Sunday 10 January 2021

सरला शर्मा

सरला शर्मा


 आकाशवाणी के भक्तिसंगीत सुनत रहेंव ...मन भर गिस । 

   " सत्रु मित्र सुख दुख जग माहीं , माया कृत परमारथ नाहीं ।"

रामचरितमानस किष्किंधाकांड के चौपाई सुनेवं ...त गुने बर परिस के गायक हर शत्रु उच्चारण करिस सत्रु नहीं ...जबकि भाषा तो अवधी आय । 

     मीरा के पद प्रसारित होइस जगजीत सिंह के स्वर मं ...उन उच्चारण करिन परमार्थ , अविनाशी ..जबकि राजस्थानी मं परमारथ अउ अविनासी लिखे हे .... गुने बर पर गिस जगजीत सिंह तो पंजाबी भाषी रहिन जिन मन आधा अक्षर के उच्चारण पूरा करथें । 

  "  सदा रहति पावस ऋतु इनमें जब ते स्याम सिधारे " सूरदास के भजन आय जब गायक प्रस्तुत करिन त श्याम उच्चारण करिन । जबकि सूरदास के भाषा तो बृज आय । 

    संगवारी मन ! मैं गुनत हंव के भाषा कोनो होय प्रस्तुत करइया हिंदी उच्चारण ल ध्यान मं रख के ही शब्द के उच्चारण करथे । हमर छत्तीसगढ़ी हर तो इही मन के बहिनी आय फेर हमन उच्चारण ल हिंदी अनुसार काबर नइ करबो । राजस्थानी , अवधी , बृज भाषा के लिपि भी तो देवनागरी आय उन्हूं मन तो 52 अक्षर ल मानथें , संस्कृते हर तो इन सबो के महतारी आय । 

माने बर परथे के कविता लिखत समय मात्रा , पद , भार ल सम्हारे बर घट बढ़ होथे फेर गद्य रचना के बेर तो साहित्यकार स्वतंत्र रहिथे त  शुद्ध उच्चारण जनित शब्द के प्रयोग करना चाही न ? वाक्य रचना , लिंग विधान , काल , वचन तो छत्तीसगढ़ी मं एके असन हे । 

    मैदानी इलाका के छत्तीसगढ़ी तो लगभग समान जरुर क्षेत्रीयता के प्रभाव होथे त ओहर बोलचाल के भाषा आय । साहित्य के भाषा हर तो थोरकुन अलग होबे करथे अउ उही मं एकरूपता आही त अपने अपन मानक छत्तीसगढ़ी तियार होवत जाही । मूल बात तो व्याकरण के होथे जेहर एके ठन हे । भाषा के विकास बोलचाल के भाषा से शुरू जरुर होथे फेर ओला प्रतिष्ठा मिलथे ओ भाषा मं लिखे साहित्य से । 

   डॉ सुधीर शर्मा द्वारा स्थापित , अरुण निगम के एडमिन बने ले अउ आप सब गुनी मानी लिखइया मन से छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर पटल गद्य ल पोट्ठ करे के सराहे लाइक उदिम करत हे  जेहर बड़ खुशी के बात आय । सबो झन थोरकुन ध्यान देबो त छत्तीसगढ़ी गद्य अवइया दिन मं जगर मगर करही इही गुन के लिखे हंव । 

   सरला शर्मा

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