Wednesday 20 March 2024

तेल निकलगे बाबूजी* (ब्यंग)

 *तेल निकलगे बाबूजी*

        (ब्यंग)        


              कोनों जरूरी नइये कि घनिहा मन ही तेल निकाले। जेकर मा दमखद हे ओहू तेल निकाल सकथे। जाँगर पेरे ले पसीना चुचवाथे। चुकता मनखे के जिनगी पेराथे तब तेल निकलथे। 1950 के जनम धरे 75 साल होगे। ये तो बने होगे कि आधा उमर मा मरे नइहन। एकर सेती बता सकथन कि, जे तेल ला खटारा दू चकिया मा  30 रुपिया मा भरा के पाँच गाँव किजरन, आज सौ पार होके हमर तेल निकालत हे बाबूजी। जे तेल 30 रुपिया मा कड़ाही भर खुसर के होरी देवारी के तेलई मनवा देवय आज हमर तेल निकाल के तिहार पुरोवत हे। जेकर तेल बजबजावत हे वो मन आस्था के सवा लाख  दीया ला घींव मा बारत हे। महूँ नौं दिन ले जोत जलाय के बदना बदे रेहेंव। फेर तेल बर तेल निचोय बर परत हे। कोनों धर्माचारी अतके कहि देय कि अंग भभूति चुपरे ले सुंदरता बाढ़थे। तब कम से कम तेल तो बाँचतिस।

           एक झन राष्ट्रीय ब्रांड के तेल पेरुक ला पूछ पारेंव कि तोला तेल निकाले के गुन कते मंडली ले मिलिस?  तेल निकाले बर कच्चा माल कहाँ ले लाथस? आखिर ये तेल ला कते बजार मा खपाथस? कोनों खेमा के गमछा टाँगके पूछे रतेंव तबतो मोरे तेल निकलना तय रिहिस। बिचारा जेती बम ओती हम के बिचारधारा ले पनपे बुद्धिमान घनिहा के भूमिका बनाके विस्तार दिस कि, जेकर हाथ मा ई डी सीडी सी बी आई हे ओकरे ले सिखना परथे कि कब काकर कइसे तेल निकालना हे। कच्चा माल तो सहिष्णुता धारी मन टरक टेक्टर मा भर भरके लाथे अउ दुवारी मा खपल के जाथे। हम थोक के भाव मा मिडिया वाले ला बेंच देथन। जे मन अँइलाय भाजी तक मा पानी छींच छींच के भागा मा बेंच के आमदनी बटोरथें। अइसन प्रायोजित प्रक्रिया के प्रायोजक उन गरम मसाला के बेंचइया मन रथे जेन ला मसाला खाये बर परहेज हे। लाभ हानि के तराजू मा झूलत मनखे  मितान ले घलो फायदा के कायदा खोजत रथे। ये नीयत ला नीति मा परखे जा सकथे। अर्थ नीति ये कथे कि नीजि फायदा ला गीनत ले  छापामार वाले मशीन भले थक जाय, फेर देश अउ आम जनता के तेल निथरत रहना चाही। इन मन वो घनिहा आय जे मन खरी के बरी बनाके आमदनी कमाथे। आखिर मा हमरे तो तेल निकलथे बाबूजी। 

                   एक वो मन जे मन जुट्ठा बोइर अउ भूँजे ताँदुर खवाके अपन तेल बचालिन। हमर असन भगत मन ला खुद अपन होके जाये बर व्ही आईपी पास बनवाके एक हजार एक के तेल चघाना परथे। भगवान घलो जान गेहे कि लोकल के तेल मा वोकल के असर कम होथे। सद्भावना यात्रा ले जुड़ के रेंगे मा देखेन कि मंदिर के आगू मा मस्जिद नइ होना। चर्च गुरुद्वारा आपस मा गला नइ मिल पावत हे। हम बुलबुले हैं इसकी ये गुलशितां हमरा आज बर निही बीते काली बर लिखे गेय रिहिस। बदलाव के कारण अतके हे कि अब राजनीति हर राष्ट्रीयता अउ धरमनीति के पाठशाला चलावत हे। जेकर बर बीच बीच-बीच मा मठाधीश गुरुजन के अवतरण होवत रथे। इही अवसरवादी चादर चढ़इया अउ घंटा बजइया मन मनखे जात के मूल धरम, कइसे एक दूसर बर दाँत कटरे जाथे, सिखाथें। जेकर ले प्रेम दया करुणा सद्भाव के तेल निकलत रहय। जब मनखे जोड़ो भारत जोड़ो सद्भावना रैली निकलथे। इन मन ला लगथे कि हम छरिया हावन अउ इँकरे जोरे ले जुड़बो। तभे समझ मा आ जथे कि हम सब छरियाय हावन। इँकर दुहना फुटगे तब नवा कसेली खोजे के लचारी खेल तमासा ले कम नइ दिखे। 

            मितानी तो एके इसकुल मा पढ़त ले रिहिस। हम नाँगर धरे हन वो देश के नब्ज धरके संसद मा जमे हे। मोर काम परिस तब चमचा पीए सीए सबके तेल लगाय बर परिस। तभो नकाम हो गेन। हमरे तेल के चपचपहा धार ले पाँच साल राजभोग करही। ओकर बाद तो मीठा तिलक तेल धरके आही। मस्तान सिंग मन ला ये गम नइये कि अब देश के 140 करोड़ मन घलो  तेल निकाल देथे। हारे दाँव मा सपट के कहिहीं कि तेल निकलगे बाबूजी। 

           बड़े बड़े कॉर्पोरेट घराना के उत्पादन ले करघा चरखा के तेल सुखागे। फेर अतका हे जे मन खादी धारन करथे वोला उच्च कोटि के घनिहा माने जाथे। चस्मा उपर स्वच्छ भारत लिख के तोर मान बढ़ावत हन बापू। एकर ले आपला गरब होना चाही। कि सैगोना कतको सरगे हव तभो ले एक पाचर के बाँचे हव। बस रुपिया उपर के तोर छापा हटाये के साजिश सफल झन होवय। नइते तहूँ मन कहू कि अब तेल निकलगे बाबूजी। 

            अम्बेडकर के आत्मा ला चिट्ठी लिखके पूछ पारेंव कि तोर भरोसा के तेल निकलत हे साहेब। जे मन ला समता समरसता समानता के बाना धराय रेहेव। वोमन प्रतिष्ठा बचाय बर प्राण फूँकत भव्यता के नाम चंदा वसूली मा लगे हे।  का ये समरसता के काठी कफन के तइयारी तो नोंहे? नारी जात मन पढ़ लिखके बड़का उपलब्धि बटोरत हें। जे मन जादा पढ़ डारिन ते मन नवा संसकार अउ नवा संस्कृति मा फूले के किताब ला सान के जराय बर प्रतिवादी संघ के लूठी खोजत हें। चिट्ठी के जवाब भले झन आय फेर अतका जरूर लिखतिस कि हमर पसराय पोटारे ज्ञान के तेल निकलगे बाबूजी। 

          मनखे मनखे एक समान के विचारधारा ला एकर सेती चुनौती देना परत हे कि सब समान हो जही तब सामाजिक समरसता के तेल कइसे निकलही। गरीबी रेखा के खिंचइया मन ला तो घलो सुभिता मिलना चाही। जेन चौंरा मा बइठ के दुख सुख बाँटे जावे। उँहा झूठ के चेंदरी मा सभ्य समाज ला पोछा लगाये जावत हे। मँझोत परछी मा दिखावा के बाहरी परत हे कुरिया ला बहुरुपिया मुसवा वोकारत हे। सुम्मत अउ एकता के धारन पटिया ला वो कीरा घुन्ना खावत हे जे धारन ला खड़ा करे मा उँकर पुरखा मनके तको हाथ नइये। आज धन धरती अउ राजपाठ इँकरे बाप के बफौती हो गेहे। बस नजर लमाके देख हक अउ सहिष्णुता के तेल निकलत हे बाबूजी। निजी मालिकाना के तेल खतखुरहा झन होय। एकर बर सर्व धर्म संभाव के राष्ट्र मा तनातनी के वादी मन राष्ट्रव्यापी छँदनी के जुगाड़ मा लगे हे जेकर ले काकरो न काकरो संकल्प तो पूरा हो सके। 

        परबत चीर के निकलने वाला भागीरथ गंगा दूनो भगत ला तारत हे एक वो जेकर तेल निकलगे। दूसर वो जेमन तेल निथारे बर तइयार खड़े हें। पुन्य परब मा नहवइया अउ काबा मदीना मा चद्दर चढ़इया के भीड़ ले पता चलथे कि पाप धोवाने वाला कतका झन हे। पूस माघी पुन्नी बर मोला अउ मोर मितान ला नहाय के जरूरत नइ परिस। काबर कि एकर सँग हम संझा डिस्पोजल सँग मिलाके चखना सँग आत्मसात कर के तर जाथन। तब डूबकी लगाके जल प्रदूषण करना नइ चाहन। हमला धार मा डूबकी लेय के जरूरत नइ परिस वोकर कारन ये हे कि हम दिखावा के जग रैदास ला खड़ा कर देथन। अपन तेल बचाके दूसर के तेल निकलइया ला गंगा जी चुकता जल समाधि नइ करवाही तब तक पाप धो धो के मइलाय परत रही। तब चिचियाही कि बेटा हो तुँहर तरन तारन करत ले मोरे तेल निकलत हे। जे मन चुरवा मा भर भर के किरिया खावत रथे अइसन भागीरथी के सात पीढ़ी ला  तारत ले गंगा कतका गंदा होवत हे, सरकारी आँकड़ा बताही कि सफाई बर सरकार ला कतका तेल बोहाना परत हे। 

            बाजारवाद के घानी मा बैपारी मन तेल निकालत हे। इँकर उपजारे मँहगाई मा गरीब मन के तेल निकलत हे। धरम सम्प्रदाय के घानी मा वादी प्रतिवादी मन अतका पेरत हें कि मानुसपना के तेल निथरत हे। आस्थावादी ठेकादार मन आँखी मा टोपा बाँधे वाला बरदी सकेलत हें। समरसता के घानी ले निकले खरी मा घलो जागरूकता आये के खतरा दिखथे। एकर ले खरी के बरी बनाके आडंबर के तरिया मा सरोय जावत हे। 

        आदमी एक अउ तेल निकाले बर भूख गरीबी मँहगाई बेरोजगारी लूट घूस धरम के कट्टरता ले पगलाय विचारधारा व्यवसाय के करिया बजार से ले के हपसी वहसी समाज सबके घानी तइयार हे। बाँचे बर कतका अउ कहाँ कहाँ भागबे। आखिर तो तेल निकलना ही हे बाबूजी। 


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

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