Thursday 14 October 2021

संस्मरण- --छत्तीसगढ़ी मा मोर साहित्य लेखन के शुरुवात*

 संस्मरण- --छत्तीसगढ़ी मा मोर साहित्य लेखन के शुरुवात*


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: दिनांक - 11 अक्टूबर 2021

दिन -     सोमवार


विषय - *छत्तीसगढ़ी मा मोर साहित्य लेखन के शुरुवात*



ये सप्ताह दे गे विषय ह, अन्तस् के आलमारी म सहेजाय रिकिम रिकिम के सुरता कोती झाँके बर मजबूर करत हे। वइसे तो कुछु भी लिखे पढ़े के मुहतुर कक्षा पहिली ले होइस, फेर कहिनी, गीत, कविता कोती रुझान बहुत बाद म गिस। अभी नवरात्रि के पावन परब चलत हे, अउ इही नवरात्रि मोला गीत लिखे बर कलम धराइस। गाँव म जब माता सेवा होवय, तब जस गीत म सेउक मन संग बइठे बइठे चिल्ला चिल्ला के कोरस करँव। ताहन घर जाके घलो उही सेवा गीत मन ल गुनगुनावँव। गुनगुनावत गुनगुनावत कई गीत जेखर मुखड़ा भर सुरता रहय, उहू ल घलो जोड़-जाँड़ के एक दू पद गुनगुना देवँव। कभू कभू तो नवा मुखड़ा अउ पद घलो गवा जावय। अइसने अइसने मन म गीत फूटे बर लगिस अउ कलम लिखे बर। मोला सुरता आवत हे आठवी नवमी पढ़त पढ़त पाँच सात अलवा जलवा जस गीत बना डरे रेहेंव। जेला जस सेवा म गावँव घलो। नवरात्रि के बाद होली घलो मोला गीत लिखे बर प्रेरित करिस। लइकुसहा उम्मर म अलवा जलवा सेवा गीत अउ होली गीत लिखेल लगगे रेहेंव। जब जब नवरात्रि, होली आवय एक दू गीत लिखा जावय। ये प्रकार ले मोर कलम गीत लिखे बर चलेल लगिस,जे महतारी बोली छत्तीसगढ़ी म रहय। फेर कविता पहली हिंदी म लिखाइस, काबर कि कविता वो समय सुने पढ़े बर हिंदी म ही मिले। छत्तीसगढ़ी जस गीत, होली गीत, अउ भजन कालेज तक आवत ले बनेचकन होगे रिहिस, जे आजो कापी म लिखाय माड़े हे। कालेज के समय घलो हिंदी कविता लिखँव। विद्यार्थी जीवन म अक्सर 26 जनवरी  अउ 15 अगस्त म हिंदी कविता लिखे के प्रयास करँव, तेखर बाद कालेज ले निकलइया पत्रिका घलो प्रेणास्रोत बनिस। कालेज पास करे के बाद 2006 म मोर कर तीन ठन साहित्यिक कॉपी रिहिस। पहली जस गीत के, दूसर होली गीत के अउ तीसर हिंदी कविता के। हिंदी कविता वाले डायरी म एक दू ठन छत्तीसगढ़ी के घलो कविता रिहिस, फेर छत्तीसगढ़ी कविता कोती 2007-08 के बाद धियान गिस, अउ सरलग टूट फूट लिखत गेंव, धीरे धीरे हिंदी लिखई कमती होवत गिस अउ छत्तीसगढ़ी कविता म रुचि बढ़त गिस। 2015  के बाद  अतिक अकन  छत्तीसगढ़ी रचना होगे रिहिस कि, गँवागे मोर गाँव अउ खेती अपन सेती नाम के दू ठन  छत्तीसगढ़ी कविता के संग्रह घलो निकालेंव। 

                 *छत्तीसगढ़ी म मोर साहित्य लेखन होय के बहुत बड़े कारण जन्म भूमि खैरझिटी ल छोड़ कर्मभूमि कोरबा म रहना  होइस*। कालेज करत साँठ 2006 म ही नोकरी करे बर कोरबा आना पडिस। * वो समय कोरबा म मोर तन रहय, फेर खेले खाय अउ पले बढ़े गाँव के सुरता म खोये मन।*  गाँव के मया प्रीत, खेत खार, खेल कूद, तीज तिहार, दाई ददा सब के सुरता ल, मोर कलम लिखे बर मजबूर होगिस। *ये प्रकार ले छत्तीसगढ़ी कविता लिखे के चस्का चढ़िस, जे आज तक नइ उतरे हे।* 

                 जब ले कुछु लिखेल धरे रेहेंव तब ले, मोर कविता अउ गीत म  2016 तक कखरो दखलंदाजी नइ रिहिस। मन के लिखँव, मन के पढ़ँव, अउ मनके गावँव घलो, अइसे लगे कि जे मैं लिखे हँव ते सब सही हे, काबर की वाहवाही घलो मिले। अउ शायद इही वाहवाही घलो सतत लिखे बर प्रेरित करिस, अउ अइसने सबो के साथ होना भी चाही, काबर कि नान्हे लइका के कुछु काम के सराहना वोला अउ सम्बल देथे।  जइसे पहली दूसरी के लइका मन ल गुरुजी मन बढ़िया बढ़िया कहिके सँहिराथे, ताहन लइका मारे खुशी के अउ लिखथें पढ़थे, वइसने मोरो साहित्य संग होइस। 7 जनवरी 2016 मोर साहित्य बर नवा अँजोर धर के आइस, जब मैं गिधवा बेमेतरा वाले हेम साहू जी के सौजन्य ले *छंद के छ*  म जुड़ेंव। छंद लिखे बर सीखेंव त पहली बेर पता लगिस कि शब्द मन ल कइसे सही लिखना हे,काल,कारक,कर्ता,वचन, पुरुष, लिंग आदि घलो कुछु होथे। छंद के छ के गुरुजी मन के दिशा निर्देश म छंद के साथ साथ सही साहित्य लिखे के प्रेरणा मिलिस। छंद के छ में जुड़े के बाद मोर जुन्ना कविता मन के भाव तो नही, पर कलापक्ष ल बहुत सुधारे बर लगिस। जइसे कोनो लइका आगे क्लास म जाथे, त वोला ओखर गलती बता के ठीक कराये जाथे, सही लिखे पढ़े बर बताये जाथे, वइसने छंद के छ  मोर साहित्य बर मिडिल अउ हाई स्कूल के काम करिस।  फिरहाल अभी साहित्य म हायर सेकेंडरी म पहुँचे हँव कि कॉलेज म ये तो महू ल भान नइहे। फेर छत्तीसगढ़ी साहित्य म प्राथमिक अउ मिडिल के पढ़ाई कर डरे हँव। दूनो स्कूल के गुरुजी मन मोर पूज्यनीय हे, एक गलती म घलो तारीफ करके आघू लिखे बर प्रेरित करिस अउ एक सही दशा दिशा दिस। मोर गाँव के गुरुजी अउ कोरबा के  माणिक विश्वकर्मा नवरंग जी, कृष्ण कुमार चंद्रा जी, लाल जी साहू जी आदि मन मोर प्राथमिक गुरुजी, त छंद के छ के अरुण निगम जी, चोवाराम वर्मा बादल जी, दिलीप वर्मा जी, आशा देशमुख जी आदि मन मोर मिडिल स्कूल के गुरुजी बनके मोला कुछु लिखे बर बताइन। अभी फिरहाल *कुकरुस कू* नाम के व्यंग्य संग्रह अउ *छंद सरगम* नाम के छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह निकाले के उदिम जारी हे। 2006 ले सरलग मोर कलम छत्तीसगढ़ी कविता, कहानी अउ आलेख लिखे बर चलत हे, अउ आघू घलो आप सब गुणीजन अउ गुरुदेव मन के मार्गदर्शन में चलही। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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] राजकुमार  चौधरी


विषय-- छत्तीसगढी मा मोर  साहित्य लेखन के शुरुवात ।


     आज ये पटल मा आदरणीय गुरुदेव निगम जी के डहर ले  साहित्यीक संस्मरण लिखे के विषय देय गेहे। ये विषय बढिया घलो हे। एकर ले हर कलमकार अपन साहित्यीक यात्रा के सॅजोय सुरता ला साझा कर सकत हे ।

          इही कड़ी मा मोर छोटकुन सुरता अंतस मा बसे हे। जेन ला आप सबो के आगं मा राखत हवॅ। ओइसे तो हर मनखे के जीवन मा कतको उतार चघाव  बने गिनहा के लहर आथे जाथे। जेन ला कागज मा उतार देय ले जीवनी आत्मकथा के रूप ले लेथे। फेर कुछ भाग अइसन होथे जेन हर जिनगी के हिस्सा बन जथे। चाहे। चाहे वो नचकार होवय बजकाल होवय कलाकार होवय खेलइया कुदइया चाहे कलमकार। साहित्य हमेशा मानवीय संवेदना के चिन्तन जन मानस के आगू मा रखके सही दिशा देखाथे। 

      बचपन मा जब रेडियो के जमाना रिहिस। ओहू मा एक ठन गाॅव मा चार घर रेडिया। उहाॅ बजइया छत्तीसगढी गाना मन ला सुन या फेरसुनल गाना उपर पैरोडी के शब्द बइठाय के ललक मन मा जागे। अउ ओला सृजन रूप देय के उदिम करवॅ। अउ जब सन् 1983 मा सिकोला के बड़का आमा बगीचा मा कवि सम्मेलन होइस (तब मयॅ हर अर्जुन्दा हाई स्कूल दसवी मा पढत रेहेंव ) कवि सम्मेलन मा संत कवि पन दीवान जी लक्ष्मण मस्तुरिया जी मुकुन्द कौशल जी रवि श्रीवास्तव जी बिसंभर यादश मरहा जी अउ उधोराम झखमार के सॅग आदरणीया संतोष झांझी जी रिहिन। बइला गाड़ी मा बइठ के पहुंचेन अउ बड़ भारी भीड़ के बीच मा महू रात भर सुनेंव।जेमा आदरणीय लक्ष्मण मस्तुरिया जी मोला बहुते प्रभावित कर दिस।

 अउ ओ दिन के बाद ले अलवा जलवा शब्द समूह जोड़े के उदिम करत राहवॅ। छै महिना बाद स्कूल मा मौलिक रचना पाठ के प्रतियोगिया रखे गीस। जेमा मोला पहिली पुरस्कार देय गीस। जेकर ले मोर कलम ले लगाव बढगे। अउ सरलग कुछ ना कुछ लिखे मा लगे राहवॅ। साल भर बाद जब हाई स्कूल पास करे रहेंव । एक ठन  शाला आयोजन मा ओ बखत के शालेय शिक्षा राज्य मंत्री हरिहर प्रसाद शर्मा जी बतौर मुख्य अतीथि आय रिहिन। ओकर मंच मा कविता पढे के मऊका लगिस। प्रसस्ति पत्र पाके मन हिम्मत बाढत गीस। सन् 1988 मा सांस्कृतिक कला मंडली दुर्ग के सॅगवारी मन मोर लिखे दू ठन गीत ला आकाशवाणी मा घलो गाइन। जेकर प्रसारण होवत रहय। गरीब घर के लइका आवॅ। माॅ बाप भिलाई मा मजदूरी करय। परिस्थीति अइसे आइस कि मेट्रिक तक ही पढ पाए हवॅ। बिहाव होगे अउ चल पड़ेंव महू भिलाई शहर रोजी मजूरी बर। नौकरी तो नइ लगिस । कम्पनी के शरण परे ले लिखई पढई सबो  लटकगे। जेकर ले लगभग 12 ,14 साल ले बिराम लगे असन होगे। फेर मन मा लिखे के प्रति लगाव बने रहय। कभू कभू दू चार लाईन जोड़त राहवॅ। साहित्य के रद्दा मा काखरो ले संगत नइ बने रिहिस। संजोग अइसे बनिस किएक झन सॅगवारी हर आदरणीय गुरुदेव डा दादूलाल जोशी ले मुलाकात कराइस। मयॅ अपन कुछ गद्य अउ पद्य रचना वोला देखाएवॅ। उनला मन आइस। अउ अतका पॅदोली दीन कि आज ले ऊॅखर आशिर्वाद मिलथ हे। उॅखरे प्रयास ले अपने विचार विन्यास प्रकाशन ले मोर पहिली छत्तीसगढी काब्य संग्रह   ""माटी के सोंध"" किताब रूप देके बड़का मंच मा विमोचन कराइस। जेन हर मोर लिए बहुत बते खुशी के घड़ी रिहिस। माटी के सोंध के भूमिका ला आदरणीय मुकुन्द कौशल जी अउ डा पीसीलाल यादव जी मोर मनोबल ला बढावत आगू के रद्दा देखावत निस्पक्ष भाव ले लिखिन।  मयॅ सदा उॅकर रीणी रहू। 

       बात गद्य के आथे तब मयॅ हर दू चार ठन कहिनी एक  दू ठन निबंध लिखे हवॅ।  फेर बहुत पहिली अखबार मा लतीफ घोंघी जी के ब्यंग अउ लक्ष्मण मस्तरिया जी के माटी कहे कुम्हार ले  ला पढके बहुते प्रभावित राहवॅ। परिणाम ये होइस कि ब्यंग लिखे के प्रयास करेंव। आदरणीय गुरुदेव डा दादूलाल जोशी के दिशा निर्देश ले भाषा शैली मा सुधार के मौका लगिस। अउ फेर मोर दूसर सृजन  ब्यंग संग्रह  ""का के बधाई""। ला  पाठक अउ कलमकार मन के बीच लान पायेवॅ। खुशी के बात हे कि येकर विमोचन बर हमर छंद के छ परिवार के गुरुदेव अरूण निगम जी विशेष अतीथि के रूप मा उपस्थित रिहिन। एक बात सच हे कि अभी तक हिन्दी मा गिनके पाॅच ठन कविता रचना करे हवॅ ।जतका भी अलवा जलवा लिखे हवॅ सब छत्तीसगढी मा ही हे। हमर हाल अइसन हे कि आज ले रोजी रोटी के समस्या हर  नरी ला चपक के धरे हे । कलम के सियाही सुखाय के डर हमेशा बने रथे। तभो ले पनियर पातर रॅग घोर के कागज करिया करत रथों। अभी दू साल ले छत्तीसगढी मा गजल लिखे के उदिम करत रथों। जेमा आदरणीय मुकुन्द कौशल जी के आशिष मिलत रिहिस । पुज्यवर गुरुदेव हर कइ बखत दे दू दू घंटा ले बइठार के गजल के संबंध मा समझावत रिहिन। मोर आधा गजल ला जाॅच के रद्दा देखाइन। सबो संग्रह  ला आखरी जॅचवाना रिहिस। हप्ता पॅदराही के बाद बलाये रिहिन। फेर वाह रे खोंटलगहा करम कौशल जी मोर साथ नइ दे पाइन । अउ परलोक सिधार गे। जेन हर मोर बर बहुते दुखद रिहिस। अभी मोर प्रिय हिन्दी उर्दू अउ छत्तीसगढी गजल के जानकार आदरणीय लतीफ खान जी अउ आदरणीय गुरुदेव डा दादूलाल जोशी जी के तिर सबो गजल ला जाॅचे बर देय हवॅ। समय साथ देही अउ आप सबो के आशिष रही तो छत्तीसगढी गजल के संग्रह ला आप सबो के आगू मा लान पाहूं।

             खूशी के बात ये हे कि आदरणीय गुरुदेव अरूण निगम जी के छंद के छ परिवार ले साधक के रूप मा जुड़े हवॅ। येकर ले पद्य विधा ला निखारे मा सरलग सहयोग होत रथे। दुख यहू रथे कि रोजी रोटी दाना पानी के चक्कर मा देय अभ्यास ला पूरा नइ कर पाववॅ। फेर यहू बिसवास रखथों कि छंद के जानकारी छंद के छ परिवार डहर ले मिलत रही।

     कतको कर लेंव फेर साहित्य मा मोर योगदान गिनती मा नइये। अउ मोला निराशा घलो नइये। कागज करिया करे के आदत हे करत रहूं। 🙏

राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनादगाॅव🙏🙏

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] आशा देशमुख:


*विषय -छत्तीसगढ़ी में मोर साहित्य लेखन के शुरुआत*


छत्तीसगढ़ी में मोर साहित्य लेखन   मोर ज्यादा दिन नइ होय हे भले मोर बोली छतीसगढ़ी हे पर लिखइ हा अभी  बचपना हे काबर कि मोर शुरुआत छतीसगढ़ी मा पाँच छै साल होय हे ।

 येखर शुरुआत के कहानी ल घलो बता देथंव ।

में अब्बड़ सोंचँव  कोंन कर सृजन बर छतीसगढ़ी ग्रुप होही तेमा जुड़ सकँव अउ मोला पता चलबे नइ करय तब मोर एक सहेली हा नेट में सर्च करके बताइन अउ जनकवि श्री कोदूराम दलित जी के दो चार रचना मन ल भेजिन ,पढ़के सुखद आश्चर्य भी होइस कि अतका बड़े साहित्यकार के रचना मोला अभी पढ़े बर मिलिस कहिके।

उही समय श्री रमेश कुमार चौहान जी हा फेसबुक मा पागा कलगी नाम के ग्रुप चलावत रहिन वोमा जुड़ेंव तब उहाँ सूर्यकांत गुप्ता जी, हेमलाल साहू जी,सुनील शर्मा जी से परिचय होइस।

उही समय येमन गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम जी द्वारा संचालित गुरूकुल में  छंद सीखे के शुरुआत करे रहिन अउ छंद कक्षा के सब गतिविधि के चर्चा करें तब मोरो मन मा अब्बड़ इच्छा होय कि महुँ छंद सिखतेंव कहिके।

तब कहि सकत हँव कि गुरु अउ ईश्वर के कृपा ले मोला छंद के छ परिवार मा साधक के रूप में अनुमति मिलगे ।मोर तो खुशी के ठिकाना नइ रहिस कि मोरो दाखिला होगे छंद सीखे बर कहिके।

मोर मन फुरफन्दी कस उड़े लागिस अतिक खुशी कि मानो कोई वरदान मिले हे अउ वरदान ही जानव येला काबर कि यही से मोर छतीसगढ़ी सृजन के श्री गणेश होइस।

छंद के छ मा आये हँव तब ले अभी तक सृजन चलत हे हमर भाखा छत्तीसगढ़ी में।

जेन शुरू में ही बताय हँव कि अभी मोर सृजन के उमर बचपन के अवस्था मे हे ।

समय के साथ साथ लेखन के उमर भी बाढ़ही।

इही आशा के साथ---।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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*विषय--छत्तीसगढ़ी मा मोर साहित्य लेखन के शुरुआत।*


लेखन ला कला कहे गे हे।एखर मतलब हे के लेखक (कवि, साहित्यकार) तको कलाकार होथे।

        कलाकार मन के संबंध मा मान्यता हे के चाहे जेन कला के कलाकार होवय ओमा वोकर कुछ न कुछ जन्मजात गुण जरूर होथे जेला समे के संग लगातार अभ्यास (साधना) करके निखारे जा सकथे।

     जब मैं अपन छत्तीसगढ़ी मा साहित्य लेखन के शुरुआत के बारे मा चिंतन-मनन करथँव ता स्कूल भवन नइ रहे के कारण गौंटिया बाड़ा के परछी मा चौथी पढ़त वो ठेठ गँवइहा लइका जेकर स्कूली नाम चोवा राम वर्मा अउ गाँव-घर ,अतराफ के नाम मुन्ना रहिसे आँखी-आँखी मा झूल जथे। सबो कक्षा ला अकेल्ला पढ़ाने वाला वो  टोपी वाला गुरुजी जेखर चरण वंदन करत हँव जेन हा रोज रामायण,गीता, भागवत के संग देश के वीर मन के बात, किस्सा कहानी बता-बता के पढ़ावयँ---सुग्घर सुग्घर कविता याद करवावयँ। बालपन मा मोर इही मेर ले एती-वोती ले सुने -पढ़े मा कुछु अपन मन ले जोड़-तोड़ के कविता या आगू चलके छत्तीसगढ़ी साहित्य लिखे बर रुझान होइस अउ शुरुआत होइस।


*एक गरीब गवँइहा लइका के साहित्यिक यात्रा*

    अब तो खुद ला बिंसवास होये ला नइ धरय के वो उमर मा आन गाँव के मन रामायण के टीका कहवाये बर लेगयँ।अब जादा कुछु सुरता नइये फेर इनाम के पइसा मा हाफ पेंट अउ कुरता के जेब भर जय तेन याद आथे।

     मिडिल स्कूल के पढ़ाई के समे पंद्रह अगस्त अउ छब्बीस जनवरी मा कक्षा शिक्षक के लिखके देये भाषण, कविता ला मुखाग्र याद करके प्रस्तुत करना अउ ईनाम पाना हा ये रुचि ला बढ़ाये बर खातु-पानी कस काम करिस।

       मोर पिताजी हा कलाकार रहिन। माँदर, तबला, नगाड़ा, चिकारा आदि बजावयँ ।उन बड़ उदार अउ आध्यात्मिक प्रवृत्ति के रहिन।उँखरे कृपा ला महूँ माँदर, तबला बजाये ला सिखेंव।उन अपन संग मोला जग-जेंवारा, रामायण अउ अभिमन्यु नाटक, रामलीला मा जरूर लेगयँ। हाई स्कूल पास होके, कालेज मा पढ़त ले अउ अब दस साल पहिली तक मैनेजर श्री हरिराम ध्रुव भइया जी के अगुवाई मा नारी पात्र ल छोड़ के अधिकांश  पुरष पात्र ला अभिनीत करे के अवसर मिलिस। ये रामलीला के जिक्र जानबूझ के एखर सेती करत हँव के इँहे ले मोर छत्तीसगढ़ी गीत अउ गद्य लेखन के शुरुआत होइस। लीला के बीच-बीच मा अउ दशहरा के दिन रात भर मोर कुछ कल्पना मिला के  नाटक के रूप मा लिखे लोक कथा जइसे पुन के जर पताल, दू भाई, मितान, कलजुग के गोठ---आदि, जेमा खुद के लिखे गीत पिरोये राहय ला संगी-संगवारी मन संग मिलके खेले के सौभाग्य मिलिस।वो समे सन्1980-81 मा छत्तीसगढ़ी नाटक मंडली "कलजुग के गोठ" बनाये के अवसर मिलिस।

 आगू जाके सन् 1988 मा अमृत संदेश पत्रिका मा "बहस" कालम मा दू ठन छोटे -छोटे लेख हिंदी मा 'परिवार ' शीर्षक ले छपिस जेन हा अतका उर्जा भर दिस के अभो ले नइ सिराये हे।

     माता सरस्वती के कृपा अउ गुरुजन मन के आशिर्वाद ले कवि मंच मा काव्यपाठ करे के अवसर मिले ला धरलिस। सुरता करके सिर श्रद्धा ले नँव जथे के मैं जिंखँर एड़ी के धोवन अउ चरण के धुर्रा बरोबर नइ अँव उन महाकवि संत पवन दीवान जी, जनकवि-गायक लक्ष्मण मस्तुरिया जी, सुशील यदु जी, रामेश्वर वैष्णव जी----अउ अभी के जम्मों चर्चित कवि मन संग काव्यपाठ करे के सौभाग्य मिले हे। आकाशवाणी अउ दूरदर्शन मा जाये के तको अवसर मिलिस।

       ये बीच मोर मंचीय कविता के पुस्तक " रउनिया जड़काला के"  वैभव प्रकाशन रायपुर ले प्रकाशित होइस। फेर सच काहँव ता मन हा साहित्य मा जेन अलौलिक आनंद के अनुभूति ला खोजत रहिस वो नइ मिलिस।

 फेर सन् 2015-16 जेला मैं एक छोटकुन रचनाकार के पुनर्जन्म मानथँव आइस जब ईश्वर कृपा ले प्रणम्य गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम जी ले मुलाकात होइस अउ उँखर  आन लाइन कक्षा "छंद के छ सत्र 2' मा छत्तीसगढ़ी भाषा मा छंद सिखे बर एक साधक के रूप मा प्रवेश मिलिस।प्रणम्य दीदी शकुंतला शर्मा जी, सूर्यकांत गुप्ता जी मन के आशीर्वाद अउ बहन आशा देशमुख जी के स्नेह मिलिस।  तहाँ ले मन-भँवरा छंद रस मा डूबगे। वोला मंजिल मिलगे। मन हा साहित्य रस के स्वाद ला पा लिस।वो मन एक साधक के रूप मा छंद के छ परिवार ले अभो जुड़े रहिके सृजनरत हे। संगे संग लोकाक्षर(पटल) परिवार ले जुड़के गद्य लेखन सिखे ला मिलत हे।

  ये बीच गुरुदेव श्री के आशिर्वाद ले "छंद बिरवा(छंद संग्रह), जुड़वा बेटी(कहानी संग्रह) ,कुण्डलिया -किल्लोल(हिंदी कुण्डलिया संग्रह) अउ हिंदी मा बीसों साझा संग्रह प्रकाशित होगे।

सूरज झाँक रहा पूरब से( हिंदी सजल संग्रह), मनका (909 हिंदी दोहा संग्रह), बहुरिया(छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह), मिर्ची लाल(लघुकथा संग्रह) प्रकाशाधीन हे।

     एक साधक रचनाकार के रूप मा "श्रीसीता राम कथा" (छत्तीसगढ़ी महाकाव्य,) जेमा  9 पूजा के फूल(सर्ग) लगभग 90 प्रकार के छंद हे ला छपवाये के इच्छा हे।आशिर्वाद देये के कृपा करहू।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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 सरला शर्मा: " छत्तीसगढ़ी मं मोर साहित्य लेखन के शुरुआत " 

        शीर्षक पढ़ के सुरता के बादर मन के अंगना मं घुमड़े लागिस ...बिजली चमके लागिस ..त    

पीछू छोंड़ आये गली मन दिखे लगिन फेर का ? बरसा सुरु होगिस उही आखर के बरसा त चलव मोर संग आप  मन भी भींजव ..। 

    2003 मं अलमारी ले कलम निकाले च रहेंव के कका बाबू ( केयूर भूषण ) संग भेंट होइस ..डॉ . पालेश्वर शर्मा संग उन छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य के कमी ऊपर गोठ बात करत रहिन ..दुनों झन मोर डहर देखिन अउ हांस के कहिन " तैं काय करत हस बड़े नोनी ! हिंदी , बांग्ला लिखे ले हमन बरजत नइ हन फेर छतीसगढ़ी हर तो हमर अपन मातृ भाषा आय एकरो कर्जा तो उतारे बर परही न ? " कोनो  जवाब तो तुरते ताही देवत नइ बनिस काबर के हमन तो कका , भैया मन तीर छत्तीसगढ़ी बोलते नइ रहेन ...डॉ . पालेश्वर शर्मा मोर ससो पंजो ल समझ गिन सुभाव अनुसार ठठा के हांसिन अउ कहिन " ठीक है , हम लोगों से हिंदी में ही बातें करो पर लिखना छत्तीसगढ़ी में भी शुरू करो । " 

   कका बाबू कहिन " मैं देशबंधु के सम्पादक के पता दे देहंव उहां अपन लेख भेजे करबे । " 

सुरता आवत हे के पहिली लेख 15 अगस्त के समय " लहरावत तिरंगा " लिखे रहेंव ओ समय परमानन्द वर्मा देशबंधु मड़ई अंक के सम्पादन करत  रहिन । थोर बहुत लिखत रहेंव ..कका बाबू के असकाऱा मिलत रहय । थोरकेच दिन बाद सुधा वर्मा मड़ई के सम्पादन शुरू करिन फेर तो बहुत अकन लेख प्रकाशित होइस । लोकाक्षर आदरणीय नन्दकिशोर तिवारी के सम्पादन मं छत्तीसगढ़ी साहित्य के भंडार भरे मं लगे रहिस त मोरो लेख , कहानी , पुस्तक समीक्षा मन ल जघा मिलिस । आकाश वाणी रायपुर ले  छत्तीसगढ़ी परिचर्चा , गोष्ठी , कहानी प्रसारित होइस ..। मोर छत्तीसगढ़ी गद्य लेखन हर डॉ . पालेश्वर शर्मा से प्रभावित रहिस फेर उंकर असन ध्वन्यात्मक शब्द मन के समुचित प्रयोग करे मैं तभो नइ जानत रहेंव , अभियो नइ जानवं ... ओइसने कका बाबू असन साहित्य मं राजनीति के नीति , गति मन के तत्कालीन प्रभाव ल भी लिखे नइ जानवं । हं ..अतका जरूर हे के मैं शुरू से ही हिंदी के वर्णमाला के पक्षधर हंव ...र के चारों रूप , आधा अक्षर के प्रयोग करत आवत हंव ..। शुरुआती दौर मं आलोचना भी होइस ..।  

    एतरह पहिली छत्तीसगढ़ी किताब संस्मरण के रूप मं प्रकाशित होइस " सुरता के बादर " । 

आदेश मिलिस बड़े मन के " किस्सा गोई को विस्तार दो उपन्यास लिखो " अउ " 2006 मं " माटी के मितान " आइस अभी 2019 मं ये उपन्यास ल रविशंकर विश्व विद्यालय हर  एम . ए. के पाठ्यक्रम मं स्थान देहे हे त एकर दूसर संस्करण वैभव प्रकाशन रायपुर ले इही साल प्रकाशित होइस हे । 2007 मं कहानी , निबंध , कविता के मिंझरा किताब प्रकाशित होइस " सुन संगवारी "  । बने थिरावत रहें के एक दिन डॉ. सुधीर शर्मा आईन " छत्तीसगढ़ी मं गद्य साहित्य के सबो विधा के उदाहरण स्वरूप एक ठन किताब लिखव ..ज़ेहर छत्तीसगढ़ी गद्य के विद्यार्थी मन के काम आही ।" कभू कभू छोटे भाई , बहिनी मन के दुलार पुरोये बर परथे न ? 

इही सेतिर 2013 मं " आखर के अरघ " लिखेवं । ए किताब हर मोर बर बड़ महत्वपूर्ण एकर बर हे के लोक मान्यता के अनुसार बेटी मन पिता ल अर्घ्य नइ देवयं माने पानी पिंडा नइ करयं ...त मैं भैया ल कइसे अरघ देवंव ..? तेकरे बर " आखर के अरघ " देहे हंव ..एक साहित्यकार पिता ल चार आखर ....मोर मन जुड़ा गे । 

      आजकाल थिरावत हंव जी ...लोकाक्षर मं , अउ पत्र पत्रिका मन मं प्रकाशित छत्तीसगढ़ी साहित्य पढ़त रहिथंव ..मन जुड़ा जाथे । 

   सरला शर्मा

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 ओम प्रकाश अंकुर: संस्मरण... 

  छत्तीसगढ़ी मा मोर साहित्य लेखन के शुरुआत 


साहित्य ल समाज के दर्पन कहे गेहे. साहित्य मा सबके हित छुपे रहिथे. अंतस के अावाज ह साहित्य के रुप मा सबके सामने आथे. कोनो  भी साहित्यकार ह अपन दिल के बात ल रखथे. जन कवि श्रद्धेय स्व. कोदू राम दलित जी ह लिखे हवय कि -" जइसे मुुसवा निकलथे बिल ले,वइसने कविता निकलथे दिल ले." साहित्य म पद्य अउ गद्य विधा होथे. कतको झन मन दूनों विधा मा कलम चलाथे. मोरो रुचि ह पद्य के सँगे सँग गद्य म रहे हे. मोर प्रेरणा स्रोत मोर गातियार कका स्व. लखन लाल दीपक (सुरगी, राजनांदगॉव) रिहिस हे. वोकर लेख अउ कविता 

सबेरा संकेत, नवभारत, देशबंधु, अरुणादित्य सहित गजब अकन अखबार मा छपे. मेहा  जब हाईस्कूल मा पढ़त रहेंव त कका ह मोला लेख लिखे बर प्रेरित करिस. मेहा 1992 मा सबेरा संकेत के "आपके पत्र "स्तंभ मा छुट -पुट लेख लिखे के शुरुआत करेंव.मोर गाँव के समस्या के सँगे सँग राष्ट्रीय खबर उपर अपन मति अनुसार बिचार ल रखव. लेख मन ह हिन्दी म रहय. नवभारत म घलो मोर लेख ह शामिल होय. 

पढ़ई जीवन मा जब सातवीं कक्षा पढ़त रेहेंव त सबले पहिली मेहा दूसर के कविता ल पंद्रह अगस्त मा सुनाय रेहेंव. पहिली बार मंच मा बोलेंव. जब हाईस्कूल पढ़त रेहेंव त भाषण अउ सामान्य ज्ञान मा मोर गजब रुचि रिहिस हे. 


  मेहा कविता लिखे के शुरुआत 1995 मा जब दिग्विजय कॉलेज राजनांदगांव म पढ़त रहेंव तब करेंव. जब दैनिक सबेरा संकेत दुवारा " काव्य पहल "स्तंभ के शुरुआत करे गिस. येमा जउन विषय / चित्र देय जाय वोकर उपर चार लाइन म कविता लिखना रहय. शुरु म हिन्दी म कविता लिखेंव. प्रथम तीन अउ विशेष मा जब मोर कविता ह बीच बीच मा शामिल होत गिस त मोला लगिस कि मेहा अइसने प्रयास करत रहूं त धीरे ले चार लाइन ले बढ़ के सोलह लाइन के कविता घलो लिख डरहू. मेहा पहिली छत्तीसगढ़ी कविता 26 जुलाई 1996 मा "किसान" शीर्षक ले लिखेंव. मात्र चार लाइन के रिहिस हे. एकर बाद मेहा हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी मा बरोबर ढंग ले कविता रचत गेंव. जब मेहा दिग्विजय कॉलेज राजनांदगॉव मा पढ़त रेहेंव त कॉलेज म भाषण, वाद विवाद स्पर्धा, परिचर्चा, क्वीज प्रतियोगिता के सँगे सँग कविता घलो सुनाव. राष्ट्रीय सेवा योजना के माध्यम ले मोर प्रतिभा ह उभर के सामने अइस. एनएसएस अधिकारी श्रद्धेय स्व. डॉ. नरेश कुमार वर्मा (भाटापारा, बलौदाबाजार) , डॉ. के. एल. टाण्डेकर,  प्रखर वक्ता डॉ. चन्द्र कुमार जैन , मेजर खड्ग बहादुर सिंह, प्रो. आर. पी. दीक्षित, प्रोफेसर थान सिंह वर्मा जी मन मोला प्रोत्साहन दिस.  आजादी के स्वर्ण जयंती समारोह के कड़ी मा हमर दिग्विज कॉलेज मा आयोजित परिचर्चा अउ कवि गोष्ठी मा काव्य पाठ करे रेहेंव .ये कार्यक्रम के पगरईत स्वतंत्रता संग्राम स्व. कन्हैया लाल अग्रवाल ह करे रिहिस हे. मोर सँगे सँग ये कार्यक्रम म छात्र वर्ग के तरफ ले प्रतिनिधि के रुप मा  सँगवारी सरोज मेश्राम ह आमंत्रित रिहिस हे .


मोर छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी कविता ह दैनिक सबेरा संकेत, दैनिक भास्कर, दैनिक दावा, नांदगांव टाइम्स,कृषक युग,कड़वा घूंट, मा प्रकाशित होय लगिस.


ये बेरा मा संस्कारधानी राजनांदगॉव मा 1995 मा पत्र लेखक मंच के गठन होगे रिहिस हे. येखर अगुवा साहित्यकार अउ लोक कलाकार श्री आत्मा राम कोशा अमात्य जी अउ सतीश भट्टड रिहिस हे. मेहा पत्र लेखक मंच के कवि गोष्ठी म भाग लेंवव. कोशा जी के सँगे सँग येमा जुड़े साहित्यकार मन मोला प्रोत्साहित करिस. 

  हमर गाँव सुरगी मा 1995 मा दुर्गा उत्सव के सुग्घर बेरा मा  छत्तीसगढ़ स्तरीय कवि सम्मेलन के आयोजन होय रिहिस हे .ये कवि सम्मेलन मा मेहा भाग तो नइ लेय रेहेंव. श्रोता के रुप म उपस्थित होके पूरा कवि सम्मेलन ल सुने रेहेंव. हमरो गाँव के गीतकार मनाजीत मटियारा ,कवि फागू दास कोसले जी अउ धर्मेन्द्र पारख मीत जी ह कविता पाठ करे रिहिस हे. ये कवि सम्मेलन ले मेहा गजब प्रभावित होयेंव. ये कवि सम्मेलन के समाचार मेहा खुदे बनायेंव. येकर पेपर कटिंग आजो मोर कर हे. 

  जब मेहा स्नातक करत रेहेंव उही साल 1997 मा 24 साल के उमर मा मोर शादी होगे. इही करा मोर नियमित पढ़ई ह छूट गे. अउ मेहा रोजी -रोटी खातिर राजनांदगांव के एक  प्राइवेट कंपनी मा काम के शुरुआत करेंव. 1997-98 मा मोर कविता लिखई 

ह बने चले लगिस. तीन -चार अखबार मा मोर कविता बने छपे ल लगिस.  1998 मा मेहा छुट पुट आंचलिक कवि सम्मेलन मा कविता पाठ करेंव. हमर गाँव सुरगी के कवि सम्मेलन ले प्रभावित होके कवि सँगवारी लखन लाल साहू लहर ह अपनो गाँव मोखला मा घलो कवि सम्मेलन करइस. आदरणीय कुबेर सिंह साहू जी ह अपन गाँव मा रामायण प्रतियोगिता के मंच मा कवि सम्मेलन रखवइस. इही साल शरद पूर्णिमा के सुग्घर बेरा मा गुण्डरदेही (बालोद जिला) मा आयोजित कवि सम्मेलन मा मेहा काव्य पाठ करेंव. ये कवि सम्मेलन मा लोक गीतकार कामता प्रसाद सिन्हा (भरदाकला, बालोद) अउ हमर गाँव सुरगी के युवा कवि भाई फकीर प्रसाद साहू फक्कड़ के सँग गे रेहेंव. उमरपोटी (उतई) मा आयोजित कवि सम्मेलन मा भाई लखन लाल साहू लहर के सँग जाके कविता पाठ करेंव.ये सब कवि सम्मेलन मा मेहा हिन्दी के सँगे सँग छत्तीसगढ़ी कविता घलो प्रस्तुत करवँ. 


 1998 मा भिलाई के साहित्यकार संदीप साहू प्रणय हा साहित्यकार सम्मान समारोह रखिस .येमा महू ला आमंत्रित करे रिहिस हे. पर मेहा प्राइवेट कंपनी के मालिक ले छुट्टी लेय के हिम्मत नइ कर पायेंव. ये प्रकार ले वो कार्यक्रम म नइ गेंव. सुरगी क्षेत्र के बाकी सँगवारी मन गिस अउ सम्मानित होइस. 

    धीरे ले मोर अउ सँगवारी मन के मन हा साहित्यिक संगठन गठन करे के होइस. आदरणीय कुबेर गुरूजी ले भेंट करके अपन बात रखेन. कुछ सँगवारी मन ल पोस्ट कार्ड लिखेन.ये प्रकार ले सहमत होके 21 मार्च 1999 मा मोर घर मा " साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगांव "के गठन होइस. येमा शुरु ले ग्रामीण साहित्यकार मन के संख्या जादा रेहे हे. अउ इही उद्देश्य ले ये संस्था के गठन होय रिहिस हे. आज परिषद् ल चलत 22 साल होगे हे .

परिषद् के गठन होय ले अब लगातार मासिक काव्य गोष्ठी अउ परिचर्चा अलग अलग गाँव मा होय लगिस. येखर से लिखई ह घलो लगातार चलत गिस.कविता  छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी दूनों मा लिखवँ. पर गद्य मा हिन्दी मा ही लिखवँ. परिषद् के गठन होय ले खूब आंचलिक कवि सम्मेलन घलो होइस.  हमर जिला के जउन कवि मन  ह मंचीय कवि के रुप मा अपन छाप छोड़िस वोमा मोरो गिनती होय लगिस. 

 2008 मा मोला तत्कालीन मुख्य मंत्री डॉ. रमन सिंह जी ले मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान मद ले छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह "जिनगी ल सँवार 'प्रकाशित करे बर दस हजार रुपये के अनुदान मिलिस. अउ डॉ. रमन जी के ही हाथ ले 31 मार्च 2008 मा भर्रेगॉव पुल के लोकार्पण समारोह मा विमोचन करायेंव. ये किताब मा मोर मात्र 24  कविता हे. येहा मोर आज तक के प्रकाशित एक मात्र किताब हे. 

साकेत साहित्य परिषद् सुरगी दुवारा प्रकाशित साकेत स्मारिका के सँगे सँग  सबेरा संकेत, दैनिक दावा, लोकाक्षर, मेघ ज्योति, कृषक युग, नांदगांव टाइम्स, नाम देव टाइम्स, कड़वा घूंट मा छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी कविता के छपे के दौर जारी रिहिस हे. 


 28 फरवरी 2016 मा पुरवाही साहित्य समिति पाटेकोहरा विकासखंड छुरिया जिला राजनांदगांव के गठन करेन. 


मेहा मई 2020 मा "छंद के छ " के संस्थापक आदरणीय गुरुदेव अरुण कुमार निगम जी दुवारा संचालित "छंद के छ -

सत्र -12" मा छंद साधक के रुप मा शामिल होय हवँ. येमा मोर गुरु 

हमर राजनांदगांव जिला के आदरणीय राम कुमार चन्द्रवंशी जी अउ आदरणीय महेन्द्र कुमार बघेल मधु जी हे. छंद के छ ह एक सुग्घर उदिम हरे. आदरणीय गुरुदेव अरुण कुमार निगम जी के प्रसास के जतके प्रशंसा करे जाय वोहा कम होही. आप मन के मार्गदर्शन मा अब तक 150 से उपर रचनाकार मन हा 50 प्रकार के छंद सीख के लगातार छंद विधा ला पोठ करत हे. 

जहां तक मोर बात हे मेहा छंद के छ परिवार मा अभी प्राथमिक शाला के लइका हरवँ. सीखे के कोशिश करत हवँ. 


  अब बात करत हवँ गद्य विधा के.  पहिली मेहा गद्य मा जन कवि श्रद्धेय स्व. विश्वंभर यादव जी मरहा ,लोक संगीत सम्राट श्रद्धेय स्व. खुमान साव जी, मानस मर्मज्ञ श्रद्धेय बोधन दास साहू जी के सँगे सँग राजनांदगांव जिला के चार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उपर हिन्दी मा लेख लिखे हवँ. कॉलेज जीवन के साहसिक अभियान के संस्मरण लिखे हवँ .


पर मेहा जब आदरणीय सुधीर शर्मा जी अउ आदरणीय गुरुदेव अरुण कुमार निगम जी द्वारा संचालित व्हाट्सएप ग्रुप "छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर " मा जुड़ेव त छत्तीसगढ़ी म गद्य लिखे के कोशिश करेंव. ये ग्रुप मा मोर द्वारा लिखित लेख ला ग्रुप मा जुड़े विद्वान साहित्यकार मन ह  पढ़ के प्रोत्साहन दिस येहा मोर सौभाग्य हे. येखर ले मोला अउ लिखे के प्रेरणा मिलथे. दूसर विद्वान साहित्यकार मन के रचना ल पढ़ के हमर मन मा जोश आथे. 

ये प्रकार ले छत्तीसगढ़ी मा मेहा गद्य लेखन के शुरुआत के श्रेय छत्तीसगढ़ी लोकाक्षप ग्रुप ल देना चाहत हवँ. येखर माध्यम ले हमर छत्तीसगढ़ी गद्य ह पोठ होवत हे. नवा कलमकार मन हा ये पटल के माध्यम ले अपन पहचान बनावत हे. वरिष्ठ साहित्यकार मन के सुग्घर मार्गदर्शन मिलत हे. 

 इही बिचार के साथ मेहा ये विषय मा अपन लेखनी ल विराम देवत हवँ. 

   आप जम्मो झन ल सादर प्रणाम...  जय जोहार... 

जय छत्तीसगढ़... जय छत्तीसगढ़ी... 

               

 ओमप्रकाश साहू" अंकुर "

सुरगी, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़) 


मो.  7974666840

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: विषय -- छत्तीसगढ़ी म मोर लेखन के शुरुआत कब ले होइस?

मैं ननपन ले हिंदी के वातावरण में भी रहे हंव। मोर मायके अउ मामा गाँव म हमर मन संग हिंदी ही बोले जाये। मोर पिताजी याने काका ह बी एड कालेज म प्रोफेसर रहिस हे। बड़े पिताजी हेड मास्टर.रहिस हे। चाचा मर्रा हाई स्कूल म प्राचार्य रहिस हे। मामा भी हेड मास्टर रहिस हे। मामा गाँव जावन तब भी हिंदी में ही बात होवय।.मोर माँ आदमी देख के हिंदी या छत्तीसगढ़ी बोलय।गाँव म हमर मन संग हिंदी अउ बाकी मन संग छत्तीसगढ़ी बोलय। मैं बहुत कुछ छत्तीसगढ़ी ल समझ जांव फेर बोलंव नहीं।

शादी होगे ,रायपूर में ही ससुराल मोर पति रायपुर में ही पैदा होय रहिस हे ये मन आमापारा, म फेर बाद म राजातालाब म रहिन हे। ससुर एस एल आर रहिस हे। घर म का बाहिर में भी सब झन ठेठ छत्तीसगढ़ी बोलंय। मुसलमान पंजाबी सबके  संग म छत्तीसगढ़ी ही चलय।

1979 जून म मैर.बिहाव.होईस अउ तीन चार महिना बाद हमर जेठ बोल दिस के "सुधा जब तक छत्तीसगढ़ी नइ बोलही तब तक ऐखर साथ कोई बात मत करना।" अब टूटे फुटे म बोलना शुरु करेंव.त उचँचारण सही नइ राहय त सब हाँसय।


एक दिन मैऔ अपन दीदी डा. सतँयभामा आड़िल तीर जाके बहुत रोयेंव। तब दीदी एक रास्ता बतइस के तैं छत्तीसगढ़ी समझ जथस त तैं कुछ लि। बोल बोल के.लिख, एक कहानी लिख ले, कविता लिख ले। ये बात मोला सही लगिस।

अब घर आ के सोचत.रहेंव के का लिखंव। तब मोर मुलाकात एक नारी.ले होइस जेन अपन.पीड़ा ल मोला बतइस। मैं सोचेऔव के येला लिख लेथंव.ये एक पाकेट उपन्यास तो लिखा जही।

बस कुछ कागज रखे रहिस हे अउ मैं कहिनी.लिखना शुरु करंव। हर वाक्य ल कई कई बेर बोलंव। 1979-1980 म मोर लेखन चलत रहिस। ये कहिनी एक उपन्यास के रुप ले लिस। ओ समय के पाकेट बुक के आकार के रहिस हे। ये उपन्यास मोर पहिली छत्तीसगढ़ी लेखन आये जेन ह 1980 म पूरा होइस। येखर प्रकाशन 2007 म होइस।येखर नाव "बनके चँदैनी " हावय। उपन्यास के बाद पहिली कविता लिखेंव जेन ल ऋचा साहित्यिक संस्था म सुनाये रहेंव " मोर लइका.ल झन.निहार " टोनही विषय ऊपर चर्चा रहिस हे त लिखे रहेंव। ओखर बाद नारी भ्रूण हत्या ऊपर अंतर्द्वंद्व नाटक लिखेंव।यह ह देशबंधु म प्रकाशित हो गे रहिस हे। मोर संपादन करे के पहिली मोर कविता ,कहिनी, परिचर्चा देशबंधु के मड़ई अंक म छपत रहिस हे। तब मोला मड़ई अंक के सम्पादन पर बुलाये गीस। सन् 2003जनवरी ले मैं अपन लेखन के कारण मड़ई के संपादन करे ले लग गेंव।

ये बीच प्रौढ़ शिक्षा मे भी 2007 ले लेखिका के रूप म जुड़ गेंव। बाद म बोर्ड मेम्बर हो गेंव।अउ हिंथी छत्तीसगढ़ी प्राइमर के लेखन भी करेंव। दू पुस्तक "चुरकी भुरकी" अउ " गोदना के गोठ "  के प्रकाशन राज्य संसाधन केंद्र ले होईस। नेशनल बुक ट्रस्ट ह नवसाक्षर मन बर  मोर एक पुस्तक के प्रकिशन करिस"अरुण के गाय" पाठ्य पुस्तक निगम भी एक मोर  खूबचंद ऊपर लिखे चित्र कथा"डा. खूबचंद बघेल" प्रकाशित करे हावय। मोर छत्तीसगढ़ी नाटक दुलारी, रामचरित मानस नाटक, प्रकृति अउ मनखे के प्रकाशन होगे हावय। कहिनी संग्रह। कोंख म बसेरा, धनबहार के छाँव म , पाये लुगरा के प्रकाशन होगे हावय।कविता संग्रह कइसे हस धरती ,छप चुके हावय। तीन पुस्तक संपादकीय के छपे हावय। तरिया के आँसू, परिया धरती के सिंगार, बरवट के गोठ।अभी तक छत्तीसगढ़ी म संपादकीय के पुस्तक नइ छपे हावय। मोर 900 ले ऊपर छत्तीसगढ़ी के संपादकीय छप चुके हे ये ह एक इतिहास बनगे हावय। ये बात ल देशबंधु के प्रधान संपादक अउ मालिक  ललित सुरजन जी ह अपन लेख देशबंधु के साठ वर्ष म लिखे हावय येला फेस बुक म पढ़े जा सकथे।

मोर लेखन 1979 से छत्तीसगढ़ी म सरलग चरत हावय। आकाशवाणी म भी मोर भुइँया म बहुत अकन कहानी के प्रसारण होगे हावय।

सुधा वर्मा, 13/10/2021

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 मोहन मयारू: *छत्तीसगढ़ी मा मोर साहित्य लेखन के शुरुवात* 


अइसे तो मँय अभीच के नवा लिखइया नवसिखिया लइका अँव , जउन अभी कमल धर के धीरे धीरे लिखे बर सिखत हँव । आज प्रणम्य गुरुदेव निगम जी मन के देय ये विषय हर बड़ मनभावन हें , जउन ह जिनगी के रस्ता मा गठियाय जुन्ना सोनहा सुरता मन ल एक बेर फेर दोहराय के सुग्घर अवसर दिस । अइसे तो बहुत अकन गोठ हर हमर पहिली के दे विषय "मँय काबर लिखथँव" अउ "साहित्य मा मोर गद्य लेखन के शुरुवात" विषय मन म मँय अपन बहुत अकन सुरता मन ला साझा कर डरे हँव । आज के विषय हे "छत्तीसगढ़ी मा मोर साहित्य लेखन के शुरुवात" अभी तक के मोर जन्मभूमि अउ कर्मभूमि मोर गाँव ही रहे हे , मोर पढ़ई लिखई गाँव मा ही होइस हें । स्कुल के समे म हिंदी भाखा म महूँ ह थोड़ बहुत काल्पनिक कहिनी बना के लिख लेवत रहें हँव , मोला वो समे साहित्य के बारे म कुछू पता नइ रिहिस हे ।


 मँय ह केवल अपन मन के काल्पनिक भाव मन ला कहिनी असन उतार लेवत रहे हँव अपन कॉपी म । बाद म धीरे से हमर स्कुल प्रार्थना म अमृत वचन बोले के शुरुवात होइस , वो समे हमन सबो संगवारी संगवारी कोनो कैलेण्डर म के छपे अमृतवाणी ला बोलतीस त कोनो अखबार मा छपे अमृतवाणी ला बोलतीच । अब बारह महिना के कैलेण्डर म 12 ठन छपे अमृतवाणी हा कतेक दिन ले पुरतीस सबो झन तो बोल डरे राहन सब ल । तब मँय सोंचेव अब का करना चाही ? ओ समे स्कुल म लगे किताब मेला के एक ठन पुस्तक मोर पास राहय "किशोर किशोरियों का भविष्य निर्माण" नाव के जेखर लेखक डॉ. पवित्र कुमार शर्मा जी मन रिहिन । हिंदी के किताब रिहिस वो किताब के नाव असन ही वोकर काम घलो रिहिस । वो किताब मा लेखक पवित्र कुमार शर्मा जी मन पढ़इया लिखइया लइका मन के असल म भविष्य निर्माण कइसे होना चाही उनला कइसे रहना चाही कइसे करना चाही अउ उनला का नइ करना चाही । 


अइसे अइसे बड़े छोटे सबो प्रकार के बात मन ला बतावत सुग्घर मार्गदर्शन ले भरे वो किताब मोर हाथ मा रिहिस । मँय वो किताब ल पूरा पढ़ डरे राहँव अउ किताब ले काफी प्रभावित रहेंव , तेपाय के वो किताब के सुरता मोला आज ले हावय वोकर नाव संग । तब फेर मँय ह उही किताब के मार्गदर्शन ले स्कुल मा बोले खातिर छोटे - छोटे अमृतवाणी रोज के नवा नवा विषय मन में लिखे के शुरू करे रेहेंव । मँय रोज के प्रार्थना मा अपन लिखे अमृतवाणी ल बोलँव , मोर संगी साथी मन सब व्याकुल राहय फलाना ह कामे के ला देख के बोलथें यार कहिके । कभू कभू मोर ले पूछय घलो रोज - रोज कहाँ - कहाँ ले लान के बोलथस यार कहिके ? तब मँय उनला बतावँव कि मैं खुदे लिख के अपन विचार ल बोलथँव यार कहिके । अइसे तो शुरू होय रहिस हे मोर अलवा जलवा लेखन के शुरुवात ह साहित्य ले अनभिज्ञ रहिके । पढ़ई पूरा होइस हाथ मा मोबाइल आइस , संगवारी मन के सहयोग ले सोशल मीडिया म फेसबुक ले जुड़ेव ।


 फेसबुक म घलो शुरू - शुरू म अपने विचार मन ल त कुछू बने विचार वाले पोस्टर फोटु मन ला शेयर करत राहँव चलाये बर सिखत सिखत । वोही म ही मोर भेट बड़े भइया कवि सुनील शर्मा "नील" जी मन ले होइस अउ उनकर माध्यम लेही अउ कतकोन कवि साथी मन ले जुड़ना होइस । मँय सुनील भइया जी मन के पोस्ट मन ला देखँव उनकर कविता रचना मन ल पढ़व अउ दिल खोल के कमेन्ट करँव । सुनील भइया जी मन संग फेसबुक म ही एक अच्छा सम्बन्ध बनगे रिहिस , अउ मँय उनकर ले भी काफी प्रभावित रहेंव । एक दिन भइया सुनील जी मन अपन मंच म कविता पढ़त फोटु शेयर करिन फेसबुक म जेला देख के मोर अन्तस् गदगद होगे राहय , अउ मँय अपन आप ला उनकर ले बात करे बर नइ रोक पाय हँव । मँय सुनील भइया जी मन सो नंबर माँगेव अउ उनकर ले बात करके उनला बधाई देंव तब सुनील भइया जी मन मोला कविता लिखे बर प्रेरित करिन कि मोहन भाई आपो कविता लिख सकथव कहिके , मँय आपके लिखे विचार मन ल पढ़त रहिथव । 


आप बिल्कुल लिख सकथव भाई कहिके सुनील भइया जी मन मोर मनोबल बढ़ाइन अउ मोला कहिन भाई आप अपन गाँव गँवई घर दुवार खेत खार बारी बखरी येमन ल देख के कइसे सोचथव का सोचथव वो सबो जिनिस मन ल लिखव कहिके । तब मँय ह बड़े भइया सुनील शर्मा जी मन के प्रेरणा ले शुरू से ही अपन महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी म ही लिखें के शुरू करे रेहेंव । शुरू शुरू म अलवा जलवा अपन मन के भाव मन ला अइसने कलम के धार म उतार लेवत राहँव , धीरे धीरे अपन क्षेत्र के तीर तखार के साहित्यकार मन ले जुड़ना होइस । उंखरो मन ले मोला पोठ मार्गदर्शन सलाह अउ सुझाव मिलिस कि हमला कइसे कविता लिखना चाही का लिखना चाही अउ कामे नइ लिखना चाही अइसने कतकोन बात हावय जउन मोला उनकर ले जुड़े के बाद उनकर ले जाने अउ सीखे बर मिलिस । धीरे - धीरे सिखत - सिखत लिखे के शुरुवात करत कलम पकड़े बर सीखे रेहेंव तइसने मोर शुरुवाती दौर म ही मोर भेट "छंद के छ" परिवार संग हमर प्रणम्य गुरुदेव अरुण निगम जी मन सो होइस


 अउ येला मँय अपन सौभाग्य मानथँव जउन मोला अपन शुरुवाती समे ले ही छंद परिवार संग पूज्य गुरुदेव जी मन के संरक्षण मिलिस ।गुरुदेव जी मन के छत्रछाया म ही रहिके मँय ह छंद जइसन अनमोल विधा के ज्ञान पाये हँव अउ छंद परिवार ले ही मँय हर व्याकरण छंद विधान लिंग वर्तनी काल अउ गुणवत्ता ले भरे सार्थक लेखन जइसन शब्द मन के महत्तम ला जाने हँव जउन मन आज साहित्य लेखन के क्षेत्र म मोर बर रामबाण के काम करत हें । प्रणम्य गुरुदेव निगम जी मन के देय साहित्यिक सलाह सुझाव अउ मार्गदर्शन ले भरे उनकर सबो सियानी गोठ मन हर बहुत ही अनुकरणीय हे जउन हमला अपन शुरुवाती समे ले ही मिलत आवत हवै , अउ अभी तक ले मिलत हे । हमर पूज्य गुरुदेव जी मन के बस अतके


 कहना हें कि साहित्य म हमला अइसन साहित्य के सृजन करना चाही जउन भाखा अउ साहित्य दुनो ला पोठ अउ समृद्ध करय । मँय कहिथँव त अइसन कोनो साधक नइ होही हमर छंद परिवार मा जउन गुरुदेव जी मन के ये सब सियानी गोठ ला नइ जानत होही । मँय तो अपन शुरुवाती समे लेही हमर महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी म ही लिखत आवत हँव , पहिली मँय ह पद्य मा ही बस रचना करत रहे हँव आज पूज्य गुरुदेव निगम जी मन के प्रेरणा ले गद्य विधा मा घलाव सरलग अपन कलम चलावत हँव । गुरुदेव जी मन के सानिध्य अउ सुग्घर मार्गदर्शन पाके अन्तस् गदगद हें , जउन मन साहित्य के समृद्ध खातिर सरलग अइसन सुग्घर उदीम करत आवत हावय पूज्य गुरुदेव जी मन के स्नेह अउ आशीर्वाद सबो दिन अइसने मिलत राहय ।


              *मयारू मोहन कुमार निषाद*

               *छंद साधक सत्र कक्षा - 4*

               *गाँव - लमती , भाटापारा ,*

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: *छत्तीसगढ़ी मा मोर साहित्य लेखन के शुरुआत*


मोर जनम दुर्ग शहर मा होइस। पिताजी छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि रहिन तभो परिवार मा बोलचाल के भाषा हिन्दी रहिस। चना-मुर्रा-लाड़ू बेचइया, बजार मा साग-भाजी बेचइया, दही-मही बेचइया, टांगा-रिक्शा चलइया, मोहल्ला के सँगवारी आदि मन संग गोठियावत मा छत्तीसगढ़ी भाषा बोले बर सीखेंव। बड़े-बड़े साहित्यकार मन के हमर घर मा आना-जाना रहिस। पिताजी संग साहित्यिक गोष्ठी मा तको जावत रहेंव। पिताजी मोला व्याकरण के बारीकी सिखावत रहँय। कुल मिलाके साहित्यिक वातावरण मा नान्हेंपन बीतिस। सितम्बर 1967 मा पिताजी के स्वर्गवास होगे। पंदरा साल के उमर मा जब मँय दसवीं पढ़त रहेंव तब हाई स्कूल के स्मारिका बर पहिली पइत हिन्दी मा कविता लिखेंव। हिन्दी मा कविता लिखे के शुरुआत 1971 ले होइस। 


07 नवम्बर 1971 मा चंदैनी-गोंदा के पहिली प्रदर्शन के बाद दाऊ रामचन्द्र देशमुख जी हमर घर मा पिताजी के गीत लेये बर आये रहिन। वोमन छन्नर छन्नर पैरी बाजे गीत ला नोट करे के बाद मोर बड़े बहिनी मंजुला ला पूछिन कि नोनी, गाना-वाना गाथस का ? मोर बहिनी कहिस घरे घर मा अइसने अलवा जलवा गा लेथंव तब दाऊ जी मोला कहिन कि बाबू ! काली मंजुला ला लेके बघेरा आ जाबे। दूसर दिन हम दुनों भाई-बहिनी बघेरा पहुँचेन। खुमानलाल साव जी ऑडिशन लिन फेर सलेक्शन नइ होइस तब दाऊ जी कहिन कि  निराश होए के कोनो बात नइये, मंजुला ह समूह नृत्य मा रही। तेखर बाद मँय रोज अपन बहिनी ला लेके बघेरा मा जावँव। उहाँ चंदैनी गोंदा के रिहर्सल चलय। मोर उमर तब सोला साल के रहिस। जम्मो कलाकार मन संग घनिष्ट सम्बन्ध होंगे। अनेक प्रोग्राम मा तको मँय जावत रहेंव।


चंदैनी-गोंदा के गीत मन ला सुनके मोरो मन मा छत्तीसगढ़ी मा गीत लिखे के इच्छा जागिस अउ 1972-73 ले मोर छत्तीसगढ़ी भाषा मा लेखन के शुरुआत होइस। उमर के मुताबिक कविता छपवाए के घलो शउँक लगिस फेर वो जमाना मा अखबार वाले मन छत्तीसगढ़ी मा कविता नइ छापत रहिन। हिन्दी के कविता भेजेंव, वो छप गे। मोर पहिली हिन्दी कविता राजनाँदगाँव के "सबेरा-संकेत" मा 1974 मा प्रकाशित होइस। वो समय सबेरा-संकेत मा मोर बहुत अकन कविता मन छपिन। फेर नवभारत, अमर-किरण मा घलो कहानी, लेख, कविता छपिस। ये मोर रचना मन के शुरुआती प्रकाशन रहिस। 


बाद मा छन्द डहर रुचि बाढ़िस तो शुरुआत मा हिन्दी मा अनेक छन्द के रचना करेंव। हिन्दी के छ्न्द संग्रह "शब्द गठरिया बाँध" के प्रकाशन अंजुमन प्रकाशन इलाहाबाद ले होइस। जब छन्द-विधान मा बने पकड़ बनगे तब सोचेंव कि अब छत्तीसगढ़ी मा घलो छन्दबद्ध रचना करना चाही। 2015 मा मोर छत्तीसगढ़ी के पहिली अउ अभी तक के आखरी किताब "छन्द के छ" के प्रकाशन सर्वप्रिय प्रकाशन, दिल्ली ले होइस। छत्तीसगढ़ के रचनाकार मन ला छन्द-लेखन मा सहायता करे बर ए किताब मा 50 प्रकार के छन्द रचना, विधान समेत संकलित करेंव। "छन्द के छ"  छत्तीसगढ़ी मा छन्द विधान के पहिली किताब रहिस जेकर माध्यम तको छत्तीसगढ़ी भाषा मा रहिस।


"छन्द के छ" किताब अपन प्रकाशन के एके साल के भीतरी माने 2016 मा एक आन्दोलन के रूप ले लिहिस। "छन्द के छ" अब ऑनलाइन गुरुकुल बनगे जिहाँ डेढ़ सौ ले आगर छत्तीसगढ़िया कवि मन आज अनेक प्रकार सीख डारे हें अउ सीखे-सिखाये के काम सरलग चलत हवय। सन् 2016 के पहिली भारतीय शास्त्रीय छन्द के जिहाँ दर्शन दुर्लभ रहिस उहाँ हर सोशल मीडिया मा छन्दबद्ध रचना के पूरा असन देखे बर मिलथे। छत्तीसगढ़ी भाषा मा एक दर्जन ले ज्यादा छन्दबद्ध रचना मन के किताब तको छप चुके हें अउ दर्जन भर पाण्डुलिपि मन प्रकाशन के रद्दा अगोरत हें। हिन्दी भाषा मा तको छन्दबद्ध लेखन के वातावरण तैयार हो चुके हे। 


"छन्द के छ" किताब छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य ला समृद्ध करे के भले आधार-किताब आय फेर अनेक छन्द साधक मन सीखे के बाद समर्पित भाव मा सिखावत हें तेपाय के जम्मो छत्तीसगढ़ मा छन्दबद्ध सृजन के लहर दिखत हे। सर्व आदरणीय चोवाराम "बादल", आशा देशमुख, दिलीपकुमार वर्मा, कन्हैया साहू "अमित", गजानन्द पात्रे "सत्यबोध", जितेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया", मनीराम साहू "मितान", अजय अमृतांशु, ज्ञानुदास मानिकपुरी, सुखदेव सिंह अहिलेश्वर, मोहनलाल वर्मा, बलराम चंद्रकार, शोभामोहन श्रीवास्तव, महेन्द्र बघेल, रामकुमार चंद्रवंशी, जगदीश हीरा साहू, अशोक धीवर "जलक्षत्री", मथुरा प्रसाद वर्मा, श्लेष चंद्रकार, विरेन्द्र कुमार साहू, बोधनराम निषादराज, द्वारिकाप्रसाद लहरे, अश्विनी कोसरे, पोखनलाल जायसवाल, मीता अग्रवाल, कमलेश वर्मा ….येमन अइसन छन्दकार आँय जेमन समर्पित भाव ले आज छन्द ज्ञान देवत छत्तीसगढ़ी साहित्य ला पोठ करे बर कृत-संकल्पित हें। इही मन छत्तीसगढ़ मा छन्द-आंदोलन के कर्णधार आँय। मँय अन्तस ले इनकर आभार मानथंव। 


*अरुण कुमार निगम*

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*//छत्तीसगढ़ी म मोर साहित्य लेखन के शुरूआत//*

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             दिनांक-१४.१०.२०२१

      *छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर वाट्सएप ग्रुप द्वारा "छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य" के कोठी ला भरे बर ग्रुप के निर्माता आदरणीय डाक्टर सुधीर कुमार शर्मा जी अउ एडमिन आदरणीय श्री अरूण निगम सर जी द्वारा लगातार प्रयास करत हवंय,तऊन ह खूब संहराए लाईक उदीम कहे जाही | छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर वाट्सएप ग्रुप के माध्यम से ही छत्तीसगढ़ के पद्य विधा के सैकड़ों कलमकार मन गद्य विधा के कहानी, उपन्यास,लेख,निबंध,नाटक,प्रहसन,डायरी,जीवनी,पत्र लेखन, संस्मरण बर लेखनी चलावत हवंय अउ खूब सुग्घर संहराए लाईक छत्तीसगढ़ी गद्य के भंडार भरत हवंय*

     *छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य ला पोट्ठ बनाए के पुण्य प्रयास बर आदरणीय डाक्टर सुधीर कुमार शर्मा जी अउ आदरणीय अरूण निगम सर जी ला आत्मीय भाव से धन्यवाद अउ साधुवाद ग्यापित करत हौं*

     *दिनांक ११.१०.२१ से आज दिनांक १४.१०.२१तक ये पटल म विषय निर्धारित करे गए हवय-"छत्तीसगढ़ी म मोर साहित्य लेखन के शुरूआत"*

     *एहा एक संस्मरण आय,जेकर माध्यम से लेखक मन ला छत्तीसगढ़ी साहित्य सिरजन बर अपन संस्मरण लिखना हवय | ए संबंध म संस्मरण लिखे बर हमर साहित्यिक यात्रा के विशाल धरातल के जम्मो घटना सुरता आवत

हवय, मन:पटल म ऐना सहीं अनुभूति होवत हवंय, जेला कलम बद्ध करे से एक किताब लिखा जाही | लेकिन वो जम्मो घटना ला "गागर में सागर भाव" भर के अपन संस्मरण के शुरूआत करत हौं*

     *ये बात ह लगभग १९६९ के आय,जब हमर  बड़े भाई स्व. देवीप्रसाद साहू जी ह "चोंगा बाजा" (लाऊड स्पीकर) बिसा के लानिस | वो समय मैं हा लगभग पांच बच्छर के रहेंव, पहली कक्षा भी नइ पढ़त रहेंव,तभे माईक लगा के संऊखे-संऊख म  गीत गावत रहेंव, तव सियान तिर सुने एक गीत गायेंव-"नदिया तिर मं गहूं सुखोयेन कोकड़ा बीन-बीन खाय,समलिया फोदवा रोटी खाय,समलिया फोदवा रोटी खाय"*

     *ये गीत ल मोर आवाज म सुन के सब खुश हो गईन  तब बार-बार गाए बर जोजियावत रहिन,फेर कई ठन गीत गावत रहेंव, लेकिन हमर गांव म एक मनखे के नाव रहिस-"समलिया", वो सोचिस-मोला चिढ़ावत हवय,चोंगा बाजा म मोर मजाक उड़ावत हवंय ! अइसे सोच के खूब तमतमाए हमर घर आईस अउ मोला गारी देहे लगिस,तब हमर बड़े भाई कहिस-तोला नइ चिढ़ावत हवन गा,हम ला ये गीत पसंद हवय,तेकरे सेती हमन गावत हवन अउ मोर भाई ह रोज गाही, तोला  जऊन भी करना हे ? कर ले,जेकर तिर शिकायत करना हे,कर ले,हम ला कोई परवाह नइ हवय*

       *तब वो समलिया ह सदा दिन बर कल्लेचुप हो गे अउ छत्तीसगढ़ी गीत गाए के मोर सऊंख-उत्साह बाढ़ते गईस*

     *वोही बखत रेडियो म एक गीत बाजत रहिस-"तोला जोगी जानेंव रे भाई,राजा ऐ लंकापति रावन जोगी जानेंव", ए गीत ला  हमर वो चोंगा बाजा म जब गायेंव,तब पारा-मुहल्ला ले सकलाए कई झन कका,भईया मन मोला ५ पैसा,१० पैसा ईनाम देहिन,लेकिन हमर फूफू दाई ह तीजा मनाए आए रहिस,तऊन खुश हो के मोला चार आना ईनाम देहिस,तब मोर उत्साह कई गुना बाढ़ गईस,फेर बाढ़ते गईस*

     *सन् १९७३-७४ म मैंहा तीसरी कक्षा म पढ़त रहेंव | शिक्षक दिवस के दिन हमर गुरूजी श्रद्धेय स्व. जीवनदास मानिकपुरी ह सब विद्यार्थी ला कुछ न कुछ कविता,गीत सुनाए बर कहिस, तब हमर एक संगी रामकुमार देवांगन ह   महान कवि-लेखक स्व. नारायण लाल परमार जी के लिखे गीत सुनाईस-"आ गे अषाढ़ बरसीच पानी,जागीस बीरवां धान के, धरती माता लुगरा पहिरे हरियर-हरियर धान के,धरती माता लुगरा पहिरे हरियर-हरियर धान के"*

     *ये गीत ला सुन के हम जम्मो अब्बड़ेच ख़ुश हो गएन,कई झन एक पैसा,दू पैसा,तीन पैसा,पांच पैसा ईनाम देहे लगिन,मैहा चार आना ईनाम देहे रहेंव,सब ईनाम ला सकेल के गुरूजी ह वोला देहिस,तव लगभग एक-डेढ़ रूपिया ईनाम वो संगी रामकुमार देवांगन ह पाईस | वो बखत बहुत बड़े ईनाम माने गईस*

     *तब से २६ जनवरी,१५ अगस्त,०५ सितम्बर,१४ नवम्बर या कोई भी कार्यक्रम स्कूल म जब होवय,तब मैं हा  छत्तीसगढ़ी कविता,गीत या खुद के लिखे भाषण प्रस्तुत करतेच रहेंव,कई बार ईनाम मिलते रहिस,तब छत्तीसगढ़ी म लिखे अउ कार्यक्रम प्रस्तुत करे के मोर रूचि बाढ़तेच गईस*

    *सन् १९८३-८४ म मैं हा बी. ए. प्रथम वर्ष के पढ़ाई बर बिलासपुर के पंडित द्वारिका प्रसाद बिप्र महाविद्यालय म दाखिल होयेंव | तब एन.सी.सी.,एन.एस.एस. लेहे रहेंव | हमर एन.एस.एस अउ प्रौढ़ शिक्षा के सुपरवाईज़र रहिस-छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध गायिका श्रीमती अलका चंद्राकर के पिताजी-श्री माधवनाथ चंद्राकर जी | हमर सहपाठी मित्र हवय-श्रीमती अलका चंद्राकर के जम्मो गीत के संगीतकार -प्रोफेसर डाक्टर रामनारायण ध्रुव जी | हमर एन.एस.एस. अधिकारी रहिन-डा. बांकेबिहारी शुक्ला जी | हमन एन.एस.एस. के माध्यम से नियमित रूप से कविता,गीत,भाषण प्रस्तुत करत रहेन | कई दिन हमर सुपरवाई श्री माधवनाथ चंद्राकर जी के घर म गायन-वादन करत रहेन,वो बखत अलका चंद्राकर ह तीन-चार बच्छर के रहिस,हमन गावत-बजावत रहेन,तब हमर तिर बैठ के घुंघरूं,झुनकी,मंजीरा ला  लुट के बजावत रहिसे, कभू तबला ला ठन्न के बजावत रहिसे, तब हमन कहते रहेन- होनहार वीरवान के होत चिकने पात,"अल्का ह एक दिन बहुत बड़े कलाकार होही", सिरतोन म आज अलका चंद्राकर हमर छत्तीसगढ़ी लोकगीत के महान गायिका के रूप म प्रसिद्ध हवय*

    *हमन प्रौढ़ शिक्षा पढ़ावत रहेन,तेन किताब म पंडित द्वारिका प्रसाद बिप्र जी के एक ठन प्रेरक गीत ला रोज गावत रहेन-"साक्षरता के जोत ला जलावत जाऔ रे,नांगर के संग कलम घलो ला चलावत जावौ रे" ये प्रेरक गीत से मैं बहुत जादा प्रभावित होयेंव अउ छत्तीसगढ़ी कविता,कहानी,गीत,नाटक,प्रहसन लगातार लिखतेच गयेंव*

    *सन् १९८०-८१ जब मैंआठवीं कक्षा में पढ़त रहेंव,तब से  ही आकाशवाणी रायपुर के नियमित श्रोता रहेंव,सुबह ६.०० बजे से भजन,मानस गायन,चिंतन से लेके जब स्कूल से घर आवत रहेंव तब ५.०० बजे से युववाणी कार्यक्रम सुनते-सुनते देर रात्रि तक आकाशवाणी के हर कार्यक्रम सुनत रहेंव,हर कार्यक्रम म चिट्ठी-पत्री भेजत रहेंव, हर सप्ताह कम से कम बीस-पच्चीस चिट्ठी भेजत रहेंव,युववाणी के सबरंग, दृष्टिकोण,आपकी बातें-आपके गीत, अभिव्यक्ति, इंद्रधनुष,सवालों के आईने में, आज मेरी बारी है,  चौपाल आदि सब कार्यक्रम में चिट्ठों भेजते रहेंव,मोर अधिकांश चिट्ठी शामिल होवत रहिन | आकाशवाणी रायपुर के नियमित श्रोता बनेंव,तब बहुत अकन छत्तीसगढ़ी कविता,गीत,कहानी लिखते गयेंव*

     *सन् १९९० म  आकाशवाणी रायपुर के युववाणी कार्यक्रम के अंतर्गत "सर्जना" में  मोर पहिली हिन्दी कहानी "इम्तिहान" प्रसारित होईस, तब मोर आत्मविश्वास बढ़ते गईस के _साहित्यिक यात्रा के इम्तिहान में अब मैं पास हो गयेंव, फेर निरंतर लेखन,अनेक समाचार पत्र पत्रिका में निरंतर प्रकाशन होय लगिस,तब हिन्दी साहित्य समिति पाटन में जुड़ के सचिव के दायित्व ला खूब सराहनीय अउ सफलता पूर्वक संचालित करत रहेंव*

     *सन् २००० तक आकाशवाणी रायपुर से मोर बहुत अकन कहानी प्रसारित हो चुके रहिन, तऊने ला प्रकाशित करवाए बर हिन्दी साहित्य समिति पाटन,वीणा साहित्य समिति रानीतराई,वीणापाणि साहित्य समिति दुर्ग, छत्तीसगढ़ साहित्य समिति रायपुर के अध्यक्ष अउ जम्मो पदाधिकारी, सदस्य मन के अनुरोध से मोर पहिली छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह "सुलछना" जेमा २१ छत्तीसगढ़ी कहानी संगृहित हवंय, सन् २००० में छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना वर्ष अउ "राष्ट्रीय  नारी सशक्तिकरण वर्ष" के उपलक्ष्य में प्रकाशित करवायेंव*

     *सन् २००४ में आदरणीय डाक्टर परदेशी राम वर्मा जी ह पाटन ब्लाक छत्तीसगढ लेखक संघ के  अध्यक्ष के जिम्मेदारी मोला सौंपीन, फेर हमर साहित्य समिति के हर साल पुस्तक प्रकाशन अउ संपादकीय के जिम्मेदारी मोला मिलीस | अब तक लगभग २० पुस्तक के प्रकाशन अउ संपादकीय कार्य के दायित्व ला सफलतापूर्वक निभाए हवंव*

      *सन् २०१६ में मोर लिखे छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह ",भोजली-जवांरा" ला छत्तीसगढ़ी साहित्यिक सांस्कृतिक संस्थान करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर से प्रकाशित करवाए हवंव*

    * *अभी तक लगभग २५ बच्छर ले साहित्य समिति के अध्यक्ष के दायित्व अउ  स्वयं के लाखों रूपिया ख़र्च करके  अनेकों कवि सम्मेलन के आयोजन  सराहनीय ढंग से संचालित करते हवंव*

     *छत्तीसगढ़ी साहित्य सेवा अउ सिरजन के एही मोर संक्षिप्त संस्मरण हवय भाई-बहिनी हो | कोनो बात ला कुछ जादा लिख पारे होहूं,तेकर बर सुधिजन ले क्षमा चाहत हौं*


   आपके अपनेच संगवारी

*गया प्रसाद साहू*

   "रतनपुरिहा"

*(कवि, लेखक, गीतकार अउ गायक)*

मुकाम व पोस्ट-करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)

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पोखनलाल जायसवाल: *छत्तीसगढ़ी म मोर साहित्य लेखन के शुरुआत*

       मोर जनम छोटे से गाँव पठारीडीह म होइस। जउन ह तरिया के चारों मुड़ा बसे रहिस। आज जरुरत अउ बेरा के  माँग के मुताबिक बाढ़त आबादी बर तबके बियारा मन म घर बने ले फइले गे हावय। कुछ मन भाँठा म कब्जा करके बसगे। पिताजी जउन ल हम तीनों भाई मन कका कहिथँन टेलरिंग बूता करत पढ़ाइन-लिखाइन। उँकर रेडियो के बड़ सउँकीन रेहे ले महूँ ल रेडियो सुने के सउँक होगे अउ आदत बनगे।

       नवीं कक्षा ले 15अगस्त/26जनवरी म भाषण अउ कविता खुदे लिखँव अउ बोलँव। इही बीच अगस्त 1993 ले युववाणी के पत्र मिला म कार्यक्रम मन के समीक्षा पत्र लिखे धर लेंव। उहीच म बीच बीच म कविता लिखना शुरु होइस। इही ह मोर लिखे के शुरुआत आय। तब मँय साहित्य का होथे, बने ढंग ले नइ जानत रेहेंव। 

        रेडियो च म मोर गाँव के नकुल जायसवाल के गाय गीत अउ लिखे नाटक सुने मिलिस तव मोरो मन रेडियो म कार्यक्रम दे के होवय। फेर चिट्ठी लिखके ही मन के साध ल पूरा करत रेहेंव। अभिव्यक्ति म मोर भेजे कविता पढ़े जाय अउ  17अक्टूबर 1998 के दिन युववाणी म मोर कविता पाठ घलव प्रसारित होइस। सरलग तीन चार साल ले कई पइत कविता पाठ के मउका मिलिस। ए वो बेरा रहिस जब मँय अपन लिखे कविता मन डायरी म लिखे लगेंव। एकर पहिली तो कागज म लिखे कतको कविता कुरता के थैली म रेहे रेहे धोय म धोवा जवय। ए समय मोर रचना मन हिंदी म राहय। देशबंधु म बहस के विषय म भाग लेवत कतको विषय म बहस म पत्र लिखँव अउ मोर विचार छपय घलव।

      17 मार्च 2000 के दिन पलारी म समन्वय साहित्य परिवार के गठन करे गिस। तब देवधर महंत जी के मार्गदर्शन म सरलग मासिक गोष्ठी होवय। इही समय दू चार ठन छत्तीसगढ़ी रचना शुरु करेंव। देशबंधु के मड़ई म कतको छोटे छोटे रचना मन प्रकाशित होइस। उही समय तीजा पोरा ऊपर भेजे गीत सालभर बाद सुधा दीदी मन छापे रिहिस। घर परिवार बाढ़े ले जिम्मेदारी बाढ़त गिस अउ लेखन ह थोरिक कमतियावत गिस। गोष्ठी घलव कभू कभार आयोजित होय लगिस। सरकारी नौकरी के लगे ले समाचार पेपर म सबो विषय ऊपर लिख पाना संभव नइ होय ले यहू कोति लिखई बंद होगे। 

        आड़े तीसरे लिखना होवय अउ चिठ्ठी के रूप म रेडियो म भेजई सरलग रहिस। इही बीच छोटे भाई पूरन घलव लिखे लगिस ओकरो कविता पाठ युववाणी म प्रसारित होय लगिस। रिकार्डिंग बर गे रहिस तब गोठबात म मोर नाँव के चर्चा समीर शुक्ल जी तिर करिन। तब 2010 म मोर भुइँया म मोर छत्तीसगढ़ी कविता फेर प्रसारित होइस। छत्तीसगढ़ी म जादा रचना नइ लिखे के सेती रचना सरलग नइ भेजे ले तीन चार मउका मिले के बाद मोर प्रसारण के कड़ी रुक गे। अइसे मोला निबंध सहीं रचना लिखई जादा बने लागथे। 

       मई 2017 म मोला चोवाराम वर्मा बादल जी के फोन आइस, जेकर ले कविसम्मेलन म अवई जवई ले पहचान रहिन। अउ छंद परिवार ले जुरे के अवसर मिलिस। तब तक नई कविता लिखत रेहेंव। गुरुदेव अरुण कुमार निगम जी के अशीष अउ किरपा ले  छंद के थोर बहुत ज्ञान मिले हे। अउ मोर लेखन ल एक दिशा घलो मिलिस। एकर बर मँय  बादल भैया संग प्रणम्य गुरुदेव निगम जी, कक्षा के गुरुजी जीतेंद्र जी के सदा दिन ऋणी रइहूँ।

       छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर के ए समूह म जुड़ना तो मोर बर एक ठन वरदान आय, जिहाँ मँय अपन गद्य लेखन के उड़ान भरत हँव। ए उड़ान ल सहीं दिशा दे म आप सबके योगदान रइही। आप सबके सहयोग ले कुछ कर पाहूँ, मन म इही आशा ल पाल के रखे हँव।

        यहू समूह म प्रणम्य गुरुदेव अरुण कुमार निगम जी के कृपाप्रसाद मिले हे। बीच बीच म बादल भैया ले मार्गदर्शन लेवत रहिथँव। सुधा दीदी ह कतको पोस्ट ल इहें ले मड़ई म छाप के मोला नवा विश्वास देथे कि महूँ ह कुछ बढ़िया कर सकथँव। आदरणीय पीसीलाल यादव जी, रामेश्वर शर्मा जी मन घलव मोला फोन म गोठिया के मोर जरूरी मार्गदर्शन करथें। ए पटल के जम्मो बुधियार मन के आशीष सदा मिलत रहिथे। मँय अंतस ले एकर बर आप सबके आभार मानथँव। आप सबके अशीष मोला मिलत रइही, मँय इही  कामना घलव करत हँव।


*पोखन लाल जायसवाल*

पठारीडीह पलारी


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: *छत्तीसगढ़ी मा मोर साहित्य लेखन के शुरुआत : एडमिन के दू आखर*


देश के सुप्रसिद्ध कवि श्री गोपालदास "नीरज" जी के दू पंक्ति के सुरता आवत हे - 


*ज़िन्दगी भर तो हुई गुफ़्तगू गैरों से मगर*

*आज तक हमसे हमारी न मुलाकात हुई*


बहुत सही अउ गम्भीर बात कहिन हें ये दू पंक्ति मा। हमन दुनिया भर के मनखे संग गोठ-बात करत रहिथन। अपनेआप संग कभू नइ गोठियावन। हमन कब का के शुरुआत करेन, कोन मन हमन ला प्रेरणा देइन, काकर आशीर्वाद ले हमन दू आखर लिखे के लाइक होए हन, हम लेखन के प्रति कतिक ईमानदारी ले मेहनत करे हन, कतका दिखावाबाजी करे हन आदि अइसन सवाल आँय जेकर उत्तर दुनिया के कोनो विद्वान नइ दे सकें। एकर उत्तर तभे मिलही जब हम अपन आप संग गोठियाबो। 


अपन आप संग गोठियाये के अवसर दिहिस एसो के विषय *छत्तीसगढ़ी मा मोर साहित्य लेखन के शुरुआत*। ये अवसर के लाभ उठाइन 182 सदस्य मन के समूह मा 10 रचनाकार मन अउ संजोग देखव कि सरला शर्मा जी अउ सुधा वर्मा जी ला छोड़के बाकी 8 झन "छन्द के छ" परिवार के सदस्य आँय। 


ककरो विचार बहुते कम शब्द मा आइस, ककरो विचार जरूरत ले ज्यादा विस्तार ले के आइस अउ ककरो विचार एकदम संतुलित रूप मा आइस। फेर आत्म-अवलोकन होइस। अनेक संस्मरण "फ़्लैश-बैक" असन तरोताजा होके सामने आइन। अपन अपन प्रेरणा स्त्रोत, अपन अपन मार्गदर्शक के सुरता करे गिस। 


अइसने आत्म-अवलोकन बीच-बीच मा होते रहना चाही। स्व-मूल्यांकन करे बर बहुत उपयोगी होथे। 


सब के संस्मरण के सारांश बनाये के कोशिश करे हँव तो निष्कर्ष इही निकलथे कि


1. अधिकांश मन के लेखन हिन्दी भाषा ले शुरू होइस।


2. प्रायः हर एक के कोनो न कोनो प्रेरणा-स्त्रोत हे।


3. शुरुआत कइसनो होइस फेर एक समय के बाद लेखन मा गंभीरता आइस।


4. पद्य विधा मा तराशे के काम "छ्न्द के छ" करत हे।


5. गद्य विधा मा तराशे के काम "छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर" करत हे। 


6. छत्तीसगढ़ी भाषा के दशा अउ दिशा ला बदले के ऐतिहासिक काम मा "छ्न्द के छ" अउ "छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर" दुनों लगातार सफलता प्राप्त करत हें। 


*"छन्द के छ" के जम्मो गुरुदेव मन अउ "छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर" के संस्थापक डॉ. सुधीर शर्मा जी बधाई के पात्र हवँय*


*आभार उन बुधियार अउ विद्वान मन के, जउन मन रचनाकार के रचना पढ़के अपन अनमोल आशीर्वाद, दिशा-निर्देश अउ मार्गदर्शन देके प्रोत्साहित करिन हें*

*छत्तीसगढ़ी मा मोर साहित्य लेखन के शुरुआत* ये विषय मा अपन विचार प्रकट करइया गद्यकार मन के सार-संक्षेप *मोर अनुसार* -


*श्री जितेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"* - नवरात्रि मा जस गीत मा कोरस गायन। 8 वीं 9 वीं कक्षा मा पहुँचत ले जसगीत लिखके लेखन के शुरुआत करिन तेखर बाद, होली-गीत लिखिन। हिन्दी कविता लिखे बर कालेज पत्रिका घलो प्रेरणा स्त्रोत बनिस। 2007-08 ले छत्तीसगढ़ी-कविता लेखन चालू। जनवरी 2017 मा छन्द के छ मा जुड़े के बाद लेखन मा निखार आइस। अनेक नवा रचनाकार मन ला छन्द सिखावत हें।


*श्री राजकुमार चौधरी* - रेडियो मा छत्तीसगढ़ी गीत सुनके पैरोडी के प्रयास, काव्य लेखन के कारण बनिस। 1983 के सिकोला कविसम्मेलन मालक्ष्मण मस्तुरिया जी से प्रभावित होइन।स्कूल मा "स्वरचित कविता-पाठ प्रतियोगिता मा पहिली रचना पुरस्कृत" होना लिखे बर प्रेरणा दिस। लतीफ घोंघी के व्यंग्य अउ लक्ष्मण मस्तुरिया के "माटी कहे कुम्हार से" प्रभावित करिस। तेखर बाद गद्य के व्यंग्य विधा मा लेखन चालू। "छन्द के छ" के कारण पद्य विधा मा निखार आइस।


*श्रीमती आशा देशमुख* - लगभग 6 साल पहिली रमेशकुमार सिंह चौहान के "पागा कलगी" मा साहित्यिक माहौल मिलिस अउ लेखन चालू होइस। हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी मा समान अधिकार ले लिखथें। "छन्द में छ" मा जुड़े के बाद लेखन मा निखार आइस। अनेक नवा रचनाकार मन ला छन्द सिखावत हें।


*श्री चोवाराम "बादल"* - कक्षा चौथी के टोपी वाला गुरुजी ले ज्ञान पा के, जोड़-तोड़ के कोशिश करना कविता लेखन के आधार बनिस। रामलीला मा छत्तीसगढ़ी गीत अउ गद्य लेखन के शुरुआत होइस। अलौकिक आनंद के अनुभूति "छन्द के छ" मा जुड़े के बाद मिलिस। "छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर" ले गद्य सीखे अउ लिखे बर मिलत हे। अनेक नवा रचनाकार मन ला छन्द सिखावत हें।


*श्रीमती सरला शर्मा* - लेखन के शुरुआत 2003 मा करिन। 15 अगस्त के "लहरावत तिरंगा", छत्तीसगढ़ी के पहिली लेख आय। देशबन्धु मड़ई अंक मा अनेक रचना प्रकाशित होइस। "माटी के मितान" उपन्यास रविशंकर विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम मा शामिल होइस हे। अनेक सारगर्भित किताब प्रकाशित हो चुके हें। "छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर"  के रचनाकार मन ला गद्य-विधा के बारीकी समझावत हें। 


*श्री ओमप्रकाश साहू "अंकुर"* - शुरुआत हिन्दी रचना ले करिन। सबेरा-संकेत मा प्रकाशन के शुरुआत होइस। पहिली छत्तीसगढ़ी कविता 1996 मा "किसान" हवय। अनेक साहित्यिक आयोजन के अनुभव रखथे।  

"छन्द के छ" मा छत्तीसगढ़ी छन्द लेखन के शुरुआत करिन। छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर मा छत्तीसगढ़ी गद्य लेखन परवान चढ़त हे। 


*श्रीमती सुधा वर्मा* - परिवार मा हिन्दी वातावरण रहिस। जून 1979 मा बिहाव होइस। तीन चार महीना के बाद जेठ के निर्देशानुसार छत्तीसगढ़ी बोले के कोशिश करिन अउ 1979-80 मा छत्तीसगढ़ी लेखन के शुरुआत पॉकेट उपन्यास के रूप मा करिन। अनेक किताब प्रकाशित हो चुके हे अउ देशबन्धु के मड़ई अंक के संपादक के रूप मा कई बछर ले सम्पादन करत हें। 


*श्री मोहनकुमार निषाद* - स्कूल के समय मा हिन्दी मा काल्पनिक कहानी लिखके लेखन के शुरुआत करिन। स्कूल मा अमृतवाणी के वाचन करत-करत स्वरचित अमृत-वाणी के सृजन करिन। "किशोर किशोरियों का भविष्य निर्माण", डॉ. पवित्रकुमार शर्मा के किताब प्रेरणा के स्त्रोत बनिस। कवि सुनील शर्मा "नील" के प्रेरणा से छत्तीसगढ़ी लेखन के शुरुआत करिन। "छन्द के छ" मा जुड़े के बाद लेखन प्रतिभा परिमार्जित होइस। "छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर" से गद्य लेखन के प्रेरणा मिलिस। 


*श्री पोखनलाल जायसवाल* - रेडियो, स्कूली कार्यक्रम, युववाणी, हिन्दी कविता लेखन के शुरुआत करिन। देवघरदास महन्त जी के सानिध्य मा छत्तीसगढ़ी लेखन के शुरुआत होइस। "छन्द के छ" मा जुड़े के बाद लेखन ला दिशा मिलिस। "छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर" वरदान साबित होइस।  


*एडमिन*

(*अरुण कुमार निगम*)


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: *छतीसगढ़ी मा मोर साहित्य लेखन के शुरूवात*


मोर हाथ मा कलम बाद मा आइस पहिली किताब आगे। चंपक के हाथी भालू शेर खरगोश जंगल के कहानी बहुत निक लागे। दूसर बाल पत्रिका पराग,चंदा मामा,नंदन के कहानी कोकडी़ ल पढ़के कहानी म रस आय लगिस। बाल पत्रिका के संगे संग बड़े मन के पत्रिका आय। जइसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, सारिका, कादम्बिनी दिनमान आदि घलो आय। पिता जी ल पढे़ के बहुत शौक। वो मन पुस्तक पत्रिका मन मा बहुत खर्चा करें। उही पढे़ के आदत महूँ ल लग गे। खूब कहानी पढे़व। मिडिल स्कूल म ही बंग साहित्यकार विमल मित्र के सुरसतिया जेन धारावाहिक के रूप म साप्ताहिक हिन्दुस्तान म छपत रिहिस पढ़ डारेव। कविता म उही कविता ल पढ़व जेन मोर समझ म आय।

लेखन के शुरूवात  मोर अइसे होइस ।पिता जी मोला हर साल डायरी देवंय। कहंय जो अच्छा लगथे लिखे कर। तब का लिखव  लिखे ल तो आय नही। तब उही पत्रिका मन म छपे अनमोल वचन ल लिख डारव।कोनो साहित्यकार के कविता अच्छा लगे तेन ल लिखव। कादम्बिनी के संपादक राजेन्द्र अवस्थी जी के काल चिंतन ल लिखव। जेन मोला बढ़िया लागे। 

मोर मौलिक लेखन के शुरूवात गद्यनुमा कविता या चार चार पंक्ति के तुकबंदी ले होइस।,अपन संगी सहेली अउ नता रिश्तेदार मन ला चिट्ठी बहुत लिखँव। यहू मोर लेखन के शुरूवात हो सकथे। सब लिखइ पढ़ई हिन्दी म होवय। तब हिन्दी के जोर अउ शोर रिहिस। जब कोरबा आयेंव तब कुछ साहित्य संस्था मा जुडे़ंंव। अउ हिन्दी छतीसगढ़ी म गीत कविता लिखे के शुरूवात होइस।घर नौकरी अउ 

लेखन के तिराहा म खडे़ मँय हर, घर अउ नौकरी ल ज्यादा महत्व देंव। लेखन म पिछवा गेंव। लेखन के शुरूवात छन्द के छ ल मानथौ आशा देशमुख जी अउ गुरूदेव निगम जी के कृपा ले लेखनी फेर चले लागिस लोकाक्षर से जुड़ना भी सौभाग्य आय।

शशि साहू

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*छत्तीसगढ़ी मा मोर लेखन के शुरुआत*


मोर जनम 1971 मा अनपढ़ दाई अउ साक्षर ददा जौन किसान घर जनम धरे रहिन फेर मजदूरी करे बर दल्लीराजहरा के लोहा खदान मा गय रहिन उँघरे अँगना मा होईस। आ कब दू बच्छर के होय रहेंव कि मोर पाछू भाई आगे ता मोला अपन डोकरी दाई, डोकरा बबा के तीर पुरखौती गाँव भुसरेंगा (अरमरीकला) भेज देइन। उँहा कका, काकी, फूफू अउ बड़े बबा के हम उमर नोनी बहिनी संग बाढ़ेंव। ठेठ छत्तीसगढ़िया परिवार मा रहना बसना होय ले छत्तीसगढ़ी भाखा के देसहा, गँवइहा शब्द मनला मन के थैली मा धर लेंव। तरिया डबरी, नरवा ढोड़गा, खेती खार, कोठार बियारा, नाचा पेखन, राम सत्ता, सब जगा जाय के अउ देखे के अउ भाखा सीखे के मउका मिलिस। 1977-78 में इस्कूल मा भर्ती करेबर लहुटा के दल्लीराजहरा लानलीन। मजदूर बस्ती के बीएसपी के इस्कूल मा भर्ती होके पढ़ई शुरु होगे। हमर पारा मा जुन्ना दुरुग, बेलासपुर, नांदगांव, रइपुर, बस्तर जिला के संगे संग उड़ीसा के मनखे मनके रहना बसना एक परिवार असन होवय। पारा मा गाँव के सबो परंपरा हरेली, माता पहुँचानी, गउरा गउरी, गोर्धन, छेरछेरा, फागुन सबो होवय। मोर गाँव जवई हा देवारी, शीतकालीन अउ रग्गी(गर्मी) छुट्टी मा दू चार साल मन माढ़त ले रहिस पाछू सबो दिन इहेंच रहना होईस। छटवी ले आठवीं तक के पढ़ई सरकारी इस्कूल होईस, पाछू 9वी से 12वी तक फेर बीएसपी इस्कूल मा आगेंव। इहाँ ओड़ीसा, केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, के संगे संग सिंधी, गुजराती घर के लइका मन   घलाव पढ़ेबर आवय। ओमन हिंदी बोलय। मैं गणित लेके पढ़ेव ता ओ कक्षा मा छत्तीसगढ़िया कम राहन। मोला सर्राटा हिन्दी घलाव नइ आवय। गुरुजी मन तो लइका मन संग  छत्तीसगढ़ी काय होथे वहू ला नइ गोठियाय। सब केरल, यूपी, एमपी के ग्वालियर, रीवा डहर के रहय।गुरुजीमन घलो छत्तीसगढ़ी गोठियाथे कहिके बारवी मा जानेंव जब एक बेरा शर्मा गुरुजी के घर गयेंव। वो हा गुरुवईन दाई संग कुछू गोठियाइस तब। कालेज मा बीएससी गणित मा तो हम तीन झन छत्तीसगढ़िया तहान सबो मन आने प्रांत वाला। छत्तीसगढ़ी गोठियाय मा हमन ला लाज लगय अउ सर्राटा हिंदी आवय नइ ता हमन जादा चुपेच रहन। दल्ली राजहरा ला तो नान्हे भारत कहे जाथे।उहाँ अइसे कोनों प्रांत नइहे जिहाँ के मनखे नइ रहत रहिस भलुक नेपाल के गोरखामन घलो रहत रहिन।

       गाँव, घर, पारा, परोस ले अउ जादा कहंव ता बेलसपुरिहा परोसी मन संग जौन शब्द ला सिखेंव ओतका ला अभू बउरत हँव। 1994 मा मँय एक प्रावेट इस्कूल मा मास्टर बनेंव। उहाँ के बड़का गुरुजी बालाघाट के रहय तहान सबो हमन छत्तीसगढ़िया फेर सब झन ला ताकिद रहय कि इस्कूल मा कोनों गुरुजी हा लइका ते लइका ओखर दाई ददा अउ गुरुजी मन संग छत्तीसगढ़ी मा नई गोठियाना हे भलुक अंग्रेजी मा गोठिया सकत हव। काबर कि छत्तीसगढ़िया मन घलाव अपन लइका ला हिंदी अउ अँगरेजी सीखे, पढ़े अउ गोठियाय बर पइसा (फीस) देवत हवय।

        इही इस्कूल के वार्षिक उत्सव मा 1995 मा लइकामन के कवि सम्मेलन के कार्यक्रम रखेंव जेमा पाँच लइका मन मोर लिखे कविता ला पढ़िन जेमा एक ठन नानकुन हास्य कविता छत्तीसगढ़ी मा रहिस। वो बखत मँय ये नइ गुने रहेंव कि कभू छत्तीसगढ़ी मा लिखहूँ। इस्कूल के सब कार्यक्रम मा मंच संचालन मोला करना रहय, फेर माइक धरे पाछू सब गोठ बात लिखई पढ़ई  हिन्दीच मा होवय।  बिहाव होईस ता ससुरार ठेठ छत्तीसगढ़िया परिवार। इही बीच 1999-2004 तक नगरपालिका परिषद के पार्षद अउ सभापति बने के मउका मिलिस जिहाँ छत्तीसगढ़िया के संगे संग दूसर भाखा गोठियइया अधिकारी कर्मचारी, पार्षद, प्रसासनिक अधिकारी मन से बइठना उठना रहय। हमर सीएमओ चंद्राकर साहब ठेठ छत्तीसगढ़ी मा गोठियाय।  उहिंचे ले अँतस मा एक भाव उठिस कि मँय अब छत्तीसगढ़ी मा दूसर अधिकारी मन संग घलो गोठियाहू।अउ तेलगू,मरठी, बंगाली, यूपी वालेमन संग छत्तीसगढ़ीच मा गोठियावँव। लिखई अभू शुरु नई होय रहिस।

       ‌‌2010 मा मँय गरियाबंद जिला के छुरा ब्लॉक के आदिवासी गाँव पेण्डरा मा शिक्षाकर्मी बनेँव। रहन सहन, रीत रिवाज, बोली भाखा सब मा थोरिक अलग फेर ठेठ छत्तीसगढ़ी गोठियाय के मउका इहें मिलिस। नवा नवा शब्द, रीत रिवाज ला जाने अउ देखेबर मिलिस। विकासखण्ड स्तरीय खेल, सांस्कृतिक कार्यक्रम के मंच संचालन करे के मउका मिलिस जेमा तुकबंदी कविता मन एती के मनखे मन ला गुरतुर लगय। इही बीच भाई ललित साहू जख्मी संग भेंट होइस। जौन फागुन मा कवि सम्मेलन मा संचालन करेबर जोजियाइस अउ मूड़ मा बोझा मढ़ाईस संगे संग यहू कहिस कि छत्तीसगढ़ी मा लिखव आप अबड़ छत्तीसगढ़ी शब्द जानथव। इँहे ले मोर छत्तीसगढ़ी मा लिखई शुरु होईस। मँय कविता तो कमती लिखेंहव गद्य जादा लिखथँव। मोला लिखेबर अउ प्रेरणा मिलिस राजिम टाइम्स, देशबंधु मड़ई अंक, पत्रिका पहट अंक,दैनिक भास्कर इतवारी संगवारी अंक, गुरतुर गोठ के मा छपे लेख कविता मन ले। मँय संपादक तुकाराम कंसारी जी, दीदी सुधा वर्मा जी, गुलाल वर्मा जी, संजीव तिवारी जी मनके आभारी हँव जौन मोला लिखेबर अतका दूरिहा अमराइन, उँखर धन्यवाद करत हँव। पाछू गुरुदेव अरुण निगम जी हा छंद के छ के शुरुआत करिन तब सत्र -7 साधक बनेंव पाछू कक्षा के गुुरुदेव अउ साधक  मनके असीस ले मोर छत्तीसगढ़ी के झांपी मा अउ अबड़ अकन शब्द सकेलेंव अउ थोकिन छंद लिखेबर सिखेंव। अउ अब टूटे फूटे लिखत चलत हँव। गलती हो जाही कहिके जादा नइ लिखँव। अभू घलाव डरडहा लिखेहँव।


हीरालाल गुरुजी "समय"

छुरा, जिला गरियाबंद

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 केंवरा यदु राजिम: संस्मरण 


मोर जनम पोखरा गाँव में होइस मैं दाई ददा के एके झन हरंव।


मइके में बचपन ले भक्ती भाव के माहोल रिहिस महतारी रोज सुते के बेरा चौपाई श्लोक सुनावय।

सावन में घर मा रमायण होवय बड़े बाबूजी हारमोनियम बजाय बाबूजी तबला ।

फूफा जी टीकाकार मैं ध्यान देके सुनंव।

चौथी पढ़त रहेंव तभे बड़े बाबूजी करा ले पूछ के (नमामि शमिशान  निर्वाण रूपम् )श्लोक ला गावंव हारमोनियम में ।

तब से याद हे पूजा में अभी भी सामिल हे।

रेडियो सुनवं तब ध्यान से याद करंव छत्तीसगढ़ी के गीत ला।

उपन्यास भी पढ़वँ ।


शादी होगे आरंग ससुरार उहों भक्ति के माहोल।

रामायण में जावंव,घरे तीर  राधाकृष्ण मंदिर हे।


फेर बाद में  पोखरा बसेरा होगे एक झिन दीदी आइस ग्राम सेविका गाँव में पता करिस महिला मंडल में  अध्यक्षा बनाना हे कोन हे गाँव वाला मन मोर तिर लानिन दीदी ला। मँय महिला मंडल अध्यक्षा बन गेंव ।

हर शनिवार रमायण पढ़न मैं गीत गावंव  तर्ज गावंव व्याख्या भी ।

एक  दिन  दीदी कथे मोर बेटा कहानी लिखथे कविता  लिखथे।

मँय सोचेंव मँहू  लिख के देख़वँ पहिली मँय सुवा गीत लिखेवँ राधा कृष्ण उपर दीदी बहुत पसंद करिस।

महिला मंडल में नाटक करवायेंव सुआ गीत में  सुआ नाच घलो, अब्बड़ ईनाम मिलिस हमन कहेन पुरुष मन ला नइ देखावन।

सब कहे बर आगे दीदी हमूमन देखबो सबो कोई देखिन पसंद करिन। बाद में  पूरा महिला मंडल दूसर गाँव में  नाटक करे बर जावन।दीदी के आय ले मोर जिनगी बदल गे आज दुनिया में  नइये मोर सुरता में बसे हे।

1980 ले शुरू होय हे ते लेखन कार्य आजो  चलत हे

बाद में राजिम में  रेहे ल चल देंव लइका मन के पढ़ाई बर उहों घर हे।

कभी कभी कवि सम्मेलन में जाना होवय कृष्णारंजन के आश्रम में  सकलावन जान पहचान बाढ़िस ।

फेर त्रिवेणी  साहित्य संगम के गठन होइस सबो झिन जुड गेन ।

कांशीपुरी कुंदन जी  से मिलना होइस महेन्द्र देवांगन भाई जी  मिलिस।

उही समय  राजिवलोचन मंदिर जावँव रोज ।

एक झन लइका कहिस माता जी राजिवलोचन के भजन कोई नइ लिखे हे।  आप लिखो ना बढिया भजन लिखथो  गायत्री  माता के। मँय भजन  लिख के संत कवि पवन दीवान जी ला देखाय बर गेंव । पुस्तक के  नाम रखे रहेंव (श्री राजिवलोचन भजनांजली)

दीवान  जी पुस्तक के बारे में चार शब्द लिखिन कहिन पढ़ के देखव बहुत  पसंद करहू ,अऊ अपनो एक भजन देइन हे।

दीवान जी देख के कहिन बढ़िया लिखे हस एको ठी सुना दे ।

तब गाके सुना देंव।

विमोचन के समय आगे दीवान ल नेवता दे बर कार्ड धर के गेंव 1997 के बात हरे दीवान जी सांसद रिहिन हे।


मँय कहेंव आपके हाथ से विमोचन होही वोमन कथे मँय तो दिल्ली जावत हँव।

काकरो  से करवा ले फिर हमर गायत्री परिवार के सियान रिषिदास वैष्णव जी के हाथ से गायत्री मंदिर में विमोचन होइस सबो कवि भाई बहिनी सबो गायत्री परिवार के संग।

फेर बाद में डाक्टर निरूपमा शर्मा 

दीदी के फोन अइस किहिन तोर एक ठी रचना भेज डाक द्वारा छत्तीसगढ़ के कवयित्री मन के  पुस्तक  छपत हे वो बखत हमन 123 कवयित्री रहे हन अब तो बहुत  बहिनी मन लिखत हें ।

दीदी कहिन बने लिखे हस हिन्दी में ।

छत्तीसगढ़ी में  लिखे हस तेला

कोनो दिन तँय अपन कविता टाइप करवा के मोर से मिल ।

फेर राजभाषा आयोग के द्वारा 

(सुनले जिया के मोर बात )छपिस

दीदी के देखरेख में2015 में  दीदी भूमिका भी लिखिन हे मोर मार्गदर्शक दीदी हा बनिस।

2016 में जस गीत पहला भाग 

जस गीत दूसरा भाग राजभाषा आयोग के सहयोग ले।

होली गीत छपवायेंव।

शक्ति चालीसा हिन्दी में ।

आपकी ही परछाई भोपाल में 2018 में अंतरा शब्द शक्ति द्वारा

छपिस। अभी एक ठी छत्तीसगढ़ी में राजभाषा के सहयोग ले छपही 

चार ठी हिन्दी में छपे बर हावय ।

छंद परिवार में जुड़े के बाद जानेन छंद लिखे बर दोहा लिखे बर।

गुरूदेव के आशीर्वाद ले ।

केंवरा यदु मीरा


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*छत्तीसगढ़ी मा मोर साहित्य लेखन के शुरुआत*

चित्रा श्रीवास

मोला लागथे *पढा़ई हा लिखाई के नींव आय* ।पढा़ई के चिभिक मोला बचपन मा ही लाग गे रिहिस। प्रायमरी स्कूल मा रहे हवँ,जब स्कूल ले आँव तब देखवं मोर अम्मा कभू सुखसागर, राधेश्याम, कल्याण ता कभू, अखण्ड ज्योति पढ़त रहय ।महूँ ओखर तीर म बइठ के पढ़े लगवँ।बाद मा ओखर संग मा साहित्यिक उपन्यास आशापूर्णा देवी के प्रथम प्रतिश्रुति, शरतचंद के गणदेवता,प्रेमचंद अउ रविन्द्र नाथ टैगोर के कहानी  पढेंव ।पुस्तक पढ़ के सोचवँ अतिक सुग्घर कोनो कइसे लिख लेथे। मोर अम्मा हा बुता करत करत भजन घलौ गुनगुनावय अउ कापी मा लिखय घलौ।एक दिन ओखर कापी ला पढेंव एक ले बढ़के एक भजन ।वो दिन ले मोर अम्मा नवा भजन लिखय ता मोला खच्चित पढा़य।अम्मा के भजन पढ़ पढ़ सोचवँ महूँ लिख सकथवँ का अउ शब्द ला जोड़ तोड़ के लिखना शुरू करेंव ये बीच मै हाईस्कूल मा पहुँच गय रहेंव।

                  ग्यारहवीं मा रहेंव जब हिन्दी के छैमाही परीक्षा मा निबन्ध लिखेंव*मोर हिंदी के गुरुजी अबड़े प्रशंसा करिन दूसर कक्षा मा घलौ जाके बताइन अउ लइकन ला पढ़ाइन ।गुरुजी के संगे संग सब लइकन प्रशंसा करिन ता अबड़े खुशी होइस निबंध के विषय रहय अगर मै  प्रधानमंत्री होता अउ निबंध मैहा अपन मन ले सोच सोच के लिखे रहवँ।ये बीच मोर तुकबंदी शुरू हो गिस  अउ कविता लिख लिख के कापी मा रखत जावँ जब काँलेज मा रहेंव ता  दू तीन ठन कविता *दैनिक भास्कर *अउ *धधकतीज्वाला मा छपिस।बिहाव के बाद लिखना बंद कर देहेंव।

         मोर जिनगी मा नवा मोड़ आइस  जब   सहायक प्राध्यापक पद मा मोर नियुक्ति पीजी कॉलेज कोरबा मा होइस फेर एक बार कलम ला थामेंव अउ सब ला देख के अपन रचना फेसबुक मा डालेंव प्रशंसा तो मिलिस फेर जानत रहेंव मोरेच चिन्ह पहिचान के मन  प्रशंसा करत हें।एक दिन  जिंखर घर मा मै किराया मा रहत रहेंव तेन आंटी कहिथे तुम अच्छा लिखती हो मै फेसबुक मे पढ़ी हूँ।ये सुन के मोला अबड़े खुशी होइस काबर कि अबकी प्रशंशा करइया खुद एक बड़े साहित्यकार डॉ. चंद्रावती नागेश्वर रहिन।अब तक मै हिन्दी मा लिखत रहेंव ।छत्तीसगढ़ राज्य बने के बाद लगभग सबो समाचार पत्र मा सप्ताह मा एक पेज छत्तीसगढ़ी मा आय लगिस वोला पढ़ पढ़ के महूँ ला छत्तीसगढ़ी मा लिखे के मन करिस ता एक दू ठन कविता लिख के नागेश्वर आंटी ला दिखायेंव ता आंटी कहिथे तू छत्तीसगढ़ी में भी अच्छा लिखती है छंद लिखा कर।मै कहेंव  आंटी मुझे छंद नही आता त आंटी कहिथे छंद के छ में छंद सिखाते है पर वे लोग छत्तीसगढ़ी में सिखाते है।मै कहेंव मुझसे हिन्दी ज्यादा अच्छे से बनता है तो आंटी बोलथें छत्तीसगढ़ी भी लिख लेगी ।मै बोलेंव आंटी ये छंद का छ क्या है तब आंटी कहिथें *कोदूराम दलित जी* के बेटे छंद सीखाते है।*कोदूराम दलित*जी के बारे मा मैं पी.एस.सी. तैयारी के समय पढ़ें रहेंव।मै बोलेंव ठीक है आंटी मै छंद सीखुँन्गी।ये बीच आंटी आदरणीय गुरुदेव अरुण निगम जी के नंबर मोर सामने लगाइन लेकिन फोन लग नइ पाइस तब आंटी नंबर मोला देके कहिन तू  वाट्सएप कर देना मै गुरुदेव ला वाट्सएप कर देहेंव पर मन मा डर घलौ बने रहिस।

               .. इही बीच जनवरी 2018 में मै सत्र 8 के साधिका बन गयेंव।

इहाँ गुरुदेव आदरणीय अरुण निगम जी, आदरणीया आशा देशमुख दीदी जी अउ आदरणीय मोहनलाल वर्मा भैयाजी के कुशल, स्नेहिल मार्गदर्शन मा छंद सीखे बर मिलिस येखर संगे संग वरिष्ठ साधक मन के घलौ मारगदर्शन मिलिस अब जिनगी ला नवा दिशा मिलिस।छत्तीसगढी़ महतारी के नवा नवा सेविकाआवं। मोर बहुत बड़े कोनो उपलब्धि नइहे अभी मै सीखँतेच हवँ ये बीच गुरु कृपा ले लोकाक्षर मा जुड़ के गद्य मा घलौ कलम चलाय के मौका मिलिस।जिहाँआदरणीया सरला ,सुधा दीदी जी अउ आदरणीय विनोद वर्मा जी आ.सुधीर शर्मा जी के मार्गदर्शन  मिलिस ।ये बीच हिंदी मा मोर  तीन ठन साझा दोहा संकलन घलौ आइस जेहा मोर तीनों गुरुदेव के आशीर्वाद आय। 



चित्रा  श्रीवास

बिलासपुर छत्तीसगढ़

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छत्तीसगढ़ी मा मोर साहित्य लेखन के शुरुआत

     (महेंद्र कुमार बघेल)


समाज मा मनखे के रहन-सहन, आचार-विचार, बोली-भाषा, मान-सम्मान, दया-मया, सुख-दुख, हंसी-ठिठोली, हिजगा-पारी, लेन-देन जैसे कतको ठन मानवीय सुभाव हा घलव मनखे के संगे-संग जीवन के यात्रा मा सहभागी रथे।

आज के समे मा घर-परिवार, रीति-रिवाज, स्कूल-कालेज, अखबार , पत्र-पत्रिका, टीवी-रेडियो, फोन-मोबाइल, इंटरनेट जइसन संचार  माध्यम के बीच मा मनखे के दिनचर्या हा आगू बढ़त हे, इही संचार माध्यम हा मनखे के स्वभाव मा सकारात्मक परिवर्तन लाके सुघड़ समाज बनाय बर नवा चिंतन/विचार के दिशा तय करथे।

  कुछ अइसने ठेठ छत्तीसगढ़ी वातावरण के बीच गाॅंव कलडबरी मा पिता स्व.चुन्नीलाल अउ माता स्व. ढेला बाई के घर मा मोर जनम होइस, जनम लेते साट सबले पहली छत्तीसगढ़ी हवा ला साॅंसा मा पायेंव, महतारी हर स्तनपान करावत  छत्तीसगढ़ियापन ला रग-रग मा दउॅंड़ाउस, जब मोर मुंहुं जुठारिन तब ले छत्तीसगढ़ी मा भींगे दूध-भात, दार-साग ले पालन-पोषण शुरू होइस।

 जीवन मा सबके अपन अलग-अलग कहानी होथे, बस कुछ अइसने मोरो बचपन हा माॅं-बाबू के मया-दुलार, भाई-बहिनी के डाॅंट-डपट अउ संगी-साथी मन के बीच हाॅंसत-खेलत निकलिस।पाॅंच-छे साल के उमर रहिस तब रातकुन सुते के बेर अक्सर माॅं हर अउ कभू-कभू बाबूजी हर किस्सा-कंथली/ कहानी सुनाॅंय। तब आज कहि सकथव अनजाने मा ही माॅं-बाबूजी मन वाचिक साहित्य के परम्परा ला निभावत रहिन। तहाॅं प्राथमिक स्कूल के गुरूजी मन हमर जीवन मा मार्गदर्शक के रूप मा आइन, बाल-भारती (पाठ्यक्रम) के नीतिपरक बाल-कविता, भक्तिकालिन कवि मन के सूक्ति अउ सुई-धागा, प्रायश्चित जैसे कई ठन बोधगम्य गद्य पाठ ला पढ़ावत,समझावत  दिन-दुनिया मा सही-गलत के जानकारी देवत गिन।

मोर जानती मा बिजली के पहुंच ले दूर हमर गाॅंव मा अस्सी के दशक मा मनोरंजन के बहुत सीमित साधन रहिस, काम-काज के बाद लोगन मन बर हर रोज  मनोरंजन के साधन रेडियो रहय। 

उही समय बाबूजी हर छोटे भैया मन बर बाल-पत्रिका चंपक अउ बड़े बर किशोर मन के पत्रिका सुमन-सौरभ के हर अंक ला लाय अउ अपन बर सरिता नाम के पत्रिका ला कभू-कभार खरीद के लानय। जब तीसरी कक्षा मा पहुचेंव तब महू हर वो पत्रिका मन ला पढ़ना सीखेंव।

   मोर बचपना च ले हमर घर मा रोज नवभारत पेपर आत रहिस। ओमा संपादकीय पृष्ठ के खाल्हे डहर हर दिन मृत्युंजय नाम के स्तंभ छपय,जेमा मत्युंजय नाम के तिलिस्मी नायक के धारावाहिक कहानी छपय , मॅंय ओला हर रोज पढ़व, शायद इतवार के दिन मृत्युंजय स्तंभ हा नइ छपय तब अगला कड़ी ला झट ले पढ़ लेतेव कहिके मन मा अब्बड़़ जिज्ञासा रहय।

हर इतवार के दिन पेपर मा बच्चों की फुलवारी नाम के स्तंभ आय जेमा कहानी, नाटक अउ मधुप पांडेय के कविता घलव छपय।

पेपर मा मधुप पांडेय जी के कविता मन ला पढ़ॅंव त बहुत अच्छा लगय।

तीसरी कक्षा मा पढ़त रहेंव तभे पंद्रह अगस्त बर सब लइका मन डहर ले कविता भाषण के जोरदार तैयारी चलत रहिस। मोर नाव हा लिस्ट मा नइ रहिस तभो बड़े गुरूजी हर मोला बुला लीस, मॅंय एकदम हड़बड़ा गेंव। वो समय कविता अउ भाषण शुरू करे के पहिली अतिथि मन बर सम्मान के दू शब्द बोलना जरूरी रहय वोकरो अभ्यास कराॅंय कि " आदरणीय सभापति महोदय, गुरुजन ,सहपाठी भाइयों एवं बहनों आज मैं स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एक छोटी सी कविता प्रस्तुत करना चाहता हूं कृपया गल्तियों पर ध्यान न दें।"

मॅंय कभू अइसन बोले नइ रहेंव माने कोई अभ्यास नइ रहिस, ओ दिन गांव के तीन चार झन जवान- सियान मन अभ्यास देखे बर घलव आय रहॅंय।

आधा डर आधा बल मा का बोलेव कुछु सुरता नइ रिहिस, बाद मा उही मा के एक झन  सियान हा बतइस कि तॅंय हा महोदय के जगा महादेव कहे रहेस। ओकर बोली बचन हा मोर बाल मन ला अइसे चोट करिस मानो वो सियान हर मोर उपहास करत हे।ये घटना के बाद अइसन कार्यक्रम मा भाग लेय बर कभू हिम्मत नइ होइस।

          हमर घर के परोस मा गाॅंव के सियान मन रातकुन बिन बाजा-गाजा के लगभग बारो महिना रमायण के सस्वर पाठ करय अउ टीका बतावॅंय, जब भी समे मिलय उनकर संग महूं सॅंघर जाॅंव।

     घर मा गायत्री परिवार डहर ले प्रकाशित युग निर्माण योजना /अखण्ड ज्योति पत्रिका हर महीना आय , ओमे के आध्यात्मिक आलेख मन तो कुछु समझ मा नइ आय ,हाॅं फेर गाढ़ा अक्षर मा छपे कहानी के रूप मा नीति परक प्रेरक प्रसंग ला पढ़के अउ बहुत कुछ पढ़े के इच्छा होय।

             जब छठवीं कक्षा मा पढ़त रहेंव तब माध्यमिक विद्यालय महरूम मा पिताजी हर प्रधान पाठक रहिस, ये घटना 15 अगस्त 1981 के आय , सरपंच श्री सुरेन्द्र सिंह हर कार्यक्रम के सभापति रहिस ,ओ दिन सभापति हा कार्यक्रम देवइया लइका मन के नाम पुकारत गीस तहाॅं लइका मन कविता-भाषण प्रस्तुत करत गीन।

उही दिन घलव कार्यक्रम देय बर मॅंय अपन नाम नइ जुड़वाय रहेंव। फेर सभापति हर पता नहीं कइसे,मोर नाम ला कविता प्रस्तुत करे बर पुकार दिस । मॅंय फेर हड़बड़ा गेंव , मोर हालत खराब होगे , बाबूजी (प्रधान पाठक) के खियाल आते साट सुटर-सुटुर मंच मा पहुॅंच गेंव अउ सभापति के सम्मान मा दू शब्द बोल डरेंव। फेर कविता नइ पढ़ सकेंव।

अइसन जगा मा जिंकर तैयारी रहिथे वहू मन हड़बड़ा जथे, तब मोर दशा का होइस होही।

असल मा ओ दिन सरपंच (सभापति) हर महेंद्र कुमार ७वीं ( सातवीं) ला  महेंद्र कुमार 6वीं (छठवीं) पढ़ दिस, कोन ला का कहि सकथस।

शुरू-शुरू गाॅंव मा क्वाॅंर नवरात्रि के मंच मा लगातार आठ दिन ले पौराणिक पात्र मन उपर केंद्रित अलग-अलग कार्यक्रम अउ नम्मी के दिन नाचा होवय। बाबू जी हर कभू नाचा देखन नइ दिस,फेर सुत उठ के सुबे-सुबे के आखरी गम्मत (नकल) ला देखे के मौका जरूर मिले।

    धारदार व्यंग के साथ हॅंसी-मजाक ले भरपूर वो आखरी गम्मत हा समाज ला बहुत कुछ सोचे- सीखे बर मजबूर करथे।वो आखरी गम्मत के प्रभाव मोर उपर आज भी कायम हे, मौका मिले मा मॅंय नाचा जरूर देखथव।

           ननपन ले रेडियो मा प्रसारित चौपाल, युववाणी, लोकरंजनी , चिंतन, जयमाला, बिनाका/सिबाका, आपके मीत ये गीत अउ फरमाइशी जइसे कई ठन कार्यक्रम ला सुनके मनोरंजन के संगे-संग ज्ञान-विज्ञान के बात सीखे बर मिलिस।एक घाॅंव बियारी करत रहव तभे चौपाल मा पवन दिवान जी के राख वाले कविता हा चलत रहय,उनकर ये हास्य अउ व्यंग के बहुतेच सुग्घर रचना हर मोर लइकुसहा मन ला बड़ प्रभावित करे रहिस।

  जब हाकी अउ क्रिकेट के रेडियो मा प्रसारण होवय तब सुशील दोषी, जयदेव, मिर्जा मसूद मन ले ऑंखो देखा हाल सुनके अइसे लगे मानो मॅंय खेल ला सॅंउहत देखत हॅंव, उनकर चाकलेटी आवाज हर मन ला मोह लेवय।

          हाईस्कूल के पढ़ाई बर आदर्श उच्चतर माध्यमिक शाला डोंगरगांव मा भर्ती होगेंव।

       पाठ्य पुस्तक के छोड़ बाबूजी हर कई किसम के पत्र पत्रिका हमर बर खरीद के लाय , बाबूजी अब्बड़ उपन्यास पढ़य ,रोज के पच्चीस पैसा किराया के हिसाब मा मिले ।बाबू जी के गैरहाजिरी मा उही उपन्यास ला महूं हा चुप्पे-चुप्पे पढ़ॅंव। नवीं से लेके बारवीं तक चार साल मा लगभग पचासक ठन उपन्यास पढ़ें होंहू। सबले ज्यादा वेदप्रकाश शर्मा जी के उपन्यास पढ़ें बर मिलिस। मॅंय एक घाॅंव वेदप्रकाश जी ला बधाई पत्र घलव लिख के भेजेंव ,कुछ दिन बाद अंतर्देशीय मा उॅंकर जवाब भी आइस। अतेक बड़ उपन्यास कार के जवाब पाके मन गदगद हो गय।फेर अंतस मा अइसने कुछ लिखे के इच्छा जागिस फेर कुछु हो नइ पाइस। 

   ग्यारवी कक्षा मा आदरणीय गुरूदेव होरी लाल पंसारी जी हर संचायिका के बारे मा प्रार्थना स्थल मा बोले बर लिखके दिस। गुरुदेव के प्रेरणा ले ओ दिन पहिली बार बोलेव फेर एकेच दिन मा सबो हस्तलेख ला याद नइ करे के सेती ठीक से नइ बोल सकेंव फेर बोलेंव जरूर।

बारवीं मा पढ़ई के दौरान मॅंय सबले पहिली हिंदी मा कविता लिखेंव। जेला अपन गाॅंव के दुर्गा मंच मा प्रस्तुत करेंव, लोगन मन खूब पसंद भी करिन। 

ओ समय डोंगरगांव के बस स्टेंड मा रिषभ जैन के बुक स्टाल रहिस जिहां फिल्मी, राजनीति, बाल साहित्य, साहित्य, विज्ञान जइसे हर किसम के पत्रिका रहय, रिसभ भैया हर ग्राहक मन ला पुस्तक पढ़े बर कभू मना नइ करे। उंकर बुक स्टाल मा बिक्कटे च पुस्तक पढ़ेंव।

    बारवीं पास होय के बाद स्नातक के पढ़ाई दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव मा  होइस।

मॅंय जेन छात्रावास मा रहॅंव उहाॅं के मोर एक झन मितान हर जिला ग्रंथालय राजनांदगांव के सदस्य रहिस,  मितान हर उहाॅं ले पुस्तक निकलवा के लाय, वोकर पढ़े के बाद पुस्तक ला महूं पढ़ॅंव ।सबले जादा शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के कहानी ला पढ़े बर मिलिस, उही पईंत छत्तीसगढ़ी के हाना ले संबंधित एक ठन पुस्तक पढ़ेंव, लेखक के नाम के सुरता तो नइहे फेर पहिली बार छत्तीसगढ़ी मा कोनो पुस्तक पढ़े के सुरता अंतस मा आज भी हवय।

ये बीच जोशे-जोश मा मोर कलम ले एक-दू ठन कविता घलव लिखाइस, जेला सॅंजो के नइ रख पायेंव। राजनांदगांव के गणेश पर्व मा हर साल अलग-अलग मंडली वाले मन अखिल भारतीय कवि सम्मेलन के आयोजन रखॅंय।जब-जब कवि सम्मेलन के आयोजन होय तब-तब शुरू ले उरकत तक सुनने वाला श्रोता के रूप मा मोरो एक ठन नाम रहय। 

   विद्यार्थी जीवन मा रेडियो, टी.वी. अउ साक्षात मंच ले जब भी कविता सुनॅंव ,मन मा उमंग भर जाय, लिखे के तलब मा रूॅंवा ठाढ़ हो जाय, लिखे बर बैठतेंव ता कहाॅं ले शुरू करव कहिके सोचते च रहि जाॅंव फेर कुछ लिख नइ सकॅंव।

एक दिन मितान हर ग्रंथालय ले जयशंकर प्रसाद के महाकाव्य कामायनी ला  लाइस, जब  पुस्तक ला पढ़ेव तब मॅंय ओमे के मोटा-मोटा बात ला समझ सकेंव, गूढ़तम बात ला नइ समझ पायेंव । हाॅं फेर कामायनी के शब्द मन मोला बड़ सुग्घर लगिस , प्रेरित करिस, तब मोर ले एक ठन कविता लिखाइस जेला आज कहि सकथव कि ये मोर पहिली कविता आय।

विद्यार्थी जीवन मा पढ़ई-लिखई के संग कविसम्मेलन मा कवि मन ला सुनई अउ साहित्य के पढ़ई लगातार जारी रहिस, साल भर मा दू-चार ठन कविता अउ एकाद ठन आलेख लिख लेंव। ओ समय हिन्दी च मा लिखॅंव।

उही समय कविसम्मेलन मा  छत्तीसगढ़ी साहित्यिक कविता ले हटके चुटीली हास्य कविता के एक दौर चलिस , ताली अउ शाबाशी के आस मा कतको कवि मन उही धार  मा बोहागें।

मोरो मन मा घलव ताली सुने के इच्छा होय फेर चुटीली रचना करे मा मॅंय कमजोर रहॅंव ,उही पईंत ले इही इच्छा हर कलम के धार ला छत्तीसगढ़ी डहर मोड़ दिस।

फेर हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी मा अपन समझ मुताबिक कविता , कहानी /आलेख बर कलम चलिस,दू-चार रचना मन समाचार पत्र मा छपिस।

     नौकरी अउ घर-परिवार ला समय देय के बाद बचे खुचे समय मा लेखन के काम ला कर लेना एक ठन चुनौती आय।

   सन् 1999 मा साकेत साहित्य परिषद सुरगी के सदस्यता ग्रहण करेंव। परिषद के मासिक अउ वार्षिक गोष्ठी मा विद्वान साहित्यकार मन के वक्तव्य मन ला सुनके साहित्य के दशा अउ दिशा के थोर-बहुत समझ आवत गिस।

एक दिन आपसी चर्चा मा साकेत साहित्य परिषद के संरक्षक आदरणीय श्री कुबेर सिंह साहू हा मोला कहे रहिस कि महेंद्र भाई हिंदी के क्षेत्र हर बहुत बड़े हे ,कहइया मन येमा बहुत कुछ कहि डरें हे फेर छत्तीसगढ़ी मा बहुत कुछ कहना अउ करना अभी बाकी हे। हिंदी ला अच्छा ले समझे बर हिंदी मा एम.ए. करे के सलाह भी देये रहिन। ये मुलाकात के बाद मॅंय हिन्दी मा एम. ए. करेंव अउ जादा ले जादा छत्तीसगढ़ी मा लिखना शुरू करेंव।

                       इही कड़ी मा

छत्तीसगढ़ी भाखा ला विस्तार देय के मुख्य उद्देश्य ला ध्यान मा रखत हिंदी दिवस के दिन 14 सितंबर 2014 के शिवनाथ साहित्य धारा डोंगरगांव के गठन करेन। जेमा सबे कलमकार मन अपन-अपन पुरतीन छत्तीसगढ़ी के सेवा मा आहूति देवत हवॅंय।

      ये बात हर सन् 2018 के मई महिना के आय जब आदरणीय श्री बलराम चंद्राकर जी हर छंद के छ के बारे मा बतावत आनलाइन कक्षा मा जुड़े बर प्रेरित करिन। आज छंद के छ के प्रणेता आदरणीय श्री अरूण कुमार निगम गुरुदेव के परसादे वर्तमान मा छत्तीसगढ़ी मा छंद के छ आनलाइन कक्षा मा छंद के ज्ञान के साथ व्याकरण के बारीकी ला समझे के अवसर मिलत हे।

छत्तीसगढ़ी भाषा के बढ़ोतरी बर ये छंद कक्षा के विशेष योगदान हर सिरबिस सुरता मा रखे जाही। अइसने च  छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर मा डॉ. सुधीर शर्मा जी अउ श्री अरूण कुमार निगम जी के संयुक्त प्रयास ले पटल मा छत्तीसगढ़ी भाषा के ख्यातिलब्ध साहित्यकार मन ला पढ़के बहुत कुछ सीखे समझे बर मिलत हे।ईंखर जुझारू प्रयास ले रचनाकार मन अलग-अलग विधा मा श्रेष्ठ छत्तीसगढ़ी साहित्य लिखे बर प्रेरित भी होवत हें।


           आखिर मा मोला इही समझ मा अइस कि साहित्य के पढ़ाई के संग मंचीय/सांस्कृतिक गतिविधि के देखई, सुनई अउ समझई हर घलव लिखई (साहित्य लेखन) बर जमीन तैयार करथे।

      हमर महतारी भाखा के साहित्यिक कोठी हर लबालब भरे रहय, छत्तीसगढ़ी के शोर हर देश-दुनिया मा बगरे , पुरखा अउ अघुवा साहित्यकार मन के इही उदिम ला सफल करे बर मोरो डहर ले छत्तीसगढ़ी मा लेखन के नानमुन प्रयास जारी हे।  


महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव

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