Wednesday 20 October 2021

हमर जमाना मा - सियान मन ला पोठ डररावन* मयारू मोहन कुमार निषाद*

 *हमर जमाना मा - सियान मन ला पोठ डररावन* 

मयारू मोहन कुमार निषाद*

आज के विषय म गोठ आइस अपन जमाना के तव मोला अपन ननपन मा लइकापन के सोनहा सुरता मन के खियाल आथें । कि जब हमन छोटे राहन त घर के सियान का गाँव के सब बड़े ददा कका बाप मन ला घलो पोठ डररावत रहेन । काबर सियान तो सियान होथें घर के काहवँ चाहे बाहर के , वो समे के बात अलगे रिहिस हें । आज कल के लइका मन ला तो अपने दाई ददा मन घलो नइ बरज सकय , त बाहिर वाला मन के तो गोठ ही छोड़व । बचपन म तरिया नंदिया मन म नहाय के मजा अलगे रिहिस हे , मोला सुरता आथे हमर गाँव के नंदिया के जेमा हमन बिहनियाँ अउ मंझनिया पोठ डुबक - डुबक के नहावत रहेन । अउ तब सियान मन के बरजे मा ही निकल के घर आवत राहन तव कई दिन मार घलो खावत राहन ।


 ओइसने दू जघा के सुरता मोला आवत हे ननपन के जब गाँव के एक झन सियान अउ स्कुल के गुरूजी ह हमन ला सोटियाय राहय । गरमी के दिन राहय अउ मंझनिया कुन हमन सबो संगी साथी जाके नंदिया के रेती मा खेलन अउ पोठ डुबक - डुबक के नहाँवन । वो समे नंदिया उथली रिहिस हें बड़ मजा आवय । एक दिन ओइसने नहाँवत राहन त हमर गाँव के एक झन बड़े ददा हमन ला देख डरिस अउ हमन निकल के कपड़ा लत्ता धरके भागतेन तेखर पहिली ही वो हा हमर पेंठ कपड़ा मन ला धरलिस । फेर दू - चार चटकन सबो झीन ला दिस अउ समझावत किहिस मंझनी मंझना झन नहाय करव रे नंदिया मा हंडा हे कहिके । तब ले हमन हंडा के डर मा अकेल्ला दुकेल्ला नंदिया नरवा म नहाय ला जाय बर छोड़े राहन ।


 अब लइकापन अउ ननपन मा तो उदबिदहा उतलंगहा सबो रहिथें हमू मन रहेन , स्कुल मा पढ़े बर पास के गाँव गोढ़ी मा जावन रेंगत रेंगत । रस्ता मा एक ठन खदान पड़य हमन पहिली तो वोमा पोठ नहातेन तेखर बाद स्कुल जातेन । ओइसने एक दिन खाना छुट्टी होइस गरमी के दिन राहय स्कुल मा पंखा तको नइ राहय वो समे , मनमाड़े गरमी करत राहय हमन तरिया चल देन अउ पोठ  नहाँवत राहन । गाँव के कोनो जाके बतादिस गुरूजी तोर लइका मन तो तरिया मा जाके मार डुबकत हे कहिके । अब गुरूजी पोठ बगियाय तरिया आवत राहय , हमन दुरिहा ले देख डरेन अउ चिन डरेन गुरूजी आय कहिके । वो तुरते कपड़ा लत्ता धर के हमर मन के भगान नइ बनिस सब के सब वो दिन पल्ला भाग गेन । दूसर दिन गुरूजी हा सबो झीन ला चिन डर राहय अउ स्कुल गेन ताहन पोठ ठठाइस अउ समझाइस अब कहुँ जाहू नइते मार पड़ही बेटा हो कहिके ।


 *वो जमाना मा वीसीआर टीवी देखे के सुरता : -* हमन छोटे - छोटे राहन गाँव म एक्को ठन टीवी नइ रिहिस , जब काखरो घर छट्ठी होतिस त हमन वो दिन जान डरन आज वीसीआर आही रे कहिके , अउ हमर खुशी के तो फेर झन पूछ ठिकाना नइ राहत रिहिस । आज तो रात भर देखना हे कहिके तईयारी करतेन फेर सियान मन हा चलव रे घर जाँव सुतहुँ कहिके चेचकार के रातकुन खेदार  देवत रिहिन हें । वो दिन संझा होतिस तहा ले हमन कतेक दुरिहा पहुँचे हे वीसीआर वाले मन हर कहिके देखे बर रद्दा मा पहुँच जवत रहे हन । भले काखरो घर टीवी नइ रिहिस हें फेर गाँव भर लइका सियान बुढ़वा जवान सब एक जघा सकला के वीसीआर देखें के वो समे मजा अलगे रिहिस हे ।  


                  *मयारू मोहन कुमार निषाद*

                  *छंद साधक सत्र कक्षा - 4*

                  *गाँव - लमती , भाटापारा ,*

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