Wednesday 20 October 2021

कातिक नहाय के चुलुक मा बिहनिया उठे बर सीखेन*

 *कातिक नहाय के चुलुक मा बिहनिया उठे बर सीखेन*


         कहे जाथय संस्कार अउ परंपरा ला एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी मा लेगे बर पीछू के पीढ़ी अउ आगू के पीढ़ी ला जोड़इया के बूती होथे। जब तक ये जोड़इया नइ रहय कोनों संस्कार आगू नइ बढ़य। जौन मन लइकापन ले चेलिक होवत जाथे ओमन अपन संग नान्हे लइका ला संघेर के कोनों परंपरा ला सिखोथे ता आगू उही हा ये परंपरा ला बढ़ाथे। चेलिक मन ला सियान मन चाहे घर के होवय कि गांव के उनला संघेर के कोनों परंपरा जइसे पहुंचानी, गाँव बनई, मड़ई मा देवता धामी के नेवता पूजा मा लगइया जिनिस मनला बताही ता अवइया बेरा मा इही चेलिक हा गाँव के सियानी करही अउ परंपरा ला निभाही।घर मा पितर ला पानी देवई, अक्ती मा दोना चढ़ई , हरेली के पूजा अउ अपन जाति के परंपरा ला आगू बनाय राखेबर रिकिम रिकिम के चलागन। राउत बरदिहा मन सोहई बनाय बर चेलिक ला नई सिखाही ता सिंधी के दुकान मा बेचाई, जइसे प्लासटिक के सुपा टुकना बेचावत हवय।

          फेर आज न लइका मन चुलुक(ललक) करत हे न चेलिक मन बलावत हे अइसने न चेलिक मन सियान संग संघरे के चुलुक करत हे न सियान मन चेलिक जवान ला संघेरत संग मा बइठावत हे। एखर फल हमन ला अपन घर अउ गाँव के परंपरा मा देखेबर मिलत हे। पढ़े लिखे नोनी मन तो मोबाइल ले दुरिहावत नइहे, कुरियइ ले नई निकलत हे। बर बिहाव मा नेंग के गाना गवइया नइ मिलत हे, चुलमाटी से टिकान अउ बिदा के गीत गाय के ठेका डीजे माइक वाला मन ले डरे हे।मैन नाचा,नकटा नाचा, बरात परघनी, लाल भाजी, टिकान सब डीजे मा चलत हे। हमर अप्पड़ डोकरीदई ला सब गाना आवय। हमर दाई ला गउरा गीत गावत देखे अउ सुने हँव। हमर गोसाइन 12 वी पास फेर एको ठन परंपरागत गीत ला गाय बर कबे ता छू लम्बा..। काबर कि कभू अपन बड़े मन संग बइठे नइ रहिस। अइसने कतको पढ़ लिख मास्टरिन, डाक्टरिन, अधिकारी बनगए फेर संस्कार अउ परंपरा मा फोकला। बबा जात मन तो एखरो ले गय बीते। गाँव के बइगई ला अनपढ़ नइते कम पढ़े लिखे सियान हा करही। पढ़े लिखे मन अतिथि बनबो कथे। एखरे सेती कतको परंपरा हा अब छुटत अउ बंद होवत हे।

       ‌कातिक महिना आगे। हमर पाहरो मा पांच बच्छर ले बारा तेरा बच्छर के नोनी बाबू लइका मन ला कातिक नहाय बर भारी चुलुक रहय। लइकाच मन चरबज्जी बिहनिया सुकुवा उवे के बेरा ले घरो घर जा के हाँका पारय.... चलो उठो, कातिक नहाय बर चलव। उठइया के पारी लगय... जेखर पारी रहय...वो अपन घर मा दाई ददा ला बताके सुतय कि मोला आज जल्दी उठाहू... मँय सब ला उठाय बर जाहूँ। एक घर ले दू, दू ले तीन करत गली भर ला किंदर के कोरी डेढ़ कोरी लइका होके सब तरिया पार अमरन। सबो मन ला उठावत ले एक घँटा ले आगर घलो जावय। सब झन अपन अपन ठउर देख के नहावन पाछू शंकर पारबती के निमित दिया अगरबती बार के थपरी पीट के आरती गावन।जौन मन देरी मा आवय ओमन आरती मा संघर जावय।बड़ेमन कतको झन दोना मा फूलबत्ती बना के दिया ला तरिया मा दान करय। अतका करत ले बेर उवे के बेरा हो जावय। पून्नी के दिन आँवरा भात के दिन रहय। सब घर ले चाँउर तेल शक्कर गहूँ पिसान सकेलन अउ तरियापार मा तसमई, सोंहारी बनावन। आधा लइका ला परसा पाना मंगावन अउ पतरी बनायबर लगन। सब के अलग अलग बूता जोंगाय रहय। अपन अपन बूता ला सब जिम्मेदारी ले करँय।  गाँव भर के आवय तौन ला परसाद बाँटन।आज घलो कतको गाँव मा होवत होही फेर ओखर सरुप बदलगे हावय। अब आँवरा भात हा पिकनिक होवत हे। चाहे कोनों कातिक नहाय चाहे नइ नहावय पइसा बरार करके भंडारा, पिकनिक जरुर होथे।

      

हीरालाल गुरुजी समय

छुरा, जिला गरियाबंद

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