Saturday 14 August 2021

विषय--आत्म-प्रशंसा के बीमारी* ------------------------


*विषय--आत्म-प्रशंसा के बीमारी*

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आत्मप्रशंसा के बीमारी

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आत्मप्रशंसा-रोग ले, बाँचे हावय कोन।

फइलावत हे आज तो, ये मोबाइल फोन।।


     आजकल आत्मप्रशंसा के बीमारी ह महामारी के रूप ले ले हावय। शायदेच कोनो मनखे ये बीमारी ले बाँचे होही।एखर मोटा-मोटा लक्षण बताये गे हे के ये बीमारी ले पीड़ित ह अपने मुँह ले अपने बड़ाई बहुत बढ़ा-चढ़ा के करे ल धर लेथे। फेर जइसे कभू -कभू कोरोना के लक्षण नइ दिखय अउ बीमारी हो ज रइथे ओइसने एखरो कई ठन बारीक लक्षण ह पकड़ म नइ आये ल धरय।

       जब ये बीमारी ह घर कर जथे त, आत्मप्रशंसा के रोग ले जकड़े व्यक्ति ह गाहे-बगाहे, बात-बात म--मैं -मैं-मैं----ओरियाये ल धर लेथे। मैं अइसे करेंव--मैं वइसे करेंव कहे बगैर वोकर गोठ पूरा होबेच नइ करय।अपन गुण अउ ज्ञान के बखान करत वोकर मुँह नइ पिरावय ,भले सुनइया के माथा पिरा जथे।ये बीमारी ले छटपावत मनखे ह रात-दिन वो अवसर के तलाश म रहिथे के कब वो ह दूसर सो अपन छोटे से छोटे उपलब्धि ल ,जना-मना अगास ल अमर के सिरतोन म चँदैनी ल टोर के लान डरे हे तइसे बता सकय ,देखा सकय। अइसन आत्मप्रशंसा के दौरा परे मनखे ल पतेच नइ चलय के कब वो ह अति ल लाँघ डरे हे अउ अबक-तबक वोकर मान-मर्यादा के मौत होने वाला हे।ये तरा के आत्मप्रशंसा के बीमारी ह एकदम घटिया, नकारात्मक किस्म के होथे।

        अइसन बिमरहा बेचारा ह सहानुभूति  के हकदार होथे काबर के वोमा गुण अउ ज्ञान तो होबे करथे फेर का करबे---जब दूसर मन वोकर बड़ाई नइ करय त खुदे अपन बड़ाई करे ल धर लेथे। ये अइसे करमछँड़हा हो जथे के दूसर मन ल ढपेल के गिराये ल नइ परय--- खुदे ह खुद ल ढपेल के अनजाने म अपने खने गड्ढा म गिर जथे। सहानुभूति के दूसर कारण इहू हे के --कोनो भला बता दय के अपन बड़ाई सुनना या अपन बड़ाई करना , काला अच्छा नइ लागत होही?

         आत्मप्रशंसा के एक रूप सकारात्मक तको होथे, मतलब एखर ले दूसर ल चिटिक फायदा हो सकथे।जइसे पढ़ावत-लिखावत बेरा गुरुजी मन अपन कोनो बढ़िया आदत ,गुण या अनुभव के बखान करथें जेकर ले विद्यार्थी मन ल प्रेरणा मिलथे।अइसने माता-पिता ,बुजुर्ग मन के या कोनो प्रेरक वक्ता के संबोधन ल कहे जा सकथे।

      आत्म प्रशंसा के बीमारी ह अपन संग दू-चार ठन अउ घातक बीमारी ल सँटिया के ले आथे जेमा अहंकार प्रमुख हे।ये ह बड़े-बड़े पद म बइठे सत्ताधीश, मठाधीश, 

ज्ञानी-ध्यानी,महा पंडित--विद्वान मन मा जादा दिखथे। वोकर आँखी म अइसे टोपा बँधा जथे के अपन ले श्रेष्ठ ,दुनिया म वोला कोनो दूसर दिखबे नइ करय।

         कभू-कभू आत्म प्रशंसा के बीमारी ह हीनभावना के कारण तको पैदा हो जथे। गुणहीन मन ह अपन ल जताय बर आत्म प्रशंसा करे ल धर लेथें। "थोथा चना ,बाजे घना" अउ "अधजल गगरी छलकत जाय" वाले कहावत इँखरे बर बने हे।

          आत्मप्रशंसा के बीमारी के बारीक लक्षण जेन पकड़ म नइ आये ल धरय वोहर ये----मैं ल दबा के मोर के बखान। मोर ये अइसे रहिसे---मोर वो वइसे रहिसे। दूसर के नाम अउ काम के सहारा लेके अपन नाम ल चमकाये के जतन करना---एहू ह एक प्रकार ले आत्मे प्रशंसा होथे।कान ल चाहे ए हाथ ले पकड़े जाय ,चाहे वो हाथ ले--बात तो एके आय।

   एही तरा परनिंदा,आलोचना म तको आत्मप्रशंसा के भाव छिपे रहिथे। दूसर ल कमतर साबित करके बिन कहे अपन ल श्रेष्ठ बताना--आत्मे प्रशंसा करनेच तो आय।

      ये लेख ल लिखे के बेरा संत कबीर दास जी के वाणी मनोमस्तिष्क म गूँजत हे।उन कहे हें--

बुरा जो देखन मैं चला,बुरा न मिलया कोय।

जो दिल देखा आपनो ,मुझसे बुरा न कोय।

        विद्वान मन सहीं कहे हें--दूसर ल एक अँगरी देखाबे त चार अँगरी खुदे कोती इशारा करथें।

 अपन आत्मा म झाँक के देखे म पता चलत हे के हम ला तो आत्म प्रशंसा बीमारी के कई अटेक आ चुके हे। नइ चाह के तको आ जथे। मातु शारदा ले बिनती हे के --आत्म प्रशंसा बीमारी के मेजर अटेक ले बँचाये के कृपा करहीं।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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