Wednesday 20 October 2021

हमर जमाना म-जी पी साहू

हमर जमाना म-जी पी साहू


 *"हमर जमाना" के सुरता करके कूछु गोठ- बात करे ले या संस्मरण लिखे ले हम ला अईसन लगथे-"जाना के हमन सतजुग,त्रेता, द्वापर,कलजुग चारों जुग ला देख चुके हन, जी चुके हन अउ "चिरंजीवी जामवंत" सहीं   जिनगी के अनुभव के विशाल भंडार भरे हवय*

     *ये क्षणभंगुर जिनगी म निस-दिन,हर पहर,हर घड़ी,हर पल असंख्य प्रकार के इच्छा,मनोकामना उत्पन्न होवत रहिथे | तेकरे सेती असंख्य प्रकार के  दुख-सुख, हंसी-खुशी, अम्मट-मीठ,करू-कस्सा के अनुभूति होवत रहिथें*

     *अगर फसलें ख्वाब की तैयार हों,तो समझो फिर वक्त आ गया है-"दुख के बीज बोने का", इस शेर का संदेश अकाट्य सत्य है*

     *अपन संस्मरण ला आत्मने पद म लिखे बर पड़थे,जेमा प्रथम पुरूष-मैं, मोर,मोला, शब्द से वाक्य के सुरूआत होथे |जब मैं तीन बच्छर के रहेंव,तोतली भाषा म गोठियावत रहेंव,मोर पाठ के छोटे बहिनी कौशिल्या ह साल भर के हो गए रहिसे,तब भी मैहा दाई के दूध पीयत रहेंव*

     *हमर घर एक पहटिया के लाईक गाय-भैंस रहिसे, रोज बड़े बिहनिया ले राऊत जेला बईहा राऊत कहत रहेन,गाय-भैंसी दुह के बाल्टी भर दूध मुड़हर घर के दुवारी म रख देवत रहिसे,तब ऊपरे-ऊपर के दूध जेमा गजगजा भरे रहय,तऊने म के मैं अउ मोर बहिनी कौशिल्या एक-एक कटोरा निकाल के पोगरिया लेवत रहेन,तऊने कुनकुन गरम दूध म दाई हा एक-एक पसर लाई अउ मधुरस डार देवत रहिस,एही हमर बिहन्हे के नास्ता होवत रहिस*

     *वो बाल्टी भर दूध ला एक कौड़ा म छेना के आगी म धीरे-धीरे चुरोवत रहिस,रोटी असन मोट्ठा साढ़ी परत रहिस,तब अंगाकर रोटी के संग अउ भात के संग दाई ह फेर दूध भात देवत रहिस, ये किसम के नानपन के दूध,दही,मही,घी के सुरता अब सिरिफ सपना हो गे ! अब तो चाय बर आधा पौवा दूध खोजें ले गांव भर म आध पौवा दूध नइ मिलै,कभू मिल भी जाथे,तौ आधा दूध-आधा पानी |  अब घचर-पचर के जिनगानी,आधा तेल-आधा पानी"अब गाय के सेवा करैया तो"सत म सती कोट म जती"असन हो गए हवय ! शहर के डेयरी दुकान म देखबे,तव बड़े-बड़े गंजा म लबालब दूध दही भरेच रहिथे, पता नही कहां से कईसे ये दूध दही भरे रहिथै ?*

     *वो बखत हमर घर  अउ गांव-बस्ती म अत्तेक दूध-दही होवय के "बटकी भर भात म बासी असन दूध भर के खावत रहेन, तव हमर वो बचपना ह जाना के "द्वापर म जिनगी जीये हन | "द्वापर म दूध-दही,त्रेता म घी,अब कलजुग म लाल चाय फूंक-फूंक के पी"*

    *हमर समय के संपतराम,सुखीराम,आनंदराम मन पेट भर  दूध दही घी खा-पी के एकदम शेर सहीं दहाडैं,अउ बड़े-बड़े मुसीबत ला पछाड़ैं ! कई कोस कांवर बोहि के रेंगते जावत-आवत रहिन,कभू थकासी के नाव नइ लेवत रहिन,अब के लईकन मन एक कदम जाना होथे,तब मोटरसाइकिल दौड़ावत जाथें,चाहे पेट्रोल के भाव ह कतको आगी लगत जावत हवय !|अब के मनखे मोंटू,पींटू टींकू अउ बीपतराम मन दारू,गुटका,तम्बाखू खा के पेट म अल्सर,गर म कैंसर अउ नाना प्रकार के बीमारी के शिकार हो गईन ! अब्बड़ेच दुख लगथे-पहिली के सियान मन आशीष देवत रहिन-"दूधो नहाओ" तऊन आशीर्वाद ह अब गलत साबित होवत हे !*

 

दिनांक-२०.१०.२०२१


     (क्रमशः-२)


आपके अपने संगवारी

  *गया प्रसाद साहू*

     "रतनपुरिहा"

मुकाम व पोस्ट-करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर

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