Saturday 23 October 2021

हमर जमाना म"-गया प्रसाद साहू*

 

       

*"हमर जमाना म"-गया प्रसाद साहू*

      

 *प्रात काल उठि के रघुनाथा*

  *मातु-पिता गुरू नावइ माथा*

      

     *जब हमन नान्हे-नान्हे रहेन,तभे हमर दाई-ददा ह एक शिष्टाचार,एक सभ्यता,एक संस्कार सिखाईन-बेटा,अपन ले बड़े-बड़े मनखे चाहे  परिवार के होय, रिश्तेदार होय,जात-समाज के होय या अन्य जात-समाज के होय ? "सियराम मय सब जग जानी ,करउ  प्रंणाम जोरि जुग पानि"  के भाव से जम्मो लोगन के प्रंणाम करना चाही*

     *तेकरे सेती हमन बचपन से अपन दाई-दादा,भाई-बहिनी,रिश्तेदार  के अलावा अपन कमीया-पहटिया,राऊत,नाऊ,धोबी जम्मो लोगन के रोज जोहार पांयलागी करत रहेन,आजो ले ये संस्कार ह हमर सरीर के नस-नस म भीन गए हवय*

     *आजकल के लईकन ला एही सुग्घर शिष्टाचार,संस्कार ला पालन करे बर कहिथन,तव बोलथैं-भईगे तोर लेक्चर ला बंद कर,कोनो ला पांव परे के हमर दिली इच्छा होही,तभे  तो पांव परबो,हमर मन,हमर इच्छा !*

    * *तब घेरी-बेरी समझाथन-अईसन नहीं सोचना चाही बेटा,अपन दाई-ददा,भाई-बहिनी अउ बड़े उम्र  वाले लोगन के पांयलागी करना चाही*

     * *आजकल के लईकन फेर उलट के प्रश्न करथैं-अपन से बड़े उम्र वाला मन के पांयलागी करे से का बड़े मन तर जाथैं ?*

     *मैं कहिथौं-बेटा, जेकर पांव पड़बे ? तेन ह नइ तरैं,बल्कि पांव परैया ह खुद तर जाथैं ! काबर के दाई-ददा अउ बड़े-बड़े लोगन के आशीर्वाद अउ दुआ ह फलीभूत होथे ! अपन दाई-ददा, गुरू महाराज,भाई-बहिनी अउ अपन ले बड़े लोगन के पांव परे से उमर बाढ़थे,धन-दौलत अउ मान-सम्मान बाढ़थे |जऊन मनखे ह जतके नम्रता, शिष्टाचार,सुशील संस्कार अपनाथें,ओतके सफलता प्राप्त करथैं,ओतके लोकप्रियता अउ सुख-समृद्धि प्राप्त करथैं*

    *लेकिन आधुनिक लईकन मन कहिथैं-हम ला हाय,हलो, बाय-बाय,टाटा कहना अच्छा लगथे ! तब भला काय कहि सकथन रे भाई ?*

     *हमन नानपन से गऊ माता के सेवा करथन,बड़े श्रद्धा भाव से खली,भूंसी,पैरा-कटिया,पेज-पसिया खवाथन-पियाथन साथ ही गोबर सकेले बर खुशी-खुशी गोबर सकेलथन*

     *लेकिन आजकल के लईकन ला गऊ माता के सेवा करे बर तिल मात्र भी रूचि नइ हवय, तव गोबर उठाय के बूता करना तो बहुत असंभव बात हो गए  हवय !!!*

      *आजकल जेकर घर एक-दू ठन गऊ माता हवय,तऊन सेवा-जतन बिना खूब उपेक्षित हवय,सिरिफ दूध ला दुह लेथें,अउ खाना-पीना पैरा-कटिया बर तरसा डारथैं ! खेत के धान ला हार्वेस्टर म कटवा लेथें,जेकर पैरा ला गऊ माता खाए नइ सकैं,तब खेत म ही जम्मो पैरा ला जला देथैं !  इहां तक रात के समय  गऊ माता ला घर म बांध के नइ राखैं,तेकरे सेती कतको गऊ माता दुर्घटना के शिकार होवत जाथें,रात के सफर करैया कतको लोगन गरूवा म टकरा के स्वयं दुर्घटना ग्रस्त होवत रहिथैं, आज ये विषय ह खूब चिंताजनक होवत जाथे!!!*

     *आजकल के लईकन मन कुकुर पोंसे-पाले अउ सेवा करें बर जादा रूचि लेवत जाथें !  हाय रे ! ये कईसन जमाना  आ गे ?ये समय,समय के फेर है रे भाई !*

     

   *हमर जमाना म प्रायमरी,मिडिल स्कूल पास होते ही खेती-किसानी के बूता म तन-मन-धन से जुड़ जावत रहेन | सियान मन हाना कहैं- "उत्तम खेती,मध्यम व्यापार,नीच चाकरी भीख निदान"*

     *वो बखत खेती के बूता म हमन ला खूब रूचि, सुकुन अउ खुशी होवत रहिस, गर्व अनुभव करत रहेन,लेकिन अब एक नवा हाना प्रचलित हवय- "उत्तम नौकरी,मध्यम व्यापार,नीच खेती,भीख निदान"*

    *तेकरे सेती आजकल के लईकन खेती-किसानी के बूता बर खूब अलाल,कामचोर अउ शरम महसूस करथैं !*

     *हमर दाई-ददा के सिद्धांत रहिस-अपन लईकन ला हमन स्वयं मन के मालिक बनाबो,कोनो के नौकर नइ बनावन !*

    *"आजकल के लईकन  मेटरिक पढ़ के मेटावत जाथें,बी.ए. पढ़ के बेकार होवत जाथैं ! कालेज पढ़ के नालेज आना चाही,लेकिन कालेज पढ़ लेथें,तिहां अपन घर के खेती-किसानी अउ गौ सेवा के काम करबेच नइ करैं,शरम महसूस करथैं,भले शहर जा के कोनो दुकान म,कोनो कंपनी मालिक के रोजी-मजदूरी करत रहिथैं, अपन घर, संयुक्त परिवार ला छोड़ के शहर म  खूब तकलीफ उठाथैं ! अकथनीय शोषण के शिकार होवत रहिथैं,तभो ले गांव -घर बर प्रेम,रूचि,सहयोग, समर्पण भावना  अपनाबेच नइ करैं  !*

      *हमर जमाना के गोठ-बात चलत हे,तेकरे सेती ये संस्मरण ला आप मन संग बांटे हंव ले भाई,*

      

    *गोठियाहूं तव मोटरा भर अउ भंडार भरे हवय,नइ गोठियावौं,तव मन के बात मने-मन पचत हवय ! "सबके अपन-अपन राम कहानी हवय | कोनो के बीत्ता भर, कोनो के हाथ भर !"*

    *बाकी अभी अउ भंडार अकन कथा हवंय,तऊन ला अगले अंक म फोरिया के बताहू* *

    *जै जोहार*

    (सरलग-३)


आपके अपनेच संगवारी

*गया प्रसाद साहू*

    "रतनपुरिहा"

मुकाम व पोस्ट-करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)

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