Saturday 23 January 2021

अज्ञातवास -हरिशंकर गजानंद देवांगन छुरा

 अज्ञातवास -हरिशंकर गजानंद देवांगन छुरा

                  अपन हक ले बंचित ..... पांडव मन के भाग म लिखाये अज्ञातवास हा .... कलजुग म घला पीछू नि छोरत रहय । अज्ञातवास के कलजुगी समे म .... द्वापर जुग कस .... यक्ष ले इंखर मुलाखात ...... पानी लाने के बहाना तरिया म फेर हो जथे । कलजुगिया यक्ष हा .... इही बहाना ...... इंखर मन के योग्यता के परीक्षा के बात घला करथे । अपन प्रस्न के बिगन जवाब पाए ....... पानी पीना तो धूर ओला छूये बर तको मना कर देथे । पांडव मन एक के पाछू एक ....... परीक्षा म फेल होवत जाथे ....... अउ मूरछित होके भुंइया म गिरत जाथें । धर्मराज हा फिकर करत ....... अपन भई मनला खोजे बर निकलिस ..... त देखथे ....... चारों भई मूरछित परे हे । मउका ल समझगे धर्मराज । द्वापर के समे के सुरता आगे । सुरता आगे उही सब गोठ बात के ....... जेकर सेती ....... ओखर भई मन ला ...... यक्ष के प्रकोप सेहे परे रिहीस । दूसर कोती ...... यक्ष ल घला विस्वास रिथे के ....... इही मोर प्रस्न के समाधान करही । धर्मराज ल ……. यक्ष जइसे देखथे ...... ओला सावधान करके ....... अपन प्रस्न ल सुरू करथे । के घांव प्रस्न के जवाब मांगही - अइसे धर्मराज सोंचत हे । उही – उही प्रस्न फेर करही ...... उही – उही उत्तर ल फेर दूंहूं ....... अउ अपन भई मनला एकर चंगुल ले छोड़ा लूंहू । 

                 यक्ष पूछना सुरू करत किहीस – भूखहा अऊ नंगरा कोन हे अभू ? उत्तर बड़ सरल रिहीस । जेकर करा खाए के एक दाना निही ...... अउ कतको दिन ले .... जेला खाए बर नि मिले हे ......... पहिरे बर जेकर करा चेंदरा निही ……. उही मनखे भूखहा अऊ नंगरा आय । फेर धर्मराज सोंचिस ....... अइसन जवाब .... मोर भई मन घला दीन होही । धर्मराज समझगे अऊ सोंचें लागिस - महू इही ल कहूं ..... तंहले ...... मोरो उप्पर भड़क जही यक्ष हा ...... अउ महू ल मूरछित कर दिही । महूं एकर कैदी हो जहूं ...... त पांडवमन के कुनबा खतम हो जही । अभू के स्थिति परिस्थिती ल आगू म रखके उत्तर दूंहू ...... तभे बांचहूं । धर्मराज केहे लागिस – भूखहा वो नोहे जेकर तिर खाये बर दाना निये या जे कतको दिन ले खाये निये बलकि भूखहा वो आए जेहा ....... न केवल अपन बांटा के चीज ल खावत बोजत हे ....... बल्कि ....... दूसर के बांटा ल घला खा बोज के पचोवत हे ........ अऊ अपन लोग लइका मन बर अवेध किसिम ले सकेलत बटोरत हे । अउ अतकेच म मन नि माढ़त हे बैरी मन के ...... भूख अऊ कतको बाढ़तेच जावत हे । अउ नंगरा  …. वो मनखे आए …….. जेमन झकाझक सादा कुरता म अपन आप ल लुका के ........ देस के पबरित जगा म नंगई करत हें । जेती देख तेती ...... नंगरा नाच हा जेकर इसारा म चलत हे ........ उही मन नंगरा आए । चेंदरा नि पहिरइया मनखे फकत बदन के नंगरा आए ....... फेर चाल अऊ चरित्तर ले नंगरा ...... ये सफेदहा कुरता वाला मन आए । यक्ष ला अपन प्रस्न के पूरा जवाब नी मिलिस । 

               यक्ष फेर पूछे लागिस – तैं कइसे कहि सकत हस के ....... ये सफेद कुरता धोती वाला मन नंगरा आए ....... अउ बिन कपड़ा के मनखे ....... नंगरा नोहे ? धर्मराज बतइस – कपड़ा के संबंध इज्जत तोपे ले होथे । गरीब करा न देखाए के कुछु ..... न तोपे बर कुछु ...... तेकर सेती ...... कुच्छूच लुकाए के जरूरत नइये वोला । अउ सफेद कुरताधारी मनखे मन ....  उही ल घेरी बेरी तोपे के प्रयास म लगे रहिथें । एकर मतलब ये आय के जे नंगरा रहि ........ तिहीच तो तोपही अपन देहें ल । मोर समझ म ...... इही तोपइया मन नंगरा आए । 

             यक्ष के दूसर सवाल - ईमानदार कोन आए ? धर्मराज समझगे रिहीस ...... एला कइसने उत्तर चाही । वो किथे - अभू ईमानदार उही मनखे आय ...... जेला बेईमानी के कोन्हो मउका नि मिले हे । जेला मउका मिलिस ओकर ईमानदारी कोन जनी ....... कते कोती धारे धार बोहागे ।

             ओकर तीसर सवाल - गरीब कोन ? धर्मराज तियार रहय एकर बर । वोहा बताइस – गरीब वो नोहे जेकर करा जरूरत के धन सम्पत्ती नइये ....... अउ विलासिता के रंग रंग के समान नइये। गरीब वो आए ...... जे अरबों खरबों कमा के ...... सिरिफ पइसा के बारे म सोंचत रहिथें । केवल पइसा ल भगवान अउ आवसकता समझथे ।

             यक्ष संतुस्ट होवत जावत हे । चउथा सवाल करिस - चोर कोन आय ? धर्मराज सोंच में परके केहे लगिस - इहां चोर केउ परकार के हाबे । फेर बड़का अउ देस ल बड़ नकसान पहुंचइया चोर वोमन आए ……. जेमन अवेध रूप ले सरकार के पइसा पचावत ...... देस ल चूना लगाके ...... देस बिदेस म चीज बस सकेलत हाबे । जे मनखे ला इल्जाम लगे उप्पर ले ...... बदनामी के डर नि रहय ...... देस ल फोंगला करइया उही मनखे मन चोर आय । यक्ष समझगे ..... अउ सोंचे लागिस ....... कास तोरे कस ...... जम्मो परानी देस के बारे में सोंचतिस ...... त देस के अतीत कस ....... वर्तमान अउ भविस्य घला सज संवर जतिस । 

             धर्मराज थोकिन भाउक होगिस । तभे आखरी सवाल आगे – लचार .... असहाय कोन हे ? देस के जनता – नानुक जवाब दिस धर्मराज हा । यक्ष किथे - कइसे ? धर्मराज बतइस - देस के जनता हा ........ हमेसा धोखेबाज ...... चालबाज ....... चोर – उचक्का ....... बेईमान ....... भ्रस्टाचारी मन ऊप्पर बिस्वास करके उनला ....... अपन अगुवा बनाथे ...... ओकर करा एकर अलावा अउ कोन्हो चारा निये । जनता अपनेच अगुवा मन के द्वारा ....... लूट अऊ बलात्कार के सिकार हे ....... अउ हरेक दारी ........ अइसनेच मन ल ........ अपन अगुवा चुने बर मजबूर हे । अभू तुहीं मन बतावव – इंकर ले लचार अउ असहाय कोन हे ?   

            सब्बो सवाल के जवाब पागिस यक्ष हा । बड़ खुस होके केहे लागिस - मांग ले तोला जे चाही । मोर बस म होही ....... ते तोला जरूर दूहूं । धर्मराज यक्ष के ताकत ल जानय । वोहा अपन चारों भई ...... अउ अपन गंवाए राज पाठ ल ....... वापिस मांग पारिस । यक्ष सकपकागे अऊ धर्मराज के आगू निकल के केहे लागिस – तोर भई मन ल वापिस करत हंव मेहा । फेर तोर राज पाठ ल वापिस नि कर संकव ....... इहां लोकतंत्र हे अभू । इहां जनता अपन खेवनहार ..... खुदे चुनथे । में सिरिफ बाहुबली हंव ..... फेर एकर दुरूपयोग नि जानव ......। तोर खातिर मय यहू करे बर तियार हो जतेंव ..... फेर इहां सरकार बनाए बर ...... बाहुबल के संगे संग ...... धनबल अउ छलबल के घला आवसकता परथे । धनबल में कतको कस दे दूंहूं ....... फेर मोर करा छलबल बिलकुलेच नइये । राज देवा दूहूं कहना सिरीफ कोरा आसवासन ....... अउ सही माने म लबारी छोर कहींच नोहे । वइसे सच गोठ तोला बतावंव धर्मराज ....... तोर जइसे नियावप्रिय ...... सत्तवादी ....... ईमानदार अउ कर्तव्यनिस्ठ मनखे ....... ये देस म अब सासन करे के योग्य नइए । राज चलावन दे दुर्योधन मन ला । तैं लबारी नि मार सकस ....... खाए पतरी म छेदा नि कर सकस ...... कोन्हो बुरई के संग नि दे सकस ...... काकरो गलती के समर्थन नि कर सकस ...... काकरो बुरा होवत देख नि सकस ......., काकरो बुरा कर नि सकस ...... तेकर सेती तैं ...... राज चलाना तो बहुतेच धूर बलकी वो सभा समाज के डेरौठी म चढ़हे लइक घला नइ अस ....... जिंहा ले राज संचालित होथे । तोर से मोर हाथ जोर के प्रार्थना हे ...... तैं राजकाज के मोहो ल तियाग दे ...... अउ फेर वापिस रेंग अज्ञातवास तनी । अउ तब तक अगोर ....... जब तक भगवान मुरली मनोहर के अवतार नि होही तोर जीवन म । 

बपरा पांडव मन अभी तक किंजरत भटकत हे अज्ञातवास म ..... अऊ दुर्योधन अपन संगी साथी संग मटकत इतरावत देश ला सरबस बिनास तनी ढपेलत हे । भगवान घला .... को जनी कब ..... धरम के सासन स्थापित करे बर ...... धर्मराज ला खोज के ...... जनता के आगू लानही ?     

हरिशंकर गजानंद देवांगन छुरा

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