Saturday 27 April 2024

श्रीराम नवमी म विशेष श्रीरामचन्द्र जी अउ छत्तीसगढ़ - ओमप्रकाश साहू "अंकुर"

 श्रीराम नवमी म विशेष 


श्रीरामचन्द्र जी अउ छत्तीसगढ़ 


                 - ओमप्रकाश साहू "अंकुर"


    हमर भारतीय संस्कृति म मान्यता हे कि जब-  जब ये भुइंया म पाप नंगत बाढ़ जाथे तब भगवान ह मनखे रूप म अवतरित होके आथे अउ अत्याचारी मन ल मारके भक्तन मन के रक्षा करथे। त्रेता जुग म भगवान श्रीरामचन्द्र जी अवतरित होइस। श्रीरामचन्द्र जी भगवान विष्णु के सातवां अवतार माने जाथे।


त्रेता जुग म पवित्र सरयू नदी के तीर म बसे अयोध्या म महान प्रतापी राजा दशरथ राज करत रिहिन।  राजा दशरथ के पूर्वज मन के अब्बड़ सोर रिहिन हे। येमा  राजा रघु,राजा दिलीप, राजा शिवि, सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र, महा प्रतापी अज , भागीरथ अउ आने राजा के नांव सामिल हे। सूर्यवंशी राजा दशरथ के तीन झन रानी रिहिन जेमा कौशल्या सबले बड़की रिहिस। दू झन अउ रानी म   सुमित्रा, कैकैयी रिहिन। राज पाठ सुघ्घर चलत रिहिस। राज्य ह धन - धान्य ले संपन्न रिहिस पर राजा दशरथ के एको झन बेटा नइ रिहिन। इही हंसो  ह राजा ल घुना कस खाय जात रिहिन। अपन ये परेसानी ल अपन कुल गुरू  वशिष्ठ के पास रखिस त राजा ल सलाह दिस कि राजन् येकर बर पुत्रेष्टि यज्ञ कराव। ये यज्ञ करे बर सबले बने महान तपस्वी श्रृंगि ऋषि रहि। ये ऋंगि ऋषि छत्तीसगढ़ के सिहावा पहाड़ी क्षेत्र म तप - जप म मगन राहय। ये इही सिहावा पहाड़ी आय जिहां ले छत्तीसगढ़ के जीवनदायिनी नदी महानदी निकले हे। राजा दशरथ ह ऋंगि ऋषि कर जाके कलौली करिन कि हे महान तपस्वी आप मन मोर बिनती ल स्वीकार करके पुत्रेष्टि यज्ञ करहू त मंय ह आप मन के जिनगी भर आभारी रहूं। श्रृंगि ऋषि ह राजा दशरथ के घर जाके पुत्रेष्टि यज्ञ करिन येकर फलस्वरूप बड़की रानी  कौशल्या ह 

रामचंद्र लला, कैकैयी ह भरत अउ सुमित्रा ह लक्ष्मण अउ शत्रुघ्न जइसे हीरा बेटा पाइन। येमा राम ह भगवान विष्णु के सातवां अवतार 

 अउ लक्ष्मण ह शेषनाग के अवतार माने जाथे। 

कतको इतिहासकार मन के मानना हे कि हमर छत्तीसगढ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र जी के महतारी कौशल्या के मइके हरे। छत्तीसगढ़ के जुन्ना नांव कोसल रिहिस अउ इहां के भाषा ल कोसली कहे जाय। कौशल्या के नांव भानुमति रिहिन जउन ह दक्षिण कोसल के महाप्रतापी राजा भानुमंत के बेटी रिहिन। अयोध्या के महाप्रतापी राजा दशरथ ले वोकर बिहाव होइस। भानुमति कोसल प्रदेश के होय के कारन आगू चलके कौशल्या कहलाइस। आदिकाल म छत्तीसगढ़ महाकोसल के नांव ले प्रसिद्ध रिहिस हे। श्रीराम के जनम भूमि अयोध्या हरे अउ ननिहाल छत्तीसगढ़ के चंदखुरी (आरंग)गांव हरे। हर लइका बर ममा गांव के अब्बड़ मया रहिथे त भगवान राम ल कइसे नइ रहि। येमा दू मत होय नइ हो सकय कि भगवान राम ह अपन नाना गांव नइ आइस होही।कतको बार नानपन म आइस होही। ये स्भाविक बात ये। त हम देखथन कि भगवान राम अपन नानपन म हमर छत्तीसगढ म आके अपन बाल सुलभ लीला चंदखुरी गांव म घलो दिखाइस। ये चंदखुरी गांव म महतारी कौशल्या के बड़का मंदिर हे। ये जगह ह लोगन मन के आस्था के बड़का केन्द्र हरे अउ अब पर्यटन स्थल के रूप म अपन एक अलग पहिचान बना लेहे।


 हमर छत्तीसगढ के महत्तम मअउ बढ़वार जाथे जब ये जाने ल मिलथे कि भगवान राम ह अपन  चौदह बछर बनवास म दस बछर तो इहि छत्तीसगढ़ ( सिहावा) राज्य म वो समय के सप्त ऋषि क्षेत्र म बिताय रिहिन। त ये प्रकार ले हमर छत्तीसगढ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरनरज ले पवित्र होय हे। तेकर सेति हमर छत्तीसगढ म भगवान राम ल भांचा राम कहे जाथे। अउ येकर असर हमर छत्तीसगढ के संस्कृति म देखे ल मिलथे। इहां के लोगन मन अपन भांचा - भांची ल भगवान कस मानथे। चरन छूके प्रनाम करथे। बिहाव से लेके कोनो खुशी के आयोजन हो या जिनगी के अंतिब बेरा होय भांचा - भांची ल अपन शक्ति अनुसार दान जरूर करथे।


 संत कवि पवन दीवान जी महतारी कौशल्या के जनम भूमि चंदखुरी के उद्धार अउ माता कौशल्या शोध पीठ बनाय बर अब्बड़ उदिम करिन। दीवान जी ह काहय कि - " भगवान राम हमर छत्तीसगढ के भांचा आय। चंदखुरी वोकर ममा गांव आय। तभे तो हमन   कहिथन -"कइसे भांचा राम। सब बने बने भांचा राम। ले तूही मन बताव ग कोनो मन कहिथे का कइसे भांचा कृष्ण। अउ मानलो कहूं कोनो अइसने कहि दिस त वो कहइया ह ल कहू !" अइसे कहिके दीवान जी ह जोरदार ठहाका लगाय।

  हमर छत्तीसगढ म भगवान राम ह जन -जन अउ सबके मन म बसे हे। इहां राम भगवान ले जुड़े कतको आयोजन होथे। छत्तीसगढ़ के सबो गांव म रामायण मंडली हावय जउन मन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के गुनगान अपन सामर्थ्य अनुसार करथे। अउ ये प्रकार ले गोस्वामी तुलसीदास बाबा के रामचरित मानस के संदेस ल जन - जन तक पहुंचाथे।नवा मकान म गृह प्रवेश होय,षट्ठी होय या दशगात्र बेरा राम नाम के चर्चा रामायण मंडली के माध्यम से या रामधुनी मंडली के माध्यम ले होथे। जिहां गीत- संगीत ले वातावरण ह भक्तिमय हो जाथे त दूसर कोति मानस टीकाकार मन राम के चरित्र के गुनगान कर परिवार,समाज अउ देस हित बर संदेश देथे। हमर छत्तीसगढ म रामधुनी प्रतियोगिता, राम सत्त , मानस गान स्पर्धा/ मानस सम्मेलन, नवधा रामायण, राम लीला के आयोजन कर भगवान राम काबर मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाथे।भगवान राम ह वर्तमान बेरा म काबर प्रासंगिक हे।ये सब बात ल जोड़ के लोगन मन ल सही रस्दा म चले बर सीख देय जाथे। ये सब आयोजन के आधार महर्षि बाल्मीकि कृत रामायण, गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस अउ आने भाषा म रचित रामायण हरे।हमर छत्तीसगढ म रामनामी संप्रदाय के लोगन मन अपन पूरा शरीर म राम दनाम के गोदना गोदाय रहिथे। अत्तिक आस्था हे भगवान राम बर। भगवान राम सबके हरे। महर्षि बाल्मीकि अउ गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार राम सगुन रूप म हे। जब- जब समाज म अतियाचार बाढ़ जाथे। जब- जब अपन महान धर्म ल हीनमान करे जाथे त भगवान विष्णु ह नर रूप म अवतार लेके पापी मन ल मारथे अउ हमर महान धर्म अउ संस्कृति के रक्षा करथे।

त दूसर कोति देखथन कि कबीर के राम निर्गुण हे। कबीर के राम कोनो मंदिर अउ पथरा म नइ हे वो तो घट -घट म विराजमान हे। निराकार हे। सबो जगह वोकर उपस्थिति हे। कबीर ह धर्म के नांव म दिखावा करइया अउ येकर आड़ म

 म लड़वइया पाखंडी मन ल जम के लताड़िस।


  राम सबो झन के हरे। वो कौशल्या के राम हरे त कैकेयी बर भगवान हरे। राजा दशरथ के घलो परान हरे। वोहा अयोध्या के मान हरे। भाई भरत , लक्ष्मण, शत्रुघ्न बर महान हरे। केंवट , सबरी माता, अहिल्या, जटायु के उद्धारक हरे। ऋषि - मुनि अउ सज्जन मन के रक्षक त अत्याचारी ,पापी मन बर महाकाल हरे। 

हनुमान के भगवान हरे त सुग्रीव अउ विभीषण के सुघ्घर मितान हरे। ताड़का, मारीच, बाली, कुंभकरण, रावण जइसन राक्षस अउ अहंकारी मन के संहारक हरे। जनकनंदिनी सीता के मर्यादा पुरुषोत्तम राम हरे।जेकर मान राखे बर अहंकारी रावण ल संहारे। राम कैकेयी,मंथरा ल ढांढस बंधवइया वो राम हरे जेहा दूनों ल ये श्रेय देथे कि राम ल मर्यादा पुरुषोत्तम बनाय म तुंहर मन के हाथ हे नइ ते मंय तो सिरिफ अयोध्या के राजा बस कहलातेंव।

    हमर छत्तीसगढ म उत्तर दिशा के सरगुजा ले लेके  दक्षिण दिशा के सुकमा तक भगवान राम ले जुड़े ठउर अउ जुन्ना अवशेष मिलथे जेमा लोगन मन के आस्था जुड़े हावय। हमर राज्य म भगवान राम ले जुड़े पछत्तर ठउर मन के पहिचान करे गे हावय।येमा सीतामढ़ी - हरचौका ( कोरिया), रामगढ़ ( सरगुजा), शिवरीनारायण ( जांजगीर-चांपा), तुरतुरिया ( बलौदाबाजार - भाटापारा), चंदखुरी ( रायपुर), राजिम( गरियाबंद), सिहावा सप्त ऋषि आश्रम ( धमतरी), जगदलपुर ( बस्तर) व रामाराम ( सुकमा) सामिल हावय‌। भगवान राम के बनवास ले जुड़े कतको ठउर मन ल सहेजे अउ पर्यटन स्थल के रुप म बढ़वार करे खातिर पहिली के कांग्रेस सरकार ह श्रीराम वन गमन पर्यटन परिपथ परियोजना बनाय रिहिन। काम घलो चालू करिन।

    बाइस जनवरी 2024 के दिन भगवान राम के जनम भूमि अयोध्या म श्रीरामलला के मूर्ति के प्रान प्रतिष्ठा करे गिस। मोदी - योगी के शासन काल म होवत ये बड़का आयोजन ले सिरिफ अयोध्या ह नइ पूरा देस के संगे -संग आने देस मन घलो राममय होइस ।

 अइसन सुघ्घर बेरा म भगवान राम के ममा ठउर छत्तीसगढ़ ह कइसे अछूता रहितिस। छत्तीसगढ़ ह अपन भांचा राम के मूर्ति ल मंदिर म करीब पांच सौ बछर बाद फिर से स्थापित करे के बेरा म उछाह होइस। भगवान राम के ननिहाल हमर छत्तीसगढ ले अयोध्या म आयोजित बड़का भंडारा खातिर बासमती चउंर , किसम- किसम के सब्जी के संगे- संग सहयोग राशि पठोय गिस। इहां के सबो शहर अउ सब गांव राममय होगे । श्रीराम हमर भारत देश के सच्चे नायक हे। राम एक आदर्श बेटा, आदर्श शिष्य, आदर्श पति,आदर्श मितान, आदर्श राजा के रूप में जनमानस में प्रतिष्ठापित हे।


। जय सिया राम।


           ओमप्रकाश साहू "अंकुर"

         सुरगी, राजनांदगांव

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम अउ भगवान श्री कृष्ण

 मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम अउ भगवान श्री कृष्ण 

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परमपिता परमेश्वर--सर्व शक्तिमान ईश्वर ह ए सृष्टि म नाना रूप म अवतार लेथे। वेद -पुराण म,हमर संत महात्मा, रिसि मुनि मन के मुखार बिंद ले ,अवतार लेये के अनेक कारण बताये गेहे। वो परमेश्वर ह जब -जब जेन प्रकार के जरूरत परथे उही प्रकार ले जन्म ले लेथे। इहाँ तक कि वो ह कछुवा, मछरी ,सूकर आदि के रूप घलो धर लेथे।वोकर नजर म कोनो जीव- जन्तु हिने के लइक नइये। तभे कहे गे हे कि--तुझमें राम मुझमें राम, सब में राम समाया है----। गोस्वामी तुलसीदास जी ह हाथ जोड़ के बंदना करे हे-

सिया राम मैं सब जग जानी।करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी।

    भगवान के अनेक अवतार हे जेमा दस ठन मुख्य हे तेन म  ओकर सातवाँ राम अउ आठवाँ कृष्ण के रूप म नरावतार हमर देवभूमि भारत के कन-कन अउ जन-जन के हिरदे म रचे बसे हे।

   वर्तमान संदर्भ म ए दूनो अवतार के नर तन धरे के कारण अउ पावन चरित्र ल, देये शिक्षा ल जानना समझना बहुत जरूरी हे।

     श्रीराम जन्म के कारण-----

 गोस्वामी तुलसीदास जी ह राम जन्म के कारण ल बतावत लिखे हे कि -

जब जब होई धरम की हानि। बाढहिं असुर अधम अभिमानी ।।

तब-तब प्रभु धरि विविध सरीरा। हरई कृपा निधि सज्जन पीरा।।


विप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार।

निज इच्छा निर्मित तनु, माया गुन गोपार।।

       

      श्रीकृष्ण जन्म के कारण--

 महाभारत के सिरजइया भगवान वेदव्यास जी ह लिखे हे-  

भगवान कृष्ण ह अपन अवतार के कारण बतावत कहे हे कि--

यदा यदा धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम। 

परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृतम् धर्म संस्थापनार्थाय  संभवामि युगे युगे।

        ए दूनो अवतार के जन्म लेये के मुख्य कारण चरम रूप म नष्ट भ्रष्ट होये धर्म के रक्षा करके वोकर  पुनः स्थापना करना अउ धर्म ल नष्ट करइया पापी, अत्याचारी मन ल मृत्युदंड देके ,खासकर नारी ,साधु, सज्जन ,दीन हीन मन के  उपर अत्याचार करइया मन ल मारके , साधु संत ,सज्जन , विप्र ( पवित्र जीवन जियइया ज्ञानी मनखे), धेनु ( गउ माता जेन हमला अमरित के समान दूध अउ खेती किसानी बर बइला देथे,गोबर देथे), के रक्षा करके सुग्घर मानवता ल बँचाना आय।

        श्री राम अउ श्री कृष्ण ल जाने बर उकर देये शिक्षा ल अपनाये बर--- *धर्म* ल जानना जरूरी हे। इहाँ धर्म के मतलब हिन्दू, मुस्लिम ,सिक्ख, ईसाई, बौद्ध ,जैन , फारसी,यहूदी ---आदि नोहय। कोनो भगवान ह ए तथाकथित कलजुगिहा मनखे मन के बनाये धर्म के नाम नइ ले हें।

ऊँकर *धर्म*के मतलब तो मनुष्य के आदर्श आचरण जेला हमन "मानवता" कहिथन आय। दया -मया,क्षमा, करुणा, सत्य ,अहिंसा, पवित्रता, जियव अउ जियन दव के भावना , ककरो संग भेदभाव नइ करना ,न्याय ,सबके सम्मान करना, माता पिता के सेवा करना उँकर आज्ञा के पालन करना , गुरु भक्ति ,रिश्ता नाता ल यथायोग्य  निभाना, ककरो हक ल नइ मारना, अपन होके जबर्दस्ती लड़ाई झगरा नइ करना फेर कोनो अतलंग करत हे त ओला नइ सहना भले प्रान रहे चाहे जाय, सत्य,न्याय के संग देना, अन्यायी मन के साथ नइ देना , सत्य , न्याय अउ नारी के अस्मिता के रक्षा बर  हिंसा करे ल परय त पिछू नइ हटना ,भाई भतीजावाद नइ करना ,साफ, सुंदर स्वस्थ रहना , जंगल झाड़ी , नदी ,पहाड़ मतलब प्रकृति के रक्षा करना------- आदि जतका अच्छा मानवीय गुन हे , मनुष्य के चरित्र के जतका उज्जर पहलू हे, कर्तव्य कर्म हे इही मन असली धर्म आय। इही असली धरम ह मनखे ल अउ समाज ल सुख,शांति देथे। तभे *राम राज आथे।*

     भगवान राम अउ कृष्ण ह एकरे स्थापना बर जनम धरे रहिन।इही उँकर नरलीला के शिक्षा आय।

आज के समे म श्रीराम अउ श्रीकृष्ण के शिक्षा,नरलीला के महत्व ---

वर्तमान समय म चारों कोती देख लव अधर्म के बोल बाला हे। हाँ अतका बात जरूर हे कि पाँचो अँगरी अभी एके बरोबर नइ होये हे।कभू-कभू, कोनो-कोनो मेर मानवता के ,धर्म के दिव्य दर्शन होवत रहिथे ।फेर अधर्म अउ अत्याचार बाढ़ गेहे।   हत्या ,लूट ,डकैती ,बलत्कार सरे आम होवत हे ,राजनीति छल-प्रपंच ले भर गेहे, जात पाँत के भेदभाव खतम होबे नइ करत हे,नारी अउ गउ माता उपर रात-दिन अत्याचार होवत हे । हम सब ल दूध चाही फेर गाय ल पाले पोंसे बर जाँगर नइ चलत हे। पर्यावरण प्रदूषण बेतहाशा बाढ़ गेहे। बादर धूँगिया म भर गे हे।अत्याचारी असुर, निसाचर मन अँधेरा कायम रहे के नारा लगावत गली-गली ढिंढोरा पीटत हें।

      तेकरे सेती पूरा मानव जाति अउ समाज दुख के सागर म बूड़त जावत हे।

  अगर हम ला आज सुख शांति चाही त भगवान राम अउ श्रीकृष्ण के चरित्र ले शिक्षा लेके ,असली धरम ल अपना के जिये ल लागही। यदि हम अइसन कर लेन त निश्चित रूप ले राम राज आही, श्री कृष्ण के बँसुरी के मधुर तान चारों मुँड़ा सुनाही।आसा अउ बिंसवास म दुनिया टिके हे-----।


जय जोहार ।


चोवा राम वर्मा'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

सुरता: 19 अप्रैल - तीसरी पुण्यतिथि म विशेष

 सुरता:  19 अप्रैल - तीसरी पुण्यतिथि म विशेष 


बहुमुखी प्रतिभा के धनी रिहिन नंद कुमार साहू "साकेत"


ये शरीर हा नश्वर हे. जउन ये दुनियां म

 आहे वोहा एक दिन इहां ले जरूर जाहि. लेकिन दुनियां ल छोड़ के जाय के बाद कोनो मनखे ला सुरता करथन त वोकर पीछे  कारन उंकर सुग्घर कारज ह होथे. कम उम्र म ये दुनियां ल छोड़ के अपन एक अलग पहिचान छोड़िस अइसन प्रतिभा म स्वर्गीय 

नंद कुमार साहू "साकेत" के नांव सामिल हे. वोहा गजब प्रतिभा के धनी रिहिन हे.     


       जीवन परिचय 


नंद कुमार साहू साकेत के जनम राजनांदगॉव जिला के मोखला गाँव म साधारन किसान परिवार म 26 अगस्त 1963 म होय रिहिन हे. उंकर बाबू जी के नाँव कृश लाल साहू  अउ महतारी के सोहद्रा बाई साहू नाँव

 हे. वोकर पत्नी के नाँव लता बाई साहू, बेटा के नाँव हितेश कुमार साहू, अउ बेटी मन के नाँव केशर साहू अउ प्रेमा साहू हे. 


 नानपन ले गायन अउ वादन म रुचि 


  पढ़ाई जीवन ले ही उंकर रुचि गायन, वादन म रिहिस हे. स्कूल म पढ़ाई करत -करत गाँव मा अपन सँगवारी मन सँग मिल के 1980 म मानस मंडली के गठन करिन । गाँव के नाचा मंडली म घलो योगदान दिस । उंकर सुरु ले  लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम डहर रुचि राहय. नाचा, रामायण के सँगे सँग 



जस गीत, फाग गीत मा गायन अउ हारमोनियम वादन करय. 


  आकाशवाणी म गीत प्रसारित 

 

 श्रद्धेय साकेत जी ह पढ़ाई जीवन ले गीत लिखे के सुरु कर दे रिहिस हे. वोहा लोक गीत, जस गीत अउ फाग गीत के  रचना करिस. 1990 -91म उंकर गाये लोकगीत आकाशवाणी रायपुर ले प्रसारित होइस ।


  नौकरी मिले के बाद प्रतिभा ह अउ निखरिस 


मैट्रिक  परीक्षा पास होय के बाद शासकीय प्राथमिक शाला में शिक्षक बनगे. अब उंकर प्रतिभा के सोर अउ बगरत गिस. वोहा धामनसरा,  मुड़पार, सुरगी, बुचीभरदा जिहां नौकरी करीस पढ़ाई के सँगे- सँग उहां अपन व्यहार ले सब झन ल गजब प्रभावित करिस।


   उद्घोषक अउ निर्णायक के जिम्मेदारी निभाइस 


अब वोहा सबो प्रकार के मंच जइसे सांस्कृतिक प्रतियोगिता, मानस गान टीका स्पर्धा, रामधुनी स्पर्धा जसगीत प्रतियोगिता,फाग स्पर्धा म उद्घोषक अउ निर्णायक के भूमिका निभात गिस. अपन गाँव मोखला के सँगे- सँग अब दूरिहा- दूरिहा म वोकर नाँव के सोर चले ल लगिस. स्कूली कार्यक्रम म घलो अपन प्रतिभा ल दिखाइस. लइका मन ल सुग्घर ढंग ले सांस्कृतिक कार्यक्रम 

खातिर सहयोग करय. 


  लोक कला मंच द्वारा उंकर गीत के प्रस्तुति 


आडियो, वीडियो प्रारुप के माध्यम ले उंकर गीत के गजब धूम मचिस ।उंकर गाना फेसबुक, वहाट्सएप, यू ट्यूब म खूब  चलिस. धरती के सिंगार भोथीपार कला अउ दौना सांस्कृतिक मंच दुर्ग के मंच ले उंकर गीत सरलग चलत गिस. कुछ गीत ल खुद गाइस अउ कुछ 

ला दूसर कलाकार मन आवाज दिस. 1 अप्रैल 2018 मा रवेली म  मंदराजी महोत्सव समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम म उंकर लोक गीत अउ जस भजन एल्बम के विमोचन लोक संगीत सम्राट   खुमान साव जी, स्वर कोकिला कविता वासनिक , वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. पीसी लाल यादव , वरिष्ठ साहित्यकार कुबेर सिंह साहू जी ,साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव के अध्यक्ष अउ मंदराजी महोत्सव के मंच संचालक भाई लखन लाल साहू लहर  के द्वारा करे गिस. 


साकेत साहित्य परिषद् ले अब्बड़ लगाव 


 जसगीत मा उंकर प्रेरणा स्रोत सुरगी निवासी श्री मनाजीत मटियारा जी अउ कविता के क्षेत्र म  वोहा श्री लखन लाल साहू लहर  अध्यक्ष, साकेत साहित्य परिषद् सुरगी ल अपन प्रेरणा स्रोत माने. 

  नंद कुमार जी ह साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव के सक्रिय पदाधिकारी रिहिन हे. कवि गोष्ठी म अपन नियमित उपस्थिति देय .साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव ले उंकर लगाव अत्तिक रीहिस कि अपन उपनाम " साकेत "रख लिस. 


कवि सम्मेलन म सराहे गिस 


अब कवि सम्मेलन म घलो  उंकर भागीदारी होय लगिस. साकेत के सँगे -सँग दूसर साहित्य साहित्य समिति मन के कार्यक्रम

म उछाह पूर्वक भाग लेय. कोरबा, बेमेतरा म छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के भव्य मंच म अपन काव्य प्रतिभा के एक अलगेच पहिचान छोड़िस।कवि सम्मेलन म 

वीरेंद्र कुमार तिवारी वीरू, पद्मलोचन शर्मा मुंहफट,प्यारेलाल लाल देशमुख,लखन लाल साहू लहर,  कैलाश साहू कुंवारा, संतू राम गंजीर,महेन्द्र कुमार बघेल, ओमप्रकाश साहू अंकुर के संगे -संग लक्ष्मण मस्तुरिहा, विश्वंभर यादव मरहा,मीर अली मीर जइसे बड़का कविअउ गीतकार मन सँग कविता पाठ करिन ।


सम्मान -


  नंद कुमार जी  ल कतको लोक कला मंच, रामायण मंडली, फाग मंडली, जस गीत मंडली,रामधुनी मंडली  अउ युवा संगठन मन ह निर्णायक अउ उद्घोषक के रुप म सम्मानित करिन. 

 सम्मान के कड़ी मा 29 फरवरी 2012 मा रघुवीर रामायण समिति राजनांदगॉव द्वारा उद्घोषक के रुप म विशेष सम्मान, 23 फरवरी 2014 म साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव द्वारा "साकेत साहित्य सम्मान",जिला साहू संघ राजनांदगॉव द्वारा  1 अप्रैल 2019 म कर्मा जयंती मा "प्रतिभा सम्मान ", शिवनाथ साहित्य धारा डोंगरगॉव द्वारा 25 अगस्त 2019 मा " साहित्य सम्मान ",  पुरवाही साहित्य समिति पाटेकोहरा विकासखंड छुरिया जिला राजनांदगॉव द्वारा 2021 मा " पुरवाही साहित्य सम्मान -2020 " सहित आने सम्मान सामिल हावय।


ये गीत अउ कविता के गजब सोर 


उंकर लिखे गीत /कविता जउन ह लोगन मन के जुबान म छागे वोमा  "महतारी के लागा", " वो पानी म का जादू हे "",तीजा पोरा, " "विधवा पेंशन ", "आँखी के पुतरी," "जिन्दगी एक क्रिकेट", "तिरंगा," " सरग ले सुग्घर गाँव "

सामिल हे. साक्षरता , पर्यावरण संरक्षण ,अउ कोरोना जागरुकता उपर सुग्घर रचना लिखिस।


 मिलनसार अउ मृदुभाषी 


    वोहा अब्बड़ सरल, सहज ,मृदुभाषी अउ हंसमुख व्यक्तित्व के धनी रिहिन हे. वोहा बहुमुखी संपन्न कलाकार रिहिन हे. पर येकर बावजूद वोमा घमण्ड थोरको नइ रिहिस हे. एक डहर वोहा अपन ले वरिष्ठ मन के झुक के पैलगी अउ मान सम्मान करे बर कभू नइ भूलिस त दूसर कोति अपन ले छोटे मन ला वोहा कभू छोटे नइ समझिस. वहू मन ला गजब स्नेह दिस. 


   सीखे मा गजब उछाह दिखाय 


58 साल के उम्र म घलो वोकर मन म सीखे के गजब उछाह रहय।

   साकेत जी ह छंद के छ के संस्थापक आदरणीय अरूण कुमार निगम जी द्वारा स्थापित "छंद के छ " म छंद सीखे बर 2021 म तइयार होय रिहिन हे पर दुर्भाग्यवश वो सत्र के शुरु होय ले पहिली वोहा ये दुनियां ला छोड़ के चले गे. 

जब उंकर निधन के खबर चले ल लगिस त  गुरदेव निगम जी ह मोर करा फोन करके किहिस कि "ओमप्रकाश कइसे खबर ल सेन्ड करे हस. बने पता कर लव भई. खबर ल डिलीट करव. " त मेहा गुरुदेव जी ल बतायेंव कि "काश! ये खबर हा गलत होतिस गुरुदेव जी पर होनी के सामने हमन नतमस्तक हन. 


तब गुरुदेव जी ह मोला बताइस कि हफ्ता भर पहिली मोर ले गोठ -बात होय रिहिस कि गुरुदेव जी महू ह छंद सीखना चाहत हवँ. मोला आप मन ह शिष्य के रुप मा स्वीकार कर लेहू. मोर बिनती हे गुरुदेव जी. तब गुरुदेव जी हा श्रद्धेय साकेत जी ला किहीस कि -  ".नंद जी मँय हा आप ल का सिखाहूं . आप हा तो पहिली ले सुग्घर -सुग्घर रचना लिखत हवव .सबो डहर छाय हवव. " ता नंद कुमार साहू जी ह बोलिस कि " गुरुदेव जी छंद के छ अउ आपके मेहा गजब सोर सुने हवँ.  मँय हा आप मन ले छंद सीखना चाहत हवँ गुरुदेव जी. मोला निरास झन करहू. " 

श्रद्धेय नंद जी के सरल, सहज अउ सरस 

व्यवहार ले गुरुदेव जी हा गजब प्रभावित होइस. वोला अपन अगला सत्र मा छंद साधक के रुप मा सामिल कर ले रिहिन पर ये छंद सत्र हा चालू होय ले पहिली  नंद कुमार साहू ह 19 अप्रैल 2021 म 58 वर्ष के कम उम्र म ये दुनियां ल छोड़ के चल दिस. 

जब ये साल के छंद सत्र हा शुरु होइस ता गुरुदेव निगम जी ह मोर करा मेसेज करिस कि "- आज  नवा छंद सत्र शुरु होय के बेरा मा श्रद्धेय नंद कुमार साहू साकेत के गजब सुरता आथे. उंकर याद करके मोर आँखी हा डबडबागे. "

  सरल, सहज, सरस, मृदुभाषी, हंसमुख व्यक्तित्व ले भरपूर अउ गजब प्रतिभा के धनी श्रद्धेय नंद कुमार साहू जी साकेत ल उंकर तीसरी पुण्यतिथि म सत् सत् नमन हे।

                

 ओमप्रकाश साहू "अंकुर "

सुरगी, राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़)

व्यवस्था ऊपर चोट करे म सक्षम कहानी संग्रह तुतारी*

 *व्यवस्था ऊपर चोट करे म सक्षम कहानी संग्रह तुतारी*

          छत्तीसगढ़ भुइयाॅं धान के कटोरा आय। माने खेती-किसानी के भुइयाॅं। एक समय रहिस जब  खेती पारंपरिक रूप ले होत रहिस। अब खेती आधुनिक तरीका ले होय धर लेहे। बइला-नाॅंगर के दिन लद गे हे, कहे जा सकत हे। बइला-गाड़ी घलव विकास यात्रा के भेंट चढ़ते जावत हे। जे बइला-भइसा रेंगे बर ढेरियायव तेन ल तुतारी ततेर के किसान ह काम बुता म पकोय। पटरी म लावय।

       अइसने व्यवस्था ल पटरी म लाय के तुतारी कलमकार तिर होथे। ए कलम ले ततेरे के बुता करथे। कुछ मन अखबार ले समाज म चलत अव्यवस्था अउ शोषण बर आखर के तुतारी चलाथें त कुछ मन कहानी कविता के सहारा लेथें। 

       इही कड़ी म एक कहानी संग्रह 'तुतारी' बछर 2022 म छपे हे। जे मा तुतारी सहित 15 अउ कहानी हावॅंय। एकर कहानीकार आय चंद्रहास साहू। जे बड़ लगन अउ मिहनत ले एक-एक कहानी ल गढ़थे।  उॅंकर लिखे कहानी के एक-एक शब्द उपराहा नि जनाय। शब्द मन ल नाप-तउल के बउरथें। एक-एक चरित्र ल ससन भर खेलन देथे। पात्र मन ल उभार के लाथें। एक-एक पात्र के चरित्र पाठक के नजरे-नजर म झूले लगथे। कहानी लेखन के एकपइया रद्दा म चलत चंद्रहास साहू छत्तीसगढ़ी कहानी ल नवा ऊॅंचाई देवत हें।

        कहानी अउ कविता दूनो विधा के किताब पढ़े म मोला बड़ आनंद आथे। पढ़े किताब मन म 'तुतारी' मोला सुरता आवत हे। एमे शामिल कहानी जकही, इंदरानी, दुलौरिन, परेमा नोनी, परसा फूल, थपरा मन नारी विमर्श के कहानी हें। मानवीय संवेदना, नारी सशक्तिकरण, संघर्ष, शोषण, प्रेम, भ्रष्टाचार, सोशल मीडिया  के प्रभाव, माटी ले जुरे कहानी मन पाठक ल जरूर भाही। ए कहानी मन ल पढ़त खानी एक सुधि पाठक के मन नइ असकटावय। 

       सोहाई, फुलकैना, चिरई चुगनी मया प्रेम के तासीर लिए हवय। सोहाई पढ़के मोला एक बारगी पुरस्कार कहानी ह सुरता आइस। सोशल मीडिया ले पछाड़ खावत मया के कहानी चिरई-चुगनी नवा पीढ़ी ल सावचेत कराथे।

        परसा फूल म सास ससुर बर सेवा भाव आदर्श हे। सामाजिक, पारिवारिक, साॅंस्कृतिक मूल्य ल सरेखत कहानी संग्रह हर पाठक मन ल पढ़ना चाही। 

      संग्रह के शीर्षक कहानी तुतारी के अर्थ ल प्रभावी ढंग ले सार्थक करथे। व्यवस्था ऊपर चोट करथे। मन म तो अउ कतको अकन भाव हे, फेर समय के एक सीमा हे। मर्यादा हे। त अभिन अतके कहना बने रही।

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पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

समीक्षा छत्तीसगढ़ी गजल म "पांखी काटे जाही" अपन एक अलग पहिचान बनाही

 समीक्षा 


छत्तीसगढ़ी गजल म "पांखी काटे जाही" अपन एक अलग पहिचान बनाही


                     


कृति के नांव - पांखी काटे जाही (छत्तीसगढ़ी गजल संग्रह)


गजलकार - राज कुमार चौधरी "रौना"


प्रकाशक -  वैभव प्रकाशन रायपुर ( छ.ग.)

प्रकाशन वर्ष -2022


मूल्य-   100=00 रूपये 




छंदबद्ध रचना लिखना सहज काम नइ हे. येमा अब्बड़ मिहनत करय ल पड़थे. छंदबद्ध रचना लिखत बेरा अक्षर,वर्ण,यति,गति, मात्रा,मात्रा गिने के नियम,डांड़ अउ चरण,सम चरण,विषम चरण,गण के सही जानकारी होना चाही. आधा अधूरा गियान ले बात बिगड़ जाथे. हंसी के पात्र बने ला पड़ जाथे. वहीं जब कोनो कवि येमा पारंगत हो जाथे त वोकर गजब सोर उड़थे.कोनो भी छंदबद्ध रचना  एक निश्चित मात्रा अउ  लय म होथे. अब्बड़ मिहनत ले लिखे छंदबद्ध रचना ल जब वोकर सही लय म प्रस्तुत करे जाथे त सोने म सोहगा हो जाथे.


वइसने गजल उर्दू कविता के एक छंद हरे जेला बहर कहे जाथे. फारसी भाषा ले होवत उर्दू, हिंदी ,भारत के कतको भाषा अउ अब छत्तीसगढ़ी भाषा म गजल लिखे जाथे.गजल म बहर के मात्रा के गिनती करे जाथे पर बहर मन के शब्द सीमा अउ मात्रा मन के संख्या निश्चित नइ राहय. अक्सर येला छोटे बहर नइ ते बड़े बहर नांव देय जाथे. कोनो बहर 16 ले 18 मात्रा के हो सकथे त कोनो बहर 32 मात्रा के घलो हो सकथे.


 हिंदी म गजल के बात करथन त येमा सबले बड़का नांव दुष्यंत कुमार जी के आथे. वोहर हिंदी म गजल ल अब्बड़ लोकप्रिय बनाइस. वोहा हिंदी गजल के प्रवर्तक माने जाथे.गजल  के मामला म वोहा लकीर के फकीर नइ बनिस। गजल माने श्रृंगार के रचना पर दुष्यंत कुमार जी ह लीक ले हट के लिखिस अउ गजल के माध्यम ले कतको विसंगति उपर कलम चलाके एक अलगेच छाप छोड़िस।


जिहां तक छत्तीसगढ़ी म गजल लेखन के बात हे त  विद्वान मन के मानना हे कि  अभी येकर बाल्यकाल चलत हावय. छत्तीसगढ़ी म गजल लिखइया साहित्यकार मन म रामेश्वर वैष्णव, मेहत्तर राम साहू, बसंत देशमुख,मुकुंद कौशल , बल्दाऊ राम साहूअउ आने साहित्यकार के नांव सामिल हे. इही कड़ी म एक नवा नांव सामिल होथे  राज कुमार चौधरी रौना जी के ।उंकर छत्तीसगढ़ी गजल संग्रह प्रकाशित होय हे -" पांखी काटे जाही." येकर ले पहिली उंकर दू किताब प्रकाशित हो गे हावय. एक छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह "माटी के सोंध"अउ दूसर छत्तीसगढ़ी व्यंग्य संग्रह "का के बधाई" . ये दूनों संग्रह ह साहित्य बिरादरी म अब्बड़ सराहे गिस. अउ अब उंकर गजल संग्रह" पांखी काटे जाही " के अब्बड़ सोर उड़त हे. 


   राज कुमार चौधरी रौना रचना लिखे मा अब्बड़ मिहनत करथे . वोहा एक बढ़िया कवि,छंदकार हे. वोला छंद के कुछ नियम पहिली ले जानकारी रिहिन पर  छंदविद अउ छंद के छ आनलाईन गुरुकुल के संस्थापक गुरुदेव अरुण कुमार निगम जी के छंद के छ  सत्र -12 म जब वोहा जुड़िस त उंकर छंदबद्ध रचना म अउ धार आइस. संगे संग  उंकर मिहनत,धीरज अउ अनुशासन के गुण म  बढ़वार होइस. वइसे भी उंकर रचना उम्दा रहिथे. वोहा कवि सम्मेलन मा घलो अब्बड़ सराहे जाथे. तरन्नुम म वोकर प्रस्तुति  ह अब्बड़ सराहे जाथे. एक प्राइवेट कंपनी म काम करके अपन जिनगी के गाड़ी खिंचइया रौना अब्बड़ मिहनती मनखे हे.वहू प्राइवेट काम ह कोरोना काल मा छूट गे त अपन गांव टेड़ेसरा म एक छोटे से दुकान चलाके अपन गृहस्थी ल चलाथे. अउ इही स्थिति म वोहर जउन साहित्य साधना करत हे वोकर जतकी प्रशंसा करे जाय वोहा कम हे. ठेठ गंवइहा रौना हा शुरू ले कला अउ साहित्य ले जुड़े हावय. उंकर बाबूजी हा घलो लोक कलाकार रेहे हे. 


त  अब उंकर गजल संग्रह "पांखी काटे जाही" के बात करत हंव. वोला गजल लिखे बर उंकर प्रेरणास्रोत डा. दादू लाल जोशी हा प्रेरित करिन. छत्तीसगढ़ी गजल के अगुवाई करइया मुकुंद कौशल जी ले जब वोहा अपन दू दर्जन गजल ल लेके मिले बर गिस त जिहां वोकर गजल ल पढ़के  बड़ाई करिस त दूसर कोति येमा जउन कमजोर पक्ष रिहिन वोला सुधार बर घलो प्रेरित करिन. मुकुंद कौशल के गजल संग्रह " घाम हमर संगवारी" ल वोहा बने चेत लगा के पढ़िस. संगे संग हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी म गजल के आने किताब ला पढ़िस. येकर ले रौना जी ला गजल के बहर अउ बारीकी पक्ष के जानकारी होवत गिस. वोकर मन मा गजल लिखे के भावना हा बाढ़िस. मुकुंद कौशल जी ले भेंट होना एक टर्निंग पॉइंट बनिस जेकर सुग्घर परिणाम हरे - पांखी काटे जाही.


  वइसे पहिली गजल के प्रमुख विषय प्यार - मुहब्बत राहय पर समय के संग येकर प्रवृत्ति म बदलाव आत गिस. दुष्यंत कुमार जी ह गजल म क्रांतिकारी बदलाव करिन. वोहा कतको विसंगति अउ आम आदमी के पीरा ला विषय वस्तु बना के हिंदी गजल ल एक नवा ऊंचाई दिस ।अइसने किसम के प्रयोग  अब छत्तीसगढ़ी गजल म घलो होवत हे।


"पाखी काटे जाही" गजल संग्रह के अध्यन ले पता चलथे कि रौना जी अपन गजल के माध्यम ले जिहां राजनीति के गिरत स्तर , सामाजिक बुराई, भेदभाव, दिखावटीपन उपर नंगत प्रहार करथे ता दूसर कोति हमर छत्तीसगढ के संस्कृति, संस्कार,तीज - तिहार के अब्बड़ बखान करथे.


 हमर लोक तंत्र मा कत्तिक भर्राशाही हे वोला वोहा अपन ये शेर मा उजागर करके जमगरहा व्यंग्य करथे - 


चढ़ सिंघासन मौज कर ले तोर तो सरकार हे।

झूठ तक ला सच बना दे तोर तो अखबार हे।।

मांगना हर पाप हे अउ बोलना अपराध जी।

वोट दे के भेज दे अतके अकन अधिकार हे।।


कतको सामाजिक विसंगति उपर वोहा अपन कलम चलाथे. लोगन के दुहरा चरित्र के वोहा बखिया उधेड़ के रख देथे. ये शेर म देखव -


जिंकरे चाल चलन किरहा हे उहि मन टोरत गिरहा हे।

भटरी कस डरवाथे हमला जउने मन मुड़ पिरहा हे।।

बसदेवा कस जानत रहिथे मिंजे कुटे के दिन ला जी।

सबले जादा उंकरे होथे जेकर बोरा चिरहा हे।।


नछत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया नारा देके भोला भाला छत्तीसगढ़िया मन ल चालाक परदेशिया मन कइसे लूटत हे. वोकर सुग्घर वर्णन करके छत्तीसगढ़िया मन ला सावचेत करथे.


हथलमरा मन हे अधियारा।

काली लेही वो बंटवारा।।

देखे नहीं हिरक के हमला।

ते मन खाही झारा -झारा।।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया।

गूंजय नारा बस्ती पारा।।

भीतर ले सब हवे कसाई,

उपर छावा भाई चारा।।


मिहनत करइया मजदूर - किसान के जिहां वोहा बखान करथे ता पर्यावरण ला बिगाड़े बर जमगरहा प्रहार करथे. ये शेर मा उंकर विचार झलकत हे -


 इही हाथ मजबूत हथौड़ा सब्बर दिन पोटारे हन।

जांगर टोर कमाके भइया हमी पसीना गारे हन।।

सकलावत हे धनहा डोली गांव शहर सब मिंझरत हे।

नइ बांचिस रूखवा के छंइहा जंगल हमी उजारे हन।।


रौना जी ह आम मनखे के पीरा ला बखूबी व्यक्त करथे त जोक बरोबर खून चूसइया  बेईमान नेता, भ्रष्ट अफसर मन के बखिया उधेड़ के रख देथे. ये पंक्ति मा उंकर उदाहरण देखव - 


चौबीस घड़ी चढ़े तेलाई चतुरा मन के घर।

हमरे चुलहा मा रहिथे रोजे हड़ताल मितान ।‌।

अफसर नेता बैपारी इंकरे हाथ कटार हे।

गरीब जनता के रोजे होवत हवे हलाल मितान।।


चौधरी जी ये गजल संग्रह मा कतको ठेठ छत्तीसगढ़ी शब्द के उपयोग करे हे ता आम प्रचलित हिंदी, अंग्रेजी के शब्द ले परहेज घलो नइ करे हे. ये जरूरी हे काबर कि कतको हिंदी अउ अंग्रेजी शब्द के उपयोग अक्खड़ गंवइहा मन ह करथे ता वोला लिखे म का दिक्कत हे. ये किताब म लोकोक्ति,मुहावरा,रस, छंद, अलंकार के उचित उपयोग करे गे हावय त कुछ  जगह छत्तीसगढ़ी शब्द के मानकीकरण ला प्रयोग न करके वोकर अपभ्रंश रूप ला अपनाहे. मोला लगथे गजल के बहर के मात्रा ल मिलाय बर कुछ अपवाद स्वरूप करे हावय.


कुल मिलाके कुछ कमी ल छोड़के ये गजल संग्रह के रचना मन संहराय लाइक हे. जब छत्तीसगढ़ी गजल उपर चर्चा चलही ता  रामेश्वर वैष्णव, मेहत्तर राम साहू,मुकुंद कौशल,बसंत देशमुख, बलदाऊ राम साहू जइसे गजलकार के कतार म राज कुमार चौधरी रौना के नांव के उल्लेख जरूर करे जाही अउ वोकर गजल संग्रह " पाखी काटे जाही" ले गजल के उदाहरण बताय जाही. रौना जी ल उंकर  ये पहिली गजल संग्रह बर गाड़ा -गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना हे. आप मन के कलम सरलग चलत राहय. 



          - ओमप्रकाश साहू" अंकुर"


             सुरगी, राजनांदगांव

जुड़वा बेटी-समीक्षा

जुड़वा बेटी-समीक्षा


             हमर महतारी भाखा के मान सम्मान ल बढ़ाये के उदिम म लगे, जी तोड़ मेहनत करैया, गुरुदेव अउ भैया अरुण निगम सुपुत्र स्व. जनकवि कोदूराम दलित जी के जतका तारीफ करे जाय कमे परही। श्रद्धेय दलित जी छत्तीसगढ़ी भाखा म छंदविधा म सूत्र के भरपूर पालन करत पहिली छंदकार रहिन कहना अतिशयोक्ति नई होही। हमर गुरुदेव भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य प्रबंधक के पद से सेवा निवृत्त होय हें। ए बात ला अइसन झन समझे जाय के  मैं चारण बनके चाटुकारिता के जउन रीत रिवाज चल पड़े हे उही ल अपनावत लिखत हँव। हिरदे ले उपजे भाव ए। जइसे होवत देखत हौं ओइसे लिखत हौं।


      हमर गुरुदेव के इच्छा हे के उंखर स्व. पिताजी के सपना ल पूरा करँय। ए परिवार म  गुरुदेव अउ उंखर पिताजी के अलावा गुरुदेव के भाँटों गीतकार, गायक, कवि  ़़स्व. लक्ष्मण मस्तूरिया जी के चर्चा करना घलो जरूरी हो जथे। प्रसिद्ध गीत "मोर संग चलव रे", "मोर घुनही बँसुरिया", "पता दे जा रे, पता ले जा रे गाड़ी वाला" जइसे  अउ कई ठन भावपूर्ण गीत के रचनाकार गायक के ए बछर म अकस्मात निधन होवई पूरा साहित्य जगत ल स्तब्ध कर दे हवै। अपन राज बर, इहाँ के गरीब गुरबा बर उंखर अंतस के पीरा ल समझे बर कोनो प्रयास नई  करिन। साक्षात सरस्वती इंखर घर म निवास करथें। हमर गुरुवईन भाभी सपना निगम घलो एक अच्छा रचनाकार अउ मधुर कंठ के मालकिन हवैं।


        आज हमर प्रांत म अतेक बड़े बड़े साहित्यकार हें, 

फेर अवइया पीढ़ी ल सिखोय बर, निखारे बर उंखर कतका योगदान हे मैं समझथँव। सबो जानत हें। बड़े बड़े साहित्य मनीषी, साहित्य विदुषी मन अपन अंतस ल चिटिकुन झाँक के देखैं त जवाब खुदे मिल जाही। शायद ए डर हो सकत हे के साहित्य के अलग अलग मठ के मठाधीश मन के गद्दी ल कोनो  दूसर झन कब्जिया लँय।


           गुरुदेव के सपना हे के जइसे जम्मो प्रांत के बोली भाखा के एक अलगपहिचान हे, मान हे, सम्मान हे ओइसने हमरो बोली के मान सम्मान होना चाही।  एकर खातिर भैया के पहिली प्रयास एला साहित्य के काव्य जगत म उतारे के चलिस; छंदमय कविता के रचना कर कर के। केवल रचना कर कर के नहीं; साहित्य प्रेमी मन ल नाना प्रकार के छंद के बारीक सूत्र समझावत सिखोवत छंदमय कविता लिखे बर पोट्ठ करे के। ए कड़ी म गुरुदेव के हमर भाखा म छंद के बारीक सूत्र समझावत  वैभव प्रकाशन  रायपुर ले प्रकाशित  "छंद के छ"  किताब के कोई सानी नइये। हिंदी म घलो इंखर दू अउ किताब "शब्द गठरिया बाँठ" अउ "चैत की चँदनिया" म इंखर स्वरचित  हिंदी के जबरदस्त छंद अउ गीत के आनंद ले जा सकथे। छंद सीखे जा सकथे।

   

           आज गुरुकुल परंपरा नँदाये बरोबर हे। ए बात अलग हे के बाबा रामदेव के पतंजलि संस्था म ए परंपरा ल बढ़ावा देवत हें। फेर ओ हर शिक्षा के क्षेत्र म आय सँगे सँग विशुद्ध हिंदी अउ संस्कृत के ज्ञान, वेद शास्त्र के ज्ञान देवत हे। 


            धन्य हे आज के सोशल मीडिया। व्हाट्सएप। अतका अच्छा माध्यम हे के घर बइठे इच्छा शक्ति रहय त जउन पाव तऊन सीख सकत हौ, सिखो सकत हौ। तौ भाई हो ए गुरुकुल परंपरा ल इही सोशल मीडिया के माध्यम से हमर परम श्रद्धेय गुरुदेव निगम भैया मन शुरू करिन। सीखौ अउ अनिवार्य रूप से शिष्य बना के सिखोवव। ए हर मूल मंत्र ए। आज एकर नतीजा ए निकले हे के हमर राज के हर जिला से कम से कम डेढ़ सौ छंद साधक हो गे हें।  केवल साधक भर नइ होय हें एक अच्छा रचनाकार हो गे हें। मँहू शिष्य बने के प्रयास करे रेहेँव फेर एक समर्पित शिष्य के योग्यता अपन म नई पाएँव। ए छंद साधक मन के ग्रुप केवल गुरु शिष्य के रूप मा चलइया स्कूल भर नोहै। ए एक परिवार बन गे हे।

हरेक बड़े छोटे बर अतका मया के मैं कुछ केहे नई सकँव। भले मैं शिष्य नई बन पाएँव फेर परिवार के सदस्य बने रेहे के सौभाग्य पा के मैं धन्य हो गे हँव। प्रणम्य गुरुदेव अउ भैया निगम बर गोस्वामी तुलसीदास जी के सुंदरकांड के इही चौपाई ल फिट पाथँव.....

             सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाही।

             देखेँव करि विचार मन माही।।

             प्रति उपकार करँव का तोरा।

             सन्मुख होइ न सकत मन मोरा।।

             भाई हो, ऊपर के चौपाई हर भगवान राम के, उंखर प्रिय सखा ( ओइसे ओ सखा रातदिन स्वामी के नाम के माला जपत रहिथे अउ स्वामी के सेवा म भिड़े रथें। अपन आप ला उंखर सेवक कहलाना ही पसंद करथें) संकटमोचक प्रभु हनुमानजी बर ए। मैं कहाँ ए चौपाई ल अपन बर लागू कर सकत हौं...फेर एकर उदाहरण प्रस्तुत करे के एके कारण ए, एके अर्थ लगाये जाय के, मैं गुरुदेव के ऋण से कभू उऋण हो सकौं।


             आज छंद परिवार के समर्पित साधक के बात करे जाय त मोर बड़ मयारुक चोवाराम वर्मा "बादल" भैया के नाव ल सबले आगू रखिहौं। प्रकांड विद्वान, चार चार विषय म स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त, बड़ मिलनसार वर्मा समाज के प्रतिष्ठित अउ प्रांतीय अध्यक्ष। सबले इंखर खासियत विनम्र स्वभाव।साहित्य प्रेमी। गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस के सातों कांड के गहन अध्ययन करइया, केवल अध्ययन भर नहीं ओकर टीकाकार घलो। आज छंद परिवार उंखर ले गौरवान्वित हे। उंखर सतत साधना के नतीजा आय के उंखर तीन किताब "छंद बिरवा", रउनिया जड़काला के, दूनो पद्य अउ कहानी, लघुकथा, व्यंग्य संग्रह जुड़वा बेटी प्रकाशित हो गे हे। दूनो ल पढ़ डरे हँव। अतके तक सीमित नइयें। अनेकों सम्मान इनला मिल चुके हे। सम्मान के लंबा लिस्ट ल ए मेरन नई मड़ावत हँव। इंखर किताब के पीछू डहर दे हवय। किताब के फोटू मड़ावत हौं ओमा देखे जा सकत हे।

 

                    दूनो कालजयी रचना बन गे हवँय। अइसने उंखर कलम बिन रुके रेंगत रहै, माँ शारदा उंखर ऊपर हमेशा छाहित रहँय इही शुभ कामना हे। छंद बिरवा ल पढ़े बहुत दिन हो गय। अभी अभी उंखर कहानी, लघुकथा, व्यंग्य, अउ लेख संग्रह ल पढ़ेंव। कोनो लघुकथा, कहानी, लेख,  व्यंग्य अइसे नई होही जेला पढ़ के आदमी आनंदित नई होहीं। मोला त साच्छात अइसे लगथे चोवा भैया मोर आगू म बइठ के सुनावत हें। अपन मिठ मिठ बोली म। अउ मैं सुनत भर नइ अँव घटना ल अपन सामने होवत देखत हौं चाहे इंसानियत  के अर्थी निकालत ड्राइवर के पिटाई वाले  कहनी, "इंसानियत के लाश" होय या किताब के शीर्षक वाले कहनी,  "जुड़वा बेटी" चाहे एक गरीब छेरी चरवाहा के अपन टूरा के पिटई करके ओकर खेले कूदे के दिन म ओला काम बूता म फँदई वाले कहनी  "गौरव";  पढ़ के मन भर जथे। आँखी ले अपने अपन आँसू झरे लगथे। आज के नारी मन बर,  उंखर हौसला बढ़ाये बर "अति के अंत" एकदम फिट बइठथे। अतके नहीं धन्य हे वो बाप;  बेटा के मया म अँधरा बन के नई रहय। अपन बेटा के चरित्तर ल जानथे। एक नवा नवेलिन बहू के इज्जत लूटे बर आबरू होय खातिर बेटा के हत्या होय के बावजूद भी हत्यारिन बहू अउ ओकर पति ल जेल से छोंड़वा के उंखर घर बसइया अइसन बाप आज के जमाना म कोन होही। ओइसने लघुकथा "बुधवारो" हवय। हमर समाज, समाजे भर के बात नोहै, जन सधारन घलो,  काकरो शारीरिक बनावट म काँही खामी ल देख के ओला हिकारे, या चिढ़ाए बर पाछू नई रहँय। संबंध बनई के त बात छोड़ौ। मगर ए बात मरद बर लागू होवत नई दिखै। कतको लँगड़ा लुलवा रहँय जमीन जयदाद देख के या कमैया देख के ओकर बिहाव होइच जथे। ए बुधवारो एकरे शिकार हे ए कहनी मा। सबले बड़े बात हमर भाखा म बादल भैया के लिखे के जउन कला हे, भाव ल अपन शिल्प म निखारथें, अद्भुत हे। कविता के रूप म कथन कइसे छूट सकत रहिस। छत्तीसगढ़ी कहानी किरिया म देखौ..." मोरो स्कूल के जम्मो गुरुजी मन शिक्षा कर्मी आँय। सब बेहाल हे, बिगड़े चाल हे। कुछु बोलथौं तहाँ ले मोर काल हे"। ए बात आज के सरकारी स्कूल के दशा बयान करथे। जम्मो कहानी किस्सा व्यंग्य एक से बढ़के एक हे। 'सबक' शीर्षक ल पढ़ के मैं चिटिकुन रबक जथौं। अइसे लगथे मोरे घर के घटना त नोहै। फरक अतके हे इहाँ मोर असन मूरख तको ढोंगी के जाल म फँसे के नजदीक पँहुचे रथे के गोसइनिन डेना ल धर के तीर देथे त बाँच जथे। भाई हो जम्मो कहनी के सार ल इहाँ मढ़ा देहौं त पाठक मन ल पढ़े के ओतेक आनंद नई आही। बस थोकिन हमर ठेठ छत्तीसगढ़ी के दू चार शब्द के मायने किस्सा के तरी म लिखा जतिस त समझे बर सरल हो जतिस। ओइसे बुद्धिजीवी मन बर समझना कठिन नई ए।ए उंखर दूसर कालजयी रचना ए।


          परम आदरणीय चोवा भइया अइसने निरंतर लिखत रहँय। साहित्य के सेवा करत रहैं। उंखर जस चारो मुड़ा फइलत रहै, न केवल राज म, देश म बल्कि पूरा जग म।

उनला हिरदे ले शुभकामना देवत..


सूर्यकान्त गुप्ता

जुनवानी भिलाई(छ.ग.)

7974466865

छंद के छ परिवार के अर्जुन मनीराम साहू 'मितान' रचित कालजयी खंड काव्य- 'हीरा सोनाखान के'

 छंद के छ परिवार के अर्जुन मनीराम साहू 'मितान' रचित कालजयी खंड काव्य- 'हीरा सोनाखान के' 

        छत्तीसगढ़ी साहित्य आज अपन शैशव काल ल पार कर डारे हवय। काव्य साहित्य के दृष्टि ले छत्तीसगढ़ी साहित्य पहिलीच ले सजोर हे। हमर पुरखा मन गीत कविता सिरजा के एकर दमदार अउ पोठ नेंव रख के चल दे हें। हिंदी काव्य साहित्य म आज 'नई कविता' भाव प्रधान सशक्त सृजन होवत हे। फेर सनातनी छंद के माँग अउ महत्तम न कमतीयाय हे अउ न कमतियावय। छत्तीसगढ़ी साहित्य म घलव अभी के बेरा म खूब छंद लिखे जावत हे। ए छंद लेखन गुरु शिष्य परंपरा ले सरलग आगू बढ़े हे अउ बढ़त हे। 9 मई 2016 के दिन 'छंद के छ' नाम ले ऑनलाइन कक्षा के शुरुआत करे गिस। गुरु-शिष्य परंपरा निभावत ए परिवार के आदि गुरु छंदविद् श्री अरुण कुमार निगम आयँ। जउन मन छंद के छ के संस्थापक आयँ। जेन ल आज सबो साधक भाई-बहिनी मन 'गुरुदेव' कहि मान देथें। आज 'छंद के छ' के 25 कक्षा खुलगे हे। इहाँ भर्ती होय के एके शर्त हावय - 'सरलग अभ्यास के संग सीखना अउ सिखाना।'। इहाँ कोनो किसम पइसा-कौड़ी नइ लगय। इही छंद के छ परिवार के अर्जुन आयँ मनीराम साहू 'मितान'। मास्टरी के नौकरी करत अनगढ़ गीत लिखइया मितान जी छंद साधना करत जब छंद म मास्टरी हासिल कर लिन, तब गुरुदेव निगम जी भरोसी ले उन ल खंड काव्य लेखन बर कहिन। गुरु के आज्ञा अउ प्रेरणा जान उन सतत् साधना, श्रम, एकाग्रता ले खंड काव्य सिरजन के लक्ष्य भेद कर लिन। अरुण कुमार निगम अपन जम्मो शिष्य के प्रतिभा अउ क्षमता ल पहिचानथें। उँकर ले अपेक्षित काज कराथें अउ खुद प्रेरणा बन आगू लाय के उदिम करथें। इही कारण आय कि आज 'छंद के छ' छत्तीसगढ़ी पद्य बर एक आंदोलन के रूप पा गेहे। कतको बुधियार साहित्यकार मन एला गुरुकुल कहिथें, त कुछ मन विश्वविद्यालय घलव कहिथें।

        छत्तीसगढ़ अपन खनिज संपदा, वन संपदा, लोकसंस्कृति, लोकगीत अउ लोक व्यवहार ले अपन अलग छाप बनाय हे। तभे तो धान के कटोरा छत्तीसगढ़ के रहवइयाँ मन बर एक ठन कहावत जग जाहिर हे- छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया। छत्तीसगढ़ आज अपन विकास के संग देश के विकास म सरलग अपन भागीदारी निभावत हे। योगदान देवत हे। 

         छत्तीसगढ़ भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लड़ई बखत देश के आने हिस्सा मन के संग कदम ले कदम मिला चले हे। इहों के शूरवीर मन माँ भारती के खातिर अपन जिनगी ल होम दिन। इहाँ के लाल मन कोनटा-कोनटा ले आजादी खातिर अँग्रेज मन ले लड़े बर भिंड़े रहिन। १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम ले ही छत्तीसगढ़ के लाल मन गुलामी के जंजीर ले भारत माँ ल मुक्त कराय बर ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आवाज उठइन। देश हित म अपन स्वारथ ल खूँटी म दिन। अपन सुख-चैन ल भूर्री बार दिन। ए बेरा के छत्तीसगढ़िया महानायक शहीद वीर नरायण सिंह ले फिरंगी मन थर-थर काँपे लगिन। उँकर युद्ध कौशल, बुद्धि अउ नीति के आगू अँग्रेज टिक नइ पावत रहिन। अइसन बीर योद्धा के शौर्यगाथा के वर्णन सिरीफ छत्तीसगढ़ भर बर नइ भलुक देश के सबो जन बर गौरव के बात आय। उहें उँकर जीवनगाथा ले जम्मो कोई ल देशहित म सोचे-विचारे के प्रेरणा मिलही। शहीद बीर नरायन सिंह के बीरता के गुनगान करत मनीराम साहू 'मितान' जी मन खंडकाव्य 'हीरा सोनाखान के' लिख भारत महतारी के अपन करजा ल उन उतार लिन, कहे जाय त बिरथा बात नि होही। आजो बाहिर-भीतर दूनो ठउर म देश ल एक सच्चा सपूत के जरूरत हवय। जे देश हित म बिचार करयँ। 'हीरा सोनाखान के' पढ़े पाछू ए बिचार पाठक के अंतस् म उदगरही, ए पक्का हे। एकर श्रेय मितान ल उँकर लेखन शैली के नाँव ले मिलना च चाही।

          कोनो भी साहित्य अपन विषय अउ अध्ययन ले सज-धज के अउ निखर के आगू आथे, लोक के तिर पहुँचथे, त ओकर आरो दुरिहा-दुरिहा ल अमरथे। मितान ए खंडकाव्य ल सिरजाय म बड़ पछीना बोहाय हें। उँकर मिहनत ला एला पढ़ के समझे जा सकत हे। खंडकाव्य या फेर उपन्यास के लिखई कोनो ठठ्ठा-दिल्लगी के बात नोहय। घटना अउ कालक्रम ल क्रमवार सिल्होय के पाछू लिखे बर बड़ लगन के जरूरत पड़थे। चिंतन के संग लोकरंजक गढ़े बर सावचेत रहना बड़ चुनौती होथे। मितान जी छंद साधना के अभ्यास म अतेक मँजा गेहें कि उन ल रकम-रकम के छंद म सिरजन करे म दिक्कत नइ होइस होही। अइसे भी खंडकाव्य सिरजइया बर पहिली शर्त तो छंद-सुजानिक होना च आय। कठिन बुता आय त छंद के मुताबिक घटना के वर्णन ल तुक बिठा के सरलग बढ़ात लिखई हरे। जेकर शब्द कोठी भरे-पूरे रही, उही ह अइसन कमाल कर पाथें। भाषा अउ शब्द भंडार अलंकार अउ छंद चयन के बीच बाधा नि परे हे। बीर के बखान बर आल्हा छंद सबले उपयुक्त होथे, अतिश्योक्ति अलंकार के संग बीर के बखान जन-जन के हिरदे म लड़े के हौसला अउ हिम्मत दूनो पैदा करथे। ए संग्रह म इँकर समन्वय अचरज म डाल देथे। इही रचनाकार के सफलता आय। अइसन साहित्य छत्तीसगढ़ी साहित्य ल नवा ऊँचई दे म सक्षम हे। अवइया बखत म छत्तीसगढ़ी साहित्य सेवा बर मनीराम साहू 'मितान' के नाँव बड़ सम्मान के संग लिए जाही। 

         अब चिटिक गोठ किताब म लिखाय जिनिस (छंद मन) के कर लेवन।

         कोनो भी बड़का ग्रंथ/खंड काव्य/महाकाव्य के सिरजन के शुरुवात मंगलाचरण के संग करे जाय के परम्परा मिलथे। हर सर्ग के शुरुवात म मंगलाचरण रहिथे। आजकाल तो काव्य के जम्मो किताब म अइसन शुभ संकेत दिखथे। चर्चित ए किताब म अपन देवधामी अउ ईष्ट देव के बंदना भर नइ हे, बल्कि गुरु, दाई-ददा के संग जनमभुइयाँ के बंदना हे। बंदना इहें थिराय नइ हे वोहर अपन डीह-डोंगर के जम्मो देवी-देवता ल सुमिरन करत छत्तीसगढ़ के जम्मो पबरित भुइयाँ ल माथा टेके हे।  संत महात्मा के पावन सुमिरन हे। 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।' के मंगलभावना के दर्शन होथे। भारतीय परम्परा म नदी ल माता के दर्जा दे गेहे। छत्तीसगढ़ भुइयाँ ल अपन निर्मल अउ अमृत धार ले सबरदिन खुशहाल रखइयाँ नदी मन के सुमरनी एक कोति अध्यात्म ले जोड़थे, त दूसर कोति उपकार माने के संग खंडकाव्य के कथानक ले जोरे के बढ़िया उदिम हे। 

          भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बीर योद्धा शहीद बीर नरायन सिंह के ऊपर लिखे संग्रह म भारत माँ के वैभव के गान हे।

         ए संग्रह म भारत भुइयाँ के नामकरण, संस्कार, विश्व कल्याण, दया-भाव के सुग्घर चित्रण करे गे हे। हमर इही दया-धर्म के फायदा उठइयाँ जम्मो आक्रमणकारी मन के इतिहास ह छंद म छँदाय नजरे नजर म दिखे लगथे। भारत कइसे गुलाम होइस एकर जानबा मिलथे। 

      'जहाँ सुमति तहाँ सम्पत्ति नाना, जहाँ कुमति तहाँ बिपति निदाना।'

        ए बात के सुरता करावत उल्लाला छंद देखव जेमा गुलामी के फाँदा म हम कइसे फँसेन एकर चिंतन हे अउ आगू बर नवा संदेश घलव हे-

      सुमता जब दुबराय तब, होथे बइरी पोठ जी।

      संगी जम्मो जान लव, सार करत हँव गोठ जी।। (पृष्ठ 23)


          गुलामी ले मुक्ति अउ अँग्रेज के अत्याचार बिरुद्ध विद्रोह के सुर ल देखव - 

          मंगलपांडे नाव रहिस जी, भारत माँ के बाँकेलाल।

          करिस खुला विद्रोह छावनी, बनके गोरा मन के काल।।

          अँग्रेज शासन के बिरुद्ध उठे विद्रोह के ए आगी जब छत्तीसगढ़ पहुँचिस तेकर बानगी देखव-

        बनके अगुवा लड़िस लड़ाई, सन्तावन मा बाँके बीर।

        नाव रहिस गा बीर नरायन, रख दय बइरी ठाढ़े चीर।। पृ. 28

        छत्तीसगढ़ के शहीद बीर नरायन के जन हितवा, न्यायप्रियता, साहसी, पराक्रमी, परमार्थ सेवाभावी, दृढ़ संकल्पी जइसे जम्मो गुन अउ शारीरिक सौष्ठव अउ सुंदरता ल बड़ सुघरई ले चित्रण करे म मितान जी कहूँ मेर कमती नइ दिखयँ। 

      अँइठे-अँइठे करिया मेंछा, लम्बा-लम्बा ओकर बाल।

       मूँड़ सजावय बड़का फेटा, खोंचय कलगी दिखय कमाल।।

दूसर हे-

        लाल तिलक वो माथ लगावय, झुलै सोनहा बाली कान।

        दुनो हाथ मा चाँदी चूरा, चमक बढ़ावय ओकर शान।। पृ. 29

         रमायन म पढ़े सुने ल मिलथे कि लंका जाये बर श्री राम जी समंदर ले रद्दा माँगथे, विनती करथे, फेर समंदर ह चिटिक अनसुना कर देथें, तब भगवान राम क्रोधित हो जथे... अइसन त्रेतायुग के सुरता ए डाँड़ पढ़त आ गइस-

       नइ देवय जब चाबी प्रहरी, दय कनपट ला ओकर झोर।  पृ.33

        जन हितैषी अउ संवेदना ले भरे गुन के चित्र देखव-

          केलवली कर कहय बीर हा, मानव माखन हमरे बात।

          तालाबेली जनता मन हें, मरत हवय बिन बासी भात।।

            जनमभूमि बर मर मिटना शान के बात होथे, जे जनमभूमि ल ताक म रख सुवारथ ले जीथें, उन ल धिक्कारत कहिथे-

            ओकर जीना बिरथा जेला, महतारी बर नइये प्यार।

            काम जेन भुइँ के नइ आवय, वो जिनगी ला हे धिक्कार।।

           इही किसम ले युद्ध के फोटू खींचे म मितान जी बड़ सक्षम हें।  

           हो जयँ फाँकी-फाँकी धड़ मन, कतको छर्री-दर्री होय।

           हाड़ा-गोड़ा खुदे पिघल जय, करयँ बुता सब धीरज खोय।। पृ. 48

          मैं पहिली च लिखे हँव कि बाहिर भीतर दूनो ठउर म देश ल सच्चा सपूत के जरूरत हे। इही जरूरत ल भाँपत मितान जी ए गाथा लिखे के पाछू के संदेश देवत देशभक्ति के भाव युवा मन के मन म जगही के आस सँजोथें।

         जब-जब आही संकट भुइयाँ, बइरी मन करही अतलंग।

         सिंह गाथा हा चेलिट मन के, तन मा भरही जोश उमंग।।

        काव्य सौंदर्य के सबो माप म खरा उतरत ए संग्रह स्वतंत्रता संग्राम के अउ बीर मन के गाथा ल सरेखे बर प्रेरणा बनही। 'हीरा सोनाखान के' ए संग्रह नवा पीढ़ी ल अपन आजादी के इतिहास ल जाने के मौका दिही, उहें देश हित बर हरदम एक रेहे के संदेश बगराय म सुफल रही, ए मोला पूरा अजम हे। दू-एक जगह के वर्तनी म चूक जरूर दिखिस। खंडकाव्य के दृष्टि ले एला थोरिक मिहनत अउ गुनान करके जरुरी सर्ग म बाॅंटे के उदिम होना रहिस हे। जेला मितान जी कर सकत हें। नवा संस्करण ह सर्गबद्ध  संग्रह के रही एक उमीद हे।

         आखिर म मनीराम साहू मितान जी ल ए संग्रह बर बधाई पठोवत, घर-परिवार अउ समाज बर उँकर लिखे संदेश ले भरे दू डाँड़ ल लिखना चाहत हँव, काबर कि दमदार घर परिवार अउ समाज ले ही देश घलव दमदार बनही।

         सुमता के संदेश, बाँटबो घर-घर जाबो।

         मुटका असन बँधाय, एकता अलख जगाबो।।

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किताब : हीरा सोनाखान के (खंडकाव्य)

रचनाकार : मनीराम साहू 'मितान'

प्रकाशक : वैभव प्रकाशन रायपुर (छत्तीसगढ़)

 प्रकाशन वर्ष : 2018

मूल्य : 100/-

पृष्ठ सं.  : 64


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पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

जिला बलौदाबाजार-भाटापारा छग

मो. 6261822466

पुस्तक समीक्षा -* आल्हा छंद - जीवनी (छत्तीसगढ़ के छत्तीस साहित्यकार




 *पुस्तक समीक्षा -*  

आल्हा छंद - जीवनी (छत्तीसगढ़ के छत्तीस साहित्यकार)

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   आल्हा छंद ले भक्तिकाल म भक्तिभाव ले अपन ईष्टबर, गुरु वंदना के पद, स्तुति बर छंद बहुत रचे हावँय| जगनिक ह आल्हा छंद  म सुग्घर पद सृजित करे हवँय| आल्हा के शौर्य वर्णन ल वीर भाव( विरता के भाव ) म रचे के कारण ही ए छंद के नाम वीर हर पात्र के नाम म *आल्हा छंद* पड़गे| जबकि ए तो वीर छंद आय |


आल्हा छंद*   दू डाँड़ के  सम मात्रिक छंद आय, एकर खास विशेषता हवय के ए छंद के विधान 16-15 के भार ले कुल 31मात्रा होथे अउ आखिर म गुरु लघु के होय म गायन ले माधुरता उत्पन्न होथे| वीर भाव म शौर्य लिए प्रयोग ले छंद कर्ण प्रिय अउ हृदय ग्राह्य होगे हे| | 

   भक्तिकाल के विषय परिस्थिति अलग रहीस | ए काव्य हर वर्तमान माध्यम ले कहि सकत हवन केभविष्य ल सँवारना हे  तव वर्तमान के जानकारी रहय| आज के पीढ़ी ल अपन पुरखा मन के थाती के ज्ञान होना चाही|

   इहाँ संत महात्मा, समाज - सुधारक, क्रांतिकारी,स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोक कलाकार,राजनीतिक छवि वाले मनखे मन, पत्रकार , साहित्यकार अउ आने आने क्षेत्र के ख्याति वाले पुरोधा मन अपन अपन विधा म, क्षेत्र म सुरुज कस अँजोर बगराय हें| जेकर ज्ञान अँजोर हर कई बछर तक नवा पीढ़़ी ला रद्दा देखाही| 

कुछ साहित्यकार  हरि ठाकुर, डाॕ बलदेव साव,डाॕ परदेशीराम वर्मा, सुशील यदु,जे आर सोनी, सुशील भोले,चोवाराम बादल, मनीराम साहू 'मितान', लोक नाथ साहू 'ललकार' आदि मन गद्य अउ पद्य म इन पुरोधा मन के गाथा, कृतित्व, व्यक्तित्व ल उकेरे के काम करे हें| उही मन म बोधन निषाद जी के नाम घलो शामिल होगे|

अल्हा छंद म सृजित पहली कृति आय|

  आल्हा छंद - जीवनी म छत्तीसगढ़ के 36 (छत्तीस ) साहित्यकार मन के जीवन वृत्त ल जाने बर मिलही|सृजित काव्य हर  छत्तीसगढ़ी भाषा के विशेष रुप लिए कभू शौर्य के तव कभू परिचयात्मक पद मन समाय हवँय|  

 ए मा विविध  कवि लेखक साहित्यकार मन के गाथा हर छंद बद्ध हे|


सरस्वती वंदना- 

जय हो शारद माता तोरे तहीं ज्ञान के भण्डार |

मँय अज्ञानी लइका आवँव, मोरो बिनती ला स्वीकार||

हे जगदम्बा आदी भवानी,हँस हरे माँ वाहन तोर|

एक हङथ मा बीना सोहे, एक हाथ मा ज्ञान अँजोर||



एक छंद देखन-

छत्तीसगढ़ राज के बेटा, नाम रहिन हे हीरा लाल|

लिखिन व्याकरण छत्तीसगढ़ी, छोट उमर मा करिन कमाल||

तीस रुपैया महवारी मा,करिन सहायक शिक्षक काम|

बिलासपुर के स्कूल प्राथमिक, बना डरिस विद्या के धाम||

शुरु करिन हे गायन वादन,रहै इँखर वो बड़ विद्वान|

अपन लगन महिनत के पाछू, हीरा जी पाइन सम्मान||


अइसने बढ़िया बढ़िया शब्द मन के संयोजन ले ये कृति हर पढ़े पढ़े के मन करथे|


एक अउ छंद देखन-


महानदी बोहावत सुग्घर, कल -कल - कल- कल सुन लौ धार|

राजिम नगरी तीर बसे हे, गाँव चँद्रसुर हे चिनहार||


चित्र कला अउ मूर्तिकला मा, पारंगत शर्मा विद्वान|

नाट्य कला के सुग्घर ज्ञाता, बने सिखाइन नाटक ज्ञान||

ग्रंथ लिखिन अठ्ठारह ले जादा, छत्तीसगढ़ी हिंदी लेख|

काव्य दान लंला बहुचर्चित,उपन्यास नाटक ला देख||

विक्टोरिया वियोग लिखिन अउ, सतनामी के भजन सुनाय|

छत्तीसगढ़ी रामायण अउ, श्री रघुनाथा गुण बरसाय||

अइसने अइसने घात नीक छंद बद्ध पद मन मा बंध मन मा रचना हर अपन डहर खीचते हवय|


भारत भुइयाँ- के छत्तीसगढ़िया सपूत मन के एक ले एक छत्तीस महान विभूति मन के जीवनी पढ़ सकत हवन|


गाँनी टोपी पहन पजामा, छाता धरै हाँथ मा एक|

मिलनसार सब ला वो चाहय, काम करै वो जन बर नेक||


कोदू राम समाज सुधारक,मानवता के बनिस मिसाल|

संस्कृत निष्ठ व्यक्ति अवतारी, भारत भुइयाँ के ये लाल||

 गोठ सियानी लिख कुण्डलिया, आडम्बर ल दूर भगाय|

छत्तीसगढ़ी दलित कहाये,ये गुरुजी गिरधर कविराय||

कुछ एक बानगी अउ देखन वीर छंद मा-

माटी पुत्र दुलरवा बेटा,माटी के करके गुणगान|

छत्तीसगढ़ी गीत लिखिन हे,अउ किसान के करिन बखान||


छत्तीसगढ़ी काव्य गगन मा, मेत्तर साहू जब आय|

सुरुज बरोबर चमकिन वो तो,छठी दशक मा नाम कमाय||

उही बछर मा एक पत्रिका,मासिक निकलय बड़ अनमोल|

होवत रहै प्रकाशित रचना,सबले जादा गुरतुर बोल||

संगी भागी रथी तिवारी, नरसिंह जी


ये कृति हर छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य ल पोठ करही|

 *काव्य तत्व* मन के बहुत सहज रुप म प्रयोग होय हे|

अलंकार ले युक्त छंद मन अनुपम अनुभूति देवत हें| 

अलंकृत शब्द, भाव लालित्य मन अलौकिक अउ शास्त्रीय होकर के भी मानवीय संवेदना म पाग धरे रस म भिंजोवत हें|

अनुप्रास, उपमा अलंकार , ध्वन्यात्मकता हर मनमोहत हे|

     वइसे तो कवि के छंद म ए हर चौंथा कृति आय| एकर पहली भी ओमन के "अमृतध्वनि छंद संग्रह" "छंद कटोरा" अउ "हरिगीतिका " प्रकाशित हो चुके हे| आपमन  छत्तीसगढ़ी भाषा म लिखइया एक स्थापित कवि आवव|


      बोधन राम निषादराज 'विनायक' जी के पेशा कहन तव   छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग म व्याख्याता के पद "शास.उ.मा.वि.सिंघनगढ़" म पदस्थ हावँय| 


ए कृति हर छत्तीसगढ़ी भाषा के कोठी ल भरत हे, छत्तीसगढ़ी भाषा - साहित्यकार मन के विकास म उपयोगी सिद्ध होही| नवा पीढ़ी मन ल सुग्घर साहित्य लिखे पढे़ बर रद्दा दिखाही अउ पाठक मन के दिल ल छूही अइसे विश्वास हे|


मै उँकर उज्जर जिनगी के कामना करत बहुत बहुत बधाई देवत हँवव|


कृति-आल्हा छंद - जीवनी (छत्तीसगढ़ के छत्तीस साहित्यकार)

छत्तीसगढ़ी में ;

 *छत्तीसगढ़ राज भाषा आयोग* डहन ले प्रकाशित

 मुद्रक- छत्तीसगढ़ संवाद


 *छंदकार-* 

बोधन राम निषाद 'विनायक'

स/ लोहारा जिला कबीरधाम

मूल्य-दू सौ रुपिया


समीक्षक- *अश्वनी कोसरे

कवर्धा कबीरधाम

छत्तीसगढ़

बहू हाथ के पानी ‘ – खुशहाल घर परिवार के प्रतीक आय – पोखनलाल जायसवाल

 बहू हाथ के पानी ‘ – खुशहाल घर परिवार के प्रतीक आय – पोखनलाल जायसवाल


छत्तीसगढ़ी साहित्य दिनोंदिन गद्य साहित्य ले भरत जावत हे। पाछू कुछ बछर ले छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य म बढ़िया लेखन होवत हे। पुरखा साहित्यकार मन छत्तीसगढ़ी साहित्य ल बड़ जतन ले सिरजाय हें। आज उँकर दे थरहा ले रोपे सजोर पउधा मन के फरे-फूले के दिन आगे हे। कुछ पुरखा मन सरग ले अशीष देवत हें, त कुछ मन छात-छात हाथ धरा के सिखोवत हें। अपन पुरखौती ल धरवट सहीं सहेज के रखे के लइक बनावत हें। गीत कविता के सकला (संग्रह) बड़ निकलत हे। स्वागत करे के हे, फेर इही मन थोरिक अउ मिहनत करके गद्य साहित्य के रद्दा ल चतवारहीं, त छत्तीसगढ़ी के मान अउ बाढ़े लगही। अभी गद्य साहित्य के धरवट कमती हे। ए कमती ल पूरा करे के जुम्मेदारी तो लिखइया मन के हे। जे लिखत हे, उँकरे ले आशा करे जा सकत हे। गद्य लिखे के उदिम करहीं त खुदे के विश्वास बाढ़ही। आज छपास बीमारी के चलत कुछ मन मिहनत ले बाँचे के उदिम करत हें, एकर ले भागत हें, घलव कहे जा सकत हे। गद्य साहित्य लिखे बर समय जादा चाही। कतकोन मन इही समय के रोना रोथें, अउ अपन क्षमता ल कम आँक लेथें। कुछ मन अपन कमजोरी ल छुपाय बर यहू कहे लग गेहें कि अब लोगन तिर पढ़े बर समय नइ हे। लम्बा-लम्बा कहानी अउ लेख ल पढ़े ले असकटाथें। क्रिकेट के पंडित मन आजो असली खिलाड़ी उही ल मानथें, जेन खिलाड़ी टेस्ट मैच खेल लेथे। वइसने सपूरन साहित्यकार बने बर पद्य के संग गद्य के चेत करे ल परही। कुछ गद्य साहित्य म काम तो होय हे, फेर डायरी ले किताब के शिकल म नइ आ पावत हे, यहू लागथे। छत्तीसगढ़ी पत्र-पत्रिका के कमती घलव ह एक ठन वजह हो सकत हे। साहित्य सिरिफ गीत कविता लिखई ह नोहय। यहू ल सबो लिखइया मन ल समझे ल परहीं। बेरा के संग लेखन के विषय ल बदलत समाज हित म लिखे के जरूरत हे। साहित्य अपन समे के समाज के रपट आय। कोनो समे के साहित्य ओ समे के समाज के बारे म जानबा देथे। अपन समे के समाज के उत्थान अउ समाज म व्याप्त बुराई अउ कुरीति मन के नाश बर लिखई साहित्यकार के धरम आय। पारिवारिक अउ सामाजिक चेतना बर लिखइया ल समाज हाथों-हाथ उठा लेथे। जब-जब कहानी अउ उपन्यास के बात आथे, कथासम्राट मुंशी प्रेमचंद जी सुरता करे जाथे। मुंशी प्रेमचंद जी के बेरा म समाज म कतकोन समस्या रहिन। जेकर ऊप्पर उन खूब लिखिन। कथा-कहानी अउ उपन्यास के चर्चा प्रेमचंद के बिगन अधूरा माने जाथे। उँकर मुताबिक 'उपन्यास मानव के चरित्र का चित्रण है।' आजो कतकोन समस्या हें, स्वरूप भले बदले हे। किसान के पीड़ा, जात-पात, अमीर-गरीब, जइसे कतको किसम के असमानता अउ भेद समाज ल घुना सहीं खावत हे। बट्टा लगावत हे। आगू बढ़े ले रोकत हे। एकर ऊप्पर लिखे के जरूरत हे। लिखइया के मन हे त विषय के कमती नइ हे। रचनाकार पहिली समाज के इकाई होथे, एकर नाते वो समाज म रहिथ अउ समाज ल देखथे। समाज के जम्मो बात ले वो परिचित होथे। अइसन म अपन चिंतन ले समाज उत्थान बर कुछ सोच सकथे अउ कलम चला के समाज ल दिशा अउ गति दे के बुता कर सकथे।

        तुलसीदास जी मन अपन लिखई ल स्वांतःसुखाय जरूर बताय हें, फेर उँकर लिखना जग बर वरदान बनगे हे। आजो स्वांतःसुखाय लिखे म कोनो आपत्ति नइ हे। फेर स्वांतःसुखाय ले उबर के लिखे के बेरा हे। तुलसीदास जी के स्वांतःसुखाय ल अपनाय के जरूरत हे। आज स्वांतःसुखाय के मायने बदल गे हे या फेर लिखइया मन एकर भाव ल बदल डारे हें।

         जिनगी म मया परेम जरूरी हे। फेर मया-परेम के जउन गीत लिखे जाथे वो मन चरदिनिया आय। मन बहलाव आय। मया-परेम जिनगी म होना जरूरी आय, फेर एकर ले पेट नइ भरय। पेट भरे बर उदिम करना पड़थे। सब जानथें अउ मानथें। अइसन म लेखन निच्चट मया-परेम बस म समटाय-सनाय झन रहय।

        परिवार के जम्मो मनखे के पेट भरे के संसो घर के माई मुड़ी ऊपर रहिथे। पारिवारिक अउ समाजिक जिम्मेदारी घलव उँकरे मुड़ म रहिथे। एक कोति कन्या दान करथे तव दूसर कोति बहू हाथ के पानी पिए के साध घलव मरथे। मनखे के इही सामाजिक अउ पारिवारिक जुम्मेवारी के निर्वाह करत मनखे के मनोभाव ल उकेरे के बेरा हे। काबर कि आज घर-परिवार बिखरत जावत हे। समाज म बड़े दरार आगे हे। ए दरार दिनोंदिन परिवार ल सुरसा बरोबर लीले बर तियार हे। अइसने म रचनाकार अपन सामाजिक सरोकार निभावय त साहित्य सिरतोन म समाज के दशा अउ दिशा ल बदल सबके हित कर पाही।

      ‘बहू हाथ के पानी’ श्री दुर्गा प्रसाद पारकर के लिखे एक उपन्यास आय। जेकर कथानक अउ घटनाक्रम छत्तीसगढ़ के आरो देथे। इहाँ के सामाजिक तानाबाना अउ आर्थिक पहलू ल अपन भीतर समेटे हवय। अइसे भी उपन्यास ऐतिहासिक घटना नइ ते सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक विषय अउ विसंगति के संग साँस्कृतिक मूल्य मन ल समोखे रहिथे।

       छत्तीसगढ़िया के भलमनसाहत हे, दूसर के दुख पीरा ल अपन मान सहारा दे के ठगाय के चित्रण हे, त परदेशिया मन के चतुरई अउ ठगफुसारी ल वर्णन कर उँकर ले सावचेत रहे के संदेश हे। छत्तीसगढ़ ल चरागाह समझत इहाँ कतको चिटफंड कंपनी आइन अउ सब ल लूट भगागें। बाँचे रहिगे त पछतावा अउ नता-गोत्ता म अनबनता। अपने ले विश्वास टूटगे। पढ़ई-लिखई ले जिनगी कइसे सुधरथे एकर साखी हे ए उपन्यास। छत्तीसगढ़ के सामाजिक ताना-बाना अउ बर-बिहाव ल लेके इहाँ के परम्परा अउ लोक मानता देखे बर मिलथे। देशभक्ति के भाव हे त लइकई मति म लइका मन ले होवय गलती, गँवई-गाँव म नशाखोरी, अंधविश्वास, रोग-राई के डक्टरी इलाज छोड़ बइगा-गुनिया के चक्कर, शहरी वातावरण के नकल करत खेती-खार ल बिगाड़ भेड़ चाल चलत कंगाल होवत छत्तीसगढ़िया के दुर्दशा के संग घर बँटवारा के पीरा अउ नता-गोत्ता सुवारथ के भेंट कइसे चढ़थे, ए सबो वर्णन मन ‘बहू हाथ के पानी’ ल अपन समे के चर्चित उपन्यास के श्रेणी म खड़ा करथे। बहू हाथ के पानी सुनतेच मन म एक साध अउ अभिलाषा जागथे। इही साध ल सँजोए दुर्गा प्रसाद पारकर जी के लिखे ए पारिवारिक उपन्यास के भाषा शैली म कथानक के हिसाब ले प्रवाह दिखथे। उपन्यास म आय जगहा के नाँव अउ गायत्री परिवार के संग पंथ छत्तीसगढ़ के परिवेश ल बतावत हे। छत्तीसगढ़ी के संग अँग्रेजी के शब्द मन के बढ़िया प्रयोग होय हे। मुहावरा अउ हाना मन के सुग्घर प्रयोग मिलथे। पात्र मन संग होय मुँहाचाही म व्यंग्य के सुर घलव दिखथे। संवाद मन म बढ़िया गढ़ाय हे। चरित्र मन के भाव बढ़िया ढंग ले उभरे हे। ए उपन्यास म नारी पात्र मन अतेक जादा उभरे हें, कि ‘बहू हाथ के पानी’ ल नारी-विमर्श के उपन्यास कहे जा सकथे। छत्तीसगढ़ के नारी के सबो रूप के दर्शन पाठक ल ए उपन्यास म होही।

       सरला ए उपन्यास के मुख्य किरदार आय। जउन सुशील, सुसंस्कारित, समर्पण के मूर्ति, सुशिक्षित आधुनिक नारी के अगुवाई करथे। उहें निरुपमा बहू के जम्मो भलमनसई ल ताक म रख के अंधविश्वासी अउ अप्पढ़ सास के पात्र संग नियाव करत दिखथे।

       दुलारी धर्मपरायण, सास ससुराल के हितैषी, पतिव्रता, जमाना के संग चलइया विचारवान अउ साहसी नारी ए। हंसा घर के लाज ल सम्हाल करइया अउ सहनशील नारी के संग बड़ मिहनती अउ अपन परन पूरा करइया। बैसाखिन जइसन ललचहिन अउ स्वार्थी बहू के आय ले घर परिवार के सुमता सुलाव ल गरहन धर लेथे, घर के बिगाड़ तय हो जथे। त सरला जइसे सरल सुभावी नारी के रहिते घर सरग जनाथे अउ नता गोत्ता म मया-परेम के संग विश्वास घलव अपन जरी खोभे रहिथे। तब जाके कहूँ सियान मन कहिथे- ‘बहू हाथ के पानी’ पिए के साध अब पूरा होवत हे।

        कोनो सगा पहुना के आय ले जेन घर म स्वागत म ‘बहू हाथ के पानी’ मिलगे त समझव के वो घर खुशहाल हे अउ वो परिवार समृद्ध अउ संस्कारित परिवार आय। तभे तो बर-बिहाव म नइ आ पाय नता गोत्ता अउ परोसी मन कहिथे- ‘बहू हाथ के पानी’ पिए के आस म डहरचलती आय हन।

       छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया के भूलभूलैया म छत्तीसगढ़िया कइसे भुलाय रहिथें, एकर घलव ए उपन्यास म बढ़िया चित्रण मिलथे। मुश्किल घरी म परदेसिया ल छइहाँ देवइया गउटिया कइसे अपने घर ले बेघर होगे अउ परदेसिया बलदाऊ कइसे चतुरई ले घर मालिक बन गे। 

       गउटनिन ल अइसन अलहन के डर सतात रहिस हे, तभे तो उन सावचेत करत कहे रहिन--परदेसिया मन ऊपर जादा भरोसा झन कर दाऊजी! फेर नइ माने। उहें कपटी परदेसिया बलदाऊ के अंतस् के गोठ ल देखव-

      'छत्तीसगढ़िया मन परबुधिया होथे, अपन दिमाक तो कभू लगाबे नइ करय। दूसर ऊपर झटकुन भरोसा कर लेथें।'

      आज देश भर छत्तीसगढ़ के नवा पहिचान बनत हे जउन गरब करे के लइक नइ हे। वो पहिचान बर कतको शर्मिंदा होवत हे। मंद महुआ पिये बर अव्वल बनत हें छत्तीसगढ़िया मन। अउ सरी गाँव के हाल बेहाल होवत हे। नान्हे लइका मन घलव एकर जाल म फँसत हें। यहू कोति उपन्यासकार के कलम चलना सराहनीय आय, बस समाज एकर ले मुक्त हो जय।

        इही मंद महुआ अउ बड़का घर दुआर के चक्कर म लोगन अपन पुरखौती चिह्नारी खेती बिगाड़े म तुले हें। करमइता जीव अलाल होवत हे ए संसो के संग चिट फंड के जाल म फँसे मनखे ल सावचेत करे के दिशा म 'बहू हाथ के पानी' नवा पीढ़ी ल उबारही कहे जा सकत हे।

        आज जब नवा पीढ़ी जेन ३५-४० बछर के हे वो नशा के दलदल म फँसे हे, उँकर लइका शिक्षा ले दुरिहावत हे। जबकि उन ल अनिवार्य शिक्षा के रूप म मुफ्त म किताब अउ स्कूल ड्रेस मिलत हे। उन तक शिक्षा के महत्तम अउ जरुरत ल बढ़िया ढंग ले रखे म ए उपन्यास के बड़ भूमिका रही। उँकर मुँदाय आँखी ल खोलही अइसे आशा करे जा सकत हे।

        ए किताब अपन उद्देश्य ल पूरा करे म सक्षम हे। उपन्यास के गोठ बात अउ मुँहाचाही ल पढ़के अइसे लगथे कि ए तो हमरे तिर तखार के किस्सा आय। बस प्रूफ़ रीडिंग के कमी के चलत ल पाठक के मजा किरकिरा हो जवत हे। ए बात ल अनदेखा कर दिए जाय त उपन्यास पारिवारिक अउ सामाजिक उत्थान बर मील के पत्थर साबित होही। प्रसंग अउ पात्र के मुताबिक संवाद गढ़ना अउ ओमा वो भाव उकेर लेना उपन्यासकार के लम्बा लेखकीय अनुभव के कमाल आय।

         ए उपन्यास ले धन-धान्य ले भले पूरे धरती के धनवान मनखे मन शहरी चकाचौंध म चौंधियाए अपन पाॅंव म कइसे घाव करथें? पुरखौती जमीन बेच भूमिहीन होय के रद्दा म बढ़थें। समझे जा सकथे। नशा के फेर म फॅंसे मन के लड्डू खाथें। हवा म उड़े लगथें। उनकर बर चेतवना हे। सांस्कृतिक अउ सामाजिक परंपरा के संग जमीन ले जुरे रहे के संदेश घलव ए उपन्यास म हावय। शिक्षा ले तरक्की मिले के गारंटी हे। नवा सोंच पैदा करे अउ विपत म घलव आशा के जोत बारे (जलाए) रखे के सकारात्मक संदेश हावय।


रचना- बहू हाथ के पानी

रचनाकार- दुर्गा प्रसाद पारकर

प्रकाशक- आशु प्रकाशन रायपुर

प्रकाशन वर्ष- 2022

पृष्ठ सं. 213

मूल्य- 250/-

कापीराइट - लेखकाधीन


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पोखन लाल जायसवाल पठारीडीह पलारी

जिला बलौदाबाजार-भाटापारा छग. 

पिन 493228

मो.626182246

व्हाट्सएप 9977252202

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*नारी सशक्तिकरण बर मील के पथरा बनही : गोदावरी*

 *नारी सशक्तिकरण बर मील के पथरा बनही :  गोदावरी*

          छत्तीसगढ़ धन-धान्य ले भरे-पूरे राज आय। अपन संस्कृति अउ लोक-परम्परा के संग खनिज-संपदा के मामला म हमर छत्तीसगढ़ राज कतको राज मन ले आगू हे। अमीर प्रदेश के गरीब जनता के विडंबना आय कि उन मन शिक्षा ल बरोबर महत्व नइ दॅंय। शिक्षा के अभाव ले आने प्रदेश ले आये मनखे मन इहाॅं राज करे धर लिन। पाछू कुछ बछर म लोगन के चेत शिक्षा बर गे हे। खासकर के नारी शिक्षा बर। मोला अपन प्रायमरी स्कूल के दिन सुरता आवत हे, जब प्रभात फेरी म निकलन त एक ठन नारा 'नारी पढ़ेगी, विकास गढ़ेगी' खूब लगाय हन। जेन आज सोला आना सच आय। जेकर आरो डॉ शैल चंद्रा के लिखे उपन्यास 'गोदावरी' म घलव हे।

      बुधारू तोला ऐतराज नइ होवे त तोर बड़का बेटी माधुरी ल अपन गाॅंव ले जावॅंव का? माधुरी मोरे तिर म रही के पढ़ही-लिखही। तेंहा तो बेटी मन घलोक पढ़ात नी हस। पृ. 25

         इहें यहू पढ़के बने लागिस कि लागमानी मन म मया दुलार बचे हावय। अड़चन के बेरा म साहमत बर आगू आथे। अइसने ले ही रिश्ता अउ लागमानी म मया बाॅंचे रहिथे।

         डॉ शैल चंद्रा खुदे पढ़े-लिखे विदुषी नारी आय। जेन सरकारी हायर सेकेण्डरी स्कूल म प्राचार्य हें। छत्तीसगढ़ के साहित्य अगास के चमकत बड़का तारा ऑंय। हिंदी लघुकथा लेखन म उॅंकर राष्ट्रीय पहिचान हे। लघुकथा जेन लघुता अउ मारक क्षमता बर साहित्य म पहचाने जाथे, वो उॅंकर लघुकथा म देखे जा सकथे। उन लघुकथा के अलावा कविता अउ कहानी लिखथव। उॅंकर रचना मन के प्रसारण आकाशवाणी रायपुर ले सरलग होवत रहिथे। हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी म डॉ शैल चंद्रा के लिखे नौ किताब छप चुके हें। 

        समीक्षित ए किताब 'गोदावरी' उपन्यास विधा के किताब आय। जौन ल किताब के भीतर शीर्षक पन्ना म लघु उपन्यास लिखे गे हे। लघुकथा जे साहित्य म कथा(कहानी) ले अलग एक विधा आय। वइसन लघु उपन्यास नाव के कोनो विधा नी होय। इहाॅं लघु शब्द उपन्यास के आकार बर बउरे गे शब्द आय। डॉ शैल चंद्रा 'गोदावरी' म नारी के संघर्ष अउ सामाजिक मान्यता (मानता) के द्वंद्व ल रखत एक स्त्री के सम्मान ल स्थापित करे के पुरजोर कोशिश करे हे। समाज बर संदेश भी हे कि नारी अपन संकल्प ले हर मुकाम पा सकथे। उन ल कमती नी ऑंकना चाही। उॅंकर रद्दा के बाधा नी बनना चाही। बढ़ावा देना चाही।

         डॉ शैल चंद्रा समाज के जम्मो सोच ल अपन छोटे से उपन्यास म माला के मोती बरोबर पिरोय के सुग्घर प्रयास करे हे। समाज के पूरा मनोविज्ञान उपन्यास म लक्षित होवत हे। छत्तीसगढ़ म प्रेम मया करइया मन उढ़रिया भाग कइसे जिनगी जीथे। मया के रद्दा म का बाधा आथे? अउ दू मयारुक कइसे ढंग ले जिनगी गुजारथें। उपन्यास म मया के संयोग अउ वियोग दूनो के सुग्घर समन्वय सराहे के लाइक हे। गोदावरी अउ सागर के मया ल जेन उॅंचास दे गे हे, वो आदर्श ए। मया लुटाना जानथे। फिल्मी दुनिया ले हट के ए आदर्श गढ़ई डॉ शैल चंद्रा के कल्पनाशीलता के कमाल आय।

         २००७ म नारी विमर्श के एक अउ उपन्यास आय रहिस 'बनके चॅंदैनी'। जे सुधा वर्मा जी के कृति आय। एमा नारी के पीरा, द्वंद्व, अउ वत्सलता के संग मया म धोखा अउ छलावा ले जिनगी के समाय हे। आज समय बदल गे हे। बदले बेरा म नारी अबला नइ रहिगे हे। अब नारी सशक्तिकरण के जुग आय। इही नारी सशक्तिकरण के बीड़ा ल आगू बढ़ाय म 'गोदावरी' मील के पथरा साबित होही।

         साहित्य समाज के दर्पण कहाथे त समाज बर अपन उपादेयता ले कहाथे। समाज के बने अउ घिनहा दूनो किसिम के बात ल सरेखत समाज उत्थान बर जेन संदेश साहित्य देथे। उही ल समाज हाथों-हाथ लेथे। साहित्य अपन समय के समाज के रीत-रिवाज, मानता, भेदभाव, कुरीति अउ प्रथा (कु), जम्मो प्रकार के विसंगति ऊपर प्रहार करथे त सहराय के लाइक गोठ ल सहराथे।

       बालविवाह, दहेज, बेटा-बेटी म भेद, सामाजिक विद्रुपता जइसन सामाजिक बुराई मन ल उपन्यास म छुए के साथ समाज ले दुरिहाय के उदिम हे। उहें विधवा के विवाह कराके एकाकी जीवन के विडंबना अउ त्रासदी ले नारी ल उबारे के सुग्घर जतन समाज ल नवा दिशा दिही। नान्हे उमर म विधवा होय पाछू जिनगी कइसे नरक सहीं हो जाथे अउ एक-एक पल कइसे जुग बरोबर लागथे। एकर मर्मस्पर्शी चित्रण के संग समाज ऊपर तंज कसे म डॉ शैल चंद्रा के लेखनी कहू मेर कसर नी छोड़े हे। नारी ल सम्मान के संग जिऍं बर नारी च ले लड़े ल परथे। उहें ए उपन्यास म भारतीय नारी के संस्कार अउ कर्तव्य परायण ल बढ़िया ढंग ले उकेरे गे हे।

      'नहीं सागर! तोर से अब मैंहा सात जनम का अब चौदह जनम तक नी मिल सकौं। काबर कि मेंहा जेकर संग सात भांवर लेहॅंव, जनम जनम ओकरे रहिहॅंव...जनम जनम के साथ निभाहूॅं। सागर तोर मोर बस अतकेच के संग रहिस हे।'  पृ 53

       छत्तीसगढ़ के माटी के ममहासी अउ लोक परम्परा ल जीवंत रखे अउ नवा पीढ़ी तक हस्तांतरित करे म ए उपन्यास के योगदान सराहे जाही। मितानी परम्परा, तीजा-पोरा, जंवारा, उपास-धास के संग इहाॅं के संस्कृति के महत्तम ल सरेखना उपन्यास के एक खासियत हे। 

       माधुरी के कचहरी म नौकरी लगई ह अतका आसान नोहय , जतका बताय गे हे। आज कोनो भी नौकरी लगना अतका आसान नइ हे। इहाॅं भ्रष्टाचार ल बढ़ावा दे के बू आवत हे। हो सकत हे मोर समझ उहाॅं तक नी जा पावत हे, जेकर कल्पना लेखिका करे हें। 

      गोदावरी ह माधुरी ल क्लर्क बर कचहरी म नौकरी लगा दिस....पृ48

        उपन्यास अपन संग कतको उपकथानक लेके आघू बढ़थे। सबो उपकथानक के तार अइसे जुरे रहिथे कि पाठक ओमा बुड़ के एक गंगा स्नान के आनंद के अनुभूति करथे। डॉ शैल चंद्रा के लेखकीय अनुभव अतेक हे कि ओ ए उपकथानक मन ल थोरिक विस्तार देके उपन्यास ल अउ पठनीय बना सकत रहिन हे। कुछ अउ समय ले के उपन्यास के धार (उपन्यास के प्रकृति अनुरूप गति/प्रवाह) ल चिन के ठहराव देवत आघू बढ़ाना रहिस। जेकर ले मिठास बाढ़बे करतिस अउ एक सशक्त कथानक संग सशक्त उपन्यास हमर हाथ लगतिस। यहू बात हे कि हर लेखक के अपन एक सोंच अउ कल्पना होथे कि कोन रचना ल कइसे अउ कतका विस्तार देना हे। एकर अधिकार भी उन ल हे।

       मोला ए उपन्यास के भीतर वर्ण 'श' ल बउरे ले बाॅंचे के सायास उदिम करे गे हे लगिस।  सोभा, परेसानी, सहर, जबकि  लेखिका के नाॅंव म घलव 'श' आथे अउ शंकर बस ल सही लिखे गे हे। प्रूफ रीडिंग के अभाव म कुछ-कुछ वर्तनी त्रुटि हे, जौन ल अवइया संस्करण म सुधार लिए जाही एकर मोला पूरा भरोसा हे।

       किताब के मुख पृष्ठ आकर्षक हे, जेन उपन्यास के कथानक ल सपोर्ट करथे। एक कोति मयारुक मन के मया ल मान दे गे हे, त दूसर कोति दृढ़ संकल्पित नारी के उड़ान (सपना) ल घलव संजोए गे हे। कागज के क्वालिटी अउ छपाई स्तरीय हे।

       नारी संघर्ष के कथानक ले सुसज्जित नारी सशक्तिकरण ल बढ़ावा देत सुग्घर उपन्यास जेन म मया के पवित्रता ल नवा उॅंचास दे हे। अइसन सुग्घर उपन्यास के लेखन बर डॉ. शैल चंद्रा जी ल गाड़ा-गाड़ा बधाई !

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किताब - गोदावरी

लेखक - डॉ शैल चंद्रा

प्रकाशक - बुक्स क्लिनिक पब्लिशिंग बिलासपुर

प्रकाशन वर्ष - 2023

कॉपीराइट - लेखकाधीन

मूल्य- 150/-

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पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह, पलारी

जिला - बलौदाबाजार भाटापारा छग .

मोबा. - 6261822466

Tuesday 23 April 2024

छन्द के छ-ऑनलाइन गुरुकुल" के छन्द साधक मन के प्रकाशित पुस्तक*

 *विश्व पुस्तक दिवस के शुभकामना.....


*"छन्द के छ-ऑनलाइन गुरुकुल" के छन्द साधक मन के प्रकाशित पुस्तक*


(अ) “छन्द के छ-ऑनलाइन गुरुकुल के छन्द साधकों द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा में छन्दबद्ध लिखी गई किताबों का विवरण” 


छन्दकार - अरुण कुमार निगम   

संस्थापक, छन्द के छ ऑनलाइन गुरुकुल


“छन्द के छ”

(छन्द सीखे बर मार्गदर्शिका सह छन्द-संग्रह)

प्रकाशक - सर्वप्रिय प्रकाशन दिल्ली, वर्ष - 2015


छन्दकार - शकुन्तला शर्मा          

छन्द साधिका, सत्र - 1


“छन्द के छटा”

(छत्तीसगढ़ी छन्द संग्रह)

प्रकाशक - प्रयास प्रकाशन बिलासपुर, वर्ष - 2018


छन्दकार - रमेश कुमार चौहान  

छन्द साधक, सत्र - 1


1. दोहा के रंग

(छत्तीसगढ़ी भाषा में दोहा छन्द संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2016


2. “आँखी रहिके अंधरा”

(छत्तीसगढ़ी भाषा में कुण्डलिया छन्द संग्रह)

प्रकाशक - आशु प्रकाशन रायपुर, वर्ष 2018


3. “छन्द चालीसा”

प्रकाशक - आशु प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2018


4. “छन्द के रंग”

प्रकाशक - रमेश चौहान नवागढ़, वर्ष - 2019


छन्दकार - चोवाराम "बादल"

छन्द साधक, सत्र - 2   


1. “छन्द बिरवा”

(छन्द सीखे बर मार्गदर्शिका सह छन्द-संग्रह)

प्रकाशक - आशु प्रकाशन रायपुर, वर्ष 2018


2. “श्री सीताराम चरित”

(छन्दबद्ध महाकाव्य)

प्रकाशक - शिक्षादूत ग्रंथागार प्रकाशन नई दिल्ली, वर्ष - 2023


छन्दकार - आशा देशमुख     

छन्द साधक, सत्र - 2


“छन्द चंदैनी”

(छन्द संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2022


छन्दकार - कन्हैया साहू "अमित"  

छन्द साधक, सत्र - 2


1. जयकारी जनउला

(जयकारी छन्द मा जनउला संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2021


2. फुरफन्दी

(छत्तीसगढ़ी भाषा में बाल-साहित्य)

प्रकाशक - जी एच पब्लिकेशन प्रयागराज, वर्ष - 2023


छन्दकार - मनीराम साहू "मितान" 

छन्द साधक, सत्र - 3


1. “हीरा सोनाखान के”

(छन्दबद्ध प्रबंध-काव्य)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष 2018


2. “महा परसाद”

(छन्दबद्ध प्रबंध-काव्य)

प्रकाशक - रंगमंच प्रकाशन सवाई माधोपुर, वर्ष - 2021


3. “गजामूँग के गीत”

(दोहा-गीत संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2023


4. “छत्तीसगढ़ के मंगल पाण्डे वीर हनुमान सिंह”

(छन्दबद्ध प्रबंध काव्य)

प्रकाशक - शिक्षादूत ग्रंथागार प्रकाशन नई दिल्ली, वर्ष - 2023


छन्दकार - सुखदेव अहिलेश्वर    

(छत्तीसगढ़ी छन्द संग्रह)   

छन्द साधक, सत्र - 3


“बगरय छन्द अँजोर”

प्रकाशक - छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, वर्ष - 2022


छन्दकार - बोधनराम निषादराज   

छन्द साधक, सत्र - 4


1. अमृतध्वनि छन्द

(अमृतध्वनि छन्द संग्रह)

प्रकाशक - आशु प्रकाशन रायपुर, वर्ष 2021


2. “छन्द कटोरा”

(छत्तीसगढ़ी छन्द संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2022


3. “हरिगीतिका छन्द”

(हरिगीतिका छन्द संग्रह) 

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2023


छन्दकार - जगदीश हीरा साहू

छन्द साधक, सत्र - 4 


1. सम्पूर्ण रामायण

(छत्तीसगढ़ी भाषा में सार छन्द आधारित मनका)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2019


2. “छन्द संदेश”

(छत्तीसगढ़ी छन्द संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2020


छन्दकार - रामकुमार चंद्रवंशी 

छन्द साधक, सत्र - 6


1. “छन्द झरोखा”

(छत्तीसगढ़ी छन्द संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2020


2. “छन्द बगिच्चा”

(छत्तीसगढ़ी छन्द संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2021  

     

छन्दकार - शुचि भवि

छन्द साधक, सत्र - 6    

            

“छन्द फुलवारी”

(छत्तीसगढ़ी छन्द संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2022


छन्दकार - द्वारिका प्रसाद लहरे 

छन्द साधक, सत्र - 7


“छन्द गीत बहार”

(छत्तीसगढ़ी भाषा में छन्द आधारित गीत संग्रह)

प्रकाशक - तन्वी पब्लिकेशन्स जयपुर, वर्ष - 2022


छन्दकार - विजेन्द्र कुमार वर्मा

छन्द साधक, सत्र - 11


मनहरण घनाक्षरी छन्द 

(छत्तीसगढ़ी मनहरण घनाक्षरी छन्द संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2023


छन्दकार - धनेश्वरी सोनी "गुल"   

छन्द साधक, सत्र - 11


1. “बरवै छन्द कोठी”

(छत्तीसगढ़ी भाषा मा बरवै छन्द संग्रह)

प्रकाशक -  वंश पब्लिकेशन भोपाल, वर्ष - 2022


2. “सवैया छन्द संग्रह”

(छत्तीसगढ़ी भाषा मा सवैया छन्द संग्रह)

प्रकाशक - छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, वर्ष - 2022


(ब) “छन्द के छ-ऑनलाइन गुरुकुल के छन्द साधकों द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखी गई गद्य और पद्य की अन्य किताबों का विवरण” 


छन्दकार - चोवाराम "बादल"

छन्द साधक, सत्र - 2   


1. हमर स्वामी आत्मानंद

(छत्तीसगढ़ी के पहिली चम्पू काव्य)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2023


2. “रउनिया जड़काला के”

(कविता संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर,  वर्ष - 2014


3. “जुड़वा बेटी”

(कहानी संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2019


4. “बहुरिया”

(कहानी संग्रह)

प्रकाशक - आशु प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2022


5. “मैं गाँव के गुड़ी अँव”

(निबंध संग्रह)

प्रकाशक - छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग रायपुर, वर्ष - 2023


6. “माटी के चुकिया”

(बाल कविता संग्रह)

प्रकाशक - जी एच पब्लिकेशन प्रयागराज, वर्ष - 2023


छन्दकार - मनीराम साहू "मितान" 

छन्द साधक, सत्र - 3


“ओरिया के छाँव”

(गीत संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2015


छन्दकार - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

छन्द साधक, सत्र - 3


1. “गँवागे मोर गाँव”

(मुक्त कविता संग्रह)

प्रकाशक - महामाया प्रकाशक कोरबा, वर्ष-2015


2. “खेती अपन सेती”

(मुक्त कविता संग्रह)

प्रकाशक - आशु प्रकाशक रायपुर, वर्ष-2017


छन्दकार - महेन्द्र देवांगन "माटी"  

छन्द साधक, सत्र - 6


1. “तिज तिहार अउ परम्परा”

(छत्तीसगढ़ी निबंध संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2018


2. "माटी माटी के काया”

(छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2016


3. “पुरखा के इज्जत”

(छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह)

प्रकाशक -  आशु प्रकाशन, वर्ष - 2016


छन्दकार - बोधनराम निषादराज   

छन्द साधक, सत्र - 4


1. "मोर छत्तीसगढ़ के माटी"

(गीत संग्रह)

प्रकाशक - आशु प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2018


2. “भक्ति के मारग”

(भजन संग्रह) 

प्रकाशक - आशु प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2020


छन्दकार - जगदीश हीरा साहू

छन्द साधक, सत्र - 4 


मोर  सुग्घर गँवई गाँव”

(छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2022


अशोक धीवर "जलक्षत्री"

छन्द साधक, सत्र - 7


“जय गणेश भगवान”

(छत्तीसगढ़ी गद्य संग्रह)

प्रकाशक - दुर्गा वाहिनी अक्षर स्व सहायता समूह तुलसी (तिल्दा नेवरा) वर्ष- 2015


छन्दकार - मिनेश कुमार साहू 

छन्द साधक, सत्र - 7


“सगा पुतानी” 

(छत्तीसगढ़ी बाल साहित्य)

प्रकाशक - छत्तीसगढ़ राज भाषा आयोग रायपुर, 2021


छन्दकार - शोभामोहन श्रीवास्तव

छन्द साधक , सत्र - 8


“तैं तो पूरा के पानी कस उतर जाबे रे”

(छत्तीसगढ़ी गीत संग्रह)

प्रकाशक -  सर्वप्रिय प्रकाशन दिल्ली, वर्ष - 2021


राजकुमार चौधरी "रौना"

छन्द साधक, सत्र - 12


1. माटी के सोंध.  काब्य संग्रह। (पद्य) 

प्रकाशक - विचार विन्यास प्रकाशन सोमनी राजनांदगांव, वर्ष - 2016


2. “का के बधाई”  

(छत्तीसगढ़ी व्यंग्य संग्रह) 

प्रकाशक - विचार विन्यास प्रकाशन सोमनी राजनांदगांव, 2019


3. “पाँखी काटे जाही” 

(छत्तीसगढ़ी गजल संग्रह) 

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2022


छन्दकार कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

छन्द साधक, सत्र - 20


“कुदिस बेंदरा जझरँग-जझरँग”

(छत्तीसगढ़ी बाल कविता)

प्रकाशक - छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, वर्ष - 2022


2. “छत्तीसगढ़ के रतन बेटा”

(छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह)

प्रकाशक वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2022


3. “उटका पुरान”

(छत्तीसगढ़ी मुक्तक संग्रह)

विधा के नाम -छत्तीसगढ़ी मुक्तक संग्रह।

प्रकाशक - शुभदा प्रकाशन मौहाडीह जांजगीर, वर्ष - 2023


4. “खेतिहारिन” 

(छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह)

 प्रकाशक - शुभदा प्रकाशन मौहाडीह जांजगीर, वर्ष - 2024


*प्रस्तुति - अरुण कुमार निगम*

Monday 15 April 2024

एक रंग उछाह के ! चन्द्रहास साहू

 एक रंग उछाह के !

                                       चन्द्रहास साहू

                                     Mo 8120578897

मीटिंग सिराइस तब जी हाय लागिस। जम्मो अधिकारी के रंग बदरंग होगे रिहिस डी एफ ओ साहब के दबकाई चमकाई मा। धोबी पछाड़ कस धोए रिहिन साहब हा। वन तस्करी, अवैध कटाई अउ अतिक्रमण बड़का एजेंडा रिहिन। चौकीदार हा चोर होगे हाबे तब का रखवाली होही।कतको साहब देखे हंव मेंहा अपन बारा बच्छर के नौकरी मा। मीटिंग मा अब्बड़ कड़क अउ ईमानदारी के प्रवचन सुनाथे अउ दू नम्बरी बुता मा टोंटा तक बुड़े रहिथे। कोन जन ये साहब हा कइसन हाबे ते ...? अभिन तो नेवरिया आवय - नवा बईला के नवा सिंग चल रे बईला टिंगे टिंग।       

                            आजकल सिरतोन नौकरी करना अब्बड़ कठिन बुता होगे हाबे। अधिकारी मन कोनो मौका नइ छोड़े तुतारी मारे बर। फिल्ड के परेशानी ला कोनो नइ सुने। टारगेट पूरा करे बर कागज मा घोड़ा दउड़ाथे। पब्लिक के दबाव, नेता मन के प्रेशर अउ अधिकारी के टॉय-टॉय...घरवाली के चिक-चिक। कतका ला झेलबे ...? 

"अरे रेंजर साहू साहब ! दारू पी के चिल मारे कर। मीटिंग सीटिंग के टेंशन झन लेये कर अतका। थोकिन कुछु बात होये नही कि मरो जियो टेंशन लेथस।''

भलुक मेंहा मने मन मा गुनत रेहेंव फेर रेंजर नेताम साहब हा मोर मन के गोठ ला जान के किहिस।

"दारू पीये ले टेंशन नइ दुरिहाये नेताम जी ! भलुक शरीर ला नुकसान होथे।''

मेंहा समझाय लागेंव अउ उदुप ले फेर आरो आइस डीएफओ साहब जम्मो झन ला सेंट्रल हॉल मा फेर बलावत हाबे।

"अब का बांचगे फेर ..। अब का पूछही ...? जम्मो ला तो पूछ डारे रिहिन। फेर...?'' 

नेताम जी डर्रावत किहिस अउ सेंट्रल हॉल मा अमरगेंन जम्मो कोई। बड़का कुर्सी मा साहब बइठे रिहिस। आगू मा रंग गुलाल अउ मिठाई के डब्बा माड़े हे। 

"हम सब एक विभाग के है तो  सब लोग एक परिवार की तरह है। आओ, सब मिलकर होली मनाते है। हमारा मासिक बैठक इसलिये होली के चार दिन पहले रखा गया था। सबको हप्पी होली।''

"हप्पी होली सर !''

जम्मो कोई एक संघरा केहेन। अब सब स्टाफ संगी-संगवारी कस रंग गुलाल लगाए लागेन। चुटकी भर गुलाल साहब के माथ मा लगायेंव। साहब घला लगाइस अउ पोटार लिस। फारेस्ट के जम्मो अधिकारी मन अब संगी-संगवारी बरोबर मया के रंग मा रंगे लागेन। प्युन नगाड़ा बजावत रिहिस अउ डीएफओ साहब फाग गीत सुनावत रिहिस। रीना सीमा रेशमा मेडम मन घला कनिहा मटका-मटका के बिधुन होके नाचत हाबे। शर्मा जी घला अब शरमाए ला छोड़ देहे अउ मेडम मन ला रंग गुलाल मा बोथत हाबे।

साहब कोती ले जेवन के बेवस्था घला रिहिस। जम्मो कोई खायेंन अउ साहब हा मिठाई डब्बा देके बिदा दिस। महूँ हा वाश रूम मे जाके फ्रेश होयेंव अउ घर लहुटे के तियारी करेंव। अब मोर गाड़ी जुन्ना सर्किट हाउस ले पचपेड़ी नाका कोती दउड़े लागिस। उदुप ले गोसाइन के गोठ के सुरता आगे। रंग गुलाल,हरवा हार, पिचकारी ले आनबे। ........अउ मोर पुचपुचही बेटी हा राधा बने के जम्मो सवांगा लानबे पापा कहिके फरमाइश करे हाबे। मोर टूरा घला कहाँ कमती रही ..?  वोहा तो छलिया किसन आवय सिरतोन। जब ले जानबा होइस पापा रायपुर जवइया हाबे तब ले पापा के अब्बड़ सेवा जतन मा लग गे। नहाए के गरम पानी ला बाथरूम के बाल्टी मा झोंक डारिस। सेविंग ब्लेड ला बदल दिस अउ मोर पहिने बर अपन पसंद के कपड़ा जौन प्रेस नइ होये रिहिन तौनो ला प्रेस कर डारिस। मोर जूता ला चमका डारिस अउ गाड़ी ला घला पोंछ के चका चक कर डारिस।

"तबियत तो बने हाबे न बेटा तोर ! आज अब्बड़ सेवा जतन करत हस दाई-ददा के। जम्मो बुता ला आगू-आगू ले करत हस जिम्मेदारी ले।''

टूरा मुचका दिस। 

"कुछु तो बात हे बेटा ! अइसने फोकटे-फोकट अतका सेवा नइ करस।''

"कु.....कुछु नहीं पापा ! आप ही तो कहिथो जिम्मेदार बनो कहिके तेखर सेती...!''

टूरा गमकत रिहिस।

"बता न रे..!''

"गेयरवाला साइकिल चाहिये पापा ! कॉलेज जाय - आय बर।''

लइका बताइस।

"कतका मिलथे बेटा ?''

"पन्दरा बीस हजार मा आ जाही पापा !''

"आय, अतका महंगा मिलथे रे ! अभिन तो जुन्ना साइकिल मा काम चला। फोकट खरच झन करा बेटा !''

"सायकिल लेबे कहिके रोज बिटोवत हाबे। ले देना। दूसरा लइका मन तो बाइक बर तंग करथे फेर हमर लइका हा सायकिल मांगत हाबे। ले आनबे रायपुर ले।''

"सिरतोन काहत हस हेमा !''

मोर घर के सुप्रीम कोर्ट ले आदेश होगे अब तो सायकिल बिसाये ला लागही। महूँ  गुनत हावंव। हमरे स्टाफ के टूरा हा स्पोर्ट बाइक बिसाये बर घर मा चोरी करिस अउ जानबा होइस तब अपन दाई ददा ला मारे बर दउड़ाइस। जम्मो ला सुरता कर डारेंव अब मेंहा।

                             मोर गाड़ी अब भीड़ के चक्रव्युह में फंसगे रिहिस। जम्मो कोती पी ...पी.....पी....पो... पो... के आरो आवत रिहिस अब। तिहारी बाजार आवय जम्मो कोई जरुरत के जिनिस बिसाथे।

ड्राईवर ला पार्किंग मा गाड़ी ठाड़े करे बर केहेंव अउ मेंहा बाजार करे लागेंव। खोसखिस-खोसखिस करत भीड़ सिगबिग-सिगबिग करत मनखे। कोन दुकान मा जावंव। कहाँ गोड़ मड़हाव । मोर तो मति छरियागे। बुध पतरागे। भीड़ मा नइ खुसरेंव भलुक रोड तीर मा अब्दुल्ला सिंगार सदन नाव के दुकान ले बिसाये लागेंव अब राधा रानी के सवांगा ला। 

"दो हजार आठ सौ बीस रूपिया लागही साहब।''

"अब्बड़ लूट हाबे भाई ये तो ! अट्ठारा सौ दो हजार के जिनिस ला सोज्झे तीन हजार मा बेचत हावस।''

"तिहार सीजन मा चंदा वाले मन अब्बड़ परेशान करथे। नेता मंदहा गंजहा जम्मो ला देये ला लागथे। .... अउ नइ देबे तब तो एको दिन दुकान नइ खोल सकबे अतका हलाकान करथे। का करबो साहेब ! हमन तो छोटे बैपारी आवन। मन मार के चढ़ोतरी चड़ाए ला परथे। इहां के थानादार के घला हप्ता बंधाये हाबे साहब ! किराया भाड़ा बढ़गे तौन अलग। वोकरे सेती कीमत मा ऊंच नीच करे ला परथे। '

दुकानदार बताए लागिस।''

गोठ बात करत मोर बिसाये जम्मो जिनिस ला पैकिंग करे लागिस।

"कोन थाना मा पदस्थ हाबो  साहब ! गोठबात ले सज्जन लागथो।''

"हा...हा.... थाना मा नही भैया ! मेंहा फोरेस्ट डिपार्टमेंट मा रेंजर हंव।''

मुचकावत केहेंव अउ पइसा पटा के नंगाड़ा पसरा कोती चल देंव।

                 मेहनतकस मन बर रामकृष्ण अउ अब्दुल्ला कोनो मा भेद नइ हाबे। एक मुसलमान हिन्दू धर्म के आराध्य देव के सवांगा बेचके अपन परिवार चलावत हाबे अउ हिन्दू भाई मन चादर मा नक्काशी करथे। उस्‍ताद बिस्मिला खान ला कोन नइ जाने ? जौन हा मंदिर मा बइठके मोहरी बजाइस अउ मानवता के सार गोठ ला सिखा के चल दिस। अइसने तो हमर संस्कृति अउ परम्परा हाबे फेर ...? धर्म के नाव मा लड़ा के अपन सुवारथ पूरा करत हाबे। सब जानथे कोन हरे तौन ला। मनेमन गुनत आगू गेयेंव।

                 आनी बानी के मनखे रिहिस। कोनो नकली चूंदी लगा के किंजरत रिहिस, कोनो हा मुखोटा लगा के। कोनो माला मुंदरी पहिर के बइठे हाबे अउ कतको झन रंग गुलाल ले सराबोर होगे। ...रंग ? रंग कमती अउ बदरंग जादा दिखत हाबे नशापान अश्लिलता संवेदना शून्य  संस्कारहीन नवा पीढ़ी के। 

नगाड़ा छांट डारेंव बिसाये बर। एक जोड़ी गद अउ ताल के जोड़ी। पइसा देये बर हाथ ला लमाइस वोहा थोकिन झिझकत रिहिस। कुछु डर्रावत घला रिहिस। ससनभर वोला देखेंव। कुछु जाने पहिचाने बरोबर लागत हाबे

दुबर पातर काया। सादा करिया के खिंजरहू दाढ़ी वइसना मुड़ी के चूंदी। अपन दिमाग मा जोर देयेंव। कोनो लकड़ी चोर तो नइ होही। कोनो वन जीव के तस्करी करइया..?  अब्बड़ सवाल आवत हाबे। 

"का नाव हे तोर ?''

गरजत पुछेंव जवनहा ला। 

"म...... म..... मोर साहब ? डेढ़ी जेवनी ला देखे लागिस।''

"हा तुम्ही से पूछ रहा हूँ।''

फेर दबकायेंव।

"म...म... मन्नूराम साहब !''

कांपत हाथ ले पइसा ला झोंक लिस। अब महूँ ला सुरता आगे ये तो मोर गाँव रामपुर ले ताल्लुक राखथे।

"कइसे ? तुम्ही हो न जो मेरे गाँव की एक लड़की को भगा लिये थे।''

जवनहा अब सकपकागे। 

"वो लड़की अब मोर गोसाइन बनके मोर संग मा रहिथे साहब ! आप देख भी सकथव साहेब ! मोर घर जाके। थाना कछेरी झन लेगबे साहेब मोला तोर पाँव परत हंव।''

दूनों हाथ जोड़ डारिस।

"तुम तो रूपये और गाहना जेवर भी चोरी किये थे न ?''

"....न ..न .. नही साहब !''

"लबारी झन मार आज तो सब जान के रहूंगा।'' 

           सिरतोन मा आज तो खोदा-निपोरी करेच ला लागही। उड़हरिया भागगे कहिके गाँव भर सोर उड़े रिहिन वो बेरा। कटा-कट बईटका होइस। दू जाति अउ दू पारा के नाक के सवाल रिहिन। अब्बड़ गारी बखाना होये रिहिन। गाँव मा दू पार्टी हो गे रिहिन। मेंहा तो सुने रेहेंव टूरा हा अब्बड़ नशा बाज अउ कई परत ले जेल घला चल देहे कहिके। ....आज पकड़ में आयेस मोला जानेच ला परही...। 

"चल बइठ गाड़ी में।'' 

"चल साहब !''

एकेच बेरा मा तियार होगे मन्नुराम हा। ड्राईवर ला आरो करेंव बाजार ले निकल के बिसाये नगाड़ा ला लाने बर। अब मन्नुराम के बताये रद्दा मा गाड़ी दउड़े लागिस। तेली बांधा ला नहाक के एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी  सड़क ले जोंरा अउ जोरा ला नाहक के धरमपुरा जावत हावन अब।

"ट्रिन .....ट्रिन....!'' 

मोर फोन के घंटी बाजीस। चन्द्रकला आवय मोर नान्हे बहिनी।

"कतका बेरा आबे भईया! मोला लेये बर ? मेंहा तियार होगे हंव।''

नोनी गमकत पुछिस।

"एकाध घंटा मा अमर जाहूं नोनी !'' 

मेंहा बतायेंव फेर अब दमाद इतराए लागिस।

"झटकुन आ भईया ! तोर बहिनी हा सोला सिंगार करे हे। मेकअप बोथ के आगोरत हाबे। झटकुन आ ...! जम्मो मेक अप धोवा जाही ते तोर गाँव वाला मन नइ चिन्ह सकही हा.. हा...।''

"येला तो अब्बड़ गोठ उसरथे धत....!''

बहिनी हड़का दिस अउ दमाद खिलखिलाके हाँसत हाबे अब नोनी घला हाँसत हे अउ ऊंकर मया ला देख के कठल-कठल के महूँ हा हाँसे लागेंव।

"ले इहाँ ले रेंगे के बेरा फोन करहूँ।''

"हाव !''

फोन कटगे।

                    सिरतोन हमर छत्तीसगढ़ मा कतका सुघ्घर लोक परंपरा हाबे जेमा सामाजिक आर्थिक अउ वैज्ञानिक कारण ले कसाए हाबे जम्मो परंपरा हा। हमन ला गरब हाबे अइसन भुइयां के संतान आवन।

                 नवा बहुरिया हा पहिली होरी ला अपन मइके मा मनाथे। नवा बहुरिया ला  सास संग जरत हाेरी ला नइ देखे के विधान हाबे। काबर अइसना मान्यता हाबे ? राउत कका के गोठ के सुरता आगे उदुप ले। होली ताप के प्रतीक आवय अउ  बहुरिया अउ सास के बीच तमो गुण झन राहय भलुक सबरदिन मया पलपलावय वोकरे सेती बहुरिया ला मइके पठो देथे। छत्तीसगढ़ मा जादा ले जादा बिहाव हा चैत बैसाख मा होथे अउ फागुन के आवत ले कतको बेटी मन के कोरा हरियाए लागथे। वोकरे सेती मइके मा जाके सुघ्घर संस्कार लेथे बेटी मन। अप्पढ़ के इही गोठ ला विज्ञान घला मानथे आज। एक अउ  मान्यता के अनुसार शिव जी ला धियान ले जगाये के उदिम करइया कामदेव भस्म होगे। कामदेव ला फेर जीवन मिलथे वोकरे सेती माता पार्वती ला ददा राजा हिमांचल हा अपन घर लेग जाथे उछाह मनाए बर। ...मइके के अंगना मा बेटी फेर कुलके लागथे ये बेरा। ... अउ मया मा गुरतुर विरह के स्वाद ला चिखत रहिथे गोसइया हा। दुरिहाए ले मया बाढ़ जाथे। अउ एक-एक दिन ला अंगरी मा गिन-गिन के अगोरा करथे  वोहा।

गाड़ी रुकिस अउ मोर सुरता के धार फेर टूटिस।  

                       धरमपुरा के हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी मा अमर गेंन हमन अब। गाड़ी ला ठाड़े करिस ड्राईवर हा अउ अब हमन आखिरी गली मा पानी टंकी के तीर जाये लागेंन जवनहा मन्नुराम के संग। इहिंचो चौक मा अंडा रूखवा ला कामदेव के प्रतिक मान के गड़ियाये रिहिस, ससन भर देख के जोहार करेंव अउ अब अमर गेंव मन्नुराम अउ मालती के घर। प्रधानमंत्री आवास योजना मा मकान मालिक मालती बाई  के नाव चमकत रिहिस। दू कुरिया के सुघ्घर घर। आधा छत ढ़लाए हाबे अउ आधा मा खपरा छानी। मोहाटी मा आरो करिस मन्नुराम हा। मालती हा कपाट ला हेरिस अउ मोला तो देख के सुकुरदम होगे। 

"हमर घर पुलिस काबर आये हाबे ? का होगे ?''

वन विभाग  के मोर खाकी वर्दी ला देखके संसो करत पुछिस मालती हा। सिरतोन पारा वाला मन के मन मा घला अइसना विचार आवत रिहिस होही तभे तो अब्बड़ झन मोला देखे लागे।

"कुछु नइ होये हाबे मालती ! हमर घर सगा आये हाबे वो ! चिन्ह।'' 

मालती फेर संसो मा परगे। मेंहा मुचकावत रेहेंव अउ टूप टूप पाँव परके पुछेंव। 

"चिन्हेस दीदी ?''

"कोन .....?  कन्हैया दाऊ के बेटा आवस न !''

मेंहा मुड़ी हलाके हूंकारू देयेंव। 

"अब्बड़ दिन मा देखे हंव भाई तोला ! ...स्कूल ड्रेस पहिर के स्कूल जावस तब के देखे रेहेंव। अब तो अब्बड़ बड़का होगे हस। मेंछा दाढ़ी जाम गे। उप्पर ले ये वर्दी पुलिस के।  नइ चिन्हावत रेहेस। का अनित होगे कहिके डर्रा गे रेहेंव। जी धुकुर - पुकुर होवत रिहिस।''

"पुलिस वाला नो हरो दीदी ! झन डर्रा फारेस्ट वाला हरो। फारेस्ट रेन्जर हरो मेंहा।''

"सब बने बने भाई ! गाँव में सब कोई बने हाबे न। मेंहा गाँव के जम्मो झन ला सुघ्घर राहय कहिके गुनत रहिथो फेर गाँव वाला मन हमर मन ले रिसागे।  जतका के प्रेम बिहाव नइ करे हावन वोकर ले जादा जम्मो नत्ता-गोत्ता टूटगे। न दाई ददा आवय, न भाई भौजी मन अउ न गाँव के एक झन कुकुर आवय। का होइस तोर भाटो हा आने जात के हाबे ते फेर अब्बड़ मया अउ मान देथे। ..अउ का चाही एक नारी ला....हूँ..हूँ.......?''

मालती बताये लागिस एक सांस में। अब तो वोकर नाक सुनसुनाइस अउ थोकिन हिचके लागिस ....अउ अब गो .... गो... कहिके गोहार पार के रो डारिस। दूनो आँखी ले आँसू के धार बोहाए लागिस।

"चुप न वो ! ये ले चाहा पी।''

मन्नुराम आवय ट्रे में चाहा धर के आइस अउ देवत किहिस। अदरक वाली चाहा के ममहासी अब जम्मो घर मा भरगे। 

"अई.... तेंहा बना डारे। मेंहा बनाये रहितेंव वो !''

अचरा ले आँसू पोंछत किहिस मालती हा।

"तेंहा तो मगन होगे रेहेस वो ! अपन मइके के सुरता मा तब सगा-पहुना के मान-गौन करे बर मोला रंधनी कुरिया मा जाये ला परही।''

"अब्बड़ सुघ्घर चहा बनाये हावस भाटो ! तेंहा आज भर नइ बनाये हावस। रोज-रोज चाय बना के दीदी ला पियाथस तभे तो अदरक चाय शक्कर जम्मो हा संतुलित मात्रा मा हाबे न एक कम, न एक जादा।''

मेंहा अब मन्नूराम ला कुड़काए लागेंव।

मन्नूराम घला अब गमके लागिस।

"महरानी बरोबर राखे हाबे। बाहिर के जम्मो बुता ला तोर भाटो करथे अउ घर के बुता ला मेंहा। घर में दोना पत्तल बनाये के मशीन लगाये हाबन। वोकरे भरोसा घर खरचा चलाथंव। महिला स्वसहायता समुह ले जुड़के दू पईसा कमाये ला अउ बचाये बर सीखे हंव। प्रधानमंत्री आवास योजना मा घर घला बनावत हांवव दू कुरिया के। बांचे एक किस्त आही अउ जम्मो ला सपुरन करबो।''

चाहा के मिठास के संग अपन जिनगी के मिठास ला बताए लागिस मालती हा अब। 

".......फेर मन अब्बड़ कलपथे। सुध लागथे अपन ननपन मा बिताए गाँव बर। कभु नइ गुने रेहेंव मोर जम्मो हा अइसना बिरान हो जाही अइसे। कभु-कभु ददा हा लुका-चोरी गोठिया लेथे तब बताथे। हमर समाज वाला मन आज घला ठोसरा मारे बर नइ छोड़े जब मौका देखथे अब्बड़ ठोसरा मारथे। दू चार झन सियान मन जादा अतलंग लेवत हाबे। बेटी हा सबरदिन वोकर मन के खेलउना बनके रही का  ? बेटा  कोनो आनजात टूरी संग प्रेम विवाह करके ले आनिस तब समाज मा मिल जाथे अउ बेटी चल दिस तब मइके ला छोड़ा देथे। अइसना हाबे हमर समाज हा। छूट जाही का नानपन के खेले कूदे गाँव ? मया दुलार पाये नत्ता-गोत्ता मन ...? गाँव के माटी ला खुंद लेये के अब्बड़ साध हाबे। गाँव के दीदी, भईया, भाई-भउजाई मन ले हाँस गोठिया लेतेंव। कका काकी दाई बबा संग भेंट लाग लेतेंव ....अब्बड़ साध हाबे फेर ......जम्मो अबिरथा हाबे भाई ! बस, मन दउड़थे भर पाँव तो इहिंचे रहिथे।''

मालती के आँखी सुन्ना होगे रिहिस फेर अंतस रगरगावत हाबे।

"ददा हा पाछू के डांड के चुकारा नइ करे हाबे। अब जाहूं तब फेर डांड पड़ जाही ....? इही डर के सेती तरी-तरी दंदरत रहिथो।''

मालती फेर बताइस वोकर आँखी मा फेर महानदी के लहरा दिखत रिहिस।

"चल दीदी मेंहा लेगहूं तोला अपन संग। पहिली होली ला मइके में मनाथे जम्मो बेटी मन। चल ! झटकुन तियार हो। गाड़ी घला मोहाटी मा ठाड़े हाबे।''

मालती के आँखी जोगनी बरोबर चमकिस अउ फेर बुतागे।

"कोनो कही कहि तब मोर दाई-ददा बर बोझा हो जाही भईया ! नइ जावंव। समाज के कोचिया मन के ढ़ीले आगी ले तहूँ नइ बाचबे। कभु रायपुर आथस तब अइसना आ जाबे अउ चल देबे उही सुघ्घर रही.....?''

मालती किहिस।

"तुंहर घर  बेटी बनके झन जा भलुक मोर घर मोर बहिनी बनके चल वो ! कुछु नइ होवय। कोनो गाँववाला काही बोलही .....मेंहा हाबो भरोसा राख।'' 

मन्नूराम घला हुंकारू दिस अब मुड़ी हला के।

दर्जन भर पिंयर पाका केरा निकालिस अउ परोसी मन ला आरो करिस।

"बिमला सोहागा आसमती कलिन्द्री सुशीला......आवव वो ! मोर भाई आये हाबे मोला लेये बर। भलुक मेंहा नइ लाने रेहेंव तभो ले अब सब घर जाके केरा बांटे लागिस।

"ये दे दीदी बहिनी ! मोर भाई आय हाबे होली मा लेवाए बर। तुमन अब्बड़ पूछो न कब आही तोर भाई ...।  लेंव केला ला झोंकव। मोर थानादार भाई आये हाबे। अपन ड्यूटी कोती ले आये हाबे बहिनी तेकर सेती कोनो तेल तेलई नइ लाने हाबे वो।''

मालती के गोठ सुनके मने मन मुचकावत रेहेंव। गमकत रेहे हंव महूँ हा अब नवा दीदी पाके। 

बाहां भर चूरी गोड़ मा माहुर लगा के तियार होगे मालती हा। 

"ले भाटो ! बने रहिबे। मन के रांधबे अउ मनके खाबे। दीदी के  सुरता मा आधा पेट खा के झन रहिबे। दुब्बर पातर हाबस आगू ले, अउ झन दुबराबे हा...हा...।''

मेंहा मन्नू भाटो ला अब मसखरी करेंव।

जम्मो कोई खलखला के हाँस डारेंन अब। 

""ट्रिन...... ट्रिन !'' 

मोर छोटे बहिनी चन्द्रकला घला तियार होगे रिहिन अब। अभनपुर कोती गाड़ी दउड़े लागिस अब नवा उछाह के संग। दीदी के चेहरा मा सतरंगी रंग दिखत रिहिस अब जेमा  एक रंग उछाह के रिहिस।

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

हमर लोकगीत म प्रेम* -----------------------------------

 *हमर लोकगीत म प्रेम*

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भाव हम ला जिनगी के अनुभव कराथे , अउ इही भाव हमर जिनगी के प्रमाण हरे। काबर पूरा जीव जगत म भाव जरूर होथे।

कखरो म कम त कखरो म जादा, अउ इही भाव ल हम रस कहिथन

तभे मनखे मन मा नौ रस होथे जइसे श्रंगार, हास्य करूण,शांत रौद्र,वात्सल्य,अद्भुत,वीभत्स भयानक अउ इही रस हमर शरीर के आत्मा होथे, बिना रस के मनखे  निरस बेजान जइसे होथे।

रस हृदय ले निकले एक भाव हरे       अउ इही भाव म एक सबसे सुग्घर भाव होथे प्रेम के,,,,,,

प्रेम शाश्वत हे ,सत्य हे,, ये एक सुग्घर एहसास आय, जेन सब  जीव म होथे। प्रेम के न कोनो आकार हे, न कोनो रंग ना कोनो भेद ,

ये तो बस हृदय के एक भाव होथे

जेन कोनो भी जीव निर्जीव  कखरो बर भी उत्पन्न होथे। अउ इही वो आधार आय जेखर  ले ये सृष्टि चलत हे।

पशु जेन ल हम बिना ज्ञान के मानथन इहू जब अपने बच्चा ल जनम देथे तो वोखर रक्षा बर सबो जतन करथे उही तो ओकर मया हरे।

जब ले ये सृष्टि के रचना होय हे, तब ले जीवन के संगे सँग प्रेम तको सिरजे हे, हमर भारतीय संस्कृति मा प्रेम के कई ठन उदाहरण मिलथे अउ प्रेम बर कोनो बौद्धिक ज्ञानी होना तको जरूरी नइये। तभे उद्धव जी अउ कृष्ण जी के जब बात चलत रहिस तब उद्धव जी ज्ञान ल जादा  ताकतवर समझय,तब प्रभु श्री कृष्ण कहे रिहिस प्रेम के बिना सब व्यर्थ है उद्धव, तभो  मानत नइ रिहिस त वोला गोकुल म भेजिस।

अउ गोकुल म उद्धव जब गोप गोपी मन के कृष्ण प्रेम ल देखिस त ओखर अहंकार दूर होइस।अउ वोला माने ले पड़िस कि ज्ञान के कोनो अर्थ नइये जब तक प्रेम नइये।

अउ प्रेम के स्वरूप कोनो एक जगा तक सीमित नइ राहय, आम साधारण भाषा मा तो प्रेम के रूप ल प्रेमी अउ प्रेमिका के रूप म ही देखथे,फेर प्रेम तो निरंतरता ये।ये इँहे तक नइ राहय। प्रेम वात्सल्य हरे ,प्रेम करुणा हरे। प्रेम हर जीवित अउ निर्जीव सबो से अगाध रहिथे, तभे तो हम गंगा 

मइया ले प्रेम करथन, पर्वत,वन पेड़ पौधा पशु -पक्षी अउ एक पथरा के रूप में भगवान ले अगाध प्रेम करथन ,प्रेम आस्था हरे,,,,,।

कृष्ण जी ल हम प्रेम के प्रतीक मानथन प्रेम के साकार रूप अटूट आस्था विश्वास कोनो मेर विलासिता नइ कहूंँ खोट नइ हर उमर के संग प्रेम करे हे। कोनो ल माँ के रुप म तो कोनो ल सखा,,,

*जाकी रहे भावना जैसी, हरि मूरत देखी तिन तैसी।।*


*मया पिरित बगराव जी, होही तभे विकास।*

*नवा-नवा सिरजन होही,दिखही तभे उजास।।*


जब  साहित्य के विकास होइस त एक साहित्यकार अपन तीर तखार प्रकृति अउ मनखे के हाव-भाव ल अपन लेखन म पिरो के लानिस, प्रेम ले साहित्य के खजाना भरे हे।

हर युग म कवि साहित्यकार मन के साहित्य म प्रेम रचे- बसे हे।

वैदिक साहित्य के श्लोक, ऋचा, सूक्त मन म।ओइसने कालिदास के मेघदूत म प्रेम गीत के स्वर गूँजथे । जयशंकर प्रसाद जी ल प्रेम अउ आनंद के कवि कहे जाथे महादेवी वर्मा के कविता म प्रेम एक मूल भाव के रूप में प्रकट होथे। उंँखर कविता म दांपत्य प्रेम के तको झलक मिलथे।

*"जो तुम आ जाते एक बार,,,,*

*कितनी करुणा, कितने संदेश पथ में बिछ जाते।*

,,,,,

*सुआ ददरिया भोजली, नाचा करमा गीत।*

*रास जँवारा मा दिखय, मया पिरित के रीत।।*


जब लोकभाषा के सिरजन होइस, तब मनखे अपन मन के भाव ल कविता या गीत के माध्यम ले गुनगुनाय बर धरिस।अउ उही मेर ले शुरू होइस लोकगीत के रचना,,,,

लोकगीत हमर संस्कृति के संवाहक होथे,काहन त हमर रीति- रिवाज, तीज तिहार परब उत्सव के आईना देखाथे,अउ मया तो हमर स्वभाव हरे त वो भाव तो हमर लोकगीत म झलकबे करही।अउ छत्तीसगढ़ म

36 किसिम के गीत के विधा हे

सबो गीत के जब आकलन करथन त प्रेम के स्वरूप सबो गीत म दिखथे, चाहे वो लोरी होवय  या ददरिया।

जैइसे हम लोरी गीत के बात करथन त एमा दाई के मया, वात्सल्य प्रेम दिखथे,,।

अउ ददरिया युगल प्रेमी प्रेमिका के भाव, श्रृंगार ल ले के आथे

तब जनक राम राम नेताम के गीत बोल पढ़थे,,


*रुम झुम चंदैनी गोंदा फुले छत नार,,,*

*लाली हो गुलाबी फुले छाये हे बहार ।*


अइसने ढोला मारू प्रेम गीत म ढोला मारू के प्रेम कथा ल जीवंत बना देथे।

अउ एमा हमर छत्तीसगढ़ी संस्कृति के रूप तको देखे बर मिलथे।

सुआ गीत म प्रेम विरह के पीरा दिखथे,तो सोहर गीत म जनम के शुभ बेरा म छलकत वात्सल्य दिखथे।याने हमर संस्कृति म कोनो भी उछाह,,बिन गीत के अधूरा कस लागथे।

अउ जब प्रेम के गोठ करत हन त हमर साहित्य जगत प्रेम बिन कहांँ पूरा होथे।कोनो भी गीत ल देखलव  मुलरुप म युगल के मया के रूप में गीत के रचना होय हे,,

एक लेखक प्रेमी प्रेमिका के मन के भाव ल श्रृंगार रुप म बताए के गाए के उदिम करथे ।

जइसे किस्मत बाई देवार के गायकी मा

*चौरा म गोंदा रसिया,मोर बारी म पताल  रे,,,,,,,*

*लाली गुलाली रंग छींचत अइबे राजा मोर,,,,*


प्रकृति संग अपन मया के रंग बगरावत अपन प्रियतम ल मया के रंग छींचत---

लक्ष्मण मस्तुरिया के गीत म

*वाह रे मोर पड़की मैना ,तोर कजरेली नैना,,,,,*

श्रंगार के कतेक सुग्घर भाव हे

हमर छत्तीसगढ़ी गीत म मया के अलग अलग रूप ल बड़ सुग्घर ढंग ले बताय के बहुते सुग्घर प्रयास करे हे।कई प्रकार के उपमा -उपमान अउ किसिम-किसिम के उदाहरण के माध्यम ले आम जन ल जोड़े के प्रयास करें हे। कोनो गीत म मया के बारीकी ल बतावत हे त कोनो म ओकर पूर्णता ल। कोनो रद्दा मा आँखी निहारत हे त कोनो विरह के गीत मा अंतस भिंजोवत हे।

कतको झन मनखे मन रात दिन अपन अंतस मा ओकर गीत गुनगुनावत रहिथे।

तब गीतकार गायक धुरवा राम मरकाम ह गाय रिहिन।

*"लागे रहिथे दीवाना तोरो बर मोर मया लागे रहिथे"*

एक कवि लेखक नायक नायिका के अंतस मा उतर के रचना करथे तब कवियित्री स्व.कुसुमलता ठाकुर के लेखनी के भाव ल सुनके गुने बर पड़थे।

*तोर मया के आगी म बैरी,तन मन मोर भुँजा गे रे ----*

*तोर बिना मोर बैरी,केंवची सपना अइलागे रे -----*

ए गीत मा कतका सुग्घर भाव पिरोय हे कि मेंहा तोर मया म जेन सपना देखे रेहेंव बहुत पवित्र अउ कोमल रिहिस,बहुत उरजा रिहिस।फेर मोर मया तोर मया के आँच मा अइलागे।मँय तो सोंचव मही अंतस ले तोला मया करथँव,फेर तोर मया मोर मया ले जादा,तोर मया के आगी म मोर मया मुरझागे।

कवि के कल्पना के बानगी अन्तर्मन ल छू लेथे।


अउ जब हम प्रकृति कोती ल देखथन तो प्रकृति तको हम ला मया बाँटथे।हर ऋतु मा हम ला अपन मया के अँचरा देथे।

फेर बसंत ऋतु ल तो प्रेम अउ श्रृंगार के ऋतु तको कहिथे। प्रकृति के यौवन अउ नवसृजन के ऋतु हरे।तभे तो ये ऋतु के आय ले पुरवाही ह मन के उदासी मा नवा जोश भरके कोनों मधुर तान छेंड़त हे अइसे लगथे। चारों कोती रंग बिरंगी फूल,नवा-नवा पात

जइसे मांँ सरस्वती के अगुवाई मा स्वागत करे बर खड़े हे।खेत मा सरसों के पीँयर पीँयर फूल ओन्हारी पाती मा चना गहूँ अउ मसूर ल खेत मा झूमत देख मन तरंगित हो उठथे।आम के मउँर ले महकत बाग बगीचा फूल पलाश के अँगरा जइसन बरत आगी दुलहिन बनके मानों धरती दाई ल रिझावत हे।अतका सुग्घर श्रृंगार प्रकृति के देख मन ह हिलोर मारत रहिथे।ये बसंत प्रेम के सृजन के ऋतु होथे।त कवि हिरदय कहाँ पाछू रइही,तभे तो बसंत के प्रेम ले साहित्य जगत के अँचरा तको बासंती हो जथे।

तभे निराला जी लिखे हे

*सखि बसंत आया,भरा हर्ष*

*वन के मन नवोत्कर्ष छाया* 

मया पिरित ह हर नता गोता के अधार हरे,अउ मया पिरित ले ही हम सबो जुड़े रहिथन।घर परिवार नता रिश्ता संगी साथी सब ले जुड़ाव के कारण इही मया अउ पिरित हरे।

*मया जीवन आधार हे,बनके रहिबो मीत।*

*सुग्घर संस्कृति हे हमर,बाँटन सब मा प्रीत।।*

त प्रेम ल कोनो दिवस अउ दिन मा नइ बाँध सकन,आज के समे मा वेलेंटाइन डे मनाथे।येला तारीख मा कैद करई प्रेम के अपमान कस लागथे। प्रेम तो अजन्मा हे, प्रेम तो हर जीव ल ईश्वर ले अनुपम उपहार स्वरूप मिले एक सौगात ये।हम सब ला सब के प्रति प्रेम करुणा अउ दया भाव रखना चाही।बिन प्रेम के जीवन नइ चलय अउ बिन प्रेम के भगवान ल तको नइ मना सकन।

*बिना प्रेम रीझै नहीं देवकी नंद किशोर ------+*

अउ इही तो हमर वास्तविक स्वरूप हरे प्रेम हर मनखे ल माता पिता, भाई बहिनी,हर नता गोता, प्रकृति अउ जीव जगत बर होना चाही।इही तो सृष्टि के मूल आधार आय।

*प्रेम सत्य हे, प्रेम शास्वत हे -*

*प्रेम अजन्मा हे*


संगीता वर्मा

आशीष नगर(प.)

अवधपुरी भिलाई