ल फहराये के तैयारी अऊ बेवस्था करत हे .. मिठई बनावत हें .. नाचत गावत हें । भगवान किथे - खाये पीये नाचे कूदे के बात समझ आगे पार्वती .. फेर झंडा काबर फहराथे .. मे समझेंव निही या । मइया किथे - दुनिया ल देखाथें के .. हमन अजाद हन .. देखव हमर झंडा .. एकर ले ऊँच कहींच निये .. एकर तरी म हमर समृद्धि अऊ खुशी देखव .. कहिथें । भगवान मने मन सोंचत हे - काये काये करथे बिया मन.. इच्छा जागृत होगे जाने अऊ देखे के ।  

                              पंद्रह अगस्त के दिन , बिहिनिया ले .... शंकर जी हा नावा पटका सलूखा पहिरीस अऊ निकलगे । पार्वती मइया हा शंकरजी ल भीड़ भड़क्का म जाये बर बरजिस । फेर भोले बाबा सुनय तब ...... । मइया किथे - नइ मानव तूमन ....... जाये बर जावव फेर .. कुछू उलटा सीधा झिन करहू । शिवजी सभा स्थल तिर पहुंचके .. बइठे के जगा खोजे लागिस । भीड़ भड़क्का म जाये बर पार्वती मइया हा बरजे हे तेकर सेती .. खाली दिखत मंच म चइघगे । उहाँ बींचों बीच एक ठिन बड़े जिनीस चमचम चमकत खाली खुरसी दिखीस .. मोरे बर राखे होही कहिके ... टप्पले बइठगे । भोले बाबा ला देख .. हथियार धरे एक झन मनखे पहुंचगे । भगवान ल लगिस पूजा करे बर आये होही ... ओहा आँखी मूँद लिस । थोरिक बेर म भगवान के आँखी खुलिस त .. अपन आप ल अंधियारी खोली म पइस । अपन देहें म कतको अकन चोट के निसान देखिस ... कपड़ा घला चिरागे रहय । उहाँ ले ड्रेस बदल के फेर पहुंचगे मंच तिर । तभे एक झिन मनखे पहुँचगे ... उही खुरसी म बइठिस .. तइसने म दूसर मनखे घला तिर म आगे अऊ जै जोहार करत बाजू के खुरसी म बइठगे । भगवान जान डरिस .. येमन तो उही आये जेमन .. कुछेच दिन पहिली बड़का खुरसी म बइठे बर लड़त रिहीन अऊ कस के लड़ लीन .. तँहंले कोंटा म जाके समझौता घला कर डरिन के .. कुछ समे तें बइठ .. कुछ समे में .... फेर ....... तोर … मोर या हमर परिवार के अलावा अऊ कन्हो झिन बइठे पाय … एकर ध्यान रखना हे । भगवान जान डरिस के येहा .. बेचरऊहा खुरसी आय .. अऊ ओहा बिगन बिसाये बइठत रिहिस ... तेकर सेती ओला मार पीट के ... काल कोठरी म फटिक दे रिहीन । 

                              भगवान देखत रहय .. बड़का खुरसी वाला मनखे .. एक ठिन बड़े जिनीस खम्बा के तिर म गिस । कोन जनी काये करिस .... सुट ले एक ठिन बड़े जिनीस झंडा ऊँच म लहराये लागिस । जम्मो मनखे खड़े रिहीन । भगवान बइठेच रहय .. कहींच नइ दिखिस .. न समझ अइस । तब भगवान हा नारद ल सुरता करिस । नारद किथे - इहाँ कइसे भगवान ? भगवान किथे - देख तो नारद .. बड़ बिचित्तर खेल चलथे । डोरी म बंधाये .. एक ठिन झंडा ल फहराये के पाछू भजन गइस .. तहँले झंडा देखते देखत करियागे । इहाँ के मनखे मन तो देवता मन ले घला जादा मंतर जानथे तइसे लागथे रे .... । नारद किथे - तैंहा कहींच नइ जानस भगवान .. इहां के मनखे मन जे करतब जानथे .. तेकर पार .. ब्रम्हा घला नइ पा सकय । रिहीस बात झंडा फहराये के .. त सुन भगवान ...... येमन जेन झंडा ल फहराये हे .. उहीच अतेक ऊँच म जाके लहरावत हे । वा .... तेंहा नइ देखे हाबस नारद .. एमन तिरंगिया झंडा फहरइन हे .. फेर ऊँच म करिया झंडा लहरावथे – भगवान फेर पचारिस । नारद किहिस - तैं निच्चट सिधवा अस जी भगवान .. तीन रंग के झंडा फहराये बर केवल आजादी के पहिली मरत रिहीन इहाँ के मनखे मन । जब ले देश आजाद होये हे तब ले .. सब अपन मनपसंद झंडा फहराये अऊ लहराये बर धर लिन ।  तिरंगा देखा के जनता ला ठगथे । भगवान किथे - कोन मनखे आये ओहा .. अऊ काबर अइसने करथें .. मजा बताथँव इँकर .... । नारद जवाब दिस - थोरेच बेर पहिली तोर बहाँ ल हेचकार के .. खुरसी ले उतार दे रिहीस तेला भुलागेस का ? मजा पाये ल धरबे या बताये ल धरबे ते .. मई पिल्ला ला जेल म डार दिही .. जिनगी भर सरत रहिबे .. नंगरा अभिनेता हरस तेंहा .. जींस वाला नोहस .. तेमा कुछ भी करे के छूट मिल जही । नारद बताये लगिस - खुरसी वाला मनखे मन .. जनता ल देखाये बर तिरंगा ल बांधथें .. ओहा बंधायेच रहिथे .. ऊप्पर म इँकर करिया झंडा पहुंचथें .. अऊ उही ल फहराथें । वास्तव म ये .. राजनीति के झंडा आये | ये झंडा के खासियत ये आये के .. जे मनखे एकर तरी म आथें तेहा .. भ्रस्टाचार .. मक्कारी अऊ धोखाबाजी सीख जथे । एकर तरी म भलुक गिनती के मनखे मन रहिथे .. फेर उही मन देस म राज करथें .. अऊ गजब फूलथे फरथे । साधारन मनखे ल एकर दायरा म खुसरे के कनहो अधिकार निये । फेर एकर छाँव के सुख .. एकर तरी म ठाढ़ नइ होवइया .. घला पा जथे ।   

                             भगवान प्रश्न करिस -  त ये तिरंगा काये .. कोन फहराथें एला ? नारद जवाब देवत किहीस - एहा आम जनता बर आये .. उही मन फहराथें .. चल दूसर कोती तोला देखाहूँ .....। दुनों झिन उहाँ ले उच के रेंग दिन । ठईं म .. बड़े जिनीस खम्बा गड़े देखिन ...। ओमन सोंचिन एमा जरूर तिरंगा होही .. झंडा लहर लहर लहरावत रहय .... येमे तो दूये रंग के झंडा रहय .. उहू अलग अलग कपड़ा म । भगवान पूछिस - तैं तो केहे नारद के तीन रंग के झंडा इहाँ के जनता फहराथें कहिके ? नारद किथे - ये जेन झंडा दिखथे भगवान … यहू इहाँ के जनता के नोहे .. ये झंडा साम्प्रदायिकता के झंडा आये .... कभू केसरिया ऊँच होवथे .. कभू हरियर । भगवान पूछथे - त एकर तरी म जनता घला ठाढ़हे हे ? नारद किथे - एमन भटके मनखे आये .. इही झंडा वाला मन .. हमर ले बेहतर कन्हो निये कहिके जनता ल बरगलाके .. अपन उल्लू सोज करे बर .. इही झंडा के तरी म सुकून मिले के सपना देखाथें । 

                             तिरंगा कइसना होथे .. जेला फहराये के लबारी बर अतेक बड़ जश्न मनाथें .. ढमढम करथें .. भगवान के मन म देखे के इच्छा बलवती होगे । भगवान किथे - चल अऊ कहूँ करा .. कहूँ न कहूँ तिर मिलबे करही । नारद किथे - तैं उहाँ जाये के साध झिन कर भगवान ..., तैं जा नइ सकस ओ तिर .... । भगवान किथे - तैं चल तो ... । थोरेच आगू म लामी लामा खम्बा म सफेद झंडा फहरावत दिखिस । नारद बतावत रहय - येहा झूठ , फरेब अऊ बईमानी के झंडा आये भगवान । यहू बड़ ऊँच ऊँच म फहरथे । एकरो चमक दमक अऊ महक बड़ दूरिहा दूरिहा तक बगरे हे । फेर एकर तरी म दूसर ल खुसरे बर सोचे परथे । एकर तरी म केवल एकर फहराने वाला या ओकर परिवार खुसर सकत हे .. तभे तो एला सार्वजनिक नइ फहाराये .. अपन अपन घर म फहराथे । येहा व्यापारिक झंडा आय .. एकर छाँव केवल ओतकेच झिन ल सुख देथे .. जेमन एला फहराये के उदीम करथे ।

                              थोरेच कुन दूरिहा म .. बड़े जिनीस बंदूक के नली के ऊप्पर म .. लाली झंडा फहरावत दिखिस । नारद बतावत रहय – ये आतंक के झंडा आये भगवान । एला कभू उग्रवादी  कभू नकसलवादी त कभू अलगाववादी मन ऊँच करत रहिथे । एकर छाँव कन्हो ल सुकून नइ देवय । फेर केवल अपन बात मनवाये अऊ अपन जिद पूरा करे बर येमन बंदूक म अपन झंडा फहराके दुनिया म अपन नाव ल बगराना चाहथे । एकर तरी कन्हो स्वेच्छा से आना नइ चाहे .. कभू आक्रोश कभू दुख कभू पीरा त कभू स्वारथ त कन्हो मजबूरी म .. ठाड़ हो जथे ।  

                              भगवान कथे - परब तो एमन तिरंगा फहराये के खातिर मनाथे .. फेर कहुँच करा नइ अमरावत हन ओला । अऊ कतका रेंगे लागही नारद ? नारद किथे - तैं काबर साध करत हाबस भगवान .. तिरंगा देखे के ..... । या तो वापिस चल .. या कलेचुप रेंगत रहा मोर संग .. उदुप ले कहूँ तिर मिल सकत हे ..... ये देख में केहेंव न ..... आगे  तिरंगा तइसे लागत हे । या यहू नोहे भगवान , येहा नीला रंग के झंडा आये या येहा गुलाबी होगे .. अरे देखते देखत पिंवरावत घला हे । केऊ रंग बदल डरिस थोरकेच बेरा म । ये झंडा स्वार्थी मन के आय । एकर फहराने वाला सुख पाथे जरूर .. फेर ओकर बर ओला कतको झूठ बोले बर परथे .. केऊ बेर अपन ईमान बेंचथें .. अपन जमीर के हत्या कर देथें । 

                               थोकिन आगू गिन त  भगवान किथे - ये काकर झंडा आये .. कन्हो नइ दिखत हे नारद । नारद बतइस - ये तीर झंडा कहाँ हे भगवान । केवल खम्बा भर खड़े हे । ये अकर्मन्यता के झंडा आये .. जेहा दिखय निही । येला सरकारी कर्मचारी मन फहराथें । ये झंडा के तरी म ठाढ़ होवइया ल बिगन काम बूता करे समृद्धि मिल जथे । इँकर अपन अलग ले कन्हो अस्तित्व निये । समे अनुसार देखाये बर के .. हमन तुँहर कोती हाबन कहिके .. अपन झंडा बदलत रिथे .. फेर उहू दिखय निही के .. काकर झंडा ल फहरावत हे । 

                               भगवान केहे लागिस - अरे बापरे ! थक गेंव नारद । गोड़ पिरागे । तिरंगा देखे के साध म .. अब मोरो शक्ति जवाब देवत हे ।  नारद किथे - थोरेच कुन अऊ सबर कर भगवान ..... , थोरिक आगू म ..... मोला तिरंगा कस दिखत हे । तिरंगा तिर जाये के रसता म ..... माड़ी भर चिखला .. काँटा खूँटी .. उघरा नंगरा खेलत कूदत लइका .. बलकरहा मेहनतकस जवान .. खाँसत खखोरत बइठे सियान .. मुड़ी ढाँके हउँला धरे लजावत रेंगत नावा बहुरिया .. खदर छानी माटी के घर कुरिया .... । भगवान पूछिस - तैं कतिहाँ मोला लेगत हस नारद ? नारद किथे - मे तोला केहे रेहेंव न भगवान .. तेंहा झिन साध कर तिरंगा तिर जाये के , तिरंगा तिर पहुंचे के रद्दा म .. न आजादी के पहिली सुख रिहिस .. न अभू हे .. फेर तोर इच्छा देख लाने बर परिस । भगवान प्रश्न करिस - जेकर मन तिर कहींच निये ते मनखे मन .. का तिरंगा फहरावत होही .. कइसे झंडा ल ऊंच रखत होही .. अऊ कइसे झंडा के सुख के अनुभौ करत होही ............ ? 

                              तभे तिरंगा दिखगे । भगवान खुश होके थपड़ी पीटत किहिस - वा ..... उही तिरंगा आये का जी ? कइसे भुंइया म माढ़हे कस दिखत हे ? नारद बतावथे – नानुक ढारा म लटके हे भगवान ... बने देख । तिर म जाये बर धरिन । भारी भीड़ । जेती देख तेती मनखे के रेलम पेल । हरेक मनखे तिरंगा के छांव म जाना चाहत रहय । भगवान किथे - कइसे करथे बिया मन नारद ...... ? नानुक झंडा , एक कनिक ऊंच ..... कतका छांव मिलही ..... कतेकेच मनखे हमाही ओकर छाँव तरी । ध्यान से देखे लागिस । जे मनखे रहय तेला .. सुख पाये बर .. ओकर तरी जाके ओकर छाँव पाये के आवसकता नइ परय .. धूरिहा रहि के घला ओकर छाँव के कल्पना करइया ला अपने अपन सुकून मिल जाय .. सुख शांति मिल जाय । नारद किथे – इही तिरंगा आये भगवान .. जेला आजादी के बाद ले अभू तक जनता मन , फहरा के राखे हे । ये बात जरूर हे के येला ओमन ऊँच नइ कर सकत हें .. फेर येकर छाँव म जनता बनके रहवइया कन्हो भी मनखे ल .. सुख शांति अऊ सुकून मिलत हे । तिरंगा के सुख पाके .. शंकर भगवान जी अतका बइहागे के .. अपन असली रूप म आगे । ओला देखते साठ जनता ओकरे कोती दउँड़े लगिन अऊ पान फूल चइघाके अपन झंडा ल सबले ऊँच करे के माँग करिन । भगवान प्रसन्न होके किहिन के - बाकी झंडा मन के लंबरदार मन तुँहर सुकून ल देख नइ सकय .. तेकर सेती .. तिरंगा के हक ला .. हकले मारके .. ऊँच होये ले छेंकत हे । जे दिन तूमन जागरूक हो जहू .. जम्मो लबरसट्टा मनला चिन डरहू .. उही दिन सबले पहिली करिया झंडा .. अपने अपन कोन जनी .. कती करा गिर जही तेकर पता नइ चले । करिया झंडा ल गिरत देख .. भटकइया मनके एको झंडा नइ ठहर पाही .. सब्बो तरी ऊप्पर पड़पड़उँवा गिरके भुंइया म हमा जही .. अऊ उही दिन ले देश भर केवल तिरंगा लहराही ... अऊ अतका ऊँच म लहराही के जम्मो धरती एकर खालहे म आके .. एकर छाँव म सुख के अनुभौ करही । 

 हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन .. छुरा

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