Friday 8 October 2021

व्यंग्य-हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा

 व्यंग्य-हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा

पनही 

                     गुरूजी के पनही , ओकर पहिचान आय । नानुक रिहीस तब ओकर ददा , जे पनही ल पहिने , उही पनही ल गुरूजी घला पहिरथे । खियात ले पहिर डरीस , फेर वा रे पनही , टूटे के नाव नइ लिस । येहा , खानदानी गुरूजी पनही आय , जेमा कभूच कभू नावा डोरी धराये बर परय । ओकर उप्पर भाग , हमेशा चकाचक रहय । ओमा कभू कन्हो पालिस नइ रंगीस , मइलइस निही त , फरिया घला रेंगाये नइ परिस । कतको झिन ओकर पनही ल देखे , संहराय घला फेर , तरी के बदहाली दिख जाय म , बदले के सलाह घला देवय । 

                       गुरूअईन घला , खियाय पनही ले बड़ चिढ़य । स्कूल जाये के बेर  भलुक पहिरन देवय फेर , संग म मइके जातिस त , ओला झनिच पहिर कहय । एक बेर घुस्सा के मारे उही पनही ला , बाहिर म फटिक दिस । खोर म परे रिहीस , कन्हो लेगिन घलो निही । ग्राम सेवक के कुकुर , एक दिन उही पनही ला सूंघ पारिस , उही दिन ले , ग्राम सेवक के रोटी खाये बर चुमुक ले बंद कर दिस । मोठ डांट कुकुर के हाड़ा हाड़ा दिखे लगिस । तीन दिन पाछू को जनी  ,  कोन ओकर दुआरी म , पनही ला फेर वापिस , फटिक दिस । ये पनही ल बरोये के , गुरूअईन नावा उपाय करिस । एक दिन  मंदिर ले वापसी म , हमर पनही नोहे कहिके , मंदिर के दरवाजा म छोड़वा दिस । उही दिन ले गुरूजी के गोड़ अनते तनते माढ़हे लागिस ..... का करबे ...... बिगन पनही के रेंगे के आदत नइ रहय , नावा पनही बिसाये के नौबत आगे , पइसा सकलइस तहन चल दिस पनही दुकान ।

                     पनही दुकान वाला पहिली बेर , गुरूजी ल अपन दुकान म देखिस , ओला बड़ अचरज लागिस । पनही देखा कहितीस तेकर पहिली , तोला उधारी नइ देवंव , कहि दिस । गुरूजी किहिस - पइसा धर के आहंव जी पनही बिसाये बर , तब दुकानदार हा गुरूजी ला , पुलिस कस अतका सवाल पूछिस के ...... जान दे । कभू पूछय , कतिहां ले पइसा अइस तोर कना ? कभू कहय , जुन्ना पनही ल उतारके फेंक दे हाबस का ? गुरूजी किथे - जुन्ना पनही ल नइ फेकें हंव बाबू , का बतांवव , गुरूअईन , मोर जुन्ना पनही ल , कनहो लेग जाय कहिके , मंदिर म छोंड़वा दिस , तेकरे सेती नावा बिसाये बर आये हंव , उधारी नइ करंव गा नगदी देहूं , नगदी ...... । घेरी बेरी , नगदी के बात सुनिस , ततके बेर ले , गुरूजी हा , पनही बेंचइया के कका बनगे । दुकानदार पूछे लगिस - कइसना पनही देखावंव कका ? गुरूजी किथे - मोर पनही ल देखेच होबे बेटा , उइसनेच देखा । दुकानदार किथे - उइसनेच पनही नइ मिल सकय , फेर ओकर ले सुघ्घर अऊ सुख देवइया पनही देखावत हंव । छांट छांट के देखाये धरीस । फेर गुरूजी के दिमाग म जुन्ना पनही के चमक छाये रहय , नावा काला भाही । तभो ले मन मार के देखे लागिस । पनही बेचइया बतावत रहय – अइसन पनही ल एकेच महीना पहिली , बीडीओ साहेब लेगे रिहीस । पहिरीस तेकर पंद्रही म , कार बिसा डरीस । उपयंत्री ला , एदइसने पनही दे हंव , चार दिन म , जुन्ना टेलीबिजन बदलगे , कम्प्यूटर अऊ नावा बुलेट ले डरिस । पटवारी ल तो जानतेच होबे , उहू मोरे करा के पनही लेघथे , जब लेगथे , ओकर सुआरी , आधा तोला सोना जरूर बिसाथे । तैं पहिली घांव मोर दुकान म , आये हाबस गुरूजी , पहिली आते ते तहूं ला , मोर पनही , मालामाल कर देतिस । गुरूजी जनम के सिधवा , अड़हा अऊ निच्चटेच मनखे ताय गा । साध लागगे वहू ल अइसन पनही के , जे पनही हा मनखे ल , मंडल बना देथे । गुरूजी किथे - ओकर ले अऊ अच्छा देखा । दुकानदार किथे – येकर ले अच्छा अऊ महंगा पनही ला , सिर्फ देख सकत हस , बिसा नइ सकस , तोर औकात निये गुरूजी । औकात सब्द सुनके , गुरूजी के हाथ नारी जुड़ागे । अपन औकात टमरे लागिस अऊ वापिस औकात म उतरगे । औकात पुरतीन पनही हा , उप्पर ले बड़ चमकत रहय , फेर पेंदा फटहा । गुरूजी किथे ..... अइसन चिरहा फटहा पेंदा के पनही तो मोरो तिर रिहिस ..... थोकिन बने वाला ला नइ देखातेव जी ? बाजू के दुकान म , अपन छुरा टेंवत नऊ मारिस टप्पले – एक तो तोला तीन चार महीना म एक घांव तनखा मिलथे । उहू म बीओ आपिस के लार चुचवाथे । ले देके जे हाथ आथे , तेला नंग़ाये बर किराना वाला आफिस के आगू ठाढ़हे मिल जथे । महीना के आखिरी उन्तीस दिन , एक लांघन एक फरहर करके गुजरथे अऊ तेंहा महंगा पनही के साध करथस गुरूजी ? ओकर गोठ गुरूजी ल जंचगे , इही ल बिसाये के सोंच डरिस । किम्मत पूछीस त , पनही बेंचइया किथे – ये पनही कुछ समे ले मोर दुकान के शोभा बढ़हावत रिहीस , येकर बर उचित मनखे के तलास पुरगे , एकर का किम्मत , अइसने फोकट म लेगजा । या ……. गुरूजी घला , इही दुकान के पनही पहिरे ला धर लिस कहिके , कनहो झिन जानय , तेकर सेती , पनही ल छाती म लुकाके ले आनिस ।

                      गुरूअईन ल सरप्राइज देहूं सोंच , कलेचुप अंगना म मढ़हा दिस । आरो पाके , कपाट म सपटके देखे लागिस , तभे ………. उहीच पनही ल देख , बखानीस अबड़ गुरूअईन हा । गारी बखाना सुन , कपाट के ओधा ले निकले के , गुरूजी के हिम्मत नइ होइस । काये करही पनही संग , अगोरे लगिस ...... , मन भर के बुड़बुडा के , लात मारत रेंगिस गुरूअईन दई ..... कपाट तरी सेंध म लुकाये गुरूजी के , गोड़ तिर , खुदे पहुंचगे पनही ....... । मोर भाग म इहीच पनही आय कहिके ..... हाथ म धर के , आंखी के पानी म भिजो डरिस , करेजा के टुकड़ा कस सहला डरिस , धिरलगहा अपन गोड़ म डारके , स्कूल पहुंचगे । वापसी म , गाजा बाजा भीड़ भाड़ देख के , थिराये गुरूजी ल , उही नऊ फेर मिलगे । नऊ किथे - गुरूजी ये पनही तुहींच ल फबथे ... दूसर ल नइ फबय । येला बीडीओ साहेब लेगिस , दूसरेच दिन ससपेंड होगिस , वोला वापिस करिस तभे बहाल होइस । उपयंत्री लेगिस , त नक्सली एरिया म ट्रांसफर होगे । जावत जावत पनही ल वापिस लान के मढ़हा दिस । पटवारी पहिरीस , त ओला , काकरो बूता काम ठीक से नइ कर सकस कहिके , आपिस अटेच कर दिन । उहू वापिस कर दिस । वाजिम म ये पनही , ये दुकानदार के नोहे , बहुत दिन पहिली , एक ठिन कुकुर लानके येकरे दुकान म मढ़हा दे रिहीस । ओहा एक दिन इही पनही के चमक के लालच म , इही ला पहिरके , प्रेस कान्फ्रेंस म जा पारिस । उहां सच बोले बर धर लिस । अपनेच मुखिया उप्पर , भ्रस्टाचार के कतको प्रमाण , जनता ल बता दिस । पार्टी ले निकाला होगे । एकर हालत बिगड़गे । तभो ले ये लालची राजनेता हा ..... दुकानदार बनके , यहू ल घेरी बेरी बेंचे के , प्रयास म लगेच रहय ..... फेर जे लेगय तेकरे हालत अइसे खराब होगिस के वापिस करे बर मजबूर हो जावय । आज बिहिनिया , जइसे ये पनही एकर तिर ले परमानेंट टरिस , मंझनिया पार्टी ले फेर बुलावा आगे , अऊ तिहीं देख ....... संझाकुन बिधानसभा के टिकिस हाथ म आगे ...... ओकरे बाजा गाजा बाजत हे .... । 

                     वाजिम म , ये ईमानदारी के पनही रिहिस , जेला हरेक मनखे नइ पहिर सकय । यहू पनही ल बेंचे के कोशिस म , कर्णधार मन लगे हाबय । बेईमानी के पनही पहिर के , भुकुर भुकुर के खा सकत हन , फेर ईमानदारी के पनही पहिरइया बर जिनगी भर हरहर कटकट ताय जी ...।   

 हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा

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