Monday 25 October 2021

भैंसा गाड़ा के सुरता"-सरस्वती राजेश साहू

 "भैंसा गाड़ा के सुरता"-सरस्वती राजेश साहू

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मोला आज ओ दिन के सुरता आवत हे जभ मय दस,गियारा साल के रहेंव । मय किसनहा गौठिया घर के बेटी आँव फेर हमर घर म सबो  बूता खुदे घर के मनखे मन ल करे बर पड़य। नल नइ रहिस तो कुँआ, तलाव अऊ बोरिंग ले पानी डोहारन, फेर गरुवा, बैइला डिलाय त खैइरखा म गोबर सैंते जान ओखर ले कोठा ल अम्मा ह सकेलय अऊ गोबर, कचरा ल हमन बहिनी मन ल बोहावय त दूरिहा घुरुवा म फेंके ल जान ओही कोती तलाव ले नहा धो के घर आन बासी खावन, तिआर होवन अऊ इसकूल पढ़े ल जान ऐहर हमर रोजेच के बूता रहय। 

      फेर मय ओ बेरा के सुरता ल बतावत हव जभे किसानी के बूता जेठ के उतरती अऊ असाढ़ के लगती म चालू हो जावय ये हर ऐ घुरुवा के गोबर खातू ल खेत म ले जाके छैइरे बर के बूता। हमर घर म गरुवा, बैइला, भैंसा, नांगर, गाड़ा सबो रहय। खातू फेके बर गाड़ा भैंसा ल लेगय। साँझकन खातू ल सबो मइ,पिला मिलके गाड़ा म भरके राखे रहन तहाँ खेत म लेजाय बर बाबू हर भिनसरहे चार बजय तहाँ मोला उठावय अऊ अपन संग म लेगय हमर बाबू अड़बड़ गुस्सेलहा तेकर डर म अदकुचरा नींद म आँखी ल रमजत झटकन उठ जाँव अऊ भैंसा ल ढिलय त ओला खेदत गाड़ा मेर लेगँव बाबू हर भैंसा ल गाड़ा म फांदय अऊ गाँव के डहर ले लेजाके सड़क के डहर म जोर देवय तहाँ मोला डहरे -डहर खेत कोती खातू गाड़ा ल ले जाबे कहिके अऊ अपन ह बाहिर, भांठा ले आवत हँव कहिके बेलहा के नरवा कोती चल देवय। मय हर गाड़ा के खातू ऊपर बोरी ल बिछा के बैइठे भैंसा मन ल खेदत सड़क के तीरे तीर लेगत गाड़ा म जात रहँव तेला देख के सड़क के अवैय्या, जवैय्या मनखे मन अचंभा रहय। कोनो मन सोग करय त कोनो मन सँहरावय अऊ कोनो मन हाँसय,सीटी बजावय अऊ बेलबेलाहीपन देखावय। मोला ऐ सबो के बरताव म ककरो बने लगय त नमस्ते कर दँव नहि त गुसिया के बीबरा तको दँव। लैइका जात रहेंव त ओतेक गियान नैइ रहय ।मय अपन गाड़ा म खुसी -खुसी जावँव। फेर बेरा ह जादा अंजोरे नइ रहय त अकेल्ला म थोरकन डर लागय। तभे खेत पहुँचते-पहुँचते बेरा पंगपंगा जावय अऊ खेत के रद्दा पहुँती म बाबू घलो खेतउरी के डहर ले पहूँच जावय। खेत म खातू ल आने -आने जघा कुढ़हा म उलद के फेर आ जावन। खेत ह बड़ दूरिहा हे तेकर ले दूये खेपी खातू ल भरके ले जाय सकन। 

       आखिरी म फेर दू , तीन झन मिलके गाड़ा म गोबर खातू ल भरन, भरके फेर असनांदत, खोरत घर आ जावन। भराय गाड़ा ल दूसर बेरा एक घाँव लेगन तहाँ फेर संझा भरके राखे रहन तेला बिहान दिन लेगन। ए बूता ह हपता, डेढ़ हपता चलय ।

जभ खातू फेंका जावय तहाँ राँपा, झऊहा धरके दीदी, मय अऊ अम्मा करके बिहनिया एक जुअर खातू मन ल छैइरे बर जावन। एको दू सरवर पानी गिरय तहाँ नांगर जोताई चालू हो जावय। 

   ऐही समे जमनी खूब फरे रहय तेला खाये के साध म बिकट खेत जावन, जमनी खावन अऊ बूता तको करन। परसा पान के बड़े -बड़े खलोरा बनाके ओमा जमनी धर के घर लावन बड़ मजा आवय। हमन कोनो बूता ल छोटे, बड़े या टूरी, टूरा के बूता ए कहिके भेद नइ करेन सबो बूता ल अपन समझ के खुशी -खुशी करेन। अभे ओ समे ल गुनथँव त मोही ल अचम्भा लागथे काबर की  आज काल तो लैइका ल कोन पूछय सियानो मन अइसनहा बूता करे बर कचुवाथे। जेन बनेच कमजोरहा रथे इया बनी-भूती करवैया मन करथे। 

ओ समे ए सबो बूता मन हमर ब बूता नही खेलवारी रहय। 

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सरस्वती राजेश साहू 🙏🏻

ग्राम -चिचिरदा, बिलासपुर (छ. ग.) 

रचना काल -25,10,2021

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