Monday 15 April 2024

बूड़ मरय नहकौनी दे

 बूड़ मरय नहकौनी दे


               तइहा तइहा के बात आय । एक ठिन बड़े जिनीस गाँव म एक झन बड़का किसान रिहिस । ओला गाँव भर के मन मंडल कहय । मंडल के घर म गोबर कचरा से लेके हरेक बुता बर अलग अलग मनखे रिहिस । मंडल अऊ मंडलिन दुनों झन धर्मपरायण रिहिन । गाँव म मंदिर देवाला धरमशाला अऊ कुँवा तरिया बनवाय म इँकरे हिस्सा सबले जादा लगे रहय । समे समे म न केवल गाँव म बल्कि तिर तखार म जतेक धार्मिक आयोजन होवय तेमा घला येमन बढ़ चढ़ के भाग लेवय अऊ आर्थिक भागीदारी निभावय । ओकर दू झन बेटा रिहिन । छलछलावत ले धन दोगानी होय के बावजूद ... खेत खार म रगड़ाटोर मेहनत करे बर दुनों परानी नइ छोंड़य .. तेकर सेती दुनों बेटा मन काय करत हे तेला ध्यान नी दे पाय ... ओमन ला इही लगय के ... जइसे जइसे घर दुवार तइसे तइसे फइरका ... जइसे जइसे दाई ददा तइसे तइसे लइका ... । एती दुनों बेटा हा अपन अपन तरीका ले .. कमई हे बाप के त काय करबो नाप के सोंच ... छकल बकल गुलछर्रा उड़ावत रहँय । बुता काम म मन नइ लागय । दिन भर लठंग लठंग किंजरय । 

               उही गाँव म एक झन बनिया रिहिस । तिर तखार तको म ओकर बैपार हा जोरदार चलय । ओकरो तिर पइसा के कमी नी रिहिस ... फेर ओहा बड़ कंजूस चिम्मट रिहिस । दान धरम म एकदमेच पिछवा । हाथ ले पइसा नइ छूटय । अपन खाय पिये अऊ रहन सहन म घला भारी कंजुसई  ... कपड़ा लत्ता निच्चट कोटकोट ले पहिरय .. । बन्निन हा उही रंगा ढंगा म रहत ... बनिया कस  होगे रहय । तीन झन बेटा अऊ एक झन बेटी । बेटा मन छोटे रहय .. गल्ला तिर जावय जरूर फेर एक कौड़ी ला हाथ नी लगा सकय ... एक झन बेटी तको ला दू पइसा नोहर रहय | अजार बजार मेला मड़ई म मुहुँ पंछिया जाय फेर ... कुछु खाय के सऊँख पूरा नइ होय .. ।  

               समे बीते के पाछू ... मंडल के बेटा मन उच्छृन्खल होवत गिन । बिड़ी माखुर ले शुरू होय सऊँख हा ... गांजा भांग बोतल तक पहुँच चुके रिहिस । एक बेर ... बड़े बेटा के नजर हा बनिया के बेटी उपर गड़ गिस । अतेक बढ़हर के बेटी होय के पाछू घला ... पइसा देखे बर तरसगे रहय । मंडल के टुरा हा .. ओला पइसा के खजाना देखा के .. ओकर दिल म अपन बर मया उपजा दिस । जंगल झाड़ी म लुका लुका के होवत मुलाखात हा ... बेर उज्जर .. तरिया नदिया हाट बजार मेला मड़ई तक पहुँच गिस । गाँव भर जान डरिन । मंडल मंडलिन ला घला जनाबा होगे । एके जात पात के सेती समस्या बड़का नइ रिहिस ... फेर बनिया हा नइ चाहय के ओकर बेटी हा मंडल के बहू बनय । मंडल मंडलिन डहर ले समाधान के दिशा म बात बढ़े के सुन ... बनिया हा पंचइत बलाय बर गाँव के सियान मन तिर अरजी लगा दिस । सियान मन मामला के गम्भीरता ला समझत मना नइ कर सकिन ।  

               गाँव म बइसका सकलागे । गाँव के मन मंडल ला अपमानित नइ करना चाहय फेर बेटा के सेती बपरा ला कटघरा म खड़ा होय ला परगे । मामला ला जादा लम्भा नइ खींच .. सियान मन दुनों ला समधी बने बर राजी करे के प्रयास करिन ... बनिया नइ मानिस अऊ मंडल उपर अपन उदंड बेटा के संरक्षण के आरोप लगावत डाँड़ बोड़ी लगाये के गोहार लगइस । मामला ला रफादफा करत ... गाँव के मन डाँड़ लगा दिन । मंडल हा ओतके बेर पइसा पटाके दंडमुक्त हो गिस अऊ अपन बेटा ला समझाके राखे के बचन दिस । 

               मंडल हा अपन बेटा ला संगे संग राखे लगिस । बहुत जल्दी मंडल के संस्कार ओकर बेटा उपर हावी हो गिस । अब वहू हा मंडल कस बने लगिस । दूसर कोति बनिया हा घला बेटी उपर पहरा लगा दिस । बाहिर बट्टा अवइ जवइ तको मुश्किल होगे रिहिस । अपन हा सग्यान बेटी बर जगा जगा रिश्ता के बात चलाय लगिस फेर बात बनत बनत ...  बिगड़ जाय । जमबे नइ करिस । बनिया बन्निन हा ... ओकर बिहाव के फिकर म दुबराय लगिन । 

               समे नाहकत गिस । एक बेर भरे बरसात म मंडल के दुनों बेटा मन खातू बिसाके शहर ले लानत रहय । नदिया नाहकत बेर ... बीच धार म डोंगा पलटगे । दुनों भाई बुड़े लगिन । बड़े भाई हा स्वयम निकल सकत रिहिस फेर बाप ला का जवाब देहूं सोंच छोटे भाई ला बचाय बर अपन जान के बाजी लगा दिस । खँड़ के ओ पार एक झन केंवट हा सरी माजरा ला देखत .. तुरत अपन डोंग़ी धर पहुँचगे । बड़े भाई हा नहकौनी के कतको गुना पइसा देके वचन देवत ... भाई ला बँचा डरिस । खँड़ म अमरते भार .. खींसा ला टमड़िस .. ओमा काँही नइ बाँचे रहय । दुसरइया दिन केंवट ला पइसा लेगे बर .. आये ला कहत चल दिन । एती गाँव म कुछ अऊ चलत रहय । मंडल हा को जनि कति जनम म काय पाप करे रिहिस .. बपरा उपर संकट हा सुरसा के मुहुँ बन .. जब पाय तब उल जाय । ओकर छोटे बेटा डहर ले .. उँखर घर भात रंधइया विधवा गरीबिन अनाथिन के सग्यान बेटी हा पेट म होगे रहय ... । सब जान डरिन । दूसर दिन .. गाँव म बइसका सकलागे । एती छोटे बेटा हा नदिया म बुड़त रिहिस तहू बात के जनाबा हो गिस । सब इही समझिन के ओहा खुदे बुड़के मरे बर नाव ला पलटइस हे । 

               छोटे हा मरे ले बाँचगे फेर मंडल हा शरम के मारे अतका बुड़गे के .. ओहा मुहुँ उचाय के अऊ मुहुँ उलाय के लइक नइ रहिगे । न्याव पंचइत के बीच म खड़ा नइ हो सकत रहय । आँखी म बोहावत धारे धार आँसू के मारे कुछ दिखत सूझत नइ रहय । बहुत देर म अपन आप ला सम्हालिस । समाज हा नोनी संग बेटा के बिहाव करे के निर्णय सुनइस । बेटा के औपचारिक स्वीकारोक्ति जान .. समाज के निर्णय ला तत्काल स्वीकारत .. पीड़ित नोनी ला .. ओतके बेर समाज अऊ गाँव बीच अपन बहू बनावत .. जयमाला डरवा दिस । न केवल नोनी के महतारी बल्कि समाज के जम्मो मनखे मनला मंडल के बेवहार हा अंतस तक भिगो दिस .. सब गदगद हो गिन । अशीष के कतको हाथ उठगे । मंडल के जै जै कार होय लगिस । एती बनिया तरमरावत रहय .. ओहा सबो ला चुप करावत खड़े होके केहे लगिस – तूमन जेकर जैकारा लगावत हो तेकरे बड़े बेटा के सेती मोर बेटी नइ उचत हे ... ए हरजाना के भरपाई कइसे होही .. ? भरे खेती किसानी के दिन म घेरी बेरी बइसका सकेलना सम्भव नइहे ... येकरो बर कुछ करव .. । मोर बेटी के हाथ कब पिंवराही ... । येकर बड़े बेटा के गलती के सेती हम भुगतत हन ।  

               केंवट घला पहुँचे रहय । बात सुनत पिछु डहर बइठे रहय । गाँव के मन बनिया ला चाँव चाँव करे लगिन । ओमन किहिन के मंडल हा तोर बेटी ला बहू बनाहूँ किहिस तब तैंहा तइयार नइ होएस .. अभू तोर बेटी बर सगा नइ आवत हे तेमा ओकर का दोस .. ? बनिया किथे – मंडल के बेटा के सेती मोर बेटी उचत नइहे ... मंडल के बड़े बेटा के बिहाव करे बर तब तक प्रतिबंध लगावव जब तक ओकर बेटी के बिहाव नी हो जाय ... । बनिया के नावा मांग सुन सब चुप हो गिन । केंवट हा बइठे बइठे असकटागे रिहिस । ओकर उपर काकरो ध्यान नी रिहिस । पइसा झोंक .. ओला जाय के घला लकर्री रिहिस । अपन कोति ध्यान देवाय बर ... अपन जगा ले उचत किथे – मोर हिसाब से मंडल के बड़े बेटा के बिहाव ला बनिया के बेटी संग कर देना चाही ... अगोरी के अगोरा करे के बात नइ रहि ... । 

               गाँव के सियान मन .. मंडल कोति देखिस । मंडल कुछ कहितिस तेकर पहिली केंवट हा फेर किथे – बपरा हा शरम के मारे बुड़त हे ... नहकौनी नी दे सकही तेमा का ... ? तूमन ओकर कोति का देखथव ... ओहा का कहि तेमा ... । बड़े बेटा के मौन स्वीकृति परख ... मंडल घला हाँ कहत .. मुड़ी डोलइस । पहिली बेर नही कहिके ... बनिया ला बहुत पछताय ला परे रिहिस ... ओहा जे सोंच के आय रिहिस उही होगे ... तुरते वहू हाँ कहि दिस । कंजूस बनिया के बेटी के जयमाला बिहाव चट निपट गिस । बनिया के खर्चा बाँचगे । केंवट ला नहकौनी मिलगे । 

               गुनवान धनवान सबो ला गलती होय म समाज के सामना करे लागथे .. अऊ ओकर निर्णय ला स्वीकारे बर परथे । गाँव के मनखे मनला सबक मिल गिस । आजो कोन्हो वजह .. संकट म पर जथन तब .. ओकर ले तत्काल उबरे बर .. थोकिन अऊ नकसानी ला झोंके या सहे बर आसानी ले स्वीकार लेथन तब ... बूड़ मरय नहकौनी दे ... सुने सुनाय बर मिल जथे । 

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .



 बूड़ मरय नहकौनी दे

                    कुछ दिन पहिली , पढ़हे बर मिलिस के फलाना जगा के सड़क के चोरी होगे हे , थाना म एक झन मनखे हा रिपोर्ट लिखवाय हे । मोर मन म एक ठन सवाल उपजगे – यहू कोनो समाचार आय तेमा .. । बहुत सोंचे के पाछू मोला आकब होइस , बात कुछ न कुछ बड़े आय , तेकर सेती अतेक बड़ छपे हे  ,  या तो पहिली बेर  चोरी होय होही या पहिली बेर रिपोर्ट लिखाय होही । मोरो मति चल गेहे , मोला काय करना हे तेमा  । कुछ दिन बीतगे ..  मोला समझ नइ आवत रिहिस के चोरी तो पहिली घला होवत रिहिस ... का बिगन रिपोर्ट लिखे चोर पकड़ा जात रिहिन का ... त अइसन म थाना पुलुस के काय बुता ... ? फेर सोंचेंव – चोरी तो होते रहिथे .. रिपोर्ट घला लिखाये जाथे .. चोर घला पकड़ा जथे .. फेर अतेक हल्ला नइ होवय ... ये पइत अइसे काय बात होगे जेमा चोरी के बात ला अतेक हाईलाइट करे जात हे । 

                    रथिया सुते सुते बात समझ म अइस .. चोरी हा नानमुन नी रिहिस .. सड़क ला चोराय रिहिन ... अतेक लम्भा सड़क ला चोराही त .. खभर घला लम्भा बनबेच करही । खैर .. मेहा थानेदार थोरेन आँव जेला समझना अऊ जानना हे तेमा .. ? 

                    दूसर दिन थाना म तहकीकात शुरू होइस । थानेदार हा रिपोर्ट लिखवइया ला तलब करिस । ओला कुछ सवाल के जवाब मांगिस अऊ जाँच म सहयोग के वचन लिस । 

थानेदार – सड़क कतेब बड़ रिहिस ? 

प्रार्थी – सात आठ सौ मीटर रिहिस होही साहेब । 

थानेदार – कति मेर माढ़े रिहिस ? 

प्रार्थी – भुँइया म । 

थानेदार – अरे कति मेर पूछत हँव गा ? 

प्रार्थी –  हमर  पारा ले ओ पारा । 

थानेदार ( भड़कगे ) - कति जगा म मढ़हाये रेहे हस पूछत हँव त तैंहा धँवाथस ... तुँही ला अंदर कर देहूँ तब समझ आही ।   

प्रार्थी – अरे साहेब .. मेहा नइ मढ़ाये रेहेंव .. मढ़ा के कोनो अऊ गे रिहिस होही । 

थानेदार – होही के मतलब काय  ... ? 

प्रार्थी – इंजीनियर अऊ ठेकादार मन मिलके मढ़हाय होही ... हम का जानबो .. कोन मढ़ाये हे तेला .. । 

थानेदार – काबर मढ़ाये रिहिन .. एती वोती मढ़ाही त कोनो न कोनो लेगबेच करही ... । 

प्रार्थी – रेंगे बर मढ़ाये रिहिन होही साहेब ... । 

थानेदार –  रेंगे बर बनाय रिहिस तेमा रे ... ? ओकर ऊपर म कोनो रेंगही ... त ओहा रौंदाके भुँइया म मिल गिस होही  .. । 

प्रार्थी – ओला रेंगेच बार तो बनाये रिहिस हे साहेब .. । 

थानेदार – अच्छा ... अइसे बात आय का । त ओहा तोर आय का ... ? 

प्रार्थी – मोर नोहे  । 

थानेदार – तोर नोहे .. त तोला का करना हे ... तैं काबर दूसर के चीज म हाथ डारत हस । 

प्रार्थी – सरकार के आय । अऊ सरकार हा हमरे पइसा ले हमर बर सड़क बनवात रिहिस ... । 

थानेदार – सरकार हा तो रिपोर्ट करे बर नइ अइस । रिहिस बात तोर पइसा के सड़क बनवाय के ... । तोर तिर अतेक पइसा   रिहिस त  .. तैं खुदे सड़क ला काबर नी बनवायेस ? दूसर बात – तोर बर सरकार हा सड़क काबर बनवाही ... ओहा तोर काँही लागमानी आय का ... या तोर लागत हे तेमा ... ? जेकर चीज तेला फिकर नइहे ... तैं फिकर करइया कोन होथस .. ? 

प्रार्थी – सड़क सरकार के आय । सरकार अऊ ओकर पइसा हा मोर ... मोला फिकर तो होबेच करही साहेब । 

थानेदार ( थोकिन सोंचे के पाछू ) -  सरकार तोर ... ओकर पइसा तोर ...  फिकर घला तोर ... सब ठीक हे फेर .. तिंही बता ..  सड़क ला कोन हा अऊ कामे डोहार डरही तेमा ... ? 

प्रार्थी – येला कइसे जानहूँ साहेब मेहा .. । उही बात ला जनता जानना चाहथे .. तेकरे सेती तो रिपोर्ट लिखाय बर आये हँव । 

थानेदार – चल तो देखाबे भला .. कति तिर सड़क बने रिहिस ... ? 

प्रार्थी – सड़क बने नी रिहिस साहेब  । पारा म बोर्ड टंगाय हाबे तेकरे ले पता चलिस के सड़क बन चुके हे .. कब बनिस को जनि .. ? 

थानेदार – अरे मुरूख .. जब सड़क बनेच नइहे त ओला कोन चोरा लिही तेमा ... ? झूठ मूठ के रिपोर्ट लिखवाय के आरोप म तुँही ला अंदर कर देहूँ .. । 

प्रार्थी – बिगन बनाये चोरा डरे हाबे साहेब । ओकरे तो रिपोर्ट लिखाय बर आये हँव ... । 

थानेदार ( भड़कगे ) – हमर समे खराब करे बर आय हस रे । जेवर बिसाय के केवल योजना बनाके ... उही जेवर ला चोरा लिस ... जइसे कहत ... रिपोर्ट लिखवाय बर पहुँचगे हस ... । रिहिस बात बोर्ड टंगाय के .. बोर्ड टंगागे .. माने बनबेच करही । 

प्रार्थी – साहेब मोर बात ला समझे के प्रयास करव ... । सड़क बनेच नइहे ... सड़क बन चुके ... के बोर्ड टंगाय हे .. ओकर रिपेयर के नाव ले घला दू बेर पइसा निकल चुके हे .. मोला अतके जानना हे ओ सड़क कहाँ हे ... ? का चील कऊँआ लेगे ... धरती लील दिस ... आकाश चुँहक दिस या पानी म घुरगे ... या काकरो पेट म खुसरगे ... ? 

थानेदार – अतेक बड़ सड़क ला चील कऊँआ लेगही रे ... । धरती लील दिस ... आकाश चुँहक दिस ... पानी म घुरगे ... त एमा थानादार काय करही ... ? रिहिस बात पेट म खुसरे के ... जब तक खाही निही ... पेट म कइसे खुसरही .. ? 

प्रार्थी – उहीच ला तो कहत हँव के खइस कोन ... ? 

थानेदार किथे – कोनो खाथे त तोर काय पिराथे तेमा यार ... अतेक बड़ सड़क ला पेट म राखे सकही तेमा  ?  खवइया के पेट नी पिराही ।  

प्रार्थी – पेट पिरातिस ते पता चल जतिस ... कति खाय हे ... पचगे होही साहेब । 

                    थानेदार हा एकदमेच घुसियागे । प्रार्थी के कालर ला धरके अपन कोति इँचिस । एक रहापट गाल म जमइस । दूसर गाल काबर रिता रहय .. डेरी हाथ म वहू कोति जमा दिस । प्रार्थी के आँखी म आँसू के सैलाब उमड़गे । कातर भाव से शून्य ला निहारे लगिस । थानेदार हा ओला एक कोति धकियावत अपन जगा ले उचे लगिस । प्रार्थी हा ओकर गोड़ ला धर लिस । 

थानेदार – बड़ घेक्खर हस ... । दू रहपट म पेट नी भरिस .. अब लाते खाबे तभे जानबे । लात के देवता बात म नी मानस का ... ? काबर मोरो समे ला खराब करत हस .. ? 

प्रार्थी – एक बेर चलके देख तो लेतेव साहेब .. । कम से कम महूँ ला तसल्ली हो जतिस के मेहा अपन गाँव बर कुछ तो ... । 

                    थानेदार हा गोड़ पटकत .. फटफटावत  .... अपन फटफटी म प्रार्थी ला बइठारिस अऊ उही ठीहा कोति चल दिस जेती के सड़क चोरी होय रिहिस । चारों डहर जोरदार सड़क बने रहय ... । थानेदार हा जावत जावत ... पिछु डहर बइठे प्रार्थी ला गारी देवत रहय ... अतेक सुघ्घर सड़क बने हे .. अऊ तैं सरकार ल बदनाम करे बर तुले हस ... संगे संग वापिस लानहूँ अऊ जेल म अस सड़ाहूँ के ... अवइया पचास बछर तक ... सरकारी समान चोरागे तेकर रिपोर्ट लिखाये के हिम्मत ... कोनो गैर सरकारी मनखे झन करय । एक तिर उदुपले ब्रेक मारिस ... पिछु डहर बइठे प्रार्थी हा फेंकावत बचिस । आगू कोति केवल गड़्ढा अऊ बड़े बड़े खाई दिखत रिहिस ... आगू जाये के रसता बंद रिहिस । दरोगा ला प्रार्थी हा उही तिर टंगाय बोर्ड ला देखइस । सड़क निर्माण शुरू होय के तारीख से पूर्ण होय के तारीख अऊ लागत लिखाय रिहिस । दरोगा घला मुँहु ला फार दिस । प्रार्थी के गाल पिरावत रहय .. ओहा इशारा म खाई ... अऊ खँचका डबरा के ओ पार ला देखइस ... । वहू पार बस्ती तो बड़े जिनीस  दिखत रहय ... । फेर उहाँ तक पहुँचे के रसता नइ दिखत रहय .. । दरोगा साहेब हा वापिस फटफटी म बइठ .. एती ओती किंजर किंदराके उँहो तक पहुँच गिस । वहू कोति ओ पारा  ले  ये पारा ला जोड़े बर सड़क बन जाय के बोर्ड लगे रहय । सड़क नइ दिखिस । दरोगा माथ धरके बइठगे । वापिस थाना पहुँचगे । घेरी बेरी पानी पी डरिस तभो ... चैन नी मिलिस । दरोगा हा एफ.आई.आर. लिखे बर मुंशी ला तुरते किहिस अऊ आजे ले तहकीकात शुरू करे के वचन देवत प्रार्थी ला दुनों पारा के नाव पूछिस । प्रार्थी किथे – एती के पारा ला रामनगर कहिथे साहेब अऊ ओती ला मोमिन पारा ... । दरोगा के पारा उतरगे । एफ. आई. आर. ला शून्य घोषित कर दिस ।                      

                     अखबार के माध्यम ले रिपोर्ट लिखइया के नाव वाइरल होगे । दूसर दिन ... सड़क बनइया सड़क छाप दुकान खुले के बेरा होगे रहय ... दुकानदार मनला अपन समान जाम हो जाये के फिकर धर लिस । रिपोर्ट लिखइया मनखे ला खोजना  जरूरी होगे । सब ओला खोजे लगिन । ओकर तिर ... हाथ जोरइया मनके रेम लग गिस ... बिनती करके समान बेंचइया मन गली गली घर घर अमरे लगिन अऊ दुबारा अइसन गलती नइ करे के बचन घला दिन ... । समान के सही कीमत पाये के आस म  .. दुनों के बीच सड़क बनाय के आश्वासन म पेट भर दिन । ओस चाँटत प्रार्थी हा  ... अपन वोट ला इँकर नाव कर दिस ... । जे पइस ते खुश अऊ जेला नइ मिलिस तेमन चुचुवात हाथ रगड़त रिहिन ... । अब कोनो झन धरय सोंच ... रिपोर्ट लिखवइया हा .. डर के मारे  भागे लगिस ... फेर भागे तो भागे कहाँ ... चारों डहर अथाह गहरा ... कोनो कोति राजनीति के दलदल .. कोनो कोति धरम के ... ।  एक ठन गड्ढा म कूद के निकल भागे के सोंचिस .... । फँसगे ... निकले नइ सकिस ...  चारों कोति बचाओ बचाओ के गोहार लगाय लगिस ... कोई हाथ ओला थामे बर तैयार नी होइस ...  ओहा बुड़े लगिस ... जेहा तिर म आय तेहा ... पहिली नहकौनी मांगय ....  । हरेक दारी नहकौनी के रूप म अपन वोट ला .. अइसने मन ला देबर कसम खा डरिस ... । तबले .. भलुक बुड़ मरत हे .. नहकौनी घला देवत हे  फेर पार नी होवत हे । 

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .

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