*विमर्श के विषय--टिप्पणी*
सचमुच म टिप्पणी लिखना कोई सरल बात नोहय। एकर बर जेन रचना उपर हम ला टिपप्णी करना हे वोला पढ़के वोमा रचनाकार के व्यक्त विचार ल पकड़े ल परथे अउ वोकर निचोड़ निकाले ल परथे। एही निचोड़ ह वो सृजन के केंद्रीय भाव होथे। एही केंद्रीय भाव ल अपन समझ के अनुसार टिप्पणी के रूप म लिखे बर परथे।
ए टिप्पणी सटीक तभे होथे जब वोमा संक्षिप्तता के गुण रथे मतलब अनावश्यक विस्तार झन राहय। इहाँ संक्षिप्तता के मतलब काम टरकाऊ दू चार शब्द के टिप्पणी -लाजवाब, सुंदर, बढ़िया---आदि ले नइये।
एक सटीक टिप्पणी म रचना के केंद्रीय भाव के संग वोकर गुण अउ दोष(अगर हे त) के उल्लेख सांकेतिक रूप म , बिना बढ़ाये चढ़ाये या रचनाकार के दिल ल बिना दुखाये होना चाही। इही मेर टिप्पणी कार के भाषा संबंधी ज्ञान के तको थाह मिलथे के वो कतका गहिर हे। इही मेर एक टिप्पणी कार ल लिखे म परशानी होथे अउ वो ह सुंदर, बढ़िया----आदि लिखके कन्नी काट लेथे।
आजकल सोशल मिडिया म सृजन के भरमार हे जेमा कतेक झन अपने बीच के जानकर संगी साथी मन के होथे। ए पोस्ट मन म बहुत कस जन्मतिथि, विवाह के वर्षगाँठ, शोक संदेश, सम्मान ,कोनो आयोजन --आदि के होथे ।एमन मा टिप्पणी करना एकदम सरल होथे। टिप्पणी के असली परीक्षा तो कोनो लेख या कविता म टिप्पणी करे के बखत होथे। ए समे घलो सोशल मिडिया म जान पहचान वाले के सृजन के भरमार म टिप्पणी लिखे के बेरा परशानी होथे।
टिप्पणी लिखे म एक अउ विचारधारा देखे म मिलथे----तैं मोर सृजन म टिप्पणी करे हस त मैं तोर सृजन म टिप्पणी कर देथँव। कभू कभू अइसन टिप्पणी हास्यास्पद हो जथे जब टिप्पणी कार ह कौवा ल कोयल अउ कोकड़ा ल हंसा बता डरथे या एकर उल्टा कर डरथे।
टिप्पणी ह अब्बड़ संवेदन शील होथे तेकर सेती ईर्ष्या, द्वेष वश टिप्पणी नइ करना चाही।नहीं ते आ बैल मोला मार -- वाले बात होवत देरी नइ लागय। कई झन झगराहा अउ विघ्न संतोषी मन हाथ धोके अइसन टिप्पणी अउ टिप्पणी कार ल खोजत रहिथें।एफ आई आर तको हो जथे।
फेर एक विचारवान टिप्पणी कार ह तोर-मोर नइ करय अउ वोला जेन रचना म वास्तविक म कोनो विषेशता (गुण/कमी) दिखते त वो ह स्वत: प्रेरणा ले टिप्पणी करे बर मजबूर हो जथे ।एही मेर टिप्पणी के सार्थक रूप के दर्शन होथे।
हमर विचार ले टिप्पणी जबर्दस्ती ,मन नइये त नइ करना चाही।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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