Saturday 23 January 2021

सोशल मीडिया अउ साहित्य रचना / लेखन -सरला शर्मा

 सोशल मीडिया अउ साहित्य रचना / लेखन -सरला शर्मा

     विषय पढ़ के गुनान मूड़ उपर चढ़ के ताक धिना धिन बजाए लागिस .... ये लोकाक्षर मं लिखाई हर वार्षिक परीक्षा मं गणित के सवाल बनाए ले कम थोरको नोहय ....तेमा मोर असन गणित शत्रु बर तो हिमालय चढ़ाई आय । 

     सोशल मीडिया के कई ठन रूप हे तेमन मं ज्यादा करके व्हाट्स एप अउ फेसबुक के चलन ल बहुत झन अपनाए हें । इंस्टाग्राम , ब्लॉग , यू ट्यूब , लिंकेडन घलाय मं कोनो कोनो मन लिखथें । मूल बात ये आय के मनसे अपन मन के भाव ल लिखथे ...फेर मेरन चर्चा के विषय हे साहित्य लेखन जेमा गद्य अउ पद्य दुनों समाये हे ...। 

   बहुत खुशी के बात एहर आय के लेखक ल कोनो पत्र पत्रिका , किताब , विशेषांक के अगोरा करे बर नइ परय । सम्पादक के कैंची रचना के काट छांट नइ करय , बढ़िया बात ...। 

गुने बर पर गिस के बिना सुधार के , बिना समीक्षा के लेखक के गलती पकड़ मं कइसे आही ? 

भाव , भाषा , अभिव्यक्ति , लेखन शैली मंजाही कइसे ? 

सोशल मीडिया  मं गद्य , पद्य के सुनामी आ गए हे ...बने बात भाई ..मैं तो उबुक चुबुक होवत रहिथवं । मोर दसा ल बतावत रहेंव त एक  झन बुधियार साहित्यकार बड़ नीक सुझाव दिहिस ..".मैडम ! सब ल पढ़त काबर रहिथस , डिलीट कर देहे कर न मैं तो रोज डिलीट कर देथवं ।" आज सोचत  हंव बिन पढ़े डिलीट कर देहंव त आनी बानी के सुग्घर भाव भरे कविता , गीत के आंनद कइसे पाहौं ,समसामयिक प्रसंग के लेख , लघु कथा , दर्शन , धर्म के गम्भीर चर्चा वाला लेख कब , कइसे , कहां ले पढ़ पाहौं ? प्रिंट मीडिया चिटिक पिछुवाए धर लेहे हे ...दूसर कारण एहू हर तो आय के कतका कन पत्र , पत्रिका , किताब बिसाहौं ? 

   मानत हवं के सोशल मीडिया के साहित्य तुरते नहीं त एक दू दिन मं बिला जाथे ..त ओकरो तो उपाय हे के मनपसन्द , ज्ञानवर्धक साहित्य मिलय त ओला सुरु खुरु एक जघा संजो लेवन । 

जरुर अतकिहा रचना मन ल डिलीट करना भी जरुरी हे ..मोबाइल के पेट पिराये धर लेथे , नहीं त बिचारा मुंह फुलो लेथे उही जेला मोबाइल हैंग होना कहिथन । 

     थोरकुन दूसर डहर के बात गुनिन ...। सोशल मीडिया मं साहित्य लेखन करत खानी हड़बड़ी झन करिन ...अपने लिखे ल सम्पादक , समीक्षक के नज़र से दू तीन बेर पढ़ लिन । 

एकरो ले जरूरी बात के कुछ टिप्पणी ल अनदेखा करिन जइसे , अब्बड़ सुग्घर , वाह वाह , बढ़िया हे . अइसने.अउ हें ,ध्यान देवन के ये शब्द मन रचना के प्रशंसा नोहयं ...औपचारिकता निभाना आंय । सिरतोन के टिप्पणी ओहर आय जेन हर लेखन के करु -  कस्सा , गुरतुर-  नुनछुर , हित -अहित , भाव -भाषा  के विश्लेषण करथे । 

   अब रहिस बात के सोशल मीडिया के रचना मन से साहित्य के भंडार भरत हे के नहीं ? एकर जवाब एके ठन हे । साहित्य ल तो समाज के दर्पण कहे जाथे ...सोला आना सच बात आय इही देखव न किसान आंदोलन , सामाजिक विसंगति के संग साहित्यकार मन के सुरता के ओढ़र मं उन मन के व्यक्तित्व , कृतित्व के जानकारी , नवा जुन्ना साहित्यकार मन के रचना पढ़े बर मिलत हे , त सबो लिखइया मन नवा नवा विधा मं लिखना भी तो सुरू कर देहे हें । सोशल मीडिया मं साहित्य चर्चा के एहर बहुत बड़े फायदा आय । 

   छत्तीसगढ़ लोकाक्षर के इही पटल मं तो गद्य के सबो विधा मं लेखन होवत हे , नवा नवा कविता संग छंद बद्ध रचना घलाय पढ़े बर मिलत हे । मोर विचार मं सोशल मीडिया मं साहित्य लेखन हर साहित्य के भंडार भरत हे फेर थोर बहुत ऊंच -नीच , घटा -बढ़ी , उत्तम - 

मध्यम तो सबो काम मं होबे करथे एकर सेती लिखना छोड़े मं कइसे बनही ? अरे भाई चिल्हर के डर मं कथरी छोड़े मं थोरे बनही ?  

  तभे तो कहिथन लिखत चलव ..। 

कलम तोर जय होवय । 

   सरला शर्मा

सोशल मिडिया अउ साहित्य लेखन*- चोवाराम वर्मा बादल

 *सोशल मिडिया अउ साहित्य लेखन*- चोवाराम वर्मा बादल


हे घर-घर वासी , जन-जन के ह्दय-हार --सर्व व्यापी सोशल मिडिया जी तोर जय हो। हे आधुनिक युग के प्राणाधार तोर महिमा अपरम्पार हे।  आजकल तोर बिना-- लइका-छउवा, जवान-सियान,  गुरुजी, मजदूर, गृहणी,व्यापारी, संत्री-मंत्री ,साधु-सन्यासी ,चेला-चपाटी,कवि ,लेखक,साहित्यकार आदि ककरो काम नइ चलय। सब तोर कृपा प्रसाद ले यश के रथ म सवार होके नाना प्रकार के महाभारत ल जीत के विजय शंख फूँकना चाहथें। सब के सब तोर चौखट म नाक रगड़त रहिथें ---काबर कि जेती दम तेती हम वाला जमाना हे।

 लिखई- पढ़ई के बात करन त तोर आगू म जतका मिडिया हे सब फीका परगे हाबयँ।तोर दिव्य रूप मोबाइल जेकर ले फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्वीटर--के हाहाकारी छटा बगरत रहिथे  --चारों मूड़ा जगमग जगमग करत रथे। कोनो भी अपन लिखे दू -चार लाइन ल सजा के तोर आगू म मढ़ा देथे ---वोला कहूँ साहित्य के नाम दे दिस त अउ का कहना--- वोमा तोर अंधभक्त मन के नजर परथे त वो ह हीरा असन चमके ल धर लेथे । ये अलग बात हे कि वो भले घिसाये काँच होथे।

   अइसे बात नइये कि  हीरा मन तोर आगू म नइ रखे जावत होही। भेंड़िया धसान तो सुनेच होबे-- यश रूपी आशिर्वाद ल तोर माध्यम ले पाये बर असली साहित्यकार मन तको अपन खाँटी हीरा सहीं रचना मन ल रखत हें।रखना सहीं हे-- काबर कि कहे गे हे-- जैसी बही बयार ,पीठ  तैसी दीजिए। जेती गुड़-शक्कर तेती चाँटी-चाँटा तो रहिबे करथे। सियान मन कहे हे कि  मनखे ल समय के साथ चलना चाही। समय ह अभी तोर मूठा म हे त जम्मों तथाकथित कवि, लेखक ,साहित्य कार मन तोरे साथ रेंगत हें ।जेन मन नइ रेंगत हें तेन मन सिरतो म पिछवा जहीं। अब तो मँहगी मँहगी किताब ल लेके कोनो पढ़इया नइयें अउ दू-चार होहीं भी त मन वाँछित पुस्तक खोजे नइ मिलय । अउ तोर मेर आवत देरी हे नाम मात्र के दान दक्षिणा म जेला डाटा खरचा करना कहे जाथे ---कहे जाय त फोकट म तको महान से महान साहित्यकार मन के उही दिन लिखे रचना ले लेके हजारों- हजार साल पुराना कालजयी कृति मन ल तको पढ़े जा सकथे।

  लिखई के बात करे जाय त तोर अँगना म बइठ के सब उत्ता धुर्रा लिखत हें। जेन ल पूछबे तेन साहित्य गढ़त हन कहिथें। बहुते खुश खबरी अउ गौरव के बात हे। अच्छा हे --एक घड़ी आधो घड़ी---या कोनो चोबीसों घंटा साहित्य लेखन कर--करके तोर कोठी ल भरत हें।

 हे सोशल मिडिया जी फेर एक बात तोला बताना जरूरी हे कि एमा के एके दू आना मन निंद्धा साहित्य होही बाँकी मन चोरी हारी कर के ,जोड़-तोड़ के बनाये असाहित्य आयँ जेन मन म साहित्य के पेंट चढ़े रहिथे। तैं ह थोकुन सावधान रइबे नहीं ते इँकर वजन म तुँहर कोठी भोसक जही।

   तोर सो एक बिनती हे ,चिटिक धियान दे देहू-- कई झन साहित्य के नाम लेके संकीर्ण मानसिकता ले या अफवाह फैलाय बर या कोनो राजनैतिक वाद के पक्ष लेके या ककरो चाटुकारिता म कुछु भी लिख देथें तेला रोंके करव भई।

   हे सोशल मिडिया जी मैं ह लोभ मोह म फँसे घोर संसारिक मनखे आँव। कभू दू -चार लाइन लिख परहूँ त ओला सरी जगत म फइलाय के कृपा कर देहू। तोर बारम्बार जय हो।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

सोशल मीडिया अउ साहित्य लेखन* महेंद्र बघेल

 *सोशल मीडिया अउ साहित्य लेखन* महेंद्र बघेल


बड़का होय छोटका होय, कलमकार होय चाहे कोनो कलाकार होय सबो मन बर अभिव्यक्ति के आजादी तो बरोबर हवय।लिखइया बर लिखइ हर महत्वपूर्ण हे , पढ़इया बर पढ़ई हर महत्वपूर्ण हे।लिखइया हा कोनो बात ला काबर अउ काकर बर लिखना चाहत हे येला सोचे के जरवत हे।

प्रतिष्ठित बुधियार साहित्यकार मन ला तो नइ कह सकन फेर नवा रचनाकार मन बर ये सोशल मीडिया बहुत बढ़िया प्लेटफार्म आय।

अपन मन के बात ला लिख के कहना अउ ओला बहुत दूर तक प्रसारित करना छोटे मोटे काम नोहे।

प्रजातांत्रिक देश मा सबला अपन बात कहे के अधिकार हे।पहली प्रिंट मीडिया के शिखर काल मा घलव बड़ भारी संख्या मा गद्य पद्य ला लिखे जात रहिस वइसने आजो लिखे जात हे । भला येमा का बात के हाय तौबा, जेकर विषय आधारित प्रस्तुतिकरण मा वजन रही उही हर लेखन क्षेत्र के कठिन परीक्षा मा छनके निकल पाही अउ आगे अपन आप ला स्थापित कर पाही। नइते साहित्यकार अउ समीक्षक मन तो बाद मा पहिली तो एक आम पाठक ओला खुदे अस्वीकार कर देही।

मोर हिसाब ले कोन हा का लिखत हे तेमा कपोल-कल्पित  डाक्युमेंट्री फिलिम बनाय के जरवत बिल्कुल नइहे।

लिखइया ला खुदे मालूम हे सही अउ गलत लिखे मा का लाभ अउ का हानि हावय।

देश काल अउ परिस्थिति के अनुसार  मान्यता अउ आवश्यकता मा परिवर्तन होना सहज बात आय। इही विषय ला लेके यदि कोनो आलेख लिखे हे त ओला मान्यता अउ आस्था के हवाला देके उनला एक सिरा से खारिज कर देना निहायत ही सतही सोच के परिचायक कहे जाही।

जबकि अइसन आलेख मा विज्ञान सम्मत समीक्षा के दरकार रहिथे। जेकर ले हमर मान्यता हर विज्ञान सम्मत तार्किक  पैमाना मा खरा उतर के अउ पोठ होय।

आज सोशल मीडिया हर वर्तमान के जरुरत आय। आज जेकर हाथ मा  मोबाइल अउ नेट हे वोहा दुनिया मा दिन प्रतिदिन घटइया जानकारी ले दूर नइहे।साथ ही ये हर कोनों घटना के संदर्भ में अपन मौलिक विचार ला लिखके साझा करे के उचित अउ सर्वोत्तम जघा आय।

कोन हा कोन वाद के पोषक हरे कोन हा कते वाद के प्रखर सॅंवाहक हरे ये विषय हर इतना महत्वपूर्ण नइहे जतना एक वो आम आदमी जेला कभू प्रिंट मीडिया हर अपन डस्टबिन के वस्तु समझत रहिन आज उही आम आदमी अपन सरल सहज अउ सुगम ढंग ले ये प्लेटफार्म मा अपन बात रखत हे ये सबले महत्वपूर्ण बात आय।

समाज मा अलग-अलग जाति धर्म के मनखे मनके रहन-सहन,खान-पान, आचार-विचार , पहनावा- ओढ़ावा, गोठ-बात , बोली-भाखा ,नेंग-जोख सब अलग अलग हवय। ठीक वइसने उकर मन के विचार धारा मा भी विविधता हवय। इही वैचारिक विविधता के दर्शन हम सब ला सोशल मीडिया मा देखे बर मिलथे जेकर ले एक आम पाठक के पढ़ाई के आनंद हर कई गुना बाढ़ जथे।

आज सोशल मीडिया के माध्यम से साहित्य के क्षेत्र मा बहुत बढ़िया काम होवत हे, निबंध, कहानी, नाटक, एकांकी, लघुकथा, डायरी, रिपोर्ताज जइसे विधा मा गुणवत्ता पूर्ण लेखन कार्य हर बड़ तेजी के साथ होवत जात हे। जेकर ले साहित्य हर समृद्ध होवत हे चाहे भाषा कोई भी होय।

स्वतंत्र भारत के इतिहास मा

ये हर युग परिवर्तन के बेला आय जिहां साहित्यिक पुरस्कार विजेता मन ला अउ  चटनी बासी ला विषयवस्तु बनाके पद रचइया कलमकार मन समान भाव से पढ़े जात हे।


जन सरोकार के समस्या ला 

अपन विषय वस्तु बनाके जेन रचनाकार मन अपन दायित्व निभावत हे आज उही साहित्यकार मन के ही सोशल मीडिया मा पूछ परख हे। सोशल मीडिया मा साहित्य के क्षेत्र मा जो काम होवत हे निसंदेह ओकर सकारात्मक दूरगामी परिणाम देखें बर मिलही।


महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव जिला राजनांदगांव

*सोसल मिडिया और साहित्य लेखन* अश्वनी कोशरे

 *सोसल मिडिया और साहित्य लेखन* 

अश्वनी कोशरे


सोसल मिडिया नाम ले अइसे लागथे कि सिरतोन म ए मिडिया हर मानव समाज के उद्धार बर ही बने होही| फेर एखर जादा उपयोग राजनीतिक मंच के रुप म करे जावत हे|  ए तो बहुत बड़का मंच हरे ! फेर एखर सही मं उपयोग अभी नइ हो पावत हे| साहित्य के असली मरम ल तो अभी समाज तक पहुँचे मं विलंब हे| फेर थोर - थोर शुरुआत होवत हे|अभी सोसल मिडिया के सही उपयोग  साहित्य जगत के सबो मनखे मन भी नइ कर पावत हें|

         कुछ दिन पहली सोसल मिडिया फेसबुक मं कविता भेजई चलत रहिस और अपन संगवारी के नाम लिख के ओमन ला भी रचना डारे बर कहत रहेन|हरेक दिन एक ले बढ़ के एक रचना पढ़े बर मिलत रहिस| गुमनाम कवि लेखक मनके कई - कई स्तरीय रचना सामने आइस, देखे - पढ़े बर मिलत हे| छोटे से गाँव - कस्बा के मनखे मन ल भी विचार अभिव्यक्त के मौका मिलिस| मिलत हे ,और मिलत रइही| ये ओमन बर बड़ उमंग और खुशी के बात हरे जेमन एकर माध्यम ले पहिचान बनाइन | अइसन हे कई- कई समूह मं कई बड़े उदिम करे जावत हे| जऊन हर सोसल मिडिया म साहित्यिक क्रांती आए |एखर परिणाम अच्छा होवत हे| हालांकि सोसल मिडिया कखरो नियंत्रण म नइ हे| तभे तो सोसल मीडिया हे| 

    सोसल मिडिया के साहित्य जगत बर संकुचित अर्थ ल लेबो त केवल छोटे- मोटे नवकुशहा लेखक ,कवि मन के हास्य, व्यंग्य ,चुटकुला, मुक्तक ,प्रेम के गीत,फुहड़पन वाले शेरों शायरी तक सिमित हो जही | बहस करत गलत तर्क , चेटिंग और राजनीतिक मसाला हर साहित्य के अंग नोहय| हाँ राजनीति कैसे , काबर और काखर बर ?लिखइया मन के भी कमी नइ हे|तव समसामयिक विषय ल चिंगारी देवइया मन के तको कमी नइ हे| फेर शिष्ट साहित्य और साहित्य के तत्व ल खोजिहव त सोसल मिडिया के नजरिया से देखे ल परही| केवल सोसल मिडिया मं साहित्यकार या लेखक ल कोसना कहाँ तक सही हे| ये पता नइ हे|

   लेकिन व्यापक सरुप में देखे जावय तव सोसल मिडिया साहित्यकार और ओखर प्रतिभा ल निखारे खातिर एक बड़का रणभूमि हरे | जिहाँ स्वस्थ प्रतियोगिता के संभावना जादा नजर आवत हे| बड़े - बड़े नामचिन साहित्यकार मन के विचार आलेख और प्रसिद्ध रचना, कृति मन तक आसानी ले पहुँच बन जाथे|नवा पीढ़ी ल जाने, सीखे, समझे के मौका बनत हे|

सोसल मिडिया के माध्यम ले ही हमन मुंशी जी के जमाना के साहित्य ल पढ़, जान सकत हवन| एक दिन" गोदान" पढ़े के मन होइस| एक झन विदुषी दीदी ल निवेदन करेंव |

     तव वो दीदी जी ह "गोदान" , "गबन" , "सेवासदन" ,"रंगभूमि", "कर्मभूमि"  जइसे कृति मनके सात ठन पी डी एफ भेज दिहिन| अब बताव कतेक अकन सुविधा सोसल मिडिया मं उपलब्ध हे| कई - कई सोसल मंच म साहित्य के बहुत से विधा के ज्ञान भी कराय जावत हे| सोसल मिडिया के फेसबुक और वाटसप के अलावा बहुत अकन साइट हे जिहाँ नवा पीढ़ी ल तैयार भी करे जावत हे| 

अपन- अपन सुविधानुसार गुनी मानी साहित्यकार मन के द्वारा छंद ,गज़ल ,सजल ,मुक्तक, नवा कविता, कहिनी, यात्रा वृतांत , जीवनीलेखन,  निबंध, रिपोट, नाट्य लेखन सिखोय जावत हें| ठीक हे हमन कहत हवन के एखर कोई प्रमाणित आधार नई हे फेर जुन्ना समे के साहित्य मन ल तको ई - लाइब्रेरी के माध्यम ले सोसल मिडिया म काबर  बगराये गे होही? महापुरुष मन के जीवनी, विचार और धार्मिक - पौराणिक, आध्यात्मिक दर्शन और वेद के ज्ञान आज सोसल मिडिया में छाये हे| सोसल मिडिया अउ साहित्य लेखन के व्याख्या करना बस के बात नइ हे| आज के वैज्ञानिक युग मं  ए केवल एक समाज से नइ जुड़के समूल विश्व मं फइले साहित्यिक मंच हरे|

              सोसल मिडिया अपन समे के सबले सफल मंच हरे इहाँ लिखे गए साहित्य के भरमार जरुर हे | फेर जादा भ्रमित न होके अपन काम के विषय ढूँढ़े जा सकत हे | ए सोसल मिडिया हर तरह के साहित्यकार मन बर वरदान ल कम नइ हे|  जउन समय कागद ,कपड़ा नइ रहिस वो समय मौखिक, वाचिक साहित्य रहिस |और कम मनखे मन तक सिमित रहिस| अभी तो कमसे कम आम मनखे तक विचार, आलेख पहुँचत हवय | जउन मनखे सही दिशा म बने लेखन करही तव माध्यम कहूँ अउ कउनो होवय ओकर विचार हर समाज के विकास बर मनखे ल सही दिशा अउ संदेश देवत रइही|


अश्वनी कोसरे

कवर्धा कबीरधाम

सोशल मीडिया अउ साहित्य लेखन -सरला शर्मा

 सोशल मीडिया अउ साहित्य लेखन 

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    होत बिहान ले सोशल मीडिया के दुआर मं पहुंच गयेंव ...काबर के न तो कोनो मकर  संक्रांति के दान मंगईया दिखिन , न बाम्हन देवता के दरसन मिलिस । तिल गुड़ मिला के चीला बनाएवं ..दुआर मं ठाढ़े रहि गयेंव ..न तो गाय दिखिस न कुकुर ...। मरन होगे भाई ...नहा डारे हंव त कुछु खाये के मन लागत हे फेर सियान मन कहयं ...तिल गुड़ के संग सामरथ अनुसार दान देहे बिना मुंह मं कुछु डारना नई चाही ..। 

   गुनेवं ...सोशल मीडिया मं तो आनी बानी के तिल लाड़ू , गुझिया , खिचड़ी सजे थारी के फोटो दिखत हे , उही ल महूं एती ओती भेज देववं न ...आधुनिक दान इही ल कहत होहीं तभे तो लोगन धरा रपटी भेजत हें ...अउ मकर संक्रांति के बधाई घलाय तो लिखे लिखाए मिल जावत हे ...फेर का ..मन भर के भेज देहेवं । फेर गुनत हंव ...सोशल मीडिया मं कोनो मकर संक्रांति के महत्ता , कथा , वैज्ञानिक कारण , उत्तरायण सूर्य , बिहू , भोगी पोंगल , खिचड़ी उपर लिखत काबर नइये ..। जब लिखहीं तभे तो सोशल  मीडिया मं प्रासंगिक साहित्य लेखन होही ...मन मुताबिक गद्य , पद्य , कविता , कहानी लिखे जाही तभे तो हम पढ़बो , नवा जुन्ना जानकारी पाबो , हमू ल कलम धरे के मौका , प्रेरणा मिलही । 

    वर्तमान सन्दर्भ मं लिखना हर साहित्यकार बर जरूरी होथे ,आज तो ये सुविधा हे के रोज के रोज लिखव तुरते सोशल मीडिया मं आ जाही । फेर सामयिक प्रसंग उपर लिखे के समय , पहिली , आज अउ अवइया दिन के तारतम्य ल बनाये राखे बर परही । कोनो के लिखे ल काट छांट के झन लिखव , खुद के विचार , भाव ल शब्द देहे ले सोशल मीडिया के लेखन हर भी सुग्घर साहित्यिक रचना बन सकत हे । एक फायदा एहू हे के लिखइया के अपन पहिचान बनही । आज के साहित्यकार मन बर सोशल मीडिया हर बरदान आय जेकर बने उपयोग करना सीखना होही , नहीं त भस्मासुर तो आय ...। 

 चिटिकन ध्यान ल आने डहर ले जावत हंव ...उही सोशल मीडिया के लाभ लेवत हंव ....

आज पंडित शेषनाथ शर्मा 'शील ' के जयंती आय ...14 जनवरी मकर संक्रांति ...

पंचांग के मुताबिक पूस दूसर पाख दुआस दिन इतवार ...जनम स्थान जांजगीर ..

  उनला आखऱ के अरघ देवत हंव ....🙏🏼

सोशल मीडिया अउ साहित्य लेखन-पोखनलाल जायसवाल

 *सोशल मीडिया अउ साहित्य लेखन-पोखनलाल जायसवाल


       अभी के समे ह सोशल मीडिया के समे ए। जे मनखे सोशल मीडिया ले दूरिहा रही, वो आगू चलके के माथा पीटही। चलनी म दूध दुहै, अउ भाग ल दोष देवै। समे के संग नइ चले ले मनखे सबर दिन बर पछुवायच रही। प्रचार-प्रसार बर सोशल मीडिया ले जादा सस्ता अउ पोठ साधन अउ नइ हे। ए प्रचार-प्रसार चाहे चुनावी होय, चाहे दूकानदारी होय। सरकारी होय, चाहे प्राइवेट। सबो सोशल मीडिया के मुँह ताकत रहिथे। मुँह ताकही काबर नहीं, जब मनखे नींद टूटतेच बेरा दसनाच म मोबाइल झाँकथे।आजकाल प्रचार-प्रसार बर जेन विज्ञापन होथे, वो म साहित्य के झलक देखे जा सकथे। 

      अभी के समे म सोशल मीडिया ले बाहिर रही पाना मुश्किल होगे हे। अभियो मनखे तिर किताब खोल के बइठे के बेरा नइ हे। ......किताब पढ़ना नइ चाहत हे। 

      एक समय रहिस जब सरी दुनिया ह रेडियो अउ टीवी म मोकाय रहिस। कोनो भी होनी-अनहोनी के जानबा अउ मनोरंजन एकरे ले होवय। रेडियो दूरदराज के गँवई-गाँव म घरोघर सुने जाय। टेलीविजन बिजली के अंजोर के संग सँघरा घर-कुरिया म खुसर के पाँव जमा डरिस। फेर समाचार पेपर, टीवी अउ रेडियो के पहिलीच जम्मो जानबा छिन भर म जंगल के आगी कस चारों मुड़ा बगर जथे। ए बगराय के बूता ल करथे सोशल मीडिया। कभू-कभू इही ह आगी म घींव डारे कस बूता घलो कर डारथे। काबर के एकाध खबर अइसे रहिथे, जेकर मुड़ी-पूछी के पता ए नइ रहै। कउआ कान लेगे कहिके ओकर पाछू दउड़ परथे। सोशल मीडिया ले समाज ल सावचेत रहे के जरुरत हवै। सोशल मीडिया आज एक ठन नशा होगे हे। जे ह थोरको चूके ले नवा पीढ़ी ल भटकावत ले पीछू छोड़बे नि करय। बाहिर निकल के गली चउँक म चार झिन मनखे ल देख लव, तिर म बइठ के चारों झन मोबाइल म गर डार कोचकते मिलही। 

*सोशल मीडिया के साहित्यिक अवदान* 

        सोशल मीडिया ह पुरखा साहित्यकार मन के रचना ल जन-जन तक पहुँचा दे हे। जब चाहे तब उन मन ल इहें पढ़े जा सकत हे। समकालीन साहित्य के दिशा अउ दशा ल घलव रोजेच देखे-सुने जा सकत हे। स्थापित साहित्यकार मन के साहित्यिक आयाम अउ अवदान ल समझे जा सकत हे। अपन साहित्यिक यात्रा ल आगू बढ़ाय बर सीख घलो ले सकत हन। कोन विषय म कइसन साहित्य लेखन करे के जरुरत हे, यहू समझे म सहूलियत होही। जे पढ़ही, उही लिखही।

       तीज परब म बधाई देवत बेरा मनखे के विचार कविता बनके फुट परथे। ...अइसनेच पढ़त लिखत तो लेखन के शुरुआत होथे।

       साहित्य के जम्मो विधा म सरलग नवा-नवा जतन अउ उदीम सोशल मीडिया म होतेच हवै। जेकर फायदा साहित्य ल ही मिलना हे।

*सोशल मीडिया प्रचार-प्रसार के मंच*

         अभी के बेरा म सोशल मीडिया प्रचार-प्रसार के सबले अच्छा मंच हे। लइका सियान सबो के हाथ म मोबाइल हे। अइसन म एकर ले बढ़िया प्रचार-प्रसार के कोनो दूसर माध्यम नि हो सके। सोशल मीडिया म फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब के छोड़ व्हाट्सएप के हजारों समूह हे, जिहाँ साहित्यिक गतिविधि सरलग चलथे। जेमा कार्यशाला के आयोजन ले साहित्य सही दिशा म जावत दिखत हे।

       छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़ी छंद रचना बर प्रणम्य श्री अरुण कुमार निगम जी के द्वारा ऑनलाइन कक्षा के शुरुआत २०१६ म करे गिस। जउन सोशल मीडिया के उपयोग ल पहिचानिन। जेकर फल आय के छत्तीसगढ़ी म छंद लेखन आज मिशन बनगे हे।   छत्तीसगढ़ी साहित्य बर सोशल मीडिया बरदान बनगे हे, कहे जा सकत हे। छत्तीसगढ़ी छंद खजाना अउ गद्य खजाना के नाँव ले गूगल के मदद ले समकालीन छत्तीसगढ़ी साहित्य के दिशा अउ दशा ल समझे-परखे जा सकत हे। गुरतुर गोठ के रूप म छत्तीसगढ़ी साहित्य के विकास म श्री संजीव तिवारी जी के योगदान अविस्मरणीय रही।

              मोबाइल म डाटा चालू करत भर के देरी हे, व्हाट्सएप ग्रुप मन म पोस्ट अवई म कोनो देरी नइ होय। व्हाट्सएप फेशबुक ट्वीटर सब म अतका भीड़ लगथे, के मोबाइल सुरता सुरता के रेंगे लगथे।  सोचे ल परथे के एकर ले जरूरी अउ कोन्हों दूसरा बूता नइ हे का? सोशल मीडिया के चस्का अइसे लगे हे के एके छत के तरी म बइठे मनखे बर मनखे मेर समय नइ हे। दूरिहा के मनखे सुहाथे। तिर के मनखे के कोनो पुछारी नइ राहय। सोशल मीडिया म कुछु लिखे भर के देरी हे, ओकर लाइक अउ अनलाइक के कमेंट आय म ओतका बेरा नइ लगय, जतका ओला पढ़े म लगथे। लाइक के भूख अइसे हे के जतके खाबे ओतके बाढ़ते जाथे।

*कोरोना काल म सोशल मीडिया अउ साहित्य*

         कोरोना काल म लॉकडाउन के लगे ले मनखे घरखुसरा होके रहिगे। पाँव म बेड़ी बँधागे। त मनखे ल सोशल मीडिया के सहारा मिलिस। साहित्यकार मन बर सोशल मीडिया ऑनलाइन साहित्यिक संगोष्ठी, कविसम्मेलन, ई-पत्रिका साहित्यिक पत्रिका के नवा दुआर लेके आइस। ए साहित्य अउ साहित्यकार बर नवा आयाम होइस।

*सोशल मीडिया अउ साहित्यिक चोरी*

        सोशल मीडिया म कई घउ अइसे रचना आइस जेन अलग-अलग कई रचनाकार के नाँव ले पढ़े मिलिस। अइसन म मौलिकता अउ सर्वाधिकार के सवाल खड़ा होथे। कथासम्राट मुंशी प्रेमचंद जी के लिखे कविता घलो प्रचारित होइस।....... सोशल मीडिया म रचना मन के चोरी होना नवा बात नोहय। पाछू दू बछर पहिली *तिंवरा भाजी* ऊपर लिखे *कौशल साहूजी* के सार छंद खूब घूमिस। फेर उँकर नाँव कोनो जगा नी रहिस। 

       विज्ञान के वरदान अउ अभिशाप दूनो सरूप देखे मिलथे। बारुद जिहाँ गलत उपयोग करे ले बिनाश करथे, उहें सही उपयोग विकास के दुआर खटखटाथे। वइसने सोशल मीडिया ल घलो सोच समझ के उपयोग करे के चाही। जेकर ले समाज ऊपर बने प्रभाव पड़य। आन के तान झन होय एकर संसो करे ल पड़ही।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (बलौदाबाजार भाटापारा)

सोसल मीडिया अउ साहित्य लेखन-जीतेन्द्र वर्मा

 सोसल मीडिया अउ साहित्य लेखन-जीतेन्द्र वर्मा


       आज माँदी भात के कोनो पुछारी नइहे, मनखे बफे सिस्टम कोती भागत हे। जिहाँ के साज-सज्जा अउ आनी बानी के मेवा मिष्ठान, खान पान के भारी चरचा घलो चलथे। भले मनखे कहि देथे, कि पंगत म बैठ के खवई म ही आदमी मनके मन ह अघाथे, फेर आखिर म उहू बफे कोती खींचा जथे। मनखे के मन ला कोन देखे हे, आज तन के पहिरे कपड़ा मन के मैल ल तोप देथे। आज कोट अउ सूटबूट के जमाना हे, ओखरे पुछारी घलो हे ,चिरहा फटहा(उज्जर मन) ल कोन पूछत हे। अइसने बफे सिस्टम आय साहित्य अउ साहित्यकार बर सोसल मीडिया। भले अंतस झन अघाय पर पेट तो भरत हे, भले खर्चा होवत हे, पर चर्चा घलो तो होवत हे। कलम कॉपी माँदी बरोबर मिटकाय पड़े हे। 

         सोसल मीडिया के आय ले अउ छाय ले ही पता लगिस कि फलाना घलो कवि, लेखक ए। जुन्ना जमाना के कतको लेखक जे पाठ, पुस्तक, मंच अउ प्रपंच ले दुरिहा सिरिफ साहित्य सेवा करिस, ओला आज कतकोन मन नइ जाने। अउ उँखर लिखे एको पन्ना घलो नइ मिले। फेर ये नवा जमाना म सोसल मीडिया के फइले जाला जमे जमाना ल छिन भर म जनवा देवत हे कि फलाना घलो साहित्यकार ए, अउ ए ओखर रचना। सोसल मीडिया ,साहित्य कार के जरूरत ल चुटकी बजावत पूरा कर देवत हे, कोनो विषय , वस्तु के जानकारी झट ले दे देवत हे, जेखर ले साहित्यकार मन ल कुछु भी चीज लिखे अउ पढ़े  म कोनो दिक्कत नइ होवत हे। पहली  प्रकृति के सुकुमार कवि पंत के रचना ल पढ़ना रहय त पुस्तक घर या फेर पुस्तक खरीद के पढ़े बर लगे, फेर आज तो पंत लिखत देरी हे, ताहन पंत जी के जम्मो गीत कविता आँखी के आघू म दिख जथे। 

             सोसल मीडिया ल बउरना घलो सहज हे, *न कॉपी न पेन-लिख जेन लिखना हे तेन।* शुरू शुरू म थोरिक लिखे पढ़े म अटपटा लगथे ताहन बाद म आदत बनिस, ताहन छूटे घलो नही। सोसल मीडिया के प्लेटफार्म सिर्फ साहित्यकार मन भर बर नही,सब बर उपयोगी हे। गूगल देवता बड़ ज्ञानी हे, उँखर कृपा सब उपर बरसत रइथे, बसरते माँग अउ उपयोग के माध्यम सही होय। आज साहित्यकार मन अपन रचना ल कोनो भी कर भेज सकत हे, अपन रचना ल कोनो ल भी देखाके सुधार कर सकत हे। पेपर  अउ पुस्तक म छपाय के काम घलो ये माध्यम ले सहज, सरल अउ जल्दी हो जावत हे। आय जाय के झंझट घलो नइहे। सोसल मीडिया म कोनो भी चीज जतेक जल्दी चढ़थे ,ओतके जल्दी उतरथे घलो, येखर कारण हे मनखे मनके बाहरी लगाव, अन्तस् ल आनंद देय म सोसल मीडिया आजो असफल हे। कोरोनच काल म देख ले रंग रंग के मनखे जोड़े के उदिम आइस, आखिर म सब ठंडा होगे। चाहे कविता बर मंच होय या फेर मेल मिलाप, चिट्ठी पाती अउ बातचीत के मीडिया समूह। पहली कोनो भी सम्मान पत्र के भारी मान अउ माँग रहय फेर ये कोरोना काल के दौरान अइसे लगिस कि सम्मान पत्र फोकटे आय। कोनो भी चीज के अति अंत के कारण बनथे, इही होवत घलो हे सोसल मीडिया म। सोसल मीडिया म सबे मनखे पात्र भर नही बल्कि सुपात्र हे, तभे तो कुछु होय ताहन ,जान दे तारीफ। *वाह, गजब, उम्दा, बेहतरीन जइसे कतको शब्द म सोसल मीडिया के तकिया कलाम बन गेहे।* सब ल अपन बड़ाई भाथे, आलोचना आज कोनो ल नइ रास आवत हे। मनखे घलो दुरिहा म रहिगे कखरो का कमी निकाले, तेखर ले अच्छा वाह, आह कर देवत हे। सात समुंद पार बधाई जावत हे, हैपी बर्थ डे, हैपी न्यू इयर,  हैपी फादर्स डे,हैपी फलाना डे। फेर उही हैपी फादर्स डे या मदर डे लिखइया मन ददा दाई ल मिल के बधाई , पायलागि नइ कर पावत हे, सिर्फ सोसल मीडिया म दाई, ददा, बाई, भाई, संगी साथी के मया दिखथे, फेर असल म दुरिहाय हे। अइसे घलो नइहे कि सबेच मन इही ढर्रा म चलत हे, कई मन असल म घलो अपनाय हे।

       सोसल मीडिया हाथी के खाय के दाँत नइ होके दिखाय के दाँत होगे हे। जम्मो छोटे बड़े मनखे येमा बरोबर रमे हे। सोसल मीडिया साहित्यकार मन बर वरदान साबित होइस। लिख दे, गा दे अउ फेसबुक वाट्सअप म चिपका दे। नाम, दाम ल घलो सोसल मीडिया तय कर देवत हे। सोसल मीडिया म जतका लिखे जावत हे, ओतका पढ़े नइ जावत हे, ते साहित्य जगत बर बने नइहे। ज्ञान ही जुबान बनथे, बिन ज्ञान के बोलना या लिखना जादा  प्रभावी नइ रहे। सोसल मीडिया के उपयोग ल साहित्यकार मन नइ करत हे, बल्कि सोसल मीडिया के उपयोग साहित्यकार मन खुद ल साबित करे बर करत हे, खुद ल देखाय बर करत हे। कुछु भी पठो के वाहवाही पाय के चाह बाढ़ गेहे। कुछु मन तो कॉपी पेस्ट म घलो मगन हे, बस पठोये विषय वस्तु ल इती उती बगराये म लगे हे, वो भी बिन पढ़े। कॉपी पेस्ट म सही रचनाकार के नाम ल घलो कई झन मेटा देवत हे। सोसल मीडिया सहज, सरल, कम लागत अउ त्वरित काम करइया प्लेटफार्म आय, जे साहित्य, समाज, ज्ञान ,विज्ञान के साथ साथ  दुर्लभ जइसे शब्द ल भी हटा देहे। येखर भरपूर सकारात्मक  उपयोग करना चाही। छंद के छ परिवार सोसल मीडिया के बदौलत 150 ले जादा, प्रदेश भर के साधक मन ल संघेरके 50, 60 ले जादा प्रकार के छंद आजो सिखावत हे। 2016 ले  छंदपरिवार सरलग  छत्तीसगढ़ी साहित्य के मानक रूप म  काम  करत हे। अइसने अउ कई ठन समूह घलो हे जे येखर सकारात्मक उपयोग करत हे। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा

अज्ञातवास -हरिशंकर गजानंद देवांगन छुरा

 अज्ञातवास -हरिशंकर गजानंद देवांगन छुरा

                  अपन हक ले बंचित ..... पांडव मन के भाग म लिखाये अज्ञातवास हा .... कलजुग म घला पीछू नि छोरत रहय । अज्ञातवास के कलजुगी समे म .... द्वापर जुग कस .... यक्ष ले इंखर मुलाखात ...... पानी लाने के बहाना तरिया म फेर हो जथे । कलजुगिया यक्ष हा .... इही बहाना ...... इंखर मन के योग्यता के परीक्षा के बात घला करथे । अपन प्रस्न के बिगन जवाब पाए ....... पानी पीना तो धूर ओला छूये बर तको मना कर देथे । पांडव मन एक के पाछू एक ....... परीक्षा म फेल होवत जाथे ....... अउ मूरछित होके भुंइया म गिरत जाथें । धर्मराज हा फिकर करत ....... अपन भई मनला खोजे बर निकलिस ..... त देखथे ....... चारों भई मूरछित परे हे । मउका ल समझगे धर्मराज । द्वापर के समे के सुरता आगे । सुरता आगे उही सब गोठ बात के ....... जेकर सेती ....... ओखर भई मन ला ...... यक्ष के प्रकोप सेहे परे रिहीस । दूसर कोती ...... यक्ष ल घला विस्वास रिथे के ....... इही मोर प्रस्न के समाधान करही । धर्मराज ल ……. यक्ष जइसे देखथे ...... ओला सावधान करके ....... अपन प्रस्न ल सुरू करथे । के घांव प्रस्न के जवाब मांगही - अइसे धर्मराज सोंचत हे । उही – उही प्रस्न फेर करही ...... उही – उही उत्तर ल फेर दूंहूं ....... अउ अपन भई मनला एकर चंगुल ले छोड़ा लूंहू । 

                 यक्ष पूछना सुरू करत किहीस – भूखहा अऊ नंगरा कोन हे अभू ? उत्तर बड़ सरल रिहीस । जेकर करा खाए के एक दाना निही ...... अउ कतको दिन ले .... जेला खाए बर नि मिले हे ......... पहिरे बर जेकर करा चेंदरा निही ……. उही मनखे भूखहा अऊ नंगरा आय । फेर धर्मराज सोंचिस ....... अइसन जवाब .... मोर भई मन घला दीन होही । धर्मराज समझगे अऊ सोंचें लागिस - महू इही ल कहूं ..... तंहले ...... मोरो उप्पर भड़क जही यक्ष हा ...... अउ महू ल मूरछित कर दिही । महूं एकर कैदी हो जहूं ...... त पांडवमन के कुनबा खतम हो जही । अभू के स्थिति परिस्थिती ल आगू म रखके उत्तर दूंहू ...... तभे बांचहूं । धर्मराज केहे लागिस – भूखहा वो नोहे जेकर तिर खाये बर दाना निये या जे कतको दिन ले खाये निये बलकि भूखहा वो आए जेहा ....... न केवल अपन बांटा के चीज ल खावत बोजत हे ....... बल्कि ....... दूसर के बांटा ल घला खा बोज के पचोवत हे ........ अऊ अपन लोग लइका मन बर अवेध किसिम ले सकेलत बटोरत हे । अउ अतकेच म मन नि माढ़त हे बैरी मन के ...... भूख अऊ कतको बाढ़तेच जावत हे । अउ नंगरा  …. वो मनखे आए …….. जेमन झकाझक सादा कुरता म अपन आप ल लुका के ........ देस के पबरित जगा म नंगई करत हें । जेती देख तेती ...... नंगरा नाच हा जेकर इसारा म चलत हे ........ उही मन नंगरा आए । चेंदरा नि पहिरइया मनखे फकत बदन के नंगरा आए ....... फेर चाल अऊ चरित्तर ले नंगरा ...... ये सफेदहा कुरता वाला मन आए । यक्ष ला अपन प्रस्न के पूरा जवाब नी मिलिस । 

               यक्ष फेर पूछे लागिस – तैं कइसे कहि सकत हस के ....... ये सफेद कुरता धोती वाला मन नंगरा आए ....... अउ बिन कपड़ा के मनखे ....... नंगरा नोहे ? धर्मराज बतइस – कपड़ा के संबंध इज्जत तोपे ले होथे । गरीब करा न देखाए के कुछु ..... न तोपे बर कुछु ...... तेकर सेती ...... कुच्छूच लुकाए के जरूरत नइये वोला । अउ सफेद कुरताधारी मनखे मन ....  उही ल घेरी बेरी तोपे के प्रयास म लगे रहिथें । एकर मतलब ये आय के जे नंगरा रहि ........ तिहीच तो तोपही अपन देहें ल । मोर समझ म ...... इही तोपइया मन नंगरा आए । 

             यक्ष के दूसर सवाल - ईमानदार कोन आए ? धर्मराज समझगे रिहीस ...... एला कइसने उत्तर चाही । वो किथे - अभू ईमानदार उही मनखे आय ...... जेला बेईमानी के कोन्हो मउका नि मिले हे । जेला मउका मिलिस ओकर ईमानदारी कोन जनी ....... कते कोती धारे धार बोहागे ।

             ओकर तीसर सवाल - गरीब कोन ? धर्मराज तियार रहय एकर बर । वोहा बताइस – गरीब वो नोहे जेकर करा जरूरत के धन सम्पत्ती नइये ....... अउ विलासिता के रंग रंग के समान नइये। गरीब वो आए ...... जे अरबों खरबों कमा के ...... सिरिफ पइसा के बारे म सोंचत रहिथें । केवल पइसा ल भगवान अउ आवसकता समझथे ।

             यक्ष संतुस्ट होवत जावत हे । चउथा सवाल करिस - चोर कोन आय ? धर्मराज सोंच में परके केहे लगिस - इहां चोर केउ परकार के हाबे । फेर बड़का अउ देस ल बड़ नकसान पहुंचइया चोर वोमन आए ……. जेमन अवेध रूप ले सरकार के पइसा पचावत ...... देस ल चूना लगाके ...... देस बिदेस म चीज बस सकेलत हाबे । जे मनखे ला इल्जाम लगे उप्पर ले ...... बदनामी के डर नि रहय ...... देस ल फोंगला करइया उही मनखे मन चोर आय । यक्ष समझगे ..... अउ सोंचे लागिस ....... कास तोरे कस ...... जम्मो परानी देस के बारे में सोंचतिस ...... त देस के अतीत कस ....... वर्तमान अउ भविस्य घला सज संवर जतिस । 

             धर्मराज थोकिन भाउक होगिस । तभे आखरी सवाल आगे – लचार .... असहाय कोन हे ? देस के जनता – नानुक जवाब दिस धर्मराज हा । यक्ष किथे - कइसे ? धर्मराज बतइस - देस के जनता हा ........ हमेसा धोखेबाज ...... चालबाज ....... चोर – उचक्का ....... बेईमान ....... भ्रस्टाचारी मन ऊप्पर बिस्वास करके उनला ....... अपन अगुवा बनाथे ...... ओकर करा एकर अलावा अउ कोन्हो चारा निये । जनता अपनेच अगुवा मन के द्वारा ....... लूट अऊ बलात्कार के सिकार हे ....... अउ हरेक दारी ........ अइसनेच मन ल ........ अपन अगुवा चुने बर मजबूर हे । अभू तुहीं मन बतावव – इंकर ले लचार अउ असहाय कोन हे ?   

            सब्बो सवाल के जवाब पागिस यक्ष हा । बड़ खुस होके केहे लागिस - मांग ले तोला जे चाही । मोर बस म होही ....... ते तोला जरूर दूहूं । धर्मराज यक्ष के ताकत ल जानय । वोहा अपन चारों भई ...... अउ अपन गंवाए राज पाठ ल ....... वापिस मांग पारिस । यक्ष सकपकागे अऊ धर्मराज के आगू निकल के केहे लागिस – तोर भई मन ल वापिस करत हंव मेहा । फेर तोर राज पाठ ल वापिस नि कर संकव ....... इहां लोकतंत्र हे अभू । इहां जनता अपन खेवनहार ..... खुदे चुनथे । में सिरिफ बाहुबली हंव ..... फेर एकर दुरूपयोग नि जानव ......। तोर खातिर मय यहू करे बर तियार हो जतेंव ..... फेर इहां सरकार बनाए बर ...... बाहुबल के संगे संग ...... धनबल अउ छलबल के घला आवसकता परथे । धनबल में कतको कस दे दूंहूं ....... फेर मोर करा छलबल बिलकुलेच नइये । राज देवा दूहूं कहना सिरीफ कोरा आसवासन ....... अउ सही माने म लबारी छोर कहींच नोहे । वइसे सच गोठ तोला बतावंव धर्मराज ....... तोर जइसे नियावप्रिय ...... सत्तवादी ....... ईमानदार अउ कर्तव्यनिस्ठ मनखे ....... ये देस म अब सासन करे के योग्य नइए । राज चलावन दे दुर्योधन मन ला । तैं लबारी नि मार सकस ....... खाए पतरी म छेदा नि कर सकस ...... कोन्हो बुरई के संग नि दे सकस ...... काकरो गलती के समर्थन नि कर सकस ...... काकरो बुरा होवत देख नि सकस ......., काकरो बुरा कर नि सकस ...... तेकर सेती तैं ...... राज चलाना तो बहुतेच धूर बलकी वो सभा समाज के डेरौठी म चढ़हे लइक घला नइ अस ....... जिंहा ले राज संचालित होथे । तोर से मोर हाथ जोर के प्रार्थना हे ...... तैं राजकाज के मोहो ल तियाग दे ...... अउ फेर वापिस रेंग अज्ञातवास तनी । अउ तब तक अगोर ....... जब तक भगवान मुरली मनोहर के अवतार नि होही तोर जीवन म । 

बपरा पांडव मन अभी तक किंजरत भटकत हे अज्ञातवास म ..... अऊ दुर्योधन अपन संगी साथी संग मटकत इतरावत देश ला सरबस बिनास तनी ढपेलत हे । भगवान घला .... को जनी कब ..... धरम के सासन स्थापित करे बर ...... धर्मराज ला खोज के ...... जनता के आगू लानही ?     

हरिशंकर गजानंद देवांगन छुरा

छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य के बढ़ोतरी बर कोन तरह ले उदिम होना चाही।* (महेंद्र बघेल)

 *छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य के बढ़ोतरी बर कोन तरह ले उदिम होना चाही।*

                      (महेंद्र बघेल)


रचनाकार मन ला छत्तीसगढ़ी साहित्य के बढ़ोतरी बर गद्य के सबो विधा मा कलम चलाना परही।

गद्य के कोनो भी विधा मा कलम चलाय के पहिली छत्तीसगढ़ी साहित्य ला चेतलगहा पढ़ें ला  परही।साहित्य ला पढ़े ले ये पता चलही कि हमर पुरखा साहित्यकार मन कौन से अमूल्य धरोहर देके गय हवॅंय अउ अब हम सब ला का करना हे।

जब साहित्यकार मन जादा ले जादा छत्तीसगढ़ी साहित्य के अध्ययन करही त ओकर ले निसंदेह उत्कृष्ट छत्तीसगढ़ी साहित्य के सृजन भी होही।

छत्तीसगढ़ी के संगे संग हिन्दी के उत्कृष्ट साहित्य के अध्ययन, हिंदी मा साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त पुस्तक के अध्ययन, अउ कहूॅं संभव हो पाय तो ॲंग्रेजी साहित्य ला पढ़के नवा विचार  ला जानना पड़ही।

*हजार डाॅंड़ ला पढ़ त एक डाॅंड़ लिख* ये सूत्र ला आत्मसात करके छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य मा सृजन करे के उदिम होना चाही।

पंद्रह बीस साल पहली दू ठन छत्तीसगढ़ी गीत हर बड़ धूम मचाय रहिस, टूरा नइ जाने रे बोली ठोली माया के..., मोला झोलटू राम बना दिये ना...। ये दूनों गीत हर छत्तीसगढ़ मा रिकॉर्ड तोड़ बजे (चले) रहिस, लइका ला लेके जवान तक के जुबान मा ये दूनो गीत हर सिर चढ़के बोलिस ।ये गीत मन लोकलुभावन अउ मनभावन तो रहिस फेर कुछ दिन के मेहमान बस रहीस जे रफ्तार ले सबके जुबान में चढ़िस उही रफ्तार ले उतर घलव गय।

दूसर कोति *मोर संग चलव रे, मोर चलव जी...,*  *छईया भुईयां ला छोड़ जवैय्या तै...*

जइसन गीत काली अउ आज घलव सबके जबान मा हे अउ  हमेशा रही।

कहे बोले के आशय ये हवय कि विषय- वस्तु, कथ्य, शिल्प , शैली जइसे गद्य के आवश्यक तत्व के प्रस्तुति मा वजन रही त कोई भी कृति हर जरूर पढ़ें के लइक रही, अउ अइसन सृजन ले गद्य कोठी हर जरूर भरही ।

दमदरहा अउ जमगरहा सृजन ला पढ़े बर आन भाषा भाषी मन ला घलव छत्तीसगढ़ी सीखना पड़ही।जइसे चंद्रकांता संतति उपन्यास ल पढ़ें बर अंग्रेजी अउ कईयों आन भाषा भाषी मन ला हिन्दी सीखना पड़िस। आखिर ये लेखनी के कमाल तो हरे न।

धर्म ,जाति ,वर्ग भेद के संकुचित दायरा ले ऊपर उठके  भाईचारा,शिक्षा, स्वास्थ्य ,पर्यावरण  बेरोजगारी, विज्ञान- टेक्नोलॉजी ,उन्नत कृषि ल विषय बनाके ,संगे संग दहेज, नशा उन्मूलन, युवा पीढ़ी के भटकाव, वृद्धाश्रम जैसे सामाजिक कुरीति के उपर मुखर होके कलम चलाना पड़ही। 

डिजिटल विज्ञान के युग मा पारिवारिक , सामाजिक अउ धार्मिक मान्यता ला माने अउ मनवाय के पहली ओला जाने के महत्तम ला उद्घाटित करके सृजन करना पड़ही।

वर्तमान हर समकालीन साहित्य के दौर आय, अउ समकालीन साहित्य के विचारधारा हर विज्ञान सम्मत हे।जब तक  साहित्य मा वर्तमान समाज के सरोकार के बात नइ होही तब तक छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य हर समृद्ध कइसे हो पाही।


महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव जिला राजनांदगांव

तैहा के लिखइया बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव -सरला शर्मा

 तैहा के लिखइया बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव -सरला शर्मा

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      2 फरवरी 1894 के दिन जनमे लइका खेलत कूदत इलाहाबाद ले मैट्रिक पास होगिस ...सियान सामरथ मन कहिन बहुत पढ़ाई होंगे अब रोजी रोजगार नहीं निदान नौकरी चाकरी देख बाबू ..। लइका के नांव रहिस मावली प्रसाद श्रीवास्तव ....उन साहित्यिक रुचि वाला रहिन फेर ओ समय तो लोगन हिंदी च मं लिखयं .त उन्हूं कविताई करे लगिन । अनुवाद घलाय करिन , छत्तीसगढ़ दर्शन , निबंन्ध कुसुमाकर , किसानों की भलाई , कुलद्रोही कहानी संग्रह , उद्गार कविता संग्रह ...अउ कई ठन लेख , सम्पादकीय लिखत चलिन ..। कलम थिराइस सन 21 अगस्त 1974 के दिन काबर के साहित्य साधक बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव सरग चल दिहीन ..। 

    ओ समय जब छत्तीसगढ़ी हर बोली कहे जावत रहिस उन छत्तीसगढ़ी मं लिखत रहिन ...। 

" हमरे घर मं उत्तिम खेती , हमीं च देथन धान , 

  इहें भिलाई , इहें कोरबा , तभो ले मरे बिहान । 

       काहीं कहे नइ जाय ....

मुलुक मुलुक के मनसे खुसरिन , बिन रोजी बिन छांव , 

छत्तीसगढ़ बन गइस चरागन , बिन मालिक कस गांव । 

    आउ सहे नइ जाय ....। " 

        कवि के मन मं छत्तीसगढ़ के मनसे तनसे बर कतका संसो , कतका पीरा छलकत रहिस । 

सन 1933 मं खंडवा मध्यप्रदेश ले छपइया  अखबार मं मावली प्रसाद जी के लेख माला छपे रहिस " छत्तीसगढ़िया कोन " ...ये लेखन हर सुरता कराथे के उंकर मन मं छत्तीसगढ़िया मन  बर , इहां के रहन सहन , बोली बात , बाहिर ले आये मन ले ठगावत जात अपन भाई बहिनी मन बर कतका संसो हे । 

  सन 2014 मं लक्ष्मण मस्तूरिया लिखे हें " पचास बरिस पहिली छत्तीसगढ़ के जैन हालत रहिस ,वो ह आजो कमतर नइहे । बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव जी के लिखे " छत्तीसगढ़ के दसा ..." मं उंकर धरती के पीरा ल उदगारे के अद्भुत सामरथ के पता चलथे । 

     छत्तीसगढ़ी साहित्य के पढ़इया , लिखइया मन बर उंकर एके ठन गीत हर मसाल बनके रस्ता अंजोर करत हे त शासन के मुंह ताकत कलम चलइया मन ल उबारे बर इही एकलौता गीत हर काफी हे । कहि सकत हन के बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव के लेखन के मूल स्वर छत्तीसगढ़ी हे । बानगी देखव न ..

" मर मर मरे बदरवा ह , अउ बांधे खाय तुरंग , 

  अपने घर मं हमीं हेरौठा , सुन के दुनिया ढंग । " 

       

 कोन कतका लिखिस , कते कन किताब छप गिस एकर ले बहुते महत्वपूर्ण होथे काय  लिखिस , देश , राज , समाज , साहित्य , भाषा के कोन तरह ले बढ़ोतरी के बात , विचार लिखिस । 

      बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव के सुरुआती योगदान ल कभू भुलाये नइ जा सकय । 

            सरला शर्मा

कागज के महल -हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

 कागज के महल -हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

                    अम्बेडकर के पुतला के आघू म , डेंहक डेंहक के रोवत रहय वोहा ... । तिर म जाके , ओकर खांद म हाथ मढ़हा के , कारन पूछत चुप कराहूं सोंचेंव फेर , हिम्मत नी होइस , को जनी .... रोवइया हा महिला आय के पुरूस ...... ? एकदमेच तोप ढांक के बइठे रहय , का चिन्हतेंव जी ......। चुप कराये खातिर , धूरिहा ले जइसे गोठियाये बर धरेंव , ओहा महेला कस अवाज म , चिचिया चिचिया के , गारी बखाना करे लगिस । मोला थोकिन अच्छा नी लगिस । थोकिन अऊ तिर जाके , गारी बखाना ले बरजे बर , ओकर खांद म , जइसे अपन हाथ मढ़हाये बर धरेंव , ओला को जनी मोर छुये के का अभास होइस , पल्ला दऊंड़िस । बिगन बात के , काबर नंगत दऊंड़त हे कहिके , मोरो मन म , शंका उपजगे । पिछू पिछू महू दऊड़ेंव । मोला पिछू पिछू , सरपट दऊड़ंत देखिस त , ओकर गति बाढ़गे । मे चिचिया के केहे लगेंव ‌- मोला गलत झिन समझ , में तोर पीछा नी करत हंव , में तोला कन्हो नकसान नी करंव , काबर अतेक दऊंड़त हस तैंहा .........। मोर बात समझ , उही तिर ठाढ़ होगे । अतेक दऊंड़े के बावजूद , मुड़ी कान कस के तोपायेच रहय , अऊ तो अऊ हाथ गोड़ तको , नी दिखत रहय । भूत परेत मरी मसान होही कहिके , में डर्रा गेंव ......। अब के दारी , में पिछघुच्चा होयेव , पलटेंव अऊ पल्ला छांड़ दऊंड़ेव .......। अपन परान बचाये के फिकर म , हपटत गिरत , तरिया नदिया जंगल पहाड़ , कहींच ला नी घेपेंव । कन्हो पिछू म आये के अहसास सिराये ले , एक कन थिराके , पिछू कोती लहुंटेंव , पीछा करे के कन्हो निसान नी पायेंव । उही रसदा म फेर लहुंट गेंव .. जेकर छोंड़ के ओला आये रेहेंव , ओहा उहीच मेर आके बइठे रहय , अऊ रोवत गावत , गारी गल्ला देवत रहय ....... । 

                    में पूछेंव – काबर रोथस जी तेंहा अऊ काबर , गारी बखाना करत हस .. ? काये दुख हमागे तेमा .....? ओ किथे – जेमन मोला बियइन , तेमन मोर ठीक से बेवस्था नी करिन , तेकर सेती , उही मनला बखानत हंव । मे केहेंव – अपन दई ददा ला कन्हो अइसने बखानथे तेमा ...... ? ओ किथे – अपन ला देख तैंहा ......। मोर कस अबेवस्था करतीस तोरो दई ददा मन , तब तैंहा तो , ओमन ला जिंदा गड़िया देते ....। में पूछेंव – कायेच अबेवस्था कर डरिन होही तेमा .....। अतेक सुंदर , तोला धरती म जनम दिस , पालिस पोसिस , बड़े होगेस तहन भुला गेस अऊ बखांने लगेस.....। ओ किथे – में नी भुलायेंव , बियाये के पाछू , ओमन मोला भुलागे । में अचरज म पर गेंव , अऊ केहे लगेंव – नलायक निकलगे होबे तभे भुलइन होही ...... ? ओ केहे लगिस – में नलायक नोहंव , मोला जनम देके अइसे जगा म राखिन के , में नलायक अऊ नकारा होगेंव ..... । मोला ओकर गोठ बिलकुलेच समझ नी आवत रिहीस । ओ मोर मुहुं ला देखके समझगे अऊ अपने अपन , अपन राम कहानी बताये लगिस –  मोर नाम लोकतंत्र हे बाबू .......... मोला जनम देवइया मन , मोर बर बाइस हिस्सा ( संविधान के 22 भाग ) म , बड़े जिनीस महल बनइस , जेमा तीन सौ पंचानबे खोली ( 395 अनुच्छेद ) रिहीस । मोर महल म , रंग बिरंग के दीवार म , आठ प्रकार ( आठ अनुसूची ) के , महंगा महंगा पथरा लगे हे , फेर दुख सिर्फ अतके हे के , मोला उहां ले कन्हो निकलन नि देवय , मोर आवसकता पूरा करे बर समे समे म , कतको अकन खोली म नावा नावा टाइल्स ( 101 संविधान संशोधन ) लगा डरिन , चार प्रकार के अऊ नावा दीवार म पथरा लगाके ( चार नावा अनुसूची ) , मोर महल ला गजब चमका दिन , फेर बैरी मन , मोला बाहिर निकलन नी दिन । में काकरो से मिल नी सकंव , काकरो ले गोठिया नी सकंव .....। में हाँसेंव अऊ केहेंव –  काबर लबारी मारथस यार , मोर से मिल डरे , गोठिया घला डरे । ओकर आंसू के धार नदिया कस बोहाये लगिस ......। ओ किथे – जेकर ले मिलथंव , संगवारी समझ , अपन दुखड़ा सुनाथंव , तिही मोला , काबर निकले कहिके , मारथे पीटथें । में केहेंव – बड़ बिचित्र बात करथस जी .... मोर से मिलेस .... फेर मेंहा तोला हांथ लगायेंव का .... ? वो किहीस – तोला मौका नी मिलीस बाबू .... निही ते तिहीं नी छोंड़ते .... । तोला यदि एक भी बेर गलती से कहि पारतेंव के .... तिहीं मोर पालनहार अस .... तिहीं मोर रक्षक अस .... तिहीं मोर संगवारी अस ..... तहन तिहीं मोर उपर चइघ जते .... । तैं मोला झन अमर सकस उहीच डर म भागत रेहेंव .... ।

                     में केहेंव – हमन नानमुन मनखे आवन .... हमर ले तोला डर्राये के कोई आवश्यकता निये । ओ किथे – जे मोर तिर अमरथे न तिही हा अपन आप ला सबो ले छोटे बताथे .... अऊ कतका बेर मोर मुड़ म सवार होके नकसान पहुंचाथे .... तेला आज तक गम नी पाये हंव .... । मोला बाहिर निकालही सोंचके ..... एक बेर इही देस के चौथा खंभा नाम के एक झन ला अपन हितवा समझ .... ओकरे तिर ओधेंव , त ओहा , तैं देखे बर अऊ सुने बर धर लेहस कहिके , मोर आंखी ला फोर दिस अऊ कान ला काट दिस । उहां ले भागत भागत तीसर खम्भा ला अपन हितवा समझ तिर म चल देंव , त ओहा , तोर दिमाग बहुतेच तेज चलत हे कहिके , मोर दिमाग ला नंगा के राख लिस । ओकर संगवारी मन , मारे पिटे ला धर लिन , जेल म डारे बर धर लिन । दूसर खंभा करा अपन दुखड़ा गोहनाये बर सोंचेंव , त ओहा , मोला काम धंधा झिन कर सकय कहिके , मोर हाथ गोड़ ला टोर के बइठार दिस । तभे मोला पता चलिस के पहिली खंबा हा मोर असली रक्षक आय .... उही मोर रक्षा करही ..... फेर वारे मोर किस्मत .... उही हा सबले जादा खतरनाक निकलगे , ओकर संग मोला सबले महंगा परिस । ओहा मोर नाक ला काट दिस , जब मऊका मिलथे मोर पेट म लात मारथे ...... , येमन तो केऊ बेर , सरेआम नीलाम घला करे बर , बजार म खड़ा करे बर धर लेथें ......। येमन मोला बंधक बनाके राखे के घला प्रयास करिन .... ।  

                    में हाँसत केहेंव – तोर बर , तोर जनक मन , अतेक बड़ महल बना के , तोला सुरछित राखे हे , त तैं हा काबर , होसियारी मारे बर , बाहिर निकलथस यार ...... । ओ किथे – में तुंहंर कस सहींच के नानुक मनखे मन बर जनमे हंव , महल म धंधाये बर निही । में बाहिर आहूं , तब तहूं मनला बताहूं के , तुंहर बर , मोर डहर ले , कतका सुभित्ता के बेवस्था हे । में हाँसत केहेंव – मोला कन्हो अइसने महल म रेहे बर कहितीस न , आंखी मुंद के अपन जिनगी ला बिता देतेंव , कभू मार खाये बर बाहिर नी निकलतेंव । ओ किथे – मोर महल सिरीफ कागज के आय बाबू , जेमा अतका अकन कचरा बगरे हे के , ओकर दुर्गंध म , नाक दे नी जाय । जनता के बीच जाहूं त , अऊ जनता मोला जानही तब , मोर कागज के महल , पक्का बनही अऊ जनता के जिनगी के महल घला , सुघ्घर बन सवंर जही  , तेकर सेती घेरी बेरी निकले के हिम्मत करथंव । 

                    में केहेंव – जनता के फिकर करइया , बहुत झिन जनम धर डरे हे हमर देस म .... । तैं कागज म रहिथस लोकतंत्र , त बड़ सुंदर दिखथस , भुंइया म पांव देके , अपन सरीर ला , काबर बिगारत हस । रिहीस बात जनता के , तैं जनता ला , फोकट भरमा झिन , फकत गोठ के , तैं कुछ कर नी सकस......। मोर बात , को जनी ,  ओकर हिरदे म चुभगे ..... के ओला भा गे ............ , उही दिन ले , बाहिर नई निकले के , कसम खाके बइठे हे लोकतंत्र हा , अपन संवैधानिक कागज के महल म ....। 

     हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

कसौटी गद्य पद्य के-मोहन मयारू

 *कसौटी गद्य पद्य के-मोहन मयारू


आप सब जानत हव लिखे के कइ ठन कइ किसम के विधा होथे , जेमा गद्य अउ पद्य विधा ला बड़का माने गेहे । गद्य विधा के लेखन म कहानी नाटक एकांकी उपन्यास संस्मरण जीवनी यात्रा वृत्तांत डायरी जइसन अउ कइ किसम के विधा मुक्त आलेख घलव लिखे जाथे । गद्य लिखना जतका सरल दिखथे नही ओ हा ओतके कठिन घलव हवै , हम कविता रचना कहिन चाहे कहानी लेखन येमन एक कवि मन के अपन अन्तस् के मनोभाव के उदगार होथे । जउन ला कवि लेखक मन हर अपन कलम के धार म बोहावत अपन कल्पना ले गीत कविता कहानी नाटक के सरूप देथे । 


कोनो भी रचना के लेखन म कोनो भी विधा के महत्तम ओतके होथे जतेक महत्तम एक गीत म संगीत के होथे ।

अब हम गोठ करथन विधा के कसौटी मन के ,  तव हम सबले पहिली जानथन कसौटी ल कसौटी कोनो भी रचना लेखन के कसावट ल कहे जाथे । अपन रचना के लेखन म जतेक जादा कसावट लाना हे एक कवि के अपन ऊपर होथे ,  आप जउन विषय ऊपर लिखत हव आप वो विषय ऊपर कतेक गम्भीरता ले विचार करथव अउ ओखर कतेक गहराई मा उतरथव ये आपके अपन ऊपर हे । आप जतेक गम्भीरता ले सोच विचार के लिखहव आपके रचना म ओतके कसावट आही ।


 गद्य लेखन करे बर व्याकरण जरूरी होथे , बिना शुद्ध व्याकरण के गद्य के कोनो भी विधा मा कसावट नइ लाय जा सकय अउ ना आवय तेपाय के व्याकरण ला गद्य के कसौटी कहे जाथे । ओइसने पद्य रचना म घलव कइ किसम के रचना करे जाथे अउ अभी भी करे जावत हे , फेर हमर अभी के  नवा पीढ़ी के साहित्यकार मन हर रचना मन में ये कसौटी अउ कसावट लाय जइसन शब्द मन ले जादा परिचित नइये । काबर पहिली तो उनला कोन्हों एको बेर बताय नइ होही , अउ दूसर बात या तो उन जान के ओला समझे के प्रयास नइ करिन होही ।


 अइसन प्रकार के जानकारी आपला हिंदी म तो कतकोन मिल जही फेर हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य म बहुत कम पढ़े बर देखे बर अउ सुने बर मिलथे । आज कल लोगन मन पढ़ना कम अउ लिखना जादा करथे , जबकि हमर सियान मन कहिथे तँय जतेक जादा पढ़बे ओतके सुग्घर रचना घलव गढ़बे । पढ़े ले रचना के कसावट हर समझ म आथे , एक अच्छा साहित्य गढ़े बर अच्छा साहित्य पढ़े बर परथे । अब हम गोठ करथन पद्य रचना के कसौटी के बारे म तव गद्य असन ही पद्य के घलव अपन कइ किसम के विधा हावय जउन मन ला हमन कविता गीत गजल सजल मुक्तक नवगीत हाइकु माहिया घनाक्षरी कहमूकरी दोहा कुण्डलियाँ गीतिका सवैया अइसने कइ किसम के सब विधा मन हावय जउन ल हमन जानथन अउ लिखथन ।


जइसे हम पहिली जानेन की गद्य के कसौटी व्याकरण हर होथे ओइसने अब हम जानबोन की पद्य के कसौटी कोन हर आय । पद्य म कुछ रचना मात्रा म बाँध के लिखे जाथे जइसे गजल सजल मुक्तक मन ल ऊँखर बहर मापनी के हिसाब ले । ओइसने दोहा कुण्डलियाँ सोरठा गीतिका अउ सवैया मन ला ऊँखर विधान मात्राबाँट के हिसाब ले मात्रा म बाँध के लिखे जाथे । अइसन कइ प्रकार के छंद हावय जिंकर मन के सब के अपन अपन अलग अलग छंद विधान हवै , जउन मन ला उनकर मात्राबाँट विधान के हिसाब ले लिखे बर परथे । जब तक कोनो भी रचना चाहे ओ सजल होय गजल होय मुक्तक होय चाहे कोनो छंद रचना राहय जब तक ओ विधान सम्मत नइ रइही तब तक हम ओला कोनो भी विधा के नाव नइ दे सकन ।


काबर छंद रचना मन में ओखर विधान हर ही ओखर कसावट आय , कोनो भी रचना ला कोनो भी छंद के मात्राबाँट म बाँध के लिखना कोनो सहज बात नोहय । 

तेपाय के साहित्य जगत म छंद रचना अउ छंदकार मन के अपन अलग महत्तम होथे , अउ मुक्त विधा के रचना मन के तुलना म छंदबद्ध रचना मन के जघा जादा ऊँचा होथे । काबर छंदबद्ध रचना हर अपन आप म अनुशासित विधान सम्मत अउ व्याकरण सम्मत रचना होथे , तब हम आखिर म कहि सकथन की जइसे : - गद्य लिखे बर गद्य के कसौटी व्याकरण हर होथे , ओइसने पद्य म रचना लिखे बर छंद रचना हर पद्य के कसौटी होथे ।

     *(ये मोर अपन निजी विचार ये जरूरी नइये की आप मन सहमत होहव)*


                 मयारू मोहन कुमार निषाद 

                   गाँव - लमती , भाटापारा ,

                 छंद साधक सत्र कक्षा - 4

Tuesday 12 January 2021

सोशल मीडिया अउ साहित्य रचना / लेखन

 सोशल मीडिया अउ साहित्य रचना / लेखन 

     विषय पढ़ के गुनान मूड़ उपर चढ़ के ताक धिना धिन बजाए लागिस .... ये लोकाक्षर मं लिखाई हर वार्षिक परीक्षा मं गणित के सवाल बनाए ले कम थोरको नोहय ....तेमा मोर असन गणित शत्रु बर तो हिमालय चढ़ाई आय । 

     सोशल मीडिया के कई ठन रूप हे तेमन मं ज्यादा करके व्हाट्स एप अउ फेसबुक के चलन ल बहुत झन अपनाए हें । इंस्टाग्राम , ब्लॉग , यू ट्यूब , लिंकेडन घलाय मं कोनो कोनो मन लिखथें । मूल बात ये आय के मनसे अपन मन के भाव ल लिखथे ...फेर मेरन चर्चा के विषय हे साहित्य लेखन जेमा गद्य अउ पद्य दुनों समाये हे ...। 

   बहुत खुशी के बात एहर आय के लेखक ल कोनो पत्र पत्रिका , किताब , विशेषांक के अगोरा करे बर नइ परय । सम्पादक के कैंची रचना के काट छांट नइ करय , बढ़िया बात ...। 

गुने बर पर गिस के बिना सुधार के , बिना समीक्षा के लेखक के गलती पकड़ मं कइसे आही ? 

भाव , भाषा , अभिव्यक्ति , लेखन शैली मंजाही कइसे ? 

सोशल मीडिया  मं गद्य , पद्य के सुनामी आ गए हे ...बने बात भाई ..मैं तो उबुक चुबुक होवत रहिथवं । मोर दसा ल बतावत रहेंव त एक  झन बुधियार साहित्यकार बड़ नीक सुझाव दिहिस ..".मैडम ! सब ल पढ़त काबर रहिथस , डिलीट कर देहे कर न मैं तो रोज डिलीट कर देथवं ।" आज सोचत  हंव बिन पढ़े डिलीट कर देहंव त आनी बानी के सुग्घर भाव भरे कविता , गीत के आंनद कइसे पाहौं ,समसामयिक प्रसंग के लेख , लघु कथा , दर्शन , धर्म के गम्भीर चर्चा वाला लेख कब , कइसे , कहां ले पढ़ पाहौं ? प्रिंट मीडिया चिटिक पिछुवाए धर लेहे हे ...दूसर कारण एहू हर तो आय के कतका कन पत्र , पत्रिका , किताब बिसाहौं ? 

   मानत हवं के सोशल मीडिया के साहित्य तुरते नहीं त एक दू दिन मं बिला जाथे ..त ओकरो तो उपाय हे के मनपसन्द , ज्ञानवर्धक साहित्य मिलय त ओला सुरु खुरु एक जघा संजो लेवन । 

जरुर अतकिहा रचना मन ल डिलीट करना भी जरुरी हे ..मोबाइल के पेट पिराये धर लेथे , नहीं त बिचारा मुंह फुलो लेथे उही जेला मोबाइल हैंग होना कहिथन । 

     थोरकुन दूसर डहर के बात गुनिन ...। सोशल मीडिया मं साहित्य लेखन करत खानी हड़बड़ी झन करिन ...अपने लिखे ल सम्पादक , समीक्षक के नज़र से दू तीन बेर पढ़ लिन । 

एकरो ले जरूरी बात के कुछ टिप्पणी ल अनदेखा करिन जइसे , अब्बड़ सुग्घर , वाह वाह , बढ़िया हे . अइसने.अउ हें ,ध्यान देवन के ये शब्द मन रचना के प्रशंसा नोहयं ...औपचारिकता निभाना आंय । सिरतोन के टिप्पणी ओहर आय जेन हर लेखन के करु -  कस्सा , गुरतुर-  नुनछुर , हित -अहित , भाव -भाषा  के विश्लेषण करथे । 

   अब रहिस बात के सोशल मीडिया के रचना मन से साहित्य के भंडार भरत हे के नहीं ? एकर जवाब एके ठन हे । साहित्य ल तो समाज के दर्पण कहे जाथे ...सोला आना सच बात आय इही देखव न किसान आंदोलन , सामाजिक विसंगति के संग साहित्यकार मन के सुरता के ओढ़र मं उन मन के व्यक्तित्व , कृतित्व के जानकारी , नवा जुन्ना साहित्यकार मन के रचना पढ़े बर मिलत हे , त सबो लिखइया मन नवा नवा विधा मं लिखना भी तो सुरू कर देहे हें । सोशल मीडिया मं साहित्य चर्चा के एहर बहुत बड़े फायदा आय । 

   छत्तीसगढ़ लोकाक्षर के इही पटल मं तो गद्य के सबो विधा मं लेखन होवत हे , नवा नवा कविता संग छंद बद्ध रचना घलाय पढ़े बर मिलत हे । मोर विचार मं सोशल मीडिया मं साहित्य लेखन हर साहित्य के भंडार भरत हे फेर थोर बहुत ऊंच -नीच , घटा -बढ़ी , उत्तम - 

मध्यम तो सबो काम मं होबे करथे एकर सेती लिखना छोड़े मं कइसे बनही ? अरे भाई चिल्हर के डर मं कथरी छोड़े मं थोरे बनही ?  

  तभे तो कहिथन लिखत चलव ..। 

कलम तोर जय होवय । 

   सरला शर्मा

सोशल मिडिया अउ साहित्य लेखन*-चोवाराम वर्मा बादल

 *सोशल मिडिया अउ साहित्य लेखन*-चोवाराम वर्मा बादल


हे घर-घर वासी , जन-जन के ह्दय-हार --सर्व व्यापी सोशल मिडिया जी तोर जय हो। हे आधुनिक युग के प्राणाधार तोर महिमा अपरम्पार हे।  आजकल तोर बिना-- लइका-छउवा, जवान-सियान,  गुरुजी, मजदूर, गृहणी,व्यापारी, संत्री-मंत्री ,साधु-सन्यासी ,चेला-चपाटी,कवि ,लेखक,साहित्यकार आदि ककरो काम नइ चलय। सब तोर कृपा प्रसाद ले यश के रथ म सवार होके नाना प्रकार के महाभारत ल जीत के विजय शंख फूँकना चाहथें। सब के सब तोर चौखट म नाक रगड़त रहिथें ---काबर कि जेती दम तेती हम वाला जमाना हे।

 लिखई- पढ़ई के बात करन त तोर आगू म जतका मिडिया हे सब फीका परगे हाबयँ।तोर दिव्य रूप मोबाइल जेकर ले फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्वीटर--के हाहाकारी छटा बगरत रहिथे  --चारों मूड़ा जगमग जगमग करत रथे। कोनो भी अपन लिखे दू -चार लाइन ल सजा के तोर आगू म मढ़ा देथे ---वोला कहूँ साहित्य के नाम दे दिस त अउ का कहना--- वोमा तोर अंधभक्त मन के नजर परथे त वो ह हीरा असन चमके ल धर लेथे । ये अलग बात हे कि वो भले घिसाये काँच होथे।

   अइसे बात नइये कि  हीरा मन तोर आगू म नइ रखे जावत होही। भेंड़िया धसान तो सुनेच होबे-- यश रूपी आशिर्वाद ल तोर माध्यम ले पाये बर असली साहित्यकार मन तको अपन खाँटी हीरा सहीं रचना मन ल रखत हें।रखना सहीं हे-- काबर कि कहे गे हे-- जैसी बही बयार ,पीठ  तैसी दीजिए। जेती गुड़-शक्कर तेती चाँटी-चाँटा तो रहिबे करथे। सियान मन कहे हे कि  मनखे ल समय के साथ चलना चाही। समय ह अभी तोर मूठा म हे त जम्मों तथाकथित कवि, लेखक ,साहित्य कार मन तोरे साथ रेंगत हें ।जेन मन नइ रेंगत हें तेन मन सिरतो म पिछवा जहीं। अब तो मँहगी मँहगी किताब ल लेके कोनो पढ़इया नइयें अउ दू-चार होहीं भी त मन वाँछित पुस्तक खोजे नइ मिलय । अउ तोर मेर आवत देरी हे नाम मात्र के दान दक्षिणा म जेला डाटा खरचा करना कहे जाथे ---कहे जाय त फोकट म तको महान से महान साहित्यकार मन के उही दिन लिखे रचना ले लेके हजारों- हजार साल पुराना कालजयी कृति मन ल तको पढ़े जा सकथे।

  लिखई के बात करे जाय त तोर अँगना म बइठ के सब उत्ता धुर्रा लिखत हें। जेन ल पूछबे तेन साहित्य गढ़त हन कहिथें। बहुते खुश खबरी अउ गौरव के बात हे। अच्छा हे --एक घड़ी आधो घड़ी---या कोनो चोबीसों घंटा साहित्य लेखन कर--करके तोर कोठी ल भरत हें।

 हे सोशल मिडिया जी फेर एक बात तोला बताना जरूरी हे कि एमा के एके दू आना मन निंद्धा साहित्य होही बाँकी मन चोरी हारी कर के ,जोड़-तोड़ के बनाये असाहित्य आयँ जेन मन म साहित्य के पेंट चढ़े रहिथे। तैं ह थोकुन सावधान रइबे नहीं ते इँकर वजन म तुँहर कोठी भोसक जही।

   तोर सो एक बिनती हे ,चिटिक धियान दे देहू-- कई झन साहित्य के नाम लेके संकीर्ण मानसिकता ले या अफवाह फैलाय बर या कोनो राजनैतिक वाद के पक्ष लेके या ककरो चाटुकारिता म कुछु भी लिख देथें तेला रोंके करव भई।

   हे सोशल मिडिया जी मैं ह लोभ मोह म फँसे घोर संसारिक मनखे आँव। कभू दू -चार लाइन लिख परहूँ त ओला सरी जगत म फइलाय के कृपा कर देहू। तोर बारम्बार जय हो।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

Sunday 10 January 2021

सरला शर्मा

सरला शर्मा


 आकाशवाणी के भक्तिसंगीत सुनत रहेंव ...मन भर गिस । 

   " सत्रु मित्र सुख दुख जग माहीं , माया कृत परमारथ नाहीं ।"

रामचरितमानस किष्किंधाकांड के चौपाई सुनेवं ...त गुने बर परिस के गायक हर शत्रु उच्चारण करिस सत्रु नहीं ...जबकि भाषा तो अवधी आय । 

     मीरा के पद प्रसारित होइस जगजीत सिंह के स्वर मं ...उन उच्चारण करिन परमार्थ , अविनाशी ..जबकि राजस्थानी मं परमारथ अउ अविनासी लिखे हे .... गुने बर पर गिस जगजीत सिंह तो पंजाबी भाषी रहिन जिन मन आधा अक्षर के उच्चारण पूरा करथें । 

  "  सदा रहति पावस ऋतु इनमें जब ते स्याम सिधारे " सूरदास के भजन आय जब गायक प्रस्तुत करिन त श्याम उच्चारण करिन । जबकि सूरदास के भाषा तो बृज आय । 

    संगवारी मन ! मैं गुनत हंव के भाषा कोनो होय प्रस्तुत करइया हिंदी उच्चारण ल ध्यान मं रख के ही शब्द के उच्चारण करथे । हमर छत्तीसगढ़ी हर तो इही मन के बहिनी आय फेर हमन उच्चारण ल हिंदी अनुसार काबर नइ करबो । राजस्थानी , अवधी , बृज भाषा के लिपि भी तो देवनागरी आय उन्हूं मन तो 52 अक्षर ल मानथें , संस्कृते हर तो इन सबो के महतारी आय । 

माने बर परथे के कविता लिखत समय मात्रा , पद , भार ल सम्हारे बर घट बढ़ होथे फेर गद्य रचना के बेर तो साहित्यकार स्वतंत्र रहिथे त  शुद्ध उच्चारण जनित शब्द के प्रयोग करना चाही न ? वाक्य रचना , लिंग विधान , काल , वचन तो छत्तीसगढ़ी मं एके असन हे । 

    मैदानी इलाका के छत्तीसगढ़ी तो लगभग समान जरुर क्षेत्रीयता के प्रभाव होथे त ओहर बोलचाल के भाषा आय । साहित्य के भाषा हर तो थोरकुन अलग होबे करथे अउ उही मं एकरूपता आही त अपने अपन मानक छत्तीसगढ़ी तियार होवत जाही । मूल बात तो व्याकरण के होथे जेहर एके ठन हे । भाषा के विकास बोलचाल के भाषा से शुरू जरुर होथे फेर ओला प्रतिष्ठा मिलथे ओ भाषा मं लिखे साहित्य से । 

   डॉ सुधीर शर्मा द्वारा स्थापित , अरुण निगम के एडमिन बने ले अउ आप सब गुनी मानी लिखइया मन से छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर पटल गद्य ल पोट्ठ करे के सराहे लाइक उदिम करत हे  जेहर बड़ खुशी के बात आय । सबो झन थोरकुन ध्यान देबो त छत्तीसगढ़ी गद्य अवइया दिन मं जगर मगर करही इही गुन के लिखे हंव । 

   सरला शर्मा

गुलाम'

 'गुलाम'


               तइहाँ समय अउ अभी के समय ल देखथँव त जमीन- आसमान के फरक दिखथे। पहिली मनखेमन भले पढ़े- लिखे नइ रिहिन फेर अबड़ सिधवा रहय। भूख- गरीबी, कंगाली रहय फेर अपन ईमान- धरम, संस्कृति अउ संस्कार ल जियत ले नइ छोड़य। अपन के बड़े हमेशा मान- सम्मान देवय चाहे कोनो रहय। वइसने अपन ले छोटे ल अपन लइका सही खूब मया दुलार दय। भले संसाधन के कमी रिहिस फेर कतको बड़े दुख के पहाड़ इँखर हिम्मत के आगू म बौना लगय। जेन मेर पाँव रख देदिन पानी ओगरे बर पड़तिस। एक- दूसर के दुख- सुख ल अपन समझय। 

                 फेर आज के समय ल देखथँव त मनखेमन मोला मशीन बरोबर नजर आथे। मनखे जीवन म मशीन- संसाधन के अतका प्रभाव हे के इँखर बिन एको पग चलय नइ जाय न एको छिन रहय जाय। मनखे पढ़त- लिखत तो हे, देश- दुनिया के जानकारी रखथे फेर अपन संस्कृति अउ संस्कार ले कोसो दुरिहाँँ होवत जात हे। मनखे अपनआप म अतका मगन या भूले हे कखरो दुख- सुख बर बेरा नइ निकाल पावय।

                 तइहाँ समय मनखे अपन सबो काम ल अपन हाथ- पाँव ले करलय। कतको दुरिहाँँ पानी बर जावय। बड़े- बड़े कारखाना, सड़क-पुल, बाँध- नहर अउ महल- अटारी ल बनाए हे। खेती किसानी, नाँगर- बख्खर, गाड़ीबइला, खंती- कुदारी अउ बेलन- दँवरी के सुरता आ गे। मनखे ससन भर पसीना बोहावत ले कमावय अउ पेज- पसिया पी के भुइँया म खर्रा बिन दसना के चैन के बँसरी बजावत सोजय। न पंखा के जरूरत न सोफा-गद्दा के।  कहाँ गरमी अउ कहाँ जाड़। उँखर जीवन बिल्कुल 'सादा जीवन उच्च विचार' ल चरितार्थ करय। संसो- फिकर ले बाहिर तेखरे सेती उमर भर जियय अउ निरोगी रहय। लइकामन घलो उघरा अपनआप म मस्त रहय। आनी-बानी के  खेल खेलत रहय। 

           फेर आज देखथँव त मनखे ल सोफा म घलो नींद नइ आवय। नींद के गोली खाए बर परथे। एसी लगे हे रूम म तभो गर्मी लगत हे। बिसलरी पानी पियत हे तभो बीमार परत हे। एक कदम चले नइ जाय गोड़ पिराथे साँस फूले लगथे। लइका मन खेलकूद ल भुलागे। पढ़ई- लिखई सब सुख सुविधा मिलत हे।

                आज सबो बूता बर मशीन आ गेहे। खेतिबारी के बूता सड़क- पुल बनाना बाँध- नहर बनाना अउ कारखाना बनाना सब मशीन के द्वारा होवत हे।  इहाँ तक के लइकामन ल कुछु पढ़ना या जानकारी लेना हे त बटन दबावत आगू म मिल जथे।  आज के लइकामन खेलकूद का अपन बचपना ल भुलागे हे। गेम खेलई ले फुरसत नइये। अइसे- अइसे मशीन आ गेहे के मनखे के सबो बूता मशीन करत हे। मनखे आलसी होगे तेखरे सेती आनी-बानी बिमारी होवत हे अउ अपन उमर भर जी घलो नइ पावय।

            मनखे अपन सुविधा बर मशीन- संसाधन बनाए हे फेर आज देखथँव त ओखर गुलाम होके रहिगे।


ज्ञानुदास मानिकपुरी 

चंदेनी (कवर्धा)

कलम अउ तलवार*

 कलम अउ तलवार*


                      कलम अउ तलवार दोनों हथियार हरे। दूनों ले इतिहास लिखे गे हे। कहूँ कलम के ताकत ले क्रांति आय हे त कहूँ तलवार के बल मा। दोनों विद्रोही हरे। दोनों शांति के पक्षधर घलो बताथे अपन आप ला।कलम नइ रहितिस त आदमी गरवा आजो रहितिस अउ तलवार नइ रहे ले मनखे अपन आप ला दुनिया के जीव मन ले बड़का कइसे साबित करतिस। विचार धारा के प्रसार बर कलम सबले बड़े हथियार हरे। इतिहास यहू बात के गवाह हे कि खास विचारधारा मन ला ले के ये दूनों मन इंसान उपर गजब कहर घलो ढाय हे।

                     आज उँगली कलम बन गे हे अउ मनखे टाईपराइटर, मोबाइल, कम्प्युटर, लैपटाप, फोन अउ न जाने का - का इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के प्रयोग गणना अउ लेखन बर करत हे।तइसने तलवार घलो आज पिस्तौल, राइफल, बम, मिसाईल अउ अइसने कतको विध्वंसक बन के संसार मा अपन रुतबा बढ़ावत हे। कलम अउ तलवार के साठगांठ ले मनखे के अस्तित्व घलो खतरा मा आ गे हे।

          दोनों चिल्ला- चिल्ला के कहिथे "हम मनखे - मनखे मा गैरबराबरी ला मिटाय बर , जग मा शांति बर, सत्य, ईमानदार अउ धरम बर काम करथन फेर दूनों फसाद घलो करथे, आदमी ला आदमी के बैरी अउ खून के प्यासा घलो बनाथे। कतको झन कलम ला डर्रावत रहिथे त कतको तलवार के डर मा कायर अउ कमजोर होके धरम ईमान घलो बदले हें।कलम अउ तलवार ले जग मा शांति आय हे, अउ विध्वंस घलो होय हें। फ्रांस के सांस्कृतिक क्रांति जगत विख्यात हे, जेकर ले कलम के ताकत के पता चलथे। दूसर कोती इतिहास तलवार के बर्बरता ले भरे पड़े हे। 

     तलवार ही हरे जेन हा सिकंदर ला विश्वविजेता बने के सपना देखाइस। आज भी दुनिया मा कतको नरसंहार होवत हे, काबर आदमी के मूँड़ मा घलो तलवार कस धार वाले विध्वंसक तत्व विद्यमान हे। शासक, सेना, विद्रोही अउ महत्वाकांक्षी मनखे मन तलवार अउ कलम ला अपन खास हथियार बना के उपयोग करथें। 

दूसर डाहर कलम बुद्ध बनके विश्व शांतिदूत बनगे। कलम त्रेता युग मा प्रत्यक्षदर्शी बाल्मीकि, द्वापर मा वेदव्यास होगे अउ कलयुग मा कालीदास, तुलसी, कबीर। अशोक महान तलवार के बल मा विराट साम्राज्य के मालिक बनगे अउ कलम उन ला भगवान बुद्ध के सब ले बड़े संदेशवाहक बना दिस। 

कलम ही वीर नारायण के गाथा गाइस। कलम ले ही आज छत्तीसगढ़ के इतिहास गढ़त हन अउ कलम ले ही भविष्य के सुंदर सपना संजोवत हन। आजो तलवार ललकारत हे दुनिया ला, ताकत अपन फितरत कहाँ छोड़ही? फेर तलवार सुरक्षा के प्रतीक घलो हरे। कलम अउ हथियार दूनों मिल के मनखे ला बर्बर अउ जंगल युग ले सभ्य समाज तक पहुँचाय हे फेर ये आपके उपर हे कि दूनों मा कोन ला आपके चेतना मा कइसे प्रश्रय मिलत हे। 


बलराम चंद्राकर 

भिलाई 

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Thursday 7 January 2021

कलम अउ हथियार-खैरझिटिया


 कलम अउ हथियार-खैरझिटिया


            कलम ले निर्माण होथे, त हथियार ले विनास। कलम विचार के साधन आय, त हथियार युद्ध के। कहे के मतकब कलम विचार के म8दान म लड़थे त तलवार युद्ध के। कलम मनखे मनके आज के सबले बड़े जरूरत कलम हे, काबर की कलम ले ही मनखे-तनखे, जीव-जानवर, पेड़-प्रकृति सबके सिरजन सम्भव हे। येमा कोनो दू मत नइहे, कि हथियार ले कही जादा ताकतवर कलम हे।  कलम धरइया हाथ के तो उद्धार होबे करथे,ओखर संगे  संग वोमा दुसर के घलो उद्धार करे के ताकत होथे। कलम के डंका सिरिफ आज भर नइ बाजत हे, बल्कि कलम कई बछर पहली ले अपन ताकत ल देखावत हे, अउ आघू समय म घलो ताकतवर रही। कलम ताकतवर हे ,कलम म सिरजन के शक्ति हे तभे तो अनगढ़ लइका के हाथ म सबले पहली कलम धराये जाथे, ताकि वो लइका पढ़ लिख के अपन, अपन परिवार अउ देश राज म नाम कमाये। हथियार कतको चले, आखिर म ओखर फैसला कलम ले ही होथे। राजा पृथ्वीराज चौहान, के तलवार ल ओखर राजकवि चन्द्रबरदाई के कलम ह धार करत रिहिस, येला सबो जानथन। आजादी के लड़ाई म घलो लेखक कवि मनके कविता, लेख सबले बड़े हथियार रिहिस। अंगेज मन तलवार ले जादा कलम ले डरिन। कबीर, सुर, तुलसी, जायसी, केशव, बिहारी, रहीम के जमाना के हथियार भले जंग लगके, सड़ गे होही, फेर उँखर कलम आजो चमचम चमचम चमकत हे। माखनलाल चतुर्वेदी, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत, जय शंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, मैथलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल, शमशेर बहादुर सिंह, गजानन्द माधव मुक्तिबोध, मुंसी प्रेमचंद, भीष्म साहनी, फणीश्वर नाथ रेणु आदि अनेक कवि लेखन मनके कलम रूपी तलवार आजो वैचारिक मैदान म प्रभावशाली अउ उपयोगी हे, उँखर धार जस के तस बने हे। कलम हथियार के काम कर सकथे फेर हथियार कलम के काम नइ कर सके। जतका डरावना हथियार हे ओतके कलम घलो। भले राजतंत्र तलवार के फम म चलिस होही फेर लोकतंत्र कलम के दम म ही चलही। हथियार बाहरी ताकत अउ स्वयं के सुरक्षा बर उपयोगी हे ,वइसने कलम घलो सब के सुरक्षा के गूढ़ गोठ बताथे। कलम, हथियार ल कइसे बउरना हे तेखर बारे म घलो बताथे। फेर हथियार कलम ल नइ अपन कोती कर  सके। कलम सही ल सही अउ गलत ल गलत कहय, उही श्रेष्ठ हे। कलमकार के तीन रूप हे, जेमा पहला वो जेन पर उपकार के काम आथे ते उत्कृष्ट कलम या कलमकार 

कहिलाथे, मध्यम कलम या कलमकार म कलमकार के स्वयं के गुणगान या स्वयंसुख रहिथे, अउ अधम कलम या कलमकार म चाटुकारिता, द्वेष ,दंगा, पर निंदा जइसे बुराई दिखथे।

           हथियार जेखर हाथ म हे, वो फकत योद्धा होय,ये कोनो जरूरी नइहे, वो कायर, कपटी अउ दगाबाज घलो हो सकथे। जइसे तलवार, सच्चाई बर उठे, एक सच्चा योद्धा के हाथ म ही शोभा पाथे, वइसने कलम घलो, उही शोभायमान होथे, जेमा निर्माण के ताकत होथे। तलवार आसानी से खरीदे जा सकथे, फेर कलम ल खरीदना हे त करम ल बने बनाये बर पड़थे। तभे कलम ओखर गाथा गाथे। कलम म भूत, वर्तमान के साथ साथ भविष्य ल घलो झाँके अउ सँजोय के ताकत होथे, जबकि तलवार भूत म घलो लहू बोहाइस, वर्तमान म घलो बोहात हे अउ भविष्य म घलो बोहाही। आज मनखे कलम छोड़ तलवार ल थामत हे,जे दुखद हे, जेमा सिर्फ विनास ही हे। तलवार ल सामने खड़े मनखे भर डरथे, फेर कलम के डर म कतको के होश ठिकाना लग जथे। जइसे तलवार चलाये बर योद्धा म जिगर होना चाही, वइसने कलमकार के ह्रदय घलो निर्मल होना चाही। कलमकार ल लोभ, मोह म नइ आना चाही, चाटुकारिता, अउ अल्प ज्ञान घलो निर्माण म बाधक होथे। कलमकार म सबे बर समान भाव, निर्मल मन, अउ सृजनात्मक अउ समयक विचार होना चाही।

         तलवार उही श्रेष्ठ जे सच्चाई बर उठे, अउ कलम उही श्रेष्ठ जे सच्चाई लिखे। तलवार उठही त विरोधी के ही सही पर खून बोहाबे करही, फेर कलम थमइया हाथ म ये ताकत होना चाही कि, खून खराबा के स्थिति घलो टल जाये। समाज म सत, शांति अउ समभाव बने रहय। कलमकार के महत्व एक योद्धा ले कही जादा हे। *तलवार कोनो राज या कोनो राजा ल जीत सकथे, फेर कलम मनखे के मन ल जीते के ताकत रखथे।*


अंत म राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के प्रसिद्ध कविता कलम या तलवार प्रस्तुत हे--


दो में से क्या तुम्हें चाहिए कलम या कि तलवार 

मन में ऊँचे भाव कि तन में शक्ति विजय अपार


अंध कक्ष में बैठ रचोगे ऊँचे मीठे गान

या तलवार पकड़ जीतोगे बाहर का मैदान


कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली, 

दिल की नहीं दिमागों में भी आग लगाने वाली 


पैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे, 

और प्रज्वलित प्राण देश क्या कभी मरेगा मारे 


एक भेद है और वहां निर्भय होते नर -नारी, 

कलम उगलती आग, जहाँ अक्षर बनते चिंगारी 


जहाँ मनुष्यों के भीतर हरदम जलते हैं शोले, 

बादल में बिजली होती, होते दिमाग में गोले 


जहाँ पालते लोग लहू में हालाहल की धार, 

क्या चिंता यदि वहाँ हाथ में नहीं हुई तलवार



जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

कलम अउ हथियार*-चोवाराम वर्मा बादल

 *कलम अउ हथियार*-चोवाराम वर्मा बादल

कलम अउ हथियार दूनो लड़े के साधन आय। कलम ह विचार के मैदान म लड़थे त हथियार ह युद्ध के मैदान म। 

    प्रश्न उठथे के दूनो म जादा ताकतवर कोन हे?ए सवाल के हल तइहा युग ले आज तक खोजे जावत हे। सब के अपन-अपन उत्तर हो सकथे फेर अँग्रेज लेखक श्री एडवर्ड बुल्वेट लिटलन के देये उत्तर---"कलम तलवार ले जादा शक्तिशाली हे।" --बहुतेच सटीक हे काबर कि  तलवार ह अपन जोर म जेन जुलुम तको हो सकथे --दस बीस हजार आदमी ल डर म झुका सकथे फेर कलम ह तो करोड़ो -करोड़ो मनसे का सरी दुनिया ल अपन हिरदे ले निकले अमिट स्याही ले , कालजयी विचार ले सहर्ष झुका सकथे। प्रण्मय शंकराचार्य ,सुकरात,महावीर स्वामी , भगवान गौतम बुद्ध, ईसा मसीह, पैगम्बर मोहम्द,गुरु नानक देव, गोस्वामी  तुलसी दास, महात्मा गाँधी, स्वामी विवेकानंद, गुरु घासीदास बाबा अउ संसार भर के लेखक ,चिंतक, दार्शनिक, धर्म प्रवर्तक मन  के कलम एखर गवाह हे।

     कलम के ताकत हथियार ले कई मामला म जादा हे जइसे कि -हथियार ह आमने- सामने लड़इया ल ओतके बेर घायल कर सकथे, मार सकथे, फेर कलम ह तो वैचारिक रूप ले मरे आदमी ल जिंदा कर सकथे, मुर्दा म जान फूँक सकथे। भारत का विश्व के जम्मों स्वतंत्रता संग्राम म इंकलाब के मंत्र  कलम ह फूँके हे। चंदवरदायी ह कलम धर के युद्ध के मैदान म गे रहिसे। संत कबीर दास के वाणी  आजो ले इही काम करत हे।

    हथियार ह  जब अन्यायी, अत्याचारी मन  ल मिटाये बर उठथे त सही होथे अउ कभू- कभू गलत हाथ म परके अपने मन ल मिटाये बर उठथे त बड़ गलत होथे ओइसने कलम ह तको जब ककरो चाटुकारी म, संकीर्ण विचार धारा ले प्रेरित होके या ककरो दबाव म , कोनो लालच म या मुर्गी के एक टाँग सही चलथे त बड़ घातक अउ हीनहर होथे।

कलमकार मन ल अइसन कलम धरे ले बँचना चाही।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

कलम अउ हथियार*-सुनीता कुर्रे

 *कलम अउ हथियार*-सुनीता कुर्रे



*जिहाँ बंदूक चल सकय न गोली,* 

*उँहा लड़थे कलम के बोली...*

*कलम से क्रांति* लाय के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण सिम्बल ऑफ नॉलेज,महान अर्थशास्त्री *डॉ.भीमरावअंबेडकर* जी ह आय जेनहा

शिक्षा के कलम रूपी हथियार 

से हमर भारत देश के संविधान लिख के सब ल अधिकार देवाइस

इतहास गवाह हे 1857 के क्रांति होय चाहे 1947 के स्वतंत्रता संग्राम म कलम से क्रांति लाय गिस

अउ देशवासी मन ल देशहित बर लड़े के शक्ति जगाइस

उहि डाहर देश के युवा मन म ल देशप्रेम म अपन आप ल बलिदान कर देशभक्ति,राष्ट्रभक्ति के संचार    करिस अउ बैरी मन बर ललकार भरिस कि-

*तोर लहू लाली हे त मोरो लहू लाली हे रे,छत्तीसगढ़ के मैं सपूत आँव हसिया तब्बल,चिन्हारी हे रे*


नारी शक्ति के संचार कलम रूपी हथियार से होइस कि-

तुम अबला असहाय नही

ना ही मुर्दा हो,

उठा लो खंजर तो

 साक्षात दुर्गा हो....


तुम ममता के सागर हो

तुमसे ही प्यार बौछार है

तुम एक कदम आगे तो बढ़ाओ

तुम्हारा करछुल ही तुम्हारा तलवार है....


कलम ह हथियार के रूप म लड़िसे अउ आज तक लड़त आवत हे

समाज ल सुसंस्कृत बनाय म कलम रूपी हथियार ह श्रेष्ठ साधन आय

महाभारत,गीता,रामायण,वेद पुराण,यशोगान एकर सार्थक रूप आय

हथियार से मानव मानव सो लड़थे अउ मरथे

मगर कलम रूपी हथियार से

मनुष्य मन के बैर-विष्मता,

आलस्य,प्रकाष्ठा, के नाश होथे

डबकत खून के युवापीढ़ी ल स्वदेश हित कार्य म जोड़े खातिर

कलम से बड़े कोनो हथियार नई हे

बिना डरे बिना रुके कलम के माध्यम से हर बात ल सामने रखना अउ

 साहित्य सृजन कलम से ही साकार होथे

साहित्यकार के साहित्य सेवा अउ राष्ट्रभक्ति,देशप्रेम, सामाजिक चेतना साहित्यकार के कलम से निकले शब्द ह बताथे कि-

*जिंहा न पहुँचय रवि,*

*उँहा पहुँचय कवि*

युवापीढ़ी म अतका ताकत, क्षमता,शक्ति हे कि ओहा

एक पल म विश्व ल रक्तरंजित कर सकत हवै, अउ राष्ट्र नवनिर्माण कर सकत हे 

रोजगार,शिक्षा,अउ सही दिशा नई मिले के कारण युवा पीढ़ी ह आतंकवाद,नक्सलवाद,क्षेत्रवाद,जातिवाद, म पर के अपन युवा शक्ति ल बर्बाद कर दुर्गति डाहर चल देथे

इंकर डाहर शासन के ध्यान खीचे अउ हक के लड़ाई लड़े बर कलम से बड़े हथियार नई हे

कलम अउ हथियार से अधोलिखित बुराई के अंत होथे

अउ देश समाज ह नवनित कार्य करथे जेकर से हमर समाज के, राज्य के देश के उन्नति होथे...✍🏻

कलम अउ हथियार*-पोखनलाल जायसवाल

 *कलम अउ हथियार*-पोखनलाल जायसवाल

         

         हथियार के प्रयोग ले जिनगी सरल होय हे, त एकर गलत इस्तेमाल जानलेवा घलो हे। मानुस जात के विकास यात्रा म हथियार के शुरुआती उपयोग आजीविका के साधन के रूप म होय हवै, अइसन इतिहास ले जानबा मिलथे। खानाबदोश जिनगी के बखत लउठी ले जानवर मन के शिकार कर माँस भक्षण, पखरा के धारदार हथियार बना के पाषाण जुग म अपन रक्षण-भक्षण दूनो के बात पढ़े म मिलथे। मनखे के विकास यात्रा म आधुनिक युग के आत ले सरलग हथियार के नवा-नवा रूप देखे अउ बउरे के नवा-नवा ढंग के जानबा मिलथे। जंगली जानवर के शिकार के संग उँकर ले बचाव बर हथियार के इस्तेमाल मनखे तइहा ले करत आवत हें। जंगल के विनाश रोजे होवत हे। आज जंगली जानवर ले जादा मनखे ले डर लगे लग गेहे। कोन काकर ऊपर कब वार करही? कोन ताक म कलेचुप बइठे हे, कुछु कहे नि जा सकय। जीव जनावर ले रक्षण अउ भक्षण बर उपयोग होवइया जम्मो हथियार मन के खोज मनखे के विकास ....नहीं, ...विनाश के सबले घातक औजार बनगे हावै। मनखे अपने बाढ़ के चलत धरती म आने जीव मन ऊपर अत्याचार करे के बाद अपने जात ऊपर घलो अत्याचार करत हे। लिखरी-लिखरी बात म मार-काट होत हे। भाई भाई के नइ सुनै। विस्तारवाद के नीति के चलत घर-दुआर ले ले के देश दुनिया म लड़ई माते हे। हथियार ल गलत ढंग ले बउरे ले इंसानियत ल खतरा हे। *जेकर लाठी,तेकर भइँस।* ए हाना ह हथियार के धाक के संगेसंग मनखे के डर बताथे। फेर हथियार के प्रयोग करे म चूक होय ले खुदे के जान मुसीबत म पड़ जथे। हथियार मनखे ऊपर जबरदस्ती करे अउ डरा धमका के उँकर शोषण करे सिवा काहीं काम के नइ हे। फेर यहू बात हवै आज कतको हथियार ले नि डरत हे। *शेर बर सवा शेर* घलव होगे हे। जेकर आगू हथियार के धार भोथलावत हे।

        कलम सिरजन करथे। अपन विचार ले समाज ल नवा दिशा दिखाथे। कलम समाज म नवजागरण बर कोनो हथियार ले कम नइ रहे हे। चाहे गोठ स्वतंत्रता संग्राम के करिन, चाहे समाज म फैले आडम्बर मन ले मुक्ति बर कलम के ताकत के बात करन।मुँशी प्रेम चंद के कहानी, कबीर की साखी, समाज के जम्मो सुधारक संत-महात्मा अउ विचारक के बात करन। सबके कलम के ताकत के परभूता म आज समाज सती प्रथा, बाल बिहाव जइसन अउ कतको कलंक अउ आडम्बर मन ले मुक्त हे। समाज म होवइया अनियाव, शोषण, अत्याचार मन ले बचाय म कलम के ताकत के आगू अत्याचारी मन के हथियार अपन बूता भूलागे।

     आज समाज, देश-दुनिया सबो बर बड़का चिंता इही बात के हे के हथियार अउ कलम दूनो ल गलत हाथ मन माँजत हे। जइसे वीरगाथा काल म चारण कवि मन राजा महराजा के आश्रय पा के सिरिफ अपन कल्याण करिन। आजो कुछ कलम सत्ता सेवा म लगे हे। त कुछ कलमकार मन समाज म जागरण के नाँव म समाज ल गहिर खाई म ढकेले के बुता करत हें। अलगाव वाद के मंत्र फूँकत हें। एक-दूसर के भावना के कोनो कदर नि करत हे। अपने विचार अउ भावना ल श्रेष्ठ बताय म लगे हे। जेकर ले समाज ह छोटे छोटे खंड म बँटत जावत हे। सुवारथ के चासनी म बूड़े कलम ले विचार के जहर-महुरा रोजेच समाज ल नुकसान पहुँचात हे। जइसे नक्सली मन के साहित्य अउ अश्लील साहित्य समाज के बेड़ा गरक करत हे। जउन ल बने नि कहे जा सकय। कतको अइसे हे जेन सत्ता के दम म अपन हथियार अउ कलम दूनो ल सरलग टेंवत हें।

        हथियार अपन सुरक्षा बर आय अउ कलम समाज म जागरण बर हरे ए बात के धियान राखे के जरूरत हे।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (बलौदाबाजार)

कलम और गलवार-गया प्रसाद साहू*

 *// कलम अउ तलवार//*

=====०००========

      जब मैं हा प्रायमरी,मिडिल स्कूल म पढ़त रहेंव,तब राष्ट्रीय कार्यक्रम, शिक्षक दिवस , सांस्कृतिक कार्यक्रम या खेलकूद म भाग लेहे से गुरूजी मन पुरस्कार स्वरूप कलम देवत रहिन,तब मारे खुशी के दौड़त घर आ के हमर बुढ़ी दाई ला बतावत रहेन-ए दे दाई,आज हमर गुरूजी मन मोला ये कलम ला पुरस्कार देहिन हवंय | 

     तब बुढ़ी दाई ह जादा खुश नइ होवत रहिस अउ कहै- तोर गुरूजी मन कत्तेक कंजूस हवंय बेटा ? दू-चार आना के कुछु समान ला पुरस्कार देतिन,तब निचट्ट एक आना के कलम देहे हवंय  |

    *हमर डोकरी दाई ह धन (लक्ष्मी जी) के पुजारी रहिस,तेकरे सेती ओहा धन के लालसा राखत रहिस कलम (सरस्वती माता) के नहीं !*

    *वैसे कहे गए हवय-"दान के बछिया के दांत नइ देखे जाय" | पुरस्कार में मिले जिनीस के मूल्य नही देखना चाही, मंच म सब के सामने बुला के कोनो ला एक कलम दिए जाथे, सब मनखे सम्मान म ताली बजाथें,तब ओकरो मूल्य अनमोल होथे !"*

     *कलम के पुजारी संत कबीर दास, सूरदास, तुलसीदास,मीराबाई अमर हो गईन | कलम के पुजारी भारतेंदु हरिश्चंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त, रविन्द्र नाथ टैगोर, रामधारी सिंह दिनकर,अज्ञेय, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा आदि कवि लेखक मन सदा दिन बर अमर हो गईन !*

     *हमर छत्तीसगढ राज्य में घलो बड़े बड़े कवि लेखक  धनी धरमदास,लोचन प्रसाद पाण्डेय,मुकुटधर पाण्डेय,पं सुंदर लाल शर्मा, ठाकुर प्यारेलाल,हरि ठाकुर, खूबचंद बघेल, केयूर भूषण,जनकवि मरहा,कोदूराम दलित, सुशील यदु आदि कलम के पुजारी मन अमर हो गईन* |

     *जबकि तलवार के पुजारी आतंकवादी, नक्सलवादी,मावोवादी मन छोटे-छोटे मासूम लईकन ला मदरसा म "कलम" के बदला", तलवार,भाला,बरछी,गोली बारूद के शिक्षा देथें, तब जईसन बीज बोंथे,वईसने फसल प्राप्त करेथैं ! आतंकवाद, नक्सलवाद,मावोवाद से शिक्षा ले के छोटे-छोटे लईकन आतंकवादी नक्सलवादी मावोवादी बन जाथैं !*

     *शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के सदस्य मन प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी ला आवेदन-पत्र लिखे हवंय-हमर भारत देश म संचालित"मदरसा" ला बंद कर देना चाही,कारन-मदरसा में आतंकवाद के शिक्षा दिए जाथे, छोटे छोटे नौनीहाल बच्चा मन ला आतंकवादी बनाए जाथे !*

     

    *भारत-पाकिस्तान के बीच लंबा समय से हो रहे खून-खराबा ह १० जनवरी/१९६६ के दिन भारत के प्रधानमंत्री माननीय लालबहादुर शास्त्री जी अउ पाकिस्तानी प्रधानमंत्री अयूब खान के बीच रूस के ताशकंद शहर म लिखित समझौता के बाद विराम होईस !*

    *सन् १९९९ म भारत-पाकिस्तान के बीच"कारगिल युद्ध" लगभग ६० दिन तक चलिस, ये युद्ध म लगभग ५५०सैनिक मारे गईस अउ लगभग १४०० सैनिक घायल होईन ! आखिर एहू युद्ध के अंत २६ जुलाई/१९९९ के दिन दुनो देश प्रधानमंत्री के आपस म लिखित समझौता के द्वारा ही समाप्त होईस !* 

    *ये प्रकार से तलवार बाजी,गोली बारूद के प्रहार से पश्त होए के बाद "एही कलम के ताकत से शांति स्थापित हो जाथे, एकर मतलब होथे-"तलवार से हजारों-लाखों गुना जादा ताकत अउ प्रभाव"कलम" के होथे !*

    *तभे कहे गए हवय- "हजारों-लाखों वक्ता, तब सिर्फ एक लिखा सबूत ह भारी होथे "*

     

  *रहिमन देखि बड़ेन को,लघु न दीजिए डारि*

    *जहां काम आवै सुई,कहां करै तलवारि*

      *सुई के छिद्र म प्रेम के धागा समाहित होके दो अलग-अलग कपड़ा ला जोड़े के काम करथे, जबकि "तलवार" ह सिर्फ काट के खंड-खंड कर देथे, अलग-अलग कर देथे !*

     *ठीक सुई की भांति कलम ह आकार-प्रकार अउ स्वरूप से भले ही छोटे होथे, लेकिन कलम के स्याही से अंकित कथन ह अनेक दिलों ला जोड़े के काम करथे,तईसने कलम के लिखा समझौता वार्ता, संदेश ह बड़े-बड़े विनाशकारी हथियार, तलवार से शक्तिशाली होथे*|

     

      * *लाठी, तलवार,भाला बरछी के लड़ाई म उलझे लोगन के कोर्ट-कचहरी के मुकदमा ह कई बरस तक चलते रहिथे, लेकिन आखरी सुनवाई के बाद जब माननीय न्यायाधीश महोदय ह "एही कलम" म लिख के फैसला सुनाथे,तब विनाशकारी तलवारबाजी के झगड़ा ह सदा दिन बर समाप्त हो जाथे | "अर्थात "कलम" के ताकत ह "तलवार" से लाख गुना ज्यादा होथे*

     

     *बचपन म कोनो लईकन के शिक्षा  गलत ढंग से लड़ाई-झगड़ा ला सिखाए जाथे, ऊंकर गलत तालीम के कारण जिंनगी ह पग-पग म खतरनाक अउ खुद बर घातक हो जाथे ! लड़ाई-झगड़ा प्रवृत्ति वाला लोगन कभी भी उमर भर नइ जीए सकैं,कोनो कतको सुरवीर होय,लेकिन दूसर मनखे संग मार-पीट करथें,तब अईसन मनखे ला कई लोगन मिल के कुत्ता के मौत मार डारथैं !*

     

    *बचपन म जऊन लईकन ला प्रेम,दया,आदर,सम्मान, अपनापन सिखाए जाथे,ऊंकर जिंदगी सदैव सुख-शांति समृद्धि भरे होथे | स्कूल कालेज म खूब पढ़ाई करके  "कलम म लिखे "जऊन सर्टिफिकेट मिलथे,ओकरे आधार म कोनों कलेक्टर, कमिश्नर, डाक्टर, वैज्ञानिक बनथे, ऊंकर जिंदगी सफल,सुखद अउ यादगार हो जाथे, इंकर मतलब होथे-"गलत तालीम, तलवारबाज़ी के बजाय सुंदर शांतिपूर्ण ढंग से शिक्षा अउ "कलम के सर्टिफिकेट" ह तलवार के अपेक्षा लाख गुना सहीं, सकारात्मक अउ शक्तिशाली होथे*|

    *देश के बाहरी हिस्सा सीमा पर तैनात सैनिक मन अपन प्राण गंवाके देश के रक्षा करथैं,तब हम कलम सिपाही मन देश के अंदर सुंदर सकारात्मक विचार प्रतिपादित कर के, लेख,कविता के माध्यम से देश सेवा के काम करथन, देशवासी के मन में, परिवार,समाज के मन में सकारात्मक विचार लिख के पारिवारिक सामाजिक धार्मिक आर्थिक राजनीतिक सांस्कृतिक उत्थान के काम करथन*|

   *हम हैं कलम वीर सिपाही*

     *व्यक्ति आम नहीं हैं*

    *हम हैं हरदम उगता सूरज*

      *ढलती शाम नहीं हैं*

     *हम पुष्प पुंज माला हैं*

      *चिंगारी और ज्वाला हैं*

     *हम सच्चे साहित्य सृजक*

      *राष्ट्र का रखवाला हैं*

     *कलम हमारी शक्ति है*

     *चिंतन हमारा धर्म है*

     *साहित्य ही ओढ़ना-बिछौना*

     *सृजन हमारा कर्म है*

    *चाहे दुनिया सोती रहे*

     *हम हरदम जागते रहते हैं*

     *लोग पाकर भी लुटाते हैं*

       *हम लुटाकर ही पाते हैं*


     *जब तक सांसें टूट न जाये*

     *तब तक हमें आराम नहीं है*

     *हम हैं कलम वीर सिपाही*

     *व्यक्ति आम नहीं हैं*

    *हम हैं सदा उगता सूरज*

      *ढलती शाम नहीं हैं*

    *सर्वाधिकार सुरक्षित* (दिनांक-०५.०१.२०२१)


     *गया प्रसाद साहू*

     "रतनपुरिहा"

मुकाम व पोस्ट-करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)


 

कलम अउ हथियार"-ग्यानु

 "कलम अउ हथियार"-ग्यानु


                            आदिकाल ले लेके अभी तक वर्तमान ( आधुनिक काल) ल देखलव। जब- जब मानव समाज उपर संकट आए हे। असामाजिक लोगन मनके अत्याचार अउ आतंक हा बढ़े लगथे। तब उँखर नाश करे बर हथियार उठे हे। अउ कतको सिधवा मनखेमन उँखर डर म चुपचाप उँखर अत्याचार ल सहत रहिथे। अइसन मन ल जगाये के काम कलम करथे। धर्म अउ संस्कृति के संरक्षण कलम अउ  रक्षा हथियार करथे।

       अभी तक अक्सर ये देखे अउ सुने बर मिलथे कलम अउ हथियार अन्यायी मनके खिलाफ उठे हे। पहिली घलो कोनो शासक अपन प्रजा उपर अत्याचार या बेवजह सताये अउ प्रजा बपरामन असहाय ओखर आतंक ल सहय। अइसने म कोनो आशा के दीप जलइया अपन गीत अउ कविता के माध्यम ले अपन कलम के धार ले प्रजा मन ल सावचेत करय। अउ शासक के अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद करे बर हौसला दय। वो बखत होय या अभी के अइसनो भी देखे बर मिलथे कखरो कलम राग दरबारी त कखरो कलम ले आगी सुलगथे।

           आज भी इहाँ शासन- प्रशासन अपन मनमानी करथे जनभावना के साथ खिलवाड़ करथे त सबले पहिली कलम चलथे। जब कलम के बात या आवाज शासन- प्रशासन नइ सुनय तब आंदोलन करे बर या हथियार उठाए बर आमजन मजबूर हो जथे।

             हथियार जहाँ विनास के रस्ता अपनाथे वही कलम शाँति, समझौता अउ आत्मचेतना के बीज बोथे। हथियार ले होय घाव प्रत्यक्ष होथे तेखर सेती भर जथे। फेर कलम ले मिले घाव मनखे ल झकझोर देथे अउ अप्रत्यक्ष होथे। कलम ले हमर आत्मसम्मान अउ हथियार ले प्रान के रक्षा होथे।


जहाँ काम आथे कलम, का करही हथियार।

समता, सुमता लानथे, बाँटे मया दुलार।।


          अंत म अतका जरूर कहूँ कलम के धार; हथियार के धार ले ज्यादा तेज होथे। कभू- कभू अइसनो होथे जेन काम ल हथियार नइ कर सकय वो काम ल कलम कर देथे।


बखत परे मा ये कलम, बन जाथे हथियार।

दीनन दुखी गरीब ला, देवाथे अधिकार।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी 

ग्राम- चंदेनी ( कवर्धा)

कलम अउ हथियार*-चित्रा श्रीवास

 *कलम अउ हथियार*-चित्रा श्रीवास


     कलम अउ हथियार दुनों शक्ति के  प्रतीक आय । कलम हा वैचारिक शक्ति के प्रतीक आय  तो हथियार हा  शारीरिक शक्ति के  प्रतीक आय। दुनो प्रकार के शक्ति के जरूरत मनखे ला पड़थे ।हथियार हा सुरक्षा देथे ता कलम हा मानसिक संतुष्टि देथे। जंगली जिनगी बितात मनखे हा हथियार ला आत्मरक्षा अउ शिकार बर बउँरना शुरु करिस।खूँखार जंगली जानवर मन से रक्षा बर हथियार  हा सहायक बनिस। हथियार के सहयोग ले मनखे अपन अस्तित्व बचाय मा सफल होइस  येखर कारण से हथियार के घलौ महत्व हे आज घलौ दूसर देश के आक्रमण के स्थिति मा हथियार ही हा हमला सुरक्षा दिही । धीरे धीरे मनखे के बौद्धिक विकास होइस ता हाथ मा कलम थाम के मनखे सभ्यता के इतिहास लिख डारिस ।विकास के संगे संग मनखे हथियार के दुरुपयोग करना शुरू कर दिस।आत्मरक्षा के बजाय आक्रमण मा  हथियार के उपयोग करे लागिस तो शक्ति के  प्रतीक हथियार विध्वंस के प्रतीक बनगे ।वैज्ञानिक उन्नति के संग परमाणु हथियार सगरी मनखे जात ला समूल नष्ट करे क्षमता रखत हे ता जैविक हथियार  के दुष्परिणाम कोविड 19 ले मानवता थरथरात हे।

  कलम आज घलौ सिरजन के प्रतीक बने हे। जेहा कभू

प्रेम के गीत गाथे ता कभू बदलाव के अवाज बुलंद करथे।शोषित पीड़ित  मनखे के हक बर लड़थे।देशप्रेम के भाव समाज मा भरथे ता समाज के बुराई मा चोट घलो करथे।तुलसी के कलम हा अयोध्या के राजा ला जन जन के राम बना देथे।सूर के कलम हा ब्रज के  यशोदा के लल्ला  ला घर घर के कान्हा बना दिस।स्वतंत्रता संग्राम मा घलौ  कलम हा देश प्रेम के लहर जगाय के काम  करिस ।मीरा  रसखान ,कबीर ,महादेवी वर्मा,जयशंकर, प्रेमचंद के कलम हा उँखर पहचान बनिस।वाल्मीकि के रामायण अउ वेदव्यास के महाभारत आज घलौ समाज ला रद्दा देखाथे।

   कलम के ताकत के आघू हथियार के ताकत कमती हे काबर कि कलम हा हथियार जइसे मारक क्षमता रखथे जबकि हथियार हा कभू कलम नइ बन सकय।हथियार ले सिरिफ डर उत्पन्न होथे।जबकि कलम हा समाज के मन ला बदले के क्षमता रखथे।समाज ला नवा दिशा देथे ।कलम के ताकत अजर अमर हे।


चित्रा श्रीवास

बिलासपुर छत्तीसगढ़

कलम अउ हथियार*-पूरन जायसवाल

 *कलम अउ हथियार*-पूरन जायसवाल


दुनिया मा हर चीज दू के पहलू देखेबर मिलथे। दुख-सुख, दिन रात, घाम छँइहा आना जाना आदि आदि। अइसे ही जब ले दुनिया बने हे दू ताकत सत अउ झूठ हर बराबर अपन आप ला बढ़ाय मा लगे हे। सत-असत नियाव-अनियाव मा लड़ाई सरलग चले आत हे। अइसे ही दुनिया के शुरुआत अउ जब ले समाज जइसे चीज के प्रादुर्भाव होय हे, दो वर्ग विशेष रूप ले प्रभावी हें एक शोषक, दूसर शोषित।


अउ जिहाँ शोषण हे उहाँ विरोध अउ प्रतिकार होबे करही अउ वो प्रतिकार शब्द ले हो सकत हे, मौन ले हो सकत हे या फेर हथियार ले हो सकत हे। अब हथियार के बात करन तव हथियार कई तरह के हो सकत हे कलम भी हथियार आय।

कलम अउ हथियार के जब बात करन तव दू तरह ले स्थिति अउ संदर्भ निकलथे। एक जब दूनों ला अलग अलग लेथन, दूसर जब दूनों मा संबंध बताथन।

कलम अकेला मा शिक्षा, जागरूकता, शांति, विवेक, आत्मज्ञान, धीरज, संयम आदि गुण ला समोय हमन ला जीवन बोध कराथे। हथियार भी अकेला मा दू रूप मा मिलथे, एक औजार के रूप मा जे हमर दिनचर्या के काम मा हमर सुविधा बर अपन उपयोग मा लाथन। दूसर शस्त्र जे प्रतिकार अउ आत्मरक्षा बर हमर जरूरी चीज आय।

अउ जब दूनों के बात सँघरा करन तव ये हर क्रांति अउ विरोध के पर्याय बन जाथे।

बात आथे कि दूनों मा कोन प्रभावी हे बिना संकोच के कहि सकत हन कलम।

बीते समय मा कतको उदाहरण हे जब कलम के ताकत ले हथियार हारे हे।

जब हथियार थक जाथे, वोला कलम के सहारा लेये ला पड़थे। कहे जाथे ये दुनिया मा राज करे बर कोनो सब ले बढ़िया जगह हे तो वो  हरे मनखे के दिल। ए मेरन चाबी अउ हथौड़ा के किस्सा भी प्रासंगिक हे।अब तक कतको आइन गइन कतको के नाम मेटागे, फेर जउन मन दिल मा राज करिन वोमन आज तक ज़िंदा हें अउ इतिहास डहर देखन तो एमा कलम के सिपाही मन आगू हें।

आजादी के पहिली अउ आजादी के बाद भी समाज मा सुधार अउ उत्थान के जतका आंदोलन होय हे वोकर अगुवा कलम रहे हे हथियार हर नहीं।

एक प्रसंग तो अक्सर सुने बर मिलथे कि कोई महान नेता अउ कवि कोनो मंच ले उतरत रहिन तो नेता लड़खड़ागे, कवि वोला संभालिन। नेता कहिथे बने करे मोला सँभाल लिये नहीं तो मँय गिर जातेंव। कवि कहिन जब जब राजनीति लड़खड़ाही कविता वोला सँभालही।

*कलम के महानता ला ले के मँय कहँव तो कलम ला तो हथियार के उपमा दे सकथन फेर हथियार कभू कलम नइ कहा सकय। अउ हथियार ले कभू कुछ अच्छा हो भी गे तो वोकर इतिहास कलम हर ही लिखही।*

आज के स्थिति अउ संदर्भ मा सब ले बड़े हथियार हे कलम। आज मनखे हा अइसे अइसे हथियार बना डरे हे कि पूरा दुनिया देखते देखत राख मा बदल जाय, फेर वोमा लगाम लगे हे काबर कि कलम बलवान हे। आज पेपर, न्यूज चैनल, मीडिया सब ले बड़े शक्ति बनके उभरे हे। ये युग हर शब्द के युग आय कलम के युग आय।


अपन हिंदी ग़ज़ल के एक शेर ले अपन गोठ ला आखिरी करिहँव 


*मुल्क के हालात हमसे कह रहे समझें अगर*

*हम अदब वाले कलम से काम लें शमशीर का*


पूरन जायसवाल

Tuesday 5 January 2021

मछरी,साँप अउ कीट पतंगा के नाम

 मछरी,साँप अउ कीट पतंगा के नाम


खोक्सी

बामी

रुदनी/रुदई

चिंकरी/झींगा

बत्तर

फाँफ़ा

चमगेदरी

ढोंढ़ीया

मुड़हेरी

पिरपिटी 

अषढ़िया 

गौहाँ डोमी

डंडा करायत

अँधियारी साँप 

महामंडल

अजगर 

कोबरा

अहिराज

चिंगराज

अंधवासांप




*मछरी*

केवई

मोंगरी

कटही

पेटली

पढ़ीना

रोहू

कतला

तेलपिया

बाबमर

टेंगना

लपची

सिलवर

कोतरी

डड़इय्या

ढेसरा 

सरांगी 

बांबी 

केऊ 

कोतरा 

भुंडी 

कनाछ 

खोकसी 

लूदानी 

गदेली 

चंदैनी 

फुलही 

व्हेल 

डॉल्फिन 

सार्क 

चिंगरी 

कोकिया 

सँवाली

*साँप*

गौउँहा डोमी

करिया डोमी

बिक्खर डोमी

दुमुंहा

फनीनाग

नवनक्का

करैत

मुसलेड़ी

गोंइहा

गँउहाड़ोमी-गेंहुआ रंग का साँप।

गोह

डार डोमी

नेवरा

घोड़ा करायत

डहनी करायत



*किट*

फ़िल्फिली

बतरकीरी

कनकट्टा

फुरफुन्दी

जोगनी

राउताइन कीरा(सावन कीरा)

भूंँसा कीरा

लिम कीरा

घुना

भुई कीरा

गोजरा

सावन कीरा-बरसाती कीरा

दिंयार कीरा दीमक कीट

गेंगरुवा-केचुवा

दतैया-पीले रंग का जहरीला कीट

माॅछीमक्खी

तितली-सुंदर रंगबिरंगे पंखो वाले जीव

भौराकीरा-फूलों का रस चूसने वाला कीट

भौंरामाछी मधुमक्खी

भाँवरमाछी-मधुमक्खी

रानीमाछी-अंडें देने वाली मादा मक्खी

मजदूरमाछी-फूलो के रस इकट्ठे करने वाले मक्खी

रानी कीरा-मखमली सुर्ख लाल रंग का बरसाती कीट

पनिहारीन कीरा-काले रंग की असंख्यात पैरों वाला कीट

घुनाकीरा-काष्ठकीट

कनकट्टा-हरे रंग का बड़े बड़े टाँगों वाला कीट

जूगनी-जुगनू कीट

जोगनी कीरा-प्रकाशकीट

फाँफा-उड़ने वाला कीट

छैबूँदिया-पीठ पर छ:सफेद निशान वाला जहरीला कीट।

चरबूँदिया-पीठ पर सफेद चार बिंदू वाला जहरीला कीट 

मँगसा-मच्छर

गूढ़माछी-वृहदाकार मक्खी।

माछा-बड़े आकार का मक्खी

टिड्डा-फसल नाशक कीट

फुरफुन्दी-उड़ने वाला कीट

असोंढ़िया-जलीय सर्प

ढ़ोंढ़िया जलीयसर्प

जूड़ामहामंडल

देवतासाँप-

नागसाँप

नागिन साँप

दूधनाग-दूध पीने वाले भूरे रंग का नाग

दूधनागिन-दूध पीने वाले भूरे रंग की नागिन

जहरानाग-जहरीला नाग

बिखहर नागिन-जहरीला नाग

नेवरा-नेवला

भठेलिया-खरगोश

घररक्खा-छिपकली

टेटका-गिरगिट

नपल्ली-छिपकली

झेंगुरा-झिंगुर

तिलचट्टा

इल्ली

पताड़ी-चाँवल का सफेद कीड़ा

लीख

 ढेकना

किन्नी ,जुआँ अउ बगई 

: जोंक

 पेशवा ( पिस्सू)

छन्द परिवार

Monday 4 January 2021

छत्तीसगढ़ी म दिन तिथि, समय अउ गिनती के नाम-

 छत्तीसगढ़ी म दिन तिथि, समय अउ गिनती के नाम-


जइसे

महीना 30 दिन

पाख-15 दिन

अंजोरी पाख

अंधियारी पाख

अड़हा पाख

दूज

तीज

चउथ

पंचमी

छठ

साते

आठे

 नम्मी - नवमी

दशमी

एकादशी

दुवास

तेरस

चौदस

पुन्नी 

हप्ता-सप्ताह

एसो - आसो

पउर - अवइया साल

परिहार - बीते साल

काली - कल

आज 

परनदिन - परसो

नरनदिन - चौथा दिन

डेढ़-1.50

अढ़ाई-2.50

पौन-.75

सवा-1.25

कोरी-20

कोस - 20

आगर

एक हाथ/एक बित्ता-नाप

चइत

बइसाख

जेठ

आषाढ़

सावन

भादो

कुँवार

कातिक

अगहन

पूस

माँघ

फागुन

इतवार

सम्मार

मंगल

बुधवार

बिरसपत - गुरुवार

शुकवार -  शुक्रवार

शनिच्चर  - शनिवार

पँड़री बुधवार-कभू नहीं आने वाला दिन

दिन बादर-निश्चित समय

समयसुकाल-सुखप्रद समय

दिनोदिन-जैसे जैसे दिन बढ़ता है

छै आगर छै कोरी-ढ़ेर सारा

बछर -संवत्सर

बछरगठान-वर्षगाँठ

एकबछरिया-एकवर्षीय

दूबछरिया-द्विवर्षीय

तीनबछरिया-त्रिवर्षीय

पंचबछरिया-पंचवर्षीय

एकमस्सी-एक मास की अवधि

दूमसी-दो मास की अवधि

तीनमसी-तिमाही, त्रैमासिक

चरमसी-चतुर्मासिक

पंचमसी-पंचमासिक

छैमसी-छष्ठमासिक

सतमसी-सप्तमासिक

अठमसी-अष्टमासिक

नौमसी-नौमासिक

दसमसी-दसमासिक

ग्यारहमसी-ग्यारहमासिक

बरमसी-बारहमासिक

चरदिनिया-अल्पकालिक

सबदिनिया-सर्वकालिक

अचानचकरित-अनायास, कभी कभी

दसदुअरिया-दस दरवाजे वाला, बहुत लोगों के घर माँगने जाने वाला

एक गुना- ?

कई गुना-अत्यधिक

चार बाँटा-चौगुना अधिक

दिनदेवारी-सेवकों का सेवा समय पूरा होना

दिन धराना

दिन देखाना

दिन लहुटाना

दिन देखना

दिन गिनना

दिन दुगुना रात चौगुना

दिनपहरिया

रतपहरिया

बार-वार

तिथि

तिहार बार-त्यौहार का वार

उगती

बुड़ती

भंडार

रक्सेल












बढ़ावत चलव

Sunday 3 January 2021

तीज तिहार* के नाम

*तीज तिहार* के नाम 


हरेली

रजुतिया 

गुरु पूर्णिमा 

भोजली परब

जुड़वास

सवनाही

इतवारी

सम्मारी

बहूरा चौथ

कमरछठ

आठे (कृष्ण जन्माष्टमी) 

राखी पुन्नी

तीजा

पोरा

सुरहोती

धुड़ेड़ी

नाँगपाँचे

पुन्नी

नवरात्रि

दशहरा

धनतेरस 

देवारी

गोवर्धन पूजा

मातर

जेठौनी

कार्तिक पुन्नी

आँवला नवमीं 

छेरछेरा

मांघी पुन्नी

शिवरात्रि 

बसंत पंचमी 

होली

अक्ती

नगपाचे

रामनवमी

भाई दूज

बेटा जुतिया

भाई जुतिया


छत्तीसगढ़ के छत्तीसगढ़ी में रुख राई के नाम

 छत्तीसगढ़  के छत्तीसगढ़ी में रुख राई के नाम


आमा

जाम, बिही

अरम पपई -पपीता 

जामुन -चिरई जाम, राय जाम

बोइर

गंगा  बोइर

अमली

चार 

तेंदू

भेलवा

डूमर

आँवरा- आँवला

हर्रा

बहेरा

मुनगा

बोहार भाजी

मीठा पत्ती सब्जी के, मीठा लीम

लीम

छीता -सीताफल

मोकइया

छींद पेड़ 

केला, केरा

बेल -बिल्व 

शहतूत

बोरझरी बोइर

नरियर

पेम खजेर

कोसम

करन

साल

साजा

सिरहूट

परसा पेड़ 

गुलमोहर 

बमरी

सो बबूल

कसही

कटहर

कायत

धंवरा 

कर्रा 

अकोल


गस्ती

डूमर

मेंहदी

बाँस

कसही

बड़ -बरगद

पीपर

सेगोन

भिरहा

सेम्हर

बलियारी

काँशी

परसा 

सरई

आमा

तेंदू

चार

गुलमोहर





बिजरा

करही

सिरहुट

बर - बरगद

पीपर - पीपल

लीम - नीम

बॉस

मउहा - महुआ

पास पेड़

परसा

कोइलार

मेहँदी

गंधीरवा 

जाम - जामुन

तेंदू

आँवला

बोहार

मीठा लीम

धतूरा

लटकना

मुनगा

अगास मुनगा

शो लीम

छिता पेंड

अगस्ति

मोकइया

गस्ती

अकोल


तिनसा

कर्रा

धवरा -धावड़ा

कुर्लू

सरगा

मुड़ही

बेल- बिल्ब

कायत- काँयत

कटहर कटहल

जामून- जाम

जाम -बिही ( अमरुद)

खैर

शहतुत

खम्हार

बरगा

अर्जुन

बहेरा 

हर्रा


करन

साल

गुलमोहर

बालबम्हरी

शिवबंबुल/सोबम्बुल

महा लीम

बोरझरी

गोटारन

कसही

बेल

छीन

नरियर

खजूर

कटही

कोसम

बोइर

कैत कैथ

द्वारा-छंद परिवार

मनखे मनके ओन्हा-बिछाना, साज संवागा-

 मनखे मनके ओन्हा-बिछाना, साज संवागा-


जइसे


कथरी

सुटर, स्वेटर 

कंटोप

टोपी

कनचप्पी

पागा

फेंटा

पटुको, पटका, साफा

लुहँगी

लुगरा

उरमाल, साफी

खीसा

बटन

अँचरा

कुरथा

बंडी


चद्दर

सलूखा

कम्बल(कमरा)

धोती

पैजामा

लुगरा

पोलखा

साया

शाल

मोजा

बिछोना

गोदरी

 सुपती, सुपेती

सुपती खोल

रजाई

सरकी

तखत

पीढ़ा

दरी

फट्टी

बंगाली

बूट

पनही

चप्पल

नाड़ा

पैजामा


द्वारा-छंद परिवार

शरीर के अंग के नाम

 शरीर के अंग के नाम


मूड़/मूड़ी

चेथी

गला

कपार

चुंदी

नरी

हाड़ा

माँस

पोटा

माड़ी

जाँघ

हाथ

गोड

कोहनी

घुटना

अंगरी (अंगुली)

माई ॲंगरी 

छिनी ॲंगरी

डूड़ी ॲंगरी

अंगठा

नख

मुँह

आँखी

कान 

नाक

दाँत

जीभ

कनिहा (कमर)

पीठ

बिनऊँरी

ऐडी

बाखा

भुजा

छाती

पेट

ओठ

माथा

गाल

डाड़हा

कनपट

मसूड़ा, मसकुरा

घेंच

टोंटा

पखउरा

पक्ती

बोर्री-नाभी

कुल्हा

पिड़री

तरपवॉं

नखसूत

खखौरी


छंद परिवार

बछर दू हजार बीस मा का पाएन,का गँवाएन*

 *बछर दू हजार बीस मा का पाएन,का गँवाएन*


कहे गे हे समय के चक्का घूमते रहिथे वो कभू एक जगा ठहरे नइ राहय। ए समय के धारा म बहुत कुछ बोहाके अथाह काल-सागर म समा जथे। एक पल नाहकिस तहाँ ले दूसरा पल आ जथे।दूनों म कोनो मेल नइ राहय। हाँ, अतका जरूर हे--गुजरे पल हा अपन पिछू कुछ चिनहा अइसे छोड़ देथे जेमा कुछ ल घेरी-बेरी सुरता करे के मन होथे त कुछ ल तुरते भुलाये के मन करथे। बादर कस उमड़त-घुमड़त कुछ सुरता मन मीठ-मीठ त कुछ जहर करुवा लागथे।

    असनेच कहानी चंद दिन के मेहमान बछर दू हजार बीस के हाबय ।एकर पन्ना ल पलटे  म उपलब्धि के तथाकथित बड़े बड़े कहानी जइसे कश्मीर ले अनुच्छेद 370 अउ धारा 35 A के हटना, तीन तलाक कानून, राम मंदिर निर्माण बर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसला अउ ओकर बिना खून-खराबा,बिना दंगा फसाद के आम भारतीय मन के सहर्ष स्वीकार करना आदि संगे संग कोरोना काल म तको कुछ राज्य म सफलता पूर्वक चुनाव ,चंद्र अउ मंगल अभियान, अटल टनल के निर्माण, अनेक पूल ,बाँध ,सड़क, भवन के निर्माण के कहानी लिखाये मिलथे। ए सबके गिनती बछर दू हजार बीस म पाये जिनिस कोती करे जा सकथे।

 समाजिक रूप ले देखन त बछर दू हजार म आये कोरोना संकट ह  दया,मया अउ सहयोग के भावना ल जगाये अउ बढ़ाये के काम करिस। देश प्रेम अउ एकता के भावना ल बढ़ाइस। कई महिना के लाकडाउन बखत अभाव म जिये ल सिखाइस। डाक्टर, पुलिस मन अपन जान के बाजी लगा के सेवा के उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करिन। परिवार म मेल जोल बढ़िस। 

  ए तो निर्विवाद रूप ले कहे जा सकथे कि दू हजार बीस म पर्यावरण  बनेच सुधरिस हे।

    अब अगर खोये का हन म बिचार करे जाय त गुनत गुनत माथा फट जही फेर खोये के गिनती नइ करे जा सकय। सबले पहिली नम्बर म विश्व व्यामी कोरोना संकट ह आही जेन ह लाखों मनखे मन ला मार डरिस।  मजदूर-गरीब मन जीते जी मरे बरोबर होगें। हजारों हजार मनखे मन के रोजी-रोटी छिनागे ।कतको परिवार ,देश अउ उद्योग धंधा चौपट होगे। राजनैतिक रूप ले मजदूर गरीब के सेवा के डंका पिटइया मन के ढकोसला टकटक ले देखे ल मिलिस।  बड़े बड़े हत्या, लूट अउ घृणित बलत्कार के दाग , जात-पात अउ धर्म के नाम म  अत्याचार तको होइस।

     कुल मिलाके हमर विचार ले ये दू हजार बीस के बछर ह अइसे अइसे चोट दे हे के सुरता करके जी घबरा जथे।


चोवा राम 'बादल'

नवा बछर-पूरन लाल जायसवाल

नवा बछर-पूरन लाल जायसवाल


 बछर दू हजार इक्कीस अवइया हे यानी दू हजार बीस साल भर पहिली जेकर स्वागत हम बड़ खुशी खुशी करे रहेन एक दू दिन मा जवइया हे।

समय वो चाहे पल हो घड़ी हो सेकंड, मिनट, घंटा, दिन, हप्ता, महिना हो चाहे साल हो गुजरेच खातिर बर आथे। कहे बर तो कहे गे हे- "बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि लेय।" फेर का ये अतका सरल होथे। अवइया दिन मन सही बीते बेरा मन भी अउ खासकर वो बेरा ले जुड़े सुरता अउ भावना मन भी हमर जिनगी के अइसे हिस्सा बन जाथे कि नइ चाहत हुए भी बेरा-कुबेरा हमर दिल दिमाग के अगास मा बादर कस घुमड़े लग जाथे।


थोकन व्यक्तिगत होवत कहँव तव मँय बहुत ही नीरस व्यक्ति अँव। सब दिन ला एके बरोबर जानके कोनो परब, कार्यक्रम मा उत्साह ले कम भागीदार रहिथौं, व्यवहार निभा मा कमी भी नइ करँव, हाँ, कखरो उत्साह ला कम नइ करँव। फेर कहूँ बछर दू हजार बीस के बात करँव तव। ये बछर हर मोर जिनगी भर के अनुभव ऊपर भारी, बिल्कुल अलग अउ झकझोर देने वाला हे। कहिथे समय अउ विपत्ति सबले बड़े गुरू होथे। बछर दू हजार बीस बर ये सिरतो लागू हावय। अउ सब ला आत्म-अवलोकन कराइस।


साल शुरू भर तो होय रहिस कि लॉकडाउन ... स्कूल, कॉलेज, दुकान, संस्थान सब बंद। सब मनखे घर मा धँधाय बर मजबूर होगेन। गाँव-गली, शहर, प्रदेश, देश नहीं पूरा दुनिया रुकगे। जी, मँय कोरोना (बीमारी, अजार, महामारी, आपदा, संकट काय ये अब तक अस्पष्ट हे) के बारे मा गोठियात हँव। जेकर कारण से पूरा देश दुनिया मा जिनगी के गाड़ी हा रुके भर नइहे बल्कि पटरी ले उतर गेहे।


 ये बछर हर कतको राष्ट्रीय उपलब्धि बर भी सुरता करे जाही, संगे संग कतको अपन प्रियजन ला भी हमन खोय हन, वोहू मन के सुरता सताही। तब ले अवइया बछरो-बछर तक ये बछर हर कोरोना बर ही सुरता करे जाही। कोरोना ले कहन तव सबले जादा नुकसान गरीब, मजदूर मन के रोजीरोटी छिना जाना अउ हमर देश के भविष्य नौनिहाल मन के बछरभर के पढ़ाई ठप्प हो जाना आय। ये बछर के आखिरी बेला मा वैक्सीन के बनना हर राहत तो देवत हे, फेर कोरोना वाइरस के देये घाव ला भरे मा अउ वोकर निशान ला मिटे मा कतको बछर खप जाही।


तब ले दुख ला बिसार के सुख अउ आनंद के संभावना खोजना, निराशा ला भुलाके आशा के दीया बारना, रद्दा के काँटाखूटी अउ ढेला पथरा ला टारत आगू बढ़ना, असफलता ला पीछू छोड़के सफलता के नवा आयाम गढ़ना जिनगी आय। ये सब ला समझत अउ धियान मा रखत नवा बछर ले हर बार बरोबर हमर आशा जुड़े हे, हमर सपना के गोंदा फूल फेर फुलही, महमहाही। हम जुन्ना सब हताशा ला भुलाके अवइया नवा बछर के हर बार बरोबर नवा बहुरिया कस पूरा ऊर्जा, आनंद अउ उछाह ले स्वागत करबो।


पूरन जायसवाल

बछर दू हजार बीस म का पाएन अउ का गँवाएन*

 *बछर दू हजार बीस म का पाएन अउ का गँवाएन*

       कहे जाथे कि समय के आगू कखरो नि चलय। मुठा म धरे रेती बानिक कब हाथ ले बिलम जथे, गम नि मिलै। अउ कहूँ अगोरा म रहिबे त बेरा पहावय नहीं। मन बइरी अगोरत अगोरत धं अँगना धं परछी करथे। अगोरा कब सिरावय लगथे। एक-एक छिन भारी हो जथे। दुख के घड़ी पहाड़ बरोबर हो जथे। एक-एक दिन एक -एक जुग जनाथे। कुछु हो समय अपन संग कतको अनभो लेके आथे, अउ चल घलव देथे। ए अनभो मन छाती म कतको घाव करथे, त कोनो-कोनो ह घाव बर मरहम घलव बन जथे। जउन ह जिनगी के कोनो पन्ना सरिख उलटत-पलटत नवा सिखौना बन के दंगदंग ले ठाढ़ हो जथे। इही हाल दू दिन बाद दू हजार बीस के होवइया हे। जउन अपन ओली म कतको करू-कस्सा अउ मीठ सुरता ले के हमर ले विदा हो जही। जउन ल अपन ओली म लुकाय लाय रहिस। जेकर परछो हम ल ओकर गुजरे ले होवत गिस। 

       जउन बने लगिस तउने ल पाय हँवन त जउन ह हमर मन म घाव कर दिस, हम ल चार आँसू रोवाइस। ओ बेरा हमर काँही कुछु गँवाए के गवाही बनगे।

*सामाजिक*-- दू हजार बीस सामाजिक रूप ले कतको बछर ले सुरता करे जाही। लॉकडाउन के लगे ले सबके खानपान एक जइसे हो गे। जेकर ले अभाव का होथे? साधन-संपन्न मनखे ल घलव पता लगिस। अभाव म कइसे जीना चाही सबो ल सीखे मिलिस। कतको दाई-ददा मन के हाथ पिंवराय के सपना सपना रहिगिस, त कुछ मन बर बरदान घलव बनगे अउ दुखम-सुखम सात-भाँवर  के परे ले आनी-बानी के ताम-झाम के खरचा घलव बाँच गिस। कोरोना काल म सामाजिक दूरी के चलत कतको सामाजिक आयोजन नि होना भविष्य बर शुभ अउ अशुभ दूनो कहे जा सकत हें। गणपति पूजा, नवरात्रि, छोटे बड़े तीज-तिहार के नि मनना  साँस्कृतिक रूप ले जोड़े के मउका ल आड़ कर दिस। उहें बर-बिहाव अउ आने सामाजिक कार्यक्रम म संख्या सीमित होय ले खरचा के कमतियाना, समाज बर शुभ कहे जा सकथे।

*आर्थिक*--- दू हजार बीस के करिया छइहाँ आर्थिक जगत ल सुरसा कस लील दीस । लॉकडाउन लगिस त फैक्ट्री, हाट-बजार दूकान सबो बंद। बिकास के चक्का थमगे। मजदूर वर्ग के रोजगार छीनगे। अवसरवादी मन कालाबाजारी करे लगिन। चीज के माँग बढ़िस त महँगई छानही म चढ़ नाचे लगिस। गरीब-मजदूर मन लाँघन भूखन दूर-देश ले घर दुआर लहुटिन।सबके कनिहा-कूबर टूटगे। चक्का थमे ले मोटर गाड़ी वाला मनके चेत हजागे। कुल मिलाके काहन त आर्थिक जगत के गाड़ी असो बेपटरी हो, एक्सीडेंट होवत ले दे के बाँचे हवै।

*स्वास्थ्य*--- मन चंगा त कठौती म गंगा कहे गे हे। फेर असो कोरोना के आय ले सबके मन डरे-डरे हे, आन के तान होत हवै। तन बने रहे म मन घलव बने रहिथे। तन कब काकर सपेटा म बिगड़ जही, एकरे गारंटी नि हे। अइसन म मानसिक रूप ले कतको के संतुलन बिगड़े हे, अउ मानसिक टेंसन, मोटापा, ब्लड प्रेशर, चिड़चिड़ापन बाढ़गे हवै। ए पीरा असो के बड़े घाव आय जेन भरे म बेरा लिही।

*शैक्षिक*---- शैक्षिक गतिविधि पूरा बछर भर घला गे। न स्कूल-कालेज खुल पाइस, न बरोबर परीक्षा हो पाइस। स्कूल कालेज के नि खुले ले पढ़ई के विकल्प ऑनलाइन आ तो गे जउन भविष्य बर अच्छा प्रयोग कहे जा सकत हे। फेर अभु एकर सफलता कतको कारण ले लक्ष्य ले कोस भर दुरिहाच हे। जुन्ना तरीका ले सरलग पढ़ई नि होय ले, एक ठन खाई बनगे, जेन ल पाट पाना बहुत मुश्किल हे। जउन ढंग ले परीक्षा आयोजन होवत हे या योजना देखे-सुने म आवत हे। ओकर तुरते फायदा दिखत हे। फेर लइका मन के नेंव कमजोर होवत हे। बहिरफट लइकामन ल पढ़ई ले जोर पाना अउ मुश्किल होही। जेकर दूरगामी प्रभाव पूरा समाज बर घलनहा होही।

*राजनीतिक*--- राजनीतिक उठापटक देश म अस्थिरता लाथे। लोकतंत्र के नींव ल कमजोर करथे। मध्यप्रदेश म कुर्सी दउड़ बर जउन कुछ होइस वो लोकतंत्र बर अच्छा नि कहे जा सकय। अपन माँग अउ सरकार के कोनो फैसला नीति के विरोध म आंदोलन होना चाही। फेर आंदोलन मन के लम्बा खींचे जाना सत्ता पक्ष के विफलता कहे जा सकत हे।

*साहित्यि*--- ए बछर साहित्यिक आयोजन बर जुराव पाछू बछर मन ले कम होय हवै। पत्रिका मन के प्रकाशन सरलग होइस, फेर ऑनलाइन ई-पत्रिका के प्रकाशन साहित्यिक नवाचार के रूप म आगू बढ़िस। ऑनलाइन जुराव ले साहित्यिक गतिविधि के चलना साहित्य अउ समाज दूनो बर शुभ संकेत आय।

         जीवन-मरण जमाना के अकाट्य सच आय। जेकर जनम होय हे, ओला ए दुनिया ले एक दिन जानाच हे। अवई कस जवई ओसरी-पारी होथे। कोनो अतेक आगू चल देथे कि ओकर बर दुनिया कहिथे, अभी नइ जाना रहिस। फेर ए अवई जवई म हमर बस नि चलै। अतके दिन बर आय रहिस, कहिके मन संतोष करे के सिवा कोनो चारा नि रहे। कोनो सहज गिन त कोनो घटना दुर्घटना ले त अउ बहुते झन कोरोना ले चल दिन।

      इही ढंग सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, साहित्यिक जम्मो क्षेत्र ले कतको हमर संग छोड़ दिन। उन सब ल सादर श्रद्धांजलि।

        दू हजार बीस अपन संग कोरोना ल ले के जाही, अउ जिनगी के अँगना टीका के फुलवारी ले महमहाही, इही आस के दीया जुगजुगावत हे।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (बलौदाबाजार