Sunday 25 June 2023

सुरता ९ जून २०२३ - चौथी पुण्यतिथि मा विशेष

 सुरता 


९ जून २०२३ - चौथी पुण्यतिथि मा विशेष 



लोक संगीत सम्राट - खुमान साव 


कोनो भी अंचल के संस्कृति वो क्षेत्र के पहिचान होथे. येमा वोकर आत्मा ह वास करथे. जब अपन संस्कृति ल जन मानस समाज ह कोनो मंच म प्रस्तुति के रूप म देखथे त ऊंकर हिरदे म गजब उछाह भर जाथे. ढाई करोड़ के आबादी वाला  हमर छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति के अलगे पहिचान हे. येला जन जन तक बिखेरे म जउन महान कलाकार मन के हाथ हे वोमन म स्व. दुलार सिंह साव मंदराजी, स्व. दाऊ रामचंद्र देशमुख, स्व. महासिंग चन्द्राकर, स्व. हबीब तनवीर, स्व. देव दास बंजारे, स्व. झाड़ू राम देवांगन, श्रीमती तीजन बाई, स्व. केदार यादव, स्व. लक्ष्मण मस्तुरिया,स्व.शेख हुसैन, झुमुक दास बघेल, निहाई दास मानिकपुरी, ममता चन्द्राकार, कविता वासनिक, पूना राम निषाद, लालू राम साहू, स्व. मदन निषाद, स्व. गोविन्द निर्मलकर,माला मरकाम, फिदा बाई मरकाम, सूरुज बाई खांडे, चिन्ता दास बंजारे, रामाधार साहू, दीपक चन्द्राकार, शांति बाई चेलक, स्व. भैया लाल हेड़ाऊ,स्व.गंगा राम शिवारे, बद्री विशाल यदु परमानंद,शिव कुमार तिवारी, मिथलेश साहू, घुरवा राम मरकाम, डॉ. पीसी लाल यादव, शिव कुमार दीपक, नवल दास मानिकपुरी अउ संगीतकार श्रद्धेय स्व. खुमान साव के नांव ल आदर के साथ लेय जाथे. स्व. साव जी ह अपन साधना के बल म छत्तीसगढ़ी लोक संगीत ल खूब मांजिस. हमर लोक गीत ल पश्चिमी अउ फिल्मी संस्कृति ले बचा के माटी के खुशबू ल बिखेरिस. खुमान साव ह छत्तीसगढ़ के नामी कवि अउ गीतकार मन के गीत ल संगीतबद्ध कर के चंदैनी गोंदा के मंच म प्रस्तुति दिस. 

   छत्तीसगढ़ी गीत संगीत बर समर्पित खुमान साव के जनम 5 सितंबर 1929 म राजनांदगॉव के खुर्सीटिकुल (डोंगरगॉव) म होय रिहिस. बाद म ठेकवा (सोमनी )म बसगे. वोकर बाबू जी के नांव टीकमनाथ साव रिहिस. खुमान ल लोक गीत- संगीत के घर म सुग्घर वातावरण मिलिस काबर कि वोकर बाबू जी ह हारमोनियम बजाय. लइका खुमान ह घर म हारमोनियम बजाय म धियान लगाय. फेर वोहा रामायण मंडली म हारमोनियम बजाय ल शुरु करीस. खुमान ह नाचा के भीष्म पितामह स्व. मंदराजी दाऊ के मौसी के बेटा रिहिस .मंदरा जी दाऊ ह खुमान ल हारमोनियम बजाय बर प्रोत्साहित करे. खड़े साज म वोहा  पहिली बार 13 साल के उमर म बसन्तपुर (राजनांदगॉव) के नाचा कलाकार मन सँग हारमोनियम बजइस. मंदरा जी दाऊ द्वारा संचालित रवेली नाचा पार्टी म वोहा 14 साल के उमर म शामिल होगे. वो हर नाचा म हारमोनियम म लोक धुन के सृजन कर छत्तीसगढ़ के माटी के महक ल बिखेरे के जब्बर काम करिस. साव जी ह बी. ए. तक शिक्षा प्राप्त करे रिहिस. वोहर म्युनिसीपल स्कूल राजनांदगॉव म शिक्षक रिहिस. 

    साव जी ह सन 1950-51 म राजनांदगॉव म आर्केस्टा पार्टी घलो चलाइस. छत्तीसगढ़ के कतको शहर के सँगे सँग महाराष्ट्र अउ मध्यप्रदेश म आर्केस्टा के प्रस्तुति दिस. धीरे से वोकर मन ह आर्केस्टा डहर ले उचट गे. 1952 म सरस्वती कला मंडल के गठन करीस. खुमान साव जी के प्रतिभा ल देखके दाऊ रामचंद्र देशमुख ह अब्बड़ प्रभावित होगे रिहिस. 1952 म दाऊ रामचंद्र देशमुख के गांव पिनकापार (बालोद )म मंडई के समय म नाचा होइस. ये कार्यक्रम म देशमुख जी हा साव जी ल हारमोनियम बजाय बर बुलाइस.1953 म घलो अइसने होइस.ये कार्यक्रम के अइसे प्रभाव पड़िस कि रवेली अउ रिंगनी नाचा पार्टी के विलय होगे. काबर कि येमा रवेली अउ रिंगनी पार्टी के संचालक मन ल छोड़ के बाकी नामी कलाकार मन ह आमंत्रित होय रिहिस हे. लोक संगीत अउ कला डहर कुछ अलग काम करे के इच्छा के सेति वोहा 1960 म शिक्षक सांस्कृतिक मंडल के गठन करिस. येमा भैया लाल हेडाऊ, गिरिजा सिन्हा, रामनाथ सोनी जइसे बड़का कलाकार मन शामिल होइस. 

  साव जी ह सबले पहिली स्व. रामरतन सारथी के 3 गीत मोला मइके देखे के साध, सुनके मोर पठौनी परोसिन रोवन लागे, सोन के चिरइया बोले ल लयबद्ध करिस. 1971 म आकाशवाणी रायपुर म वोकर संगीत निर्देशन म गाना रिकार्ड होइस .भैया लाल हेड़ाऊ अउ दूसर कलाकार मन ह गीत गाइस. 

दाऊ रामचंद्र देशमुख ह रेडियो म खुमान साव अउ ऊंकर कलाकार मन के गीत ल सुनिस त साव जी ल अपन गांव बघेरा बुलाइस. वो समय दाऊ जी ह छत्तीसगढ़ के लोक कलाकार मन ल सकेल के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के उदिम करत रिहिस. साव जी ह दाऊ रामचंद्र देशमुख द्वारा स्थापित चंदैनी गोंदा म हारमोनियम वादक के रूप म जुड़गे. चंदैनी गोंदा म साव जी ल अपन प्रतिभा देखाय के सुग्घर मौका  मिलिस. चन्दैनी गोंदा के प्रसिद्धी म संगीत पक्ष के गजब रोल रेहे हे. येकर श्रेय खुमान साव ल जाथे जउन ह अपन साधना के बल म नामी कवि /गीतकार लाला फूलचंद, द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र, रविशंकर शुक्ल, पवन दीवान, प्यारे लाल गुप्त, कोदू राम दलित, राम रतन सारथी, लक्ष्मण मस्तुरिया के गीत ल संगीतबद्ध करके चंदैनी गोंदा म प्रस्तुति दिस. साव जी ह मोर संग चलव रे..., धन धन मोर किसान, घानी मुनी घोर दे, छन्नर छन्नर पैरी बाजे, चिटिक अंजोरी निर्मल छइंहा, मोर धरती मइया जय होवय तोर, पता ले जा रे गाड़ी वाला, बखरी के तुमा नार बरोबर, मोर खेती खार रुमझुम जइसे कतको छत्तीसगढ़ी गीत ल संगीत दिस. ये गीत मन हा अब्बड़ लोकप्रिय होइस अउ आजो जनता के जुबान म बसे हे. छत्तीसगढ़ी लोकगीत गौरा गीत, सुवा गीत, बिहाव गीत, करमा ये मन ला लयबद्ध करे म ऊंकर गजब योगदान हवय.


 लोक संगीत के ये महान

 कलाकार से मोर पहिली भेंट 17 मार्च 2002 म दिग्विजय स्टेडियम के सभागार म 

आयोजित साहित्यिक कार्यक्रम म होय रिहिस. 

दूसरइया भेंट मानस भवन दुर्ग मा आयोजित छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के प्रांतीय अधिवेशन म होइस .इहां के एक संस्मरण बतावत हवँ. कार्यक्रम ह चालू नइ होय रिहिस. साहित्यकार /कलाकार मन के पहुंचना जारी रिहिस. नामी साहित्यकर दानेश्वर शर्मा जी, खुमान साव जी सहित पांच -छै साहित्यकार स्वागत द्वार के पास खड़े होके एक दूसर ला पयलगी /जय जोहार करत रेहेन. इही बीच एक नव जवान कवि ह अइस अउ साव जी ल नइ पहिचान पाइस. हमर मन ले वो नव जवान कवि ह पूछे लागिस कि ये सामने म खड़े हे वोहा कोन हरे. मेहा  साव जी के परिचय बताय बर अपन जबान खोलत रेहेंव त साव जी ह मोला रोक दिस अउ ओकर से पूछिस कि पहिली तँय ह बता तैंहा कोन गांव के हरस. नव जवान सँगवारी ह बोलिस - मेहा बघेरा (दुर्ग) के रहवइया अंव. 

साव जी ह बोलिस कि- तैंहा बघेरा के हरस तब तो मोला तोला जानेच ल पड़ही. अउ मोर नांव नइ बता पाबे त तोला मारहू किहिस ". ये बात ल सुनके वो नव जवान ह सकपकागे!

 वइसे मेहा साव जी के अख्खड़ स्वभाव ले परीचित रेहेन त देरी नइ करत वोला बतायेंव कि - यह महामानव चंदैनी गोंदा के संचालक आदरणीय खुमान साव जी हरे. अइसन सुनके वोहा तुरते साव जी ल पयलगी करिस. जे साव जी ह वोला मारहू केहे रिहिस वोहा वोकर मुड़ी म हाथ रखके आशीर्वाद प्रदान करिस. ये प्रसंग म हमन मुस्कात रहिगेन. 

  फेर साव जी ह नम्र स्वभाव ले वोकर से किहिस कि - तैंहा बघेरा रहिथो केहेस तेकर सेति केहेंव कि मोला जाने ल पड़ही .फेर वो नव जवान ल पूछिस कि दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ल जानथस? श्री विश्वंभर यादव मरहा जी ल जानथस? त वोहा किहिस कि हव दूनों ल जानथव. 

साव जी ह बोलिस कि महू ह दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के घर रिहर्सल मा आंव जी .तेकर सेति तोला केहेंव रे बाबू कि मोला तोला जाने ल पड़ही. 

ये घटना ले पता चलथे कि साव जी ह नारियल जइसे ऊपर ले

कठोर जरूर दिखय पर अंदर ले गजब नरम स्वभाव के रिहिस. 


साव जी ह  हमर साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव के वार्षिक समारोह म चार बेर पहुंचिस. 2012 म करेला (खैरागढ़) भवानी मंदिर मा आयोजित कार्यक्रम म, 2013 म सुरगी के पंचायत भवन म, 2015 म सुरगी के कर्मा भवन म अउ 2016 म  सुरगी शनिवार बाजार चौक के मुख्य मंच मा आयोजित कार्यक्रम म पहुंच के हमन ल कृतार्थ करिस. 2015 म खुमान साव जी ह साकेत सम्मान स्वीकार कर हमन ल गौरवान्वित कर दिस. वर्ष 2016 म 87 साल के साव जी के चयन संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार -2015  बर चयनित होय के खुशी म  साकेत साहित्य परिषद् सुरगी द्वारा नागरिक अभिनंदन करे गिस. 

    2015 अउ 2016 म सम्मानित होय के बेरा म साव जी ह किहिस कि -" मोला जनता से जउन सम्मान मिलथे उही मोर बर सबले बड़का सम्मान हरे. आज तक मेहा राज्य सम्मान अउ पद्म श्री बर आवेदन नइ करे हवँ न अवइया बेरा म करव! हां शासन ह खुद मोला सम्मान देना चाहत हे त दे सकथे. छत्तीसगढ़ के लाखो जनता के प्रेम ह मोर बर सबसे बड़े पुरस्कार हरे. "

   हमर छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के अइसन महान कलाकार ह 9 जून 2019 के दिन 89 साल के उमर म ये दुनियां ल छोड़ के स्वर्गवासी होगे. 

            

          ओमप्रकाश साहू "अँकुर "                सुरगी, राजनांदगॉव (छत्तीसगढ़)

भाव पल्लवन--- हाथ न हथियार, कामा काटे कुसियार।

 भाव पल्लवन---



हाथ न हथियार, कामा काटे कुसियार।

----------------------------------

खेत मा लगे कुसियार के फसल ला काटे बर धरहा हँसिया या फेर आजकल के हिसाब ले गन्ना फसल काटे के मशीन जइसे साधन होना चाही जेन एके बार मा चक ले भुइयाँ ले लगती गन्ना के पौधा ला काट दय।अइसन करे मा ही सहीं ठंग ले कम समे मा जादा ले जादा ले जादा पौधा ला काट के लाभ प्राप्त करे जा सकथे। कोनो बिना साधन के अँइठ-अँइठ के कुसियार के पौधा ला टोरही त भला कतका पौधा ला टोर पाही? मुरकेट के टोरे मा भारी नुकसान अलग से हे काबर के अइसन टोरे म बाँचे डंठल मा दुबारा पीका नइ फूटै जबकि एक पइत गन्ना के फसल बोंके उही पौधा ले दुबारा,तिबारा फसल ले जाथे---अउ बोंये ला नइ परै।

 ये तरह ले कोनों लक्ष्य ला  बने ढंग ले पाये बर साधन हा बहुतेच सहायता करथे  ।साधन के बहुतेच महत्व होथे।जइसे के कोनो विद्यार्थी ला पढ़ना लिखना हे ता पट्टी पेंसिल ,पेन ,पुस्तक , कापी आदि साधन के होना जरूरी हे तभे वोहा पास हो पाही।

 कोनो चीज हा इच्छा करे भर ले नइ मिल जावय।वोकर बर साधना मतलब कठिन मेहनत के संग उचित साधन जुटाये बर लागथे। कोन काम बर कोन साधन चाही,कोन रद्दा मा चलके मंजिल मिल पाही एकर ज्ञान होना जरूरी होथे।

   व्यापार मा सफलता पाना हे ता वोकर बर पूँजी(रुपिया-पैसा) रूपी साधन जरूरी हे। कोनो व्यापार करना चाहत हे त वोकर पास शुरुआती लागत लगाय बर धन चाही अउ कहूँ नइये ता बैंक ले लोन लेके जुटाये बर लागही।वोला बाजार के उतार-चढ़ाव ला समझे बर लागही।

  कोनो ला खेती-किसानी बने ढंग ले लाभ मिलय तइसन करना हे ता नागर-बक्खर ,खातु-माटी ,बिजहा ,दवई-पानी जइसे साधन के होना जरूरी हे। साधन के बिना साध्य(लक्ष्य ) के मिलना दूभर हो जाथे।


चोवाराम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ओ पारस पथरा //* =====०००===== (छत्तीसगढ़ी नाटक)

 *//  ओ पारस पथरा //*

=====०००=====


    (छत्तीसगढ़ी नाटक)



*पात्र परिचय :-*

जेठू-पति

बरखा- पत्नी

  (तीन बेटे)

बड़कू,छोटकू अउ मंझिला


*बड़कू-* ददा,ए ददा, कस गा .......

*जेठू*- का ए रे ? का कहना चाहत हस ? 

*बड़कू*- शिक्षाकर्मी भर्ती के विज्ञापन निकले हे,

*जेठू*- तव का ?

*बड़कू*- पांच सौ रूपीया दे,फारम भरहूं अउ किताब बिसाहूं 

*जेठू*- तोर रात-दिन परीक्षा फारम भराई अउ दूरिहा -दूरिहा शहर जा के परीक्षा देवाई म मैं हलाकान हो गयेंव! सफलता मिलबेच नइ करै,आखिर वोही "ढाक के तीन पात" |

*बड़कू*- कुछू विज्ञापन निकलथे तव फारम भरहूं अउ परीक्षा देवाहूं,तभे तो नौकरी मिलही ददा |

*जेठू*- सैकड़ों बार तो परीक्षा देवा डारे बेटा,अईसने करत -करत तोर उमर पहागे ! ३५ बच्छर के हो गए हस! कुछू हूनर से चार पैसा कमाते,तव तोर बिहाव कर देतेंव | कुच्छू काम नइ करस,तेकरे सेती सुग्घर संस्कारित बहुरिया नइ मिलै ! 

*बड़कू*- एही आखरी परीक्षा आय ददा,ए पईत नौकरी नइ मिलही, तव रोजी-मजदूरी तो करबेच करहूं ! 

*जेठू*- बेटा हमन ए धरती दाई के सेवा करथन,तव मेवा अवश्य मिलथे | तुहूं मन "एही धरती दाई के सेवा करौ,नौकरी-चाकरी के चक्कर ल छोड़ौ | पहिली के सियान मन ठीक कहत रहिन :-

*उत्तम खेती, मध्यम व्यापार*

*नीच चाकरी, भीख निदान*

*बड़कू*- (गुस्सा के) रहे दे तोर उपदेश ल गा | अत्तेक पढ़ लिख के, का खेती किसानी करबो ?

*जेठू*- का होही बेटा, धरती दाई के सेवा करे ले, मेवा जरुर मिलथे गा |

*बड़कू*- 500 रुपया दे, मैं कुछु नइ सुनौं |


*जेठू*- मोर पास अभी फूटी कौड़ी नइ हवय, मैं कहां ले कैसे देंव ?

*बड़कू*- तैं कईसनो कर के दे, नहीं तव मैं जाथौं उधर लेहूं |

*जेठू* ( गुस्सा के) उधारी लेबे,तेला तोर कोन बाप ह छूटही रे ? 

*बड़कू*- तैं छूटबे अउ कोन छूटही ? 

*ओतके बेर बरखा ( जेठू के गोसाईन) आथे |*

*बरखा*- अयी,बिहान-बिहान ले बाप-बेटा के झगरा काबर माते हे ? 

*जेठू*- देख न ओ, तोर टूरा ला समझा, थोरकुन का पढ़-लिख डारे हे,मोर संग मुंहजोरी करथे ! 

*बरखा*- का होगे बेटा ? काबर अत्तेक गुसियाय हस गा ? 

*बड़कू*- शिक्षाकर्मी भर्ती के विज्ञापन निकले हवय, ददा तिर 500 रुपया मांगत हौं, तव नइ देवथे ददा ह ! 

*बरखा*- कस बेटा, तैं ह घर के हालत ल जानतेच हस,तभो ले कइसे अक्किल नइ करस गा,"अपन फजीहत ह आने बर हांसी होथे ! 

*जेठू*- बड़कू बेटा ह पढ़े हवय,कढ़े नइ हे ! फकत हाय परान पैसा -पैसा-पैसा ......... ! चाहे बाप ह मरै के बांचै! 

*बड़कू ( रोवत-रोवत कहिथे) कस दाई,पढ़-लिख के नांगर थोरे चलाहूं ? फेर ए दारी आखरी बार 5०० रूपीया मांगत हौं, ददा ह सफ्फा इंकार करत हे,मोर तिर एक्को रूपीया नइ हे कहत हे ! 

*जेठू*- सुन बेटा तोला पढ़ाई छोड़े १०  बच्छर होगे ! नौकरी के चक्कर में अपन जिंदगी के कीमती समय ल झन गंवा ! कतको रुपया पैसा बर्बाद कर डारे ,कुछू हासिल नहीं होईस !

*बरखा*- तोर ददा ह ठीक कहत हे बेटा |सब्बो पढ़ैयन ल नौकरी कैसे मिलही ? हर साल लाखों विद्यार्थी पढ़- लिख के बेरोजगार होवथें, सरकार ह कत्तेक झन ल  नौकरी देही ?

*बड़कू*- रोवत -रोवत कहिथे- एही आखरी प्रयास आय दाई, एकर बाद भी नौकरी नइ मिलही,तव रोजी-मजदूरी करबेच करहूं ! तोर पांव पड़त हौं दाई, मोला 5०० रूपीया दे,नइ तो मैं जहर खा लेहूं, ऊं हूं हूं .........

*बरखा*- हाय मोर लाल,अईसन शब्द कभ्भू झन बोलबे, तुंहरे पालन-पोषन अउ अच्छा भविष्य बनाए बर तो हम जीयत हन बेटा,नइ तो गरीबी के दुःख म कब के मर जातेन ( बरखा के आंखी ले आंसू के धार बोहाय लगीस) |

     फेर भीतर जा के गुल्लक ला फोड़ के 5०० रूपीया लानथे अउ कहिथे- ए ले बेटा,जा शिक्षाकर्मी भर्ती के फारम भर ले अउ किताब बिसा लेबे |

    *बड़कू ह शिक्षाकर्मी भर्ती के फारम भरथे,किताब बिसा के लानथे अउ खूब तन-मन से परीक्षा के तैयारी करके परीक्षा देवाथे*

     *कुछ दिन बाद शिक्षाकर्मी भर्ती के रिजल्ट आथे | बड़कू ह खूब उत्साह से परीक्षा परिणाम देखथे, फेर एहू पईत बड़कू ह फेल हो जाथे !*

    *वो दिन बड़कू ह बड़े बिहान ले घर ले बाहिर निकल जाथे*

     

  *जेठू,बरखा अउ छोटकू,मंझिला सब मिल के बड़कू ल खोजे बर निकलथें | गांव-बस्ती,रिश्ता-नाता सब जघा खोजथें,जघा-जघा फोन लगाथें फेर कोनो जघा बड़कू के पता नइ चलय! ओ दिन ऊंकर घर चुल्हा म आगी नइ बरै ! ओ हो ! दिन भर रोवाई,आंसू के धार बोहाई म जेठू अउ बरखा असख्त हो गईन !*

     *थाना म रिपोर्ट लिखा देहिन - मोर बड़कू बेटा ह आज बिहन्ने ले बिना कुछ बताय कहां लापता हो गए हे !*


   *बिहन्हे ले संझा तक पारा-परोसिन मन आ-आ के ढाढस बंधावत रहिन,चुप हो जाव,धीरज धरौ,बड़कू ह खच्चित आही, समझदार लईका हवय,कुछू अलहन नइ करै !*

     *एक झन परोसिन ह ओमन ल जबरन अपन घर ले के खाना-पानी देहिस अउ ऊंकर मन ल बोधे के कोशिश करीस,तेमा इंकर घर अउ कुछू अलहन मत हो जाय !*


    *भैंसा मुंधियार हो गे,तव घर म दीया बार हूं कहिके बरखा ह अपन जीवन जोड़ी अउ करेज्जा के टुकड़ा मंझिला अउ छोटकू संग अपन घर आईन, ततके बेर अपार दुखी मन स व्याकुल बड़कू ह अपन घर म आईस, तब का पूछबे जम्मो झन एक-दूसर ल पोटार के खूब रोईन ! मुंह से कोनो के शब्द नइ निकलत रहिस,फेर जेठू ह सब ले पहिली चुप हो के सब ल चुप कराईस*


*बरखा*- *कहां चल देहे रहे मोर लाल,आज तैं हा कुछू अलहन कर डारते, तव हम सब जहर पी के या फांसी करके मर जातेन !!!*

    

   *बरखा के ए बात ल सुन के सब झन फेर बोमपार के रोए लागिन, खूब देर तक ऊंकर आंखी ले गंगा-जमुना के धार बोहावत रहिस!!! फेर बरखा ह अपन आप ल सम्हाल के सबो झन ल चुप कराईस अउ कहिस- " मोर लाल के जान बांचिस,लाखों पायेन "!*

    *अब अईसन नादानी कभू झन करबे बेटा,नौकरी नइ मिलय,तव झन मिलय | भगवान हमला दू हाथ-दू पांव देहे हवय,तन म खूब ताकत देहे हवय,मन-मस्तिक म खूब ज्ञान देहे हवय | मेहनत करके ए दुनिया म दू बखत के रोटी जुगाड़ कर लेबो !*


   *( रात के रूखा-सुखा जऊन रूचिस, जेवन करके सुत गईन)*


   *बिहान दिन बरखा ह बड़े भिनसार ले उठ के चाय बना डारिस अउ अपन गोसईया ल कहिस- लेवा उठा चाय पी लेवौ |

*जेठू*- एही ल बेड टी कहिथें का जी ? 

*बरखा*- हव,आज बेड टी पी लेवौ |

*जेठू*- नहीं जी, मोला अच्छा नइ लागै, मैं आंखी-मुंह धो के पीहूं |

*बरखा*- *लेवा तुमन आंखी-मुंह धो लेव, तब तक लईकन ल जगा के चाय पीया देंव | तीनों लईकन चाय पीयत रहिन,ततके बेर बरखा ह कहिस- बेटा,आज रात के मैं ह एक सपना देखे हौं* |

 *तीनों बेटा एक स्वर म पूछिन- "का सपना देखे हस दाई ?*


*बरखा- आज रात के महादेव-पार्वती मोर सपना म आए रहिन अउ बरदान मांग कहिन |*


*(तीनों एक स्वर में) अच्छा !!!!*

*तव का वरदान मांगे हस दाई?*


*बरखा*- *मैं कहेंव- भगवान मोर गरीबी ल दू . ...........र कर दे भगवान ! काबर के ए दुनिया म गरीबी ले बड़े दुख कुछ नइ होय ! सब ले बड़े दुख गरीबी होथे !!!! गरीबी के कारन ही मैं तुंहर पूजा-पाठ,ध्यान-आराधना,तीर्थ यात्रा नइ करे सकौं भगवान!!!*

*उत्सुकता से तीनों एक साथ बोलीन- तब भगवान का कहिस दाई ?*


*बरखा*- *भगवान कहिस- तुंहर भर्री-टिकरा म "पारस पथरा" हावय बेटी,ओही ल खन के निकाल लेव, तुंहर गरीबी दूर हो जाही*

*( तीनों एक साथ) अईसे ? तव चला आजे ले खने बर सुरू करबो अउ ओ "पारस पथरा" ल निकाल के हमर गरीबी दूर करबो*


   * *सब झन गैंती,रांपा,झउहा धर के भर्री टिकरा खेत गईन, खूब जोश,उत्साह अउ विश्वास के साथ अपन भर्ती टिकरा खेत ल खन डारिन*


  *एसों खूब फसल होईस, घर के कोठी,पटांव,परछी सब डहर धान के भंडार भर गे*

    *खेत के मेड़-पार म तिल,अरहर खूब लहलहाय लगीस*

   

    * *खेत के मेड़-पार म गांव भर ले जादा,तिल राहेर उपजे रहे*

    *एक दिन अपन भर्री-टिकरा ल तीनों भाई खनत रहिन,बरखा ह ओमन ल काम जोंगत रहिस, जेठू ह घाम के बेरा म एक पेड़ तरी छईंहावत रहिस,ततके बेर तीनों बेटा मन पूछिन - कतेक दिन म "ओ पारस-पथरा" मिलही दाई ?*


*बरखा*- *ए टिकरा ल पूरा खनिहा,तभे "ओ पारस पथरा" मिलही बेटा*


*पेड़ के छांव म बईठे-बईठे जेठू ह अपन तीनों बेटा के प्रश्न अउ बरखा के जवाब ल सुन के कहिस - "वाह बरखा वाह! तैं सिरतोन म लक्ष्मी, सरस्वती अउ दुर्गा के स्वरूप अस, धन्य हे तोर धीरता,वीरता,संयम,ज्ञान अउ समझदारी ल "*


    *तोरे सहीं समझदारी सब नारी ल हो जाही,तव सबके लईकन ल "ओ पारस पथरा" खच्चित मिल जाही "*



*(दिनांक - 12.06.2023)*



आपके अपनेच संगवारी


*गया प्रसाद साहू*

"रतनपुरिहा "

मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़)


👏☝️✍️❓✍️👏

का करि डारेंव काकर बुध मा - डॉ.बी. नंदा*

 *का करि डारेंव काकर बुध मा -  डॉ.बी. नंदा*


मनखे के हदरही ल का कहीबे। कतकोहन मिल जाए फेर ओकर पेट हा नई भरे। परकिर ती ह कतको जिनिस ला देत हे, फेर ओला कमतिच परथे। हवा, पानी, जंगल- झाड़ी, आगी, फल- फूल, कंदमूल, लकड़ी, जम्मो जीवन के सबो अमृत ल कुड़हो देथे। फेर का करबे, कारखाना बनाना हे,  धुआं फेंक- फेंक नंगत के गाड़ी चलाना हे, जंगल ला काटना हे, तरिया ला पाटना हे, कुआं ला पाटना, नदी नरुआ ला पाट- पाट के घर बनाना हे, चाकर- चाकर छे लेन के सड़क बनाना हे, खेत- खार मा भक्कम खातू डारना हे, गरवा- गाय के कोई जतन नहीं, जेखर करा हवे तेहा, कांदी - कचरा कहां के खवाही ऊहू हर दुनिया भर के नवा- नवा, रंग - रंग के दाना-दुचरा ल खवाथे। एकरे मारे दूध ह घ लो आजकल सुद्ध नई मिलए। अऊ उपराहा मे लोगन नकली दूध बनाथे यूरिया खातू डार- डार के।वाह! रे मनखे अपने मन बर अपनेच दुसमन बनगेहे। हाय रे पइसा, देखेंव निही तोर  जईसा।

मनखे हर जीहां जाथे तिहां कचरा करथे। एवरेस्ट के चोटी ह घलो नई बांचे हे। कतरो लिखाय राहय, एकरा कचरा फेंकना मना हे, फेर मनखे के जात, नियम ल माने से जादा   टोरे मां मजा आथे। हमर देस में तो ईही तरह देखे ल मिलथे। एकरे सेती सरकार ल साफ- सफई बर अभियान चलाना परथे, कभू हाथ धुलाई अभियान, कभू स्वच्छता अभियान। चलगे अभियान दू दिन, तहां अभी जाके देख लव गांव ल कहांव कि सहर ला- मार कचरा गंजाय रही अऊ बस्सात, बजबजावत रहिथे। अब भई नियम ल नई मानही त कईसे होही? हमर पारा मां घलो देखथंव रोज ऐ डहा कचरा वाले मन आथे सूखा कचरा, गीला कचरा दूनों परकार के बाल्टी हे तभो ले कई झन मन कचरा ल परोस मा कुड़हो देथे।

अइसने गांव मन के हाल हे। पहीली सबके अपन- अपन घुरुवा राहय गांव के बहीरी मा। आजकाल सबो भूईंया बटागे अऊ सबो घूरुवा पटागे। जेकरा देखबे तेकरा कचरा के कुढ़ोना।

परियावरन ला बिगाड़े के काम सबले जादा मनखे हर करथे ता ओला सुधारे के काम ऊही ल करना चाही। हम्मन सब देखे हन कि कोरोना के समय जब लाकडाऊंन होय रिहीस तब पारियावरन कतेक स्वच्छ होगे रहिस। सब ला चाही कि एकर खातिर कुछु न कुछु उदिम करे।

जब सड़क बनाए बर पेड़ काटे जाथे त तुरते लगाना भी चाही। बहुत अकन नदी मन कारखाना मन के मारे मईला हो गे हे, हमर पबरीत गंगा दाई के का हाल होगे हे? मार दुनिया भर के योजना बनथे फेर आज ले ओकर सफई नई होय हे। मोर मानना हे कि पहीली मनखे के दिमाग के सफई होना जरूरी हे।

नदिया ल घुरुवा झन समझे जाय, जेमा कभी मुरदा ल, त कभू कचरा ल बोहा देथें, कहां जाहि सड़न ह। अइसना तरह जंगल के बात, सरकारी नरसरी लगथे फेर पेड़ मन कते डहा उड़ा जाथे? हम्मन रोज - रोज गोठियाथ न परियावरन के बारे में, फेर आज जरुरत हे गोठियाना छोड़ के बुता ल सही तरीका ले करे जाय। सरकारी पईसा, सरकारी जिनिस, सरकारी काम सबला ये देस के मन अपन मान के नई बउरही तब तक कुछु काम के कोई बने परिनाम नई दिखये। 

एकर मतलब सरकारेच ह करही सोंच के बईठे नई रहना हे। परियावरन बर हम सब ला मिलके उद्दीम करना परही। लईका मन ला बचपन ले परकीरति बर प्रेम भावना अऊ साफ - सफई बर सचेत करे ल परही तभे तो अवइया समय मा परकिरती दाई के कोरा मा सुख के नींद सुतही। नहीं त पछतात रही अऊ कहात रही का करी डारेव काकर बुध मा।

                              

*डॉ. बी. नंदा. जागृत* 

   *राजनांदगांव*

मोर आंखी कहां हे ?//* ======०००===== (छत्तीसगढ़ी नाटक)

 *// मोर आंखी कहां हे ?//*

======०००=====

    (छत्तीसगढ़ी नाटक)

------------------


*पात्र परिचय*


१.  बबा- अंकड़ू

२. नाती- चुलबुल

३. बहू-  कलकलही

४. परोसी- बुधवारा 



*अंकड़ू* - हाय भगवान ! मोर आंखी कहां गंवा गे ? मोर जिनगी बिरथा होगे ! कुच्छू जिनीस नइ तकावथे, "सिरतोन म आंखी बिना जग बिरथा होथे ! भगवान के बनाए कत्तेक सुग्घर-सुग्घर जिनीस! फेर अंधरा बर का काम के ?

*चुलबुल*- सिरतोन म तैं अंधरा हो गए हस का बबा ? 

*अंकड़ू -* अरे बदमाश,मोला अंधरा-वंधरा झन बोल |

*चुलबुल* तव का बोलौं,आंखी वाला बोलौं ?


**अंकड़ू* *आंखी वाला   नहीं रे पगला,आंखी वाला काला कहिथै जानथस ?*


*चुलबुल*- *हां हां जानथौं |*

*अंकड़ू - काला कहिथें ?*

*चुलबुल* *जेकर दू ठन आंखी रहिथे |*

*अंकड़ू*- *ऊं हूं  पगला कहीं के,जेकर दू ठन आंखी रहिथे,वोला आंखी वाला बोले के जरूरत ही नहीं हे,बल्कि "जेन टोनही-टोनहा होथे, तांत्रिक सिद्धि वाला होथें,तऊने मनखे ल "आंखी वाला कहिथें" समझे रे टुरा ? तव का मैं तोला आंखी वाला लगथौं?*

*चुलबुल - नहीं,तैं आंखी  वाला नइ हस ! तोर तो आंखीच नइ हे  ! कनवा हस का ?  हा हा हा हा ........*

*अंकड़ू - बदमाश कहीं के,मोला कनवा कहत हस,मारहूं तोर अऊहर-चऊहर ला,किंजर जाबे लपरहा कहीं के*

*चुलबुल - तव का कहौं ? आंखी वाला कहिथौं तव नाराज हो जाथस, कनवा कहिथौं,तभो नाराज हो जाथस! का कहौं बता ?*

*अंकड़ू - चस्मूद्दीन बोल*


*चुलबुल - ओ हो हो ........ए डोकरा चस्मूद्दीन ए रे! हा हा हा हा ............*

*अंकड़ू - अब चस्मूद्दीन कहि के हांसत हस, तैं खूब शैतान हो गए हस  रे  ! तोला दू-चार लौड़ी लगाहूं,तभे तैं चेतबे (कहिके चुलबुल ल दौड़ाए लगिस) अरे रूक न बदमाश - रूक न रे ...........*

*चुलबुल - एतीओती भागे लगीस अउ अगूंठा दिखा-दिखा के कहै- अब ठेंगा ल पा- अब ठेंगा ल पा,अउ जीभ निकाल-निकाल के जीबरावै घलो लो लो लो लो...........*

*अंकड़ू - तैं मोला हलाकान मत कर,मोर आंखी ल दे न रे,नइते खूब पीटहूं .........*

      

    *बहुरिया,देख तो तोर टुरा ह मोला पेंजत हवय,वोला समझा दे,नइतो खूब पीटहूं*

*कलकलही- हूं, वोहा तुमन ल का पेंजत हे ? तुंही मन तो वोला नाहक पेंजत हवौ, मोर लईका ल मारे झन करौ,नईतो खाना-दाना नइ देहूं ! तुंहर सब मसमोटी निकल जाही समझे*

*अंकड़ू - सन्न हो गे !  हाय राम ! भलाई के जमाना नइ हे ! एकरे टुरा ह मोला पेंजत हवय,मोर आंखी ल कहां लुका दिए हे ? मोर नजर तकात नइ हे अउ उल्टा बहुरिया ह मोही ल धमकी देवत हवय- खाना-दाना नइ देहूं ! काय करौं राम ? ए जीव ल कईसे राखौं भगवान ? तहींच ह न्याय कर दे!!!*

    

  *अंकड़ू ह ओ दिन अन्न-पानी नइ छुईस, अईसे-तईसे सांझ हो गे, खूब झुंझलाए असन पड़ोसिन बहुरिया घर बईठे गईस |*

*बुधवारा*- *आवा हो कका ससुर बईठा, तुंहर चेहरा ह आज कईसे उतरे हे, कुछु खाय-पीए नइ हवौ, के तबीयत खराब हे ?*

*अंकड़ू*- *का दुख ल गोठियांव बहुरिया, ओ बेलबेलहा टुरा चुलबुल ह मोर आंखी ल कहां लुको देहे हे ?* *पूछथौं तव बताय नहीं, अउ आंखी तकाय नहीं ! तेकरे सेती ओ कलकलही बहुरिया ल कहे हौं- तोर टुरा ह मोला खूब पेंजथे,एला समझा दे , तव उल्टा मोही ल धमकी -चमकी देवत रहिस -** *मोर बेटा ल पेंजे झन कर ,नइतो तोर दाना-पानी बंद कर देहूं कहत रहिस !* *एही दु:ख म आज दिन भर मोला भुकूर-भुकूर लागत हावे ! एको दाना अन्न नइ खाए हौं, न ही एको बूंद पानी पीए हौं!!! मर जांव तईसे लागत हे बहुरिया ! जहर खा लेंव,के फांसी कर लेंव! तईसे लागत हावे ! ऊं हूं हूं हूं ......*


*बुधवारा*- *लेवा चुपा,काबर मरिहा? मरै तुंहर दुश्मन ! अरे जै दिन भर भगवान ह ए दुर्लभ मानव जोनी दिए हे, तै दिन सुग्घर छुछिंद हो के जीयव | पेट भर खावौ-नींद भर सुतौ |*

  

*अंकड़ू*- *का दुख ल गोठियांव बहुरिया,"ओ कलकलही के बोली-ठोली ह बान मारे सहीं लागथे ! छाती ल हुदक्का मारथे! ओकर जहर सहीं बोली सुने के सेती फांसी ह साउंग लागथे! फेर ओकर बोली नइ सहाय ! हाय भगवान! अब सकेल लेते ! चौथे पन म अपन दुख-सुख के संगवारी जीवन साथी नइ रहै,तव एक-एक पल ह पहार सहीं लागथे बहुरिया  ऊं हूं हूं हूं ............*


*बुधवारा*- *"लेवा भईगे चुपा,दुख के बात ल जतके सुरता करिहा,ततके बाढ़ते जाथे |*

     *अपन बेटा-बहू के बनौकी बनाए बर कत्तेक दुख ल सहे हवौ, कत्तेक त्याग-तपस्या करे हवौ ? अपन मुंह के कौंरा ल बचा के बेटा-बहू बर अतेक जरजाद ल जोरे हवौ अउ आज तुंहर बहुरिया ह एक-एक दाना बर तरसावत हवय ! ओकरो लईकन तो वोला अईसने एक-एक दाना बर तरसाही ! एक बूंद पानी बर तरस जाही ! सुरूज नारायण ह गुह ल सुखोय बर नइ उवै! ओला सबके तिल-तिल राई-राई बात के खभर हे ! आज हमारी-कल तुम्हारी ! करम दंड मिलेंगे बारी-बारी !*

     *ए लेवौ छोटकन रोटी चाब लेवौ,पानी पी लेवौ, तन-मन के अगनी शांत हो जाही !*

*अंकड़ू*- *नहीं बहुरिया, कहीं ओ कलकलही ल पता चल जाही- बुधवारा घर रोटी खाईस हे डोकरा ह, तव एको दिन खाना-पानी नइ देही ! चार दिन के जीयैया, दुई दिन म मर जाहूं ! ऊं हूं हूं हूं ..............*

*बुधवारा*- *लेवा भईगे चुपा,  तुंहर सग्गे बेटा-बहुरिया ह खाना-पानी नइ देही, तव हम धरम के बेटा-बहुरिया मन तुंहर सरेखा करबो,खाना-पानी देबो, विधि-विधान से तुंहर तिथि-गंगा घलो कर देबो | काबर दुख करथा हो ?*


  *बुधवारा के अतेक महान सांत्वना भरे बात ल  सुन के बबा एकदम भावुक हो गे ओकर अंतस ले हुदक्का मारीस,तव बोमपार के रोए लागिस ऊं हूं हूं हूं .................*


*( घर-घर के राम कहानी,ए नाटक ह कईसे लागिस? खच्चित लिखे के कृपा करिहौं)*



*दिनांक - १३.०६.२०२३*


*(सर्वाधिकार सुरक्षित)*


आपके अपनेच संगवारी


*गया प्रसाद साहू*

"रतनपुरिहा"

*मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़)*


👏☝️✍️❓✍️🙏

बेरा बखत के व्यंग-"राम-राम"

 बेरा बखत के व्यंग-"राम-राम"

        दू ठन मेंचका मन टरर टरर नरियावत राहय में कहेंव कस जी तूहर तो अभी दिन बादर नी आय हे तभो ले टरर - टरर नरियावत हो।मेंचका मन कथे अब तो हमरो मनके दिन बादर के कोनो ठिकाना नी राहय।इंहा बारो महिना जब पाय तब कहूं जगा बरखा रानी बरस जथे।

त हमू मन नरियाय लेथन।बछर कईसे बितथे पता घलो नी चले।मेंचका कथे। अऊ सुना तुहर मन के का हाल चाल।बस जस हाल तुंहर तस हाल हमर।कब लईका ले जवान,जवान ले सियान,होथन पताच नी चले।आठो काल बारो महिना चुनाव।वहू मन तको बारो महिना तुम्हरे मन कस नरियावत रहिथे।

           मेंचका ह कथे सुने हों आजकल तो तूमन ल अड़बड़ रमायनिक हो गे हो ।साल म दू दू बेरा  रामायण प्रतियोगिता कराथौ।त ऐकर ईनाम घलो जोरदरहा मिलत होही।मे हर कान म खुसूर -फूसुर बताएंव ,कतको जगा तो पिछलऊहा प्रतियोगिता के ईनाम घलो नी मिले हे रे मेचका।मेचका ह कथे यहा गरमी म प्रतियोगिता कराथौ त कोनो पारटी -वारटी ,सुनईया -गुनईया आथे नीही जी।तूमन तो बने हो रे मेंचका पानी म बुड़े रहिथो,यहा गरमी म कोन ह परान ल दे बर आही। कतको जगा तो एके पारटी आय, अपने मन गवईया, अपने मन बजईया, अपने मन सुनईया । फेर साल मे दू बेर प्रतियोगिता समझ ले बाहिर हे।सब अइसन समझत हे रे मेचका राम रामायण ले ऊंकर बेड़ा पार हो जही। फेर करम तो घलो करे ल पड़ही।इहां चुनावी पारटी वाले मन न रे मेंचका चुनाव आथे तहां ले सब राम के हो जथे।जे मंच म देखबे ते मंच म राम बिना परपंच सुरु नी होय ।हम राम बर ऐ बनायेन,हम वो बनायेन। पता नही राम ह ऐमन ल बनाईस के राम बर ऐमन ह।मेचका कथे हमरो बेड़ा पार करे बर एकात ठन भजन -उजन ,गाना सिखा देतेव।मे केहेव सिखबे त ले सिख- तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार ,

उदासी मन काहे को करे।

         मेचका पूछथे अऊ बता का काम बुता चलत हे।मे केहेव तूहरे मन बर तो रोजगार गारंटी म तरिया डबरी ल कोड़त हन।मेचका कथे फेर ये बता  जब जब अषाढ़ के आती होथे अऊ तरिया डबरी खुलथे?इहीच ह मनखे मन के कला आय रे मेचका।जईसे चोर मन कर हर ताला चाबी रहिथे।वईसने वहू मन बहुत दूरिहा के बिचारथे। बरसात के पहिली पूर्वानुमान।तभे तो पंच बर हजारो , सरपंच बर लाखों रूपिया चुनाव म उड़ा देथे।वतका म मेचका कथे भईया मोरो नाम ल वोटिंग लिस्ट म जोड़वा देतेस। आधार- वधार बनवा देतेस,सुने हो इहां सब बहिरी ले आथे  उकरो फरजी आधार बन जथे।महूं ह चुनाव के गंगा म डुबकी लगा लेतेव।मोरो जीवन धन्य हो जही।ताहने महू अषाढ़ के आती -आती तरिया डबरी कोड़वातेंव।

            मेचका कथे तहू 

मन करोड़पति होहू न जी ।टीवी म देखात रहिथे  डरीम इलेवन में टीम बनाईये करोड़ो कमाइये।सुने हो बडका बड़का हस्ती मन तको ऐसन सट्टा जुआ के विज्ञापन करथे। ओकर लोग लईका मन ह ऐसन गेम मन ल खेलत होही जी। करोड़ों कमातेन त तरिया कोड़े बर कार आतेन रे मेचका ।ऐ हस्ती मन सब बेचरऊहा हरे, इंकर कोई इमान धरम नइ हे ,नही ते ऐमन देश के भविष्य ल बिगाड़े के विज्ञापन ल करतिस।ऐमन लिलामी म बिकथे रे मेचका अऊ मालिक मन बर जी जान लगा के खेलथे।अऊ देश बर खेलना हे त टेस्ट मैच के वर्ल्ड कप फाइनल देखे हस---?

                  फकीर प्रसाद साहू 

                    ग्राम -सुरगी

               जिला -राजनांदगांव

भाव पल्लवन-- तेल फूल मा लइका बाढ़े,पानी मा बाढ़ै धान। खान पान में सगा कुटुम्ब, करमइता बढ़ै किसान

 भाव पल्लवन--



तेल फूल मा लइका बाढ़े,पानी मा बाढ़ै धान।

 खान पान में सगा कुटुम्ब, करमइता बढ़ै किसान

-----------------------------

कोनो जिनिस के बढ़ोत्तरी बर कुछ विशेष चीज अउ परिस्थिति के जरूरत होथे वोकर बिना ठीक से विकास नइ हो सकय।

  नन्हा बच्चा के शारीरिक अउ मानसिक विकास बर वोकर तेल मालिश करे जाथे। तेल मालिश करे ले वोकर हड्डी मन मजबूत होथे। शरीर ला बने ढंग ले आक्सीजन मिलथे। कोमल शरीर मा खून के दौरा सुचारू रूप ले होथे संगे संग वोकर भुजा,कनिहा,हाथ-गोड़ मन मजबूत होथे। 

     लइका ला कोमल हाथ ले एक दिन मा कम से कम दू -तीन पइत मालिश करे ले वो हा जल्दी बइठे, मड़ियाये अउ रेंगे ला सिखथे।वोकर शरीर हा लुदलुदहा नइ होवय। मालिश करइया महतारी या फेर बुआ,दादी, दाई के कुँवर-कुँवर स्पर्श हा बच्चा ला बहुतेच अच्छा लागथे अउ वो हा  मया ला अनुभव करत अपन भावना ला बताये के कोशिश करथे जेकर ले वोकर मानसिक विकास होथे अउ दिमाग ह तेज होथे।

  अइसनहे धान के फसल हा पानी मा बाढथे वोकर खेत मा कम से कम ह

छै-सात इंच पानी भर के रखे ला परथे ।वोकर जर हा पानी मा बूड़े रहिथे तभे बने फइलथे अउ धान के पौधा गछिनियाथे। पानी मा बूड़े रहे ले बहुत कस कीरा-मकोरा ले तको बाँच जथे।

  अइसनहे जेन घर मा खान-पान ,स्वागत सत्कार अच्छा होथे,जिहाँ सगा बर खुशी -खुशी मुँह फुटकार के एक लोटा पानी निकलथे वो परिवार के सगा-सोदर ,हितु-पिरीतु बाढ़ जथे।

     अइसने वो किसान जेन करमइता होथे, अपन जिम्मेदारी ला समझ के धरती महतारी के कसके सेवा बजाथे वोकर बर लक्ष्मी माता किरपा करथे। मिहनती किसान भूँख नइ मरै।कोठी हा सदा अन्न-धन ले भरे रहिथे।दू दी पइसा बाँच के लिख ले लाख हो जथे।वो ह खेत बिसा-बिसा के बड़े किसान बन जथे।


चोवाराम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ब्यंग *मान सम्मान अउ हिनमान*.

 ब्यंग 


      *मान सम्मान अउ हिनमान*. 


        एक जमाना मा जेल के सजा काटे मनखे काकरो ले नजर नइ मिला सके। अब जेल ला ससुरार असन सुख पाए के जगा मानथे। जतके जादा सजा भोगी वो ओतके जादा सम्मानित अउ इज्जतदार मनखे। जेकर मा सौ ले आगर केस चलत हे, वोला लाल कला के परछी मा सम्मान मिलना  चाही। फेर अइसन प्रजाति के मनखे एकाद निंहीं हजारों मा मिलही। तब सम्मान पदक बर मेरिट सूची बनाये बर पर सकथे। इँकरे मन के प्रभाव ले लाज सरम मान हिनमान जस अपजस दंतकथा मा जाके खुसरगे। अब तो बात लगे ना बानी लाज सरम घलो मूँड़ी उघार के रेंगत हे। एक वो सुर्पनखा बपुरी दानव कुल के रिहिस तभो नाक कटे के बाद कहां जाके लुकाइस तुलसीदास जी घलो नइ खोज पाइस। अब तो नकटी नकटा मन के दस बेर नाक कटथे तभो सवा हाथ उल्हो डारथे। 

       सबो मनखे के सोच रथे कि कोनो किसम के अपमान हिनमान झन होवय। सोच ला सार्थक करे बर नेक करम नेक बिचार रखना पड़थे। बोल बचन ले ही पता चलना चाही कि मनखे सूगर के मरीज आय। इही मुँहूँ आ कथे इही मुँहूँ जा कथे। फेर बिना हाड़ा के जीभ सलँगेच ला धरथे। दू थपरा मार हर सका जाथे फेर मुँहूँ के मार ले आत्म संताप अउ अपमान के घाव ले मनखे खुदे मर जाथे नइते रंज राखे बदला निकाले बर दाँव खेलत रथे। महाभारत काल मा द्रौपती के जीभ बिछलगे एती करण के जीभ सलँडगे। बस इँहचे ले मान हिनमान के जंग सुरू होगे। काबर कि सवाल सीधा नाक तक चल दिस। धरम युद्ध के वकील अउ जज हर कुरूक्षेत्र के भाँठा मा अट्ठारा अध्याय के दलील पेस करिस अउ अट्ठारा दिन ले पेसी रेंगिन तब हिनमान अपमान के फैसला निपटिस। 

          मनखे ला अपन मान सम्मान इज्जत ला सम्हाल के रखना परथे। काबर कि ये अइसन पूँजी आय जे धन दौलत ले बड़ के रथे। अब तो धन दौलत बर मान सम्मान बेसरमी के दुनिया मा गिरवी रखे जावत हे। बिदेश मा लुगरा के माँग बड़गे हे अउ देश मा जिंस टी शर्ट के। जेन जेठ के नत्ता हे वो अपन मुँड़ी ला खुदे ढाँक लेवय। इही मा ओकर मान रही। हवस के सिकार नबालिक या नारी जात नइ कहिके अखबार वाले मन दलित हरिजन आदिवासी महिला लिखथे। एकर ले आधा नारी जात के सम्मान बाँचे रथे। ये इँकर सोंच हो सकथे। कोनो जिनिस ला नापे बर लीटर मीटर गज फुट आँगुर बित्ता बने हे। फेर हिरदे के दरद खुशी मान सम्मान अउ हिनमान के नापनी नइये। फेर अतका हे जब हिरदे मा घात करथें। मान सम्मान ला गिराय के उदिम कोनों करथें। तब मान हानि के दावा कर सकथस। उँहचो आँखी रहिके अँधरी बने के सीख गंधारी ले लेके तराजूधारी ला खड़ा कर देहे। तब अपन मान ला कहां तक बचा पाबे। इहाँ फूल कुँवर सरापित अहिल्या कस पथरा बनके रहि जाथे। जे हर बिना सराप के मुक्ति बर गोहार लगाय के पहिली खुदे परान तज देथे। धरम युद्ध के जीत बर आधा रात के पिड़िता के लाश जराये जा सकथे तब सरी मँझनिया सीता हरन अउ चीर हरन काबर नइ होही। नारी शक्तिकरन वाले देश मा रोज एक झन निर्भया के बली चढ़थे अदालत के दरवाजा तो सबो बर खुले हे। फेर नकली सबूत झूठा गवाही करमोता भाजी के दाम मा जूरी बँधाय मिलत हे तब गुरतुर डोंड़का ला पंजलहा साबित करे मा कतका देरी लागथे। सौदाई संस्कार ले उपजे जज मन के घर मिठई के बंडल समर्पित होथे तब मजाल हे कि करू ला करू कहि देय। सत्य मेंव जयते के कलेंडर मा फेर बदल करे के रसता अभी घलो हे। फेर लिखइया के आतमा ला ठेस लगे के डर ले संभव नइये। सच्चाई के हाफ मडर करके छोड़े जावत हे। वो एकर सेती कि सत्य जिन्दा रहय फेर हिनमान के दुवारी मा  घिलर घिलरके। जनहित मा आदेस जारी हे कि झूठ बोलव तभो गीता मा हाथ मड़ा के। नइते अदालत के अपमान हो सकथे। चाणक्य नीति ले पारंगत जमाना मा मान सम्मान हित हिनमान के तर्क बर बिदुर नीति के सहारा लेथें। उँहचो बात नइ बने तब बिरबल कस चतुराई ले काम निकालथें। 

      सियान. मन कथे नाक हे तब तक मनखे के साख हे। फेर अब तो नाक काटना अउ कटवाना दुनों मा सम्मान छिपे हे। लुटे सम्मान लहुट के नइ आय कथे। अब तो पइसा के बल मा दुगुना होके आथे। मंदिर के मोहाटी मा बइठे भिखारी ला चरन्नी देके पुन्यातमा बनथें। अउ दानपेटी धारी बड़का भिखारी के कटोरा मा हजार देके आत्म सम्मान बढ़ाथे। धरम रक्षा अउ मान सम्मान के हिफाजत अउ कर्मयोग के उपासना बर आत्मबल के प्रबल होना जरूरी हे। कलयुगी कर्मयोगी कंस रावन दुर्योधन अउ दुस्सासन के नाम घलो सम्मान से लेना परथे। नइते---------। जीयत जागत राम राज मा सब ठीक ठाक रिहिस कि राम के मंदिर अउ मुर्ति काल मा सब ठीक हे चिन्तन के बिषय बन सकथे। शहर नगर कुँआ बावली के नाम जे हावे सत्ताधारी बर दुखदायी हे। एकर ले कोनों दूसर के नाम धरे ले देश के तरक्की के सँगे सँग मान सम्मान मा बढोतरी होथे।इही कारन हे कि नाम बदले के नवाचार शुरू हे। हमर देश मा महान विभूति के कमी नइये। सब ला सम्मान अउ मौका मिलना चाही। काना फूसी के गोठ घलो उड़थे कि हमर नोंट मा गाँधी जी अबड़ दिन ले कब्जा कर डारे हे। अब ये सम्मान कोनों दूसर ला मिलना चाही। काबर कि जेकर सम्मान के पतन होवत हे। ओहू मन राष्ट्रपिता बने के सपना साधेहें। 

          इहाँ रोज जतका उद्घाटन अउ शिलान्यास मा फीता नइ कटे वोकर ले जादा नाक कटथे। जिंकर कटत हे उँकरो पाछू दलील अउ सफाई देके सर्जरी करइया डी लिट वकील के कमती नइये। धोबी बचन के डंक मा अपमान के आखरी नतीजा सीता बर धरती फाटगे। फेर इहाँ नकटी नकटा के मरे बर चुरुवा भर पानी तो का सइघो समुन्दर घलो छोटे पर जथे।आन बान शान बर मरिन ते मन परम बीर चक के हकदार होगे। जीयत मन चापलूसी मा पदम सिरी झोंकत हे। करम प्रधान सम्मान ला छोड़ मँगनी अउ खरीद प्रधान सम्मान के मान हे। चना मुर्रा कस बँटत सम्मान पत्र अउ प्रसस्ति पत्र बंडल बाँध के बोरा मा रखे जावत हे। आने वाला समय बंडल देख के मुल्यांकन करहीं कि हम कतका सम्मान ले जी के मरेंन। मनु अंश मनखे के मानव धरम मदिरा पान ले उबर नइ पावत हे। हिन्दुस्तान मा रहिमान अपन सम्मान के खोज करत हे। राज सिंघासन बर राम के सहारा चाही कि हनुमान के। अवसरवादी मन तय नइ कर पावत हे। आरती अजान मा आस्था ले जादा अस्थि विसर्जन के जोखा जादा दिखथे। काबा कमली वाले के भगत होय। चाहे जटाधारी धनुष धारी के उपासक। सब अपन अपन मान सम्मान बचाये बर कुरूक्षेत्र आउ हल्दी घाटी के परिया बनाय मा लगे हें। भाईजान के भाईचारा मा संका बने रथे। भोला राम मानवता के रँग मा रँगे बर तइयार नइ दिखे। हम वो संस्कारी धरती के जीव आवन जिंहा हपटे पथरा के घलो पाँव पर लेथन। मंदिर मा बिराजे देवी के दरसन नवरात मा भीड़ के मारे नइ हो सके। अखबार मा छपत देवी के फोटू मा मन मड़ा लेथन। भले होटल वाले वोमा भजिया लपेट के देवय। देश अउ तिरंगा के सम्मान फकत छप्पन इंची छाती वाले मन करथे अइसे नइये। छत्तीस वाले मन घलो देश झूकन अउ बिकन देना नइ चाहे। बात अतके हे कि इँकर मन कोनों मन के बात सुनइया नइये। देश मा पत्थरबाजी होगे। झंडा जलाये गिस महान विभूति के मुरती उखाड़े गिस ये खबर ले बिदेश मा हमर नाक कतका लामथे बिदेशी मन ही बता सकथे। मान सम्मान बचाय बर लहू रकत बोहाना परत हे। धरम हर मजाक बनके रहि गेहे। जात हर गारी देय के काम आवत हे। इज्जत अउ सम्मान के रोटी घलो लहू मा सनाय मिलथे। तब हिनमान के पोछा लगाये बर नेकी के फरिया बिदेश ले आन लाईन मँगाना घलो जरूरी हे। 


राजकुमार चौधरी "रौना" 

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

न मैं हूं राजी, न मेरा दिल है राजी

 *// न मैं हूं राजी, न मेरा दिल है राजी //*

=====००००=====


    (छत्तीसगढ़ी नाटक)

------------------


*पात्र परिचय*

------------------


*१. एहसान* (एक मुस्लिम छोकरा) 

*२. सुशीला (हिन्दू छोकरी)*

*३. संतराम- (सुशीला के पिताजी)*

*४. गणेश - सुशीला का भाई*




      

     जेठ के तिफतिफाय मंझनिया एक बरगद के छांव म एहसान बैठे रहिस |

     भरे दोपहर म एक युवती  सुशीला ह आगी सहीं तीपे भोंभरा ले व्याकुल  कूद-कूद के वोही बरगद डहर आवत रहिस |

*एहसान*- ऐ लड़की आओ छांया में , बहुत तेज धूप है |

*सुशीला*- हव गा |

            असहनीय घाम अउ भोंभरा ले बांचे खातिर सुशीला ह ओ बरगद डहर जाय लगिस |

      घाम,भोंभरा ले व्याकुल सुशीला ह बरगद डहर निहारत-निहारत दौड़े लगिस, अचानक ओकर पांव ह  बबूल कांटा म पड़ गे चुब्भ ले गड़ीस ! हाय दाई-ददा ! मर गयेंव दाई-ददा !!! सुशीला व्याकुल हो गे !!!

*एहसान*- क्या हो गया  ? 

*सुशीला*- गोड़ म कांटा गड़ गे, हाय दाई-ददा ! मर गयेंव दाई-ददा !!!

*एहसान*  ओ हो !आओ  तुम्हारे पांव का कांटा निकाल दूं |

*सुशीला*- नहीं गा मैं निकाल लेहूं |

*एहसान*- अरे बाप   रे ! चार-पांच कांटे गड़े हैं,खून निकल रहा है  !!!


*सुशीला*- हाय दाई-ददा ! चार-पांच  कांटा गड़े हे ! कईसे निकालौं ? 

*एहसान* लाओ मैं तुम्हारे पांव के कांटे निकाल दूं, बहुत खून बह रहा है |

*सुशीला*- नहीं गा, नहीं गा |

     तभो ले जिद्ध करके तीन  बबूल कांटा ल एहसान निकालीस |

*सुशीला*- धन्यवाद भैया, मैं तो घबड़ा गए रहेंव- ऐ कांटा ल कईसे निकालहूं ? कईसे घर जाहूं ? धन्यवाद भईया |

*एहसान*- कुछ देर छायां में बैठ  जाओ |

तुम्हारा नाम क्या है ?

*सुशीला*- सुशीला |

    *एहसान*-तुम्हारे पिताजी किस विभाग में कार्यरत हैं ?

*सुशीला*- राजस्व विभाग में  बड़े बाबू  हैं, बिलासपुर  आफिस जाते हैं |

*एहसान*- अच्छा कितने बजे आते हैं ? *सुशीला*- रात लगभग ९.०० बजे आते हैं |

*एहसान -* तुम्हारा भाई क्या करता है ?

*सुशीला*- इंजीनियरिंग कॉलेज बिलासपुर में इंजीनियरिंग कोर्स कर रहा है |

*एहसान*- अच्छा , कल फिर मिलेंगे | इसी जगह पर, इसी समय |

मिलोगे न ?

*सुशीला*_ काबर गा ?

*एहसान*- यूं ही आप से मिलकर अच्छा लगा | आप बहुत अच्छी हैं |

*सुशीला*- चुप गा,हम ल अच्छा नइ लागै, कोनो छोकरा संग मिलना- -गोठियाना | छी दाई !

*एहसान*- कल इसी समय-इसी जगह पर जरूर मिलना,अच्छी-अच्छी बातें करेंगे ओके     |

*सुशीला*- नहीं गा,मैं नइ आऔं समझे |

    दूसरे दिन सुशीला ह ओ बरगद तिर नइ गईस | तब तीसरे दिन शाम के समय ओ एहसान ह सुशीला के घर पहुंच गे |

*एहसान*- सुशीला ए सुशीला, सुशीला ए सुशीला..........

     एक अनजान छोकरा ल सुशीला-सुशीला पुकारत  सुन के सुशीला  के पिताजी संतराम ह बाहिर निकलीस |

*संतराम* कोन हे भाई ?  कहां से आए हस ?

*एहसान*- मैं एहसान हूं, यहीं बिलासपुर का रहने वाला हूं |

*संतराम*- अच्छा,का काम हे भाई ?

*एहसान*- सुशीला से काम है |

*संतराम* का काम हे बताबे भाई ? 

*एहसान*- सुशीला को बताऊंगा |

*संतराम* कोई अजनबी मनखे से अपन बेटी ल हमन गोठबात करे नइ देवन |

    

    अपन पिताजी अउ एक अनजान छोकरा के वार्तालाप ल सुन के गणेश आ गे |

*गणेश*- कौन है पिताजी ? क्या बोल रहा है ? 

*संतराम* देख न बेटा,कोई अजनबी छोकरा आए हे अउ सुशीला से मिलना है बोलत हे !!

*गणेश*-  सुनिए, आपको हम नहीं जानते, किसी अनजान युवक से मेरी बहन बात नहीं करती, समझे |

*एहसान* सुशीला मुझे पहचानती है, मैं उससे मिलना चाहता हूं |


*सुशीला*- ऊंकर बहसबाजी सुन के बाहर आईस अउ बताईस- पिताजी,कल दोपहर   कालेज से वापस आवत रहेंव, बहुत तेज धूप रहिसे,तव साईकिल खड़ी करके सड़क तिर एक बरगद छांव म जावत रहेंव, बरगद छांव म जल्दी पहुंचे के धुन म बरगद तरी बबूल कांटा ल देख नइ पायेंव, चार-पांच ठन कांटा गड़ गईस ! लहू निकलत रहिस ! ओ बरगद छांव म एही लड़का रहिसे अउ मोर गोड़ के कांटा ल निकालीस | बदले म मैं एला धन्यवाद देहेंव अउ घर आ गयेंव | बस अतकेच बात आय |

एला हमर घर आए से का मतलब हे ?

*एहसान*- मैं तुम से प्यार करने लगा हूं  |

*संतराम*- ऐ लड़के तुम अपने जबान पर लगाम दो | मानवता का परिचय देते हुए सुशीला के पांव का कांटा निकाल दिए, इसके लिए धन्यवाद एवं आभार |

     अब आगे प्यार-व्यार की बातें मत करो, चुपचाप चले जाओ |

*एहसान*- लेकिन मुझे सुशीला से प्यार हो गया है, इसीलिए मैं आया हूं |

*गणेश*- ऐ मिस्टर, तुम चुपचाप वापस लौट जाओ,अन्यथा अपने साथियों को फोन करूंगा,तब पता नहीं तुम्हारा क्या हश्र होगा ! 

*एहसान* मैं सचमुच सुशीला से प्यार करने लगा हूं |

*संतराम*- तुम्हारे जबान को लगाम दो वरना मैं असंतराम बन जाऊंगा,तब तुम्हारे प्यार का ढोंगी नाटक जीवन भर के समाप्त हो जायेगा !

(संतराम का गुस्सा बहुत बढ़ गया) |

*गणेश*- ढोंगी,पाखंडी, तुम लोग इसी प्रकार किसी भोली भाली लड़कियों को फंसाते हो,और उन्हें धोखा देते हो,उनके साथ कुकर्म करते हो ! अब तुम चुपचाप पीछे पैर लौट जाओ और कभी भी मेरी बहन की ओर मत देखना,वरना तुम्हारी आंखें काटकर निकाल दूंगा |


*संतराम* बेहद तमातमा कर बोला - मेरी बेटी का कभी भी पीछा करते हुए सुनूंगा,तब तुम्हारा ओ हश्र करूंगा,जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकोगे | चुपचाप पीछे पैर वापस चले जाओ,समझे कि नहीं ? 

*एहसान*- सुशीला एक बार आकर अपना विचार बता दें, उसके मन में क्या है ?

*सुशीला*- *ऐ मिस्टर,हम ऐसे खानदान की बेटी हैं, जो अपने जाति,समाज , धर्म के अलावा यदि कोई देवता भी आ जाए,तो हम उसे नजर मिलाकर नहीं देखतीं |*

    *विदर्भ देश के राजा भीमक की पुत्री- दमयंती की कथा सुनी होगी,जो अपने वांछित पति देव " नल" के अतिरिक्त देवराज इन्द्र,अग्नि देव,वरूण देव,और यम देवता को भी पति के रूप में स्वीकार नहीं किया*

     *इसी प्रकार मैं भी अपने पिताजी,माताजी, परिवार के पसंद किए हुए हमारी जाति ,समाज -धर्म के पुरूष के अलावा किसी देवता को भी पति के रूप में स्वीकार नहीं करूंगी* *समझे कि नहीं*


    *तुम्हें अपना जीवन साथी बनाने के लिए*:-


*न तो मैं हूं राजी*

*न मेरा दिल है राजी*


*न हमारी जाति है राजी*

*न हमारा समाज है राजी*


*न मेरा कर्म है राजी*

*न मेरा धर्म है राजी*


    *चुपचाप पीछे पैर लौट जाओ*



दिनांक - 16 जून/2023


*सर्वाधिकार सुरक्षित*


*गया प्रसाद साहू*

   "रतनपुरिहा"

*मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़)*



👏☝️✍️❓✍️👏

   






  ‌‌

पत्र लिखे के मोर पहिली पत्र

 पत्र लिखे के मोर पहिली पत्र


                    *पत्र*


 मोर,

      जिगरी संगवारी 

         भल्लालदेव,

 🐯कौशल राज सरकार।🐯

             जोहार!                        

       

       लिखना समाचार हे के मैं इँहा सुखी-सुखी हँव, अउ घर-परवार घलो सुखी हे। मैं भगवान ले अही आस करत हँव के तैं अउ तोर घर-परवार सन तोर राज-पाट घलो सुखी होही।

       मोर संगवारी भल्लालदेव! पीछू हप्ता हमर पुरखा के गाँव गे रहेंव। तोर अड़बड़ सुरता करेंव। तोला  सुरता तो होहिच्चे? हमर बचपना, हमर गाँव के। स्कूल ले आके हमन  खेले ल  कहाँ-कहाँ जावँन तेन। वो  दइहान के बड़े-बड़े अमली  रुखवा, वो माता देवाला के लीम अउ गस्ती, जिंहा छाँव मा भौरा-बाँटी खेलन। हमर गाँव के वो सबले बड़का बर पेंड़, जेकर थाँघ ले कूद-कूद के डंडा-पचरंगा खेलन अउ ओरमे-ओरमे डार म झुलना झूलत बड़ मजा पावँन। 

        वो दिन के सुरता हे तोला?  कइसे  तैं,मैं, तिहारी, तुलसी, कलेश, जलेश, भगवान दास, मनहरण, दुकलहा, हबीब, इसरा अउ संतोस। हम सबो संगवारी मन डारा म झूल-झूल के खेलत रेहेंन अउ डारा ल  छोंड़ेन त तँयहा थाँघा संग उपर डहर फेंका के थोथना के भार मेंचका बरोबर चथ ले  भुँइया म गिरे, त तोर दाँत टूट गिस अउ तँय भोभला होगे रेहे। तोर मुँहू ह सूझ के हनुमान कस हो गे रहय। हमन हाँसन त तैं बिकट कुड़कस।

    .मोर तो आँखी-आँखी म झुलथे,  वो 'केसो कुटी' वाले बगइचा, कोंधरी बगइचा, केंवटिन बगइचा, पटेल बगइचा, जिहाँ जाके दिन ल पहावँन। अउ खेलत-खेलत म घाम-पानी सतावय त बाँचे बर  अपन महतारी के कोरा बरोबर रुखवा मन के तीर मा  लपट जावँन।  

वो नरियरा आमा, कच्चा सेवादी, केरी आमा, लसुनही आमा, सेंदरी आमा, सुपाड़ी आमा, चेपटी आमा, तेलहा आमा अउ  पोंकर्री आमा के  रुख, वो पथरहा घाट के जामुन अउ वो बिही बारी के बेल। जिंखर फर खाके, जिंकर छँइहा म दुख बिसरावत हमर मन के गीत-ददरिया,  चिरई- चिरगुन के चींव-चाँव, गरुआ मन के  टेपरा- घाँटी के  टनन- टनन  अउ राउत मन के बसरी के धुन  खूब मन ल मोहय। जेखर ले हमर गाँव ह सरग बरोबर लगय। अउ वो तरिया पार के पीपर  पेंड़, जेमा हमर झुकई बबा अकती बर करसी मा पानी चढ़ावय अउ पुछन त कहय .. मैं मरहू त इँहे रहूँ बे!  ....... अब इन कुच्छु नइहे यार! चिक्कन बगइचा मन उजर गेहे अउ रुख-राई मन कटागे हे। सब के ठूँठ भर बाँचे हे। अब वो हमर गाँव, गाँव  नइ लगय , बिरान लगथे। घर कुरिया मन ठकठक ले मरघट चौरा बरोबर अउ बस्ती ह मरघटिया जइसे। जिहाँ सुरुज ह भूँत बरोबर आँखी देखाके खखुवाथे।

        कालिच गाँव ले आय हँव। जावत-आवत देखेंव, ये समसिया ह एके ठन गाँव म  नइहे पूरा राज म हे।  गाँव के, सड़क के, डोंगर के रुख मन सब अँखमुँदा कटावत हे। एकर ले पर्यावरण मइलाए हे। तेखर भोगना ल जम्मो जीव नामा मन भोगत हे।  

             तूमन सरकार म बइठे हव। अपन बचपना के जिनगी ल सुरता करव अउ बिचार करव। जनजीवन ल खुशहाल बनाना हे त पर्यावरण ल बचाय के उपाय करेच ल परही। मैं ह अपन डहर ले एक ठन सुझाव रखत हँव तोर बर। हर साल के हरेली तिहार मा हर जवान मनखें मन बर कम से कम एक पेंड के बिरवा लगाय अउ बचाय के अनिवार्य कानहून बनाव। जे मा पेड़ काटे के सजा कठोर रहय। तभे हमर भुँइया ह जल्दी हरियाही जुड़ाही।

        अब जादा का लिखँव आप मन तो खुदे चतुरा हव। सोचें रहेंव तोर ले भेट होही, फेर तँय ह अंते ब्यस्त रहे ते पाय के भेंट नइ हो सकिस । एकर बर माफी चाहिथँव। राजपाट ले कभू फुरसत मिलही त तहूँ मोर ले भेट करे बर बज्जुर आबे। त फेर हक्कन के गोठियाबो।

               जय जोहार!!


१६/०६/२०२३

                        तोर लँगोटिया यार!

                            जल्लालदेव

                      🦁सिंघनगढ़ राज।🦁



देवचरण 'धुरी'

कबीरधाम छ.ग.

16/06/2023

जुड़वास जोहार..

 जुड़वास जोहार.. 

    छत्तीसगढ़ के संस्कृति म कृषि अउ ऋषि संस्कृति के अद्भुत मेल देखे बर मिलथे. हमर इहाँ एक डहर जिहां विशुद्ध आध्यात्मिक संस्कृति के दर्शन होथे, उहें दूसर डहर आरूग खेती किसानी अउ प्रकृति ले जुड़े परब-तिहार मन के घलोक दर्शन होथे.

    जुड़वास या माता पहुंचनी परब ह घलो अइसने समिलहा संस्कृति के दर्शन कराथे. चइत, बइसाख अउ जेठ के उसनत गरमी के बाद जब अगास म अंकरस के बादर उमड़त-घुमड़त असाढ़ के आए के आरो देथे, तब इहाँ के गाँव गाँव म जुड़वास के परब मनाए जाथे.

    असाढ़ महीना के अमावस्या के या फेर सोमवार या बिरस्पत के दिन बइगा के अगुवाई म गाँव के शीतला मंदिर मन म गाँव के जम्मो मनखे चांउर-दार,  तेल अउ हरदी धर के जाथें, माता म चघाथें, अउ संग म सेउक मन जुड़वास जस के गायन वादन करथें.

    ए बात वैज्ञानिक रूप ले प्रमाणित हे, तेल अउ हरदी के कई किसम के आयुर्वेदिक महत्व हे, लोगन जब तेल हरदी धरे शीतला माता के मंदिर जाथें, त पूरा गाँव के वातावरण म प्रभाव बगर जाथे, जे ह कई किसम के रोग राई ले बचाव करथे.


असाढ़ आगे बरखा लेके ए महीना आय खास 

गाँव बस्ती के शीतला देवी झोंक लेवव जुड़वास  

तेल हरदी धर सुमिरत हावन तोला करत जोहार

रोग-राई अउ महामारी ले बचा अब तुंहरे हे आस 


-सुशील भोले-9826992811

संजय नगर, रायपुर

भाव पल्लवन-- छोट कुन कहिनी सरी रात उसनिंदा।



भाव पल्लवन--



छोट कुन कहिनी सरी रात उसनिंदा।

------------------------


कुछ मनखें अइसे होथें जे मन कोनो बात ला अइसे लमिया डारथें के वोकर मूड़ी-पूछी के पतेच नइ चलय। भूमिका-सूमिका बाँधत-बाँधत अइसन बिलहोरन मन दही के मही कर  डरथें।रतिहा कुन कोनो छोटकुन किस्सा ला  घेरी भेरी घरिया-घरिया के घंटा-दू घंटा ले पुरोवत रइही ता सुनइया के रात जगवारी नइ होही त का होही? अइसन घोरनहा मनखे मन बात के सार ला बताबे नइ करयँ या फेर बतायेच ला नइ आवय। ये मन के बातचीत हा एकदम निरस हो जथे जबकि दू टप्पा गोठ करइया मनके बात ला लोगन जादा भाथें।

अइसन निरस गोठकाहर मन  के गोठ ला सुनके मन हा असकटाये ला धर लेथे।लोगन येमन ला देख के तिरियाये ला धर लेथें काबर के पिचकटहा मनखें मन अपन तो समे ला बर्बाद करबे करथें,भले उन ला लागथे के लमिया-लमिया के समे के भरपूर उपयोग होवत हे फेर  दूसर के कीमती समे हा बर्बाद होवत हे  तेकर गम नइ पावयँ।

  अइसन बोली के बीमारी अज्ञानी मनखे जे हा अपन ला अबड़ ज्ञानी समझथे, कुछ भोको लला नेता अउ कुछ वक्ता, प्रवक्ता ,उद्घोषक मन मा देखे ला मिलथे। ये बीमारी के प्रकोप तेजी ले हनुमान के पूछी कस बाढ़त-बाढ़त कुछ कलम घसटइया मन ऊपर तको हावी होवत हे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

बादर के नाव चिट्ठी*

 *बादर के नाव चिट्ठी*




आदरणीय बादर महराज,

                              सादर पायलागू ।

अबड़े दिन होगे महराज तुहँर कोनों खोज खबर नइहे ।तेकर पाय के ये चिट्ठी ला लिखत हावन । येदारी अबड़े दिन होगे तभो ले दरसन नइ देय हव । रिसाय हावव लागथे।पन्दरही होवत  हावय असाढ़ ला आये तभो ले तुहँर आरो नइ चलत हावय। इहाँ भुइयाँ मा तुहँर रद्दा जोहत मनखे ,चिरई चिरगुन,जीव -जंतु जम्मो गरमी मा बेहाल हो गय हावयँ।असाढ़ हा जेठ कस जनावत हावय घेरी बेरी मुँह हा सुखावत हावय दू घुँट पानी के परे ले जीव हा जुड़ाथे।भुइयाँ मा भोंभरा तीपत हावय ।घर ले बाहिर निकलबे तहाँ सुरुज देव के तने भृकुटि ला देख के करेजा मुँह मा आ जावत हे।घाम मा देह के चाम हा सुसकी मछरी कस भुँजा जावत हे।  तुहँर किसनहा बेटा हा मुड़ी मा हाथ धरे मुँह ला फारे टकटकी लगाय उपर ला देखत हावय फेर कोनो मेर तुहँर नाव निशान नइ दिखत हे।जइसे बाढ़े बेटी के बिहाव के चिन्ता दाई ददा के चेहरा मा दिखथे वइसनहेच चिंता किसनहा के चेहरा मा घलाव दिखत हे तुमन आके पानी बरसाहव तभे तो खेती पाती के तियारी ला शुरू करही ।बीजहा ,खातू ,माटी जम्मो जिनिस तुहँर बिन कुछु काम के नइहे।तुहँर पानी बरसाय ले किसनहा अन्न उपजाही तेखर ले मनखे के पेट भरहीं।तुहँर बिन तरिया नरवा सब सुक्खा परे हे येखर कारन जीव जंतु मन घलौ पियासन मरत हावयँ।पालतू जीव मन तो पानी पा घलो जाथें फेर जंगल के जीव जंतु मन अपन पियास ला कइसे बुझाही महराज ।जंगल मा तो जम्मो जल के स्रोत हा सुखागे हावय। येदारी तो तुमन साल मा कइयो पइत बिन मौसम के बरसे हव फेर आय मौसम मा आँखी मूँद लेय हव ।तुहँर गुस्सा हा जायज हे महराज अउ तुमन ला रिसाय के हक घलौ हे फेर हम मनखे मन के अतरंगी के सजा आन जीव जंतु मन ला मत देवव महराज।

हम मनखे मन मूरख ,लोभी अउ घमंडी हावन।विकास के नाम लेके जंगल के जंगल उजार डारेन । पहाड़ ला फोर डारेन।नदियाँ ला छाँद बाँध डारेन।भुइयाँ ला खोद के जम्मो रत्न ला निकाल डारेन तभो ले हमर पेट नइ भरीस। हमर स्वारथ के आगी मा सबो तहस नहस होगे।प्रकृति दाई के कोरा उजरगे।मौसम घलौ के मूड हा बिगड़े बिगड़े हावय।जघा जघा कचरा के मारे भुइयाँ पटा गे हावय।मोबाइल रेडियेशन ,कीटनाशक ले कतको जीव -जंतु, चिरई -चिरगुन, के अस्तित्व हा संकट मा परगे हावय।फेर हमर आँखी मुँदाय हावय।केदारनाथ हादसा,सुनामी,कोरोना काल हा हमर गाल मा प्रकृति के जोरदार चाटा आय फेर पीरा के रहत ले सावचेत रहिथन तहाँ उही रद्दा मा रेंगे लगथन।तिरछा रेंगे के आदत हो गईस हावय त सीधा रेंगेच नी सकन।भूकंप, सूखा, बाढ़ जइसे प्राकृतिक आपदा ले घबराथन ता सोझ चले के किरिया खाथन फेर चारेच दिन मा किरिया टूट जाथे अउ हम कुकुर के  पूँछी कस टेढ़वा के टेढ़वा रही जाथन ।ये दारी बिपरजाँय तूफान ले थर्राय हन ।मानसून के लेट लतीफी हा हमर चिंता के कारण बन गे हावे।पानी नइ गिरही ता अन्न नइ उपजही फेर खाबोन काला।पीये के पानी कइसे मिलही।भुइयाँ के छाती  मा छेदा करके जम्मो जल  ला निकाल लेहे हन।भूमि गत जल स्रोत हा सुख गय हे।मुड़ी मा खतरा  ला माढ़े देख के संसो होवत हे।हमर आँखी हा तुहँर करिया करिया मुख ला देखे बर तरसत हे अइसे तो हम मनखे मन गोरिया रंग के  प्रेमी हावन करिया रंग हमला चिटिक नी भावय फेर बादर हा करियाच बने लागथे।हमर कवि गीतकार  मन घलौ तुहँर करिया रंग ऊपर अतेक कन गीत कविता लिख डारे हे कि झन पूछव। आ जावव महराज जल्दी आवव ।हमर गल्ती बर माफी देवव ये दारी हमन बरसात मा एक ठन पेड़ जरुर लगाबो।


तुहँर अगोरा मा

रद्दा जोहत

भुइयाँ के जम्मो मनखे




चित्रा श्रीवास

बिलासपुर

छत्तीसगढ़

भाव पल्लवन-- आषाढ़ करै गाँव-गौतरी, कातिक खेलय जुआ। पास-परोसी पूछे लागिन, धान कतका लुआ।



भाव पल्लवन--



आषाढ़ करै गाँव-गौतरी, कातिक खेलय जुआ।

पास-परोसी पूछे लागिन, धान कतका लुआ।

------------------

असाड़ महीना के किसान बर अबड़े महत्तम होथे। वो हा बइसाख-जेठ मा अपन खेत के काँटा-खूँटी ला बिन के, काँद-दूबी बन कचरा ला छोल-चाँच के,खातू-माटी ला पाल के धान के बिजहा ला सकेले असाड़ मा बाँउत के पानी ला जोहत रहिथे। इही समे रोपा बर थरहा देये के जोखा तको मढ़ाथे। 

    पानी गिरिस तहाँ ले एकक दिन वोकर बर अमोल हो जथे। बाँउत के पाग अइस तहाँ ले लकर-धकर बोनी करथे काबर के बोनी सहीं समे म नइ होये ले बिजहा कमसल जामथे अउ खेत मा धान पातर,खमखरहा हो जथे अउ फसल मा कूत बने नइ मिलय---उत्पादन घट जथे।बिजहा बोयें के पाछू वोला एहू चेत रखे बर लागथे के पानी कहूँ जादा दमोर दिच अउ खेत हा टनाटन भरगे ता बिजहा हा सर झन जावय। बिजहा ला सरे ले बँचाये बर रात-बिकाल जाके तको नाखा-मुही ला फोरे बर परथे। खेत मा भरे पानी नइ सँसावय ता गर्दी इँचे ला परथे। धान के जामे के पाछू बारा उदिम करके वोला चरी-चरागन ले बँचाये बर लागथे।

 असाड़ के महिना मा किसान ला थोरको फुरसत नइ मिलय।वोकर एकक घड़ी बड़ कीमती होथे।अइसन बखत जेन किसान एती-वोती बिल्हराय रइथे--- खेती किसानी मा चेत नइ करय अउ गाँव-गौतरी घूमे मा,सगा-सोदर माने मा बिधुन रहिथे वोकर करम फूटे बरोबर हो जथे।

 अइसे तो करमइता किसान हा कभू ठलहा नइ राहय फेर जब कातिक के महिना आथे अउ  जाँगर पेर के कमाये फसल ला लू-टोर सकेल के कोठी मा हाँसी-खुशी भरे के दिन आथे ता अलाली अउ लपरवाही हा बहुतेच नुकसान पँहुचाथे।लुअई पिछुअइच अउ धान कहूँ रनागे ता कंसा मा खेत पटा जथे। आजू-बाजू के धान लुआगे ता चरी के खतरा बाढ़ जथे। इही कातिक के महिना मा देवरिहा जुआँ-चित्ती खेले के कुरीति हा जम के अड्डा जमाये रथे। जे किसान फसल सकलइ बटोरइ ला छोड़ के या सकेल डरे हे ता धान-पान बेंच के ताश मा रमिड़ियागे ता समझौ वोकर सत्यानाश के दिन आगे। वोकर ले अन्नदाई रिसा जथे। वो करमछँड़हा किसान के हाँसी-निंदा तो होके रहिथे।



चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

भाव पल्लवन- आज के बासी काल के साग अपन घर में काके लाज!”

 भाव पल्लवन-


आज के बासी काल के साग अपन घर में काके लाज!” 

-----------

मनखे के उन्नति मा दू चीज अबड़े बाधक होथे।पहिली बात---लोगन का सोचहीं अउ का कइहीं ,दूसरइया बात--आन के नकल करके नकली-चकली देखौटीपन।

      दूसर लोगन मन ला छप्पन भोग उड़ावत अउ अमीरी के शान शौकत बघारत देख के कोनो भी मनखे ला अपन घर के रूखा-सूखा रोटी अउ बासी-चटनी ला देख के मन मा खुद ला हिनहर नइ मानना चाही।अपन घर मा बोरे बासी ला  बाँचे साग या फेर नून-चटनी  मा खाये मा लाज नइ करके संतोष करना चाही।ये बात के गरब तको होना चाही के अन्न हा फेंकाये ले बाँचगे।एहू बात के फिकर नइ करना चाही के लोगन का कइहीं? लोगन का कइहीं तेकर फिकर मा दुबराये के का काम? कहइया मन --चारी करइया मन लान के गरमे-गरम साग-भात नइ दे देवयँ। कतेक झन के तो आदते रइथे के दूसर के निंदा करे बिना ऊँकर पेट के पानी नइ पचय। वो मन अच्छा करबे तभो बुराई करहीं।हँड़िया के मुँह ला परई मा तोपे जा सकथे फेर आदमी के मुँह ला नइ तोपे जा सकय।

   अइसनहे दुनिया के चकाचौंध ला देखके अपन हैसियत ला बढ़ा-चढ़ा के देखाये के कोशिश मा कतेक झन बर्बाद हो जथें। समाज मा हाँसी के पात्र बन जथें।एकरो पिछू लोगन के विचार मा अच्छा बने के दिखावा होथे। शादी-बिहाव,छट्ठी-छेवारी मा,सभा-समाज मा अपन ला अमीर देखाये बर धनवान सहीं मनमाड़े उल्टा-सीधा खर्चा करके कतकोन झन कर्जा मा बूड़ के दुख पाथें।  अइसन दिखावा करे मा दूसर मन के नजरिया नइ बदलय ---हैसियत ऊँचा नइ होजय भलुक अउ नीचे गिर जथे।राँगा के ऊपर चढ़े सोन के पालिश उखड़त देर नइ लागय। 

 लोगन बनावटी-सजावटी ले दूर सादगी वाले मनखे ला बहुतेच पसंद करथें।जे मनखे अपन आप मा गर्व करथे अउ स्वाभिमान ला बरकरार रखथे, अपन जीवन स्तर ला ऊँचा उठाये बर  ईमानदारी ले मिहनत करथे वोला आत्मिक शांति के अनुभव होथे ।अइसन मनखें सम्मान पाथें।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

आखरी मनखे के खोज

 आखरी मनखे के खोज

               योजना हा बड़े जिनीस आफिस म उँघावत धुर्रा म सनावत रहय । एक कोति ओला जनता तक अमराय के फिकर म सरकार दुबरावत रहय । दूसर कोति .. नावा मैच खेले के समय लकठियागे रहय । योजना ला एन केन प्रकारेण जनता के फायदा बर जनता तक अमराय के योजना बनिस । ओला लकर धकर बाहिर निकालके .. नहवा धोवा के ... नावा पैजामा कुरता पहिराके बाहिर निकालिन ।  

               योजना हा सोंचत रहय के कति जनता ला फायदा अमराय बर मोला बाहिर निकालत हे .. मेहा कायेच फायदा अमरा सकत हँव तेमा ... समझ नइ आवत रहय । सरकारी मुड़ी बतइस .. तोला देश के आखिरी मनखे ला फायदा अमराय बर पठोवत हाबन .. जतका जल्दी होय उहाँ तक पहुँचना हे । योजना हा बात समझ गिस । योजना के पैजामा म नाड़ा नइ रिहिस । पैजामा  बोचके लगिस । योजना हा बिगन नाड़ा के पैजामा ला सम्हारत ... आखरी मनखे ला खोजत सड़क म उतर गिस । 

               मंजिल तक पहुँचे के रसता देखाय बताय के जुम्मेवारी पाये मनखे मन ... ओला अपन संग लेगे । रसता बतावत .. ओकर खींसा ला टमड़े लगिन । ओकर हाथ .. पैजामा सम्हारे म लगे रहय । खींसा चिरागे तहन आगू बढ़े के रसता मिलिस । रसता रेंगत दूसर पड़ाव तक पहुँचिस । उहाँ तो पहिली ले जादा हरहर कटकट ... कुरता के बाजू के एको खींसा साबुत नइ बाँचिस फेर ... आगू के रसता तुरते दिख गिस । थोड़ा अऊ बढ़िस ... कुरता चिरइया मन मिल गिन ... कुरता कुटी कुटी नोचागे । पैजामा उतरगे ... सरी खाली होगे तहन आगू के कपाट खुलगे । 

               योजना हा सोंचत रहय ... अब कोन ला काय फायदा दे सकहूँ .. तेकर ले लहुँट जाँव का ... । भेजइया के बदनामी हो जहि ... तेकर ले धीरे धीरे आगू खसकथँव ... सलूखा भितरि के खींसा के हिस्सा तो पाबेच करही आखरी मनखे मन ... सौ म पंद्रह अभू बाँचे हाबे । थोकिन रेंगिस तहन ... कुछ भले मानुष मन बतइन के जेला खोजत हस ... उही आन हमन ... चल हमर संग .. अऊ हमर  फायदा ला निकाल ... । ओहा आखरी मनखे के कोई पहिचान नइ जानत रिहिस ... उही मनला आखरी मनखे समझिस अऊ सलूखा भितरि ले निकालिस । यहू मन जान डरिन के योजना के कति मेर ... हमर लइक फायदा हाबे ... सलूखा चिरागे ... दंगदंग ले उघरा होगे ... अब इँकर हाथ ओकर पज्जी के नाड़ा तक पहुँचगे । इज्जत बँचाय बर ... उहाँ ले निकल भागिस ... भागत भागत पज्जी खसले बर धरिस ... । योजना कस के दँऊड़े लगिस । योजना के पिछु पिछु कतको लगगे । योजना बहुत जोर शोर से चलत हे ... खबर आय लगिस । कुछ मन योजना के तिर पहुँच गिन । ओकर पज्जी खसलगे .. योजना नंगरा होगे ... । अब ओकर आगू पिछु रेंगइया कोन्हो नइ रहिगे । अब ओहा जेती जावय तिही कोति .. चार ठोसरा खावय । ओकर हाथ गोड़ टुटगे । एती वोती घिरले लगिस । कनिहा कूबर कोकरगे । तभो ले ओकर मन हा ... आखरी मनखे तक पहुँचे के इच्छा ला नइ त्यागिस । भागत भागत नानुक गाँव म पहुँचिस । बहुत मुश्किल से एक घर जाय के हिम्मत करिस ... भितरि तक नइ पहुँच सकिस । नानुक झोफड़ी के आगू म दम टोर दिस । गरीब मनखे हा ओकर क्रियाकर्म के जुगाड़ करत ... गाँव से लेके शहर तक के बड़े मुड़ मन ला .. अपन तनि ले खवा डरिस । दूसर दिन अखबार म बड़े बड़े अक्षर म छपे रिहिस के ... योजना हा देश के आखरी मनखे तक पहुँच गिस ।                

हरिशंकर गजानंद देवांगन ... छुरा .

भाव पल्लवन-- मुसुवा ला ताके बिलईया सपट के।

 भाव पल्लवन--



मुसुवा ला ताके बिलईया सपट के।

----------------------------------

भुँखाये बिलई हा वोला मनखे अउ मुसुवा दूनों कोई झन देख सकै सोच के कोनो मेर सपट के बिना खुरुर-खारर करे घंटो मुसुवा के रद्दा जोहत लुकाये रहिथे।मनखे हा देख डरही ता मार के भगा देही अउ मुसवा देख डरही ता बिला ले निकलबे नइ करही। कई पइत अइसनो हो भी जथे तभो ले बिलई हा हार नइ मानै।वो नइ झुँझवावय, गुस्सा तको नइ करय अउ धीरज धरके दू-चार मिनट एती-वोती घुमफिर के फेर आ जथे।अपन लक्ष्य ला पाये बर धीरज धरके लगे रहिथे।वोहा लक्ष्य ले अपन ध्यान नइ हटावय--घंटो आँखी गड़ियाये ताकत रहिथे तहाँ ले एक समे अइसे आथे के वोला सफलता मिल जथे। अगर बिलई हा असकटा के तनाव मा आके पाँचे-दस मिनट मा उदास होके भाग जतिच ता वोला भोजन मिलतिच का? कभू कभू तो अइसे भी हो जथे के मुसुवा ला बिलई के आरो मिल जा रथे अउ वो बिला ले निकलबे नइ करय।ये स्थिति मा बिलई हा उहाँ ले बिना रोये-गाये,बिना तंग-तूफान करे चुपचाप अंते खिसक जथे अपन भोजन के खोज मा।


    अइसनहेच कोकड़ा हा तको अपन भोजन मछरी ला--कीरा मकोरा--मेचका ला पाये बर एक गोड़ मा घंटो धीरज धरके  पानी मा खड़े रथे। बेचारा के हालत तो कभू शिकारी-कभू भिखारी कस तको हो जथे।

  एक व्यापारी हा तको शांति पूर्वक अपन ग्राहक के अगोरा मा बइठे रइथे। तनाव तो उहू ला बिकट होथे फेर वोला सहिके जब ग्राहक आथे ता वोकर ले प्रेमपूर्वक गोठियाके सौदा करथे। वोकर धर्यपूर्वक व्यवहार हा अइसे कमाल देखाथे के ग्राहक मन खींचे चले आथें अउ धंधा मा बरकत होये ला धर लेथे।

       ये बिलई ,कोकड़ा अउ व्यापारी के किस्सा हा तो पटंतर आय।असली बात धैर्य के गुण हरे।कोनो चीज मा सफलता पाये बर धैर्य के होना जरूरी होथे। असफलता के एक ठो बड़े कारण अधीर होना,कोनो बुता मा बेमतलब के तड़तड़ी करना, हड़बड़ी करना होथे।हड़बड़ी मा गड़बड़ी होये के अंदेशा रहिथे। मंजिल नइ मिलत ये सोच के कतेक झन अधीर होके अपन बढ़े कदम ला पाछू खींच लेथें जबकि मंजिल हा कुछे कदम बाँचे रहिथे।

एक बात अउ हे के कोने मनखे हा वो गलत रद्दा ला चुन लिच जेमा ओकर मंजिले हा नइये।जाना उत्ती कोती हे अउ गलती ले बूड़ती कोती रेंगे ला धरलिच ता वो तो भटक जही।अइसन धर्म संकट के समय वोला जब भी अपन गलती के भान होवय ता धैर्य रखके सहीं रद्दा ला पकड़ लेना चाही।

अइसे भी देखे मा आथे के  अबड़ेच धीरज हा  कभू-कभू कमजोरी बने ला धर लेथे। सफलता बर धीरज के सीमा रेखा ला पहचानना तको जरूरी होथे अउ सफलता के रद्दा मा कोन मेर काँटा हे,बाधा हे तेला खोज के हटा देना परथे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

24 जून जनमदिन एकलव्य परंपरा के साधक दिनेश चौहान

 24 जून जनमदिन

एकलव्य परंपरा के साधक दिनेश चौहान

    कतकों मनखे ल मैं देखे हौं बिना काकरो अंगरी धरे, अपने सुर म रेंगत रहिथें. जइसे एकलव्य ह सिरिफ अपन मन म ही गुरु के छापा बसा के धनुर्विद्या के जम्मो मरम ल जान अउ सीख गे. ठउका अइसने दिनेश चौहान घलो हे जे अपन लगन ल ही गुरु मान के लेखन के संगे-संग चित्रकला म घलो पारंगत होगे हवय. 

   दिनेश चौहान के असली नॉव हे दिनेश कुमार ताम्रकार फेर ए ह रचना संसार म अपन नॉव ल दिनेश चौहान ही लिखथे. वइसे उंकर महतारी ह मया कर के उनला 'राजेन' कहिथे.

    भीमसेनी एकादशी परब 24 जून बछर 1961 के धमधा जिला दुर्ग म महतारी अगासबाई ताम्रकार अउ सियान रामकृष्ण ताम्रकार जी के घर जनमे दिनेश पेशा ले सरकारी गुरुजी हे. फेर बड़ा अचरज के बात ए आय के आज तक मैं एकर भीतर सरकारी गुरुजी वाले कोनो चिन्हा नइ देखेंव.

    सुभाव ले आध्यात्मिक होय के सेती दिनेश जी संग मोर गजबे जमथे. साधना काल म जब कभू मोला राजिम त्रिवेणी संगम के कुलेश्वर महादेव के दर्शन के साध होवय, त दिनेश ल ही फोन करौं.

   दिनेश जी तुरते तइयार हो जावय, हाँ आना भइया आप के संग म मोरो देव दर्शन हो जाथे. नइते भले हम रहिथन नवापारा राजिम म फेर देवता मन के दर्शन पैलगी बर महीनों बीत जथे.

    वइसे उमर म मोर ले एक हफ्ता के बड़े हे दिनेश चौहान ह फेर भइया संबोधन ल उही च ह करथे. 

   दिनेश चौहान जी एक उत्कृष्ट श्रेणी के पाठक आय, एकरे सेती वोमन हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी दूनोच भाखा म गुरतुर लिखथें. दिनेश जी जतका सुंदर लेखन करथें वतकेच सुंदर चित्रकला म घलो निपुण हें. मैं बेरा बेरा म उंकर जगा अपन प्रकाशन ले संबंधित चित्र बनवावत रहिथौं.

     अपन नियम कायदा के पक्का होय के सेती दिनेश चौहान जी कतकों बेर सरकारी तंत्र संग जूझत घलो राहय. एक बेर मैं उनला पूछेंव त उन रचनात्मक जगत म अपन नॉव ल बदल के लिखे के कारण घलो इही आदत ल बताइस.

    वोकर कहना रिहिस- सरकारी रिकॉर्ड म जेन नॉव हे तेने नॉव ले कहूँ मैं सोंटा मारे छाप लेखन करहूं तब तो गड़बड़ हो जाही, तेकर ले नौकरी के अलगे अउ तुतारी बाजी के अलगे नॉव.

    छत्तीसगढ़ी भाखा खातिर गजब समर्पित अउ चेतलग हे दिनेश जी ह. उंकर कहना हे- 'जम्मो तरा के स्कूल मन म छत्तीसगढ़ी भाखा ल एक अलग अउ अनिवार्य विषय के रूप म पढ़ाए जाना चाही.'

    दिनेश जी बेरा बखत म अपन लेखन मनला प्रकाशन के अंजोर घलो देखावत रहिथें. उंकर सबले पहिली किताब आए रिहिसे- 'कइसे होही छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया. 

    छत्तीसगढ़ी भाखा म वर्ग पहेली बनाय के उन सुग्घर उदिम करे रिहिन हें, एकरे ऊपर आधारित उंकर दूसरा किताब आए रिहिसे- चौखड़ी जनउला. 

    अपन ताम्रकार समाज के रचनाधर्मी मन के चिन्हारी खातिर उंकर तीसरा किताब आए रिहिसे- सृजन साक्षी.

   छत्तीसगढ़ी भाखा खातिर फेसबुक म लगातार लिखत अपन पोस्ट मनला एकमई कर के चौथा किताब छपवाय रिहिन हें- छत्तीसगढ़ी बर तुतारी.

    दिनेश जी के पांचवा किताब 'साॅंच कहे तो मारन धावै' शीर्षक ले आए रिहिसे, जेमा अभी हालेच म बुलके महामारी 'कोरोना' के दूसर पक्ष ल लेके लिखे गे लेख मन के संगे-संग कुछ निबंध अउ व्यंग्य मनला संघारे गे रिहिसे.

    मोर साधना काल म अंगरी गिनउ संगवारी रिहिन हें, जेमा दिनेश जी घलो एक रिहिन हें. एकरे सेती जब कभू मोर राजिम क्षेत्र म जाना होवय, त सबले पहिली उनला सोर कर देवत रेहेंव. तहाँ फेर दूनों झन संघरा किंजरई फिरई करन. 

     आज अपन जिनगी के बैसठ बछर पूरा करत दिनेश चौहान जी ल बधाई देवत गजब निक जनावत हे. एकर एक बड़का कारण तो इहू हे, के ए ह सेवानिवृत्त हो जाही, तब नंगत के किंजरई फिरई करही, हो सकथे महूं ल संगवारी बना ले करही.

    शुभकामना देवत मैं एक पइत फेर उनला गोहराहूं. मैं इहाँ के मूल संस्कृति खातिर ठोसलग बुता करे बर एक पइत चेताए रेहेंव, आज फेर सुरता देवावत हौं, उन अपन लेखन के विषय इहाँ के मूल संस्कृति अउ अस्मिता ल घलो बनावंय.

    जनमदिन के गाड़ा-गाड़ा बधाई... 

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

भाव पल्लवन-- कोदो लुवत ले भाँटो, नइ ते ठेंगवा चाँटो।

 🙏

भाव पल्लवन--


कोदो लुवत ले भाँटो, नइ ते ठेंगवा चाँटो।

---------------

कोदो के फसल हा जादा घाम मा  एकदम चुरचुरा जथे अउ झटकुन नइ लुवावय ता एको कनी हाथ नइ आवय।अइसन समय मा कोनो हा अपन परोसी ला ये कहिके के तोरो कोदो ला सकेले ला लागहूँ  ,मीठ-मीठ गोठियाके, अपन स्वार्थ ला साधे बर भाँटो -भाँटो कइके सुल्हार के  अपन फसल ला लुआ लिच अउ जब वोकर पारी आइस ता ठेंगा देखा दिच। कुछु न कुछु बहाना बना दिच ता अइसन मनखे हा तो एकदम गारी खाये के लइक कपटी स्वार्थी होथे।अइसन मन ले बँच के रहना जरूरी होथे।

   कहे गे हे के ये दुनिया मा एको मनखे अइसे नइये जेमा कुछु न कुछु रूप मा थोड़-बहुत स्वार्थ के भावना नइ होही। गोस्वामी जी तो इहाँ तक कहे के--

"सुर नर मुनि सब कै यहि रीती।स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती।।"

    अपन हित के चाह भला कोन ला नइ होही?ये भावना सबके आदत अउ व्यवहार मा दिखथे।साधरण मनखे ले लेके बड़े-बड़े साधु-सन्यासी,ज्ञानी-ध्यानी मन मा तको स्वार्थ होथे। जेला नि:स्वार्थ कहे जाथे तेनो हा तो एक प्रकार ले दूसर के कल्याण होवय वाला स्वार्थ आय।

   स्वार्थ-स्वार्थ मा अंतर होथे। कुछ स्वार्थ मा अपन संग दूसरो के हित होवय के विचार होथे ,इही ला सर्वजन हिताय के भाव कहे जाथे, ता कुछ मा खुद के हित होवय फेर दूसर के थोरको अहित मत होवय के भाव छिपे रहिथे । कुछ स्वार्थ तो अइसे वंदनीय होथे के वोमा खुद के अहित भले हो जय फेर दूसर के हित होके राहय अइसन भाव होथे।अइसन मनखे निष्कपट त्यागी होथें। माता-पिता, गुरु,पति-पत्नी,सच्चा प्रेमी , सच्चा मित्र,सच्चा संत-महात्मा अउ नि:स्वार्थ समाज सेवी मन मा हितकारी स्वार्थ के दर्शन होथे।

ये दुनिया मा कुछ अइसे घटिया किसम के निच्चट स्वार्थी मनखे होथें जे मन मतलब सध के तहाँ ले चिन्हँय तक नहीं। अइसन मन अपन लाभ बर --भले दूसर के कतको नुकसान हो जय---काम के निकलत ले मीठ-मीठ गोठियाहीं--दुनिया भर के लालच देहीं-- आनी बानी  के गोठ करके उज्जवल भविष्य के सपना तको देखाहीं।अइसे जताहीं के वोकर ले बढ़के कोनो हितु-पिरीतु नइये फेर जइसे काम सलटही तहाँ ले हिरक के नइ निहारयँ--मुँह फुटकार के प्रेम के दू शब्द नइ गोठियावयँ। अइसन स्वार्थी मन कहूँ भेंट- मुलाकात होगे ता कन्नी काटे ला धर लेथें। जानबूझ के नइ देखत ये तइसे बगल ले निकल जथें।इँकरे बर कहे गे हे के--"मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं।"

जीवन मा धोखा ले बाँचे बर घटिया किसम के स्वार्थी मनखे मन ले बँचना जरूरी होथे।

बादल

लतका-लादका

 लतका-लादका

===०००===


    (छत्तीसगढ़ी लेख)

------------------



       *बईला के गरदन म दू ठन मोटा लकड़ी ल एक साथ जोड़ के बीच  भाग ल उल्टा यू आकार म बनाए रहिथें,तऊने उल्टा यू आकार भाग ल बईला के खांध म लटका दिए जाथे, एही ल " लतका" कहे जाथे |*

     *जब कोई बईला  जवान ह़ो जाथे, हृष्ट -पुष्ट हो जाथे,खेती-किसानी के काम म नांगर-गाड़ी म फांदे लाईक हो जाथे, तब ओ अदरा बईला ल खेती-किसानी के बूता म नांगर-गाड़ी म फांदे के पहिली असाढ़ लगते ही ओकर खांध म ए "लतका" ल बांध दिए जाथे अउ पखवाड़ा-महीना भर तक बईला के खांधा म "लतका" बांधे रहिथें तभे ओ बईला के गर्दन म मौजूद स्वाभाविक गुदगुदी ह कम हो जाथे अउ नांगर या गाड़ी म फंदाते ही जेती पाथे-तेती नइ भागय | गाड़ी -नांगर  ल टोरय-फोरय नही ! कोनो मनखे ऊपर झपावै नहीं | कोनो रूखवा म  झपावै नहीं |*

     *किसान भाई मन अपन अदरा अउ घरौछा बईला के खांधा ऊपर "लतका" डार के नाक ल छेद के रस्सी लगाथें अउ "मुहरक्की" म एक लम्बा रस्सी   बांध के अपन हाथ म लगाम थामे रहिथें |*

    *बईला ल सड़क म रेंगाथें अउ बाहिर ( दाहिना) हाथ डहर फंदाए बईला ल बांया साईड (डेरी हाथ डहर लाए बर "अर्र-अर्र-अर्र कहिथें*

    *भीतरी फंदाए (बांया साईड) बईला ल दाहिना साईड डहर लाए बर "तता-तता-तता" कहिथें | रोज-रोज अपन बईला ल एही शब्द बोले से बईला मन अपन मालिक के भाषा ल समझ जाथें अउ किसान जब अपन खेत म नांगर चलावत या गाड़ी म फांदे बईला ल बांया से दाहिना लाए बर भीतरिहा बईला ल "तता. .......तता.....अउ दाहिना से बांया साईड डहर लाए बर "बहिरहा बईला ल अर्र.........अर्र.......... शब्द बोलथें। किसान के एही भाषा ल जउन बईला मन समझ के किसान के इशारा म चलथें,तऊन बईला ल "दंवाए बईला" अउ सीखे-सिखाय बईला कहे जाथे*

     *जऊन बईला के खांधा म "जुआंड़ी" नइ फंदाय रहै या "लतका" घलो नइ फंदाय रहै,तऊन बईला ल "अदरा" बईला कहे जाथे*

    *किसान मन जऊन बईला ल सिरिफ बाहिरहा (दाहिना साईड) फांदे रहिथें,तऊन बईला ह बाहिर में ही फंदा के नांगर -गाड़ी खिंचथें*

    *किसान मन जऊन बईला ल सिरिफ भीतर साईड (बांया) नांगर -गाड़ी फांद के रेंगाथें,तऊन बईला ह सिरिफ भीतर साईड (बांया) फंदा के नांगर -गाड़ी खिंचथें*

    *अर्थात बईला भैंसा मन जऊन साईड हमेशा फंदाथें,तऊने साईड म फंदाय के आदत पड़ जाथे*

    *किसान मन जऊन बईला ल अदल -बदल के दूनो साईड नांगर -गाड़ी म फांदथें अउ ओ बईला ह दूनो साईड फंदा के सुग्घर रेंगथें,तऊन बईला ल " सदाबहार" कहे जाथे*


    *ठीक अईसनेच जब हम मनसे के बेटा ह पढ़-लिख के तैयार हो जाथे, कुछू बूता-काम ल जिम्मेदारी पूर्वक सहीं ढंग से करे लागथे, ओकर मेछा-दाढ़ी जाम जाथे,तब अपन बेटा ल घर-गृहस्थी संभाले बर  नवा बहुरिया के खूब खोजबीन करके  ओकर बिहाव कर देथैं, तऊनो ल एक किसम से "लतका" डारे कहे जा सकथे*

     *जब कोनो के बेटा ह सिरिफ बाहिरी ग्यान (पुस्तकी ज्ञान) करे रहिथे, तऊन ल "बाहिरिहा" कहे जा सकथे | अईसन बेटा ह सिरिफ पढ़े रहिथें,कढ़े नइ रहैं | अईसन बेटा ह अपन दाई-ददा,भाई-बहिनी,घर-परिवार, रिश्ते -नाते,गांव-बस्ती के मनखे संग कईसे व्यवहार करके गुजर-बसर करना चाही ? तेकर ग्यान नइ रहय | तेकरे सेती जब ओकर बिहाव होथे,तिहां अपन डऊकी (पत्नी) के गुलाम हो जाथे ! तब ओकर दाई-ददा, घर-परिवार ल खूब दु:ख सहे बर पड़थे !*

     *जऊन जवान बेटा ह सिरिफ भीतरी ग्यान अर्थात खेती-किसानी,गरूवा-बछरू, घरेलू बूता-काम, दाई-ददा के सेवा मात्र सीखे रहिथें,तऊन बेटा मन अपन नवा दुल्हनिया के दु:ख-सुख, मनोभाव ल नइ समझ सकैं,तब ओकर सुवारी ह दु:ख पाथे, अईसने भीतरिहा ग्यान वाले कई झन बेटा-बहू के बीच मधुर संबंध नइ बन पावै,तभे पति-पत्नी के तलाक के नौबत आ जाथे!*

    *जऊन दाई-ददा ह अपन जवान बेटा ल "बाहिर-भीतरी" दूनो ग्यान सिखाए रहिथें अर्थात पढ़ाय के साथ कढ़ाय भी रहिथें,तऊने बेटा ह "सदाबहार सुजानिक बेटा" कहे जा सकथे | अईसने बेटा के बिहाव होथे,तब सिरिफ अपन गोसाईन के मोह-जाल म नइ रहय अउ अपन दाई-ददा,भाई-भौजाई,दीदी-भांटो,कका-काकी,बबा-बूढ़ी दाई, घर के लईकन- सियान,गांव-बस्ती के जम्मो मनसे के सुग्घर जथा-जोग शिष्टाचार, व्यवहार करते हुए अपन घर-गृहस्थी चलाथे,अपन जिनगी ल सुफल बनाथे |*

    *तव हर दाई-ददा ल अपन बेटा ल घर-गृहस्थी के "लतका" डारे के पहिली पढ़ाई के साथ कढ़ना भी चाही,दाई-ददा, भाई-बहिनी,बबा-बूढ़ी दाई,कका-काकी,जम्मो लईकन -सियान के प्रति आदर-सम्मान,प्रेम व्यवहार,अपनापन,दु:ख-सुख के साथी,त्याग-बलिदान के भावना पैदा करना चाही |*

     *बेटा-बेटी पढ़त रहिथैं,तव ओला घर-गृहस्थी के बूता-काम से अपरिचित,एकदम निठल्ला अउ "साहबजादे" अउ "पापा के परी" बना के नहीं रखना चाही!*

    *संयुक्त परिवार के टूटे से एकल परिवार म बेटा-बेटी मन पारिवारिक जिम्मेदारी से अनभिज्ञ हो जाथें! परिवार के प्रति प्रेम,अपनापन,त्याग, बलिदान से कोसों दूर हो जाथें ! तभे बेटा बर बहुरिया लाए से अउ बेटी ल ससुराल पठोय से नाना प्रकार के अड़चन,मन-मुटाव,बिखराव के भयानक समस्या उत्पन्न होवत रहिथे !*

   

    *घर-गृहस्थी, परिवार,समाज म सुख-शांति, समृद्धि,सुमता-सलाह,प्रेम,दया,त्याग, बलिदान के भावना अपन बेटी-बेटा के मन म पैदा करे बर ओकर घर-गृहस्थी रूपी "लतका" डारे के पहिली भली-भांति सिखौना भी नितांत जरूरी ह़ोथे।*

    *बेटी-बेटा ह भलीभांति सीखे रहिही,पढ़े के साथ कढ़े रहिही,तभे तो अपन पति,पत्नी के "लतका" ,फेर संतान पैदा होय के बाद अपन संतान के परिवरीश, उचित इलाज,उचित शिक्षा-दीक्षा के "लतका" फेर ऊंकरो संतान योग्य होही,तब बर-बिहाव करे के "लतका" फेर नाना प्रकार के पारिवारिक बोझ रूपी "लतका" ल झेले सकही | तभे परिवार,समाज म  खुशहाली होही*

     *सिरतोन म ये "लतका" के उपयोग,बेटी-बेटा ला समुचित सिखौना (प्रशिक्षण) नितांत जरूरी हवय |*

    *"ए लतका" शीर्षक के लेख ह आप सब सुजानिक भाई-बहिनी मन ल कईसे लगीस ? अपन विचार,सुझाव खच्चित लिखिहौ | आप मन के कीमती प्रतिक्रिया,सुझाव के अगोरा रहिही*



*सर्वाधिकार सुरक्षित*


दिनांक - 25.06.2023


आप मन के अपनेच

*गया प्रसाद साहू*

   "रतनपुरिहा"

*मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़)*


मो.9165726696



👏☝️✍️❓✍️👏

Friday 9 June 2023

भाव पल्लवन--- हाथ न हथियार, कामा काटे कुसियार।

 भाव पल्लवन---



हाथ न हथियार, कामा काटे कुसियार।

----------------------------------

खेत मा लगे कुसियार के फसल ला काटे बर धरहा हँसिया या फेर आजकल के हिसाब ले गन्ना फसल काटे के मशीन जइसे साधन होना चाही जेन एके बार मा चक ले भुइयाँ ले लगती गन्ना के पौधा ला काट दय।अइसन करे मा ही सहीं ठंग ले कम समे मा जादा ले जादा ले जादा पौधा ला काट के लाभ प्राप्त करे जा सकथे। कोनो बिना साधन के अँइठ-अँइठ के कुसियार के पौधा ला टोरही त भला कतका पौधा ला टोर पाही? मुरकेट के टोरे मा भारी नुकसान अलग से हे काबर के अइसन टोरे म बाँचे डंठल मा दुबारा पीका नइ फूटै जबकि एक पइत गन्ना के फसल बोंके उही पौधा ले दुबारा,तिबारा फसल ले जाथे---अउ बोंये ला नइ परै।

 ये तरह ले कोनों लक्ष्य ला  बने ढंग ले पाये बर साधन हा बहुतेच सहायता करथे  ।साधन के बहुतेच महत्व होथे।जइसे के कोनो विद्यार्थी ला पढ़ना लिखना हे ता पट्टी पेंसिल ,पेन ,पुस्तक , कापी आदि साधन के होना जरूरी हे तभे वोहा पास हो पाही।

 कोनो चीज हा इच्छा करे भर ले नइ मिल जावय।वोकर बर साधना मतलब कठिन मेहनत के संग उचित साधन जुटाये बर लागथे। कोन काम बर कोन साधन चाही,कोन रद्दा मा चलके मंजिल मिल पाही एकर ज्ञान होना जरूरी होथे।

   व्यापार मा सफलता पाना हे ता वोकर बर पूँजी(रुपिया-पैसा) रूपी साधन जरूरी हे। कोनो व्यापार करना चाहत हे त वोकर पास शुरुआती लागत लगाय बर धन चाही अउ कहूँ नइये ता बैंक ले लोन लेके जुटाये बर लागही।वोला बाजार के उतार-चढ़ाव ला समझे बर लागही।

  कोनो ला खेती-किसानी बने ढंग ले लाभ मिलय तइसन करना हे ता नागर-बक्खर ,खातु-माटी ,बिजहा ,दवई-पानी जइसे साधन के होना जरूरी हे। साधन के बिना साध्य(लक्ष्य ) के मिलना दूभर हो जाथे।


चोवाराम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

Thursday 8 June 2023

असल प्रकृति प्रेमी - मनीराम गोंड़

 असल प्रकृति प्रेमी - मनीराम गोंड़

मनीराम गोंड़ कुम्हारीमुड़ा गाँव के रहइया रिहिसे। छत्तीसगढ़ के रइपुर वनमंडल के अंतर्गत पिथौरा म एक झिन अंग्रेज वन अधिकारी के नियुक्ति होए रिहिस। वो हँ मनीराम गोंड ल बीटगार्ड के नौकरी म रखिस। मनीराम अब्बड़ सुग्घर जेवन बनावय। ओकर हाथ के बनाए जेवन अंग्रेज अधिकारी ल रूचगे। कुछ दिन पीछू जब वो अंग्रेज अधिकारी इहाँ ले इंग्लैण्ड गिस त मनीराम ल तको अपन संग लेगे।

उहाँ मनीराम ल साहब के बगवानी म सैगोन जेला ‘प्लस ट्री’ तको कहे जाथे, ओकरे पेड़ के बीजा जगोए अउ पेड़ बनाए के ‘रुट शूट विधि’ सीखे के सुअवसर मिलीस। कुछ महीना पीछू वो अधिकारी लहुट के भारत आ गे। दू बछर पीछू वो अंग्रेज वन अधिकारी के स्थानांतरण हो गे, फेर ओकर जाए के पीछू मनीराम हँ जऊन करीस वो हँ इतिहास बनगे।

पेड़ लगाए के सेति नौकरी ले होगे बर्खास्त -

1891 के बछर रिहिसे। गिधपुरी जंगल जऊन आज देवपुर फारेस्ट रेंज (बलौदाबजार वनमंडल) म आथे अउ बार नवापारा वन्यजीव अभ्यारण्य ले लगे हवय। उहाँ साल के जंगल के एक ठिन बड़े जनिक हिस्सा कटई के सेति उजार परगे रिहिस हे। मनीराम हँ अपन सुआरी संग मिलके उहाँ पौधा लगाए के निश्चय करीस ताकि वो खाली जगा हँ फेर हरियर हो जाय। 

बताये जाथे कि उही पइत  संजोग ले बर्मा ले लहुटे एक झिन बयपारी संग उन्कर भेंट हो गीस। वो हँ मनीराम ल सैगोन के पेड़ लगाए के सुझाव दिस अउ सैगोन के बीजा तको उपलब्ध करवाइस। बीजा मिले ले मनीराम हँ पहिली सैगोन के बीजा मन ल बिरवा म बदलिस अउ फेर इंग्लैंड म सीखे ‘रुट शूट’ पौधारोपण विधि के उपयोग करत 23 एकड़ क्षेत्र म सैगोन के पेड़ लगा डरिस। वो समे जब पौधारोपण के कोनो स्पष्ट नीति नइ बने रिहिस हे, तब मनीराम हँ 1891 म इहाँ ऊँच तकनीक ‘रुट शूट प्लांट पद्धति’ ले सैगोन लगा दे रिहिस हे। ये सैगोन पौधारोपण भारत भर म नहीं भल्कुन जम्मो एशिया के पहला सैगोन पौधारोपण रिहिस हे।

फेर नियति ल कुछु अउ मंजूर रिहिस हे। ये वनपुत्र के ये हरित कथा एक दारुण दुःख म बदलगे। उहाँ पीछू अवइया अंग्रेज अधिकारी हँ गिधपुरी जंगल म ये सैगोन पौधारोपण ल लेके विभागीय अनुमति के कागजात खोजीस त अइसन कोनो कागज नइ मिलिस। जबकि मनीराम हँ ये पौधारोपण भावनावश करे रिहिस हे। विभाग हँ ये बूता ल गैरकानूनी मानिस अउ मनीराम ल बर्खास्त कर दिस!

मनीराम ऊपर एकर नंगत बुरा प्रभाव परिस अउ वो एकर ले आहत होके बइहा-भूतहा मन बरोबर इहाँ-उहाँ  भटके लगिस। पीछू जुवार उन्कर मऊत होगे। स्थानीय गँवइहा मन के दैवीय विश्वास के अनुसार मरे के पीछू मनीराम के आत्मा जंगल अउ गाँव म भटकत रिहिस हे। ओकर निवारण खातिर बैगा मन ओकर आत्मा के शांति बर मनीराम पौधारोपण के बीच एक ठो बर पेड़ तरी पथरा ल मूर्ति बनाके थापित कर दिन अउ तेकर ले सब तिहार -बार म ओकर पूजा होए लगिस। आज ले वो जगा म मनीराम के पूजा होथे।

मनीराम के ये योगदान ल प्रशासन हँ संज्ञान म लिस अउ 1996-97 म तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार हँ मनीराम के नाती प्रेमसिंह ल 10 एकड़ जमीन अउ 50 हजार रुपिया देहे के घोषणा करीस। 

इही तरह जून 2018 म छत्तीसगढ़ सरकार कोति ले पौधारोपण के क्षेत्र म उल्लेखनीय कार्य करइया ल ‘मनीराम गोंड स्मृति हरियर मितान’ नाम से राज्यस्तरीय सम्मान के स्थापना करे गीस।

आज मनीराम के वंशज मन ल वो जमीन के मालिकाना हक मिले हे कि नहीं, ये पता नइ हे, काबर कि खबर के अनुसार 2017 तक मनीराम के नाती प्रेमसिंह के मृत्यु हो चुके हे। उन्कर सुवारी हीराबाई ल शासन कोति ले प्रदत्त जमीन नइ मिले रिहिस हे।

समय अपन चाल म चलत रहिथे। पीछु जुवार वन विभाग ह उन्कर प्रति कृतज्ञता देखावत ये प्लांटेशन के नामकरण मनीराम जी उपर कर दिस। आज 23 एकड़ क्षेत्र म सिरिफ एक एकड़ जगह म ही मनीराम के लगाए सागौन बहुते कम संख्या म बाचे हे। ये दुर्लभ अउ जुन्ना पेड़ मन के मोटाई पौने तीन मीटर तक हावय अउ ये अपन वजन ल अउ कतेक दिन सम्भाल सकही या कब तक सुरक्षित रहिही, कुछु नइ कहे जा सकय। जइसन कि बाकी पेड़ समय के मार ले खत्म होगे हवय। ये पेड़ ज्यादा दिन तक नइ रही पाही, अइसे आशंका हे। ये प्लांटेशन के बारे म आज भी लोगन ल जादा जानकारी नइ हे। ये बाचे पेड़ ल  संरक्षित करे के उपाय के संगे-संग ये प्लांटेशन स्थल ल पर्यटन स्थल के रूप म विकसित करना अउ ये प्लांटेशन के पर्यावरणीय अउ ऐतिहासिक महत्व ल सामान्य ज्ञान के पुस्तक म ठिहा देना होही, तभेच हम मनीराम के प्रति अपन सही कृतज्ञता ल परगट कर पाबोन।

रुट शूट के भारत म प्रणेता मनीराम आज नइ हे, फेर देश म उन्कर सागौन रोपणी पद्धति के ही अनुसरण करे जाथे। जतेक सागौन पेड़ भारत म हे, वो उही रुट शूट पद्धति ले रोपे गे हवय, जेकर शुरूआत मनीराम ह करे रिहिस हे। ये जम्मो मामला म एक लोकव्यवहार येहू निकलके आथे कि जउन मनीराम के कदर तत्कालीन वन विभाग नइ कर सकीस, ओला गाँव वाले मन ह वनदेवता बना दिन। ये घटना लोक म किंवदंति के स्थापना प्रक्रिया उपर प्रकाश डालथे। आज 5 जून के पर्यावरण दिवस म ‘वनदेवता’ मनीराम ल नमन।


धर्मेन्द्र निर्मल 

9406096346

का करि डारेंव काकर बुध मा

 का करि डारेंव काकर बुध मा       डॉ बी नंदा 

मनखे  के हदरही  ल का कहीबे। कतकोहन मिल जाए फेर ओकर पेट हा नई भरे। परकिर ती ह का जिनिस ला नई देत हे, फेर ओला कामतिच परथे। हवा , पानी, जंगल_ झाड़ी, आगी, फल_ फूल, कंदमूल, लकड़ी , जम्मो जीवन के सबो अमृत ल कुड़हो देथे। फेर का करबे, कारखाना बनाना हे,  धुआं फेंक_ फेंक नंगत के गाड़ी चलाना हे,  जंगल ला काटना हे, तरिया ला  पाटना हे, कुआं ला पाटना,  नदी नरुआ ला पाट_ पाट के घर बनाना हे , चाकर_ चाकर छे लेन के सड़क बनाना हे,खेत_ खार मा भक्कम   खातू डारना हे, गरवा_ गाय के कोई जतन नहीं, जेखर करा हवे तेहा, कांदी _कचरा कहां के खवाही ऊहू हर दुनिया भर के नवा_ नवा ,रंग_ रंग के दाना_ दुचरा ल खवाथे । एकरे मारे दूध ह घ लो आजकल सुद्ध नई मिलए। अऊ उपराहा मे लोगन नकली दूध बनाथे यूरिया खातू डार_ डार के।वाह ! रे मनखे अपने मन बर अपनेच  दुसमन बनगेहे। हाय रे पइसा, देखेंव निही तोर  जईसा।

     मनखे हर जीहां जाथे तिहां कचरा करथे। एवरेस्ट के चोटी ह घलो नई बांचे हे। कतरो लिखाय राहय एकरा कचरा फेंकना मना हे, फेर मनखे के जात नियम ल माने से जादा   टोरे मां मजा आथे । हमर देस में तो ईही तरह देखे ल मिलथे। एकरे सेती सरकार ल साफ_ सफई बर अभियान चलाना परथे , कभू हाथ धुलाई अभियान, कभू स्वच्छता अभियान। चलगे अभियान दू दिन तहां अभी जाके देख लव गांव ल कहांव कि सहर ला मार कचरा गंजाय रही अऊ बस्सात , बजबजावत रहिथे । अब भई नियम ल नई मानही त कईसे होही? हमर पारा मां घलो देखथंव रोज ऐ 

डहा कचरा वाले मन आथे सूखा कचरा, गीला कचरा दूनों परकार के बाल्टी हे तभो ले कई झन मन कचरा ल परोस मा कुड़हो देथे ।

     अइसने गांव मन के हाल हे । पहीली सबके अपन_ अपन घुरुवा राहय गांव के बहीरी मा । आजकाल सबो भूईंया बटागे अऊ सबो घूरुवा पटागे । जेकरा देखबे तेकरा कचरा के कुढ़ोना।

      परियावरन ला बिगाड़े के काम सबले जादा मनखे हर करथे ता ओला सुधारे के काम ऊही ल करना  चा�

भाव पल्लवन--- जइसन बोंही,तइसन लूही


भाव पल्लवन---


जइसन बोंही,तइसन लूही

------------------

जेन जइसन बोंही,तइसन लूही ये ला कर्म के अटल नियम कहे जाथे। इही बात ला "बोंए पेड़ बबूल के आम कहाँ से होय" तको कहे गे हे ।मतलब साफ हे के बम्हरी के पेड़ मा बम्हरीच फरही वोमा आमा नइ फरै। आमा चाही ता आमा के वृक्ष लगाये बर लागही,वोकर सेवा जतन करे बर परही। बुरा कर्म करे ले दुख अउ अच्छा कर्म करे ले सुख मिलथे। 

    कर्म के सिद्धांत या नियम ला सौ फिसदी वैज्ञानिक सिद्धांत माने जाथे। संसार मा जतका भी दार्शनिक विचारधारा हे वोमा चार्वाक ला छोड़के ,सबो के एही कहना हे। ये तो स्वयं सिद्ध हे के अच्छा कर्म के अच्छा अउ बुरा कर्म के बुरा फल आज नहीं ते कल मिलके रहिथे।

      कर्म के सिद्धांत  अबड़ कठोर होथे। ये मा कोनों अपवाद नइ होवय अउ कोनो ला छूट नइ मिलै।इहाँ माय-मौसी,भाई भतीजावाद तको रंच मात्र नइ चलै।मनखे चाहे गरीब होवय चाहे अमीर, चाहे अज्ञानी होवय चाहे ज्ञानी-- सब बर एके नियम।

    मनुष्य जीवन के सफलता-असफलता,मान-अपमान ,सुख-दुख सब इही करम उपर टिके रहिथे।जइसन करम होथे तइसने भाग बनथे अइसे माने जाथे। भले कभू-कभू ये देखे मा आथे के बुरा कर्म ,लूट-खसोट,भ्रष्टाचार करइया मन दिन दूना रात चौगुना तरक्की करत दिखथें फेर इँकर आखिरी परिणाम तो दुर्गति के रूप मा दिखिच के रइथे।

    ये कर्म के सिद्धांत हा विचित्र होथे। बुरा कर्म के फल भोगे ले, अच्छा कर्म करके नइ बाँचे जा सकै।बुरा कर्म होवय चाहे अच्छा कर्म होवय दूनों के फल अलग-अलग भोगेच ला परही। अँगरा ला धरे मा हाथ जरबे करही अउ पीरा होबे करही--फोरा परबे करही।हाँ बाद मा दवाई लगाके वो फोरा ला मिटाये जा सकथे।

     बिना कर्म करे कोनो मनखे एक सेकंड तको नइ रहे सकय।मनखे ला कर्म के फल ला चेत करत ,सोच-समझ के काम करना चाही। दया-मया,प्रेम, भाईचारा, इंसानियत बाँटे ले बदला मा एही सब खुद ला मिलही ये मा पक्का विश्वास रखना चाही काबर के एही सत्य ये।


चोवाराम वर्मा'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

नुनछुर पानी चन्द्रहास साहू

 नुनछुर पानी

      

                                  चन्द्रहास साहू

                                    मो 8120 578897 


गरमी के घरी अउ कोनो कोती जाय-आय के होगे तब.......? हाय राम दंदरासी लाग जाथे, अतकी ला गुन के। कोन जन सुरुज नारायेण  कतका घाम टेड़रही ते। ये बच्छर चौमासा मा पानी घला जादा नइ गिरे रिहिस।  जाड़ अब्बड़ कंपकपाइस वइसना गरमी हा घलो टघलावत हाबे। 

जवनहा दिलीप आज जगदलपुर ले रायपुर जाये बर ऑटो मा बइठे हाबे। ऑटो भागत हाबे वइसना मन घला दउड़त हाबे। 


ओलकी-कोलकी विकास के घोड़ा दउड़त हाबे कहिथे खुर्सी वाला मन। फेर मोर बस्तर ले रायपुर रेल लाइन नइ बनिस आज तक। ननपन ले जवनहा होगेंव सर्वे भर होवत हावय - बीसो परत ले सर्वे, घेरी-बेरी सर्वे फेर आगू कुछु नही। अउ .... बस वाला मन तो ताकत हाबे बिलई बरोबर। चिथो-चिथो करत हाबे। एक झन लइका अउ गाँव भर टोनही कस। एक झन यात्री अउ अब्बड़ अकन छेकइया।  गारी बखाना अउ मार पीट रोज के बुता आय। एक महाभारत ला जीतबे तब दुसर महाभारत के मुहतुर होथे।

"टिकिट डोकरा ...?''

कंडक्टर के आरो ला सुनके पन्दरा परत ले गुरमेटाये पाँच सौ के नोट निकालिस सलूखा के खीसा ले सियान हा अउ दिस। कंडक्टर बमियागे।

"पचास रुपिया के टिकट बर पाँच सौ निकालबे तब कहाँ के चिल्लहर दुहुँ। उतरे के पहिली ले लेबे टिकट के पाछु मा लिख दे हँव।''

कंडक्टर किहिस अउ आने के टिकट कांटे ला धर लिस। सियान बम्बाये कस ठाड़े रहिगे। बस के सीट भलुक जुच्छा हाबे फेर नइ बइठारे तीर- तखार के जवइया मन ला । दूधपिया लइका धरे महतारी होवय कि सियान-सामरत ठाड़े होके सफर करे ला परथे। अइसना तो नियम बनाये हाबे बस वाला मन।

        .....अउ सियान अपन गाँव भानपुरी मा उतरिस तब अब्बड़ बीख भाखा सुनिस। बीच मा दिलीप हा सियान के पक्ष ला लिस तब साढ़े चार सौ रुपिया ला लहुटाइस कंडेक्टर हा।

             पाछू दरी बस मा सफर करे रिहिन दिलीप हा। उदुप ले सुरता कर डारिस ऑटो मा बइठे-बइठे बस वाला मन के मइलाहा बेवहार ला।

                जगदलपुर के रानीसागर  पारा ले ऑटो मा बइठके बस स्टेशन जावत हाबे जवनहा दिलीप हा।  पाछु दरी तो किरिया खाये रिहिस दिलीप हा बस मा सफर नइ करो अइसे फेर आज तो जाये ला परही। जिनगी सिरजाये के सवाल हाबे। 

         बस स्टेशन के खिड़की मा मुड़ी ला खुसेरके कुछु गोठियाइस अउ ए.सी. बस मा सीट बुक करिस। चेहरा मा चुचवावत पसीना ला पोछिस अउ कोल्ड्रिंक बिसाके गड़गड़-गड़गड़ पी डारिस। चिल्ड पानी बॉटल बिसाके धरिस अउ ओरी-ओरी ठाड़े अपन बस मा चघगे।अपन सीट ला  पोगरा डारिस। पीठ मा लदाये बैग ला बगल के सीट मा मड़ाइस अउ  लोद ले बइठ गे। ससन भर जम्मो कोती ला देखिस। चकाचक करत बस - सुघ्घर मखमली परदा, गद्देदार सीट अउ रिकम-रिकम के मइनखे- वनवासी ले शहरिया तक, बइठे ले ठाड़े होवय जम्मो कोई ला देखिस। ए. सी. के नॉब ला अपन चेहरा कोती करिस अउ बिन संसो के बइठगे।

              ओसरी-पारी अवइया-जवइया मन आये लागिस अउ बस भरगे। कुम्हार पारा चौक मुरिया चौक दलपत सागर चौक जम्मो ला नाहकत अब जगदलपुर ले निकले लागिस बस हा। दिलीप  चतुरा आय सीट मा मड़ाये बैग ला नइ टारे रिहिस। भलुक एक  दू  झन टोंकीस तभो।

"पाछू डाहर देख न भइ !  कोनो सीट होही.....।'' 

दिलीप कनझना के किहिस। 

ओला अगोरा हावय सफर के संगवारी के। अब चेहरा चमके लागिस उदुप ले। होठ मा मुचमुची तौरत हाबे। मने मन गमकत हाबे। सुघ्घर बरन वाली मोटियारी बस मा चढ़िस। खब ले बैग ला सीट ले टार के कोरा मा मड़ा लिस। रूपसुन्दरी मुचकावत तीर मा आइस।  दिलीप के रंग गरब मा भरगे। कोनो जंग जीते के उछाह के रंग दिखत हाबे अब। बइठे के उदिम करिस रूप षोडशी हा। दिलीप के जी धक्क ले लागिस।

"मेडम ! ऐती आ तोर बर सीट पोगरा के राखे हव।''

दिलीप पीछू लहुटके देखिस। अउ मोटियारी अपन सहकर्मी के तीर मा जाके बइठगे। दिलीप के दिल टुटगे। कतका सपना देख डारिस छिन भर मा।          

ए.सी. के हवा  हाथ मा कोल्ड्रिंक  अउ बगल मा मोटियारी ........! मोटियारी संग गोठ-बात हाँसी ठट्ठा.... ।

                 सिरतोन अब साध पूरा होये बरोबर लागिस। अगियावत अंतस मा जुड़ पानी परे कस लागिस जब एक झन आने मोटियारी हा लसरंग ले आके बाजू के जुच्छा सीट मा बइठगे। स्कार्फ ला हेरिस अउ चंदा बरोबर दगदग ले उज्जर चेहरा के पसीना ला पोंछे लागिस। ममहावत लहरावत सिल्की चुन्दी दिलीप ला गुदगुदासी लागिस। आँखी मा काजर अंजाये कजरारी, चाकर माथ, नानकुन करिया टिकली चुटुक ले दिखत रिहिस। हाइट पर्सनालिटी सिरतोन हीरोइन कस। दिलीप कुछु गोठियाये के उदिम करिस फेर मुँहू के गोठ मुँहू मा रहिगे। 

"कहाँ जाबे तेहां। ?''

दिलीप अकबकागे। मोटियारी के गोठ ला सुनके। 

"र ....र ...रायपुर जावत हँव सीजी पीएससी मा इंटरव्यू हाबे मोर । अउ तेहां ?'' 

गरब मा किहिस दिलीप हा।

"मेहां कोण्डागांव जावत हँव। माइके गे रेहेंव। अब ससुराल जावत हँव। ड्यूटी जाये के हावय न ! बेरा मा अमरे ला लागही...!''

मन्दरस कस गुरतुर गोठियाइस मोटियारी हा दिलीप के गोठ सुनके। ससन भर एक बेरा अउ देखिस  दिलीप हा मोटियारी ला। कोनो कोती ले बर-बिहाव वाली नइ दिखत हाबे।

"ड्यूटी......? कोन जॉब करथस ?''

"आँगनबाड़ी केंद्र मा टीचर हँव। नान्हें लइका मन ला पढ़ाथो।''

मोटियारी गरब करत किहिस। दिलीप अरहजगे पानी पीयत रिहिस तब गोठ सुनके। एक बेर अउ देखिस ससन भर दिलीप हा मोटियारी ला।     

उदुप ले डोकरी दाई के सुरता आगे।

परोसी आँगनबाड़ी वाली मेडम ला बखानथे तब कहिथे- तीन हजार  के नौकरी अउ चार हजार के लुगरा। जादा फैशन झन कर। दिलीप अब मोटियारी के लुगरा के मोल-भाव करे लागिस मने मन मा। 

"कोण्डागांव......कोंडागांव !''

कंडेक्टर आरो करिस। अब्बड़ अकन उतरिस अब्बड़ अकन चघिस। मोटियारी  घला उतरगे।

 मोटियारी के उतरना अखरगे दिलीप ला। सूट ले कोंडागांव अमरगे गोठ-बात करत। अब कोन आही सीट मा दिलीप संसो करे लागिस।

                  एक झन सियान आइस अउ दिलीप के बगल के जुच्छा सीट मा बइठगे। भलुक सियान हा सावचेती ले बइठिस फेर दिलीप के उड़ावत गमछा चपकागे। गुर्री-गुर्री देखे लागिस सियान ला दिलीप हा। सियान डर्रागे। सियान के मइलाहा कुरता, मइलाहा पेंट, खाँध के अंगोछा ला देखिस दिलीप हा। भलुक कुर्ता के ऊप्पर सलूखा डारे हाबे तभो ले गरीब दिखत हाबे। 

किसान बरोबर तो नइ लागत हाबे। बनिहार बरोबर नइ दिखे......? मनेमन गुनत हाबे दिलीप हा। कोनो फैक्टरी के मुंशी होही......। नही, कोनो पार्टी के झंडा लगइया पानी पियइया कोनो छुटभैया नेता होही......। आनी-बानी के गोठ फोकटे-फोकट गुनत हाबे दिलीप हा। ......अउ जतका गुनत हाबे ओतकी मन करू होवत हे। अब तो बस्साये लागिस सियान हा।

         बस मा उदुप ले ब्रेक लगिस। बस मा ठाड़े होवइया मन समुंदर के लहरा कस पाछु ले आगू आगे। हाँसी अउ चिचियाई के आरो संग ड्राइवर ला बखानीस घला। बइठइया मन घला उझलगे। सियान के खाँध अउ जवनहा दिलीप के खाँध टकराइस। 

"सोंज बाय नइ बइठस डोकरा नही तो.....?'' दिलीप तो आगू ले अगियावत रिहिस अब आगी उलगत किहिस। 

"सोरी ....! सोरी बेटा...!''

 जुड़ावत किहिस सियान हा।

दिलीप के पारा अउ चढ़गे। तमतमाये लागिस दिलीप हा।

"सोरी के मतलब जानथस फट्ट ले बोल तो देस।''

अब सियान दुनो हाथ जोर डारे रिहिस। अब्बड़ संसो मा दिखत हाबे अउ परेशान घला। देखे मा अब्बड़ पियासे लागत हाबे फेर पुरौती-पुरौती दू घूँट पानी पीये के उदिम करिस  फेर बस के धक्का ले मुँहू के पानी हा छाती ला भिंजो डारिस। अरहज गे सियान हा।

"दोना मा पेज पियईया मन के हाथ मा पानी बॉटल आ जाथे तब अइसना होथे डोकरा।''

दिलीप ताना मारत किहिस। 

सियान कलेचुप रिहिस। अब बॉटल ला हाथ मा धर लिस। न बैग न झोला सिरिफ पानी बॉटल ला धरे हाबे सियान हा।  ......अउ  सलूखा के ऊप्पर खीसा मा छोटकुन मोबाईल। टुईटुई-टुईटुई ... के आरो आइस। अपन  की पेड वाला मोबाइल ला चश्मा चढ़ाके देखिस अउ कुछु टाइप करके सेंड करिस। टुच्च के आरो आइस अउ फेर खीसा मा धर लिस।

खिड़की के ओ पार देखे लागिस अब सियान हा। 

    कोनो गाँव आय मुरिया मारिया आदिवासी भाई-बहिनी मन बाजार हाट करत हाबे। कांदा-कुसा बेचत हाबे अउ सूपा झेंझरी टुकनी-टुकना बिसावत हाबे। महुआ हर्रा सालबीजा धरके आवत-जावत मोटियारी वनवासी मन। सियान के आँखी चमके लागिस।  एक-एक जिनिस ला बारिकी ले अनभो करे लागिस बस मा बइठे-बइठे।

"कहाँ जाबे डोकरा तेहां !''

दिलीप पूछिस

"अ... रायपुर जाहू बेटा !''

सियान बताइस। दिलीप के मन उदास होगे। माथा ला धर लिस। चार-पांच घंटा ले झेले ला लागही डोकरा तोला। दिलीप फुसफुसाइस अउ कनिहा सोझियावत किहिस। 

"महुँ जावत हँव डोकरा रायपुर । सीजी पीएससी  के इंटरव्यू हावय।''

सियान नइ पूछिस तभो ले बताये लागिस दिलीप हा। आज जिमिकांदा के साग नइ खाये हाबे तभो ले वोकर तो मुँहू खजवावत रिहिस अउ सीजी पीएससी  के इंटरव्यू कहिथे तब छाती चाकर हो जाथे। 

"पूरा टॉप ट्वेन्टी मा सोलवा रेंक मा हाबो मेहां।''

"बधाई बेटा ! दूधे खावव दूधे अचोवव।''

सियान के गोठ ला अनसुना कर दिस दिलीप हा। फोन निकालिस अउ अब फोन मा अपन संगवारी संग गोठियाये लागिस। 

    अपन इंटरव्यू के तियारी के गोठ ला बताइस। रायपुर में रहे खाये के गोठ-बात करत सब्जेक्ट के गोठ करिस। इतिहास भूगोल अर्थशास्त्र लोकप्रशासन के अब्बड़ सवाल पूछिस अउ अब्बड़ जवाब घला दिस अपन संगवारी संग दिलीप हा। 

                  अब केशकाल के बारा भांवर ला किंजर डारिस अउ पहाड़ के कोरा मा बइठे कांकेर के भव्य बस स्टेशन ले सवारी उतार-जोर के चारामा के रद्दा मा दउड़े लागिस बस हा। सियान झपकी लेये के उदिम करिस फेर दिलीप के गोठ....? इंटरव्यू तक अमरे के रामकहानी ....? आगू-पाछू के सीट के सवारी घला बरजिस फेर दिलीप तो अपन मा मगन हाबे। जोर-जोर से गोठियावत हाबे। अब्बड़ बेरा ले टोंका-टांकी करे के मन करिस सियान के फेर .....भई गे, राहन दे।  खिड़की के ओ पार देखिस। 

           चार तेंदू देखत चारामा अमरगे। डोंगरी पहाड़ ला नाहकत भव्य मुरिया द्वार ला खुंदिस। जगतरा में अर्जुन के सारथी बने किशन भगवान अउ माँ जगतारिणी देवी ले आसीस लेवत ओना-कोना के भोलेनाथ के गोड़ मा माथ नवावत आगू बाढ़गे। अंगारमोती के कोरा मा गरजत गंगरेल, अउ गदबदावत हरियावत रुख-राई खेत-खार ला नजर भर देखत बिलईमाता के अँगना धरम के नगरी धमतरी अमरगे बस हा अब। 

            बस स्टैंड के वाश रूम गिस तब चपर-चपर कचर-कचर अतरिस दिलीप के। धमतरी के उरीद बरा पोहा अउ जलेबी खाइस। मन अघा गे। सिरतोन अब्बड़ सोर हाबे। अपन सीट मा बइठके अब नींद भांजे लागिस दिलीप हा। 

कुरूद के चंडी मंदिर अउ छत्तीसगढ़ महतारी के  दर्शन करत अब राजधानी कोती आगू बाढ़त हाबे बस हा। 

ट्रिन-ट्रिन सियान के मोबाइल के घन्टी बाजिस।

"हलो ! बेटी ! मेहां रायपुर अमर जाहु आधा पौन घंटा मा। पचपेड़ी नाका मेर आबे लेगे बर ।....अउ बेटी जेवन बना देबे ओ ! अब्बड़ भूख लागत हाबे बेटी !''

"हव पापा !''

ओती ले आरो आइस अउ फोन कटगे टू... टू....। 

     दिलीप के नींद उमछगे। भन्नाये लागिस। 

"डोकरा  नही तो...! अब्बड़ जोर-जोर से गोठियाथस।  इंटरव्यू के तियारी करे बर रात भर जागे हँव। थोकिन सुतत रेहेंव तौनो ला जगा देस तेहां। कोनो सऊर नइ हाबे गोठियाये-बतराये के।''

"सोरी बाबू !''

अब्बड़ रट-फट कहि देव अइसे लागिस फेर सियान जुड़ सांस लेवत किहिस। 

"धन्यवाद मातारानी ! भलुक मोर जम्मो जिनिस ला चोरहा मन चोरा डारिस फेर तोर कृपा ले सुरक्षित आवत- जावत हँव।''

रायपुर के मोहाटी मा शदाणी दरबार मा माथ नवाके फुसफुसाइस सियान हा।

कलर्स मॉल ला नाहकत सब्जी मंडी ला नाहकत पचपेड़ी नाका अमरगे बस हा। एकात दू झन ला छोड़ के जम्मो कोई उतरगे बस ले। बस अंतरराज्यीय बस अड्डा भाठागांव कोती रेंग दिस। दिलीप ऑटो देखत हावय टिकरापारा अपन संगवारी घर जाये बर। 

अउ सियान ....?

सियान के बेटी आगू ले अमरगे रिहिन पचपेड़ी नाका । अपन पापा ला हाथ हला के आरो करिस। सियान अपन बेटी के चमचमावत महंगा वाला फोरव्हीलर मा बइठगे अब। 

बेटी टुपटुप पाँव परिस पापा के अउ पूछिस।

"कइसे पापा  ! का होगे ? सबरदिन उज्जर पहिरइया मोर पापा हा कइसे मइलाहा ओन्हा पहिरे हावय।''

"कुछु नही बेटी ! जगलदपुर मा मोर बैग चोरी होगे। पर्स घला उही मा रिहिस। जम्मो ला चोरा लिस। पेंट के जेब मा बस के पुरती पइसा धरे रेहेंव तब रायपुर अमरत हँव।''

ओकरे सेती कहिथव पापा पर्स मा भलुक पइसा ला धर फेर ऑनलाइन नेट बैंकिंग करे ला सीख।''

"हँव बेटी भलुक तीन महीना  रिटायरमेंट बांचे हाबे तभो ले ऑनलाइन नेट बैंकिंग जम्मो ला सीखहु।।''

"जगदलपुर मा अब आने शहर के चोर गिरोह मन लूट खसोट करत हाबे ओ। मोर सुघ्घर अउ शांत रहवइया जगदलपुर के नाव ला मइलाहा करत हाबे।''

सियान अउ बेटी दुनो कोई गोठ-बात करत अपन घर ऑफिसर्स कॉलोनी कोती चल दिस।

भलुक सांझ होगे रिहिस  फेर चुचवावत पसीना ला पोछत ऑटो मा बइठिस अउ टिकरापारा चल दिस दिलीप हा घला।

                     आज डीही-डोंगर देवी-देवता जम्मो ला सुमरके सीजी पीएससी के इंटरव्यू देवाये बर गिस दिलीप हा। कतको झन मुचकावत इंटरव्यू देवाके निकलत हावय तब कतको झन थोथना ओरमा के। कतको झन के धुकधुकी बाढ़गे हावय। कतको झन पानी पी-पी के अगोरा करत हावय अपन बेरा के। दिलीप तो चार बेरा बाथरूम कोती चल दिस। 

"रोल नम्बर छे सौ चालीस मिस्टर दिलीप कुमार ...।''

प्यून के आरो ला सुनिस अउ अपन फ़ाइल ला धरके इंटरव्यू कुरिया के आगू मा ठाड़े होगे।

"मे आई कम इन सर !''

"यस कम इन ।''

पांच झन इंटरव्यू लेवइया के पैनल रिहिस। तीन झन सर अउ दू झन मैडम। बइठे के इशारा पाके खुर्सी मा बइठिस दिलीप हा पैनालिस्ट के। बड़का खुर्सी वाला ला देखिस ते ठाड़ सुखागे दिलीप हा। गिलास भर पानी ला पी डारिस। 

"एक्सीलेंट मिस्टर दिलीप कुमार जी ! आपका अकैडमिक रिकॉर्ड तो बेहतरीन है। यु हैव पास्ड डिस्टिंक्शन इन एवेरी सब्जेक्ट। आप एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज मे क्यों आना चाहते हो । व्हाट इस योर ड्रीम विजन एंड गोल ?''

इंटरव्यू लेवइया  किहिस। 

दिलीप सुकुरदुम होगे। सवाल पुछइया कोनो नही भलुक बस मा सफर करइया सियान आवय। रुमाल निकाल के पसीना पोछे लागिस। बोक-बाय बइठे देख के आने पैनालिस्ट मेडम पूछिस अब ।

"गरीब शोषित पिछड़े और आम जन मानस के प्रति आपका नजरिया क्या होगा यदि आप सिविल सर्विसेज में आते है तब ?''

"उन सब के सेवा के लिए मैं चौबीस घण्टा हाजिर रहूँगा सर !''

बड़का पैनालिस्ट सियान मुचकावत रिहिस अउ वोकर करू मुचकासी ला देख के दिलीप मुक्का होगे। 

"बेटा ! इंटरव्यू मा आचार-विचार व्यवहार ला परखे जाथे। भलुक तेहां रिटर्न्स एग्जाम मा सुघ्घर परफॉर्मेंस करबे फेर इंटरव्यू लेवइया पारखी नजर हा बोडीलेग्वेज देख के परख डारथे। फील्ड मा रट्टू तोता वाला अधिकारी फेल हो जाथे अउ  संवेदनशील समझदारी ईमानदारी के भाव रखइया अधिकारी अपन बुता ला सुघ्घर करथे। अब तेहां देख ले कतका पानी मा हावस ते.........?''

सियान पैनालिस्ट किहिस। दिलीप के करेजा मा शब्द बाण परगे । झिमझिमासी लागिस थोथना ओरमगे। अर्थशास्त्र इतिहास साहित्य संस्कृति लोकप्रशासन के सवाल पूछिस आने पैनालिस्ट मन फेर दिलीप सुघ्घर उत्तर नइ दे सकिस।

           मुँहू ओथारके कुरिया ले निकलिस दिलीप हा। गोड़-हाथ मा पीरा भरगे। दंदरासी लागत हाबे शब्द के बाण लगे ले। अंतस के पीरा ले निकले नुनछुर पानी के गरम दू बूंद अब टपकिस आँखी ले। सिरतोन इंटरव्यू के मतलब ला जान डारिस अब। अपन बेवहार ला सुघ्घर करे के संकल्प लेवत जगदलपुर वाला बस मा बइठके घर लहुटत हावय अब दिलीप हा। 

------//-------//--------//------


चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

भाव पल्लवन-- कलजुग के लइका करै कछैरी, बुढ़वा जोतै नागर ---------------------------



भाव पल्लवन--



कलजुग के लइका करै कछैरी, बुढ़वा जोतै नागर 

---------------------------

आज के समे मा अइसे भावना बनगे हे के नौकरी-चाकरी हा सबले उत्तम काम आय।तेकरे सेती सब झन पढ़-लिखके सरकारीच नौकरी पाये बर हाथ धोके पिछू परे रहिथें। इँकर सोच तो अइसे बनगे हे के सरकारी नौकरी मा बँधे-बँधाये तनखा हे---उपर ले खुरचन पानी हे।पइसा हे तहाँ ले जिनगी के सब सुख सुविधा हे--मान,सम्मान ,शान हे। समाज मा अइसनेच दिखथे घलो। एही कारण ले खेती किसानी कोती तो नवयुवक मन के चिटको ध्यानेच नइये।खेत हा परिया झन पर जय सोच के ,जाँगर थके मजबूर बुढ़वा-सियान  मन नागर जोतत दिखथें। सियनहिन दाई मन खेत मा बूड़े दिखथें। एही मन धरती दाई के सेवा करके अन्न उपजाके घर-परिवार संग दुनिया के भूँख ला मिटावत हें।

    नौकरी ला पाये बर युवक मन का का नइ करत राहैं ? सरकारी नौकरी नइ मिलय त प्राइवेट कोती भागथें।उहू नइ मिलय ता अवसाद मा बूड़े गली-गली गिंजरत रहि जथें फेर खेत-खार ला हिरक के नइ निंहारैं।कुछु रोजगार,धंधा-पानी करे बर मूँड़ नइ उठावैं।अइसे भी माटी मा माटी मिलके, घाम,पानी,शीत ला सहिके कठिन शारीरिक मिहनत वाला कृषि कार्य इँकर बस के नइ राहै काबर के इन तो पढ़त हावन --पढ़त हावन कहिकें मिहनत के काम करेच नइ राहैं ता इँकर अलाली मा जकड़े शरीर हा कमजोर होजय रहिथे।ये मन बइठाँगुर बुता,छँइहा मा बइठे दिमागी काम बस करना चाहथें।

 भला विचार करे जाय के का सब झन ला  नौकरी मिल जही? बिल्कुल नइ मिलय केवल बेरोजगारी हा बाढ़त जाही। तहाँ ले  नाना प्रकार के पारिवारिक अउ सामाजिक समस्या पैदा होवत जाही।आज एही देखे ला मिलत हे।अधिकांश मनखे तनाव मा दिखथें। आत्महत्या अउ घरेलू हिंसा के बाढ़ आगे हे। लूटपाट,चोरी-डकैती अउ दंगा-फसाद रोज-रोज सुने-देखे ला मिलथे।

    एक-ठन अउ विकराल समस्या पैदा होवत जावत हे के युवक-युवती मन के परिवार बस नइ पावत हे। बिन नौकरी वाले सो कोनो बिहाव नइ करना चाहत यें।

   जिनगी ला सुखी बनाये बर युवक मन ला अपन सोच ला बदले बर लागही।पढ़ई-लिखई के संगे-संग खेती किसानी  अउ अन्य मिहनत के काम ला तको सिखना चाही। नौकरी मिलगे ता अच्छा नइ मिलिच तभो अच्छा काबर के खेती के उत्तम कारज के ,सेवा के कारज के कभू कमी नइ राहै।खेती किसानी अउ बैपार हा गुलामी वाले नौकरी ले हिनहर नोहय।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़