हमर जमाना म-सरला शर्मा
********
संस्मरण लिखे के एक बहाना मिल गिस त सुरता के बैला गाड़ी बहुत पीछू छूट गए गाड़ा रवन मं हालत ,डोलत रेंगे लगिस फेर बैला मन के गर मं बंधाये घण्टी अउ चक्का के चरर मरर के संगीत संग मन बइहा तइहा दिन के बिरहा गुनगुनाए लगिस ।
मैं कलम धरे तो रहेंव फेर प्रकाशन के सुजोग 1967 के कल्पना पत्रिका मं पहिली बार मिलिस ओहू हिंदी कहानी के रूप मं । ओ समय धर्मयुग , साप्ताहिक हिंदुस्तान , नवनीत , कादम्बिनी , नई कविता असन राष्ट्रीय स्तर के पत्रिका लोगन पढ़यं , थोरकुन अउ पीछू डहर चलिन त सुधा , काव्य कलाधर , सुकवि समीक्षा , संगीत असन नामी गिरामी पत्रिका प्रकाशित होवत रहिस ...। ओ ज़माना मं लिखइया कम रहिन , शिक्षा के प्रचार प्रसार संवागे नइ होए पाए रहिस ओहू गद्य लिखइया कम रहिन .त ओमन ल आत्म प्रचार के सुजोग कम मिलय ।
कवि सम्मेलन मन मं कवि मन ल सुजोग जादा मिलय काबर के ओ समय शैक्षिक , साहित्यिक मनोरंजन के माध्यम कम रहिस । धीरे बाने लोगन नागपुर आकाशवाणी जाए बर सुरु करिन त हमर छत्तीसगढ़ के रमा देवी असन कवियत्री मन ल भी रेडियो सीलोन मं काव्य पाठ करे के सुजोग कभू कभार मिल जावय । बाद मं तो रायपुर आकाशवाणी के स्थापना होइस त कवि गोष्ठी ,परिसंवाद , साक्षात्कार असन कार्यक्रम के माध्यम से साहित्यकार मन ल प्रचार , प्रसार के सुजोग मिलत गिस । तब साहित्यकार मन तीरन पुस्तक प्रकाशन बर पैसा भी कम रहय फेर तीर तखार मं प्रकाशक घलाय नइ मिलत रहिन , इलाहाबाद , मेरठ , सहारनपुर , दिल्ली के प्रकाशक मन के शरण परे बर परय ।
सबले बड़े बात के साहित्यकार मन के मन मं आत्म प्रचार के ललक , सम्मान प्रतिष्ठा , जस बगराये के प्रवृत्ति नइ रहिस उनमन साहित्यसाधना करयं , व्यवसाय संग साहित्य जुरे नइ पाए रहिस ते पाय के आत्म सजगता के कमी रहिस । बहुत कम झन रहिन जेमन अपन प्रकाशित , प्रसारित रचना मन ल संजो के राखिन । छत्तीसगढ़ी मं लिखइया , पढ़इया कम रहिन ते पाय के छत्तीसगढ़ी साहित्य के विकास के धारा के गति कम रहिस ।
अब आज के ज़माना ल देखिन त आज शिक्षा के प्रचार प्रसार बाढ़ गए हे त पत्र पत्रिका के प्रकाशन भी बढ़े हे , लेखक लेखिका के संख्या बढ़ गए हे जेहर बड़ खुशी के बात आय । आज के साहित्यकार मन मं आत्म प्रचार , सजगता , प्रकाशन के सुजोग ल चीन्हे जाने के गुन आ गए हे । सबले बड़े बात अब तो प्रिंट मीडिया संग सोशल मीडिया भी सक्रिय हे देखव न ई पत्रिका के महता बढ़त जावत हे ...फेस बुक , व्हाट्सएप , ब्लॉग कतको कन नवा माध्यम मिल गए हे । साहित्यिक संगोष्ठी , कवि सम्मेलन , परिचर्चा , वेबिनार अउ का चाही ? आज साहित्यकार मन बर कोनो गाड़ा रवन के जरूरत नइये , आकाश मं उड़ियाये के सुजोग मिले हे एकर फायदा नुकसान दूनों हे तभो माने च ल परही के आत्म प्रचार के जतका सुजोग आज मिलत हे हमर जमाना मं ओतका नइ मिलत रहिस । आज के नवा लिखइया मन से मोर बिनती हे समय सुजोग के फायदा जरुर उठावव फेर एक बात उपर धियान देहे च बर परही ओहर आय भाषा ...कइसे ?
एतरह के आवागमन के सुविधा बढ़त जावत हे , रोजी रोजगार के स्वरूप बदलत हे तेकर चलते संसार हर छोटे हो गए हे ठीक हथेरी मं रखे अंवरा असन ..त भाषा के स्वरूप घलाय ल तो विस्तार मिलबे च करही न ? भाषा के स्वरूप संग साहित्य घलाय तो जुरे हे न ...?
छत्तीसगढ़ी साहित्य पढ़व , लिखव , प्रकाशित करव एहर हमर प्रांतीय भाषा महतारी भाषा आय फेर राष्ट्रीय भाषा हिंदी के साहित्य , अंतर्राष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी के ज्ञान ,साहित्य के चर्चा करत चलव काबर के हमर अवइया पीढ़ी ल उदर भरण के भाषा अउ साहित्य के जानकारी देना हर भी तो हमरे जिम्मेदारी आय । सुजोग मिले हे तेकर फायदा भी तो आज के पीढ़ी ल मिलना चाही अउ एतरह आज के जमाना के लिखइया मन के जिम्मेदारी घलाय तो बढ़ गिस न ?
हमर जमाना के साहित्यकार अउ आज के लिखइया मन के बीच सामाजिक , साहित्यिक , प्रासंगिक लेखन के बीच इही बदलाव दीखत हे ।
सरला शर्मा
दुर्ग
No comments:
Post a Comment