Thursday 28 October 2021

सुरता..सुशील भोले

 सुरता..सुशील भोले

राज आन्दोलन म आहुति...

    अलग छत्तीसगढ़ राज बनाय खातिर जेन आन्दोलन होए हे, वोमा वइसे तो लगभग जम्मो वर्ग के लोगन के कोनो न कोनो किसम के योगदान हे, फेर मोला लागथे के ये यज्ञ म इहाँ के साहित्यकार मन के आहुति सबले जादा डराय हे. काबर ते राष्ट्रीय राजनीति ले जुड़े लोगन मन तो सिजनेबल या कहिन चुनाव वुनाव के बखत भले जादा तनियावंय, फेर साहित्य ले जुड़े लोगन बारोंमासी ए बुता म भीड़े राहंय.  छत्तीसगढ़ी भाखा साहित्य ले संबंधित जिहां भी कार्यक्रम होतीस, कोनो जगा कवि सम्मेलन या गोष्ठी होतीस, सबो म अलग राज के नारा जरूर बुलंद करतीन. हां, इहू बात सिरतोन  आय के क्षेत्रिय राजनीतिक दल मन घलो बारोंमासी ए उदिम ल करंय. फेर एकर मन के संख्या अंगरी गिनऊ राहय, तेमा उप्पर ले कतकों मन के उदिम ह तो सिरिफ दुकानदारी  चलाए बरोबर घलोक लागय.

    वइसे तो मोर जनम डा. खूबचंद बघेल के अगुवई म सन् 1956 ले छत्तीसगढ़ भातृसंघ के झंडा ले चले  जन आंदोलन के बखत नइ हो पाए रिहिसे, फेर  जब पवन दीवान जी पृथक छत्तीसगढ़ पार्टी के बेनर म गाड़ी छाप के चुनाव चिन्ह म केयूर भूषण जी के खिलाफ रायपुर लोकसभा ले चुनाव लड़िन त  हमन पढ़त रेहेन, तभो अपन गाँव म अउ तीर तखार के गाँव मन म सइकिल म घूम घूम के वोकर चुनाव के चिनहा  'गाड़ी छाप' के छापा बना के प्रचार करन. फेर जिहां तक बड़का जलसा म शामिल होए के बात हे, त मैं चंदूलाल चंद्राकर जी के अगुवई म रायपुर के सप्रे स्कूल मैदान म होए बड़का जनसभा म जरूर शामिल होए रेहेंव. 

   हमन कुर्मी समाज के सामाजिक गतिविधि अउ संग म साहित्य जगत म नान्हे उमर ले जुड़ जाए के सेती, राज आन्दोलन म जल्दी संघरगे रेहेन. रायपुर के तात्यापारा वाले कुर्मी बोर्डिंग वो पइत राज आन्दोलनकारी मन के एक प्रकार के ठीहा राहय. कोनो संगठन के लोगन होवंय, बइठका ल इहेंच राखंय. एक तो अइसन बइठका खातिर कोनो किसम के उहाँ शुल्क नइ ले जावत रिहिसे, उप्पर ले शहर के बीच म होए के सेती चारोंमुड़ा के लोगन ल उहाँ पहुंचे म सोहलियत परय, बस अउ रेल ले आने शहर ले अवइया मनला घलो सोहलियत परय.

    चंदूलाल चंद्राकर जी के अगुवई म जेन बड़का सभा होए रिहिसे, वोमा रायपुर के पूरा छत्तीसगढ़ी साहित्य जगत एकमई होगे रिहिसे. काबर ते इहाँ के सियान साहित्यकार हरि ठाकुर जी वोमा खांध म खांध जोर के रेंगत रिहिन हें, अउ हमू मनला जतका झन साहित्य समिति संग जुड़े रेहेन सबला एमा संघरे बर केहे रिहिन. ए ह ऐतिहासिक जलसा होए रिहिसे, जेमा पूरा छत्तीसगढ़ के लोगन इहाँ जुरियाए रिहिन हें. 

   ए बड़का जलसा के बाद अतका बड़का रैली अउ जलसा भूपेश बघेल के अगुवई म सरलग चले 'स्वाभिमान रैली' म देखे बर मिलिस, जेन पूरा शहर ल किंजर के गांधी चौक म जुरियावय. ए जुराव के एक खास बात ए रहय, के एमा जम्मो अलग अलग राजनीतिक दल के लोगन, एक मंच म जुरियावंय अउ खांध म खांध मिला के अलग छत्तीसगढ़ राज के मांग ल बुलंद करंय. मोला भूपेश बघेल वाले स्वाभिमान रैली के ठउका सुरता हे, जब भूपेश बघेल के संग रमेश बैस अउ अजित जोगी जइसन अलग अलग राजनीतिक धुरी के मनखे खांध म खांध मिला के रायपुर शहर म किंजरे रिहिन हें, अउ मंच म संगे म बइठे रिहिन हें. ए आयोजन म एक अच्छा बात ए होवय, के एला कोनो राजनीतिक दल या उंकर झंडा के खाल्हे म नइ करके सर्व छत्तीसगढ़िया समाज के मुखियई म करंय. जतका छत्तीसगढ़िया समाज के अध्यक्ष मन राहंय, उन मन ल पागा पहिरा के मंच म बइठारंय.

     छोटे छोटे धरना प्रदर्शन तो अबड़ होवय. कतकों अलग अलग संगठन मन अपन अपन बेनर के खाल्हे रखंय. एक बात इहाँ विशेष रूप ले उल्लेख करे के लाइक हे, के भले रायपुर ह वो बखत घोषित रूप म राजधानी नइ बने रिहिसे, तभो जम्मो धरना प्रदर्शन ल रायपुर म ही जादा करे जावय. दूसर  शहर के संगठन वाले मन घलो रायपुर म जुरियाए के कोशिश करंय.

    एक नान्हे संगठन तो हमू मन 'छत्तीसगढ़ी बहुमत' के नांव ले बनाए रेहेन. अउ अभी के राजभवन चौक, जेला वो बखत सर्किट हाउस चौक कहे जाय, उहाँ धरना प्रदर्शन करे रेहेन. हमन ल खासकर मोला तो जम्मो संगठन वाले मन अपन धरना प्रदर्शन अउ रैली म बलाते राहंय, काबर ते हमन छत्तीसगढ़िया राज ले संबंधित जोरदरहा कविता सुनावन. एकरे सेती उन काहंय- बाबू हो तुमन आथव अउ सुग्घर सुग्घर कविता सुना देथव त मंच के रौनक बाढ़ जथे. इहू बात हे, के वो बखत हिन्दी अउ उर्दू के कतकों तथाकथित राष्ट्रवादी साहित्यकार मन तब हमन ल देशद्रोही कहे म घलो लाज नइ मरत रिहिन हें. ए बात अलग हे, के आज उही मन छत्तीसगढ़िया कहाए बर सबले जादा ढोंग करत रहिथें.

   ए राज आन्दोलन म मैं एक परम समर्थक के जरूर उल्लेख करना चाहथंव, जेन भले अकेल्ला सइकिल म किंजरत राहंय, फेर रायपुर या तीर तखार के शहर म कहूंचो धरना प्रदर्शन होतीस, वोमा पहुंची जावंय. हम सब उनला बालक भगवान के नांव ले जानन. उंकर असली नाम पूर्णेन्द्र सोनी रिहिसे, जेन कंकाली पारा के मूल निवासी रहिन, फेर उन लइकई उमर ले ही संन्यास के रद्दा ल धर ले रिहिन हें, तेकर सेती सब उनला बालक भगवान ही काहंय. उंकर शरीर म कपड़ा के नांव सिरिफ एक ठन लंगोट भर राहय. उंकर जगा एक लइकुसहा सइकिल घलो राहय, जेमा उन चारों मुड़ा के दौरा करयं. उंकर सइकिल म एक नेम प्लेट टंगाय राहय, जेमा 'छत्तीसगढ़ राज लेके रहिबो' लिखाय राहय. 

    रायपुर के छत्तीसगढ़िया साहित्यकार मन में बहुत झन तो सरकारी नौकरी म राहंय, वोमन ए आन्दोलन ले छटके असन राहंय, फेर वोमा एक रामप्रसाद कोसरिया जी घलो  रिहिन, जेन गुरुजी राहंय तभो ले सबो धरना प्रदर्शन म संघरंय. मैं वोकर संग बहुत हांसी मजाक करंव, काबर ते वो ह हमर सियान रामचंद्र वर्मा जी संग एके स्कूल म पढ़ावय तेकर सेती हमर घर आना जाना घलो राहय. मैं वोला काहंव- तैं छत्तीसगढ़ राज खातिर सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन म संघरथस, तोला कहूँ नौकरी ले निकाल दिहीं त? त वो काहय- निकल दिहीं त वकीली कर लेबो जी, हम वकालत घलो पढ़े हन. वोकर ए बात मोला बहुत अच्छा लागय, के छत्तीसगढ़ राज खातिर वो अपन नौकरी के घलो फिकर नइ करत रिहिसे.

     वो बखत हमर मन के कलम खाली राज आन्दोलन ले संबंधित रचना खातिर ही जादा चलय. मैं तो सिंगार फिंगार रचना कभू लिखबेच नइ करेंव. हमर मन के स्वर अउ गायकी घलो मयारुक रिहिसे तेकर सेती गीत शैली के रचना जादा लिखावय...

धर मशाल ल तैं ह संगी जब तक रतिहा बांचे हे

पांव सम्हाल के रेंगबे बइहा जब तक रतिहा बांचे हे..

   ... .. ..

धरे मशाल फेर जाग उठे हें नारा ले स्वाभिमान के

एक न एक दिन फेर रार मचाहीं बेटा सोनाखान के...

... ...  ...

ये माटी के पीरा ल कतेक बतांव कोनो संगी संगवारी ल खबर नइए 

धन जोगानी चारों खुंट बगरे हे तभो एकर बेटा बर छइहां खदर नइहे...

कोनो आथे कहूँ ले लांघन मगर इहाँ खाथे ससन भर फेर सबर नइए..

लहू तो बहुतेच उबलथे तभो फेर कहूँ मेर कइसे गदर नइए...

... ..... ....

    सबके लहू पछीना ओगराए के, सबके देवी देवता ल सुमरनी के फल आखिर 1 नवंबर सन् 2000 के सिध परीस अउ छत्तीसगढ़ ल अलग राज के स्वतंत्र चिन्हारी मिलिस. फेर आज राज बने एक कोरी अकन बछर ले आगर होगे, तभो नइ लागय, के हमन जेन आरुग छत्तीसगढ़िया राज के सपना संजोए रेहेन, वो ह पूरा हो पाइस का? आज घलो इहाँ के शासन प्रशासन म उहिच  मन जादा देखब म आथें, जिंकर ले मुक्ति के सपना सजोए रेहेन. आज घलो इहाँ के भाखा अउ संस्कृति अपन अलग चिन्हारी खातिर आंसू बोहावत हे. नवा पीढ़ी रोजगार के आस म बूढ़ावत हे. तब फेर ये गीत के बोल फूट परिस- 

राज बनगे राज बनगे देखे सपना धुआँ होगे

चारों मुड़ा कोलिहा मन के देखौ हुआँ हुआँ होगे..

का का सपना देखे रहिन पुरखा अपन राज बर

नइ चाही उधार के राजा हमला सुख सुराज बर

राजनीति के परिभाषा लागथे महाभारत के जुआ होगे...

   कोनो भी राष्ट्रीय राजनीतिक दल होवय उंकर चाल चरित्तर देख के अइसे नइ जनावय के इहाँ आरुग छत्तीसगढ़िया राज कभू देखे बर मिल सकही, तब क्षेत्रीय दल के सपना देखत इहू लिखाइस-

जब तक दिल्ली म बइठे हे तोर भाग के खेवनहार

तब तक बेटा छत्तीसगढ़िया कइसे पाबे तैं अधिकार..

तोर धरती अउ तोर अंगना फेर नीति वोकर चलत हे

एकरे सेती जम्मो बैरी मन तोर छाती ल मचत हे...

जतका उंकर इहाँ मोहरा हें, करथें भावना के बैपार....

...   ...   ...

कब तक पछुवाए रइहू अब अगुवा बनव रे

नंगत लूटे हें हक ल तुंहर अब बघवा बनव रे.....

(संस्मरण संग्रह "सुरता के संसार" ले साभार)

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

दाऊ रामचंद्र देशमुख के 105 वीं जयंती म विशेष....


 

दाऊ रामचंद्र देशमुख के 105 वीं जयंती म विशेष.... 


   दूरदर्शन के माध्यम ले मुलाकात होय रीहिस दाऊ जी ले... 


जब मोर जनम होइस वोकर ले दू साल पहिली "चन्दैनी गोंदा "के जनम होगे रहिस हे. अउ जब येखर सर्जक श्रद्धेय दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ह जब येला कोनो कारन ले आगू नइ चलइस त मात्र 

आठ साल के रहेंव. मेहा दाउ राम चन्द्र देशमुख जी द्वारा संचालित" चन्दैनी गोंदा "ल कभू नइ देखेंव. दाउ जी ले घलो कभू आमने- सामने भेंट नइ कर पायेंव. मोर अइसन सौभाग्य नइ रीहिस हे. पर 

मोर डायरी म दैनिक सबेरा संकेत 

राजनांदगांव के "आपके पत्र "स्तंभ के पेपर कटिंग हे. वोखर मुताबिक मेहा दूरदर्शन केन्द्र रायपुर के कार्यक्रम "एक मुलाकात " के तहत जब श्री राम हृदय तिवारी जी ह दाऊ जी ले "गोठ बात "करे रीहिस हे वोला मेहा गजब रुचि लेके सुने रेहेंव. काबर कि मेहा कई ठक अखबार म श्रद्धेय दाऊ जी के जीवन परिचय, चन्दैनी गोंदा अउ "कारी" के बारे म पढ़े रेहेंव.  उद्भट विद्वान डॉ. गणेश खरे जी के लेख के सँगे सँग  कुछ अउ विद्वान मन के लेख ल पढ़े रेहेंव. जब दूरदर्शन केन्द्र रायपुर ले ये भेंटवार्ता ह शुरु होइस त मेहा आखिरी होत तक टस से मस नइ होयेंव.  ये भेंटवार्ता ले मोला छत्तीसगढ़ लोक कला मंच के विकास यात्रा म दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के योगदान के सुग्घर जानकारी मिले रीहिस हे. आदरणीय राम हृदय तिवारी जी ह दाऊ जी गजब अकन सवाल करिन कि देहाती कला विकास मंडल अउ चन्दैनी गोंदा के गठन अउ कारी के मंचन के का उद्देश्य रीहिस  हे. चन्दैनी गोंदा के पहिली इहां के नाचा अउ लोक कला मंच के कइसन दशा अउ दिशा रीहिस हे .चन्दैनी गोंदा ल आप  विसर्जित करे जइसे कठिन निर्णय काबर लेंव. अइसे का परीस्थिति अइस!  ये सवाल जब आदरणीय तिवारी जी ह श्रद्धेय दाऊ जी ले करिस त एकदम भावुक घलो होगे. वर्तमान म लोक कला मंच के दशा अउ दिशा उपर जब चर्चा चलिस तब दाऊ जी ह गजब उदास होगे अउ कहिस कि हमर छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान ल जगाय बर काम नइ हो पावत हे. लोक कला मंच के नाम म सिनेमा संस्कृति ह हावी होगे हे. अइसे कहत -कहत दाउ जी ह एकदम गंभीर होगे. 

सुग्घर "गोठ- बात " ह 21 मार्च 1996 म प्रसारित होय रीहिस हे.

  दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के जनम  25 अक्टूबर 1916 म बालोद जिला के डौंडीलोहारा विकासखंड के गाँव पिनकापार म होय रीहिस हे. वोहा 1951 म देहाती कला विकास मंडल के गठन करिस. येमा लाला फूलचंद श्रीवास्तव  जी चिकारावाला (रायगढ़), ठाकुर राम जी , बुलवा (रिंगनी साज),  रवेली साज के मदन निषाद जी (गुंगेरी नवागाँव, डोंगरगॉव, राजनांदगांव) जइसे बड़का कलाकार शामिल होगे. दाऊ जी ह ये कलाकार मन ल लेके काली माटी, बंगाल का अकाल, सरग अउ नरक, राय साहब मि. भोंदू खान साहब नालायक अली खां, मिस मैरी का डांस जइसे प्रहसन खेल के मनोरंजन के सँगे सँग जनता ल संदेश घलो दिस. 

  अउ 7 नवंबर 1971 म अपन गाँव बघेरा (दुर्ग)  मा सांस्कृतिक पुनर्जागरण के उद्देश्य लेके लोक सांस्कृतिक संस्था "चन्दैनी गोंदा "के गठन करिस. दाउ जी ह चन्दैनी गोंदा, कारी के माध्यम ले छत्तीसगढ़वासी मन के स्वाभिमान ल जगइस. चन्दैनी गोंदा के माध्यम ले  लक्ष्मण मस्तुरिया जी,  खुमान साव जी, केदार यादव जी, साधना यादव जी, भैया लाल हेड़ाऊ, कविता हिरकने (वासनिक )जइसे उम्दा कलाकार सामने आइन. 

  मेहा दाऊ जी द्वारा संचालित चन्दैनी गोंदा ल कभू नइ देखेंव पर 

बाद म लोक संगीत सम्राट श्रद्धेय खुमान साव जी द्वारा संचालित चंदैनी गोंदा ल घलो मात्र दो बार देख पायेंव .पर श्रद्धेय खुमान साव जी ले भेंट नौ बार होइस हे. येखर संस्मरण घलो लिखे हवँ. 

    हमर छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अग्रदूत ये महामानव ह 13 जनवरी 1998 म अपन नश्वर शरीर ल छोड़ के स्वर्ग लोक चले गिस. दाऊ जी ह अपन यश रुपी शरीर ले सदैव जीवित रहि. श्रद्धेय दाउ जी ल उंकर 105 वीं जयंती म शत् शत् नमन हे. विनम्र श्रद्धांजलि. 


       ओमप्रकाश साहू "अंकुर" 

      सुरगी, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)

सुरता दाऊ रामचंद्र देशमुख - चदैंनी गोंदा* शशि साहू


 

*सुरता दाऊ रामचंद्र देशमुख - चदैंनी गोंदा*

शशि साहू

आज दाऊ रामचंद्र जी देशमुख  के पावन पुण्य तिथि म उनला नमन करत हौ।उँकर सुरता करे के आज जेन मौका मिले हे तेला गँवाना नइ चाहँव। मँय अपन ला बड़ भागमानी मानथँव की ये जनम मा मोला कतको कलाकार अउ साहितकार मन के सानिध्य अउ आशीष मिलिस। फेर आज सुरता मँय बबा के करहूँ। सब बड़े मन उनला दाऊ जी कहें,फेर लइका मन बबा कहे । बघेरा मा चँदैनी गोंदा के रिहर्सल चले तब पिता जी जौन चँदैनी गोंदा परिवार के सदस्य रिहिन,ड्यूटी ले छूट के बघेरा रोजे जाँय। उही बखत दादी के कहे म( दाऊ जी के धर्म पत्नी) की नोनी ल लेके आबे शिव ये लइका मन संग इहे रही। पिता जी संग पहली बार दाऊ जी के महल म गेंव। हाँ उँखर निवास ल महल कहना ही उचित रही। बहुत बड़े घर। दादी बड़ मयारू रिहिस ।बहुत मया करे। पिता जी ल बेटा असन माने ।

तब मँय आँठवी कक्षा म रेहेंव।छोटे रेहेव तभो दादी कहे, येखर बिहाव ल देख सुन के बने घर मा करबे शिव। दादी के परोक्ष आशिर्वाद मोला उही समय मिल गे रिहिस।

उहें सखी कविता वासनिक ले भेंट होइस। वहू आँठवी कक्षा मा रिहिस।मँय बघेरा मा तीन चार दिन रेहेव। सुरता हे, एक कमरा म रिहर्सल होय। हारमोनियम मा खुमान साव जी ला सुर बाँधत देखेव।संग मा संगीत साधक मन के टीम। ।दाई सरस्वती के वरद पुत्र पुत्री मन ला सौंहत गावत बजावत देखना।देव दुर्लभ दृश्य रहे। आज घलो आँखी मा झूल जथे ।हाँ प्रहसन के रिहर्सल नई देखे हँव।

कलाकार मन के भोजन पानी के सुरता भुलाये नई भूले। 

जमो कलाकार पाँत धरके जेवन करे बर बइठे रहें।आघू मा बबा माची मा बइठे,जेखर थारी मा कुछु चीज के कमी परे 

त बबा परोसइया ल हुत कराये। फलाना के साग भात या दही खतम होगे। लाओ जल्दी। बबा के राजमहल मा सब बर भरपेट भोजन अउ सोय बइठे के व्यवस्था रिहिस।


शशि साहू

खुशी - सरला शर्मा दुर्ग

 खुशी - सरला शर्मा दुर्ग

    कब , कइसे , कहां , कोन रूप मं मिलही कोनो नइ जानयं ?  इही देखव न आज गूगल मं कुछु काहीं देखत रहेवं त नज़र परिस एक ठन  विज्ञापन ऊपर फ्लिपकार्ट से बिसावव " माटी के मितान " सरला शर्मा ....फेर का ?खुशी होइस अउ बहुत होइस ...। मन हर चिटिक थिराइस त गुनेवं हे भगवान ! एहर टेटका सहरावय अपन पुछी ले बहुते कुछु नोहय , तभो मन तो आय नाचे कूदे मं मगन मात गिस ...का करवं ये मन ल कोनो  दूसर डहर लगाए बर परही गुनते रहेवं के पोस्टमेन आइस ओकर हाथ ले बुक पोस्ट ले के ओला बिदा करके ..देखेवं ..." छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर " अक्टूबर से दिसम्बर 2020  अंक आय । बड़ दिन के बाद लोकाक्षर ल देख के भारी खुशी होइस ...ठीक कहेव खुशी के एक रूप एहू हर तो आय । हाथ मं किताब आथे त पढ़े के लोभ सम्हारना मोर बर बड़ मुश्किल होथे ...। 

  ये अंक मं आदरणीय नन्दकिशोर जी के लिखे छत्तीसगढ़ी लोक गाथाएं , प्रेम की छत्तीसगढ़ी लोकगाथा ....नगेसर कइना , बीरम गीत के बहाने , भूला बिसरा कवि पंडित गंगा प्रसाद तिवारी , संत परम्परा के प्रवर्तक कबीर और मान्याताएं  असन अनमोल जानकारी वाला लेख संग्रहित हे । " चयन" मं 1 पाना के करत हे सिंगार गोरी 2 अहो ! भगवान 3 चंदन सुधि पुरवा कर डारेवं ...के समीक्षा उन करे हंवय ...। 

   सबले बढ़िया बात के सबो लेख मन सहज , बोधगम्य हिंदी भाषा मं लिखाये हें । पहिली लेख हर तो छत्तीसगढ़ी लोक गाथा के बारे में शोधात्मक लेख आय जेमा लिखित परम्परा अउ वाचिक परम्परा दुनों के लोकगाथा मन के विस्तार से जानकारी देहे गए हे ...आयातित गाथा रसालू कुवंर , दसमत कइना , चन्दा अहीरिन , लोरिक चन्दा के सुघर वर्णन हे । 

" इस तरह की लोकगाथाएं जो हमारे सामने हैं उसमें आधुनिक युग चेतना का सम्मिश्रण मिलता है । छत्तीसगढ़ी भाषा को खड़ी बोली का सहज स्पर्श छत्तीसगढ़ी गाथा की लोकरजंकता में वृद्धि करता है । इन गाथाओं की सामाजिक प्रतिष्ठा के केंद्र में गाथाओं के गायकों का छत्तीसगढ़ी की विभिन्न जातियों से आना है इसीलिए गाथाएं छत्तीसगढ़ी जाति और समाज का भी प्रतिनिधित्व करती हैं । " पृष्ट 21 

    नवा प्रयोग देखे बर मिलिस " रूपक " के रूप मं " बीरम गीत के बहाने " मं ...आय तो गुरु शिष्य संवाद गीत मन के सुग्घर व्याख्या करे हें तिवारी जी ..। बानगी देखव ....

गुरु...." बीरम गीत सामाजिक दासता के विरुद्ध प्रतिरोध का तो सुआगीत सामाजिक प्रताड़ना के विरुद्ध होते हुए विरह संगीत है । " 

  संस्कृत साहित्य के अध्येता होए के सेतिर बढ़िया प्रासंगिक उद्वरण देके बीरम गीत के उतपत्ति , साहित्य मं ओकर स्थान ल समझाए हंवय ..। वसुधैव कुटुम्बकम् जैसन बात हो गिस ज़ेहर छत्तीसग़ढ के संस्कृति के पहिचान भी ए विशेषता भी ए । पृष्ट 50

 संत परम्परा के प्रवर्तक कबीर और मान्यताएं .....ओ समय के सामाजिक , आर्थिक , सांस्कृतिक घटक मन के सांगोपांग विश्लेषण  सहित संत परम्परा के विशद विवेचना घलाय आय । योगमार्गी , वज्रयानी साधना पध्दति ,बौद्ध सिद्ध मन के शून्य पद्धति जेला निराकार के खेला कहिथन ओ सब के प्रसंगानुसार उल्लेख हर कबीर दर्शन अउ साहित्य ल समझे बर दिशा निर्देशक के काम करे हे । " संत सम्प्रदाय के सामने एक दूसरी चुनौती सांप्रदायिकता की थी दोनों के बीच सामंजस्य और सद्भाव स्थापित करना समय की मांग थी । कबीर ने दोनों सम्प्रदायों के कठमुल्लेपन पर प्रहार करते हुए सहज साधना के महत्व का आख्यान किया । " 

  पृष्ट 66 . 

       " अथ श्री कचना घुरवा कथा " नाट्यकार श्री नन्दकिशोर तिवारी ....इस नाटक की सारगर्भित समीक्षा राम नाथ साहू ने की है ...उन्होंने लिखा है ", इस प्रकार लोक तत्वों से लबरेज यह नाटक रंगमंच की दृष्टि से पूरी तरह सज्जित है जिसे कोई योग्य रंग निर्देशक , अपनी रंग दृष्टि से और भी निखार सकता है । परंपरागत चले आ रहे शिल्प विधान के साथ ही साथ नाटककार ने अपना यहां नूतन शिल्प विधान ईजाद किया है और लोक कथा के साथ ही साथ आधुनिक भाव बोध और मनुष्य की गरिमा और उद्दातत्ता को बहुत ही सहज भाव से प्रस्तुत किया है । " पृष्ट 80

   बढ़िया समीक्षा हे जेला पढ़ के मूल नाटक ल पढ़े के मन लागे लगिस ..समय सुजोग मिलही त जरूर पढ़िहंव ...काबर के पढ़े ले खुशी मिलही न ? अब जाने पाएवं के लिखे मं जतका खुशी मिलथे , अपन लिखे किताब ल कोनों मेरन देख के जतका खुशी मिलथे तेकर ले जादा खुशी विद्वान लेखक के लिखे ल पढ़ के होथे त समीक्षक के निष्पक्ष समीक्षा हर मूल किताब ल पढ़े के धुन जगा देथे । 

    आज मोर मन -अंगना मं जेतरह खुशी बगर गिस आप सबो बुधियार पढ़इया ,लिखइया मन ल भी ओतके खुशी मिलय । 

   सरला शर्मा 

   दुर्ग

हीरालाल गुरुजी समय छुरा, गरियाबंद

 हमन कब बेंचाबो-


       इस्कूल के घंटी बाजगे, सबो लइका मन प्रार्थना करे बर खड़े होगे।आज सुजल हा सबले पाछू मा खड़ा होइस। प्रार्थना पाछू सबो लइका अपन अफन कक्छा मा चल दिन।गुरुजी थोकिन मा हाजिरी लेय बर कक्छा मा आइस अउ हाजिरी लेइस। हाजिरी लेय पाछू पढ़ाहूँ कहिके खड़ा होवत रहिस कि सुजल हा खड़ा होगे अउ गुरुजी ला पूछे लगिस... गुरुजी हमन कब बेंचाबो। लइका के अलकरहा सवाल ला सुनके गुरुजी घलाव अकबकागे। कहिस... कहीं भांग धथुरा खा के आय हस का रे... बइहा असन सवाल पूछथस...। सुजल कहिस... नइ गुरुजी.. अभी तिहार बार मा बजार मा बेपारी मन अपन नवा जुन्ना जिनिस ला बेचथँय ओला तो महूँ जानथँव फेर.... गुरुजी उद्दे(तुरते)कहिस... फेर का रे...? सुजल कहिस.... काली हमर टीबी मा बतावत रहिस कि हमर देस के किरकेट खेलइया मन बेचाइस हे अउ उँखर टीम ला बड़का बड़का कंपनी वाले मन बिसाय हवय..... ता हमरो कबड्डी, खोखो टीम हा अउ हमन कब बेंचाबो। सुजल के गोठ ला सुनके गुरुजी हाँस डरिस अउ कहिस.... बेटा अभी तुँहर बेचाय के पारी नइ आय हवय। थोकिन बड़का बाढ़हू तब बेचाय के पारी आही। अभी तुँहर दाई ददा मन बेचावत हवय। गुरुजी के गोठ ला सुनके सबो लइका सुकुड़दुम होगे। सुजल फेर कहिस... सिरतोन गुरुजी .. हमर दाई ददा मन बेचागे हवय...उँनला कोन बिसाय हवय। गुरुजी कहिस... सिरतोन तो आय, चुनाव के बेरा मा तुँहर दाई ददा मन दारु, कुकरी, बोकरा, पइसा, बिछिया,पायल, टीबी, मोबाइल, छत्ता, गमछा, अउ अइसने किसम के जिनिस पायबर लालच मा बेचा जाथे अउ अपन वोट ला उही ला दे देथे। नेता अउ पार्टी हा ओला बिसाथे।

     ‌‌‌‌‌‌‌  सुजल फेर पूछिस... ओखर पाछू काय होथे गुरुजी। गुरुजी कहिस.... जइसे किरकेट के टीम अउ खेलाड़ी ला जौन कम्पनी बिसाय रहिथे ओ हा ओकर कंपनी के परचार करथे। कंपनी के बनाय जिनिस ला बेचेबर अउ विज्ञापन बर आगू रहिथे। ओखर नाव के अंगरखा पहिरथे।ओखर देय ला खाथे। ओहा जेती लेगथे ओती जाथे। अपन मन के कुछू नइ कर सकय। ओइसने जइसे जीते के पाछू नेता के सरकार बनथे ता ओ हा इही जनता ला अपन पार्टी के बताके बहुमत पाय के रउरी पीटथे, उनला गमछा पंछा पहिरा के अपन पार्टी के सदस्य बना के प्रचार करवाथे। पाछू जनता बर बनाय जिनिस ला उही सरकार मा बइठे नेता मन बेचथे। सुजल फेर पूछिस....गुरुजी सरकार अउ नेता मन काला बेंचथे अउ काबर। गुरुजी कहिस.... काला काला नइ बेचय रे.... जंगल, पहाड़, खदान, नदिया, पानी, समुंदर, कारखाना, रेल गाड़ी, हवाई अड्डा, संचार साधन, बिजली, कोइला, बैंक, भूत, वर्तमान, भविष..... जतका जनता के सुख सुविधा बर प्रकृति अउ पहिली के सरकार हा बनाय रहिथे ओला, जतका ओखर आकब मा आथे सबो ला बेंच सकत हे। किसान, बनिहार, डाक्टर, इंजीनियर, सब ला बड़का बड़का कंपनी मन बिसा लेथे, फेर काबर बेचथे ओला झन पूछव.... सरकार करा एखर बर अब्बड़ अकन जुवाप रहिथे। देश के विकास, आर्थिक उन्नति, रोजगार,  कारखाना मन बीमार होवत होवत हे, बंद करे बर परही, सस्ता जिनिस मिलही....। सुजल अपन चेथी ला खजवात गुरुजी ला फेर पूछिस... गुरुजी, हमन बजार जाथन ता कड़हा कोचरा, सरहा घुनहा जिनिस ला नइ बिसावन, ता ये कंपनी अउ करोड़पति मन डूबत  कारखाना, घाटा होवत रेल, हवाई अड्डा, खदान, पहाड़ ला कइसे बिसावत होही। गुरुजी फेर हाँस डरिस... कहिस... तोर मेर अइसने सवाल कहाँ ले आथे रे.... अतका तो हमर सरकार ला विपक्ष वाला मन नइ पूछय। बेटा, ये सब सरकार के नजरबंद खेल होथे। बेचाय जनता ला देखाथे बताथे आन, अउ करथे आन। एमा सब भ्रष्टचार अउ कमीशन होथय। ये सब तुमन बड़े बाढ़हू ता खुदे जान डारहू। अंडा देवय कुकरी अउ बेंच खावय रखवार।

        सुजल कहिस.... गुरुजी मन घलो बेचाहू का गुरुजी। हव बेटा... गुरुजी मन अभी सरकार के मन के मुताबिक देय बूता ला करत हे तब तक नइ बेचाय। जौन दिन सरकार ला लागही कि वो बूता मन मसीन मा आनलाइन हो जाही अउ एमा रुपया कम खरचा आही ता गुरुजी मन घलाव बेंचाही। कतको कंपनी मन सरकारी इस्कूल मा गुरुजी भेजे रहिस अउ अभू तियार हे। सरकार के कहत भर ले हवय।अब हमन गुरुजी भर्ती नइ करन।कंपनी अपन गुरुजी राखहीँ अउ पढ़ई कराही।सुजल फेर पूछिस... गुरुजी! ता देस के चारो मुड़का कार्यपालिका, न्यायपालिका, व्यवस्थापिका, अउ पत्रकारिता मन घलो बेचा गे हवय। गुरुजी कहिस.... अभी तीन ठन के तो जनाकारी महू ला नइ हवय फेर चउथा हा आधा आधा हवय। आधा मन मा कब्जा बड़े बड़े कंपनी मन के हावय अउ आधा मन बेचाय के तियारी मा हवय। अवइया बेरा बताही कि हमर देस मा राजनीतिक पार्टी मन ला जब बड़क बड़का कंपनी मन बिसाहीं तब देस के काय होही ओमन कतका मा बेंचाही। देस के रक्षा करइया मन ला बेंचही जौन दिन हमर काय होही।नियाव करइया मन कंपनी के होही तब काय होही। सुजल कहि पारिस... अउ काय होही गुरुजी, देस पहिली असन फेर गुलाम हो जाही। हम लइका मन बाँचबो।

     ‌गुरुजी सुजल के गोठ सुनके कहिस... बेटा अइसने बेचावत रही ता लइका मन घलाव नइ बाँचव। बड़का बड़का कंपनी मन किसान, बनिहार, डाक्टर, इंजीनियर, गुरुजी, पुलिस, वैज्ञानिक, पटवारी, तहसीलदार, कलेक्टर नेता मंत्री बनाय बर लइका मांगही। विदेश मा एखर ट्रेनिंग होही अउ हो सकत हे एखर बर पहिली दाई ददा बिसाय जाही। कंपनी मन बोली लगाही। कलेक्टर लइका जनम देवइया दाई ददा बर मनखे चाही। ओखर बर कतका उदिम होही जौन ला भविष्य बताही। अतका काहत रहिस कि एक्की छुट्टी के घंटी बाजगे। गुरुजी कक्छा ले चल दिस। फेर सुजल अभू ले गुनत हावय।हमन कब बेंचाबो।


हीरालाल गुरुजी समय

छुरा, गरियाबंद

मंझोलन मनखे/नान्हे कहिनी*

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*मंझोलन मनखे/नान्हे कहिनी*

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झख्खर करे हे ।  अइसन दिन म बादर मन के मन  लागथे तब बने गिरथें , नहीं बस झड़ी लगाय रहिथें । फेर आज तो बिहना ले बने गिरत हें ये बादर मन ।


परसु अपन रांपा ल खांद म धर के खेतवाही किंजरे जात रहिस, वोहर अभी गांव बाहिर निकले नई पाय रहिस । तभे पानी हर झोर झोर के गिरे लागिस । अब तो वोहर खेत जवई  ल छोड़ के दाऊ के परसार म छइंहाय लग गय । गांव के दाऊ परसार म बइठ के अइसन झख्खर के आनन्द लेवत मगन रहिस ।

"अरे आ परसु !खेतवाही जात हस ?" वो कहिस।

" जोहार मालिक ! हाँ, खेतवाही जात हंव ।" परसु जवाब दिस ।दु -चार पद गांव -ग्राम के गोठ होइस कि पानी गिरई हर मद्धिम हो गय । "ले तँय बइठ ! यह  दे पानी के जोर हर कम हो गय ।" परसु कहिस अउ अपन रांपा ल   खांद  म उठात वो आगू बढ़ गय ।


         वो गांव बाहिर निकलईया च रहिस कि एक पईत  फेर बादर मन शुरू हो गईंन । ये पईत परसु कुदत- धाँवत गांव के छेवर म बसे रथलाल के कुंदरा म पहुँच गय । रथलाल हर  भूती  बनी करने वाला मनखे ! खेत -खार के चिंता ल बाहिर रहिस । वो मंजा के नहा धो के जेवन करत रहिस ।

"ये आ आ परसु बाबू !ठीकेच बेरा म आय हस ।आ तीपत भात खाबो ।" वो परसु ल भात खाय बर नेवतत कहिस ।

" नहीं बाबू !मंय हर अभी खेतवाही जावत हंव । एक भाँवर सबो खेत कोती नई किंजर हंव,तब मेड़ -पार मन के का होही ?" वो कहिस अउ बरसतेच पानी म निकल गय ।फेर अब वो गुनत रहिस । दाऊ बड़े मनखे ये, तब वोहर नई निकले ये अइसन पानी बरसात म ।ठीक अइसन ये सुखवासी रथलाल घलव झख्खर मनात हे अउ  अभी तीपत भात खात  हे । अउ येती एक वो हावे जउन हर ये मन कस घर म सुछिंधा बइठे नई सकय ये बरसात म अउ खेतवाही किंजरत हे।


          ठीकेच गोठ ये ...! छोटे के बनगे बड़े के बनगे अउ  हमर साही मंझोलन  मनखे मन के नठा गय - परसु रांपा ल बोहे -बोहे  जाड़ म कुड़कूड़ात गुनत रहिस ।


*रामनाथ साहू*



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सुवा गीत-नृत्य के संदेश...सुशील भोले

 * सुवा गीत-नृत्य के संदेश...सुशील भोले

* गौरा-ईसरदेव बिहाव के आरो कराथे

 छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य के नांव म आज जतका भी किताब, शोध ग्रंथ या आलेख उपलब्ध हे, सबो म कातिक महीना म गाये जाने वाला सुवा नृत्य-गीत ल "नारी-विरह" के गीत के रूप म उल्लेख करे गे हे। मोर प्रश्न हे- सुवा गीत सिरतोन म नारी विरह के गीत होतीस, त एला आने गीत मन सहीं बारों महीना काबर नइ गाये जाय? सिरिफ कातिक महीना म उहू म अंधियारी पाख भर म कुल मिला के सिरिफ पंदरा दिन भर काबर गाये जाथे? गाये जाथे इहां तक तो ठीक हे, फेर माटी के बने सुवा ल टोपली म रख के ओकर आंवर-भांवर ताली पीट-पीट के काबर नाचे जाथे? का बिरहा गीत म अउ कोनो जगा अइसन देखे या सुने बर मिलथे? अउ नइ मिलय त फेर एला नारी विरह के गीत काबर कहे जाथे? का ये हमर धरम अउ संस्कृति ल अपमानित करे के, भ्रमित करे के या वोला दूसर रूप अउ सरूप दे के चाल नोहय?


 ये बात तो जरूर जान लेवौ के छत्तीसगढ़ म जतका भी पारंपरिक गीत हे, नृत्य हे सबके संबंध अध्यात्म आधारित संस्कृति संग हे। चाहे वो फुगड़ी के गीत हो, चाहे करमा के नृत्य हो, सबके संबंध विशुद्ध अध्यात्म संग हे। हमर इहां जब भी संस्कृति के बात होथे, त वोहर सिरिफ नाचा-गम्मत या मनोरंजन के बात नइ होय, अइसन जिनिस ल हमन कला-कौशल के अंतर्गत गिनथन, संस्कृति के अंतर्गत नहीं। ये बात ल बने फोरिया के समझना जरूरी हे, संस्कृति वो होथे जेला हम जीथन, आत्मसात करथन, जबकि कला मंच आदि म प्रदर्शन करना, जनरंजन के माध्यम बनना होथे। जे मन इहां के धरम अउ संस्कृति ल कुटिर उद्योग के रूप म पोगरा डारे हें, वो मन जान लेवंय के अब इहां के मूल निवासी खुद अपन धरम, संस्कृति अउ कला वैभव ल सजाए-संवारे अउ चारों खुंट वास्तविक रूप म बगराए के बुता ल सीख-पढ़ डारे हे। अब  ए मन ल ठगे, भरमाए अउ लूटे नइ जा सकय। इंकर अस्मिता ल बिगाड़े, भरमाए अउ सिरवाए नइ जा सकय।


 सुवा गीत असल म गौरा-ईसरदेव बिहाव के संदेशा दे के गीत-नृत्य आय। हमर इहां जेन कातिक अमावस के गौरा-गौरी या कहिन गौरा-ईसरदेव के पूजा या बिहाव के परब मनाए जाथे, वोकर संदेश या नेवता दे के कारज ल सुवा के माध्यम ले करे जाथे। हमर इहां कातिक नहाए के घलो रिवाज हे। मुंदरहा ले नोनी मन (कुंवारी मन जादा) नहा-धो के भगवान भोलेनाथ के बेलपत्ता, फूल, चंदन अउ धोवा चांउर ले पूजा करथें, ताकि उहू मनला उंकरे असन योग्य वर मिल सकय। अउ फेर तहां ले संझा के बेरा जम्मो झन जुरिया के सुवा नाचे बर जाथें। सुवा नाचे के बुता पूरा गांव भर चलथे, एकर बदला म वोमन ल जम्मो घर ले सेर-चांउर या पइसा-रुपिया मिलथे, जे हा कातिक अमवस्या के दिन होने वाला गौरा-ईसरदेव के बिहाव के परब ल विधि विधान अउ गरिमापूर्ण ढंग ले पूरा करे के काम आथे। उंकर जम्मो व्यवस्था एकर ले ठउका पूर जाथे।


 कातिक अंधियार पाख के पंचमी के दिन फूल कुचरे के नेंग पूरा करे ले शुरू होय ए गौरा-ईसरदेव परब ह कातिक अमावस के पूरा नेंग-जोंग के साथ ईसरदेव के संग गौरा के बिहाव करत ले चलथे। इही ल हमर इहां गौरा पूजा परब घलो कहे जाथे। सुवा गीत के संबंध ह एकरे संग हे, जेन ह एक प्रकार ले नेवता या संदेश दे के काम आथे। एला अइसनो कहे जा सकथे के गौरा-ईसरदेव के बिहाव-नेवता ल माईलोगिन मन घरों-घर जाके सुवा गीत-नृत्य के माध्यम ले देथें, अउ बिहाव-भांवर म होने वाला खर्चा के व्यवस्था खातिर सेर-चांउर या रुपिया-पइसा  लेथें।


 इहां इहू जाने अउ गुने के बात आय, के ये गौरा-गौरी परब ह कातिक अमावस के होथे। माने जेठउनी (देव उठनी) के दस दिन पहिली। माने हमर परंपरा म भगवान के बिहाव ह देवउठनी के दस दिन पहिली हो जाथे, त फेर वो चार महीना के चातुर्मास के व्यवस्था, सावन, भादो, कुंवार, कातिक म कोनो किसम के मांगलिक कारज या बर-बिहाव के बंधना कइसे लागू होइस? वइसे भी मैं ये बात ले सहमत नइहौं के कोनो भगवान ह चार महीना ले सूतथे या कोनो दिन, पक्ष या महीना ह कोनो शुभ कारज खातिर अशुभ होथे। हमर संस्कृति निरंतर जागृत देवता मन के संस्कृति आय। एकरे सेती मैं कहिथौं के हर कारज ल कोनो भी दिन करे जा सकथे। भलुक मैं तो कहिथौं के हमर संस्कृति म इही चार महीना (सावन, भादो, कुंवार, कातिक) सबले शुभ अउ पवित्र होथे, तेकर सेती जतका भी शुभ कारज हे इही चार महीना म करे जाना चाही।


-सुशील भोले

 संजय नगर , रायपुर 

मो/व्हा. 98269 92811

Monday 25 October 2021

भैंसा गाड़ा के सुरता"-सरस्वती राजेश साहू

 "भैंसा गाड़ा के सुरता"-सरस्वती राजेश साहू

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मोला आज ओ दिन के सुरता आवत हे जभ मय दस,गियारा साल के रहेंव । मय किसनहा गौठिया घर के बेटी आँव फेर हमर घर म सबो  बूता खुदे घर के मनखे मन ल करे बर पड़य। नल नइ रहिस तो कुँआ, तलाव अऊ बोरिंग ले पानी डोहारन, फेर गरुवा, बैइला डिलाय त खैइरखा म गोबर सैंते जान ओखर ले कोठा ल अम्मा ह सकेलय अऊ गोबर, कचरा ल हमन बहिनी मन ल बोहावय त दूरिहा घुरुवा म फेंके ल जान ओही कोती तलाव ले नहा धो के घर आन बासी खावन, तिआर होवन अऊ इसकूल पढ़े ल जान ऐहर हमर रोजेच के बूता रहय। 

      फेर मय ओ बेरा के सुरता ल बतावत हव जभे किसानी के बूता जेठ के उतरती अऊ असाढ़ के लगती म चालू हो जावय ये हर ऐ घुरुवा के गोबर खातू ल खेत म ले जाके छैइरे बर के बूता। हमर घर म गरुवा, बैइला, भैंसा, नांगर, गाड़ा सबो रहय। खातू फेके बर गाड़ा भैंसा ल लेगय। साँझकन खातू ल सबो मइ,पिला मिलके गाड़ा म भरके राखे रहन तहाँ खेत म लेजाय बर बाबू हर भिनसरहे चार बजय तहाँ मोला उठावय अऊ अपन संग म लेगय हमर बाबू अड़बड़ गुस्सेलहा तेकर डर म अदकुचरा नींद म आँखी ल रमजत झटकन उठ जाँव अऊ भैंसा ल ढिलय त ओला खेदत गाड़ा मेर लेगँव बाबू हर भैंसा ल गाड़ा म फांदय अऊ गाँव के डहर ले लेजाके सड़क के डहर म जोर देवय तहाँ मोला डहरे -डहर खेत कोती खातू गाड़ा ल ले जाबे कहिके अऊ अपन ह बाहिर, भांठा ले आवत हँव कहिके बेलहा के नरवा कोती चल देवय। मय हर गाड़ा के खातू ऊपर बोरी ल बिछा के बैइठे भैंसा मन ल खेदत सड़क के तीरे तीर लेगत गाड़ा म जात रहँव तेला देख के सड़क के अवैय्या, जवैय्या मनखे मन अचंभा रहय। कोनो मन सोग करय त कोनो मन सँहरावय अऊ कोनो मन हाँसय,सीटी बजावय अऊ बेलबेलाहीपन देखावय। मोला ऐ सबो के बरताव म ककरो बने लगय त नमस्ते कर दँव नहि त गुसिया के बीबरा तको दँव। लैइका जात रहेंव त ओतेक गियान नैइ रहय ।मय अपन गाड़ा म खुसी -खुसी जावँव। फेर बेरा ह जादा अंजोरे नइ रहय त अकेल्ला म थोरकन डर लागय। तभे खेत पहुँचते-पहुँचते बेरा पंगपंगा जावय अऊ खेत के रद्दा पहुँती म बाबू घलो खेतउरी के डहर ले पहूँच जावय। खेत म खातू ल आने -आने जघा कुढ़हा म उलद के फेर आ जावन। खेत ह बड़ दूरिहा हे तेकर ले दूये खेपी खातू ल भरके ले जाय सकन। 

       आखिरी म फेर दू , तीन झन मिलके गाड़ा म गोबर खातू ल भरन, भरके फेर असनांदत, खोरत घर आ जावन। भराय गाड़ा ल दूसर बेरा एक घाँव लेगन तहाँ फेर संझा भरके राखे रहन तेला बिहान दिन लेगन। ए बूता ह हपता, डेढ़ हपता चलय ।

जभ खातू फेंका जावय तहाँ राँपा, झऊहा धरके दीदी, मय अऊ अम्मा करके बिहनिया एक जुअर खातू मन ल छैइरे बर जावन। एको दू सरवर पानी गिरय तहाँ नांगर जोताई चालू हो जावय। 

   ऐही समे जमनी खूब फरे रहय तेला खाये के साध म बिकट खेत जावन, जमनी खावन अऊ बूता तको करन। परसा पान के बड़े -बड़े खलोरा बनाके ओमा जमनी धर के घर लावन बड़ मजा आवय। हमन कोनो बूता ल छोटे, बड़े या टूरी, टूरा के बूता ए कहिके भेद नइ करेन सबो बूता ल अपन समझ के खुशी -खुशी करेन। अभे ओ समे ल गुनथँव त मोही ल अचम्भा लागथे काबर की  आज काल तो लैइका ल कोन पूछय सियानो मन अइसनहा बूता करे बर कचुवाथे। जेन बनेच कमजोरहा रथे इया बनी-भूती करवैया मन करथे। 

ओ समे ए सबो बूता मन हमर ब बूता नही खेलवारी रहय। 

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सरस्वती राजेश साहू 🙏🏻

ग्राम -चिचिरदा, बिलासपुर (छ. ग.) 

रचना काल -25,10,2021

Saturday 23 October 2021

हमर जमाना ल याद करत* नान्हेंपन के बड़ सुरता आथे विजेन्द्र वर्मा

 *हमर जमाना ल याद करत* नान्हेंपन के बड़ सुरता आथे

विजेन्द्र वर्मा

लइकन पन के सुरता आज मन ला मतावत हे।आज के समे मा नान्हें लइका मन ला देखथन त पढ़ई लिखई अउ बस्ता के बोझ मा अइसे दबे हावै बपुरा मन खेलईच ल भुला गेहे।बस एके ठन खेल जानथे, मोबाइल जेमा रात दिन पढ़थे अउ उही मा खेलथे तको। दिन भर घर मा धँधाय देखबे ते सोगसोगावन असन फेर काय करबे इही माहौल हे सबो कोती।हमन लइकन पन के सुरता करथन त लागथे हमर मन सरीक कोनों मजा नइ उड़ाय होहीं।न तो पढ़ई के चिंता न खवई के,न बस्ता के बोझा।घर ले निकलन सुग्घर बासी पेज खा के, स्कूल के घंटी बाजय त दउँड़त सबो संगवारी मन स्कूल पहुँचन।ओ समे स्कूल के घंटी ह घड़ी के काम करय।घंटी ला सुनके ही जानन, पेशाब पानी बर छुट्टी,हाफ टाइम लेजर के छुट्टी अउ घंटी दस पन्द्रह बार बजतिस ते पूरा छुट्टी होगे कइके।पूरा छुट्टी कहूँ होइच ते खुशी के ठिकाना नइ राहय धरा रपटा बस्ता धरके घर कोती जम्मो संगवारी भागन।बस्ता ला घर मा पटक खेले बर चल दन।अपन अपन गड़ी बना के किसम किसम के खेल, गिल्ली डंडा,भौंरा बाँटी,

छु छूवउल,बिल्लस,पिठ्ठूल,

डंडा पचरंगा खेलन।इतवार के दिन तो तरिया,बाँधा बउली मा घंटो तक डूबकन।एक दूसर ल देख के नान्हें पन मा तउँरे बर सीख जान।आज के लइका मन ला तउँरे बर नइ आवय।माँ बाप हा तैराकी सिखोय बर लइका मन ल कोर्स करवाथे तब कहूँ जा के सीखथे।पहिली के समे मा सबो काम ला देखा देखी मा ही सीख जान।ओइसने गाँव गँवई मा तिहार मनावय त तिहार के मजा सबले जादा हमी मन लेवन।हरेली तिहार के समे गेड़ी के मजा,तरिया नरवा तको गेड़ी मा चढ़े चढ़े जान।संझा बिहनिया गेड़ी चढ़न,ये तिहार के अगोरा राहय काकर गेड़ी कतका ऊँच बनही,काकर जादा रेच रेच बाजही कइके। नागपंचमी के दिन सपेरा मन गाँव मा आवय नाग देवता ल पिटारा मा रखे राहय देख के बड़ डर्रावन तभो ले देखे बर तुकतुकाय राहन। स्कूल मा तो स्लेट मा नाग के चित्र बना के फूल पान धरके बिहनिया स्कूल जान नाग देव के पूजा बड़ विधि विधान ले गुरुजी मन करवावय। पन्द्रह अगस्त अउ छब्बीस जनवरी के तको बड़ अगोरा राहय बिहनिया ले प्रभात फेरी मा शामिल होके गाँव भर बेंड बाजा के साथ बजावत घूमन।भाषण बाजी कविता पाठ मा पहला 

नइते दूसरा ईनाम पाय के मजा अलगे राहय वो समे कापी,पेन,पेंसिल ईनाम स्वरुप मिलय,वो ईनाम ला आज के बड़का बड़का ईनाम से तउलबे ते आज के ईनाम बौंना लागथे,काबर अभी भी मन मा वो ईनामी जिनिस गाँठ बाँधे बइठे हे।राखी के दिन तो संगवारी मन के हद होजय काकर राखी कतका बड़े हे,के ठन गद्दी लगे हे बस इहीच मा मगन राहन।अउ जेकर जतके बड़े राखी वोतके वोहर अपन ठाँठ दिखावय। तीजा पोरा के समे मा ममा ह गाँव आही महतारी ल तीजा लेगे बर कइके मगन राहन,काबर  ममा ह खई खजेना अउ मिठई धरके आवय।अबड़ अकन पइसा तको दे दय ममा ह।हमर मन के खुशी के ठिकाना नइ राहय।पोरा तिहार मा तो नँदिया बइला ल सजा के दउँड़ावन अउ एक दूसर के नँदिया बइला ला आपस मा टकरावन।कखरो बइला के सिंग टूट जाय,ते ककरो बइला के चक्का टूट जाय तहाँ ले बिकट झगड़न।झगरा मा संगवारी संगवारी अनबोला तको हो जान फेर एकेच कनिक मा बोले बर तको धर लन।पोरा के दिन गाँव के भाठा मा खो खो,कबड्डी,बालीबाल खेलइया मन ला देख के मजा लेवन।आनी बानी के रोटी पीठा खुरमी,ठेठरी,खीर तसमई,सोहारी,बिड़िया,

खाजा,पपची,बरा,बोबरा,

चौसेला,अइड़सा ला देख मन भर जाय।कभू कभू तो खिसा मा आनी बानी के रोटी पीठा धरके अपन अपन संगवारी ला बाँटन अउ खान। गणेश चतुर्थी मा पंडाल सजा के गणेश जी रखन अउ गणेश जी ल रखे के पहिली घरो घर चंदा माँगे बर दल के दल लइका लइका मन जावन ग्यारह दिन ले रात मा पंडाल मा सोवन,नान्हें पन मा गणेश जी के पूजा हमर मन बर बड़का तिहार राहय।चंदा के पइसा ले रात मा वीडियो किराया कर मँगावन जेकर मजा लइका सियान सबो लेवय। गणेश जी के विसर्जन के बाद दुर्गा पूजा आवय दुर्गा पूजा गाँव मा बड़ जोर शोर से मनावय,सेवा गीत ला सुने बर सेवा करइया मन सन घूमन, अउ शीतला माई मेर रात रात भर जागन।दशहरा मा गाँव मा रामलील्ला होवय संझा कुन ले जगा पोगराय बर बोरा बिछा के आवन अउ अपन अपन जघा ल जा जा के रखवारी करन।रात मा बारा एक बजे तक लील्ला देखन,दस ग्यारह दिन ले चलय आखिरी दिन दशहरा होवय।भाठा मा रावन वध के लील्ला होवय,उही करा भाठा मा बजार तको भरावय।आनी बानी के खई खजेना,चना चरपटी के मजा उड़ावन।कातिक पुन्नी मा मुँदरहा ले उठई,अउ भोग ल खाय बर कँपकपी जाड़ मा तलाब मा नहाय के सुरता आथे।देवारी के समे तो गाँव भर के मनखे मन घर द्वार के लिपई पोतई साफ सफई मा लगे राहय त हमन नवा नवा कपड़ा सिलाय बर दाई ददा ला जोर देवन। फटाका मा लक्ष्मी फटाका,नान नान बम दनाका चुरचटिया,टिकली,चकरी,

छुरछुरी लेवाय बर रोंमियाँय राहन,जभे लेवातिस बड़ अकन फटाटा तभे मानन 

नइते दिन भर रिसाय राहन।नवा नवा कुरता पेंट पहिरे के बड़ अगोरा करन,सुरहुत्ती के दिन।फेर आवय धान लुवई अउ खेती बाड़ी के दिन, ओ समे 

बइला गाड़ी चढ़े के मजा अउ खेत मा शीला बिने के काम करत अतका धान सकेल डारन अउ उही धान ला बेच के मुर्रा लाड़ू,नड्डा,पीपरमेंट के मजा उड़ावन। धान मिंजई के दिन मा बियारा मा बड़ रौनक राहय,सबो के बियारा मा बेलन,दउरी,गाड़ा धान मिंजे मा लगे राहय तब बेलन अउ गाड़ा चढ़े के बाद रेसटीप अउ उलानबाटी खेले के मजा भूले नइ भुलावत हे।शरीर हा कतको खजवावय तभो ले घंटों भर पैरा मा खेलन।बोइर अउ तिंवरा के दिन मा झोला झोला बोइर तिंवरा,राहेर डोहारन,खेत मा तिंवरा अउ राहेर के बनाय चना चरपटी के सुवाद अभी तको जीभ ला याद हे। छेरछेरा के दिन मा घरों घर छेरछेरा माँगे ले जान ओ समे कोन अमीर कोन गरीब नइ देखय सब संगवारी झोला धरके धान सकेलन फेर बेच बाँच के पइसा पकड़ मेला मड़ई देखे बर जान।अभी भी मेला के धुर्रा फुतकी सुरता मा गुलाल असन उड़त अंतस ला रंगोवत हे।ओइसने होली तिहार मा पिचका खरीदे के जिद ला पूरा करवा डारन।होली भले जलाय बर नइ जात रेहेंन फेर स्कूल ले छुट्टी होवय त धरा पसरा जम्मो संगवारी होले के लकड़ी टोरे बर खेत खार घूमन अउ एक महीना पहिलीच ले लकड़ी के पहाड़ बना डारन। मेला मड़ई के दिन आय त ढेलवा,रहचुली झूलन,ओखरा,भेलवा लाड़ू,जलेबी भजिया के स्वादे  ह कुछ अलगे राहय।

गाँव मा कखरो घर बर बिहाव होतिस त बबा सन बरात जाय बर तुकतुकाय राहन।छींट बूंदी लाड़ू नइते करी सेव लाड़ू परोसय बरतिया मन ला ‌खाय मा भले दाँत पिरा जय फेर ओकरो अलगे मजा राहय। गरमी के दिन मा ममा गाँव मा छुट्टी मनाय के अलगे मजा राहय। ममा गाँव मा अइसन मान देवय सब मनखे भाँचा आय हे कइके बड़ मया करय। मँझनिया आम के बगइचा मा आमा चुरावन, गंगा इमली टोर ससन भर खावन।ममा गाँव मा गरमी के छुट्टी कभू नइ भुलावय।

*लइकन पन के बड़ सुरता आथे,*

*भौंरा-बाँटी,कंचा आज तको मन ला मताथे।*

*माटी के चुल्हा मा अँगाकर रोटी सेकावय,*

*जरय तभो महर महर ममहावय।*

ओ समे न तो अखबार रिहिस न तो घरों घर टेलीविजन बिजली कभू राहय ते कभू गोल होजय।चिमनी, कंडिल के अँजोर तको निक लागय।काबर हमर सियान मन अपन काम अउ बात बानी ले नान्हें लइका मन के अंतस मा अँजोर फइलात राहय।किस्सा कहिनी सुनत नींद पर जय,रात अँधियारी कब पहा जय पता नइ चलय।नान्हें पन के सुरता आथे त रोवासी आ जथे,कैची फाक सइकिल चलाय बर मुड़ गोड़ फूट जय फेर सीखे के अइसन ललक भुलाय नइ जात हे।स्कूल के छुट्टी होतिस त गनढ़ुली ढुलई,मँझनिया तीरी पासा भोटकुल खेलई,बर पीपर के छाँव मा अंधी चपाट,गाँव के शीतला माई के परसाद खाय बर,इमली पेड़ मा भूत हे कइके डराय के शैतानी कोन भूला सकही।आँवला नवमी मा पेड़ तरी खाना बना के पिकनिक मनई,अँगना बारी के भाजी पाला,रात रात भर जाग के वीडियो,नाचा गम्मत देखई, रिमझिम बारिश के पानी मा भिँजई,राउत नाच मा बेशरम लकड़ी धरके 

नचई,चिरइ चिरगुन ला पकड़ के रँगई,खुल्ला अगास मा उड़ान भरई,मोटर गाड़ी देखे बर मोटर के पाछू पाछू भगई,अउ आखिर मा गुरुजी मन के स्कूल मा हमर कान ला जोर के अइँठई अइसे लागत हे कालीचे के बात हरे।अपन देहातीपन हा आज तको शहर मा आय के बाद भुलाय नइ जात हे।गाँव के माटी के सौंधी खुशबू,हमर संस्कृति परंपरा,तीज तिहार,मया करइया जम्मो मयारुक सियान, डोंगरी, पहार,नँदिया,नरवा,कुआँ,

बउली,हरियर खेती खार,धान के सोनहा बाली ह आँखी-आँखी मा झूलत हे।बोइर,जाम,सीताफल,चार के पेड़ हा टोरे बर बुलावत हे।तरिया पार मा बने पचरी कूद के नहाय बर रद्दा निहारत हे। नान्हें पन के सुरता हा दौना पान कस आजो महर महर ममहावत अंतस मा समाय हवै।हाँसी खुशी ले सबो मनखे मन गाँव मा सुख दुख बाँटय अउ नान्हें लइका मन के इतरई मा तको मया ला लुटावय।आज  लइकन पन के सुरता कर अउ उही लइकन उमर मा जाय बर अंतस ह हिलोर मारत हे।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

हमर जमाना मा - सियान मन ल अबड़ डररावन*

 *हमर जमाना मा - सियान मन ल अबड़ डररावन* 


आज के विषय म गोठ आइस अपन जमाना के तव मोला अपन ननपन मा लइकापन के सोनहा सुरता मन के खियाल आथें । कि जब हमन छोटे राहन त घर के सियान का गाँव के सब बड़े ददा कका बाप मन ला घलो पोठ डररावत रहेन । काबर सियान तो सियान होथें घर के काहवँ चाहे बाहर के , वो समे के बात अलगे रिहिस हें । आज कल के लइका मन ला तो अपने दाई ददा मन घलो नइ बरज सकय , त बाहिर वाला मन के तो गोठ ही छोड़व । बचपन म तरिया नंदिया मन म नहाय के मजा अलगे रिहिस हे , मोला सुरता आथे हमर गाँव के नंदिया के जेमा हमन बिहनियाँ अउ मंझनिया पोठ डुबक - डुबक के नहावत रहेन । अउ तब सियान मन के बरजे मा ही निकल के घर आवत राहन तव कई दिन मार घलो खावत राहन ।


 ओइसने दू जघा के सुरता मोला आवत हे ननपन के जब गाँव के एक झन सियान अउ स्कुल के गुरूजी ह हमन ला सोटियाय राहय । गरमी के दिन राहय अउ मंझनिया कुन हमन सबो संगी साथी जाके नंदिया के रेती मा खेलन अउ पोठ डुबक - डुबक के नहाँवन । वो समे नंदिया उथली रिहिस हें बड़ मजा आवय । एक दिन ओइसने नहाँवत राहन त हमर गाँव के एक झन बड़े ददा हमन ला देख डरिस अउ हमन निकल के कपड़ा लत्ता धरके भागतेन तेखर पहिली ही वो हा हमर पेंठ कपड़ा मन ला धरलिस । फेर दू - चार चटकन सबो झीन ला दिस अउ समझावत किहिस मंझनी मंझना झन नहाय करव रे नंदिया मा हंडा हे कहिके । तब ले हमन हंडा के डर मा अकेल्ला दुकेल्ला नंदिया नरवा म नहाय ला जाय बर छोड़े राहन ।


 अब लइकापन अउ ननपन मा तो उदबिदहा उतलंगहा सबो रहिथें हमू मन रहेन , स्कुल मा पढ़े बर पास के गाँव गोढ़ी मा जावन रेंगत रेंगत । रस्ता मा एक ठन खदान पड़य हमन पहिली तो वोमा पोठ नहातेन तेखर बाद स्कुल जातेन । ओइसने एक दिन खाना छुट्टी होइस गरमी के दिन राहय स्कुल मा पंखा तको नइ राहय वो समे , मनमाड़े गरमी करत राहय हमन तरिया चल देन अउ पोठ  नहाँवत राहन । गाँव के कोनो जाके बतादिस गुरूजी तोर लइका मन तो तरिया मा जाके मार डुबकत हे कहिके । अब गुरूजी पोठ बगियाय तरिया आवत राहय , हमन दुरिहा ले देख डरेन अउ चिन डरेन गुरूजी आय कहिके । वो तुरते कपड़ा लत्ता धर के हमर मन के भगान नइ बनिस सब के सब वो दिन पल्ला भाग गेन । दूसर दिन गुरूजी हा सबो झीन ला चिन डर राहय अउ स्कुल गेन ताहन पोठ ठठाइस अउ समझाइस अब कहुँ जाहू नइते मार पड़ही बेटा हो कहिके ।


 *वो जमाना मा वीसीआर टीवी देखे के सुरता : -* हमन छोटे - छोटे राहन गाँव म एक्को ठन टीवी नइ रिहिस , जब काखरो घर छट्ठी होतिस त हमन वो दिन जान डरन आज वीसीआर आही रे कहिके , अउ हमर खुशी के तो फेर झन पूछ ठिकाना नइ राहत रिहिस । आज तो रात भर देखना हे कहिके तईयारी करतेन फेर सियान मन हा चलव रे घर जाँव सुतहुँ कहिके चेचकार के रातकुन खेदार  देवत रिहिन हें । वो दिन संझा होतिस तहा ले हमन कतेक दुरिहा पहुँचे हे वीसीआर वाले मन हर कहिके देखे बर रद्दा मा पहुँच जवत रहे हन । भले काखरो घर टीवी नइ रिहिस हें फेर गाँव भर लइका सियान बुढ़वा जवान सब एक जघा सकला के वीसीआर देखें के वो समे मजा अलगे रिहिस हे ।  


                  *मयारू मोहन कुमार निषाद*

                  *छंद साधक सत्र कक्षा - 4*

                  *गाँव - लमती , भाटापारा ,*

हमर जमाना म-गया प्रसाद साहू

 हमर जमाना म-गया प्रसाद साहू


*"हमर जमाना" के सुरता करके कूछु गोठ- बात करे ले या संस्मरण लिखे ले हम ला अईसन लगथे-"जाना के हमन सतजुग,त्रेता, द्वापर,कलजुग चारों जुग ला देख चुके हन, जी चुके हन अउ "चिरंजीवी जामवंत" सहीं   जिनगी के अनुभव के विशाल भंडार भरे हवय*

     *ये क्षणभंगुर जिनगी म निस-दिन,हर पहर,हर घड़ी,हर पल असंख्य प्रकार के इच्छा,मनोकामना उत्पन्न होवत रहिथे | तेकरे सेती असंख्य प्रकार के  दुख-सुख, हंसी-खुशी, अम्मट-मीठ,करू-कस्सा के अनुभूति होवत रहिथें*

     *अगर फसलें ख्वाब की तैयार हों,तो समझो फिर वक्त आ गया है-"दुख के बीज बोने का", इस शेर का संदेश अकाट्य सत्य है*

     *अपन संस्मरण ला आत्मने पद म लिखे बर पड़थे,जेमा प्रथम पुरूष-मैं, मोर,मोला, शब्द से वाक्य के सुरूआत होथे |जब मैं तीन बच्छर के रहेंव,तोतली भाषा म गोठियावत रहेंव,मोर पाठ के छोटे बहिनी कौशिल्या ह साल भर के हो गए रहिसे,तब भी मैहा दाई के दूध पीयत रहेंव*

     *हमर घर एक पहटिया के लाईक गाय-भैंस रहिसे, रोज बड़े बिहनिया ले राऊत जेला बईहा राऊत कहत रहेन,गाय-भैंसी दुह के बाल्टी भर दूध मुड़हर घर के दुवारी म रख देवत रहिसे,तब ऊपरे-ऊपर के दूध जेमा गजगजा भरे रहय,तऊने म के मैं अउ मोर बहिनी कौशिल्या एक-एक कटोरा निकाल के पोगरिया लेवत रहेन,तऊने कुनकुन गरम दूध म दाई हा एक-एक पसर लाई अउ मधुरस डार देवत रहिस,एही हमर बिहन्हे के नास्ता होवत रहिस*

     *वो बाल्टी भर दूध ला एक कौड़ा म छेना के आगी म धीरे-धीरे चुरोवत रहिस,रोटी असन मोट्ठा साढ़ी परत रहिस,तब अंगाकर रोटी के संग अउ भात के संग दाई ह फेर दूध भात देवत रहिस, ये किसम के नानपन के दूध,दही,मही,घी के सुरता अब सिरिफ सपना हो गे ! अब तो चाय बर आधा पौवा दूध खोजें ले गांव भर म आध पौवा दूध नइ मिलै,कभू मिल भी जाथे,तौ आधा दूध-आधा पानी |  अब घचर-पचर के जिनगानी,आधा तेल-आधा पानी"अब गाय के सेवा करैया तो"सत म सती कोट म जती"असन हो गए हवय ! शहर के डेयरी दुकान म देखबे,तव बड़े-बड़े गंजा म लबालब दूध दही भरेच रहिथे, पता नही कहां से कईसे ये दूध दही भरे रहिथै ?*

     *वो बखत हमर घर  अउ गांव-बस्ती म अत्तेक दूध-दही होवय के "बटकी भर भात म बासी असन दूध भर के खावत रहेन, तव हमर वो बचपना ह जाना के "द्वापर म जिनगी जीये हन | "द्वापर म दूध-दही,त्रेता म घी,अब कलजुग म लाल चाय फूंक-फूंक के पी"*

    *हमर समय के संपतराम,सुखीराम,आनंदराम मन पेट भर  दूध दही घी खा-पी के एकदम शेर सहीं दहाडैं,अउ बड़े-बड़े मुसीबत ला पछाड़ैं ! कई कोस कांवर बोहि के रेंगते जावत-आवत रहिन,कभू थकासी के नाव नइ लेवत रहिन,अब के लईकन मन एक कदम जाना होथे,तब मोटरसाइकिल दौड़ावत जाथें,चाहे पेट्रोल के भाव ह कतको आगी लगत जावत हवय !|अब के मनखे मोंटू,पींटू टींकू अउ बीपतराम मन दारू,गुटका,तम्बाखू खा के पेट म अल्सर,गर म कैंसर अउ नाना प्रकार के बीमारी के शिकार हो गईन ! अब्बड़ेच दुख लगथे-पहिली के सियान मन आशीष देवत रहिन-"दूधो नहाओ" तऊन आशीर्वाद ह अब गलत साबित होवत हे !*

 

दिनांक-२०.१०.२०२१


     (क्रमशः-२)


आपके अपने संगवारी

  *गया प्रसाद साहू*

     "रतनपुरिहा"

मुकाम व पोस्ट-करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ)

हमर जमाना मा-मनोज कुमार वर्मा बरदा लवन बलौदा बाजार

 *हमर जमाना मा-मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार


     *हमर जमाना मा* अइसन जब गोठ होथे त निश्चित ही बदलाव होय हे अइसे जान पर्दे अउ ये बदलाव पीढ़ी के संग संग रिती-नीती, संस्कृति, संस्कार, रहन-सहन, वेवहार, खान-पान, मनोरंजन के साधन, खेल-कूद आदि सबों जिनिस मा होय परिवर्तन ला बताथे कि ओ बेरा मा ये सब जिनिस कइसे रहिस हे अउ अभी कइसे हावय। हमर जमाना कहिबो त हम तो जादा दिन के लइका नोहन हम अभी तो उपज के खड़ा होय हन फेर हमर सौभाग्य हे कि हम दूनो जुग चिठ्ठी पतरी ले मोबाइल के संदेश, बांटी, भॅंवरा, डंडा-पचरंगा, भोटकुल, तिग्गा, साॅंप-सिढ़ी, खो-खो, कबड्डी, गिल्ली-डंडा आदि आदि ले मोबाइल गेम, आनलाइन गेम तरिया के छू-छूवउल ले घर के नल मा नहवई, छुट्टी ल नाना-नानी, दीदी-फुफा घर बितात ले घर के टीबी, मोबाइल मा बितावत  बाढ़े हन। कहन त हमर पिढ़ी के लइका मन आखरी हरन जेन जिनगी वास्तविक जुग के पुरातन खेल ल बिदा करत नवा जुग काल्पनिक खेल के अगवाई करे हन।

     हमर जमाना कहिथन त सुरता आथे हमन जब नान-नान लइका रहेन त पूरा गॉंव भर एक परिवार बरोबर रहय सब लइका सबके लइका रहय अउ सबो दाई ददा सबके दाई ददा कोनो भी लइका काखरो घर दिन भर रहिजय खा-पी लय अउ कोनो भी दाई ददा अपन अउ दूसर के लइका मा भेद नइ समझय जतका लइका अपन घर के ल नइ डरावय ओकर ले जादा दूसर ल डरावय अउ मया घलो पावय। तब परिवार बड़े बाबू-दाई, कका-काकी सबो भाई बहिनी संग रहे के सेती बड़े-बड़े रहय दादी-दादा के किस्सा-कहानी संस्कार भरय अउ चौक-चौराहा मा बइठ के बड़े बुजुर्ग मन के गोठ-बात ल सुन के छोटे-बड़े के संस्कार मिलय अब तो सब मनखे अपन मा मगन होगे घर बड़का होगे मन छोटे, घर सजगे मन मा काई रचगे, धन कम गरब-गुमान जादा हमागे ऐमा नवा पिढ़ी के कोनो दोष नइ हे दोष हमर मा हे सुवारथी हमन होगे हन जेन सॉप के बिला कस घर मा खुसरे हन पद के गरब मा। लइका ऊपर बंधन लगाके रखे हन बाहर नइ जाना हे, दाई-ददा, भाई--बहिनी ले दुरिहा पता नइ हमन कइसन समाज के रद्दा गढ़त हन नवा लइका ल काय दत हन, चकाचौंध खोजत आॅंखी ल अॅंधरिया डरत हन सुख के दिन अकेल्ला बित जाथे फेर दुख के दिन सगा संबंधित, घर परिवार, रिसतादार बिना नइ बितय।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

हमर जमाना मा-शशि साहू

 *हमर जमाना मा-शशि साहू


सुरता के दस्तावेजीकरण  बहुत सुग्घर नाम दे हवव। फेर येला लिखत समय मे मै अउ मोर के सम्भावना बड़ जाही। जेखर कोती चिटिक ध्यान झन देहू।  मन ल वर्तमान ले जादा भूतकाल ह भाथे। तभे तो वो अक्सर कहिथे हमर जमाना कतका अच्छा रिहिस। ननपन ले आज तक के बेरा बखत उपर नजर डारन त जुन्ना दिन सबले अच्छा लगथे अउ आज के समय घलो अच्छा हे।

फेर हमर जमाना (ननपन मा) मा मनखे के मन मा जौन सरलता रिहिस,जिनगी मा सादगी,दया मया,सरेखा के भाव रिहिस। वोइसन मनखे नँदावत जात हे लगथे।फेर

बने गिनहा अउ कृष्ण कंस तो हर जुग म होथे। तब

मनोरंजन के नाम म किताब रहे। चाहे वो धार्मिक पुस्तक हो या माँग के लाये या बिसाये साहित्य रहे। मिल बाँट के पढे़ के आनंद।मनोरंजन के कोई कमी नही रहे गाँव मा। साल म आधा दर्जन तिहार आय।मड़ई होय,नाचा होय।   हमर गाँव म गोविंद नवयुवक समिति रिहिस जेन मन साल भर मा कई ठन कार्यक्रम कराय।नोनी बाबू सब ल भाग ले के मौका मिले। पुराना साफ़-सुथरा धार्मिक या सामाजिक सिनेमा, सर्कस मीना बजार ये तीन चीज ल देखे बर दुरूग शहर जाय ल पड़े। 

आज जब पहिली अउ दूसरी के लइका मन मोबाइल ले आन लाइन पढा़ई करत हे।भले ये समय के माँग ये, फेर सुरता आथे पट्टी पेन्सिल के।घेरी बेरी लिखना अउ मेटाना। 

याद के याद हो जाय अउ अक्षर घलो सुग्घर  बने। तब ब्रम्हा बरोबर कर्तब्यनिष्ठ अउ ईमानदार गुरूजी मन के

पाहरो रिहिस। 

वो समय नशा के आज सरी विकृत रूप देखे के कखरो आँखी लआदत नइ रिहिस।नशा अउ मांसाहार ल जमो गाँव वाले हेय नजर ले देखे।गाँव ले तीन किलोमीटर दूरिहा 

तक कोनो दारू के दुकान नही रिहिस।जेन शहर जावय उही म इक्का दुक्का मन लुका चोरी पियँय।होली जइसे रंग के तिहार ल गाँव म जुरमिल के मनाय।

[10/20, 6:52 AM] शशि मैडम: आदमी -औरत लइका सियान बीच गाँव म जुरियाय।डंडा नाच चलत रहे एक कोती रंग घोराय रहे बड़े जन बर्तन म अउ एक आदमी लोटा लोटा महिला पुरूष सबके मुड़ मा रितोय। तब नशा के चलन नइ रहय त लड़ाई झगरा घलो नइ होय अउ शांति पूर्वक तिहार मना जाय। 

देवारी म सुरहुति  गौरी गौरा,देवारी के धजा,गोवर्धन पूजा मातर,राउत नाच सबो वो बखत बिना विध्न- बाधा के सम्पन्न हो जाय।

बड़ दुख होथे जब माँ काकी भाभी मन बताथें। अब होली म घर ले नइ निकलन।एक दूसर के घर खाये पिये ल घलो नइ जान। देवारी म का लड़ाई-झगरा ल देखे ल जाबे ।अब पहिली कस तिहार नइ रहिगे बेटी। माँ बताथे।आज गाँव के उत्तरी - बूड़ती म दारू के सरकारी दूकान खुल गे हे। देखे म उही ह मेला कस लागथे। रोज दारू तिहार मनाये जात हे। त कोन ह होरी देवारी मनाही।शहर तीर के गाव न गाँव रहे न शहर।जादा बिगड़े हुये रूप देखे म आथे।  

आठवी कक्षा तक गाँव म बिजली नइ रिहिस।आठवी के परीक्षा ल कंडिल म दे हँव।दूसर साल बिजली घलो आगे गाँव घर मा। एक ठन टेबल पंखा आगे। एम ए अंतिम के बाद घर म टेलिविज़न आइस।अउ बहुत बाद म छोटे 

 मोबाइल।अब जिनगी इन्टरनेट के जाल मा अरझे कस लागथे। वइसे इन्टरनेट ले काम म सुभीता होथे। तभो ले "अति सर्वत्र वर्जयेत्" । 

अगर हम तुलना करथन त मन इही कहिथे,नवा जमाना म 

 चैन अउ सुकून ह गँवा गे। बस भागत हन। कोन जनी काय पा लेबो? अब तो हवा पानी घलो मिलावटी लागथे। 

 दूध दही म जहर मिले हे। दार चांउर असली ये के नकली? 

 कतका चीज ल गिनावँव तेल नून शक्कर सब शंका के दायरा म। अस्पताल म गोड़ मढ़ाये के जगह नइये। महामारी हर रूप अउ नाम बदल - बदल के आवत हे । न जाड़ा म जाड़ लगे न जेठ मे गर्मी। अउ बारो बारो महिना सावन भादो।

हमर जमाना म प्रकृति घलो अनुशासित रहे। अपन बेरा बखत म हाजिर हो जाय।

 बीते दिन लहुट के नई आय। फेर सुरता बहुत आथे। हम दोनो जमाना के सांक्षी हन। दोनो जमाना हमर ये। 

शशि साहू कोरबा 🙏🙏

तइहा के सुरता-शीला बिनई

 तइहा के सुरता-शीला बिनई


               कभू पाँव म चप्पल, त कभू बिन चप्पल के झिल्ली नही ते झोला धरे स्कूल जाय के पहली अउ स्कूल ले आय के बाद, संगी संगवारी मन संग मतंग होके, ये खेत ले वो खेत म भाग भाग के शीला बिनन। मेड़ पार ल कूदत फाँदत, बिना काँटा खूंटी ले डरे, धान लुवई भर जम्मो धनहा खेत म भारा उठे के बाद, छूटे छाटे धान के बाली ल टप टप बिनत झोला ल भरन। शीला केहेन त धान के लुवत, भारा बाँधत अउ डोहारत बेरा म गिरे या छूटे धान के कंसी आय। शीला बीने बर  लइकापन म,एक जबरदस्त जोश अउ उमंग रहय, बिनत बेरा भूख प्यास, कम जादा, तोर मोर ये सब नही, बल्कि एके बूता रहय, गिरे छूटे धान ल संकेलना।  शीला उही खेत म बिनन, जेमा के धान  उठ जाय रहय,कतको खेत के धान लुवाये घलो नइ रहय,न डोहराय। तभो मन म भुलाके घलो लालच नइ आइस। वो खेत म जावत घलो नइ रेहेन। फेर कोन जन आजकल के लइका मन का करतिस ते?

                      हप्ता दस दिन धान लुवई भर शीला बिनई चले,  ज्यादातर बड़े भाई बहिनी मन धान ल डोहारे के बूता करे अउ छोटे मन गिरे धान ल बीने के। संगी संगवारी मन सँग शीला बिनत बेरा काँटा गड़े के दरद तो नइ जनावत रिहिस, फेर घर आय के बाद बबा के चिमटा पिन म काँटा निकालत बेरा के पीरा बड़  बियापे। हाँ, फेर शीला बिनई नइ छूटे, चाहे कतको काँटा खूंटी गड़े। एक दू का?  कोनो कोनो संगवारी मन के गोड़ म, आठ दस काँटा घलो गड़ जावय, तभो कोनो फरक नइ पड़े। रोज रोज शीला बीने म, छोट मंझोलन चुंगड़ी भर  घलो शीला सँकला जाये। जेला खुदे कुचर के दाना ल फुनफान के अलगावन। जेन उत्साह अउ उमंग म शीला बिनन, उही उत्साह  ले वोला घर म लाके सिधोवन, अउ सब चीज होय के बाद नापे म जे आनंद मिले, ओखर बरनन नइ कर सकँव।  कभू कभू ददा दाई मन पइसा देके शीला के धान ल रख लेवय त कभू दुकान म बेच देवन, त कभू हप्ता हप्ता  धान के बदली मुर्रा लाडू लेवन। का दिन रिहिस, कतका पइसा -धान सँलाइस ते मायने नइ रखत रिहिस, पर बढ़िया ये लगे कि शीला बिने के पइसा या धान मिले। शीला के पइसा ल मंडई हाट बर घलो गठियाके रखन। 

                शीला बिनइया संगवारी मन म बनिहार घर के लइका संग गौटिया घर के लइका घलो रहय, पहलीच केहेंव पइसा कौड़ी धान पान मायने नइ रखत रिहिस, बल्कि धान फोकटे झन पड़े रहे अउ जुन्ना समय ले चलत आवत हे, कहिके सब मिलजुल शीला बिनन। फेर आज ये बूता जोर शोर म नइ दिखे, न पहली कस शीला बीने के माहौल हे, आजकल खेत म ही मिंजई हो जावत हे। थ्रेसर के मिंजई म कंसी(बाली) नही, दाना गिर जाथे, उहू बहुत ज्यादा, ओतना तो चार पाँच खेत ल किंजरे म मिले। ये सब देख के दुख होथे, फेर का करबे नवा जमाना के ये बदले रूप रंग ल बोकबाय सब देखते हन। काम बूता नवा तकनीक ले भले तुरते ताही हो जावत हे, फेर मनखे, बचे बेरा के बने उपयोग नइ कर पावत हे, येमा न लइका लगे न सियान।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

हमर जमाना म- केवरा यदु "मीरा " राजिम

 हमर जमाना म-

केवरा यदु "मीरा "

राजिम

हमर जमाना कस अब कुछु नइ होवय पहली नवरात में दुर्गा  नइ पधारत रिहिन।

वो जमाना में दस दिन ले रामलीला  होवय पहिली रोज रिहर्सल में  जावंय बाबू जी कका बड़े पिताजी।

बाबूजी राम बने कका लक्ष्मण बड़े पिता जी रावण फूफा जी परसुराम।

कका के महापरसाद हा सीता बने 

साते बजे जगा पोगरा ड़रें बोरा बिछा के दस के बजत ले रामलीला चले।

पहिली दिन राम जनम होवय 

दूसर दिन छोटे लइकन देखावंय थोकिन बड़े होय गुरूगृह देखा दंय 

सीता स्वयंबर में बहुत मजा आवय फूफा खड़ाऊ पहिने राहय तेला कूदइ के मारे रिसिया के पांव ल पटक पटक के खड़ाऊ ला टोर ड़रें ।

अतका भड़के राम  बर क्यों  तोड़ा धनुष को  कहिके।

राम कुछु नइ काहय बस मुड़ी निहार के पांव परे मेरे हाथों  से ही टूटा कहके।

फेर लक्ष्मण हा बने घुंसिया के काहय धनुष  पुराना है हाथ लगाते टूट गया ।

का पूछत हस लाल आँखी देखावय परसुराम हा।


अइसने होवत सीता हरण होवय बन बन खोजे तब बाबूजी बिलाप करे पेड़ पौधा ल पूछे सुसक सुसक रोवय त मोर बाबूजी रोवत हे कहिके मँहू रोवंव।

सबो नर नारी मन दुख मा रोवंयं।

बाद में युद्ध चले त सबो ल मारत जाय त खुस होवन ताली बजावन।

एक दिन लक्ष्मण ला शक्ति बाण लगे फेर विलाप चले मैं बहुते रोवंव कका मर कहिके काबर।बाबूजी फेर रोवत राहय तब हनुमान जी हा संजीवनी लाने बर जाय तब लक्ष्मण जिंदा होय तब खुसी के ठिकाना नइ राहय।

रावण मर जाय तेकर बाद आखरी अब्बड़ चढ़ोतरी होवय धान के ।ओ जमाना में माइक घलो नइ राहय तभो जोर जोर से बोल के अपन पाठ ल सुनावंय ।

घर में बाबूजी रोज पढ़े उही उही ला पंदरा दिन पहिली ले सुन के मोरो याद  हो जावय ।अइसने रामलीला 

बहुत  दिन ले होइस  बाद मे  कहिन लेना जी अब तहूँ मन सीखो तब दूसर लइका मन सीखिन तीन दिन बर तीने दिन रामलीला होवय।


ओकर पाछू एके दिन होय ला धर लिस मोर बेटा राम बनिस छोटे हा राम  अऊ मंझला  हा लक्ष्मण काबर छोटे हा उंच पूर हावय रावण मारे के बाद आरती करंय सबो झिन अऊ चढ़ौत्री चढ़ावय।

अपन घर भीतर चौक पूर के घरो घर आरती करे बर बुलावंय राम लक्ष्मण बर नरियर राखे राहंय नही ते पइसा धरावंय पांव परें चरण ल धोके पियंय अतका श्रद्धां भक्ति  राहय।

अब कहाँ पाबे रावण घलो नइ मारिन ये साल ।

कोनो साल फटाका ला भरके रावण बना देथें ।राम रावण बन के संवाद चलथे रावण ला बाण में आगी लगा के मार देथें ।

ओती  वहू रावण ल जला देथें फटाका भड़ाभड़ भुटगे।

जिकर लइका राम  लक्ष्मण बनथे उकरे घर आरती होथे बस।


मोबाइल के जमाना आगे  रोज रामायण देखत हें टी वी में रोज सिरियल देखत हन।

ओइसने गाँव म पहिली मड़ई होवय रइचुली लकड़ी वाला आवय रंग रंग  के खेलौना आवय किसम किसम के मिठई पेड़ा गुलाबजामुन बड़ा भजिया  बेचाय बर आवय सिर्फ मड़ई भर के दिन आवय तेकर सेती हमन ला अगोरा राहय कब मड़ई होही खई खजाना मिलही येती ले ओती संगवारी मन संग घूमबो कहिके खुश होवन।


रात होवय नाचा पार्टी आवय टीला वाला नाच काहत लागे ।

आजू बाजू के दस गाँव के आदमी सकलावंय।

कंबल चद्दर ओढ़ के देखन रात पहा जावय।

यहू साल अभी कुछ दिन पहिली नाचा होइस हे।

मँहू गेंव देखे बर सब कुछ  बदल गेहे नचइ कुदई हा।

अब तो माईलोगिन बने रथे तेमन माइक ला धर के गाना गाथें अऊ नाचथें पहिली बाजा वाला मन गावंयँ।

झलप तीर के नाच पार्टी हरे बने हे अभी भी हँसावत हें जोकर मन नजरिया माइक धर के आथे गावत गावत, ढंग बदल गेहे फेर छत्तीसगढ़ के संस्कृति ला बचाय तो हावयं।

अमेरिका में  रहिथे बेटी  रायपुर के तौन हा नाचा में  कोन कोन रहिथे उंकर नाम का रहिथे का कहिके पुकारथें कहिके पूछत राहय रायपुर के बेटी हा अपन संस्कृति ला उंहा बताय बर।

मँय कहेंव जोकर रहिथे दू  तीन  एक ला नजरिया  कहिथें ।

नारी पात्र ला दू से तीन परी रहिथें नाचने वाली बन के सभी।

पुरुष होते हैं ।

क्या करते हैं कहिस मँय केहेवँ कहानी पर आधारित नाटक करथें 

भाई भाई के झगरा ।

कभू दहेज उपर कभू माँ बाप उपर।


कभू सास बहू के झगरा हँसाना रोवाना उकंर काम हरे।

अब नाचा घलो  नंदावत हे।

पहिली छठ्ठी में दारू मंद नइ चले नाचा पार्टी बुलावंय बने घर के।मन बडहर मन बाकी मन हरिकीर्तन बुलायं रामायण आजो चलत हे।।

नाचा हा साल भरमें एक बार हो जथे नंदावत हाबे जमाना के संग सबो बदल गेहे।

सब कुछ अब सपना लागथे पहिली कतका मजा रिहिस लइका पन में ।



केवरा यदु "मीरा "

राजिम

धान मिंजई बखत कोठार मा उलानबाँटी के मजा* हीरालाल गुरुजी समय

 *धान मिंजई बखत कोठार मा उलानबाँटी के मजा*

हीरालाल गुरुजी समय

         हमर जमाना के गोठ होथे ता गाँव गंवई, खेती खार, बारी बखरी(कोला बारी), कुँआ बउली, नरवा ढोड़गा, माटी के खपरा वाला घर, फर्रस पथरा ला रच के बनाय पटाव वाला घर के फोटू मन आँखी मा झूलथे। चौमासा के चिखला वाला गली मा लुगरा टाँगे अउ कछोरा भिर के खेत जावत दाई माई जौन मुड़ी मा बासी धरे रेंगत दिखय, गली ले बइला गाड़ी, भँइसा गाड़ी मा ओहो, तोतो हाँकत किसान के अवाज। आज उही गाँव मा जाबे ता गली मा ओ पाहरो के देखे एको ठन क्रियाकलाप अब नवा पाहरो मा नइ देखेबर मिलत हे।

          कोला बारी मा कुँआ अउ ओमा लगे टेड़ा जेमा पाछू मा बइठ के उपर नीचे होय मा रहिचुली के मजा ले लेवन। गरमी मा रतिहा बिन पँखा के अँगना मा सुते अउ डोकरी दई के अछरा के हवा मा नींद कतका बेरा पर जावय ता पता नइ चलय। भरे तरिया ला ए पार ले ओ पार छू छुवाउल खेलत हाँसी ठठ्ठा मा नहाक देवन। आज शहर ते शहर गाँव के लइका मन एखर मजा ले दुरिहावत हे। काबर कि गाँव गाँव मा बोरिंग, घर घर मा नल लगे ले अब लइका तरिया जायबर अनाकानी करथे।

          मोला तो सबले जादा मजा धान मिंजई बखत आवय। हमर पाहरो मा बीएसपी इस्कूल मा चालीस दिन के दशरहा देवारी अउ इतवार संघेर के आठ-दस दिन के शीतकालीन छुट्टी देवय। मिंजई के बूता हा जादा शीतकालीन छुट्टी मा होवय। हमर पाहरो मा धान मिंजई हा दँउरी अउ बेलन मा होवत रहिस। जब गाँव मा रहेंव तभो अउ इस्कूल मा भर्ती होय पाछू घलो मिंजई मा संघरँव। मोला शीतकालीन छुट्टी मा मिंजई बखत गाँव भेजय। संझा संझा पेर डारय अउ दू ठन बेलन गाड़ी चले। आगू बेलन मा कका अउ पाछू मा बबा बइठय।हमर डोकरा बबा ला बीड़ी पीये के चुलुक लगे ता मोला बेलन मा बइला हाँके बर बइठा देवय। जब बबा हा बेलन हाँकत रहय तब बेलन के पाछू पाछू उलानबांटी खेलन। पैरा हा गद्दा बरोबर रहय, कइसनो उलन ले लागे के डर न छोलाय के फिकर। बइला मन रेंगत रेंगत गोबर देवय ता ओला उठा के फेंके के बूता घलो हमरे रहय। कभू कभू दूसर बियारा मा दउँरी चलत रहय ता उहाँ घलाव उलानबांटी खेले बर चल देवन।गाँव मा अरोसी परोसी के जहुँरिया लइका मन संगवारी रहय।  एक पइत कोड़ियाय पाछू खाय के बेरा हो जावय। डोकरी दई हा नइते काकी हा कोठर मा जेवन पानी धरके आवय। सबो झन कोठार मा एक तीर मा खूँटा गड़ा के उपर मा पैरा छा के बनाय झाला मा नइते बइला गाड़ी के खाल्हे कंडील के अंजोर मा भात खावन। खाय पीये पाछू फेर बेलन चालू होवय। अरोस परोस के सबो कोठार मा इहीच बूता चलय।कभू कभू कोड़ियाय बर एक दूसर के मदद घलो करय। अधरतिया के पहिली बइला ला ढील के उही झाला मा नइते बइला गाड़ी के खाल्हे सुतेबर तियारी करन। पहिली पैरा जठावन उपर मा कथरी गोदरी। गद्दा बरोबर बन जावय। सुते पाछू चद्दर अउ कमरा ला ओढ़हन। कतको जाड़ शीत रहय पछीना छूट जावय।

           बिहनिया बबा हा लाल चहा कोठार मा बनावय नइते डोकरी दई हा घर ले लावय तब मोला उठावय। ओखर पहिली कका,बबा मन कब के उठ के बेलन हाँकत रहय ता मोला पतेच नइ रहय। मुंह धोके चहा पीये पाछू फेर बिहनिया के कसरत मा उलानबांटी शुरु हो जावय। मिंजाय पाछू पैरा हटाय अउ ओला पेरावट मा लेगत ले आज के योगा, कसरत दउँड़ भाग सब हो जावय। पाछू नहाय बर जावँव, आवत ले अँगाकर रोटी घीव नइते चटनी संग आ जावय। बबा, कका के दतौन मुखारी सब कोठार मा होवय। रोटी खाय पाछू धान ला सकेल के कोठार के एक तीर रास बनावय। बहारय बटोरय अउ उखर जाय रहय ता काकी हा गोबर मा लीपय। ओमा काँवर काँवर पानी डोहारे के बूता कका अउ मोर रहय। ए बूता हा आठ दिन ले आगर चलय।मोर शीतकालीन छुट्टी इही उलानबांटी के मजा लेवई मा बीतय।

       आज ना सुर मा भारा डोहरइया दिखय, न खरही रचाय दिखय, न बेलन दउँरी के हँकइया। नवा जमाना हे सब बूता हार्वेस्टर, थ्रेसर मा होवत हे।अब तो नवा टाइल्स वाला घर मा कोठी घलाव नइ बनात हवय। राउत ला हाथा देवाय बर जगा नइ हे। गाय बइला हा गरु होवत हे।एक बखत अइसे आही कि धान के कोठी अउ गरवा कोठा जौन गाँव घर मा होही ओला नवा पाहरो के लइका मन ला देखाय बर सरकार हा योजना निकालही।


हीरालाल गुरुजी समय

छुरा, गरियाबंद

हमर जमाना मा.....अशोक जायसवाल

 . *हमर जमाना मा.....अशोक जायसवाल


                          हमर जमाना मा... कहिके सब मनखे अपन अतित ल सुरता करत रोमाँचित हो जाथे | युवा वर्ग भविष्य ल सुरता करके प्रफुल्लित होथे | लइका मन तो वर्तमान मा जियत रइथे ते पाया के सदा खुश रइथे | आज विज्ञान के युग आय , सबो मनखे के पास ज्यादा से ज्यादा भौतिक सुख सुविधा हावय | तभो ले खिन्न पना अउ एकाकी पन हावय |

                 हमर समय म मनोरंजन के अइसना साधन नइ रहिसे | सुवा, कर्मा, पंथी, नाचा पेखन देख के समय पहावत रहेन | कोनो गाँव म परी वाले नाच होवत हे सुनाई परत त सइकिल  म जाके रात -रात भर नाचा देखन | देवारी के पहिली नोनी मन घरो घर अउ दुकान म घलो सुवा नाचे ल जावय , फेर अब कमतिया गेहे | देवारी के बाद हमु मन राउत नाचे ल जावन, अउ परी संग म सिटी बजा बजा के ददरिया गावन  तहाँ ले दोहा पारतेन | देवारी म गौरी गौरा पूजा ल उत्साह अउ सौहार्द पूर्वक मनावत रहेन, फेर आज के बेरा म तो छोटे बड़े सब मंद मउहा पीके डंगफाँद मचाथे | भाईचारा, अपनापन हा धीरे धीरे नँदावत जात हे |

                   जइसे बेरा करवट लिस तइसे विज्ञान ह अपन रूप बदलत  गिस |नाचा पेखन के जगा विडियो, टी वी आगे वो कर बाद मोबाइल | मोबाइल ले तो मनखे मानो एक कुरिया म धँधागे | मोबाइल धरे मनखे ल बाजु म बइठे मनखे है तको नइ चिन्हय| जइसे विज्ञान ह नवा नवा संसाधन जुटाइस तइसे रोजी रोजगार घलो बाढ़ीस  हे | पहिली तो काम धंधा हा कमतिच  रहिसे हे | किराना दुकान म काम म लगे बर सिफारिश ले के जाय बर लगय  | रोजी रोजगार नइ मिले ले बेरोजगारी के दंश झेलत कतको झन आत्महत्या घलो कर लिन | फेर अभी के समय म अइसना नइ हे, काम ज्यादा हे लेकिन कमइया नइ मिलत हे| 

                                      तइहा जमाना हा समय के चद्दर ओढ़त नवा रूप धर लेहे | छंद के छ परिवार हा साहित्य साधना में उत्कृष्ट योगदान देवत हे | पहिली तो हमन साहित्य के जानकारी बर साहित्यकार मन के पिछलग्गू राहन, अपन डायरी ल धर के सुधरवाय बर आगु पीछु घुमत राहन | काव्य गोष्ठी जायके पहिली दरी उठाय बिछाय के काम करतेन तब एको ठन कविता बोलन देतीच | फेर आज जमाना बदल गेहे , तइहा के बात बइहा लेगे, अब इहाँ सबो साहित्यकार छोटे बड़े एक मंच म आगे | सबो ल सही मंच उचित सम्मान मिलत हे| अब समय हे अपन आप ल निखारें के, लगन अउ मेहनत करेके | तब हमु मन कहिबो "हमर जमाना मा....... |


    अशोक जायसवाल

धुरंधर वार्ड भाटापारा छ. ग.

      साधक - सत्र 13

हमर जमाना म-सरला शर्मा

 हमर जमाना म-सरला शर्मा 

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      संस्मरण लिखे के एक बहाना मिल गिस त सुरता के बैला गाड़ी बहुत पीछू छूट गए  गाड़ा रवन मं हालत ,डोलत रेंगे लगिस फेर बैला मन के गर मं बंधाये घण्टी अउ चक्का के चरर मरर के संगीत संग मन बइहा तइहा दिन के बिरहा गुनगुनाए लगिस । 

    मैं कलम धरे तो रहेंव फेर प्रकाशन के सुजोग 1967 के कल्पना पत्रिका मं पहिली बार मिलिस ओहू हिंदी कहानी के रूप मं । ओ समय धर्मयुग , साप्ताहिक हिंदुस्तान , नवनीत , कादम्बिनी , नई कविता असन राष्ट्रीय स्तर के पत्रिका लोगन पढ़यं , थोरकुन अउ पीछू डहर चलिन त सुधा , काव्य कलाधर , सुकवि समीक्षा , संगीत असन नामी गिरामी पत्रिका प्रकाशित होवत रहिस ...। ओ ज़माना मं लिखइया कम रहिन , शिक्षा के प्रचार प्रसार संवागे नइ होए पाए रहिस ओहू गद्य लिखइया कम रहिन .त ओमन ल आत्म प्रचार के सुजोग कम मिलय । 

कवि सम्मेलन मन मं कवि मन ल सुजोग जादा मिलय काबर के ओ समय शैक्षिक , साहित्यिक मनोरंजन के माध्यम कम रहिस । धीरे बाने लोगन नागपुर आकाशवाणी जाए बर सुरु करिन त हमर छत्तीसगढ़ के रमा देवी असन कवियत्री मन ल भी रेडियो सीलोन मं काव्य पाठ करे के सुजोग कभू कभार मिल जावय । बाद मं तो रायपुर आकाशवाणी के स्थापना होइस त कवि गोष्ठी ,परिसंवाद , साक्षात्कार असन कार्यक्रम के माध्यम से साहित्यकार मन ल प्रचार , प्रसार के सुजोग मिलत गिस । तब साहित्यकार मन तीरन पुस्तक प्रकाशन बर पैसा भी कम रहय फेर तीर तखार मं प्रकाशक घलाय नइ मिलत रहिन , इलाहाबाद , मेरठ , सहारनपुर , दिल्ली के प्रकाशक मन के शरण परे बर परय । 

सबले बड़े बात के साहित्यकार मन के मन मं आत्म प्रचार के ललक , सम्मान प्रतिष्ठा , जस बगराये के प्रवृत्ति नइ रहिस उनमन साहित्यसाधना करयं , व्यवसाय संग साहित्य जुरे नइ पाए रहिस ते पाय के आत्म सजगता के कमी रहिस । बहुत कम झन रहिन जेमन अपन प्रकाशित , प्रसारित रचना मन ल संजो के राखिन । छत्तीसगढ़ी मं लिखइया , पढ़इया  कम रहिन ते पाय के छत्तीसगढ़ी साहित्य के विकास के धारा के गति कम रहिस । 

     अब आज के ज़माना ल देखिन त आज शिक्षा के प्रचार प्रसार बाढ़ गए हे त पत्र पत्रिका के प्रकाशन भी बढ़े हे , लेखक लेखिका के संख्या बढ़ गए हे जेहर बड़ खुशी के बात आय । आज के साहित्यकार मन मं आत्म प्रचार , सजगता , प्रकाशन के सुजोग ल चीन्हे जाने के गुन आ गए हे । सबले बड़े बात अब तो प्रिंट मीडिया संग सोशल मीडिया भी सक्रिय हे देखव न ई पत्रिका के महता बढ़त जावत हे ...फेस बुक , व्हाट्सएप , ब्लॉग कतको कन नवा माध्यम मिल गए हे । साहित्यिक संगोष्ठी , कवि सम्मेलन , परिचर्चा , वेबिनार अउ का चाही ? आज साहित्यकार मन बर कोनो गाड़ा रवन के जरूरत नइये , आकाश मं उड़ियाये के सुजोग मिले हे एकर फायदा नुकसान दूनों हे तभो माने च ल परही के आत्म प्रचार के जतका सुजोग आज मिलत हे हमर जमाना मं ओतका नइ मिलत रहिस । आज के नवा लिखइया मन से मोर बिनती हे समय सुजोग के फायदा जरुर उठावव फेर एक बात उपर धियान देहे च बर परही ओहर आय भाषा ...कइसे ? 

  एतरह के आवागमन के सुविधा बढ़त जावत हे , रोजी रोजगार के स्वरूप बदलत हे तेकर चलते संसार हर छोटे हो गए हे ठीक हथेरी मं रखे अंवरा असन ..त भाषा के स्वरूप घलाय ल तो विस्तार मिलबे च करही न ? भाषा के  स्वरूप संग साहित्य घलाय तो जुरे हे न ...?

छत्तीसगढ़ी साहित्य पढ़व , लिखव , प्रकाशित करव एहर हमर प्रांतीय भाषा महतारी भाषा आय फेर राष्ट्रीय भाषा हिंदी के साहित्य , अंतर्राष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी के ज्ञान ,साहित्य के चर्चा करत चलव काबर के हमर अवइया  पीढ़ी ल उदर भरण के भाषा अउ साहित्य के जानकारी देना हर भी तो हमरे जिम्मेदारी आय । सुजोग मिले हे तेकर फायदा भी तो आज के पीढ़ी ल मिलना चाही अउ एतरह आज के जमाना के लिखइया मन के जिम्मेदारी घलाय तो बढ़ गिस न ? 

    हमर जमाना के साहित्यकार अउ आज के लिखइया मन के बीच सामाजिक , साहित्यिक , प्रासंगिक लेखन के बीच इही बदलाव दीखत हे । 

  सरला शर्मा 

  दुर्ग

पांचवी बोर्ड अउ आन गाँव मा परीक्षा देवई*

 *पांचवी बोर्ड अउ आन गाँव मा परीक्षा देवई*

हीरालाल गुरुजी समय

          महात्मा गाँधी हा अजादी पाछू बुनियादी शिक्षा उपर जादा धियान देय के बिचार देय रहिन। जिहाँ लइका ला पढ़ई के संगे संग अपन जिनगी ला, परिवार ला चलाय के ज्ञान इस्कूल मा घलाव मिले। हमर पाहरो मा सरकारी इस्कूल तीन चार गाँव मा एक ठन रहय। प्राथमिक मा एक नइते दू झन गुरुजी।बड़े गाँव मा इस्कूल रहय ता अतराब के गाँव के लइका मन पढ़ेबर जावय। मिडिल इस्कूल बर सात आठ गाँव, के मन सकलावँय।एखर ले सात आठ गाँव के मनखे मन एक दूसर ला जानय। लइकामन घलाव अपन जहुँरिया ला जानय जेमनला जिनगी भर नइ भुलावय। एक दूसर ला अटके बिरजे मा इही हा सहयोग देवय। शहर मा घलाव कम इस्कूल रहय।

          एक ठन अउ कि हमर पाहरो मा पांचवी के बोर्ड परीक्षा होवय जेखर सेंटर आन गाँव के इस्कूल मा रहय।परीक्षा देय बर चार दिन उहाँ के इस्कूल मा जाना रहय नइते उहाँ रहि के परीक्षा देवाना परय। लइका ला परीक्षा मा संघेरना गुरुजी के जिम्मेदारी रहय। हमन पाँचवी के परीक्षा ला आन गाँव के इस्कूल मा देवाएन अउ उही गाँव मा तीन रात रुके रहेन। पाँचवी मा हमर इस्कूल ले तीन गाँव के लइका रहेन जेमा आठ झन नोनी मन घलाव रहिन। ओ गाँव के तीन चार घर ला अइसनेच तीन चार इस्कूल वाला मन बर बेवस्था करे रहय। पहिली दिन परीक्षा देवाय बर जाय के पहिली अपन अँगरखा बिछौना के झोरा ला उँहा छोड़ के परीक्षा देवाएन।रतिहा के जेवन के बेवस्था कोन करिस तेला नइ जानन, हमन खायेन पीयेन तहाँ दूसर दिन के परीक्षा बर गुरुजी हा उहें पढ़ायबर भिड़गे। एक दू घंटा पढ़े पाछू सुतेन।बिहनिया फेर चरबज्जी ले उठा के पढ़े बर बइठार दिस।अइसने तीनो रतिहा बिहनिया होइस अउ चौथा दिन लहुटेन। हमर इस्कूल के सुशील हा ओ बच्छर केन्द्र मा पहला नंबर आय रहिस। गुरुजी घलाव हमर संग तीन रात ओ गाँव मा रुकिन। अब ओ जमाना नइ हे गाँव गाँव, पारा पारा इस्कूल, परीक्षा बर दाई ददा जानय। सब कर साधन हे।अब तो बोर्ड परीक्षा घलाव नइ होवत हे।

        हमर पाहरो मा अतराब के सबो सरकारी इस्कूल माटी के रहय, जेन ला हर शनिच्चर के गोबर मा लीपना रहय। एखर जिम्मेदारी सब पढ़इया के रहय। इस्कूल बिहनिया लगय ता पहिली व्यायाम, खेल होवय पाछू लीपई। बाबू लइका मन गोबर अउ पानी लावन अउ नोनी लइका मन बाहरी धर के लीपँय। सुनेबर आवय कि कतको गाँव मा इस्कूल के नाव मा खेत खार घलो रहय। जेमा सातवी आठवी पढ़इया मन ला नींदे अउ लुवे बर घलाव गुरुजी मन लेगँय अउ  सिखोवँय। पाछू खेत के होय धान ला इस्कूल के खरचा मा बउरय। हमर पाहरो मा इस्कूल मा सांस्कृतिक कार्यक्रम, पन्द्रा अगस्त, छब्बीस जनवरी बर दस बारा दिन आगर ले गाना बजाना, मुहखरा भाषण, कविता, गीत के तियारी चलय। आज घलाव चलथे फेर सरुप बदलगे हवय।डांस क्लास मा सिखे लइका मन ला भाग लेवाथें।शहर मन मा प्राईवेट इस्कूल मन मा एखर बर अलग गुरुजी राखथँय अउ पइसा माँगथें। तब मैं लिखथँव


*आजकाल के लइका मन ला कोन भला समझाही।*

*मोबाइल धर पढ़त लिखत हे अकल कहाँ ले पाही।।*


हीरालाल गुरुजी समय

छुरा,

छत्तीसगढ़ म बसदेवा गीत...सुशील भोले

 छत्तीसगढ़ म बसदेवा गीत...सुशील भोले

    छत्तीसगढ़ के धनहा-डोली मन म अन्नपूर्णा दाई सोनहा रूप धरे जइसे-जइसे लहराए लगथे किसान मन के मन नाचे अउ झूमे लगथे. एकरे संग वोला खेत ले परघा के बियारा अउ फेर बियारा ले मिंज-ओसा के कोठी अउ ढाबा म जतने के उदिम शुरू होथे. ठउका इहिच बेरा म इहाँ के गाँव गाँव अउ बस्ती बस्ती म ' जय हो गौंटनीन, जय हो तोर... जय गंगान' के सुर लहरी छेड़त बसदेवा मन के आरो मिले लगथे. 

    हमन लइका राहन त हमर गाँव म हमरे घर तीर के पीपर पेड़ के छइहां म एकर मन के जबर डेरा देखे बर मिलय. बढ़िया छमछम करत सवारी गाड़ी अउ गाड़ा म इन तीन चार परिवार माई-पिल्ला  आवंय अउ रगड़ के तीन चार महीना असन इहें रमड़ा के रहंय. एमन अपन- अपन पूरा परिवार सहित आवंय. गाड़ी गाड़ा म आए राहंय उही गाड़ी मनके खाल्हे ल तोप-ढांक के सूते बसे के ठउर बनावंय अउ आगू के खाली जगा ल लिप-बहार के अंगना बरोबर उपयोग करंय, जेमा रंधना-गढ़ना सब हो जावय. 

    लइका अउ माईलोगिन मन पीपर छइहां म ही अस्थायी बसेरा बरोबर राहंय, फेर आदमी जात मन होत बिहनिया जय गंगान के सुर लमावत घरों घर दान -दक्षिणा के जोखा म निकल जावंय. कभू कभार सियानीन माईलोगिन मन ल घलो "कांटा झन गड़य दाई, तोर बेटा के पांव म कांटा झन गड़य" गीत गावत, असीस देवत दिख जावय. जब हमर गाँव के पूरा घर म मांग-जांच डारंय, त फेर तीर-तखार के गाँव मन म घलो जावंय.

    वइसे भी लुवई-मिंजई के सीजन म छत्तीसगढ़ ह औघड़ दानी हो जाथे, तेकर सेती एमन ल धान-पान के संगे-संग नगदी अउ कभू-कभार बुढ़ावत बइला-भइंसा के संग खेत-खार घलो दान म मिल जावय. एला एमन या तो लहुटती बेरा म बेंच देवंय या फेर अधिया रेगहा म सौंप देवंय.

   एमन पूछे म बतावंय, के उन वृंदावन क्षेत्र के रहइया आंय, भगवान कृष्ण के सियान वासुदेव के वंशज. एकरे सेती वासुदेव के जीवन गाथा ल हमन गाथन. कभू-कभू कृष्ण अवतार, राम अवतार, श्रवण कुमार, हरिश्चंद्र, मोरध्वज, भरथरी, सती अनुसुइया, शिव विवाह आदि  के कथा ल घलो गावंय.

   रायपुर आए के पाछू एकर मनके बारे म अउ जाने बर मिलिस, काबर ते इहाँ विवेकानंद आश्रम के आगू रामकुंड म एकर मन के जबर बसेरा हे. इहाँ एकर मनके एक पूरा के पूरा पारा हे, जेला बसदेवा पारा के नांव ले जाने जाथे. अब ए मन इहाँ स्थायी रूप ले बस गे हावंय. छत्तीसगढ़ के निवासी बनगे हावंय. ए मन इहाँ अपन स्वतंत्र चिन्हारी के उदिम घलो कर डारे हावंय. बसदेवा पारा (बस्ती) के आगू म एक सिरमिट के बने प्रवेशद्वार हे जेमा "जय माँ काली मंदिर बसदेव पारा" लिखाए हे. एला 13 नवंबर 1879 विक्रम संवत 1936 माघ कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी दिन गुरुवार के सिपाही लाल वासुदेव द्वारा बनवाए के उल्लेख करे गे हे, जेला बाद म 1997 म फिर से जीर्णोद्धार करे गे हवय. ए मंदिर म काली माता विराजमान हें. मंदिर म बड़का असन पीपर पेंड़ घलो जामे हे, वोकर संग शिव लिंग के पूजा होथे.

   एकर मनके तब जीवकोपार्जन के मुख्य साधन इही बसदेवा गीत गा के गुजर बसर करना ही रिहिसे, फेर अब बेरा के संग नवा पीढ़ी ह अलग- अलग काम-बुता म घलो रमे बर धर लिए हे, तेकर सेती अब एकर मनके गीत गा के मंगई-जचई ह कम घलो दिखथे.

    रायपुर के बसदेवा पारा म आके बसे के संबंध म इन बताथें, के उन गंगा तीर के मूल निवासी आयं. वैदिक काल म यज्ञ के विविध अनुष्ठान के बीच बीच म आख्यान गाए के परंपरा रिहिसे, इही ह लोककथा अउ लोकगाथा के रूप म पूरा गंगा क्षेत्र म फैल गे. बाद म अइसे कई किसम के परिस्थिति आवत गिस, जेकर चलत हमन बघेलखंड ले होवत एती गोंडवाना के धरती म पहुँच गेन अउ इहें अपन गाथा मनला गाये लगेन. अइसे करत फेर भोरमदेव अउ कवर्धा होवत रायपुर पहुँच गेन. छत्तीसगढ़ के धरती हमन ल भारी निक लागिस तेकर सेती अब हमन इहाँ के स्थायी निवासी बन गेन. अउ एकरे संग हमन छत्तीसगढ़ के कतकों अउ इलाका मन म घलो बगरगे हावन.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

हमर जमाना म"-गया प्रसाद साहू*

 

       

*"हमर जमाना म"-गया प्रसाद साहू*

      

 *प्रात काल उठि के रघुनाथा*

  *मातु-पिता गुरू नावइ माथा*

      

     *जब हमन नान्हे-नान्हे रहेन,तभे हमर दाई-ददा ह एक शिष्टाचार,एक सभ्यता,एक संस्कार सिखाईन-बेटा,अपन ले बड़े-बड़े मनखे चाहे  परिवार के होय, रिश्तेदार होय,जात-समाज के होय या अन्य जात-समाज के होय ? "सियराम मय सब जग जानी ,करउ  प्रंणाम जोरि जुग पानि"  के भाव से जम्मो लोगन के प्रंणाम करना चाही*

     *तेकरे सेती हमन बचपन से अपन दाई-दादा,भाई-बहिनी,रिश्तेदार  के अलावा अपन कमीया-पहटिया,राऊत,नाऊ,धोबी जम्मो लोगन के रोज जोहार पांयलागी करत रहेन,आजो ले ये संस्कार ह हमर सरीर के नस-नस म भीन गए हवय*

     *आजकल के लईकन ला एही सुग्घर शिष्टाचार,संस्कार ला पालन करे बर कहिथन,तव बोलथैं-भईगे तोर लेक्चर ला बंद कर,कोनो ला पांव परे के हमर दिली इच्छा होही,तभे  तो पांव परबो,हमर मन,हमर इच्छा !*

    * *तब घेरी-बेरी समझाथन-अईसन नहीं सोचना चाही बेटा,अपन दाई-ददा,भाई-बहिनी अउ बड़े उम्र  वाले लोगन के पांयलागी करना चाही*

     * *आजकल के लईकन फेर उलट के प्रश्न करथैं-अपन से बड़े उम्र वाला मन के पांयलागी करे से का बड़े मन तर जाथैं ?*

     *मैं कहिथौं-बेटा, जेकर पांव पड़बे ? तेन ह नइ तरैं,बल्कि पांव परैया ह खुद तर जाथैं ! काबर के दाई-ददा अउ बड़े-बड़े लोगन के आशीर्वाद अउ दुआ ह फलीभूत होथे ! अपन दाई-ददा, गुरू महाराज,भाई-बहिनी अउ अपन ले बड़े लोगन के पांव परे से उमर बाढ़थे,धन-दौलत अउ मान-सम्मान बाढ़थे |जऊन मनखे ह जतके नम्रता, शिष्टाचार,सुशील संस्कार अपनाथें,ओतके सफलता प्राप्त करथैं,ओतके लोकप्रियता अउ सुख-समृद्धि प्राप्त करथैं*

    *लेकिन आधुनिक लईकन मन कहिथैं-हम ला हाय,हलो, बाय-बाय,टाटा कहना अच्छा लगथे ! तब भला काय कहि सकथन रे भाई ?*

     *हमन नानपन से गऊ माता के सेवा करथन,बड़े श्रद्धा भाव से खली,भूंसी,पैरा-कटिया,पेज-पसिया खवाथन-पियाथन साथ ही गोबर सकेले बर खुशी-खुशी गोबर सकेलथन*

     *लेकिन आजकल के लईकन ला गऊ माता के सेवा करे बर तिल मात्र भी रूचि नइ हवय, तव गोबर उठाय के बूता करना तो बहुत असंभव बात हो गए  हवय !!!*

      *आजकल जेकर घर एक-दू ठन गऊ माता हवय,तऊन सेवा-जतन बिना खूब उपेक्षित हवय,सिरिफ दूध ला दुह लेथें,अउ खाना-पीना पैरा-कटिया बर तरसा डारथैं ! खेत के धान ला हार्वेस्टर म कटवा लेथें,जेकर पैरा ला गऊ माता खाए नइ सकैं,तब खेत म ही जम्मो पैरा ला जला देथैं !  इहां तक रात के समय  गऊ माता ला घर म बांध के नइ राखैं,तेकरे सेती कतको गऊ माता दुर्घटना के शिकार होवत जाथें,रात के सफर करैया कतको लोगन गरूवा म टकरा के स्वयं दुर्घटना ग्रस्त होवत रहिथैं, आज ये विषय ह खूब चिंताजनक होवत जाथे!!!*

     *आजकल के लईकन मन कुकुर पोंसे-पाले अउ सेवा करें बर जादा रूचि लेवत जाथें !  हाय रे ! ये कईसन जमाना  आ गे ?ये समय,समय के फेर है रे भाई !*

     

   *हमर जमाना म प्रायमरी,मिडिल स्कूल पास होते ही खेती-किसानी के बूता म तन-मन-धन से जुड़ जावत रहेन | सियान मन हाना कहैं- "उत्तम खेती,मध्यम व्यापार,नीच चाकरी भीख निदान"*

     *वो बखत खेती के बूता म हमन ला खूब रूचि, सुकुन अउ खुशी होवत रहिस, गर्व अनुभव करत रहेन,लेकिन अब एक नवा हाना प्रचलित हवय- "उत्तम नौकरी,मध्यम व्यापार,नीच खेती,भीख निदान"*

    *तेकरे सेती आजकल के लईकन खेती-किसानी के बूता बर खूब अलाल,कामचोर अउ शरम महसूस करथैं !*

     *हमर दाई-ददा के सिद्धांत रहिस-अपन लईकन ला हमन स्वयं मन के मालिक बनाबो,कोनो के नौकर नइ बनावन !*

    *"आजकल के लईकन  मेटरिक पढ़ के मेटावत जाथें,बी.ए. पढ़ के बेकार होवत जाथैं ! कालेज पढ़ के नालेज आना चाही,लेकिन कालेज पढ़ लेथें,तिहां अपन घर के खेती-किसानी अउ गौ सेवा के काम करबेच नइ करैं,शरम महसूस करथैं,भले शहर जा के कोनो दुकान म,कोनो कंपनी मालिक के रोजी-मजदूरी करत रहिथैं, अपन घर, संयुक्त परिवार ला छोड़ के शहर म  खूब तकलीफ उठाथैं ! अकथनीय शोषण के शिकार होवत रहिथैं,तभो ले गांव -घर बर प्रेम,रूचि,सहयोग, समर्पण भावना  अपनाबेच नइ करैं  !*

      *हमर जमाना के गोठ-बात चलत हे,तेकरे सेती ये संस्मरण ला आप मन संग बांटे हंव ले भाई,*

      

    *गोठियाहूं तव मोटरा भर अउ भंडार भरे हवय,नइ गोठियावौं,तव मन के बात मने-मन पचत हवय ! "सबके अपन-अपन राम कहानी हवय | कोनो के बीत्ता भर, कोनो के हाथ भर !"*

    *बाकी अभी अउ भंडार अकन कथा हवंय,तऊन ला अगले अंक म फोरिया के बताहू* *

    *जै जोहार*

    (सरलग-३)


आपके अपनेच संगवारी

*गया प्रसाद साहू*

    "रतनपुरिहा"

मुकाम व पोस्ट-करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)

व्यंग्य-हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा गिरना अऊ गिराना

 व्यंग्य-हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा

गिरना अऊ गिराना 


                हमर देश म अइसे कोनो काम बुता या विषय नइये जेकर बर कानून नइ बने हे । फेर मोला आकब होथे के .. कानून रचइया मन के समे म गिरे गिराये के कोनो बुता नइ होवत रिहीस होही तेकर सेती इही विषय म ओकर मन के ध्यान नइ गिस होही अऊ ओमन येकर बर कोनो कानून के निर्माण नइ कर सकिस । ओमन का जाने के भविष्य में गिरना अऊ गिराना हा बहुत महत्व के बुता अऊ विषय बन जही । फेर अतेक अकन कानून म संशोधन होवत हे अऊ नावा नावा चरित्तर बर नावा नावा किसिम के कानून बनत हे तभो ले गिरना गिराना उपर अभू घला काकरो ध्यान नइ जाना हा हमर कस नानुक दिमाग वाले मनखे बर बहुत अचरज के विषय आय । 

               हमर देश म गिरने वाला मन के संख्या .. हमर कुल जनसंख्या ले थोरको कम नइहे ... येकर मतलब हरेक मनखे गिरत हे या गिरे बर आतुर हे तभो ले .. गिरे म प्रतिबंध लगाये बर कोई कानून काबर नइ बने हे ... बड़ आश्चर्य के विषय हे । गिरना हा मनखे के दिनचर्या म अतेक पान संघर चुके हे जतका पान .. दैनिक जीवन म .. खवई पियई अऊ सुतई .. । खवई पियई सुतई हा हमर निजी बुता आय तभो ले सरकार हा प्रतिबंध लगा देथे के ... येदे चीज ला नई खा सकस .. येदे ला सार्वजनिक नइ पी सकस .. फेर येदे मेर नइ गिर सकस या येकर उप्पर नइ गिर सकस अइसे काबर नइ कहय । अऊ तो अऊ ओकर बर उमर तको तै नइ करे हे । बिहाव करे बर उमर .. नौकरी बर उमर .. चुनाव लड़े बर उमर ... फेर गिरे बर उमर काबर तै नइये ... गउकिन येकरो बर एको कनिक तो कन्हो ला चेत आतिस गा .. । जवानी तक गिरना हा तभो शोभा देथे फेर कब्र म एक गोड़ पहुँच जाये के बावजूद घला कुछ मन गिर जथे । फेर जगा ला तो देखनाच नइ रहय । बड़े बड़े धार्मिक स्थल के संत महंत मुल्ला पादरी गुरूजी मन अइसे गिर जथे के ... शरम लाग जथे बताये बर ... । कानून जिंहा बनथे तिहों बिगन गिरे … पहुँचे के परमिशन कोनो ला नइहे । गऊकिन इहाँ गिरके पहुँचने वाला या पहुँचके गिरने वाला हा .. लाज शरम कभू नइ जानिस अऊ उपराहा म नाक ला ऊँच करके किंजरत रहिथे । खैर .. ये हा तो बड़े बड़े जगा के गोठ होइस ... नानुक जगा .. अपन गाँव अपन समाज म घला कतको झन ला गिरत देख पारथन । फेर इनला देख .. न शरम कर सकन .. न रोका छेंका ... काबर के येला डर्राथन के .. यहू मन ... हमन कति मेर गिरेके ताक म लगे हन .. तेला खोजे बर झन लग जाय । परिवार म कोनो ला गिरे बर मना कर देतेन फेर का मुहुँ म मना करबोन ... हमन ओकर नजर म खुदे गिरे हुये मनखे आन । परिवार के हरेक जुम्मेवार मनखे हा .. अपनेच भाई बंधु पति पत्नि ला अतेक गिरे समझथे के .... झन पूछ । संगवारी मन घला गिर जथे फेर ओला हमीमन पंदोली देथन अऊ तो अऊ ओकरे संग गिरे बर घला जोम देथन । गिरई हा घला अलग अलग स्तर बना डरे हाबे । कोनो बहुत छोटे स्तर म गिरथे कोनो बहुत बड़े ... फेर स्तर के छोटे बड़े होय के पैमाना बर कोई नियम कानून या गणित नइ बने हे । खैर ... गिरना हमर संस्कृति सभ्यता नोहे फेर कुछ बछर ले लोक बेवहार के अभिन्न अंग बन चुके हे । जेला जब मौका मिलथे ... कतको झिम झाम देख के अऊ कतको झन बेर उज्जर गिरे बर .. अपन आप ला झोंक देथे अऊ बिगन उचे ... कालर ला ऊंच करत मसक देथे । गिरे के बेवहार म केवल एके खामी हे .... येला कोनो डंके के चोंट म बता नइ सकय .. के मेंहा गिर गे हँव .. गऊकिन गो ... गिरई ला वैध करे के कानून बन जतिस त यहू बुता बर लोगन मन कबके लकलकाये बईठे हे । 

               मोरो बात म विषयांतर होवत हे ... कहाँ प्रतिबंध अऊ रोक टोक के बात करत रेहेंव अऊ कहाँ ओला वैध करे के समर्थन म उतर गेंव । का करबे ... कभू कभू गिरे के हमू मन ला सऊँख लागथे .. मौका घला मिल जथे अऊ गिरे के प्रयास घला करथन फेर ... एको बेर कोनो हमर गिरई ला मान्यता नइ दिन न एको बेर ये किहीन के .. बने करे बाबू ... गिर गेस ते ... बल्कि इही किहीन के .... कम से कम गिरे के बुता ला तो ठीक से करते बाबू । बने बुता बर तो आज तक कोनो हमला शाबासी नइ दिन ... ओकरे सेती इही बुता म शाबासी पाये के जगा खोजत गिरे ला वैध बनाये के पक्ष म उतर आथन । अइसे भी .. आगू बढ़े बर गिरे ला परथे अऊ आगू बढ़ना कोन नइ चाहे । जेला जतेक आगू जाना हे तेला ततेक गिरे बर लागथे । गिरना जरूरी घला हे ... वइसे भी गिरना हा हमर जन्म सिद्ध अधिकार आय अऊ गिराना हा जन्मसिद्ध कर्तव्य ... फेर दुनों ला सँविधान म जगा नइ मिले हे .. । लोगन ला मेहा केंडल मार्च ... ये मार्च ... ओ मार्च ... कतको असन अधिकार के मांग बर करत देखे हँव ... फेर कोनो बैरी ला येकरो तो सुरता आतिस अऊ येकरो बर सेंडल मार्च कर लेतिन । गउकिन एक बेर गिरना ला कानूनन अधिकार मिल तो जाय ... महूँ गिरतेंव अऊ गिरके अपन नाव ला रोशन करतेंव ।  

               हमर इहाँ गिरे म मरे के रिवाज नइहे ... मरनाच हे त ओकर बर हमन ... हपट शब्द बनाये हन । तेकर सेती हमन हपटके मरिस कहिथन ... गिर के मरिस नइ कहन । गिरना माने मरना थोरेन आय गा .. फेर जागत जागत गिरना अऊ जानबूझ के गिरना ... एमन तो आगू बढ़े के निशानी आय । एक दिन मोर इही बात हा उपर तक पहुँचगे ... । कानून के दुकान म एक दिन .. गिरना गिराना बर कानून के प्रावधान करे बर .. बहस शुरू होगिस । एक झन प्रश्न करिस – गिरे के का उमर होना चाहि .. । जवाब काकरो तिर नइ रिहिस ... ककतो झन जवानी ले बुढ़ापा आये के बाद भी गिरत हे अऊ गिरे बर आगू घला आतुर हे । उमर के कालम ला मेटा दिन । एक प्रश्न अइस - कोन कोन ला गिरे ले छूट रहि ... ? जवाब अइस - पूरा देश म हरेक मनखे एके बरोबर हे तेकर सेती गिरे के छूट सबो ला बरोबर रइहि .. । प्रतिप्रश्न अइस – अइसन म गिरइया के संख्या म कोई फरक नइ परही त कानून के मतलबेच का होइस .. । बहस चले लगिस – गिरे बर आरक्षण के पालन होना चाहि .. । कोनो कहय जनसंख्या के अनुपात म गिरे के प्रतिशत के निर्धारण होना चाहि .. । कोनो कुछु अऊ कहय । मामला ला सुलझाये बर एक ठिन सर्वदलीय कमेटी के गठन कर दे गिस । कुछ दिन पाछू ... सर्वदलीय कमेटी के रिपोट अइस – गिरना तो अच्छा बात आये .. येला कोनो ला रोकना ठीक नइहे ... फेर सबो एके संघरा गिर जही त देश म अराजकता बगर जहि ... काकरो हाथ छोलाही .. काकरो माड़ी कोहनी फूटही ... । सबो ला थोरेन मालूम के गिरना के मतलब ... चरित्र ले गिरना हे ... ईमान ले गिरना है ... नैतिकता ले गिरना हे ... धर्म अऊ कर्म ले गिरना हे ... । बिगन जाने सुने जतर कतर गिर जही तब ... देश म आफत पसर जहि ... तेकर सेती गिरे के अधिकार केवल उही मन ला रइहि .. जेमन ला येमा महारत हासिल रहि .. । ताकि कोनो गिरइया उपर अंगुरी झन उचाये सकय । गिरे बर महारत केवल उही मनला हासिल रहय जेमन कानून बनाये बर अधिकार सम्पन्न रिहीन । कानून बनगे .. । दू चार प्रतिशत के गिरे के आरक्षण बर महूँ तरस गेंव ... । गऊकिन महूँ कहाँ कहाँ लिख पारेंव ... कम से कम एकाध बेर तो गिरत रेहेंव फेर सरी आरक्षण एके कौम बर होगे तेकर सेती ... मेहा यहू बुता ले वंचित पिछवाये सुसवाये .. अपन करम म लिखाये बुता ला जुम्मेवारी से निर्वहन करे बर मजबूर हँव । 

               मेहा सोंचेंव ... कम से कम हमन ला गिरे के अधिकार नइ देहव तो का होइस .. गिराये के अधिकार ला दे देतेव । कानून बनइया मन किथे – तूमन ला गिराये के अधिकार तो कानून के जन्म जन्मांतर ले दे हाबन .. फेर तूमन ओकरो पालन आज तक नइ कर सकव ... तेकर सेती यहू ला हमीं मन अपन तिर म राख डरेन । अब हम जेला चाहबो तेला गिराबो ... । में जनहित याचिका लगा देंव .. सरी अधिकार अउ कर्तव्य तुँहरे तिर रइहि त हमन झक थोरेन मारबो जी ... ? फैसला आ गिस – कोनो ला उचाये के अधिकार ... केवल हमन ला मिलिस ... । हरेक पांच बछर म जेला मरजी परथे तेला उचा देके अधिकार पा गेन .... । ऊँच म जवैया अऊ रहवइया मन गिरे अऊ गिराये के अधिकार अऊ कर्तव्य ला मुड़ी म धारण कर लिन ... । तबले जेकर पाथे तेकर ऊँच म रहवइया मन हबरस ले गिर जथे ... जेला पाथे तेला गिरा देथे ... इँकर अलावा ... दूसर गिरीस ते बदनाम अऊ दूसर गिरइस तभो बदनाम ... । का करबे ... हमरे मन के कलम हा ... गिरना गिराना ला इँकर जन्मसिद्ध अधिकार अऊ कर्तव्य बना दिस । 


हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा

तुलसी चौंरा के दिया-चोवा राम वर्मा ' बादल'

 तुलसी चौंरा के दिया-चोवा राम वर्मा ' बादल'

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(लघुकथा)

कौशिल्या घर वोकर बेटी के बिहाव मा सगा-सोदर मन सकलाये रहिन। भाँवर के तइयारी होवत रहिस। परछी मा बइठे माई लोगिन मन अपन घर-दुवार, लोग-लइका अउ जिनगी के सुख-दुख ला गोठियाये मा मस्त रहिन।

     कौशिल्या के डेड़सास के बेटी नैना जेन दिल्ली मा रहिथे, कई साल बाद अइसन पारिवारिक कार्यक्रम मा सँघरे रहिस तेकर संग गोठियावत कौशिल्या बोलिस---

कस वो बहिनी तोर बेटा सूरज ल तको नइ लाने रहिते।वोला नानपन म देखे रहेंव।अभी काय काम-बूता करथे वोहा ?

वो कहाँ आये सकही दीदी। दिल्लीच आये दस साल होगे हे। वो तो अमेरिका के सोलर लैंप बनइया बहुत बड़े मल्टी नेशनल कम्पनी मा सी० ई० ओ० हे जेन हा सरी दुनिया मा अँजोर बगराये के काम करथे।थोकुन गरब करत नैना हा कहिस तहाँ ले पूछिस---

तोर बेटा दीपक हा काय करथे दीदी?

हमरे संग घरे म रहिथे अउ खेती-किसानी के काम करथे बहिनी।

वो तो पढ़े-लिखे हे न? नौकरी-चाकरी नइ मिलिस का?

कृषि म एम० एस० सी० हे बहिनी। सरकारी नौकरी तको मिलगे रहिस फेर वोला छोड़के अपन खुद के बीस इक्कड़ खेत संग गाँव के अउ किसान मन ल सँघेर के वैज्ञानिक तरीका ले फल-फूल उपजाथे। हमर गाँव के संतरा, पपीता ,अनार, चीकू अउ आमा-बिही के सरी दुनिया म माँग हे।

वाहह बहुतेच बढ़िया बात हे दीदी। तोर बेटा तो तुलसी चौंरा के दिया सहीं हे। खुश होवत नैना कहिस।


चोवा राम वर्मा ' बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

हमर जमाना म- "घर लिपई"-डॉ बी नंदा जागृत

 हमर जमाना म- "घर लिपई"-डॉ बी नंदा जागृत 

  सबले पहिली एडमिन मन ल हिरदे ले धन्यवाद जेनमन सुग्घर सूग्घर विषय ल छांट निमार के लाथें ।

    हमर जमाना के गोठ करे ल धरथव त मोला ये दे गीत के सुरता आथे- 

 "नान चुन रेहेव दाई घर लिपे ल सिखेव वो पोतनी म" 

   वो काहे कि पहीली गांव म जादा कच्चा घर रहाय त घर ल गोबर म  लिपन ।

लिपत - लीपत  पोतनी ल धरे - धरे कभू - कभु मेहर सोचव कि 'कभू घर लिपेके घलों प्रतियोगिता होतिस त कतका मजा आतिस मय तो सबले अव्वल अयिच जातेव' फेर कभू घर लीपेके प्रतियोगिता नई होइस अव मन के बात मन

 म रहिगे।

  येती तिहार- बार आइस के लिप्यी -  पोत ई के बुता ह सुरु हो जाय। घर लिपयी घलो एक ठन कलाकारिच आय कोनो -  कोनो मन गोबर म लीपे त कोनो -  कोनो मन पेरा ल लेस के, ओला बुता के ओकर करिया राख ल पानी म मिला के लिपय ।

काकरो लीपे सोजे - सोज  रहे त ककरो टेढ़गा - मेढ़गा  हो जाय ।कोनो -  कोनो तो तीन अंगुरिया चीनहारी बना के लीपय।

   हमर डाहर पंडरी छुही , पिवरी छुहि  अव लाल छुंही के खदान हवयसबे गजब दुरीहा-  दुरिहा हावय फेर कोनो मन बईला गाड़ी म त कोनो  रेगते  - रेंगते छुहीं  डोहारे ।

   घर के पोतई पंडरी छुंहि म करके ,पाछु लाल छूही के किनारी बनान तहां फेर पीवरी छूहि म खुटिया न  तेखर पाछू गोबर म जम्मो घर ल लीपन ।अंगना - दुआर ल घलो लीपन अव चाऊंर पिसान के चौक पुरन ।

     अब के जमाना म चूना , डिस्टेंपर , पेंट त वाल पेपर  आगे हे कोई तो ओकरो  ले अच्छा कहिके एलिवेशन टाइल्स लगात  हावय । जेकर गांठ म जोर हे तेहर भारी उन्नति कर  डरीस हे ।फेर गोबर अऊ गरीब के नत्ता ह नई टूटे हे।

  डॉ बी नंदा जागृत 

   

हमर जमाना म"-गया प्रसाद साहू* "रतनपुरिहा"

 

*"हमर जमाना म"-गया प्रसाद साहू*

       "रतनपुरिहा"

        (भाग-३)

*जहां सुमति तहां सम्पत्ति नाना*

*जहां कुमति तहां बिपत्ति निधाना*

      *ये संस्मरण म एक "संयुक्त परिवार" के सुख-दुख अउ सोरा आना सत्य घटना ला बतावत हौं- सन् १९७६ से १९७९ तक हमन मिडिल स्कूल म पढ़त रहेन, अंग्रेजी विषय के हमर गुरूजी श्रद्धेय रामखेलावन कश्यप जी ग्राम गिधौरी, थाना रतनपुर जिला बिलासपुर के रहैया रहिन | वो बखत ऊंकर संयुक्त परिवार म लगभग ६०-७० लोगन एक साथ रहत रहिन, तव ऊंकर परिवार के नान्हें-नान्हें लईकन ला घलो कोनो"रे-बे" नइ कहे सकत रहिन | जन बल, धन बल, बाहु बल, यश-कीर्ति बल के भंडार रहिसे | बड़े भिनसरहे ले लगभग १०-१५ बेटी-पतोहू मन रसोई बनाए बर जुट जावत रहिन,अउ देर रात तक भट्ठी जलते रहय | "परिवार म कोनो ज्यादा कमाने वाला, तव कोनो कम कमाने वाला रहिबेच करथैं,लेकिन जम्मो सदस्य बर सिर्फ एक समान भोजन के व्यवस्था रहिस, खान-पान, रहन-सहन, ओढ़ना-दसना बर किसी प्रकार भेदभाव नइ होवत रहिस*

      *लगभग २०-३० लोगन खेती-किसानी के बूता करत रहिन,बाहिर के बनिहार के जरूरत ही नहीं,कई लोगन व्यापार-धंधा करत रहिन,कई लोगन बड़े-बड़े  अधिकारी, कर्मचारी रहिन, कुछ लोगन गांव-बस्ती अउ रिश्ते-नाते के दुख-सुख म शामिल होवत रहिन,कुछ लोगन  घर के बीमार सदस्य के इलाज अउ सेवा-जतन करत रहिन | अईसन मौका ही नइ आवत रहिसे-के फलाना के अनुपस्थिति म कोनो काम अटक जाही ! जम्मो मनखे अटूट सुमता-सलाह से रहत रहिन अउ मुखिया के इशारा म सब काम तत्काल कर डारत रहिन*

   *मुखिया मुख सो चाहिए, खान-पान को एक*

     *पाले-पोंसे सकल अंग,तुलसी सहित विवेक*

     *गांव-बस्ती अउ ऐतराब भर ऊंकर सुमता-सलाह, ताकत, ऐश्वर्य सुख-समृद्धि के मान-बड़ाई होवत रहिसे*

     *आज-कल बेटा के बिहाव होत्ते ही बहुरिया संग अलग रहे बर नाना प्रकार के विवाद अउ लड़ाई-झगड़ा सुरू हो जाथे !*

     *खूब त्याग-तपस्या करे,दाई-ददा अब का हे तोर?*

      *आईस रे मुड़ढक्की रोग,बाढ़े बेटा छीन लेईस तोर !!*

     *अब के बहुरिया मन चार दिन घलो आत्मिक भाव से सास-ससुर ला जेवन रांध के नइ देहे सकैं*

*सास-ससुर ले अपन गोसईया ला छीने बर असंख्य प्रकार के तिकड़मबाजी अपनाथैं*

     *ससुरार आते सांठ आजकल के बहुरिया मन  मनमौजी खाना,मनमौजी पहिरना,मनमौजी कहीं भी जाना-आना,हर काम मनमानी ढंग से करना चाहथैं ! जबकि हमर जमाना म "बहुरिया" नहीं, "पतोहू" कहा्वत रहिन, मईके-ससुरे दुनो कुल के सैकड़ों-हजारों लोगन के अपेक्षा के पालन करते हुए इज्जत-मर्यादा अउ मान-सम्मान ला बचाए बर शत-प्रतिशत संकल्पित भाव से काम करत रहिन | तेकरे सेती कई सास-ससुर मन पतोहू ला बेटी ले जादा मान-सम्मान दे्वत रहिन | कतको पतोहू तो अत्तेक मर्यादित रहिन-"उम्मर भर गांव के बाज़ार-हाट ला नइ देखे रहिन ! यहां तक पारा-मुहल्ला के जेठ नता मन पतोहू के मुंह ला जिनगी भर सौहें नजर नइ देखत रहिन, उघरा मुड़ी करके न तो गली-खोर म रेंगत रहिन,न ही चौंरा-दुवारी म बईठत रहिन, वाह-वाह ! इतना मर्यादित अउ सुशीला बहू रहिन*

     *खैर, समय परिवर्तन शील होथे | आजकल  बेरोजगारी,मंहगाई, भौतिकवादी युग,भ़ोगवादी प्रवृत्ति, दिन-रात असंख्य प्रकार के वैज्ञानिक आविष्कार के फलस्वरूप असंख्य प्रकार के इच्छापूर्ति के प्रयास खातिर पतोहू मन घर से बाहिर निकलना सुरू कर देहिन*

     *गांव-गांव में स्कूल,हर  १०-२० कि.मी. में कालेज खुलते जावत हवंय,तेकरे सेती बेटी मन अब उच्च शिक्षा ग्रहण करत जा्वत हवंय,ये ह अब्बडे़च खुशी के बात आय,लेकिन "अभी के शिक्षा पद्धति म नैतिक शिक्षा के अभाव म युवक-युवती मन सिर्फ पढ़़त हवंय,कढ़त नइ हवंय !*

      *आजकल के युवक-युवती मन किताबी डिग्री का हासिल कर लेथैं ? अपन घर, कुल-परिवार के रहन-बसन, तीज-त्योहार,परंपरा के विरोध करना सुरू कर देथैं ! दाई-ददा के त्याग-तपस्या,उम्मीद,विश्वास ला चकनाचुर करे म ज़रा भी संकोच नइ करैं, तऊन बदलाव ह बहुत दुखद होवत जाथे*

    *आज सारी दुनिया विज्ञान, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र म आश्चर्यजनक तरक्की करत जाथे:- विज्ञान के आविष्कार से आज धरती ह आकाश ले ऊपर टंगा गे,आकाश ह धरती म आ गे ! समुंदर के गहराई ला नाप सकत हन ! नइ हे दूरिहा-चंदा,सुरूज,नौ ग्रह, दूरिहावत जाथे- मानवीय मूल्य अउ मानवता ! आधुनिकता अउ देखावटी के चकाचौंध म मनखे बौरावत जाथैं !*

    *जैसे कौंवा-गिधवा नंदावत जाथैं,तईसने नता-गोत के अपनापन नंदावत जाथैं ! छल,प्रपंच, भ्रष्टाचार ह "सुगर बी.पी. बीमारी जैसे बाढ़ते जाथे !*

     *चिकित्सा विज्ञान,कृषि विज्ञान म आश्चर्यजनक तरक्की होवत जाथे ! "हरित क्रांति,श्वेत क्रान्ति गे ! ये सब निश्चित रूप से महान उपलब्धि  कहे जाही !*

       *सदियों तक हमर भारत देश विश्व गुरू रहिस, भारतीय संस्कृति,सभ्यता,रहन-सहन, आचार-विचार ला पश्चिमी देश के लोगन बहुत श्रद्धाभाव से अपनावत जाथैं,लेकिन हमर भारतीय युवक-युवती मन पश्चिमी संस्कृति अपनावत जाथैं,ये अंधानुकरण ह हमर भारतीय संस्कृति बर अकथनीय घातक होवत जाथें !*

    *"हमर जमाना म" दाई-ददा ह अपन बेटा-बेटी के बिहाव खूब जांच-पड़ताल करके,कुल-खुंट,कुंडली मिलान करके संबंध तय करत रहिन,दु कुल के संबंध केवल पति-पत्नी के मिलन बर नइ करत रहिन, बल्कि दू आत्मा के साथ दू कुल के संबंध ला कम से कम पांच-सात पीढ़ी ला एकसूत्र म जोड़े बर अउ धार्मिक रीति-रिवाज के पालन करे बर करत रहिन*

      *आजकल हमर भारत देश के बड़े-बड़े शहर में युवक-युवती मन अपन दाई-ददा के इच्छा के विरुद्ध सिर्फ हाय-हलो करके "लिव रिलेशनशिप" के नाम से बिना बिहाव करे कई बच्छर तक रहना सुरू कर दिए हवंय ! जब मन भर जाथे,तब एक झटका म अलग-अलग हो जाथें ! ये पश्चिमी अंधानुकरण से हमर भारतीय संस्कृति,वैदिक रीति-रिवाज प्रथा,"विवाह संस्कार" खूब खतरा म पड़त जाथै !*

      *"मोला तो अईसे अपार दुखद चिंता होवत हवय-आने वाला पचास साल बाद कोई दाई-ददा ला अपन बेटी-बेटा के बिहाव करे बर नइ मिलही !!! सब लड़की-लड़का अपन इच्छानुसार "लिव रिलेशनशिप" अपनावत जाहीं ! भारतीय वैदिक विवाह मरणासन्न हो जाही !!! अउ पैदा होने वाला अधिकांश संतान मन वर्णशंकर होवत जाही !!!*

     *"हमर जमाना" के बात ला सुरता कर के अउ बदलते रहन-सहन, रीति-रिवाज, चाल-चलन के संबंध म आज लिखे बर मजबूर हो गए हौं-"गए बात गनगत के" अउ "तईहा के बात ला बईहा ले गे" !*

       जै जोहार

       (दिनांक-२२.१०.२०२१)


आपके अपनेच संगवारी

   *गया प्रसाद साहू*

       "रतनपुरिहा"

मुकाम व पोस्ट-करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)

 मो नं-९९२६९८४६०६

Wednesday 20 October 2021

कातिक नहाय के चुलुक मा बिहनिया उठे बर सीखेन*

 *कातिक नहाय के चुलुक मा बिहनिया उठे बर सीखेन*


         कहे जाथय संस्कार अउ परंपरा ला एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी मा लेगे बर पीछू के पीढ़ी अउ आगू के पीढ़ी ला जोड़इया के बूती होथे। जब तक ये जोड़इया नइ रहय कोनों संस्कार आगू नइ बढ़य। जौन मन लइकापन ले चेलिक होवत जाथे ओमन अपन संग नान्हे लइका ला संघेर के कोनों परंपरा ला सिखोथे ता आगू उही हा ये परंपरा ला बढ़ाथे। चेलिक मन ला सियान मन चाहे घर के होवय कि गांव के उनला संघेर के कोनों परंपरा जइसे पहुंचानी, गाँव बनई, मड़ई मा देवता धामी के नेवता पूजा मा लगइया जिनिस मनला बताही ता अवइया बेरा मा इही चेलिक हा गाँव के सियानी करही अउ परंपरा ला निभाही।घर मा पितर ला पानी देवई, अक्ती मा दोना चढ़ई , हरेली के पूजा अउ अपन जाति के परंपरा ला आगू बनाय राखेबर रिकिम रिकिम के चलागन। राउत बरदिहा मन सोहई बनाय बर चेलिक ला नई सिखाही ता सिंधी के दुकान मा बेचाई, जइसे प्लासटिक के सुपा टुकना बेचावत हवय।

          फेर आज न लइका मन चुलुक(ललक) करत हे न चेलिक मन बलावत हे अइसने न चेलिक मन सियान संग संघरे के चुलुक करत हे न सियान मन चेलिक जवान ला संघेरत संग मा बइठावत हे। एखर फल हमन ला अपन घर अउ गाँव के परंपरा मा देखेबर मिलत हे। पढ़े लिखे नोनी मन तो मोबाइल ले दुरिहावत नइहे, कुरियइ ले नई निकलत हे। बर बिहाव मा नेंग के गाना गवइया नइ मिलत हे, चुलमाटी से टिकान अउ बिदा के गीत गाय के ठेका डीजे माइक वाला मन ले डरे हे।मैन नाचा,नकटा नाचा, बरात परघनी, लाल भाजी, टिकान सब डीजे मा चलत हे। हमर अप्पड़ डोकरीदई ला सब गाना आवय। हमर दाई ला गउरा गीत गावत देखे अउ सुने हँव। हमर गोसाइन 12 वी पास फेर एको ठन परंपरागत गीत ला गाय बर कबे ता छू लम्बा..। काबर कि कभू अपन बड़े मन संग बइठे नइ रहिस। अइसने कतको पढ़ लिख मास्टरिन, डाक्टरिन, अधिकारी बनगए फेर संस्कार अउ परंपरा मा फोकला। बबा जात मन तो एखरो ले गय बीते। गाँव के बइगई ला अनपढ़ नइते कम पढ़े लिखे सियान हा करही। पढ़े लिखे मन अतिथि बनबो कथे। एखरे सेती कतको परंपरा हा अब छुटत अउ बंद होवत हे।

       ‌कातिक महिना आगे। हमर पाहरो मा पांच बच्छर ले बारा तेरा बच्छर के नोनी बाबू लइका मन ला कातिक नहाय बर भारी चुलुक रहय। लइकाच मन चरबज्जी बिहनिया सुकुवा उवे के बेरा ले घरो घर जा के हाँका पारय.... चलो उठो, कातिक नहाय बर चलव। उठइया के पारी लगय... जेखर पारी रहय...वो अपन घर मा दाई ददा ला बताके सुतय कि मोला आज जल्दी उठाहू... मँय सब ला उठाय बर जाहूँ। एक घर ले दू, दू ले तीन करत गली भर ला किंदर के कोरी डेढ़ कोरी लइका होके सब तरिया पार अमरन। सबो मन ला उठावत ले एक घँटा ले आगर घलो जावय। सब झन अपन अपन ठउर देख के नहावन पाछू शंकर पारबती के निमित दिया अगरबती बार के थपरी पीट के आरती गावन।जौन मन देरी मा आवय ओमन आरती मा संघर जावय।बड़ेमन कतको झन दोना मा फूलबत्ती बना के दिया ला तरिया मा दान करय। अतका करत ले बेर उवे के बेरा हो जावय। पून्नी के दिन आँवरा भात के दिन रहय। सब घर ले चाँउर तेल शक्कर गहूँ पिसान सकेलन अउ तरियापार मा तसमई, सोंहारी बनावन। आधा लइका ला परसा पाना मंगावन अउ पतरी बनायबर लगन। सब के अलग अलग बूता जोंगाय रहय। अपन अपन बूता ला सब जिम्मेदारी ले करँय।  गाँव भर के आवय तौन ला परसाद बाँटन।आज घलो कतको गाँव मा होवत होही फेर ओखर सरुप बदलगे हावय। अब आँवरा भात हा पिकनिक होवत हे। चाहे कोनों कातिक नहाय चाहे नइ नहावय पइसा बरार करके भंडारा, पिकनिक जरुर होथे।

      

हीरालाल गुरुजी समय

छुरा, जिला गरियाबंद

शशि साहू: *हमर जमाना मा*

 शशि साहू: *हमर जमाना मा*


सुरता के दस्तावेजीकरण  बहुत सुग्घर नाम दे हवव। फेर येला लिखत समय मे मै अउ मोर के सम्भावना बड़ जाही। जेखर कोती चिटिक ध्यान झन देहू।  मन ल वर्तमान ले जादा भूतकाल ह भाथे। तभे तो वो अक्सर कहिथे हमर जमाना कतका अच्छा रिहिस। ननपन ले आज तक के बेरा बखत उपर नजर डारन त जुन्ना दिन सबले अच्छा लगथे अउ आज के समय घलो अच्छा हे।

फेर हमर जमाना (ननपन मा) मा मनखे के मन मा जौन सरलता रिहिस,जिनगी मा सादगी,दया मया,सरेखा के भाव रिहिस। वोइसन मनखे नँदावत जात हे लगथे।फेर

बने गिनहा अउ कृष्ण कंस तो हर जुग म होथे। तब

मनोरंजन के नाम म किताब रहे। चाहे वो धार्मिक पुस्तक हो या माँग के लाये या बिसाये साहित्य रहे। मिल बाँट के पढे़ के आनंद।मनोरंजन के कोई कमी नही रहे गाँव मा। साल म आधा दर्जन तिहार आय।मड़ई होय,नाचा होय।   हमर गाँव म गोविंद नवयुवक समिति रिहिस जेन मन साल भर मा कई ठन कार्यक्रम कराय।नोनी बाबू सब ल भाग ले के मौका मिले। पुराना साफ़-सुथरा धार्मिक या सामाजिक सिनेमा, सर्कस मीना बजार ये तीन चीज ल देखे बर दुरूग शहर जाय ल पड़े। 

आज जब पहिली अउ दूसरी के लइका मन मोबाइल ले आन लाइन पढा़ई करत हे।भले ये समय के माँग ये, फेर सुरता आथे पट्टी पेन्सिल के।घेरी बेरी लिखना अउ मेटाना। 

याद के याद हो जाय अउ अक्षर घलो सुग्घर  बने। तब ब्रम्हा बरोबर कर्तब्यनिष्ठ अउ ईमानदार गुरूजी मन के

पाहरो रिहिस। 

वो समय नशा के आज सरी विकृत रूप देखे के कखरो आँखी लआदत नइ रिहिस।नशा अउ मांसाहार ल जमो गाँव वाले हेय नजर ले देखे।गाँव ले तीन किलोमीटर दूरिहा 

तक कोनो दारू के दुकान नही रिहिस।जेन शहर जावय उही म इक्का दुक्का मन लुका चोरी पियँय।होली जइसे रंग के तिहार ल गाँव म जुरमिल के मनाय।

[10/20, 6:52 AM] शशि मैडम: आदमी -औरत लइका सियान बीच गाँव म जुरियाय।डंडा नाच चलत रहे एक कोती रंग घोराय रहे बड़े जन बर्तन म अउ एक आदमी लोटा लोटा महिला पुरूष सबके मुड़ मा रितोय। तब नशा के चलन नइ रहय त लड़ाई झगरा घलो नइ होय अउ शांति पूर्वक तिहार मना जाय। 

देवारी म सुरहुति  गौरी गौरा,देवारी के धजा,गोवर्धन पूजा मातर,राउत नाच सबो वो बखत बिना विध्न- बाधा के सम्पन्न हो जाय।

बड़ दुख होथे जब माँ काकी भाभी मन बताथें। अब होली म घर ले नइ निकलन।एक दूसर के घर खाये पिये ल घलो नइ जान। देवारी म का लड़ाई-झगरा ल देखे ल जाबे ।अब पहिली कस तिहार नइ रहिगे बेटी। माँ बताथे।आज गाँव के उत्तरी - बूड़ती म दारू के सरकारी दूकान खुल गे हे। देखे म उही ह मेला कस लागथे। रोज दारू तिहार मनाये जात हे। त कोन ह होरी देवारी मनाही।शहर तीर के गाव न गाँव रहे न शहर।जादा बिगड़े हुये रूप देखे म आथे।  

आठवी कक्षा तक गाँव म बिजली नइ रिहिस।आठवी के परीक्षा ल कंडिल म दे हँव।दूसर साल बिजली घलो आगे गाँव घर मा। एक ठन टेबल पंखा आगे। एम ए अंतिम के बाद घर म टेलिविज़न आइस।अउ बहुत बाद म छोटे 

 मोबाइल।अब जिनगी इन्टरनेट के जाल मा अरझे कस लागथे। वइसे इन्टरनेट ले काम म सुभीता होथे। तभो ले "अति सर्वत्र वर्जयेत्" । 

अगर हम तुलना करथन त मन इही कहिथे,नवा जमाना म 

 चैन अउ सुकून ह गँवा गे। बस भागत हन। कोन जनी काय पा लेबो? अब तो हवा पानी घलो मिलावटी लागथे। 

 दूध दही म जहर मिले हे। दार चांउर असली ये के नकली? 

 कतका चीज ल गिनावँव तेल नून शक्कर सब शंका के दायरा म। अस्पताल म गोड़ मढ़ाये के जगह नइये। महामारी हर रूप अउ नाम बदल - बदल के आवत हे । न जाड़ा म जाड़ लगे न जेठ मे गर्मी। अउ बारो बारो महिना सावन भादो।

हमर जमाना म प्रकृति घलो अनुशासित रहे। अपन बेरा बखत म हाजिर हो जाय।

बीते दिन लहुट के नई आय। फेर सुरता बहुत आथे। हम दोनो जमाना के सांक्षी हन। दोनो जमाना हमर ये। जय जोहार।


शशि साहू