Friday 1 October 2021

निबन्ध- छत्तीसगढ़ के तिहार म सामाजिक समरसता*


 छत्तीसगढ़ के तिहार म सामाजिक समरसता*

  छत्तीसगढ़ परब ,तिहार के प्रदेश आय।इँहा के भाखा,बोली अउ अलगेच संस्कृति परम्परा ह एकर पहिचान आय।इही पहिचान ल बचाय बर हमर पुरखा मन ह नवा राज निर्माण के कल्पना करिन। इँहा के परब मन समाज के सबो मनखे सम भाव ले जुड़के मनाथे।किसानी प्रधान हमर गाँव के संस्कृति म सवनाही ले ले के अक्ति तक के परब सबो झन जुरियाय के मनाथे।

    हरेली तिहार ,पोरा म हमर किसानी ले जुडे पहिली तिहार आय ओमा हमन देखथन किसान न केवल मनखे ले जुड़थे फेर वो माटी महतारी,गऊधन अउ खेती किसानी म बउराय औजार मन भर घला कृतज्ञता के भाव रखते।प्रकृति बर संरक्षण के भाव रखत लीम,बर पीपर,महुवा,बेल,परसा, ...रुख राई मन के पूजा अउ महत्व ह हमर जिनगी के पर्यावरण ले जोड़थे।

      कांदा-कुश,करेला, कुम्हड़ा -कोचई,खुशियार,तोरई-बरबट्टी,पसहर चाउर...ल परब ले जोड़ के साग भाजी मन ल घला  मौसम के आधार ले हमर परब म महत्त्व मिलथे।

    गाँव के पूरा जिनगी सामाजिक  व्यस्था ल सुदृढ़ करत आगू बढ़थे।इँहा सबो के अलगे भूमिका तय रथे पौनी-पसारी करत किसान के सेवा म राउत,लोहार,नाऊ,उजिर,बाह्मण, बईगा, रखवार ,चरवाहाअपन अपन काम करथे।अउ इकर जेवर सहकारीता ले गाँव भर के मनखे मन ह मिलके देथय ।

  इँहा के परब तिहार म छोट-बड़े के भेद भुला के सबके अलग भूमिका रथे।बइगा गाँव के डीही-डोंगर म पूजा अर्चना करथे त चरवाहा गौधन के सेवा के ।

   देवी पर्व जंवारा म ...

माली घर के गजरा,फूल,कडरा घर के टोकरी,धुकनी,कोस्टा घर के कपड़ा,नाइन के माहुर, तेली घर के तेल,कुम्हार के मलवा,गाड़ा के बाजा आने के बरनन परब मन म सामाजिक सद्भाव अउ समरसता के जिक्र करथे।गाँव म सुख-दुख के कारज बर पांघर अउ समाज के घला प्रथा हवय।जेन मनखे के विपत म मिलके खड़े होथे।हमर अंचल म धुमार तिहार काठी म दुखी परिवार के सहयोग अउ सम्बल के बढ़िया उदाहरण आय।

    इँहा के लोकजीवन म परब मन म ऊँच नीच के भेद ल भूला के सगा-परोसी मन घर मिलके परब मनाए के प्रथा हवय।अपन उछाह ल बाँटत एक दूसर के घर जाके भोज करथे।

    इँहा के परब मन गाँव के सबो ब्यापार,व्यवसाय ल साथ ले के चलथे।खुदे के अनुशासन अउ सहकार म बंधे गांव के परब मन के खुशी मनखे के मिलाप ले बढ़ जाथे।इँहा के हर आयोजन म बड़े मन आशिष देथय,जवनहा मन आयोजन के तैयारी करथय,अउ लईका मन आनन्द के डुबकी लगाथे।सबके सहभागी अउ ऊँच नीच के भाव के दुरिहा गाँव के परब मन समरसता के सन्देश बांटथे।

                🙏

         द्रोणकुमार सार्वा

             मोखा(गुंडरदेही)

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*विषय--छत्तीसगढ़ के तिहार मा सामाजिक समरसता*


छत्तीसगढ़ के पावन भुँइया मा समरसता के धारा गाँव-गाँव मा सदाकाल ले कलकल-छलछल बोहावत आवत हे इही कारण हे के इहाँ आजो सुख-शांति ,प्रेम अउ भाईचारा के दर्शन होथे।छत्तीसगढ़ महतारी के दामन मा अंते जइसे कभू दंगा-फसाद के दाग देखे ल नइ मिलय।

        समरसता के मतलब होथे--सम रस होना अर्थात सबके सुख-दुख ला एक समझना,मिलजुल के एक-दूसर के सुख-दुख मा शामिल होना,दूसर के खुशी ला अपनो खुशी समझना।रस के मतलब होथे--आनंद। बिना कोनो धार्मिक, जातिगत, गरीब-अमीर ,ऊँच-नीच के भेदभाव के समानता के भाव ले सामूहिक रूप ले आनंद के अनुभव करना हा समरसता आय। 

        रस के एक अउ अर्थ भाव या विचार होथे। वो जम्मों भाव जेमा 'वसुधैव कुटुम्बकम" ,मनखे-मनखे एक समान, सबो जीव हा एके परमात्मा के अंश आय के भावना समाये रइथे ,समरसता कहे जा सकथे। समरसता मा 'सर्वे भवंतु सुखिनः ' के उद्घोष होथे अउ वोकरे अनुसार आचरण बनाके व्यवहार करे जाथे।

           समरसता के उपर कहे गे सबो लक्षण हमर छत्तीसगढ़ के तिहार मा साफ-साफ देखे ला मिलथे। धन्य हे हमर वो पुरखा मन जेन मन अनेकता मा  एकता लाये बर नाना प्रकार के लोक पर्व ,तिहार मनाये के रीति-रिवाज बनाये हें। अलग-अलग रंग के फूल मन ले बहुतेच सुंदर गुलदस्ता कइसे शोभा पाथे तेला छत्तीसगढ़ के तिहार मा देखे जा सकथे। छत्तीसगढ़ के तिहार मन तो समरसता के साक्षात दर्शन ये।

         छत्तीसगढ़ मा अइसे कोनो तिहार नइये जेला सब झन मिलजुल के नइ मनावत होहीं। जग जेंवारा, संत गुरु घासीदास के जयंती, हरेली,पोरा, सवनाही, माता पहुँचनी, गाँव बनाना, कमरछठ, गणेश पूजा, दुर्गा पूजा ,दसेरा,देवारी आदि लोक पर्व,तिहार मन ला सब कोई बिना भेदभाव के मिलजुल के मनाथें। ये तिहार मन ला मनाये बर गाँव मा हाँका परथे, कहूँ-कहूँ तो वो दिन काम बूता तको बंद रहिथे जेकर पालन सब झन करथे।

  महमाई मा जेंवारा बोंवाथे ता नरियर चढ़ाये ला बिना कोनो भेदभाव के सब जाथें।वो गाँव भर के महमाई होथे।कखरो घर जेंवारा बोंयाये रहिथे ता सेवा करे बर आनो मन जाथे।गाजा -बाजा के संग जेंवारा ठंडा, गणेश विसर्जन, दुर्गा विसर्जन करे बर सब जाथें। होली हा तो प्रेम, भाईचारा के बड़का तिहार मानेच जाथे। देवारी के समिलहा आनंद ला भला कोन भुला सकथे? राउत मन वो गाँव मा रहइया सबो जाति-धरम के लोगन घर जोहारे ला जाथें। मातर गाँव भर के मन मिल के जगाथें।बखत परे मा सब झन चंदा तको देथें। मँड़ई के उछाह के का कहना? गौरी-गउरा के पूजा मा कोनो प्रकार के आड़-छेप नइ राहय। कोनो-कोनो गाँव मा ताजिया निकलथे ता सब झन देख के खुश होथें।

      कुल मिलाके देखे जाय ता छत्तीसगढ़ के तिहार मन समरसता के सबले बड़े उदाहरण आँय। ये समरसता ला शिक्षा के द्वारा  बहुतेच बढ़ाये जा सकथे काबर के शिक्षा हा वैज्ञानिक सोच पैदा करके पाखंड, रुढ़िवाद ,जातिवाद ला दूर करके एकता ला, समानता ला बढ़ाये के काम करथे। शिक्षा के अमिट प्रभाव आज दिखत घलो हे फेर दुख के साथ कहना परत हे के "अंते के झाँझ अंते के मँजीरा सहीं" कुछ मनखे मन कट्टरता के नाम मा समरसता के धारा मा बाधा डाले के कोशिश करत हें।एमा तथाकथित नेता मन जादा शामिल हें जे मन आन के खाँध मा बंदूक मढ़ा के गोली चलाथें अउ अपन उल्लू सीधा करथें। अइसन कट्टरवादी जातिगत या फेर धार्मिक उन्माद फइलइयाँ, फोकट के विवाद करइयाँ, छत्तीसगढ़ के समरसता ला नष्ट करे मा लगे लोगन ले सावधान रहे के जरुरत हे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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 *विषय - छत्तीसगढ़ के तिहार मा सामाजिक समरसता*

              महेंद्र कुमार बघेल


हमर छत्तीसगढ़ प्रदेश हर उत्सव धर्मी प्रदेश आय , इहाॅं पुन्नी-अमौसी संग बेरा-कुबेरा मा किसम-किसम के तीज-तिहार मनाय के परम्परा हावय। सालो-साल ले ये परम्परा हर लगातार एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी मा स्थानांतरित होवत आगू डहर बढ़ते चले जाथे।

संगेसंग ये धरती हा  किसान अउ कमइया (कामगार) मन के धरती आय,किसान  जब अपन जाॅंगर के परसादे धरती-माटी के छाती ला चीर के उलट-पलट करत फसल उगाथे, बन-काॅंदी जइसन खतरनाक कचरा (खरपतवार) मन ला उखाड़ के फसल के हियाव करथे,बिहने ले सॅंझौती तक लगातार माटी के सेवा बजावत अपन आप ला खपा देथे, तब काम(श्रम) के बोझ ले थके अपन तन अउ मन बर थोरिक बेर सुस्ताना चाहथे या कहन कि अवकाश  चाहथे।

किसान , बनिहार अउ मजदूर (कामगार) मन यानी लोक हर इही अवकाश ला अवसर (उत्सव/ तिहार ) मा बदले के जबरदस्त ताकत रखथे, उनकर सामूहिक अउ सामाजिक भागीदारी ले

गाॅंव मा मनाय जाने वाला इही उत्सव हा तो तिहार कहलाथे।

बोनी ले लेके कटाई-मिंजाई तक सोला आना खेती के आशा मा फसल के देखरेख करत अपन ईश ला सुमरन करत अक्ती मनाय जाथे।

इतवारी,सम्मारी अउ पुन्नी के संग बने राग-पाग मा बोनी अउ सोला आना अंकुरण के कामना करत जुड़वास (जुड़वारो) मनाय जाथे,फसल के बियासी, निंदाई अउ चलाई करत कीरा-मकोरा ले बचाय बर सवनाही, हरेली मनाय जाथे। जब फसल (धान) मा गर्भ धारण के पहिली पोटरी पान निकलथे तब गरभाही मनाय जाथे।तीजा-पोरा, आठे-नवें, ऋषि पंचमी फेर धान मा सुग्घर बाली ला देखके बाल परना (बाल उत्सव)नामक तिहार मनाय जाथे। क्वाॅंर महिना मा नवा फसल के उत्सव नवाखाई, कातिक मा सुरहोती (गौरी-गौरा), देवारी  (अन्नकूट/गोवर्धन पूजा), मातर ,जेठउनी अउ पूस पुन्नी के छेरछेरा सही कई ठन तिहार मनाय जाथे।

 खेती किसानी के काम ला सिरजाय बर जेन-जेन जिनिस के भागेदारी रहिथे उन सबके करजा छुटे बर (आभार व्यक्त करे बर) अलग अलग समय मा तिहार मनाय जाथे, चाहे वो जिनिस हा सजीव होय या निर्जीव।

छत्तीसगढ़ के धरती-माटी मा सबला अपन बनाय के सहज गुण हर लबालब भरे हवय, तभे तो हर प्रकार के संस्कृति  ला बिना दुवा-भाव के अपन कोरा म पालत पोषत हे।

चाहे वोहा कृषि (लोक) संस्कृति होय चाहे ऋषि ( आर्य ) संस्कृति होय।

आठे (कृष्ण जन्माष्टमी), कमरछढ ( खमरछठ/ हलषष्ठी), राखी ( रक्षाबंधन), हरितालिका (तीजा), पितर, दशरहा (दशहरा/रावण वध), लक्ष्मी पूजा जइसन तिहार-बार येकर प्रत्यक्ष प्रमाण आय।

छत्तीसगढ़ के पहिचान गाॅंव अउ खेती किसानी ले हे, धान-पान,माल-मवेशी,अउ मनखे मनके खुशहाली खातिर जुड़वारो,सवनाही, इतवारी जइसन जम्मों किसानी तिहार ला बैगा , पटेल, कोतवाल, रखवार मन के सियानी मा जुलमिल के मनाय जाथे।

तिहार शब्द मा खुदे सामूहिकता अउ समरसता के भाव हर समाय हे। गाॅंव मा किसान, मजदूर, बनिहार अउ पौनी मन के  दिनचर्या हर कृषि संस्कृति के सहारे आगू बढ़थे जिहाॅं सबके अपन अलग-अलग काम काज हे। येमन जात धरम ले ऊपर उठ के भइया-भौजी, कका-काकी जइसे नाता-रिश्ता के मजबूत डोरी ले बॅंधाय रहिथे।

गांव के दिनचर्या मा सहज रूप मा एकता अउ समरसता के बासा रहिथे , जे तीज तिहार जइसे हर परब मा दिखाई देथे। 

सरी दुनिया सही गांव मा घलव आर्थिक असमानता दिखथे,गौंटिया, मालगुजार,साव जइसन बड़े-बड़े जोतनदार हे त मजदूर, बनिहार, पौनी अउ छोटे किसान घलव हें। इनकर आपसी सुलाह-सहयोग ले बड़े ले बड़े काम हर  चुटकी बजावत सीध हो जथे।

गौंटिया मन पौनी मन ला साल भर भला गुरेरत रही फेर हरेली,जेठोनी,देवारी,मातर- मड़ई मा आगू बढ़के इनकर स्वागत सम्मान घलव करथें।सुरहोती के दिन गौरी-गौरा के कलश यात्रा मा का छोटे अउ का बड़े सबे घर के बेटी माई मन दीया बरत करसा ला मूड़ मा बोहि के निकलथे, तब दूरिहा ले बैठ के देखे मा अइसन लगथे जनो-मनो सुरही गाय के धरसा हर धरती दाई के कोरा मा उतर के झिलमिल झिलमिल करत हे।

देवारी के दिन गोवर्धन खुॅंदाय बर राउत-बरदिहा मन जब अपन घर ले बाजा-गाजा के संग दोहा पारत निकलथे तब गली-खोर हर दाई-बहिनी मन ले गॅंजमिंज-गॅंजमिंज करे लगथे, गोवर्धन खुॅंदाय के बाद लोगन मन एक दूसर के मूड़ मा गोबर के टीका लगाथें, छोटे मन बड़े मनके पाॅंव-पायलगी करत बड़े मन ले आशीर्वाद लेथे, सब एक-दूसर ला बधाई देथें।

माने तिहार हर मनखे मन के मन मा आपसी एकता, सामूहिकता अउ समरसता के भाव ला जगाय के काम करथे।


महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव

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 पोखनलाल जायसवाल: *छत्तीसगढ़ के तिहार म सामाजिक समरसता*

       छत्तीसगढ़ महतारी अपन सँस्कृति अउ परम्परा ले सरी दुनिया म अपन अलगेच पहचान रखथे। इही पहचान ले ए प्रदेश अपन अस्तित्व म घलव आइस। छत्तीसगढ़ सदा दिन ले अपन रीत-रिवाज अउ परम्परा बर जाने जाथे। इहाँ गँवई-गाँव म सबो समाज के सुमता सुलाव ले कतकोन तीज-तिहार मनाय जाथे। ए तिहार का आय? अउ एकर चलन कब ले आय होही? सोचे म इही धियान जाथे कि तइहा समे म खेती-बारी के बुता ले मनखे मन ल फुरसत नइ मिलत रहिस त ओमन सोचिन होहीं जिनगी ह तो कमातेच खप जही, बुता तो सबर दिन हे, कभू आराम नइ मिलही। मिल बइठ के सुरताय के बहाना खोजिन होही अउ तिहार चलन म आइस होही। तभे तो जादातर तिहार मन खेती-बारी ले जुरे च मिलथे। खेती अपन सेती केहे गे हवय, अइसन म खेती बुता म इतवार के इतवार जइसे छुट्टी संभव नइ रहिस होही। एक दिन के पछुवाय ले किसानी म बहुतेच फरक देखे जाथे। धान म आय धुरसा बिमारी एके च दिन म किसान के जीव ले देथे। किसान मुड़ धर रोय लगथे अउ ओकर हाल डार के चुके बेंदरा सहीं हो जथे। आज तरा तरा के कृषि औजार अउ उपकरण के संग दवा-पानी के आय ले खेती बुता जल्दी सलट जथे। फेर तीस बछर पहिलीच घरोघर बइला भइँसा बँधाय मिलत रहिस हे। मनखे च ले जम्मो बुता सिद्ध परत रहिस। आज किसानी करे के स्थिति बदल गे हावय। अभियो सुने ल मिलथे- 'बुजा मन आज फेर तिहार मान दिन।' एकर ले इही बात समझ म आथे कि तिहार के मतलब छुट्टी ले हे। जेकर ले तन मन दूनो ल आराम मिल जय। एकेच किसम के जिनगी जियत मन म नीरसता आ जथे अउ उछाह के कमी हो जथे। मन उब जथे। तब हट के कुछु अउ करे के उदिम रहिथे। इही उदिम तिहार आय। सुस्ती, नीरसता अउ उबासी सब ल दूर करथे अउ ऊर्जा के नवा संचार बर ए तिहार जरूरी होगे।

        खेती बुता अकेल्ला के बुता करे ले कभू सिद्ध नइ परय। रोपा बियासी चलई निंदई अउ मिंजई ह समूह ले ही पूरा हो पाथे।  लोकजीवन म खेती के बात करन चाहे रीत-रिवाज अउ परम्परा के, सब म सामाजिक समरसता ह रचे बसे। सामाजिक साहमत ले सुख अउ दुख दूनो कारज निपटथे। इही पाय के दार्शनिक अरस्तू मन कहे हे- "मनुष्य सामाजिक प्राणी है....'' समरसता के मतलब लिंग-जाति भेद ल मेट आनंद के सागर म डूब जाना आय। जिहाँ जतके डूब ओतके आनंद मिलथे।

        चइत म नवरात्र के आयोजन,  बइसाख म बर बिहाव के नेग म बइगा, बढ़ई, अउ पउनी पसारी के साहमत, आसाढ़ म मातापहुँचनी, हरेली, भोजली विसर्जन, कृष्णजन्माष्टमी म मटका फोड़, पोरा अउ गणेश पूजा, दुर्गा पूजा, राम लीला आयोजन, सुरहुत्ती म दीया दान, गोवर्धन पूजा पाछू भेंट पैलगी, छेरछेरा म अन्न दान, मँड़ई अउ घासीदास जयंती जइसन कतको आयोजन म कोनो किसम के सामाजिक बंधन नइ होना सामाजिक समरसता ल प्रकट करथे। ए सबके आयोजन म जम्मो समाज के मनखे बढ़-चढ़ के भाग लेथे अउ अपन आप ल भागमानी सँहराथें। जात-पात, अमीर-गरीब अउ ऊँच-नीच के कौनो भेद नइ दिखँय। सियान मन धार्मिक मान्यता के ठउर मन के यात्रा करय आज हमर यात्रा बहुआयामी होगे हे, एमा आनंद आथे यहू ह एक ठन तिहार सहीं आय। जिहाँ सामाजिक समरसता के दर्शन होथे।

       आज के पढ़े-लिखे नवा पीढ़ी बहुत अकन आयोजन अउ परम्परा ल आडंबर, रूढ़िवादिता, अंधविश्वास कहिके खारिज करे के कोशिश करथें। हो सकत हे अइसन हो, फेर समाज ल जोरे रखे म एकर का महत्तम हे? यहू ल देखना चाही। परिवर्तन प्रकृति के नियम आय, कोनो परम्परा म जरूरी बदलाव करत ओला अपनाय के चाही। एकदम से नकार देना सही नोहय। आज समाज म पढ़े लिखे लोगन के कमी नइ हे, फेर संसो के इहू बात हे कि समाज कई कुटका म बँटे हे अउ सरलग बँटत जात हे। पारिवारिक कलह दिनोंदिन बाढ़त हवय। दाई ददा ल बूढ़त काल म छोड़ अपन मौज करत हे। अइसन म का समाज के कर्तव्य नइ बनय? कि भटकत लइका मन ल एक ठन धागा म पिरो के जोरे के उदिम करय। 

       शिक्षा के प्रसार ले वैज्ञानिक सोच अउ समझ बाढ़े हे, जेकर ले आडंबर करइया अउ पाखंडी मन के पोल खुले हे। गाँव के भोला-भाला मन ल लुटइया मन के अवसर ह थोरिक कमतियाइस हे। फेर राजनीति के फेर म पड़े इही शिक्षित मन समरसता अउ गाँव के शाँति भंग करत समाज म संकीर्णता के जहर महुरा घोरे के बुता म लगे हवय। अइसन संकीर्णता जे समाज ल धर्म विशेष अउ जाति विशेष म बाँटे म बड़ भूमिका निभावत हे। शिक्षित मनखे अपन आँखी ल मुँदे इँकर बनाय जाल म फँसे सहीं दिखत हे।    रूढ़िवादिता, आडंबर, अंधविश्वास ल उखाड़ फेंकत छत्तीसगढ़ म सामाजिक समरसता ल बनाय रखे म नवा पीढ़ी ल अपन जिम्मेदारी समझे ल परही अउ भरपूर योगदान करे के जरूरत हे। तब कहूँ हम अपन पुरखा मन के बनाय परम्परा अउ रिवाज के आनंद उठा पाबोन। एकाकी होवत जात जिनगी ल सामाजिकता के पटरी म लहुटाके भरपूर आनंद उठा पाबोन। पढ़े-लिखे के दंभ म संकीर्णता के गहिर खाई म डूबे हमर कट्टरता ले सामाजिक समरसता के तानाबाना ह तइहा के बात बनके रही जही।

पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

जि. बलौदाबाजार

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 हीरा गुरुजी समय: **छत्तीसगढ़ के तिहार मा सामाजिक समरसता**


       जइसे हमर भारत देश हा तिहार मनाइया के देश आवय। वइसने हमर छत्तीसगढ़ हा घलाव तिहार मनइया मन के प्रांत आवय। चइत महिना ले शुरु होके फागुन तक बारो महिना कोनों ना कोनों तिहार हमन मनाते रहिथन। एमा वेद पुराण अउ पुरखा मन के बनाय धार्मिक तिहार, किसानी-बनिहारी के तिहार, गांव गँवई के देव धामी ला माने गउने के तिहार, राष्ट्रीय तिहार अउ मेहा एमा सरकारी तिहार ला घलाव संघेरत हँव। ए सबो तिहार जेमा लइका, सियान, चेलिक मोटियारी अउ सबो धरम, जाति, समाज मन जुरमिल के मनाथे एक हो जाते अउ ओ तिहार मा छोटे बड़े, गरीब बड़हर के अउ गाँव मा बसेरा करइया सबो जात के मिलजुर के मनाय जाथे इही ला सामाजिक समरसता कहे जाथे।

        जब सामाजिक समरता के गोठ बात होथे तब हमर तिहार मा सबो जात धरम के मनखे के संघरे अउ मिलजुल के मनाय के बात होथे। जइसे गाँव बनई घलाव एकठन तिहार आवय एमा बइगा,सेउक,पटेल संग गाँव के अउ नान्हे बड़े किसान चाहे कोनों जात बिरादरी पौनी पसेरी होवय,सबो मन एक दिन गाँव बनाय बर संघरथे। अइसने पोरा तिहार ला जानथन। एमा कुम्हार के घर के बने नंदिया पोरा चुकी सब घर जाथे। हरेली तिहार मा रऊत चरवाहा मन गाय गरु बर जड़ीबूटी देथय जेला सबो मन खइरखाडांड़ ले अपन अपन घर ले जाथँय अउ अपन गुरुआ बछरु ला खवाथंय। इहीच दिन केंवट अपन मछरी जाली, सौंखी ला धर के गाँवभर घर घर जाथय अउ लोग लइका उपर ढाकथे। लोहार हा घर घर के मोहाटी मा खिला गड़ियाथे,अइसने बइगा हा डारा खोंचथे अउ बिदा पाथे। अक्ति तिहार मा गाँव के सबो किसान अपन खेत मा दोनिया चढ़ाथे।

          गाँव के मड़ई घलाव गाँव के एकठन तिहार आवय। एमा सबो के बुता बँटाय रहिथे। बइगा के अलग बुता, बजनिया के अपन, सेउक के अपन बुता, रऊत के अपन बुता, मड़ई धरइया मन के अलग,माने सबो झन गाँव के तिहार बर एक हो जाथे जेमा समरसता दिखथे। गणेश, जँवारा, दुर्गा, माता पहुंचानी मा सबके सब जुरमिल के काम सिधाथे।गाँव के मंदिर देवाला के लिपई पोतई सजई धजई मा सब सम्मिलहा अपन सहयोग देथय। गाँव मा मड़ई नइते तिहार मा नाचा पेखन, लीला, रामसत्ता,रामधुनी के आयोजन होथय यहू मा सामाजिक समरसता दिखथे।

     हमर छत्तीसगढ़ के सबले बड़का  तिहार देवारी मा घलाव समाजिक समरसता हा दिखथे। एक समाज कुम्हार घर ले करसा कलौरी बिसाय जाथे। एक समाज माने बइगा मन  गउरी गउरा जगाथे सुताथे अउ बरतिया निकालथे, उहीमन हूमन धूपन करथे। रउतइन हा घर के माईकोठी मा हाथा देथय। रऊत हा गाय बछरु मा सोहई बाँधथे, गोबर्धन खुंदाथे, दोहा पार के नाचथे जेमा तिहार के उछाह बाढ़ जाथे। एमा बजनिया समाज घलाव संघरे रहिथे। गरीब मन बड़हर माने मालिक घर जोहारे बर जाथय। मालिक मन उँखर खुशी मा संघरथे।अइसने होरी फागुन मा सब एक दूसर ला रंग गुलाल लगाथे झांझ मंजीरा नंगारा बजा के नाचथँय गाथँय।

      तिहार मा रोटी पीठा के घलाव अबड़ेच महत्तम हे फेर आज सब तिहार बजरहा होवत हे। पहिली तिहार के दिन घर के। बेटी महतारी मन जुरमिल के रोटी पीठा बनावय। कोनों दार पीसे ता कोनों पिसान सानय  कोनों तेलई मा बइठय। चुरे पके पाछू पूजा पाठ करके सबो झन   पीथँय। अरोसी परोसी ला घलाव बलाके खवाथे अउ उँखरो घर खाय बर जाथँय। फेर आज मनखे तिहार के दिन बजार ले खाय पिये के जीनिस लानत हे अउ तिहार मानत हे।

        सरकारी तिहार माने कतको ठन तिहार ला योजना लाके सरकार हा आँगनबाड़ी मा तिहार रुप मनात हे जइसे पोषण तिहार अउ कतको किसम के यहू मा अब सबो जात धरम के मनखे सकलावत हे अउ गाँवभर मिलके तिहार मनावत हे जेमा सामाजिक समरता दिखत हवय।


हीरालाल गुरुजी समय

छुरा गरियाबंद

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1 comment:

  1. छत्तीसगढ़ तिहार अउ सामाजिक समरसता ल लेके सुग्घर विचार संकलन

    लेखकगण मन ल बधाई

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