Wednesday 20 March 2024

तेल निकलगे बाबूजी* (ब्यंग)

 *तेल निकलगे बाबूजी*

        (ब्यंग)        


              कोनों जरूरी नइये कि घनिहा मन ही तेल निकाले। जेकर मा दमखद हे ओहू तेल निकाल सकथे। जाँगर पेरे ले पसीना चुचवाथे। चुकता मनखे के जिनगी पेराथे तब तेल निकलथे। 1950 के जनम धरे 75 साल होगे। ये तो बने होगे कि आधा उमर मा मरे नइहन। एकर सेती बता सकथन कि, जे तेल ला खटारा दू चकिया मा  30 रुपिया मा भरा के पाँच गाँव किजरन, आज सौ पार होके हमर तेल निकालत हे बाबूजी। जे तेल 30 रुपिया मा कड़ाही भर खुसर के होरी देवारी के तेलई मनवा देवय आज हमर तेल निकाल के तिहार पुरोवत हे। जेकर तेल बजबजावत हे वो मन आस्था के सवा लाख  दीया ला घींव मा बारत हे। महूँ नौं दिन ले जोत जलाय के बदना बदे रेहेंव। फेर तेल बर तेल निचोय बर परत हे। कोनों धर्माचारी अतके कहि देय कि अंग भभूति चुपरे ले सुंदरता बाढ़थे। तब कम से कम तेल तो बाँचतिस।

           एक झन राष्ट्रीय ब्रांड के तेल पेरुक ला पूछ पारेंव कि तोला तेल निकाले के गुन कते मंडली ले मिलिस?  तेल निकाले बर कच्चा माल कहाँ ले लाथस? आखिर ये तेल ला कते बजार मा खपाथस? कोनों खेमा के गमछा टाँगके पूछे रतेंव तबतो मोरे तेल निकलना तय रिहिस। बिचारा जेती बम ओती हम के बिचारधारा ले पनपे बुद्धिमान घनिहा के भूमिका बनाके विस्तार दिस कि, जेकर हाथ मा ई डी सीडी सी बी आई हे ओकरे ले सिखना परथे कि कब काकर कइसे तेल निकालना हे। कच्चा माल तो सहिष्णुता धारी मन टरक टेक्टर मा भर भरके लाथे अउ दुवारी मा खपल के जाथे। हम थोक के भाव मा मिडिया वाले ला बेंच देथन। जे मन अँइलाय भाजी तक मा पानी छींच छींच के भागा मा बेंच के आमदनी बटोरथें। अइसन प्रायोजित प्रक्रिया के प्रायोजक उन गरम मसाला के बेंचइया मन रथे जेन ला मसाला खाये बर परहेज हे। लाभ हानि के तराजू मा झूलत मनखे  मितान ले घलो फायदा के कायदा खोजत रथे। ये नीयत ला नीति मा परखे जा सकथे। अर्थ नीति ये कथे कि नीजि फायदा ला गीनत ले  छापामार वाले मशीन भले थक जाय, फेर देश अउ आम जनता के तेल निथरत रहना चाही। इन मन वो घनिहा आय जे मन खरी के बरी बनाके आमदनी कमाथे। आखिर मा हमरे तो तेल निकलथे बाबूजी। 

                   एक वो मन जे मन जुट्ठा बोइर अउ भूँजे ताँदुर खवाके अपन तेल बचालिन। हमर असन भगत मन ला खुद अपन होके जाये बर व्ही आईपी पास बनवाके एक हजार एक के तेल चघाना परथे। भगवान घलो जान गेहे कि लोकल के तेल मा वोकल के असर कम होथे। सद्भावना यात्रा ले जुड़ के रेंगे मा देखेन कि मंदिर के आगू मा मस्जिद नइ होना। चर्च गुरुद्वारा आपस मा गला नइ मिल पावत हे। हम बुलबुले हैं इसकी ये गुलशितां हमरा आज बर निही बीते काली बर लिखे गेय रिहिस। बदलाव के कारण अतके हे कि अब राजनीति हर राष्ट्रीयता अउ धरमनीति के पाठशाला चलावत हे। जेकर बर बीच बीच-बीच मा मठाधीश गुरुजन के अवतरण होवत रथे। इही अवसरवादी चादर चढ़इया अउ घंटा बजइया मन मनखे जात के मूल धरम, कइसे एक दूसर बर दाँत कटरे जाथे, सिखाथें। जेकर ले प्रेम दया करुणा सद्भाव के तेल निकलत रहय। जब मनखे जोड़ो भारत जोड़ो सद्भावना रैली निकलथे। इन मन ला लगथे कि हम छरिया हावन अउ इँकरे जोरे ले जुड़बो। तभे समझ मा आ जथे कि हम सब छरियाय हावन। इँकर दुहना फुटगे तब नवा कसेली खोजे के लचारी खेल तमासा ले कम नइ दिखे। 

            मितानी तो एके इसकुल मा पढ़त ले रिहिस। हम नाँगर धरे हन वो देश के नब्ज धरके संसद मा जमे हे। मोर काम परिस तब चमचा पीए सीए सबके तेल लगाय बर परिस। तभो नकाम हो गेन। हमरे तेल के चपचपहा धार ले पाँच साल राजभोग करही। ओकर बाद तो मीठा तिलक तेल धरके आही। मस्तान सिंग मन ला ये गम नइये कि अब देश के 140 करोड़ मन घलो  तेल निकाल देथे। हारे दाँव मा सपट के कहिहीं कि तेल निकलगे बाबूजी। 

           बड़े बड़े कॉर्पोरेट घराना के उत्पादन ले करघा चरखा के तेल सुखागे। फेर अतका हे जे मन खादी धारन करथे वोला उच्च कोटि के घनिहा माने जाथे। चस्मा उपर स्वच्छ भारत लिख के तोर मान बढ़ावत हन बापू। एकर ले आपला गरब होना चाही। कि सैगोना कतको सरगे हव तभो ले एक पाचर के बाँचे हव। बस रुपिया उपर के तोर छापा हटाये के साजिश सफल झन होवय। नइते तहूँ मन कहू कि अब तेल निकलगे बाबूजी। 

            अम्बेडकर के आत्मा ला चिट्ठी लिखके पूछ पारेंव कि तोर भरोसा के तेल निकलत हे साहेब। जे मन ला समता समरसता समानता के बाना धराय रेहेव। वोमन प्रतिष्ठा बचाय बर प्राण फूँकत भव्यता के नाम चंदा वसूली मा लगे हे।  का ये समरसता के काठी कफन के तइयारी तो नोंहे? नारी जात मन पढ़ लिखके बड़का उपलब्धि बटोरत हें। जे मन जादा पढ़ डारिन ते मन नवा संसकार अउ नवा संस्कृति मा फूले के किताब ला सान के जराय बर प्रतिवादी संघ के लूठी खोजत हें। चिट्ठी के जवाब भले झन आय फेर अतका जरूर लिखतिस कि हमर पसराय पोटारे ज्ञान के तेल निकलगे बाबूजी। 

          मनखे मनखे एक समान के विचारधारा ला एकर सेती चुनौती देना परत हे कि सब समान हो जही तब सामाजिक समरसता के तेल कइसे निकलही। गरीबी रेखा के खिंचइया मन ला तो घलो सुभिता मिलना चाही। जेन चौंरा मा बइठ के दुख सुख बाँटे जावे। उँहा झूठ के चेंदरी मा सभ्य समाज ला पोछा लगाये जावत हे। मँझोत परछी मा दिखावा के बाहरी परत हे कुरिया ला बहुरुपिया मुसवा वोकारत हे। सुम्मत अउ एकता के धारन पटिया ला वो कीरा घुन्ना खावत हे जे धारन ला खड़ा करे मा उँकर पुरखा मनके तको हाथ नइये। आज धन धरती अउ राजपाठ इँकरे बाप के बफौती हो गेहे। बस नजर लमाके देख हक अउ सहिष्णुता के तेल निकलत हे बाबूजी। निजी मालिकाना के तेल खतखुरहा झन होय। एकर बर सर्व धर्म संभाव के राष्ट्र मा तनातनी के वादी मन राष्ट्रव्यापी छँदनी के जुगाड़ मा लगे हे जेकर ले काकरो न काकरो संकल्प तो पूरा हो सके। 

        परबत चीर के निकलने वाला भागीरथ गंगा दूनो भगत ला तारत हे एक वो जेकर तेल निकलगे। दूसर वो जेमन तेल निथारे बर तइयार खड़े हें। पुन्य परब मा नहवइया अउ काबा मदीना मा चद्दर चढ़इया के भीड़ ले पता चलथे कि पाप धोवाने वाला कतका झन हे। पूस माघी पुन्नी बर मोला अउ मोर मितान ला नहाय के जरूरत नइ परिस। काबर कि एकर सँग हम संझा डिस्पोजल सँग मिलाके चखना सँग आत्मसात कर के तर जाथन। तब डूबकी लगाके जल प्रदूषण करना नइ चाहन। हमला धार मा डूबकी लेय के जरूरत नइ परिस वोकर कारन ये हे कि हम दिखावा के जग रैदास ला खड़ा कर देथन। अपन तेल बचाके दूसर के तेल निकलइया ला गंगा जी चुकता जल समाधि नइ करवाही तब तक पाप धो धो के मइलाय परत रही। तब चिचियाही कि बेटा हो तुँहर तरन तारन करत ले मोरे तेल निकलत हे। जे मन चुरवा मा भर भर के किरिया खावत रथे अइसन भागीरथी के सात पीढ़ी ला  तारत ले गंगा कतका गंदा होवत हे, सरकारी आँकड़ा बताही कि सफाई बर सरकार ला कतका तेल बोहाना परत हे। 

            बाजारवाद के घानी मा बैपारी मन तेल निकालत हे। इँकर उपजारे मँहगाई मा गरीब मन के तेल निकलत हे। धरम सम्प्रदाय के घानी मा वादी प्रतिवादी मन अतका पेरत हें कि मानुसपना के तेल निथरत हे। आस्थावादी ठेकादार मन आँखी मा टोपा बाँधे वाला बरदी सकेलत हें। समरसता के घानी ले निकले खरी मा घलो जागरूकता आये के खतरा दिखथे। एकर ले खरी के बरी बनाके आडंबर के तरिया मा सरोय जावत हे। 

        आदमी एक अउ तेल निकाले बर भूख गरीबी मँहगाई बेरोजगारी लूट घूस धरम के कट्टरता ले पगलाय विचारधारा व्यवसाय के करिया बजार से ले के हपसी वहसी समाज सबके घानी तइयार हे। बाँचे बर कतका अउ कहाँ कहाँ भागबे। आखिर तो तेल निकलना ही हे बाबूजी। 


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

कहानी : मुड़ के बोझा*

 *कहानी : मुड़ के बोझा*

       संझा के बेरा रहिस। बुड़ती मुड़ा म बेरा धीरलगहा ढरकत रहिस। बुड़ती बेरा के सेंदूर लाली ले अगास के सुघरई ह मन ल मोहत रहिस। थोरकेच बेर म अँधियार अँजोर ल लीले ल धर लिस। खेती-खार अउ गँवई-गाँव म रतिहा के आरो देवत अँधियार के कब्जा होय लगिस। शहर के सड़क म स्ट्रीट लाइट के दुधिया अँजोर बगर गे राहय। राजधानी ल जोरे, सड़क म मोटर-गाड़ी मन ओसरी-पारी दउँड़त रहिन। चिरई-चिरगुन मन अपन-अपन डेरा लहुट गे रिहिन हें। उँकर चींव-चींव के कुछु आरो नइ आवत रहिस। आरो कति ले आतिस, सोआ जउन परगे रहिस उँकर। मनखे तो नोहय कि अउ कुछु जतन करतिन, बेरा-कुबेरा जगवारी बर। आने जीव मन ले पहिली जगइया अउ सुतइया जीव आय, बेरा म सुतथे अउ बेरा म उठथे। 

          मनखे मन घलव झटकुन अपन डेरा लहुटे के हड़बड़ी म दिखत रहिन हें। सबो कोति अपन हार्न बजावत रद्दा माँगत गाड़ी मन सड़क म भुर्र-भुर्र भागत रहिन। पो पो.., पी-पीप...म कान भर गे राहय। कोनो-कोनो गाड़ी के धुँगिया पर्यावरण ल मइला कर देत रहिस।

          अइसने बेरा आछत, मैं ह टहले के पाछू घर लहुटत रेहेंव। रोज के टहलई मोर आदत म हे। इही टहलई के बहाना तो स्कूल ले आये पाछू मोला दीन-दुनिया के सोर घलव मिल जथे। ए अलग बात आय कि आज सोशल मीडिया के आय ले जम्मो तरा के घटना चार आँगुर के डिस्प्ले म तुरते जंगल के आगी बरोबर बगर जथे। 

          बस स्टैंड के चउँक पहुँचे रेहेंव कि एक झन लइका आघू म आ मोर रस्ता रोकिस, टुप-टुप मोर पाँव परे लगिस। वो लइका ल चीन्हे म मोला कोनो किसम ले दिक्कत नइ होइस। अपन पढ़ाय लइका ल गुरुजी मन कभू नइ भुलावैं। महूँ तो गुरुजी आवँव, कइसे भुलातेंव अपन पढ़ाय नोनी ल। अइसे भी मोर आँखी ह अतका नइ पतराय हे, कि अपन पढ़ाय लइका ल नइ चिन्हतेंव। यहू सही आय कि मोला चश्मा लग गे हावय। जेन ह पढ़े-पढ़ाय के बखत लागथे। चालीसा के असर ले कोन उबर पाय हे? ..तव .. मैं ..भला कइसे आरुग बाँच पातेंव? अब तो चालीसा के बात नइ रहिगे हावय, पढ़ेच के उमर म नजर के चश्मा नाक-कान ऊपर चढ़ जावत हे। चूँदी के पँड़री होवई (पकई) ह तो दाई -ददा ले अगुवा जावत हे। हाँ! मैं बड़ भागमानी आँव कि अभी मोर चूँदी के रंग बदले नइ हे। 

         सोनम नाँव के ए नोनी ल पाछू बछर ग्यारहवीं कक्षा पढ़ाय रेहेंव। तब कस्बा नुमा मोर शहर ले दू कोस के भीतर के एकठन गाँव म पोस्टिंग रहिस। अभी मोर ट्रांसफर आने स्कूल म होगे हावय। लइका होशियार नइ रहिस। फेर अतेक कमजोर घलव नइ रिहिस कि ओहा पास नइ होतिस। दसवीं कक्षा के सत्तर लइका म २५-३० लइका मन कापी जँचवावय ओमा यहू ह शामिल रहिस। जे मन बिन कहे सरलग गणित कापी दिखावँय। लइका के मन पढ़े के तो रहिस, फेर घरु बुता के चलत रोज स्कूल नइ आ पात रहिस। नोनी ल देख के मोर मन म कतको किसम के विचार के गरेरा उठय, कभू लगय कि नोनी ह सिरतोन म पढ़ पाही? त कभू लगय कि नोनी के देह कब आही? देखे म ओकर देह निचट सनडउवा काड़ी गढ़न दुब्बर पातर रहिस हे। थोरके ढकेले म ढकला जही सहीं लागे। लइका दिखे म कुपोषण के शिकार हे बानी जनावय। दू तीन पइत तो स्कूल के प्रार्थना ठउर म चक्कर खाके गिरे घलव गे हे। दिन के ११ बजे राहय, पूछे म पता चलय कि बिहनिया ले अभी घलव ओकर पेट म अन्न के एक दाना नइ गे हे। कतको दिन स्कूल नागा झन होवय कहिके बिना कुछु खाये आ जवय। 

        दाई-ददा मन रायपुर म रहिथें। बुता करे खातिर गे हावँय। लइका आये दिन घर-बुता बर रहि-रहि के छुट्टी माँग के घर जावय। घेरी-बेरी पढ़ई के तार टूटे ले पढ़े-लिखे म ओकर मन नइ लगत रहिस। लगे रहय, सो जानय। घर बुता मन आले-आले लइका के अगोरा करत रहँय। दूनो जुआर के रँधई गढ़ई अउ मँजई। छोटे भाई अउ बबा के कपड़ा-लत्ता धोना घलव उहीच ल करना राहय। भाई ह छठवीं पढ़त रहिस। बबा ह बिमारी के चलत उमर के पहिली अथक होगे रहिस। दवा-पानी ले दम धरे हे। हप्ता के हप्ता दवई बिसाय ल परथे।

        इहू सोला आना सिरतोन गोठ आय कि हमर गँवई-गाँव म नोनी जात मन बर आले-आले ले बुता माढ़े रहिथे। दाई-ददा संग म राहय, चाहे दुरिहा म। पानी भरई, बरतन मँजई अउ घर के बहरई-बटोरई तो जइसे ओकर बिगन होनच नइ हे। अउ कुछु मिले ते झन मिले, जनम-जनम बर मँजई-धोवई उँकरेच बाँटा दिखथे। घर म बाँटा घरी भाई बाँटा भले नइ पाहीं नोनी पिला मन, फेर माँजना-धोना सरी दिन ओकरे हिस्सा म आथे। कामकाजी नउकरहिन मन ल दूनो जघा खटे ल परथे। घर बुता ले थके नोनी जब स्कूले म बरोबर रह नइ पावत रहिस, त कति ले ओकर मन पढ़ई च म रमतिस।

        'मोला मोर बबा अउ भाई बर भात-साग राँधे बर लागथे। घर म तीने परानी रहिथन। मोर दाई-ददा मन दूनो झिन शहर गे हावँय। रँधई-गढ़ई अउ घर बुता के मारे मोर बर स्कूल अवई ह अजीरन हो गे हावय। बिहनिया ले उठ के चूल्हा-चउकी करत थक जाथँव। बबा के तबीयत ऊँच-नीच होवत रहिथे। ओकर जतन करई मोर बर अलगे बुता हो जथे, सर जी।'

           हाव ! ओ घरी अइसने तो बताय रहिस हे, नोनी ह प्रिंसिपल साहब ल। मोला अपन जुन्ना स्कूल के वो दिन सुरता आगिस। जिहाँ सोनम ह पढ़े हावय अउ में ह पढ़ाय हँव। 

        वो दिन सबो के हिरदे पसीज गे रहिस। ओकर गिलौली ल सुन के।

        'जानथँव कि भाई अउ बबा जइसन परिवार जन कभू मुड़ के बोझा नी होवय अउ न पढ़ई ह बोझा आय। घर के बुता घलो हे। मैं पढ़ना चाहथँव, मोला स्कूल आय म देरी बर थोरिक छूट दे देतेव सर जी हो!'        

         अइसने काहत ओकर आँखी डबडबा गे रहिस हे, वो दिन।

            प्रार्थना के बाद स्टॉफ रूम म सकलायेन त अनुकंपा म नौकरी पाय नेवरिया गुरुजी ल काहत सुनेंव ए सब इँकर चोचला आय। मस्तियाय बर जाथें सब। शायद ओला नइ मालूम कि गरीबी अउ मजबूरी का होथे? नइ ते अइसन नइ कहितिस। सबो ल एके तराजू म नइ तउले जाय।

           वो दिन मोर मन बिकट व्याकुल रहिस। बड़ छटपटायेंव कि लइका बर कुछ करँव। फेर बिन दाई-ददा के लइका घर सुन्ना म जाय बर मोर पाँव नइ उसलिस। सबो ल लोक-लाज अउ मर्यादा के खिंचाय लक्ष्मण रेखा के खियाल रखे ल परथे।... तब इही लक्ष्मण रेखा.. के चलत मेंहा मन मार के कलेचुप रहिगेंव। कुछु नइ करेंव। हाथ बाँधे ल परगे।

           आज उही नोनी ह अभी एक ठन झोला धरे बस के अगोरा म ठाड़े रहिस। झोला म रखे गोल मुहरन के डब्बा बतात रहिस कि ओहर टिफिन डब्बा हरे। पूछे म मोर अनुमान सिरतो निकलिस। नोनी ह शहर के दुकान म बुता करे बर आथे। 'अभी छै महिना होय हे, दुकान आवत। संग म दू झन अउ नोनी संगवारी आथें।' यहू बताइस हे।

           'त तैं अकेल्ला कइसे?' मोर अंतस् म उठे सवाल ल नोनी भाँप डरिस अउ बतावत कहिस- 'ओमन आज नइ आय हें, सर! रोजगार गारंटी म गे हावँय।' 

      'तें काबर नइ गे बेटा?' - मेंहा पूछेंव।

      'ओमन तो पंच-सरपंच के परिवार के आय सर जी। मोला कहि दिस कि तोर लइक बुता नइ हे। जिंकर योजना मुताबिक बुता के दिन पूरे नइ हे, उन ल पहिली पूरा दिन बुता देबो। नवा भर्ती अभी नइ देवन।' नोनी ह बताइस।

        सोनम के गोठ सुन मोला मोर स्टॉफ के एक झन मास्टर के कहे गोठ के सुरता आय लगिस, उन कहे रहिस -  'रोजगार गारंटी योजना के आये ले मनखे सुखियार कमती अउ अलाल जादा होगे हे। कखरो घर बुता जाय कस नि करय। रोजी बाढ़ गेहे तब ले, जी म जी पारत हाव कहिथे अउ ठउका बुता च के बेरा कान ल मिटका देथे।' ये ह ओकर अनुभव आय। ओहर घर बुता बर कतको बेर धोखा खाय हे। जी म जी पार, बनिहार मन नइ आय आइन। एमा ओकर गुस्सा घलव समाय रहिस।

           सोनम आगू कहते गिस- 'नाव रोजगार गारंटी जरूर हे, फेर बुता मिले के गारंटी नइ हे। गारंटी हे त मिले बुता ल घंटा-दू-घंटा म समेट के घर लहुटे के। सरकार पइसा देथे गाँव के विकास बर। गँवइहा मन चार पइसा कमावत अपन गोड़ म खड़ा होवय कहिके। फेर मनखे मन अपने च निस्तारी के नरवा-तरिया म चार आना के बुता घला नइ करत हें। अधिकारी तो अपन ऑफिस म बइठ जही। जिहाँ गुजर-बसर करना हे, उहेंच के मनखे अपने गाँव बर नइ सोचत हें, ए संसो के गोठ आय सर जी। खुदे भ्रष्टाचार के मुसुवा बन अपने तरक्की के भुइँया ल दरे म कोनो कसर नइ छोड़त हें।'

           बस के अगोरा म खड़े सोनम के गोठ ल ध्यान दे के सुनत रेहेंव। लइकापन म ओकर क्रांतिकारी विचार सुन के दंग रहिगेंव।

           'शहर म दर्रत ले कमाहीं अउ सँझाती नवा जुग के अमरित ल आँखी-कान ल मुँद के गटगट टोंटा के खाल्हे उतारहीं, डीह-डोंगर ले दुरिहा शहर के कोनो रैन-बसेरा म, नइ ते बुता वाले ठिहा च म। अपन म मस्त। भले लइका-पिचका मन कुछु करे गाँव म। सरकारी चाँउर के भरोसा छोड़ जाथे। कुछ मन मजबूरी म जाथे। ओ समझे जा सकथे। फेर चार आना ले आगर मनखे के सुभाव बनगे हे। बाहिर जाना हे कहिके। बस पलायन करना हे। उन ल लइका मन के भविष्य ले कोनो मतलब नइ राहय। उमर के पहिली हाथ घलव पिंवरा देथे। अपन पादा चुकोय बर। जाना मना लइका मुड़ के बोझा आय। खास कर नोनी जात के। अभियो नोनी पिला ल पर के धन माने ल नी छोड़त हे।

        बड़ दिन ले गैरहाजिर लइका मन के पालक संपर्क ले लहुटत बेरा अपन संगवारी मास्टर के गोठियाय गोठ ल सुरता कर डारेंव। बहुत घर म लइका मन भाई-बहिनी रहिथे। मुहाटी रखवार डोकरी दाई नइ ते डोकरा बबा कोनो कोनो घर म मिलिस। बाँटा के चक्की म वहू मन पिसावत हें।

          बेरा बखत ही कोनो गोठ अइसने सुरता  बन पैडगरी डगर म फुदकत चिरई सहीं पाँख लगा आ जथे। 

        एक ठन गीत ल सुरता घलव कर डारेंव-  छइँया-भुइँया ल छोड़ जवइया तें थिराबे कहाँ रे... तब खूब चले हे, फेर आज हाल जस के तस हे। गावत अउ सुनत हे तब ले गाँव ल छोड़ जातेच हे।

             तभे नोनी कहिस-  'मोर पापा ह जतका कमाथे, ततका ल सरकारी दुकान के भोभस म भर देथे। ऊप्पर ले मम्मी संग झगरा अलगे मताथे अउ ओकरो कमई ल उड़ाय के उदिम करथे, नइ दे म..... इही पाय के दाई ह ...' नोनी के मुँह ह रोनहुत होगे रहिस। फेर बीच सड़क म रो नइ सकिस। तभे बस आ गिस अउ नोनी सोनम ह ओमा बइठ गिस। महूँ ह अपन घर कोति रेंगे लगेंव। 

         खाय के पाछू रोज सहीं खटिया म ढलगेंव फेर मोर नींद कहूँ मेर बिसर गे राहय। नोनी के रोनहुत चेहरा आँखी-आँखी म झूले लागिस। खेले-कूदे अउ पढ़े के दिन म नोनी ल बुता करे ल परत हे...मैं सोच भर सकथँव। एकर ले जादा कुछुच कर घलो नइ सकँव।  अइसन जान के मोर अंतस् फाट गे। एकर पहिली अतेक लाचार अउ बेबश कभू नइ पायेंव अपन आप ल मेंहा। छत कोति ल देखँव त नोनी के बरन आँखी म फेर झूले लगिस। जउन ह मोला बिजरावत हे कहे बरोबर जनाइस। मैं गुनान करत अपन आँखी मूँदेंव अउ कब नींद मोला अपन बइहाँ म पोटार लिस नइ जानेंव।

            बस ले उतर के दू-तीन किमी रेंगत जाना हे सोनम ल। सोनम अकेल्ला म डर्रावत हे। कइसे जाहूँ अकेल्ला... गाँव के बेटी आँव फेर अँगूरी पानी के बस म कोन चिन्ह पाथे... डर अउ संसो के बड़ोरा मन म उमड़े लगिस। १०-१५ मिनट के पाछू बस ले उतरही। ओहर गुनत जावत हे- गाँव ले दू-चार कोस जाके लनइया मन कोन जनी कोन कोनटा ले लानथें ...बस मस्त रहिथें। चार कोस जाय ल परही सोच कुछ झन मन, मन मार के कलेचुप रहि जावय। अब तो घर-मुहाँटीच म मिले धर ले हे, त भला कतेक मुँह लुकाही। नशा चढ़थे तहान बफलत रहिथें। कभू-कभू तो ...इहीच बात ओकर डर आय।

         अब नवा किसम के चलागन आगे हे। दू गाँव के बीच सड़क मन के पाई म बगरे पानी पाउच, डिस्पोजल अउ शीशी मन बतावत हें कि गाँव म विकास के गंगा कइसे बोहात हे? दिनबुड़तिहा जघा-जघा जमे जमावड़ा सोचे बर मजबूर करथे कि ओमन हम नवा पीढ़ी ल का सउँपत हें? का सिखावत हें? लइका के पढ़ई-लिखई चूल्हा तरी गय।

          बिहनिया उठेंव अउ पेपर पढ़े धर लेंव। पेपर पढ़त दंग रहिगेंव। सरकारी दुकान ले राजकोष के खजाना भरे के आँकड़ा दे राहय। ओला पढ़ के मोर भीतर बइठे किरा फेर गुने धर लिस। जब ले सरकारी खजाना भरे के ठेका सरकार अपन हाथ म लेहे, तब ले गाँव के गति अउ बिगड़ गे हे। 

           सरकारी टॉनिक नवा नाव धराय हे। बुढ़वा लागय न जवान सबे च सरकारी दुकान के रद्दा ल सोरियावत मिलथें। १५-१६ बछर के लइका मन घलव एकर रस्दा धरत दिखथें। सरकारी खजाना ल भरे म इँकर बड़ योगदान हे। आवत लक्ष्मी ल कोनो लात नइ मारय। त सरकार अपने पाँव म काबर टँगिया मारहीं?

            आज मनखे घर-परिवार के सुख ल दारू तिरन गिरवी धर ले हावय। कोन जनी अपन चेत ल कोन खूँटी म टाँगे हे ते? लइका-पिचका मन के संसो नइ करय। सोनम घलव अपन बाप के इही करनी के घानी म पेरावत हे। बाढ़े नोनी ह महतारी के रहिते बिन महतारी के ओकर मया बर सुरर जावत हे। महतारी बरोबर छोटे भाई अउ बबा के सेवा जतन करत हे।

          कूट-कूट ले मार खवई के दँदरई ले हलाकान होके महतारी ह मइके के रद्दा नाप ले हावय। सोनम जावय त जावय कहाँ? 

          "चाहा ह माढ़े-माढ़े पानी होगे, एक घूँट घलो नइ पिये हस," चाहा के कप ल लेगे बर आय गोसाइन के चिल्लई म मेंहा गुनान ले बाहिर आयेंव। 

            मोर जुन्ना स्कूल के एक झन नोनी ह पढ़ई छोड़ के इहें दुकान म बुता करे आथे।  ओला पढ़े म कुछु मदद कर दन का? गोसाइन तिर जम्मो गोठ संग अपन मन के इच्छा ल रखेंव। 

           गोसाइन कुछ गुनिस अउ कहिस- नोनी पढ़ लिही त नौकरी पा जही जरुरी नइ हे। आज कम्पीटिशन के जमाना आय। ओकर ले कुछ ऊपराहा पइसा देके ओकर घर म टिकली-फुंदरी वाला फैंसी दुकान खोलवा दे, पर के दुकान के बलदा अपने दुकान म बुता करही। अउ बीच-बीच म ओकर आरो लेवत रहिबे। नोनी ह अपन पाँव म खड़ा हो जही। पढ़नच चाही त दुकान चलावत पढ़ घलो लेही।

            तैं तो मोर मुड़ी म लदाय बोझा उतार दिए, सिरतोन बड़ मयारुक हावस काहत गोसाइन के हाथ ले ठंडा होय चाहा ल लेंव। अउ बड़ सुवाद लगा के सुपुड़-सुपुड़ पीयत हाँवव। 


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह, पलारी 

जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग.

मोबा. 6261822466

मे लल्लू राम ब़ोलथव"

 " मे लल्लू राम ब़ोलथव"

        गांव के लल्लू राम पुछत  रिहिस ये गठबंधन काय होथे भाई,मै कहेव तैं कुवारा हस जी तैं नई जानस।जब बर बिहाव होथे त भांवर परे के बेरा दुल्हा के खांध के धोती ल दुल्हीन के लुगरा के छोर ल बांध देथे तेला गठबंधन कहिथे।इही असली गठबंधन आय।अऊ कहिबे त रस्सी के बंधना ल घलो गठबंधन कही सकथन। फेर एकर कोनो गारंटी नी राहय कोनो ह खोल सकत हे। एक ठन अऊ गठबंधन होथे जेमा मनखे मन एके संग जुरमिल के कोनो काम कारज ल करबो खांध म खांध मिलाके चलबो कहिके बनाथे।ए हर लव मैरिज टाईप के होथे।के दिन टिकही तेकर कोनो गारंटी नी राहय।अइसन मन अपन आप ल सही जताय बर घर, परिवार, समाज ले घलो लड़ झगड़ डारथे।कभू कभू अइसन मन ले दू परिवार, समाज , गांव म फूट घलो पड़ जथे।अइसन मन के हाल धोबी के कुकुर घर के न घाट कस घला हो जथे। लल्लू राम ल पूछेंव का सोंचत हस जी,कथे गाना सुरता आगे ,ये बंधन तो प्यार का बंधन है जन्मों का ये संगम है,मे केहेंव फेर ते ये मत गुनबे के करन अर्जुन आही अऊ आ घलो जही त रामायण नी होय महाभारत होही।

            लल्लू राम पुछथे अच्छा येला बता भईया "गाय हमारी माता है इसका चारा कौन खाता है"। लल्लू राम खवईया मन तो हाड़ा -गोड़ा ल तक खा जथे त ये चारा आय। आज कल के मनखे मन जादा हरही ,हरहा हो गेहे।वोईसे चारा जानवर मन खाथे।जब हमन चांद म जा सकत हन त दुपहिया जानवर घलो हो सकत हे।वईसे गाय एक ठन लक्ष्मी के अवतार आय ।अऊ लक्ष्मी कोनो डाहर ले आना चाहि। चाहे गौठान म गाय मरे, चाहे नीलामी होय?

      भईया आजकल के लईका मन फिलिम देख के हुशियार होगे तईसे लागथे जगा जगा नारा लगात रहिथे जय जवान -जय किसान।देश ल जाने बर का फिलिम देखना जरूरी हे?ये मन तो मोरो ले बड़े वाले लल्लू राम कस लागथे।जेन पढ़े लिखे मन ल देश के राहन रद्दा फिलिम देख के समझ आवत हे छी। असली जवान रेलगाड़ी,बस म खड़े रही तेला सीठ नई दे सके तेन मन ह जय जवान काहत हे।दाई ददा संग मुहीपार नई देखे तेन मन जय किसान काहत हे।उही खेती किसानी ल करतिस त अतिक बेरोजगारी काबर बाड़तीस।थोकिन पढ़ लिख लिस ताहन काहत हे 'हम बेरोजगार हैं हमको रोजगार दो'। जाने माने रोजगार कोनो आमा, अमली के रुख म फरे हे।अतिक जनसंख्या बर कोनो सरकार रोजगार नई दे सके। ये सब राजनीतिक हथकंडा आय। मतलब तहूं ह लल्लू राम पेपर- सेपर, समाचार देखथस पड़थस। देश म इही महंगाई, बेरोजगारी के सेती फिलिम मन करोड़ों कमात हे,अऊ टाकिज मन भक्कम भींड़ चलत हे।अतिक सुझबुझ वाले फिलिम ल फीरी म काबर नी देखाय भईया?ए महंगाई के असर ह विश्व कप मघलो देखे बर मिलही भईया स्टेडियम उन्ना उन्ना दिखही।

एक ठन डयलाग महूं सुनात हों भईया "हम वो डांन है जो जेल जाने से पहले चश्मदीदों को मिट्टी में मिला देते हैं और ये इंसाफ पैसों वालों के यहां मुजरा करती है।

           लल्लू राम कहिथे एक ठन बात बतांव फेर मोला सरम घलो लागथे, एक झन हिरो ह टमाटर ल बड़ महंगा हे काहत राहय।ए महंगाई ह टमाटर,पियाज, गैस ऊपर काबर भारी पड़थे।इंकरो बड़ ताकत हे भईया ये मन सरकार ल हिला तको देथे,अऊ सरकार ल गिरा तको देथे।कतरो झन अईसे गोठियाथे जानें माने एक किलो टमाटर ल एके साग म डारही। भले सौ दू सौ के मंद ल अकेल्ला उरकाही।मे गुनथव भईया जेन दिन किसान मन सड़क म फेंकथे त ये महंगाई के रोवईया मन सड़क ले बिन के रांधही का? एक ठन डयलाग अऊ मारत हों भईया"अपना ये टमाटर सम्हाल के रखना सस्ता होने पर चटनी बनाने के काम आयेगा"।

                     फकीर प्रसाद साहू

                       सुरगी राजनांदगांव

जनकवि कोदूराम 'दलित' के काव्य मा बसंत-*

 *जनकवि कोदूराम 'दलित' के काव्य मा बसंत-*


छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय के नाँव ले प्रसिद्ध जनकवि कोदूराम 'दलित' ठेठ अउ पोठ कवि आय। छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी दूनो भाषा मा उन काव्य रचना करके साहित्य के भंडार ला बढ़ाइस। गाँव के कवि होय के सेती उँकर काव्य मा खेती-किसानी, किसान-मजदूर, चौमास, बसंत, हमर सुग्घर गाँव, सहकारिता, पशुपालन, धान लुवाई जइसन कतको ग्रामीण परिवेश के चित्र सउँहत दिखथे।


    'दलित' जी जन्म 5 मार्च 1910 के अर्जुन्दा के तीर टिकरी गाँव में होइस। ग्रामीण अंचल होय के सेती खेती-खार ले बहुते नजदीक ले जुड़े रिहिस। इंकर प्रभाव कवि के काव्य में दिखाई देथे। उँकर शिक्षा अउ काव्य गुरु पीलालाल चिनौरिया जी रिहिन। 'दलित' जी हिंदी के छन्द मा छत्तीसगढ़ी कविता के रचना करे।  उँकर कविता के जनमानस मा गहरा प्रभाव हे। ठेठ छत्तीसगढ़ी बोली मा होय के सेती लोगन मन कविता ला आनंद से सुने।


      'दलित' जी के काव्य मा बसंत के चर्चा बहुते बढ़िया ढंग ले होय हे। प्रकृति के कुशल चितेरे कवि के बसंत ऋतु बर लिखे कविता के चर्चा करना प्रासंगिक रहही।


    सर्दी के पीछू गर्मी के आगमन होना रहिथे। उँकर ले पहली बसंत  ऋतु चारों कोती प्रकृति ला रंग-बिरंग के पान, फूल, फर ले सजाथे। प्रकृति बर बसंत तिहार असन हो जथे। कवि के बसंत के अगवानी करत कविता हे-


*"हेमंत गइस जाड़ा भागिस, आइस सुख के दाता बसंत।*

*जइसे सब-ला सुख देये बर, आ जाथे कोन्हों साधु-संत।"*


     बसंत आइस तहन हवा के चलई मा नदिया-नरवा के पानी फरियर हो जथे। अउ पेड़-पौधा के जम्मो डारा हा हरियर रंग मा उल्होय ला लगथे।


*"जम्मो नदिया-नरवा मन के, पानी होगे निच्चट फरियर।*

*अउ होंगे सब रुख-राई के, डारा-पाना हरियर-हरियर।"*


    इही समे मा बाग-बगीचा हा अमरइया मा नवा पान-पतौहा धर के लहरावत रथे। मरार मन के बारी मा साग-पान, भाजी-पाला घलो नंगत निकलथे।


*"बन,बाग, बगइचा लहलहायं, झूमय अमराई-फुलवारी।*

*भांटा, भाजी, मुरई, मिरचा-मा, भरे हवय मरार-बारी।"*


    बासंती हवा मा डोलत पींयर रंग धरे सरसों मनभावन लगथे।बारी-बखरी मा आमा अउ जंगल-झाड़ी मा चार हा मउँर के पागा बाँधे दिखत रथे। हरियर-हरियर नार-बियार मन रुख मा लपटाय मया करत दिखे ला लगथे। कवि के बानगी देखव-


*"सरसों ओढिस पींयर चुनरी, झुमका-झमकाये हवयं चार।*

*लपटे-पोटारे रुख मन-ला, ये लता-नार करथयं दुलार।"*


*"मउरे-मउरे आमा रुख-मन, दीखयं अइसे दुलहा-डउका।*

*कुलकय, फुदकय,नाचय, गावय, कोयली गीत ठउका-ठउका।"*


     बसंत ऋतु मा प्रकृति ला चारों मुड़ा निहारबे त आगी-अंगरा कस परसा हा अपन लाली बरन मा दहकत रथे। उँकर फूल ला देख के मन आनन्दित हो जथे। कवि परसा के चित्रण अघातेच ढंग ले करे हे-


*"बन के परसा मन बाँधे हें, बड़ सुग्घर केसरिया फेंटा।*

*फेंटा-मा कलगी खोंचे हें, दीखत हें राजा के बेटा।"*


     बसंत ऋतु आये के संगे-संग महुआ अपन डारा-पाना ला झररा डारथे। अउ कुचियाके गिरना शुरु हो जथे। महुआ के रंग-रूप ला देखके कवि मोती के उपमा देवत हे। इही समे तेंदू के पाके फर खाय के मजा अलगे रथे। कवि कथे घलो-


*"मोती कस टपकयं महुआ मन, बनवासी बिनत-बटोरत हें।*

*बेंदरा साहीं चढ़ के रुख-मा गेदराये तेंदू टोरत हे।"*


      बसंत ऋतु के आये के बाद प्रकृति मा नवा रंग देखे का मिलथे। येकर सुघराई मन का मोह डारथे। कवि बसंत के वर्णन अतीक करीब ले करे हे कि कविता ला पढ़त-पढ़त चित्र बने ला लगथे। उँकर काव्य मा बसंत ऋतु के चित्रण सजीव लगथे।ग्रामीण परिवेश के जानकार कवि के लेखनी मा प्रकृति बर बड़ मया भरे हे।



हेमलाल सहारे

मोहगाँव(छुरिया) राजनांदगाँव

बासमती

 " बासमती "

       हिन्दी फिलम म एक ठन गाना हे 'ये तेरा घर ये मेरा घर ये घर बहुत हसीन है '। अब बताओ भला घर ह कोई बला थोड़ीना आय तेमा हसीन रही।घर ह सुंदर हे कहिबे त एक कन फभथे। खैर अपन अपन बिचार कखरो घर हसीन राहय या जवान। हमर देश ह अचंभा (अचरज) ले भरे पड़े हे।कखरो कर करोड़ों के धन दोगानी हे फेर घर नई हे।कतरो मन नाहय ---------नीचोय काला। मिडिया म ए विषय म जमगरहा डिबेट ( बहस)हो सकथे। हपता पंदराही उंकरो मन के खुराक बन जाही।धन/घर,बेघर/घर। फेर यहू सोला आना संच आय डिबेट म उही मन आही जेकर कर घर होही। जेन मन जादा जोर शोर ले नरिया सकथे। जेन मन कुकर बिल कस रेस टीप खेल सकथे।।इंकर ले मिडिया के की आर पी बाढ़हे चाहे मत बाढ़े मनखे मन के खून जरुर चुर (खौल)जथे। इंकर नरियाय ले जनता के कुछू भला तो हो ही नहीं सके। अब के समे म बिना सुवारथ के कटे अंगरी म शुशू करे ल कहिबे ते नी करे। फेर ये डिबेटीया मन अतिक फिरी रहिथे जियो असन एक घांव रिचार्ज होगे ताहन दिन भर चलत हे ऐ चैनल ले ओ चैनल।यहू मन यु टयूबर कस झोर झोर के नोट छापत रहिथे। संगवारी हो आप मन ल ये कुकर बिल के झगरा निक लागिस होही त हमर चैनल ल सबइसक्राइब करो।

                     विज्ञान म हमर देश बड़ फुन्ना गेहे (तरक्की) ।हमर करा एक ले बड़के एक बंम, बारुद मिसाइल, डिफेंस (सुरछा) सिस्टम घलो हे। जेन हर गोला बारूद ल अपन रडार म पकड़ लेथे। फेर अतका तरक्की काय काम के जब सांगर मोंगर मनखे मन ल नी पकड़ पाय।तेखरे सेती मनखे मन तको इतराथे 'डान को पकडना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है '। कोनो कोनो के हाथ बड़ लाम होथे। जेन हर छोटे मोटे किरा मकोड़ा तक पहुंच जथे फेर बड़े बड़े जानवर मन तक नी पहुंच पाय।ये हर वैज्ञानिक मन बर घला शोध के विषय आय।ऐ विषय म पी •एच •डी •घला करे जा सकथे।

          हमर देश म दयालु दानी मनखे मन के पूरा आ गेहे। कतको झन अपन घर दुवार ल दूसर के नाम घलो कर दे थे।कहिथे हमर घर फलाना के घर।अइसन सब पहिलिच ले करतिस त सरकार ल इंदिरा आवास,अटल आवास, प्रधानमंत्री आवास, योजना के जरूरत नहीं पड़तिस।अइसने मया पलपलावत रहितिस ल परोसी के राचर, गाड़ा के खुंटा कार चोरी होतिस।आज ले कोनो ल घर नी मिले हे त ओला अज्ञानता घलो कही सकथन या फेर राजनीति के शिकार घलो हो सकथे।यहू बात हो सकथे सरवे वाले मन ल गलत जानकारी दे  गे हो ही।जइसे मासुरी चांवल खाथस नही "बासमती ", साइकिल म घुमथस , नही हेलीकॉप्टर म,इंहे के जनम आय नही बिदेश के।तो एमा दूसर के का दोष।

           गांव के टुटपुंजिया नेता मन मास्टर मन ले कम थोड़िना होथे कोन ल कोन ल कतिक नंबर देना हे उंकरे हाथ बात रहिथे।लईका मन के नंबर बाढ़हे चाहे झन (मत)बाढ़हे उंकर अत्ता -भत्ता,चंदोरा -निपोरा जरूर बाढ़ना चाही। नही ते कैकई असन हाथ गोड़ ल लमियाके बइठ जथे अपन हक बर तो नरियायाएच ल पड़थे। इंकर हपता पंदराही लमियाय के बाद घलो लईका मन के डोज, खुराक (कोर्स)समे म पूरा हो जथे।तभे तो हमन ठोसहा जिनीस ल लिटर म बेंच देथन।

          चूना लगाना घलो बहुत बड़े कला आय।पुछी वाले मन ल चूना लगाया के अधिकारेच नइ राहय।ये (अधिकार) हक तो छुट पुट बिना पुछी वाले मन ल मिलथे जेन हर हमर रडार म पकड़ नी आय। जेन मन ल पताला मारग ले अहिरावण ह परदेश पहुंचा देथे। हमर परदेशी नीति घलो बनेच ठोसलगहा हे तेकरे सेती ओमन ल लाय बर घलो खुरचेल ल पड़थे।तेखरे सेती सब हमन ल विश्व गुरु कहिथे।

                     फकीर प्रसाद साहू

                      " फक्कड़ "

                        ग्राम -सुरगी

छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर परिवार के मार्गदर्शिका सरला शर्मा, “संत कवि पवन दीवान स्मृति सम्मान” ले सम्मानित*

 



*विधा - रिपोर्ताज*


*छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर परिवार के मार्गदर्शिका सरला शर्मा, “संत कवि पवन दीवान स्मृति सम्मान” ले सम्मानित*


तारीख 03 मार्च 2024, दिन इतवार के छत्तीसगढ़ शासन के संस्कृति विभाग अउ छत्तीसगढ़ी विप्र समाज द्वारा समता कॉलोनी रायपुर मा संत कवि पवन दीवान के सुरता मा श्रद्धांजलि सभा अउ सम्मान समारोह के सफल आयोजन करे गे रहिस। ये कार्यक्रम मा सरला शर्मा (छत्तीसगढ़ के महिला साहित्यकार, दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति, दुर्ग के अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर के मार्गदर्शिका) अउ छत्तीसगढ़ी भाषा बर आंदोलन करइया सियान नंद किशोर शुक्ला ला “संत कवि पवन दीवान स्मृति सम्मान” ले सम्मानित करे गिस।


श्रद्धांजलि सभा मा पूर्व मंत्री रवींद्र चौबे अपन उद्बोधन मा कहिन - “संत कवि पवन दीवान सांसद, विधायक, कवि, ब्रह्मचारी च नइ, छत्तीसगढ़ के आत्मा रहिन। उन मन राजनीतिक मंच के संगेसंग मानस, कविसम्मेलन के मंच मन मा छत्तीसगढ़ के पीरा ला परगट करँय। पवन दीवान छत्तीसगढ़ बर भगवान आँय अउ इही भाव मा हमन उन ला सुरता करत रहिबो।”


ये मंच ले कवि मीर अली मीर, संजय शर्मा, कवयित्री सुमन बाजपेयी, संध्या रानी शुक्ला आदि मन अपन कविता के माध्यम ले पवन दीवान जी ला श्रद्धा-सुमन अर्पित करिन। आयोजन मा छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर के संस्थापक डॉ. सुधीर शर्मा सहित छत्तीसगढ़ के अनेक बुधियार विद्वान अउ नागरिक मन उपस्थित रहिन।


*अरुण कुमार निगम*

महाशिवरात्रि पर्व विशेष समरथ कहुँ नहि दोष गोंसाईं

 महाशिवरात्रि पर्व विशेष

समरथ कहुँ नहि दोष गोंसाईं 

महाराज हिमालय अउ माता मैंना दुनों झनअपन बेटी गिरिजा के बिहाव बर बड़ फिकर करँय । एक दिन नारद जी उँकर दरबार म पहुँचिन । ओमन गिरिजा के हाथ ल देखके बिचारिन अउ बतइन के , जम्मो धरती म , एकर लइक वर मिल पाना असम्भव नइये , फेर थोरकुन मुश्किल जरूर हे – अगुन ,अमान , मातु पितु हीना । उदासीन सब संशय छीना ॥ अउ - जोगी जटिल , काम , मन , नगन अमंगल दोष । अस स्वामी एहि कंह मिलहि , परी हस्त असि देख। अर्थात एकर भाग में गुणहीन, मानहीन, बिगन दई-ददा के , उदासीन , लापरवाह ,जोगी , जटाधारी , निष्काम हिरदे , नंगरा अउ अमंगल पहनइया पति हे । पर एकर पाछू घला – समरथ कहुँ नहि दोष गोंसाईं । ये मनखे समर्थ होही , जेकर इच्छा ले चंदा – सुरूज , आगी अउ गंगा समर्थ बन जही ।

अब सवाल ये आय के , समर्थ कोन ? जेकर करा ताकत हे  ... या वो आय जेकर करा धन दौलत माल खजाना हे । कुछ तो समर्थ उनला घला कहिथें , जेकर म कुछु दोष नइ रहय । फेर वाजिम म समर्थ वो आए , जेकर तिर देबर कुछु दिखय निही , पर अतका देथे ... जेकर सीमा नइये । भगवान शिव ही केवल समर्थ आए , काबर उही हा अपन जीव के कुटका कुटका करके हमर देंहे म जीव के रोपण करिस , अउ हमन ला जीवन दिस । जम्मो जग म निवास करइया शिव भगवान ही अइसे देवता हरे ... जेकर अराधना उपासना .... मसानगंज तक म होथे । कुछ मानसकार मन ,चंदा - सुरूज , आगी अउ गंगा ल घला समर्थ मानथे , पर असल गोठ ये आय , एमन शिव के अंग के सिवाय अउ कुछु नोहे । शिव एकर नियंत्रक अउ स्वामी घला आए । इही मन शिव म समाए हे , तेकर सेती शिव ल शंकर घला कहिथें ।

शिव ल समर्थ केहे के अउ कतको कारण हे । जग के जम्मो विधा अउ विद्या के ईशान अर्थात स्वामी घला शिवजी आय। उही हा पंचमहाभूत के नियंता घला आय  , जेकर अनुशासन ला दुनिया भर के चेतना लास्वीकारे बर परथे  , प्रमाणस्वरूप ‌-   

ईशान सर्वविधानामीश्वर: सर्वभूतानाम (वेद) 

ईश्वर: सर्व ईशान: शंकर चंद्रशेखर: ( उपनिषद ).  

ईश्वर:सर्वभूतानां हृदयेडर्जुन तिष्ठति ( गीता)

शिव पुरान के अनुसार - ईशता सर्वभूतानां ईश्वर:स्वयँ सिद्ध अउ सर्वमान्य सच हे , अउ तुलसी के शिव – भवानी शंकर वंन्दे ,श्रद्धा विश्वास रूपिणौ । याभ्यां बिना न पश्यंति , सिद्धा: स्वांत स्थामेश्व:।

सागर मंथन ले निकले चौदह रत्न मे एक रत्न जहर रिहिस , जेकर ताप ले लोगन के हाल बिहाल होए लागिस । चारो मुड़ा हाहाकर मातगे । कोन एला अंगिया सकत हे , तेकर खोजाखोज मातगे । ब्रम्हाजी अउ विष्णु भगवान हा जानय के ... शिव के अलावा काकरो म येला अंगियाये के शक्ति सामर्थ्य नइये । जम्मो झिन भगवान शिव ल सुरता करिन । शिवजी प्रकट होके गटागट लील दिस बिषम गरल ला । वेद पुरान बड़ जस गइस । तुलसी कहिथें -  

जरत सकल सुर वृंद , विषम गरल जिन्ह पान किया ।

तेहि न भजसि मतिमंद , को कृपालु संकर सरिस ।

अउ रहीम कहिथें – मान रहित विष पान करि , सम्भु भये जगदीश।

शिव के डमरू ले स्वर अउ व्यंजन के जन्म घला होइस । डमरू के प्रथम घात ले –अ , इ , उ , ल , लृ , च , अउ दूसर घात ले सामवेद के सात स्वर – सा , रे , ग , म ,  प , ध , नि , निकलिस ।

राक्षस मन के गुरू शुक्राचार्य , देवता मन के गुरू वृहस्पति अउ मनखे मन के गुरू वेदव्यास आय , लेकिन ये तीनो के महागुरू शिवजी आय ।

राक्षस मन के बैद्य सुखेन, देवता मन के बैद्य अश्वनीकुमार अउ मनखे मन के वैद्य धनवंतरी घला इनला महावैद्य कहिथें , अउ बिपत परे म शिव के सहारा लेथे । तभे इन ला परल्या वैद्यनाथ घला कहिथें ।

शिव के उपासना श्रृष्टि के शुरूआत ले चलत आवत हे । गाँव गँवई म गोबर लिपइया दाई बहिनी मन के मुँहू ले लिपत लिपत शिव शिव के अवाज अभू घला सुन सकथन । कपड़ा काँचत भाई - दीदी मन के मुहू ले शिव शिव के रटंत अभू घला सुने जा सकत हे । नांगर जोतत किसान अउ बरतन मांजत दाई के ओंठ फुसुर फुसुर शिव शिव जपत गाँव – खेत – खलिहान - बखरी ब्यारा म अभू घला मिल जाथें । वाजिम म हमर जीव , शिव के सबले तिर होथे , तेकर सेती स्वाभाविक रूप ले शिव के सुरता जाने अनजाने म अपने अपन होवत रहिथें । हमर सबो के इही मानना हे कि शिव के ही अंशआय हमर जीव हा , अउ येकरे सेती जीव के नाश नई होवय , तभे ईश्वर अंश जीव अविनाशी कहिथें । अउ येकरे सेती लोगन कहिथें – जीव न पैदा होवय , न मरय , एहा प्रकट होथे , आखिर म शिव म मिल जथे ।

शिवजी के ऊप्पर उदुप ले हपट के गिरके मरइया तक लाशिव जी हा मुक्ति प्रदान करथे । खुद शिवजी कहिथें - काशी मरत जंतु अवलोकी , करउ नाम बल जीव बिसोकी ।

संत मन के अनुसार ... काशी हमर देंह आय  - मन मथुरा , दिल द्वारिका,काया काशी जान । दसवां द्वार देहुरा , तामें ज्योति पिछान ।

पाप , ताप अउ आवेश ले छुटकारा पाए बर , शिव के नाम के जपन करथे लोगन –

जपहु जाई सत संकर नामा , होइहि हृदय तुरत विश्रामा !

शिव के महिमा के बखान मानस मे – शिव सेवा पर फल सुत सोई , अविरल भगति रामपद होई । अउ – शिव पद कमल जिन्हहि रति नाही , रामहि ते सपनेहु न सुहाही।

वेद के अनुसार - असिति गिरि सम्स्यात कज्जलं सिंधु पात्रे । तरूवरं शाखां , लेखनी पत्र मुर्वीम । लिखित यदि गृहित्वा , शारदा सर्वकालं । तदपि तव गुणाणाम ईशं , पारं न याति।

शि अर्थात पाप नाशक , व माने मुक्तिदाता । जे हमर पाप के नाश करके हमन ला मुक्ति प्रदान करथे उही शिव आय –

शि कहते अद्य नाशक , व कहते ही मुक्ति । 

गजानंद शिव शिव कहु , प्रेम ज्ञानयुक्त भक्ति ।

श्रृष्टि ला श्रष्टा से , इडा‌ ला पिंगला से, मैं ला तू से , अहम ला परम से , त्व ला स्वयँ से , पर ला अपर से , अलख ला लख से , चर ला अचर से , जड़ ला चेतन से मिला के जीव ल शिवत्व के बोध करइया स्वयं सिद्ध समर्थ शिव ही आय , जेमा कहींच दोष नइये । तभे शिवजी खातिर रामचरित मानस मा केहे गिस – समरथ कहुँ नहि दोष गोंसाईं ।


     लेखक  - हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन 

              छुरा

उत्तम लोकाचार*. (ब्यंग)

 *उत्तम लोकाचार*.                        

                                          (ब्यंग) 

                    सँउखिया मनखे मन जब पान ठेला मा सँघरथे तब पान के बनत ले वो सब मुद्दा मा बहस छेड़ देथे, जेकर चरचा समय के हिसाब ले चर्चित रथे। भूत भविष्य के जानपाँड़े होय के हैसियत ले अंतिम समाधान घलो कर ड़ारथें। समस्या गाँव के रहय, देश दुनिया के राजनीतिक चाहे धरम करम के। सबो ले कइसे निपटे जा सकथे इँकर तिर सबके हल निकल जाथे। विचार मंथन के केंद्र पान ठेला के आगू मा बिना मंच माईक के बिना संयोजक अउ सभापति के गोष्ठी मा निदान बताके चल देथें। अइसन सतसंगी मन के तिर व्यवहार के सबो शिष्टाचार अउ लोकाचार के सबो शब्द ज्ञान भरे रथे जेकर ले चौरसता के मरियादा के चेत करत दोषी ला दू चार खुल्ला गारी देय जा सके। हम ये कइसे  कहि देन कि इँकर खुद के बोहाय हे अउ समाज ला धोय के देश ला सुधारे के ठेका उठाय हें। बिना स्वारथ के आगू आके अपन बिचार रखत हे अइसन शुभ चिंतक मन ला नमन कर लेना चाही। इहाँ तो ग्यारा दिन ले भगवत गीता के ज्ञान बँटइया मन हर मनखे ला माया मोह लोभ लालच ले दुरिहा रेहे के उपदेश देथे। अउ आखरी के दिन झोरा बोरा खीसा मा माया मोह ला भर भर के चल देथें। चढ़उतरी कम परथे तब अवइया साल मा ओकर मुँख ले गीतोपदेश सुने बर नइ मिले। 

             तर्क देके हम काकरो लोकाचार के उदारता ला ठेंस नइ लगाना चाहन। फेर लोक अउ परलोक के गोठ ला ओतके दूर तक समझथन जतका हमला जरूरत हे। तभो लोकाचार निभाय बर उदारता देखाय बर कमती घलो नइ करन। लोक के सँग हमर आचार बिचार समगे उही तो लोकाचार आय। आगू वाले निभगे अउ हम निभा डारेंन लोकाचार बर एकर ले जादा अउ का चाही।लोक म लोक व्यवहार कइसे निभे निभाय जाथे आदमी जात ला नारी परानी मन ले सिखना चाही। नानकुन फुँचरा अकन गोठ ला लमा लमाके कहना, चार महिला मंडली मा फारवर्ड करना अउ आखिर मा ये कहिके बोचक जाना कि,  टार बहिनी हम काकरो तीन पाँच मा नइ पड़न ना गोठियान, हमला का करे बर हे। पाँच महिला समूह मा वायरल करे के बाद घलो खबर जल्दी डिलीट नइ होवय। अउ सबो झन ला कहीं कि तुँहरे तिर गोठ निकलगे तौ गोठिया परे हवँ। मोर नाम झन लेहू बहिनी। एक हाथ आगी लगाना त दूसर हाथ मा बुझाय के जोखा जुगाड़ ही उत्तम लोकाचार हो सकथे। 

           आज दुनिया लोकाचार के एके तरज मा चलत हे। समझे बर अतके कहूँ कि हम जेकर कुकरा ला चोरा के लानेन। खाये के बखत दारू धरके ओहू ला बलाथन जेकर घर के कुकरा रथे। सच कहे जाय तौ इही पैतराचार हर असली लोकाचार के मंतर आय। या फेर रात के अँधियार मा डाँका डार अउ दिन के अँजोर मा चार झन के देखउ उही मन ला सद्भावना मा दान  कर। अइसन उदारता भरे सम्मान के हकदार होगेस माने सदाचार के उत्तम लोकाचार निभा डारे। आज अइसने नवाचार के जरूरत हे। नरी तो कटे फेर दरद पता नइ चलना चाही। साग मा नून बने लगे ले चाँट चाँटके सवाद लेथन फेर नून उपर लगे जी एस टी के जानकारी नइ होना चाही। 

        मूँड़ मुँडाय के बखत चेथी कटागे तब हजामची दवा नइ लगाय। मीठ मीठ गोठियाके साहसी हिम्मती बताके बड़ाई कर कर के असली दरद ले चेत बिचेत कर देथे। इही बिधि हर राष्ट निर्माण बर काम करत हे। बस स्वहित के कायदा ले करे वायदा मा फायदा जोड़ना माने लोक के अचार ला अपन

   बरनी ठेकवा मा जोगासन ले अइसे रखना कि अचार संहिता के लगत ले भुसड़ाय झन। 

              अब के जमाना मा कोनो काकरो ले खुश नइये। अच्छा कर तब खराब अउ खराब हे तब खराब। हमर असन ला खुशी तब होथे जब परोसी घर के बिहाव पारटी मा खाये के बेरा जाथन, लिफाफा मा बीस रुपिया धराके माई पिल्ला छकत फेंकत ले खाथन। अब के चले नवा पंगत रिवाज मा चार छै पूड़ी नइ फेंकाइस तहू का काम के खवई। रिस्ताचार के लोकाचार तो घर के माई लोगिन मन निभा लेथे। वोमन पहिली ले तय कर डारे रथें कि, नेंवताय सगा के बीच कते झलझलहा लुगरा ला फू फू सास अउ मोसी सास ला देना हे। अउ कते कते ला मँइके डहर के भउजी भतिजी ला देना हे। जइसे भी होवय शिष्टाचार मा घलो लोकाचार झलकना चाही। बखत परे मा परम मितान ला रुपिया पइसा चलाय बर रथे तब दूसर तिर ले दस परसेंट मा लान के देवत हवँ केहे ला परथे। नइते वापसी के संभावना कम रथे। हम तो आरती मा चिरहा नोट चघाके परम आनंद के सुख पाथन। जब खोटा सिक्का  चलन मा हे तब असल ला आगू लानके बदनामी सहना मूरखपना हो सकथे। जौन बजार के चलन हे ओकर सँग अपन आप ला समो लेना ही लोक के बीच लाज ला बचाथे। देखना सुनना सहज हे फेर सुनके चुप रहना अलग बात हे। ठेही देके सुनाबे तब दिन तो बुलक जथे बात माड़े रथे। अइसन संजोग काकरो घर हो सकथे। नइ होतिस तौ पाँच साल जुन्ना गोठ छट्ठी बर साग खँगगे, लकर धकर कड़ही डबकाके पोरसिन। फेर कतको के हाजमा अतका खराब रथे कि बात कतको साल ले पेट मा गुड़गुड़ी करत रहि जाथे। 

               

             अब गोधूलि बेरा मा बिहाव होबे नइ करे। खुसरा चिरई के बिहाव कस आधा रात के लगिन होथे। सगई बरात अउ लगिन बरात दूनो के सगा सुवागत करत ले बेटी वाले के कनिहा कतका हालिस बिहाव के बाद पता चलथे। पहिली चार झन सियान मन जाके लगिन चाँउर बाँधके आ जावे। अब सगई बरात मा घलो सौ दू सौ बराती नइ आही तौ देखइया मन कहि सकत हें कि एकर दुनिया मा कोई नइये। या फेर जात समाज ले बाहिर हे का? धोखा ले बराती मा कोनो छुटगे तब वो तानाचार के सुर मा सुना के कही कि मोरे बर उँकर गाड़ी छोटे परगे। सच यहू हे कि चली देतिस तौ अद्धी चघाके हुड़दंग ही करतिस। अइसन आदर्शवादी संसकारी बेसरमपना ला सगा होय चाहे समधी आदरपूर्वक झेलथें। एकर ले बड़े उदार लोकाचार कहुँचो देखे ला नइ मिले। चेंदरा मा झूलइया मनखे के लाश उपर जब तक डेढ़ कोरी नवा कपड़ा नइ ओढ़ाबो हमर लोकाचार के गोठ पूरा नइ होवय। एकर ले मुरदा खुश होथे कि जीयत मनखे कहि पाना कठिन हे। मरे आतमा ला शांति देय बर पार वाले अउ पारा वाले मन ला झारा झारा बरा सोंहारी खवाना परथे। नइते मरइया के आतमा परछी मा झूलत रही। शिष्ट लोकाचार के धरम निभाने वाले मन बरा मा नून कम रिहिस कहि सकथे। उन ला ये जानबा नइ रहय कि गरीब घर के तेलई बर तेल लगे हे पानी थूँक। 

             आज आदर्शवादी बन गाँधी गिरी देखाय के जरुरत नइये। धर्माचार बन फेर परसाद के मिलत ले। राष्ट्रवादी आशावादी बन फेर संविधिन के किताब धरके झन रेंग। ये धरती राम के हरे तौ आज के समाज मा कइसे निभना हे तोर उपर हे। लोकाचार मा भाईचारा के किरिया करम नइ करे माने जनम अकारथ जानले। बिना डर भय के अपराध अउ दुस्करम कर सकत हस। काबर कि मानवाधिकार के ताबीज पहिरने वाला दमदार मनखे के तिर मा रेहे ले फाँसी तो का थाना म नइ पहुँच सकस।। 

          सदाचार उदारता के शिष्टाचार मा लोकाचार के टोपी पहिर के सब घूमत हे। उत्तम लोकाचार के रस बड़े बड़े मंच मा खूब सुहाथे। फूटे दरपन मा सकल देखके करम ठठाना ही सार हे। आचरण के अचार बनत रहय, लोक के सँग बिचार के ताल बइठाना समझदारी हे। दोष उही मन गिनत रथे जे मन दूध के धोवल हें। फेर जिहाँ दूध के अंकाल परे हे उहाँ धोवाय कोन हे। समय के लोक धुन मा घुन मत लगे।बस लोकाचार निभाके इही संदेश बगरात रहना हे। जेकर आचरण खराब हे ओकरे चरण पखारौ नइते उत्तम लोकाचार के निभावन ले चूक जाहू। 


राजकुमार चौधरी "रौना" 

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

सड़क

 सड़क

               सरकार के उदारता देख .. गाँव के मनखे मन अपन गाँव म घला सड़क बनवाये के मांग करिन । सरकारी मनखे हा घला , विकास बर सड़क के निर्माण ला जरूरी समझत , चारों मुड़ा म सड़क के जाल बिछा दिस । केवल एक जगा के सड़क नइ बनिस । बल्कि वो जगा .. खाई उपर खाई बनत अऊ चौड़ा हो गिस । कुछ मन फुसुर फासर कारण जानना चाहिन । सरकारी मनखे हा बतइस के , हम विकास बर कृतसंकल्पित हन .. हम उही बुता करबो जेमा सबके विकास होय ।

               ओ जगा हा रामनगर अऊ मोमिन पारा के बीच रिहिस हे .. दुनों के बीच सड़क बने ले कतको के विकास रुक सकत रिहिस ... तेकर सेती ओती केवल खाई बनत गिस अऊ चौड़ा होवत गिस ।

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .

प्राशन-पाचन अउ पंचेड़बूटी महेंद्र बघेल

 प्राशन-पाचन अउ पंचेड़बूटी 

                    महेंद्र बघेल 


एक दिन मितान ह नाश्ता करत-करत मोला पूछ परिस - तॅंय खाय बर जीथस कि जीये बर खाथस मितान। पहिली तो मॅंय ओकर फेंकू चरित्तर ल देखके ओकर सवाल ल अनसुना कर देंव फेर अंतस म फूटत गुस्सा के लावा के आगू म मुस-मुस हाॅंसी के भाव ल अपन चेहरा म जबरदस्ती ढकेलेंव। काबर कि मोरे घर म नाश्ता झोरत हुसियार चंद ह मुही ल सवाल करत रहय। अरे ओकर सवाल ह तब वाजिब माने जातिस न., जब वोहा अपन डहर ले भोरहाच म सहीं मोला एकाद घाॅंव तो नाश्ता करवाय रहितिस। फलर- फलर मारत फलफलहा मितान के बस एकेच ठिन काम रहिस, सिरिफ अउ सिरिफ इहाॅं-उहाॅं ओसाना..।इही फलफलहा मन के सेती हमर पुरखा सियान मन सहीच बात ल कहिके चले गेहें कि पर के चीज ल भोभस म डारत खानी सबला मेछरासी आथे मने फोकट के पाय दहेल के खाय। डिट्टो वाट्सेप अउ आईटी सेल के तासिर म तलाय ओकर सवाल ल बाजू म तिरियावत मोर तो इही कहना हे कि मॅंय भूख लगथे तभे खाथों।अब मितान ल तय करना हे कि मोर खवई ह ओकर सवाल अउ मोर जवाब के कते एंगल म फिट बइठथे।कभू-कभू मन म विचार आ जथे कि खाय बर जीना अउ जीये बर खाना ये सवाल ले बढ़के मनखे के जिनगी म कोनो सवाल नइहे का..। दुनिया के सबले बड़े सवाल तो ये हे ,का सबो मनखे ल रोज खाय बर मिल पाथे..।फेर इहाॅं विडम्बना ल देखव,भूखर्रा तिर खाय बर दाना नइहे अउ खाता-पीता मन कर पचाय के ताकत नइहे।

         सही बात तो यहू हरे कि हाल कमइया अउ हाल खवइया उपर कोई अइसने टाइप के सवाल दागथे तब जुवाब मिलना बड़ मुश्कुल हो जथे। ये सवाल के बारे म थोकिन ध्यान लगाके सोचबे तब लगथे ये सवाल तो  खाता-पीता मनखे मनके लइक सवाल आय। हमर मोटा दिमाग के मोठ-मोठ नस-नाड़ी वाले ठाढ़-ठाढ़ सोच म येहा दार्शनिक सवाल कस जनाथे। काबर कि बारीक अउ रहस्य भरे सवाल ले जब कन्हो आम आदमी ह अकबक-अकबक करत बकबका जथे तब ओला लगथे ये तो दर्शन शास्त्र के गरभ ले जनमे सवाल होही। वो अलग बात आय कि दर्शन शास्त्र के अइसन सवाल ल हल करे के उदीम म आम आदमी के लासा फूट जथे फेर सफलता हाथ नी लग पाय।येकर मतलब ये नइहे कि ओकर बारे म गोठियाय के संवैधानिक अधिकार ल येमन कलेचुप बरो देय।अइसन बिसकुटा सवाल ल धीर-गंभीर ज्ञाता, विद्वान, प्रज्ञावान अउ तत्ववेत्ता जइसे महान गुणी ज्ञानी मन के बौद्धिक कोठार म ढिलना जादा सही रहिथे। आम आदमी के बुध के कोलकी म अइसन सवाल ल ढिले म ओकर सटके के सेंट परसेंट संभावना बने रहिथे..।

           खवई अउ जियई  के बारे म थोर-बहुत गोठ-बात तो होबे करिस अब खवई अउ पचई के विषय म ज्ञान मिल जाय ते हमर खवई धरम ह घलव धन्य हो जाय।निरवा खवई अउ खात-खवई के इतिहास ह कतका प्राचीन हे येला इतिहासकार मन जाने। बिना चश्मा के आम आदमी के ऑंखी म जतका जुगुर-जुगुर दिख जही इहाॅं उही ल लपेटे के कोशिश करे जाही। इहाॅं हम अउ तुम का सरी दुनिया ह जानत हे पेटला (खाता-पीता) आदमी मन खाय-पीये के बड़ शौकीन होथें, जब भी मन लगे तब खाॅंव- खाॅंव करत खाव-खाव के अधिकार ल अपन तिर सदा सुरक्षित रखथें।सेपला पेट वाले मनखे मन के सरी जिनगी ह खाय-पीये के जुगाड़ म कटत रहिथे। पेटला मने पेट वाले इनकर पेट म भूख लगे के पहिली सॅंउख ह अपन जगा बना लेथे। अइसन मन भूख लगे के पहिली अउ बाद म पेट ल रिचार्ज करे के दम रखथें। बाकी सेपला मन के बारे म कुछु बाते झन पूछ,उनकर पेट ह पेट आय ते पीठ कुछ समझे म नी आय।येला समझे के उदीम म तॅंय समझत-समझत समझते रहि जबे फेर कुछ समझे म नी आ पाही। सरी जिनगी सेपला मन के पेट अउ पीठ म चिपकिक- चिपका होय के ग्लोबल कम्पिटिशन चलत रहिथे।तब तॅंय काला समझ पाबे पेट अउ पीठ के सीरियस स्टोरी ल। अंतिम सत्य तो इही हे न, येमन अपन पेट ल रिचार्ज करे बर टापप वाउचर खातिर सरी जिनगी मेहनत के कारी पसीना म अउॅंटत रहिथें।

             जब पेटला (खाता-पीता) मन खाथे तेला भोजन करई अउ सेपला (ररूहा) मन खाथे तेला बोजई के सांस्कृतिक संबोधन ल इहिचें के मनखे समाज ह तय कर लेथें। तब पेटला अउ सेपला म काकर समाजिक महत्व ह कतिक वजनदार हे तेला आसानी ले समझे जा सकथे।इहाॅं पेटला मन ल पाचन के चिंता हे अउ सेपला मन ल अन्नप्राशन के..।पाचन प्रक्रिया म अरझे पेटला मन ल पहातीच ले आर्डन-गार्डन अउ पाई-परिया म लुहुंग-लुहुंग दौड़त-भागत, नाचत-कूदत नइते कनो कोन्टा म बैठ के सइफों-सइफों करत देखे जा सकथे।येकर छोड़ पेटला मन बर पेट ओसकाय के कई ठन दुकान खुल गेहे। पहिली तो पेटला मन थारी भर-भरके एक ले बढ़के एक हर-दिल- अजीज अउ लजीज आइटम ल ठसाठस जीम लेथें फेर पेट ल पोचकाय बर जीम के रस्ता नापथें। पेट के अतिक दुर्दशा कि पाचन के समाधान करे बर इनला आबा-बाबा के शरणागत होना पड़थे। का दू ऑंखी वाले ल कबे कि पौने दू ऑंखी वाले ल सबे टाइप के बाबा मन सइफों-सइफों करत-करवात अइसने पेटला मन के भरोसा म कारपोरेट जगत म अपन पेट अउ पेटी ल भरत दिख जथें।

            ये उदीम म योग गुरू मन अपन डेरी ऑंखी ल चपक-चपक के पेट ल हलावत-डोलावत पेटाशन-पेटाशन करावत रहिथें।हमर जइसे निपट कामन मैन के इही कहना हे कि पेट ल सहीं -सलामत रखे के संगे-संग जम्मों शरीर के सुरक्षा बर कभू-कभू कूदासन अउ भगासन के घलव अभ्यास करवाना चाही।भीड़भाड़ अउ पुलिस के डंडा-फंडा ले बाचे बर सलवार पहिन के कूदे- फांदे के अभ्यास के बारे म भी बिचार करना चाही।ये नवा आसन ह बेरा-बखत म ककरो काम आ जाय येहा कोनो कम बड़े बात तो नइ होही न।  सियान मन के कहना हे कि अइसन काम म कोनो पौने दू ऑंखी वाले बाबा टाइप के दढ़ियारा मनखे ह जब सलवार सूट ल पहिन के प्राण बचाय बर कूद-फांद के भागथे तब उनला बेपार म बड़ मुनाफा होय के गारंटी रहिथे अउ धकाधक पुण्य लाभ के प्राप्ति होथे। ये काम ल करके योगाचार्य मन ल पुण्य के खच्चित भागीदार बनना चाही। फेर पुण्य के चक्कर म आउटसोर्सिंग ले बच के रहना घलव योग धरम आय। सलवार सूट विशेषज्ञ मन बताथें कि योग अउ भोग के बीच म नानकुन अंतर रहिथे। योग के ओधा म रोग भगाय के नान्हे मानसिकता ह मनखे मन ला भोग डहर ढकेल घलव देथे।इही आउटसोर्सिंग के चक्कर म एक झन पंचेड़बूटी वाले बाबा ह बापू के पदवी ल शोभायमान करे के आस म अपन आप ल काबू म नइ रख पइस। ऑंखी म काजर ऑंजे पंचेड़बूटी के भूरका ल एक गापा मारके हवस के तंग गली म लसरंग- लसरंग नाचत अपन योजना ल सेट करे के आस म कृष्ण जन्मस्थली म सेट होगे हे। त भैया पेट के हवा सुधारे के चक्कर म हवालात के हवा खराब करना कन्हो समझदारी तो नोहे। सफेद दाढ़ी के भीतरी म विराजमान गबरू जवान ल सलाखन के सम्मान म निछावर होवत देख  पंचेड़बूटी ह घलव पछतावत होही कि मॅंय हपसी डोकरा के  सपड़ म कइसे आगे रहेंव...।

                 जब अली-गली म पंचेड़बूटी के चर्चा ह चली गेहे तब ये चर्चा ह महाचर्चा तक तो जाबे करही न..।मने ये चर्चा के महाचर्चा बने के फूल गारंटी समझ। जइसे आजकल गारंटी नामक रेबड़ी ह मीडिया म भारी चर्चा बटोरत हे। जती देखबे तती बटोरन लाल मन उही जुन्ना घोषणा ल नवा सवांगा पहिराके गारंटी नाम के ठप्पा लगावत फूटहा रेडियो कस बाजत दिख जथें।फेर वाह रे पंचेड़बूटी तॅंय सिरतोने म पंचेड़बूटी निकले, तोरे परसादे म डोकरा -डोकरा मन के झुर्री काया म जवानी के पीकी फूट जथे अउ उनकर मन भॅंवरा ह ताता-थइया करे बर कुदे परथे। तोर गुण के जतका गुणगान करे जाय वो कम हे। फेर बेंदरा के हाथ म छूरा धराय म सब गड़बड़े होइ जथे। भलुक तॅंय ये बुढ़ऊ मन के हाथ म नइ लगे रहिते अउ येमन तोला चाट-चाट के नइ खाय रहितिन ते राजनीति अउ आस्था के नाम म लोगन मन चींव-चाॅंव नइ कर पातिन।  जब-जब समाज म जवान टाईप के ये डोकरा मन के सुरता करे जाही  तब -तब पंचेड़बूटी जी ये मयारू दुनिया म तोर नाम के चर्चा बड़ सम्मान के साथ लिए जाही।

          जइसे कि देश-दुनिया म सबे मन ला जानकारी हवय कि झाॅंसा बापू नाम ल सुनके पंचेड़बूटी ह नवा दुल्हिन कस लजा जथे। अइसने पंचेड़बूटी के अंतरात्मा ह एक दिन अपन पुरखा मन के सुरता करत फ्लैश बैक म पहुॅंचगे अउ उत्तराखंड के हसीन (सुरम्य) वादी म विचरण करत ताजा आबोहवा के मजा लेवत  रहिस।तभे पंचेड़बूटी संग बबा एन डी तिवारी के ओरभेट्टा होगे। तब पंचेड़बूटी के का हाल होइस होही तेला आप मन खुदे समझ सकथो। अरे काला बताबे भरे दिसंबर महीना म पंचेड़बूटी के पसीना छूटगे। ओकर अंतरात्मा के उथल- पुथल ल देखके अइसे लगे कि एक्सपायरी डेट वाले खड्डूश मनखे के हाथ म लगे के हीनभावना म कहुॅं सोसाइड तो नी कर डारही।पंचेड़बूटी ह माने चाहे झन माने फेर सही कहिबे ते एन डी अउ झांसा-राम के प्रयोगवादी विचार धारा च ले ओकर नाम ह सरी दुनिया म आम होय हे।ओकर पहिली येला कनवा कुकुर तक ह नइ जानत रहिस,कहाॅं के अंचेड़बूटी अउ कहाॅं के पंचेड़बूटी..। दूनो बुजुर्ग  शिरोमणि उपर गारी-बखाना जइसे अलोकतांत्रिक हमला करई ल छोड़ के पंचेड़बूटी ल इन दूनो के घोलंड-घोलंड के आभार व्यक्त करना चाही। जिनकर परसादे अधेड़ अउ बुजुर्ग समाज म येकर नाम ह टिलिंग म पहुॅंच बना सके हे।

बात चलत रहिस खाय अउ पचाय के तब अइसन बेरा म एन डी टी अउ झासा राम के बारे म राम-रहीम बोलना उचित नी रहिस फेर का करबे पंचेड़बूटी के चक्कर म बइहा दिमाग ह नित्यानंद होगे ।


 महेंद्र बघेल डोंगरगांव

7987502903

भूरी चन्द्रहास साहू

भूरी

                           चन्द्रहास साहू
                         मो 8120578897

आँखी पथरा होगे वोकर अगोरा मा। बाट जोहत हे वोहा,आही...... फेर अभिन तक वोकर दरसन नइ हावय। आगू बिन भेट करे मर जावँव कहिके गुने फेर अब वोकर ले भेट-पलगी करे बिना चोला नइ छूटे। .... अउ चोला छूटही काबर  ? वोला आय ला परही...। देवी अहिल्या अगोरा करत रिहिस न, दाई शबरी अगोरा करत रिहिस न ....आइस अउ दरसन दिस प्रभु श्री राम हा। भीष्मपितामह बरोबर सौहत बाण के सेज मा सूत के अगोरा भलुक नइ करत हे फेर रुआँ-रुआँ रिसत हे पीरा मा ...अगोरा मा। भलुक जांगर नइ चलत हाबे फेर मन अब्बड़ दउड़त हावय। खेत-खार ला किंजर डारिस। डोंगरी-पहार नदिया -नरवा ला किंजरत-किंजरत अमरइयाँ मा थिरागे। अमरइयाँ के बड़का रुख। बड़का रुख के बडका डारा,बड़का डारा के बड़का आमा फर मा थिरागे। कइसे झूलत हे आमा फर हा चिटरा खखोल डारे हावय तभो ले । लबेदा आथे तीर ले अउ बिन गिराये फर ला लहुट जाथे । 
                 कातिक, हाव इही नाव तो हाबे सत्तर बच्छर ले आगर जियइया सियान के। काया पाक गे हे सियान के । कब ढूल जाही फेर जिनगी अउ मौत के बीच झूलत हाबे-आमा कस। खटिया मा सुते हे अलग-बिलग कोठा मा। बेटा बहुरिया ले साध राखे रिहिस सेवा जतन बर । फेर कोनो ला श्रवण कुमार नइ बनाये रिहिस। कोन सेवा जतन करही....? अउ बहुरिया...? वोमन तो पर के कोठा ले आये हे, मुठा भर भात दिस तब बने अउ नइ दिस तब बने। मेहतरीन हाबे न सेवा करइया। वोमन तो अपन लइका-लोग भरतार मा बिलमे हे। मेहतरीन आथे तब सफा होथे पानी पिसाब मइलाहा हा। अउ नइ आही तब...?   मइलाहा मा बुड़े रहिथे। कोनो देखइया सुनइया आथे तौन हा कहिथे।
"छी..... दई !...... डोकरा मइलाहा मा बुड़े हाबे। भगवान अपन घर लेग जाए ते बने होतिस।'' 
"अई अभिन नइ मरे या डोकरा हा ! करनी दिखथे मरनी के बेर। जवानी मा जतका लाहव लेये हे तेन निकलत हाबे अभिन। बहुरिया भूरी ला कतका तपे हाबे नइ जानस का....? अपन बहुरिया भूरी ला देखे बर चोला अटके हाबे। जभे वो आही तभे प्राण तजही वो !''
गोठियइया मन के अब्बड़ मुँहू। 
                  बहुरिया के नाव रिहिस  राजेश्वरी। राजेश्वरी कागज मा लिखे के नाव रिहिस। असली चिन्हारी तो भूरी ले होवय। भूरी, सिरतोन के भूरी आवय दुधनागिन कस जोखी भराये पड़री बदन, पाका कुन्दरू चानी कस होंठ, कजरारी आँखी, चाकर माथ, गोड़ मा माहुर-आलता, मेहंदी लगे हाथ, सोनपुतरी कस सवांगा पहिरे-ओढ़े लजकुरहिन भूरी ससुरार मा पाँव मड़ाइस  तब गाँव भर देखनी होगे। ये अतराब मा अतका सुघ्घर बरन वाली काखरो बहुरिया नइ हाबे। कातिक अउ गोसाइन फुरफुन्दी कस उड़ा-उड़ा के जम्मो कोई ला बताये लागे। बेटा भुनेश घला किशन बरन होइस ते का होगे, सरकारी अधिकारी हे। दुनो के जोड़ी अब्बड़ सुघ्घर सीता राम के जोड़ी।
         चिरई बरोबर चहचहचावत हावय।तितली बरोबर उड़ावत अउ भौरा बरोबर गुनगुनावत हे भूरी के मन। काबा भर उछाह देवत रिहिस भुनेश हा। ..... अउ भुनेश वो तो अघा जाथे भूरी के बेवहार अउ बरन देख के। भलुक बहुरिया रिहिस भूरी हा फेर बेटी बन के सास-ससुर के जतन करत हाबे। देवर मन नान्हे हावय।
          ड्यूटी वाला गाॅंव ले गोसइया आवय हफ्ता दिन मा काबा भर उछाह धरके। चार-तेंदू बोड़ा-कांदा-कुसा अउ रिकम-रिकम के मिठई फल-फलहरी। भूरी घला चीला दूधफरा अंगाकर रिकम-रिकम के कलेवा बना के खवाये।
"भूरी तोर हाथ मा जादू हाबे ओ ! अब्बड़ सुघ्घर चीला अउ दूधफरा बनाथस। दाई हा थोकिन मोट्ठा बना देथे। बने नइ लागे।''
"वा.....  जी...... वा !   दाई के बनावल कलेवा ला आगू चांट-चांट खावस अउ बाई आगे तब बाई के तारीफ करत हस-पलटू राम ही ... ही .... ।''
भूरी छिटा मारत किहिस गोसइया भुनेश के गोठ ला सुनके।
"कोन पलटू राम.....अई.....?''
"कोन ....?'' 
"तेंहा...!''
" ही....ही.... खी... खी....''
फुलझरे कस हाँसी मा गमकत हे रंधनी कुरिया हा। अउ...... हाँसत-हाँसत अरहज गे। पेट पीरा मा लाहर-ताहर होगे। झटकुन अस्पताल लेगिस भूरी ला भुनेश हा। पेट पीरा इलाज के संग खुशखबरी सुनाइस डॉक्टरीन दीदी हा । भुनेश के छाती फुले लागिस गरब मा मुचमुचाये लागिस। सतरंगी सपना मा बुड़त हाबे गोसइया हा अउ भूरी....? बेटी ले अब खुद महतारी बने के सुभागी बनत हे। घर भर उछाह भरगे।
"भौजी का लानँव।'"
"बहुरिया का खाबे।''
"मोर रानी तोर का सेवा करँव।'' 
जम्मो कोई अपन-अपन ले हियाव करे लागिस।
छत मा टहलत रहिथे तब पर्रा भर चंदा-चंदैनी ले गोहराथे।
" चंदा-चंदैनी तेंहा मोर कोरा मा आ जाबे रानी बन के सुरुज तेंहा  आ जाबे कोरा मा राजा बनके।''
पहेलात नोनी, वोकर पाछू नोनी अउ सबले नान्हे हा बाबू , तीन लइका के महतारी बनगे भूरी हा। देवर मन घला एक ले दू होगे अब। सिरतोन पांच बच्छर मा अब्बड़ बदलाव आगे अब। भलुक लइका मन देवता रिहिस फेर बड़का मन मा राक्षस  के गुण समाये लागिस। लइका मन बर कपट होये लागिस अउ बड़की बहुरिया बर तो ससुर बानी लगा डारिस। जुन्नागे न बड़की हा अब।
           भूरी के नींद उमछगे आज अउ सपना ला सुरता करिस तब ठाड़ सुखागे।
मातादेवाला वाला तरिया के पचरी मा बइठके सुहाग दान करत हाबे भूरी हा। जम्मो सवांगा ला गंगामइयाँ ला अर्पित करत हाबे। पसीना मा भींजगे लोटा भर पानी पीयिस अउ बिहनिया के अगोरा करे लागिस। मास्टर के बेटी आय कोनो अंधविश्वास ला नइ जाने फेर ये सपना मन ला विचलित कर दिस।
बिहनिया जम्मो उदास हाबे। गाय-गरुवा, चिरई-चिरगुन सुन्ना हाबे । कुकुर रोवत हाबे। सास के मन रोनहुत होगे हे। का होवत हे ....? जम्मो कोई अब्बड़ हियाव करत हाबे भूरी के....। 
"दीदी ! जा झटकुन नहा ले।''
"बहुरिया ! जा बेटी झटकुन खा ले।'' 
"जा भूरी ! लइका मन के जतन पानी मेंहा करत हँव।''
आज जम्मो कोई अब्बड़ हियाव करत हे। भूरी के मन अनमनहा लागिस। बिहनिया ले कका भइया महाप्रसाद जम्मो कोई आगे भूरी के । आजेच अब्बड़ मया पलपलावत हे। का होगे...? अब रोनहुत होगे भूरी हा । जम्मो कोई खुसर-फुसुर गोठियाये लागिस। भूरी घर के बुता करत हाबे। कुआँ मा पानी बर गिस तब पनिहारिन मन खुसुर-फुसुर करिस। 
"ये दई फूल असन हाबे ओ भूरी हा....!''
रउताइन काकी तो भूरी ला पोटार के रो डारिस। फेर देरानी खिसियावत बरजिस रोये बर ।
फुसफुसाइस।
"अभिन भूरी कही ला नइ जानत हावय झन बता ।'' 
अउ पानी के गघरा ला बोहो लिस।
                बार्डर के बीर मन ले कमती नइ हावय इहाँ के बीर मन । जम्मो कोई अपन ऑंसू ला आँखी मा राखे हाबे। जम्मो कोई जानथे भूरी के गोसइया भुनेश हा सड़क तीर के सरई रूख मा झपागे अउ एक्सीडेंट मा सतलोकी होगे। फेर कोनो नइ जनवावत हाबे भूरी ला।
"मोर फूल बरोबर भूरी ला छोड़ के कइसे चल देस दमाद बाबू ! तोर तीनों लइका के मुड़ी ले बाप के छइयाँ ला मेट देस बाबू !''
भूरी के दाई रोये लागिस अउ जम्मो कोई हरागे अब । जम्मो गाँव भर रोये लागिस। भूरी तो बेसुध होगे । पथरा के दुवारी मा गिरीस ते कभू सुध नइ आइस । भलुक गोठियावत बतरावत रिहिस फेर जिंदा लाश बरोबर। अपन सुहाग के चिन्हारी ला गंगामइयाँ ला दिस तभो बेसुध रिहिस। ऑफिस ले अधिकारी मन आइस अउ अब्बड़ अकन पइसा दिस । ससुर कातिक झोंकिस । भूरी के का सुध....? भूरी के ददा हा कोचकिस तब सुध आइस भूरी ला।
"बेटी ! तोला जीये ला परही , झन हरा जिनगी ले तोर। नान-नान नोनी बाबू ला देख ! अनुकंपा के नौकरी ला कर। तोर ससुर हा अपन नान्हे बेटा ला अनुकंपा मा लगाये के उदिम करत हे। तोर परवरिश कर लेबो कहिथे। अभिन मीठ-मीठ हाबे बेटी ! आगू जाके जम्मो करू हो जाही...? तीन लइका के संग तोर परवरिश कोनो नइ कर सके, गुन तेंहा। गोसाइया के मिले अनुकंपा नौकरी ला गोसाइन करथे बेटी तब शोभा देथे....।''
ददा अब्बड़ समझाइस तब समझिस भूरी हा। अनुकंपा नियुक्ति बर फॉर्म  भरिस। भलुक सास ससुर के बेटा गिस फेर अपन दुनो बेटा मन कमी ला पूरा कर दिही। भूरी के तो सरबस चल दिस। थोकिन मान रिहिस तहू हा...। ससुर कातिक के जी तरमरागे। 
"बहुरिया नौकरी नइ करे। घर मा रही कलेचुप सादा लुगरा पहिरके।''
मास्टर ससुर सुना दिस सोज्झे। बेटा के सरकारी पइसा ला तो झोंक के उड़ावत हाबे। घर बनावत हे फोकटे-फोकट। चिटफंड कंपनी मा डारत हे-पइसा दुगुना करे बर।.... अउ अब अनुकंपा नौकरी ला घला...? मोला जागे ला परही अपन तीनों लइका बर ... , अपन अधिकार पाये बर...। भूरी गुनिस अउ अपन अधिकार ला पाइस। सहायक ग्रेड तीन मा नौकरी जॉइन करिस दुरिहा के गाँव मा।
         आज नौकरी वाला गॉंव मा जाए बर तियार होगे भूरी हा । सास भलुक रो डारिस फेर ससुर तरमरावत हे । 
"बेटा ला खायेस अब वोकर अनुकंपा नौकरी ला घला खा डारेस। .... जा एके झन। कोनो नइ जावय तोर लइका मन ला राखे बर। मोर घर के मरजाद ला नइ जानेस । बाइस-पच्चीस बच्छर के मोटियारी हस । नौकरी मा पेट नइ भरही ते..... तोर तन ला बेचबे रे बेसिया...।''
 ससुर  अगियावत हे।
"मास्टर होके अइसन झन गोठिया बाबूजी ! भलुक कोनो झन जावव मोर संग फेर अपन आसीस ला दे दे सास-ससुर हो !''
भूरी ससुर के गोड़ मा नवके पाँव परिस अउ चल दिस नौकरी वाला गाँव।
            नौकरी जॉइन करिस अउ किराया के घर लेके रहे लागिस भूरी हा। फेर नारी के अइसन रहवइ सहज नोहे...? दस किसम के मनखे सौ किसम के गोठ। राड़ी के जिनगी मा फूल कमती अउ काँटा जादा रहिथे। ... अउ गोठ के काँटा तो अइसे गड़थे अंतस मा कि जब साँसा सिराही तभे वोकर पीरा हा अतरही।
कोनो बाइस-पच्चीस बच्छर के सुघ्घर बरन वाली माईलोगिन राड़ी हो सकथे का...? अउ होगे तब बिन मरद के कइसे रही...? कइसे रात कटत होही....? कइसे दिन....? एक इशारा कर। जान हाजिर हो जाही ....। 
मनचलहा मन के बड़का टॉपिक आय डिस्क्शन करे बर । अब्बड़ ताना सुने ला पड़त हाबे भूरी ला। 
             ऑंसू ला नापतिस ते समुंदर बन जातिस। पीरा ला नापतिस ते पहाड़। हे भगवान कोनो ला अइसन राड़ी के जिनगी झन दे। बिन गोसइया के जिनगी बीख आय बीख...। भूरी के जी कलप जाथे। 
"पहार कस जिनगी कइसे अकेल्ला पहाहूँ मालिक !''
संसो करथे भूरी हा। 
          एक दू बेर भूरी के माइके वाला मन पुनर्विवाह करे बर टूरा पठोइस फेर ससुर कातिक बाधा बनगे।
"भूरी अब हमर जिम्मेदारी आय समधी महराज ! आप संसो झन करो। एक बेरा तुमन कन्यादान कर डारेव। अब हम करबोंन हमर बेटी कस बहुरिया के हाथ पींयर। '' 
ससुर कातिकराम किहिस मेंछा मा ताव देवत। मुँहू मा राम-राम बगल मा छूरी। भूरी के वेतन के पइसा मिलत हाबे तब काबर पहिरे बर दिही चुरी । कातिक बारा बिटौना करिस अउ "लक्ष्मी'' ला अकेल्ला कर दिस जिनगी के रद्दा मा । दुधारू गाय ला कोन दुरिहा करही.....?       
            बेरा मा जेवन नइ मिले भूख मर जाथे वइसना साध घला होथे। अब तो जम्मो साध मरगे भूरी के।
           सरकार हा ऑफिस मा सरकारी बुता करे बर वेतन देथे फेर कतको बेरा तो भूरी के गोठ ले निकाल देथे "साहब मन''। हितवा अउ गिधवा के दल दिखत हाबे ऑफिस मा घला। बड़की बेटी आज ऑफिस मा दाई ले मिले बर गिस अउ पेपर वेट ला गिरा दिस। पेपरवेट टुटगे अउ लइका के परवरिश मा प्रश्न चिन्ह लगगे।
"बिन बाप के लइका मन अइसने होथे उतबिरिस। चोर डाकू गुंडा मवाली रंडी बेसिया सब बनथे।''
साथी कर्मचारी के गोठ नारी जाति ऊप्पर प्रश्न चिन्ह लगगे। 
"सिरतोन जेखर दाई-ददा दुनो झन रहिथे तेखर लइका श्रवण कुमार होथे का ... ?''
भूरी के आँखी ले ऑंसू निकल जाथे गदगद-गदगद। बड़का-बड़का परीक्षा पास करइया साहब मन करा कोनो उत्तर नइ राहय भूरी के सवाल के । 
"कतको दाई मन अपन लइका के सेवा-जतन करके अब्बड़ नाव कमाये के लइक बनावत हे...। अंधरा हो। पेपर टीवी मा जगजग ले देख लेव- आँखी के फूटत ले......।  देख ले अधिकारी बाबू  हो ...।''
भूरी रगरगावत रिहिस । मोर लइका ला घला समाज के उज्जर बरन वाला बनाहूँ। भूरी किरिया खावत हे मनेमन। काकर संग कतका लड़ई बाजही...? कोन ला कतका समझाही...?
             आज दुनो बेटी के नवोदय विद्यालय मा चयन होगे। का होइस दुरिहाये ला लागही ते...। रही जाहू अकेल्ला फेर लइका के जिनगी बन जाही। भूरी अपन दुनो लइका ला पठो दिस नवोदय विद्यालय।
        आज महीना के दू तारीख आय। एक तारीख के साँझ मुंधियार ले वेतन आथे भूरी के । जम्मो ला जानथे ससुर कातिक हा। धमक गे भूरी के घर। भलुक तिहार-बार के पइसा देथे कपड़ा-लत्ता बिसाथे जम्मो कोई बर। फेर ससुर ला तो कमती पड़ जाथे। भलुक बीस एकड़ के जोतनदार आय अउ छे घंटा बर सरकारी हेडमास्टर तभो ले पइसा कमती हो जाथे...? भूरी ला पदोना हे न।
"बखरी के कुआँ अटागे हे। जम्मो साग भाजी अइलावत हाबे। अब बोर कराहूँ तब बने पानी पलही । अस्सी हजार दे तो।''
ससुर कातिक किहिस।
"पाछू दरी थ्रैशर लेये बर साठ हजार देये रेहेंव। सास के ईलाज बर पन्दरा हजार देये रेहेंव। जादा नइ कमावव बाबूजी ! मोरो उच्च नीच लगे रहिथे। नइ हे ये दरी पइसा ।''
भूरी ससुर के पैलगी करत किहिस। ससुर अगियावत रिहिस। अब्बड़ श्राप डारिस अउ जुड़ होवत किहिस।
"अतका दुरिहा आय हँव ते पेट्रोल के पुरती तो दे ओ !''
भूरी दू सौ के कड़कड़ाती नोट ला दिस तब गिस कातिक हा।
          जिनगी के नदिया मा अब्बड़ डगमगाइस भूरी के डोंगा हा । फेर भंवर मा फँसन नइ दिस। जप तप तपस्या करके लइका मन ला पढ़ाइस भूरी हा । दाई के तपस्या के फल अबिरथा जाथे का ... ? नही। आज बड़की हा सी. ए. हे अउ नान्हे नोनी हा मेकैनिकल इंजीनियर  हाबे। टूरा छोटे हाबे अउ बारवी के परीक्षा देवावत हे।
             अपन जिनगी के किताब के एक-एक पन्ना ला सुरता कर डारिस भूरी हा। जम्मो ला गुनत-गुनत अमरगे अपन गॉंव । अछरा मा अपन ऑंसू पोछिस अउ घर के रद्दा रेंगे लागिस ससुर कातिक ले मिले बर संग मा हाबे तीनों लइका। भलुक ससुर तंग करिस फेर अपन धरम ले विमुख नइ होवय भूरी हा। भूरी के कर्तव्य आय ससुर के जतन करे के।   देवर-देरानी मन तो हीरक के नइ देखे सियान कातिक ला । का होइस ... मेहतरीन तो हाबे महीना पुट पइसा दे देथे भूरी हा। 
... सिरतोन सियान कातिक के अगोरा सिरागे अब। तीनों लइका संग गंगाजल पियाइस सियान  ला । सियान दुनो हाथ जोरे हे जइसे माफी मांगत हाबे। कुछु कहे के उदिम करिस फेर मुँहू ले बक्का नइ फुटिस। गो...गो...ब...ब... के आरो आइस। जीभ बाहिर कोती होगे। ऑंसू वाला आँखी फरिहागे, पथरा होगे अउ काया माटी। 
     अब गाँव भर जुरियागे रोये-गाये बर।  देरानी मन ....? वहू मन आवत हाबे मेकअप करके ।
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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया
आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी
जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़
पिन 493773
मो. क्र. 8120578897
Email ID csahu812@gmail.com

नारी सशक्तिकरण बर मील के पथरा बनही : गोदावरी*

 *नारी सशक्तिकरण बर मील के पथरा बनही :  गोदावरी*

          छत्तीसगढ़ धन-धान्य ले भरे-पूरे राज आय। अपन संस्कृति अउ लोक-परम्परा के संग खनिज-संपदा के मामला म हमर छत्तीसगढ़ राज कतको राज मन ले आगू हे। अमीर प्रदेश के गरीब जनता के विडंबना आय कि उन मन शिक्षा ल बरोबर महत्व नइ दॅंय। शिक्षा के अभाव ले आने प्रदेश ले आये मनखे मन इहाॅं राज करे धर लिन। पाछू कुछ बछर म लोगन के चेत शिक्षा बर गे हे। खासकर के नारी शिक्षा बर। मोला अपन प्रायमरी स्कूल के दिन सुरता आवत हे, तब प्रभात फेरी म निकलन त एक ठन नारा 'नारी पढ़ेगी, विकास गढ़ेगी' खूब लगाय हन। जेन आज सोला आना सच साबित होवत हे। जेकर आरो डॉ शैल चंद्रा के लिखे उपन्यास 'गोदावरी' म घलव हे।

      बुधारू तोला ऐतराज नइ होवे त तोर बड़का बेटी माधुरी ल अपन गाॅंव ले जावॅंव का? माधुरी मोरे तिर म रही के पढ़ही-लिखही। तेंहा तो बेटी मन घलोक पढ़ात नी हस। पृ. 25

         इहें यहू पढ़के बने लागिस कि लागमानी मन म मया दुलार बचे हावय। अड़चन के बेरा म साहमत बर आगू आथे। अइसने ले ही रिश्ता अउ लागमानी म मया बाॅंचे रहिथे।

         डॉ शैल चंद्रा खुदे पढ़े-लिखे विदुषी नारी आय। जेन सरकारी हायर सेकेण्डरी स्कूल म प्राचार्य हें। छत्तीसगढ़ के साहित्य अगास के चमकत बड़का तारा ऑंय। हिंदी लघुकथा लेखन म उॅंकर राष्ट्रीय पहिचान हे। लघुकथा जेन लघुता अउ मारक क्षमता बर साहित्य म पहचाने जाथे, वो उॅंकर लघुकथा म देखे जा सकथे। उन लघुकथा के अलावा कविता अउ कहानी लिखथव। उॅंकर रचना मन के प्रसारण आकाशवाणी रायपुर ले सरलग होवत रहिथे। हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी म डॉ शैल चंद्रा के लिखे नौ किताब छप चुके हें। 

        समीक्षित ए किताब 'गोदावरी' उपन्यास विधा के किताब आय। जौन ल किताब के भीतर शीर्षक पन्ना म लघु उपन्यास लिखे गे हे। लघुकथा जे साहित्य म कथा(कहानी) ले अलग एक विधा आय। वइसन लघु उपन्यास नाव के कोनो विधा नी होय। इहाॅं लघु शब्द उपन्यास के आकार बर बउरे गे शब्द आय। डॉ शैल चंद्रा 'गोदावरी' म नारी के संघर्ष अउ सामाजिक मान्यता (मानता) के द्वंद्व ल रखत एक स्त्री के सम्मान ल स्थापित करे के पुरजोर कोशिश करे हे। समाज बर संदेश भी हे कि नारी अपन संकल्प ले हर मुकाम पा सकथे। उन ल कमती नी ऑंकना चाही। उॅंकर रद्दा के बाधा नी बनना चाही। बढ़ावा देना चाही।

         डॉ शैल चंद्रा समाज के जम्मो सोच ल अपन छोटे से उपन्यास म माला के मोती बरोबर पिरोय के सुग्घर प्रयास करे हे। समाज के पूरा मनोविज्ञान उपन्यास म लक्षित होवत हे। छत्तीसगढ़ म प्रेम मया करइया मन उढ़रिया भाग कइसे जिनगी जीथे। मया के रद्दा म का बाधा आथे? अउ दू मयारुक कइसे ढंग ले जिनगी गुजारथें। उपन्यास म मया के संयोग अउ वियोग दूनो के सुग्घर समन्वय सराहे के लाइक हे। गोदावरी अउ सागर के मया ल जेन उॅंचास दे गे हे, वो आदर्श ए। मया लुटाना जानथे। फिल्मी दुनिया ले हट के ए आदर्श गढ़ई डॉ शैल चंद्रा के कल्पनाशीलता के कमाल आय।

         २००७ म नारी विमर्श के एक अउ उपन्यास आय रहिस 'बनके चॅंदैनी'। जे सुधा वर्मा जी के कृति आय। एमा नारी के पीरा, द्वंद्व, अउ वत्सलता के संग मया म धोखा अउ छलावा ले जिनगी के समाय हे। आज समय बदल गे हे। बदले बेरा म नारी अबला नइ रहिगे हे। अब नारी सशक्तिकरण के जुग आय। इही नारी सशक्तिकरण के बीड़ा ल आगू बढ़ाय म 'गोदावरी' मील के पथरा साबित होही।

         साहित्य समाज के दर्पण कहाथे त समाज बर अपन उपादेयता ले कहाथे। समाज के बने अउ घिनहा दूनो किसिम के बात ल सरेखत समाज उत्थान बर जेन संदेश साहित्य देथे। उही ल समाज हाथों-हाथ लेथे। साहित्य अपन समय के समाज के रीत-रिवाज, मानता, भेदभाव, कुरीति अउ प्रथा (कु), जम्मो प्रकार के विसंगति ऊपर प्रहार करथे त सहराय के लाइक गोठ ल सहराथे।

       बालविवाह, दहेज, बेटा-बेटी म भेद, सामाजिक विद्रुपता जइसन सामाजिक बुराई मन ल उपन्यास म छुए के साथ समाज ले दुरिहाय के उदिम हे। उहें विधवा के विवाह कराके एकाकी जीवन के विडंबना अउ त्रासदी ले नारी ल उबारे के सुग्घर जतन समाज ल नवा दिशा दिही। नान्हे उमर म विधवा होय पाछू जिनगी कइसे नरक सहीं हो जाथे अउ एक-एक पल कइसे जुग बरोबर लागथे। एकर मर्मस्पर्शी चित्रण के संग समाज ऊपर तंज कसे म डॉ शैल चंद्रा के लेखनी कहू मेर कसर नी छोड़े हे। नारी ल सम्मान के संग जिऍं बर नारी च ले लड़े ल परथे। उहें ए उपन्यास म भारतीय नारी के संस्कार अउ कर्तव्य परायण ल बढ़िया ढंग ले उकेरे गे हे।

      'नहीं सागर! तोर से अब मैंहा सात जनम का अब चौदह जनम तक नी मिल सकौं। काबर कि मेंहा जेकर संग सात भांवर लेहॅंव, जनम जनम ओकरे रहिहॅंव...जनम जनम के साथ निभाहूॅं। सागर तोर मोर बस अतकेच के संग रहिस हे।'  पृ 53

       छत्तीसगढ़ के माटी के ममहासी अउ लोक परम्परा ल जीवंत रखे अउ नवा पीढ़ी तक हस्तांतरित करे म ए उपन्यास के योगदान सराहे जाही। मितानी परम्परा, तीजा-पोरा, जंवारा, उपास-धास के संग इहाॅं के संस्कृति के महत्तम ल सरेखना उपन्यास के एक खासियत हे। 

       माधुरी के कचहरी म नौकरी लगई ह अतका आसान नोहय , जतका बताय गे हे। आज कोनो भी नौकरी लगना अतका आसान नइ हे। इहाॅं भ्रष्टाचार ल बढ़ावा दे के बू आवत हे। हो सकत हे मोर समझ उहाॅं तक नी जा पावत हे, जेकर कल्पना लेखिका करे हें। 

      गोदावरी ह माधुरी ल क्लर्क बर कचहरी म नौकरी लगा दिस....पृ48

        उपन्यास अपन संग कतको उपकथानक लेके आघू बढ़थे। सबो उपकथानक के तार अइसे जुरे रहिथे कि पाठक ओमा बुड़ के एक गंगा स्नान के आनंद के अनुभूति करथे। डॉ शैल चंद्रा के लेखकीय अनुभव अतेक हे कि ओ ए उपकथानक मन ल थोरिक विस्तार देके उपन्यास ल अउ पठनीय बना सकत रहिन हे। कुछ अउ समय ले के उपन्यास के धार (उपन्यास के प्रकृति अनुरूप गति/प्रवाह) ल चिन के ठहराव देवत आघू बढ़ाना रहिस। जेकर ले मिठास बाढ़बे करतिस अउ एक सशक्त कथानक संग सशक्त उपन्यास हमर हाथ लगतिस। यहू बात हे कि हर लेखक के अपन एक सोंच अउ कल्पना होथे कि कोन रचना ल कइसे अउ कतका विस्तार देना हे। एकर अधिकार भी उन ल हे।

       मोला ए उपन्यास के भीतर वर्ण 'श' ल बउरे ले बाॅंचे के सायास उदिम करे गे हे लगिस।  सोभा, परेसानी, सहर, जबकि  लेखिका के नाॅंव म घलव 'श' आथे अउ शंकर बस ल सही लिखे गे हे। प्रूफ रीडिंग के अभाव म कुछ-कुछ वर्तनी त्रुटि हे, जौन ल अवइया संस्करण म सुधार लिए जाही एकर मोला पूरा भरोसा हे।

       किताब के मुख पृष्ठ आकर्षक हे, जेन उपन्यास के कथानक ल सपोर्ट करथे। एक कोति मयारुक मन के अगाध मया ल मान दे हे, त दूसर कोति दृढ़ संकल्पित नारी के उड़ान (सपना) ल घलव संजोए दिखत हे। कागज के क्वालिटी अउ छपाई स्तरीय हे।

       नारी संघर्ष के कथानक ले सुसज्जित नारी सशक्तिकरण ल बढ़ावा देत सुग्घर उपन्यास जेन म मया के पवित्रता ल नवा उॅंचास दे हे। अइसन सुग्घर उपन्यास के लेखन बर डॉ. शैल चंद्रा जी ल गाड़ा-गाड़ा बधाई !

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किताब - गोदावरी

लेखक - डॉ शैल चंद्रा

प्रकाशक - बुक्स क्लिनिक पब्लिशिंग बिलासपुर

प्रकाशन वर्ष - 2023

कॉपीराइट - लेखकाधीन

मूल्य- 150/-

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पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह, पलारी

जिला - बलौदाबाजार भाटापारा छग .

मोबा. - 6261822466